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पितरौ वन्दे ।
परिचय
वैदिक (वेदोनी मूळ ) भाषानुं अने प्राकृत भाषानुं मूळ बंधारण घणुं मळतुं आवे छे. ते बेमां मोटो मेद उच्चारणनो छे अने ए भेदने लीधे ज ते बन्नेने जुदी जुदी भाषा समझवामां आवी छे-गणवामां आवी छे.
वैदिक संस्कृतमा असंयुक्त अने संयुक्त बन्ने प्रकारना व्यंजनोनो ठीक ठीक व्यवहार छे. ते व्यंजनोमांना केटलाएकनु उच्चारण अधिक क्लिष्ट छे अने केटलाएक सहज रीते वेगपूर्वक बोलातां एक बीजामां मळी जाय छे वा रूपांतर पामे छे के घसाइ जइ स्वरावशेषी के अर्धस्वरावशेषी बने छे. उच्चारणोनुं ए परिवर्तन वैदिक संस्कृतमा य छे अने प्राकृतमा य छे. तेथी सहज अने सुखरूप उच्चारणोथी टेवायेला प्राकृत बोलनारा लोको, अर्थनो विपर्यास न थाय तेवी रीते, ते ते असंयुक्त वा संयुक्त व्यंजनोवाळा शब्दोने सरळ उच्चारणपूर्वक व्यवहारमा लावतां विशेषे करीने उक्त परिवर्तनने वशवर्ती होय छे.
सरळ उच्चारण माटे क्यांय कोइ व्यंजननो धीरे धीरे हास थतो आवे छे अने क्यांय बेमांधी एक व्यंजनने जतो करवो पडे छे-ते आपोआप सरी जाय छे. ए असंयुक्त वा संयुक्त व्यंजनोर्नु उश्चारण जे जे रीते सरळ थपेलं छे ते बधी रीतो हवे पछीना पाठोमां आवनारी छे.
प्राकृतभाषा, संस्कृत भाषा करतां वधारे व्यापक अने मधुर गणाई छे तेनुं कारण एनी सरळता ज छे.