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जणवु
विट्ठ (विनष्ट) विनष्ट, विनाश . | पिहिय (पिहित ) ढांकेलं, ढांकंवु, पण? (प्रणष्ट) प्रनष्ट, नाश पन्नत्त। (प्रज्ञप्त) प्रज्ञापेल, मट्ठ (मृष्ट) शुद्ध, शोधन
पण्णत्त
प्रज्ञापत् हय (हत) हणेलं-हणायेलं, हणवू पन्नविय (प्रज्ञपित ) ,, जाय (जात) जायेलं-थयेलं, सक्कय (संस्कृत) संस्कृत
किलि? (क्लिट्ठ) क्लेशवाळ, गिलाण। (ग्लान ) म्लान थयेलं,
- क्लिष्ट गिलान
ग्लान थq सुय (स्मृत ) स्मरेल, याद करेल परूविअ (प्ररूपित ) प्ररूपेलं सुय (श्रुत ) सांभळेलु, सांभळवू
जणावेलु, प्ररूपq । संसट्ट (संसृष्ट) संसर्गवाळु, संसर्ग ठिय (स्थित ) स्थित, स्थान घट्ट (घृष्ट ) घसेलु, घसवु
उच्चारणना भेदथी नीपजेलां आवां अनेक रूपोनी साधनिका, वर्णविकारना नियमोद्वारा समझी लेवानी छे.
भविष्यत्कृदंत मूळ धातुने इस्संत, इस्समाण अने इस्सई (नारीजाति) प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं भविष्यत्कृदंत बने छे:करिस्संतो (करिष्यन् ) करिस्समाणो(करिष्यमाणः) करतो होईश करिस्सन्ती, करिस्सई (करिष्यन्ती) करती होईश कराविस्समाणो (कारापयिष्यमाणः) कराविस्संतो (काराप
यिष्यन् ) करावतो होईश इत्यादि.
कर्तृदर्शक कृदंत मूळ धातुने 'इर' प्रत्यय लगाडवाथी तेनुं कर्तृदर्शक कृदंत बने छे.
हस+हर-हसिरो (हसनशीलः) हसनारो. नव+हर-नविरो (नम्रः-नमनशीलः) नमनारो. हसाव+इर-हसाविरो (हासनशीलः) हसावनारो. हसिरा, हसिरी (हसनशीला) हसनारी. नविरा, नविरी (नम्रा-नमनशीला) नमनारी वगेरे.