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स्वास्थ्य अधिकार
मन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
(12) वायु कोप का समय दिन का अन्त और रात का अन्त तथा भोजन पचने के बाद व वर्षा ऋतु, हेमन्त ऋतु व शिशिर ऋतु वायु कोप का समय है, वृद्धावस्था में प्रायः वायु का कोप रहता है।
(13) पित्त कोप का समय गर्मी का समय, शरद ऋतु, मध्याह्न काल, आधी रात और भोजन पचते समय तथा जवानी में पित्त कुपित होता है।
(14) कफ कोप का समय बसन्त में, दिन के पहले भाग और रात के पहले भाग, भोजन करते समय तथा बालकपन में कफ कुपित होता है।
(15).वात प्रकृति का लक्षण जो व्यक्ति थोड़ा सोता है और अधिक जागता है, जिसके बाल छोटे तथा कम होते है, जिसका शरीर दुबला-पतला होता हैं, जो जल्दी-जल्दी चलता है, जो ज्यादा बोलता है। जिसका शरीर रूखा होता है, जिसका चित्त एक जगह नहीं ठहरता स्वप्न में आकाश मार्ग में चलता है। यह सब बातें वात प्रकृति वाले का लक्षण है।
(16) पित्त प्रकृति का लक्षण जिस व्यक्ति के बाल थोड़ी उम्र में सफेद हो जाते हैं, जिसको बहुत पसीना आता है, जो क्रोधी, विद्वान्, बहुत खाने वाला, लाल आँखों वाला तथा स्वप्न में अग्नि तारा सूर्य चन्द्रमा व बिजली आदि चमकीले पदार्थों को देखता हो, ये सब पित्त प्रकृति वाले के लक्षण हैं।
(17) .कफ प्रकृति वाले के लक्षण जो व्यक्ति क्षमावान्, वीर्यवान्, महाबली, मोटा, बन्धे हुए शरीरवाला, समडौल और स्थिरचित्त होता है। स्वप्न में नदी, तालाब, जलाशयों को देखा करता है वह कफ प्रकृति वाला होता है।
(18) द्विदोषज त्रिदोषज प्रकृति का लक्षण यदि 2-2 दोषों के लक्षण दिखते हों तो द्विदोषज और यदि तीनों के लक्षण दृष्टिगत हों तो त्रिदोषज प्रकृति जान लें इसी प्रकार मिश्रित प्रकृति भी समझें, यही सातों प्रकृतियाँ है।
(19) वात शामक उपाय
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