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पाठ १९ मो
व्यंजनांत शन्दो प्राकृतमा रूपाख्यानने प्रसंगे कोइ शब्द, व्यंजनांत संभवी शकतो नथी, एथी एनां बधां रूपो पूर्वोक्त स्वयंत शब्दनी पेठे समझवानां छे.
शरत् अने भिषक् वगेरे शब्दोना अंत्य व्यंजननो 'अ' थाय छेः शरत्-सरअ-सरओ, सरअं, सरपण वगेरे.
भिषक-भिसअ-भिसओ, भिस, भिसरण वगेरे.
'अत्' अने 'अन्' छेडावाळां नामोनां रूपोमां जे विशेषता छेते आ प्रमाणे छे:
नामने छेडे आधेला 'अत्' प्रत्ययने स्थाने 'अंत' नो व्यवहार थाय छे. अत्-भवत्-भवंत मत्-भगवत्-भगवंत गच्छत्-गच्छंत
गुणवत्-गुणवंत नयत्-नयंत, नेत
धनवत्-घणवंत गमिष्यत्-गमिस्संत ज्ञानवत्-नाणवंत भविष्यत्-भविस्संत नीतिमत्-नीइवंत
णीइवंत 'अंत' छेडावाळां ए बधां नामोनां रूपो अकारांत नामनी जेवां समझवानां छे:
भगवंतो, भगवंतं, भगवंतेण इत्यादि 'वीर' प्रमाणे. भवंतो, भवंतं भवंतेण इत्यादि 'सव्व' प्रमाणे. 'अत्' छेडावाळा नामोनां अनियमित रूपो
भगवत् प्र० ए० भगवं (भगवान् )
णाणवंत