________________
प्रेरक विध्यर्थ कृदंत हसावि+तव्व-हसावितव्वं, हसाविअन्वं, हसावियत्वं ( हसा.
पयितव्यम् ) हसाववा जेवू, हसावQ जोईए. हसावि+अणीअ-हसावणी, हसावणिज, हसावणीय
__ (हसापनीयम् ),
एज प्रमाणे वयणीयं, वयणिज्जं. करणीयं, करणिजं. सुस्सूसितव्वं, सुस्सूसणिजं, सुस्सूसणीयं, चंकमितव्वं. वगेरे रूपो समझी लेवानां छे.
अनियमित विध्यर्थ कृदंत कज (कार्य) करवा योग्य । अज्ज (आर्य) आर्य किच्च (कृत्य ) कृत्य-करवा जेवू पच्च (पाच्य) पचवा-रांधवा-योग्य गेज्झ (ग्राह्य ) ग्रहण करवा योग्य
भव्य (भव्य ) थवा योग्य-ठीक गुज्झ (गुह्य ) छूपाववा योग्य, गुंजूं
घेत्तन्व (ग्रहीतव्य ) ग्रहण करवा वज (वर्य) वर्जवा योग्य वज (वद्य ) बोलवा योग्य
वोत्तव्व (वक्तव्य) कहेवा जेवू अवज (अवद्य ) नहि बोलवा
रोत्तव्व (रुदितव्यम् ) रोवु-रुदन वच्च (वाच्य) कहेवा योग्य
कातव्व(कर्तव्य ) कर्तव्यघक (वाक्य ) वाक्य जन्न (जन्य ) जणवा योग्य
काअव्व) करवा जेवू भिच्च (भृत्य) पाळवा योग्य-भृत्य
भोत्तव्व ( भोक्तव्य ) भोजन करवा
जेवू, भोगवक जेवू भजा (भार्या) भरण पोषण योग्य
मोत्तव्व (मोक्तव्य) मूकवा जेवू अज्ज (अर्य) अर्य-वैश्य, स्वामी । वहव्व (द्रष्टव्य ) देखवा जेवू
___ वर्तमान कृदंत मूळ धातुने 'न्त' 'माण अने 'ई' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं वर्तमान कृदंत बने छे.
योग्य-पाप
कायव्व
भारजा
૧૨