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________________ स्वास्थ्य अधिकार मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर स्वास्थ्य अधिकार मंगलाचरण जिनेन्द्रमानंदित सर्वसत्वं, जरारुजामृत्युविनाशहेतुं । प्रणम्य वक्ष्यामि यथानुपूर्व, चिकित्सतं औषधमहाप्रयोगैः॥ अर्थ- सर्वलोक को आनन्दित करने वाले तथा जन्म-जरा-मृत्यु को नाश करने के लिए कारणीभूत श्री जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार करके अब मैं औषध महाप्रयोगों के द्वारा यथाक्रम चिकित्सा निरूपण करूँगा। चिकित्सा प्रकरण (१) औषध क्रिया की परिभाषा १. स्वरस क्रिया- जो वनस्पति ताजी हो, कीड़ों से खाई हुई न हो, जिसकी मिट्टी आदि साफ कर दी हो ऐसी वनस्पति को तत्काल कूटकर, मसलकर वस्त्र आदि से निचोड़कर उसका रस निकालने को स्वरस कहते हैं। यदि ताजी वनस्पति न मिले तो सुखी औषधि को दुगने पानी में चूर्ण कर मिट्टी के बर्तन में दिन-रात भीगने दें, फिर उसे वस्त्र से निचोड़कर छान लें। अथवा सूखी औषधि को आठ गुना पानी में ओटाकर चौथाई रह जाय तो छानें। यह स्वरस बनाने की विधि हैं। कल्क क्रिया की विधि- गीली वनस्पति को चटनी की तरह पीस लें तथा सूखी औषधि को पानी के साथ पीसकर तैयार कर लें इसे कल्क विधि कहते हैं। ३. क्वाथ (काढ़ा) क्रिया- औषध से १६ गुना पानी डालकर मिट्टी के बर्तन को आग पर चढ़ा दें, आँच मंद रखें तथा पात्र का मुँह खुला रखें, जब पानी का अष्टाँश रह जाय तो उतार कर छान लें और कुछ गर्म रहे तो पीलें। इसे क्वाथ (काढ़ा) कहते हैं। ४. हिम-क्रिया- औषध को कूटकर छह गुना पानी में रात को भिगोकर, प्रातः काल छानकर पीवें इसे हिम (ठन्डा क्वाथ) कहते है। ५. फाँट-क्रिया- वनस्पति का महीन चूर्ण बनाकर रखलें, फिर मिट्टी के पात्र में एक पाव पानी डालकर आग पर औटावें और फिर उस चूर्ण को डाल कर फिर ठण्डा कर लें, इसे फाँट कहते हैं। ६. चूर्ण क्रिया- अत्यन्त सूखी वनस्पति दवा को कपड़े से छान ले उसे चूर्ण कहते हैं। यदि नीम्बू के रसादि का पुट देना हो तो उस रस में चूर्ण पूर्ण रूप से भीग जाय उतना मिलना चाहिये। 519
SR No.009381
Book TitleSwasthya Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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