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________________ स्वास्थ्य अधिकार मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर रोगस्तु दोष वैषम्यं, दोष साम्यमरोगता वात, पित्त और कफ दोषों में धर्म-कर्म में विषमता का आ जाना रोगों की परिस्थिति है। जब यह शारीरिक शक्तियाँ शरीर का पोषण और वर्धन का काम न कर विकृत हो जाती हैं, तब रोग होता है। जब यह वात, पित्त और कफ आवश्यक अंश में उपस्थित रहकर समभाव में रहते हैं और शरीर का परिचालन एवं वर्धन करते हैं तब अरोग्यता की स्थिति रहती है। (3)- वात इन तीनों दोषों में वायु सबसे बलवान होती है,क्योंकि यह शरीर के सारे धातु-मलादि का विभाग कहती हैं, यह रजो गुण वाली सूक्ष्म,शीतवीर्य,रुखी,हल्की, व चंचल है,इसके 5 भेद होते हैं। 1- उदान, 2-प्राण, 3-समान, 4-अपान, 5-व्यान। 1. उदान वायु- यह गले में घूमती है, इसी की शक्ति से यह प्राणी बोलता और गीत आदि गाता है, जब यह वायु कुपित होती है तब कण्ठगत रोग उत्पन्न होते हैं। 2 प्राण वायु - इस वायु का स्थान हृदय होता है, यह वायु प्राणों को धारण करती है और सदैव मुँह में चलती है, यह भोजन किये हुए अन्न आदि को भीतर प्रवेश कराती है और प्राणों की रक्षक होती है। इसके कुपित होने से हिचकी व श्वास आदि रोग पैदा होते हैं। 3. समान वायु – यह वायु आमाशय और पक्वाशय में विचरती हैं और जठराग्रि आदि के सम्बन्ध में अन्नादि को पचाती हैं, फिर अन्नादि से उत्पत्र हुए मल-मूत्रादि को अलग-अलग करती है। यह कुपित होकर मन्दाग्नि, अतिसार और वायुगोला आदि रोगों को पैदा करती है। 4. अपान वायु – यह वायु पक्वाशय में रहती है, मल-मूत्र, शुक्र, गर्भ और आर्तव इनको निकालकर बाहर करती हैं, इस वायु के कुपित होने से मूत्राशय और गुर्दा के रोग पैदा होते हैं एवं शुक्र दोष, प्रमेह आदि रोगों की उत्पत्ति करती है। 5. व्यान वायु - यह वायु सारे शरीर में विचरती है जब यह कुपित होती है तब समस्त शरीर के रोगों को प्रकट करती है। इसके अलावा जब यह पाँच वायु एक साथ कुपित होती हैं तब सारे शरीर में रोगों का तहलका मचा देती हैं। (4) वायु कुपित होने के कारण मल-मूत्रादि के वेगों को रोकने से, स्त्री संग ज्यादा करने से, चटपटा, कडुवा, कषैले रसों को अधिक खाने से, रूक्ष-लघु और शीत वीर्य वाले पदार्थों के ज्यादा भक्षण करने से, ठण्डे पानी से स्नान करने से तथा अपने से, बलवान के साथ लड़ने, 523
SR No.009381
Book TitleSwasthya Adhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrarthanasagar
PublisherPrarthanasagar Foundation
Publication Year2011
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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