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.१ मि, ति, न्ति वगेरे पुरुषबोधक प्रत्ययो लगाडतां पहेला
छेडे व्यंजनवाळा धातुओने विकरण 'अ' लगाडवामां
आवे छे. जेमकेः-वंद्+ति-चंद्+अ+तिवदति. बीजा पुरुष एकवचननो 'से' अने त्रीजा पुरुष एकवचननो 'ए' के 'ते' ए यन्ने प्रत्ययो 'अ' छेडावाळा धातु सिवाय वीजा कोइ धातुओने लामता नथी. जेमके:- वंद+अ+से-वंदसे.
वंद+अ+ते-वंदते, वंद्+अ+ए-वंदए. प्रत्युदाहरण-जा+सि-जासि.
जा+ति-जाति, जा+-जाइ. [यादी:-'वंद' न 'वंदसे' अने 'वंदते' के 'वंदए' थाय
त्यारे 'जा' धातुनुं मात्र 'जासि' अने 'जाई' के 'जाति' थाय पण 'जासे' अने 'जाए' के 'जाते'
न थाय.] ३ 'म' थी शरू थता प्रथम पुरुषना प्रत्ययोनी पूर्वना
अंगना 'अ' नो 'आ' विकल्पे थाय छे. जेमके:- वंदन अ+मि-वंदामि, वदमि. पुरुषबोधक प्रत्ययोनी पूर्व रहेला धातुना अंगना 'अ' नो 'ए' विकल्पे थाय छे. जेमकेः- वंद्+अ+ति-वंदेति, वंदति.
रूपाख्यान १ पु० वंदमि, वंदामि, वंदेम'
४ 'वंदे' रूप प्रथम पुरुषना एकवचनमा संस्कृतमां प्रसिद्ध छे तेम प्राकृतमां पण तेनुं ते ज रूप कांई पण फेरफार विना वपराय छे. जेमके:'उसभमजिअं च वंदे' एटले ऋषभदेव अने अजितनाथने वंदन करुं छु.