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यङ्लुवंत - चंकमर ( चङ्क्रमीति) चंक्रमण करे छे-फर्या करे छे चंकमणं (चङ्क्रमणम्) चंक्रमण -फर्या करवुं
गरुआ अइ
नामधातु - गरु आइ ) ( गुरुकायते) गुरुनी जेम रहे छे, गुरुनी जेवो डोळ करे छे. अमराइ ) ( अमरायते) अमरवत् आचरे छे, पोतानी जातने अमर समझे छे
अमराअइ
} (तमायते) तम-अंधारा जेवुं छे
तमाइ तमाअइ
धूमाइ | (धूमायते ) धूमने उद्वमे छे - धूमने काढे के
धूमाअइ
सुहाइ सुहाअइ
सद्दाइ
सहाअइ
( सुखायते) सुहाय छे-गमे छे
(शब्दायते ) सादे छे -साद करे छे
नामधातुनां उक्त संस्कृत रूपोमां जे 'य' देखाय छे, प्राकृतरूपोमां तेनो विकल्पे लोप थाय छे. ए नियम मात्र. नामधातु पुरतो छे.
पाठ २० मो कृदंत हेत्वर्थ कृदंत
मूळ धातुने 'तुं' अने ११७ तप' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं हेत्वर्थ कृदंत बने छे.
'तुं' अने 'तप' प्रत्यय लागतां पूर्वना 'अ' नो 'इ' के 'ए' थाय छे.
११७ हेत्वर्थ कृदंत करवा सारु वैदिक संस्कृतमां 'तवें' प्रत्ययनो उपयोग थयेलो छे. प्राकृतनो 'तए' अने वैदिक 'तवे' ए बन्ने तद्दन: समान प्रत्ययो छे. 'त्तए' प्रत्ययवाळां रूपो आर्षप्राकृतमां विशेष मळे छे.