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स्वास्थ्य अधिकार
मन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
3. जिस रोगी के नाक की नोक ठण्डी हो तथा टेढ़ी हो गई हो और शरीर में
शूल चले तो उसकी मृत्यु समीप हैं। 4. जिस रोगी की कांति, बल, लज्जा आदि नष्ट हो जायें व स्वभाव क्रोधी जैसा
हो जावें, वह रोगी ज्यादा से ज्यादा छह मास तक जीवित रहता है। 5.जिस रोगी को पसीना किन्चित भी न आवे और कामदेव से हीन हो जावे तो
वह तीन मास में मरेगा। 6. जिस रोगी को पानी में सूर्य का प्रतिबिम्ब कटा हुआ चारों ही दिशा में दिखने
लग जावें तो वह क्रम से 6-3-2-1 मास में मरेगा। 7. जिस रोगी को सूर्य-चन्द्रमा का धुंए का सा रंग दिखे तो दस दिन में और प्रतिबिम्ब में दक्षिण की ज्वाला दिखे तो तत्काल मृत्यु होवे। 8. जिस पुरूष की नेत्र ज्योति न रहे और नेत्रों में पीड़ा होवे तो वह चार मास में मरे। 9. जिस रोगी के दाँत और अण्डकोश दबाने से कुछ भी पीड़ा न हो तो वो तीन महीने में मरेगा। 10. जिस रोगी के निरन्तर सूर्य स्वर चले और चन्द्र स्वर न चले तो उसकी मृत्यु 15 दिन में होय। 11. जिस रोगी का मल-मूत्र और अधोवायु एक साथ ही निकले वह 10 दिन तक जियेगा। 12. जिस रोगी को अपनी भृकुटि न दिखे उसकी 9 दिन में और कानों से शब्द न सुने तो 7 दिन में तथा तारा न दिखे तो 1 दिन में मृत्यु जानो। 8. यदि किसी रोगी के ललाट पर चन्दनादि का तिलक न सूखे तो तुरन्त मृत्यु जानो।
(23) ज्वर रोग के कारण जैसे जंगल में जानवरों का राजा सिंह होता हैं वैसे शरीर में समस्त रोगों का राजा ज्वर (बुखार) होता है। ज्वर मुख्य रूप से आठ प्रकार का होता है। 1. वात ज्वर, 2. पित्त ज्वर, 3. कफ ज्वर, 4. वात-पित्त जवर, 5. वात-कफ ज्वर, 6. कफ-पित्त ज्वर, 7. सान्निपात ज्वर, 8. आगन्तुक ज्वर। इन आठ प्रकार के ज्वरों से अनेक तरह के ज्वर उत्पत्र होते हैं। साधारणत: समस्त प्रकार के ज्वर अहितकर होते हैं, आहार जैसे प्रकृति के विरूद्ध, असमय तथा अधिक मात्रा में, अहितकारी विकार से उत्पत्र होते हैं। आमाशय में रहने वाली वायु, पित्त और कफ दोष, अनुचित आहार-विहार से कुपित होकर पेट की अग्रि को बाहर निकालते हुए रस आदि धातुओं को दूषित करके बुखार पैदा कर देते हैं।
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