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बहूप ७ वहू
वसुं वहूआ (वध्वाम् ) वसुं वहूइ बहूए सं० वहु (वधु ! ) .........वहूओ, बहूउ ( वध्वः )
नामर्नु अंग अने प्रत्ययनो अंश ए बन्ने छूटा पाडीने ज जणावेलां छे अने साथे ए ऊपरथी साधित थतां दरेक रूपो पण जुदां जुदां बतावेलां छे.
आकारांत, इकारांत, ईकारांत, उकारांत अने ऊकारांत-नारीजाति-नामोनां बधां रूपो तहन सरखां छे. जे फेर छे ते नहि जेवो छे, एथी मूळ अंग अने प्रत्ययोनो विभाग-ए पद्धति एक ज स्थळे मूकी ए बधी साधनिका समझावेली छे.
दीर्घ ईकारांत नामोने प्रथमा अने द्वितीयाना बहुवचनमा एक 'आ' प्रत्यय नवो लागे छे तथा आकारांत सिवाय उक्त बधां नामोने तृतीयाथी सप्तमी सुधीना एक वचनमां पण 'आ' प्रत्यय वधारे लागे छे-आपेलां रूपोज मा फेरफार बतावी आपे छे.
ए चारे प्रकारनां नामोनां बधां रूपो तहन सरखां के छतां संस्कृत साथेनी सरखामणी बताववा अने विशेष स्पष्ट करवा ते रेकनों सर्व रूपो जणावेलां छे तथा ए रूपो द्वारा भाषानां प्रचलित रूपोनी सरखामणीनुं पण भान थाय एम के.
१ 'तो' अने 'म्' प्रत्यय सिवायना बीजा बधा प्रत्ययो लागतां पूर्वनो स्वर दीर्घ थाय छेबुद्धीओ, घेण्मो.