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तेम ज संवर्धन करवानी तीव्र इच्छा हती परंतु भारतने माटे शापरूप एवा आ महाघातक युद्धने लीधे कागळोनो संकोच करवो ज पडयो अने तेथीज कशुं धारेलुं संशोधन संवर्धन थई शक्युं नथी.
जेतुं छे तेवू आ पुस्तक विद्यार्थीओना शानमां जरूर वधारो करशे.
अमदावाद
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बेचरदास
गांधी सप्ताह १९४३ ।
कांइक
प्रस्तुत पुस्तकना फरमा सहज जिज्ञासा दृष्टिथी हुं सांभळी गयेलो त्यारबाद पं. बेचरदासे ए विषे कांइक लखवा कहां. में वगर विलंबे एनो स्वीकार को एनु कारण ए न हतुं के प्राकृतभाषा के भाषाओनो सतत तेमज असाधारण अभ्यासी रह्यो छु, पण ए स्वीकारवानुं खरं कारण पं० बेचरदासना दीर्घकालीन अने सतत प्राकृत भाषाओना अभ्यास तेमज चिंतन विषेनी मारी खात्रीमा रहेलुं हतुं.
एमनी चोवीस वर्ष पहेलां प्रथम लखाएली अने छपापली 'प्राकृतमार्गोपदेशिका' आ पंक्तिओ लखती वखते में प्रथम ज वार जोई. एनी प्रस्तुत पुस्तक साथे सरखामणी करी. ए उपरांत गूजरात विद्यापीठ तरफथी प्रसिद्ध थयेल एमर्नु 'प्राकृत व्याकरण' पण फरी वार जोई गयो. अने हम ज एमणे लखेल अने पुंजाभाइ ग्रन्थमाळामा प्रगट थयेल 'जिनागमकथासंग्रह' पण जोई गयो. साथे साथे