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स्वास्थ्य अधिकार
मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
करलें। मात्रा २.४ से ४.८ ग्राम गुनगुने पानी से लें। इससे शूल, आफरा, आमवात
आदि दोष मिटते हैं। 9. कस्तूरी भैरव रस- शुद्ध हिंगुल, शुद्ध वच्छनाग, सुहागे का फूल, जावित्री, जायफल,
कालीमिर्च, पीपल कस्तूरी समभाग लेकर ब्राह्मी के क्वाथ में ३ दिन व नागरवेल के पान में ३ दिन घोटकर कालीमिर्च प्रमाण गोलियां बना लें। मात्रा २-३ गोलियां दिन में दो बार जल या रोगानुसार अनुपान के साथ दें। इससे ज्वर की तरुणता में, आमपाचन का ज्वरशमन के लिए मुद्दतीलाभ, मोतीझरा आदि में लाभ दायक होता
है। 10. नवजीवन- तुलसी के ताजे पत्ते १२५ ग्राम, सूखे पत्ते ६२.५ ग्राम, कालीमिर्च ३१
ग्राम, पीपल१२.५ ग्राम, बड़ी इलायची के दाने ४.८ ग्राम, दालचीनी, लौंग, जायफल, जावित्री २.४-२.४ ग्राम इन सबका चूर्ण बनाकर रखें। मात्रा २.४ ग्राम पानी में या २५० ग्राम दूध और १२५ ग्राम पानी में ओटाकर शक्कर मिलाकर पीवें। इसके सेवन से अग्नि प्रदिप्त होती है, सिर दर्द, ज्वर, प्रतिश्याय आदि रोग मिट जाते हैं। मोतीझरा
में भी इसका प्रयोग होता है। 1. आरोग्य वर्द्धनी- पारा और गंधक की कज्जली १२.५ ग्राम, लोहभस्म ४.८ ग्राम,
अभ्रक भस्म ४.८ ग्राम, ताम्र भस्म, हरड़ १२.५ ग्राम, बहेड़ा १२.५ ग्राम, आँवला १२.५ ग्राम, शुद्ध शिलाजीत १९ ग्राम, शुद्ध गुग्गल १९ ग्राम, चित्रकमूल २५ ग्राम, कुटकी १३२ ग्राम, निर्माण विधि- काष्टादि औषधियों को कपड़े से छान लें, फिर भस्में मिला लें, बाद में शिलाजीत और गुग्गल मिलाकर नीम के पत्तों के रस की भावना देकर घुटाई करें, सूखने पर प्रयोग में लावें। मात्रा- 0.४ ग्राम, प्रवालपिष्ठि के साथ दूध में या पानी से लें, इससे आंतरिक पित्त की गर्मी को शांति मिलती है, हाथ
पाँवों की दाह मिटती है तथा उदर रोग मिटते हैं। 12. वज्र लेप तैयार करने की विधि-अर्थ- कच्चे तेंदुफल, कच्च कैथ फल, सेमल के
पुष्प, शाल वृक्ष के बीज, धामन वृक्ष की छाल और बच इन औषधियों को बराबर लेकर एक द्रौन भर पानी में तोला १०२४ यानी १२॥। पौने तेरह किलो पानी डालकर क्वाथ (काढ़ा) बनावें, जब पानी का आठवां भाग रह जाये तब नीचे उतार कर उसमें श्री नालक (सरी) वृक्ष का गोंद, हीरा वोल गुग्गल भिलावा, देवदारू का गोंद, (कुंदरू) राल अलसी और बेलफल इन बराबर औषधियों का चूर्ण डाल देने से वज्रलेप तैयार हो जाता है।
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