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जेटलो फेर गोहिलवाडी अने झालावाडी भाषामां के वा चरोतरनी अने पंचमहालनी भाषामां छे तेटलो ज फेर प्राकृतभाषाओमां-पालि अने प्राकृतमां, अर्धमागधी-आर्षप्राकृत -अने प्राकृतमां, मागधी अने शौरसेनी वगेरेमां-छे तेथी एक मात्र प्राकृतने सारी रीते .शीखी जवाथी पालि वगेरे बीजी प्राचीन शास्त्रीय भाषाओगें शान सहेजे सहेजे थई जाय छे.
मूळ जैन सिद्धांतो आर्षप्राकृतभाषामा छे अने बौद्ध सिद्धांतो पालिभाषामां छे तेथी बौद्ध अने जैनधर्मना अभ्यासिए तो आ भाषा जरूर शीखी लेवी जोइए.
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वर्णविज्ञान खरो-हस्व दीर्घ
उच्चारणोनुं स्थान अ आ कंठ अने नासिका
ताल अने नासिका
ओष्ट-होठ-अने नासिका अ+इ%3D
कंठ अने तालु तथा नासिका अ+उ-ओ कंठ अने होठ तथा नासिका स्वरनुं प्लुत उञ्चारण प्राकृतभाषाना व्यवहारमांधी जतुं रह्यं छे.
कंठ एटले गर्छ, तालु पटले ताळवं. जे वर्ण, कंठमांथी बोलाय ते कंठ्य, तालुमांधी बोलाय ते तालव्य, ओष्ठमांधी बोलाय ते ओष्ठय अने ए बन्नेमांथी बोलाय ते कंठ्यतालव्य के कंठयौष्ठ तथा नासिकामांथी बोलाय ते नासिक्य-अनु. नासिक कहेवाय.
स्वरो बधा अनुनासिक छे पण तेमन ते जातनुं उच्चारण स्थलविशेषमा ज थाय छे, बधे नहि.