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________________ बप्पी बपैयो मिइंग रष्फ - राफडो रखा - रवायो बप्पीह रोल - रोळो-कलह वहोलो - पाणीनो वहेलो घडू - वडो वोज्झम - बोजो सामान्य शब्दो [नरजाति] खग्ग (खड्ग'०') खडग-तरवार भिंग (भृङ्ग) भंग-भमरो उप्पाअ (उत्पाद) उत्पाद-उत्पत्ति । सिंगार (शृङ्गार) शृंगार-शणगार रस्सि (रश्मि'०२) राश-बळदनी । निव (नृप) नृप-राजा के घोडानी राश छप्प । (षट्पद) छपगो-भमरो मुइंग (मृदङ्ग१०३) मृदंग छप्पय अथवा छप्पो सज (षड्ज) षड्ज-एक प्रकारनो विंचुअ (वृश्चिक) वींछी १.१ संयुक्त व्यंजनमा पूर्ववर्ती एवा क, ग, ट, ड, त, द, प, श, ष अने स नो प्रायः लोप थइ जाय छे अने लोप थतां बाकी रहेलो अनादिभूत व्यंजन बेवडाय छेः-भुक्त-भुत-भुत्त. षट्पद-छपय-छप्पय. दुग्घ-दुध-दुद्ध. खड्ग-खग-खग्ग. उत्पल-उपल-उप्पल. मद्गु-मगु-मग्गू, सुप्त-सुत-सुत्त. निश्चल-निचल-निचल. गोष्टी-गोठी-गोट्ठी. स्तव-तव-तव. स्तवन-तवण-तवण, १०२ संयुक्त व्यंजनमां परवर्ती म, न अने य नो प्रायः लोप थई जाय छे अने लोप थतां बाकी रहेलो अनादिभूत व्यंजन बेवडाय छः स्मर-सर. रश्मि-रसि-रस्सि. नग्न-नग-नग्ग. लग्न-लग-लग्ग. कुड्य-कुडकुा. व्याध-वाह. १०३ केटलाक शब्दोमां आवेला आदिभूत 'ऋ' नो 'इ' थाय छे अने 'उ' पण थाय छ:-ऋषि-इसि. ऋद्धि-इद्धि. नृप-निव. शृगालसिआल. मृदङ्ग-मिइंग, ऋषभ-उसह. ऋजु-उज्जु. पितृ-पिउ. प्रवृत्तिपरत्ति. मृदङ्ग-मुइंग वगेरे.
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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