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एक खुलासो पुस्तकने पहेले ज पाने लखेलुं छे के-"उच्चारणोनुं ए परिवर्तन वैदिक संस्कृतमां य छे अने प्राकृतमां य छे." (पं० १२-१३)
आ वाक्यनो आशय, ए बन्ने भाषामा परिवर्तनो थवा पाम्यां छे एम जणाववानो छे, पण ए बन्नेमां एक सरखां ज परिवर्तनो छे एम बताववानो नथी.
आरंभमां आपेला परिचयमा परिवर्तननो जे एक व्यापक महानियम जणावेलो छे ते उक्त बन्ने भाषाने लागु पडे छे ए दृष्टिए उक्त वाक्य लखायुं छे. आ संबंधी विशेष विगत माटे आर्यविद्याव्याख्यानमाळामान 'प्राकृतभाषा अने साहित्य' नामनुं मारं व्याख्यान जोई जवु घटे अने आर्षप्राकृतनी समजूती माटे विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित मारा प्राकृत व्याकरणनी प्रस्तावना पण वांची जवी जोईप.