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सत्त (सक्त) आसक्त
निठुर (निष्ठुर) नठोर किलिन्न (क्लन'०४) गीलु-भीनु- छ? (षष्ठ) छट्टु
भींजायेलं गुत्त (गुप्त) गोपवेलु-सुरक्षित-गुप्त किलित्त (फ्लृप्त) क्लृप्त
सुत्त (सुप्त) सूतेलं निश्चल (निश्चल) निश्चल
मुद्ध (मुग्ध) मुग्ध
पाठ १८ मो भावे प्रयोग अने कर्मणि प्रयोग
प्रत्ययो
ईय
(य)
कोइ. पण धातुनुं भावप्रधान के कर्मप्रधान अंग बनाव_ होय त्यारे तेने ईअ, ईय अथवा इज-ए त्रणमांथी गमे ते .एक प्रत्यय लगाडवानो छे.
ए प्रणे प्रत्ययो फक्त वर्तमानकाळ, विध्यर्थ, आशार्थ के हस्तनभूतकाळमां ज वापरी शकाय छे. तेथी भविष्यकाळ, क्रियातिपत्ति वगेरे अर्थमां भावेप्रयोग अने कर्मणिप्रयोग, कर्तरिप्रयोगनी जेम समझवानो छे.
भाव एटले क्रिया. जे प्रयोग मुख्यपणे क्रियाने ज बतावे ते भावेप्रयोग.
अकर्मक धातुओनो भावेप्रयोग थाय छे. गूजराती व्याकरणमां रोवू, जणवू, सू, उघg, लाजधु बगेरे धातुओ ज
१.४ ल ने बदले 'इलि' नो प्रयोग थाय के:-कलन-किलिन. क्लृप्त-किलित्त.