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वो बहु थोडं मळतापणुं छे. पण खरी रीते तेम नथी.. कारण के प्रकारांतनां संस्कृत रूपाख्यानोनी साधनिकाने व्यापकरूपमा लईए तो तेने ज मूळ आधार तरीके अवलंबीने उक्त बधां रूपो उच्चारणना मेदथी तैयार थयां छे. जेमकेसंस्कृतमा विशेषणवाचक ऋकारांत नामना अंत्य 'ऋ' नो 'आर' थाय छे अने संबंधवाचक विशेष्यरूप ऋकारांत नामना अन्स्य 'ऋ' नो 'अर' थाय छे ते ज पद्धति प्राकृतमा छे. मात्र ते 'आर' अने 'अर' संस्कृतमां प्रथमार्मा अने द्वितीयाना एकवचन-द्विवचममां थाय छे अने 'अर' सप्तमीना एकवचनमां पण थाय छे त्यारे प्राकृतमां, ते बन्ने (आर-अर), विभक्तिमात्रमा थाय छे.
वळी, प्राकृतमा 'ऋ' नुं उञ्चारण ज नथी तेथी 'पितृ' के 'दात' वगेरे शब्दोना अंत्य 'ऋ' नो 'उ' थतां तेनां 'पितु' के 'दातु' वगेरे अंगो बने छे अने तेमांनो 'त्' लोपातां पिउ' के 'दाउ' अंगो पण थाय छे. आ रीते 'पिउ' के 'दाउ' वगेरेनो 'पित' वा 'दात' वगेरे शब्दो साथे सीधो संबंध छे.
तथा, संस्कृतमां नान्यतरजातिवाळा विशेषणवाचक ऋकारांत शब्दनां 'दातृणा' 'दातृणः' वगेरे 'ण' वाळां वैकल्पिक रूपो नीपजे छे अने ते रूपोनी साथे 'दाउणा' 'दाउणो' वगेरे 'ण' वाळां प्राकृत रूपोनी ठीक ठीक समानता छे ए ध्यानमा राखवा जेतुं छे. अथवा आगळ (पृ० ७८) इकारांत उकारांत रूपोनी साधनिकामां जे रीते 'णो' नी उपपत्ति समझावी छे ते रीते पण ए दाउणा, दाउणो वगेरे रूपो संस्कृत रूपो साथे गाढ संबंध धरावे छे. ए रूपोनो संस्कृत रूपो साथेनो गाढ संबंध नीचेनां उदाहरणोथी विशेष स्पष्ट थशे: