________________
३५
झुदां रूपो नीपज्यां जणाय छे. गूजरातीमां 'तेणे' २५ '५णे' रूप ए प्रकारनां छे.
'तो' अने 'तु' प्रत्ययवाळां पंचमीनां रूपो प्राचीन प्राकृतमां ज सचवायां छे. छतां ते, 'आवश्यकसूत्र' नी कथाओ अने 'वसुदेवहिंडी' जेवा प्राकृत ग्रंथोमां ठीक प्रमाणमां वपरायां छे माटे तेने खास जुदां जणाव्यां छे.
R
अकारांत अंगने लागता केटलाक प्रत्ययो इकारांत अने उकारांत अंगने पण लागे छे तथा इकारांत अने उकारांत अंगनां केटलांक रूपो 'इन्' छेडावाळां अंगोनी जेवां थाय छे. आम अनेक प्रकारनी " अनियतता, लोकभाषानुं खास लक्षण छे अने ते, वैदिकभाषानी पेठे प्राकृतमां पूरेपूरुं जळवायेलुं छे.
३७
नाम [ नरजाति ]
अरिहंत (अरि + हन्त) वीतराग देव. हर (हर) हर महादेव.
बुद्ध (बुद्ध) बुद्धदेव.
मग्ग (मार्ग) मार्ग - मारग
कलह ( कलह ) कलह-कळो हत्थ (हस्त) हाथ. पाय (पाद) पाद - पग, पायो भार (भार) भार
३५ 'तेन' 'एनेन' तृतीया विभक्तिनुं सूचक छे. प्राकृतमां तेने मळतु 'ते' 'एणेण' रूप थाय छे. ए 'तेण' 'एणेण' तृतीयांत होवा छतां तेने फरीवार तृतीया विभक्तिनो अपभ्रंशीय 'इं' प्रत्यय लगाडवो पडयो छे. ए रीते 'तेन' - तेण' - 'तेगई' - 'तेणे'. 'एनेन' - 'एणेण' - ' एणेणई' - ' एणे' उतरी आव्युं छे. ३६ अग्गि (अभि ) नुं 'अग्गिणो' रूप सं० 'दण्डिनः" [प्रा० ' दण्डिणों' ] नुं अनुकरण छे. ए ज प्रमाणे भाणु (भानु) नुं ' भाणुणो रूप नीपजेलुं छे. ३७ लिंगनी अनियतता, विभक्तिओना अर्थनी अनियतता, एकवचन बहुवचननी अनियतता-आम अनेक प्रकारनी अनियतता छे.