Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृतमार्गोपदेशिका
कर्ता:
अध्यापक बेचरदास जीवराज दोशी
गूर्जर ग्रंथरत्न कार्यालय,
अमदावाद.
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
गजरात विद्यापीठ ग्रंथालय
। गजराती कॉपीराइट विभाग । अन क्रमांक २४932 किमत 3-5-
ग्रंथनाम पा वर्गांक 7
/
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृतमार्गोपदेशिका
कर्ताः
अध्यापक वरदास जीवराज दोशी
गुर्जर प्रथरत्न कार्यालय.
.
. अमदावाद.
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशक : शंभुलाल जगशी शाह गूर्जर ग्रंथरन कार्यालय गांधीरोड-अमदावाद.
धापा
... ८६ ગુજરાતી પીરાઇટ-સંગ્રહ २ २४५33.
द्वितीय आवृत्ति वि. सं. १९९९ मूल्य ३-८-०
मुद्रक / हीरालाल देवचंद शाह
शारदा/मुद्रणालय पानकोरनाबा, जुमामसीद सामे
अमदावाद.
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिवान बहादुर- .
श्रीमान् कृष्णालाल मोहनलाल
झवेरीने
तेमनीनिर्मळ साहित्य सेवा निमित्त उजवायेला
पंचोतेरमी दीवाळीना प्रसंगे
पत्रं पुष्पं फलं तोयम्
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृतमार्गोपदेशिकानी बीजी आवृत्ति
सौथी पहेलां में ज्यारे काशीनी यशोविजयजी जैन पाठशाळामां अभ्यास करतो हतो ते वखते-विक्रम संवत १९६७ ना वर्षमां-प्राकृतमार्गोपदेशिका लखेली. तेनी बे आवृत्ति थई गई छे. त्यार पछी ते पुस्तकमां अनुभवने परिणामे विशेष फेरफार कर्यो एटले ए पुस्तक ज तद्दन नवी रीते तैयार थयं, तेनी आ बीजी आवृत्ति छे. आवी प्राचीनभाषाना पुस्तकनी पण आटली प्रगति थई छे ते य घणुं कहेवाय. हजु आपणा अभ्यास करनाराओगें लक्ष्य, व्युत्पत्तिशास्त्र अने भाषाना मौलिक तथा विज्ञानयुक्त इतिहास तरफ ओछु गयुं छे. जेम जेम लक्ष्य वधशे तेम आ पुस्तकनुं मूल्य तेओ जाणी शकशे. ____ 'प्राकृतभाषा के अर्धमागधीभाषा जैनोनीज छे' अने 'जो विद्यार्थीओ एनो अभ्यास करवा मंडशे तो संस्कृतनुं शुं थशे ?' आवा भ्रमो वातावरणमांथी नीकळी जवा जोईए अने तुलनात्मक रीते प्राचीन तथा अर्वाचीन आर्यभाषाओनो अभ्यास विशेष ने विशेष विनयमंदिरोमां तेम ज महाविचालयोमां वधतो जवो जोईए. आम थशे तो ज भारतनी राष्ट्रभाषानी गूंच आपोआप ऊकली जशे.
मुंबई विद्यापीठे अर्धमागधीभाषाने अभ्यासक्रममा स्थापित करी ज छे परंतु ते स्थापनाने सक्रिय रीते चलाववानी जवाबदारी विनयमंदिरो अने महाविद्यालयोनी छे अने जनोनी तेम ज जनोनी विद्याप्रचारकसंस्थाओनी आ अंगे विशेष जवाबदारी छे.
आ आवृत्तिमां, प्रथम आवृत्तिमां कह्या प्रमाणे संशोधन
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेम ज संवर्धन करवानी तीव्र इच्छा हती परंतु भारतने माटे शापरूप एवा आ महाघातक युद्धने लीधे कागळोनो संकोच करवो ज पडयो अने तेथीज कशुं धारेलुं संशोधन संवर्धन थई शक्युं नथी.
जेतुं छे तेवू आ पुस्तक विद्यार्थीओना शानमां जरूर वधारो करशे.
अमदावाद
।
बेचरदास
गांधी सप्ताह १९४३ ।
कांइक
प्रस्तुत पुस्तकना फरमा सहज जिज्ञासा दृष्टिथी हुं सांभळी गयेलो त्यारबाद पं. बेचरदासे ए विषे कांइक लखवा कहां. में वगर विलंबे एनो स्वीकार को एनु कारण ए न हतुं के प्राकृतभाषा के भाषाओनो सतत तेमज असाधारण अभ्यासी रह्यो छु, पण ए स्वीकारवानुं खरं कारण पं० बेचरदासना दीर्घकालीन अने सतत प्राकृत भाषाओना अभ्यास तेमज चिंतन विषेनी मारी खात्रीमा रहेलुं हतुं.
एमनी चोवीस वर्ष पहेलां प्रथम लखाएली अने छपापली 'प्राकृतमार्गोपदेशिका' आ पंक्तिओ लखती वखते में प्रथम ज वार जोई. एनी प्रस्तुत पुस्तक साथे सरखामणी करी. ए उपरांत गूजरात विद्यापीठ तरफथी प्रसिद्ध थयेल एमर्नु 'प्राकृत व्याकरण' पण फरी वार जोई गयो. अने हम ज एमणे लखेल अने पुंजाभाइ ग्रन्थमाळामा प्रगट थयेल 'जिनागमकथासंग्रह' पण जोई गयो. साथे साथे
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
हमणां हृमणां अन्य लेखकोद्वारा गुजराती तेमज संस्कृतमां लखायेलां अने छपायेलां बीजां पण प्राकृत व्याकरण विषयक पुस्तको जोई गयो. आ बधा ड्रंक पण तटस्थ अवलोकनधी मारा उपर बे छापो मुख्यपणे पडी छे: पहेली ए के बीजा कोइ पण वर्तमान गुजराती लेखकना प्राकृत विषयक पुस्तको करतां पं० बेचरदासना प्राकृत विषयक पुस्तकोमां प्राकृत विषयक अभ्यास वाचन अने चिंतन वधारे दीर्घकालीक, वधारे विशाळ अने विशेषपणे सतत छे. बीजी छाप प छे के तेमना चिंतनमां स्वतंत्रता विशेष होई सांप्रदायिक पूर्व ग्रहो मात्र संप्रदायने कारणे आडा नथी आवता.
पण्डितजीनो पालिविषयक अभ्यास अने तद्विषयक वाचन प्रमाणमां ठीक ठीक होवाथी एमना पुस्तकोमां प्राकृत अने पालिभाषानी सरखामणी समुचित अने साधार के. तेथी एम कहेवाने कारण छे के जो प्राकृतना अभ्यासी त्रिद्यार्थीओ प्रस्तुत पुस्तकथी शरु करी चडते क्रमे एमनां बीजां पुस्तको वांचे के शीखे तो प्राकृत भाषाओना सचोट ज्ञान उपरांत साधे पालिभाषानुं पण असुक अंशे ज्ञान मेळवे, के जे प्राकृत भाषाना अभ्यासी वास्ते खास आवश्यक अने फळद्रूप छे.
प्रस्तुत पुस्तक ए चोवीश वर्ष पहेलां लखायेल प्राकृतमार्गोपदेशिकानो परिपाक छे पटले हवे आ पुस्तक प्रसिद्ध थिया पछी ए प्राथमिक आवृत्तिने अभ्यासमां खास स्थान नथी रहेतुं प कहेवानी भाग्ये ज जरूर छे. जे जे पाठ्यक्रममां प्रथम छपापल गमनी मार्गोपदेशिका हती तेमां हवे आ पुस्तक दाखल करवुं दरेक दृष्टिए वधारे उपयोगी सिद्ध यशे.
सुखलाल
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिचय
आ पुस्तकमां में जे क्रम अने रचनापद्धति योजी के तेनी वीगत नीचे मुजब छेः१ प्राकृतप्रत्ययो, धातुओ, नामो अने नामोनां रूपो तथा कृदन्तो आपतां साथे साथे संस्कृत प्रत्ययो, धातुओ, नामो, नामोनां रूपो अने कृदतो मुकेलां छे. २ नामोनां अने धातुनां रूपोनी साधनिका बाबत समजुती
आपतां तेमां भाषाशास्त्रनी मानिती तुलनादृष्टिने प्रधानपदे राखेली छे. ३ अर्थों आपतां मोटा भागे एवा शब्दो योज्या छे के जेमनां
उच्चारणो मूळ शब्दो करतां बहु ओछां जुदा होय. ४ पाछळ खास केटलाक देशी शब्दो उमेर्या छे अने एमना अर्थों पण सरखामणीने लक्ष्यमा राखीने ज उक्त त्रीजी रीते आपेला छे.
[विद्यार्थी साधारण संस्कृत जाणतो होय के सारामां सारुं गूजराती जाणतो होय तो पण आ पाठोद्वारा सरल. ताथी प्राकृतभाषाने शीखी शके अने प्राकृतसाहित्यना रसने आस्वादी शके ए दृष्टिने ध्यानमा राखीने पाठोमा बधे गुजराती, प्राकृत अने संस्कृतनी सरखामणीनी पद्धति मुख्य राखेली छे. आ पद्धतिमा गोखबार्नु घणुं ओर्छ रहे छे. संस्कारो जमाववा माटे थोडं घणुं गोखg पण मने अनिवार्य जणाय छे. सरखे सरखा शब्दो काने आवतां विद्यार्थी, व्युत्पत्ति तरफ पण ढळशे अने तेनी अभ्यासवृत्ति व्युत्पत्तिने शोधवा जरूर मथशे अने एम करता करतां ते, गूजरातीनी गंगोत्रीना मूळ पासे जइ पहोंचशे.]
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
५ जे रूपोनी साधना आचार्य हेमचंद्र पण नथी बतावी तेवां ___ आर्षरूपोनी पण साधना आ पाठोमां वताववामां आवी छे. ६ केटलांक अव्ययो कने संख्यावाचक शब्दो माटे खास जुदा
पाठो गोठवेला छे. ७ प्राकृत वाक्यो करतां गूजराती वाक्यो जाणी जोईने ज
वधारेलां छे. विद्यार्थीनी बुद्धि प्राकृत भाषाने समजवाने ठीक ठीक व्यायाम मागे छे अने एवो व्यायाम ए वाक्यो द्वारा मळी रहे छे माटे ज गूजराती वाक्यो वधारे मुकेलां छे. छतां जे शिक्षको अने कुशाग्रबुद्धिवाळा विद्यार्थीओ ए व्यायामने न इच्छे तो तेम करवानी तेमने पूरती छूट छे. ८ सारांश अने प्रश्नो आरम्भना ज भागमां मूकेला छे तेथी
नवा नवा पाठो आवे त्यारे तेने अनुसरी सारांश अने प्रश्नो शिक्षकोए के विद्यार्थीओए उपजावी काढवाना के. ९ पाठोना टिप्पणोमां वर्णविकारना मुख्य मुख्य बधा नियमो जणावी दीधा छे. ए बधा नियमोनुं मूल, आदेश अने स्थानिनी समानतामां छे. जेमके-स्थानी 'प' होय, तो तेनो आदेश 'व' थाय छे. 'प' नो 'व' थवानुं कारण 'प' अने 'व' बन्नेनुं एक सरखं ओष्ठ स्थान छे छे. एज रीते 'ए' नो र 'ओ' नो 'उ' 'ट' नो 'ड' 'ठ' नो '' 'य' नो 'ज' 'ह' नो 'घ' वगेरे विकारो विशे समजवानुं छे. उचारण करनार व्यक्ति, एकने बदले बीजुं बोलतां स्वाभाविक रीते घणे भागे मळतेमळतुं बोले छे एथी ज शब्दोनां उच्चारणोमां फरक पण सरखेसरखो पडतो आवे छे. संयुक्त अक्षरोमां पण पूर्ववर्ती के परवर्ती वणनी समानताना धोरणे परिवर्तन थाय छे, 'ट' ने बदले 'क' बोलनारो के 'क' ने बदले 'भ' बोलनारो भाग्ये ज मळी शकशे ए ध्यानमा राखवातुं छे. परिवर्तननो आ एक महा
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
लियम ध्यानमा राखवाथी बधा उच्चारणमेदोनो स्फोट सहजमां थई ज़शे.
शिक्षक, उक्त नबे मुद्दाओने लक्ष्यमा राखीने शीखवशे अने विद्यार्थी पण ते मुद्दाओने ते रीते बराबर समझीने शीखशे तो कोइने निष्फळता मळवानो संभव नथी.
वर्णविकारना नियमो समझावतां उक्त नवमो महानियम तो न ज भुलाय. परंतु ते माटे आपेलां उदाहरणो ऊपरांत बीजां पण उदाहरणो शिक्षक जरूर शोधी शके. एक विकार थवा पछी तेना उपर बीजा बीजा विकारो केवी केवी रीते थाय छे ते समजाववा भाषाना ग्रामीण शब्दो बहु उपयोगी थशे. ते उपरांत हिंदी, मराठी अने बंगाली भाषाना शब्दो प्रण बहु रुचिकर नीवडशे.
संस्कृत अने प्राकृतमां वततो उच्चारणमेद याने वर्णविकार थवानां कारणोमां बोलनारानां शरीर ऊपर थती भौगोलिक असर, उच्चारणस्थानोमां थता फेरफारो, स्पष्ट उच्चारणने माटे जोइता शारीरिक बळनो ह्रास, लखनाराओनी बेदरकारी, परंपराने ज मान्य राखवानो आग्रह, बीजी प्रजानो सहवास, धर्मक्रांति, राजसत्ता, भाषा संबंधी आदरनो घटाडो, पंडितोनो उन्माद, छेका मारेला शब्दो उपरथी नवा शब्दोनी कल्पना, वांचनाराओनो भ्रम, लखेलु तेवू ज वांचवू, अनुवाद करवामां असावधानता वगेरे अनेक कारणो छे; ते तरफ शिक्षके विद्यार्थीनुं ध्यान खेचq.
आ रीते स्पष्टतापूर्वक शीखववाथी भाषाना मेदोनो कोयडो आपोआप ऊकली जशे अने ए मेदोमांथी प्रकटेली ए अस्मिता पण शमी जशे.
पाछला पाठोमां पर्यायवाची समान हिंदी शब्दो, मराठी
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्दो अने बंगाळी शब्दो आपी जुदा जुदा प्रणेक मोटा पाठो उमेरवा धारेलुं पण सत्वरताने कारणे ते नथी बनी शक्युं, किंतु हवे पछीना संस्करणमां तेनुं स्थान जरूर रहेशे.
ते ते पाठोमां वपरायेला शब्दोनो कोश, पुस्तकने प्रांते संस्कृत पर्याय अने अर्थ साथे मुकेलो छे. तेमां नामोनो विभाग जाति प्रमाणे करेलो छ, विशेषणो, अव्ययो, संख्यावाची शब्दो अने धातुओनो पण कोश ते ते विभागे गोठवेलो छे. पछी ये फारम जेटलुं सरळ गद्यपद्य मुकेलुं छे अने त्यार पछी तेनो पण सळंग कोश मुकेलो छे.
पाठोमां आवेला शब्दकोशनी योजना मारा विनयी विद्यार्थी पं. शांतिलाल वनमाळी शेठ-न्यायतीर्थे करेली छे ते अर्थे तेनुं अहीं संस्मरण करुं छं.
काशीविश्वविद्यालयमा जैनदर्शनशास्त्रना अध्यापक ख्यात दर्शनशास्त्री सुहृद्वर पंडित सुखलालजीए पुस्तकना आरंभमां 'काइक' लखी आपी पुस्तकने आशीर्वाद आप्यो छे ए बदल हुं शुं ल ते ज सझतुं नथी.
अनुभवी शिक्षको अने अभ्यासी विद्यार्थीओ आ पाठोने शीखतां पोतपोतानी नोंधो अवश्य लखी राखे अने प्रसंग पडये मने ६ नोंधो सूचववा लक्ष्य राखे तो हुँ मने ठीक ठीक जाणी शकीश.
आ पुस्तकने प्रकाशमां लावयानुं साहस गूर्जरग्रंथरत्नकार्यालयना प्रख्यात मालिक भाइ शंभुलाल जगशीष खेड्यु छे ते माटे ते पण स्मरणार्ह छे. वैशाख शुद ३ )
बेचरदास जीवराज दोशी भमरेली-काठियावाड )
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक खुलासो पुस्तकने पहेले ज पाने लखेलुं छे के-"उच्चारणोनुं ए परिवर्तन वैदिक संस्कृतमां य छे अने प्राकृतमां य छे." (पं० १२-१३)
आ वाक्यनो आशय, ए बन्ने भाषामा परिवर्तनो थवा पाम्यां छे एम जणाववानो छे, पण ए बन्नेमां एक सरखां ज परिवर्तनो छे एम बताववानो नथी.
आरंभमां आपेला परिचयमा परिवर्तननो जे एक व्यापक महानियम जणावेलो छे ते उक्त बन्ने भाषाने लागु पडे छे ए दृष्टिए उक्त वाक्य लखायुं छे. आ संबंधी विशेष विगत माटे आर्यविद्याव्याख्यानमाळामान 'प्राकृतभाषा अने साहित्य' नामनुं मारं व्याख्यान जोई जवु घटे अने आर्षप्राकृतनी समजूती माटे विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित मारा प्राकृत व्याकरणनी प्रस्तावना पण वांची जवी जोईप.
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४९33
अनुक्रमणिका
विषय
परिचय पाठ १ वर्तमान काळ
,
३
,
१५
१९
, उपसर्ग
, ५ अकारांत नामनां रूपाख्यानो (नरजाति)
(नान्यतर जाति) , ७ अकारांत नामो ... , ८ अकारांत सर्वादि (नरजाति अने नान्यतरजाति) ... ,, ९ तुम्ह, अम्ह, इम अने एअ नां रूपाख्यानो ,, १० भूतकाळ-प्रत्ययो ... ,, ११ इकारांत अने उकारांत (नरजाति) ... ,, १२ भविष्यकाळ ,, १३ , ,, १४ ऋकारान्त शब्दो ...
१५ विध्यर्थ अने आज्ञार्थ ... १६ ,, (चाल) ... , १७ प्रेरकभेद ,, १८ भावे प्रयोग अने कर्मणि प्रयोग ... ,, १९ व्यंजनान्त शब्दो ... ,, २० कृदंत-हेत्वर्थ-संबंधकभूत-वर्तमानकृदंत वगेरे , २१ संख्यावाचक शब्दो ...
शब्दकोष
२
१०२ ११४
१२१
१३७ १४९
१७०
१८७ १९५
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
पृष्ठ
१-२७
विषय पाइअ-गज-पजाणि १ मंगलं ... २ महव्वयउच्चारणा ३ मिच्छा मि दुक्कडं ४ खामणं ५ समयं गोयम ! मा पमायए। ६ हरिकेसी सोवागो ७ तं वयं वूम माहणं ८ रामवणवासो ... ९ वीरत्युती ... १० अप्पा ११ धुत्तो सियालो १२ कयग्घा वायसा १३ सुरप्पिओ जक्खो १४ जामाउयपरिक्खणं १५ गामिल्लओ सागडिओ १६ नडपुत्तो रोहो १७ चिब्भडियावंसगो १८ भारियासीलपरिक्खा १९ जो खणइ सो पडइ शब्दकोश
१.
:::::::::::::::::::::
१२
१५
१८
.
२७
२८-३६
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
पितरौ वन्दे ।
परिचय
वैदिक (वेदोनी मूळ ) भाषानुं अने प्राकृत भाषानुं मूळ बंधारण घणुं मळतुं आवे छे. ते बेमां मोटो मेद उच्चारणनो छे अने ए भेदने लीधे ज ते बन्नेने जुदी जुदी भाषा समझवामां आवी छे-गणवामां आवी छे.
वैदिक संस्कृतमा असंयुक्त अने संयुक्त बन्ने प्रकारना व्यंजनोनो ठीक ठीक व्यवहार छे. ते व्यंजनोमांना केटलाएकनु उच्चारण अधिक क्लिष्ट छे अने केटलाएक सहज रीते वेगपूर्वक बोलातां एक बीजामां मळी जाय छे वा रूपांतर पामे छे के घसाइ जइ स्वरावशेषी के अर्धस्वरावशेषी बने छे. उच्चारणोनुं ए परिवर्तन वैदिक संस्कृतमा य छे अने प्राकृतमा य छे. तेथी सहज अने सुखरूप उच्चारणोथी टेवायेला प्राकृत बोलनारा लोको, अर्थनो विपर्यास न थाय तेवी रीते, ते ते असंयुक्त वा संयुक्त व्यंजनोवाळा शब्दोने सरळ उच्चारणपूर्वक व्यवहारमा लावतां विशेषे करीने उक्त परिवर्तनने वशवर्ती होय छे.
सरळ उच्चारण माटे क्यांय कोइ व्यंजननो धीरे धीरे हास थतो आवे छे अने क्यांय बेमांधी एक व्यंजनने जतो करवो पडे छे-ते आपोआप सरी जाय छे. ए असंयुक्त वा संयुक्त व्यंजनोर्नु उश्चारण जे जे रीते सरळ थपेलं छे ते बधी रीतो हवे पछीना पाठोमां आवनारी छे.
प्राकृतभाषा, संस्कृत भाषा करतां वधारे व्यापक अने मधुर गणाई छे तेनुं कारण एनी सरळता ज छे.
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृतभाषा, केटली बधी सरळ अने सुखपूर्वक बोली शकाय तथा लखी शकाय तेवां उच्चारणोवाळी छे तेनी विशेष समझण माटे अने संस्कृत तथा प्राकृत ए बन्ने भाषा वञ्चना उच्चारणभेदनो स्पष्ट ख्याल विद्यार्थीओने आवे ते सारु प्रत्येक स्थळे संस्कृत साथे तेनी तुलना करी बतावानी छे.
तुलनात्मक संस्कृत अने प्राकृत शब्दो उपरांत तेने मळता वा तेमाथी नीपजेला अर्थसूचक गुजराती शब्दो पण साथे साथे जणावेला छे-आ बधुं भाषानी सरखामणीनी दृष्टिए अभ्यास करनार विद्यार्थीने उपयोगी थशे अने आ पद्धतिथी प्राकृत भाषानो अभ्यास पण सुकर बनशे.
प्रयोजन जेमचें मूळ-उद्भवस्थान-प्राचीन आर्यभाषामां के तेवी गुजराती, मराठी, बंगाळी अने हिंदी वगेरे आर्यपेढीनी भाषाओनो तुलनात्मक अभ्यास करवा सारु अने ए प्रांतिक भाषाओनी मौलिक एकताद्वारा समग्र प्रजानुं ऐक्य समझवासाधवा सारु प्राकृत भाषाना अभ्यासनुं विशेष महत्त्व छे.
जूनी गुजराती, मराठी, बंगाळी के हिंदीने सारी रीते समझवा माटे अने उक्त ते ते भाषाना प्राचीन वा अर्वाचीन प्रत्येक शब्दनो क्रमविकास शोधवा अने ते द्वारा शुद्ध इतिहास उत्पन्न करवा पण प्राकृतना अभ्यासनी उपयोगिता के.
भारतीय तपस्विओना आध्यात्मिक विचारो जेम संस्कृत उपनिषदादिमां जळवायेला छे तेम प्राकृतभाषाना साहित्यमां पण जळवायेला छे, तो ते बधाने समझवा अने सर्वधर्मसमभावना जीवनहितैषी ' उदार सिद्धान्तने विशेष रीते लक्ष्यमा लाववा पण प्राकृतभाषाओना अध्ययननी अतिअगत्य छे.
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
जेटलो फेर गोहिलवाडी अने झालावाडी भाषामां के वा चरोतरनी अने पंचमहालनी भाषामां छे तेटलो ज फेर प्राकृतभाषाओमां-पालि अने प्राकृतमां, अर्धमागधी-आर्षप्राकृत -अने प्राकृतमां, मागधी अने शौरसेनी वगेरेमां-छे तेथी एक मात्र प्राकृतने सारी रीते .शीखी जवाथी पालि वगेरे बीजी प्राचीन शास्त्रीय भाषाओगें शान सहेजे सहेजे थई जाय छे.
मूळ जैन सिद्धांतो आर्षप्राकृतभाषामा छे अने बौद्ध सिद्धांतो पालिभाषामां छे तेथी बौद्ध अने जैनधर्मना अभ्यासिए तो आ भाषा जरूर शीखी लेवी जोइए.
an
वर्णविज्ञान खरो-हस्व दीर्घ
उच्चारणोनुं स्थान अ आ कंठ अने नासिका
ताल अने नासिका
ओष्ट-होठ-अने नासिका अ+इ%3D
कंठ अने तालु तथा नासिका अ+उ-ओ कंठ अने होठ तथा नासिका स्वरनुं प्लुत उञ्चारण प्राकृतभाषाना व्यवहारमांधी जतुं रह्यं छे.
कंठ एटले गर्छ, तालु पटले ताळवं. जे वर्ण, कंठमांथी बोलाय ते कंठ्य, तालुमांधी बोलाय ते तालव्य, ओष्ठमांधी बोलाय ते ओष्ठय अने ए बन्नेमांथी बोलाय ते कंठ्यतालव्य के कंठयौष्ठ तथा नासिकामांथी बोलाय ते नासिक्य-अनु. नासिक कहेवाय.
स्वरो बधा अनुनासिक छे पण तेमन ते जातनुं उच्चारण स्थलविशेषमा ज थाय छे, बधे नहि.
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
____ ह्रस्व 'ऋ' ने बदले विशेषे करीने 'अ' थी अने क्याय क्यांय 'इ' वा 'उ' थी काम चाले छे.
'ल' ने बदले 'इलि' नुं उच्चारण प्रचलित छे. .
'' तो मात्र एक 'अयि' अव्ययने बदले वपराय के बीजे क्यांय तेनो प्रयोग ज नथी. तेम 'औ' नो पण प्रयोग नथी. 'अ' ने बदले 'ए' वा 'अह' थी काम सरे छे अने 'औ' ने बदले 'ओ' के 'अउ' थी व्यवहार थाय छे.
केटलाक वैयाकरणो कहे छे के '' अने 'औ' नो प्रयोग प्राकृतमा छे. ___एक्को' 'सेव्वा' 'सोत्तं' 'सो च्चिअ' वगेरे शब्दोमा आवेला 'ए' अने 'ओ' एकमात्रिक छे-हस्व ले, एम आचार्य शुभचंद्र जणावे छे अने उच्चारणनी दृष्टिए छे पण बराबर व्यंजनो क ख ग घ्
कंठ-कंठ्य च् छ् ज् झ्
तालु-तालव्य
ट वर्ग मूर्धा-माथु-मूर्धन्य त् थ् द् ध् न्
दंत-दांत-दंत्य
ओष्ठ-होठ-ओष्ठ्य
तालव्य अर्धस्वर
मूर्धन्य दंत्य दंत्य-ओष्ठ्य दंत्य
कंठ्य ङ् ञ् ण न्
नासिका-अनुनासिक यूल व
स्थान
مر مر دو
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
'सलो' 'अञ्जणं' वगेरे शब्दोमां 'इ' अने '' मात्र पोताना वर्गना व्यंजनो साथे संयुक्त होय त्यारे ज व्यवहारमां आवे छे, पण तेमनो उपयोग प्राकृतमां स्वतंत्र नथी. माटे तेमने वर्गीय व्यंजनो गणावतां गणावेला नथी. संस्कृतमां पण तेमनो स्वतंत्र प्रयोग नहि जेवो ज छे.
'क' 'ज' वगेरे सजातीय संयुक्त व्यंजनोनो प्राकृतमा खूब प्रचार के अने केटलाक अपवादोमां विजातीय संयुक्त व्यंजनोनो पण उपयोग थयेलो छे, एवा व्यंजनोमां 'द्र' 'म्ह' 'ण्ह' अने 'ल्ह' मुख्य छे. जैनसूत्रोमां क्यांय 'स्म' नो पण उपयोग थयेलो छे. आ सिवाय 'क' 'क्त' वगेरे विजातीय संयुक्त व्यंजनोनो प्राकृतमां क्यांय उपयोग नधी.
'विसर्गनो तो प्राकृतमा प्रयोग ज नथी.
'कण्ठ' 'तन्तु' अने 'थम्भ' वगेरे शब्दोमां 'ण' 'न्' अने 'म्' नो उपयोग तो छ ज पण ते त्रणे स्वतंत्र पण वपराय छे. जेमके-गुण, हीण, मुणि. नमी, नाह, नई. मुह, मउड, मोण वगेरे.
[यादी:-'कण्ठ' 'तन्तु' 'थम्भ' वगेरे शब्दोमां '' 'न्' अने 'म्' नुं नासिकास्थान ज छे त्यारे 'गुण' 'नई 'मउड' वगेरे शब्दोमां तो तेओ वर्गीय अक्षर तरीके होवाथी तेमनुं वर्गोक्त ते ते स्थान छे, ए मेद ध्यानमा राखवानो छे.]
समास-आ विशे संस्कृतनी योजना प्रमाणे ज समझी लेवार्नु छे तेथी आ पुस्तकमां एने माटे कशुं लखवामां आव्युं नथी.
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
१ पुरुष
२
"
"
पाठ १ लो
वर्तमानकाळ
एकवचनना प्रत्ययो
मि
सि, से
,,
ति, इ (
ते,
धातु '
(मि')
(सि, से)
((ति)
((ते)
१ आ आखा पुस्तकमां ( ) आवा गोळ चिह्नमां मूकेलां प्रत्ययो, धातुओ के नामो वा तेमनां रूपो संस्कृत भाषानां समझवां सरखामणीनी अने उच्चारणना भेदनी समझण माटे ए बधां अहीं जणावेलां छे.
२ संस्कृतमां धातु एटले मूळ धातु अर्थात् जेने गणसूचक विकरण नथी लागेलो एवो शुद्ध धातु समझाय छे त्यारे प्राकृतमां ते करतां प्रायः ऊलटी स्थिति के एटले के संस्कृतमां गणमेदने लीधे धातुओने जुदा जुदा विकरण प्रत्ययो लागे छे त्यारे ते जुदा जुदा विकरणो जेमने लागेला छे तेवा ज घणा धातुओ प्राकृतमां भूळ धातुनुं स्थान ले छे. तात्पर्य ए छे के अमुक अमुक गणने सूचवनारा ते जुदा जुदा विकरणो प्राकृतर्मा धातुना अंगरूप बनी धातुमां मळी गया छे अने आम छे माटें ज प्राकृतमां कोह प्रकारनो गणभेद नथी रह्यो.
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
उक्त हकीकत आ नीचेना कोठा ऊपरथी वधारे स्पष्ट थशे :
मूळ धातु
विकरणवाळो संस्कृत धातु
संस्कृत - गण
१
"
"
x = 5
Cur
"
"
"
७
"
97
९
""
23
१०
""
""
श्रृष्
भू
पा
EES C - BEEVEEDLEF F F
सिध्
सिव्
क्षुभ्
चि
मुच्
सिच
लिप्
रुध्
भिदु
छिद्
ल
पू
प्रहू
कथ्
चुर्
नृष्+अ=वर्ष भू+अ=भव
पा+अ = पिब
सिध् + य= सिध्य सिव्+य=सिव्य
क्षुभ+य= क्षुभ्य
चि+नु=चिनु
धु+नु=धुनु
मुच्+अ=मुञ्च सिच्+अ=सिञ्च
लिप् + अ = लिम्प
रुध्+न=रुणध् भिद्+न=भिनद् छिद्+न=छिन्द् लू+ना=लुना
पू+ना=पुना ग्रह्+ना=गृह्णा
कथ्+अय=कथय
चुर् +अय=चोरय
तर्ज्+अय =तर्जय
प्राकृत धातु
स्
भव्
हव्
पिब्
( पिय्
सिज्झ
सिब्बू
खुब्भ
चि
धुण
मुञ्च
सिष्च्
लिम्प्
रुन्ध्
भिन्दू
छिन्द्
लुण
पुण्
गिष्हू
( कहे
(क.हू
( चोरे
( चोर तिज्जे
तज्ज्
बळी, आत्मनेपदी, परस्मैपदी, उभयपदी एवो धातुसंबंधे जुदो जुदो विभाग संस्कृतमां छे अने एम छे माटे ते दरेक संबंधी प्रत्यय पण जुदा जुदा छे. त्यारे प्राकृतमां तेवो कोइ जातनो विभाग हयाती धरावतो नभी.
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
हरिस् ( हर्ष ) हरखवु-हर्ष थवो । मरिस् (म) सहवु-क्षमा राखवी वरिस् (वर्ष ) वरसवु.
घरिस ( घर्ष ) घसवू करिस् (कर्ष ) कर्षवु-खेचq- तुरिय् (तूर्य ) त्वरा करवीकाढवू, खेडवू
उतावळा थवू, तुरत कर मरिस् (मर्श ) विमासg- अरिह ( अ ) योग्य थर्बु विचारवं
पुरिय् (पूर्य) पू-बूरधरिस् (धर्ष ) धसवू-सामा थर्बु
भरवु-पूरु कर गरिह ( गई ) गरहवं-निंदवू कर ( कर् ) कर, जेम् ( जेम् ) जमवू
वंद् ( वन्द् ) वांदवु-नम, देक्छ ( दृश् ) देखवू
पड ( पत् ) पडवू पुच्छ ( पृच्छ) पूछवु
नम् (नश्य) नासवू, भागवूजाण् (जाना ) जाणवू
नाश थवो.
आम छे तेथी उपर्युक्त पुरुषबोधक प्रत्ययो धातुमात्रने एक सरखा लागे छे. ए प्रत्ययोमा संस्कृतना आत्मनेपदी वगेरे प्रत्ययो वा तेमना अवशेषो समायेला छे. ए सरखामणीनी दृष्टिए जोतां सहज रीते समझाय एवं छे.
३ ( ) आ चिह्नमा मूकेला संस्कृत धातुओ 'रूष' 'र्श' र्य' अने 'ह' वाळा छे. प्राकृत बोलनारा 'र्ष' अने 'श' ने 'रिस' 'र्य' ने 'रिय' अने 'रह' 'रिह' करीने व्यवहारमा लावता. आ ऊपरथी एवो नियम फलित थाय छे के 'र्ष' 'र्श' 'य' अने 'ह' नो प्राकृतमा व्यवहार करतां 'र' मां 'इ' उमेरवो एटले 'र्ष' के 'श' ने बदले 'रिस' +इ+ष-रिस, 'र्य ने बदले 'रिय' अने 'हे' ने बदले 'रिह' समझq. जेमकेर्ष-वर्ष-वरिस
ई-अर्ह-अरिह र्य-पूर्य-पुरिय वर्षम्-वरिसं
अर्हन्-अरिहंतो । तूर्य-तुरिय र्श-मर्श-मरिस गर्दा-गरिहा
सूर्यः-सूरियो दर्शनम्-दरिसणं
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
.१ मि, ति, न्ति वगेरे पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडतां पहेला
छेडे व्यंजनवाळा धातुओने विकरण 'अ' लगाडवामां
आवे छे. जेमकेः-वंद्+ति-चंद्+अ+तिवदति. बीजा पुरुष एकवचननो 'से' अने त्रीजा पुरुष एकवचननो 'ए' के 'ते' ए यन्ने प्रत्ययो 'अ' छेडावाळा धातु सिवाय वीजा कोइ धातुओने लामता नथी. जेमके:- वंद+अ+से-वंदसे.
वंद+अ+ते-वंदते, वंद्+अ+ए-वंदए. प्रत्युदाहरण-जा+सि-जासि.
जा+ति-जाति, जा+-जाइ. [यादी:-'वंद' न 'वंदसे' अने 'वंदते' के 'वंदए' थाय
त्यारे 'जा' धातुनुं मात्र 'जासि' अने 'जाई' के 'जाति' थाय पण 'जासे' अने 'जाए' के 'जाते'
न थाय.] ३ 'म' थी शरू थता प्रथम पुरुषना प्रत्ययोनी पूर्वना
अंगना 'अ' नो 'आ' विकल्पे थाय छे. जेमके:- वंदन अ+मि-वंदामि, वदमि. पुरुषबोधक प्रत्ययोनी पूर्व रहेला धातुना अंगना 'अ' नो 'ए' विकल्पे थाय छे. जेमकेः- वंद्+अ+ति-वंदेति, वंदति.
रूपाख्यान १ पु० वंदमि, वंदामि, वंदेम'
४ 'वंदे' रूप प्रथम पुरुषना एकवचनमा संस्कृतमां प्रसिद्ध छे तेम प्राकृतमां पण तेनुं ते ज रूप कांई पण फेरफार विना वपराय छे. जेमके:'उसभमजिअं च वंदे' एटले ऋषभदेव अने अजितनाथने वंदन करुं छु.
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
२ पु० वंदसि, वंदेसि,
वंदसे, वंदेसे
३ पु० वंदति, वंदेति. वंदर,
वंदेइ, वंदते, धंदेते, बंदए, वंदेए
वाक्यो
सहुँ
छु
करुं छु
वांदुं छं
पहुं छु
हर छ [] वांदे छे
घसुं छं
[तु] सहे छे वांदे छे घसे छे
नाश पामे के
खेचे छे धसुं छु [तु] घसे छे
गरहे छे सहे छे ___ पूछं छु []] जमे छे []] जाणे छे
[तु] धसे छे पडे छे.
जमुं छु करे छे तरत करुं छु
विचारे छे [A] हरखे छे
खेंचु छु
भरु छु [] करे छे
वरसे छे
विचारूं छु देखुं छु
गरहुं छु [तुं] पूरे छे [ते देखे छे
योग्य थाय छे । [ते] तरत करे छे वंदामि | अरिहते वंदते
मरिसेति करिससे
| पुच्छामि । हरिससि तुरियसि धरिसमि नस्ससि
मरिसामि
नस्सामि हरिसेमि घरिसइ अरिहसे हरिसए वरिसति करते गरिहेइ पडामि देक्खसि जाणसि पुरियते
तुरियेमि गरिहामि । करिससि जेमति
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ २ जो
लोकव्यापक कोई पण भाषामां द्विवचनने बताववा माटे खास जुदा प्रत्ययो जणाता नथी. ए प्रमाणे लोकव्यापक प्राकृतभाषार्मा पण द्विवचनना दर्शक जुदा प्रत्ययो नथी तेथी एकवचन पछी लागला ज बहुवचनना प्रत्ययो आपवामां आव्या छे. परंतु ज्यारे द्विवचननो अर्थ सूचववो होय त्यारे क्रियापद के नाम साथे द्विवचनदर्शक 'द्वि' शब्दनां प्राकृतरूपोनो उपयोग करवो पडे छे. ते रूपो आ प्रमाणे छः
'दुण्णि विष्णि, बिणि दो (द्वौ) दुवे (द्वे) वे,बे (द्वे)
प्रयोग : वे सिव्वामो-अमे बे सीवीए छीए.
५ संयुक्त अक्षरनी पूर्वे आवेला 'इ' ने स्थाने प्रायः 'ए' थाय छे अने संयुक्त अक्षरनी पूर्वे आवेला 'उ' ने स्थाने प्रायः 'ओ' थाय छे. जेमके:-इ-वि+णि वेण्णि. वि+ट्ठी वेट्ठी, विट्ठी-विष्टिः.. उ-दु+णि दोण्णि. दुण्णि. पु+त्थिआ-पोत्थिआ, पुत्थिआ - पुस्तिका.
'दु' शब्दनां जे रूपो ऊपर जणाव्यां छे तेमांथी ऊतरी आवेलां रूपो आज पण जुदी जुदी लोकभाषामा प्रचलित छे. जेमके:-- वे, बे गूजराती-बे
दुण्णि, दोणि मराठी-दोन विष्णि, बेण्णि ,, बन्ने
दुवे बंगाली-दुई दो हिंदी-दो
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
वर्तमान काळ (चालु)
बहुवचनना प्रत्ययो १ पु० मो, मु, म, म्ह (मः, महे) २ पु० ह, इत्था ३ पु० न्ति, न्ते, इरे (न्ति, न्ते)
धातुओ "खुब्भ (क्षुभ्य) खोभq-छोभq- दिप्प् (दीप्य) दीपवू
खळभळवू-क्षोभ थवो-गभरावू गच्छ (गच्छ) जवु . कुप्प् (कुम्य) कोपर्बु-कोप करवो बोल्ट (ब्रू ) बोलवू सिव्व् (सिव्य) सीवQ
लव् (लप् ) लववु-बोलQ खिप्प (क्षिप्य) खेपवु-खेववु-फेंकबुं तव (तप् ) तपवू-संताप थवो, लुह (लुट्य) लोटवू-आळोटबुं ।
तप करवू ६ प्राकृतमां जेम 'इरे' प्रत्ययनो उपयोग छे तेम पालिभाषामा 'गच्छरे' वगेरे प्रयोगोमां 'रे' प्रत्ययनो व्यवहार छे. पचेरन्-पच+ईरन्वगेरे प्रयोगोमां विध्यर्थसूचक 'ईरन्' प्रत्ययनो उपयोग संस्कृतमां पण छे.
७ संयुक्त व्यंजन परवर्ती 'य' नो लोप थाय छे अने लोप थतां बाकी रहेलो शब्दनी अंदरनो ज व्यंजन बेवडाय छे. जेमके:-कुप्यकुप्-कुप्प् , दीप्य-दिप्-दिप्प् . सीव्य-सि-सिव्व् . जुओ टिप्पण ९ मुं.
[यादी:--लोप थतां बाकी रहेला ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ अने भ ने बदले अनुक्रमे क्ख, ग्घ, च्छ, ज्झ, ह, हु, स्थ, द्ध, प्फ अने ब्भ थाय छे. जेमके:-क्षुभ्य+शुभ-खुब्भ वगेरे.]
___८ पदनी अंदर रहेला असंयुक्त 'प' ने बदले 'व' नो ब्यवहार थाय छे. जेमके:-लप्-लव. दीप्-दीव. तप् - तव.
दीपः-दीवो. गोपाल:-गोवालो. तापः-तावो. अपि-अवि. .
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
फेंक
दीव (दीप् ) दीपकुं
सत् (शप ) शापवु-शाप देवो जव ( जप ) जपQ-जाप करवो. ! खिव (क्षिप) खेपq-खेववेव ( वेप् ) वेपq-कंप-ध्रुजवं
५ 'म'थी शरू थता प्रथम पुरुषना बहुवचनना प्रत्ययोनी पूर्वना अंगना 'अ' नो 'इ' विकल्पे थाय छे. जेमके:-सि+ अमो-सिविमो, सिव्वामो, सिव्वमो (जु० पा० १ नि० ३)
रूपाख्यान १ पु० वंदमो, वंदामो, वदिमो, वंदेमो
वंदमु, वंदामु, वदिमु, वंदेमु वंदम वंदाम, वंदिम, वंदेम वंदम्ह, वंदम्ह, __वंदिम्ह, वंदेम्ह वंदइत्था, १०वंदित्था, वंदेइत्था,, वंदेत्या
वंदह, वंदेह ३ पु० वंदंति, वंदेति
वंदंते, वंदेते वंदइरे, वंदेइरे, वंदिरे
२ पु०
९ संयुक्त अक्षरनी पूर्वे आवेला दीर्घ स्वरने बदले ह्रस्व स्वरनो व्यवहार थाय छे. जेमकेः-वंदा+म्ह वंदम्ह-वन्दामहे. जा+न्ति जन्ति-यान्ति.
बे+न्ति=बिति-ब्रुवन्ति. दे+न्ति=दिति-दा+अन्ति. नरेन्द्रः-नरिन्दो. आम्रः-अम्बो.
१. ज्यारे एक पदमां बे स्वर लगोलग आव्या होय त्यारे पूर्वना स्वरनो प्रायः लोप थाय छे. जेमके:-वंद+इन्था वंदित्था. वंद+इरे वंदिरे. बु+एमि-बेमि. दा+एमि-देमि. नर+ईसरो-नरीसरो, नरेसरो-नरेश्वरः. जिण+इंदो=जिणिदो, जिणेंदो-जिनेन्द्रः.
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
[अमे बे] सीवीए छीप जपो छो
[तमे बे] सीवो छो बोलो छो
ܕܕ
कोपो छो
जाउं छं
दीपे छे
जपुं हुं
[तमे बे] दीपो छो [तेओ बे] गभराय छे [तं] बोले छे
[अमे बे] बोलीए छीप
[तमे बे] फेंको छो [तेओ बे] लवे छे बोलीए छीए
सीवे छे
बे वंदामो वेवेह विणि
गच्छंति
त्रिपित्था दोणि खुभित्था दो
खुब्भेमु
१४
वाक्यो
जवेत्था दु
खिवामि
लुट्टामि
लवेम
[तेओ बे] फेंके छे [तमे बे] शाप दो छो [तेओ बे] सीवे छे
[अमे बे] जपीए छीए [अमे बे] आळोटीए छीप गभराउं छु
सीवे छे
वांदीए छीए
कंपीए छीप
बोलीए छीप
कोपी छीप
[तेओ बे] जपे छे
[तेओ बे] तपे के [अमे बे] गभराइप छीप [तुं] फेंके छे आळोटीए छीए
लुट्टह दुण्णि कुप्पेह
गच्छम्ह
वंदह जविम दो
सविरे
सव्वमो बेणि
वंदेम बोल्लमु
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
सर्व वचन / ज, जा
पाठ ३ जो
वर्तमानकाळ [चालु सर्व पुरुष ।
६ आ बे प्रत्ययो धातु मात्रने सर्व पुरुष अने सर्व वयनमा लागे छे. अने तेमनी पूर्वे आवेला अंगना अन्त्य 'अ नो 'ए' थाय छे. जेमके:वंद्+अ-वंदन-वंदेज. वंद्+अ-वंद+जा-वंदेजा
वदेजर हुं वांदुं छु, अमे वांदीए छीए वंदेजा।पटल तुं वांद छ, तमे वांदो छो
ते वादे छे, तेओ वांदे छे
धातुओ
वा (दा) देवू ठा (स्था) स्थिर रहेQ । खा (खाद ) खाई पा (वा) वायु ऊभा रहेवु-बेसी रहेg | हा (हा) हीण थर्वपा (पा) पीवु झा (ध्या) ध्यावं
तजदूं गा (गा) गावं धा (धाव् ) धावू- बू (ब्रू) बोलवू जा (या) जावू
दोड हो [भू] होवु-यई ७ पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडतां पहेलां अकारान्त सिवायना स्वरांत धातुओने विकरण 'अ' विकल्पे लागे छे. जेमके:-खा+इ-खा+अ+इ=खाअइ, खाइ.
धा+इ-धा+अ+E-धाअइ, धाइ. ८ पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडतां पहेलां स्वरांत धातुओने 'ज' अथवा 'जा' विकल्पे लागे छे. जेमके:होइ-हो+न+इ-होजर, होइ. होइ-हो+जा+इ-होजाइ, होइ.
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
रूपाख्यान होइ, होजइ, होजेइ, होजाइ, होज, होजा } विकरण रहित होअइ, होएइ, होएजइ, होएजेइ) . होएजाइ
'अ' विकरण सहित होएज, होएजा
'अस्'- विद्यमान होवु'-धातुनां अनियमित रूपो एकवचन
बहुवचन १ पु० अम्हि,म्हि,मि,असि(अस्मि) म्ह,म्हो, म्हु, मो, मु.(स्मः)१३
११अस्थि (अस्ति) । २ पु० सि, असि, (असि) थ, त्थ (स्थ) अस्थि
अस्थि ३ पु० अस्थि (अस्ति)
अस्थि, संति (सन्ति)
अस्थि
११ शब्दनी अंदरना 'स्त' नो 'त्थ' थाय छे अने शब्दनी आदिना 'स्त' नो 'थ' थाय छे जेमके:-अस्ति-अत्थि. हस्तः-हत्थो. स्तम्भः-थंभो. स्तुतिः-थुई. नास्ति-नत्थि. प्रस्तरः-पत्यरो. स्त्यानम्-थीणं. स्तब्धः-श्रद्धो.
१२ 'अस्थि' रूप त्रणे पुरुषमा, सर्व वचनोमां वपराय छे. संस्कृतमां पण क्रियापद जेवु ए जातना व्यवहारमां आवे एवं 'अस्ति' अव्यय. प्रसिद्ध छे.
१३ 'स्मः' रूप अने 'म्हो' रूप-बन्नेमां समानता छे. 'म्हो' रूप घसातां घसातां 'मो' थयुं छे. आगळ जणावेलो 'मि' प्रत्यय अने 'अस्मिअम्हि-म्हि-मि' ए वन्नेमां खूब मळ्तापणुं छे. तेमज 'मो' 'मु अने 'म' प्रत्ययो साथे आ 'म्हो' 'म्हु' 'म्ह' 'मो' अने 'मु' रूपोनी सरखामणी करी शकाय एम छे. 'म्हु' अने 'मु' रूपनो प्रयोग विरल छे.
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातुओ मज्ज १४(मद्य) मद करवो- । जोत् । (द्योत) जोत थवीमाचवु-खुश थर्बु
जो प्रकाशयु, जोq. खिज्ज (खिय) खीलवू-खेद
सिज (स्विद्य) सीजQ-चीकj करवो
थबु-स्वेद-परसेवा-वाळा संपज्ज(स+पद्य) संपजवू-सांपडवू थ, निप्पज (नि+पद्य) नीपजq पुज्ज् (पूर्व) पूरवु, पूगवु विज्ञ् (विद्य) विद्यमान होवू दिव्व् (दीव्य) द्युत रमवु-रमवू
वाक्यो [तेओ] थाय छे
खेद करे छे []] दे छे
नीपजे छे [] थाय छे
संपजे छे गाइए छीए
प्रकाशित थइए छीए दोडो छो
[तेओ] जपे छे [ते बे] खाय छे
[अमे बे] ध्याइए छीए ऊभो रहुं छं
पीओ छो बोलीए छीए
[तेओ बे] रमे छे
सीजे के जाय छे
छीए खुश थाउं छु
सहन करुं छु १४ शब्दनी अंदरना 'य' 'य' अने 'प्य' ने बदले 'ज्ज' थाय छ भने शब्दनी भादिना 'घ' '' अने 'ग्य' ने बदले 'ज' थाय छे. 'जेमके:ध-भद्य-अज. मद्यम्-मज्जं. युतिः-जुती. र्य-पूर्य-पुज्ज. कार्यम्-कलं.
मर्यादा-मज्जाया. व्य-शग्या-सेज्जा
छो
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
[अमे बे] जमीए छीए विद्यमान के
[तेओ बे] खेचे छे
वरसे छे
पूगे छे [तमे बे] घसो छो
वांदो छो
१५
हुंति
जंति
निप्पज्जसे
संति
बूम
वाइ
धाह
बूमि
संपज्जइ
पुज्जइ
सिजति
गाएसि
जोतसि
जोआमु
खिज्जेह बेणि संति | ठामि
गाइ
जासि
वाइत्था
विज्ञसे
होएज्ज
૧૯
[तमे बे] छो [ते बे] निंदे छे
[तुं] दीपे छे तजीप छीप जाउं छु
छं पूरुं छं
धापज्जइ
बे जाम
म्हि
निप्पज्जह
अंसि
अत्थि
दो मज्जह होज्जा
दोणि दिव्वामु खापज्जति
मज्जते
वे खिज्जिरे दो मो
WE
दुवे त्थ असि
अम्हि
बूमो
बे खापमु मज्जेसि
१५ हो+न्ति = हुंति. जा+न्ति = जंति. जुओ टिप्पण ९ मुं.
'न्ति' भने 'ते' प्रत्ययना 'नू'नो अने तेवी रीते आवेला बीजा 'न' नो अनुस्वार पण थाय छे. जेमके:-हुति हुन्ति. गाअंति, गाअन्ति वगेरे.
,
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ४ थो
झा (ध्या)१६ ध्यावु-ध्यान करवु । कह (कथ) ८ कहेवू , विज्झ (विध्य) वींधQ
कुह (कुथ) कोहयु-सडq. गिज्म (गृध्य) गृद्ध थq-ललचायु बाह् (वाध) बाधq-बाधा करवीर
अडचण करवी कुज्झ (कुध्य) क्रोध करवो
बोह (बोध) बोध थवो-जाणवू सिन्झ (सिध्य) सीझवु-सिद्ध थQ
वह (वध) वध करवो-हणवू मुज्म् (मुह्य) मूंझावु-मूढ थQ
लिह (लिख) लखवू मोह पामवो
लह(लभ) लेवु-मेळवq नज्म (नय) नाझवु-बांधवू सिलाह् (श्लाघ) सराहवु-वखाणवू जुज्झ् (युध्य)१७ जूझ-युद्ध कर सोह् (शोभ) सोहQ-शोभq
२ (खाद् ) खावं
धाव । (धाव् ) धोडवु-दोडवू
१६ शब्दनी अंदरना 'ध्य' अने 'ह्य' ने बदले 'ज्झ' नो प्रयोग थाय छे अने शब्दनी आदिना "ध्य' अने 'ह्य' ने बदले 'झ' नो उपयोग थाय छे. जेमकेःध्य-ध्या-झा. ध्यायति-झायति. ध्यानम्-झाणं. साध्यम्-सज्झ. विन्ध्यः-विंझो. -मुह्य-मुज्झ. मुह्यति-मुज्झइ. गुह्यकारः-गुज्झारो. गुह्यम्-गुज्झं. नाति-नज्मद,
१७ शब्दनी आदिना 'य' नो 'ज' थाय छे. जेमकेःयुध्य-जुज्झ. या-जा. यतिः-जती. यथा-जहा. यात्रा-जत्ता. युम्मम्-जुम्म.
१८ क्ष (क्+ष) अने ज्ञ (ज्+ञ) छे तो संयुक्त वर्णों छतां अखंड वर्ण जेवा भासे छे तेम ख (क्तह), घ (ग+ह), थ (त्+ह), ध (द-ह), फ (प्+ह) अने भ (ब्+ह) वर्गों पण अंग्रेजीनी जेम 'ह' साथे मिश्र थईने बनेला छे छतां रीढा थई जवाने लीधे अखंड जेवा लागे छे अने लिपिमा पण तेवा ज अखंड लखाय छे. तो पण शब्द विज्ञाननी दृष्टिए ते छये व्यंजनो संयुक्त छे एथी ज्यारे ए छये अखंडित व्यंजनो
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
बे ध्याइए छीए दोडो छो बाधीए छीए [ते] वींधे छे गाउं छं
बे कहे छे ललचाइए छीए शाप दे छे आळोटीए छीए तेओ] छे प्रकाशे छे फेंके छे बे मूंझाओ छो छो
बे सीवीए छीए बे सडो छो जूझो छो मूंझाइए छीए बांधीए छीए
वा, छु शोभो छो
सीझे छे बे लखो छो बे बोलीए छीए क्रोध करे छे छीए
द्यो छो
सिद्ध थाउं छु घसे छे
शोमे छे बे करो छो बे परसेवावाळा जाणे छे
वींधु छु थाय छे मेळवीए छीए तेओ] जपे छे खेंचो छो जूझुं छं
थईए छीए सांपडे के रमो छो
ऊभो रहे छे बे योग्य थाय छे | जमे छे
खेद करीए छीए बे निंदा करीए नीषजे छे लखे छे . छीए । हरखाओ छो । [तुं] छे कोई शब्दनी अंदर आवेला होय त्यारे तेमने बदले ते दरेकने बदलेमात्र 'ह' नो ज व्यवहार थाय छे. अर्थात् 'ह' नी पूर्वेना ए छये व्यंजनो लखाता नथी तेम बोलाता पण नथी. जेमके:ख-लिख-लिह | थ-कथ-कह
फ-सफलम्-सहलं लेखः-लेहो । कथनम्-कहणं
मुक्ताफलम्-मुत्ताहलं मुखम्-मुह पथः-पहो
शफरी-सहरी घ-लाघ-सिलाह ध-बोध-बोह
भ-शोभ-सोह श्लाघा-सिलाहा
बधिरः-बहिरो । शोभा-सोहा मेघः-मेहो व्याधिः-वाही
नभस्-नहं
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
a
माधुं छु बे जाय छे
खाय छे सामा थाय छे वाय छ
बे वखाणे छे बे दोडो छो ! कंपो छो कुहति ठाइ । झाम
लिहेज्ज सिलाहंति वे सोहामो होति सिझंति गिज्झम
मुज्झिमु दुण्णि बोहेति वेणि विमंति जुज्झेम
लहेज्जा कहेमि ठाए
कुज्झेसि नज्झसि वे बाहह
अंसि जुझिरे . सिझम्ह विति
मो
मि
सि
धातुओ
नव
(नम)२' नमवं
.
पुच्छ् (पृच्छ) पूछQ
डह् (दह) । दहवु-दाझ बीह (भी९) बीवु
डब्ज (दप)२० वळवू-बाळQ पड् (पत) पडवू छज्ज् (सज्ज) छाजवु-शोभq वेद (वेष्ट) वींटवू
चय (त्यज)२२ तजर्बु-छोडवू कर (कर) क
जिण (जिना) जितg तर् (तर) त
छिंद् (छिनद्) छेटवू चिण् (चिनु) चणवु-एकटं करवू । चल् (चल) चालवू
१९ व्+ह-ई="भी ऊपरथी 'बी'. २० जुओ टिपण १६.
२१ शब्दनी आदिना 'न' नो 'ण' विकल्पे थाय छे अने शब्दनी अंदरना 'न' नो 'ण' नित्य थाय छे. जेमके:-नमति-णमति, नमति. नमस्-णमो, नमो. जिनः-जिणो. दिनम्-दिणं. [यादी:-आर्षप्राकृतमा 'न' ना 'ण' माटे आ जातनो चोकस नियम नथी.]
२५ शब्दनी आदिना 'त्य' नो 'च' थाय छे अने शब्दनी अंदरना 'त्य' नो 'च' थाय छे. जेमके:-त्यजति-चयति. त्यागः-चागों. चायो. नृत्यति-नच्चइ. नृत्यम्-नश्चं. [ अपवाद-चैत्यम्-चेइअं]
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुस्स् ,
निंद। (निन्द) निंदवू-निंदा
। नस्स् , (नश्य) नाश थवो निन्द
करवी
। नास् सुस् । (शुष्य)२३ शोषवु
गेण्ह (गृह्णा) ग्रहण करवू सुस्म्
सुकावु
नच्च (नृत्य) नाचवू सुण् । (शृणु)२४ सुणवूहण
कुण (कृणु) कर, सुमर् (स्मर) स्मरण कर- रूस् । (रुष्य) रूसवु-रोष करवो
याद कर गच्छ् (गच्छ) गति करवी-जवू । हण् (हन् ) हणवू-मार
सार अने प्रश्नो १ पु० वंदमि, वंदामि, वंदेमि | वंदमो, वंदामो, वैदिमो, वंदेमो वंदेज्ज, वंदेज्जा वंदमु, वंदामु, वदिमु, वंदेमु .
वंदम, वंदाम, वंदिम, वंदेम वंदम्ह, वंदाम्ह, वंदिम्ह, वंदेह वंदेज्ज, वंदेज्जा
२३ जुओ टिप्पण ७ मुं [ यादी-ज्यां श् ष के स् साथे 'य' 'र' 'व' 'श' 'ष' के 'स' नो संयोग होय त्यां 'य' वगेरेनो लोप थतां बाकी रहेला श ष के स् बेवडाता नथी; किंतु तेमनी पूर्वनो ह्रस्व स्वर दीर्घ पण थाय छे. जेमकेः--
शुष्य-सूस् अथवा सुस्स् । विष्वाणः-वीसाणो अथवा विस्साणो रूष्य-रूस् अथवा रुस्स्
इष्वासः-ईसासो , इस्सासो नश्य-नाम् अथवा नस्स । आस्यम्-आसं अथवा अस्सं विश्वासः-वीसासो अथवा विस्सासो । सस्यम्-सासं अथवा सस्सं अश्वः-आसो अथवा अस्सो
२४ 'श्' के ए ने बदले 'स' नो ज व्यवहार थाय छे. जेमके:शुष्कम्-सुक्कं. दोषः-दोसो. नाशः-नासो. नश्य-नस्स्, पश्य-पस्स्.
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
२ पु० बंदसि, वंदेसि वंदइत्था, वंदित्था वंदसे, वंदेसे
वंदेइत्था, वंदेत्था
वंदह, वंदेह वंदेज्ज, वदेज्जा चंदेज्ज, वंदेज्जा ३ पु. वंदति, वंदेति वंदंति, वेदेति, २५वदिति बंदते, वंदेते
वंदते, वंदेंते, वंदिते वंदह, वंदेह वंदए, वंदेए
वंदइरे, वंदेहरे, वंदिरे वंदेज्ज, वंदेज्जा । वंदेज्ज, वंदेज्जा
विकरणवाळां रूपो १ पु० होअमि, होआमि, । होअमो, होआमो,होइमो,होएमो होएमि
होअमु, होआमु, होहमु, होएमु होअम, होआम, होइम, होएम
| होअम्ह,होआम्ह, होइम्ह,होरम्ह [ज्ज होएज्जमि, होएज्जमो, होएज्जामो, होएज्जिमो, होएज्जेमो
होएज्जामि, होएज्जमु, होएज्जामु, होएजिमु, होएज्जेमु होएज्जेमि होएजम, होएज्जाम, होएजिम, होएज्जेम होएज्ज होएजम्ह, होएज्जाम्ह, होएजिम्ह, होएजेम्ह
। होएज [ज्जा] होएज्जामि, होएजामो, होएजामु, होएज्जाम, होएजम्ह होएज्जा । होएजा
विकरण विनानां रूपो १ पु० होमि । होमो, होमु, होम, होम्ह [ज होज्जमि, होजमो, होजामो, होजिमो, होजेमो. होज्जामि होजमु, होजामु, होजिमु. होजेमु. होज्जेमि. होजम, होजाम, होजिम, होजेम. होज्ज होत्रम्ह, होजाम्ह, होजिम्ह, होजेम्ह. होज.
२५ वदेति ऊपरथी वदिति. होज-हुन. होएज-होइज. वगेरे माटे जुओ टिप्पण ९ मुं.
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
२५
[ज्जा होज्जामि | होजामो, होजामु, होजाम, होजाम्ह होज्जा होजा२६
आ रीते बीजा अने श्रीजा पुरुषमा 'हो' नां रूपो स्वयं साधी लेवां.
पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडतां पहेलां प्रत्येक स्वरांत धातुनां छ अंगो बने छे. जेमकेः
होअ, होएज, होएजा, हो, होज, होजा, [हो' नां] गाअ, गाएज, गाएजा, गा, गाज, गाजा, ['गा' ना]
ए छ अंगो द्वारा उक्त सर्व रूपो योजी लेवां.
१ 'से' अने 'ए' प्रत्यय न ले तेवा केटलाक धातुओ
जणावो. २ 'ज' अने 'जा' ना उपयोग विशे शं समझायं? ३ स्वरांत धातुनी साथे 'ज' अने जा' नो उपयोग
केवी रीते थाय छे ए उदाहरण साथे समझावो. ४ आवा ( ) कौंसमां अने बहार भूकेला शब्दोमां
केटला टका समानता लागे छ ? ५ बहार भूकेला अने अर्थमां जणावेला शब्दोमां केटला
टका समानता लागे छे ? ६ 'इ' नो 'ए' अने 'उ' नो 'ओ' क्यारे थाय छ ? उदा.
हरण सहिंत जणावो.
२६ त्रणे पुरुषनां मळीने तो घणां रूपो थाय छे. तेथी अहीं प्रथम पुरुषनां रूपो उदाहरण तरीके दर्शाव्यां छे. साहित्यमां अने व्यवहारमा आ वां रूपोनो उपयोग विरल छे. आ तो मात्र जाणवा माटे ज जणाव्यां छे.
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
२५
७ संस्कृत अने प्राकृतमां उच्चारणभेदने लीधे जे केटलाक फेरफारो बताव्या छे तेमांना केटलाक अहीं . उदाहरण साथै समझावो.
८ स्वरांत धातु अने व्यंजनांत धातुनी रूपसाधनामां शुं भेद छे ?
९ 'ज' अने 'जा' नी पूर्वना 'अ' नुं शुं थाय छे ? १० 'अस्' धातुनां वर्तमानकाळना बधां रूपो लखो. ११ प्राकृत भाषामां द्विवचन छे ? तेनो अर्थ शी रीते दर्शावाय ?
१२ कया संयोगोमां स्वरनो लोप थाय छे ते उदाहरण सहित बतावो .
१३ प्राकृत भाषा साथे गुजराती भाषानो केवो संबंध जणाय छे ?
१४ व्यंजनांत अने स्वरांत कोई पण एक धातुनां बधां रूपो लखो.
१५ प्राकृतभाषानां उच्चारणो सरळ छे के कठण ते उदाहरण आपीने समझावो.
उवसग्ग (उपसर्ग)
उपसर्ग धातुनी पूर्वे आवी घणुं करीने धातुना मूळ अर्थमां न्यूनाधिकता करी विशेष अर्थ-न्यून अर्थ, अधिक अर्थ के जुदो अर्थ बतावे छे. एवा उपसर्ग नीचे मुजब छे:
प (प्र) आगळ. प+जाइ = पजाइ- आगळ जाय छे. प+जोतते - पजोतते - विशेष प्रकाशे छे. प+हरति = पहरति
- प्रहार करे छे.
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
२६
अप
अनु।
परा-सामुं, उलटुं. परा+जिणइ पराजिणइ-पराजय करे छे.
पराहोइ-पराहोइ-पराभव करे छे-हरावे छे. ओ) (अप) हलकुं, रहित, ओ+सर ओसरइ) सरके छेअव नीचे, दूर. अव+सरह-अवसरइ खसे छे.
___ अप+सरह-अपसरह) अप+अर्थकम् अवत्थयं-अपार्थक-अमथु.
ओ+माल्यम् ओमल्लं-निर्माल्य. सं (सम्) एकलु, साथे. सं+गच्छति-संगच्छति-साथे
जाय छे. ___ सं+चिणइ-संचिणइ-संचय करे
छे-एकहुं करे छे. अणु ] (अनु) पाछळ, सर. अणु+जाइ-अणुजाइ-पाछळ
जाय छे. अणु+करइ=अणुकरइ-अनुकरण
करे छे. ओ। (अव) नीचे ओ+तरह-ओतरइ, अवतरे छे, ऊतरे छे.
___अव+तरह-अवतरह नीचे जाय छे. निर् ) (निर्) निरंतर, सतत. रहित. निर्+इक्खइ-निरिक्खइ-नीरखे छे-निरीक्षण
- करे छे. नी ) नि+ज्झरइ-निज्झरइ-झर्या करे छे.
नी+सरइ-नीसरह-नीसरे छे-निरंतर सरे छे. निर्+अंतरं-निरंतरं-निरंतर-सतत.
निर+धनः-निद्धणो-निधनियो-धन वगरनो दु। (दुर ) दुष्टता दु+गच्छइ-दुग्गच्छइ-दुर्गतिए जाय छे.
दो+गञ्च-दोगच्चं-दौर्गत्य-दुर्गति.
दूहवो-दूहवो-दुर्भग-कमनसीब. २७ 'दू' अने 'सू' नो उपयोग फक्त 'हव'-भग) शब्दनी पूर्वे थाय छे.
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
२७
अभि । (अभि) सामे. अभि भासा-अभिभासइ-सामे बोले छे. अहिS
अहि+मुहं-अहिमुह-अभिमुख-सामुं. वि-विशेष, नहि, विपरीत. वि+जाणा-विजाणइ-विशेष जाणे के.
वि+जुंजा-विजुंजइ-वियोग करे छे.
वि+कुव्वइ+विकुम्वइ-विकृत करे छे. अधि) (अधि) अधिक. अधि+गच्छति-अधिगच्छति-मेळवे अहि
छे, जाणे छे, ऊपर
जाय छे.
अहि+गमो-अहिंगमो-अधियम-शान सु (सु) सारं. सु+भासए-सुभासए-सारं बोले छे. सू
सू+हवो सूहवो-सुभग-भाग्यवान. उ (उत्) ऊंचे. उ+गच्छते-उग्गच्छते-ऊंचे जाय छे-ऊगे छे. अडू अतिशय, हद बहार. अइ+सेह-अइसेइ-अतिशय करे अति।
छे-हद वहार वखाणे छे. अति गच्छति-अतिगच्छति
हद बहार जाय छे. णि ! (नि) निरंतर, नीचे. णि+पडइ-णिपडइ निरंतर पडे छे,
नि+पडा-निपडइ नीचे पडे छे. पडि) (प्रति) सामुं, सर, विपरीत. पोत
पडि भासए पडिभासए-सामुं बोले छे. २८परि
पति+हाइ-पतिट्ठाइ-प्रतिष्ठित थाय छे. परि+ट्ठा-परिट्ठा-प्रतिष्ठा. पडिमा पडिमा-सरखी आकृति.
पडि+कूलं-पडिकूलं-प्रतिकूल. परि। (परि) चारे बाजु. परि+वुडो-परिखुडो-परिवृत-चारे पलि
बाजुथी वींटायेलो.
पलि+घो-पलिघो-परिघ-घण. २८ 'परि' ए 'पडि' नु ज भिन्न उच्चारण छ, 'र' अने 'ड' नुं उच्चारण स्थान पण सरखं छे,
नि
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
૨૮
२९अपि) (अपि) ऊलटुं, पण. अवि+हेइ-अविहेइ३०) ढांके अवि
अपि हेइ-अपिहेह के पि+हेइ-पिहेह ) को+विम्कोविकोई को+इ-कोइ पिण किम् अवि-किमवि-कांई पण
जं+पि-जंपि-जे पण ऊ) (उप) पासे. उव+गच्छद-उवगच्छइ-पासे जाय छे. ओ
ऊ ज्झायो-ऊज्झायो ) उव)
ओज्झिायो-ओज्झायो उपाध्याय
उव+ज्झायो-उवज्झायो) आ-मर्यादा, उलटुं. आ+वसइ-आवसइ-अमुक मर्यादामां
__ रहे छे. आ+गच्छइ आगच्छद् आवे छे. उपसर्गना अर्थों नियत नथी. कोइ उपसर्ग, घातुना मूळ अर्थ करतां विपरीत अर्थ बतावे छे. कोइ, ए मुळ अर्थने अनुसरे छे, कोइ, एमां थोडो वधारो देखाडे छे अने कोइ, मात्र शोभा माटे ज वपराय छे-धातुना अर्थमां कशो फेरफार बतावतो नथी. 'अपि' उपसर्ग छे अने 'पण' अर्थमां अव्यय पण छे एथी 'अपि' साथेना उदाहरणोमां तेनो बन्ने जातनो उपयोग बताव्यो छे.
२९ 'अवि' 'वि' के 'इ' अव्यय, शब्दना स्वरांत अंगनी पछी जोडाय छे अने शब्दना व्यजनांत अंगनी पछी 'अवि' के 'पि' नो नो उपयोग थाय छे. जेमकेः-को+अवि-को अवि. को वि. को+इ-कोइ. होइ+अवि-होइ अवि, होइ वि. किम्+अवि-किमवि. किम्+पि-किपि (जुओ टि० ८मुं.) ३० अपिदधाति, पिदधाति.
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
धातु पुण (पुना) पुणQ-पवित्र कर गंठ् (ग्रन्थ) गंठवू, गुंथर्बु थुण (स्तुनु) थुणवं-स्तुति करवी ! गज्ज् (३१ गर्ज) गानQ वच्च (ब्रज) फरता रहेवू मिला (म्ला) म्लान थqकुद्द (कूर्द) कूदवं
करमावू अच्च (अर्च) अर्चq-पूजवं
गिला (ग्ला) ग्लान थ, गळवूवड्द (वर्ध) वधवू
क्षीण थर्बु भम् (भ्रम) भमबुं
चिइच्छ (चिकित्स) चिकित्सा
___ करवी-रोगनो उपचार भम्म् (भ्राम्य) भमवू
करवो भिंद (भिनद्) भेदQ-कटका करवा
जग्ग् (आग्र] जागवू छिंद् (छिनद् ) छेद
वीसर (वि+स्मर्] वीस सिंच (सिञ्च) सींचq
जम्म् (जन्सन् ) जन्मकुं मुंच (मुच्च) मूकवू
रुव (रुद) रोवू लुण (लुना) लणवू-कापवू तोल (तोल) तोळवू
३१ संयुक्त अक्षरमा आगळ रहेलो के पाछळ रहेलो 'र' लोप पामे छे. 'र' नो लोप थया पछी बाकी रहेलो शब्दनी अन्दरनो व्यंजन बेवडाय छे. जेमके:आगळनो 'र'-गर्ज-गज-गज। अर्च-अच-अच्च । कूर्द-कूद-कुह ।
वर्ध-वध-वड । वार्ता-वता-वत्ता । अर्कः-अको-अको। पाछळनो 'र-प्रन्थ-गंथ-गंठ। भ्रम-भम । रात्रिः-रती-रती। चक्रम्
चकं-चकं ।
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ५ मो अकारांत नामनां रूपाख्यानो (नरजाति)
वीर एकवचन
बहुवचन १ वीर+ओ-वीरो (वीरः) वीर+आ-वीरा (वीराः ).
वीर+ए-वीरे २ वीरतम्-वीरं (वीरम् ) वीर+आ-वीरा ( वीरान् )
वीर+ए-वीरे ३ वीर+एणवीरेण (वीरेण) वीर+पहि-वीरेहि (वीरेमिः, वीरेणं
वीरेहिं वीरेहि वीरैः) ४ वीर+आय-वीराय ( वीराय ) वीर+ण-वीराण (वीराणाम् ) वीर+आएवीराप
वीराणं वीर+स्स-वीरस्स (वीरस्य) ५ वीर+आ-वीरा ( वीरात्) वीर+त्तो-वीरत्तो (वीरतः) वीरत्तो वीरत्तो (वीरतः) वीर+तो-वीरातो) वीर+तो वीरातो वीर+ओ-वीराओ (वीरतः) वीर+ओ-वीराओ वीर+तु-वीरातु वीर+उ-वीराउ
वीर+तु-वीरातु वीर+हि-वीराहि
वीर+उ-वीराउ वीर+हिंतोवीराहिंतो वीर+हि-वीराहि, वीरेहि
वीर + हिंतो वीराहिंतो, वीरेहिंतो (वीरेभ्यः)
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
३१
वीर + सुंतो चीयसुंतो,
वीरेसुंतो ६ वीर+स्सचीरस्स (वीरस्य) वीर+ण-वीराण (वीराणाम्)
वीराणं ७ वीर+ए-वीरे ( वीरे) वीर+सु-वीरेसु (वीरेषु)
वीरेसुं वीर+सिम्वीरंसि (३२वीरस्मिन् ?)
वीर+म्मिवीरम्मि सं० वीर ! ( वीर !) वीर+आ-वीरा ( वीराः !) वीरा! वीरो ! वीरे!
संस्कृत अने प्राकृत रूपोनां उञ्चारणोमां नहि जेवो मेद छे. ए मेद, ए रूपो बोलतां ज समझाय छे. मात्र पांचमी विभक्तिमां वधारे अनियमित रूपो छे.
रूपो बतावतां नामर्नु मुळ अंग अने प्रत्ययनो अंशए बन्ने छूटा पाडीने जणावेलां छे. अने साथे साथे ए ऊपरथी साधित थतां दरेक रूपो पण जुदां जुदां दर्शावलां छे. एथी आ साधनपद्धतिद्वारा ज, विद्यार्थी, अकारांत नामनां रूपोने समझी लेशे.
____३२ सप्तमीनो सूचक 'स्मिन्' प्रत्यय संस्कृतमा मात्र 'सर्वादि' शब्दोने लागे छे त्यारे प्राकृत अने पालिमां तो ए सर्व व्यापक छे. प्राक सनो "सि' प्रत्यय, 'स्मिन्नु जुएं पण सरळ उच्चारण छे. फक्त ए सूचववा 'वीरस्मिन्' रूप बताव्युं छे. रूप पासेर्नु ?' निशान, ए रूपनी संस्कृतमा अविद्यमानता सूचवे छे. एवां निशानवाळां बीजां रूपो विशे पण एम समझवानुं छे.
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
साधनपद्धतिनी समजण
१ प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी अने सप्तमी विभक्तिना
स्वरादि प्रत्ययो तथा पंचमीनो एक मात्र 'आ'प्रत्यय • लगाडी अंगना अन्त्य 'अ' नो लोप करवानो छे.
जेमके-वीर+ओ-वीर+ओ-वीरो. वीर+ए-वीर+प-वीरे
वगेरे. [जुओ टि. १० मुं.] ३ अंत्य 'म्' नो अनुस्वार थाय छे अने अंत्य 'म्'
पछी कोइ स्वर आवेलो होय तो अनुस्वार विकल्पे
थाय छः वीर+म् वीरं. वीरम्+अवि-वीरं अवि, वीरमवि. ३ तृतीया अने षष्ठी विभक्तिना 'ण' ऊपर तथा सप्तमी
विभक्तिना 'सु' ऊपर अनुस्वार विकल्पे थाय छ: वीर+एणवीरेण, वीरेणं. वीर + ण = वीराण, वीराणं. बीर + सु = वीरेसु, वीरेसुं. तृतीया अने सप्तमीना बहुवचनना प्रत्ययोनी पूर्वना अकारांत अंगना अंत्य 'अ' नो 'ए' थाय छे अने इकारांत अंगनो तथा उकारांत अंगनो अंत्य 'इ' अने 'उ' दीर्घ थाय छ: वीर+हि = वीरेहि. वीर+सुवीरेसु. रिसि+हि- रिसीहि. रिसि+सु = रिसीसु. भाणु+हि
भाणूहि. भाणु+सु-भाणूसु. ५ पंचमीना 'तो' 'तु' 'ओ' 'उ' 'हि' 'हिंतो' अने 'सुंतो'
प्रत्ययोनी पूर्वना स्वरांत अंगनो अंत्य स्वर दीर्घ थाय छे तथा पंचमीना बहुवचनना 'हि' 'हिंतो' अने 'सुतो' प्रत्ययोनी पूर्वना अकारांत अंगना अंत्य 'अ' नो 'ए' पण थाय छः
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
एकवचन-वीर+ओ-धीराओ धीर+उ-वीराउ.वीर+हि-वीराहि. और+हितोचीराहिंतो. रिसि+ओ-रिसीओ.भाणु+ओ-माणूओ.
बहुवचन-वीर-हि+वीराहि, वीरेहि. वीर+हिंतोवीराहिंतो, रेहितो. वीर+सुंतो-धीरासुतो, वीरेसुतो.रिसि+हि-रिसीहि. पणु+हिमाणूहि. रिसि+हिंतो-रिसीहितो.
६ षष्ठीना बहुवचननो 'ण' लागतां पूर्वना अंगनो अंत्य स्वर घि थाय छेः धीर+ण-वीराण, वीराणं. रिसि+ण-रिसीण. णु+ण-भाणूण. ७ संबोधननां रूपोनी साधना प्रथमा प्रमाणे छे. वधारामां ळ अंग पण जेमन तेम वपराय छे. वीर! वीरो! वीरा! धीरे! ८ तृतीया विभक्तिना 'एहि' नो 'हि' प्रत्यय, माथे अनुस्वार ण ले छे अने तेनो सानुनासिक उञ्चार पण थाय छे. आरीते ते कहि' नां पण प्रण रूपो थाय छः वीरेहि, वीरेहिं, वीरेहिँ.
९'तो' अने 'तु' प्रत्ययवाळां पंचमीनां रूपोनो उपयोग विरल : . ते 'तो' अने 'तु' इकारांत, उकारांत अंगने पण लागे छे.
लोकव्यापक भाषामां केटलांक प्राचीन रूपो हयाती रावे छे. काळमेद, व्यवहारमेद, देशमेद अने उचारणइ तथा अन्य कारणोने लीधे व्यापक भाषामां नवां नवां यो उमेरातां जाय छे. तेमज केटलांक रूपोनो संकर पण ईगयेलो होय छे
उपर्युक्त प्राकृत रूपोमा 'वीरे' (प्र० ए०) ए, मागधी षानुं एटले प्रांतिक प्राकृतनुं छतां आर्ष प्राकृतमा सबहरा छे.
वीराए (१० ए०) वीरसि (स० ए०) रूपोनो व्यवहार __३३ अजिणाए ( अजिनाय ) मंसाए ( मांसाय ) पुच्छाए (पुच्छाय) रे 'भाए' प्रत्ययवाळो भने लोगसि (लोके ) कसि (कस्मिन् ) गरंसि (अगारे ) सुसाणंसि ( श्मशाने) वगेरे । 'सि' प्रत्ययवाळा
आचारांगादिसूत्रोमा मळे छे.
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
विशेषे करीने आर्षप्राकृतमां देखाय छे. केटलेक स्थळे चतुर्थीना एकवचनमां 'आई' प्रत्ययवाळु रूप पण मळे छः वहाइ ( वधाय). 'आय' 'आए' अने 'आइ' ए प्रणेमां खास कशी विषमता नथी. 'आई' प्रत्ययवाळु रूप बहु प्रचलित नथी तेथी ज ते ऊपरनां रूपोमां जणाव्यं नथी. केटलेक स्थळे 'आए' ने बदले 'आते' प्रत्यय पण वपरायेलो के एथी 'वीराए' नी पेठे 'वीराते' रूप पण आर्ष प्राकृतमा वपरायेलुं छे. प्राकृतभाषामां चतुर्थी विभक्ति खास जुदी नथी पण ते षष्ठी विभक्तिमा समाइ गयेली छे तेथी ते बन्ने विभक्तिनां रूपो एक सरखां थाय छे.
प्रथमानां अने द्वितीयानां तथा संबोधननां रूपो एकबीजामां भळी गयेलां छे माटे ज ते सरखां जेवां जणाय छे.
तृतीयाना अने पंचमीना बहुवचनमां पण तेवी ज मेळसेळ थइ गई छे एथी ज 'वीरेहि' तृतीयांत पण के भने पंचम्यंत पण छे. लोकभाषामां तृतीया अने पंचमीना अर्थमा विशेष भेद नथी तेम संस्कृतमां पण तृतीयाना अर्थमां पंचमी वपराय छे.
"हिंतो' अने 'सुतो' प्रत्ययवाळां रूपोनो उपयोग अधिक नथी जणातो.
'वीरा' रूप पंचम्यंत छे पण कोइ काळे ए, पंचमीनो अर्थ जणाघवा असमर्थ नीवडयु लागे छे तेथी ज एने मूळ अंग मानी, 'ओ' 'उ' वगेरे प्रत्ययो३४ लगाडी तेनां जुदा
३४ पंचम्यर्थसूचक सं० 'तस्' नुं प्राकृत 'तो' थाय छे. 'ओ' 'उ' प्रत्ययोनी उत्पत्ति ए 'तो' मांथी ज करी शकाय एम छे. 'वीरतो' 'वीराओं' 'वीराउ'. पाछला बे रूपोमां 'तू' उच्चारण कमी थतां 'र नो 'अ' दीर्घ थइ गयो छे. 'वीरत्तो' रूपनो संबंध पण 'वीरतो' साथे ज छे.
-
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
३५
झुदां रूपो नीपज्यां जणाय छे. गूजरातीमां 'तेणे' २५ '५णे' रूप ए प्रकारनां छे.
'तो' अने 'तु' प्रत्ययवाळां पंचमीनां रूपो प्राचीन प्राकृतमां ज सचवायां छे. छतां ते, 'आवश्यकसूत्र' नी कथाओ अने 'वसुदेवहिंडी' जेवा प्राकृत ग्रंथोमां ठीक प्रमाणमां वपरायां छे माटे तेने खास जुदां जणाव्यां छे.
R
अकारांत अंगने लागता केटलाक प्रत्ययो इकारांत अने उकारांत अंगने पण लागे छे तथा इकारांत अने उकारांत अंगनां केटलांक रूपो 'इन्' छेडावाळां अंगोनी जेवां थाय छे. आम अनेक प्रकारनी " अनियतता, लोकभाषानुं खास लक्षण छे अने ते, वैदिकभाषानी पेठे प्राकृतमां पूरेपूरुं जळवायेलुं छे.
३७
नाम [ नरजाति ]
अरिहंत (अरि + हन्त) वीतराग देव. हर (हर) हर महादेव.
बुद्ध (बुद्ध) बुद्धदेव.
मग्ग (मार्ग) मार्ग - मारग
कलह ( कलह ) कलह-कळो हत्थ (हस्त) हाथ. पाय (पाद) पाद - पग, पायो भार (भार) भार
३५ 'तेन' 'एनेन' तृतीया विभक्तिनुं सूचक छे. प्राकृतमां तेने मळतु 'ते' 'एणेण' रूप थाय छे. ए 'तेण' 'एणेण' तृतीयांत होवा छतां तेने फरीवार तृतीया विभक्तिनो अपभ्रंशीय 'इं' प्रत्यय लगाडवो पडयो छे. ए रीते 'तेन' - तेण' - 'तेगई' - 'तेणे'. 'एनेन' - 'एणेण' - ' एणेणई' - ' एणे' उतरी आव्युं छे. ३६ अग्गि (अभि ) नुं 'अग्गिणो' रूप सं० 'दण्डिनः" [प्रा० ' दण्डिणों' ] नुं अनुकरण छे. ए ज प्रमाणे भाणु (भानु) नुं ' भाणुणो रूप नीपजेलुं छे. ३७ लिंगनी अनियतता, विभक्तिओना अर्थनी अनियतता, एकवचन बहुवचननी अनियतता-आम अनेक प्रकारनी अनियतता छे.
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
बाल (बाल) बाळ-बालक । इंद (इन्द्र) इन्द्र उवज्झाय (उपाध्याय) उपाध्याय चंद (चन्द्र) चंद्र
-अध्यापक-गुरु-ओझा । मेह (मेघ) मे-मेघ-वरसाद आयरिय (आचार्य)सदाचारवंत गुरु. । भारवह (भारवह) भार वहनार-मजूर सिद्ध (सिद्ध) अदेही वीतराग समुह (समुद्र) समुद्र-समुदर निव (नृप) नृप-राजा
नयण३८ (नयन) नेण-आंख बुह (बुध) बुद्धिमान-डाह्यो पुरुष कण्ण (कर्ण) कान पुरिस (पुरुष) पुरुष.
महावीर (महावीर) महावीर देव आइञ्च (आदित्य) आदित्य-सूर्य जिण (जिन) जय पामनार-वीतराग
मेघ मार्गने सिंचे छ । सिद्धोने नमो इन्द्र बुद्धदेवने ममे छे मजूरो मार्गमा दोडे छे डाहो पुरुष बाळकने पूछे छे समुद्रमां चंद्रोने देखीए छीए आंखवडे चन्द्रने जोउं छु । बाळको उपाध्यायने पूछे छ समुद्रने कानवडे सांभळु छु । राजाना पगोमां पईं छु बालकना हाथमां चंद्र छे
वीतराग देव ! नमुं छु कलहने छेदो छो
बे बालक बोले छे सूर्य तपे के
समुद्रो गाजे छे. राजा मार्गने जाणे छे राजा शोभे छे.
नमो अरिहंताणं
नयणेहिं देक्खामु भारवहो हरं वंदह
भारवहा भारं चिणिज महावीरो जिणो झाअइ नमो उवज्झायाणं कण्णेहिं सुमि
। समुद्दो खुब्भह ३८ 'आंख' अर्थने सूचषनारा शब्दो नरजातिमां पण वपराय छः नयणो, नयणं. (नयनम् ) लोअणो, लोअणं ( लोचनम् )
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
३७
मेहो समुहम्मि पडइ बाला हत्थे घरिसंति समुई तरह इत्थाओ हरं अञ्चेमि
नमो आयरियाय आयरियाण पाए नमाम बाला कुइंति चन्दो वडा
पाठ ६ ट्ठो अकारान्त नामनां रूपाख्यानो (नान्यतर जाति) एकवचन
बहुवचन १ कमल+म्=कमलं (कमलम ) कमल+णि कमलाणि)
कमल ई-कमलाई
कमल+इँ-कमलाई २ , = , ( , ) , += , सं० कमल! (कमल!) , + = , (..) तृतीयाथी सप्तमी सुधीनां रूपो 'वीर'नी जेवां जाणवां.
१० 'णि' 'ई' 'ई' प्रत्ययोनी पूर्वना अंगना अंत्य हस्व स्वरनो दीर्घ थाय छेः कमल+णि कमलाणि. वारि+ई-वारीइं.महु+ईमहा. ११ संबोधनना एकवचनमा मूळ अंग ज वपराय छे.
नाम [ नान्यतरजाति] नयण (नयन) नेण
नाण (ज्ञान) ज्ञान मत्थय३९ (मस्तक) माधु चंदण (चन्दन) चंदननुं झाड-लाकडं
३९ अब्दनी अंदरना अने असंयुक्त एवा क, ग, च, ज, त, द, प, म, व अने व नो प्रायः लोप थई जाय छ: मस्तक-मत्थय. नगर-नयर, वचन वयण. गज-गय. रजत-स्यय. हृदय-हिअय. रिपु-रिउ. विबुह-विउह. वियोग-विओग, लावण्य-लायण्ण. यादी-'क' वगेरेनो लोप थया पछी
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
ग
वेर ४ (वैर) वेर-वैर वयण (वचन) वचन-वेण वयण (वदन) वदन-मुख जयर) णगर (नगर) नगर-शहेर नगर नयर) मुह (मुख) मुख पित्त (पित्त) पित्त सिंग (शृङ्ग) शिंगडु, शिगुं फल (फल) फळ वण (वन) वन
भायण (भाजन) भाजनभाण भाणु-पात्र मंगल (मङ्गल) मंगल पास (पार्श्व) पासु-पडद्म हियय (हृदय) हैयु गल (गल) गर्छ पुच्छ (पुच्छ) पूंछडु-पूंछ पिच्छ (पिच्छ) पींछु मंस (मांस) मांस अजिण (अजिन) अजिन-चामडं भय (भय) भय-भो चम्म (चर्म) चामडं
सीह ४.
नाम (नरजाति)
कुंभार (कुम्भकार) कुंभार सिंघ (सिंह) सिंह
चम्मार (चर्मकार) चमार बग्घ (व्याघ्र) वाघ
हव्ववाह (हव्यवाह) हव्यवाहसिआल (शृगाल) शिआळ
अग्नि
कोह (क्रोध) क्रोध सीआल (शीतकाल) शीआळो गय (गज) गज-हाथी
लोह (लोभ) लोभ वसह (वृषभ) वृषभ-बळद दोस (द्वेष) द्वेष
ओट्ट (ओष्ठ) ओठ-होठ दोस (दोष) दोष दंत (दन्त) दांत
राग (राग) राग-आसक्ति बाकी रहेलो स्वर अवर्ण [अ के आ] होय अने तेनी पूर्वे पण अवर्ण आवेलो होय तो ए बाकी रहेला 'अ' नो 'य' अने 'आ' नो 'या' प्रायः थइ जाय छे. ४. 'ऐ' ने बदले 'ए' थाय छे. वैर+वेर. शैलसेल. कैलास केलास. ४१ अनुस्वारथी पर आवेला 'ह' नो विकल्पे 'घ' थाय छः सिंह-सिंघ, सीह. संहार-संघार, संहार.
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
३९
धातुओ घड् ( घट ) घडवू-बनावQ
सोह् (शोध) शोध-सोवु-शुद्ध करतुं जहा (जहा) छोडवु-त्याग करवो
परि+कम् (परि+कम् ) परिक्रमण जागर् (जागर) जागवू
___ करवु-परकमवु-प्रदक्षिणा फरवी भक्ख् (भक्ष) भक्षवू-खावु-भरखवू इच्छ (इच्छ) इच्छयूँ जाय (जाय) जावं-जन्म थवो- रक्ख (रक्ष) राखq-पाळg
उत्पन्न थर्बु वह (वह) वहेवु-वावु
विशेषण लंब (लम्ब) लांबू
बन्झ (बाह्य) बहार--बहारनो लण्ह (श्लक्ष्ण) नान
देखाव अव्यय न (न) न
सह ४३(सह) सह-साथे व (वा) वा-अथवा-के
सद्धिं (सार्धम्)
निश्चं। विना (विना) विना सया । (सदा सदा-हमेशा
४२विणा । (विना) विना
णिचं
(नित्यम् ) नित्य
सह
(सदा) सदा-हमेशा
वैरथी वैर वधे छे
मांसने माटे सिंहने हणो छो नगरनी पडखे चंदननुं वन छ | दांतो माटे हाथीओने मारे छे सिंह के वाघथी शिआळ | लांबा पुरुषतुं पण हृदय बीए छे ।
नानुं होय छे ४२ 'विणा' के 'विना'नी साथे आवता नामने बीजी, त्रीजी के पांचमी विभक्ति लागे छे. मेहं विणा. मेहेण विणा. मेहाउ विणा. ४३ 'सह' के 'सद्धि' नी साथे आवता नामने त्रीजी विभक्ति लागे छे. बुद्धण सह. महावीरेण सद्धि.
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
४०
बुद्धनी साथे महावीर बोले छे। हाथीओ बळदोथी बीतानथी कुंभार शीआळामां पात्रो सिंह पुंछडं लांबुं होय के
आंखमां क्रोधने जोर्ड छु। वाघने पीछां नथी होतां
सूर्य के चंद्र भमता नथी अग्नि वनने बाळे छे
सिंहना गळामां मांस छे मानमां मंगळ छे
बळदो शिंगडाथी शोमे के महावीरने माथावडे वांदूंछ राजाने कान नथी।
चमार चामडाने शुद्ध करे हे सिंहना हृदयमां भय नथी
मुखवडे वचनो बोलुं छु हाथी हाथवडे वनमा फळो । पुरुष नाना होठथी शोमे हे
खाय छे वरसाद नित्य पडे छे चामडा माटे वाघने हणे छे । वरसाद विना वनो सुकाय के अजिणाए वहंति वग्धे
मत्थरण वंदामि महावीरं फलाई भायणम्मि सोहंति
वणे गए देक्खह बुहा पुरिसा हियये वेर न रक्खंति
वसहेसुंतो वसहा जायंति निवो वणेसु सिंघे वा वग्धे सीहाहिंतो वग्यो न जायह
वा हप्पा वग्धस्स वा सिंघस्स सिंग सिंघो फलं न खायइ
नत्थि चंदणस्स वर्णसि जामि लोहाओ लोहो वड्ढइ कुंभारो नगराओ आगच्छह
रागा दोसो जायइ चम्मारो अजिणाए नगरं जाइ निवस्स मत्थयंमि कमलाणि
। कोहेण पित्तं कुप्पइ छजति । सीआलंसि पुरिसो सिंग हो
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
खार
) खारो
पाठ ७ मो
नरजाति घड (घट)४ घडो | समण (श्रमण) शुद्धि माटे श्रम नड (नट) नट
करनार-संत पुरुष पडह (पटह) पडो-ढोल मोक्ख (मोक्ष) मोक्ष-छूटकारो भड (भट) भड-शर
वेय (वेद) ऋग्वेद वगेरे वेद मोह (मोह) मूढता
फास (स्पर्श) स्पर्श काय (काय) काय-काया-शरीर
तलाय (तडाग)४६ तलाव सह (शब्द) शब्द-साद-अवाज
गरुल (गरुड) गरुड हरिस (हर्ष) हरख-हर्ष
छार (क्षार) खारो मढ ४५(मठ) मढी-मठ-संन्या
खंध ४८ (स्कन्ध) कांध-खांध, सीओगें रहेठाण
भाग, मोटी डाळ सढ (शठ) शठ-लुच्चो
पोक्खरं (पुष्कर) पोखर-तळाव कुढार [कुठार) कुठार-कुहाडो खय (क्षय) खे-क्षय पाढ (पाठ) पाडो-आंकनो पाडो- कोस (कोश) कोह-पाणी काढवा पाठ
कोश, खजाने ४४ शब्दनी अंदरना असंयुक्त 'ट' नो 'ड' थाय छः घट-घड. नट-नड. ४५ शब्दनी अंदरना असंयुक्त 'ठ' नो 'ढ' थाय छः मठ-मढ. पाठ-पाढ. ४६ शब्दनी अंदरना असंयुक्त 'ड' नो 'ल' थाथ छे: तडागतलाय. गरुड-गरुल. ४७ शब्दनी आदिना 'क्ष' नो क्याय 'ख' के 'छ थाय छे अने शब्दनी अंदरना 'क्ष' नो क्यांय 'ख' के 'च्छ' थाय छ। क्षीर-खीर, छीर. क्षय-खय, छय. क्षेत्र-खेत्त, छेत्त. मोक्ष-मोक्ख, मोच्छ. अक्षि-अक्खि, अच्छि. लक्षण-लक्खण, लच्छण. ४८ शब्दनी आदिना 'स्क' नो के. 'एक' नो 'ख' थाय छ भने शब्दनी अंदरना 'स्क' नो के 'क' नो 'क्ख' थाय छेः स्कन्ध-खंध. स्कन्द-खंद. पुष्करपुक्खर-पोक्खर शुष्क-सुक्ख.
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
गीत (गीत) गीत, गायेलं
जुग्ग
पाण (प्राण) प्राण-जीव | अप्पाण (आत्मन् ) आत्मागंध (गन्ध) गंध
पोते-आप काम (काम) काम-तृष्णा-इच्छा
नान्यतर जाति जल (जल) जळ-पाणी
कुम्पल । ४९(कुड़मल) कुंपळ रयय (रजत) रजत-रू
कुंपल
-फणगो रुप्प (रुक्म)५० रूपुं
जुम्म । ५१ (युग्म) युग्म-जोडं मित्त (मित्र) मित्र दुक्ख (दुःख) दुःख
कम्म (कर्म) काम-कार्य-सारी सुक्ख (सौख्य) सुख
नरसी प्रवृत्ति चारित्त (चारित्र) सच्चारित्र
घाण ( घाण ) घ्राण-नाक-सुंघ-सद्वर्तन
वानुं साधन सीस (शीर्ष) शीश-माथु
सयढ (शकट) छकडो-गाडंगुत्त (गोत्र) गोत्र-वंश
शकट गहण (ग्रहण) ग्रहण करवान
पद। (पद) पद-पगलं पंजर (पञ्जर) पांजरूं
जुग (युग) धोंसरं सील (शील) सदाचार लावण्ण । (लावण्य) लावण्य
कांति
लक्खण। (लक्षण) लक्षणरसायल (रसातल) रसातल- लच्छण लखण-चिह्न
पाताल छीअ (क्षुत) छींक ४९ 'ड्म' नो प्प थाय छेः कुड्मल कुंपल. ५० 'क्म' नो 'प्प' थाय छः रुक्मरुप्प. रुक्मिणी-रुप्पिणी. ५१ 'ग्म' नो विकल्पे 'म्म' थाय छः युग्म जुम्म, जुग्ग. तिग्म-तिम्म, तिग्ग.
साधन
खीर) (क्षीर) क्षीर-खा
छीर
(क्षीर) क्षीर-खीर-दूध
लायण्ण
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
खत्त । (क्षेत्र) खेतर-छेतर
सोअ। (श्रोत्र) श्रोत्रमोस कान-सांभळवानुं साधन
वीरिय (वीर्य) वीर्य-बळ-शक्ति
विशेषण मूढ (मूढ) मूढ-मोहवाळो- | पुट्ठ (पृष्ट) पूछायेखें
अभण-अज्ञानी पंडित । (पण्डित) पंडित-भणेलो, पुङ (पुष्ट)५२ पुष्ट
पंडिअ (पंड्यो, पोपटपंडित संजय (संयत) संयमवाळो दुल्लह (दुर्लभ)दुर्लभ-दुल्लभ-मुश्केल
अव्यय नो (नो) नहि ब। (च) अने
पुणो (पुनः) पुनःपुनः-फरीवार य
उण) बहिआ। (बाह्य) बहार
बज्झओ (बाह्यतः) बहारथीबहिया
___ बहार तरफ महासुत्तं ( यथासूत्रम् ) सूत्रमां- तत्तो (ततः) तेथी शास्त्रमा कह्या प्रमाणे । किं (किम् ) शुं, शा माटे
धातु गवेल (गवेष)गवेषणा करवी-शोधq ।
नुकसान न थाय वस् (वस) वसवू-रहेQ
ए रीते चूस वय (वद् ) वदवू-बोलवू जय (जय) जितQ पिन (पिब) पीएं
हव् ) आ+पिब्) (आ+पिव) थोडं
| भव । (भव) होवू-थवं आ+पिय पीवु-मर्यादाथी पा (पा) पीवु आ+विय) पीवु-सामाने पद (पठ) पढवू-भणधु ५२ 'ट' नो '8' थाय छः पृष्ट-पुट्ठ. पुष्ट-पुट्ठ. यादी-इष्टा, उष्ट्र अने संदष्ट शब्दना 'ट' नो 'ह' थतो नथी. इष्टा=इहा. उष्ट्र उदृ. संदट्ट सदट्ट.
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
सोअ ( ( शोच) शोचयुं-विचासोच् खु, शोक करवो
घडामां तळावनुं पाणी छे. नटो ढोल साधे मार्गमां नाचे छे.
बाळको कांतिवडे शोभे छे. जिनो शीलने वखाणे छे. कुहाडावडे चन्दनने छेदुं छं. गरुडनुं जोडुं तळावमां
पडे छे. बाळकोने छींक आवे छे. खेतरमां खार छे तेथी
कणगा बळी जाय छे. शब्दोनो कोश करुं लुं गाडावडे नगर भणी जाउं छं. तृष्णाथी कलह थाय छे अने
४४
कलही द्वेष थाय छे. घाणं गंधस्स गहणं वयंति लोहा मोहो जाय दुक्खेसुंतो वेया वि न रक्खंति सोत्तं सहस्स गहणं वयंति दुखेर्हितो बीहंति पंडिता ? कार्य फासस्स गहणं वयंति सुक्खेसु मित्तं सुमिरति समणे महावीरे जयति मूढो पुणो पुणो बज्झ देक्खह पंडिता ! खीरं पिबिस्था
भण (भण) भणवुं
संयमी श्रमण सुखोधी हरखातो नथी अने दुःखोथी कोपतो नथी. बळदो पाणीनो कोस चे छे. राजाना भंडारमां रूपुं छे. बळदना कांधमां धोंसरु
शोभे छे. पंडित पुरुषो मोक्षने इच्छे है. पंडितो शीलने शोधे छे पण
गोत्रने पूछता नथी. शीलनो मार्ग दुर्लभ छे. बाळको उपाध्याय पासेथी पाठ भणे छे. भड पुरुषो दुःखधी शोक करता नथी. मूढा कामेसु मुज्झति चन्दणस्स रसमापिबति अप्पाणो अप्पाणस्स मितं किं बहिया मित्तमिच्छसि पुरिसे वीरियं पुण दुल्लहं पुरिसस काये पुण दुल्लहे अप्पाणं जिणाम संजया ! पुट्ठो पंडिओ जहासुक्तं वदति पंडिता पुट्ठा न होंति गीअस्स सदं सुणह
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ ८ मो अकारांत सर्वादि (नरजाति अने नान्यतर जाति) सव्व (सर्व) ज (यद् ) त (तद्) क (किम् )
अकारांत सर्वनामोनां रूपाख्यानो नरजातिमां 'वीर' जेवां अने नान्यतरजातिमा 'कमल' जेवां थाय छे. जे खास विशेषता छे, ते आ नीचे समझुती साथे आपी छ :
१ प्रथमाना बहुवचनमां एकलुं सव्वे (सर्वे), जे (ये), ते (ते), के (के) थाय छे. अर्थात् प्रथमाना बहुवचनमा अकारांत सर्वनामो, नरजातिमां 'ए' प्रत्यय ले छे.
६ षष्ठीना बहुवचनमा सव्वेसिं (सर्वेषाम् ), जेसिं (येषाम् ), तेसिं (तेषाम् ), केसिं (केषाम् ) पण थाय छे अर्थात् षष्ठीना बहुवचनमां अकारांत सर्वनामो, नरजातिमा उक्त 'ण' उपरांत 'एसिं' प्रत्यय पण ले छे:-सव्व एसिं-सव्वेसिं. .
७ सप्तमीना एकवचनमा सव्वस्सि, सव्वहिं (सर्वस्मिन् ), सम्वत्थ (सर्वत्र) जस्सि, जहिं (यस्मिन् ) जत्थ (यत्र) तस्सि, तहिं ( तस्मिन् ) तत्थ (तत्र), कस्सि, कहिं (कस्मिन् ) कत्थ (कुत्र) एम ऋण ऋण रूपो पण थाय छे अर्थात् सप्तमीना एकवचनमां अकारांत सर्वनामोने नरजातिमां 'स्सि' 'हिं' 'अने' 'स्थ' प्रत्यय उपरांत उक्त 'सि' अने 'म्मि' प्रत्ययो पण लागे छे. मात्र 'ए' प्रत्यय प्रायः नथी लागतो.
रूपाख्यान-सव्व (नरजाति) १ सम्वो, सव्वे (सर्वः) सव्वे (सर्वे) २ सव्वं (सर्वम्) सव्वे, सव्वा (सर्वान् ) ३ सवेण, सम्वेणं (सर्वेण) सम्वेहि, सव्वेहि, सव्वेहि
___ . (सर्वेभिः सर्वैः)
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
४ सव्वस्स (सर्वस्य)
५ सव्वत्तो ( सर्वतः ) सव्वाओ ( > सव्वाउ (
,,
""
सव्वा ( सर्वात् ?) सव्वाहिं, सव्वाहिंतो सव्वम्हा (सर्वस्मात् )
६ सव्वस्स (सर्वस्य )
७ सव्वंसि, सव्वस्सि ( सर्वस्मिन् ) सव्वहिं सव्वम्मि सव्वत्थ ( सर्वत्र )
१ सव्वं (सर्वम् )
"
यादी :- + आ निशानीवाळां रूपोनो प्रयोग अतिविरल के. सव्व ( नान्यतरजाति)
सव्वाणि सव्वाई, सव्वाइँ (सर्वाणि)
""
४६
सव्वेसिं सव्वाहँ + (सर्वेषाम् ) सव्वाण, सव्वाणं ( सर्वाणाम् ?) सव्वत्तो, सव्वाओ, ( सर्वतः )
सव्वाउ
सव्वाहि सव्वेहि सव्वार्हितो, सव्वेर्हितो (सर्वेभ्यः) सव्वासुंतो, सव्र्व्वसुंतो
सव्वेसिं, सव्वाहँ + ( सर्वेषाम् ) सव्वाण, सव्वाणं (सर्वाणाम् ?) सव्वेसु, सव्वेसुं (सर्वेषु)
१ जे, जो (यः) २ जं (यम्)
३ जेण, जेणं जिणा (येन)
४ जस्स, जास (यस्य)
""
"
बाकीनां नरजाति - सव्व - प्रमाणे
"
"
ज ( यदू) नरजाति
जे (ये)
जे, जा ( यान्)
जेहि, जेहिं, जेहिं (येभिः, यैः)
जेसिं (येषाम् )
जाण, जाणं ( यानाम् ? )
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
४७
५ जम्हा (यस्मात् ) जत्तो, जाओ, जाउ (यतः)
जत्तो, जाओ, जाउ (यतः) जाहि, जेहि जाहि, जाहिंतो जाहिंतो, जेहिंतो (येभ्यः)
जा (यात् ?) जासुतो, जेसुंतो ६ चतुर्थी विभक्ति प्रमाणे ७ जंसि, जस्सि (यस्मिन् ) जेसु, जेसुं (येषु) जहिं, जम्मि जत्थ (यत्र) जाहे, जाला, ५३जइआ (यदा)
ज (नान्यतर) १ ज (यत्)
जाणि, जाई, जाई (यानि)
" , " (,) बाकीनां नरजाति-ज-प्रमाणे
५४त, ण, (तद् ) नरजाति १ स, से (सः)
ते, णे (ते) २ तं, णं (तम् )
ते, ता (तान् )
३ तेण, तेणं, तिणा (तेन) तेहि, तेहिं, तेहिं (तेभिः, तैः) णेण, जेणं
णेहि, णेहि, णेहि ५३ आ त्रणे रूपो 'यदा-ज्यारे-'ना ज अर्थमां वपराय छे. ५४ प्राकृत। भाषामा 'त' अने 'ण' ए बने 'ते' ना अर्थमां वपराय छे. माटे 'त'नी साथे 'ण'नां रूपो जणावी दीधां छे. 'त' अने 'न'-'ण' लखवामां तद्दन सरखा छे तेथी आ 'ण' लिपिदोषने लीधे प्रचलित थयो होय तो ना न कहेवाय. 'त्या'ने बदले 'न्यां'नो प्रयोग गोहिलवाडमां प्रचलित छ ज.
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
४८
४ तस्स, तास (तस्य) सिं, तास, तेसिं (तेषाम् )
ताण, ताणं, (तानाम् ?)
सिं, णाण, णाणं ५ तो,तत्तो,ताओ,ताउ (ततः) तत्तो, ताओ, ताउ (ततः) तम्हा, (तस्मात् ) ताहि, तेहि ताहि ताहिंतो
ताहिंतो, तेहिंतो (तेभ्यः) ता (तात्?)
तासुतो, तेसुंतो णत्तो, णाओ, गाउ णत्तो, णाओ, णाउ णाहि, णाहितो, णा णाहि, णेहि,
णाहितो, रोहितो
णासुंतो, णेसुंतो ६ चतुर्थी विभक्ति प्रमाणे ७ तसि, तस्सि, तहिं तेसु, तेसुं (तेषु)
तम्मि (तस्मिन्) तत्थ (तत्र) ताहे, ताला, ५५तहआ(तदा) णसि, जस्सि, णहिं,
सु, सुं णम्मि, पत्थ ५५ आ त्रणे रूपो 'तदा-त्यारे'ना ज अर्थमां वपराय छे.
त (नान्यतर) १ तं (तत्)
ताणि, ताई, ताई (तानि)
गाणि, णाई, णार २,, , (..)
" , , (,)
बाकीनां नरजाति-त-प्रमाणे
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
क (किम् ) नरजाति १ के, को ( कः) के (के) २ कं (कम् )
के, का (कान्) ३ केण, केणं, किणा (केन) केहि, केहिं, केहिँ (केभिः,कैः)
किण्णा+ ४ कस्स, कास (कस्य) कास, केसि (केषाम् )
काण, काणं (कानाम् ?) ५ कम्हा (कस्मात् ) कत्तो, काओ, काउ (कुतः) किणो, कीस
काहि, केहि कत्तो, काओ काउ (कुतः) काहिंतो, केहिंतो का (कात् ?) कासुंतो, केसुंतो
काहि, काहिंतो ६ चतुर्थी विभक्ति प्रमाणे ७ कंसि, कस्सि, कहि, केसु. केसुं (केषु) कम्मि (कस्मिन्) कत्थ (कुत्र) काहे, काला, ५६कइआ (कदा)
क (नान्यतर) १ किं (किम् ) कागि, काई, कार (कानि) २, (.,
" , " " वाकीनां नरजाति-क-प्रमाणे
सर्वनाम अण्ण । (अन्य) अन्य-बीजें |
। अण्णयर। (अन्यतर) अनेर1913 | अन्नयर बीजं कोई ५६ मा त्रणे रूपो 'कदा-क्यारे' ना ज अर्थमां वपराय छे.
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
५०
अंतर (अन्तर) अंदरनुं
कम । (कतम) क्यो,केटलाक अवर (अपर) अवर-बीजें
कतम अहर (अधर) नीचुं, बीजूं
कयर (कतर) क्यो इम ( इदम् ) आ
अमु ( अदम् ) ए
ज ( यद् ) जे इयर (इतर) इतर-बीजें
त, ण (तद् ) ते उत्तर (उत्तर) उत्तरदिशा, उत्तर- दाहिण । (दक्षिण) दक्षिण,
दक्खिण) दक्षिणर्नु इक्क (एक) एक, बीजूं पुरिम ५७(पुरा+इम) पहेलानु,पूर्व
पुव्व (पूर्व) पूर्व, पूर्वन एअर ( एतद् ) ए
वीस (विश्व) विश्व-बधुं एय
स,सुव (स्व) स्व-पोते,पोतार्नु तुम्ह (युष्मद् ) तुं
सम (सम) वधु अम्ह (अस्मद् ) हुं
सच (सर्व) सर्व-सत्र-बधुं क (किम् ) कोण
सिम (सिम) वधु सामान्य शब्दो (नरजाति) भूअ (भूत) भूत-प्राण-जीव । ताव (ताप) ताव-ताप-तडको सीस । (शिष्य) शिष्य, विद्यार्थी बंभण ) (ब्राह्मण) ब्रह्मविद्याने सिस्स।
बम्हण जाणनार-समझनारकसिबल (कृषिबल) खेडवाळो
माहण ) पुरुष खेडुत
कोड (क्रोड) गोद-खोळो अंक (अङ्क) अंक-खोळो पास (पाश) पाश-फांसो, पाशलो हरिस (हर्ष) हरख
__-फांसलो बंधव (बान्धव) बांधव-भाई दिणयर (दिनकर) दिननो करपासाय (प्रासाद) प्रासाद-महेल
नार-सूरज, दीकरो जीव (जीव) जीव
संसार (संसार) संसार-जगत् ५७ पूर्व-पुरिव-पुरिम।
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
अंगण (अङ्गन) आंगj
कम्मबीअ (कर्मबीज) कर्मवीजसीअ (शीत) शीत-टाढ
सत्-असत् संस्कारनु बीज खेम. (क्षम) क्षेम-कुशळ भोयण (भोजन) भोजन-जमण महब्भय (महाभय) महाभय- धण (धन) धन
मोटो भय
ताण (त्राग) रक्षण-शरण-आशरो वत्थ (वस्त्र) वस्त्र-वस्तर-कपड़े
घर (गृह) घर कट्ठ (काष्ठ) काट-काट-काठ
काठी-लाकडु आउय (आयुष्क) आयुष्य-जींदगी
विशेषण पडप्पन्न (प्रत्युत्पन्न) वर्तमान-ताजु । आग) पमत्त (प्रमत्त) प्रमत्त-प्रमादी । आगत । (आगत) आवेखें
आअ) सम (सम) समानवृत्तिवाळु-सरखं
पिआउय (प्रियायुष्क) आयुष्यने वीयराग। (वीतराग) जेमां राग वीयराय नथी ते
प्रिय समजनार
उत्तम। सुजह (सु+हान) सहेलाइथी।
उत्तिम
म (उत्तम) उत्तम तजी शकाय ते
बुद्ध (बुद्ध) बोध पामेल-ज्ञानी जुन्न (जीर्ण) जीर्ण-जून-जळी
बद्ध (वद्ध) बद्ध-बांधेल-बंधायेल जरी-गयेलं
सीअ (शीत) शीत-ठंडं पिय (प्रिय) प्रिय-वहालं आसत्त (आसक्त) आसक्त-मोही
अधीर (अधीर) अधीर-धीरज हअ (हत) हणायेखें-हणेलं
विनानु-नवळु हंतव्य (हन्तव्य) हणवा योग्य अप्प (अल्प) अल्प-थोड़े
अणाइअ (अनादिक) आदि विनानु
अव्यय कत्तो। (कुतः) क्याथी, शाथी, जहा) यथा) जेम कुओ कइ बाजुथी.
जहा
था जम
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
एव ( ( एवम् ) एम ए रीते.
एवं
सव्वत्तो सव्वतो ( सर्वतः ) सर्व प्रकारे सवओ
चारे बाजुथी
जाण (जाना) जाणवुं
प+मत्थ् (प्र+मथ् ) मथवुं -
नाश करवो
कील ( ( क्रीड्) क्रीडा करवी - कीड़ (
खेलकुं
रम् (रम्) रमवुं
णम् ( ( नम् ) नमवु
नम्
वधांने सदा सुख प्रिय छे. जेओ शरीरमां आसक्त छे
तेओ मूढ छे.
राग अने द्वेष, संसारमां अनादिना छे.
मेघ, बधा भागोमां चारे बाजुर वरसे छे. अमे बे, जेनां कपडां सी
५२
धातुओ
वीए छीप ते राजा छे. अग्नि जेम लाकडांने बाळे
छे तेम वुद्ध पुरुष पोताना दोषोने बाळे हे. प्रमत पुरुष भयथी कंपे छे.
तहा (तथा) तम
तह
अंतो (अन्तर्) अंदर
खलु (खल) निश्चय
दह् ) (दह्) दहवुं - बळवुं - बाळबुं
सहू (सह् ) सह-सहन कखुं पास ( पश्य ) जो परि+यट्टू (परि+वर्त्त) परिवर्तवुफर्या कर - बदलाया कर्खु आ+इक्ख् (आ+चक्ष) आचखतुं
--कहेवु
उत्तर, पूर्वमां शीत छे अने दक्षिणमां ताप छे एक पण भूत हणवा योग्य नथी.
बधां बाळको गाय छे. धा खेडतो टाढ अने ताप सहे छे.
तेने ब्राह्मण कहीए छीए जे,
कोई जीवने हणतो नथी. कोण क्यांथी आवेलो छे ? माणसो शरीरना क्षेम माटे
तपे छे. पंडितो हर्षवडे दुःख सहे के.
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
सर्व शिप्यो माथावडे आ- हाथीथी हणायेलो खेडुत चार्यने नमे छे.
भयथी धुजे छे. हुं बधांओने माटे चंदन
तेना आंगणामां बधां वाघसुं छु.
ळको रमे छे. जे, तेनाथी गभराय छे ते भड नथी.
जे मूढ शिष्यो, आचार्यने बद्ध अने आसक्त पुरुषो
वांदता नथी तेओ दुःख
सहे छे. कर्मबीजवडे संसारमा फर्या करे छे.
वीतराग पुरुष सर्ववां उत्तम अमे बीजाओगें मंगळ इ.
ब्राह्मण छे. च्छीए छीए.
वीतराग सर्व भूतोने सरखां ते पोताना दोषोने जुए छे.. जुए छे. . जहा जुन्नाई कट्ठाई हव्व- जे एगं जाणइ से सव्वं वाहो पमत्थति तहा जाणइ
जुन्ने दोसे समणो दहइ पमत्तस्स सव्वतो भयं जस्स मोहो हओ तस्स विजइ ५८इअ महावीरो न होइ दुक्खं
भासते सम्वेसिं पाणाणं भूआणं जस्स मोहो न होइ तस्स
दुक्खं महब्भयं ति बेमि दुक्खं हयं 'सव्वे वि पाणा न हंत.
एगेसिं माणवाणं आउयं व्वा' एवं जे पडुप्पन्ना अप्पं खलु जिणा ते सव्वे वि आ अधीरेहिं पुरिसेहिं इमे कामा इक्खंति
न सुजहा ५८ वाक्यनी आदिमां 'इति' ने बदले 'इअ' वपराय छे. व्यंजनांत शब्दथी लागेला 'इति' ने बदले 'ति' थाय छे अने स्वरांत शब्दथी लागेला 'इति' ने बदले 'त्ति' आवे छे:-इअ महावीरो भासते. महन्भयं+ इति-महब्भयं ति. आगओ+इति आगओ ति.
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुरिमाओ, दाहिणाओ, उ. । जेहिं बद्धो जीवो संसारे त्तराओ कत्तो आगओ परियट्टइ ते रागा य त्ति न जाणइ जीवो
दोसा य कम्मबीअं जे सव्वं जाणइ से एगं । जेण मोहो हओ न सो सं. जाणइ
___ सारे परियट्टइ समो य जो सव्वेसु भूएसु सम्वे पाणा पिआउआ सुहस वीतरागो
मिच्छंति
पाठ ९ मो तुम्ह, अम्ह, इम अने एअनां रूपाख्यानो
तुम्ह (युष्मद् ) तुं (त्रणे जाति) एकवचन
वहुवचन १ तुं, तुमं, तं ( त्वम् ) तुम्हे, तुम्ह, तुम्मे (यूयम् ) २ ,, ,, ,, तुमे, तुए ___,, - तुब्मे, तुज्झ (युष्मान्) (त्वाम् )
वो
(व.) ३ ते, तइ, तप, तुमं,तुमइ तुम्हेहि, तुम्हेहिं, तुम्हेहैं। तुमए, तुमे (त्वया)
(युष्माभिः) तुम्भेहि, तुब्मेहि, तुम्मे हिँ
__(युष्मेभिः?)
उम्हेहि, उम्हेहिं, उम्हेहि ४ तुह, तुज्झ, तुव, तुम, तुमाण, तुमाणं (युष्माकम् )
ते, तुव (तव, ते) तुम्हाण, तुम्हाणं तुहं (तुभ्यम्) तुज्झाण, तुज्झाणं
तुम्हाहँ+
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुवत्तो, तुवाओ, तुवाउ, तुवाहि, तुवार्हितो, तुवा ( त्वत् ) तुमत्तो, तुमाओ, तुमाउ, तुमाहि, तुमाहिंतो तुमा तुज्झत्तो, तुज्झाओ तुज्झाउ, तुज्झाहि, तुज्झाहितो, तुज्झा तुहत्तो, तुहाओ, तुहाउ, तुहाहि तुहाहिंतो तुहा तुम्हत्तो, तुम्हाओ, तुम्हाउ, तुम्हाहि, तुम्हार्हितो, तुम्हा ६ चतुर्थी विभक्ति प्रमाणे ७ तुवम्मि, तुवंसि, तुवसि तुमे, तुमझिम, तुमंसि,तुमस्सि
"
तुहम्म, तुहंसि, तुहस्सि तुम्हम्मि, तुम्हलि, तुम्हहिंस तुम्मि तर तप ( त्वयि )
५५
अम्ह (अस्मद् )
१ हं, अहं, अहयं ( अहम् ) म्मि, अम्हि, अम्मि २ म्मि, अम्मि, अम्ह, मं, ममं, मिमं ( माम् )
हुं
तुम्हत्तो, तुम्हाओ, तुम्हाउ, तुम्हा, तुम्हे तुम्हार्हितो, तुम्हेहिंतो तुम्हासुंतो, तुम्हेसुंतो तुम्हत्तो, तुम्हाओ, तुम्हाउ, तुम्हाहि, तुम्हेहि तुम्हाहिंतो, तुम्हेहिंतो, तुम्हासुतो, तुम्हेसुंतो
( युष्मत् )
तुवेसु, तुत्रेसुं ( युष्मासु ) तुवसु, तुवसुं तुमेसु, तुमेसुं तुमसु, तुमसुं
तुहेसु, तुहेसुं तुहसु, तुहसं
तुम्हेसु, तुम्हे सुं
तुम्हसु, तुम्ह
तुसु, तुसुं
(त्रणे जाति ) मो, अम्ह, अम्हे,
99
अम्हो
( वयम् )
39
" अस्मान् ) पणे (नः)
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
३ ममए, ममाइ, मयाइ, . मइ, मए मि, मे (मया)
अम्हेहि. अम्हाहि.
(अस्माभिः)
अम्ह, अम्हे,
४ मे, मइ, मम, मज्झ, मज्झ, अम्ह, अम्हं, अम्हे, मझं, (मह्यम् , मम, मे) अम्हो, अम्हाण, अम्हाण, अम्ह अम्हं महं.
(अस्माकम् ) ममाण, ममाणं, मज्झाण, मज्झाणं,
महाण, महाणं, णो ( नः ) ५ ममत्तो, ममाओ, ममाउ, ममत्तो, ममाओ, ममाउ, ममाहि, ममाहितो, ममा, ममाहि, ममेहि, ममाहितो, (मत् )
ममेहितो, ममासुंतो,ममेसुंतो महत्तो, मईओ, मईउ, अम्हत्तो, अम्हाओ अम्हाउ मईहिंतो,
(अस्मत्) महत्तो, महाओ, महाउ, अम्हाहि, अम्हेहि महाहि महाहितो, महा अम्हाहिंतो अम्हेहितो, मज्झत्तो, मज्झाओ,मज्झाउ, अम्हासुंतो, अम्हेसुतो मज्झाहि,मज्झाहितो, मज्झा, ६ चतुर्थी विभक्ति प्रमाणे ७ ममंसि, ममस्सि, ममम्मि, अम्हेसु, अम्हेसुं, (अस्मासु) महंसि, महस्सि, महम्मि, अम्हसु, अम्हसुं मज्झसि, मज्झस्सि,मज्झम्मि, ममसु, ममसुं, अम्हंसि अम्हस्सि,अम्हम्मि, ममेसु ममेसुं, . मे, ममाइ, मि, मए,मइ(मयि) महसु, महसुं,
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
महेसु, महेसुं, मज्झसु, मज्झसुं, मज्झेसु, मज्झेखें.
इम (इदम् ) आ-(नरजाति) १ अथ, इमो, इमे (अयम् ) इमे ( इमे) २ इमं, इणं, णं ( इमम् ) इमे, इमा ( इमान्)
णे, णा. ३ इमेण, इमेणं, इमिणा इमेहि, इमेहि, इमेहिँ णेण, णेणं ( अनेन ) णेहिं हिं, हिँ
एहि, एहिं, एहिँ (एभिः) ४ इमस्स, से, अस्स (अस्य) सिं, इमेसि, ( एषाम् )
इमाण, इमाणं. ५ इमत्तो, इमाओ, इमाउ, इमत्तो, इमाओ, इमाउ, इमाहि, इमाहिंतो, इमा इमाहि, इमेहि (एभ्यः ) ( अस्मात् )
इमाहितो, इमेहिंतो,
इमासुंतो, इमेसुंतो. ६ चतुर्थी विभक्ति प्रमाणे. ७ इमंसि, इमस्सि, इमम्मि इमेसु, इमेसुं, एसु.एसुं,(एषु) इह, अस्सि ( अस्मिन् )
नान्यतरजाति १ इणं, इणमो, इदं ( इदम् ) इमाणि, इमाई, इमाई (इमानि)
बाकीनां नरजाति प्रमाणे.
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
एअ (एतद् )-ए (नरजाति) १ एस, एसो, एसे (एषः) एए (एते)
इणं, इणमो २ एअं ( एतम् ) एए, एआ, ( एतान् ) ३ एएण एएणं, ( एतेन ) एएहि, एएहिं, (एतैः-पतेभिः) एहणा .
एएहिँ ४ से, एअस्स ( एतस्य ) सिं, एएसिं ( एतेपाम् )
एआण, एआणं ५ एत्तो, एत्ताहे, एअत्तो, एआओ, एआउ,
एअत्तो, एआओ, एआउ एआहि, एएहि (एतेभ्यः) एआहि एआहितो, एआहिंतो, एएहितो, एआ ( एतस्मात् ) एआसुतो, एएसंतो. ६ चतुर्थी विभक्ति प्रमाणे. ७ पत्थ, अयम्मि, ईअम्मि एएसु, एएमुं, ( एतेषु)
एअंसि,एअस्सि, (एतस्मिन्) एअम्मि
नान्यतरजाति १ एस, एअं, इणं, इणमो, एआणि, एआई, एआईं, ( एतत् )
( एतानि )
बाकीनां नरजाति प्रमाणे.
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
५९
अलाभ
राजर्षि
सामान्य शब्दो
नरजाति दुम ( दुम ) द्रुम-झाड
नह (नभस्) नभ-आकाश भमर (भ्रमर) भमरो
महादोस (महादोष) महादोषरस (रस) रस
मोटो दोष जणय (जनक) जनक-पिता नास (नाश) नाश साव (शाप) शाप-श्राप
नास (न्यास) न्यास-थापण भारहर (भारहर) भार लइ जनार सूअर (शूकर) शूकर-भुंड
-मजूर काल (काल) काल-समय लाह ) (लाभ) लाभ-लावो ।
खत्तिय (क्षत्रिय) क्षत्रिय लाभ
नमिराय (नमिराज) नमिराजअलाह।
(अलाभ) अलाभ-अप्राप्ति ते नामनो मिथिलानो एक कयविक्कय (क्रयविक्रय) खरीदर्बु
-वेचQ-क्रयविक्रय करवो पमाद (प्रमाद) प्रमाद-असावधानता जम्म (जन्मन्५९)जन्म
-आळस छत्त (छात्र) छात्र-विद्यार्थी
संग (संग) संग-सोबत वद्धमाण (वर्धमान) वर्धमान
असमण (अश्रमण) श्रमण नहि ते ___ महावीरनुं नाम
तेअ (तेजस्) तेज एरावण (ऐरावण) ऐरावण-मोटो तस (चरा) त्रास पाी गति
___ करी शके देवा प्राणी
हाथी लोअर (लोक) लोक-जगत्- लोको थावर (स्थावर) स्थिर रहेनार-गति लोग।
__ न करी शके ते प्राणीमहत्त (मुहत) मुरत-बखत-थोडो
वनस्पति वगेरे. समय-मोडं
पव्यय (पर्वत) पर्वत ५९ शब्दना अंत्य व्यजननो लोप थाय छः । जन्मन् जम्म. तमस तम. यावत् जाव. तावत्-ताव.
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
तव (तपस्६०) तप-तपश्चर्या । जायतेय (जाततेजस् ) जेमां तेज नह (नख) नख
छे ते-अमि अय (अयस् ) अयस्-लोहूँ
| पाय (पाद) पा-चोथो भाग
। उट्ट (उष्ट्र) उंट नान्यतरजाति
पाव (पाप) पाप
| अभयप्पयाण ( अभयप्रदान) पावग (पापक) पाप
अभयदान-प्राणीओ निर्भय फंदण (स्पन्दन १) फांदवु-फरक
रहे-बने-तंवी प्रवृत्ति
असायो (असात) शाता नहि थोडं थोडु हलवु
असात) -सुख नहि ते (युद्ध) युद्ध-लडाई रज (राज्य) राज्य-राज
सरण (शरण) शरण-आशरो कारण (कारण) कारण
धीरत्त (धीरत्य) धीरत्व-धीरपणु पय (पद) पद-पगलं सत्थ ( शस्त्र) शस्त्र-हणवानुं पुष्फ (पुष्प १) पुष्प-फूल .
हथीआर-तरवार वगेरे अत्थ ( अस्त्र) अस्त्र-फेकवान महब्भय
हथीआर-बाण वगेरे महाभय (महाभय) मोटो भय
सत्थ (शास्त्र) शास्त्र रय (रजम्) रज-पाप, धूळ, मेल चेदा (चैत्य) चिता ऊपर अरविंद (अरबिन्द) अरविंद
चणेलं स्नारक चिह्न-ओटलो, उत्तम कमळ
छत्री, पगलां, वृक्ष, कुंड, दाण (दान) दान
मूर्ति वगेरे ६. 'स्' छेडावाळु अने 'न्' छेडावाळु नाम प्रायः नरजातिमां वपराय छः यशम् जसो. तपम्=तवो जन्मन् जम्मो. मर्मन् मम्मो. ६१ शब्दनी आदिना 'ष' अने 'स्प'नो 'फ' थाय छे अने शब्दनी अंदरना 'प्प' अने 'स्प'नो 'एफ' थाय छः स्पन्दन फंदण. बृहस्पति बिहप्फइ. पुष्प-पुष्फ.
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
छत्त (छत्र) छत्र-छत्री
। साय।
४ (सात) शाता-सुख बम्हचेर (ब्रह्मचर्य) ब्रह्मचर्य - बंभचेर सदाचारवाळी वृत्ति
गुरुकुल (गुरुकुल) सदाचारवाळा
गुरुओ ज्यां रहे छे ते स्थान ___ ब्रह्ममां परायण रहे ते
सुत्त (सूत्र) सूत्र-सूतर, सूत्ररूप सञ्च (सत्य) सत्य-साधु
टुकुं वाक्य
अव्यय अलं ६२(अलम् ) बस-सयु-थयु एगया (एकदा)एकवार-एक वखत तओ। आ। (ततः) तेथी, त्यारपछी धुवं (ध्रुवम् ) ध्रुव-चोक्कस
अज्झत्थं। (अध्यात्म) आत्माने SA (उपरि) उपर अज्झप्पं लगतुं-अंदरनुं
सततं ( सततम् ) सततमुसं )
सयय निरंतर मुसा ए (मृषा) मिथ्या-खोटं
६३इइ)
इअ | (इति) इति-ए प्रमाणे, मोसा)
त्ति
समाप्तिसूचक खु (खल) निश्चय
इति)
विशेषण अवज (अवद्य) अवद्य-न वदी-कही। सुत्त (सुप्त) सुतेलु
-शकाय तेवु काम-पाप-दोष सुत्त (सूक्त) सूक्त-सारी उक्तिअणवज (अनवद्य) पापरहित
सुभाषित अनवज
वद्धमाण (वर्धमान) वधतुं दरणुचर ( दुरनुचर ) जेनु गढिय (गृद्ध) अतिशय लालचु
आचरण कठण लागे ते । अहम (अधम)अधम-हलकुं-नीच ६२ 'अलं'नी साथे आवता नामने त्रीजी विभक्ति लागे छः अलं झुद्धणं. अलं तवेणं. ६३ 'इति'ना उपयोग माटे जुओ टिप्पण ५८ मुं.
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
जिइन्दिय (जितेन्द्रिय) इन्द्रियो ऊपर जय मेळवनार
निरद्वय (निरर्थक) निरर्थक-नकामुं धीर (धीर) धीर-धीरजवाएं अणारिय (अनार्य) अनार्य - आर्य नहि ते अनाडी
पिय (प्रिय) प्रिय - वहालुं दुष्पूरिय (दुष्पूर्य) मुश्केलीथी पूराय - भराय-तेवुं
सयल (सकल) सकल - सघळु कुसल (कुशल) कुशळ - चतुर
भास (भाष्) भाखवु -: -भाषण कर प+ माय् (प्र+माद्य) प्रमाद करवो जूर (जुर्) जूखं तिप्पू (तिप्) टपकवु - गळवु पिटट् (पिट्ट) पीटवुं - मावुं-पीडवुं परि+तप्पू (परि+तप्य) परिताप पामवो - दुःखी थवं समा+यर् (सम्+आ+चर) आ
चरण कर
अणु+तप्प ( अनु + तप्य) अनुताप करवो-पश्चात्ताप करवो.
દર
प+यय ( प्र + यत् ) प्रयत्न करवो. अभि +नि+क्खम् (अभि+ निष्+ क्रम् ) हमेशने माटे घरथी नी कळवु - संन्यास लेवो
दुरतिक्कम ( दुरतिक्रम) न मटे बुं
मड ( (मृत) मृत - मरेलुं मय
से (श्रेष्ठ) श्रेष्ठ - उत्तम
दंत ( दान्त) जेणे तृष्णाने दमी छे ते, दमेलं - शांत
कड ( ( कृत) करेलुं
कय ।
विविह (विविध) विविध जात जनुं
धातु
परिहर ( परि + हरं ) परहखं - तजवुं तच्छ् (तक्षू ) तारावुं -छोडंपातळं कर कप्प् (कल्प) खपवुं - उचित होवु वज्ज् (वर्ज) वर्जवुं - छोडवु चय् (त्यज) तजवुं चर् (चर) चरवुं, चालवु सं+जल् (सं+ज्वल) जळवु - तप - क्रोध करतो अभिप्पत्थ ) ( अभि + प्र+अर्थ ) अभिपत्थ । प्रार्थना करवी अभि + जाण ( अभि+जाना ) अहिजाणवु-ओळखं खण ( खन् ) खवु - खोदवुं परि+च्चय् (परि+त्यज) परित्याग करवो
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
आचार्यो कुशळ माटे निरंतर प्रयास करे छे.
संसारमां पापनो भार वधे छे. जेम जेम वासना वधे छे
तेम तेभ लोभ वधे छे. युद्धने वखते धैर्य दुर्लभ होय छे.
अमे निरर्थक बोलता नथी. भमराओ फुलोमां दोडे छे. झाडो पाणी पीए छे अने
ताप सहे छे.
नमिराज युद्धने तजे छे. क्षत्रियो शस्त्रो अने अस्त्रो वडे निर्दोष मनुष्यनां माथां कापे छे. छात्रो हमेशां गुरुकुळमां रहे छे.
तेना आंगणामां सूरजनुं तेज दीपे छे.
तेओ तमने वारंवार याद करे छे.
६३
अमे महेलनी ऊपर छीए. अमारामां ते एक जितेंद्रिय पंडित छे.
तमे ने वारंवार वांदो छो. पओ, तमे अने अमे दूध पीप छीए.
पापी ब्राह्मण सर्वमां हलको छे. संसारमा कोई, कोईनुं शरण नथी.
तमे अंदरनु जाणो छो तेथी प्रमाद करता नथी. अमे, तमे अने तेओ बधा, संसारना पाशने कापीए छीप.
श्रमणो पाणी वडे वस्त्रोने शुद्ध करे छे.
कुशळ पुरुषो निर्दोष वचनने उत्तम कहे छे. तपोमां ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ छे. क्षत्रियोनुं लक्षण धैर्य अने वीर्य छे. जितेंद्रिय पुरुषो बुद्धनी अने महावीरनी सेवा करे छे. बधा जीवो लोभथी पापने मार्गे चाले छे. धीर क्षत्रियो मनुष्योनुं कुशळ इच्छे छे. तमे धैर्य वडे लोभने जितो छो.
झाडो वधे छे अने करमाय छे तेथी तेमां जीव छे. आचार्यो जागे छे अने
ध्याय छे.
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
करे .
ब्राह्मणो अने श्रमणो शास्त्रो । संसारमा चारे बाजु प्रस वडे लडे छे.
___ अने स्थावर जीवो छे. चैत्यमां महावीरनां अने श्रमणो पापरूप कर्मोनो त्याग
बुद्धनां पगलां छे. मारो भाई टाढथी धूजे छे. श्रमणोमां वर्धमान श्रेष्ठ छे. आ ब्राह्मण, ए लोकोने शाप दानोमां अभयदान श्रेष्ठ छे. आपे छे.
पगथी अग्निने हणो छो. आ सागर खळभळे छे. पर्वतने तमे नखोथी खणो छो ते अने हुं लाकडां छोलीए पुष्पोमां अरविंद श्रेष्ठ छे. छीए.
थोडं पण असत्य महाभयकेटलाको निरर्थक कोपे छे. रूप छे तमे, तेने, मने अने एने तप वडे वधता वर्धमान जितो छो.
मनुष्योना क्षेम माटे साचा ब्राह्मण विना बीजु संन्यास ले छे. कोण उत्तम छे?
दांतोशी लोढाने खाओ छो. कोई ब्राह्मण, जन्म वडे मजूरो रूपा माटे पहाडने ब्राह्मण थतो नथी.
खोदे छे. संसारमा बधा, बधानां शर
बापना खोळामां पुत्र णरूप छे.
आळोटे छे. एगो हं नत्थि मे को वि । विविहेहिं दुक्खेहिं जूर
नाहमन्नस्स कस्स वि तओ से एगया पासेहिं दिव्वा धीरो वा पंडितो मुहुत्तमवि कोहेण, मोहेण, लोहेण वा नो पमायए
चित्तं खुदभइ तत्तो अलं इमे तसा पाणा, इमे थावरा तव एएहिं पाणा न हतन्या इति सम्वे अयं पुरिसे गढिए सोयइ, आयरिया भासंति
जूरइ, तिप्पड, पिट्टक, अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे परितप्पह
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
अज्झत्थं जाणति ते बहिया वि जाणति बालस्स संगेणं
पणं मग्गो दुरणुचरो कामे जहाइ गेण कम्मेण पुणो पुणो लहो जायति
पमादेण कुसलस्स "ओ न हरिसेइ, न कुप्पइ णं असतं महब्भयं दुक्खं थ जीवस्स नासो सि णं अप्पाणे दुप्पूरिए त्थ
णाणं कयविक्कयो महासो न कप्पर
सचं समणं तहा सचं हणं न गरिse
मे' 'घणं मे' भोयणं 'त्ति गढिए पुरिसे मुज्झइ
६५
ते
पुत्ता तव ताणाए नालं, तुमं पि तेसिं सरणाए नालं होसि
एस लोगे संसारंसि गिज्झए तं वयं बूम माहणं जो एगमवि पाणं न हणेजा पुरिसा ! तुममेव तुमं मित्तं किं बहिया मित्तमिच्छसि ? जहा अंतो तहा बाहिं एवं पासंति पंडिता कामा खलु दुरतिक्कमा
असमणा सया सुत्ता, समणा सया जागरंति कडेहिंतो कस्मेहितो केसिमवि न मोक्खो अस्थि मूढस्स पुरिसस्स संगेण अलं लाभो ति न मज्जेज्जा, अलाभो ति न सोएजा सततं मूढे धम्मं ६४ नाभिजाणति
६४ न+अभिजाणति = नाभिजाणति न+अत्थि = नात्थि = नत्थि, प्राकृबे पदो बच्चे ज संधि करवानी पद्धति छे अने ते पण विकल्पे. पदमां पण सामसामा अव्यवहित स्वरो आवे छे छतां तेओ वच्चे * थतो नथी. कारण के प्राकृतना स्वरप्रधान शब्दोमां ते रीते संधि वाथी अर्थनी अस्पष्टता भने उच्चारणनी क्लिष्टता वगेरे अनेक दूषणो थाय छे.
हस्व के दीर्घ अ, इ, उ पछी अनुक्रमे ह्रस्व के दीर्घ अ, इ, उ
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
जिणा मलोमेण लोभं जयंति । खत्तिया धम्मेणं जुज्यं जुज्झति संसारे एगेसिं माणवाणं जहा लाहो तहा लोहो लाहा
अप्पं च खलु आउयं लोहो पवहा जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो समणा सव्वेसिं पाणाणं मावियाह रसं
सुहमिच्छति
पाठ १० मो
भूतकाळ-प्रत्ययो स्वरांत धातुओने लगाडवाना ) एकवचन-बहुवचन
(१ पु० सी,ही,हीआ (सीत् ६)
"
",
,
इ+8
उ+ऊ
'पा' धातुनां रूपो सर्व पुरुष) पासी [पा+सी], पाअसी [पा+अ+सी]
पाही [पा+ही], पाअही [पा+अ+ही] सर्व वचन ) पाहीअ [पा+ही], पाअहीअपा+अहीअ] आवे. तो ते बोने स्थाने एक सजातीय दीर्घस्वर आवे छे: अ+अ
उ+उ अ+आ
=आ आ+अ ई+8
ऊ+उ भा+आ)
ऊ+ऊ ६५ सुहम् इच्छंति=सुहमिच्छंति-जुओ पृ. ३१ नि० २
६६ प्राकृतमां वपरातो भूतकाळनो 'सी' प्रत्यय अने संस्कृतमा वपरातो भूतकाळनो 'सीत्' प्रत्यय बने समान छे. 'अधासीत्' 'अघ्रासीत्' बगेरे संस्कृत रूपोमां वपरायेलो 'सीत्' [तृतीय पु• एक०] भूतकाळने दावे छे, प्राकृतमां ते व्यापक थइ सर्व पुरुष अने सर्व वचनने दर्शावे
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
एकवचन-बहुवचन 'व्यंजनांत धातुओने लगाडवाना, ईअ (ईत्६७)
१ पु० २ पु० ३ पु०६ वंद-चंदीअ [वंदईन] हस्-हसीअ [हस्+ईअ]
कर-करीअ [करईअ] खास करीने आर्ष प्राकृतमां वपरायेला प्रत्ययोः प्रायः तृतीय पुरुष-एकवचन) स्था (इष्ट)
(इष्ट)
प्रायः तृतीय पुरुष-बहुवचन ) इत्थ
इंसु
(इषुः)
।
) अंसु
छे: 'ही' अने 'हीम' ए बने पण 'सी' ना ज रूपांतरो छे. ६७ 'ई' भने संस्कृतनो भूतकाळसूचक 'ई' बन्ने समान छे. 'अभाणीत्' 'अवापीत्' वगेरे संस्कृत क्रियापदोमां आवेलो 'ईन्' [तृ. पु. एक०] भूतकाळने दर्शावे छे, प्राकृतमां ते, सर्व पुरुष अने सर्व वचनमां आवे छे.
६८ आ 'इस्थ' प्रत्यय अने संस्कृतनो 'इष्ट' प्रत्यय बजे समान छे. इष्ट-इट्ठ-इत्थ, इत्था, स्था. अजनिष्ट, अभविष्ट वगेरे संस्कृत रूपोमां आवेलो 'इष्ट [तृतीय पु• एक०] भूतकाळनो सूचक छे. प्राकृतमां पण ते, प्रायः तृतीय पुरुषना एक वचनने सूचवे छे. ६९ जुओ टिप्पण ६८मुं. ७. आ 'इंसु' अने 'अंसु तथा संस्कृतनो भूतकाळ-दर्शक 'इषुः' ए बधा समान छे. 'अवादिषुः' 'अबाजिषुः' वगेरे संस्कृत क्रियापदोमां यपरातो इषुः [तृ• पु. बहुव०] भूतकाळनो सूचक छे अने ते प्रकृनमं पर्ण प्रायः ते ज काळ, पुरुष अने वचनने सूचवे छे.
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
सेव
गच्छ
६८ धातु
रूपाख्यान होत्था [होत्था]
रीइत्था [री+इत्था] प+हार पहारित्थामा
पहारेत्थ पहार इत्था भुंज भुंजित्था [भुंज+इत्था] वि+हर् विहरित्था [विहर्+इत्था]
सेवित्था [सेक्+इत्था] पुच्छ् पुञ्छिसु [पुच्छ्+इंसु]
गच्छिसु [गच्छ्+इंसु करिंसु [कर इंसु]
नञ्चिसु [नच्च+इंसु] आह आहंसु [आह+अंसु]
__केटलांक अनियमित रूपो अस्-अत्थि, अहेसि, आसि [सर्व पुरुष सर्व वचन] आसिमो, असिमु (आस्म) रूप, प्रथम पुरुषना बहुवचनार्थे आर्ष प्राकृतमां क्वचित वपरायेलं मळे छे.
वद्-'वद्' धातुनुं 'वदी' रूप थर्बु योग्य छे छतां मार्ष प्राकृतमा 'वदीअ' ने बदले अनेक स्थळे 'वदासी' अने 'वयासी'७' रूपनो उपयोग थयेलो छ अर्थात् उक्त 'सी' प्रत्यय स्वरांत धातुने लगाडवानो छे ते, आर्य प्राकृतमां क्वचित व्यंजनांत धातुने पण लागेलो छ, वद+सी वदासी-आर्यप्राकृत होवाने कारणे 'वद'र्नु ‘वदा' थयुं छे. कर-भूतकाळमां 'कर' ने बदले 'का' पण थाय छे.
कर+ईअ-करीअ . १ 'वदासी' उपरथी 'वयासी'-टिप्पण ३९ मुं..
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक
'कर' नो ) का+सी-कासी 'का' थयो का ही-काही
त्यारे काही काही . आर्ष प्राकृतमां वपरायेलां बीजां केटलांक अनियमित
कर-अकरिस्सं (अकार्षम् ) १ पु० कर-का-अकासी (अकार्षीत् ) ३ पु०
बू-अब्बवी (अब्रवीत् ) वच्-अवोच (अवोचत्) अस्-आसी (आसीत् ) बू-आह (आह) , आहु (आहु)
" बहु० दृश-अदक्खु ( अद्राक्षुः)
भू अभू (अभूत् के अभुवन्) , एक,
उक्त आर्षरूपो, संस्कृत अने प्राकृत एम बे भिन्न भिन्न भाषाना अस्तित्वनो स्पष्ट रीते निषेध करे छे. ए बधां रूपो मात्र उच्चारणमेदना नमूना छे.
नरजाति भारिय (आर्य) आर्य-सज्जन ! सानो णायसुता (ज्ञातमुत७२) ज्ञातवंशनो! णायसुया पुत्र-महावीर मिलिच्छ (म्लेच्छ) म्लेच्छ छगलय (छाग) छालू-बकरुं
ऊसव (उत्सव) उत्सव नातपुत्त) (ज्ञातपुत्र) ज्ञातवंशनो णातपुत्त पुत्र-महावीर नायपुत्त)
___ ७२ शब्दनी आदिना 'ज्ञ' नो 'न' के 'ण' थाय छे अने शब्दनी भंदरना 'ज्ञ नो 'न' के 'पण' थाय छे:-ज्ञातसुत=णायसुत, नायसुत. जातपुत्र-णायपुत्त, नातपुत्त. विज्ञान विष्णाण, विधाण. संज्ञा-संना, संणा..
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
मअ७३ (मृग) मृग-हरण मयंक (मृगाङ्क) मृगना निशान वाळो - चंद्र
पज्जुण्ण ( ( प्रद्युम्न ७४ ) पज्जुन । नामनो कृष्णनो पुत्र
प्रद्युम्न
वच्छ ( ( वत्स ७५) वत्स - बच्चुंपुत्र
}
उच्छाह (उत्साह) उत्साह रिच्छ (७६ ऋक्ष) रींछ गोतम (७७ गौतम ) गौतम गोयम) गौतम मुनि
पवंच ( प्रपख) प्रपंच
संख (शङ्ख) शंख
७०
कंटग (कण्टक) कांटो पंथ (पन्य) पंथ - मार्ग कलंब ( कदम्ब) कदंबनुं झाड सप्प (सर्प) साप
मंजर (मार्जार) मजर-बिलाडो
दुक्काल (दुष्काल) दुकाळ वम्मह (७८ मन्मथ) मनने मथनार - कामदेव
पह (प्रश्न ७९) प्रश्न
कण्ह (कृष्ण) कृष्ण- कान पण्हुअ ( प्रस्तुत ) पानो
पुव्वण्ह (पूर्वाह्न) दिवसनो पूर्व
भाग
७३ शब्दनी अंदरना प्रथम 'ऋ' नो 'अ' थाय छे:- मृग=मअ. मृगाइ-मयंक.
७४ शब्दनी आदिना ' म्न' नो 'न' के 'ण' थाय छे अने शब्दनी अंदरना ' म्न' नो 'न' के 'ण्ण' थाय छे:- प्रद्युम्न-फज्जुल, पज्जुण्ण. निम्न = निन्न, निष्ण.
७५ हस्वथी पर आवेला 'त्स' '' 'श्व' अने 'प्स' नो 'ख' थाय छे:- वत्सवच्छ. उत्साह = उच्छाह. पथ्य = पच्छ. मिथ्यामिच्छा. आश्चर्य = अच्छेर पश्चात् पच्छा. जुगुप्स - जुगुच्छ. लिप्स = लिच्छ.
७६ शब्दनी आदिना व्यंजन वगरना एकला 'ऋ' नो 'रि' थाय ऋक्ष =रिच्छ. ऋद्धि-रिद्धि.
छे:
७७
'औ' ने बदले 'ओ' वपराय छे:- गौतम गोतम, गोयम. ७८ 'न्म' नो 'म्म' थाय छे:- मन्मथ = वम्मह. मन्मन = मम्मण
७९ शब्दना 'इन' 'ण' 'स्न' 'ह' अने 'ह' नो 'ह' थाय छे:प्रश्न=पण्ह. कृष्ण = कण्ह. स्नात= ण्हाअ. प्रस्तुत = पण्हुअ. वह्नि = वहि. पूर्वाह्न = पु.
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
हेमंत (हेमन्त८०) हेमंत ऋतु- गाम (प्राम) गाम शिळो
देविंद (देवेन्द्र) देवोनो इन्द्रभूसम
.. (मूषक)मूषक-उंदर
देवोनो स्वामी
मोर । (मयूर) मोर पल्हा (प्रह्लाद) प्रहाद नामनो
मयूर पल्हाद भक्त राजपुत्र मोहणदास (मोहनदास) ए
हरिपसबल (हरिकेशबल) मूळ नामनो वीरपुरुष-मोहनदास गांधी |
चंडाळ कुळमां जन्मेलो एक
जैन मुनि रदृधम्म (राष्ट्रधर्म) राष्ट्रनो धर्म
समग्र देशनुं हित करनारी | विछिअ (वृश्चिक) वींछी प्रवृत्ति.
नान्यतर गमण (गमन) गमन-जवू वित्राण । (विज्ञान) विज्ञान पाणीय। (पानीय) पाणी, विण्णाण पाणी पीवान
भारहवास (भारतवर्ष) भारतदेश दुद्ध (दुग्ध) दूध
हिंदुस्थान रायगिह ( राजगृह) बिहारमां आवेल हालतुं राजगिर-मगध
महाविजालय (महाविद्यालय) देशनी राजधानी
मोहें विद्यालय-कालेज कुसग्गपुर (कुशाप्रपुर) राजगृ- - पाडलिपुत्त (पाटलिपुत्र) पाटलिहनुं बीजं नाम
पुत्र-पटणा शहेर ८० शब्दनी अंदरना ङ्, अ , ण, न अने म् पछी कोइ पण व्यंजन आवे, तो ते दरेकनो अनुस्वार थाय छे अने ते अनुस्वारने स्थाने, अनुस्वारनी पछी जे वर्गनो व्यंजन आव्यो होय ते वर्गनो छेलो व्यंजन पण आवे छे:-मृगाङ्क मयंक, मयक. शण-संख, सह. प्रपत्र-पवंच, पवन. कण्टक-कंटग, कण्टग. हेमन्त-हेमंत, हेमन्त. पन्थ-पंथ, पन्थ. कदम्बन कलंब, कलम्ब.
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
चंडालिय (चाण्डालिक) चंडाळनो पवहण (प्रवहण) वाहन, वहाण स्वभाव-क्रोध
अच्छेर (आश्चर्य) आश्चर्य-अचरज नाण (ज्ञान) ज्ञान
विशेषण महड्डिय। (महर्धिक) मोटी । जुगुच्छ (जुगुप्स) जुगुप्सा करमहिड्डिय) ऋद्धिवाळु-धनाढय
नार-घृणा करनार वाघायकर (व्याघातकर) व्याघात | सह ) (सूक्ष्म) सूक्ष्म-सूक्षम-नानुं करनार-विघ्न करनार
सुहम
सुखुम) महग्य (महाघ) मोंधु
सहल (सफल) सफळ सग्घ (स्वर्घ) सोंधू
विहल (विफल) विफळ केरिस (कीदृश) केवु
विलिअ (व्यलीक) विशेष अलोक नवीण । (नवीन) नवीन
-खोटे णवीण
नर्बु
वीलिअ (बीडित) वीलो-भोंठो अजयण। (अद्यतन) आजनुं
पुराण । (पुराण) पुराणु-जूनुं अजतण) - -ताजु
पुराअण (पुरातन) सरस (सरस) सरस
निण्णो (निम्न) निम्न-नीचुं पच्छ (पथ्य) पथ्य-रस्तामां हितकर | नेण्ण नानु-नेनु८२
अव्यय तेण (तेन) ते तरफ
सुडु (सुष्टु) सारी रीते जेण (येन) जे तरफ
दुडु (दुष्ठ) दुष्ट रीते अवस्सं (अवश्यम् ) अवश्य खिप्पं (क्षिप्रम् ) खेप-जल्दी८३ एव) (एवम् ) एम-ए प्रमाणे पच्छा (पश्चात् ) पछी
| इहेव (इहैव) अहीं ज
८१ जुओ टिप्पण २१ मुं. ८२ 'नेनु' ए प्रांतिक उच्चारण छे. नेनु नानु ८३ सरखावो-'खिप्प' उपरथी खेपियो-खेप करनारो-त्वराधी कागळ पहोंचाडनारो.
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
| नमो
नमः) नमस्कार
' असई (असकृत् ) वारंवार
गामाणुग्गाम) (ग्रामानुग्रामम् ) गामाणुगाम । गामे गाम-दरेक
गामडे
पगे (प्रगे) प्रागडवाश्ये-प्रातःकाळे मा (मा) मा-नहि
धातु
अच्च् (अर्च) अर्चयु-पूजवु उव+दिस् (उप+दिश) उपदेशवू-
उपदेश करवो. नच्च (नृत्य) नाचवू प+हार (प्र+धार) धारयु-संकल्प
___ करवो. ने । (नी) लइ जवु-दोर,
सेव् (सेव) सेवq हस (हस् ) हसवू पढ (पठ) पाठ करवो-पढवू पुच्छ् (पृच्छ) पूछ भण (भण) भणQ रीय् (रीय) नीकळवू वि+हर (वि+हर) विहष-फर अणु+भव (अनु+भव) अनुभवQ
__ -भोगवq.
आ+णे (आ+नी) आणवू लावq.
है गाममां गयो अने साथे महावीर हेमंत रुतुमां बकराने लइ गयो.
नीकळ्या. आर्य पुरुषोए महावीरने
ज्यारे तेणे पूछयु त्यारे तमे ___ अनेकवार वाद्या. मेघ वरस्यो अने मोरो नाच्या
__ खोटुं बोल्या. 'महावीरनु शील केवु छे'
अमे सत्यनो जाप कर्यो. एम ब्राह्मणोए पूछयु. तेओए पाणी पीधुं अने तेमणे घणां सारां कामो __अमोए दूध पीधुं. कयों अने जीवनने सफळ | पाणी नीचुं जाय छे एम
कोण नधी जाणतुं ? ८४ विसर्गने बदले 'ओ' थाय छे:-नमः नमो. तमः तमो. मनः= मणो. ततः ततो.
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
७४
शान वडे हुं क्रोधने अवश्य | 'कोई' पण प्राणी हणवायोग्यः
| नथी' एम आर्योप का. तेणे दुष्ट रीते संकल्प कर्यो. मोहनदास महापुरुषे गामे अमे बेए सारीरीते सेवा करी.
पाम विहार कर्यो अने राष्ट्र
धर्मने उपदेश्यो. आजनुं दूध सरस हतुं
प्रद्युम्ननो शिष्य पाटलिपुत्र सवारे अने पछी पण बालको
गयो. आंगणामां रम्या.
दुकाळमां देशना माणसोए श्रमणो मोघां वस्त्रोने अड. दुःख भोगव्यु. कता नथी.
भोठा शिष्यो हसता नथी. लोकोए शान माटे पंडितोने तमे शिष्योने शीघ्र पूछ'. पूज्या.
खोटुं वचन शा माटे बोल्यो? अमे साचुं बोल्या.
पुराणुं साचुं छे एम नधी राजा अने इंद्र विनयपूर्वक
अने नवं खोटुंछे एम पण नथी.
आर्योने नमस्कार. बधा प्राणीओ हणवालायक |
दिवसना आगला भागमा छे' एम अनार्योए कहा.
सूर्यने पूज्यो. हुं अने तुं महाविद्यालयमां| हिंदुस्थानना लोको मोंधु गया अने राष्ट्रधर्मने भण्या. अन्न खाय छे. बाला धार्विसु
गोयमो समणं महावीरं एवं मा य चंडालियं कासी वयासी तंसि देसंसि दुकालो होसी । सीलं कहं नायसुतस्स मिच्छा ते एवमासु
आसी? तवस्स वाघायकरं वयणं नमिरायो देविंदमिणमब्यवी. बयासी
अंगणम्मि बाला मोरा य इमं पण्हं उदाहरित्था
नधिसु
बोल्या.
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
ते पुत्तो अणयं श्णं वयणं ते पाणीयं पाही कहिंसु
बालो हसी वद्यमाणो जिणो अभू
तुम्हे तत्थ ठाही सो दुखें पाली
आसिमु बंधवा दोवि तुमं छगलयं गाम नेही
सो इमं वयणमनवी माणवा हसीअ जिणा एवं कहिंसु
अत्थि इहेव भारहवासे कुसआसि अम्हे महिदिया
गपुरं नाम नयरं तेणं कालेणं तेणं समएणं सीसे विणयेणं आयरिये पाडलिपुत्ते नयरे होत्था
सेवित्था जेणेव समणे महावीरे तेणेव
तंसि हेमते नायपुत्ते महावीरे गोयमो गच्छीय
रीइत्था पुञ्छिसुणं समणा माहणा य
जे आरिया ते एवं क्यासी सो पुरिसो पाडलिपुत्तं नयरं गमणाए पहारेत्थ
समणे महावीरे गामाणुगाम रायगिहे नयरे होत्था
विहरित्या आहू जिणा, अत्थि जिणा हरिएसबलो नाम जिइंदियो सव्वे वि जिणा धम्मम्मि समणो आसि सचमुत्तमं आहंसु ' किं अम्हे असच्चं भासी?
पाठ ११ मो इकारांत अने उकारांत (नरजाति)
बहव० १ रिसि-रिसी (ऋषिः) रिसि+अउ-रिसर
रिसि-अओ-रिसओ रिसि+अयो-रिसयो (ऋषयः) रिसि+णो-रिसिणो रिसि-रिसी
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
२ रिसि+म्-रिसिं (ऋषिम् ) रिसि-रिसी ( ऋषीन् )
रिसि+णो-रिसिणो ३ रिसि+णा-रिसिणा(ऋषिणा) रिसि+हि-रिसीहि, रिसीहि,
रिसीहि (ऋषिभिः) ४ रिसि+अये-रिसये (ऋषये) रिसि+ण=रिसीण,
रिसि+स्स-रिसिस्स रिसीणं (ऋषीणाम् ) रिसि+णो-रिसिणो रिसि+त्तो-रिसित्तो(ऋषितः) रिसि+त्तो-रिसित्तो (ऋषितः) रिसि+ओ-रिसीओ () रिसिओ-रिसीओ (.) रिसिउ-रिसीउ (..) रिसि+उरिसीउ (,) रिसि+णो-रिसिणो रिसि+हिंतो-रिसीहितो रिसि+हितो-रिसीहितो
(ऋषिभ्यः)
रिसि+सुंतो-रिसीसुतो ६ रिसि+स्स-रिसिस्स (ऋषेः) रिसि+ण-रिसीण,
रिसि+णो-रिसिणो रिसीणं ( ऋषीणाम् ) ७ रिसि+'सि-रिसिसि रिसि+सु-रिसीसु, रिसीसु
(ऋषिस्मिन् ? ऋषौ) (ऋषिषु) रिसि+म्मिरिसिम्मि सं० रिसि-रिसि ! (ऋषे !) रिसि+अउ-रिसउ (ऋषयः) रिसि-रिसी!
रिसि+अओ-रिसओ" रिसि+अयो-रिसयो" रिसि+णो-रिसिणो! रिसि-रिसी!
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
भाणु (भानु) १ भाणु-भाणू (भानुः) भाणु+अवो-भाणवो (भानवः)
भाणु+ भाणवे५१ (..) भाणु+अओ-भाणओ (..) भाणु+अउम्भाणउ () भाणु+णोभाणुणो
भाणु-भाणू २ भाणु+म्भाणु (भानुम् ) भाणु+णो-भाणुणो
भाणु-भाणू (भानून् ) ३ भाणु+णा-भाणुणा (भानुना) भाणु+हिम्भाणूहि, भाणूहिं
भाणूहिँ (भानुभिः) ४ भाणु+अवे-भाणवे (भानवे) भाणु+ण-भाणूण (भानूनाम्) भाणु+णो भाणुणो
भाणूणं भाणु+स्स-भाणुस्स ५ भाणु+त्तो-भाणुत्तो भाणु+त्तो-भाणुत्तो (भानुतः) भाणु+ओ-भाणूओ भाणु+ओ-भाणूओ (..) भाणु+उ-भाणूड भाणु+उ भाणूउ (..)
__ (भानुतः,भानोः) भाणु+हिंतोभाणूहितो भाणु+णो-भाणुणो
(भानुभ्यः) भाणु+हितो-भाणूहिंतो भाणु+सुंतो माणूसुंतो ६ भाणु+स्स-भाणुस्स (भानोः) भाणु+ण-भाणूण भारत भाणु+णो-भाणुणो
भाणूणं माना। ७ भाणु-सि-भाणुंसि भाणु+सुभाणूसु (भानुषु) भाणु+म्मि-भाणुम्मि
भासु (भानुस्मिन् ?, भानौ )
८५ प्रथमा-बहुवचनना 'अवे' प्रत्ययनो उपयोग आर्ष प्राकृतमा ठीक ठीक थयेलो छे.
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
७८.
सं० भाणु-भाणु (भानो !) भाणु+अवो भाणवो (भानवः) भाणु-भाणू . भाणु+अओ-भाणओ (..)
भाणु+अउम्भाणउ (,) भाणु+णो-भाणुणो
भाणु-भाणू अकारांत नामनां रूपोनी साधनामां जे प्रत्ययो वपरायेला छे तेज प्रत्ययो उपर्युक्त रूपोनी साधनामां पधारे प्रमाणमां वपरायेला छे अने तद्दन नवां रूपो बहु थोडां छे: १ प्रथमाना अने संबोधनना एक तथा बहुवचनमां तथा
द्वितीयाना बहुवचनमां इकारांत अने उकारांत मूळ अंग
फक्त दीर्घ करीने पण वापरवानुं छेः- रिसि+रिसी २ प्रथमाना, संबोधनना अने चतुर्थीना स्वरादिप्रत्ययो लगाठी
पूर्व स्वरनो एटले अंगना अंत्य 'इ' के 'उ' नो लोप करवानो छेः- रिसि+अओ-रिस्+अओ-रिसओ. भाणु+ अयो-भाण्+अवो-भाणवो. रिसि+अये-रिस्+अये-रिसये. भाणु+अवे-भाणू+अवे-भाणवे. ( जुओ टिप्पण-१० मुं) ३ नवां रूपोमां तृतीया एकवचन, ‘णो' प्रत्ययवाळां बघां
रूपों अने चतुर्थी- एकवचन के परंतु ते बधांनी साधना ऊपर जणावेला विभाग ऊपरथी समझाय तेवी ज के.
संस्कृतमा 'इन्' छेडावाळां (दण्डिन्, मालिन् ) नामोनां प्रथमा-द्वितीया बहुवचनमां अने पंचमी-षष्ठी एकवचनमा दण्डिनः, मालिनः रूपो प्रसिद्ध छे. ए रूपोर्नु प्राकृत रूपांतर दंडिणो, मालिणो थाय छे. आ जोतां अहीं जणावेलां रिसिणो, भाणुणो रूपोनी घटना सहजमां समझी शकाय तेम छे. वळी. 'इन्' छेडावाळां नामोनां बधां रूपो लगभग इकारांत नामनी जेवां थाय छे.
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकारांत अने उकारांत नान्यतर अंगनां, हतीयाथी सप्तमी सुधीनां बघां रूपोनी साधना इकारांत अने उकारांत नरजाति अंगनां रूपोनी समान छे अने प्रथमा, द्वितीया तथा संबोधननां रूपोनी साधना, अकारांत नान्यतर उंगनां रूपोनी जेवी छ:
वारि (वारि) १-२ बारि+म् वारि (वारि)......वारिणि वारीणि)
पारिवारीई वारीणि
वारि+ई-वारी) सं० वारि ! ( वारि !)
(जुओ पाठ छटानो प्रारंभ)
महु (मधु ) १-२ महु+म्-महुं (मधु)...महु+णि-महूणि)
महु महूई (मधूनि)
महु-मह ) सं० महु ! (मधु !) ,, ,, (") चतुर्थीना एकवचनमां वारिणे, वारिस्स. महुणे, महुस्स रूपो समझवानां छे पण 'वारये' के 'महवे' रूपो समझवानां नथी.
इकारांत अने उकारांत नाम (नरजाति) मुणि (मुनि) मुनि-मनन करनार- । रिसि । (ऋषि) रुषि
मौन राखनार संत इसि । सउणि (शकुनि) शकुनि-पक्षी
भूवइ (भूपति) भू-पृथ्वी-नो पर (पति) पति-स्वामी-धणी
पति-भूपति-भूपत-राजा गणवइ (गणपति) गणोनो पति
-गणपति घरवरी (गृहपति) घरनो पति अमुणि-(अमुनि) मुनि नहि ते गहवा
-बडबड करनार
मालिक
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
कोहदंसि (क्रोधदर्शिन् ) क्रोधने
। भूमिवइ ( भूमिपति ) भुमिनो जोनार-क्रोधी
पति-राजा दुक्खदंसि (दुःखदर्शिन् ) दुःखने
उवाहि (उपाधि) उपाधि जोनार- दु:ख पामनार सेटि (श्रेष्ठिन् ) श्रेष्ठी-शेठ भोगि। ( भोगिन् ) भोगी
गब्भदसि (गर्भदर्शिन् ) गर्भने मोइ । भोगोने भोगवनार
जोनार-जन्म धारण करनार उदहि (उदधि) उद-पाणी-ने
अभोगि (अभोगिन्) अभोगीधारण करनार-समुद्र साहु (साधु) साधक-साधन
अभोइ भोगोने नहि भोगवनार
पक्खि ( पक्षिन् ) पंखीकरनार, साधु पुरुष, सजन, शाहुकार जंतु (जन्तु) जंतु-प्राणी
पांखवाळ सिसु (शिशु) शिशु-बाळक सोमित्ति ( सौमित्रि ) सुमित्रानो मच्चु (मृत्यु) मृत्यु-मोत-मरण
पुत्र-लक्ष्मण मिच्चु ।
भिक्खु ( भिक्षु ) भिक्षु बिंदु (बिन्दु) बिंदु-मीडु, टीपु
चक्खु (चक्षुष ) चक्षु-आंख भाणु (भानु) भानु-भाण-सूरज
सयंभु ( स्वयंभू ) स्वयं थनारवाउ (वायु) वायु-वा
___ ब्रह्मा, ते नामनो समुद्र वायु विण्हु (विष्णु) विष्णु
संसारहेउ (संसारहेतु) संसारनो हत्थि (हस्तिन् ) हाथी
हेतु-संसार वधवानु कारण कुलवइ (कुलपति) कुलनो पति गुरु ( गुरु ) गुरु-वडिल माता -आचार्य
पिता वगेरे नरवइ (नरपति) नरोनो पति तरु (तरु) तरु-दु-झाड
नरपति-नरपत-राजा बाहु(बाहु) बाहु-बांय-हाथ
___अकारांत (नरजाति) वसह (वृषभ) वृषभ-बळद
आहार (आहार) आहार-खावानुं कोसि ( कौशिक ) कौशिक | पहाविअ (नापित) नवरावनारोगोत्रवाळो इंद्र अथवा चंड- नाविण नावी-हजाम
कौशिक सर्प | मत्र (मृग) मृग-वनपशु-हरण
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
भार (भार) भार
महप्पसाय (महाप्रसाद) मोटा कुमारवर (कुमारवर) उत्तम कुमार प्रसादवाळो-सुप्रसन्न-कृपालु आहार (आधार) आधार
मास (मास) मास-महीनो गरुल (गरुंड) गरुड
पक्ख (पक्ष) पक्ष-पखवाडियुं,
पंख-पांख, पख-तरफदारी रणवास (अरण्यवास) अरण्यमां
वेसाह (वैशाख ) वैशाख मास वसवू-वनमा रहे
उवासग ( उपासक ) उपासकसव्वसंग (सर्वसङ्ग) सर्व प्रका
उपासना करनार रनो संग-संबंध-आसक्ति | कोववर (कोपपर) कोपमां तत्पर महासव ( महास्रव ) मोटो
-कोपी-क्रोधी आस्रव-पापोनो मोटो मार्ग सोवाग (वपाक) चांडाळ
अकारांत (नान्यतरजाति) आभरण (आभरण)आभरण-घरेणुं । रूव (रूप) रूप घर (गृह) घर
कुल (कुल) कुल-कुळ पंजर (पञ्जर) पांजरुं
घय (घृत) घी उदगो (उदक) उदक-पाणी
तण (तृण) तरj-घास उदय)
मित्तत्तण (मित्रत्व) मित्रत्वहुअ (हुत) होम
मित्रता-भाईबंधी
विशेषण बुद्ध (बुद्ध) बोधवाळो-ज्ञानी
सुत्त (सुप्त) सुतेलु-आळसु
अप्पणिय (आत्मीय) आपणु हुत (हुत) होमेलं-हवन करायेलं
पासग (दर्शक-पश्यक? ) द्रष्टा से? (श्रेष्ठ) श्रेष्ठ-सारं
समझनारो-विचारक संभूअ (संभूत) संभवेलो-थयेलो
परिसोसिय । ( परिशोषित ) बउत्थ (चतुर्थ) चोथु परिसोसिअ परिशोषित
तद्दन सुकायेलं तिण्ण (तीर्ण) तरी गयेलु विज (द्वितीय) बीजें
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
ताव ( ( तावत् ) तो, त्यांसुधी
ता
एगया (एकदा) एक वखत -
एकवार
सया (सदा) सदा - हमेशा
अवमन्नू ( अप + मन्य ) अप
मानवु - अपमान कर आ+घा (आ+ख्या) आख्यान कवुं -कहेतुं आय् ( याच ) नाचवुं - याचना कवी - मागवुं
:
प+वय् (प्र+वद) वदवुं -कहेवु पूज् ( ( पूज) पूजवुं
पूअ
यू (त्यज) तजवुं छोडवु भणू ( भण) भणवुं, बोलवं, कहेवु डस् (दशू ) डसवुं - डंख मारवो
८२
अव्यय
पकवार साधुओ ब्राह्मणने घरे गया. भिक्षुओ उपाधिओने छोटे के अने स्वयंभूनुं ध्यान करे छे. तपथी सुकायेला मुनिने अनार्यो इसे छे.
जाव ) ( थाक्त्) जो, ज्यां सुधी
जा
एत्थ (अ) अहीं चिरं ( चिरम् )
धातुओ
घिरं - लांबा
काळ सुधी
रक्ख ( रक्ष) रक्ष-राखवुं
साचव - रक्षण क
लागर् (जागर्) जागवुं वि+राम (वि+राज) विराजषु वि+राज् - शोभवु उ+ डी (उत्-डी) ऊडवुं नि+मंत् ( नि+मन्त्र ) निमंत्रण
क - नोत
वाक्यो
ताल ( ( ताड) ताडन क
ताई}
-माखुं
वि+चर् (वि+चर) विचरं
फं
ब्राह्मणोप भिक्षुओंनु अप
मान क.
हे मुने ! तुं संसारने तरेलो छे. कर्म वडे उपाधि थाय छे. मारे बधा भूतोमां मित्रप छे, कोइनी पण साथै वैर नथी.
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
अमुनिओ हमेशा सुतेला । हे पंडितो! हु बधा प्रकारे के अने मुनिओ हमेशा लोभने तनुं छु. जागे छे.
चंडकौशिक सर्पमा अने देवेश्रमण महावीरने चण्ड. न्द्रमां महावीरे मित्रपj कौशिक सर्प डस्यो.
राख्यु. कोइ पण पुरुष कुलपतिना
वायु वडे वृक्षो कंप्या अने खळदने अने मृगने हणतो
पाणीनां बिंदुओ उड्यां.
शुं विचारकने उपाधि नथी.
होय छे ? बळदो अने मृगो तृण
कौशिक देवेन्द्र श्रमण महाखाय छे अने मुनिओ वीरने पूज्या. घी पीए छे,
समुद्रना हाथीए पाणी पीधु. महावीरना उपासक शेठे लोभ संसारनो हेतु छे.
बैशाख मासमां तप कर्यो. सुप्रसन्न मुनिओ क्रोधदशी बधां आभरणो भार छे. होता नथी. कुलपतिए श्रमण महावीरने
ए भिक्षु शेठना कुळनोहतो. काः कुमारवर ! अहीं
हे भिक्षो ! मारा घरमां दूध ऋषिओनो मठ छे.
नथी, पी नथी पण पाणीछे.
ए गृहस्थने बे बाळक हतां. सौमित्रि रामने नमे छे. तेओए हाथवडे पांजराने मुनिओ आहार माटे बधां फेफ्युं. कुलोमां फरे छे
कोने आंखो नथी? प्रीष्मने बीजे मासे अने
पक्षी पांजरामां कंप्यु अने.
हत्या कयु. चोथे पक्षे महावीर बुद्ध
शेठ राजाने नम्यो अने राना थया.
गणपतिने नम्यो. ने क्रोधदर्शी छे ते गर्भ- तमे पाणी इच्छो छो? दर्शी छे अने जे गर्भदर्शी मुनिओना पति महावीर छे ते दुःखदर्शी छे.
राजगृहमां विहर्या.
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदाहरिरे
मुणिणो सया जागरंति अमुणी । भिक्खू धम्म आइक्खेजा सया सुत्ता संति
लोहेण जंतुणो दुक्खाणि 'धयं पिबामि'त्ति साहुस्स
जायंति णो भवइ
सिसुणो किं किं न छिंदिरे ? चक् रुवस्स गहणं वयंति जहा सयंभू उदहीण सेढे, पक्खीसु वा उत्तमे गरुले इसीण सेढे तह वद्धमाणे विराजइ
अन्ने मुणिणो हुएण मोक्खं पगे भिक्खुणो उदगेण मोक्खं पवयंति
भिक्खू सव्वसंगे महासवे सउणी पंजरंसि उड्डेइ
परिजाणी ते उवासगा भिक्खुं निमंत- भोगिणो संसारे भमी यंति
अभोगी चयइ रयं बहवे गहवइणो भिक्खं वंदंते हत्थीसु एरावणमाहु सेई मच्चू नरं णेइ हु अंतकाले एगया पाटलिपुत्तस्स नरगहवई मुणिणो दुद्धं दिज वई पहाविओ होत्था भूवई, घरवई य दोवि गुरुं महप्पसाया इसिणो हवंति वंदंति
न हु मुणी कोववरा हवंति महरिसी! तं पूजयामु महासवं संसारहेउं वयंति न मुणी रण्णवासेण किंतु बुद्धा नाणेण मुणी होइ
वुद्धो भयं मच्चुं च तरीअ. नमी भूमिवई कयावि न गणवई हथिस्स सिसुं चंडालियं कासी
रक्खी
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिमि
हिसि,
पाठ १२ मो भविष्यकाळ
प्रत्ययो एकवचन
बहुवचन पु० १ स्सामि ( ष्यामि) स्सामो, स्सामु, स्साम (प्यामः) हामि
हामो, हामु, हाम
हिमो, हिमु, हिम स्सं
हिस्सा, हित्था पु० २ स्ससि (प्यसि) स्तह, स्सथ, (व्यथ) स्ससे (ज्यसे)
हित्था, हिह (ष्यध्वे) हिसे पु० ३ स्सइ, स्सति (प्यति) स्संति, (ष्यन्ति)
स्सए, स्सते (प्यते) स्संते (ष्यन्ते) हिइ, हिए हिंति, हिंते, हिइरे हिति, हिते सर्व पुरुष- ज, जा
सर्व वचन। भविष्यकाळना प्रत्ययो लगाडतां धातुना मूळ अंगना अंत्य 'अ' नो 'ए' अने 'इ' वाराफरती थाय छे:-भण्+अभण+स्सामि भणेस्लामि, भणिस्सामि वगेरे
रूपाख्यान पु. १ भणिस्सामि, भणेस्सामि भणिस्सामो, भणेस्सामो
भणिहामि, भणेहामि भणिस्सामु, भणेस्सामु भणिहिमि, भणेहिमि भणिस्साम, भणेस्साम
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
भणिस्सं, भणेस्सं भणिहामो, भणेहामो
भणिहामु, भणेहामु भणिहाम, भणेहाम भणिहिमो. भणेहिमो भणिहिमु, भणेहिम भणिहिम, भणेहिम भणिहिस्सा, भणेहिस्सा
भणिहित्था, भणेहित्था पु० २ भणिस्ससि, भणेस्ससि भणिस्सह, भणेस्सह
भणिस्लसे, भणेस्ससे भणिस्सथ, भणेस्सथ भणिहिसि, भणेहिसि भणिहित्था, भणेहित्था
भणिहिसे भणेहिसे भणिहिह, भणेहिह पु० ३ भणिस्सइ, भणेस्सइ भणिस्संति, भणेस्संति
भणिस्सति, भणेस्सति भणिस्संते, भणेस्संते भणिस्सए, भणेस्सए भणिहिंति, भणेहिति भणिस्सते, भणेस्सते भणिहिते, भणेहिते भणिहिइ, भणेहिइ भणिहिहरे, भणेहिइरे भणिहिति, भणेहिति भणिहिए, भणेहिए भणिहिते, भणेहिते सर्व पुरुष । भणिज, भणेज सर्व वचन भणिज्जा, भणेजा
बीजा पुरुषना बहुवचननो 'हित्था' अने प्रथम पुरुषन बहुवचननो 'हित्था' ए बन्ने प्रत्ययो समान छे अने तेथी। ए बन्नेनो सेळमेळ थइ गयेलो होवो जोइए.
स्सामि, हामि, स्सामो, हामो वगेरे प्रत्ययो तो 'स'कारना उच्चारण मेदने लीधे प्रचलित थया होय एम के न कहेवाय ?
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
अग्नि (अभि) आग गणि ( गणिन् ) गण - समूहने
इकारांत अने उकारांत शब्दो
साचवनार-आचार्य
गिहि (ग्रहिन् ) गृहस्थ मणि (मणि) मणि
सव्वण्णु (सर्वज्ञ) सर्व जाणनार किसाणु (कृशानु) अभि
जण्डु (जहूनु) ते नामनो सागरपुत्र भिक्खु (भिक्षु) भिक्षु
उच्छु (इक्षु) ईख - शेरडी
महेसि
महा + ऋषि (महर्षि
व्यास वगेरे महर्षि
रायरिसि (राज- ऋषि( राजर्षि
जीवाउ ( जीवातु) जीवननुं औषध
1- राजर्षि
दयालु ( दयालु) दयाळु
कवि (कवि) कवि
कवि ( कपि) कपि-वानर
वाइ ( त्यागिन् ) त्यागी नमि (नमि) ते नामनो एक
राजर्षि - मिराज
पाणि (पाणि) पाणि - हाथ
८०
कयण्णु (कृतज्ञ) कृतज्ञ - कदरदान गुरु (गुरु) गुरु-भारे मोटुं लड्डु (लघु) लघु- हळवं नानुं
पाणि ( प्राणिन् ) प्राणी
भयारि ( ब्रह्मचारिन् ) ब्रह्मचारी मेहवि (मेघावन) मेधावाळो -
बुद्धिमान
वणस्सइ } (वनस्पति) वनस्पति करेणु (करेणु) करी - हाथी कुंथु (कुन्धु) कंथवो - एक नानो
जीवडो
विजत्थि ( विद्यार्थिन् ) विद्यानो अर्थी-विद्यार्थी
विद्दु (विधु ) चंद्र
कमंडलु ( कमण्डलु) कमंडळ मंतु (मन्तु) अपराध, शोक तरु (तरु) तरु-दु-झाड
जंबु (जम्बु) जांबु, जांबुनुं झाड विवि ( विटपिन् ) वीड - झाड
साणु (सानु) शिखर
बंधु (बन्धु) बंधु-भांडु - भाई
विशेषण
पीलु (पीलु) पीलु, पीलुनुं झाड ऊरू (उरु) ऊरु साथळ
पावासु ( प्रवासिन् ) प्रवासी
मिउ (मृदु) मृदु - कोमळ-नरम दुहि ( दुःखिन् ) दुःखी दुग्गंधि ( दुर्गन्धिन् ) दुर्गन्धी चीज
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
चारु (चारु) सारं-सुंदर
सुइ (शुचि) शुचि-पवित्र सुहि ( सुखिन् ) सुखी साउ (स्वादु) स्वादु-स्वादवाळु
सुगंधि ( सुगन्धिन् ) सुगंधी वस्तु खलपु (खलपु) खळु साफ करनार बहु (बहु) बहु-घणु दिग्घाउ ( दीर्घायुष् ) दीर्घ आयु- गामणि (ग्रामणी) गामनो नेता
ष्यवाळो इकारांत अने उकारांत [नान्यतरजाति] (अक्षि) आंख
धणु (धनुष् ) धनुष
जाणु (जानु) जान-जांघ-साथळ अहि (अस्थि) हड्डी-हाडकुं-हाड
वारि (वारि) वारि-पाणी जउ (जतु) जतु-लाख वत्थु (वस्तु) वस्तु
महु (मधु) मध दहि (दधि) दहीं
खाणु (स्थाणु) स्थाणु-खीलो-ठंछं सामान्य शब्दो [नरजाति] जर (ज्वर) ज्वर-ताव
कांबलिअ (काम्बलिक) कामअंब (आम्र) आंबो
ळीयो-कांबळीओने वेचनार वा
ओठनार मोचिअ (मौचिक) मोची-मोजां
___ सीवनार तिल (तिल) तल
कुडुंबी ( कुटुम्बिन् ) कणबी लोहार (लोहकार) लुहार-लूवार
कौढुंबिअ (कौटुम्बिक) कणबी. सोवणिय (सौवर्णिक) सोनी
राजानु कामकाज करनार सोनु घडनार.
साड (शाट) साडलो-साडी गंधिअ (गान्धिक) गांधी-गंध
साडय (शाटक), ,
सोरहिअ (सौरभिक) सरैयोवाळी वस्तुने वेचनार
सुरभि-सुगन्धी-तेल वगेरेने वेचनार वाणिजार (वाणिज्यकार) वण
कस (कश) चाबुक जारो-वणज करनारो-वेपारी
सुत्तहार (सूत्रधार) सुतार
कोकिल (कोकिल) कोयल
कोइल
(कोकिल) कोयल
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
खेत्त । (क्षेत्र) क्षेत्र-खेतर
खित्त
(क्षेत्र) क्षेत्र-खेता
तेलिअ (तैलिक)तेली-तेल वेचनार तंबोलिअ (ताम्बूलिक) तंबोळी मालिअ (मालिक) माळी-माळा दंड (दण्ड) दंड-डांडो-लाकडी
वेचनार जोइसिअ (ज्योतिषिक) जोशी दोसिअ (दौष्यिक) दोशी-दृष्य साडवी (शाटविन्) साळवी
-वस्त्र-वेचनार | सालवी साडी वणनार उहाल (उष्णकाल) उनाळो मणिआर (मणिकार) मणियार सीआल (शीतकाल) शियाळो
काचनो सामान वेचनार सामान्य शब्दो [नान्यतरजाति] लोह (लोह) लो, वाणिज्ज (वाणिज्य) वणज-वेपार तेल (तैल) तेल
मिहिलानयर (मिथिलानगर) तंबोल (ताम्बूल) तंबोळ-नागर
मिथिला नामर्नु नगर वेलनु पान । घरचोल (गृहचोल) घरचोळु मलीर (मलयचीर) मलय देशनुं पम्हपड (पक्ष्मपट) पक्ष्म-पापणकोमळ, झीणुं अने आर्छ कापड
__ जेवू झीणुं कापड-पांभडी कंटयरक्ख (कण्टकरक्ष) कांटारखं
वित्त वित्र) वेत्र-नेतरनी सोटी -कांटाथी रक्षण करनार-जोडा
घेत्ता -बेत कंबल (कम्बल) कंबल-कामळ
सुवण्ण (सुवर्ण) सोनुं चेल (चेल) चेल-वस्त्र
रयय (रजत) रजत-रूपुं बीअ (बीज) यी-बीज जीवण (जीवन) जीवन-जिंदगी
रुप्प (रुक्म) रू' पायत्ताण (पायत्राण) पादत्राण
रुप्प (रौप्य) ,
(लोमपट) रुंवाटार्नु पगरक्ख (पदकरक्षक) पगरखां
पगर्नु रक्षण करनार पम्ह ( पक्ष्मन् ) पापण वत्थ (वस्त्र) वस्त्र-वस्तर
नेह (नीड)निलय-नीड-माळो पट्टोल (पट्टकूल) पटोलु
जोडा
लोमपडा रोमपट) वस्त्र-लोबडी
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
सामान्य शब्द [विशेषण] घट्ट (पृष्ट) घसेलु-सुंवाळु करेलु, । नाय (ज्ञात) जाणितुं-प्रसिद्ध
वाटेलु अम्हारिस (अस्मादृश) अमामह (मृष्ट) मांजेलं-शुद्ध
रीशु-अमारा जेवू अंतिअ (अन्तिक) पासे-नजीकमां सचेलय (सचेलक) चेळ-वस्त्रचंड (चण्ड) प्रचंड-क्रोधी
वालु-कपडावालु लहुरे (लघुक) लघु-हळवु- अचेलय। (अचेलक) एलकहलु
हळु-नानु अएलय कपडा विनानुं
अव्यय सव्वत्थ (सर्वत्र)सर्वत्र-बधे स्थळे मणा । (मनाक्) मणा-थोडुमज्झे (मध्ये) मध्ये-बच्चे-महीं-मां मणयं
खामीदर्शक जं (यत् ) जे-के
सइ (सदा) सदा सक्खं ( साक्षात् ) साक्षात्-प्रत्यक्ष अभिक्खणं (अभिक्षणम् ) क्षणे सययं ( सततम् ) सतत-निरंतर
क्षणे-वारंवार अह (अथ) अथ-हवे प्रारंभसूचक अहुणा (अधुना) हमणां
धातु
ओप्प
(अर्प) आपy
झुंज (युञ्ज) योजq-जोडवू-अडा- । ताव (ताप) तपावq-तपवू
वq-संबंध करवो विक्के (वि+की) वेच_-वेचावं सोह् (शोध) सोवु-शोधq सिव्व (सीव्य) सीवg हण ( हन् ) हणवू
पाल (पीड) पीडबुं-पीलवू मन्न् (मन्य) मानवू
फले (फल) फळq-फळ आववां ओप्प (अर्प) पाणी-आप-चडा- चित् (चिन्त) चिंतवद् वर्बु-ओपवू
वीसर (वि+स्मर् ) वीसरवूपवस् (प्र+वस्) प्रवास करवो
भूली जर्बु उवचिठ्ठ (उप+तिष्ठ) उपस्थित संम्हर् ( सं+स्मर ) संभारवंरहेQ-सेवामां हाजर रहे,
याद कर
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
खण् (खन) खणवु-खोदवू पा (प्र+आप) पामवु-प्राप्त करवू वक्खाण (वि+आ+ख्यान )
वखाणQ - विस्तारथी
कहेवु-वखाण करवां तच्छ् (तक्ष) तासर्बु-छोलवू
अणुसास् (अनु+शास्) शिक्षण
आपq-समझाववू संबुज्झ (सं+बुध्य) समझg वण (वन) वणवू-भात पाडीने
वणवू कूअ ( कूज ) कूकू करवु-कूहू
कुहू करवू
वाक्यो कुंभारनुं कुल पण उत्तम थशे. कुशळ तरनारो तळावने वणजारो गामेगाम प्रवास पोताना बे हाथे तरशे.
करशे अने वस्तुओ वेचशे. कामळीयाना शरीर ऊपर लूहार लोढाने घडशे.
कामळ अने लोबडीशोभशे. नमि, विद्यार्थीओने अने।
त्यागी पुरुषो पण आगथी ऋषिओने मध आपशे.
मुंझाशे. साळवी पटोळां, मलीर अने
उनाळाना दिवसोमां कोयल घरचोळांने वेचशे.
आंवा ऊपर कुहू कुहू करशे. सुतार लाकडांने छोलशे अने बधा धर्मना महर्षिओए एम पछी घडशे.
कडं के वनस्पतिमां अने गृहस्थो, ब्राह्मणने अने साधु- पाणीमां जीव छे. ओने अन्न आपशे.
गुरु विद्यार्थीओने तेमनो श्रमण महावीर, कुंभारने __ पाठ समझावशे.
अने मोचीने धर्म समझावशे तेली तलने पीलशे अने तेल सरयो सुगंधी वस्तुने वेचशे. वखाणशे.
सोनी सोनानां अने रूपानां मोची, मारा माटे पगरखां घरेणां घडशे अने तेमने सीवशे.
तासशे.
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
भिक्षुओ अने ब्राह्मणो, नाना आ आंबो शियाळामां फळशे. कंथवाने पण मारशे नहि. तमे बे दयाळु अने कृतज्ञ मारा दुःखी जीवननु औषध थशो. धर्म थशे.
ऋषिओ कमंडळथी शोभशे. माळी शेठने घरे तेना बगी.
आ राजामां कांइ मणा नथी. चाना फूलो लइ जशे.
जेओ पोताना भोगोने हुँ पहाडना शिखरे चंद्रने
छोडशे तेओने लोको त्यागी जोईश. तळावमां झाडनां पांदडां
कहेशे. पड्यां तेथी तेनु पाणी
मारो सोनी घरेणांने ओपशे. सारुं नथी.
सर्वशनुं मन कोमळ होय छे. मिथिला नगरी अग्नि वडे केटलीक वनस्पतिओ उना. बळी अने ते नमि राजाए ळामां फळशे अने तेमने जोयुं.
तुं खाईश. वांदराओ आंबाना झाडमां कणबी खेतरने वारंवार
खोदशे. उनाळामां सूर्यनो प्रचंड ताप हवे हुँ पान खाईश, ते तेनो सपशे.
पाठ समझशे अने तमे तंबोळी तंबोळ वेचशे अने पाणी पीशो.
अमे तंबोळ खाईभैं. त्यां बधे पीलुनां वृक्षो शोमे विद्यार्थीओनी वच्चे आचार्यो छे अने तेमनी नीचे अमे शोभशे.
बेसीए छीए. विजत्थी भिक्खू य सया ।
मिउं पि गुरुं सीसा चंडं गुरुं उवचिट्ठिस्सइ
पकरंति गुरूणमंतिए सीसो ऊरुणा |
हत्थीसु एरावणं नायमाहु सह ऊरुं न जुजिस्सइ मच्च णरं णेइ हु अंतकाले
कूदशे.
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
रिसी रायरिसिं इमं वयण.
मव्यवी सव्वे साहुणो, गुरुणो अणुः
सासणं कल्लाणं मनिस्संति 'अहं अचेलए सचेलए वा' इइ भिक्खू न चिंतिस्सह सब्वे जणा अंबस्स तरूं वक्खाणिस्संति मज्झे मज्झे तुं बोल्लिस्ससि, तुमे नच्चिस्सह, सो य
गाइस्सति वाणिजारा अम्हे गामे गामे वाणिजं करेहामो वत्थूई
च विक्केहिमु अम्हे लोहारा लोहं तावि. हिस्सा तस्स च सत्थाणि घडेहिमो माहणा पाणिणो पाणे न हणिस्संति
| अह अम्हे समणं वा माहणं
वा निमंतिस्सामो सो सक्खं मूढो किमवि न संबुझिहिइ तुमं वत्थं सिव्विस्ससि, अहं च पट्टोलं वणिस्सं अहं सोवणिओ सुवणं सोहिहामि तस्स च आभ. रणाई घडिहिमि आसी भिक्खू जिइंदियो दंडेहि वित्तेहि, कसेहि चेव अणारिया तं रिसिं तालयंति ताहे सो कुलवती समणं महावीरं अणुसासति, भणति य-कुमारवर! स. उणी ताव अप्पणियं गेहूं रक्खति रायरिसिम्मि नमिम्मि नि. “क्खंते मिहिलानयरे सम्वत्थ सोगो आसी
पाठ १३ मो
भविष्यकाळ (चालु) स्वरांत धातुनां भविष्यकाळनां रूपो साधतां त्रीजा पाठमां फक्त स्वरांत धातु माटे जे विशेष साधनिका बतावी के तेनो उपयोग करवो. ते साधनिका प्रमाणे प्रत्येक स्वरांत
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
'धातुनां छ अंगो बने छे अने ए अंगोथी भविष्यकाळना प्रत्ययो लागे छे.
छ अंगोनी समझःविकरण विना
विकरण वाळु १ हो
२ हो पाअ
ने ज अने जावार्छ
ज अने जावाळु विकरणविनानुं
विकरणवाळु ३ होज, ४ होजा ५ होएज ६ होएजा पाज, पाजा
पाएज पाएजा नेज, नेजा
नेएज, नेएजा वगेरे रूपाख्यान [ उदाहरण] १ पु० होस्सं, होइस्सं, होजिस्सं, होजास्स होएजिस्सं
होएस्सं, होजेस्सं, होजस्सं होएजेस्सं
होएज्जासं, होएजस्सं आ प्रमाणे सर्व धातुनां उक्त छ अंगो बनावी उपर्युक रीते सर्व पुरुषनां रूपाख्यानो समझी लेवां.
केटलांक अनियमित रूपाख्यानो कर्-भविष्यकाळमां 'कर' ने बदले 'का' पण वपराय छे अने तेनां बधां रूपो स्वरांत धातुनी सरखां थाय छे तथा प्रथम पुरुषना एकवचनमा ‘काहं' रूप वधारे थाय छे. जेमके; ३ पु० काहिइ. २ पु० काहिसि. १ पु० काहिमि, काहं वगेरे
दा-दा' धातुनां भविष्यकाळ संबंधी बधां रूपो स्वरांत धातुनी सरखां थाय छे. फक्त प्रथम पुरुषना एकवचनर्मा
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाणवू
'वाह' रूप पधारे थाय छे. जेमके: ३ पु० दाहिइ. २ पु० दाहिसि. १ पु० दाहिमि, दाहं बगेरे. सोच्छ (श्रोष्य) सांभळवू वेच्छ (वेत्स्य) वेदवू-अनुभववुरोच्छ (रोत्स्य) रोवू मोच्छ (मोक्ष्य) मुकाबु-छुटुं थर्बु मेच्छ (मेत्स्य) मेदयु-टुकडा करवा भोच्छ (भोल्य) भोजन कर, छेच्छ (छेत्स्य) छेदबु।
भोगवq । दच्छ (द्रक्ष्य) जो-देखg वोक (वक्ष्य) कहेवु-बोलतुं गच्छ (गस्य) जवु-पामवू
मात्र आ उपर्युक्त दस धातुओने 'हि' आदिवाळा (हिमि, हिसि, हिमो, हिम, हिइ वगेरे) प्रत्ययो लगाडतां तेमनी आदिनो 'हि' विकल्पे लोपाय छे. जेमके:
सोच्छ+हिमि-सोच्छिमि, सोच्छेमि, सोच्छिहिमि, मो. च्छेहिमि-वगेरे
वळी, मात्र प्रथम पुरुषना एकवचनमां ज ए दसे धातुओर्नु अनुस्वारवाळू पण एक रूप वधारे थाय छे. जेमके:सोच्छं, सोच्छिस्सं. वेच्छं, वेच्छिस्सं. दच्छं, दच्छिस्तं. वगेरे ___ बाकीनी बधी साधनिका 'भण' धातुनी समान छे.
रूपमख्यान [ उदाहरण ]
एकवचन१ पु० सोच्छं, सोच्छिमि, सोच्छिस्सामि
सोच्छिस्सं, सोच्छेमि, सोच्छेस्सामि सोच्छेस्सं, सोच्छिहिमि, सोच्छिहामि
सोच्छेहिमि, सोच्छेहामि २ पु० सोच्छिसि, सोच्छेसि, सोच्छिहिसि, सोच्छेहिसि
सोच्छिते, सोच्छेसे, सोच्छिहिसे, सोच्छेहिसे
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
३ पु० सोच्छिइ, सोच्छेइ, सोच्छिहिद, सोच्छेहिह
सोच्छिए, सोच्छेए, सोच्छिहिए, सोच्छेहिए इत्यादि. आर्ष प्राकृतमां वपरायेला बीजां केटलांक अनियमित रूपोः
(भोक्ष्यामः) - भोक्खामो (भविष्यति)- भविस्सइ (करिष्यति)-करिस्सह (चरिष्यति)- चरिस्सइ (भविष्यामि)- भविस्सामि (भू-भो+ष्यामि )- होक्खामि
[यादीः काशी मिथिला अने नवद्वीप तरफना लोको 'ष' ने बदले 'ख' नुं उच्चारण करे छे एथी 'ष्यामि' नुं 'ख्यामि' उच्चारण थतां उक्त 'होक्खामि' रूप नीपज्यु जणाय छेः 'ष' अने 'ख' लखवामां सरखा होवाथी प बन्नेना उच्चारणमां पण समानता आवी गयेली लागे छे.]
अमु ( अदस्) आ [ मरजाति ] १ अह
अमुणो अमू
अमवो असो (असौ)
F (अमी) अमओ
अमू ) २ अमुं (अमुम् )
अमुणो । (अमून्)
अमउ
७ अयम्मि) इअम्मि अमुम्मि । (अमुष्मिन्) अमूर्स (अमीषु)
वाकी बधां 'भाणु'नी प्रमाणे.
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
अमु ( अदस् ) आ [ नान्यतरजाति ] . १ अह (अदः) अमूई )
अमर (अमुनि)
ममूणि, २, ,
बाकी बधां ' अमु 'नी प्रमाणे
अमुं
इकारांत अने उकारांत शब्दो [ नरजाति ] सारहि (सारथि) सारथि-रय समत्तदसि (सम्यक्त्वदर्शिन् )
हांकनारो
| सत्यने जोनार-समझनारवरदसि (वरदर्शिन् ) उत्तम रीते
आचरनार जोनार | पसु (पशु) पशु भाराभिसंकि (माराभिशङ्किन् )
विहु (विधु) विधु-चंद्र ___ मार-तृष्णा-भी शंकित रहेनार
जंतु (जन्तु) जंतु-प्राणी-जीवजंत दूर रहेनार-तृष्णाथी डरनारो वाहि (व्याधि) व्याधि-रोग
जोगि ( योगिन् ) योगी-जोगी महासहि (महाश्रद्धिन् ) मोटी- केसरि (केसरिन् ) केसरावाळो अचल-श्रद्धावाळो
याळवाळो-सिंह-केसरीसिंह तवस्सि ( तपस्विन्) तपस्वी मंति (मन्त्रिन् ) मंत्री-कारभारी उवाहि (उपाधि) उपाधि-प्रपंच चकवट्टि (चक्रवर्तिन् ) चक फेर पवासि (प्रकासिन् ) प्रवास करनार
बनार-चक्रवर्ती राजा पहु (प्रभु) प्रभु-प्रभावशाळी समर्थ वसु (वसु) वसु-धन, पवित्र मनुष्य वंतु (सन्तु) तांतणो
संभु (शम्भु) शंभु-सुखनु स्थान' महातवस्ति (महातपस्विन्)
मोटो तपस्वी । शंकु (शक्कु) शंकु-खीलो
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
सामान्य शब्दो [नरजाति] मग्ग (मार्ग) मार्ग-माग मार (मार) मारनारो-तृष्णा
सिमिण (स्वप्न) स्वप्न-सपर्नुदुस्सीस। (दुश्शिष्य) दुष्ट शिष्य
सुविण
सो) दुस्सिस्सा
विद्यार्थी
सिविण) ववहारिअ (व्यवहारिक) वहेवारी
गणहर। (गणधर) गणने धारण
गणधर करनार-समूहनी
वेपारी थेर (स्थविर) स्थिर बुद्धिवाळो
व्यवस्था करनार-आचाय पाकट वयोवृद्ध संत अणागम। (अन्+आगम) न गग्ग (गार्ग्य) गर्गनो पुत्र-ते। अनागम आवq ते-अनागमन नामनो एक ऋषि ।
कण्ण (कर्ण) कान, कानो वेवाहिम (वैवाहिक) वेवाई
विराग (विराग) रागथी विरुद्ध भाव ववहार (व्यवहार) व्यवहार-वेव्हार
-वैराग्य __-वेपार विप्परियास (विपर्यास) विपर्यास
विपरीतता-भ्रांति आर (कांस्यकार) कंसारो
सढ (शठ) शठ-लुच्चो लेहसालिअ (लेखशालिक) निशा- अकम्म ( अकर्मन् ) कर्मरहितळिओ-निशाळे भणवा जनार
निर्मळ-पवित्र सामान्य शब्दो (नान्यतरजाति) रुव (रूप) रूप-वस्तु-पदार्थ
जुम्म । (युग्म) युग्म-जोडं-जोडी कम्म ( कर्मन् ) कर्म-पुण्यपापनी जुग्ग
.-जुमलो प्रवृत्ति
छणपय। (क्षणपद) हिंसा
छणपअS कुंपल (कुड्मल) कुंपळ-फणगो
हिंसानु स्थान
मरण (मरण) मरण-मोत जाण (यान) यान-वाहन
धम्मजाण (धर्मयान) धर्मरूप वाहन मच्चुमुह (मृत्युमुख) मृत्यनुं मुख
-धर्मनुं वाहन, धर्मस्थान मोतनु मोटु
ऊपर ला जवानुं वाहन
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
जोहा (योजित) जोडेछु
जोइय। (योजित) जोडेलु
महब्भय (महाभय) मोटो भय- वयण (वचन) वचन-वेण ___ मोटी बीक
क्यण (वदन) वदन-मुख पुच्छ (पुच्छ) पूंछडी
विशेषण तिम्म । (तिम्म) तीक्ष्ण-तेजदार | उज्झमाण (दह्यमान) दाझतु-बळंतु तिग्ग।
पुण्ण (पूर्ण) पूर्ण भरेलो-संपत्ति पुण्ण (पुण्य) पुण्य-पवित्र काम
वाळो पंत (प्रान्त) अंतनु-छेवटचें-वापरतां तुच्छ (तुच्छ) तुच्छ-रांक-अधूरो
वधेलं पन्नत्त (प्रज्ञप्त) प्रज्ञापेलं-जणावेलु विष्भल (विह्वल) विह्वल-भां- लुक्ख) (रूक्ष) लूटुं, आसक्ति विहल भळो-गभरायेल
लूह
विनानु सीलभूअ (शीलभूत) शीलभूत
सदाचाररूप
अव्यय इत्थं ( इत्थम् ) ए प्रकारे
एअं ( एतत् ) ए तु (तु) तो
उम्पि ) ईसि ( ईषत् ) ईषत्-थोडु इशारा- अवरि । (उपरि) ऊपर
उवारि इह (इह) आमां-अहीं
उवरि) दाणि) वाणिं (( इदानीम् ) हमणां
आजकाल इयाणि)
धातु विहर (वि+हर्) विहरवु-फरवु | अमराय । (अमराय) अमरनी पेठे डस् (दंश) डसवू-करडवू अमराह रहेQ-पोतानी जातने पगम (प्र+गल्भ) प्रगल्भ थq
अमर मानवी बडाइ मारवी
मात्र
श्याणि
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
भइवाअ (अति+पात) अतिपात | अवसीम (अव+सीद) अवसाद करवो-हणवू
पामवो-खूच विसीअ (वि+षीद) विषाद पामवो- लिप्प (लिप्य) लेपावं-खरडावू
खेद करवो | संजम् (सं+यम) सजमवु-संयम कत्य् (कत्थ) कथळ-कहे, वखाणवू
करवो फुट्ट (स्फुट) स्फुट थर्बु-खीलवु
| पडिकूल् (प्रति+कूल) प्रतिकूल फुटी नीकळवू
थq-विपरीत थर्बु विचिंत् (वि+चिन्त) चितवद्- | सर् (स्मर) स्मरण कर
_ विशेष चितव, पमुच्च् (प्र+मुच्य) प्रमुक्त थqविध् (विध्य) वींधवू
तद्दन छूटी जळू उक्कु (उत्+कूर्द) ऊंचे कूदवू
सेव (सेव् ) सेवq अद्धर ऊछळवू
| विज् विद्य) विद्यमान होवू भज्ज (भञ्ज) भांजवू-भांगवू
हिंस (हिंस) हिंसा करवी-हणवू भन्म
| उवे (उप+इ) पासे जवु-पामवं पंडितो हरखाशे नहि अने । हुं ए साचुं कहीश. कोप करशे नहि.
सारथी बळदोने साचवाशे निर्दोष पुरुष उपाधिनी पासे
नहि जशे.
__अने वाहनमा जोडशे. बुद्ध पुरुषो छेवटर्नु अने
राजा धर्मयानवडे साधुना लूटुं अन्न खाशे.
मठ तरफ जशे. अमे बे, ए प्रकारे आचा
तेओ बे, पशुना कान वींधयेने वारंवार कहीशं.
शे नहि. ए विद्यार्थी बडाई मारशे
तेणे वारंवार पाणी पीधु. नहि पण संयम राखशे.
तमे बे, ए मध अने घी न मारधी दूर रहेनारो मर
खाशो णधी मुकाशे. जे तमे कहेशोते हु जोईश महाश्रद्धावाळो तुं विकल
अने सांभळीश. न थईश. तेओ बेए रोज दहिं खाधुं.
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
तपस्वी योगी, न्याधिओधी । जोडेला शठ बळदो वाहनने बीशे नहि.
भांगी नाख मूढ पुरुषो दुःखने लीधे
दुष्ट शिष्यो गुरु पासे जशे . विपर्यास पामे छे.
नहि अने खेद पामशे. बरसाद आवशे त्यारे खेत- तमे बे तीक्ष्ण वचन न रमां फणगा फूटशे.
कहेशो. गार्ग्य मुनि गणधर थशे.
'बधाओने जीवित प्रिय छे' तुकहीश अने हु सांभळीश.
एम कोण नहि अनुभवशे. वीर पुरुष हिंसाथी लेपाशे
मरणनो अनागम नथी.
चक्रवर्तीनो मंत्री धनुषवडे तपस्वी, महातपस्वी साधु
शोभशे. ओने नमशे.
वरदर्शी जिनोए सत्यनो मार्ग वननो केसरी वनना हाथीने
जणावेलो छे. तेना माथामा छेदशे. बाळकोना संगथी सर्युः आचार्य, पूर्ण अने तुच्छ हु कदी रोईश नहि. बन्नेने धर्म कहेशे.
दुष्ट शिष्यो भणशे नहि पण सत्यने जोनार शंभु धनने | निरंतर बडाइ मारशे अने इच्छशे नहि.
कूदशे.
नहि.
समणे महावीरे जहा पुण्णस्स | दुक्खं महब्भयं ति वोच्छं कस्थिहिर तहा तुच्छस्स- जिणस्स वयणाई कण्णेहिं कत्थिहिर
सोच्छं धम्मं वेच्छं
दाणं दाहं, पुणं काहं ततो सुहं भोज्छं
य दुक्ख छेच्छं एगे डसइ पुच्छम्मि, पगे
रूवेसु विरागं गच्छं विध अभिक्खणं । धम्मेण मरणाओ मोच्छ
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०२
वंदिस्सं
वीरो भडो जुद्धं काहिह८६ वीरे छणपएण ईसिमवि न रायगिहं गच्छ, महावीर
लिप्पिहिर
जेहिं अहं विसीएस्सामि तेहिं नवरई बम्हणे पसू वसू य दुसीसेहिं किं मज्झ ?
दाहिद कयावि सुविणे वि न रोच्छं गुरुणो सञ्चमाहंसु
सीलभूओ मुणी जगे विहअकम्मस्स ववहारो न विजइ
रिस्सइ तुमं किं किं पावं, पुण्णं च अह सो सारही विचिंतेहिह
कासी जं वोच्छं तं सोच्छिसे सढे उक्कुहिहिए, पगम्भि- नाऽणागमो मच्चुमुहस्स अस्थि
स्सति च तवेणं पावाई मेच्छं तस्स मुहं दच्छं तेण य सुहं । दुट्ठो विजत्थी तु आयरियाणं
पाविस्सं वयणमभिक्खणं पडिकूलेइ जोइया धम्मजाणम्मि त । सो दुद्धं पासी घयमवि
भजति दुस्सिस्सा महासड्डी अमरायइ
पाठ १४ मो
ऋकारान्त शब्दो ऋकारांत नामोनी बे जात छे-केटलांक ऋकारांत नाम संबंधसूचक विशेष्यरूप छे. अने केटलांक ऋकारांत नाम मात्र विशेषणरूप छे.
८६ संधि तो बे पदोमां ज थाय छे छतां एक पदमां पण संधि थयेला केटलाक प्रयोगो मळे छः- काहि+इ=काही, काहिइ. दाहि+इ= दाही, दाहिइ वगेरे जुओ टिप्पण ६४ मुं.
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०३
जामातृ, पितृ, भ्रातृ वगेरे.
कर्ट,
दात, भर्तृ वगेरे. ऋकारांत - (संबंधसूचक विशेष्यरूप )
१ प्रथमा अने द्वितीयाना एकवचन सिवाय बधी विभ क्तिओमां संबंधसूचक विशेष्यरूप ऋकारांत नामना अंत्य 'ऋ' नो विकल्पे 'उ' थाय छे. जेमके-पितृ-पितु, पिउ. जामातृ जामातु, जामाउ भ्रातृ = भातु, भाउ.
संबंधसूचक विशेष्यरूप मात्र विशेषणरूप
--
--
२ संबंधसूचक विशेष्यरूप ऋकारांत नामना अंत्य 'ऋ'नो बधी विभक्तिओमां 'अर' थाय छे. जेमके - जामातृ-जामातर, जामायर. पितृ = पितर, पियर भ्रातृ = भातर, भायर.
३ मात्र प्रथमाना एकवचनमां उक्त नामना अंत्य 'ऋ' नो 'आ' विकल्पे थाय छे. जेमके पितृ = पिता, पिया. जामातृ = जामाता, जामाया. भ्रातृ=भाता, भाया.
पितृ
४ फक्त संबोधनना एकवचनमां ए नामोना अंत्य 'ऋ' नो 'अ' अने 'अरं' ए बन्ने विकल्पे थाय छे. जेमकेपित ! पितरं ! पितरो ! पितरा ! पिय ! पियरं ! पियरो ! पियरा ! जामातृ - जामात ! जामातरं ! जामातरो ! जामातरा ! जामाय ! जामायरं ! जामायरो ! जामायरा !
भ्रातृ = भात ! भातरं ! भातरो ! भातरा !
भाय भायरं ! भायरो ! भायरा ! ऋकारान्त ( विशेषणसूचक )
―――
-
१ उक्त नियम पेलो अने श्रीजो - संबंधसूचक विशेष्यरूप ऋकारांत नामने लगतो हे ते, आ विशेषणसूचक ऋकायंत नामोने पण लगाडवानो छे. जेमके
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०४
दातृ-दातु, दाउ. कर्तृ-कतु. भर्तु भतु } नियम पेलाप्रमाणे
दाता, दाया. कत्ता. भत्ता } नियम त्रीजा प्रमाणे. २ विशेषणरूप ऋकारांत नामना अंत्य 'ऋ'नो बधी विभक्तिओमां 'आर' थाय छे.जेमके--दातृ-दातार, दायार. कर्तृ-कत्तार• भर्तृभत्तार.
३ फक्त संबोधनना एकवचनमां आ विशेषणरूप ऋकारांत नामोना अंत्य ''नो'अ' विकल्पे थाय छे. जेमके--
दातृ-दाय ! दायार ! दायारो ! दायारा ! कर्तृ = कत्त! कत्तार ! कत्तारो ! कत्तारा! भ४ = भत्त ! भत्तार ! भत्तारो ! भत्तारा !
उक्त बन्ने प्रकारनु ऋकारांत नाम ऊपर जणावेली साधनिका प्रमाणे प्रथमाथी सप्तमी सुधीनी बधी विभक्तिओमां अकारांत अने उकारांत बने छे तेथी तेना अकारांत अंगनां रूपाख्यानोनी साधनिका 'वीर'नी पेठे समझी लेवी अने उकारांत अंगनां रूपाख्यानोनी साधनिका 'भाणु 'नी पेठे समझी लेवी.
रूपाख्यानो
पिउ, पिअर (पित) एकव०
बहुव० १ पिअरो, पिआ (पिता) पिअरा (पितरः)
पिउणो, पिअवो, पिओ
पिअउ पिऊ २ पिअरं (पितरम् ) पिअरे, पिअरा, पिउणो,
पिऊ (पितृन् ) ३ पिअरेण, पिअरेणं पिअरेहि, पिअरेहिं, पिमरेहिँ पिउणा (पित्रा, पितृणा ?) पिऊहि, पिऊहिं, पिहि
(पितृभिः)
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
-४ पिअरस्स
पिउणो, पिउस्स (पितुः पितृणः १ ) ५ पिअरतो, पिअराओ, पिअराउ, पिअराहि, पिअराहितो, पिअरा
पिउणो, पिउत्तो, पिऊओ, पिऊड
पिऊहिंतो ६ पिअरस्स
.१०५
(पितृतः पितुः पितृणः १) पिऊसुंतो
पिअराण, पिअराणं पिकण, पिऊणं ( पितॄणाम् )
पिअरतो, पिअराओ, पिअराउ,
पिमराहि, पिअरेहि, पिअराहिंतो, पिभरेहिंतो,
पिअरासुंतो, पिअरेसुंतो पिउन्तो, पिऊओ, पिऊउ, (पितृतः) पिऊर्हितो ( पितृभ्यः )
पिउणो, पिउस्स,
( पितुः, पितृणः ? ) ७ पिअरंसि, पिअरम्मि, पिअरे, ( पितरि ) पिउंसि, पिउम्मि
सं०पिअरं ! पिअ ! (पितः ) पिअरो ! पिअरा ! पिअर
!
२ दायारो, दाया (दाता)
२ दायारं ( दातारम् )
पिअराण, पिअराणं
पिऊण, पिऊणं ( पितॄणाम् )
पिअरे, पिअरेसुं
पिऊसु पिऊसु ( पितृषु ) पिअरा ! ( पितरः )
पिउणो ! पिअवो, पिअओ, पिअउ, पिऊ
दाउ, दायार (दातृ)
दायारा ( दातारः ) दाउणो, दायवो, दायओ, दायउ, दाऊ दायारे, दायारा दाउणो, दाऊ (वातून )
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
३ दायारेण, दायारेणं दाउणा, (दात्रा, दातृणा)
४ दायारस्स
दाउणो, दाउस्स (दातुः, दातृणः ) ५ दायारतो, दायाराओ,
दायाराउ
दायारा
दायाराहि, दायाराहितो, दायाराहि, दायारेहि दायाराहिंतो, दायारेहिंतो दायारासुंतो, दायारेसुंतो दाउत्तो, दाऊओ, दाऊउ (दातृतः)
दाउणो, दाउतो, दाऊओ
(दातृतः दातुः, दातृणः) दाऊउ, दाऊहिंतो
१०६
दायारेहि दायारेहिं, दायारेहिँ दाऊहि, दाऊहिं, दाऊहिं दायाराण, दायाराणं दाऊण, दाऊणं ( दातॄणाम् )
दायारतो, दायाराओ, दायाराउ,
६ दायारस्स दाउणो, दाउस्स (दातुः दातृणः ) ७ दायारसि, दायारम्मि, दायारे (दातरि )
दाउसि दाउम्म सं० दायार ! दाय ! (दातः ) दायारो ! दायारा !
दाऊहिंतो, दाऊसुतो, (दातृभ्यः) दायाराण, दायाराणं दाऊण, दाऊणं, (दातॄणाम् )
दायारेसु, दायारेसुं
दाऊसु, दाऊसुं (दातृषु)
दायारा ! (दातारः) दाउणो, दायवो, दायओ, दायउ, दाऊ
ऊपरऊपरथी जोनार एम समझशे के, ऋकारांत नामनां संस्कृत रूपाख्यानो अने आ ऋकारांतनां प्राकृत-रूपाख्यानो
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
वो बहु थोडं मळतापणुं छे. पण खरी रीते तेम नथी.. कारण के प्रकारांतनां संस्कृत रूपाख्यानोनी साधनिकाने व्यापकरूपमा लईए तो तेने ज मूळ आधार तरीके अवलंबीने उक्त बधां रूपो उच्चारणना मेदथी तैयार थयां छे. जेमकेसंस्कृतमा विशेषणवाचक ऋकारांत नामना अंत्य 'ऋ' नो 'आर' थाय छे अने संबंधवाचक विशेष्यरूप ऋकारांत नामना अन्स्य 'ऋ' नो 'अर' थाय छे ते ज पद्धति प्राकृतमा छे. मात्र ते 'आर' अने 'अर' संस्कृतमां प्रथमार्मा अने द्वितीयाना एकवचन-द्विवचममां थाय छे अने 'अर' सप्तमीना एकवचनमां पण थाय छे त्यारे प्राकृतमां, ते बन्ने (आर-अर), विभक्तिमात्रमा थाय छे.
वळी, प्राकृतमा 'ऋ' नुं उञ्चारण ज नथी तेथी 'पितृ' के 'दात' वगेरे शब्दोना अंत्य 'ऋ' नो 'उ' थतां तेनां 'पितु' के 'दातु' वगेरे अंगो बने छे अने तेमांनो 'त्' लोपातां पिउ' के 'दाउ' अंगो पण थाय छे. आ रीते 'पिउ' के 'दाउ' वगेरेनो 'पित' वा 'दात' वगेरे शब्दो साथे सीधो संबंध छे.
तथा, संस्कृतमां नान्यतरजातिवाळा विशेषणवाचक ऋकारांत शब्दनां 'दातृणा' 'दातृणः' वगेरे 'ण' वाळां वैकल्पिक रूपो नीपजे छे अने ते रूपोनी साथे 'दाउणा' 'दाउणो' वगेरे 'ण' वाळां प्राकृत रूपोनी ठीक ठीक समानता छे ए ध्यानमा राखवा जेतुं छे. अथवा आगळ (पृ० ७८) इकारांत उकारांत रूपोनी साधनिकामां जे रीते 'णो' नी उपपत्ति समझावी छे ते रीते पण ए दाउणा, दाउणो वगेरे रूपो संस्कृत रूपो साथे गाढ संबंध धरावे छे. ए रूपोनो संस्कृत रूपो साथेनो गाढ संबंध नीचेनां उदाहरणोथी विशेष स्पष्ट थशे:
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
सं०
पिता
सं० प्रा०
प्रा० पिआ
दाता वाया पितरः पिअरा
दातारः दायारा
दातारम् दायारं पितरम् पिअरं
दातृन् दातू, दाऊ पितृन् पितू, पिऊ
दातृणा दातुणा, दाउणा पितृभिः पितूहि, पिऊहि दातृभिः दातूहि, दाऊहि पितृणाम् पितूण, पिऊण दातृणः दातुणो, दाउणो
दातृणाम् दातूण, दाऊण पितरि पिअरे
.. दातरि दायारे पितः पित!, पिअ!!
पि ।। दातः दातः
दात ! दाय! [यादी:-पिआ, पिअरं वगेरे रूपोमां 'आ' के 'अ' ने स्थाने 'या' के 'य' नु पण चलण छे. पिआ, पिया. पिअरं, पियरं. पिअरे, पियरे वगेरे]
संबंधवाचक ऋकारांत [नरजाति] भायर} (भ्रातृ) भाई पिर } (पितृ) पिता
है(जामात) जमाइ
विशेषणवाचक प्रकारांत [नरजाति] दाउ ।
भत्तार) भरतार
पोषण करनार कतार (क) करनार
___ अकारांत [नान्यतरजाति] . ऋकारांतनां 'कत्तार' वगेरे अकारांत अंगनां रूपाख्यानो
जामाउ जामायर
जाना जमा
भत्त । (भर्तृ) भर्ता
दायार । (दार) दातार
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०९
पेली बे विभक्तिमां ' कमल 'नी जेवां समझवानां छे अने 'कन्तु ' वगेरे उकारांत अंगनां रूपाख्यानो मात्र पेली बें विभक्तिना बहुवचनमां ' महु 'नी जेवां समझवानां छे तथा बाकी बधां संबोधनसहित रूपाख्यानो नरजातिक रूपाख्यानो प्रमाणे साधी लेवानां हे. जेमके
अकारांत अंग - दायार
दायाराणि, दायाराई, दायारा दायाराणि, दायाराई, दायाराई दायाराणि, दायाराई, दायाराह बाकी बधां नरजाति प्रमाणे
उकारांत अंग- दाउ
१ दायारं
२ दायारं
सं० दाय ! दायर !
[ यादीः उकारांत अंग एकवचनमां वपरातुं नथी. जुओ पाठ १४ नि० १]
१-२ सं०
} वाऊणि, वाकई णि दाऊ (दातृणि)
अकारांत अंग- सुपिअर (सुपित)
१ सुपिअरं २ सुपिअर
सुपिअराणि, सुपिअराई, सुपिअराइँ सुपिअराणि, सुपिअराई, सुपिअराइँ
सं० सुपिअरं, सुपिअर ! सुपिअराणि, सुपिअराई, सुपिअराइँ
सुपिr !
उकारांत अंग- सुपिउ (सुपित)
सं०
१-२ ( सुपिऊणि, सुपिऊ, सुपिऊहैं ( सुपितृण )
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
११०
सामान्य शब्दो [नरजाति] क्ख (कुक्षि) कूख
धन्न (धान्य) धान्य
उट्ट (उष्ट्र) उंट वाणिअ (वाणिज) वाणिओ
वच्छ (वत्स) बच्चु-संतान-वाछडो धणि (धनिन् ) धनवाळो-धणी
वच्छयर (वत्सतर) वच्छेरो बहिणीवह (भगिनीपति) बनेवी
अंध । (अन्ध) आंधळो नेहालु (स्नेहाल) नेहाल-स्नेहाळ अंधला
-स्नेहवाळो देवर (देवर) देवर-देर-दियर छाइल्ल । (छायालु) छायाळ- जेह (ज्येष्ठ) मोटो, जेठ छायालु
छायावालं
रुक्ख (वृक्ष) रुंख-झाड जडालु (जटाल) जटाळु-जटावालु
मरहट्ट (महाराष्ट्र) मोटो देश, रसाल। (रसाल) रसाळ-रसवाडं
महाराष्ट्र देश रसालु)
मरहट्ठीअ (महाराष्ट्रीय) महाराष्ट्रनो अग्गि (अमि) अग्नि-आग
. वतनी-मराठी लोक रस्सि (रश्मि) राश-लगाम मूअ (मूक) मूंगो झुणि (ध्वनि) झण-झणझणाट, घोडअ (घोटक) घोडो
___ अवाज-ध्वनि तुरंगम (तुरंगम) तरत जनारअचि (अर्चिस्) आंच-जाळ
___ तुरंग-घोडो आस (अश्व) अश्व-घोडो
अक्क (अर्क) सूर्य, आकडान झाड पोट्टिय (पौष्टिक) पोठिओ-महादे
नग्ग (नम) नागो, लुच्चो वनो पोठियो
सुर? (सुराष्ट्र) सोरठ देश कवडु (कपर्द) कोडो-कोडी सुरठीअ (सुराष्ट्रीय) सोरठनो
सोरठी (सौराष्ट्रीय) वतनीगह (गर्दभ) गधेडो
सोरठी लोक सामान्य शब्दो [नान्यतरजाति] अंसु (अश्रु) आंसु । सथिल्लो (सक्थि) साथळ लोहिअ (लोहित) लोही - सनि ।
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
तालु (ताल) ताळवू
जोव्वण (यौवन) जोवन-यौवन दारु (दारु) दारु-लाकडं
दीवेल्ल । (दीपतैल) दीवेलचार । (द्वार) बार-बारj
दीवतेल्ल दीवो बाळवानुं तेल दुवार)
कोहल (कूष्माण्ड) कोलु णडाल (ललाट) निलाट-ललाट दहण (दहन) देण-दहन-आगभाल (भाल) भाल-कपाळ ललाट
बळवं वरिस (वर्ष) वरस
तेल्ल (तेल) तेळ दिण (दिन ) दिन-दन-दनियु- | तंब (ताम्र) तांबु
दिवस | कंजिय (काजिक) कांजी
विशेषण पढम (प्रथम) प्रथम-परथम सवाय (सपाद) सवायु-सवा.
दियड्ढ ) (द्वितीयाध) जेमा एक बिहज (द्वितीय) बीजु-दूजु
आलुं अने बीजें
दिवड्ढ) अडधं छे ते-दोढ दुइज
अड्ढीअ ) (अर्धतृतीय) जेमां तइय । (तृतीय) त्रीजुं
अड्ढाइअबे आखां अने त्रीजु
अड्ढाइज अडधुं छे ते-अड्ढी चउत्थ (चतुर्थ) चो)
अधुट्ठ (अर्धचतुर्थ) जेमां त्रण पंचम (पञ्चम) पांचमुं
आखां अने चोधुं अडधुं छे छट्ट (षष्ठ) छट्टुं
ते-उंठ-साडात्रण सत्तम (सप्तम) सातमुं
रत्त (रक्त) रातुं-रंगेलं भट्टम (अष्टम) आठमुं
ठड्ढ (स्तब्ध) टाढो-ठंडो-स्तब्ध नवम (नवम) नवमुं
-जड-थंभी गयेलं इसम (दशम) दशमुं
बिझ्य)
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
हवा
अव्यय अहव । (अथवा) अथवा आम (आम) हा स्वीकार
अंतो (अन्तर्) अंदर अवस्सं (अवश्यम् ) अवश्य-अचूक | इओ (इतः) आथी, एथी, वाक्यनी मत्थं (अस्तम् ) आथमवु-अदर्शन
आरंभ, आ बाजुयीं पगया (एकदा) एकवार
केवलं (केवलम्) केवळ-नकरुं कहि, कहिं (कुत्र) क्यां-कहीं । तहि, तहिं (तत्र) त्यां-तहीं
धातुओ अच्चे (अति+इ) अतीत थर्बु- ) संपाउण (संप्राप्नु-सम्+प्र+आप्नु) पार पामवं
- सारी रीते पामवं पडिव ( प्रति+पय ) पाम
आयय् (आ+दय) आदान करई
स्वीकारवं को (कोप) कोप करवो, कुपित
परिदेव (परि+दिव) खेदः करको कर
विहड़ (वि+घट) बगडवु-नारा आगम् (आ+गम) आवq
विघड
पामवों अहिट्ट (अधि+स्था-तिष्ठ) अधि
____ष्ठान मेळवq-ऊपरी थर्बु पक्खाल् (प्र+क्षाल) पखाळवू-धोवू पा (एष) एषणा करवी-शोधq समारंभ (सम्+आ+रम्भ) समापरिव्यय (परि+वज) परिव्रज्या
रंभ करवो-हणवू लेवी-बंधन रहित थइ चारे कोर णिविज् (नि+विद्य) निर्वेद
फरखं
पामवो
-
वाक्यो मराठाओ ठंडा नथी मारो बाप जटावाळा मुनिने मोनो ए गधेडो रंगेलो के
पाणी आपशे घोडो, पोठियो अने उंट अमारा बनेवीनो पुत्र बरसे धान्य खाशे
वरसे धन पामशे
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
तमारा भाईए पोताना | तारो बाप अने तेनो भाई
जमाईने सवायुं आप्यु केवळ लाकडा माटे लड्या. मारा बापना भाइनो घोडो तांबा अने लोढामां लोदु. दोड्यो अने पड्यो
उत्तम छे. अमारा भाइओमां स्नेह नथी तेना अने तारा कपालमां ते मुंगाना भाइने तारा अथवा साथळमां में भाइप पखाल्यो
सारां लक्षणो जोयां. अढी वरसे, साडा त्रण मासे त्यां आकडाना झाडनी पासे अने दोढ दिवसे अमे
बीजुं छायावाळु अने ___ आवशुं
रसवाळु एक झाड छे. तमारो जमाई दिवसे दिवसे
एकवार सातमे वरसे ते निर्वेद पामे छे तेथी
• दातारे बधुं धन आप्यु. तमारुं कुटुंब खेद पामेछे
घरमा कांजी क्या हशे? पांचमे के आठमे दिवसे ते
मराठा लोको मानने ग्रहण
जशे मुनि मरणनो पार पाम्यो ।
करे छे. ममे पिताने कुपित नहि करीशुं
घोडानी लगाम कूवामां
पडी गइ. तेनो भाई अने जमाई लुच्चा छे सोरठी लोको स्नेहाळ छे
रातो घोडो अने रंगेलु उंट चोथानी अंदर साडा त्रण छे
मार्गमा दोडशे. अमे शब्दोने ताळवा वडे तमारा भाइए प्रव्रज्या लीधी
बोलीशं अने मारो भाई सोरठमा आगनी आंचमांदीवेल पडशे.
ऊपरी थयो. सुरहीआ कोहं न काहिंति मूओ केवलं कंजिअं पाहिए तुम्हे सोरठीए घोडए
दुवारंसि कोहलं पडिहिद वक्खाणेह सोवण्णिओ दहणंसि तवं
गड्डहो तुरंगमो य दोनि खिवित्था ।
भायरा संति
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
११४
दिणे दिणे तुम आसं च । मम भाउणो भालं विसालपक्खालिस्सं
मत्थि तेल्लेण दीवा दीवहिति तस्स छटो भायरो न परिः
व्वयिहिए सो तुज्झ भाया तस्स जामा
अहं बिइज्जे दिणे दीवेलं ऊहिं सह मच्छीअ
पाएहिमि तस्स पिउणो भाउणो य
मम बहिणीवई एगया धणं जोव्वणं विघडीअ
संपाउणित्या मरहठ्ठीआ लोहं चयंति पिअ ! मम वयणं न सुणिसत्तमंसि वरिसंसि आगमिस्सं|
हिसि?
मो८७
पाठ १५ मो विध्यर्थ अने आज्ञार्थ
प्रत्ययो एकवचन
बहुवचन १ पु० मु
८७ 'मु अने 'मो' आ बन्ने प्रत्ययो वर्तमानकाळना बहुपचनना प्रत्ययोने मळता आवे छे (जुओ पाठ २ जो) भाषानी प्राकृतताने लीधे ज वर्तमानकाळना प्रत्ययो पण विध्यर्थ अने आज्ञार्थना भावमा मेळाइ गया छे. संस्कृतमां तो वर्तमानकाळ, विध्यर्थ अने आज्ञार्थना प्रत्ययो तद्दन जुदा जुदा छे, ते विध्यर्थ अने आज्ञार्थना संस्कृत प्रत्ययो साथे आ 'मु' 'मो' प्राकृत-प्रत्ययोनी नहि जेवी ज समानता छे माटे ए बे बच्चेनी सरखामणी अहीं नथी जणावेली.
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
२ पु० सु (स्व) हि (हि)
इज्जसु इज्जसि, इज्जासि इज्जहि इजाहि इजे
३ पु० उ, तु (तु) ए ( एत् ) एत एय (ईत )
वज्जू ( बजे) वर्जवु-तजी देवु
कोव् (कोप्) कोपाववुं
सेव् (सेव्) सेववु - धारण क
आश्रय लेवो
छिंदू (छिनद् ) छेदधुं - हणवुं -
मारखं
११५
धातु
ह (ध्वम्,
त)
न्तु ( अन्तु, अन्ताम् )
लभ् (लभ्) लाभवुं -- मेळववु भव् (भव्) थवुं - होवु गवेस ( गवेष्) गवेष - शोधवु विकिर्) (वि + किर्) वेखु विहरू विष्णजहू (वि + प्र-जहा)
त्याग
करवो दूर करं
८८ क्यांय क्यांय आर्षप्राकृतमां बीजा पुरुषना एकवचनमां 'जाएहि ' प्रत्यय वपरायेलो छे ते, आ 'इज्जाहि' प्रत्ययना उलटासुलटा उच्चारणनुं परिणाम जणाय छे. जेमके :- " मम ते सालिअक्खए पडिनिजाएहि " - " मारा ते चोखा पाछा आप" आमां पडि+नी+एज्जाहि = पडिनिएजाहि थवाने बदले 'पडिनिज्जा एहि' थयुं छे. इज्जसि, इज्जासि, इज्जहि, इज्जाहि अने इज्जे आ प्रांचे प्रत्ययो लागे छे तो जुदा जुदा पण विचार करतां ते पांचेनुं मूळ एक ज जणाय छे. एक 'इज्जासि' प्रत्ययने पण ए पांचेनुं मूळ कल्पी शकाय खरो, पालिभाषामा प्राकृत 'इज्जासि' अर्थमां 'एय्यासि' प्रत्ययनो उपयोग छे अने 'इज्जासि' तथा 'एय्यासि ए बने तो तद्दन मळता ज छे, प्रा. हसेज्जासि अने पा० हसेय्यासि - ए बन्ने मां कशो भेद ज क्यां छे ?
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर
कप्प (कल्प) खपवू-उपयोगमां लेबुं । जिण् (जि) जीतQ-जय मेळववो हण (हन् ) हणवू
खल् (स्खल) स्खलित थq-दूर थवं कुव्व् (कुरु) करवू
निद्धण् (नि+धुना) खखेर-दूर पास्) (स्पश्-पश्य) जोवू पस्स
वस (वस्) वसवु-रहे, संजल् (सं+ज्वल्) बळवं-कोप
संपाउण् (संप्राप्नु-सम्+प्र+आप+न) ___ करवो
संप्राप्त कर-पामवं पम् (एष्) एषवू-शोधq गच्छु (गच्छ्) जवु-पामवं
पमाय् (प्र+माद्य) प्रमाद करवोअहिह (अधि+ष्टा) अधिष्ठित थq
आळस करवी अधिकार मेळववो / विणस्स् (वि+नश्य) वणसी जर्बुमा (मी) बी
__ नष्ट थq-बगडवू १ उपर्युक्त बधा प्रत्ययो लागतां धातुना अकारांत अंगनां
अंत्य 'अ' नो 'ए' विकल्पे थाय छे. जेमके:-हस्+उहस्+अ+उ-हसेउ, हसउ. हस्+मो-हस्+अ+मो-हसेमो, हसमो. ['अ' विकरण माटे जुओ पाठ १ नि० १] २ प्रथम पुरुषना प्रत्ययो लागतां धातुना अकारांत अंगना
अंत्य 'अ' नो 'आ' तथा 'ई' विकल्पे थाय छे. जेमकेहस्+मु-हम-अ+मु-हसामु, हसिमु, हसमु ३ बीजा पुरुषना स्वरथी शरू थता (इजसु वगेरे) प्रत्ययो
अकारांत अंगने ज लागे छे. जेमके:हस्+अ+इजसु-हसेजसु जा+सु-जासु । हसू+अ+इजसि-हसेजसि| जा+हि-जाहि अत्युदाहरण [यादीः जेमने छेडे 'अ'कार नथी एवा जा' वगेरे धातुओने 'इजसु' वगेरे प्रत्ययो नथी लागता] ४ अकारांत अंगने लागता 'हि' प्रत्ययनो प्रायः लोप थाय
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
छ अने क्यांय ए अंगना अंत्य 'अ' नो 'आ' पण थाय छ:
हस्+अ+हि-हस. गच्छ+अ+हि-गच्छाहि ५ कोइक ज प्रयोगमा श्रीजा पुरुषनो (एकवचननो) 'उ' के 'तु' प्रत्यय लागता पूर्वना 'अ' नो 'आ' पण थाय छे: सुण+अ+उ-सुणाउ, सुणउ, सुणेउ
रूपाख्यान एकव०
बहुव० १ पु० हलमु, हसामु
हसमो, हसामो हसिमु, हसेमु
हसिमो, हसामो २ पु० हससु, हसेसु
हसह, हसेह हसाहि, हसहि, हस हसिजसु, हसेजसु हसिजसि, हसेजसि हसिजासि, हसेजासि हसिजहि, हसेजहि९ हसिजाहि, हसेजाहि
हसिज्जे, हसेज्जे ३ पु० हसउ, हसेउ
हसंतु, हसेतु, हसिंतु हसतु, हसेतु हसे, हसए हसेत हसेय सपुरुष हसेज, हसेजा
[ज, जा माटे जुओ पाठ ३ नि० ६
-
-
___ ८९ हस्+अ+इजहि-हसेज्जहि [स्वरलोप अने 'इ' ना 'ए' माटे । जुओ टि. १० मुं अने ५ मुं]
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३मा पाठमां बताव्या प्रमाणे प्रत्येक स्वरांत धातुना छ अंगो बनाववां अने ए तैयार थयेलां अंगो द्वारा प्रस्तुत विध्यर्थ अने आज्ञार्थनां रूपो साधी लेवां जेमके:
अंग
होअ-होअमु, होआमु होअमो, होआमो
होइमु, होएमु होइमु, होएमो होएज होएजमु, होएजामु होएज्जमो, होएजामो होएजा होएजिमु, होएज्जेमु होएजिमो, होएज्जेमो हो- होमु
होमो होज । होजमु, होजामु होजमो, होजामो होजा) होजिमु, होज्जेमु होजिमो, होज्जेमो [विकरण 'अ' तथा ज, ज्जा माटे जुओ पाठ ३ नि० ७-८]
पूर्व प्रमाणे 'हो' वगेरे बधा स्वरांत धातुओनां छ अंगो बनावी विध्यर्थ अने आज्ञार्थनां बधां रूपो साधवानां छे.
सामान्य शब्दो नरजाति
___नान्यतरजाति आयरिय (आचार्य) आचार्य-धर्म- सावज (सावद्य) पापप्रवृत्ति
गुरु, विद्यागुरु । सासुरय (श्वाशुरक) सासरूं-सासपाण (प्राण) प्राण-जीव
रानुं घर पाणि (प्राणिन् ) प्राणी
निवाण (मिपान) नवाण-जलाशय असंजम (असंयम) असंयम विहाण (विभान) वहाणुं-प्रात:अप्प ( आत्मन् ) आत्मा-आप
काळ-सवार पोते अंडय (अण्डक) इंड हरिण (हरिण) हरण
पल्लाण (पर्याण) पलाण दाडिम (दाडिम) दाडम
सल्ल (शल्य) साल तिल (तिल) तल
चउव्वट्टय (चतुर्वर्त्मक) चौटुंकेअ (छेद) छेडो
चार रस्ता
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
बोकड (बर्कर) बोकडो-बकरो
चेण्ह (चिह्न) चेन-चाळा गम्भ (गर्भ) गाभो
छिद्दय (छिद्रक) छींड पायय (पादक) पायो वंसम (वंशक) वांसो-पीठ
मोत्ति (मौक्तिक) मोती वोज्झ (वय) बोजो
अमिअ (अमृत) अमी-अमृत भारय (भारक) भारो
घय (घृत) घी चित्त (चित्र) एक सारथिनुं नाम
विशेषण लण्ह (लक्ष्ण) नानुं
तिण्ह (तीक्ष्ण) तीj-अणीदार पोअ (प्रोत) परोव्यु-परोवेलु
अहिनव (अभिनव) अवनवु-नवीन पत्त (प्राप्त) पहोत्यु-पहोच्यु
उच्छि ? (उच्छिष्ट) एलु-अजीठ
तंस (त्र्यस्र) त्रांसु-त्रिकोण
अव्यय णवर -नयु-केवळ
तहिं (तत्र) त्यां-तई णाणा (नाना) अनेक प्रकारनु जहिं (यत्र) ज्यां-जई बहिद्धा (बहिर्धा) बहार | कहि (कुत्र) क्या-कई
चउरस ) (चतुरस्र) चोरस
वाक्यो तुं इंडाने न हणजे. पोते पोताने शोध बहार ते पापप्रवृत्तिने न करे.
न भम. हे चित्र ! जा अने हरणने तेनां बधां शल्यो बळो.
शोध. सवारमा तमे सासराने घेर मुनि असंजमने वर्जे.
जजो. तुं चौटामां जा अने दाड- गाभामांथी ब्राह्मणना तल मने लाव.
वेराया.
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेने माथे गाभानो भार मूक. पापोनो छेडो क्यां छे ? तेनी त्रांसी आंखमां तीं शल्य पडघुं. बागना छींडामांथी हरणो
अने बोकडा आवशे. ब्राह्मण ! बोकडानो होम न कर पण तलनो होम कर. सर्व भूतोमां प्रेम करो. प्राणीना प्राण न हणो.
सो गामं पत्तो सावज्रं वज्जप मुणी
ण कोवप आयरियं न हणे पाणिणो पाणे. संनिहिं न कुविजा माहणो संवुडो निध्धुणे पावस्स रजं सव्वं गंथं कलहं च विप्पजहेत भिक्खु किं नाम होज तं कस्मयं
जेणाहं णाणा दुक्खं न गच्छेजा
१२०
घरना पायामां घी नाख. परोवेलां नवां मोतीनो हार जो. घोडा ऊपर पलाण राख. पाणीनां नवाण तो सौ बांधे छे तमे घीनां नवाण बांधो. बकरो चाळा करे छे अने पठ्ठे खाय के. तेना वांसामां नानो तल छे. ज्यां त्यां चोरस चौटामां
मजूरो बोजो वहे है.
गच्छाहि णं तुमं चित्ता ! वित्तेण ताणं न लभे पमन्ते उत्तम गबेसए बसे गुरुकुले निच्वं असंजमं न सेवेजा जवर भिक्खू न कमवि छिंदे बालस्स बालत्तं पस्स बालाणं मरणं असई भवे सुयं अहिट्टिजा गोयम ! समयं मा पमायप अवि एयं विणस्सउ अन्नपाण न य णं दाहामु तुमं नियंठा !
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १६ मो
विध्यर्थ [चाल] सर्वपुरुष । सर्ववचन
एक मात्र विध्यर्थ बताववा माटे 'जई' प्रत्यय पण वफराय छे अने तेनी पूर्वना अंगना अंत्य 'अ' नो 'ए' थाव छे. जेमके:-हस्ज द-हस्+अ+जर-हसेजा
हो जइ-हो+अजइहोपजह
हो+जान्होजा आर्ष प्राकृतमां वपरायेलां बीजां केटलांक अनियमित रूपो(कुर्यात् ।
सिया या कुजा (स्यात्) . (निध्यात्) निहे (आच्छिन्द्यात् ) अच्छे. ( अभितापयेत्) अभितावे (आभिन्द्यात्) अब्मे ( अभिभाषेत) अभिभासे (हन्यात्) हणिया
विध्यर्थसूचक आ आर्षरूपो, संस्कृत सिद्धरूपोनां मित्र भिन्न उच्चारणोमांथी सधायेला छे ए हकीकत, तेमनी सामे आपेलां संस्कृत रूपो ज जणावी आपे छे.
धातु
उवणी (उप+नी) पासे लई जq । वाव (वाएं ) वाक्वु, ववरावQ पञ्चप्पिण् (प्रत्यर्पण-प्रति+अर्पण) तूर (त्वर) त्वरा करवी-झपाटाबंध
पार्छ सोंपवू पडिनी । (प्रति+नी) पार्छ देवू- संदिस् (सम्+दिश्) संदेशो आपरिणी सामु देवु-बदले देवू
पवो-सूचन कर घर् () वर-स्वीकारवु-वरदान उवदंस (उप+दर्श) देखाडवू-पासे
जइने बतायु
लेवु
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुज्ञा
अणुजाणू (अनु + जाना) आपवी - संमति आपवी
१२२
सर्व पुरुष सर्व वचन
एकवचन
क्रियातिपत्ति
ज्यारे परस्पर संकेतवाळां बे वाक्योनुं एक संयुक्त वाक्य बनेलुं होय अने तेमां जणाती बन्ने क्रियाओ कोइ मात्र सांकेतिक क्रिया जेवी अशक्य भासती होय त्यारे क्रियातिपतिनो प्रयोग थाय छे. क्रियातिपत्ति पटले क्रियानी अतिपत्ति - असंभवितता. क्रियानी असंभवितताने सूचववा ज क्रियातिपत्तिनो उपयोग थाय छे.
प्रत्ययो
संवड्द् (सं+वर्ष्) संवर्धन करपोषं - साचव
चिणा ( चिनु) चणवुं - एकटुं क
candi
न्तो, माणो, ज्ज, ज्जा, बहुवचन
भणभणतो, भणमाणो हो-होअतो, होअमाणो होतो, होमाणो
भण्-भणेज्ज, भणेजा
हो-होपज, होएजा, होज, होजा
भणंता, भणमाणा
होता, होअमाणा
[ यादी : - क्रियातिपत्तिनो बहुवचनी प्रयोग वांचवामां के जोवामां नथी आव्यो छतां अहीं जे बहुवचनी रूप बताव्यां के ते मात्र कल्पनाथी समझवानां छे. ]
आकारांत इकारांत ईकारांत उकारांत अने ऊकारांत नामो [ नारीजाति ]
प्राकृतमां आकारांत नामो बे जातनां छेः-केटलांक आकारांत नामोनुं मूळरूप अकारांत होय छे अने नारीजा
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२३ तिने लीधे तेओ आकारांत बनेलां होय छे त्यारे बीजां केटलांक आकारांत नामोर्नु मूळ रूप तेवु-अकारांत-नथी होतुं पण तेओ बीजी रीते आकारांत थयेलां होय छे.
आ नीचे ए बन्ने जातनां आकारांत नामोनां रूपो मापेलां छे. जेओ मूळथी अकारांत नथी तेमनुं संबोधनएकवचन प्रथमा विभक्ति जेवू ज थाय छे त्यारे जेओ मूळथी अकारांत छे तेमनुं संबोधननुं एकवचन करतां तेमना अंत्य 'आ' नो विकल्प 'ए' करवामां आवे छे-ए बेय नामोनां रूपोमां बीजो कशो मेद नथी. जेमकेः-ननान्ड-नणंदा-हे नणंदा!
अप्सरस्-अच्छरसा-हे अच्छरसा! सरित्-सरिया-हे सरिया !
सरिआ-हे सरिआ ! वाच-वाया-हे वाया !
माल-माला-हे माले! हे माला!
रम-रमा-हे रमे! हे रमा ! मूळ अकारांत । कान्त-कान्ता-हे कांते ! हे कांता!
देवत-देवता-हे देवते! हे देवता! J मेध-मेघा-हे मेहे ! हे मेहा !
रूपाख्यान माला [मूळ अकारांत ] एकवचन
बहुवचन १ माला-माला (माला) माला+उ-मालाउ
माला+ओमालाओ
माला-माला (माला) २ माला+म्-मालं ( मालाम् ) माला+उ-मालाउ
माला+ओ-मालाओ माला-माला (मालाः)
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२४
३ माला+अ-मालाअ (मालया) माला+हि-मालाहि (मालाभिः) माला -मालाइ
माला+हि-मालाहिं माला+एमालाए
माला+हिमालाहिँ ४ माला+अ-माला
माला+ण-मालाण (मालानाम्) माला इ-मालाइ
माला+णं-मालाणं माला+ए-मालाए (मालायै) ५ माला+अ-माला (मालायाः) माला+इ-मालाइ माला+एमालाए माला+त्तो-मालत्तो (मालातः) माला+त्तोमालत्तो (मालातः) माला+तो-मालातो (:, ) माला+तो-मालातो माला+ओ-मालाओ ( ,,) माला+ओ-मालाओ माला+उ-मालाउ (,) माला+उ-मालाउ माला+हिंतो मालाहिंतो माला+हिंतो मालाहिंतो
(मालाभ्यः)
माला+सुंतो-मालासुंतो ६ माला+अ-माला
माणा+ण-मालाण (मालानाम्) माला+इ-मालाइ (मालायाः) माला+णं-मालाणं माला+ए-मालाए ७ माला+अ-माला(मालायाम् )माला+सु-मालासु (मालासु) माला+इ-मालाइ
माला+सुं-मालासुं माला+एमालाए सं० मालामाले! (हे माले!) माला+उ-मालाउ मालामाला!
माला+ओ-मालाओ
माला+माला (मालाः) वाया (वाक्) [मूळ अकारांत नहि] 'वाया' नां बधां रूपो 'माला' जेवां ज करवानां छे.
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२५
विशेषता मात्र संबोधनमा छः हे वाया! ए एक ज रूप थाय पण 'वाये !' 'वाया ! पवां बे रूपो न थाय.
इकारांत
बुद्धि
१ बुद्धी (बुद्धिः) बुद्धि+उ-बुद्धीउ
बुद्धि+ओ+बुद्धीओ (बुद्धयः)
बुद्धि-बुद्धी २ बुद्धिं (बुद्धिम् ) बुद्धि+उ-बुद्धीउ
बुद्धि+ओ-बुद्धीओ
बुद्धि-बुद्धी (बुद्धीः) ३ बुद्धी
वुद्धीहि बुद्धि+आ-बुद्धीआ (बुद्धया) बुद्धीहिं (बुद्धिभिः) बुद्धी
बुद्धी हि बुद्धीए ४ बुद्धी
बुद्धीण ( बुद्धीनाम्) बुद्धी
बुद्धीणं बुद्धीइ (बुद्धयै) बुद्धीए (बुद्धये) ५ बुद्धी बुद्धीआ (बुद्धयाः)
बुद्धीए (बुद्धेः) बुद्धित्तो (बुद्धितः) बुद्धितो (,) बुद्धीओ ( , ) बुद्धीउ (,)
.
...
बुद्धित्तो (बुद्धितः) बुद्धितो (,) बुद्धीओ (,) बुद्धीउ (,)
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२६
बुद्धीहितो
बुद्धीहितो (बुद्धिभ्यः)
बुद्धीसुतो ६ बुद्धी बुद्धीआ (बुद्धयाः) . बुद्धीण (बुद्धीनाम्) बुद्धीह
बुद्धीणं बुद्धीए (बुद्धेः) ७ बुद्धी
बुद्धीसु (बुद्धिषु) वुद्धीआ (बुद्धयाम् , बुद्धौ) बुद्धीसुं बुद्धीइ बुद्धीए सं० बुद्धी, बुद्धि (बुद्धे !) बुद्धीउ, बुद्धीओ, बुद्धी (बुद्धयः)
ईकारान्त
नदी १ नदी (नदी)
नदी, नदी+आ-नदीआ
नदीउ, नदीओ (नद्यः) २ नदिं (नदीम् ) नदीआ, नदीउ, नदीओ
नदी (नदी) ३ नदी
नदीहि (नदीभिः) नदीआ (नद्या)
नदीहि मदीइ
नदीहिँ नदीए ४ नदी
नदीण (नदीनाम् ) नदीमा
नदीणं नदीइ नदीए (नये)
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
५ नदीअ नदीआ ( नद्याः)
नदीह
नदीप
नदित्तो ( नदीतः)
नदितो
नदीओ
नदीउ नदीहितो
६ नदीअ
""
99
"3
नदीआ ( नद्याः )
नदी
नदीप ७ नदीअ
नदीआ ( नद्याम् )
नदीई
नदीए सं० नदि ! ( नदि ! )
१ धेणू ( धेनुः)
२ घेणं ( धेनुम् )
१२७
नदित्तो ( नदीतः)
नदीउ
नदीतो नदीओ
99
""
नदीहितो (नदीभ्यः ) नदीसुंतो
नदीण (नदीनाम् )
नदीणं
नदीसु ( नदीषु )
नदीसुं
उकारांत
घेणु (धेनु )
नदीआ नदीओ ( नद्यः) नदीउ नदी
घेणू, घेणूउ घेणूओ ( धेनवः) घेणूड घेणूओ धेणू (धेनूः)
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
घेणूड
१२८ ३ घेणूब
घेणूहि घेणूआ (धेन्वा) घेहि (धेनुभिः)
घेणूहिँ घेणूए ४ घेणूअ
घेणूण (घेनूनाम्) घेणूआ
घेणूणं घेणूड घेणूए (धेनवे, धन्वै.) घेणूअ घेणूआ (धेन्वाः, धेनोः)
घेण्इ
घेणूए घेणुत्तो (धेनुतः) घेणुत्तो (धेनुतः) घेणूतो ,
घेणुतो ,. घेणूओ ,
घेणूओ , घेणूउ ,
धेणूउ , घेणूहितो
घेणहितो (धेनुभ्यः)
घेणूसुंतो घेणु घेणूआ (धेन्वाः, धेनोः) घेणूण (धेनूनाम् )
घेणूणं घेणूए घेणूब
घेणूसु (धेनुषु) घेणूआ (धेन्वाम् , धेनौ) घेणूसुं घेणूई
घेणूए सं० घेणू, घेणु (धेनो! )...घेणूड, घेणूओ (धेनवः)
घेणूइ
.
घणू
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
१ वहू (वधूः)
ऊकारांत वर (वधू)
कहउ, वहूमो (क) बहू बहूउ, बहूओ बहू (वधूः) वहूहि (वधूभिः)
३ वहुं (वधूम्)
३ वाम वमा (वध्वा)
वहि
वहुए ४ घडू. वही
वहूण (वधूनाम् ) चरणं
बईए (वध्व)
बहूआ (वध्वाः )
वर्षातो (वधूतः) बहूतो , वहओ ,
वात्तो (वधूतः) वहूतो " वहूओ , बहूत , कहितो (वधूभ्यः) बहूसुते बहूण (वधूनाम्)
बर्हितो
वाहूआ (चवा.)
घणं
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
बहूप ७ वहू
वसुं वहूआ (वध्वाम् ) वसुं वहूइ बहूए सं० वहु (वधु ! ) .........वहूओ, बहूउ ( वध्वः )
नामर्नु अंग अने प्रत्ययनो अंश ए बन्ने छूटा पाडीने ज जणावेलां छे अने साथे ए ऊपरथी साधित थतां दरेक रूपो पण जुदां जुदां बतावेलां छे.
आकारांत, इकारांत, ईकारांत, उकारांत अने ऊकारांत-नारीजाति-नामोनां बधां रूपो तहन सरखां छे. जे फेर छे ते नहि जेवो छे, एथी मूळ अंग अने प्रत्ययोनो विभाग-ए पद्धति एक ज स्थळे मूकी ए बधी साधनिका समझावेली छे.
दीर्घ ईकारांत नामोने प्रथमा अने द्वितीयाना बहुवचनमा एक 'आ' प्रत्यय नवो लागे छे तथा आकारांत सिवाय उक्त बधां नामोने तृतीयाथी सप्तमी सुधीना एक वचनमां पण 'आ' प्रत्यय वधारे लागे छे-आपेलां रूपोज मा फेरफार बतावी आपे छे.
ए चारे प्रकारनां नामोनां बधां रूपो तहन सरखां के छतां संस्कृत साथेनी सरखामणी बताववा अने विशेष स्पष्ट करवा ते रेकनों सर्व रूपो जणावेलां छे तथा ए रूपो द्वारा भाषानां प्रचलित रूपोनी सरखामणीनुं पण भान थाय एम के.
१ 'तो' अने 'म्' प्रत्यय सिवायना बीजा बधा प्रत्ययो लागतां पूर्वनो स्वर दीर्घ थाय छेबुद्धीओ, घेण्मो.
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३१ २ 'म्' प्रत्यय लागतां पूर्वनो स्वर ह्रस्व थाय छः नदिं. वहुं.
३ ज्यां मूळ अंग ज वापरवानुं छे त्यां तेने दीर्घ करीने वापरवानुं छेः बुद्धी, घेणू.
४ इकारांत उकारांतनु संबोधननु एकवचन विकल्पे दीर्घ थाय छेः बुद्धि ! बुद्धी ! घेणु ! घेणू.
५ईकारांत ऊकारांतनुं संबोधननु एकवचन ह्रस्व थाय छः नदि !. वहु ! . उक्त प्रत्ययोमां तृतीयाथी सप्तमी सुधीना बधा एकवचनी प्रत्ययो एक सरखा छे त्यारे एज विभक्तिओना बधा बहुवचनी प्रत्ययो अकारांत नामनी जेवा छे अने प्रथमा द्वितीयाना बहुवचनी प्रत्ययो इकारांत नरजातिक नामनी सरखा छे ए ध्यानमा राखवा जेधुं छे.
भिन्न भिन्न प्रांतोमा उच्चारणोनी विविधता प्रचलित के तेथी संस्कृत अने प्राकृत बन्नेमां एक ज विभक्तिनां पण अनेक रूपो थवा पाम्यां छे छतां ए बम्ने भाषानां रूपोर्नु मौलिक समानपणुं जतुं रघु नथी ए समझवा जेवू छ- ए समानपणुं उक्त रूपो ऊपरथी ज जणाइ आवे छे:
३ धेन्वा-धेनुवा-घेणुआ- ४ धेन्वै-धेनुवे-घेणुए- ४ नधै-नदीये-नदीए.
शब्दो
सद्धा (श्रद्धा) श्रद्धा मेहा (मेधा) मेधा-बुद्धि पण्णा (प्रज्ञा) प्रज्ञा सण्णा (संज्ञा) संज्ञा-सान-समझ
संझा संध्या) सांज वझा (वन्ध्या) वांज-वांजणी भुक्खा (बुभुक्षा) भूख तिसा (तृषा) तरस-लालच
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
तण्हा (तृष्णा) तृष्णा
अच्छरसा (अप्सरस्)१२अप्सरा मुण्डा (स्नुषा) स्नुषा-पुत्रवहू । आसिला (आशिष् ) आशिष
आशीर्वाद पुच्छा (पृच्छा) प्रश्न-पूछा धूआ (दुहिता) दीकरी चिता (चिन्ती) चिंता
नणंदा (ननान्ट) नणंद आणा (आशा) आज्ञा-आण
पिउच्छा । (पितृष्वसा) पितानी छुहा (क्षुधा) भूख
पिउसिंआ बहेन-फई कउहा (ककुभा), दिशा
माउसिआ (मातृष्वसा) माशीनिसा (निशा) निशा-रात्री माउच्छा । मातानी बहेन दिसा (दिशा) दिशा-दश बाहा (बाहु) बाहु-हाथ-बाय नावा (नौका) नाव
माआ (मातृ) माता-जननी गउआ (गोका) गाय सलाया (शलाका) सळी
मार्यरा मंदिया (मृत्तिका) माटी संसा (स्वस) स्वसा-बेन मक्खिा
बासा (वाच )९३ वाचा-वाणी.
सरिओं (सरित्) सरिताकलिमा (कलिका) केळी
सरियानी विज्जुला (विद्युत्) चीजली
पाडिवार (प्रतिपदा) पडयो. मिब्भा "जिह्वा) जीम
पाडिया
तिथि जीहा ।
गिरा (गिढ़)९४ मिरा-वाणी
(मातू) देवी, माता.
(मक्षिका)माखी-माछी
९. जुओ टिप्पण ७९. ९१ आदिना 'ह' नो विकल्पे 'भ' थाय छे अने शब्दनी अंदरना 'हृ' नो विकल्पे 'ब्भ' थाय छे: जिह्वा जिब्भा, जीहा. विह्वल:-विब्भलो, विहलो. ९२ जुओ टिप्पण ७५. ९३ स्त्रीलिंगी व्यंजनांत नामना अंत्य व्यंजननो 'या' के 'आ' थाय छः वाच-वाया, वाआ. सरित्-सरिया, सरिआ. प्रतिपद्-पाडिवया, पाडिवआ. संपद्-संपया, संपआ. अपवादः विद्युत्-विज्जु के विज्जुला. ९४ स्त्रीलिंगी 'र'कारांत नामना अंत्य 'र'नो 'रा' थाय छेः 'गिर्-गिरा. पुर-पुरा. धुर्-धुरा.
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुरा (पुर) पुरी - नगर -नगरी
संपया
संप
}
( संपदा ) संपदा - संपत्ति
दिआ ( (चन्द्रिका १५) चांदनी, चंद्रिआ ।
चांदी-रूपुं
दिमा (चन्द्रिका) चन्द्रमानी
चांदनी
रच्छा (रथ्या ९६) रथ चाले तेवी
पहोळी शेरी-शेरी
जुक्ति (युक्ति) जुक्ति - योजना
रति (रात्रि) रात
भाइ (मातृ ) मा - माइ भूमि (भूमि) भूमि - भों
जुवइ (युवति) युवति धूलि (धूलि ) धूळ रइ (रति) प्रेम - राग मह (मति ) मति
द्विह्नि } (धृति) धैर्य
सिप्पि (शुक्ति) छीप सन्ति (शक्ति) शक्ति सति (स्मृति) स्मृति - सरत
१३३.
दित्ति (दीप्ति) दीप्ति- तेज़ पंति (पङ्क्ति) पंक्ति-पंगत-पांत थुइ (स्तुति) स्तुति - थोय कित्ति (कीर्ति) कीर्ति - कीरत सिद्धि (सिद्धि) सिद्धि,
रिद्धि (ऋद्धि) रध - ऋद्धि संति (शान्ति) शांति कंति (कान्ति) कांति
खंति ( क्षान्ति) क्षमा कंति (कान्ति) खांत - इच्छा-होश.
गउ (गो) गाय - गउ
कच्छु (कच्छु ) खाज-खरज विज्जु (विद्युत् ) वीजळी
उज्जु (ऋजु) सरळ
मा (मातृ) माता
दद्दु (द) धाधर - दादर चं (च) चां
गाई (गो) गाय
वावी (बावी) वाव
कयली (कदली) केळ नारी (नारी) नारी - नार
९५ 'द्र' मां रहेला 'र' कारनो लोप विकल्पे थाय छेः चन्द्रिकाचंदिआ, चंद्रिआ. चन्द्रः - चंदो, चंद्रो द्वहः - दहो. द्रहो समुद्रः - समुद्दो, समुद्रो. द्रुमः- दुमो, मो. ९६ जुओ टिप्पण ७५.
[ यादी: 'अच्छरसा' थी मांडीने 'संपआ' सुधीनां नामो मूळ अकारांत नथी, ए ध्यानमा राखवानुं छे. ]
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
रयणी (रजनी) रजनी - रेण राई (रात्री) रात
धाई (धात्री ) धाई - धवरावनारी माता कुमारी (कुमारी) कुंवारी
तरुणी (तरुणी) तरुण स्त्री समणी ( श्रमणी ) साध्वी
साहुवी साहुणी
} (साध्वी ९७)
तणुवी (तन्वी) पातळी इत्थी (स्त्री) स्त्री - तिरिया थी ।
बहिणी ( भगिनी) बहेन
"
१३४
तेनी जीभ ऊपर अमृत छे अने तारी जीभ ऊपर झेर छे. तेनी सासू मने आशिष आपशे के ' तारुं कल्याण थाओ.'
गाय अने हाथणी फूलनी माळावडे शोभ. कीर्ति अने कार्यनी सिद्धि माटे प्रयत्न करो.
वाराणसी. (वाराणसी) वाराणसी
बनारस नगर
पिच्छी (पृथ्वी) ९८ पृथ्वी पुहवी (पृथ्वी)
साडी ( शाटी) साडी
19
मिती (मैत्री) मित्रता - मैत्री वृत्ति
अज्जू (आर्या) सासू - आजी
कणेरू (कणेरू) हाथणी कक्कंधू (कर्कन्धू) बोरडी अलाऊ ( अलाबू ) तुंबडी - लाऊ
लउआ
बहू (वधू ) वहू
वाक्यो
जेने विवेकनी समझ नथी ते पशु छे. मारी आज्ञाने पाछी आपो. हे बेन ! तारी नणंदनी आंखने सळी न अडे तेम तुं बेस आजे पडवो छे तेथी ब्राह्मणो नहि भणे:
९७ संयुक्त 'वी' छेडावाळा स्त्रीलिंगी नामना अंतिम 'वी' ने बदले: 'उवी 'नो प्रयोग प्रचलित छेः साध्वी- साहुवी. तन्वी - तणुवी. लघ्वी - लहुवी.. मृद्वी - मउवी. गुर्वी- गुरुवी. पृथ्वी - पुहुवी. पट्वी-पडुवी. ९८ कोइ कोइ प्रयोगमां ' व ' ने बदले ' च्छ 'नो व्यवहार चालु छेः पृथ्वी - पिच्छी
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३५
पुत्र भणे तो पंडित थाय. | मेघा अने प्रक्षा चंद्रिकानी [क्रियाति०]
जेम प्रकाशे छे.. आकाशमां बीजळी हमणां आ राजा राज्य तजे तो हुँ झबकशे एम जोशीए कहां. तेनो पुत्र राना थाउं. मेघ बरसे तो घास थाय ।
[क्रियाति०] [क्रियाति०] बनारस नगरमां गंगा नदी तारी पुत्रवधू मारी बेनना वहे छे अने तेमां नावो : सुखनी पूछा करशे.
चाले छे. तुं श्रमण था तो हुं श्रमण धीर पुरुषो दुःखने समये
थाउं [क्रियाति०] पण श्रद्धाने तजता नथी कुमार कुमारीने वरशे अने मारी माशीनी शेरीमा तारी
साडी आपशे. फईन गोळy गाडं आव्यु. दिशाओमां चारे बाजु चांदनी मारा अंगरखानी बांय अने
फेलाय छे. मारो हाथ सरखां नथी. युवति स्त्री श्रमणीनी स्तुति इंद्रो पासे अप्सराओ नाची.
करे छे. भूख अने तरस श्रमणोने रात्रीओ अने दिवसो झपा
पण पीडा आपशे. टाबंध जाय छे. माखीनी पातळी पांख भमरो फूलनी कळीनो रस
___सुंवाळी छे. पीशे. महावीरे पृथ्वीना राज्यनो वहूनी साडी ऊपर धूळ पडे छे.
मोह छोड्यो. पंडितो क्षमा राखे.
देवी मातानी पासे गायने तेनी पुत्री वांजणी न थाओ. लई जाओ अने जीवित मारी पुत्रवधू अने बेन
आपो. . परस्पर मैत्री राखे छे. वावनी पासे केळो वावो. तमे दान द्यो तो अमे विवाह | घोळां मोतीओनी पंक्ति करीए [क्रियाति०]
छीपमा शोमे के.
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
अच्चेर कालो तूरति राईओ | तसो वस्स मा भाहि वरेहि पर
पयं पव मम वरं देहि हे धूआ ! जहेव देवस्स अई मेति आयरंतो तया वद्विजासि तहेव पइणो
सव्वे जीवा मप सद्धिमेत्ति घट्टिजासि
आयरंता कीस एवं सगडं नेहि ?
एवं होउ खमह जं मए अवरद्धं
उटेड, वच्चामो दीपो होतो तया अंधयारो
नस्संता
अदास्लुई देवाणुप्पिया ! मा रावको सीतं खंतो तया
पडिबंधं करेह समो तं रस्खेज
तहा चेहसु जेण मम सुबवीरो बलं कुणंतो तया संगमो
ईए सह संजोगो होउ सुरो न पणमेला
लोग मा मारेह वा, देहि से संदेसं मा रुयह
पवहणं जुत्तमेव उवणेहि गच्छह णं तुम्मे देवाणुप्पिया! १९भादारमिच्छे मियमेसणिजं
संदिसंतु ण देवाणुप्पिया! समणो गिहाणं न कुग्विजा
जं अम्हाणं कजं पंडिओ खंति सेवेज
माउसिआ असञ्चं परिहरे मिनं कालेण भक्खए
गिरं तुम्हे गच्छंतो तया अम्हे
जेण सिद्धिं संपाउणिजासि गच्छमाणा
तं उनमं कुण
९९ माहारम् इच्छे-आहारमिच्छे, आहार इच्छे. मियम एसणिजपियसामिन, मिय एसणिजं जुओ टिप्पण ६५.
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १७ मो
प्रेरक मेद
प्रेरक प्रत्यमो 4} (अय)
आव । (आपय) मूळ धातुने अ, ए, आव अने आवे प्रत्यय लगाडवाधी तेवं प्रेरक अंग तैयार थाय केः कर+अ-कार. कर+ए-कादे. कर+आव-कखव. कर+आधे-करावे.
१ मूळ धातुना उपांत्यमा रहेला 'इ'नो प्रायः 'ए' भने 'उ'नो प्राय: 'ओ' थाय छे दु+दोह. सुम-सोस. घुल-घोल,
२ उपांत्यमां गुरु अक्षरवाळा ( स्वरादि के व्यंजनादि) घातु मात्रने उक्त प्रेरक प्रत्ययो उपरांत एक 'अबि' प्रत्यय पण पधारे लागे छे : चूम+अवि-चूसवि. चूस+अ-चुस, अस्प+चूसे. चुम्+आव-चूसाव. यस्+आवे-चूसावे. दुङ्दोह अवि-दोहवि. दोह+अ-दोह. दोहनए-दोहे. दोड् आवदोहाव. दोह आवे-दोहावे.
३ 'अ' अने 'ए' प्रत्यय लागतां धातुना उपान्त्य 'अ' नो 'आ' थाय छेः- खम्+अ-खाम. खम्+ए-खामे.
४ एक मात्र ‘भम' धातुनुं प्रेरक अंग भमाड [भम्+ आड] पण थाय छ: भम्+अ-भाम. भम्+ए-भामे. भम् आवे-भमावे. भम्+आड-भमाड.
[यादी:-'भमाड 'मां 'आड प्रेरक प्रत्यय छे. आपणी गूजराती भाषामा य घणां प्रेरक क्रियापदो 'याड' प्रत्ययः
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३८
वाळां पण देखाय छे:- चाटर्बु-चटाडवू. सूर्बु-सुवाडq.
जागवु-जगाडQ. उंघवु-उंघाडवू. जीववु-जिवाडQ. न्हावू: न्हवाडवू. भमकुं-भमाडवू वगेरे ]
५ आर्षप्राकृतना कोइ कोइ प्रयोगोमां प्रेरणासूचक 'अवे' प्रत्यय पण लागेलो जणाय छे अने ते 'अवे' प्रत्यय लागतां धातुना उपांत्य 'अ'नो 'आ' थयेलो छे:- कर+अवे-कारवे (कारापय)
धातुनां प्रेरक अंगोना नमूना कर-कार् , कारे (कारय) कराव, करावे (कारापय) कारवे. हस-हास् , हासे (हासय) हसाव, हसावे (हासापय) खम्-खाम् , खामे (क्षामय) खमाव, खमावे (क्षमापय) दरिस्-दरिम् , दरिसे (दर्शय) दरिसाव, दरिसावे (दर्शापय) भम्-भाम् , भामे (भ्रामय) भमाव, भमावे (भ्रमापय) भमाड दुड्-दोह , दोहे (दोहय) दोहाव, दोहावे (दोहापय) दोहवि चूर-चूस् , चूसे (चषय) चूसाव, चूसावे (चूषापय) चूसवि मुह -मोह , मोहे (मोहय) मोहाव, मोहावे (मोहापय) मोहवि
उक्त रीते धातुमात्रनां प्रेरक अंगो साधी लेवानां छे अने ते रीते सधायेलां प्रेरक अंगोने ते ते काळना पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडवाथी तेमनां दरेक प्रकारनां रूपाख्यानो तैयार थाय छे. ए रूपाख्यानो साधवानी बधी प्रक्रिया आगला पाठोमां आवी गइ छे छतां उदाहरणरूपे अहीं एक एक रूप आपवामां आवे छे:प्रेरक अंग
वर्तमानकाळ
एकव० खाम- खाममि, खाममो, खामामो
रूप
बहुव०
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
खामामि
खामिमो, खामेमि खामेमो खामे- खामेमि खामेमो खमाव- खमावमि,खमावामि खमावमो, खमावामो
खमावेमि खमाविमो, खमावेमो खमावे- खमावेमि खमावेमो. इत्यादि.
सर्वपुरुष । खामेज, खामेजा सर्ववचन खमावेज, खमावेजा
भूतकाळ खामसी, खामही, खामहीअ, खाभंसु, खार्मिसु, खामित्थ खामेसी, खामेही, खामेहीअ, खमावसी, खमावही, खभावहीअ, खमावंसु, खमाविंसु,खमावित्थ खमावेसी, खमावेही, खमावेहीअ
भविष्यकाळ एकव० खामिस्सं, खामेस्सं खामिस्सामि, खामेस्सामि खामिहामि, खामेहामि
खामिहिमि, खामेहिमि खामे--खामेस्सं, खामेस्सामि, खामेहामि, खामेहिमि खमाव--स्वमाविस्सं, खमाविस्साभि, खमाविहामि, खमाविहिमि
खमावेस्सं खमावेस्सामि, खमावेहामि, खमाविहिमि खमावे--खमावेस्सं खमावेस्सामि, खमावेहामि, खमावेहिमि सर्वपुरुष । खामेज, खामेजा सर्ववचन । खमावेज, खमावेजा
विध्यर्थ-आज्ञार्थ
खाम
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
खाम
खामसु, खामेसु खामिजसु, खामेज्जसुखामिज्जसि, खामेजसि स्वामिजासि, खामेजासि खामिज्जहि, खामेज्जहि खामिजाहि, खामेजाहि
खामिजे,
खामेळे
खामाहि.
खामहि, खाम
खामे - खामेसु खामेहि
खमावे- खमावेसु खमावेहि
१४०
खाम
एकव ०
खामे
खमाव
खमाव
--
सर्वपुरुष खामेज्ज, खामेज्जा, खामेज्जइ सर्ववचनखमावेज्ज, खमावेज्जा, खमावेज्जइ क्रियातिपत्ति
खामंतो, खातो, खामिंतो खाममाणो, खामेमाणो.
खमावसु.. खमावेसु
खमाविजसु खमावेजसु
खमाविज़सि, खमावेजसि खमाविलासि, खमावेजासि
खमाविज्जहि, खमावेज्जहि
माविज्जाहि, खमावेज्जाहि
खमाविज्जे खमावेज्जे खमावाहि, खमावहि, खमाव
खातो, खामिंतो, खामेमाणो. खमावतो, खमावेतो, खमाविंतो खमावमाणो, खमावेमाणो. खमावेंतो, खमावितो, खमावेमाणो
खमावे
आ प्रकारे प्रत्येक प्रेरक अंगने बधी जतना पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडी तेमनां रूपो साधी लेवानां छे.
प्रेरक सह्यभेद् अने बधी जातनां प्रेरक कृदंतो बनाववां होय त्यारे पण प्रेरक अंगने ज ते ते सहामेदी अने कृदंतना प्रत्ययो जोडी रूपाख्यानो साधवानां छे. सामेद - वगेरेना प्रत्ययोनी समझ हबे पछीमा पाठोमां आवनारी छे.
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
छा
धातु उव+दस् (उप+दर्शय) देखाडबुं- | वज्जर (वि+उत्+चर-व्युच्चर) कहेg
पासे जाने बतावधू चव् (वच) मा सार (आ+सृ-सार) आमतेम जप (जल्प)
अफळावq-आमतेम लइ जर्छ पिसुण (पिशुनय) चाठी करवी अक्खोड् (आ+क्षोद्) खोदg- मुण (मन् ) जाणवू
पिज् (पीय) पीव उल्लव (उत्+लप् ) बोलवू उंघ-उघg जाव (याप) वीताव-यापन करखं अभुत्त् (अवभृथ) अबोटबुंआभोआ (आ+मोग) ध्यानपूर्वक
आभभु-नहा. जोडे उह (उत्+स्था) ऊटलु परिनिव्या (परि+मिर+वा) शति
छाय। (छाद् ) अबु-ढोकयु कर-पोलप अग्ध (अ) मूलववु-मूल्य । मेलव् (मेलय) मेळवq-मेळवयुकराको
__एकमेंक कर कील (क्रीड) क्रीडा करवी-रमत दक्खल (दृश् ) दाखवू-देखाङरमवी
कही बतावदु छोल-छोलवू
पंणाम् (प्र+णाम) आपq-सेवामा ताव (तापय) तावq-तपावg
रजु करवं झाम-बाळवू
ओग्गाल (उद्+गार) ओगाळवं किंण (कीणा) खरीदद्-वेचातुं । आरोव् (आ+रोप) आरोप
लेवु भर् (स्मर) स्मरण करखं आढा (आ+ट) आदर करवो पत्रव् (प्रज्ञापय) जणावQ
चय (शक् ) शकवू संघ (सं+ख्या) कहेवु
जीट् (जिही) लाजवू पज्जर (प्र+उत्+चर्-प्रोचर ) अण्ह् (अश्ना) अशन कवुकहेवू ।
जमवु-खाएं
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४२
आढव (आ+रम् ) भारंभवु-शरू । परिआल (परिवार) परिकृत कर
___करवु-वींटवू चुक्क् (च्युतक) चूकवु-भ्रष्ट थर्बु
पयल्ल् (प्र+सर) फेल,
नीहर् (निर्+सर्) नीहरपुलो +लोक्) प्रलोक-जोवू
नीसरवू पुलआअ (पुलकाय) पुलकित समार् (सम्+आ+त्य् ) समार
थQ-उल्लसतुं सूड (द) सूडवु-नाश करवो वलग्ग (वि+लग्न) वळग-चडवु पक्खाल् (प्र+क्षाल्) पखाळवु- गढ़ (घट) घडवू
धोवू
जम्मा (जम्भ) बगासु खावू सिह (स्पृह) स्पृहा करवी तुवर् (त्वर) त्वरा करवी पट्ठव (प्र+स्थाप्) पाठवq पेच्छ (प्र+ईक्ष) जो विण्णव (वि+ज्ञप) वीनवq
चोप्पड्-चोपडवू अल्लिव-आलवू
अहिलंख (अभि+लष)अभिलष, ओम्वाल (उन्+प्लाव) प्लावित
अहिलंय -इच्छा करवी
चड् (चट्) चड, .. करवु वग्गोल् (वि+उ+गार-व्युगार)
नि+क्खाल। (नि+क्षाल्) नीखानि+क्खार
-धोवु ___ वागोळवं
| विच्छल (वि+क्षल) वींछळवू-धोवू
स्त्रीलिंगी सर्वादि 'सव्वी' 'सव्वा' 'ती' 'ता' 'जी' 'जा' 'की' 'का' 'इई' 'इमा' 'एई' 'एआ' अने 'अमु' वगेरे स्त्रीलिंगी सर्वादि शब्दोना रूपो 'माला' 'नदी' अने 'घेणु' नी जेवां योजी लेघानां छे. विशेषता आ प्रमाणे छः ती, ता
.
णी, णा
(तत्-ता)
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४३
१ सा (सा)
तीआ तीउ तीओ ती
ताउ ताओ ता (ता.) २ तं ( ताम् )
ती तीउ तीमो ती
ताउ ताओ ता (ताः) ३ तीअ, तीआ, तीइ, तीए । तीहि, तीहि, तीहिँ
ताअ, ताइ, ताए (तया) ताहि, ताहिं ताहि (तामिः) ४ ) से
सिं अने तास तिस्सा, तीसे ६) (तस्यै, तस्याः )
तीअ, तीआ, तीइ, तीए तेसिं (तासाम्) ताप, ताइ, ताप
ताण ताण (तानाम् ?) ताहिं (तस्याम् ) तासु तासु ( तासु) तीअ, तीआ, तीइ, तीए
ताअ, ताइ, ताए 'णी अने 'णा' नां रूपो पण 'ती' अने 'ता' प्रमाणे समझवानां छे.
१
जा (या)
जी, जा ( यत्-या)
जीआ जीउ जीओ जी जाउ जाओ जा (याः)
२ जं (याम् )
४ ) जिस्सा, जीसे, अने। (यस्यै यस्याः)
जाण जाणं (यासाम् )
(यानाम् ?)
६
जीभ, जीआ, जीर, जीए जाम, जाइ, जाप
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
७ जाहिं (यस्याम् ) जीअ, जीमा, जी, जीए जाम, ना, जाए
१ का ( का )
३ कं (काम्)
४. किस्सा, कीले काल अने (कस्यै, कस्याः)
६
१७४
की, का ( किम्-का )
कीअ, कीआ, कीर, कीप काअ, काइ, काए
७ काहि ( कंस्याम् )
जासु (यासु ) जासुं
१ इमिआ इमा, इमी ( इयम् )
की, कीड, कीओ, की काउ, काओ की, (काः)
इमाम, इमाइ इमाए (इमया ? अनया )
19
"
कीअ, कीआ, कीर, कीप काअ, काइ, काप (कायाम् ?) कासु, कासुं
इमा, इमी ( इदम्-इमा )
ܕܕ
"
( कासाम) कणकण (कानाम् १)
"9
"
, (काः)
कीसु, कीसुं ( कासु )
इमीआ, इमीउ, इमीओ इमी इमाउ, इमाओ, इमा (दमा)
३ इमीअ इमीआ, इमीर, इमीए इमीहि, इमीहिं, इमीहि
माहि माहिं माहि
( इमाभिः ? ) आदि आदि आहिं"
( आमिः )
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४५
४) से,
सिं ( आसाम् ) अने मीअ, इमीआ, इमीइ, इमीए इमीण, इमीण ६ इमाअ, इमाइ, इमाए इमाण, इमाणं ( अस्यै इमायै ?)
. (इमानाम् ?)
एआ, एई ( एतत्-एता) १ एसा, एस, इणं, इणमो एईआ, एईउ, पईओ, पई
(एषा) एआउ,एआओ, एआ(पताः) ४ से
सिं ( एतासाम्) अने एईअ, एईआ, एईइ, एईए एइण, एईणं ६ एआअ, एआइ, एआए एआण, एआणं
(एतस्यै एतस्याः एतायै ?) (एतानाम् ?)
[यादीः उक्त रूपोमां ईकारांत अने आकारांत अंगना बघां रूपो नथी आपेला पण ते बांय समझी लेवानां छे]
१
अह, अमू
__अमु ( अदस् )
अमूउ, अमूओ, अमू
(अमूः) बाकीनां घेणु' वत्
१०० केटलाक शब्दो अतिप्राचीन होवाने लीधे तेमनी व्युत्पत्ति कळी शकाती नथी अथवा व्युत्पत्ति कळातां छतां य जेमनो कविसाहित्यमां विशेष प्रचार नथी, एवा शब्दोने देशी शब्दो के देश्य शब्दो कहेवामां आवे छे. हवे पछीना पाटोमां एवा पण केटल,क शब्दो आपवामां आव्या छे. आ शब्दोने ज देश्यप्राकृत तरीके गणव मां आवे छे. आचार्य हेमचंद्रे पोताना देशीशब्दसंग्रहमां एवा अतिमार्च,न शब्दोतो सारो एवो संग्रह आपेलो छे.
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
अहेल्ल
अल्लाह-ईश्वर
डव्व ) डाबं-डाबो हाथ
डाव
डाबा हाथ
केटलाक देश्य शब्दो [नरजाति] अग्घाड - अघेडानुं झाड
छेअ- छेडो
जवरअ - जुवारा अहिल्ला
झंखर - झांखरूं-सूकुं झाड अग्गिअ (आमिक) आगियो
टप्परअ - टापरो-खराब कानवाळो आमोडो - अंबोडो
टार - टारडो उइ (उड़) ओड जातना लोक
टुंट - ढुंठो उडिद - अडद ओहरिस (अवघर्ष) ओरसियो कच्छर - कचरो
डोल - डोळो-आंखनो डोळो ककिंड - काकीडो
डंब - डोम-चांडाळ कडाइअ - कडीओ-घर चणनार
इंघ - डुंघो-होको काहार (क+हार) कहार-पाणी भरनार
डुंगर - डुंगरो
डोअ-डोयो-पाणी काढवानो डोयो कुक्कुस - कुशका
णक - नाक कोत्थल - कोथळो, कोठलो
दवर - दोरो कोइल - कोयला
पण्हअं (प्रनव) पानो-पोतानुं बाळक कोलिअ (कौलिक) करोळिओ
___ जोइने माताने पानो आवे ते खट्टिक (घातक) खाटकी परियट्ट - परीट-धोबी खोसलअ - खोखळदंतो पंडरंग (पाण्डुराङ्ग) पांडुरंग-महादव खोड - खोडो-लंगडो
पिणाअ - पराणे खोल (खर) खोलकु-गधेडा बच्चुं पेडइअ - फडियो-दाणानो वेपारी गढ - गढ
बप्प - बाप चास- चास-खेतरमा चास करवा ते बइल्ल - बेल-बळद
बोकड - बोकडो चिव्व
मकड - मकडी-करोळीयो छइल्ल (छेक) चतुर-छेल छंट - छांटो-छांट
विश्व
-चीबो
मुभ मोभ
मोब्भ
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
बप्पी
बपैयो
मिइंग
रष्फ - राफडो रखा - रवायो
बप्पीह रोल - रोळो-कलह
वहोलो - पाणीनो वहेलो घडू - वडो
वोज्झम - बोजो सामान्य शब्दो [नरजाति] खग्ग (खड्ग'०') खडग-तरवार भिंग (भृङ्ग) भंग-भमरो उप्पाअ (उत्पाद) उत्पाद-उत्पत्ति । सिंगार (शृङ्गार) शृंगार-शणगार रस्सि (रश्मि'०२) राश-बळदनी । निव (नृप) नृप-राजा
के घोडानी राश छप्प । (षट्पद) छपगो-भमरो मुइंग (मृदङ्ग१०३) मृदंग
छप्पय अथवा छप्पो
सज (षड्ज) षड्ज-एक प्रकारनो विंचुअ (वृश्चिक) वींछी
१.१ संयुक्त व्यंजनमा पूर्ववर्ती एवा क, ग, ट, ड, त, द, प, श, ष अने स नो प्रायः लोप थइ जाय छे अने लोप थतां बाकी रहेलो अनादिभूत व्यंजन बेवडाय छेः-भुक्त-भुत-भुत्त. षट्पद-छपय-छप्पय. दुग्घ-दुध-दुद्ध. खड्ग-खग-खग्ग. उत्पल-उपल-उप्पल. मद्गु-मगु-मग्गू, सुप्त-सुत-सुत्त. निश्चल-निचल-निचल. गोष्टी-गोठी-गोट्ठी. स्तव-तव-तव. स्तवन-तवण-तवण,
१०२ संयुक्त व्यंजनमां परवर्ती म, न अने य नो प्रायः लोप थई जाय छे अने लोप थतां बाकी रहेलो अनादिभूत व्यंजन बेवडाय छः स्मर-सर. रश्मि-रसि-रस्सि. नग्न-नग-नग्ग. लग्न-लग-लग्ग. कुड्य-कुडकुा. व्याध-वाह.
१०३ केटलाक शब्दोमां आवेला आदिभूत 'ऋ' नो 'इ' थाय छे अने 'उ' पण थाय छ:-ऋषि-इसि. ऋद्धि-इद्धि. नृप-निव. शृगालसिआल. मृदङ्ग-मिइंग, ऋषभ-उसह. ऋजु-उज्जु. पितृ-पिउ. प्रवृत्तिपरत्ति. मृदङ्ग-मुइंग वगेरे.
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
૨૮ इसि (ऋषि) रुषि;
(नप्तृक) नाती-पौत्र तव (स्तव) स्तव-स्तुति . नेह (स्नेह) स्नेह-नेह
वुड्ड (बुद्ध) बूढो-घरडो सर (स्मर) कामदेव
जामाउअ (जामातृक) जमाइ . पाउस (प्रावृष्) पाउस-पावस- मग्गु (मद्गु) एक प्रकारनी माछली
वरसादनी ऋतु कंद (स्कन्द) स्कन्द-गणपति वुतंत (वृत्तान्त) वृत्तांत-समाचार हरिअंद (हरिश्चन्द्र) हरिचंद राजा
. [नान्यतरजाति ] दुद्ध (दुग्ध) दूध
। कुंडलय (कुण्डलक) कुंडळ-कुंडाळु सित्थ (सिक्थ) सीथ
उप्पल (उत्पल) उत्पल-कमळ आमलय (आमलक) आमळु- मसाण (श्मशान) मसाण.
आंबळु अहिन्नाण (अभिज्ञान) एंधाण . . बिंबय (बिम्बक) बिब-प्रतिबिंब- | चम्म ( चर्मन् ) चाम-चामडु
बीबुं । पुट्ठय (पृष्ठक) पूर्छ
[नारीजाति] गोट्ठी (गोष्टी) गोठ-गोठडी गोरी (गौरी) गौरी-पार्वती, मट्टी? (विष्टि) वेठ
रेखा) घत्ती (धात्री) धात्री
रेहा (रेखा) रेखा-लीह-लीटो
लेहा किवा (कृपा) कृपा
किया (क्रिया) क्रिया-विधि-विधान धिणा (घृणा) घिण-घृणा
किसरा (कृसरा) खीचडी सामा (श्यामा) युवति-स्त्री
समिद्धि (समृद्धि) समृद्धि
[विशेषण] मुत्त (मुक्त) मुक्त-हटुं । भुत्त (मुक्त) भुक्त-भोगवेलु सत्त (शक्त) शक्तिमान्
नग्ग (नम) नागो
"गौरी स्त्री
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
सत्त (सक्त) आसक्त
निठुर (निष्ठुर) नठोर किलिन्न (क्लन्न ०४) गीलं-भीनु- छह (षष्ठ) छट्टुं
__ भीजायेखें | गुत्त (गुप्त) गोपवेलु-सुरक्षित-गुप्त किलित्त (क्लृप्त) क्लृप्त
सुत्त (सुप्त) सूतेलं निश्चल (निश्चल) निश्चल मुद्ध (मुग्ध) मुग्ध
पाठ १८ मो भावे प्रयोग अने कर्मणि प्रयोग
प्रत्ययो
ईय
(य)
कोइ पण धातुनुं भावप्रधान के कर्मप्रधान अंग बनाववं होय त्यारे तेने ईअ, ईय अथवा इज-ए त्रणमांथी गमे ते . एक प्रत्यय लगाडवानो छे. _____एत्रणे प्रत्ययो फक्त वर्तमानकाळ, विध्यर्थ, आशार्थ के हस्तनभूतकाळमां ज वापरी शकाय छे. तेथी भविष्यकाळ, क्रियातिपत्ति वगेरे अर्थमां भावेप्रयोग अने कर्मणिप्रयोग, कर्तरिप्रयोगनी जेम समझवानो छे.
भाव एटले क्रिया. जे प्रयोग मुख्यपणे क्रियाने ज बतावे ते भावप्रयोग.
अकर्मक धातुओनो भावेप्रयोग थाय छे. गूजराती व्याकरणमा रोवू, जणवू, सू, उघg, लाजवू बगेरे धातुओ ज
१.४ ल ने बदले 'इलि' नो प्रयोग थाय के:-क्लन-किलिन. क्लृप्त-किलित्त.
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४८
इसि (ऋषि) रुषि :
(नप्तृक) नाती-पौत्र तव (स्तव) स्तव-स्तुति . . नेह (स्नेह) स्नेह-नेह
वुड्ड (बुद्ध) बूढो-घरजो सर (स्मर) कामदेव
जामाउअ (जामातृक) जमाइ पाउस (प्रावृष्) पाउस-पावस- मग्गु (मद्गु) एक प्रकारनी माछली
__वरसादनी ऋतु । कंद (स्कन्द) स्कन्द-गणपति वुत्तंत (वृत्तान्त) वृत्तांत-समाचार । हरिद (हरिश्चन्द्र) हरिचंद राजा.
. [नान्यतरजाति ] दुद्ध (दुग्ध) दूध
कुंडलय (कुण्डलक) कुंडळ-कुंडाळू सित्थ (सिक्थ) सीथ
उप्पल (उत्पल) उत्पल-कमळ . आमलय (आमलक) आमळु- मसाण (श्मशान) मसाण
आंबढुं
अहिन्नाण (अभिज्ञान) एंधाण बिंबय (बिम्बक) बिब-प्रतिबिंब- चम्म ( चर्मन् ) चाम-चामडु
बीबु । पुट्टय (पृष्ठक) पूढे
[नारीजाति] गोट्टी (गोष्टी) गोठ-गोठडी गोरी (गौरी) गौरी-पार्वती,
गौरी स्त्री विट्टी (विष्टि) वेठ
रेखा) धत्ती (धात्री) धात्री
रेहा (रेखा) रेखा-लीह-लीटो
लेहा) किवा (कृपा) कृपा
किया (क्रिया) क्रिया-विधि-विधान घिणा (घृणा) घिण-घृणा ।
किसरा (कृसरा) खीचडी सामा (श्यामा) युवति-स्त्री समिद्धि (समृद्धि) समृद्धि
[विशेषण ] मुत्त (मुक्त) मुक्त-छुटुं । भुत्त (भुक्त) भुक्त-भोगवेलु सत्त (शक्त) शक्तिमान् | नग्ग (नन) नागो
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४९
सत्त (सक्त) आसक्त
निठुर (निष्ठुर) नठोर किलिन्न (क्लन'०४) गीलु-भीनु- छ? (षष्ठ) छट्टु
भींजायेलं गुत्त (गुप्त) गोपवेलु-सुरक्षित-गुप्त किलित्त (फ्लृप्त) क्लृप्त
सुत्त (सुप्त) सूतेलं निश्चल (निश्चल) निश्चल
मुद्ध (मुग्ध) मुग्ध
पाठ १८ मो भावे प्रयोग अने कर्मणि प्रयोग
प्रत्ययो
ईय
(य)
कोइ. पण धातुनुं भावप्रधान के कर्मप्रधान अंग बनाव_ होय त्यारे तेने ईअ, ईय अथवा इज-ए त्रणमांथी गमे ते .एक प्रत्यय लगाडवानो छे.
ए प्रणे प्रत्ययो फक्त वर्तमानकाळ, विध्यर्थ, आशार्थ के हस्तनभूतकाळमां ज वापरी शकाय छे. तेथी भविष्यकाळ, क्रियातिपत्ति वगेरे अर्थमां भावेप्रयोग अने कर्मणिप्रयोग, कर्तरिप्रयोगनी जेम समझवानो छे.
भाव एटले क्रिया. जे प्रयोग मुख्यपणे क्रियाने ज बतावे ते भावेप्रयोग.
अकर्मक धातुओनो भावेप्रयोग थाय छे. गूजराती व्याकरणमां रोवू, जणवू, सू, उघg, लाजधु बगेरे धातुओ ज
१.४ ल ने बदले 'इलि' नो प्रयोग थाय के:-कलन-किलिन. क्लृप्त-किलित्त.
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५०
अकर्मक तरीके प्रसिद्ध छे. त्यारे अहीं तो जे धातुओ सकर्मक होय छतां प्रयोगमां जेमनुं कर्म न कहेवायुं होय-अध्याहारमां होय-तेओ पण अकर्मक गणाय छे. तेथी ज खावु, पीवुं, जोवुं, घडवु, करवुं वगेरे सकर्मक धातुओ पण तेमना कर्मनी अविवक्षानी अपेक्षाए अकर्मक तरीके लेखाय छे. प बने प्रकारना अकर्मक धातुओनो भावेप्रयोग थाय छे.
कर्ता, क्रिया द्वारा जेने विशेषपणे इच्छे ते कर्म-नानी मोटी बधी क्रियाओनुं फळ. जे प्रयोग मुख्यपणे कर्मने ज सूचित करे ते कर्मणिप्रयोग.
भावे अने कर्मणिप्रयोगनां अंगो भावसूचक अंगो
बी-बीहीअ, बीहिज. उंघ- उंघीअ, उंघिज. कहू - कहीअ, कहिज. खा-खाईअ, खाइज. लज्ज्-लजीअ, लज्जिज. बुड्ड्बुड्डीअ, बुजि. बोल्लू - बोल्लीअ, बोल्लिज. हो-होईअ, होइज.. कर्मसूचक अंगो
पा- पाईभ, पाइज्ज. ला- लाईअ, लाइज, दा-दाईअ, दाइज. झा-झाईअ, झाइज. पद्-पढीय, पढिज. कड्ढू- कड्डीअ,कडिज्ज. घड्- घडीय, घडिज्ज. खा-खाईय, खाइज. कहू - कहीय, हिज. बोल्ल - बोलीय, बोल्लिज.
प रीते धातुमात्रनां भाववाची अने कर्मवाची अंगो बनावी लेवानां छे अने तैयार थयेलां अंगने ते ते काळना पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडी तेमनां रूपो साधी लेवानां छेः वर्तमानकाळ
भावप्रधान
बीहीअर, बीहिज्जर (भीयते)
बीहू + अ +इ - बीही - अइ-इ-अप, बीड् + इ + ज्जर- बीहि-जर, -ज्जेइ, जप, -ज्जेप
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
सर्वपुरुष धीहीएज, बीहीएज्जा सर्ववचन । बीहिज्जेज, बीहिज्जेज्जा
भावप्रधान प्रयोगोमां भाव-क्रिया-ज मुख्य होय छे. प्रथम के द्वितीय पुरुष एमां संभवतो नथी तेम बे प्रण वा तेथी अधिक संख्या पण संभवी शकती नथी माटे ते द्वारा ते ते पुरुषोनुं वा एकथी अधिक संख्यानुं सूचन थइ शकतुं नथी. साधारण रीते भावेप्रयोग, त्रीजा पुरुषना एकवचनद्वारा व्यवहारमां आवे छे.
कर्मप्रधान भणीयइ, भणिज्जइ गंथो (भण्यते ग्रन्थः) ग्रंथ भणाय छे. भण+ईअ+इ-भणी-अइ,-एइ,-अप, एए भण्+हज+इ-भणि-जइ,-ज्जेह, जए, ज्जेए भणीयंति गंथा (भण्यन्ते ग्रन्थाः) ग्रंथो भणाय छे.
भणिजंति भण+ईय+न्ति-भणी-यंति,-यति,-यंते, येते,-यहरे,-येहरे भाज+न्ति-भणि-ज्जंति,ज्जेंति,-जंते, ज्जेते,जइरे,ज्जेहरे
सर्वपुरुष भणीएज्ज, भणीपज्जा
सर्ववचन भणिज्जेज्ज, भणिज्जेज्जा पुच्छीयसि तुमं (पृच्छ्यसे त्वम् ) तुं पूछाय छे.
पुच्छिज्जसि पुच्छईयासि-पुच्छी-यसि-येसि,-यसे,-येसे पुच्छ इज्ज+सि-पुच्छि-ज्जसि, ज्जेसि, जसे, ज्जेसे
पुच्छीयामि अहं (पृच्छये अहम् ) हुं पूछाउं छु.
पुच्छिज्जामि पुण्म य+मि-पुच्छी-यमि, यामि, येमि पुच्छज्ज+मि-पुच्छि-जमि-ज्जामि,-ज्जेमि
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
सर्वपुरुष । पुच्छीयेज्ज, पुच्छीयेज्जा सर्ववचन। पुच्छिज्जेज्ज, पुच्छिज्जेज्जा
--
-
विध्यर्थ-आशार्थ पुच्छी-यउ,-येउ, पुच्छि-ज्जउ, ज्जेउ पुच्छी-यतु,-येंतु, पुच्छि-ज्जंतु,-ज्जेंतु
पुच्छीयेज्ज, पुच्छीयेज्जा सर्वपुरुष ) पुच्छिज्जेज्ज, पुच्छिज्जेज्जा सवेवचन पुच्छीयेज्जह
पुच्छिज्जेज्जइ
भूतकाळ भणीअसी, भणीअही, भणीअहीअ भणीयइत्था, भणीयइत्थ, भणीइंसु, भणीअंसु भणिज्जसी, भणिज्जही, भणिज्जहीअ भणिज्जइत्था, भणिज्जइत्थ, भणिजिसु, भणिज्जंसु
अद्यतन भूतकाळ भणीअ, भणित्था, भणित्थ, भर्णिसु
भविष्यकाळ भणिहिइ, भणिहिए, वगेरे बधां कर्तरि प्रमाणे
[जुओ पाठ १२ मो] क्रियातिपत्ति भणंतो, भणमाणो, भणेज्ज, भणेज्जा
प्रेरक भावेप्रयोग अने कर्मणिप्रयोग धातुनुं प्रेरक भावप्रयोगी के कर्मणिप्रयोगी रूप कर९ होय त्यारे मूळ धातुने प्रेरणासूचक एक मात्र 'आवि' प्रत्यय
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५३ लगाडवो अने 'आवि' प्रत्यय लागेला ते तैयार थयेल अंगने भावे अने कर्मणि प्रयोगना सूचक उक्त ईअ, ईय अथवा इज्ज प्रत्यय पूर्वोक्त साधनिकाने अनुसारे लगाडवा.
२ अथवा प्रेरणासुचक कोइ पण प्रत्यय न लगाडी मात्र मूळ धातुना उपान्त्य 'अ' नो 'आ' करवो अने ए 'आ' वाळा अंगने उक्त ईअ, ईय के इज्ज प्रत्यय पूर्व प्रमाणे लगाडवा, ए रीते पण प्रेरक भावेप्रयोगनां अने प्रेरक कर्मणिप्रयोगनां रूपो बनावी शकाय छे.
[यादीः आ सिवाय बीजी कोइ रीते प्रेरक भावेप्रयोग : के प्रेरक कर्मणिप्रयोगनां अंगो बनी शकतां नथी.] अंग-
अंगना रूपाख्यान
करावीआइ (काराप्यते) कर+आवि-करावि+ईअ-करावीअ-करावी-अइ,-अए,-असि,
असे इत्यादि कर-कार+ईअ-कारीअ-कारी-अइ,-अए (कार्यते)
कारी-असि, कारी-असे (कार्यसे) कर+आवि-करावि-इज्ज-कराविज्ज-करावि-ज्जइ,-ज्जए
(काराप्यते) कर-कार-इज्ज-कारिज्ज-कारि-ज्जइ,-ज्जए, (कार्यते)
कार-इज्ज-कारिज्ज-कारि-ज्जसि,-ज्जसे (कार्यसे) .
ए रीते धातु मात्रनां प्रेरकभावे अने प्रेरककर्मणिनां अंगो तैयार करी सर्वकाळनां रूपो उक्त साधनिका प्रमाणे साधी जवां जोइए.
भविष्यकाळ कराविहिइ, कराविहिए कराविस्सते (कारापयिष्यते)
[जुओ पाठ १२ मो] कराविहिसि, कराविहिसे
(कारापयिष्यसे)
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५४
कराविस्सामि, कराविहामि, कराविसं (कारापयिष्ये) कारिस्सते, कारिहिए (कारयिष्यते) इत्यादि
केटलांक अनियमित अंगो अने तेनां उदाहरणरूप
रूपाख्यान
मूळ धातु-भा०कन्नुं अंग- रूपाख्यानदरिस- १०५दीस्- दीसइ (दृश्यते) दीसउ,दीससी
दीसिज्जइ, दीसिजउ बच्-वुध-बुञ्चर (उच्यते) वुश्चउ, वुश्चसी. वुश्चिजइ,वुश्चिजउ चिण-11०चिव्व-चिवड (चीयते)प्रेचिव्वावि चिव्वाविहिर
चिम्म-चिम्मइ प्रेचिम्माविइ,चिम्माविहिर हण्-हम्म-हम्मइ (हन्यते) हम्माविइ, हम्माविहिह खण-खम्म-खम्मए (खन्यते) खम्माविइ, खम्माविहिह दुइ-दुष्भ-दुभते (दुह्यते) दुष्भाविइ, दुभाविहिह लिह-लिब्भ-लिब्भए (लिहते) लिब्भाविइ, लिब्भाविहिद वह-वुभ-वुभए (उहते) बुब्भाविइ, वुब्भाविहिड रुभ-रुब्भ-रुब्भए (रुध्यते) रुब्भाविद, रुब्भाविहिइ डह-डज्म-डज्झए (दह्यते) डज्झाविइ, डझाविहिह बंध-बज्झ-बज्झए (बध्यते) बज्झाविइ, बज्झाविहिर सं+रुध-संरुज्झ-संरुज्झए(संरुध्यते)संरुज्झाविइ, संरुज्झाविहिर अणु+रुध्-अणुरुज्झ-अणुरुज्झए (अनुरुध्यते) अणुरुज्झाविइ,
अणुरुज्झाविहिर उवरुध्-उवरुज्झ-उवरुज्झए (उपरुध्यते) उवरुज्झाविर,
___ उवरुज्झाविहिर १०५ दीस अने वुच-आ बे अंगो मात्र वर्तमान, विध्यर्थ, आज्ञार्थ अने यस्तनभूतमा ज वपराय छे. १०६ 'चिव' थी मांडीने 'पुद' सुधीनों अंगो सामेद सिवाय क्यांय वपराता नभी.
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
गम्-गम्म-गम्मए (गम्यते) गम्माविइ, गम्माविहिर हस्-हस्स-हस्सते (हस्यते) हस्साविइ, हस्साविहिर भण्-भण्ण-भण्णते (भण्यते) भण्णाविइ, भण्णाविहिइ छुप छुप्प-छुप्पते (छुप्यते-स्पृश्यते) छुप्पाविइ छुप्पाविहिए. रुख-रुव्व-रुव्वए (रुद्यते) रुव्वाविइ, रुव्वाविहिइ लम-लब्भ-लब्भए (लभ्यते) लब्भाविद, लब्भाविहिह कश्-कत्थ-कत्थते (कथ्यते) कत्थाविइ, कत्थाविहिह मुंज-भुज-भुजते (भुज्यते) भुजाविइ, भुजाविहिह हर-हीर-हीरते (ह्रियते) हीराविइ, हीराविहिह तर-तीर-तीरते (तीर्यते) तीराविइ, तीराविहिइ कर-कीर-कीरते (क्रियते) कीराविइ, कीराविहिर जर्-जीर-जीरते (जीर्यते) जीराविह, जीराविहिइ अ-विढप्प-१०विढप्पते (अयंते) विढप्पाविह.विढप्पाविहिह
_ णिज्ज-णज्जते (ज्ञायते) णज्जाविद, णज्जाविहिर जा रणव्व-णन्वते णव्वाविइ, णवाविहिर विआ+हर-वाहर-चाहिप्पते (व्याह्रियते) वाहिप्पाविइ,
वाहिप्पाविहिर गह-घेप्प-घेप्पते (गृह्यते) घेप्पाविर, घेप्पाविहिर छिव्-छिप्प-छिप्पते (स्पृश्यते) छिप्पाविह, छिप्पाविहिद सिंच्-सिप्प-सिप्पते (सिच्यते) सिप्पाविइ, सिप्पाविहिर निह ।
(स्निह्यते) आरिभ-आढप्प-आढप्पते(आरभ्यते)आढप्पाविद, आढप्पाविहिर जिण्-जिव्व-जिव्वते (जीयते) जिव्वाविद, जिन्वाविहिर
१.७ 'विढप्प' ए अंग 'अर्ज' धातुना अर्थमां वपराय छे पण तेनु मूळ स्वरूप 'अर्ज' मां नथी. 'अर्ज-अज' अने 'विढप्प' ए बच्चे कशी समानता जणाती नथी.
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५६ सुण्-सुव्व-सुव्वते (धूयते) सुव्वाविह, सुवाविहिर हुण-हुव्व-हुव्वते (हूयते) हुन्वाविइ, हुव्वाविहिर थुण्-थुव्व-थुव्वते (स्तूयते) थुव्वाविद, थुव्वाविहिइ लुश-लुव्व-लुव्वते (लूयते) लुव्वाविइ, लुव्वाविहिए धुण-धुव्व-धुव्वते (धूयते) धुव्वाविइ, धुव्वाविहिइ पुण्-पुव्व-पुन्वते (पूयते) पुव्वाविइ, पुवाविहिह
केटलाक देश्य शब्दो [नारीजाति] अम्मा (अम्बा) मा-अम्मा | खली-खोळ अआलि-एली-अकाळे वादळां थवां । खणुसा-खणस-इच्छा अलिया (अलिका) सखी
खडक्की-खडकी अवाळुया-अवाळु-दांतना पेढा गड्डी (गन्त्री) गाडी राडी (राटि) राड
गंडीरी-गंडेरी-शेरडीनी कातळीओ उंबी-पाकेला घउंनी हुंडी
गडयडी-गडगडाट उत्थल्ला-उथलो-उथळवु-उथली गायरी-गागर
जवू गोली-गोळी उत्थल्लपत्थल्ला-उथलपाथल चोट्टी-चोटली उत्तरिविडी-उतरेड-वासणनी मांड चवेडी-चपटी वगाडवी ओप्पा-ओप
चिरिहिट्टी चोटी ओज्झरी-होजरी
चिणोट्टी ओसरिआ-ओशरी
छल्ली-छाल ओसा-ओस
छवडी-चामडी 'कत्ता-कत्ता-पासा-जुगारनी आंधळी । छासी-छाश
कोडी
छेडी-छींडी कट्टारी-कटार
जाडी-झाडी कुक्खी (कुक्षि) कूख
जोवारी-जूवार-जार कुहिणी (कफोणि) कोणी झडी-वरसादनी झडी खडा (गर्ता) खाड-खाडो
झंटी-झटियां-माथाना वाळ
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५७
झोलिका झोळी
बब्बरी-बाबरी-माथानी बाबरी साली-डाळ-शाखा
बिग्गाइ-बगाय ढंकणी-टॉकणी ....... बोहारी-बुहारी-सावरणी तुका-ढिंकवो
भाउज्जा-भातृजाया-भोजाई जत्था-नाकनी नथ, बळदनी नाथ
भुक्खा -(बुभुक्षा) भूख णहरी-नेरणी णिदिणी-नींदQ-नकामु घास कापवू
मामी
मा । (मामकी) मामी णीसणिआ-नीसरणी
रल्ला-राळ दअरी-दारु
वट्टा-(वर्त्म) वाट-रस्तो पड़ी-पाडी
वाडिया-(बाटिका) वाडी परडा-परडकुं
वाडी-वाड पड्डुआ-पाटु पक्खरा-पाखर-हाथी घोडानो सामान
सुहेल्ली (सुखकेली) सहेल पारिहट्टी-(परेष्टु) पारेठ-बहु
सिंदु-छिंदरी वखतथी वीआयेली गाय के भेश
सुंघिय (सुघ्रात) सुंघेलं पूणी-पूणी
हुड्डा-होड-सरत फग्गू-फाग
हत्थोडी-हाथर्नु हथीआर-हथोडी फोफा,
वियाउआ (विपादिका) वीया
पगनी वीया फाटवी ते सामान्य शब्दो [नरजाति] केवट्ट (कैवर्त)१०८ कैवर्त-केवट- । जट्ट (जत) जाट जातनो माणस
होडी हांकनार । धुत्त (धूर्त) धूर्त धूतारो १०८ 'त' ने बदले 'Z' नो प्रयोग थाय छे:-कैवर्त-केवट्ट. वर्तीवट्टी. वार्ता-वट्टा, वत्ता. नर्तकी-नट्टई. वर्त्म-वट्ट. वर्तुल-वट्ठल. [ यादी:-केटलाक शब्दोमां 'त' नो 'त' पण थाय छे:-धूर्त-धुत्त. मुहूर्तमुहुत्त. कर्तरी-कत्तरी. कीर्ति-किति. मूर्त-मुत्त. मूर्ति-मुत्ति. कार्तिककत्तिम. प्रवर्तक-प्रवत्तय वगेरे]
फुफा फुफाडो
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५८ मुहूत्त (मुहूर्त) मुहरत | सन्वज्ज (सर्वश)-सर्वश+बधुं संवत्तम (संवर्तक) संवर्तक वायु
जाणनार सय्ह (सत्य) ०९ सय नामनो | देवज्ज (दैवज्ञ) दैवने जाणनार
जोशी पहाड, सही शकाय ते
किलेस (क्लेश)" क्लेश गुयह (गुह्य) गुह्यक-यक्ष,गुह्य-गूढ
पिलोस (प्लोष) दाह कलाव (कलाप)१० कडपलो-समूह
सिलो
कीर्ति साव (शाप) श्राप सवह (शपथ) शपथ-सोगन सिलिम्ह (लष्मन् ) श्लष्मा पल्हाअ (प्रहाद)" प्रह्लाद कुमार | कासव (काश्यप) काश्यप गोत्रनो आल्हाअ (आह्वाद) आह्लाद-आनंद
ऋषि, ऋषभदेव 'पज्ज (प्राज्ञ) १२ प्राज्ञ-डाह्यो कविल (कपिल) कपिल ऋषि
सिलोग (श्लोक) श्लोक, कीर्ति
१०९ 'ह्य' ने बदले 'यह' नो प्रयोग थाय छे:-सह्य-सय्ह. गुह्य-गुय्ह. ११० असंयुक्त 'प' ज्यारे अवर्ण [ अके आ ] थी पछी आवेलो होय त्यारे तेनो 'व' ज थाय छे:-कलाप-कलाव, काश्यप-कासव. शाप-साव. शपथ-सवह. १११ 'ह' ने बदले ल्ह' वपराय छे:-आहाद-आल्हाद. ११२ आदिभूत 'ज्ञ' नो 'ज' अने अनादिभूत 'ज्ञ' नो 'ज' पण थाय छे:-प्रज्ञ-पज्ज, पण्ण. सर्वज्ञ-सव्वज, सण्णु.
११३ संयुक्त 'ल' ने बदले 'इल' नो प्रयोग थाय छे:क्लेश-[काल+एश]-क्+इल्+एस-किलेस. प्लोष-[प्++ओष]-+इल+ओस-पिलोस. श्लोक-शि++ओक]-श+इल+ओभ-सिलोअ.
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाठ १९ मो
व्यंजनांत शन्दो प्राकृतमा रूपाख्यानने प्रसंगे कोइ शब्द, व्यंजनांत संभवी शकतो नथी, एथी एनां बधां रूपो पूर्वोक्त स्वयंत शब्दनी पेठे समझवानां छे.
शरत् अने भिषक् वगेरे शब्दोना अंत्य व्यंजननो 'अ' थाय छेः शरत्-सरअ-सरओ, सरअं, सरपण वगेरे.
भिषक-भिसअ-भिसओ, भिस, भिसरण वगेरे.
'अत्' अने 'अन्' छेडावाळां नामोनां रूपोमां जे विशेषता छेते आ प्रमाणे छे:
नामने छेडे आधेला 'अत्' प्रत्ययने स्थाने 'अंत' नो व्यवहार थाय छे. अत्-भवत्-भवंत मत्-भगवत्-भगवंत गच्छत्-गच्छंत
गुणवत्-गुणवंत नयत्-नयंत, नेत
धनवत्-घणवंत गमिष्यत्-गमिस्संत ज्ञानवत्-नाणवंत भविष्यत्-भविस्संत नीतिमत्-नीइवंत
णीइवंत 'अंत' छेडावाळां ए बधां नामोनां रूपो अकारांत नामनी जेवां समझवानां छे:
भगवंतो, भगवंतं, भगवंतेण इत्यादि 'वीर' प्रमाणे. भवंतो, भवंतं भवंतेण इत्यादि 'सव्व' प्रमाणे. 'अत्' छेडावाळा नामोनां अनियमित रूपो
भगवत् प्र० ए० भगवं (भगवान् )
णाणवंत
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्र० ब० भगवंतो ( भगवन्तः )
तृ० ए० भयवयां (भगवता) च०, १० ए० भगवओ ( भगवतः )
भवत् प्र० ए० भवं (भवान् ) द्वि० ए० भवंतं ( भवन्तम् ) द्वि० ब० भवतो ( भवतः)
भवओ तृ० ए० भवता ( भवता).
भवया च०, १० ए० भवतो ( भवतः )
भवओ (,) च०, १० ब० भवयाण ( भवताम् ) 'अन्' छेडावाळां नकारांत नामोना 'अन्' नो विकल्पे 'आण' थाय छे:अध्वन्-[अव्+अन् अध्व+आण-अद्धाण] अद्धाण, अद्ध. आत्मन्-अप्पाण, अप्प. ब्रह्मन्-बम्हाण, वम्ह.
उच्छाण, उच्छ. मघवन्-मघवाण, मघव. उक्षन्। उक्खाण, उक्ख । प्रावन्-गावाण, गाव. मूर्धन्-मुद्धाण, मुद्ध. युवन-जुवाण, जुव. राजन्-रायाण, राय.
। तच्छाण, तुच्छ. श्वन्-साण, स.
तक्खाण, तक्ख. सुकर्मन्-सुकम्माण, सुकम्म. पूषन्- पूसाण, पूस.
ए बधां नामोनां रूपो अकारांत नामनी जेम साधी लेवानां छः (अद्धाणो, अद्धाणं, अद्धाणेण (साणो, साणं, साणेण अद्धो, अद्धं, अद्धण
सो, सं, सेण
तक्षन
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
रायाणो, रायाणं, रायाणेण
रायो, राय, रायेण वगेरे.
छेडाना 'अन्' नो 'आण' न थाय त्यारे ए जातनां नामोनां वधारानां केटलांक रूपो जुदी रीते थाय छः
राय (राजन् ) १ राया (राजा) राइणो, रायाणो ( राजानः) २ राइणं ( राजानम् ) ।
, रण्णो (राक्षः) ३ राइणा, रण्णा ( राक्षा) राईहि, राईहिं, राईहिँ
(राजभिः ) ४ राइणो, रण्णो ( राक्षः ) राईण, राईणं ( राक्षाम् )
राइण, राइणं ५ राइणो, रण्णो ( रामः ) राइतो, राइतो, राईओ
राईउ (राजतः।
राईहि, राईहिंतो (राजभ्यः) ६ राइणो, रणो ( राक्षः ) राईण, राईणं ( राक्षाम् )
राइण, राइणं ७ राइंसि, राइम्मि (राशि) राईसु, राईसुं ( राजसु) सं० हे राया ! ( राजन् ) राइणो, रायाणो ( राजानः)
अप्प ( आत्मन् ) १ अप्पा ( आत्मा ) अप्पाणो ( आत्मानः) २ अप्पिणं ( आत्मानम् ) , ३ अप्पणिआ, अप्पणइमा अपेहि, अप्पेहि, अप्पेहि अप्पणा ( आत्मना)
(मात्मभिः) ४-६मप्पाणो ( आत्मनः ) अप्पिणं, अप्पिगं
( आत्मनाम् ) ५ अप्पाणो ( मात्मनः) अप्पत्तो, अप्पतो (आत्मतः)
वगेरे
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
पूस ( पूषन् ) १ पूसा ( पूषा) पूसाणो ( पूषणः ) २ पूसिणं ( पूषणम् ) , (पूष्णः ) ३ पूसणा ( पूष्णा ) पूसहि, पूसहि, पूसहिँ ( पूषभिः ) ४-६पूसाणो ( पूष्णः ) पूसिण, पूसिणं ( पूष्णाम् ) ५ , , पूसत्तो, पूसतो (पूषतः ) वगेरे
मघव मघवन्
महव मधवन १ मघवं, मघवा ( मघवा ) मघवाणो ( मघवानः )
वगेरे 'पूस'नी पेठे साधनिकानी समझ-प्रत्ययो एकव०
बहुव०
MY Mm
२
इणं
BE
सं०
__+ आ निशान छे त्या अर्थात् प्रथमा अने संबोधनना एकवचनमां राय, पूस, मघव वगेरे नामोनो अंत्य स्वर दीर्घ थाय छे: राय-राया. मघव-मघवा. पूस-पूसा.
___ 'णा' प्रत्यय सिवायना 'ण'कारादि प्रत्ययो लागतां पूस वगेरे शब्दोनो अंत्य स्वर दीर्घ थाय छ : पूस+णो-पूसाणो. रायणोरायाणो
अपवाद प्रथमा भने संबोधन सिवायना 'कारादि प्रत्ययो
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६३
लागतां 'राय'ने बदले 'राह' अने 'रण'नो उपयोग थाय छे:राय+णा=राइणा, रण्णा. राय+णो राइणो, रण्णो.
प्रथमा अने संबोधनना बहुवचननो 'णो' लागतां तो 'राय' ने स्थाने एक मात्र 'राइ' वपराय छे. 'पूर्ण' प्रत्यय लागतां 'राय' नो 'य' लोप पामे छे. राय + इ = राइणं ( राजानम् ) राय + इणं - राइणं ( राज्ञाम् )
[ यादी: राइ+ण - राईण, राईणं ए रूपमां 'इणं' प्रत्यय नधी पण षष्ठी बहुवचननो 'ण' प्रत्यय छे ]
'अन्' छेडावाळा कोइ कोइ शब्दने तृतीयाना एक वचनमां 'उणा' अने पंचमी षष्ठीना एकवचनमां 'उणो' प्रत्यय लागे छे. जेमके :
कम्म
( कर्मन ) कम्म+उणा - कम्मुणा (कर्मणा) कम्म+उणो-कम्मुणो ( कर्मणः ) केटलांक अनियमित रूपो
मणसा ( मनसा) मणसो ( मनसः ) मणसि ( मनसि ) वयसा ( वचसा ) सिरसा ( शिरसा ) कायसा ( कायेन ) कालधम्मुणा ( कालधर्मेण )
केटलाक तद्धित प्रत्ययोनी समझ
१ 'तेनुं आ' प अर्थमां नामने 'केर' प्रत्यय लागे छे : अम्ह+केरं = अम्हकेरं ( अस्माकम् इदम् - अस्मदीयम् ) अमारुं तुम्ह+केरं = तुम्हकेरं ( युष्माकम् इदम् - युष्मदीयम् ) तमारुं पर + केरं = परकेरं ( परस्य इदम् - परकीयम् ) पारकुं राय + के रं= रायकेरं ( राशः इदम्-राजकीयम् ) राजानुं २ ‘इल्ल' अने 'उल्ल' प्रत्यय 'तेमां थयेल' अर्थने सूचवे के :
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६४ गाम+इल्ल-गामिल्लं (ग्रामे भवम् ) गाममां थयेलु घर+इल्ल घरिलं ( गृहे भवम् ) घरेलु-घरमां थयेलु अप्प+उल्ल-अप्पुल्लं ( आत्मनि भवम् ) आत्मामां थयेलु नयर उल्ल-नयरुल्लं (नगरे भवम् ) नगरमां थयेलं ३ तेनी जेवू ' एवो भाव सूचववा 'व्व' प्रत्ययनो प्रयोग
करवोः महुर व्व पाडलिपुत्ते पासाया (मथुरावत् पाटलिपुत्रे प्रासादाः) ४ इमा, त्त अने तण प्रत्यय 'पणुं'ना भावने बतावे छे: पीण+इमा-पीणिमा (पीनिमा-पीनत्वम् ) पीनपणुं-पुष्टता. देवात्त-देवत्तं ( देवत्वम् ) देवपणुं. बाल+त्तण-बालत्तणं (बालत्वम् ) बालपणुं ५ 'वार' अर्थने बताववा 'हुत्तं' अने 'खुत्तो' प्रत्ययनो।
उपयोग करवोः एग+हुत-एगहुत्तं. (एककृत्वः-एकवारम् ) एक वार. ति+हुत्तं-तिहुत्तं (त्रिकृत्वः-त्रिवारम् ) पण वार. : ति+खुत्तो-तिखुत्तो (त्रिकृत्वः- , ) प्रण वार.
तिक्खुत्तो ६ आल, आलु, इत्त, इर, इल्ल, उल्ल, मण, मंत अने पंत
ए बधा प्रत्ययो 'वालु' अर्थने सूचवे छे: आल-रस+आल-रसालो ( रसवान् ) रसाळ
जटा+आल-जडालो (जटावान् ) जटावाळो आलु-दया+आलु दयालू (दयालुः) दयाळु-दयावाळु
__ लजा+आलुम्लजालू (लज्जालु.) लाजाळ-लाजवाळु इत्त-मान+इत्त-माणइत्तो (मानवान् ) मानवान इर-रेहा+हर-रेहिरो (रेखावान् ) रेखावान
गव+इर-गव्विरो (गर्ववान् ) गर्ववान इल्ल-सोभा-इल्ल-सोभिल्लो (शोभावान् ) शोभावान उल्ल-सद्द+उल्ल-सदुल्लो (शब्दवान् ) शब्दधान
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६५
मण-धण+मण धणमणो (धनवान् ) धनवान
सोहा+मण-सोहामणो (शोभावान् ) सोहामणो
बीहा+मण-बीहामणो (भयवान् ) बीहामणो मत-घी+मंत-धीमतो (धीमान् ) धीमंत वत-भत्ति+वंत-भत्तिवतो ( भक्तिभान् ) भक्तिवंत ७ 'सो' प्रत्यय पंचमी विभक्तिना अर्थने सूचवे छः
सव्व+त्तो-सव्वत्तो (सर्वतः) सर्वथी, सर्व प्रकारे. कात्तो कत्तो (कुतः) क्याथी, शाथी. जत्तो-जत्तो (यतः) जेथी.
त+त्तो-तत्तो (ततः) तेथी. इ+त्तो-इत्तो (इतः) आथी. ८ 'हि' 'ह' अने 'त्थ' प्रत्यय सप्तमीना अर्थने सूचवे छेः
ज+हि-जहि. ज+ह-जह. ज+त्थजत्थ. (यत्र) जहिं-ज्यां. त+हि-तहि. त+ह-तह. त+स्थ-तत्थ. (तत्र) तहि-त्यां.
क+हि कहि. क+ह-कह. कस्थि+कत्थ. (कुत्र) कहि-क्यां ९ 'तेनुं तेल' पवा अर्थने सूचववा 'पल्ल' (तैल' १४)प्रत्यय वपराय छः कडुअ+पल्ल-कडुपल्लं ( कटुकस्य तैलम्-कटुकतैलम्)
कडधुं तेल दीव एल्ल-(दीपस्य तैलम्-दीपतैलम् ) दीवेल- दीवानुं तेल एरंडापल्ल-एरंडेल्लं (एरण्डस्य तैलम्-एरण्डतैलम् )
परंडेल-परंडानुं तैल धूप+एल्ल-धूपेलं (धूपस्य तैलम्-धूपतैलम् ) धूपेल
धूपयुक्त तैल १० स्वार्थने सुचववा 'अ' 'इल्ल' अने 'उल्ल' प्रत्ययनो व्यवहार विकल्पे थाय छः
११४ दीपस्य तैलम्-दीपतैलम् ए शब्दमांनो 'तैल' शब्द ज कोई काळे पोतानुं व्यक्तित्व खोई प्रत्ययरूपे थयेलो छे. माटे ज भाषामां • धूपेल तेल' शब्दनो व्यवहार प्रचलित छे.
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६६ चंद्र+अ-चंद्रओ, चंद्रो (चन्द्रका ) चांदो. पल्लव इल्ल-पल्लविल्लो, पल्लवो (पल्लवकः) पालवडो-पालव, छेडो.
हत्थ+उल्ल-हत्थुल्लो ( हस्तकः) हाथो-हाथलो. ११ केटलांक अनियमित तद्धितो
एक+सि-एक्कसि एक+सिअ+एक्कसि (एकदा) एक वखत एक इआ-एक्कइआ ) भ्र+मया-भुमया । ।भ्र. भ्र+मया भमया । सणै इसणिों ( शनैः) धीमे धीमे उवरि+ल-अवरिल्लो ( उपरितनः) ऊपहुँ-ऊपरतुं ज+एत्तिअ जेत्तिअं. ज+एत्तिल-जेत्तिल. ज+रहह-जेहह.
( यावत् ) जेटलुं. त+पत्तिअ तेत्ति. त+एत्तिल-तेत्तिलं. त+एहह तेइहं.
(तावत् ) तेटलुं. क+पत्ति केत्तिअं. क+एत्तिल-केत्तिल. कापहह-केहहं
(कियत्) केटलं. एत+पत्तिम-एत्तिअं. एत+एत्तिल-पत्तिलं. एत+पहह-पहह..
( एतावत् ) ( इयत् ) एटलु. पर+क- परक्त ( परकीयम् ) पारकुं राय+क-रायकं ( राजकीयम् ) रायकु-राजार्नु. अम्ह+एश्चय-अम्हेश्वयं (अस्मदीयम्) अमारु-आमचा तुम्ह+एचय-तुम्हेश्चयं (युष्मदीयम् ) तमारु-तुमचा सव्वंग+अ+सव्वंगिअ (सर्वाङ्गीणम् ) सर्व अंगमां व्यापेल पह+इअ-पहिओ (पथिकः) पथिक-प्रवासी अप्पणिय अप्पणयं (आत्मीयम् ) आपणुं
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६७
केलांक वैकल्पिक रूपो
नव+ल-नवल्लो, नवो ( नवकः) नवलु, नवु एक + ल्ल = पक्कलो, एक्को ( एककः ) एकलुं मनाक् + अयं = मणयं ( मनाक् ) मणा - खामी मनाक् + इयं =मणियं,
""
मिस्स + आलिअ =मीसालिअं, मीसं ( मिश्रम् ) मिश्र - मेळेलु. दीघ + र = दीघरं, दीहरं, दीर्घ, दिग्घं ( दीर्घम् ) दीर्घ - लांबु विज्जु + ल= विज्जुला ( विद्युत् ) विजळी
""
पत+ल-पत्तलं, पत्तं ( पत्रम् ) पातळु पीत+ल- पीअलं पीतलं पीवलं पीअं ( पीतम्) पीलुं अन्ध+ल-अंधलो ( अन्धः ) आंधळो
तद्धितांत-शब्दो
घणि ( धनिन् ) धनी - धनवाळो अस्थिअ ( आर्थिक ) अर्थ सं
बंधी - अर्थने लगतुं. आरिस (आर्ष ) ऋषिए कहेलुं मई (मदीय) मा. कोसेय ( कौशेय ) कौशेय -
रेशमी वस्त्र.
हेट्ठिल ( अधस्तन ) हेठलं. जया ( यदा) ज्यारे. अण्णया (अन्यदा) अन्य समये तवस्सि (तपस्विन्) तपस्वी मसि ( मनस्विन् ) बुद्धिमान् काणीण (कानीन) व्यास ऋषि
वम्मय ( वाड्मय ) वाङ्मय - शास्त्र पिआमह (पितामह) बापनो बाप उवरिल्ल ( उपरितन ) ऊपलं-ऊपरनुं कया (कदा ) क्यारे सव्वया (सर्वदा ) सर्व वखते
रायण्ण ( राजन्य) राजपुत्र अत्थि (आस्तिक) आस्तिक भिक्ख (भैक्ष) श्रीख पीणया (पीनता) पुष्टपणं मायामह ( मातामह) मानो बाप सव्वा (सर्वथा ) सर्व प्रकारे तया ( तदा ) त्यारे
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
केटलाक देश्य शब्दो ( नान्यतर जाति ) आरोग्गिय-आरोगेलं-खाधेलुं णिव्व । (नीव) नेवु-छापरानुं उल्लुट्ट-उलटुं
निव्व। उजड-ऊजड
तग्ग-तागडो-त्रागडो ऊसय-ओशीकुं
तुंद (तुन्द) दुंद-पेट
पद्र-पादर ओचुल्ल-ओलोचूलो पद्धर-पाधलं ओक्किय-ओकेलं
परिहण (परिधान) पहरण उड-ऊंडे
पंगुरण-पागरण कंटोल कंकोडु-कंकोडान
पिंजिय-पीजेलु कंकोड
शाक पोट्ट-पोट-पेट कोडिय-कोडियु पोच्च-पोचुं कुल्लड-कूलडु-कूलडी
लाहण-लागुं
बरुअ-वरू खट्ट-खाटुं खड-खड-घास
रंदुअ-रांढवू खुट्ट-खूटेखें
रूअ-रू
लक्कुड-लाकडं खुत्त-खुतेलु गवत्त-गवत-घास
वंग-वांगी-बेंगण
छिक-छींक घग्घर-घाघरो
जिमिय-जमेलु चंग-चंग-सारं
संखलय-शंखतुं चउक-चोक
खिंदुरय-छिंदरु छिल्लर-छिल्लर-पाणी
सोल्ल-मांसना सोळा खाबोचीयु
वहल-वादळ जेमणय-जमणुं
संपडिय-सांपडेलु
टिक-टिकी-टीलु-तिलक | हल्लिअ-हालेखें-चालेलु
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यूनता
अलावू
(अलाबू) दूधी
वचित्र
सामान्य शब्दो विकव (विक्लव'१५) विक्लव
अलाबू आलाब दधी विप्पव ( विप्लव ) विप्लव-तोफान
अक्क (अर्क) अर्क-सूर्य,आकडो घष (ध्वज) धजा-ध्वज
वग्ग (वर्ग) वर्ग
गह (ग्रह) ग्रह लुद्धअ (लुब्धक) लोघो
सद्द (शब्द) शब्द-साद कीलअ (कीलक) खीलो
अल्ल (आई) आलं-भीनुं वणयर (वनचर) वगियर-जंगली । विउण (द्विगुण) बम'
जनावर दीप (द्वीप) द्विप-वेट दार बार) (द्वार) द्वार-बार-वारणु । सबल) (शबल
केटलाक नामधातुओ संस्कृतमां प्रेरक प्रक्रिया उपरांत बीजी पण अनेक प्रक्रियाओ छे. जेवी के-सन्नत, यडंत, यङ्लुबंत अने नामधातुप्रक्रिया. परंतु प्राकृतमा ए माटे खास काइ विशेष विधान नथी. आर्षप्राकृतमां ए प्रक्रियाओनां रूपाख्यानो वपरायेलां मळे छे, ते वर्धाने वर्णविकार वा उच्चारणमेदना नियमोद्वारा साधित करवानां छे. सन्नत-सुस्सूसइ (शुषति) सांभळवाने इच्छे छे, शुश्रूषा
सेवा-करे छे. वीमंसा (मीमांसा) विचार करवो यङन्त-लालप्पर (लालप्यते) लपलप करे छे-बोलबोल करे के
११५ संयुक्त ल, व, ब अने र पूर्ववर्ती होय के परवर्ती होय भन्ने ठेकाणे लोप पामे छे. अने लोप थतां बाकी रहेलो अनादिभूत व्यंजन बेवडाय छे:-पूर्ववर्ती-उल्का-उका-उक्का. शब्द-सद-सह. अर्कअक-अक. परवर्ती-विक्लव-विकव-विकव. श्लक्ष्ण-सह-सव्ह. ध्वज-धअधक्ष. चक्र-चक-चक्क. प्रह-गह-गह. ११६ ब ने बदले 'व' नो पण व्यवहार प्रचलित छेः-शबल-सवल, सबल, अलाबू-अलावू मलावू.
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७०
यङ्लुवंत - चंकमर ( चङ्क्रमीति) चंक्रमण करे छे-फर्या करे छे चंकमणं (चङ्क्रमणम्) चंक्रमण -फर्या करवुं
गरुआ अइ
नामधातु - गरु आइ ) ( गुरुकायते) गुरुनी जेम रहे छे, गुरुनी जेवो डोळ करे छे. अमराइ ) ( अमरायते) अमरवत् आचरे छे, पोतानी जातने अमर समझे छे
अमराअइ
} (तमायते) तम-अंधारा जेवुं छे
तमाइ तमाअइ
धूमाइ | (धूमायते ) धूमने उद्वमे छे - धूमने काढे के
धूमाअइ
सुहाइ सुहाअइ
सद्दाइ
सहाअइ
( सुखायते) सुहाय छे-गमे छे
(शब्दायते ) सादे छे -साद करे छे
नामधातुनां उक्त संस्कृत रूपोमां जे 'य' देखाय छे, प्राकृतरूपोमां तेनो विकल्पे लोप थाय छे. ए नियम मात्र. नामधातु पुरतो छे.
पाठ २० मो कृदंत हेत्वर्थ कृदंत
मूळ धातुने 'तुं' अने ११७ तप' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं हेत्वर्थ कृदंत बने छे.
'तुं' अने 'तप' प्रत्यय लागतां पूर्वना 'अ' नो 'इ' के 'ए' थाय छे.
११७ हेत्वर्थ कृदंत करवा सारु वैदिक संस्कृतमां 'तवें' प्रत्ययनो उपयोग थयेलो छे. प्राकृतनो 'तए' अने वैदिक 'तवे' ए बन्ने तद्दन: समान प्रत्ययो छे. 'त्तए' प्रत्ययवाळां रूपो आर्षप्राकृतमां विशेष मळे छे.
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
। होउ
१७१ भिणितुं१८,मणेतुं। (भणितुम्) भणवा माटे: भण् + तु- भिणिउ, भणे + तुं- हसितुं, हसेतुं (हसितुम् ) हसवा माटे
ॐ रहसिउँ, हसे। + तुं- होइतुं, होपतुं] (भवितुम् ) थवा माटे
होइउं, होप। हो + तुं- होतुं (भवितुम् ) थवा माटे सुस्सूस् + तुं-सुस्मृसितुं, सुस्सूसेतुं (शुषितुम् ) शुश्रूषा
सुस्सूसिउ, सुस्सुसे, करवा माटे चंकम् + तुं-चिंकमितुं, चंकमेतुं (चङ्क्रमितुम्) चंक्रमण चंकमिउं, चंकमे,
करवा माटे प्रेरक हेत्वर्थ कृदंत [मूळधातुनुं प्रेरक अंग करवा माटे जुओ पाठ १८मो नि०१-२] भण्-भणावि+तुं-भिणावितुं (भणापयितुम् ) भणाववा माटे
भणावि कर्-करावि+तुं-करावितुं । (कारापयितुम् ) कराववा माटे हस्-हासिन्तुं- हासितुं। (हासयितुम् ) हसाववा माटे कर्-कारि+तु-कारितुं। (कारयितुम् ) कराववा माटे
कारि क+तए-करित्तए, करेत्तए (कर्तवे-कर्तुम् ) करवा माटे गम् + त्तए-गमित्तए, गमेत्तए (गन्तवे-गन्तुम् ) गमन करवा
माटे-जवा माटे ११८ व्यंजनांत धातुने छेडे 'अ' लागे छे अने स्वरांत धातुने छेडे 'अ' विकल्पे लागे छे ए साधारण नियम छः भण+तु-भण+तुभणितुं, भणेतुं. हो+तुं-होअ+तुं-होतं, होएतुं. हो+तुं- होतुं.
कककराविडं।
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७२ विहर् + त्तए-विहरित्तए, विहरेत्तए (विहर्तवे - विहर्तुम् )
विहार करवा माटे आहर + त्तए-आहरित्तए, आहरेत्तए (आहर्तवे-आहर्तुम् )
आहार करवा माटे दल्+त्तए-दलहत्तए, दलपत्तए (दातवे-दातुम् ) देवा माटे ['आहरित्तए' ने बदले 'आहारित्तए' पण वपराय छे अने
'दल्+त्तए'मां 'अइ' उमेरायो छे] होत्तए-होइसए, होएत्तए (भवितवे-भवितुम् ) थवा माटे होत्तए-होत्तए (भवितवे-भवितुम् ) थवा माटे सुस्सूस+त्तए-सुस्सूसित्तए, सुस्सूसेत्तए (शुश्रूषितवे-शुध
षितुम् ) शुश्रूषा करवा माटे चंकम+त्तए-चंकमित्तए (चङ्क्रमितवे-चङ्क्रमितुम् ) चंक्रमण चंकमेत्तए
करवा माटे भण-भणावि+त्तए-भणावित्तए-(भणापयितवे-भणापयितुम् )
भणाववा माटे कर - करावि+त्तए-करावित्तए ( कारापयितवे-कारापयितुम्)
कराववा माटे कर् - कारि + त्तए-कारित्तए ( कारयितवे-कारयितुम् )
कराववा माटे अनियमित हेत्वर्थ कृदंत कर + तु-कातुं. काउं. कट्ठ (कर्तुम् ) करवा माटे गेण्ह + तुं-घेत्तुं (ग्रहीतुम् ) ग्रहण करवा माटे दरिस् + तु-दट्टुं (द्रष्टुम् ) देखवा माटे-जोवा माटे भुंज+तुं-भोत्तु (भोक्तुम् ) खावा माटे-भोगववा माटे मुं+तुं-मोतुं (मोक्तुम्) छूटवा माटे-छूटा थवा माटे रुद्तुं-रोत्तुं (रोदितुम् ) रोवा माटे वक्तुं-चोक्तुं ( वक्तुम् ) बोलवा माटे
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७३
लहू +तुं लधुं ( लब्धुम् ) लेवा माटे
रुघ+तुं - रोद्धुं ( रोद्धुम् ) रोध करवा माटे रोकवा माटे युध+तुं - योदधुं ( योद्धुम) जूझवा माटे -युद्ध करवा माटे जोदूधुं
संबंधक भूतकृदंत
मूळ धातुने तुं, तूण, तुआण, अ, इत्ता, इत्ताण, आय अने आप प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं संबंधक भूत कृदंत बने छे. 'तुं' वगेरे शरूआतना चार प्रत्ययो लगाडतां पूर्वना 'अ' नो 'इ' अने 'ए' विकल्पे थाय छे.
तूण, तुआण अने इताण प्रत्ययनो 'ण' अनुस्वारवाळो थाने पण वपराय छे:
तूण, तूणं.
तुआण, तुआणं इत्ताण, इत्ताणं
तुं -
हस्+तुं
हसितुं, हसेतुं हसिउं, इसे उं
{ हो+अ+तुं - होइतुं, होतुं { होउ, होउँ हो+तु - होतुं, होउं (भूत्वा ) थईने
तूण—इस्+ तूण- { हसितूण हसेतूण } (हसित्वा) इसीने
( हसित्वा) हसीने
(भूत्वा ) थईने
हो+अ+तूण [ होइतूण, होपतूण (भूत्वा ) थईने
{
(भूत्वा ) थईने
हो+तूण [ होतूण, होतूणं. । हाऊण, होऊणं
तुआण
इस्+तुआण - हसितुआण, हसेतुआण । (हसित्वा) ही (हसिउआण, हसेउआण होतुआण, होएतुआण 1 होइउआण, होपडआण.
हो+अ+तुआण
(भूव
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७४
हो+तुआण - होतुआण, होउआण अ - हस् + अ - हसिभ, हसेअ हो+अ+ अ-होइभ, होपअ हो+भ - होभ
(भूत्वा ) थईने ( हसित्वा) हसीने (भूत्वा ) थईने ( )"
""
( हसित्वा) हसीने
इत्ता - हस् + इत्ता - हसित्ता, हसेत्ता इस्ताण – हस्+इत्ताण - हसित्ताण हसेत्ताण
आय - गह्+आय - गहाय आप- आय+आए - आयाए
"
39
संपेह्+आए—संपेहाए
(आदाय ) ( संप्रेक्ष्य) खूब विचारीने [ 'आय' अने 'आप' प्रत्ययनो उपयोग जैन आगमोनी रचनामां मळी आवे छे. ]
एज प्रमाणे सुस्सूसितुं, सुस्सूसितूण, सुस्सूसितुआण सुस्सूसिभ, सुस्सूसित्ता, सुस्सूसित्ताण ( शुश्रूषित्वा) शुश्रूषा करीने वगेरे रूपो समझवानां छे. चंकमि - तुं - मितूण, - मितुआण, मिश्र, मित्ता, मित्ताण. ( चङ्क्रमित्वा) चंक्रमण करीने
"
"
(गृहीत्वा ) ग्रहण करीने
प्रेरक सबंधक भूतकृदंत - भणावि-तुं - वितूण, वितुआण, - विअ, - वित्ता, वित्ताण
कर+तुं का. काउं ,, तूण-कातूण काऊण
" तुआण-काउआण, कातुआण -गहू+तुं - घेत्तुं
99
तूण- घेत्तूण, घेतूण " तुआण-घेत आण, घेत्तआणं
(भणापयित्वा भणावीने हासि - तुं - सितूण, - सितुआण, -सिअ - सित्ता, -सित्ताण (हासयित्वा ) हसावीने
अनियमित संबंधक भूतकृदंत
( कृत्वा) करीने
(गृहीत्वा ) ग्रहण करीने
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
भोगवीने
दरिस्+तुं-द? " तूण-दळूण, दळूण (दृष्ट्वा) देखीने .. तुआण-दछुआण, दठुआणं) भुंज+तु-भोतुं . , तूण-भोनुण, भोनणं (भुक्त्वा) भोजन करीने, " तुआण-भोत्तुआण, भोत्तुआणं ) मुच्+तु-मोत्त
मोजूण, मोनूणं (मुक्त्वा ) मुकीने-तजीने
मोत्तुआण, मोतुआणं ) एज प्रमाणे रुद् उपरथी रोत्-रोत्तु, रोत्तूण, रोत्तुआण
(रुदित्वा) रोईने वच् ऊपरथी वोत्-वोत्तुं, वोचूण, वोत्तुआण (उक्त्वा)बोलीने वंद् ऊपरथी वंदित्तुं, वंदित्तु (वन्दित्वा) वांदीने कर , कटुं, कटु (कृत्वा) करीने
[वंदित्तुं ' अने 'कट्टुं ' मां ' तुं' नो अनुस्वार लोपाय पण छे. ]
___ आयाय (आदाय) ग्रहण करीने. गच्चा, गत्ता (गत्वा) जईने. किच्चा. किच्चाण (कृत्वा)१ करीने. नच्चा, नच्चाण (ज्ञात्वा ) जाणीने. नत्ता ( नत्वा ) नमीने. बुज्झा ( बुद्ध्वा ) १२० बुझीने, जाणीने. भोच्चा (भुक्त्वा) भोगवीने, खाईने. मत्ता, मच्चा ( मत्वा ) मानीने. वंदित्ता (वन्दित्वा) वांदीने. विप्पजहाय (विप्रजहाय ? विप्रहाय) त्याग करीने. सोच्चा (श्रुत्वा) सांभळीने. सुत्ता (सुप्त्वा) सुईने. आहच्च (आहत्य) आघात करीने-पछाडीने. साहट्ट (संहृत्य) संहार करीने,
११९ 'त्व' नो प्रायः 'च' थाय छे:-कृत्वा-किचा. ज्ञात्वाणचा. भुक्त्वा-भोचा. १२० "ध्व' नो प्रायः 'झ' थाय छे:-बुद्ध्याधुझा. युद्ध्या-जुज्झा.
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७६ लई जईने, बलात्कार करीने. हंता (हत्वा) हणीने. आहट्ट (आहृत्य ) आहार करीने. परिन्नाय (परिक्षाय) बराबर समझीने. चिश्चा, चेच्चा, चइत्ता ( त्यक्त्वा ) त्याग करीने. निहाय ( निधाय ) स्थापीने, प्रवर्तावीने. पिहाय( पिधाय ) ढांकीने. परिच्चन्ज ( परित्यज्य ) परित्याग करीने. अमिभूय (अभिभूय) अभिभव करीने. पडिबुज्झ (प्रतिबुध्य) समझीने.
उच्चारणना भेदथी नीपजेलां आ बधां अनियमित रूपोनी साधनिका, सामे जणावेलां संस्कृत रूपोद्वारा ज समझी शकाय एम छे. आ उपरांत बीजां घणां य अनियमित रूपो छ तेमनी पण साधनिका, आ रूपोनी पेठे ज के माटे ए बधां रूपो नथी जणाव्यां.
विध्यर्थ कृदंत मूळ धातुने तव्व, अणीअ के अणिज प्रत्यय लगाडवाथी विध्यर्थ कृदंत बने छे.
'तव्व' नी पूर्वना 'अ'नो 'ई' के 'ए' थाय छे. तव्वइस्+तव्य-हसितव्वं, हसेतव्यं, हसिअव्वं, हसेमव्वं, (हसि
तव्यम् ) हसवा जेवु, हसवू जोईए. होक्तव्य-होइतव्वं, होएतव्वं, होइअव्वं, होएसव्वं, होतवं.
होयव्वं, होअव्वं ( भवितव्यम् ) थवा योग्य, थर्बु जोईप. नातव्व नातव्वं, नायव्वं ( ज्ञातव्यम् ) जाणवा योग्य,
जाणवू जोईप चिव तव्व-चिवितव्वं, विव्वेतव्यं, चिब्विअव्वं, चिव्वेअर्व
(चेतव्यम् ) एकहुं करवा योग्य, एकहुं थर्बु जोईप अणीअ, अणिजहस्+मणी-हसणी, हसणिजं हसणीय (हसनीयम् )
हसवा जेवं, हसवं जोईर
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रेरक विध्यर्थ कृदंत हसावि+तव्व-हसावितव्वं, हसाविअन्वं, हसावियत्वं ( हसा.
पयितव्यम् ) हसाववा जेवू, हसावQ जोईए. हसावि+अणीअ-हसावणी, हसावणिज, हसावणीय
__ (हसापनीयम् ),
एज प्रमाणे वयणीयं, वयणिज्जं. करणीयं, करणिजं. सुस्सूसितव्वं, सुस्सूसणिजं, सुस्सूसणीयं, चंकमितव्वं. वगेरे रूपो समझी लेवानां छे.
अनियमित विध्यर्थ कृदंत कज (कार्य) करवा योग्य । अज्ज (आर्य) आर्य किच्च (कृत्य ) कृत्य-करवा जेवू पच्च (पाच्य) पचवा-रांधवा-योग्य गेज्झ (ग्राह्य ) ग्रहण करवा योग्य
भव्य (भव्य ) थवा योग्य-ठीक गुज्झ (गुह्य ) छूपाववा योग्य, गुंजूं
घेत्तन्व (ग्रहीतव्य ) ग्रहण करवा वज (वर्य) वर्जवा योग्य वज (वद्य ) बोलवा योग्य
वोत्तव्व (वक्तव्य) कहेवा जेवू अवज (अवद्य ) नहि बोलवा
रोत्तव्व (रुदितव्यम् ) रोवु-रुदन वच्च (वाच्य) कहेवा योग्य
कातव्व(कर्तव्य ) कर्तव्यघक (वाक्य ) वाक्य जन्न (जन्य ) जणवा योग्य
काअव्व) करवा जेवू भिच्च (भृत्य) पाळवा योग्य-भृत्य
भोत्तव्व ( भोक्तव्य ) भोजन करवा
जेवू, भोगवक जेवू भजा (भार्या) भरण पोषण योग्य
मोत्तव्व (मोक्तव्य) मूकवा जेवू अज्ज (अर्य) अर्य-वैश्य, स्वामी । वहव्व (द्रष्टव्य ) देखवा जेवू
___ वर्तमान कृदंत मूळ धातुने 'न्त' 'माण अने 'ई' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं वर्तमान कृदंत बने छे.
योग्य-पाप
कायव्व
भारजा
૧૨
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७८ 'ई' प्रत्यय तो फक्त स्त्रीलिंगा ज वपराय छे.
'न्त' 'माण' अने 'ई' प्रत्यय लागतां पूर्वना 'अ' नो विकल्पे 'ए' थाय छे.
माण
भण+ न्त-भणंतो, भणेतो, भणितो ( भणन् ) भणतो
भणंतं, भणेतं, भणितं ( भणत्) भणतुं भणंती, भणेती, भणिती, (भणन्ती) भणती
भणता, भणेता, भर्णिता,'२० ( भणन्ती) भणती हो+अन्त-होतो, होॲतो, होइंतो, होतो, हुतो(भवन्) थतो
होअंती, होती, होईती, होता, होअंता, होइंता
होती, होता, हुंती हुंता (भवन्ती) थती भण+माण-भणमाणो, भणेमाणो ( भणमानः ) भणतो
भणमाणं भणेमाणं ( भणमानम् ) भणतुं भणमाणी भणेमाणी ( भणमाना ) भणती
भणमाणा, भणेभाणा हो+अ+माण-होअमाणो, होएमाणो, होमाणो(भवमानः) थतो
होअमाणं, होएमाण, होमाणं ( भवमानम् ) थतुं होअमाणी, होएमाणी, होअमाणा, होएमाणा
होमाणा, होमाणी ( भवमाना ) थती भण+ई-भणई, भणेई (भणन्ती) भणती. हो अई-होई,
होएई, होई ( भवन्ती ) थती १२० कोइ पण विशेषणदर्शक नामना अंत्य 'अ' नो वाराफरती 'ई' अने 'आ' करवाथी ते नाम स्त्रीलिंगी थाय छ:- भणन्-भणंत-भणंता, भणंती. नील-नीला, नीली. सर्व-सब-सव्वा-सव्वी. शूर्पणख-सुप्पणहसूप्पणहा, सुप्पणही. साधन-साहण-साहणा, साहणी.
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७९
एज प्रमाणे कर्तरि प्रेरक अंग, सायुं भावे अंग, साढुं कर्मणिअंग अने प्रेरक भावे तथा कर्मणिअंगने पण उक्त त्रणे प्रत्ययो लगाडवाथी तेमनां वर्तमान कृदंतो बने छे. कर्तरि प्रेरक वर्तमान कृदंत -
करावि + अ + न्त –— करावंतो, करावेतो ( कारापयन् ) करावतो कार +न्त -- कारंतो, कारेंतो ( कारयन् ) 39 करावि+अ+माण-करावमाणो, करावे माणो (कारापयमानः ),, कार+माण -- कारमाणो, कारेमाणो, ( कारयमाणः ) सार्दु भावे वर्तमान कृदंत -
भण्+इज + न्त - भणिज्जंतं, भण्+इज+माण - भणिजमाणं, भण्+ ईअ + न्त-भणीअंतं, भण् + ईअ+माण-भणीअमाणं (भण्यमानम् ) भणातुं भणवामां आवतुं
सादुं कर्मणि वर्तमान कृदंत -
भणीअंतो, भणिजंतो गंथो ( भण्यमानः ग्रन्थः ) भणातो ग्रंथ भणी माणो भणिजमाणो सिलोगो (भण्यमानः श्लोकः), श्लोक भणिजंती, भणीअंती गाहा ( भण्यमाना गाथा) भणाती गाथा भणिजमाणी, भणीअमाणी पंती (भण्यमाना पङ्क्तिः), पंक्ति भणिजई, भणीअई प्रेरक भावे
भणाविजतं (भणाप्यमानम् ) भणावातुं भणाववामां आवतुं. प्रेरक कर्मणि
99
ܕ
भणाविजतो, भणाविजमाणो, भणावीअंतो, भणावीअमाणो मुणी (भणाप्यमानः मुनिः) भणावातो मुनि भणाविज्जंती, भणाविजमाणा, भणावीअंती, भणावीअमाणा, भणाविजई, भणावीअई साहुणी (भणान्यमाना साध्वी ) भणावाती साध्वी
पज प्रमाणे
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुस्सूसंतो (शुश्रूषन् ) सुस्सुसमाणो (शुश्रूषमाणः) सुस्सूसिजंतो, सुस्सूसिजमाणो सुस्सूसीअतो सुस्सूसीअमाणो. (शुश्रूष्यमाणः)
चंकमतो (चकमन् ) चंकममाणो (चक्रममाणः ) चंकमिजतो चंकमिजमाणो] चंकमीअंतो चंकमीअमाणो. (चक्रम्यमाणः) आ बधां रूपो जाणी लेवां
भूतकृदंत मूळ धातुने 'त' के 'अ' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं
भूतकृदंत बने छे.
ए बन्ने प्रत्ययो लागतां पूर्वना 'अ' नो 'इ' थाय छेः गम्+अ+त--गमितो. गम्+अ+अ-गमिओ (गतः) गयेलो भावे-गमितं, गमिअं (गतम् ) जवु-गति कर्मणि-गमितो गामो, गमिओ गामो (गतो ग्रामः) जवायेलु गाम प्रेरक-करावितो (कारापितः) कारिओ (कारितः) करावायेलो-करावेलो
अनियमित भूतकृदंत गय (गत ) गयेलं, जर्बु मिलाण (म्लान ) म्लान थयेलं मय (मत), मानेलं, मानवु, मत
मिलान करमायेलं, म्लान थQ. कड (कृत) करेलु, कर,
अक्खाय ( आख्यात) कहेलं, कहे, हड (हृत) हरेलु, ह
निहिय ( निहित ) निहित-स्थामड (मृत) मरेलं, मर,
पेलं, स्थापq जिअ (जित ) जितेलं, जितवं
आणत्त (आज्ञप्त) आज्ञा करेल,
आज्ञा तत्त (तप्त ) तपेलं, तपq
संखय (संस्कृत) संस्कारेलं, संस्कार कय (कृत ) करेलु, कर,
| आकुछ (आक्रुष्ट) आक्रोश करेल, दट्ट (दृष्ट ) दीटुं-देखेखें, देखg
आक्रोशः
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
जणवु
विट्ठ (विनष्ट) विनष्ट, विनाश . | पिहिय (पिहित ) ढांकेलं, ढांकंवु, पण? (प्रणष्ट) प्रनष्ट, नाश पन्नत्त। (प्रज्ञप्त) प्रज्ञापेल, मट्ठ (मृष्ट) शुद्ध, शोधन
पण्णत्त
प्रज्ञापत् हय (हत) हणेलं-हणायेलं, हणवू पन्नविय (प्रज्ञपित ) ,, जाय (जात) जायेलं-थयेलं, सक्कय (संस्कृत) संस्कृत
किलि? (क्लिट्ठ) क्लेशवाळ, गिलाण। (ग्लान ) म्लान थयेलं,
- क्लिष्ट गिलान
ग्लान थq सुय (स्मृत ) स्मरेल, याद करेल परूविअ (प्ररूपित ) प्ररूपेलं सुय (श्रुत ) सांभळेलु, सांभळवू
जणावेलु, प्ररूपq । संसट्ट (संसृष्ट) संसर्गवाळु, संसर्ग ठिय (स्थित ) स्थित, स्थान घट्ट (घृष्ट ) घसेलु, घसवु
उच्चारणना भेदथी नीपजेलां आवां अनेक रूपोनी साधनिका, वर्णविकारना नियमोद्वारा समझी लेवानी छे.
भविष्यत्कृदंत मूळ धातुने इस्संत, इस्समाण अने इस्सई (नारीजाति) प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं भविष्यत्कृदंत बने छे:करिस्संतो (करिष्यन् ) करिस्समाणो(करिष्यमाणः) करतो होईश करिस्सन्ती, करिस्सई (करिष्यन्ती) करती होईश कराविस्समाणो (कारापयिष्यमाणः) कराविस्संतो (काराप
यिष्यन् ) करावतो होईश इत्यादि.
कर्तृदर्शक कृदंत मूळ धातुने 'इर' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं कर्तृदर्शक कृदंत बने छे.
हस+हर-हसिरो (हसनशीलः) हसनारो. नव+हर-नविरो (नम्रः-नमनशीलः) नमनारो. हसाव+इर-हसाविरो (हासनशीलः) हसावनारो. हसिरा, हसिरी (हसनशीला) हसनारी. नविरा, नविरी (नम्रा-नमनशीला) नमनारी वगेरे.
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
R
अनियमित कर्तृदर्शक कृदंतो
पायग ( ( पाचक) पाक करनार-गंधनार
पायअ
नायग (नायक) नायकनायअ नेता - दोरनार
}
(नेट) नायक
- नेतादोरनार
}
नेतु विज (विद्वस् १२३) विद्वान् कन्तु (क) कर्ता-करनार विकन्तु (विकर्तृ) विकार करनार - बोलनार वत्तु ( वक्त) वक्ता - हन्तु ( हन्तु ) हणनार छेन्तु (छेत्तृ) छेदनार मेनु (मेन) मेदनार
केलांक अव्ययो
अग्गे (अग्रे) आघे - आगळ अकट्टु (अकृत्वा) नहि करीने अईव अतीव ) (अतीव) अतीव - विशेष
अग्गओ ( अग्रतः) आगळथी
अओ अतो ।
अणमण्णं (अन्योन्यम् ) अन्यो• अन्य - एकबीजाने
अत्थं (अस्तम्) आथमवुं अत्थु (अस्तु) थाओ
श्रद्धा (अद्धा ) समय
कुंभआर (कुम्भकार) कुंभ करनार-कुंभार
कम्मगर (कर्मकर) कर्म-कामकरनार - कामगरो
भारहर ( भारहर) भार लई
जनार थणंधय (स्तनंधय) धावनारे बाळक
परंतव (परंतप ) शत्रुने तपा वनार - प्रतापी लेहअ (लेखक) लखनार
( अतः ) आथी - एथी
अण (नम् - अन ) निषेध - विपरीत अण्णा (अन्यथा) तेम नहि तो अनंतरं (अनन्तरम् ) अन्तर विना, तुरत
अदुवा ( अदुव
(अथवा ) अथवा
अहुणा ( अधुना ) हमणां
अप्पेव (अप्येव) संशय अभितो (अभितः ) चारे बाजु अम्मो-आश्चर्य
अलं (अलम् ) सर्यु- निषेध पूतुं अवस्सं ( अवश्यम् ) अवश्य
१२३ 'द्व' नो प्रायः 'ज्ज' थाय छे: - विद्वान् विजं
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
असई (असकृत् ) अनेकवार
एगया (एकदा) एकवार-एक दिवसे उपि
एगंततो (एकान्ततः) एक तरफी अवरिं (उपरि) ऊपर
पत्थ (अत्र) अहीं उवरि)
कलं ( कल्यम् ) काले महत्ता (अधस्तात् ) नीचे आहश्च (आहत्य) बलात्कार
कह (कथम् ) केम-केवी रीते (इतः) आ तरफ, वाक्यारंभ | कालओ (कालतः) काले करीने,वखते इतो। इहरा (इतरथा) एम नथी-अन्यथा
केवच्चिरं (कियच्चिरम् ) ईसिं (ईषत् ) थोडं
केटला लांबा समय सुधी उत्तरसुवे (उत्तरश्वः) आवती काल
| केवच्चिरेण (कियश्चिरेण) केटला पछी
लांबा समये सामान्य शब्दो-नरजाति णिलाडवट (ललाटपट्ट) निलवट बिडाल (बिडाल) बिलाडो साधय (श्वापद) सावज
कणिआर (कर्णिकार) कणेर डेड (दण्ड) दंड, डंडो, डांडियो फलाहार (फलाहार) फराळ बन्धु (बन्धु) मांडु-भाई
जवरय (यवांकुर) जुवारा जरढय (जरठक) घरडो-जरडो महण्णव (महार्णव) महेरामण-समुद्र भूक, मूग (मूक) मुंगो
मेरामण (मेरा+मतु-मेरा+मण-मेरामउड (मुकुट) मोड, मुगट
मर्यादा. मण-वाळो-) समुद्र अंबमउड (आम्रमुकुट) अंबोडो मेरा (मेरा) मर्यादा काकोर
ओघरिसो)
रसा (अवघर्ष) ओरसियो वय, वग (बक) बगलो चित्तयार (चित्रकार) चितारो काल आम्रकाल) आंबागाळो
सुत्तहार (सूत्रधार) सुतार
आसाढ (आषाढ) अशाड मास विवाहकाल (विवाहकाल) विवाडो
पाघूणय, (प्राधूणक) पाहुणोविवागाळो-लासरा । पाहुणय
अतिथि
ओहरिसोग
काग (काक) कागडो
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
देसवइ (देशपति) देशाई मसय (मशक) मच्छर किमि (कृमि) कृमि-करमियुं किण्हसार (कृष्णसार) कालीयार मृग भाइणेज (भागिनेय) भाणेज निंबु (निम्बु) लीबु घूअ (घूक) घूअड-घूड
मउल (मुकुल) मार देवर (देवर) देर
मुग्गरय (मुद्गरक) मगदळ-मोगरी गोधूम (गोधूम) गोधम-घउं हरिताल (हरिताल) हरताल पूयर (पूतर) पोरो-पूरो
कुढारय (कुठारक) कुहाडो लोहयार (लोहकार) लूहार
कुद्दालय (कुद्दालक) कोदाळो
पच्छाताव (पश्चात्ताप) पस्तावो कोणय (कोणक) खूणो
अच्छ (अक्ष) आंस-हांस सिआल (शृगाल) शियाळ
तरस (तरक्ष) तरस नामर्नु जनावर गाहय (ग्राहक) घराक फेण (फेन) फीण
आसंक (आशङ्क) आंचको मक्कडय (मर्कटक) मांकडो कोलिअ (कौलिक ?) करोळियो
कोलिको (कौलिक) कोळी-एक बष्फ (बाष्प) बाफ
कोलि सह (शब्द) साद
कोल्हुअ-कोल्हु-सिचोडो कच्छव (कच्छप) काचबो
कोइल-कोयला अरय (अरक) आरो पैडानो
कोत्थल-कोथळो डंस (दंश) डंख
कुक्कुस-कुशका सिलेसम (श्लेष्मन् ) सळेखम
कडइअ-कडिओ-चणनार वसभ (वृषभ) वरख राशी
कडप्प-कडपलो-समूह संतोस (संतोष) संतोक
ककिंड-काकिडो वेस (वष) वेष-मेख
कच्छर-कचरो कुटुंबि (कुडुम्बिन्) कणबी
रवय-रवैयो छावय (शावक) छैयो-छोकरो
कपा (कपर्द) कोडो छुहागुड (सुधागुड) छागोळ
चुनो अने गोळवें मिश्रण | कोड (काड) र
बाह (बाध) वांधो
जात
कोल (कोड) खोळो
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
सामान्य शब्दो-नारीजाति • आपत्ति (आपत्ति) ओपटी | कंकतिआ (ककृतिका) कांचकी दाढा (दंष्ट्रा) दाढ
कुढारिया (कुठारिका) कुहाडी गम्भिणी (गर्भिणी) गाभणी कुद्दालिया (कुद्दालिका) कोदाळी पतीति (प्रतीति) पतीज-विश्वास बारक्खरी (द्वादशाक्षरिका) बाराखी चुच्छंदरिआ (तुच्छोन्दुरुका) मज्जाया (मर्यादा) माजा-मलाजो
छछंदर मंजूसा (मञ्जूषा) मजूह-पेटी कलसी (कलशी) कसली
पेडिआ (पेटिका) पेटी परिहावणि (परिधापनिका) कच्छडिआ (कच्छटिका) काछडी
पहेरामणी - लोमपडी (लोमपटी) लोबडीदेवराणी (देवराणी) देराणी
भरवाडणने पहेरवानी साडी गोणी (गोणी) गुणी-अनाज भरवानी वत्ता (वार्ता) वात कहोणी (कफोणी) कोणी वत्ति (वत्ति) वाट-बत्ती ओसरिया-ओशरी
तजा (त्वचा) तज छेडी (छिद्रिका) छींडी
लक्खा (लाक्षा) लाख अलसी (अतसी) अलसी
कक्खा (कक्षा) काख महिसी (महिषी) भेश
रक्खा (रक्षा) राख छासी-छाश
विभूति भति-राख छवि
विभूई
माला (माला) माला, माळ हलही, हलिहा (हरिद्रा) हळदर
लज्जा (लज्जा) लाज छाया, छाही (छाया) छांया कडी (कटी) केड सवत्तिका (सपत्नीका) शोक्य
जङ्घा (जङ्गा) जांघ संदसिआ (संदंशिका) सांडसी
अंगुलि (अंगुलि) आंगळी छुहा (सुधा) छो-चुनो
भाउजाया (भ्रातृजाया) भोजाई लालसा (लालसा) लालच
-भागी
छवी (छवि) छबी
भीडका (भीतिका) बीक
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
बारिआ (द्वारिका ) बारी
भरणी भगिणी ।
संझा (संध्या) सांज
(भगिनी) बहेन
रति (रात्री) रात
गोडी (गोष्टी ) गोठ, गोठडी
पावरणय ( प्रावरणक) उपरणं बिगुणय ( ( द्विगुणक) बमणुं बिउणय
जनी जणी
गोरी (गौरी) गोरी
सामान्य शब्दो - नान्यतर जाति
तिगुणय ( ( त्रिगुणक) त्रमं तिउणय
चउगुणय ( ( चतुर्गुणक) चोगणुं उग्गुणय
छग्गुणय ( षड्गुणक) छगणुं सत्तगुणय (सप्तगुणक) सातगणुं
अट्ठगुणय (अष्टगुणक) आठगणु मिडफल ( महल ( मेढ्रफल) मींडळ - मीढोळ
भयणफल (
मयणहल उत्थिअ (उत्थित) उठथुं विस (विष) विख
( मदनफळ ) मीढोळ
१८६
कोमलय (कोमलक) कूणुं
सावत्तक (सापन्त्यक) सावकुं
सावन्तय
सगडय ( शकटक) छकडो
-शकट
वरगोठी)
बरोट्ठी "} (वरगोष्टी) वरोंठी
वरजन्ता ।
वरअत्ता
(वरयात्रा) बरात - जान
} (जनी) जान
छट्ठय (षष्ठक) छटुं अच्वब्भुय (अत्यद्भुत) अचंबो अद्ध (अर्ध) अडधुं सोरभ (सौरभ सोडम तिमिर (तिभिर) तम्मर - अंधारुं दालिद ( दारिद्रय ) दळदर
दारिद्र्य
रुक्ar ( रूक्षक) लूखु पलाल (पलाल) पराळ- 5- चोखानुं घास लङ्गल (लाङ्गल) हळ-नांगर बयर (बदर ) बोर - बेर वत्त ( ( वर्त्म ) वाट - रस्तो
वह
कयल (कदल) केळु
नीलय (नीलक) नीलो - नीलुं वादित ) ( वारित्र) वाजिंत्र वाइत /
कोटर (कोटर ) कोतर
तिलय (तिलक) टीलं
७
बिंदु (बिन्दु) म
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
दाहिणय (दक्षिणक) डायुं निच्छिअय (निश्चितक) नक्की उच्छृंखलय (उच्छृङ्गलक) उच्छृंखल-उछांछळो
उच्चंचलय (उच्चञ्चलक) उछांछळो
कुच्छ (तुच्छ) तुच्छ - जूज पगरण ( प्रकरण) पगरण- प्रारंभ नमिर (नम्र ) नम्र - नरम चक्क (चक्र) चक्र-चरखो
૧૮૭
माइहर (मातृगृह) माय-महियर लोहखंड ( लोहखण्ड) लोखंड सिंग (शृङ्ग) सिंगडुं भयव्वाउलय ( भयव्याकुलक ) बेबाकळो
रोमय ( रोमक) रूबुं - रोम दंतपवण (दन्तपवन) दंतवणदातण
बिजय ( द्वितीयक) बीजुं
mob
पाठ २१ मो संख्यावाचक शब्दो
विशेषता:
अट्ठारस (अष्टादश) सुधीना संख्यावाचक शब्दोने षष्ठीना बहुवचनमां 'ह' अने 'हूं' प्रत्यय लागे छे. एगण्छ, पगण्ड (एकेषाम् एकानाम् ?)
दुण्ड, दुहं (द्वयोः) उभयण्ह, उभयण्डं (उभयेषाम् । वगेरे
उभयेानाम् १ }
एग, एक, इक्क, एअ (एक)
आ शब्दनां पुंलिंगी रूपो 'सव्व' नी जेवां थाय छे. स्त्रीलिंगी रूपो 'माला' नी जेवां थाय छे अने नपुंसकलिंगी रूपो नपुंसक 'सव्व'नी जेवां थाय छे.
उभ, उह (उभ) उमे,
(उमे)
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८८
बी०
च० छ०
उमे (उमान्) उभा उमेहि (उमेभिः, उभैः) उमेहि उभेहिँ उभण्ह, उभण्डं (उमेषाम् , उभानाम् ? ) उभत्तो, उभतो,उभओ, उभाओ, उभाउ (उभतः) उभाहि, उभेहि उमाहितो, उमेहितो (उमेभ्यः) उभासुंतो, उभेसुंतो उमेसु, उमेसुं
(उमेषु) दु (द्वि) त्रणे लिंगनां रूपो दुवे, दोणि वेणि । दो, वे, वे (छौ) ...
दुणि विण्णि
स०
बी०
त०
च० छ०
दोहि, दोहिं, दोहि (द्वाभ्याम् ) वेहि, वेहिं, वेहिँ दोण्ह दोण्हं, दुण्ह, दुण्हं (द्वयोः द्वीनाम् ?) वेण्ह वेण्हं, विण्ह, विण्हं दुत्तो, दुतो दोओ, दोउ (द्वितः)
दोहितो, दोसुंतो (द्वाभ्याम् ) दोसु, दोसुं (द्वयोः द्विषु ?) वेसु, वेसुं
.
.
स०
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८९
वछ०
ति (त्रि) त्रणे लिंगनां रूपो तिण्णि
(त्रीणि) तिण्ह, तिहं (त्रयाणाम् त्रीणाम् ?) शेष बहुवचनी रूपो 'रिसि' नां बहुवचनी
रूपो जेवां छे.
चउ (चतुर्) प्रणे लिंगनां रूपो प० बी० चत्तारो, चउरो चत्वारि (चत्वारः चतुरः, चत्वारि) त० चऊहि चऊहिं चऊहिँ (चतुर्भिः )
चउहि चउहिं चउहिँ य० छ०- चउण्ह, चउण्हं (चतुर्णाम् ) शेष बहुवचनी रूपो 'भाणु'ना बहुवचनो रूपी
जेवां छे.
पंच ( पञ्च) त्रणे लिंगनां रूपो प० बी०- पंच
(पश्च) त०- पंचेहि, पंचेहिं पंचेहिं (पञ्चभिः)
पचहि, पंचर्हि पंचाहिँ च० छ०- पंचण्ह, पंचण्हं
(पश्चानाम् ) पंचसु, पंचसुं
(पञ्चसु) शेष बहुवचनी रूपो 'जिण'नां बहुवचननी रूपो
जेवां छे.
आ रीते पाछळ आपेला बीजा बधा शब्दोनों रूपो. जाणवानां छः
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९०
छ (षट् ) छ सत्त ( सप्तन् ) सात अट्ठ ( अष्टन् ) आठ नव ( नवन् ) नव
चउहस) चउद्दह (चतुर्दश) चौद चोद्दस चोद्दह )
दस
(दशन ) दश
दह ( शन् ) दश
एआरह) एगारह (एकादश) अगीयार इआरस) दुवालस) बारह (द्वादश) बार बारस ) तेरस
(त्रयोदश) तेर
पण्णरह
(पञ्चदश) पार पण्णरस
र सोलस । (षट्+दश-षोडश) सोलह
सोळ सत्तरस । (सप्तदश) सत्तर सत्तरह अट्ठारस । (अष्टादश) अढार अट्ठारह ।
कइ ( कति ) प० बी० } कई (कति ) च० छ० } कइण्ह, कइण्हं (कतीनाम् ) बाकी बधां 'रिलि'नां बहुवचनी रूपो जेवां जाणवां.
नीचे जणाधेला शब्दोमां जेओ आकारांत छे तेमनां रूपो 'वाया' नी जेवा जाणवानां छे अने जे शब्दो इकारांत छे तेमनां रूपो 'गति'नी जेवां समझवानां छे. एगूणवीसा ( एकोनविंशति) । बावीसा (द्वाविंशति) बावीश
ओगणीश तेवीसा (त्रयोविंशति)तेवीश-त्रेवीच वीसा (विंशति) वीश
चउवीसा) (चतुर्विंशति) चोवीस एगवीसा) (एकविंशति)
चोवीसा । एकवीश
पणवीसा (पञ्चविंशति) पच्चीशएकवीसा)
पचवीश
इवधीसा
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
छब्धीला (षड्विंशति) छठवीश । बेचत्तालिसा ) सत्तावीसा (सप्तविंशति) सत्तावीश बेआलिसा (द्विचत्वारिंशत् ) अट्ठावीसा )
वेआला । बेताळीश अट्टवीसा (अष्टाविंशति) दुचत्तालिसा ) अडवीसा ) अठ्यावीश तिचत्तालिसा) ( त्रिचत्वारिंशत् ) एगूणतीसा ( एकोनत्रिंशत् ) । तेआलिसा तानीश
ओगणत्रीश
तेआला ) तेजाळीश तीसा ( त्रिंशत् ) त्रीश
चउचत्तालिसा) (चतुश्चत्वारि।
चोथालिआ शत् )चुमाळीश एगतीसा)
चोआला -चुंआळीश एकतीसा ( एकत्रिंशत् )
चउआला इकतीसा ) एकत्रीश
पणचत्तालिसा (पञ्चचत्वारिंशत्) बत्तीसा (द्वात्रिंशत्) बत्रीश पणयाला पिस्ताळीश तेतीसा । (त्रयस्त्रिंशत् ) छचत्तालिसा (षट्चत्वारिंशत् ) तित्तीसा ।
तेत्रीश छायाला छेताळीश चउत्तीसा । ( चतुस्त्रिंशत् ) सत्तचत्तालिसा। ( सप्तचत्वाचोत्तीसा । चोत्रीश सगयाला रिंशत् ) पणतीसा ( पञ्चत्रिंशत् ) पांत्रीश
सूडताळीश छतीसा। (षट्त्रिंशत् ) छत्रीश अट्ठचत्तालिसा। ( अष्टचत्वाछत्तीसा)
अडयाला । रिंशत् ) सत्सतीसा ( सप्तत्रिंशत ) साडत्रीश
अडताळीश अट्टत्तीसा । ( अष्टत्रिंशत् ) एगूणपण्णासा ( एकोनपञ्चाशत् ) अडतीसा आडत्रीश
ओगणपचास एगुणचत्तालिसा ( एकोनचत्वा.
पण्णासा) रिंशत् ) ओगणचालीश
पण्णास (पञ्चाशत्) पचास वत्तालीसा (चत्वारिंशत् ) चाळीश पञ्चासा) एगचत्तालिसा ).
एगपण्णासा) इक्कचत्तालिसा ((एकचत्वारिंशत्) इक्कपण्णासा (एकपञ्चाशत् ) पक्कचत्तालिसा ( एकताळीश पक्कपण्णासा
एकावन इगयाला
एगावण्णा
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९२
।
दुप्पण्णासा। (द्विपञ्चाशत् ) बावण्णा
बावन तेवण्णा । (त्रिपञ्चाशत् ) तिपण्णासा
त्रेपन चोवण्णा । (चतुष्पञ्चाशत् ) चउपण्णासा
चोपन
पणपण्णा
। ( पञ्चपञ्चाशत् )
एकोतेर
पणपण्णासा
पंचावन पंचावण्णा छप्पण्णा । (षट्पञ्चाशत् ) छप्पण्णासा)
छप्पन सत्तावन्ना । (सप्तपञ्चाशत् ) सत्तपण्णासा) सत्तावन अट्ठावना ) (अष्टपञ्चाशत् ) अडवन्ना
अट्ठावन अट्ठपण्णासा) एगूणसट्टि (एकोनषष्टि)
___ ओगणसाठ सट्टि (षष्टि) साठ एगसहि । (एकषष्टि) एकसठ इगसट्टि । बासट्टि (द्विषष्टि) बासठ तेसट्टि (त्रिषष्टि) त्रेसठ चउसट्ठि) (चतुष्पष्टि) चोसठ योसट्टि पणसहि (पञ्चषष्टि) पांसठ छासट्ठि (षट्षष्टि) छासठ सत्तसट्टि (सप्तषष्टि) सडसठ
अट्ठसहि। (अष्टषष्टि) अडसठ अडसट्टि एगूणसत्तरि (एकोनसप्तति)
ओगणोशित्तर सत्तरि। (सप्तति) शित्तेर हत्तरित एगसत्तरि ) एगहत्तरि (एकसप्तति) . एकसत्तरि इकहत्तरि बिसत्तरि
(द्विसप्तति) बोंतेर बाहत्तरि बावत्तरि तिसत्तरि। (त्रिसप्तति) तोतेर । तिहत्तरि चोसत्तरि) चोहत्तरि ((चतुस्सप्तति) चउसत्तरि । चूमोतेर चउहत्तरि) पण्णसत्तरि। (पञ्चसप्तति) पणहत्तरि
पंचोतेर छसत्तरि । (षट्सप्तति) छोतेर छहत्तरि । सत्तसत्तरि । (सप्तसप्तति) सत्तहत्तरि सत्योतेर अट्ठसत्तरि। (अष्टसप्तति) अट्ठहत्तरि अठयोतेर
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
नवणवर
एगणासीह (एकोनाशीति) ओग- | अटुणवह . ण्याएंशी-अगण्याशी अट्ठाणवह (अष्टनवति) अट्ठा)
अडणवह ) असीह (अशीति) अंशी पगासीह (एकाशीति) एकाशी
णवणवह (नवनवति) नव्या) बासीह (द्वयशीति) बाशी
एगूणसय (एकोनशत) , तेसिह (त्र्यशीति) त्राशी-त्र्याशी
सय (शत) सो चउरासीह । (चतुरशीति) बोरासीर । चोर्याशी
दुसय । (द्विशत) वसो
बिसय पणसीह । (पञ्चाशीति) पश्वासीह
पंचाशी
बे सयाई (द्वे शते) बसो छासीर (षडशीति) छाशी तिसय (त्रिशत) त्रणसो सत्तासीर (सप्ताशीति) सत्याशी तिणि सयाई (त्रीणि शतानि) भट्ठासीर (अष्टाशीति) अठ्याशी
त्रणसें नवासीर (नवाशीति) नेवाशी चत्तारि सयाई (चत्वारि शतानि) पगूणनवड (एकोननवति) ,
___ चारसें इत्यादि नवर (नवति) नेवू
सहस्स (सहस्र) हजार एगणवह ) (एकनवति) दससहस्स । (दशसहस्र) दशगणवा
एका दहसहस्सा हजार एगाणवर )
अयुत । (अयुत) " बाणवर (द्विनवति) बाणुं
अयुअ ) तेणवह (त्रिनवति) त्राणुं
लक्ख (लक्ष) लाख चउणवई ।(चतुर्नवति) चोराणुं दसलक्ख । (दशलक्ष) दस लाख चोणवा.
दहलक्ख । पण्णणवा पञ्चणवइ (पञ्चनवति) पंचागुं
पयुअ (प्रयुत) दस लाख
पयुत । पश्चाणवह) छण्णवह (षण्णवति) छन्नुं
कोडि (कोटि) कोड सत्तणवइ । (सप्तनवति) सत्तागुं
कोडाकोडी (कोटाकोटि) कोडासत्ताणवह
नुकोड ૧૩
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
कुद्दालय कोद्दालय
} (कु+दालक) कोदाळो
खइर ( खदिर) खेरनुं झाड के लाकडं णिरिय- नर्यु - एकलुं - केवळ
धवल (धवल) धोळु, धोळ
माधव (मा+धव) लक्ष्मीपति - कृष्ण
(उद्धव) ओधव - कृष्ण
उद्धव
ओद्धव
गुल
गुड
सूई
खइ
(गुड) गोळ
(सूचि) सूई - सोय
गुरु (गुरु) गोर
पहर ( प्रहर) पहोर, पोरो
नहर (नखर) नहोर
पिंड
पैंड
}
सामान्य शब्दो
(पिण्ड) पेंडो, पींडो
विहत्थी ( वितस्ति) वेंत
कयलय (कदलक) केळु
कयली (कदली) केळ पाइक ( पदातिक) पायगा नयर (नगर) नेर-चांपानेर वांकानेर, बीकानेर
अहिनव (अभिनव ) अवनवुं कवल (कवल) कोळीओ
फलाहार ( फलाहार) फराळ कवडुय ( कपर्दक) कोडो कवड्डिया ( कपर्दिका) कोडी कवित्थ ( कपित्थ) कोठु गवक्ख ( गवाक्ष ) गोंखलो - गोंख पिहुल 3 (पृथुल ) पहोलुं
}
पहुल
पट्ठ (प्रविष्ट) पेटो - पेठेलो
कप्पडय (कर्पटक) कपडु - कापहुं रट्ठकूड ( ( राष्ट्रकूट) राठोड
रट्ठऊड
(चित्रकूट) चित्तोड
चित्तकूड चित्तऊड कसवट्टिआ (कषपट्टिका) कसोटी घणयर ( घनतर) घणेरुं - अधिक वच्छयर (वत्सतर) वच्छेरो मयगल ( मदकल ) मंगल- मद झरतो हाथी गुहिलउत्त (गुहिलपुत्र) गुहिलोत दुवे ( द्विवेदिन) दवे, दुबे चउव्वेह ( चतुर्वेदिन् ) चोबे - चोबा
अव्यय
सु० दि० ( शुक्ल दिवस ) अजवाळियुं व० दि० ) ( बहुल दिवस) अंधारियुं ब० दि०)
| सव्वे सुहिणो होतु ।
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९५ नाम [ नरजाति
अक (अर्क) सूर्य, आकडाचं झाड- | अंक (अङ्क) अंक-खोळो
आकडो
अंघ । (अन्ध) आंधळो अग्गि (अमि) अग्नि, आग
अंधल अग्गिअ (अग्निक) आगिओ अंब (आम्र) आंबो अग्घाड (अघेडानु) झाड-अघेडो अंबकाल । (आम्रकाल) आंबागाळी अधि (अचिस्) आंच, जाळ
अंबगाल।
अंबमउड (भाम्रमुकुट) अंबोडो अच्छ (अक्ष) आंस-हांस अणागम । (अन्+आगम) न
आइश्च (आदित्य) आदित्य-सूर्य अनागम आवq ते-अनागमन ।
आमोडो अंबोडो अप्प ( आत्मन् ) आत्मा-आप-पोते
आयरिय (आचार्य) आचार्यअप्पाण ( आत्मन् ) आत्मा आप
धर्मगुरु, विद्यागुरु मारिय (आय) आर्य-सजन
पोते अमुणि (अमुनि) मुनि नहि ते- आस (अव) अश्व-घोडो बडबड करनार
आसाढ (आषाढ) अषाड मास अम्ह ( अस्मद् ) हु
आसंक (आशङ्क) आंचको अय ( अयस ) अयस-लोढुं
अल्हाअ (आहाद) आहादअरय (अरक) आरो-पैडानो
__ आनंद अरिहंत (अरि+हन्त) वीतराग देव । आहार (आधार) भाधार अलाह। (भलाभ) अलाभ- आहार (आहार) आहार-खावातुं अलाम अप्राप्ति । इसि (ऋषि) ऋषि असमण (अश्रमण) श्रमण नहि ते | इंद (इन्द्र) इन्द्र असंजम (असंयम) असंयम उच्छाह (उत्साह) उत्साह अहेल्ल । अल्लाह-ईश्वर
उच्छ (इक्षु) इख-शेरण उट्ट (उष्ट्र) उंट
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
उडिद अद उड्डु (उड़) ओड जातना लोको उण्हाल (उप्णकाल) उनाळो उत्तर (उत्तर) उत्तरदिशा, उत्तरनुं उदहि (उदधि) उद-पाणी-ने
धारण करनार - समुद्र उद्धव, ओद्धव (उद्धव) ओधव -
कृष्ण
उप्पाअ (उत्पाद) उत्पाद - उत्पत्ति ऊरु (ऊरु ) ऊरु - साथळ
उवज्झाय ( उपाध्याय) उपाध्याय अध्यापरु - गुरु-ओझा
उवासग (उपासक) उपासक
उपासना करनार
उवाहि (उपाधि) उपाधि - प्रपंच ऊसव (उत्सव) उत्सव परावण (ऐरावण) ऐरावण - मोटो
हाथी
ओट्ठ (ओष्ठ) ओठ - होठ
ओहरिसो) (अवघर्ष) ओरसियो ओघरिसो
कडि काकीडो
कच्छर कचरो
कच्छव ( कच्छप) काछबो कडइअ कडीओ - घर चणनार कडप्प कडपलो - समूह कण्णिआर (कर्णिकार) कणेर
१९६
कण्ण (कर्ण) कान, कानो कण्ह (कृष्ण) कृष्ण-कान कमंडलु (कमण्डलु) कमंडळ कयविक्कय ( क्रयविक्रय) खरीद वेचj - क्रयविकय करवो करेणु (करेणु) करी - हाथी कलंब ( कदम्ब) कदंबनुं झाड कलह ( कलह ) कलह-कळो कलाव (कलाप) कडपलो - समूह कवडु (कदर्प) कोडो कवि (कवि) कवि कवि (कपि) कपि - वानर कवित्थ ( कपित्थ) कोठं कविल (कपिल) कपिल ऋषि कस (कश) चाबुक
कसिबल (कृषिबल) खेडवाळो -
खेडुत
कंटग (कण्टक) कांटो कंद (स्कन्द) स्कन्द - गणपति कंसआर) (कांस्यकार ) कंसारो कंसार |
काग (काक) कागडो काक
काम (काम) काम - तृष्णा - इच्छा काय ( कार्य ) काया - काय - शरीर काल (काल) काल - समय कावडिअ (कापर्दिक) कावडियुं -
कोडो-कोडी:
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
कासव (काश्यप) काश्यप गोत्रनो
ऋषि- ऋषभदेव
काहार (क+हार) कहार -पाणी
भरनार
कांबलिअ ( काम्बलिक) कामळीयो, कांबळीओने वेचनार वा ओढनार
किण्हसार (कृष्णसार) कालीयार मृग
किलेस (क्लेश) क्लेश
किसाणु ( कृशानु ) अभि
कुक्खि, कुच्छ (कुक्षि ) कूख
कुक्कुस कुशको कुडम्बि (कुटुम्बिन् ) कणबी कुढार (कुठार) कुठार - कुहाडो
कुढारय (कुठारक) कुहा कुद्दालय (कुद्दालक) कोदाळो
कुमारवर ( कुमारवर ) उत्तम कुमार कुलवर ( कुलपति) कुलनो पतिआचार्य
कुंथु (कुन्थु) कंथवो - एक नानी
जीवst
कुंभार (कुम्भकार) कुंभार
ha ( कैवर्त) कैवर्त - केवट -होडी
हांकनार
१९७
केसरि ( केसरिन् ) केसरावाळो - याळवाळो सिंह - केसरी सिंह कोइल कोयला
कोइल (कोकिल) कोकिलकोकिल
कोयळ
कोड ( क्रोड) गोद- खोळो
कोणय ( कोणक) खूणो
htra arrot
कोल ( ( क्रोड) खोळो BATE}
कोलिअ ( कौलिक) करोळियो
कोलिक) (कौलिक) कोळीकोलिअ
एक जात कोल्हुअ (कोल्हु) कोल्हू - सिचोडो कोस (कोश) कोह - पाणी
काढवानो, कोश - खजानो कोसिभ (कौशिक) कौशिक गोत्रवाळो इन्द्र अथवा चंडकौशिक सर्प कोह (क्रोध) क्रोध कोहदंसि ( क्रोधदर्शिन् ) क्रोधने
जोनार - क्रोधी
स्वग्ग (खड्ग) खड्ग-तलवार खट्टिक (घातक) खाटकी वत्तिय (क्षत्रिय) क्षत्रिय
वय (क्षय) खे - क्षय
खार
(क्षार) खारो
छार
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
गृहस्थ
खोखला खोखळदंतो बोड खोडो लंगडो खोल (खर) खोलकुं-गधेडानुं बच्चुं खंध (स्कन्ध) कांध-खांध-भाग,
मोटी डाळ गग्ग (गार्ग्य) गर्गनो पुत्र-ते नामनो
एक ऋषि गह ) (गर्दभ) गधेडो गद्दह, गढ गढ गणधर । (गणधर) गणने धारण गणहर करनार-समूहनी-व्यवस्था
करनार आचार्य गणवइ (गणपति) गणोनो पति
गणपति गणि ( गणिन् ) गण-समूहने
साचवनार आचार्य गम्भ (गर्भ) गर्भ, गाभो गभदसि (गर्भदर्शिन् ) गर्भने
जोनार-जन्म धारण करनार गय (गज) गज-हाथी गरुल (गरुड) गरूड गवक्ख (गवाक्ष) गोखलो-गोंख गंध (गन्ध) गंध गंधिअ (गान्धिक) गांधी-गंधवाळी
वस्तुने वेचनार गाम (ग्राम) गाम
गाहय (ग्राहक) घराक गिहि (गृहिन्) गृहस्थ गुय्ह (गुय) गुटक-यक्ष, गुह्य - गूढ गुरु (गुरु) गुरु-गोर, वडिल माता
पिता वगेरे गुहिलउत्त (गुहिलपुत्र) गुहिलोत गोतम । (गौतम) गौतम गोत्रनो गोयम
मुनि गोघूम (गोधूम) गोधम-घउं घड (घट) घडो घरवइ । (गृहपति) घरनो पतिगहवर घूअ (घूक) घूअड-घूड घोडअ (घोटक) घोडो चउध्वेइ (चतुर्वेदिन् ) चतुर्वेी
चोबे, चोबा चक्कवट्टि (चक्रवर्तिन् ) चक्र फेर
वनार-चक्रवर्ती राजा चक्खु (चक्षुस् ) चक्षु- आंख चम्मार (चर्मकार) चमार चंद (चन्द्र) चंद्र चाइ (त्यागिन् ) त्यागी चास खेतरमां चास करवा ते चित्त (चित्र) एक सारथिनु नाम चित्तकूड । (चित्रकूट) चितोड चित्तऊड चित्तयार (चित्रकार) चितारो
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
झंखर झांखरु-सङ्घ झुणि (प्वनि) झणझणाट-अवाज
छगलय (छाग) छालू-बकरूं इत्त (छात्र) छात्र-विद्यार्थी छप्पअ । (षट्पद) छपगो-भमरो छप्पय । छंट छांटो-छांट छावय (शावक) छैयो-छोकरो छुहागुड (सुधागुड) छागोळ-चुनो
अने गोळy मिश्रण छेअ (छेद) छेडो जट्ट (जत) जाट नातनो माणस जडालु (जटाल) जटाळु-जटावाळु जणय (जनक) जनक-पिता जण्हु (जनु) ते नामनो सगरपुत्र जम्म (जन्मन् ) जन्म जर (ज्वर) ज्वर-ताव जरढय (जरठक) घरडो-जरडो जवरय (याकुर) जुवारा जंतु (जन्तु) जंतु-प्राणी-जीवजंत अंबु (जम्बु) जांबु, जांबुन झाड जामाउय (जामातृक) जमाई जायतेय (जाततेजस्) जेमां तेज
छे ते अग्नि जिण (जिन) जय पामनार-वीतराग जीव (जीव) जीव जीवाउ (जीवातु) जीवननु औषध जोइसिस (ज्योतिषिक) जोशी जोगि (योगिन् ) योगी-जोगी
टप्परब टापरो-खराब कानवाळो टार टारडो टुंट हुंठो
डंड (दण्ड) दंड, डंडो, डांडियो । डव्व । डाबु-डाबो हाथ
डाव डस (दंश) डंख ढुंगर डुंगरो दुंब डोम-चांडाळ हुँघ ९घो-होको डोअ डोयो-पाणी काढवानो डोयो डोल डोळो-आंखनो डोळो णक्क नाक णातसुत । (ज्ञातसुत) ज्ञातवंशनो णायसुयS पुत्र-महावीर णिलाडवट्ट (ललाटपट्ट) निलवट पहावि । (नापित) नवरावनारोनाविअ । नावी-हजाम त! (तद्) ते
तलाय (तडाग) तलाव तरस (तरक्ष) तरस नामर्नु जनावर तरु (तरु) तरु-दु-झाड तव (तपस्) तप-तपश्चर्या
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
२००
| विणयर (दिनकर) दिननो करनार
तव (स्तव) स्तव-स्तुति सवस्सि (तपस्विन् ) तपस्वी । तस (त्रस) त्रस प्राणी-गति करी
शके तेवा प्राणी तंतु (तन्तु) तांतणो तंबोलिअ (ताम्बूलिक) तंबोळी ताव (ताप) ताव-ताप-तडको तिल (तिल) तल तुम्ह ( युष्मद् ) तुं तुरंगम (तुरंगम) तुरत जनार,
तुरंग-घोडो तेभ ( तेजस् ) तेज तेलिअ (तैलिक) तेली-तेल
__ वेचनार थावर (स्थावर) स्थिर रहेनार- __गति न करी शके ते प्राणी
__वनस्पति वगेरे थेर (स्थविर) स्थिर बुद्धिवाळो
पाकट-वयोवृद्ध-संत दयालु (दयाल) दयालु दवर दोरो दंड (दण्ड) दंड-डांडो-लाकडी दंत (दन्त) दांत दाडिम (दाडिम) दाडम दास (दास) दास दाहिण । (दक्षिण) दक्षिणदक्षिण
दक्षिण-
दुकाल (दुकाल) दुकाळ दुक्खदसि (दुःखदर्शिन् ) दुःखने
जोनार-दुःख पामनार दुम (द्रुम) द्रुम-झाड दुवेइ (द्विवेदिन् ) दवे, दुबे दुस्सीस । (दुश्शिष्य) दुस्सिस्स दुष्ट शिष्य-विद्यार्थी देवज (दैवज्ञ) दैवने जाणनार
जोशी देवर (देवर) देवर-देर-दियर देविंद (देवेन्द्र) देवोनो इन्द्र
देवोनो स्वामी देस (देश) देश देसवर (देशपति) देशाई दोस (दोष) दोष, द्वेष दोसिअ (दौष्यिक) दोशी-दृष्य
वन वेचनार धअ (ध्वज) धजा-ध्वज धणि (धनिन् ) धानवाळो-धणी धन्न (धान्य) धान्य नड (नट) नट नमि (नमि) ते नामनो एक
राजर्षि-नमिराज नमिराय (नमिराज) नमिराज-ते
नामनो मिथिलानो एक राजर्षि
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
असावधानता-आळस
जयण (नयन) नेण-आंख
पण्ह (प्रश्न) प्रश्न मरवड (नरपति) नरोनो पति-नर- पण्हम (प्रस्तुत) पानो पति-नरपत-राजा
पमाद (प्रमाद) प्रमाद नह (नख) नख नह ( नभस्) नभ-आकाश
परियट्ट परीट-धोबी नहर (नखर) नहोर
पल्हाअ (प्रहाद) प्रहाद कुमार नातपुत्त) (ज्ञातपुत्र) ज्ञातवंशनो
पवासि ( प्रवासिन् ) प्रवास करनार णातपुत्त पुत्र-महावीर नायपुत्त)
पवच (प्रपञ्च) प्रपंच नास (न्यास) न्यास-थापण
पव्यय (पर्वत) पर्वत नास (नाश) नाश
पसु (पशु) पशु निव (नृप) नृप-राजा
पहु (प्रभु) प्रभावशाली-समर्थ नेह (स्नेह) स्नेह-नेह
पंडरंग (पाण्डुराङ्ग) पांडुरंग महादेव नेहालु (स्नेहाल) नेहाल-स्नेहाळ
पंथ (पन्य) पंथ मार्ग स्नेहवाळो
| पाउस (प्रावृष् ) पाउस-पावस 'पा (पति) पति-स्वामी-धणी
वरसादनी ऋतु मालीक
पाणय । (प्राघूणक) पाहुणोपक्ख (पक्ष) पक्ष-पखवाडीयु,पंख
पाहूर्णय पांख, तरफदारी
पाण (प्राण) प्राण-जीव पक्खि ( पक्षिन् ) पंखी-पांखवाळु पाणि (प्राणिन् ) प्राणी पच्छाताव (पश्चात्ताप) पस्तावो
पाणि (पाणि) पाणी-हाथ पज (प्राज्ञ) प्राज्ञ-डायो
पाय (पाय) पा-चोथो भाग पज्जुण्ण। (प्रद्युम्न) प्रद्युम्न नामनो पाय (पाद) पाद-पग-पायो पज्जुन्न । कृष्णनो पुत्र । पायय (पादक) पायो पडह (पटह) पडो-ढोल
पावासु ( प्रवासिन् ) प्रवासी पण्हस (प्रस्नप) पानो-पोतान पास (पाश) पाश-फांसो पाशलो बाळक जोइने माताने दूध भावे ते ।
फांसलो
अतिथि
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०२
॥
पासाय (प्रासाद) प्रासाद-महेल पिणाअ पराणे पिलोस (प्लोष) दाह पीलु (पील) पीलुनुं झाड पुरिम (पुरा+इम) पहेलान, पूर्व पुरिस (पुरुष) पुरुष पुव्व (पूर्व) पूर्व-पूर्वन पुव्वण्ह (पूर्वाह्न) दिवसनो पूर्व भाग पूयर (पूतर) पूरो-पोरो पेडइअ फडिओ-दाणानो वेपारी पोक्खर (पुष्कर) पोखर-तळाव पोट्ठिय (पौष्टिक) पोठीयो-महादेवनो
पोठीयो फलाहार (फलाहार) फराळ फास (स्पर्श) स्पर्श फेण (फेन) फीण बल्ल बळद-बेल बक । (बक) बगलो) बग बप्प (वस्तृ) बाप बष्फ (वाष्य) बाफ बहिणीवइ (भगिनीपति) बनेवी बंधव (बान्धव) बांधव-भाई बंधु (बन्धु) बंधु-भांडु-भाई बंभण) (ब्राह्मण) ब्रह्म-विद्याने बम्हण, जाणनार समझनार माहण)
बंभयारी (ब्रह्मचारिन् ) ब्रह्मचारी माघ (बाध) वांधी बाल (बाल) बाळ-बाळक बाहु (बाहु) बाहु-बांय-हाथ बिडाल (बिडाल) बिलाडो बिंदु (बिन्दु) बिंदु, मींड, टीपुं बुद्ध (बुद्ध) बुद्धदेव बुह (बुध) बुद्धिमान्-डाह्यो पुरुष बोकड (बर्कर) बोकडो-करो भड (भट) भड-शूर भमर (भ्रमर) भमरो भाइणेज (भागिनेय) भाणेज . भाणु (भानु) भानु-भाग-सूरज भार (भार) भार भारय (भारक) भारो भारवह (भारवह) भार वहन कर
नार-मजूर भारहर (भारहर) भार लई जनार
भिंग (भृङ्ग) मुंग-भमरो भिक्खु (भिक्षु) भिक्षु भूअ (भूत) भूत-प्राण जीव भूमिवह (भूमिपति) भूमिनो पति
राजा भूवा (भूपति) भू-पृथ्वी-नो पति
भूपति-भूपत-राजा
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०३
भोगि। ( भोगिन् ) भोगी- । महण्णव ( महार्णव ) महेरामण भोइ । भोगोने भोगवनार म. (मृग) मृग-कनपशु-हरण
महप्पसाय (महाप्रसाद) मोटा मउड (मुकुट) मोड-मुगट
प्रसादवाळो-सुप्रसन्न-कृपालु मउल (मुकुल) मोर
महातवस्सि (महातपस्विन् ) मोटो मकड मकडी-करोळीयो
तपस्वी मकडय (मर्कटक) मांकडो महादोस (महादोष) महादोष-मोटो मग्ग (मार्ग) मार्ग-मारग
दोष मग्गु ( मद्गु ) एक प्रकारनी । महावीर (महावीर) महावीर देव
माछली
महासड्डि ( महाश्रद्धिन् ) मोटी मच्चु । (मृत्यु) मोत-मरण
__अचल श्रद्धावाळो मिच्चु
महासव (महास्रव) मोटो आश्रवमढ (मठ) मढी-मठ-संन्यासियोनुं
पापोनो मोटो मार्ग रहेठाण
महेसि महा+ऋषि व्यास वगेरे मणि (मणि) मणि
। महर्षि महर्षि मणिआर (मणिकार) मणियार मंजार (मार्जार) मणजर-बिलाडो
काचनो सामान वेचनार मंति ( मन्त्रिन् ) मन्त्री- कारभारी मयगल (मदकल) मेंगल-मद मंतु (मन्तु) अपराध-शोक
झरतो हाथी
माधव ( मा+धव) लक्ष्मीपतिमयंक (मृगाङ्ग) मृगना निशानवाळो
माधव-कृष्ण
मार (मार) मारनारो-तृष्णा मरहह ( महाराष्ट्र ) मोटो देश- माराभिसंकि ( माराभिशङ्किन् )
महाराष्ट्र देश मार-तृष्णा-थी शंकित रहेनारमरहट्ट (महाराष्ट्रीय) महाराष्ट्रनो दूर रहेनार-तृष्णाथी डरनारो
____ वतनी-मराठी लोक मालिअ ( मालिक ) माली-माळा मसय (मशक) मच्छर
वेचनार
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
-मास
-मास (मास) महीनो - मिलिच्छ ( म्लेच्छ) म्लेच्छ
मुइंग ( ( मृदङ्ग) मृदंग मिरंग
मुग्गर ( मुद्गरक ) मगदळ -
मोगरी
मुणि ( मुनि) मुनि-मनन करनार मौन राखनार - संत
मुब्भ ( मोभ मोब्भ)
मुहुत्त ( मुहूर्त ) मूरत - वखत - थोडो
समय
मूअ मूक
भूग
(मूक) मूंगो
मूसअ ( ( मूषक) मूषक - उंदर भूसय
मेरामण ( मेरा + मतु - मेरा +मण)
मेह (मेघ) मे - मेघ - वरसाद मेहावि ( मेधाविन् ) मेधावाळो
महरामण - समुद्र
बुद्धिमान्
मोक्ख (मोक्ष) मोक्ष - छूटकारो मोचिअ ( मौचिक) मोची - मोजां
सीवनार
मोर
मयूर }
(मयूर) मोर - मयूर
२०४
मोह (मोह मोह - मूढता मोहणदास ( मोहनदास) ते नामनो वीर पुरुष - मोहनदास गांधी रट्ठकूड ) ( राष्ट्रकूट) राठोड
धम्म ( राष्ट्रधर्म) राष्ट्रनो धर्मसमग्र देश हित करनारी प्रवृत्ति रण्णवास (अरण्यवास ) अरण्यमां वस - वनमा रहे
रफ राफst वय रवैयो
रस (रस) र
रस्सि (रश्मि) राश - बळदनी के घोडानी राश
राग (राग) राग - आसक्ति रायरिसि ( राज + ऋषि) राजर्षि
रिच्छ (ऋक्ष) छ रिसि) (ऋषि) रुषि इसि ।
रुक्ख (वृक्ष) रुख - झाड
लाह
लाभ
(लाभ) लाभ-लावो
लेहसालिअ (लेखशालिक) निशा
ळीओ-निशाळे भगवा जनार
लोअ ( (लोक) लोक-जगत -
लोग
}
लोको
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०५
लोह (लोभ) लोभ लोहयार (लोहकार) लुहार लोहार ( , ) , -लवार वग्ध (व्याघ्र) वाघ वच्छ (वत्स) बच्चु-संतान-वाछडो बच्छयर (वत्सतर) बछेरो वह वडो वणप्फर । (वनस्पति) वनस्पति वणस्सह । वखमाण (वर्धमान) वर्धमान
महावीर वप्पी। बपैयो वप्पीह। वम्मह (मन्मथ) मनने भयनार
कामदेव वरदसि ( वरदर्शिन् ) उत्तम रीते
जोनार ववहार (व्यवहार) वेव्हार-वेपार ववहारिअ (व्यावहारिक) वहेवारी
वहेपारी वसभ (वृषभ) वरख राशी वसह (,) वृषभ-बळद वसु ( वसु ) वसु-धन, पवित्र ।
वाउ) (वायु) वायु-चा वायु, वाणिभ (वाणिज) वाणीओ वाणिजार (वाणिज्यकार) __वणजारो-वणज करनारो-वेपारी वाहि (व्याधि) व्याधि-रोग विजत्थि ( विद्यार्थिन् ) विद्यानो
अर्थी-विद्यार्थी विडवि (विटपिन् ) बीड-झाड विण्हु (विष्णु) विष्णु विप्परियास (विपर्यास) विपर्यास
विपरीतता-भ्रान्त विराग (विराग) रागथी विरुद्ध .
भाव-वैराग्यः विवाहकाल (विवाहकाल) विवाडो
लग्नसरा विहु (विधु) विधु-चन्द्र विंचुअ (वृश्चिक) वींछी विछिअ (,) वींछी वीस (विश्व) विश्व-बधुं वुड (वृद्ध) बूढो-घरडो वुत्तंत (वृत्तान्त) वृत्तान्त-समाचार वेय (वेद) ऋग्वेद वगेरे वेद वेवाहिअ (वैवाहिक ) वेवाई वेस (वेष) वेष-मेख वेसाह (वैशाख) वैशाख मास. वोझ (वय) बोजो
मनुष्य
वहोलो पाणीनो वहेळो वंसा (वंशक) वांसो-पीठ
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०६
: वोज्झअ बोजो
स, सुव (स्व) स्व- पोते-पोतानुं स (श्वन्) श्वान - कूतरो सउणि ( शकुनि) शकुनि - पक्षी सज्ज (षड्ज) षड्ज - एक प्रकारनो
सूर
-सट ( शठ) शठ-लुचो सह (शब्द) शब्द -- साद - अवाज सप्प (सर्प) साप
· सम (सम) बधुं समण (श्रमण) शुद्ध माटे श्रम करनार - संतपुरुष समन्तदंसि (सम्यक्त्वदर्शिन् ) सत्यने
जोनार - समजावनार-आचरनार समुह ) (समुद्र) समुद्र-समुदर समुद्र ।
सयंभु (स्वयंभू ) स्वयं थनार-ब्रह्मा, ते नामनो समुद्र सरह (सत्य) सत्य नामनो पहाड,
सही शकाय ते
सर ( स्मर) स्मर- कामदेव सवह (शपथ ) शपथ - सोगन सव्व (सर्व) सर्व- - सब- बधुं सब्वज (सर्वज्ञ) सर्वज्ञ - बधुं जाणनार सव्वण्णु (,, ) सर्व जाणनार सव्वसंग (सर्वसङ्ग) सर्व प्रकारनो संग-संबंध-आसक्ति
संकु (शंकु ) शंकु - खीलो संख (शङ्ख) शंख
संग (संग) संग - सोबत संतोस (संतोष ) संतोक संभु (शम्भु) शंभु- सुखनुं स्थानमहादेव
संवत्तअ (संवर्तक) संवर्तक- वायु संसार (संसार) संसार - जगत् संसारहेउ (संसारहेतु) संसारमो हेतु - संसार वधवानुं कारण साणु (सानु) शिखर
साड ( शाट) साङलो - साडी साडय ( शाटक) 29 साडवी ( ( शाटविम् ) साळवी - साडी वणनार
د.
सारहि ( सारथि ) सारथि - रथ
हांकनारो
साव ( शाप ) श्राप सावय ( श्वापद) सावज
साहु (साधु) साधक, साधन करनार
- साधुपुरुष, सज्जन, शाहुकार सिआल (शृगाल) शिआळ सिद्ध (सिद्ध) अदेही - वीतराग सिम (सिम) बधुं
सिलिम्ह (श्लेष्मम् ) श्लेष्मा सिलेसम ( ) सळेखम
ॐ
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
-बाळक
सिलो (श्लोक) लोक-कीर्ति | सोवाग (वपाक) चांडाळ सिलोग।
सोमित्ति (सौमित्रि) सुमित्रानो पुत्र सिसु (शिशु) शिशु-बाळक सिंगार (शृङ्गार) शृंगार-शणगार सोरहिअ (सौरभिक) सरैयो-सुरमिसीआल (शीतकाल) शियाळो
सुगंधी-तेल वगेरेने वेचनार सीस । (शिष्य) शिष्य-विद्यार्थी
सोवण्णिय (सौवर्णिक) सोनीसिस्सा
सोनुं घडनार सीहो (सिंह) सिंह
हत्थ (हस्त) हाथ सिंघ
हत्थि (हस्तिन् ) हाथी सुत्तहार (सूत्रधार) सुतार हर (हर) हर-महादेव सुमिण)
हरिअंद (हरिश्चन्द्र) हरिचंद राजा सिमिण (स्वप्न) सपर्नु-सोj हरिएसबल (हरिकेशबल) मूळ सुविण
चंडाळ कुळमां जन्मेलो एक सिविण)
जैन मुनि सुरह (सुराष्ट) सोरठ देश
हरिण (हरिग) हरण सुरटुअ । सुराष्ट्रीय । सोरठनो । हरिताल (हरिताल) हरताळ सोरट्रीमो सौराष्ट्रीय । वतनी- रिस (हर्ष) हरख-हर्ष
सोरठी लोक
हव्ववाह (हव्यवाह) हव्यवाह-अमि सूअर (शुकर) शूकर-मुंड हेमंत (हेमन्त ) हेमंत ऋतुसेहि (श्रेष्ठिन् ) श्रेष्ठी-शेठ
शिआळो
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०८
नाम [ नारीजाति] मालि एलि-अकाळे वादळां थवां । ककंधू (कर्कन्धू) बोरडी अच्छरसा ( अप्सरस्) अपसरा कक्खा (कक्षा) काख अज्जू (आर्या) सासू-आजी कच्छडिया (कच्छटिका) काछडी अम्मा (अम्बा) मा-अम्मा
कच्छु (कच्छु) खाज-खरज अलसी (अतसी) अळशी कट्टारी कटार अलाऊ। (अलाबू)
कडी (कटी) केड लाऊ
तुंबडी-लउआ / कत्ता (कत्ता)पासा-जुगारनी आंधळी भवालुया अवाळु-दांतना पेढा
कोडी अंगुलि (अङ्गुलि) आंगळी कयली (कदली) केळ माणा (आज्ञा) आज्ञा-आणा
कलसी (कलशी) कसली-कळशी मापत्ति (आपत्ति) ओपटी
कलिआ (कलिका) कळी मासिसा (आशिष्) आशिष,
कहोणी (कफोणी) कोणी
आशीर्वाद कंकतिआ (ककृतिका) कांचकी इत्थी (स्त्री) स्त्री-तिरिया
कंति (कान्ति) कांति, खांत थी ।
कित्ति (कीर्ति) कीर्ति-कीरत उत्थल्ला उथलो-उथळवं-उथळी
किया (क्रिया) क्रिया, विधि-विधान
किवा (कृपा) कृपा उंबी पाकेला घउंनी हुंडी
किसरा (कृसरा) खीझडी उत्तरिविडी उतरेड-वासणनी मांड ।
कुक्खी (कुक्षि) कूख उत्थल्लपत्थल्ला उथलपाथल कुठारिया (कुठारिका) कुहाडी मोज्झरी होजरी
कुदालिया (कुद्दालिका) कोदाळी ओप्पा ओप
कुमारी (कुमारी) कुंवरी, कुंवारी ओसरिया ओशरी
कुहिणी (कफोणी) कोणी ओसा ओस
खडकी खडकी कउहा ( ककुभ) दिशा
खडा (गर्ता) खाडो
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
खणुसा खणस - इच्छा खली खोळ
खंति ( क्षान्ति) क्षमा
गड़ (गो) गाय - गाउ
गउआ (गौका) गाय गडवडी गडगडाटी
गड्डी (मन्त्री) गाडी
गंडीरी गंडेरी - शेरडीनी कातळीओ
गब्भिणी (गर्भिणी) गाभणी
गाई (गो) गाय
गायरी गागर
गिरा (गिर) गिरा - वाणी गोडी (गोष्ठी) गोठ- गोठडी गोणी (गोणी) गुणी - अनाज भर
वानी
गोरी (गौरी) गौरी - पार्वती,
गौरी स्त्री
गोली गोळी घिणा (घृणा) घिण - घृणा
चवेडी चपटी वगाडवी चंचु (चञ्चु ) चांच
चंदिआ ) ( चन्द्रिका) चांदनी, चंद्रिआ
चांदी-रूपुं
चंदिमा (चन्दिका) चन्द्रमानी चांदनी
चिरिद्दिट्टी | चणोठी चिणोड़ी
}
चिंता (चिन्ता) चिंता
१४
२०९
चुच्छंदरिया (तुच्छोन्दुरुका) छ्छु
दर
चोट्टी चोटी
छल्ली छाल छवडी चामडी
छवि, छवी (छवि) छबी
छाया, छाही (छाया) छाया
छासी छारा
छुहा (क्षुधा ) भूख
छुहा (सुधा) छो-चुनो छडी - छींडी
जनी, जणी (जनी) जान
जंघा (जंघा) जांघ जाडी झाडी
जिन्भा ( ( जिह्वा) जीभ जीहा
जुक्ति (युक्ति) जुक्ति - योजना जुवइ (युवति) युवति
जोवारी जूवार जार
झडी वरसादनी झडी झंटी झाटयां - माथाना वाळ झोलिका झोळी
डाली डाळ - शाखा टंकणी ढांकणी
ढेंका ढिकवो
णत्था नाकनी नथ, बळदनी नाथ णहरी नेरणी
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
पिंहिणी नींदवु नकामुं घास कापवु णीसरिआ नीसरणी
तजा (त्वचा) तज
तणुवी (तन्वी) पातळी
तण्हा (तृष्णा) तृष्णा तरुणी (तरुणी) तरुण स्त्री
तिसा (तृषा) तरस - लालच
थुइ (स्तुति) स्तुति - थोय दअरी दारु
दडु (द) धाधर - दादर दित्ति (दीप्ति) दीप्ति - तेज
दाढा (दंष्ट्रा ) दाढ
दिसा (दिशा) दिशा - दश
दिहि }
चिह
देवराणी (देवराणी) देराणी
धत्ती धाई
} (धृति) धैर्य
}
(धात्री ) धात्री - धाई - धवरावनारी माता
धुआ (दुहिता) दीकरी धूलि (धूलि ) धूळ
नणंदा (ननान्ह) नणंद
नारी (नारी) नारी - नार
नावा (नौका) नाव
निसा (निशा) निशा - रात्री
पक्खरा
पाखर - हाथी
घोडानो
सामान
२१०
पड्डुआ पाटु पड़ी पाडी
पण्णा (प्रज्ञा) प्रज्ञा
पतीति (प्रतीति) पतीज - विश्वास
परडा परडकुं परिहावणिया (परिधापनिका) पहेरामणी
पंति (पङ्क्ति) पंक्ति-पंगत-पांत
पाडिवथा }
पाडिवआ ) ( प्रतिपदा ) पडवो तिथि
पारिहट्टी पारेट बहु वखतथी
विआयेली गाय के श
पिउच्छा (पितृष्वसा ) पितानी पिउसिआ }
बहेन - फई
पिच्छी (पृथ्वी) पृथ्वी
पुच्छा (पृच्छा) प्रश्न- पूछा पुरा ( पुर् ) पुरी - नगर - नगरी पुहवी (पृथ्वी) पृथ्वी पूणी पूणी
पेडिआ (पेटिका ) पेटी
फग्गू फाग
फफा
फुंफा
}
बब्बरी बाबरी - माथानी बाबरी
फुंफाडो
बहिणी ( भगिनी) बहेन
बारिआ (द्वारिका) बारी बाहा (बाहु) बाहु-हाथ-बांय
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
२११
बिग्गाइ बगाय बोहारी (बुहारी) सावरणी भइणी, भगिणी (भगिनी) बहेन भाउजा भोजाय भीइआ,भीइका (भीतिका) बीक भुक्खा भूख भूमि (भूमि) भूमि-भों मह (मति) मति मक्खिआ । (मक्षिका) माखीमच्छिआ।
माछी मज्जाया (मर्यादा) माजा-मलाजो मट्टिआ (मृत्तिका) माटी मम्मी । मामी मामी महिसी (महिषी) भेश मंजुसा (मञ्जुषा) मजूह-पेटी माअरा । (मातृ) देवी-माता मायरा माआ (मातृ) माता-जननी माइ (मातृ) मा माई माउ (,) माता माउसिआ। (मातृष्वसा) माशीमाउच्छा मातानी बहेन माला (माला) माळा, माळ मित्ती (मत्री) मित्रता-मैत्रीवृत्ति मेहा (मेधा) मेधा-बुद्धि र (रति) प्रेम-राग
रक्खा (रक्षा) राख रच्छा (रथ्या) रथ चाले तेवी
पहोळी शेरी-शेरी रत्ति (रात्रि) रात रयणी (रजनी) रजनी-रेण रल्ला राळ राई (रात्री) रात राडी (राटि) राड रिद्धि (ऋद्धि) रध-ऋद्धि रेखा) रेहा (रेखा) रेखा-लीह-लीटो लेहा ) लक्खा (लाक्षा) लाख लज्जा (लज्जा) लज्जा-लाज लालसा (लालसा) लालच लोमपडी (लोमपटी) लोबडी-भर
वाडणने पहेरवानी साडी वट्टा (वर्त्म) पाट-रस्तो वत्ता (वार्ता) वात वत्ति (वर्ति) वाट-बत्ती वरगोठी । (वरगोष्टी) वरोंठी वरोट्टी वरजत्ता । (वरयात्रा) बरातवरअत्ता वहू (वधू) बहु वंझा (वन्ध्या) वांझ-वांझणी वाडिआ (वाटिका) वाडी
जान
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१२
खडी
-राख
वाडी वाड
सवत्तिका (सपत्नीका) शोक्य वाया ( वाच् ) वाचा-वाणी ससा (स्वस) स्वसा-बेन बारक्खरी (द्वादशाक्षरिका) बारा- संझा (संध्या) सांज
संति (शान्ति) शांति वाराणसी (वाराणसी) वाराणसी
संदसिआ (संदशिका) सांडसी __ बनारस नगर वावी (वावी) वाव
संपया ) ( संपदा ) संपदासंपआ
- संपत्ति विज्जु (विद्युत् ) विजळी
संपदा) विट्ठी । (विष्टि) वेठ वेट्टि ।
साडी (शाटी) साडी विभूति, विभूइ (विभूति) भभूति
सामा (श्यामा) युवति-स्त्री साहुवी । (साध्वी) साध्वी
साहुणी । वियाउया (विपादिका) वीया-पगनी
वीया फाटवी ते सिद्धि (सिद्धि) सिद्धि विहत्था (वितस्ति) वेत
सिप्पी (शुक्ति) छीप सण्णा (संज्ञा) संज्ञा-सान-समझ सिंदु छिंदरी सति (स्मृति) स्मृति-सरत
सूई, सुई (सूचि) सूइ-सोय सत्ति (शक्ति) शक्ति
सुण्हा । (स्नुषा) स्नुषा-पुत्रवहू सद्धा (श्रद्धा) श्रद्धा
पहुसा। समणी (श्रमणी) साच्ची
सुहेल्ली । सहेल समिद्धि (समृद्धि) समृद्धि सुखकेली । सरिआ । ( सरित् ) सरिता- । हत्थोडी हाथर्नु हथीयार,हथोडी सरिया ।
नदी हलद्दी, हलिहा(हरिद्रा) हळदर सलाया (शलाका) सळी
हुड्डा होड-सरत
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१३
नाम [ नान्यतर जाति]
कापर
अक्खि । (अक्षि) आंख आमलय (आमलक) आमळुअच्छिा
आंबळ अञ्चभुय (अत्यद्भुत) अचंबो।
उदग। (उदक) उदक-पाणी अच्छेर (आश्चर्य) आश्चर्य-अचरज अजिण (अजिन) अजीन-चामडं उप्पल (उत्पल) उत्पल-कमळ अट्टि (अस्थि) हही-हाडकुं-हाड ऊसय ओशीकुं अत्थ (अस्त्र) अस्त्र-फेंकवान हथीयार
ओचुल्ल ओलोचुलो बाण वगेरे कट्ठ (काष्ठ) काष्ठ-काट-काठ-काठी
लाकडु अद्ध (अर्ध) अडधु
कट्ट (कष्ट) कष्ट-दुःख अभयप्पयाण (अभयप्रदान) कप्पडय (कर्पटक) कपडु-कापडंअभयदान-प्राणीओ निर्भय रहे
-बने तेवी प्रवृत्ति | कम्म (कर्म) काम-कार्य-सारी अमिय (अमृत) अमी-अमृत
नरसी प्रवृत्ति अरविंद (अरविन्द) अरविंद- | कम्मबीअ (कर्मबीज) कर्मबीज उत्तम कमळ
सत्-असत्-संस्कारनुं बीज असाय। (असात) शाता नहि
कयल (कदल) केळु असात
सख नहि ते कंबल (कम्बल) कंबल-कामळ
कंटोल। कंटोल कंकोडं-कंकोअहिनाण (अभिज्ञान) एंधाण
कंकोड
डानु शाक अंगण (अङ्गन) आंगणुं
कंजिय (काञ्जिक) कांजी अंडय (अण्डक) इंडे
कंटयरक्ख (कण्टकरक्ष) कांटाअंसु (अश्रु) आंसु
रखु-कांटाथी रक्षण करनार-जोडा आउय (आयुष्क) आयुष्य-जींदगी आमरण (आभरण) आभरण-घरेणुं । कारण (कारण) कारण
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१४
कुम्पल। (कुड्मल) कुंपळ- कुंपल ।
फणगो कुल (कुल) कुल-कुळ कुल्लड कूलढुं-कूलडी कुसग्गपुर (कुशाप्रपुर) राजगृहनुं
बीजं नाम कुंडलय (कुण्डलक) कुंडळ
कुंडाळु
कोटर (कोटर) कोतर कोडिय कोडियु कोमलय (कोमलक) कू[ कोसेय (कौशेय) कौशेय-रेशमी
वस्त्र कोहल (कूष्माण्ड) कोढुं । खड खड-घास खाणु (स्थाणु) स्थाणु-खीलो-ठुठं खीर) (क्षीर) क्षीर-खीर-दूध छीर खेत्त । (क्षेत्र) क्षेत्र-खेतर खित्त) खेम (क्षेम) क्षेम-कुशळ गमण (गमन) गमन-जबुं गल (गल) गढुं गवत्त गवत-घास गहण (ग्रहण) ग्रहण करवानुं साधन गी । (गीत) गीत-गायेलं गीत।
। गुत्त (गोत्र) गोत्र-वंश गुरुकुल (गुरुकुल) सदाचारवाळा
गुरुओ ज्यां रहे छे ते स्थान घग्घर घाघरो घय (घृत) घी घर (गृह) घर घरचोल (गृहचोल) घरचोर्द्ध घाण (घ्राण) घ्राण-नाक-सुंघवानु
साधन चउक्क (चतुष्क) चोक चउवट्टय (चतुर्वर्त्मक) चौटुं-चार
रस्ता वक्क (चक्र) चक्र-चरखो चम्म ( चर्मन् ) चाम-चामडुं चंग (चङ्ग) सारं चंडालिअ (चाण्डालिक) चंडालनो
स्वभाव-क्रोध चंदण ( चन्दन ) चंदन, झाड
लाकडं चारित्त ( चारित्र ) सञ्चारित्र
सद्वर्तन चेइअ (चैत्य) चिता ऊपर चणेळ
स्मारक-चिह्न-ओटाओ, छत्री,
पगलां, वृक्ष, कुंड, मूर्ति वगेरे चेण्ह (चिह्न) चेन-चाळा चेल (चेल) चेल-वस्त्र
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
छणपय । (क्षणपद) हिंसा- । तग्ग तागडो-त्रागडो छणपण हिंसानुं स्थान
तण (तृण) तर[-घास छत्त (छत्र) छत्र-छत्री
तंब (ताम्र) तांबु छिक छींक
तंबोल (ताम्बूल) तंबोळ-नागरवेछिदय (छिद्रक) छींडु
लर्नु पान छिल्लर (छिल्लर) पाणीनुं खाबोचीयु ताण (त्राण) रक्षण-शरण-आशरो छीअ (क्षुत) छींक
तालु (ताल) ताळवं जउ (जतु) जतु-लाख
तिमिर (तिमिर) तम्मर-अंधकार जल (जल) जळ-पाणी
तिलय (तिलक) टील जाण (यान) यान-वाहन
तेल (तैल) तेल जाणु (जानु) जानु-जांघ-साथळ
तुद (तुन्द) दूंद-पेट जीवण (जीवन) जीवन-जींदगी
दहण (दहन ) देण-दहन-आगे जुग (युग) धोंसरु
बळबु जुज्झ। (युद्ध) युद्ध-लडाई
दहि (दधि) दहीं
दंतपवण (दन्तपवन) दंतवणजुम्म । (युग्म) युग्म-जोडं-जोडी
दातण जुग्ग। जेमणय जमणु
दाण (दान) दान जोव्वणय (योक्न) जोवनक-यौवन |
दारु (दारु) लाकडं
दालिद ( दारिद्रय ) दळदरमुह झडं टिक टिकी-टीलं-तिलक
दिण (दिन) दिन-दन-दनियुनिलाट (ललाट) निलाट-ललाट
दिवस जयर)
दीवेल्ल । (दीपतैल) दीवेलणगर (नगर) नगर-शहेर दीवतेल्ला दीवो बाळवावें तेल नगर नयर)
दुक्ख (दुःख) दुःख णिव्य । (नीव) नेवु-छापरानु ।
दुद्ध (दुग्ध) दूध निव्व।
नेवू । धण (धन) धन
दारिद्रय
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
धैर्य
घणु (धनुष् ) धनुष | पलाल (पलाल) पराळ-चोखानुं धम्मजाण (धर्मयान) धर्मरूप
घास वाहन, धर्मस्थान ऊपर लइ पल्लाण (पर्याण) पलाण
जवानुं वाहन पवहण (प्रवहण) वाहन-वहाण धीरत्त (धीरत्व) धीरत्व-धीरपणुं- पंगुरण पागरण
पंजर (पञ्जर) पांजरुं नयण (नयन) नेण
पाणीय । (पानीय) पाणीनाण (ज्ञान) ज्ञान
पाणीअ
पीवानु निच्छिअय (निश्चितक) नकी
पाडलिपुत्त (पाटलिपुत्र) पाटलि
पुत्र-पटणा शहेर निवाण (निपान) नवाण-अलाशय
पायत्ताण (पादत्राण ) पादत्राणनीलय (नीलक) नीलो-नीलं
जोडा 'नेड (नीड) निलय-नीड-माळो पाव (पाव) पाप णेह।
पावग (पावक) पाप पगरक्ख (पदकरक्ष) पगरखां
पावरणय (प्रावरणक) उपरj पगर्नु रक्षण करनार
पास (पाच) पासुं-पडखं पगरण (प्रकरण) पगरण-प्रारंभ
पिच्छ (पिच्छ) पींछु पट्टोल (पट्टकूल) पटोळु
पित्त (पित्त) पित्त पद । (पद) पद-पगलं पय।
पिंजिय पीजेलं
पुच्छ (पुच्छ) पूंछडं-पूंछ पद्र पादर पम्ह ( पक्ष्मन्) पापण
पुटुंय (पृष्ठक) पूर्छ
पुष्फ (पुष्प) पुष्प-कूल पम्हपट (पक्ष्मपट) पक्ष्म-पापण- |
पोट्ट पोट-पेट जेवू मीणुं कापड-पांभडी
फल (फल) फळ पय (पद) पद-पगलं
फंदण (स्पन्दन) फांदधु-फरकईपरिहण (परिधान) पहेरण
थोडे थोडं हलवू
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१७
भाण
बम्हचेर (ब्रह्मचये) ब्रह्मचर्य-सदा- । मसाण (श्मशान) मसाण चारवाळी वृत्ति ब्रह्ममां परायण महब्भय (महाभय) मोटो भवरहे ते
मोटी बीक बयर (बदर) बोर-बेर
महाविनालय (महाविद्यालय) बरूम बरू
मोटुं विद्यालय-कोलेज बार । (द्वार) बार-बारणुं । महु (मधु) मधु दुवार ।
मंगल (मङ्गल) मंगल बिंदु (बिन्दु) मींडं
मंस (मांस) मांस बिंबिय (बिम्बक) बिब-प्रतिबिंब- माइहर (मातृगृह) मायहें-महियर
बीबु मित्त (मित्र) मित्र बीअ (बीज) बी-बीज
मित्तत्तण (मित्रत्व ) मित्रताभय (भय) भय-भो
- भाईबंधी भायण । (भाजन) भाजन-भाणु- मिहिलानयर (मिथिलानगर) पात्र
मिथिला भारहवास (भारतवर्ष) भारतदेश
मुह (मुख) मुख
हिन्दुस्तान मोत्तिष (मौक्तिक) मोती माल (भाल) भाल-कपाळ-ललाट रज (राज्य) राज्य-राज भोयण (भोजन) भोजन-जमण । रय ( रजस् ) रज-पाप-धूळ-मेल मच्चुमुह (मृत्युमुख) मृत्यु- मुख- रयय (रजत) रजत-रूपुं
मोतनुं मोढुं रसायल (रसातल) रसातलमत्थय (मस्तक) माधु मयणफल । (मदनफल) मीढोल रंदुअ रांढर्बु मयणहल
रायगिह (राजगृह) विहारमा मरण (मरण) मरण-मोत
आवेलु-हाल- राजगिरमलीर (मलयचीर) मलयदेशन
मगधदेशनी राजधानी कोमळ, मीणुं अने आर्छ रुप्प (रुक्म) रुघु
कापड , रुप्प (रौप्य) रूई
पाताळ
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१८
रूबरू
वारि (वारि) वारि-पाणीः रूव (रूप) रूप-वस्तु-पदार्थ, रूपरंग । वित्त। (वेत्र) नेतर-नेतरनी रोमय (रोमक) रूq-रोम-रुवाटुं
वेत्ता
सोटी-बेत लक्खण । (लक्षण) लक्षण
विनाण । (विज्ञान) विज्ञान लच्छण लखण-चिन्ह विण्णाण । लक्कुड लाकडूं
विस (विष) विख
विहाण (विभान) वहाणु-प्रातःकाळलाङ्गल (लाल) हळ
सवार लावण्ण। (लावण्य) लावण्यलायण्ण
कांति
वीरिय (वीर्य) वीर्य-बळ- शक्ति लाहण लागुं
वेर (वैर) वेर-वैर लोसपटलोमपट । रुवाटार्नु
सगडय (शकटक) छकडो-शकट ड रोमपट । वस्त्र
सञ्च (सत्य) सत्य-साधु
लोबडी सत्थ (शस्त्र) शस्त्र-हणवानुं हथीलोहखंड (लोहखण्ड) लोखंड
यार-तरवार वगेरे लोह (लोह) लोढुं
सत्थ (शास्त्र) शास्त्रः
सथिल्लो (सक्थि) साथळ लोहिअ (लोहित) लोही
सत्थि वण (वन) वन
सयढ (शकट) छकडो-गाडं-शकट वत्थ (वन) वस्त्र-वस्तर
सरण (शरण) शरण-आशरो पत्थु (वस्तु) वस्तु
सल्ल (शल्य) साल-शल्य वद्दल वादळ
संखलय शंखलं वयण (वदन) वदन-मुख
साय । (सात) शाता-सुख वयण (वचन) वचन-वेण
सात ।
सावज (सावद्य) पापप्रवृत्ति वरिस (वर्ष) वरस
सावत्तक । (सापत्न्यक) सावकुं वंग वांगी-वेंगण
सावत्तय वाणि (वाणिज्य) वणज वेपार ।
सासुरय (श्वाशुरक) सासरूं, सासवादित्त, वाइत्त (वादित्र) वाजींत्र ।
रान. वर
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
२१९ सित्थ (सिक्थ) सीथ
सुवण्ण (सुवर्ण) सोनुं सिंग (झ) शिंगडु-शिंगु सोअ (श्रोत्र) श्रोत्र-कानसिंदुरय छिदरं
सोत्ता सांभळवानुं साधन सीअ (शीत) शीत-टाढ
सोरभ (सौरभ) सोडम सील (सील) शील-सदाचार सोल्ल मांसना सोला सीस (शीर्ष) शीश-माधु हड्ड (हाड) हाडकुं सुक्ख (सौख्य) सुख
हल्लिअ हालेखें-चालेलं सुत्त (सूत्र) सूत्र-सूतर-सूत्ररूप । हियय (हृदय) हैयु
टुक वाक्य । हुअ (हुत) होम
विशेषण अकम्म ( अर्कमन्) कर्मरहित
अणवज । (अनवद्य) पापरहितनिर्मळ-पवित्र अनवज
निर्दोष अक्खाय (आख्यात) कहेलं-कहे, । अणाइअ (अनादिक) आदि विनानु अचेलय । ( अचेलक ) ऐलक- अणारिय (अनार्य ) अनार्य-आर्य अएलय कपडा विनानुं
नहि ते-अनाडी अजयण । (अद्यतन) आजन- अत्थिअ (आर्थिक) अर्थ संबंधी अजतण ताजु
-अर्थने लगतुं अज (अर्य) भर्य-वैश्य-स्वामी
अस्थि (आस्तिक) आस्तिक अज (आर्य) आर्य
अधीर (अधीर) अधीर-धीरज अद्वगुणय (अष्टगुणक)।
विनानु-नबलु अट्ठगुण (अष्टगुण) आठगणु अट्ठम (अष्टम) आठमुं
अधुट्ट (अर्धचतुर्थ) जेमां त्रण अहीअ ) (अर्धतृतीय) जेमां
आखां अने चोथु अडधुं अडाइभ बे आखां अने
छे ते उंठ-साडात्रण अट्ठाइज ) त्रीचं अडधुं छे ते, अन्न । (अन्य) अन्य-बीजु
अडी-अढी । अण्णा
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२०
अन्नयर । (अन्यतर) अनेरु, अण्णयर S
बीजुं अप्प (अल्प) अल्प-थोडं अप्पणिय (आत्मीय) आपणुं अभोगिो (अभोगिन् ) अभोगीअभोर भोगोने नहीं भोगवनार
संयमवाळू अम्हारिस (अस्मादृश) अमारीशु
अमारा जेवू अमु (अदम् ) ए अवज (अवद्य) अवद्य-न वदीकही-शकाय ते, काम
पाप-दोष । (अपर) अपर-ओर अवर (अवर) अवर-बीजूं अहम (अधम) अधम-हलकुं-नीच अहिनव (अभिनव) अवनवु नवीन अंतर (आन्तर) अंतरनु-अंदरनुं
आंतरिक अंतिम (अन्तिक) पासे-नजीकमां आकुट्ठ (आक्रुष्ट) आक्रोश करेलु
आरिस (आर्ष) ऋषिए कहेलु आरोग्गिय आरोगेलं-खाधेलं आसत्त (आसक्त) मोही इम (इदम् ) आ इयर (इतर) इतर-बीजें उच्चंचलय (उच्चञ्चलक) उंछाछर्बु उच्छंखलय (उच्छृङ्खलक) सांकळ
वगरनु-बंधनरहित-उच्छृखल उच्छिह (उच्छिष्ट) एलु-अजीडं उज्जड ऊजड उज्जु (ऋजु) सरल उंड ऊंडं उत्तम । (उत्तम) उत्तम उत्थिअ (उत्थित) ऊठेलु-ऊठ्यु उपरिअल्ल ( उपरितन ) उपलुं
__ उपरनुं एअ।
एय । (एतद् ) ए
__ आक्रोश
आगअ) आगत (आगत) आवेलु आम आणत्त (आज्ञप्त ) आज्ञा करेलं, |
आज्ञा ।
एग) एक (एक) एक इक्क)
ओक्किय ओकेलं कज (कार्य) करवा योग्य क (किम् ) कोण कइम (कतम) कोण-क्यो, केटलाक कयर ( कतर ) कोण-बेमांथी
कोण-क्यो
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२१
कय । (कृत) करेलु
__ जेवू
चतुत्थ
गुरु (गुरु) गुरु-भारे मोठं
गुज्झ (गुड) छूपाववा योग्य-गुंजु कयण्णु (कृतज्ञ) कृतज्ञ-कदरदान
घट्ट (पृष्ट) घसेलं, सुंवाळु करेलु, काणीण, (कानीन) कन्यानुं संतान
वाटेलु (कानीन-पुं०) व्यासऋषि कातव्व) (कर्तव्य) .
घेत्तव्य (ग्रहीतव्य) ग्रहण करवा कायव्व
कर्तव्य-करवा काअव्व)
चउगुणय (चतुर्गुणक) चारगणुंकिष्ट (कृत्य) कृत्य-काचुं
चउग्गुणय।
चोगणुं. किलिट्ठ (क्लिष्ट) क्लेशवाळू, क्लिष्ट चउत्थ) (चतुर्थ) चो, किलिन्न ( क्लन्न ) गीलं-भीनुं
भींजायेखें
चउरंस । (चतुरस्र) गेरस
चउरस्सा किलिप्त (क्लुप्त) क्लुप्त
चंड (चण्ड) प्रचंड-क्रोधी कुसल (कुशल) कुशळ-चतुर
चारु (चार) सासू-सुन्दर केरिस (कीदृश) केर्बु
चिव्व (?) कोमलय (कोमलक) कोमल
चीळ
चिच्च कोववर ( कोपपर ) क्रोधी-कोप
चुच्छ (तुच्छ) तुच्छ-जूज करे ते
छइल्ल छेल-चतुर खलपु (खलपु) खळं साफ करनार
छग्गुण । (षड्गुण) छगणुं. खट्ट खाटुं
छग्गुणय (षड्गुणक)
छट्ट। (षष्ठ) । छठे खुत्त खूतेलं
छट्टया (षष्ठक)। गढिय (गृद्ध) अतिशय लालचु छाइल्ल । (छायालु) छायाळगय (गत) गयेलु, जर्बु
छायालु)
छायावाढू गामणि (ग्रामणी) गामनो नेता
ज ( यद् ) जे गिलाण । (ग्लान) म्लान थयेलं, | जन्न (जन्य) जणवा योग्य गिलानी ग्लान थq जाय (जात) जायेलं, थयेलं, गुप्त (गुप्त) गोपवेलु-सुरक्षित-गुप्त ।
जणवू
खुट्ट खूटेलु
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
ते-शान्त
२२२ जिम (जित) जीतेलु-जीत दक्खिण) ( दक्षिण ) दक्षिणजिइंदिय (जितेन्द्रिय) इन्द्रियो ऊपर दाहिण
दक्षिणर्नु जय मेळवनार दाहिणय (दक्षिणक) डायु जिमित (जेमित ) जमेलु-खाघेलं दहव्व (द्रष्टव्य) देखवा जेवू जेट्ट (ज्येष्ठ) जेठं-मोटुं
दट्ठ (दृष्ट) दीठं-देखेखें-देखवू जुगुच्छ (जुगुप्स) जुगुप्सा करनार
दसम (दशम) दशमुं)
घृणा करनार जुन्न (जीर्ण) जीर्ण, जून, जळी
दंत (दान्त) जेणे तृष्णाने दमी छे
जरी-गयेलं जोइ (योजित) जोडेलु दिग्याउ (दीर्घायुष्) दीर्घ आयुजोहा
ष्यवाळो ठड्ड (स्तब्ध) टाढो, टण्डो, स्तब्ध,
दियड्ड । (द्वितीयार्ध) जेमां एक जड-थंभी गयेलु दिवड । अने आखं बीजं अडधुं ठिय (स्थित) स्थित-स्थान
छे ते-दोढ डज्झमाण (दह्यमान) दाझतुं, दुग्गंधि (दुर्गधिन् ) दुर्गन्धी चीज
बळ दुप्पूरिय ( दुष्पूर्य ) मुश्केलीथी तइय । (तृतीय) त्रीजें
पुराय-भराय तेवु तत्त (तप्त) तपेलु-तपयु
दुरणुधर (दुरनुचर) जेर्नु आचरण तवस्सि ( तपस्विन् ) तपस्वी
___ कठण लागे ते तंस (त्र्यस्र) त्रांसु-त्रिकोण
दुरतिकम (दुरतिक्रम) न मटे तेवू तिण्ण (तीर्ण) तरी गयेलु
दुल्लह ( दुर्लभ ) दुलभ-दुल्लभतिण्ह (तीक्ष्ण) तीj-अणीदार ।
मुश्केल तिम्म । (तिग्म) तीक्ष्ण-तेजदार- दुाह ( दुसखन् ) दुःखा तिग्ग ।
तेग । धणि (धनिन् ) धनी-धनवाळी तिगुणय, (त्रिगुगक) त्रगणुं-.
धीर (धीर) धीर-धीरजवालु तिउणय
त्रणगणुं नग्ग (नम) नागुं-लुच्चुं तुच्छ ( तुच्छ ) तुच्छ, रांक, नत्ति (नप्तृक) नाती-पौत्र
अधुरो । नत्तु
तइज
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२३
'नमिर (नम्र) नम्र-नरम
परूविथ (प्ररूपित ) प्ररूपेलं, नवम (नवम) नवमु
जणावेलं, प्ररूपवू नवीण । ( नवीन ) नवीन- पंचम (पञ्चम) पांचमुं णवीण
नवु पंडित। (पण्डित) पंडित-भणेलो नाय (ज्ञात) जाणीतुं-प्रसिद्ध पंडिअ पंडयो, पोपटपंडित निश्चल (निश्चल) निश्चल
पंत (प्रान्त) अन्तर्नु, छेवटनु. वापनिठुर (निष्ठुर) नठोर
रतां वधेलु निण्ण । (निम्न ) निम्न-नीचुं,
पासग (पश्यक ?) द्रष्टा-जोनार - नेण्ण
नानु, नेनुं निरठ्ठय (निरर्थक) निरर्थक-नकामुं
तत्त्व समझनार निहिय (निहित) निहित-स्थापेलं,
पिआउय (प्रियायुष्क) आयुष्यने स्थापq
प्रिय समजनार पञ्च (पाच्य) पचवा-रांधवा-योग्य
पियामह (पितामह) बापनो बाप पच्छ ( पथ्य ) पथ्य-रस्तामां
पिय (प्रिय) प्रिय-वहाछ हितकर
पिहिय (पिहित) ढांकेलं, ढांक पदुप्पन्न ( प्रत्युत्पन्न ) वर्तमान- पीण (पीन) पुष्ट
ताजु
पुट्ट (पुष्ट) पुष्ट पढम (प्रथम) प्रथम-परथम पुट्ट (पृष्ट) पूछायेलं पणट्ठ (प्रणष्ट) प्रनष्ट, नाश पुण्ण (पूर्ण) पूर्ण-भरेलो-संपत्ति पत्त (प्राप्त) पहोत्यु-पहोंच्यु
__ वाळो पद्धर (प्राध्वर) पाधलं-सीधुं पुण्ण (पुण्य) पुण्य-पवित्र काम पन्नत्त (प्रज्ञप्त) प्रज्ञापेलु-जणावेलु पुराण । पुराण पुराणु, पन्नविय ( प्रज्ञपित ) प्रज्ञापेलं,
पुराअण पुरातन 5 जून प्रज्ञापवु |
पोअ (प्रोत) परोव्यु-परोवेलं पमत्त ( प्रमत्त ) प्रमत्त-प्रमादी । पोच पोचुं परिसोसि । (परिशोषित) सू- | बज्म ( बाह्य ) बहार, बहारनो परिसोसिय । कायेलं-करमायेलं
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२४
बद्ध (बद्ध ) बद्ध-बांधेलो
___बंधायेल बिइज (द्वितीय) बीजें विउणय। (द्विगुणक ) बमjबिगुणय बहु (बहु) बहु-घणु
गण
बिश्य
बिइज ए (द्वितीय) बीजु-दूजें
दुइज) बुद्ध (बुद्ध) बोधवाळो-ज्ञानी भन्व (भव्य) थवा योग्य-ठीक मिञ्च (भृत्य) पाळवा योग्य
भृत्य-नोकर भुत्त (भुक्त) भुक्त-भोगवेलु भोत्तव्व (भोक्तव्य) भोजन क
___खा जेवू, भोगववा जेवू मईय (मदीय) मारु मट्ठ (मृष्ट) मांजेलुं शुद्ध मड। (मृत) मृत-मरेलु मया मणसि (मनस्विन् ) बुद्धिमान् मय (मत) मानेलं, मान-मत महग्घ (महार्घ) मोधु महड्डिय ।। महर्धिक ) मोटी महिड्डिय ऋद्धिवाळु-धनाढय मायामह (मातामह) मानो बाप मिउ (मृदु) मृदु-कोमळ-नरम
मिलाण । (म्लान) म्लान थयेल, मिलान । करमायेलं म्लान थर्बु मुत्त (मुक्त) मुक्त-छूटुं मुद्ध (मुग्ध) मुग्ध मूढ (मूढ) मूढ-मोहवाळो अभण
अज्ञानी मोत्तव्य (मोक्तव्य) मूकवा जेवू रत्त (रक्त) रातुं-रंगेलं रसाल, (रसाल) रसवाळु रसाला रायण्ण (राजन्य) राजपुत्र रोत्तव्व (रुदितव्य) रोवु-रुदन रुक्खय (रूक्षक) रूक्ष-लू लण्ह (श्लक्ष्ण) नानुं लहु (लघु) लघु-हळवू-नान लहुओ (लघुक ) लघु-हळवूहलु
हळु-नानुं लंब (लम्ब) लांबु लुक्ख। (रूक्ष) लूखु-आसक्ति
विनानुं वम्मय (वाड्मय) वाङ्मय-शास्त्र वद्धमाण (वर्धमान) वधतुं वक्क (वाक्य) कहेवा योग्य, वाक्य वच्च (वाच्य) बोलवा योग्य वज (वयं) वर्जवा योग्य वज (वद्य) बोलवा योग्य वाघायकर (व्याघातकर व्याघात
करनार-विघ्न करनार
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
विrg (विनष्ट) विनष्ट, विनाश विग्भल (विह्वल ) विह्वल, विहल | भांभळु - गभरायेल विलिअ ( व्यलीक ) विशेष अलीक - खोटुं
विविह (विविध) विविध जातजातनुं विहल (विफल ) विफळ वीयराग ( वीतराग ) जेम वीयराय । राग नथी ते वीलिअ ( ब्रीडित) वीलं - भोंटुं योक्तव्व (वक्तव्य ) कहेवा जेवुं सक्कय (संस्कृत) संस्कृत सग्घ (स्वर्ध) सोंधुं
सवेलय (सचेलक) सचेल - वस्त्रवाळुकपडावाळु
सत्त (शत) शक्तिमान
सन्त (सक्त) आसक्त सत्तम (सप्तम) सातमुं
सत्तगुण ( सप्तगुण - सप्तगुणक) सत्तगुणय सातगणु संपडिय सांपडेलं
सम (सम) समानवृत्तिवाळु - सरखं सयल (सकल) सकळ - सघळु सरस ( सरस) सरस सवाय ( सपाद) सवायुं - सवा सहल ( सफल ) सफळ
१५
२२५
संखय (संस्कृत) संस्कारेलु, संस्कार संजय (संगत ) संयमवाळो संभूअ (संभूत) संभवेलो - थयेलो संस (संसृष्ट) संसर्गवाळु, संसर्ग साउ (स्वादु) स्वादु - स्वादवालुं सीअ (शीत) शीत-ठंड सीलभूअ ( शीलभूत) शीलभूत,
सदाचाररूप
सुह ( शुचि) शुचि - पवित्र सुगंधि ( सुगन्धिन् ) सुगंधी वस्तु सुजह (सु+हाम) सहेलाईभी तजी
शकाय ते
सुत (सुप्त ) सूतेलं
सुत ( सुक्त ) सूक्त - सारी उक्तिसुभाषित
सुय (श्रुत) सांभळेलं, सांभळवु सुहि (सुखिन् ) सुखी सुहुम ( (सूक्ष्म) सूक्ष्म - नानुं म
सेठ्ठ (श्रेष्ठ) श्रेष्ठ - उत्तम हअ (हत) हणायेलं - हणेलं हय ( हृत) हरेलं, हखुं इंतव्व ( हन्तव्य ) हणवा योग्य हुत (हुत) होमेलुं - हवन करायेलुं हेट्ठिल | (अधस्तन) हेठलं हेलिभ
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
संख्यावाचक शब्दो
अट्ठ (अष्टन् ) आठ अढचत्तालिसा (अष्टचत्वारिंशत् ) अडयाला अडताळीश अट्ठणवह) अडणबह (अष्टनवति) अठाएं अट्ठाणवह) अहत्तीसा) ( अष्टत्रिंशत् ) अडतीसा
आडत्रीश अहसष्टि। (अष्टषष्टि) भडसठ अडसट्टि अट्ठसत्तरि। (अष्टसप्तति) अहहत्तरि अठयोतेर अट्ठारस, (अष्टादश) अढार अट्ठारह) अट्टावना ) (अष्टपञ्चाशत् ) अडवना , अठावन अठ्ठपण्णासा) अट्ठावीसा) (अष्टाविंशति) अट्टवीस अध्यावीश अडवीसा) अट्ठासीह (अष्टाशीति) अव्याशी अयुत, अयुअ (अयुत) दश हजार असीइ (अशीति) अशी इक्कवीसा) एगवीसा) (एकविंशति) एकवीश एकवीसा)
एआरह) एगारह (एकादश) अगियार एभारस) पण) (एक) एक पक्क एअ इक) एगचसालिसा) ( एकचत्वाइक्कचत्तालिसा ( रिशत् ) एकचत्तालिसा ( एकताळीस इगयाला एगणवह ) इगणवह (एकनबति) एकाएं एगाणवह) एकतीसा ) ( एकत्रिंशत् ) एक्कतीसा एकत्रीश इकतीसा ) एगपण्णासा इक्कपण्णासा (( एकपञ्चाशत् ) एक्कपण्णासा एकावन एगावण्णा ) एगसट्टि। (एकषष्टि) एकसठ इगसट्टि । एगसत्तरि) एगहत्तरि । (एकसप्तति) एकोतेर इक्कसत्तरि इकहत्तरि) पगासीह (एकाशीति) एकाशी
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
चोवीश
चउआला
एगूणवत्तालिसा ( एकोनचत्वा- । चउरासीर (चतुरशीति) बोयांशी
रिंशत् ) ओगणचालीस चोरासीह एगणनवइ (एकोननवति) नेवाशी
चउवीसा। (चतुर्विंशति)
चोवीसा एगूणसय (एकोनशत) नव्वाणुं
चउसट्टि (चतुःषष्टि) चौसठ एगूणतीसा ( एकोनविंशत् ) चोसट्टि
ओगणत्रीश चउचत्तालिसा)(चतुश्चत्वारिंशत्) पगूणपण्णासा ( एकोनप्तञ्चाशत् ) चोआलिसा । चुमालीश
ओगणपचास
चोआला । चुंआळीश पगूणवीसा (एकोनविंशति)
ओगणीश चत्तारि सयाई (चत्वारि शतानि)
चारसे एगूणसट्टि (एकोनषष्टि)
चत्तालीसा ( चत्वारिंशत् ) ओगणसाठ
चाळीश पगूणसत्तरि (एकोनसप्तति) चोवण्णा (चतुष्पश्चाशत् )
ओगणोशीतेर चउपण्णासा चोपन एगणासीह (एकोनाशीति) चोसत्तरि) ओगण्याशी, अगण्याशी
चोहत्तरि । (चतुस्सप्तति)
चउसत्तरि चूमोतेर कोडाकोडी (कोटाकोटि) कोडाकोड कोडि (कोटि) कोड
छ ( षट् ) छ घऊ ( चतुर ) चार
छचत्तालिसा (षट्चत्वारिंशत् ) चडणवइ । (चतुर्नवति) चोराणुं
छायाला 5 छताळीश चोणवइ ।
छण्णवइ (षण्णवति) छन्नुं चउत्तीसा। (चतुस्त्रिंशत् )
छत्तीसा ( षट्त्रिंशत् ) छत्रीश वोत्तीसा चोत्रीश
छप्पण्णा । (षट्पञ्चाशत् )
छप्पण्णासा) छप्पन चउद्दस ) उद्दह । (चतुर्दश) चौद छव्वीसा (षड्विंशति) हवीश
छसत्तरि। (षट्सप्तति) छोलेर छहत्तर
चउहत्तरि)
चोहह )
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२८
दुसय । ( द्विशत ) बसो
छासट्टि (षट्षष्टि) छासठ दससहस्स। (दशसहस्र) . छासीह (षडशीति) छाशी दहसहस्स । दश हजार णवणवह । (नवनवति) नवाणुं दु (द्वि) बे नवणवइ ।
दुप्पण्णासा। (द्विपञ्चाशत् ) ति (त्रि) त्रण
बावण्णा
बावन तिचत्तालिसा) (त्रिचत्वारिंशत् )
दुवालस) . तेआलिसा तेंताळीश बारह (द्वादश ) बार तेआला )
बारस तिणि सयाई (त्रीणि शतानि)
त्रणसें बिसय तिसत्तरि । (त्रिसप्तति) तोतेर । नव (नवन् ) नव तिहत्तरि ।
नवह (नवति) नेवू तिसय (त्रिशत) त्रणसो
नवासीइ (नवाशीति) नेवाशी तीसा (त्रिंशत् ) त्रीश
पणचत्तालिसा ( पञ्चचत्वारिंशत) तेणवर (त्रिनवति) त्राणु
पणयाला पिस्ताळीश तेतीसा । (त्रयस्त्रिंशत्) तेत्रीश | पणतीसा ( पञ्चत्रिंशत् ) पांत्रीश तित्तीसा
पणपण्णा (पञ्चपञ्चाशत् ) तेरह । (त्रयोदश) तेर
पंचावणा) पंचावन तेरस
पणवीसा (पञ्चविंशति) पचीशतेवण्णा ।(त्रिपञ्चाशत् ) त्रेपन
पचवीश तिपण्णासा तेवीसा (त्रयोविंशति) तेवीश
पणसट्टि (पञ्चषष्टि) पांसठ
पणसीइ । (पञ्चाशीति) पंचाशी तेसट्टि (त्रिषष्टि) त्रेसठ
पञ्चासीइ। तेसिह (त्र्यशीति) त्राशी-त्र्याशी
पण्णणवइ) दस (दशन् ) दश
पञ्चणवह (पञ्चनवति) पंचाणु दहा
पञ्चाणवह दसलक्व । (दशलक्ष) दश लाख पण्णरह । (पञ्चदश) पंदर-पनर दहलक्ख
पण्णरस
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२९
पणसत्तरि । (पञ्चसप्तति) पंचोतेर | सत्त (सप्तन्) सात पणहत्तरि।
सत्तचत्तालिसा (सप्तचत्वापण्णासा)
सगयाला रिशत् ) पण्णास (पञ्चाशत् ) पचास
सूडतालीश पश्चासा)
सत्तणवह ) (सप्तनवति) सत्ता' पयुअ (प्रयुत) दश लाख सत्ताणव पयुत ।
सत्ततीसा ( सप्तत्रिंशत् ) पंच (पञ्च) पांच
साडत्रीश बत्तीसा ( द्वात्रिंशत् ) षत्रीश सत्तरस। (सप्तदश) सत्तर बाणवह (द्विनवति) बाणुं
सत्तरह बावीसा (द्वाविंशति) बावीश
सत्तरि । (सप्तति) सीतेर बासट्टि (द्विषष्टि) बासठ
हत्तरि बासीइ (द्वयशीति) बाशी
सत्तसट्टि (सप्तषष्टि) सडसठ बिसत्तरि)
सत्तसत्तरि (सप्तसप्तति) बासत्तरि । (द्विसप्तति) बोंतेर सत्तहत्तरि सत्योतेर बिहत्तरि
सत्तावन्ना । (सप्तपश्चाशत् ) बावत्तरि
सत्तपण्णासा सत्तावन बेचत्तालिसा) (द्विचत्वारिंशत् )
सत्तावीसा (सप्तविंशति) सत्यावीश बेमाला
__बेताळीश दुचत्तालिसा)
सत्तासीह (सप्ताशीति) सत्याशी बे सयाई (द्वे शते) बसो सय (शत) सो लक्ख (लक्ष) लाख
सहस्स (सहस्र) हजार वीसा (विंशति) वीश
सोलस । (षट्+दश-षोडश) सट्टि (पष्टि) साठ
सोलह
सोळ
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
अतो
अव्यय अओ (अतः) आथी-एथी | अलं (अलम्) सयु, निषेध-तुं
अवार। (उपरि) ऊपर बईव । (अतीव) अतीव-विशेष उरि। मतीव
अवस्सं (अवश्यम् ) अवश्य-अचूक अकट्ठ (अकृत्वा) नहीं करीने असई ( असकृत् ) अनेकवार अग्गो (अग्रतः) आगळथी अह (अथ) अथ-हवे-प्रारंभ सूचक अग्गे (अग्रे) आधे-आगळ
अहत्ता ( अधस्ताद् ) नीचे अज्झत्था (अध्यात्म) आत्माने
अहव । (अथवा) अथवा अज्झप्पं लगतुं-अंदरनुं अहवा। अत्थु (अस्तु) थाओ
अहुणा ( अधुना ) हमणां अण ( नन् ) निषेध, विपरीत अंतो (अन्तर्) अंदर अणंतरं ( अनन्तरम् ) अंतर आम (आम) हा-स्वीकार
विमा, तुरत आहश्च (आहत्य) बलात्कार अफ्णमणं (अन्योऽन्यम् ) । अन्योन्य-एकबीजाने
इअ (इति) ए प्रमाणे,
समाप्तिसूचक शब्द भणया (अन्यदा) अन्य समये अण्णहा (अन्यथा) तेम नहि ते । अत्थं (अस्तम् ) आथमवू-अदर्शन इओ (इतः) आथी, एथी, वाक्यकों अदुवा। (अथवा) अथवा
आरम्भ, आ बाजुभी अदुवा
इत्थं (इत्थम् ) ए प्रकारे अद्धा (अद्धा) समय
इह (इह) आमां-अहीं अप्पेव (अप्येव) संशय
इहरा (इतरथा) एम नहीं-अन्यथा अभिक्खणं (अभिक्षणम्)
ईसि (ईषत् ) ईषत्-थोडंक्षणेक्षणे-वारंवार ईसि
शारा मात्र अभितो (अभितः) चारे बाजु उत्तरसुवे ( उत्तरश्वः) आवती अम्मो आश्चर्य
काल पछी
त्ति
ति
इति
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
उपि अवरिं ( ( उपरि) ऊपर उवरिं
उवरि
पअं ( एतत् ) ए
एगया (एकदा) एकवार - एक वखत पगततो ( एकान्ततः ) एक तरफी
पत्थ ( अ ) अहीं
एष एवं (एवम्) एम ए प्रमाणे
कया (कदा ) क्यारे कलं ( कल्यम् ) काले
( कथम् ) केम, केवी रीते
कहं
कहि । (कुत्र) क्यां -कहीं कहिं
कालओ ( कालतः ) काळे
क- वखते
किं ( किम् ) सुं, शा माटे
कुत्तो ( ( कुतः) क्यांथी, शाथी, कुभो कई बाजुथी केवश्चिरं ( कियच्चिरम् ) केटला
लांबा समय सुधी
केवचिरेण (कियचिरेण ) केटला
लांबा समय सुधी
केवलं ( केवलम् ) केवळ खलु (खल) निश्चय खिप्पं (क्षिप्रम् ) खेप -जल्दी
३१
hot
(खल) निश्चय
(च) अने
चिरं ( चिरम् ) चिरं - लांबा काळ सुधी
जया (यदा) ज्यारे
जहा ( ( यथा) जेम जह
जहासुतं ( यथासूत्रम् ) सूत्रम - शास्त्रमां का प्रमाणे
जहिं ( यत्र ) ज्यां- जहीं जं (यत्) जे- के
जाव ) ( यावत् ) जो, ज्यां सुधी जा /
जेण (येन) जे तरफ तओ, ततो ( ततः ) तेथी,
तहा (तथा) तेम
तह
त्यार पछी
तहि (तत्र) त्यां - तहीं
तहिं
ताव ( ( तावत् ) तो, त्यां सुधी
ता
तु (तु) तो
तेण (तेन) ते तरफ
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
दाणि दाणि इयाणि इयाणि)
दुदछु (दुष्ठु) दुष्ट रीते
( इदानीम् ) हमर्णा- आजकाल
ध्रुवं (ध्रुवम् ) ध्रुष - चोक्कस
न ( न ) न
नमो ( (नमः) नमस्कार
णमो }
णवर नर्यु - केवळ
णाणा (नाना ) अनेक प्रकारनुं
निच्चं णिच्चं
( नित्यम् ) नित्य
}
ना (नो ) नहीं
पगे (प्रगे ) प्रागडवाश्ये - प्रातःकाले
पुण
पुणो (पुनः) पुनः पुनः,
उण
बज्झओ (बाह्यतः ) बहारथी,
फरीवार
बहार तरफ
बहिआ ) (बाह्य) बहार
बहिया }
बहिछा (बहिर्धा) बहार
मज्झे ( मध्ये) मध्ये - बच्चे-महीं- मो
मणा । ( मनाक् ) मणयं मणा - थोडं - खामी दर्शक
२३२
मा (मा) मा - नहीं
मुसं
मुसा (मृषा) मिथ्या-खोटुं
मूसा मोसा)
व ( (वा) वा अथवा के
विणा ( ( विना) विना
विना }
व० दि० (बहुल दिवस) अंधारियुं
सह (सदा सदा
सक्त्रं ( साक्षात् ) साक्षात् - प्रत्यक्ष सततं ) ( सततम् ) सतत - निरंतर सययं ।
सया (सदा) सदा - हमेशा
सव्वत्तो ( (सर्वतः) सर्व प्रकारे, सव्वओ J
चारे बाजुथी
सव्वत्थ ( सर्वत्र ) सर्वत्र-बधे ठेकाणे
सव्वया (सर्वदा) सर्व वखते
सव्वा (सर्वथा ) सर्व प्रकारे
सद्धि } {
सद्धि
}
सह सार्धम्
सह- साथै
सुडु (सुष्ठु सारी रीते सु० दि० ( शुक्ल दिनस )
अजवाळीयुं
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३३
धातु भइवाय् (अति+पात) अतिपात । मभिप्पत्थ। (अभि+प्र+अर्थ)
करवो-हणवू अभिपत्या प्रार्थना करवी अक्खोड (आ+क्षोद्)
अमराय। (अमराय) अमरनी खोदवू-कापवू अमरा। पेठे रहे-पोतानी अग्घ (अर्घ) मूलवq-मूल्य करावq
जातने अमर मानवी अच्च (अर्च) अर्चवू-पूजवं
अरिह (अर्ह) योग्य थर्बु अचे (अति+इ) अतीत थq-पार
अल्लि आलवू पाम
अवमन्न् (अप+मन्य) अपमानवुअणुजाण (अनु+जाना) अनुज्ञा
अपमान कर आपवी-संमति आपवी
अवसीम (अव+सीद) अवसाद अणु+तप्प (भनु+तप्य) अनुताप
पामवो-(खु)खूचवू करवो-पश्चात्ताप करवो
अहिट्ठ (अधिनस्था-तिष्ठ) अधिअणु+भव (अनु+भव) अनुभव
___ष्ठान मेळवधू-ऊपरी थर्बु
भोगवq अणुसास् (अनु+शास्) शिक्षण
अहिलंख् । (अभि+लष) अभिल
अहिलंघ् षवु-इच्छा करवी आपQ-समजावq
आगम् (आ+गम् ) आवQ अण्ह (अइना) अशन करवु-जमवु
आढव् (आ+रम्) आरंभq-शरू खा,
करवू ओप्प
आढा (आ+द) आदर करवो अब्भुत (अवभृथ) अबोटवु-आभ
आ+ने (आ+नी) आणवु लावq
डवु-नहावं आ+घा (आ+ख्या) आख्यान अभिजाण (अभि+जाना) अहि
करवू-कहे ___ जाणवु-अंधाण-ओळखवु आभोग (आ+भोग) ध्यानपूर्वक अभि+निक्खिम् (अभि+निष्+।
जोबु क्रम् ) हमेशने माटे घरथी । मायय् (आ+दय) आदान कर नीकळधु-संन्यास लेवो ।
-ग्रहण कर
अप्प ) (अर्प) आप
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
आरोव (आ+रोप) आरोपषु आलोट्टू (आ+लुय्य) आळोटबुं आ+सार (आ+स-सार) आमतेम अफळावj - आमतेम लई जबु इच्छ्र (इच्छ) इच्छ उक्कुद् (उत्+कूर्द) ऊंचे कूदवुं उठ् (उत्+स्था) ऊठवुं
उ+ड्डी (उत्+डी) ऊडवुं उल्लव (उत्+लप् ) बोलवु उवचिद्द् (उप+तिष्ठ) उपस्थित
रहेवुं - सेवामां हाजर रहेवुं उबणी (उप+ची) पासे लई जवुं जब + दंसू (उप + दर्शय) देखाडवुपासे जईने बताववुं उव+दिन (उप + दिश) उपदेश - उपदेश करवो उवे (उप+इ) पासे जनुं - पामवं उं ऊंघ
प (एष) एषणा करवी - शोधबुं ओग्गाल् (उद्+गार) ओगाळ बुं ओप्प (अर्प) पाणी आप-पाणी asraj - ओप ओम्वाल ( उत् + प्लाव ) प्लावित
कर कत्थू ( कत्थ) कथवुं - कहेवुं - वखाणवं कम्प (कल्प) खपवुं - उचित हों (कर) कर
करिस ( कर्ष् ) कर्षतुं - खेचबुं काढबुं - खे
कड् (कथ) कथवु-कहेतुं किण (क्रीणा): खरीद-वातुं
कील (कीड) क्रीडा करवी -
रमत रमणी
कुज्झ (क्रुष्य) क्रोध करवो
कुण् (कृणु) करवं कुछ (कूर्द) कूदं
कुप्प् (कुप्य) कोप - कोप करवों कुब्व् (कुरु) करवु कुह (कुथ) कोह - सडवु कूअ ( कूज ) कूकू करवु
कुहू कुहूकरं कोव् (कोप) कोप करवो - कुपित कर खण ( खन्) खणवुं - खोदवुं खल ( स्खल) स्खलित थवुं दूर करवुं
खा. (खाद ) खावुं खाद ) (खाद ) खावुं
स्वाय खिज्जू (खि) खीज - खेद करवो खिप्प् (क्षय) खेप - खेवयुं फेंक खि (क्षिप) खेप - ववु-फेंककुं खुब्भ् (क्षुभ्य) खोभवु छोभबुं -
सळभळतुं क्षोभ पवो -गभराबु गच्छ (ग) जनुं पामवुं
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
गज्ज् (गर्ज) गाजवू | छिद् ( छिनद् ) छेद-हणवूगढ़ (घट) घडवू
मार गरिड् (गर्ह) गरह-निंदवू छेच्छ (छेत्स्य) छेदयु गवेस (गवेष) गवेष-शोधq छोल्ल् छोलवू गंठ (ग्रन्थ) गंठ-गूथवू
जग्ग् (जाग) जागवू गा (गा) गावु
जम्मा (जृम्भ) बगासुं खाई गिज्म (गृध्य) गृद्ध थq-ललचावू जम्म् (जन्मन् ) जन्मवु गिला (ग्ला) ग्लान थवु-क्षीण थर्बु जव (जप ) जपचु-जाप करवो गेण्ह (गृह्णा) ग्रहण कर
जहा (जहा) छोडवू-त्याग करवो घड् (घट्) घडवू-बनावq जंप् (जल्प) कहे घरिस् (घर्ष) घसवू
जा (या) जावं चड् (चट) चडवू
जागर् (जागर) जागवू चय (त्यज) तजवू
जाण (जाना) आणवू चय (शक्) शक
जाय (जाय) जावु-जन्म थवोचर् (चर) च-चालवू
उत्पन्न थर्बु चल् (चल) चालवू
जाय (याच) जाचq-याचना करवी यत् (वच्) कहेवू
-मांगवू विच्छ ( चिकित्स ) चिकित्सा । जाव् (याप) वीताव_-यापन कर
__ करवी-उपचार करवो जिण (जि) जितQ-जय मेळववो चिण (चिनु) चणएं-एकळु कर जीह (जिह्री) लाजवू चिणा (चिनु) चणा-एकळु करघु जुज्झ (युध्य) जूझवु-युद्ध करवू चिंत् (चिन्त) चितवयु
झुंज (युञ्ज) योजq-जोडQ-अडापुछ (च्युतक) चूकवू-भ्रष्ट थर्बु
डवू-संबंध करवो योप्पड़ चोपडQ
जुर् (जुर्) जूर छन् (सज) छाजवं-शोभq जेम् (जेम) जमवू छाय् ) (छाद) अg-ढोक जोत् । (योत) ज्योत थवी
जो
प्रकाशq-जोवू.
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
-झा (ध्या) ध्यावुं ध्यान करवुं झाम् बाळवु
ठा (स्था) स्थिर रहेवुं - ऊभा रहे -
बेसी रहे
डस् (दश) डसवु -करडवु डड् (दह) दहवुं - दाझवु
डज्झ (द) बळवु - बाळवु णिग्विज्जू (निर्+विद्य) निर्वेद
पामवो
तच्छ् (तक्ष्) तास-छोलवु पातलुं
करं
२३६
तर् (तर) त
तव् ( तप) तपवु - संताप थवो - तप
कवुं
मां
ताल ( ( ताड) ताडन क
}
ताडू
ताव् (ताप) तपाववुं - ताववुं तिप्प ( तिपू ) टपकवु-गळवु
तुरिय (सूर्य) त्वरा करवी - उतावळा
थ - तुरत कर
तुवर (वर) त्वरा करवी तूर (त्वर) त्वरा करवी, झपाटबंध
जवं
तोलू (तोल) तोळ थुण् (स्तुनु) धुणवु - स्तुति करवी दक्खव् ( दृश) दाखववुं - देखाडवु -
कही बताव
दच्छ ( इक्ष्य) जोवु - देखषु
दा (दा) देवु दिप्प (दीप्य) दीपवु
दिव्व् ( दीव्य ) द्यूत रमवु - रमवुं
दी (दीपू ) दीप
देख (दृश्) देखवुं
धरिस ( धर्ष् ) धसवु-सामा थ
धा ( धाव् ) धावुं - दोडवु
धावू ( ( धाव) धोडवु - दोडवु धाय् ।
नच्च् (नृत्य) नाचवं
नज्झ (न) नाझ - बांधवु नम् ( नम् ) नमवु
नव्
नस्स् ) ( नश्य ) नाश थवो
नास्
नि+खालू | (नि+शाल) नि+क्खार् } (नि+झाल)
निखारवुं धोवु निधुण् (निर्+धुना ) खंखे-दूर
क
निप्पज् (निर्+ पद्य) नीपजवुं नि+मंत् (नि+मन्त्र) निमंत्रण
करवुं, नोतखुं
निन्दु } (निन्द) निदर्बु-निन्दा
करवी
नहर ( निर्+सर् ) नीहरखु -
नीस
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३७ ने । (नी) लइ जवू-दोखु । परिचय ( परि+त्यज ) परित्याग.
करवो पक्खाल् (प्र+क्षाल) पखाळg-धोवू परितप्प् (परि+तप्य) परिताप पगम्भ् (प्र+गल्भ) प्रगल्भ थq
पामवो-दुःखी थq बडाई मारवी
परिदेव् (परि+दिव) खेद करवो पञ्चप्पिण (प्रत्यर्पण-प्रति+अर्पण) ।
परिनिव्वा (परि+नि+वा) शान्त पार्छ सोंपवू
कवु-ओलवq. पजर (प्र+उत्+चर्-प्रोच्चर) कहेवू
परिव्वय (परि+वज) परिव्रज्या पट्टव् (प्र+स्थाप् ) पाठवq
लेवी-बंधनरहित थइने चारे पड् (पत) पडवू
कोर फरवू पडिकल (प्रति+कूल) प्रतिकूल
परिहर् (परि+हर) परह-तजवू थर्बु-विपरीत थर्बु पडिनी (प्रति+नी) पार्छ देवू
परिहा (परि+धा) पहे ___सामु देवु-बदले देवू
पवय् (प्र+वद) वदवू-कहेवू पडिवज्ज् (प्रति+पद्य) पामबुं- .
पवन (प्र+वस्) प्रवास करवो
स्वीकार पहार (प्र+धार) धार-संकल्प पद् (पठ) पाठ करवो-पढवू
करवो पणाम् (प्र+णाम) आपवु-सेवामां पा (पा) पीवं
रजु करQ पाव (प्र+आप ) पामकुं-प्राप्त करवू पन्नव (प्रज्ञापय) जणावयु
पास् । (पश्य) जोवू पमाय् (प्र+माद्य) प्रमाद करवो ।
पस्स् पमुच्च् (प्र+मुच्य) प्रमुक्त थq-. पिज्ज् (पीय) पीवू
तद्दन छूटी जर्बु पयल्ल् (प्र+सर्) फेल,
पिट्ट (पिट्ट) पीटवू-मारवु-पीडबुं परिआल् (परिवार) परिघृत कर,
पिसुण् (पिशुनय) चाडी करवी -वीटQ
। पील् । (पीड) पीडवू-पीलg परिकम् ( परि+कम् ) परिक्र
पीड मण कर-परकमवू- | पुच्छ् (पुच्छ) पूछर्बु
प्रदक्षिणा फरवी । पुज्ज् (पूर्व) पूवं-पूग .
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
૨૮
'पुण (पुना) पुणवु-पवित्र कर 'पुरिय (पूर्व) पूरQ-बुरवु-पुरू
कर पुलमाअ (पुलकाय) पुलकित थq
भव् (मव) थवु-होवू भा (भी) बीवू भाल (भाष) भाखवू-भाषण कर भिंद् ( भिनद् ) मेदवं,. कटका
करवा
पूज
खुश थर्बु
पुलोअ। (प्र+लोक) प्रलोकचुं- मेच्छ् (मत्स्य) मेदधू-ट्रकडा करवा पुल
जोवू | भोच्छ् (भोक्ष्य) भोजन करवूपूज। (पूज) पूज
भोगवq
मज्ज (मद्य) मद करवो, नाच, पेच्छु (प्र+ईक्ष) जोधुं फल् (फल) फळवू-फळ आववां
मन्न् (मन्य) मानवू फुट्ट (स्फुट) स्फुट थवु-खीलवू- मरिस् (मर्श) विमासवू-विचार,
फुटी नीकळवू मरिस् (मर्ष) सहवं, क्षमा राखवी बाह् (बाध) वांधवू-बाधा करवी- मिला (म्ला) म्लान थq-करमार्बु
- अडचण करवी मुज्झ (मुख्य) मुंझा, मुढ थqबीह (भी) वीg
मोह पामवो बू (ब्रू ) बोलवू
मुण् ( मन् ) जाणवू बोल्लू (ब्रू),
मुंच (मुञ्च) मूकबुं बोह (बोध) बोध थवो-जाणवू मेल (मेलय) मेळव, भेळव, भक्ख (भक्ष) भक्षवु-खावु-भरखवू
एकमेक करखं भज्ज ) (भञ्ज) भांजवू-भांगवू मोच्छ् (मोक्ष्य) मुकावं-छुटुं थर्बु भंज ।
रक्ख (रक्ष) रक्ष, राख, साचभण (भण) भणवु-बोलवू-कहेवु
वg, रक्षण कर, भम् (भ्रम) भमg
रीय (रीय) नीकळवू भम्म् (भ्राम्य) भमवं
रुव (रुद) रोवू भर् ] (स्मर) स्मरण कर सल । (व्य) रूसवु-रोष करवो . भ )
| रुस्त
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
रोच्छ (रोत्स्म) रोवू लम (लभ) लाभq-मेळक्यूँ लम् (लप) लव, बोलवू लड् (लभ) लेवं, मेळवद्यु लिप्प् (लिप्य) लेपावं, खरडावू लिह (लिख) लखवू लुट्ट (लुट्य) लोटवू-आळोटर्बु लुण (लुना) लणवू-कापq वक्खाण 'वि+आ+ख्यान) विस्ता
रथी कहेवू, वखाण करवा घग्गोल (वि+उद्गार-व्युद्गार) |
वागोळg बच्च (ब्रज) फरता रहे बज्ज् (वर्ज) वजवु, छोडवू बजर् (वि+उत्+चर व्युच्चर) कहेवू वड्द् (वर्ध) वधq वण् (वन) वणवं, भात पाडीने
वणवू बर् (घ) वर, स्वीकार, वरदान
वाव् ( वाप् ) वाव@-ववरावq विकिर्] (वि+किर) वेरवू विदर विक्के वि+की) वेचQ-वेकबुं वि+चर् (वि+चर) विचरखं-फ विचित् (वि+चिन्त) चितवद्
विशेष चितवदूं विच्छल (वि+क्षल) वींछळवू-धोवू विज्ज (विद्य) विद्यमान होवू विज्झ (विध्य) वींधवू विणस्स् (वि+नश्य) वणसी ब
__ नष्ट थQ-बगडबुं विण्णव् ( वि+ज्ञप् ) वीनवर्बु विप्पजह (वि+प्र+जहा) त्याग
करवो-दूर करवू विराअ वि+राज) विराजबूविराज
शोभq विसीअ (वि+षीद) विषाद पामवो
खेद करवो विहड । वि+घट) बगडवू-नाश विघड
पामत्रो विहर् (वि+हर) विहरखु-फर, विंधू (विध्य) वधिg वीसर (वि+स्मर्) वीसर वेच्छ (वेत्स्य) वेदQ-अनुभवq
जाणवू वेद विष्ट) वीटवू
लेवू
बरिस् (वर्ष ) वरसर्बु घलग्ग् (वि+लम) वळगq-चडवू षस् (वस) वसवू-रहेवू घड् (वध) वध करवो-हणवू वह (वह ) वहेवू-वायूँ वंद (वन्द) वांदवू-नमवू था (वा) पावू
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४०
वेव ( वेप् ) वेप-कंप-धूणवू । सिज्ज् (स्विय) सीजवू, चीकj वोच्छ (वक्ष्य) कहेवू-बोलवू
__थवं, स्वेद-परसेवावाळा थq समायर् (सम्-आ+चर) आचरण सिस् (सिध्य) सीझवू-सिद्ध थर्बु
कर सिलाह (श्लाघ) सराहवं- वखाणवू समारअ (सम्-आ+रच्) समार- सिव्व् (सिव्य) सीवq
समुं कर सिह। (स्पृह) स्पृहा करवी समारंभ् (सम्+आ+रभ) समारंभ
पिहे। करवो, हणवू
सिंच (सिञ्च) सींचQ सर (स्मर) स्मरण करवू
सुण् । (शणु) सुणवं-सांभळवू सव् (शप) शापवं, शाप देवो
सुमर् (स्मर) स्मरण कर संघ (सं+ख्या) कहेवू
सू] (द्) सूड, नाश करतो संजम् (सं+यम) संजमवू, संयम सूर )
करवो सस् । (शुष्य) शोषवु-मुकावू संजल् (सं+ज्वल्) बलवं, कोप ।
करवो सेव् (सेव) सेवQ-धारण करसंदिस् (सम्-दिश्) सन्देशो
आश्रय लेवो __ आपवो-सूचन करवू
सोच्छ (श्रोष्य) सांभळ, संपज्ज (सं+पद्य) संपजq-सांपडवू
सोह (शोध) शोधq-सोवु-शुद्ध
कर संपाउण् (सम्-प्र+आप्नु) सारी सोह (शुभ) सोहq-शोभq
रीते पाम, हण् (हन्) हणवू-मार संबुज्झ् (सं+बुध्य) समजवू हरिस् (हर्ष) हरख-हर्ष थवो संम्हर् (स+स्मर) संभावं, याद हस् (हस) हसवू
___ करवू हिंस् (हिंस) हिंसा करवी-हणवू संवड (सं+वध) संवर्धन करवं,
हा (हा) हीण थq-तजवू पोष, साचवq । हो (भू) होवू, थर्बु
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाइअ-गज्ज-पज्जाणि
१ मंगलं नमोऽथु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स ।
नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं। नमो आयरिआणं । नमो उवज्ञायाणं । नमो लोए सव्वसाइणं । अरिहंता मंगलं। सिद्धा मंगलं । साहू मंगलं। केवलिपनत्तो धम्मो मंगलं। अरिहंते सरणं पवजामि । सिद्धे सरणं पवजामि । साहू सरणं पवजामि। केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवजामि ।
-नमोकारो।
-मंगलं।
-सरणं।
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२]
२ महव्वयउच्चारणा सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं । सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं । सव्वाभो अदिन्नादाणाओ वेरमणं । सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं।
सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं। सव्वं भन्ते ! पाणाइवायं पञ्चक्खामि-नेव सयं पाणे अइवाएज्जा, नेवऽनेहिं पाणे अइवायाविजा, पाणे अइवायंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं ॥१॥
सव्वं भन्ते ! मुसावायं पञ्चक्वामि-नेव सयं मुसं वएजा, नेवsन्नेहिं मुसं वायावेजा, मुसं वयंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं ॥२॥ ___सव्वं भन्ते ! अदिन्नादाणं पञ्चक्खामि-नेव सयं अदिन्नं गिहिजा, वेवन्नेहिं गिण्हावेजा, अदिन्नं गिण्हते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं ॥३॥
सव्वं भन्ते ! मेहुणं पञ्चकवामि-नेव सयं मेहुणं सेविज्जा, नेवsन्नेहिं सेवावेज्जा, मेहुणं सेवते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेण ॥४॥
सव्वं भन्ते ! परिग्गहं पञ्चक्खामि-नेव सयं परिग्गहं परिगिण्हेजा, नेवऽन्नेहिं परिग्गहं परिगिहाविज्जा, परिग्गहं परिगिण्हते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं ॥५॥ .
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
[३] सव्वं भंते ! राइभोयणं पञ्चक्खामि-नेव सयं राई भुजेज्जा, नेवञ्नेहिं राई भुंजाविजा, राई भुंजते वि अण्णे न समणुजाणामि नावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं ॥६॥
-~-समणसुत्तं.
३ मिच्छा मि दुक्कडं किर एगया एगस्स कुंभगारस्स कुडीए साहुणो ठिया. तत्थेगो चिल्लगो चवलत्तणेण तस्स कुंभगारस्स कोलालाणि अंगुलियधणुहगएणं पाहाणेहिं विधेइ. कुंभकारेण पडिजग्गिओ दिट्ठो भणिओ-खुड्डगा! कीस मे कोलालाणि काणेसि ? खुड्डओ भणइ-मिच्छा मि दुकडं, न पुणो विधिस्सं, मणागं पमायं गओ मि त्ति. एवं सो पुणो वि केलाकिलत्तणेण विधेऊण चोइओ मिच्छा-मि-दुक्कडं देइ. पच्छा कुंभकारेण सढोत्ति नाऊण तस्स खुड्गस्स कन्नामोडओ दिन्नो. सो भणइ-दुक्खविओ ह, कुंभकारो भणइ-भिच्छा-मि-दुक्कडं. एवं सो पुणो पुणो कलामोडयं दाऊण मिच्छा-मि-दुक्कडं करेइ. पच्छा चेल्लओ भणइ-अहो ! सुंदरं मिच्छा-मि-दुक्कडं ति । कुंभकारो भणइ-नुव्भ वि एरिसं चेव मिच्छामि-दुक्कडं ति. पच्छा ठिओ विधेयवस्स. किंच
"जं दुक्कडं ति मिच्छा तं चेव निसेवइ पुणा पावं । पच्चक्खमुसावाई मायानियडीपसंगो य॥"
--समणसुत्तवुत्ती.
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
[४]
४ खामणं आयरिए उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे । जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि॥ सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करिअ सीसे । सव्वे खमावइत्ता खमामि सव्वस्स अहयं पि ॥ सव्वस्स जीवरासिस्स भावओ धम्मनिहिअनिभचित्तो । सव्वे खमावइत्ता खमामि सव्वस्स अहयं पि ॥ खानेमि सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएसु वेरै मज्झं न केणइ ॥
-पडिक्कणमुख
-
समयं०
५ समयं गोयम! मा पमायए कुसग्गे जह ओसबिंदुए थोवं चिट्ठति लंबमाणए। एवं मणुयाण जीविभ
समयं. इह इत्तरियम्मि आउए जीवितए बहुपञ्चवायए । विहुणाहि रयं पुराकडं एवं भवसंसारे संसरति सुभासुमेहि कम्मेहिं । जीवो पमायबहुलो
.. समयं० परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरगा भवंति ते।। से सोयबले य हायइ
समयं० वुच्छिद सिणेहमप्पणो कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवजिए
समयं०
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
[५] चिच्या ण धणं च भारियं पव्वहओ हि सि अणगारियं । मा वंतं पुणो बि आविए
समयं० ण हु जिणे अज दीसइ बहुमए दीसइ मग्गदेसिए। संपह नेमाउए पहे
समयं० तिण्णो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागभो। अभितुर पारं गमित्तए
समयं० बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमदुपदोवसोहियं । रागं दोसं च छिंदिया सिद्धिगई गए गोयमे ॥
-उत्तरायणाई.
६ हरिकेसी सोवागो सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी। हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइंदिनो॥ मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खड्डा बंभइजम्मि जनवाडं उवडिओ। तं पासिऊगमिजंतं तवेण परिसोसियं । पंतोवहिउवगरणं उवहसंति अणारिया ॥ जाइमयं पडिथद्धा हिंसगा अजिइंदिआ।
अबंभचारिणो वाला इणं वयणमम्बवी ।। बंभणा कयरे आगच्छह दिवसवे काले विकराले फुस्कनासे।
ओमचेलए पैमुपिसायभूए संकरसं परिहरिय कंठे ॥
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ 4 ] करे तुमं इय अदंसणिज्जे काए व आसा इहमागओ सि । ओमचेलगा ! पंसुपिसायभूआ ! गच्छ खलाहि किमिहं ठिओ सि ॥ समणो - समणो अहं संजओ बंभयारी विरओ धण - प्पयण- परिग्गहाओ । परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले अन्नस्स अट्ठा इहमागओ मि ॥
वियरिज्जइ खज्जइ भुज्जइ य अन्नं पभूयं भवयाणमेयं । जाणा मे जायजीविणु त्ति सेवावसेसं लहउ तवस्सी ॥ बंभणा – उवक्खडं भोयणं माहणाणं अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्वं । नऊ वयं एरिसमन्नपाणं दाहामु तुज्झं किमिहं ठिओ सि ? | समणो- तुभित्थ भो ! भारहरा गिराणं अट्टै न
या अहिज्ज वे । उच्चावयाई मुणिणो चरंति ताईं तु खित्ताई सुपेसलाई || बंभणा – अमावयाणं पडिकूलभासी पभाससे किंनु
सगासि अम्हं । अवि एयं विणस्सउ अन्न-पाणं न य णं दाहामु तुमं नियंठा ! ॥ समणो - जइ मे न दाहित्य आहेसणिज्जं, किमज्ज
जन्नाण लभित्थ लाभं ॥ बंभणा -- के इत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा
सह खंडिएहिं ? | एयं खु दंडेण फलेण हंता कंठम्मि घित्तूण खलिज्ज जो णं । अज्झायाणं वयणं सुणित्ता उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा । दंडेहिं वित्तहिं कसेहिं चेव समागया तं इसि तालयंति ॥
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ७ ]
कोसलिआ रायदुहिआ -- गिरिं नहिं खणह अयं दंतेहि खायह । जायतेयं पायेहिं इणह जे भिक्खुमवमन्नह || समणोपुवि च इहि च अणागयं च मणप्पओसो
न मे अथ कोई | गंभणा - सक्ख खुदीसह तवोविसेसो न दीसह जाइविसेस कोई । सोवागपुत्तं हरिएससाहुं जस्सेरिसा इड्ढी महाणुभावा ॥ कहं चरे भिक्खु ! वयं जयामो पावाईं कम्माई पणुल्लयामो ? समणो-छज्जीवकाएऽसमारभंता मोसं अदत्तं च असेवमाणा ।
परिग्गहं इत्थिउ माण - मायं एयं परिम्नाय चरंति दंता ॥ एयं सिणाणं कुसले दिठ्ठे महासिणाणं इसिणं पसत्थं । बर्हिसि हाया विमला विसुद्धा महारिसी उत्तमं ठाणं पत्ता ॥ उत्तरझयणाई.
७ तं वयं बूम माइणं
जो लोए बंभणो वृत्तो अग्गी वा महिओ जहा ।
सदा कुसलसंदि
जो न सज्जइ आगंतु पव्वयंतो न सोअइ ।
रमए अज्जवयम्मि
जावं जहा महुं निर्द्धतमलपावगं ।
राग-दोस-भयाईयं
तसे पाणे वियाणित्ता संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविणं
तं वयं ०
तं वयं ०
तं वयं ०
तं वयं ०
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
[
]
पण ।
कोहा वा जइ वा हासा लोहा वा जावा भया। मुसं न वयह जो उ
तं वयं० चित्तमंतमचितं वा अप्पं वा जइ वा बहुं। न गिण्हइ अदत्तं जो
तं वयं० दिव्व-माणुस्स-तेरि छं जो न सेवेह मेहुणं । मणसा काय--वक्केण
तं वयं० जहा पोम्मं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा । एवं अलितं कामेहि
तं वयं० अलोलुयं मुहाजीवि भणगारं अकिंचणं । असंसत्तं गिहत्येहि
तं वयं० नवि मुंडिएण समणो न कारेण बंभणो।
___ न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो ॥ समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो।
मोणेण य मुणी होई, तवेणं होइ तावसो ॥ कम्मुणा भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ।
वहस्सो कम्मणा होइ सुदो हवइ कम्मुणा ॥ एए पाउकरे बुद्धे जेहिं होइ सिणायो । सव्वकम्मविणिमुक्कं
तं वयं० एवं गुणसमाउत्ता जे हवंति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्त्तुं पर अप्पाणमेव य ।
-उत्तरायणाई.
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
८ रामवणवासो
चाउवण्णं च जणं आपुच्छेऊण निग्गओ रामो। वहदेही वि व ससुरं पणमह परमेण विणयेणं॥ १०३ सव्वाण सासुयाणं काऊण चलणवन्दणं सीया। सहियायणं च निययं आपुछिय निग्गया एत्तो ॥ १०४ गन्तूण समाढत्तं रामं दळूण लक्खणो रुहो । ताएण अयसबहुलं कह एयं पत्थिय कजं ? १०५ एत्थ नरिंदाण जए परिवाडीभागयं हवइ रजं । विवरीयं चिय रहयं ताएण अदीहपहिणा ॥ रामस्स को गुणाणं अंतं पावेइ धीरगरुयस्स । लोमेण जस्स रहियं चित्तं चिय मुणिवरस्सेव ॥ अहवा रजधुरंधरं सव्वं फेडेमि भज भरहस्स । ठावेमि कुलाणीए पुहइवई आसणे रामं ॥ एएण किं व मज्झं हवइ वियारेण ववसिएणज । नवरं पुण तश्वत्थं ताओ जेहो य जाणंति ॥ कोवं च उवसमेउं पणमिय पियरं परेण विणएणं । आपुच्छा दढचित्तो सोमित्ती अत्तणो जणणि ॥ ११० संभासिऊण भचे वजावत्तं च धणुवरं घेत्तुं । पमपाइसंपउत्तो पउमसयासं समल्लीणो ॥ १११ पियरेण बंधवेहि य सामंतसएसु परिनिग्गया संता । रायभवणाभो एत्तो विणिग्गया सुरकुमार ब्व ॥ ११२
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१०] सुयसोगतावियाओ धरणियलोसित्तअंसुनिवहाओ । कह कह वि पणमिऊणं नियत्तियाओ य जणणीओ ॥ ११३ काऊण सिरपणामं नियत्तिओ दसरहो य रामेणं । सहवड्डिया य बंधू कलणपलावं च कुणमाणा ।। ११४ जंपति एकमेक्कं एस पुरी जइ वि जणवयाइण्णा । जाया रामविओए दीसइ विशाडवी चेव ।। ११५
पउमचरियं.
९ वीरत्थुती हत्थीसु एरावणमाहु णाए सीहो मिगाणं सलिलाण गंगा । पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो निव्वाणवादीणिह नायपुत्ते ॥ २१ जोहेसु णाए जह वीससेणे पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु । खत्तीण सेटे जह दंतवक्के इसीण सेढे तह वद्धमाणे ॥ २२ दाणाण सेढे अभयप्पयाणं सच्चेसु वा अणवजं वयंति ।। तवेसु वा उत्तम बंभचेरं लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ॥ २३
सूअगडंग, ६ वीरत्थुतिमझयणं.
१० अप्पा से ण दीहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तंसे, ण चउरसे, ण परिमंडले; ण किण्हे, ण णीले, ण लोहिए, ण सुक्किले; ण सुरहिगंधे, ण दुरहिर्गधे ण तित्ते, ण कड्डए, ण कसाते(ए), ण अंबिले, ण महुरे,
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
[११] ण कक्खडे, ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण गिद्धे, न लुक्खे; ण काऊ(ओ), ण रुहे, ण संगे, ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अन्नहा; परिणे, सण्णे. __उवमा ण विज्जति, अरूवी सत्ता; अपयस्स पयं नथि, सव्वे सरा णिअति, तक्का जत्थ ण विजंति, मती तत्थ ण गाहिता, ओए, अप्पतिद्वाणस्स खेयन्ने.
से ण सद्दे, ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे इच्चेतावंति त्ति बेमि. -आयारंगसुत्तं,
११ धुत्तो सियालो सियालेण भमंतेण हत्थी मओ दिट्ठो । सो चिंतेइ-" लद्धो मए उवाएण ताव णिच्छए खाइयव्वो।" जाव सिंहो आगओ। तेण चिंतियं-" सचिटेण ठाइयव्वं एयस्स ।"
सिंहेण भणियं-" किं अरे ! भाइणेज ! अच्छिज्जइ !" सियालेण भणियं-आमंति माम ! सिंहो भणइ-" किमेयं मय ?" ति । सियालो भणइ-" हत्थी।" " केण मारिओ ?" " वग्घेण।"
सिंहो चिंतेइ-" कहमहं ऊणजातिएण मारियं भक्खामि ? " गओ सिंहो । णवरं वग्यो आगओ । तस्स कहिां-" सीहेण मारिओ, . सो पाणियं पाउं णिग्गओ।"
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१] वग्यो णहो । जाव काओ आगओ। सियालेण चिंतियं-" जइ 'एयस्स ण देमि तओ 'काउ' 'काउ'त्ति वासियसदेणं अण्णे कागा एहिति, तेसिं कागरडणसद्देणं सियालादि अण्णे बहवे एहिति, कित्तिया बारेहामि ? ता एयस्स उवप्पयाणं देमि ।"
तेण तओ तस्स खंडं छित्ता दिण्णं । सो तं घेत्तूण गओ।
जाव सियालो आगओ। तेण णायमेयस्स हठेण वारणं करेमि त्ति भिउडि काऊण वेगो दिण्णो । णट्ठो सियालो। उक्तं चः
उत्तमं प्रणिपातेन, शूरं भेदेन योजयेत् ।। नीचमरूपप्रदानेन, सदृशं च पराक्रमैः ॥
(दशवैकालिकवृत्तिः )
१२ कयग्घा वायसा इओ य किर अतीते काले दुवालसवरिसिओ दुभिक्खो आसी। तत्थ वायसा मेलय काऊण अण्णोष्णं भणंति-" किं कायव्वमम्हेहिं ? वड्ढो छुहमारो उवडिओ, नत्थि जणवएसु वायसपिडियाओ, अण्णं वा तारिस किंचि न लब्भइ उज्झणधम्मियं, कहियं वच्चामो "? त्ति । __तत्थ वुड्ढवायसेहिं भणियं-" समुदतडं वञ्चामो । तत्थ कायंजला अहं भायणेज्जा भवंति । ते अम्हें समुद्दाओ मच्छए उत्तारिऊणं दाहिति। अण्णहा नत्थि जीवणोवाओ।"
संपहारेत्ता गया समुद्दतडं । ततो तुट्ठा कायंजला मच्छए उत्तारित्ता देंति । वायसा तत्थ सुहेण कालं गति ।
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
ततो वत्ते बारससंवच्छरिए दुभिक्खे जणवएसु सुभिक्खं जायं । ततो तेहिं वायसेहिं संपहारेता वायससंघाडओ " जणवयं पलोएह " वि पेसिओ, जइ सुभिक्खं भविस्सइ तो गमिस्सामो।
सो य संघाडओ अचिरकालस्स उवलद्धी करेत्ता आगतो। साहति य वायसाणं जहा-'जणवएसुं वायसपिंडिआमो मुक्कमाणीओ अच्छंति, उहेह, बच्चामो ' त्ति।
ततो ते संपहारेति-किह गंतव्वं ! ति 'जइ आपुच्छामो नत्थि गमणं' एवं परिगणेत्ता कायंजले सहावेत्ता एवं वयासी
" मागिणेजा ! वच्चामो।" ततो तेहिं भणियं-"किं गम्मइ ! "। ततो मणंति
" न सकेमो पइदिवसं तुम्हं अहोभागं पासित्ता अणुहिए चेव सूरे"। एवं भणित्ता गया।
(वसुदेवहिण्डी-प्रथमखडम्)
१३ सुरप्पिओ जक्खो तेणं कालेणं तेणं समतेणं साकेयं णगरं । तस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसिभागे सुरप्पिए नाम जक्खाययणे । सो य सुरप्पिओ जक्खो सन्निहियपाडिहेरो । सो वरिसे वरिसे चित्तिजइ । महो य से परमो कीरइ । सो य चित्तिओ समाणो तं चेव चित्तकर मारेइ । अह न चित्तिज्जइ तओ जणमारिं करेह ।
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१४] ततो चित्तगरा सवे पलाइउमारद्धा । पच्छा रण्णा णायं, जदि सव्वे पलायंति, तो एस जक्खो अचित्तिज्जतो अम्ह वहाए भविस्सइ ।
तेणं चित्तगरा एक्कसंकलितबद्धा पाहुडएहिं कया, तेसि सव्वेर्सि णामाई पत्तए लिहिऊणं घडए छूढाणि। ततो वरिसे जस्स णामं उहाति, तेण चित्तेयव्यो । एवं कालो वच्चति । _अण्णया कयाइ कोसंबीओ चित्तगरदारओ घराओ पलाइओ तत्थागओ सिक्खगो। सो भमंतो साकेतस्स चित्तगरस्स घरं अल्लीणो । सो वि एगपुत्तगो थेरीपुत्तो । सो से तस्स मित्तो जातो।
एवं तस्स तत्थ अच्छंतस्स अह तम्मि वरिसे तस्स थेरीपुत्तस्स वारओ जातो । पच्छा सा थेरी बहुप्पगारं रुवति ।।
तं रुवमाणी थेरौं दठूण कोसंबको भणति-"किं अम्मो रुदसि ?"
ताए सिढे । सो भणति- “ मा रुयह । अहं एवं जखं चित्तिस्सामि ।"
ताहे सा भणति-"तुमं मे पुत्तो किं न भवसि ?" " तो वि अहं चित्तेमि, अच्छह तुम्भे असोगाओ।"
ततो छट्ठभत्तं काऊण, अहतं वत्थजुअलं परिहित्ता, अद्वगुणाए मुहपोत्तीए मुहं बंधिऊण, चोक्खेण य पत्तेण सुइभूएण णवएहिं कलसएहिं व्हाणेत्ता, णवएहिं कुच्चएहिं, णवएहिं मल्लसंपुडेहिं, भल्लेसेहिं वण्णेहिं च चित्तेऊण पायवडिओ भणइ-“ खमह जं मए अवरद्रं " ति ।
ततो तुट्टो जक्खो भणति-" वरेहि वरं" सो भणति-"एयं चेव ममं वरं देहि, लोग मा मारेह ।" भणति-" एवं ताव ठितमेव, जं तुमं न मारिओ, एवं अण्णे वि
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१५] न मारेमि । अण्णं भण।"
"जस्स एगदसमवि पासेमि दुपयस्स वा चउप्पयस्स वा अपयस्स वा तस्स तदणुरूवं रूवं णिव्वत्तेमि ।"
“एवं होउ" त्ति दिण्णो वरो, ततो सो लद्धवरो रण्णा सक्कारितो समाणो गओ कोसंबिं णयरिं ।
( आवश्यकहारिभद्रीयवृत्तिः-विभागः १)
१४ जामाउयपरिक्खणं वसंतपुरं नयरं । निद्धसो नाम तत्थ आसि धिज्जाइओ। तस्स सुहा महेला लीलानिलओ। तेसिं च तिन्नि धूवा जाया । कमेण य उमयं तारन्न पत्ता। नियसरिसबिहवेसु कुलेसुं वीवाहिया ।
___ जणणीए चिंतियं-“मज्झ दुहियरो कह सुत्थिया होजा ? पइपरिणामे अन्नाए ववहरतीओ ता गउरवपयं न भवंति । गउरवरहियाणं य कओ सुहासंगो ! तओ कहमवि जामाउयाणं भावमहं जाणामित्ति चिंतिऊण नियधूयाओ भणियाओ-"लद्धावसराहिं पढमपसंगे पण्हिपहरेण निययपइणो सिरो हणणिज्जो।" _____ताहिं तहच्चिय कए पभायम्मि जणणीए ताओ पुच्छियाओ-"किं तेण तुम्हं विहियं ?"
जेट्टाए भणियं-“सो मच्चरणमद्दणपरो भणइ - 'देवाणुप्पिये ! किं न दुक्खमणुपत्ता ? एवंविहो पहारो तुम्ह चरणाणं न उचिओ। तुह ममम्मि अइगरुओ आसंघो, अन्नहा को णु एवं कुणइ ?"
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१६] जणणीए सा जेट्टा भणिया-"पुत्ति ! तुझं पई भइपेमपरव्वसो। तओ तं जं कुणसि तं सव्वं पमाणं होहिह। तो तस्स मा भाहि ।"
बीया धूया जणणि भणइ-"पहारसमणंतर सो मणागं सिंखणकारी जाओ, खणंतराओ उवरओ"त्ति ।
जणणी तं भणइ-"तुमए अरुच्चमाणम्मि विहिए सो शिखणकारी होही, अन्नं निग्गहं नो काही ।"
तइयाए धूयाए पुणो भणियं-"अम्मो ! मए तुह निदेसे कए संते सो दूरा दरिसियरोसो गेहथंभेण बंधिय मम कसघायसए दासी, भासियवं च तं दुक्कुला सि। तो मे तए एवंविहकज्जसज्जाए न
कजं ।"
तमो अस्स जामाउयस्स समीवं गंतुं माऊए भणिय-"कहं में धूया ताडिया ? सा हि पढमपसंगे तुज्झ पण्हिपहरं दाऊण अर्ह कुलधम्म आइण्णा।"
सो जंपइ-"अम्ह वि एस कुलधम्मो, जइ पुण सो कुलधम्मो कह वि न कज्जइ तो सा ससुरकुलं न नंदेह ।"
तओ जणणीए पुत्तीए समीवमागन्तुं भणियं-"जहेव देवस्स वट्टिज्जासि तहेव पइणो वहिज्जासि । न अन्नहा इमो तुह पियकरो"त्ति।
(उपदेशपद)
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१७] १५ गामिल्लओ सागडिओ अस्थि कोइ कम्हिइ गामेल्लओ गहवती परिवसइ । सो य अण्णया कयाइ सगडं धण्णभरियं काऊणं, सगडे य तित्तिरि पंजरगयं बंधेत्ता पट्टिओ नयरं । नयरगतो य गंधियपुत्तेहिं दीसह । सो य तेहिं पुच्छिओ"किं एयं ते पंजरए" ? ति ।
तेण लवियं-"तित्तिरि" त्ति। तओ तेहिं लवियं-"किं इमा सगडतित्तिरी विक्कायइ ?" तेण लवियं-"आमं, विक्कायइ" । तेहिं भणिओ-"किं लब्भइ ?" सागडिएण भणिय-"काहावणेणं" ति । ततो तेहिं काहावणो दिण्णो, सगडं तित्तिरं च घेत्तुं पयत्ता । ततो तेणं सागडिएणं भण्णति-"कीस एवं सगडं नेह ?" त्ति । तेहिं भणियं-"मोल्लेण लइययं " ति ।
ततो ताणं ववहारो जाओ, जितो सो सागडिओ, हिओ य सो सगडो तित्तिरीए सम। ___ सो सागडिओ हियसगडोवगरणो जोग-खेम-निमित्तं आणिएलियं बइल्लं घेत्तूणं विक्कोसमाणो गंतुं पयत्तो, अण्णेण य कुलपुत्तएणं दीसइ, पुच्छिओ य–“कीस विक्कोससि ?" ।
तेण लवियं-"सामि ! एवं च एवं च अइसंघिओ हं।"
ततो तेण साणुकंपेण भणिओ-“वच्च ताणं चेव गेहं, एवं च एवं च भणाहि" ति।
Page #275
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ " ]
ततो सो क्यणं सोऊण गंभो, गंतूण य तेण भणिआ - "सामि ! तुम्मेहिं मम भंडभरिओ सगडो हिओ ता इमं पि बइल्लं गेहह । मम पुसतुयादुपालियं देह, जं घेतूण वश्चामि त्ति । न य अहं जस्स व स्व हत्थेणं गेहामि, जा तुज्झ घरिणी पाणेहि वि पिययरी सव्वालंकारभूसिया तीए दायव्वा, ततो मे परा तुट्ठी भविस्सइ । जीवलोगअंतरं व अप्पाणं मन्निस्सामि । "
ततो तेहिं सक्खी आहूया, भणियं च - "एवं होउ "त्ति । ततो ताणं पुत्तमाया सत्तुयादुपालियं घेत्तूण निग्गया, तेण सा हत्थे गहिया, घेत्तूण य तं पट्ठिओ ।
तेहिं पि भणिओ - "किमेयं करेसि ? "
तेण भणियं - "सत्तुदो पालियं नेमि ।"
ततो ताणं सदेण महाजणो संगहिभो, पुच्छिया- “किमेयं ?" ति । ततो तेहिं जहावत्तं सव्वं परिकहियं । समागयजणेण य मज्झत्थेणं होऊण वबहारनिच्छओ सुओ, पराजिया य ते गंधियपुत्ता। सो य किलेसेण तं महिलियं मोयाविओ, सगडो अत्थेण सुबहुएण सह परिदिण्णो । ( वसुदेवहिण्डी - प्रथमखण्डम् )
१६ मङपुतो रोहो
उज्जेणी नामेणं वित्थिण्णसुरभवणाः समुच्धुरधणोहा मालवमंडलमंडणभूआ नयरी समत्थि । तत्थ जियसत्तू नामा रिउपक्ख विक्खोहकारओ गुणसाहो सगुणी सुदढपणओ नरनाहो आसी ।
Page #276
--------------------------------------------------------------------------
________________
[५] अह उज्जेणिसमीवे सिलागामो गामो । तत्थ य मरहो नडो। सो य तग्गामे पहू, नाडयविजाए लद्धपसंसो य । तस्स गामेण रोहयो, गामस्स य सोहओ सुओ। . अन्नया कयाइ वि मया रोहणमाया। तओभरहों घस्कजकरणकए अण्णं तज्जणणि संठवेइ।
रोहओ य बालो। सा य तस्स हीलापरायणा हवइ । तो तेण सा भणिया-"अम्मो । जं मम सम्मं न वट्टसि, न तं सुंदर होही। एत्तो अहं तह काहं जह तं मे पाएसु पडसि ।"
एवं कालो वच्चह। अह अण्णया कयाइ वि ससिपयासधवलाए रयणीइ सो एगसेनाए जणगसहिओ पासुत्तो। तो रयणिमझभागे उहिंता उब्भएण होऊणं उच्चसरेणं जणओ उहाविय भासिओ जहा"ताय ! पेक्खसु एस कोइ परपुरिसो जाइ !"
स सहसुट्टिओ जाब निदामोक्खं काऊणं लोयणेहिं जोइए ताव तेण न दिहो न कोइ पुरिसो।
ततो रोहओ पुट्ठो-"क्च्छा ! सो कत्थ परपुरिसो ?"
तेण जणओ भणिओ-“इमेणं दिसाविभागेणं सो सुरिस्तुरिवं गच्छंतो मे दिहो।"
तओ सो महिलं नट्ठसीलं परिकलिय तीए सिढिलायरो जाओ। सा पच्छायावपरिगया भासह
"वच्छ ! मा एवं कुणसु।" रोहओ भणइ-"कहं मम लटुं न वसि?"
Page #277
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२०] सा बेइ-"अह लटं वट्टिस्सं । तओ तुमं तहा कुणसु जहा एसो तुह जणओ मज्झ आयरं कुणइ ।"
इमं रोहेण पडिवनं । सा वि तह वट्टिउं लग्गा।
अण्णया कयावि रयणिमझे सुत्तुठ्ठिओ सो जणगं भणइ-"ताय ! सो एस पुरिसो! पुरिसो!"
पिउणा पुढे-“सो कहिं" ति। तओ निययं चेव छायं दसित्ता भणइ-"इमं पेच्छह" त्ति । स विलक्खमणो जाओ, पुच्छइ-"किं सो वि एरिसो आसी ?" बालेण 'आम' ति भणियं ।
जणओ चिंतेइ-"अब्वो ! बालाण केरिसुल्लावा !” इय चितिऊण भरहो तीइ घणराओ संजाओ।
(उपदेशपद)
१७ चिन्भडियावंसगो एगो मणुस्सो चिब्भडियाणं भरिएण सगडेण नयरं पविसइ । सो पविसंतो धुत्तेण भण्णइ-"जो एवं चिन्भडियाण सगडं खाइजा तस्स तुमं किं देसि ?" __ ताहे सागडिएण सो धुत्तो भणिओ-"तस्साहं तं मोयगं देमि जो नगरद्दारेण ण णिप्फिडइ ।"
धुत्तेण भण्णति-"तोऽहं एयं चिन्भडियासगडं खायामि, तुम पुण तं मोयगं देजासि जो नगरद्दारेण ण नीसरति ।" ।
पच्छा सागडिएण अब्भुवगए धुत्तेण सक्खिणो कया । तओ सगडं
Page #278
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२१] अहिहित्ता तेसिं चिन्भडियाणं मणयं मणयं चक्खित्ता चक्खित्ता पच्छा तं सागडियं मोदकं मग्गति । ताहे सागडिओ भणति
"इमे चिब्भडिया ण खाइया तुमे।" धुत्तेण भण्णति-"जइ न खाइया चिन्भडिया अग्घवेह तुमं ।"
तओ अग्घविएसु कइया आगया, पासंति खाइया चिब्भडिया, ताहे कइया भणंति-“को एया खाइया चिमडिया किणइ ?"
तओ करणे ववहारो जाओ। 'खाइय' त्ति जिओ सागडिओ । ताहे धुत्तेण मोदगं मग्गिजति । अचाइओ सागडिओ, जुत्तिकरा ओलग्गिया, ते पुट्ठा पुच्छंति, तेसिं जहावत्तं सव्वं कहेति । एवं कहिते तेहिं उत्तरं सिक्खाविओ।
तओ तेण खुड्यं मोदगं णगरदारे ठवित्ता, भणिओ मोदगो"जाहि, जाहि मोदग!" स मोदगो न णीसरइ नगरदारण।
तो तेण सागडिएण सक्खिणो वुत्ता-"मए तुम्हाकं समक्ख पडिन्नायं--'जं अहं जिओ भविस्सामि तो सो मोदगो मया दायन्वो जो नगरद्दारेण न णीसरइ,' एसो न णीसरइ ।" तओ जिओ धुत्तो।
(दशवैकालिकवृत्तिः)
१८ भारियासीलपरिक्खा अस्थि अवंती नाम जणवओ । तत्थ उज्जेणी नाम नयरी रिद्धस्थिमियसमिद्धा । तत्थ राया जितसत्तू नाम । तस्स रण्णो धारिणी नाम देवी।
Page #279
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२]
तत्थ व उज्जेणीए नयरीए दसदिसिपयासो इन्भो सागर बंदो नाम | भज्जा य से चंदसिरी । तस्स पुत्तो चंदसिरीए अत्तओ समुद्ददत्तो नाम सुरूवो ।
सोय सागरचंदो परमभागवउदिक्खासंपत्तो भगवयगीयासु सुत्तओ अत्थओ य विदितपस्मत्थो । सो य तं समुद्ददत्तं दागं गिहे परिव्वायगस्स कलागहणत्ये उवइ "अन्नसालासु सिक्खंतो अण्णपासंडियदिडी हवेज्जा" ।
ततो सो समुददतो दारगो तस्स परिव्वायमस्स समीवे कलागहणं #रेमाणो अण्णया कयाइ 'फलगं ठवेमि' त्ति सिंहं अणुपविट्ठो । नवरि च पासइ नियगजणणीं तेण परिव्वायगेण सद्धि असम्भमायस्माणीं । ततो सो निम्तो इत्थीसु विरागसमावण्णो, 'न याओ कुलं सीलं वा रक्खति' त्ति चितिऊण हियएण निब्बंधं करेह, जहान मे वीवाहेयब्वं ति । ततो से समत्त कलरस जोग्वणत्थस्स पिया सरिसकुल - रूव - विहबाओ दारियाओ वरेइ । सो य ता पडिसेहेइ । एवं तस्स कालो वच्चइ ।
अण्णया तस्स सम्मएणं पिया सुरट्ठमागतो ववहारेणं । गिरिनगरे धणसंत्थवाहस्स धूयं धणसिरिं पडिरूवेणं सुकेणं समुददत्तस्स वरेह । तरस य अन्नायमेव तिहिगहणं काऊण नियनगर मागओ ।
ततो तेण भणितो समुददत्तो - "युत्त ! मम गिरिनयरे भंड अच्छछ, तत्थ तुमं सवयंसो बच । ततो तस्स भंडस्स विणिओगं काहामो” ति बोत्तूण वयंसाण य से दारियासंबंधं संविदितं कथं ।
त ते सविभवाणुरूवेणं निग्गया, कहाविसेसेण य पत्ता गिरि
Page #280
--------------------------------------------------------------------------
________________
[३]
समरं । बाहिरभो य ठाऊणं भणस्त्र सत्थवाहस्स मणुस्सो पेसिओ, जहा 'ते आगओ वरो' ति ।
ततो तेण सविभवाणुरूवा आवासा कया, तत्थ य आवासिया । रत्तीए आगया भोयणववएसेणं धणसत्थवाहगिद्दे, घणसिरीए पाणिग्गहणं कारिओ ।
ततो सो धणसिरीए वासगिहे पविट्ठो । ततो णेणं पइरिक्कं जाणिऊण तीसे धणसिरीते चम्महिं दाऊण निग्गओ, बयंसाण च मझे सुतो । ततो पभायाए रयणीए सरीरावस्सकहेउं सवयंसो वेब निग्गतो बहिया गिरिनयरस्स । तेसिं वयसाणं अदिता चेव नहो ।
1
ततो से वयंसेहिं आगतूणं [ सागरचंदस्स] धणसत्यवाहस्स य परिकहियं 'गतो सो' । नेहिं समंततो मग्गिओ, न दिट्ठो । ततो ते 1 दीणवयणा कवयाणि दिवसाणि अच्छिऊण घणसत्थवाहमापुच्छिऊण मता नियगनयरं ।
इयरो वि समुददत्तो देसतराणि हिंडिऊण केणइ कालेन आगतो गिरिनगरं कप्पडियवे सछण्णो परूढनह - केस - मंसु -रोमो । दिट्ठो णेण धणसत्थवाहो आरामगतो । ततो तेणं पणमिऊणं भणिओ - "भहं तुम्भं आरामकम्मकरो होमि ।"
तेज य भजिओ- “भणसु, का ते भती दिज्जउ" त्ति ! | ततो तेण भणियं - "न मे भईए कज्जं । अहं तु पसादाबि -
कंखी । मम तुडीदाणं देज्जह" ति ।
एवं डिस्सुए आरामे कम्ममारदो काउं । ततो सो रुक्खाउब्वेयकुसलो तं आरामं कहवएहिं दिवसेहिं सब्वोउयपुष्प - फलसमिद्धं करेइ ।
Page #281
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२४] .. ततो सोधणसत्थवाहोतं आरामसिरिं पासिऊणं परं हरिसमुवगतो। चिंतियं च णेणं-"किमेएणं गुणाइसयभूएण पुरिसेण आरामे अच्छतेण ? वरं मे आवारीए अच्छउ" त्ति ।
ततो व्हविय-पसाहिओ दिण्णवत्थजुयलो ठवितो आवणे ।
ततो तेण आय-वयकुसलेणं गंधजुत्तिनिउणत्तणेणं पुरजणो उम्मत्ति गाहितो। ततो पुच्छितो जणेणं-"किं ते नामधेयं ?"
पभणइ य-" विणीयओ' त्ति मे नामधेयं ।” एवं सो विणीयओ विणयसंपन्नो सव्वनयरस्स वीससणिज्जो जातो।
ततो तेण सत्थवाहेण चिंतियं-"न खमं मे एल आवणे य अच्छंतो। मा एस रायसंविदितो हवेज, ततो रायणा हीरइ त्ति । वरमेस गिहे भंडारसालाए अच्छंतो।" ।
ततो तेण सगिहं नेऊण परियणं च सद्दावेऊण भणियं-"एस वो विणीयओजं देइ तं भे पडिच्छियवं, न य से आणा कोवेयव"त्ति ।
ततो सो विणीयओ धरे अच्छइ, विसेसओ य धणसिरीए जं चेडीकम्मं तं सयमेव करेइ । ततो धणसिरीए विणीयको सव्ववीसंभट्टाणितो जातो। ___ तत्थ य नयरे रायसेवी एक्को य डिंडी परिवसइ । इओ य सा धणसिरी पुवावरण्हसमए सत्ततले पासाए अट्टालगवरगया सह विणीयगेणं तंबोलं सभाणयंती अच्छइ।
सो य डिंडी हाय-समालदो तस्स भवणस्स आसण्णेण गच्छति । धणसिरीए तंबोलं निच्छूढं पडियं डिडिस्सुवरि । डिंडिणा निज्झाइया य, दिवा य णेणं देवयभूया । ततो सो अणंगबाणसोसियसरीरो तीए
Page #282
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २५ ] समागमुस्सुओ संवुत्तो। चिंतियं च णेणं-"एस विणीयओ एएसि सव्वप्पवेसी, एयं स्वतप्पामि । एयस्स पसातेणं एतीए सह समागमो भविस्सई" ति।
ततो अण्णया तेण विणीयगो नियगभवणं नीओ। पूयासकारं च काउं पायपडिएण विण्णविओ-"तहा चेट्ठसु, जेण मे धणसिरीए सह संजोगं करेसि" ति । ___ ततो सो "एवं होउ" त्ति वोत्तूण धणसिरीते सगासं गतो। पत्थावं च जाणिऊण भणिया णेणं धणसिरी डिंडियवयणं । ततो तीए रोसवसगाए भणिओ
"केवलं तुमे चेव एयं संलतं, अण्णो ममं न जीवंतो" त्ति ।
ततो सो विइयदिवसे निग्गतो, दिट्ठो य डिंडिणा । भणितो णेणं"किं भो वयंस ! कयं कज्जं ?" ति ।
ततो तेण तव्वयणं गृहमाणेणं भणिय-"वत्तीहं" ति । तओ पुणरवि तेण दाणमाणेणं संगहियं करेत्ता विसजिओ।
ततो सो आगंतूण धणसिरीए पुरतो विमणो तुण्हिक्को ठितो अच्छति । ततो तीए धणसिरीए तस्स मणोगयं जाणिऊण भणिओ
"किं ते पुणो डिंडी किंचि भणइ" ?
तेण भणिय-"आमं" ति । तीए निवारितो-'न ते पुणो तस्स दरिसणं दायत्वं' ।
पुणो य पुच्छिन्नमाणो तहेव तुण्हिक्को अच्छइ । ततो तीए तस्स चित्तरक्खं करतीए भणिओ-"वच्च, देहि से संदेसं, जहा-'असोगवणियाए तुमे अज पओसे आगंतव्वं" ति ।
Page #283
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२६]
तेण तहा कयं । ततो सा असोगणियाए सेर्ज पत्थरेऊन जोममां च गिफ्ह्गि विणीयगसहिया अच्छछ । सो आगतो। ततो तीए सोवयारं मज्जं से दिण्णं । सो य तं पाऊण अचेतणसरीरो जाओ । ताते तत्सेव य संतियं असं कट्टिऊण सीसं छिण्ण, पच्छा विणीयगो भणिओ - "तुमे अणत्थं कारिया, तुज्या वि सीसं छिदामि " ति ।
तेण पायवडिएण मरिसाविया । विणीयगेणं धणसिरिसंदिठ्ठणं कु खणित्ता निहिओ ।
ततो अन्नया सुहासणवरगया धणसिरी विणीयगेण पुच्छिआ“सुंदरि ! तुमं कस्स दिन्ना ? "
तीए भणिय - "उज्जेणिगस्स समुहदत्तस्स दिण्णा" ।
"
तेण भणियं - " वच्चामि, अहं तं यवेसित्ता आणेमि" त्ति भणिउं निग्गओ | संपत्तो य नियगभवणं पविठ्ठो, दिट्ठो य अम्मापिऊहिं, तेहि य कयं सुपाएहिं उवगूहिओ, ततो तेहिं धणसत्थबाहस्स लेहो पेसिओ 'भगतो मे जामाउभो' त्ति ।
ततो सो वयंसपरिगहि मातापितीहि म सद्धिं ससुरकुलं गतो । तत्थ य पुणरवि वीवाहो कभो ।
ततो तीए तस्स रूवोक्लद्धी कया । दिठ्ठो य णाए विणीयओ । ततो तेण सव्वं संवादितं ।
(वसुदेबहिण्डी - प्रथमखण्डम् )
Page #284
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२७] १९ जो खणइ सो पडइ
इह आसि वसंतपुरे परोंपर नेह-निम्भरा मित्ता । खत्तिय-माहण-वाणिय-सुवण्णयार त्ति चत्वारि ॥१॥ ते अत्थविढवणत्यं चलिया देसतरं नियपुराओ । पत्ता परिभमंता भूमिपइट्ठम्मि नयरम्मि ॥२॥ रयणीइ तस्स बाहिं उज्जाणे तरुतलम्मि पासुत्ता । पढमपहरम्मि चिट्ठइ जग्गंतो खत्तिओ तत्थ ॥३॥ पेच्छइ तरुसाहाए पलंबमाणं सुवण्णपुरिसं सो। विम्हियमणेण भणिय अणेण सो एस अत्यो त्ति ॥४॥ कणयपुरिसेण संलत्तमत्थि अत्यो परं अणत्थजुओ। तो खत्तिएण वुत्तं जइ एवं ता अलं अम्ह ॥५॥ बीए जामे जग्गेइ माहणो सो वि पिच्छइ तहेव । तइयम्मि वाणिओ तं दखूण न लुब्भए तम्मि ॥६॥ जग्गइ चउत्थजामे सुवष्णयारो सुवण्णपुरिस त । दण विम्हियमणो भणइ इमं एस अत्थो त्ति ॥७॥ पुरिसेण जंपियं एस अथि अत्थो परं अणत्थजुओ। जैपइ सुवण्णयारो न होइ अत्थो अणत्थजुओ ॥८॥ पुरिसो जंपइ तो किं पडामि ? पडसु ति जंपइ कलाओ। पडिओ सुवण्णपुरिसो छिंदइ सो अंगुलिं तस्स ॥९॥
Page #285
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २८ ] खड्डा पक्खित्तो सुवण्णपुरिसो सुवण्णयारेण । गोसम्म पत्थिया ते सुवणयारेण तो भणिया ॥ १० ॥ किं देसंतरभमणेण अत्थि एत्थ वि इमो कणयपुरिसो । खड्डाइ मए खित्तो तं गिण्हह विभज्जिरं सव्वे ॥ ११॥ तो सव्वे वि नियत्ता अंगुलिकणगेण भत्तमाणेउं । वणिओ सुवण्णयारो य दो वि पत्ता नरमझे || १२ ॥ चितियमिमेहिं हणिमो खत्तियमाहणसुए उवाएण । अहं चिय दोहं जेण होइ एसो कणयपुरिसो ॥ १३॥ भुत सयं मज्झे समागया गहियकुसुम तंबोला । खत्तियमाहणजुग्गं विसमिस्सं भोयणं घेतुं ॥ १४ ॥ बाहिं ठिएहिं तं चैव चितियं किं चिरं ठिया मज्झे । भेति भहिंदुनि वि खग्गेण निग्गहिया ॥ १५ ॥ विसमिस्सं भतं भुंजिऊग दिय-खत्तिया वि वावन्ना । इअ एसा पाविडी पाविज्जइ पावपसरेणं ||१६||
[ कुमारपाल प्रतिबो:- चतुर्थः प्रस्तावः ]
Page #286
--------------------------------------------------------------------------
________________
शिक्षको
'पाइअ-गज-पजाणि'नो शब्द कोश
__ • आ निशानवाला शब्दो समासमा छ अइपेमपरव्वसो (अतिप्रेमपरवशः) अदीहपेहिणा (अदीर्घप्रेक्षिणा) अदीअति प्रेमने लीधे परवश थएलो
प्रदर्शिए अइसंघिओ (अतिसंधितः) ठगायेलो अनाए (अज्ञाते) ज्ञात थया विनाअग्घवेह (अर्घापयत) मूलवो-मूल्य
जाण्या विना करावो । अभितुर (अभित्वरस्व) त्वरा करअच्छह (आवम् ) रहो-बेसो
उतावळ कर अचित्तिज्जतो (अचित्र्यमाणः) नहि अयसबहुलं ( अयशोबहुलम.) जेमा
चीतरातो-न चीतरवामां आवे तो अयश-अपयश-वधारे छे तेवू अज्झावया (अध्यापकाः) अध्यापको- अरुच्चमाणम्मि (अरोचमाने) नहि
__ रुचतुं-गमतुं-थये अट्ठा (अर्थाय) अर्थे-माटे
असन्भमायरमाणी ( असभ्यम्-आचअण्णवं ( अर्णवम् ) समुद्रने
रन्तीम् ) असभ्य आचरण अणगारियं ( अनगारिताम् ) अनगा
रिताने-संन्यास धर्मने असोगाओ (अशोकाः) शोक वगरनी अणुट्ठिए (अनुत्थिते) ऊठयो न होय अहतं ( अहतम् ) नहि हणाएलंत्यां-ऊग्मा पहेला
अक्षत अत्तए (आत्मजः) आत्मज-पेटनो । अहोभाग (अधोभागम् ) नीचेना
दीकरो-सगो दीकरो अत्यविढणवत्थं ( अथअजनार्थम् ) अंगुलियधणुहगएणं (अगुलीय
अर्थ-धन-कमावा माटे | धनुर्गतेन) आंगळीनुं धनुषमत्थओ (अर्थतः) अर्थ करीने
गोफण-वडे ग्रंथना अर्थ समजीने अंबिले (अम्लः) अम्ल-खाटो अदिनं ( अदत्तम् ) नहि दीधेलं- आइण्णा (आचीर्णा) आचरी
नहि कहेलु-नहि पूछेलं । आणिएलियं ( आनीतकम् ) आणेलं
करतीने
भागने
Page #287
--------------------------------------------------------------------------
________________
माटे
___ भने खर्च
-आणे (आनेतुम् ) आणधा-लाववा- एहिति (एष्यन्ति) आको
एकसंकलितबद्धा (एकसंकलितबद्धाः) आय-वय. (आय-व्यय०) आवक एक साथे सांकळीने बांधेला
एतीए (एतस्याः) एणीथी, एणीने आवारीए (आपणे) दुकाने
ओए (ओजः) ओज-सामर्थ्य भाविए ( आपिवेत् ) पीवे
ओमचेलए, ओमचेलगा (अवमलकर) भासा (आशया) आशाए
__ जेणे हलकां वस्रो पहेया छे ते आसंघो (आसंगः) अतिशय अनुराग | ओलग्गिया (अवलमाः) वळम्योइजंत ( आयन्तम् ) आवताने
____ाश्रय लीधी इत्तरियम्मि (इत्वरे) विनाशशील- कइया (ऋयिकाः) क्रय करनारा___ नश्वर-नाशवंत
खरीदनारा इसि (ऋषिम् ) ऋषिने
कक्खडे (कर्कशः) कर्कश-सस्वथडो उच्चाक्याई (उच्चावचानि) ऊंचांनीचां- कज्जइ (कियते) कराय छे
गमे तेवां कलामोडओ (कर्णामोटकः) कान परउज्झणधम्मियं ( उज्झनधर्मिकम् )
डवो-कान आमची फकी देवानु-नाखी देवानु- कम्हिइ ( कस्मिन्-चित् ) क्याक
स्थळे उठाति (उत्तिष्ठति) ऊठे-नीकळे । कयंसुपाएहिं (कृताश्रुपातैः) जेमणे उद्धाइया (उद्धाविताः) धोड्या-दोड्या ___आंसुओ पाड्यां छे तेओ वडे उब्भयेणं (ऊर्ध्वकेन) ऊभा थइने करणे (करणे) न्यायालयमां-कचेरीमा उम्मत्ति (उन्मत्तिम् ) उन्मत्तताने कलाओ (कलादः) सोनी उवगूहिओ (उपगूढः) आलिंगायो- कसघायसए (कशघातशतानि) चाकु
कना सो घा उवतप्पामि ( उपतपामि') संताप कसाते (कषायः) कषायेलो रस
पामु छु
कहिये (कुत्र) कहीं-क्यां ऊणजातिएणं (ऊनजातिकेन) हलकी | काऊ (कायः) काया-शरीर
जातवाळाए । काओ, कागा (काकः) काक-कागडो
भेटायो
Page #288
--------------------------------------------------------------------------
________________
साये
कागरडणसद्देण (काकरटनशब्देन) | खुडगा ! (क्षुद्रक !) माना चेला!
कागडाना 'काका' अवाजवडे खंडिएहि ( खण्डिकैः ) माना शिष्यो काणेसि (काणयसि) काणां करे छे
साये काहामो (करिष्यामः) करीशं गउरवप ( गौरवपदम् ) गौरवनुं काहावणेण (कार्षापणेन) कार्षापण वडे
स्थान [कार्षापण-सोना- एक जातनुं गामेल्लओ (ग्रामीणः) गामडीयो
चलणी नाणुं] | गिरिनगरे (गिरिनगरे) गिरनारमा कीस ( कस्मात् ) शा माटे-शा गेहथंमेण (गेहस्तम्मेन) घरना थांभला
कारणे कधएहिं (कूर्चकैः) कूचाओ वडे | गोसग्मि (गोसे) प्रातःकाळे कुलाणीए (कुलानीते) कुलमां आणे- | गजुत्ति० (गन्धयुक्ति.) गंध बनालामां-कुलद्वारा आवेलामा
वधानी कळा केरिसुल्लावा (कीदृशोल्लापाः) केवा । गंधियपुत्तेहिं (गान्धिकपुत्रैः) गांधीना उल्लापो-बडबडाटो
पुत्रोए केवलि. ( केवलिन् ) केवळ-एक चउरसे (चतुरस्रः) चोरस
मात्र आत्मनिष्ट-स्थितप्रज्ञ चक्खित्ता चविखत्ता (अक्षित्वा जकैसा (केशाः) केशो-वाळो
___क्षित्वा) चाखी चाखीने कोलालाणि (कौलालानि) कुलाले- चदि ( समर्दम् ) तर छोडनुकुंभारे-घडेला
तिरस्कार ? कोसंबीओ, कोसंबको (कौशाम्बीकः) चिच्चा (त्यक्त्वा) त्याग करीने
कौशांबीनो रहीश चित्तगरा (चित्रकराः) चितारा खाए (गर्तायाम् ) खाडामा चित्तिजइ (चित्र्यते) चितराय छे सत्ता (क्षत्ता) सारथि-रथ हांकनारो चिल्लगो (चेटकः) चेलो सत्तीण (क्षत्रियाणाम् ) क्षत्रियोमा चिन्भडियाणं (चिर्भटिकानाम् ) साइया (खादिताः) खाधेली
चीभडाओर्नु खामणं (क्षामणम् ) क्षमा करवी- | छट्ठभत्तं (षष्ठभक्तम् ) छ टंक क्षमा आपवी
आहार न लेवानुं व्रत
Page #289
--------------------------------------------------------------------------
________________
छुहमारो (क्षुधामारः) भूखमरो छूटाणि ० छूटं (क्षिप्तानि) फेंक्यां
छोड्यां
जक्खाययणे ( यक्षायतने) यक्षना
मंदिरमां
जणमारिं ( जणमारि) माणसोनो मरो जनवा ( यज्ञपाटकम् ) यज्ञवाडामां जयामो (यजामः) यज्ञ करीए - पूजीए जामाउयस्स (जामातृकस्य) जमाईनुं जायणजीविणु त्ति ( याचनजीविनः
इति) याचना करीने जीवनारा जीवणोवाओ (जीवनोपायः) जीवननो
उपाय
जुत्तिकरा (युक्तिकराः ) युक्ति कर - नारा - वकीलो
जोइए (दृष्टे) जोया पछी जोहेसु (योधेषु) योधाओमां
ठाइयव्वं ( स्थातव्यम् ) ठावुं जोइए
रहेवुं जोइए तक्का (तर्काः) तर्कों - संकल्प विकल्पो तत्थं ( तथ्यार्थम् ) तथ्य अर्थ -
साची वातने तित्तिरं, तित्तिरिं ( तित्तिरिम् )
तरने तित्ते (तितः) तीतो - तीखो कडवो तुट्ठिदाणं ( तुष्टिदानम् ) संतुष्ट थइने दान आपवुं ते-पारितोषिक
इनाम
३२
तंसे (त्र्यत्रः ) त्रांसो
दासी (अदाः) दीधुं
दाहिंति (दास्यन्ति ) देशे
दिउत्तमा ( द्विजोत्तमाः) उत्तम द्विजो - ब्राह्मणो
दी (दीर्घः) दीर्घ - लांबो
दुक्कुला (दुष्कुला) दुष्ट कुलनी दुहियरो ( दुहितरः ) दीकरीओ देवयभूया (देवताभूता) देवता जेवी देसिओ (देशितः) उपदेशाएलोदेखाडेलो दंतवक्के (दन्तवक्त्रः ) दंतवक्त्र
नामनो महाभारत - प्रसिद्ध राजा धणपणपरिग्गहाओ (धन-पचनपरिग्रहात् ) धन, रसोइ करवी
अने बीजा परिग्रहथी धम्मनिअिनि अचित्तो (धर्मनिहितनिजचित्तः) जेणे पोतानुं चित्त धर्ममां स्थापेलं छे ते
धरणितलोसित्तअंसुनिवहाओ
(घरणितलावसिक्तअश्रु - निवहाः) जेमणे धरणितल ऊपर आंसुओ वहाव्यां छे तेओ धिज्जाइआ (द्विजातिकाः ) ब्राह्मणो धूया ( दुहिता) दीकरी
Page #290
--------------------------------------------------------------------------
________________
नयगुण• (नयगुण.) नीतिनो गुण परप्पवित्तस्स (परप्रवृत्तस्य) बीजा माटे नाडयविजाए ( नाटकविद्यायाम् )
प्रवर्तेला-तैयार थयेला नाटकनी विद्यामां परिग्गहं ( परिग्रहम् ) धन धान्य निअटुंति, णिअटुंति (निवर्तन्ते) नि
___ स्त्री वगेरेनो परिग्रह वर्ते छे. अटके छे-आगळ जता परिणे (परिज्ञः) चारे बाजुनुं जाणनथी
नार निज्झाइया (निाता) सारी रीते परिवाडीआगयं (परिपाटीआगतम् )
नोई
___ अनुक्रमे आवेळ निद्धे, गिद्धे (स्निग्धः) स्निग्ध- परिहित्ता (परिधाय) पहेरीने
चौकणो
फ्लाइउमारद्धा (पलायितुमारब्धाः) नियत्तियाओ (निवृत्ताः) नीवर्ती
दोडवा मांडया पाछी वळी पलोएह (प्रलोकध्वम् ) जुओ नियसरिसविहवेसु (निजसदृशविभ- पसातेणं (प्रसादेन) प्रसाद-कृपा-बडे वेषु) पोतानी समान वैभव पाणाइवाय (प्राणातिपातम् ) प्राणोनो धरावनारा कुलोमां
अतिपात-हिंसाने निव्वाणवादीणिह (निर्वाणवादिनि इह) पायवडिओ, पायवडिएण (पादपतितः) निर्वाणवादिओमां अहीं
पगे पडेलो नेआउए (नैयायिकः) न्याययुक्त- पाविडी (पापधिः) पापथी आवेली न्यायमार्ग
ऋदि पइरिकं (प्रतिरिक्तम् ) खाली-एकांत पासुत्तो, पासुत्ता (प्रसुप्तः) सुतेलो
स्थळ पाहुडएहि (प्राभृतकैः) मेटणांओ पढिओ (प्रस्थितः) प्रस्थान कर्यु छे ते पण्हिपहेरण (पृष्णिप्रहारेण) पानीना पोम्म ( पद्मम् ) पद्म-कमळ
प्रहारथी पंडुरगा (पाण्डुरकाः) पांडरा-धोळा पणुल्लयामो (प्रनोदयामः) दूर करीए | पंतोवहिठवगरणं (प्रान्तोपधिउपकरपत्तए (पत्रकाणि) पत्ता-चिट्ठीओ ___णम्) जेनां कपडां अने वीजा पत्थरेऊण (प्रस्तीर्य) पाथरीने
उपकरणो जूनां छे तेने
द्वारा
Page #291
--------------------------------------------------------------------------
________________
फलगं ( फलकम् ) पाटीने-लखवानी । भंडभरिओ (भाण्डभृतः) भांड-करिस्लेटने
___याणां-थी भरेलु फुकनासे (फुक्कनासः) जेतुं नाक सारं भंडारसालाए ( भाण्डागारशालायाम् ) नथी ते
भंडारियानी जग्याए बहुपञ्चवायए (बहुप्रत्यवायके) जेमां
मग्ग (मार्गः) मार्ग-रस्तो घणां प्रत्यवायो-विघ्नो-छे तेवू
मञ्चरणमद्दणपरो (मञ्चरणमर्दनपरः) बहुमए (बहुमतः) बहु-घणा-लोकोए
मारा चरणने मसळवामा तत्पर मानेलो
मणय मणयं (मनाक् मनाक) थोडं बंभइजम्मि (ब्रह्मज्ये) ब्राह्मणो ज्यां
थोडं संध्या वगेरे धर्मकृत्य करे छे त्यां
मया (मृता) मरी गई
महव्वय. ( महावत० ) महाव्रतभगवयगीयासु ( भगवद्गीतासु) भग
मोटु व्रत-अहिंसा वगेरे पांच वद्गीताओमां
मोटो बत मचे ( भूत्याम् ) भृत्योने-नोकरोने
महिओ (महितः) पूजाएलो मणित्ता (भणित्वा) भणीने-कहीने
महेला (महिला) महिला-स्त्री भती (भृतिः) भाडु-वेतन-पगार
मिच्छा मि दुक्कडं (मिथ्या मे दुष्कभक्याणमेयं ( भक्ताम् एतत् )
___ तम् ) मारुं दुष्कृत मिथ्या आपनुं आ
मुहाजीवि (मुधाजीविनम् ) अनासभाइणेज, भायणेज्जा, भागिणेज्जा
तपणे जीवनारने (भागिनेय !) भाणेज
मुहपोत्तीए ( मुखपोतिकया ) मों भागवउ० (भागवत.) भागवत ध
____ ऊपर बांधवाना वस्त्रवडे मनो अनुयायी
मेलयं ( मेलकम् ) मेळो मासियवं ( भाषितवान् ) बोल्यो
मेहुणं ( मैथुनम् ) अब्रह्मचर्य माहि (अभैः) बीक लागी
मोयाविओ (मोचितः) मुक्त कराव्यो मिडि (भ्रुकुटिम् ) भवांने
मंसु. (०श्मश्रु०) दाढी मूछ भिक्खठ्ठा (भिक्षार्थम् ) भिक्षा अर्थे । रयं ( रजस्) रज-मळ-पाप
Page #292
--------------------------------------------------------------------------
________________
वियोगमा
राइभोअण ( रात्रिभोजनम् ) रात्री- वायससंघाडओ (वायससंघातकः) का-- भोजन-विकाळ भोजन
गडान टोळु रामविओए ( रामवियोगे ) रामना वारओ (वारकः) वारो
वारेहामि (वारयिष्यामि) वारीशरायणा (राशा) राजावडे
__ अटकावीश रुक्खाउव्वेय. (वृक्षायुर्वेद०) वृक्षोनो वासियसद्देणं (वाशितशब्देन) वाशना ___ आयुर्वेद-झाडोनी दबादारुनी
शब्दवडे विद्या वित्थिण्ण० (विस्तीर्ण.) विस्तीर्णरुहे (रुहः) ऊगनार-जन्मनार
खूब विस्तारवाळ लइअयं (लातम् ) लीधेलं
विहुणाहि (विधुनीहि) दूर करलठं ( लष्टम् ) सुंदर
खंखेरी नाख लुबखे (लक्षः) लूखं
वीससेणो (विष्वक्सेनः) श्रीकृष्ण लुब्भए (लुभ्यते) लोभाय छे
वुच्छिद (व्युच्छिन्द्रि) विच्छेद करलेहो (लेख:) लेख-कागळ
नाश कर वट्टिजासि (वर्तस्व) वर्त-वर्तन राख वुड्डवायसेहिं (वृद्धवायसैः) मोटा कागबडो (वृद्धः) वडो-मोटो
___ डाओ बडे वत्ते (वृत्तः) गोळ
वेए ( वेदान् ) वेदोने-वेदशास्त्रोने वयंसाण ( वयस्यानाम् ) मित्रोर्नु वेणुदेवो (वैनतेयः) विनतानो पुत्रववहरतीओ (व्यवहरन्त्यः) व्यवहार
गरुड करती वंतं ( वान्तम् ) वमेल-ओकेलं ववहारो (व्यवहारः) न्याय
सक्खिणो (साक्षिणः) साक्षीओ ववहारनिच्छओ (व्यवहारनिश्चयः) सगासि (सकाशे) पासे
न्यायनो निर्णय-फेंसलो सण्णे (संज्ञः) संज्ञावाळो-समजदार वहाए (वधाय) वध माटे
सत्तुयादुपालियं, सत्तुयादोपालियं वायसपिडियाओ (वायसपिण्डिकाः) (सक्तुकद्विपालिकाम् ) बे पाली कागडानी खावानी पिंडीओ |
साथवो
Page #293
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२-२४०-३६ समस्तकलस्स ( समस्तकलस्य ) जेनी । सुकहियं अट्ठपदोवसोहियं (सुकथितम् बधी कळाओ पूरी छे तेनुं ।
-अर्थ-पद-उपशोभितम् )सारी समुन्धुर• (समुधुर.) उन्नत
रीते कहेलं अने अर्थ तथा सरा (स्वराः) ध्वनिओ-शब्दो
पदथी शोभितुं सरीरावस्सकहेउं (शरीरावश्यकहेतुम् ) । सुक्किले (शुक्लः) शुक्ल-धोळो शरीरना आवश्यक काम माटे- सुत्तओ (सूत्रतः) शब्द मात्र द्वारा दिशाए जवाने बाने
. गोखीने सव्वपवेसी (सर्वप्रवेशी) सर्वमा प्रवेश सुत्तढिओ (सुप्तोत्थितः) सुतेलो उठ्यो
राखनारो सुयसोगताविआओ (सुतशोकतापिताः) सव्वोउय० (सर्वऋतुक०) बधी ऋ. सुतना शोकथी तपेली-दुःखी
तुओना सूरे (सूर्ये) सूर्य सहवढिया (सहवर्धिताः) साथे सेज ( शय्याम् ) सेज-पथारीने
बधेला-साथे मोटा थएला सोवाग. (श्वपाक०) चांडाळ सहसुटिओ (सहसोत्थितः) एक दम
सोयबले ( श्रोत्रबलम् ) श्रोत्र इंद्रिउठेलो-जागेलो
यनी शक्ति सहियायणं ( सखिकाजनम् ) सखी सोहओ (शोभकः) शोभा आपनारो
संकरदूस ( संकरदूष्यम् ) जातजातना साकेय ( साकेतम् ) साकेत नगर- नाना नाना टूकडामाथी बनाअयोध्या
वेलं एक वस्त्र सारइयं ( शारदिकम् ) शरदऋतुनुं । संगहिओ (संगृहीतः) भेगो को सासुयाणं ( श्वश्रकाणाम् ) सासुओर्नु संतियं ( सत्कम् ) संबंधी साहम्मिए ( साधर्मिकान् ) समान | संपहारेत्ता (संप्रधाय) बिचारीने
धर्मवाळाओने सुंकेणं (शुल्केन) किंमतवडे सिणाणं (स्नानम् ) स्नान-न्हाण हस्से (ह्रस्वः) ह्रस्व-नानो सिरो (विरः) शिर-माधु
हीला. (हीला.) निंदा
जनने
Page #294
--------------------------------------------------------------------------
_