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१३१ २ 'म्' प्रत्यय लागतां पूर्वनो स्वर ह्रस्व थाय छः नदिं. वहुं.
३ ज्यां मूळ अंग ज वापरवानुं छे त्यां तेने दीर्घ करीने वापरवानुं छेः बुद्धी, घेणू.
४ इकारांत उकारांतनु संबोधननु एकवचन विकल्पे दीर्घ थाय छेः बुद्धि ! बुद्धी ! घेणु ! घेणू.
५ईकारांत ऊकारांतनुं संबोधननु एकवचन ह्रस्व थाय छः नदि !. वहु ! . उक्त प्रत्ययोमां तृतीयाथी सप्तमी सुधीना बधा एकवचनी प्रत्ययो एक सरखा छे त्यारे एज विभक्तिओना बधा बहुवचनी प्रत्ययो अकारांत नामनी जेवा छे अने प्रथमा द्वितीयाना बहुवचनी प्रत्ययो इकारांत नरजातिक नामनी सरखा छे ए ध्यानमा राखवा जेधुं छे.
भिन्न भिन्न प्रांतोमा उच्चारणोनी विविधता प्रचलित के तेथी संस्कृत अने प्राकृत बन्नेमां एक ज विभक्तिनां पण अनेक रूपो थवा पाम्यां छे छतां ए बम्ने भाषानां रूपोर्नु मौलिक समानपणुं जतुं रघु नथी ए समझवा जेवू छ- ए समानपणुं उक्त रूपो ऊपरथी ज जणाइ आवे छे:
३ धेन्वा-धेनुवा-घेणुआ- ४ धेन्वै-धेनुवे-घेणुए- ४ नधै-नदीये-नदीए.
शब्दो
सद्धा (श्रद्धा) श्रद्धा मेहा (मेधा) मेधा-बुद्धि पण्णा (प्रज्ञा) प्रज्ञा सण्णा (संज्ञा) संज्ञा-सान-समझ
संझा संध्या) सांज वझा (वन्ध्या) वांज-वांजणी भुक्खा (बुभुक्षा) भूख तिसा (तृषा) तरस-लालच