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सेव
गच्छ
६८ धातु
रूपाख्यान होत्था [होत्था]
रीइत्था [री+इत्था] प+हार पहारित्थामा
पहारेत्थ पहार इत्था भुंज भुंजित्था [भुंज+इत्था] वि+हर् विहरित्था [विहर्+इत्था]
सेवित्था [सेक्+इत्था] पुच्छ् पुञ्छिसु [पुच्छ्+इंसु]
गच्छिसु [गच्छ्+इंसु करिंसु [कर इंसु]
नञ्चिसु [नच्च+इंसु] आह आहंसु [आह+अंसु]
__केटलांक अनियमित रूपो अस्-अत्थि, अहेसि, आसि [सर्व पुरुष सर्व वचन] आसिमो, असिमु (आस्म) रूप, प्रथम पुरुषना बहुवचनार्थे आर्ष प्राकृतमां क्वचित वपरायेलं मळे छे.
वद्-'वद्' धातुनुं 'वदी' रूप थर्बु योग्य छे छतां मार्ष प्राकृतमा 'वदीअ' ने बदले अनेक स्थळे 'वदासी' अने 'वयासी'७' रूपनो उपयोग थयेलो छ अर्थात् उक्त 'सी' प्रत्यय स्वरांत धातुने लगाडवानो छे ते, आर्य प्राकृतमां क्वचित व्यंजनांत धातुने पण लागेलो छ, वद+सी वदासी-आर्यप्राकृत होवाने कारणे 'वद'र्नु ‘वदा' थयुं छे. कर-भूतकाळमां 'कर' ने बदले 'का' पण थाय छे.
कर+ईअ-करीअ . १ 'वदासी' उपरथी 'वयासी'-टिप्पण ३९ मुं..