Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Surpannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवंगसुत्ताणि ४ [सण्ड २] सो कासवाडासीया जी.निरयावलिया जती,सूरपणती Fenne IPinabee घण्णवणा,जबुट्टीवर लियाओ, वहिहसाओ वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक युवाचार्य महाप्रज्ञ wulusainio rg Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापर्व वर्ष के उपलक्ष्य में निग्गंथं पावयणं उवंगसुत्ताणि (खण्ड २) पण्णवण्णा • जंबुद्दीवपण्णत्ती • चंदपण्णत्ती. सूरपण्णत्ती • उवंगा निरयावलियाओ • कप्पडिसियाओ • पुफियाओ. पुफिचूलियाओ • वहिदसाओ वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी सम्पादक युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं [राजस्थान Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक : जैन विश्व भारती लाडनूं [ राजस्थान ] प्रबन्ध-सम्पादक : श्रीचंद रामपुरिया अर्थ सौजन्य : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम सम्वत् २०४५ ( मर्यादा महोत्सव ) ईस्वी सन् १९८६ पृष्ठांक ११७० : जैन विश्व भारती मूल्य ६००/ मुद्रक : मित्र परिषद्, कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ On the occasion of Pragyapray Year Niggantham Pāvayanam UVANGA SUTTĀNI IV (PART II) PAŅŅAVAŅĀ . JAMBUDDĪVAPAŅŅATTI. CANDAPANNATTT . SURAPAŅŅATTI. NIRAYĀVALIYO, KAPPAVADIMSIYÃO, PUPPHIYAO. PUPPHACŪLIYÃO. VANHIDASÃO (Original Text Critically Edited) Vâcana-pramukha : ĀCĀRYA TULSI Editor! YUVĀCĀRYA MAHĀPRAJNA Publisher : JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Publisher : JAIN VISHVA BHARATI. Ladnun-341 306 Managing Editor : Shrichand Rampuria, By Munificence : Shri Ramlal Hansraj Golchha Viratnagar (Nepal) Year of Publication : Vikram Samvat 2045 (Maryada Mahotsava) 1989 A.D. Pages : 1170 जैन विश्व भारती TĘOOM Printers : JAIN VISHVA BHARATI PRESS, [Established through the financial co-operation of Mitra Parishad, Calcutta) Ladnun (Rajasthan) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुमनिकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहें हैं ! संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार हैसंपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी : मुनि सुदर्शन ___ मुनि हीरालाल शब्दकोश ___ मुनि श्रीचन्द्र 'कमल' संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता है कि उनका भविष्य इस महान् कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा पहाणो जणि जस्स निन्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स पणिहाणपुव्वं ॥ आगमदुद्धमेव, विलोडिय लद्धं सुलद्धं णवणीय मच्छं । सज्झाय-सज्झाण-रयल्स निच्चं, जयस्स तल्स पणिहाणपुब्वं ॥ पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभूओ स्स पचायणस्स, कालुस्स तस्स पणिहाणपुव्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु होकर भी आगम-प्रधान था । सत्य योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से | जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत | श्रुत-सद्ध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से । जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत-सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय प्रस्तुत ग्रन्थ उवांगसुत्ताणि ४ का द्वितीय खण्ड है। इस में नो आगम समाहित हैं १. पण्णवण। २. जंबुद्दीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ४. सूरपण्णत्ती ५. निरयावलियाओ ६. कप्पडिसियाओ ७. पुप्फियाओ ८. पुप्फचूलियाओ ६. वहिदसाओ। आगम संपादन एवं प्रकाशन की योजना इस प्रकार है१. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला -मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुती करण। २. आगम-अनुसंधान ग्रन्थमाला-मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रंथमाला--आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला--आगमों से संबंधित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्धमाला—आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । ६. आगमों के केवल हिंदी अनुवाद के संस्करण । प्रथम आगम-सुत्त ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो च के हैं(१) अंगसुत्ताणि (१)-इसमें आयारो, सुयगडो, ठाणं, समवाओ-~ये चार अंग समाहित हैं। (२) अंगसुत्ताणि (२)- इसमें पंचम अंग भगवई प्रकाशित है। (३) अंगसुत्ताणि (३)- इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोव वाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं-ये ६ अंग हैं। (४) उवंगसुत्ताणि (४) (खं० १)) -इसमें (१) ओवाइयं (२) रायपसेणियं और (३) जीवाजीवाभिगमे-ये तीन आगम ग्रन्थ हैं। (५) उवंगसुत्ताणि (४) (खण्ड २)-प्रस्तुत ग्रन्थ । इसमें पण्णवणा, जंबुद्दीवपण्णत्ती, चंद पण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, निरयावलियाओ, कप्पवडिसियाओ, तुफियाओ, पुप्फचूलियाभो, वहिदसाओ प्रकाशित हो रहे हैं। (६) नवसुत्ताणि (५)-...इसमें आवस्सयं, दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, नंदी, अणओग दाराई, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहझयणं-ये नौ आगम ग्रन्थ हैं। द्वितीय आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं(१) दसवेालियं १. इस ग्रंथमाला के अन्र्तगत (१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयरो तह आयारचूला, (३) निसीहज्झयणं, (४) मोवाइयं, (५) समवाओ-ये ग्रंथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा भी प्रकाशित हुए थे। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और २) (३) ठाणं (४) समवाओ (५) सुयगडो (भाग १ और भाग २) उक्त में से द्वितीय ग्रंथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुआ है। तीसरी आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला में निम्न दो ग्रन्थ निकल चुके हैं..... (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन । (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । चौथी आगम-कथा ग्रन्थमाला में अभी तक कोई ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला में दो ग्रन्थ निकल चुके हैं। (१) दसवैकालिक वर्गीकृत (धर्म प्रज्ञत्ति खं०१) (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० २) छठी केवल आगम हिंदी अनुवाद ग्रन्थमाला में एक 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है। उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दसर्वकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। उक्त विवरण से पाठकों को विदित होगा कि भूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित ३२ आगम ग्रंथ आगमसुत्त ग्रंथमाला के अर्न्तगत प्रकाशित हो चुके हैं। ३२ आगमों का इस प्रकार का आलोचनात्मक प्रकाशन आगम प्रकाशन के इतिहास में प्रथम बार ही सम्मुख आया है। आगम प्रकाशन कार्य की योजना में निम्न महानुभावों का सहयोग रहा --- (१) सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदालालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी)। (२) रामलालजी हंसराजजी गोलछा, विराटनगर । (३) स्व० जयचंदलालजी गोठी, सरदारशहर। (४) रामपुरिया चेरिटेबल ट्रस्ट, कलकत्ता। (५) बेगराज भंवरलाल चोरडिया चेरिटेबल ट्रस्ट । यह ग्रन्थ जैन विश्व भारती के निजी मुद्रणालय में मुद्रित होकर प्रकाशित हो रहा है । मुद्रणालय के स्थापना में मित्र-परिषद्, कलकत्ता के आर्थिक सहयोग का सौजन्य रहा, जिसके लिए उक्त संस्था को अनेक धन्यवाद । आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना-प्रमुख हैं आचार्य श्री तुलसी और प्रधान संपादक तथा विवेचक हैं यूवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी। इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है। जैन विश्व भारती २६-६-८७ लाडनूं (राज.) श्रीचंद रामपुरिया कुलपति Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रस्तुत ग्रन्थ में नौ उपांग हैं-- १. पण्णवणा २. जंबुद्दीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ४. सूरपण्णत्ती ५. निरयावलियाओ ६. कप्पडिसियाओ ७. पुफियाओ ८. पुष्फचलियाओ ६. वण्हिदसाओ। उपांग बारह हैं । उवंगसुत्ताणि भाग ४ खण्ड १ में तीन उपांग प्रकाशित हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में शेष नौ उपांगों का मूल-पाठ पाठान्तरसहित सम्मिलित है। अंगसुत्ताणि की शब्दसूची एक स्वतन्त्र पुस्तक (आगम शब्दकोश) में मुद्रित है। पाठक और शोधकर्ताओं की सुविधा की दृष्टि से इस खण्ड में उपर्युक्त नौ आगमों की संयुक्त शब्दसूची संलग्न है। प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन के साथ बत्तीस आगमों के प्रकाशन का कार्य सम्पन्न हो जाता है। इस आगम सुत्त ग्रन्थमाला के सात ग्रन्थ सम्पन्न हो रहे हैं:१. अंगसुत्ताणि भाग-१ आयारो, सूयगडो, ठाणं, समवाओ। २. अंगसुत्ताणि भाग-२ भगवई। ३. अंगसुत्ताणि भाग-३ नायाधम्मकहाओ, उवासमदसाओ, अंतगडदसाओ, अणत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं । ४. उवंगसुत्ताणि भाग-४, खण्ड १ ओदाइयं, रायपसेणियं, जीवाजीवाभिगमे । ५. उवंगसुत्ताणि भाग-४, खण्ड २ पण्णवणा, जंबुद्दीवपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, निरियावलियाओ, कप्पवडिसियाओ, पुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, वहिदसाओ । ६. नवसुत्ताणि भाग-५ आवस्सयं, दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि, नंदी, अणुओगदाराइं, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहझयणं । ७. आगम शब्दकोश (अंगसुत्ताणि शब्दसूची) इस मूलपाठ की ग्रन्थमाला के अन्तर्गत अन्य ग्रन्धों के सम्पादन का कार्य अभी चल रहा है। उनमें प्रकीर्णक, नियुक्ति और भाष्य सम्भावित हैं। विक्रम संवत् २०१२ (सन् १९५५) महावीर जयन्ती के दिन आचार्य श्री ने आगम-सम्पादन की घोषणा की। सम्पादन का कार्य उसी वर्ष चतुर्मास में प्रारम्भ हुआ । शुद्ध पाठ के बिना सम्पादनकार्य में अवरोध आए । तब पाठ-शोधन की ओर ध्यान गया। पाठ-शोधन का कार्य वि० सं० Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१४ (सन् १९५७) में प्रारम्भ हुआ। यह कार्य वि० सं० २०३७ (सन् १९८०) में सम्पन्न हुआ। इसका विवरण इस प्रकार है: .... दसवेआलियं उत्तरज्झयणाणि नंदी, अनुओगदाराई ओवाइय, रायपसेणियं ठाणं समवाओ सूयगडो नायाधम्मकहाओ आयारो, आयारचूला उवासगदसाओ, अंतगडदसामो अनुत्तरोववाइयदसाओ विपाक पण्हावागरणाई निरयावलियाओ भगवई पपणवणा दसाओ, पज्जोसवणाकप्पो कप्पो ववहारो जीवाजीवाभिगमे जंबूद्दीवपण्णत्ती निसीहज्झयणं चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती वि० सं० २०१४ वि० सं० २०१६ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१८ वि० सं० २०१६ वि० सं० २०२० वि० सं० २०२२ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०२८ वि० सं० २०२८ वि० सं० २०२६ वि० सं० २०३० वि० सं० २०३१ वि० सं० २०३२ वि० सं० २०३३ वि० सं० २०३३ वि० सं० २०३४ वि० सं० २०३५ वि० सं० २०३५ वि० सं० २०३७ सम्पादन का कार्य सरल नहीं है-यह उन्हें सुविदित है, जिन्होंने इस दिशा में कोई प्रयत्न किया है । दो-ढाई हजार वर्ष पुराने ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य और भी जटिल है, जिनकी भाषा और भाव-धारा आज की भाषा और भाव-धारा से बहुत व्यवधान पा चुकी है। इतिहास की यह अपवाद-शून्य गति है कि जो विचार या आचार जिस आकार में आरब्ध होता है, वह उसी आकार में स्थिर नहीं रहता। या तो वह बड़ा हो जाता है या छोटा । यह ह्रास और विकास की कहानी ही परिवर्तन की कहानी है। और कोई भी आकार ऐसा नहीं है, जो कृत है और परिवर्तनशील नहीं है । परिवर्तनशील घटनाओं, तथ्यों, विचारों और आचारों के प्रति अपरिवर्तनशीलता का आग्रह मनुष्य को असत्य की ओर ले जाता है। सत्य का केन्द्र-बिन्दु यह है कि जो कृत है, वह सब परिवर्तनशील है । कृत या शाश्वत भी ऐसा क्या है जहां परिवर्तन का स्पर्श न हो। इस विश्व में जो है, वह वही है जिसकी सत्ता शाश्वत और परिवर्तन की धारा से सर्वथा विभक्त नहीं है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ शब्द की परिधि में बंधने वाला कोई भी सत्य क्या ऐसा हो सकता है जो तीनों कालों में समान रूप से प्रकाशित रह सके ? शब्द के अर्थ का उत्कर्ष या अपकर्ष होता है भाषा-शास्त्र के इस नियम को जानने वाला यह आग्रह नहीं रख सकता कि दो हजार वर्ष पुराने शब्द का आज वही अर्थ सही है, जो आज प्रचलित है । 'पाषण्ड' शब्द का जो अर्थ आगम-ग्रंथों और अशोक के शिलालेखों में है, वह आज के श्रमण-साहित्य में नहीं है । आज उसका अपकर्ष हो चुका है । आगम साहित्य के सैकड़ों शब्दों की यही कहानी है कि वे आज अपने मौलिक अर्थ का प्रकाश नहीं दे रहे हैं। इस स्थिति में हर चिन्तनशील व्यक्ति अनुभव कर सकता है कि प्राचीन साहित्य के सम्पादन का काम कितना दुरूह है। मनुष्य अपनी शक्ति में विश्वास करता है और अपने पौरुष से खेलता है, अत: वह किसी भी कार्य को इसलिए नहीं छोड़ देता कि वह दुरूह है। यदि यह पलायन की प्रवृत्ति होती तो प्राप्य की सम्भावना नष्ट ही नहीं हो जाती किन्तु आज जो प्राप्त है, वह अतीत के किसी भी क्षण में विलुप्त हो जाता। आज से हजार वर्ष पहले नवांगी टीकाकार (अभयदेव सूरि) के सामने अनेक कठिनाइयां थीं। उन्होंने उनकी चर्चा करते हुए लिखा है : ---- १. सत् सम्प्रदाय (अर्थ बोध की सम्यक् गुरु-परम्परा) प्राप्त नहीं है। २. सत् ऊह (अर्थ की आलोचनात्मक कृति या स्थिति) प्राप्त नहीं है। ३. अनेक वाचनाएं (आगमिक अध्यापन की पद्धतियां) हैं। ४. पुस्तकें अशुद्ध हैं। ५. कृतियां सूत्रात्मक होने के कारण बहुत गंभीर है। ६. अर्थ विषयक मतभेद भी हैं । इन सारी कठिनाइयों के उपरान्त भी उन्होंने अपना प्रयत्न नहीं छोडा और वे कुछ कर गए। कठिनाइयां आज भी कम नहीं हैं । किन्तु उनके होते हुए भी आचार्यश्री तुलसी ने आगम-सम्पादन के कार्य को अपने हाथों में ले लिया। उनके शक्तिशाली हाथों का स्पर्श पाकर निष्प्राण भी प्राणवान बन जाता है तो भला आगम-साहित्य जो स्वयं प्राणवान् है, उसमें प्राण-संचार करना क्या बड़ी बात है ? बड़ी बात यह है कि आचार्य श्री ने उसमें प्राण-संचार मेरी और मेरे सहयोगी साधु-साध्वियों की असमर्थ अंगुलियों द्वारा कराने का प्रयत्न किया है। संपादन कार्य में हमें आचार्यश्री का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं है किन्तु मार्ग-दर्शन और सक्रिय योग भी प्राप्त है। आचार्यवर ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसकी परिपूर्णता के लिए अपना पर्याप्त समय दिया है। उनके मार्ग-दर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का संबल पा हम अनेक दुस्तर धाराओं का पार पाने में समर्थ हुए हैं। पाठ सम्पादन-पद्धति पण्णवणा प्रज्ञापना के पाठ-शोधन में चार हस्त-लिखित आदर्श काम में लिए गए । आचार्य मलयगिरि की वत्ति का भी उसमें उपयोग किया गया। मुनि पूण्यविजयजी द्वारा सम्पादित प्रज्ञापना भी हमारे सामने रही। किन्तु हम किसी एक प्रति को आधार मानकर नहीं चलते। टीका की व्याख्या, अन्य आगम तथा शब्दों का अर्थ-ये सब पाठ-शोधन के महत्त्वपूर्ण आधार-बिन्दु रहे हैं। इसलिए हमारे सम्पादन में पाठ-शुद्धि के अनेक विशेष विमर्श उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए गण्ठी शब्द प्रस्तुत है : ."वत्थुल कच्छुल सेवाल गण्ठी"। यहां 'गण्ठी' पद अशुद्ध है । शुद्ध पाठ है 'गत्यी । पाठ-शोधन Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ में प्रयुक्त हस्तलिखित आदर्शों तथा मुनिश्री पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित आगमों में 'गण्ठी' पाठ ही उपलब्ध है। इस पाठ का शोधन जीवीजीवाभिगम और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के आधार पर किया गया है। इसके लिए प्रस्तुत आगम का ११३८ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य है। दुसरा उदाहरण है-.-'तिट्टाणवडिते' । इसके स्थान पर कुछ आदशों में 'चउट्ठाणवडिते' पाठ मिलता है। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने भी 'चउट्ठाणवडिते' पाठ स्वीकार किया है। किन्तु हमने 'तिट्ठाणवडिते' पाठ वृत्ति के आधार पर मान्य किया है। इसका समर्थन पण्णवणा ५११५, ११६, की वृत्ति से होता है। प्रज्ञापनावृत्ति पत्र १९५-१९६ तथा पण्णवणा ५॥११५ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य है। जम्बद्वीपप्रज्ञप्ति इसके पाठ-शोधन में सात प्रतियों और तीन टीकाओं का उपयोग किया गया है। उपाध्याय शान्तिचन्द्र की वृत्ति तथा हीरविजय वृत्ति में अनेक पाठान्तर और उनकी टिषणियां मिलती हैं । देखें ---४११५६ का पाद-टिप्पण। यह पाठान्तर-बहुल आगम है। उपाध्याय शान्तिचन्द्र ने वाचना-भेद की विस्तृत चर्चा की है। उदाहरण के लिए ११२ का पाद-टिप्पण द्रष्टव्य हैं। कहीं-कहीं अशुद्ध पाठ के कारण व्याख्या भी अशुद्ध हुई है। देखें---४।४६ का पाद-टिप्पण । चन्द्रप्राप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति इनके पाठ-शोधन में पांच हस्तलिखित आदशों तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति की वृत्तियों का उपयोग किया गया है। एक आदर्श का क्वचित् प्रयोग किया गया है। चन्द्रप्रज्ञप्ति का पूर्ण रूप उपलब्ध नहीं है। उसका सूर्यप्रज्ञप्ति से जो भेद है वह एक परिशिष्ट में दिया गया है। कुछ हस्तलिखित आदर्श चन्द्रप्रज्ञप्ति के नाम से उपलब्ध हैं। उनके पाठ-भेद सूर्यप्रज्ञप्ति के पाद-टिप्पण में दिए हुए हैं। निरयावलिका निरयावलिका आदि पांच वर्गों के पाठ-शोधन में तीन हस्तलिखित आदशों तथा श्रीचन्द्रसूरिकृत वृत्ति का प्रयोग किया गया है। १. शान्तिचन्द्रीयवृत्ति पत्र ६७ : पाठान्तरं-वाचनाभेदस्तगतपरिमाणान्तरमाह-मूले द्वादश योजनानि विष्कम्भेन मध्येऽष्ट योजनानि विष्कम्भेन उपरि चत्वारि योजनानि विष्कम्भेन, अत्रापि विष्कम्भायामतः साधिकत्रिगुणं मूलमध्यान्तपरिधिमानं सूत्रोक्तं सुबोधं । अत्राह परः- एकस्य वस्तुनो विष्कम्भाविपरिमाणे द्वैरुप्यासम्भवेन प्रस्तुतग्रन्थस्य च सातिशयस्थविरप्रणीतत्वेन कथं नान्यतरनिर्णयः ? यदेव स्यापि ऋषभकटपर्वतस्य मूलादावष्टादियोजनविस्तृतत्वादि पुनस्तत्रैवास्य द्वादशादियोजनविस्तृतत्वादीति, सत्यं, जिनभट्टारकरणां सर्वेषां क्षायिकज्ञानवतामेकमेव मतं मूलतः पश्चात्तु कालान्तरेण विस्मृत्यादिनाऽयं वाचनाभेदः, यदुक्तं श्रीमलयगिरिसूरिभिज्योतिष्करण्डकवृत्तौ - "इह स्कन्दिलाचार्य प्रवृ (तिप) तौ दुषमानुभावतो दुभिक्षप्रवृत्त्या साधूनां पठनगुणनादिकं सर्वमप्यनेशत्, ततो दुभिक्षातिकमे सुभिक्षप्रवृत्तौ द्वयोः संघमेलापकोऽभवत्, तद्यथा---एको वलभ्यामेको मथुरायां, तत्र च सूत्रार्थसंघटने परस्परं वाचनाभेदो जातः, विस्मृतयोहि सूत्रार्थयोः स्मृत्वा संघटने भवत्यवश्यं वाचनाभेद" इत्यादि, ततोऽत्रापि दुष्करोऽन्यतरनिर्णयः द्वयोः पक्षयोरुपस्थितयोरनतिशायिज्ञानिभिरनभिनिविष्ट मतिभिः प्रवचनाशातनाभीरुभिः पुण्यपुरुरिति न काचिदनुपपत्तिः । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ शब्दान्तर और रूपान्तर पण्णवणा श१४ १११४ ०२३ श२६ ११३५ ११३८ ११४८१४७ १९३४ २।१० २२१३ २।४० बैदियः तेंदिय ओसा वायमंडलिया अंकोल्ल कोरंटय बलिमोडओ वीइभयं पडीण तडागेसु चोट्ठि विसेसाहिया दाहिणेणं विभंगणाणीण अहेलोए अस्साता जहा मकसाई एगणवीस पणुवीस (क,ग) (क) (घ) (घ) (क,घ) (क,घ) (ख,म,प) (क) ३१ (क,ग,ध) (घ) (ख,ग) ३७ ३३१०२ ३।१२७ ३।१७४ ३।१८२ ३३१८३ ४।२५५ ४।२७५ ५॥५ ५१५ ५१५ बेइन्दिय तेइन्दिय उस्सा बाउमंडलिया अंकुल्ल कोरिटय (क); कोरेंट पलिमोडओ वीय भयं पयोण (क); पईण तलागेसु चोट्टि विसेसाधिया दक्खिणेणं विहंगणाणीण अहोलोए (ग); अधेलोए असाता जधा सकसादी एकूणवीसं (क,घ); एक्कूणवीस पंचवीसं (ख,घ); पणवीसं जइ (ख,ग,घ); जति मधुर अभइए (क); अब्भतिए 'पडिए मणसे बुढिजति एणठेणं अहिलावो उस्सण्ण आणवणी बिगे सतणं सरीरप्पभवा वोगड अन्वोगडा जदि (पु) (क,ख,घ) (क,ग,घ) अब्भहिए वडिए मणुस्से वढिज्जति एएणछेणं अभिलावो ओसण्ण आणमणी वगे सयण सरीरपहवा वोयड अव्वोयडा ५२१०१ ५.१७६ १२४२ ६।४६ ८८ १११६ ११०२१ १०२५ १११३० १०३७ (ख,घ) (ख,ग,घ) (क,ख,ग,घ) (क,ख,ग,घ) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ११३७ ११२७२ ११७५ १८४ ११५८८ ११३८८ १२२७ १२१७ १५१३५ आणमणी परिवड्ढमाणाई कदलीथं भाण णिसरति बिति भासज्जायं बद्धेल्लया मुक्केल्लया ओसप्पिणीहि अणागारो णग्गोह सादी पेहमाणे पेहति 'थिम्गले °ओवचए अहवेगे पच्चथिमिल्लं आयरियं सेयंसि माउलंगाण तिदुयाण इणछे समभिलोएमाणे PEO. १५१५० १५।५३ १५१५८ १६३१५ १६३३४ याणमणी परिवड्ढे माणाई (ख,घ) कदलीखंभाण णिस्सरति (ख); णिस्सिरति (ग); निसरति (घ) बीयं भासजाय बद्धिल्लया मुक्किल्लया (क,ख,ग,घ) अवसप्पिणीहि (म) अणायारो णिग्गोह साती पेहेमाणे पेहेति "थिग्गिले ओवचते (ख,ष) अहवेते पच्छिमिल्लं आयरितं से इंसि (क,ग) मातुलिंगाण तिडुयाण इणमढे (क); तिणठे (ख,घ) समभिलोतेमाणे (क,ध) हलहर (क,ग,घ) कयरसारए (ख,ग); कतरसारए बालेंदगोये बलाहते अपक्काणं (क,ख,घ) आगारभावमायाए (क,ग) वेए (क,ग); देते वयजोगी (ख,घ,पु) सकसादी (क); सकसाती सवणयाते (क,घ) धणुहपुहत्तं समाति (क,घ); सयाई (ग) (ग) कण्ह १६१५१ १६३५४ १६१५५ १६.५५ १७।२४ १७।१०६ १७१११६ १७।१२४ १७११२५ १७११२६ १७१२८ १७११३२ १७११५० १८१ १८.५६ १८१६४ २०१२८ २१२५ २११४७ २११६२ हलधर काइरसारे बालिदगोवे 'बलाहए अपिक्काणं आगारभावमाताए वेदे वइजोगी सकसाई सवणताए धणुपुहत्तं सगाई Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णियच्छति कडस्स णीयागोयस्स (ख,ग) (क,घ) खवए २३।३ २३३१३ २३२२२ २३३१६१ २८।४४ ३३११ ३३।१७ ३४।१ ३४।६ ३४/१५ अफासाइज्ज अपडिवाई सगाई परियाइयणया जाणंति सपरियारा निगच्छति (क,घ) निग्गच्छति कतस्स (क,घ); कयस्स णीतागोतस्स खमए अप्फासाइज्ज अपडिवादी सताई (क,घ) सयाति परियादिणया (ख); परियायणया याणंति सपरिचारा जंबुद्दीवपण्णत्ती (क,घ) (क,घ) (ख) (क,ख,ग,घ) (ख,ग) (अ,ख) श८ १११८ ११२३ श२६ श२८ ११४८ विच्छिण्णा °णउय घणुपट्टे पडोयारे पासिं दुहा विस्थिण्णा °णोत° धणुवढें (अ); धणुपुळं पडोगारे पस्सिं दुधा हिस्स उडू (त्रि); उऊ पडोकारे (त्रि,ब) (अ,त्रि,ब) (ख,स) (क,ख) (प) २१४ २।४ मेतिणि वेइगा यत्थ (अ,ब); एस्थ कधक २११४ २।१५ २२२० २।२० २१३२ २१७० २१७८ २।१३१ २११३३ २११३३ पडोयारे मेइणि वेइया इत्थ कहग 'हास वाकरेमाणाणं हाहाभूए वलीविगय टोलाकिति (त्रि,ब) (अ,ब) (क,ख,स) (अ,ख,ब) (म,ख,ब) (प) (अ,क,ख,ब,स) वागरमाणाणं हाहाब्भूते पलीविगय डोलाकिति (अ); डोलागिति टोलागित्ति (त्रि, स); टोलागति सीय उण्ह सीउण्ह २११३३ ३।३ जूय (प) (क,ख,त्रि,ब,स) (क,ख,प,स) (क,ख,प,स) (अ,ब) (अ,ब) ३।११ ३।११ पउसियाओ बब्बरी बहलि व उसीयाओ पप्परी पहलि Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० कडिच्छुय (ख); °कडेच्छुय (अ,ब,स) °कडुच्छ्य दुखहइ बंभयारी (अ,त्रि,ब) दुरुढे ३।११ ३३२० ३१२० ३३२१ ३१२२ ३१२३ ३१२४ ३३२६ ३३३५ ३१३५ ३२३५ बोल 'बालचंद (स) (क,प,स) (क,ख) अंतवाले ° पट्टसंगहिय खिखिणी अयोझ पम्हचारी रूढे (अ); द्रुढे पोल °बालयंद 'तोंड अंतपाले (अ,त्रि,ब); अंतेवाले वसंगहिय किकिणी अजोझ (अ,ब); अओझं अवोझ सोतामणि (क); सोदामणि प्पकासं विस्सुतं (क,ख,स) (क,ख,प,म); (त्रि) (ख,स) (अ,क,ख,त्रि,ब,स) (क,स) ३१३५ ३३३५ ३१३५ ३१७७ ३.११७ ३।११७ ३।१३८ सोयामणि प्पगासं वीसुतं चिधपट्टे সিংহ चिंधवट्टे उऊण हिदय मरीई (त्रि) उदूण (अ,ख,ब); रिदूण (क ,स) हियय (अत्रि,प,ब); हितय' (क,स); हदय निहितो (अ,त्रि,ब); °निहओ (ख,स) अभिसेयपेढं गंठिम (त्रि,प) तिसोमाण (अ,ब) काकिणि (अ); कागिणि” (व); काकणि° (स) (अ,ब) पुवकड ३११७८ ३२१६४ ३।२११ ३।२१४ ३१२२० ३१२२१ ३।२२३ ४१३६ ४१५४ ४१५५ ४१७७ ४१८५ ४१८६ ४१८७ ४।६१ ४१४३ निहिओ अभिसेयपीढं गंथिम तिसोवाण कागणि पुवकय° ईहापोह बावट्टि हस्सतराए दक्खिणेणं हरिवासं संखतल' बायाले णिसहस्स सीतोदा विउत्तरे (त्रि) ईहापुह (अ,क,ख,स); ईहावूह (पुर्व) बासद्धि हस्सतराए दाहिणेणं हरिवस्सं (अ,प,ब) संखदल° (प,शाव,पुवृपा) पायाले (अ,ब) बायालीसे (त्रि) णिसअस्स सीओता (अ,ब); सीओदा (त्रि); सीओआ (प) पिउत्तरे Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ ४।१०२ णिसढ हेमवय-हेरण्णवय दह ४११०३ ४।१०६ ४।१४० ४११४० ४११४२ ४११५७ ४।१८० ४२१० ४॥२३१ श२५ णीलवंतस्स सणिच्चारी उववायसभाए जमगाओ दस णियया परुप्परति सयज्जल पलासो घंटापडेसुया णिसभ° (अ,ब); णिसह (क,ख,स) हेमवएरण्णवय (क,ख,ब,स); हेमवय एरण्णवय (त्रि) णेलवंतस्स (अ,क,ख,ब,स) सणिच्चारी ओतावसभाए (क) जवगाओ (अ,ब); जमिगाओ (अ,क,ख,ब,स) णितिया (अ,क,ख,त्रि,ब,स) परोप्परति (अ,त्रि,ब) सयंजल (त्रि) वलास घंटापर्डेसुका (अ,ब); घंटापडिसुका (क,ख); घंटापडिस्सुया (त्रि); घंटापडंसुया गत्ताई (क,ख); गताई (ब) जाणु उड्ढंमुह (अ,ब); उद्धीमुह (क,ख,प) भावियाया अभिजिदाइया (अ,ब); अभिजादिया (क,स); अभिजादीया समणे (अ,ब) मगसिर अभिती (अ,ब,स); अभिवी (क,ख) पहस्सती (अ,ब); वहप्फई कत्तिकी (अ); कित्तिकी (ख,ब); कित्तिगी (स) आसिणी लांगूलाणं १५८ १५८ ७.३१ ७.१२२ ७:१२६ गायाई जण्णु उड्ढीमुह भावियप्पा अभिजियाइया ७।१२८ ७.१२८ ७।१२६ ७/१३० ७:१५५ ७।१५६ ७.१७८ सवणो मियसर अभिई वहस्सई कत्तिगी अस्सिणी गंगूला सूरपण्णतो (ग,घ) (ट) इहगतस्स चउरुत्तरे पिहला पोग्गला ओयसंठिती ओयाए रयणिखेत्तस्स इदगतस्स चउत्तरे पिधुला (क); पुहुलो पुग्गला तोतसंठिती ओताए रतणिखेत्तस्स (क,ग,प); रातिखेत्तस्स (ट,व) (ट) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ १३ १०२ १०१५ १०१७ १०/१० १०१७७ १०७८ १०१७६ १०/८७ १०८६ १०।१३६ १०११४७ १०/१७३ १४:२ १५।३१ १८३४ २०११ २०/२ ११४२ १।६६ ११७२ ११६१ १६७ ११६७ १।११७ १।१२७ ३।११५ ३११३४ ४१६ ४२१ ५।६ ५।१० सदा वयं.... वदामो सवणे सायं आसोई असोइण्णं आदिच्चेहि बम्ह सवणे बितिया " दुविहा तिही पातो उवाइणावेत्ता सयावि कहं अहिय मेहुणवत्त अहे वइयरिए अण्णया जणवदं ऊसए पिइसोएर्ण पट्टे अंदोलावेइ निच्छुहावेद लेच्छइ सुन्याओ जुयलं इट्ठा "बाओसिया सव्वोउय आहेवच्च २२ सता वतं....वतामो समणो सागं अस्सोती अस्सोदिण्णं आतिच्चेहि बंभ समणे बिदिया" दुविधा तिधी पादो अण्णा (क); अण्णता जणवयं ऊसवे पितसोएण प्पिट्ठे (क); पुट्ठे अंदोडावेइ निच्छुभावेइ लेच्छती सुब्वदाओ जुवलं (ख); जुगलं तिट्ठा उदिता (क, ग, घ ) ; उदातिणावेत्ता सतावि (क, ग, घ, व ) ; सदावि कथं अधियं (क,ग,घ); अहितं मेधुणवत्तियं अधो वतिचरिए निरयावलियाओ पाओसिया सव्वोय आधेवच्चं ( ग, घ, ट, ब ) (व) (ग,घ) (व) (ब) (ग,घ) (व) (क, ग, घ ) (ट,व) ( क, घ) (क) (क, घ, व ) (ट,व) (ग) (क, ग, घ ) (ट) (क,ग,घ) (क) (ट) (ख) (ख) (ख) (ग) (क) (क) (क) (क) (ग) (क) (क.ग ) (क,ग) (ख) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ पण्णवणा प्रति- परिचय क) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित ) यह प्रति पूनमचन्दजी बुधमलजी दूघोड़िया 'छापर' के संग्रहालय की है। इसकी पत्र संख्या ३०२ है | इसकी लम्बाई १०१ इन्च व चौड़ाई ४ || इन्च है । लगभग प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३३ से ४१ अक्षर हैं। प्रति सुन्दरतम व शुद्ध है । यह प्रति लगभग १५ वीं शताब्दी की लिखी हुई है। प्रति के अन्त में केवल प्रस्थान ७७८७ लिखा हुआ है। (ख) पण्णवणा टम्बा (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्वभारती हस्तलिखित ग्रंथालय, लाडनूं की है । इसमें मूल पाठ तथा स्तबक लिखा हुआ है । इसकी पत्र संख्या ४६५ है । इसकी लम्बाई 8 || इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में भूल पाठ की पंक्तियां ७ व प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ३९ अक्षर हैं। प्रति अति सुन्दर लिखी हुई है। प्रति के अन्त में 'प्रत्यक्षरगणनया अनुष्ठपच्छंदः समानमिदं ग्रन्थाग्रं ७७८७ प्रमाणं' लिखा हुआ है। आगे स्तबककर के ६ श्लोक हैं संवत् १७७८ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिचौ रविवारे पंडित ईश्वरेण लिपी चक्रे श्री वेन्नातट नगर मध्ये..... श्री रस्तु कल्याणमस्तुः शुभं भूयास्लेषक पाठकयो: । । (ग) पण्णवणा त्रिपाठी (हस्तलिखित) मूलपाठ सहित वृत्ति यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित ग्रंथ भंडार लाडनूं' की है। इसमें मध्य में नूल पाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है। इसकी पत्र संख्या ४४८ है इसकी लम्बाई ६ ||| इंच तथा चौड़ाई ४ इंच है । प्रत्येक पत्र में मूल पाठ की पंक्तियां १ से १६ तक है । कुछ पत्रों में केवल वृत्ति ही है । प्रत्येक पंक्ति में ३७ से ४५ तक अक्षर हैं । ग्रंथाग्र मूल पाठ ७७८७ तथा वृत्ति का ग्रन्थाय १६००० । प्रति सुन्दर व शुद्ध है । लगभग १७ वीं शताब्दी की प्रति होनी चाहिए । (घ) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्दजी गणेशदासजी वर्धया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसकी पत्र संख्या १३८ है । इसकी लम्बाई १३|| इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र में बीच में तथा हासिए के बाहर चित्र सा किया हुआ है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ के लगभग अक्षर हैं । प्रति सुन्दर तथा शुद्ध है । यह १६ वीं शताब्दी की लिखी हुई प्रतीत होती है । ग्रंथाग्रं ७७८७ के सिवाय अन्त में कुछ लिखा हुआ नहीं है । ( गव्) 'ग' संकेतित प्रति में लिखित वृत्ति के पाठान्तर (वृ) हस्तलिखित वृत्ति I यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गया सरदारशहर' की है। इसकी पत्र संख्या १५९ लिपि संवत् १५७७ । वैशाख शुक्ला १० । (मवृ) मलयगिरि वृत्ति -- प्रकाशक आगमोदय समिति (मवृपा ) मलयगिरि द्वारा गृहीत पाठान्तर ( हव) श्री हरिभद्र सूरि सूत्रित प्रदेश व्याख्या संकलितं प्रकाशक श्री ऋषभदेव केशरीमलजी रतलाम पूर्व भाग पर ११ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जंबुद्दीपण्णत्ती प्रति- परिचय (अ) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जेसलमेर मंडार की ताडपत्रीय ( फोटोप्रिंट) मदनचन्द जी गोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र १६४ और पृष्ठ ३२८ हैं । प्रत्येक पत्र में २ से ६ तक पंक्तियां हैं। कहीं-कहीं पंक्तियां अधूरी लिखी हुई हैं। प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३० से ३५ तक हैं । अन्त में ग्रंथास ४१४६ इतना ही लिखा हुआ है। इसके साथवाली प्रति के आधार पर यह प्रति १४ वीं शती की होनी चाहिए । (ब) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित ) यह प्रति जेसलमेर भंडार ताडपत्रीय ( फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ६७ व पृष्ठ १६४ हैं । प्रत्येक पत्र में २ से ६ तक पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में ४७ से ५० तक अक्षर हैं। लिपि सं० १३७८ लिखा हुआ है । ( स ) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जैसलमेर मंडार पत्राकार ( फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ४६ व पृ. ९२ हैं । प्रत्येक पत्र में २० पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ७० से ७४ तक अक्षर हैं । लिपि सं. १६४६ लिखा हुआ है। प्रति बहुत महीन लिखी हुई है। (क) जंबुद्दीवपण्णत्तो मूलपाठ (हस्तलिखित) पत्र संख्या ७३ श्रीचंद गणेशदास गर्धया संग्रहालय ( सरदारशहर ) (ख) जंबुद्दीवपण्णत्तो मूलपाठ (हस्तलिखित ) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रंथालय 'लाडनूं' की है। इसके पत्र १०१ व पृष्ठ २०२ हैं ! प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर हैं। प्रति प्राचीन व सुंदर लिखी हुई है । लिपि संवत् नहीं है । (ग) जंबुद्दोवपण्णत्ती त्रिपाठी, मूलपाठ व वृत्ति (हस्तलिखित ) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय 'लाडनूं' की है। इसके पत्र ३५८ व पृष्ठ ७१६ है । प्रति के मध्य में मूलपाठ व ऊपर नीचे टीका लिखी हुई है । लिपि संवत् १९१३ अंकित है । प्रति सुंदर लिखी हुई है । इसके ६६-७० दो पत्र प्राप्त नहीं हैं । (होवृ ) हीरविजयसूरि विरचित वृत्ति त्रिपाठी (हस्तलिखित) ( होवृपा ) हीरविजय सूरि द्वारा गृहीत पाठान्तर यह प्रति शासन ग्रंथ भंडार 'लाडनूं' की है। इसकी पत्र संख्या ५८२ है । बीच में मूलपाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है । लिपि संवत् १६१६ (ga) खरतरगच्छीय जिनहंसगणि शिष्य महोपाध्याय पुण्यसागर विरचित वृत्ति (हस्तलिखित) (पुवृषा) पुण्यसागर द्वारा गृहीत पाठान्तर यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र २४३ व पृष्ठ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ४८६ हैं । लिपि सं. १५७५ । प्रति सुन्दर लिखी हुई है। (शाव) तपागच्छीय होरविजयसूरि परशिष्य शान्त्याचार्य विरचित वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। लिपि सं. १५५१ (शावृपा) शान्त्याचाय द्वारा गृहीत पाठान्तर सूरपण्णत्तो प्रति-परिचय (क) सूरपण्णत्ती मूल यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदाबाद' की है। इसकी क्रमांक डा. २-५७ है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई १२ 11 x ५ इंच है। इसकी पत्र संख्या ६२ है । प्रथम पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्ति के प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ७० तक अक्षर हैं। प्रति सुन्दर व सुवाच्य है। प्रति के बीच में हरी व लाल स्याही से चित्र-चित्रण किया हुआ है। लिपि संवत नहीं दिया है। परन्तु प्रति प्राचीन है लगभग १७ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। प्रति के अन्त में प्रशस्ति के २५ श्लोक प्राकृत में लिखे हुए हैं। (ग) सूरपण्णत्ती मूल नंबर ६० (हस्तलिखित) यह प्रति भी पूर्व उल्लिखित 'अहमदाबाद' की है। इसकी पत्र संख्या ८७ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १०॥४४इंच है। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३३ से ४१ तक है । प्रति की लिपि सुन्दर है पर अशुद्धि बहुल प्रति है । लिपि सं. १५७० । (घ) सूरपण्णत्ती मूल नम्बर ६०७ (हस्तलिखित) यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ६६ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १०४४ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां है। प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३४ से ४२ तक हैं । प्रति की लिपि सुंदर पर अशुद्धि बहुल है। लिपि सं. १६७३ है। ___ उपर्युक्त तीनों प्रतियों के बीच में बावड़ी है। (सूवृ) सूरपण्णत्तो टोका नं. ४८ यह प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, 'अहमदावाद' की है। इसकी लम्बाई चौडाई १२॥१४५ इंच है। पत्र संख्या २२४ है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४४-६० अक्षर हैं। प्रति सुन्दर व स्पष्ट लिखी हुई है। लिपि संम्बत् १५७४ है। चन्द्रप्रज्ञप्ति प्रति-परिचय (क) चंदपण्णत्ती मूल नं. ६०० (हस्तलिखित) यह प्रति भी लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर 'अहमदावाद' की है। इसकी पत्र संख्या ६८ व इसकी लम्बाई चौड़ाई १०1४ ४ । इंच है। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४१ तक अक्षर है । यह प्रति भी सुन्दर है पर अशुद्धि बहुल है। इसमें पत्र के बीच में बावडी है। लिपि संवत् १५७० है। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ (चंव) चंदपण्णत्ती टोका (हस्तलिखित) यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित भण्डार 'लाडन' की है इसकी पत्र संख्या १७६ है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई १०४४॥ इच की है। प्रत्येक पत्र में पंक्ति ६ व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ५० करीब है। प्रति सुन्दर है । लिपि संवत् १७६२ । (2) चंदपण्णत्ती टब्बा (हस्तलिखित) जैन विश्व भारती लाडनूं हस्तलिखित ग्रंथालय ! पत्र ५७ । निरयावलियाओ प्रति-परिचय (क) निरयावलियाओ मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति जेसलमेर भंडार की ताडपत्रीय (फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र २५ व पृष्ठ ५० हैं। फोटो प्रिंट के पत्र है । एक पत्र में ६ पृष्ठों के फोटो है। किसी में न्यूनाधिक भी है । प्रत्येक पत्र १२ इंच लम्बा व ३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में पाठ की पांच पंक्तियां हैं, किसी पत्र में दो-दो तीन-तीन पंक्तियां भी हैं। कहीं-कहीं पंक्तियां अधूरी भी हैं । प्रत्येक पंक्ति में करीब ४५ से ५० तक अक्षर है। प्रति के अंत में प्रशस्ति नहीं है। (ख) निरयावलियाओ मूलपाठ (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र १६ तथा पृष्ठ ३८ हैं । प्रति १३३ इंच लम्बी व ५ इंच चौड़ी है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ७१ से ७५ तक अक्षर हैं । प्रति काली स्याही से लिखी हुई है। प्रति के मध्य भाग में बावड़ी व उसके बीच में लाल स्याही का टीका लगा हुआ है। लेखन संवत् नहीं है। परन्तु उसके साथ की प्रति के आधार पर अनुमानित १६ वीं शताब्दी की है। प्रति सुंदर, स्पष्ट तया शुद्ध लिखी हुई है। (ग) निरयावलियाओ टब्बा (हस्तलिखित) यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय, लाडनूं की है। इसके पत्र ६३ तथा पृष्ठ १२६ है। प्रत्येक पत्र में पाठ की ७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में अक्षर करीब ३५ से ४५ तक हैं। यह प्रति १०३ इंच लम्बी तथा ४३ इंच चौड़ी है । लिपि सं० १८३३ । (ब) निरयावलियाओ वृत्ति (हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र हैं। यह १३३ इंच लंबी ५ इंच चौड़ी है । लिपि संम्वत् १५७५ है । (मव) मुद्रित वृत्ति ____ए. एस. गोपाणी एण्ड वी. जे. चोकसी। प्रकाशित-शंभूभाईजगसीशाह, गुर्जर ग्रन्थरल कार्यालय, गांधी रोड़ अहमदाबाद प्रकाशन १९३४ । सहयोगानुभूति जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहत प्राचीन है। आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ की चार वाचनाएं हो चुकी हैं । देवद्धि गणि के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। अनेक वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्य श्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक बाचना के लिए प्रयत्न भी किया था। परंतु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्तत हम उसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसंधानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थ दृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य आरंभ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्य श्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन कर्म के अनेक अंग हैं .. पाठ का अनुसंधान, भाषान्तर, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्य श्री का सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा गुरुतर कार्य में प्रवृत होने का शक्ति-बीज है । मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं । प्रस्तुत पुस्तक के अन्तर्गत नौ उपांगो के पाठ-शोधन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी, का पर्याप्त योग रहा है। पण्णवणा में मुनि बालचंदजी, निरयावलियाओ में मुनि मधुकरजी का भी योग रहा है। प्रतिलिपि शोधन में स्व. मन्नालालाजी बोरड़ भी इसमें सहयोगी रहे हैं। पष्णवणा की शब्दसूची मुनि श्रीचन्द जी, जंबुद्दीवपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती की मुनि सुदर्शन जी तथा निरयावलियाओ की मुनि हीरालालजी ने तैयार की है। इस ग्रन्थ के प्रथम परिशिष्ट व इसका ग्रन्थ परिमाण मुनि हीरालाल जी ने तैयार किया है। पण्णवणा व जंबुद्दीवपण्णत्ती की शब्दसूची में क्रमश: साध्वी जिनप्रभाजी व साध्वी चन्दनबालाजी का भी योग रहा है। प्रूफ निरीक्षण में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी. मुनि दुलहराजजी तथा समणी कुसुमप्रज्ञा संलग्न रही है। कहीं मुनि विमलकुमारजी, मुनि सम्पतमलजी भी सहयोगी रहे हैं । पाठ के पुननिरीक्षण के समय मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं । __ आगम बत्तीसी के पाठ-सम्पादन कार्य में नामोल्लेख के अतिरिक्त जिनका यत्किञ्चित् योग रहा है, उन सबके प्रति हम कृतज्ञता वा भाव व्यक्त करते हैं। सम्पादन कार्य में संघीयभंडार के अतिरिक्त एल० डी० इन्स्टीट्यूट अहमदाबाद, श्रीचंद गणेशदास गधैया पुस्तक भंडार सरदाशहर, तेरापंथी सभा सरदारशहर, पूनमचंद बुद्ध मल दूधोडिया छापर, घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़, जैन विश्व भारती ग्रंथालय लाडनूं , जेसलमेर भंडार, इन सब संस्थानों से प्राप्त हस्तलिखित आदर्शों का हमने प्रयोग किया। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने 'नन्दी' की संशोषित प्रति भी हमें उपलब्ध कराई थी। इन सबका योग हमारे कार्य में मूल्यवान बना। आचार्य श्री के वाचना-प्रमुखत्व में आगम-वाचना का जो कार्य प्रारंभ हुआ था उसका एक पर्व संशोधित पाठयुक्त आगम बत्तीसी के साथ सम्पन्न हो रहा है । बत्तीस आगमों का संशोधित पाठ पहली बार विद्वान् पाठकों के लिए सुलभ हो रहा है । यह हमारे लिए उल्लास का विषय है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ " वि. सं. २०१२ उज्जैन में आगम सम्पादन का कार्य प्रारंभ हुआ । उसी वर्ष प्रायः बत्तीस आगमों की शब्द सूचियां तैयार हो गईं। इस कार्य में अनेक साधु और साध्वियां संलग्न हुए । चारचार या तीन-तीन साधु-साध्वियों के वर्ग बने और उन्होंने इस कार्य को शीघ्रता से सम्पन्न किया। मुनि चौथमलजी, सोहनलालजी (चूरू) जैसे प्रोड़ सन्त इस कार्य में लगे वहां उनके सहयोगी के रूप में छोटे-छोटे साधु भी जुट गए एक अभियान जैसा कार्य चला और सब में एक नयी भावना जागृत हो गई। पहले पाठ-शोधन नहीं हुआ था इसलिए उनका पूरा उपयोग नहीं हो सका। शब्द-सूचियां फिर से बनानी पड़ी, किन्तु जो काम हुआ वह अत्यंत श्लाघनीय है । इस सम्पादन की एक उल्लेखनीय बात यह है कि यह सारा कार्य साधु-साध्वियों के द्वारा ही सम्पादित हुआ, किसी मुहस्य विद्वान् का इसमें योग नहीं रहा । आचार्यश्री का नेतृत्व और तेरापंथ धर्मसंघ का संगठन ही इसके लिए श्रेयोभागी बनता है । आगमविद और संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचंदजी गोठी को इस अवसर पर विस्मृत नहीं किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता । आगम के प्रबन्ध सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया (कुलपति जैन विश्व भारती) प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालात कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर वे अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष खेमचंदजी सेठिया और मंत्री श्रीचंद बेगानी का भी इस कार्य में योग रहा है। संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद डा. नथमल टांटिया ने तैयार किया है। एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की सम प्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारप्रति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है । अणुव्रत भवन (दिल्ली) २२ अक्टूबर, १९८७ युवाचार्य महाप्रज्ञ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका पण्णवणा नाम-बोध प्रस्तुत ग्रन्थ में नौ उपांग हैं। उसमें पहला है पण्णवणा (प्रज्ञापना)। इसमें जीव और अजीव इन दो तत्त्वों का विस्तार से प्रज्ञापन किया गया है। इसके प्रथम पद का नाम प्रज्ञापना है। संभवतः इस आदि पद के कारण ही इसका नाम प्रज्ञापना रखा गया है। प्रज्ञापना का एक कार्य प्रश्नोत्तर के माध्यम से तत्त्व का प्रतिपादन करना है। प्रस्तुत आगम में प्रश्नोत्तर के द्वारा तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। इसलिए भी इसका नाम प्रज्ञापना हो सकता है। प्रारंभिक गाथाओं में इस आगम को "अध्ययन" भी कहा गया है। इससे प्रतीत होता है कि इसका एक नाम 'अध्ययन" रहा है। इसका संबंध दृष्टिवाद (बारहवें अंग) से है इसलिए इसे दृष्टिवाद का नि:स्यन्द या सार कहा गया है। विषयवस्तु प्रस्तुत आगम के ३६ पद हैं। उनमें जीव और अजीव के विभिन्न पर्यायों का प्रतिपादन किया गया है । यह तत्त्व-विद्या का अर्णव-ग्रन्थ है । इसके अध्ययन से भारतीय तत्त्व-विद्या के गहन स्वरूप को समझा जा सकता है । प्रथम पद में वनस्पति जीवों के दो वर्गीकरण उपलब्ध हैं:--प्रत्येकशरीरी और साधारणशरीरी ।' साधारणशरीरी का चित्र समाजवाद का ऐसा अनूठा चित्र है जिसकी मनुष्यसमाज में कल्पना नहीं की जा सकती। इसमें आर्य और म्लेच्छ का विशद वर्णन है।। प्रस्तुत आगम तत्त्व-ज्ञान का आकर-ग्रन्थ है। भगवती अंगप्रविष्ट आगम है और यह उपांग कोटि का आगम है। ये दोनों तत्त्व-ज्ञान की दृष्टि से परस्पर जुड़े हुए हैं। देवधिगणी ने भगवती में प्रज्ञापना के अधिकांश भाग का समावेश किया है। वहां बार-बार "जहा पण्णवणाए" का उल्लेख है। प्रस्तुत आगम के प्रत्येक पद में गूढ़ तत्त्वों की एक व्यूह-रचना सी उपलब्ध है। इसमें लेश्या और कर्म के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं। नन्दीसूत्र में आगमों के दो वर्गीकरण किए गए हैं ...अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य । अंगबाह्य के दो प्रकार हैं .- आवश्यक और आवश्यकव्यतिरिक्त । आवश्यकव्यतिरिक्त के फिर दो प्रकार बतलाए गए है -कालिक और उत्कालिक । प्रस्तुत आगम अंगबाह्य, आवश्यकव्यतिरिक्त और उत्कालिक है।' नंदी में अंग और अंगबाह्य के संबंध की कोई चर्चा नहीं है । आगम-व्यवस्था के उत्तरकाल में अंग और १. पण्णवणा, गा०२ २. वही, , ३ ३. वही, ११३२ ४. नन्दी, ७३-७७ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० अंगबाह्य की संबंध-योजना निर्धारित की गई। उसके अनुसार प्रज्ञापना समवायांग का उपांग है। यह सम्बन्ध-योजना किस आधार पर की गई, यह अन्वेषण का विषय है । यदि प्रज्ञापना को "भगवती" का उपांग माना जाता तो अधिक बुद्धिगम्य होता। रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत आगम "दृष्टिवाद" का निःस्यन्द है, इस उक्ति से यह अनुमान किया जा सकता है कि इसका विषय "दृष्टिवाद" से संग्रहीत किया गया है। इसके रचनाकार आर्य श्याम हैं। वे सुधर्मास्वामी के तेवीसवें पद्रधर थे। वे वाचकवंश की परंपरा के शक्तिशाली वाचक थे। उनका अस्तित्वकाल वीर-निर्वाण की चौथी शताब्दी है। प्रस्तुत आगम का रचनाकाल वीर-निर्वाण के ३३५ से ३७५ के बीच का संभव है। नंदी में महाप्रज्ञापना का उल्लेख किया गया है । वह अभी अनुपलब्ध है। महाप्रज्ञापना और प्रज्ञापना दोनों स्वतंत्र हैं। प्रज्ञापना महाप्रज्ञापना का अवतरण है अथवा इसमें कोई नया विषय है, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । बारह उपांगों में प्रज्ञापना का एक विशिष्ट स्थान है। इससे प्रतीत होता है कि इसका रचनाकाल वह है जब पूर्वो की विस्मति हो रही थी और उसके अवशिष्ट अंशों को स्मति शेष थी। वैसे ही समय में “षट्खण्डागम" की रचना हुई थी। शेष उपांग प्रज्ञापना की रचना के उत्तरकाल में लिखे गए थे। उनकी विषयवस्तु के आधार पर यह संभावना की जा सकती है। उमास्वाति का अस्तित्व-काल वीर निर्वाण की पांचवी शताब्दी है । उन्होंने तत्वार्थसूत्र में "आर्या म्लेच्छाश्च" सूत्र लिया है। उसका आधार प्रज्ञापना का पहला पद हो सकता है। वहां जो आर्य और म्लेच्छ की स्पष्ट अवधारणा एवं परिभाषा है वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। इस आधार पर इसका रचनाकाल उमास्वाति से पूर्ववर्ती है। व्याख्या-ग्रंथ प्रस्तुत आगम के व्याख्या-ग्रंथ अनेक हैं। सबसे पहला ग्रन्थ हरिभद्रसूरि का है ! व्याख्या-ग्रन्थ की तालिका इस प्रकार है:व्याख्या-ग्रंथ ग्रन्थान ग्रन्थकर्ता समय (वि० सं०) १. प्रदेशव्याख्या ३७२८ हरिभद्रसूरि ८ वीं शताब्दी २. तृतीय पद संग्रहणी १३३ अभयदेवसूरि १२ वीं शताब्दी का पूर्वाध ३. विवृति १४५०० मलयगिरि १३ वीं शताब्दी ४. अभयदेवसूरि कृत तृतीयपद कुलमण्डनगणी १८ वीं शताब्दी संग्रहणी अवचूणि ५. बृत्ति সকান १. प्रज्ञापना, वृ०प० ४७-१. आर्यश्यामो यदेव ग्रन्थान्तरेष आसालिगा प्रतिपादकं गौतमप्रश्न भगवन्निर्वचनरूपं सूत्रमस्ति तदेवागम बहुमानतः पठति । प्रज्ञापना, ३० प०७२–भगवान् आर्यश्यामोऽपि इत्थमेव सूत्रं रचयति ।" २. तस्वार्थ सूत्र ३।३६ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. वनस्पति सप्ततिका अथवा वनस्पति विचार मुनिचन्द्र पद्मसूरि धनविमल अनुमानित १७ वीं शताब्दी जीवविजय १७८४ १८७६ ५५० १८७८ इनके अतिरिक्त प्रज्ञापना से संबद्ध कुछ लघुकाय ग्रन्थों का विवरण मिलता है। मुनि पुण्यविजयजी ने हर्षं कुलगणी द्वारा विरचित "बीजक" का उल्लेख किया है ।' मुनिपुण्यविजयजी द्वारा लिखित प्रज्ञापना की प्रस्तावना तथा "जिनरत्नकोश" में "पर्याय" का भी उल्लेख मिलता है। "जिनरत्न कोश" में प्रज्ञापना सूत्र सारोद्धार' का भी उल्लेख मिलता है । ७. अवचूरी ८. बालावबोध ६. बालावबोध १०. स्तबक ११. पण्णवणानी जोड़ ३१ ७१ परमानन्द जयाचार्य आचार्य मलयगिरि ने अपनी विवृति में चूर्णि और 'वृद्धव्याख्या' का उल्लेख किया है । चूर्णि अभी अनुपलब्ध है । उपलब्ध व्याख्याओं में सबसे बड़ी व्याख्या आचार्य मलयगिरि की है । मौलिक और आधारभूत व्याख्या आचार्य हरिभद्रसूरि की है । जंबुद्दीपण्णत्ती १२ वीं शताब्दी नाम-बोध प्रस्तुत आगम का नाम जंबुद्दीवपण्णत्ती ( जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ) है । प्रज्ञप्ति का अर्थ है व्याकरण, उत्तर या निरूपण । इसमें जम्बूद्वीप का व्याकरण है इसलिए इसका नाम जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति है। स्थानांग में चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियों का उल्लेख है. १. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूरप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ४. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति 'कसायपाहुड' में प्रज्ञप्तियों को 'दृष्टिवाद' के प्रथम भेद 'परिकर्म' के पांच अधिकार माना गया है- १. चन्द्रप्रज्ञप्ति २. सूरप्रज्ञप्ति ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४. द्वीपसागर प्रज्ञप्ति ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति । नंदी में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को कालिक आगम के वर्गीकरण में रखा गया है ।" १. पण्णवणा सुत्तं, भाग २, प्रस्तावना पृ० १५८ २. वृत्ति प० २६६ - आह च चूर्णिकृत् । वृ० प० २७१ - आह च चूर्णिकृतोऽपि । वृ० प० २७२ यत आह चूर्णिकृत् । वृ० प० २७७ आह च चूर्णिकृत् । वृ० प० ५१७ - 'प्रज्ञापनायाश्चूणौं । वृ० प० ६०० – तत्रैवं वृद्धव्याख्या । ३. ठाणं, ४११८६ ४. कसा पाहुड़, प्रथम अधिकार – पेज्जदोसविहत्ती, पृ० १३७ “परियम्मे पंच अत्याहियारा - चंदपण्णत्ती सूरपण्णत्ती जंबुद्दीवपण्णत्ती दीवसायरपण्णत्ती विमाहपण्णत्ती चेदि ।" ५. नन्वी, ७८ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ विषय-वस्तु - इसका मुख्य प्रतिपाद्य जम्बुद्वीप है। पारिपार्श्विक विषयों की सूची बहत लंबी है। भगवान ऋषभ, कुलकर, भरत चक्रवर्ती, कालचक्र, सौरमण्डल आदि अनेक विषय इसमें प्रतिपादित हैं। इनमें भरत चक्रवर्ती का वर्णन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। चक्रवर्ती के चौदह रत्नों और नौ निधियों का वर्णन बहुत ही सजीव है। कालचक्र के वर्णन में वर्तमान अवसर्पिणी के छठे अर का जो वर्णन है वह बहुत रोमाञ्चक है । प्रलय की जितनी भविष्य वाणियां उपलब्ध हैं, उनमें यह सर्वाधिक ध्यानाकर्षण करने वाली है। इसे पढ़ते-पढ़ते अणुयुद्ध की विभीषिका सामने आ जाती है। भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर में बहुत एकरूपता रही है। भगवान् ऋषभ को आदिकाश्यप और भगवान् महावीर को अन्त्यकाश्यप कहा जाता है। भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर दोनों ने पंच महाव्रत धर्म का प्रतिपादन किया था। भगवान महावीर की भांति भगवान् ऋषभ भी एक वर्ष से कुछ अधिक समय तब सवस्त्र रहे. फिर अचेल हो गए। भरत चक्रवर्ती काच के महल में बैठे थे। वे काच में अपना प्रतिबिंब देख रहे थे । देखते-देखते उन्हें कैवल्य प्राप्त हो गया। उत्तरवर्ती ग्रन्थों में इस कथा का विकास हुआ है। अंगुली की अंगूठी गिर जाने पर सौन्दर्य की कमी का अनुभव हुआ और उस चितन की गहराई में गए, अन्तत: केवली हो गए। योगलिक व्यवस्था की समाप्ति, समाज और राज्य-व्यवस्था के प्रारंभ का सुन्दर चित्र प्रस्तुत आगम में उपलब्ध है। भगवान् ऋषभ के सर्वतोमुखी व्यक्तित्व को समझने के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका "श्रीमद्भागवत" में वणित ऋषभ के साथ तुलनात्मक अध्ययन करना बहुत महत्त्वपूर्ण प्रस्तुत आगम सात अध्यायों में विभक्त है । इन अध्यायों को "वक्खारो" या "वक्षस्कार" कहा गया है। उनके विषय इस प्रकार हैं---- १. जम्बूद्वीप २. कालचक्र और ऋषभ-चरित ३. भरत-चरित १. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २११३०-१३७ २. धनञ्जय नाममाला, ११४, पृ० ५७ वर्षीयान् वृषभो ज्यायान् पुनराधः प्रजापतिः । ऐक्ष्वाकुः काश्यपो ब्रह्मा गौतमो नाभिजोऽग्रजः ॥ धनञ्जय नाम माला, ११५, पृ० ५८ सन्मतिमहती:रो महावीरोऽन्त्यकाश्यपः । नाथान्वयो वर्षमानो यत्तीर्थमिह साम्प्रतम् ।। ३. जंबुद्दीवपण्णत्ती, २१६६ ४. वही, ३१२१२, २२२ ५. आवश्यक चूणि, पृ० २२७ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ ४. जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन ५. तीर्थकर का जन्माभिषेक ६. जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति ७. ज्योतिश्चक्र रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत आगम उपांग के वर्गीकरण का ग्रन्थ है। इससे यह स्पष्ट है कि इसकी रचना भगवान् महावीर के निर्वाणोत्तर काल में हुई है । इसके रचनाकार कोई स्थविर थे । उनका नाम अज्ञात है। रचना का काल भी ज्ञात नहीं है। जीवाजीवाभिगम स्थविरों द्वारा कृत है। उसमें कल्पवृक्षों का विस्तृत वर्णन है। इसमें उनका संक्षिप्त रूप उपलब्ध है । विस्तार की सूचना 'जाव' पद के द्वारा दी गई है। ____ इससे प्रतीत होता है कि यह जीवाजीवाभिगम के उत्तरकाल की रचना है। संभवतः श्वेताम्बर और दिगम्बर का स्पष्ट भेद होने के पूर्व काल की रचना है । जंबुद्वीप के विषय में दोनों परंपराओं में प्रायः ऐकमत्य है। इस आधार पर इसका रचनाकाल वीर निर्वाण की चौथी-पांच वीं शताब्दी के आस-पास अनुमित किया जा सकता है। व्याख्या-ग्रन्थ प्रस्तुत आगम पर नो व्याख्याएं उपलब्ध हैं। उनमें केवल शांतिचन्द्रीयवृत्ति मुद्रित है, शेष अप्रकाशित हैं । शान्तिचन्द्र ने यह उल्लेख किया है कि मलयगिरि की टीका काल-दोष से विच्छिन्न हो गई है। किन्तु आधुनिक विद्वानों ने उसे खोज निकाला है। वह जैसलमेर के भण्डार में उपलब्ध है। शान्तिचन्द्रीय और पुण्यसागरीय वृत्ति में चणि का भी उल्लेख है।' इन व्याख्या-ग्रन्थों की तालिका इस प्रकार है-- ग्रन्थ সথায় कर्ता रचनाकाल १. चूणि अज्ञातकर्तृक २. टीका (प्राकृतभाषा) हरिभद्रसूरि ३. टीका मलयगिरि ४. वृत्ति १४२५२ हीरविजयसूरि वि० सं० १६३६ ५. वृत्ति १३२७५ पुण्यसागर ६. टीका (प्रमेयरत्नमञ्जूषा) १८००० शान्तिचन्द्र १. शान्ति चन्द्रोया वृत्ति पत्र २ --तत्र प्रस्तुतोपाङ्गस्य वृत्तिः श्रीमलयगिरिकृताऽपि संप्रति काल दोषेण व्यवच्छिन्ना। २. द्रष्टव्य, जैन रत्नकोश, पृ० १३० ३. शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १६, परिध्यानयनोपायस्त्वयं चणिकारोक्तः । वृ० ५० ५३, २५२, २७८ । पुण्यसागरीयवृत्ति, पत्र १२२-.-."एतच्चू! च।" Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. टीका १५००० ब्रह्ममुनि ८. वृत्ति १८३५२ धर्मसागर और वानरऋषि " १६३६ ६. वृत्ति अज्ञातकर्तृक __गुजराती भाषा में धर्मसीमुनि ने इस पर स्तबक (टब्बा या बालावबोध) भी लिखा है। इन व्याख्या-ग्रन्थों की अधिकता से प्रतीत होता है कि प्रस्तुत आगम बहुत पठनीय रहा है। चन्दपण्णत्ती और सूरपण्णत्ती नाम बोध स्थानांग में चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियां बतलाई गई हैं। उनमें प्रथम प्रज्ञप्ति का नाम चन्द्रप्रज्ञप्ति और दूसरी का सूरप्रज्ञप्ति है । कषायपाहुड में भी इसी क्रम से नामोल्लेख मिलता है। प्रथम प्रज्ञप्ति में चन्द्र की वक्तव्यता है, इसलिए उसका नाम चन्द्रप्रज्ञप्ति है और द्वितीय प्रज्ञप्ति में सूर्य की वक्तव्यता है, इसलिए उसका नाम सूरप्रज्ञप्ति है। विषय-वस्तु आगम की प्राचीन सूचियों से पता चलता है कि चन्द्रप्रज्ञप्ति और सुरप्रज्ञप्ति दो आगम हैं। 'नन्दी' की आगम सूची में चन्द्रप्रज्ञप्ति को कालिक और सूरप्रज्ञप्ति को उत्कालिक बतलाया गया है।' इस भेद का हेतु क्या है, यह अभी अन्वेषणीय है । चन्द्रप्रज्ञप्ति वर्तमान में प्राय: उपलब्ध नहीं है। उसका थोड़ा-सा प्रारंभिक भाग मिलता है । यद्यपि कुछ हस्तलिखित आदर्श 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' के नाम से उपलब्ध होते हैं और कुछ आदर्श सूर्यप्रज्ञप्ति के नाम से मिलते हैं, किन्तु प्रारंभिक सूत्र को छोड़कर इनका पाठ एक जैसा है । आचार्य मलयगिरि ने इन दोनों की व्याख्याएं लिखी हैं, उनमें भी प्रायः समानता है। वर्तमान धारणा के अनुसार चन्द्रप्रज्ञप्ति आज उपलब्ध नहीं है । जो उपलब्ध है, वह सूरप्रज्ञप्ति है । डा. वाल्टर शुकिंग ने एक प्रकल्पना प्रस्तुत की है--सूरप्रज्ञप्ति के १० वें पाहड़ से आगे सूर्य की अपेक्षा चन्द्र और ताराओं को अधिक महत्त्व दिया गया है अतः हम यह अनुमान करते हैं कि दसवे पाहुड़' से चन्द्रप्रज्ञप्ति का प्रारम्भ हुआ है।" किन्तु चन्द्रप्रज्ञप्ति की समग्र विषयवस्तु की जानकारी के अभाव में शुब्रिग के निष्कर्ष को सहसा निर्णायक नहीं माना जा सकता । फिर भी उसमें विचार के लिए अवकाश है। व्याख्या-ग्रंथ चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूरप्रज्ञप्ति दोनों पर मलयगिरि-कृत टीकाएं उपलब्ध हैं। दोनों टीकाएं प्राय: समान हैं। उनमें जो अन्तर है, वह परिशिष्ट में दिया हुआ है। जिनरत्नकोश' के अनुसार चन्द्रप्रज्ञप्ति की टीका का ग्रन्थाग्र ६५००" तथा सूरप्रज्ञप्ति की टीका का ग्रन्थाग्र ६००० है। भद्रबाह-कृत १. ठाणं, ४११८६ २. कषायपाहुड़, प्रथम अधिकार, पेज्जदोसविहत्ती, पृ० १३७ ३. नंदी, ७७, ७८ ४. Doctrine of the Jains P. 102 ५. जिनरत्नकोश, पृ० ११८ ६. वही पृ० ४५२ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियुक्तियों में सूरप्रज्ञप्ति की नियुक्ति का उल्लेख है। किन्तु वह मलयगिरि के समय में अनुपलब्ध थी। उन्होंने अपनी टीका में पूर्वाचार्यों के मत का भी उल्लेख किया है।' निरयावलियाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम एक श्रुतस्कन्ध है । इस का प्राचीनतम नाम उपांग प्रतीत होता है । जम्बूस्वामी ने उपांग का क्या अर्थ है, यह प्रश्न पूछा । सुधर्मा स्वामी ने इसके उत्तर में कहा-उपांग के पांच वर्ग हैं -निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा ।। 'उपांग' शब्द का बहुवचन में प्रयोग किया गया है। उपांग पांच वर्गों का एक श्रुतस्कन्ध है। इसलिए संभवत: बहुवचन का प्रयोग किया गया है। इसका मूल अंग कौन-सा है, इसके बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है । वर्तमान में प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध के लिए "उपांग' शब्द प्रचलित नहीं है। अभी 'उपांग' शब्द के द्वारा बारह आगमों का संग्रहण है। 'नन्दी' सूत्र की आगमसूची में 'उपांग' शब्द का उल्लेख नहीं है। वहां 'निरयावलिया' आदि पांचों स्वतंत्र आगम के रूप में उल्लिखित हैं । अनुमान किया जा सकता है कि 'नन्दी' सूत्र की रचना के उत्तरकाल में पांचों आगमों की एक श्रुतस्कन्ध के रूप में व्यवस्था की गई और श्रुतस्कन्ध का नाम 'उपांग' रखा गया। प्रो. विन्टरनित्ज के अनुसार ये पांचों आगम निरयावलिका के नाम से प्रसिद्ध थे। अंग और उपांग की व्यवस्था के समय से वे अलग-अलग गिने जाने लगे। 'निरयावलिया' का दूसरा नाम ‘कल्पिका' मिलता है। नंदी के कुछ आदर्शों में वह उपलब्ध है । आचार्य हरिभद्रसूरि और आचार्य मलयगिरि ने नंदी की वृत्ति में 'कल्पिका' का ही उल्लेख किया है।' यह संभावना की जा सकती है कि 'उदंगा' के प्रथम वर्ग का नाम 'कल्पिका' था, किन्तु नरक-परिणाम वाले कमों का वर्णन होने के कारण इसका दूसरा नाम 'निरयावलिका' रख दिया गया । इस प्रकार प्रथम वर्ग के दो नाम हो गए--निरयावलिका और कल्पिका। विषय-वस्तु निरयावलिका श्रुतस्कन्ध का प्रतिपाद्य विषय है—शुभ-अशुभ आचरण, शुभ-अशुभ कर्म और उनका विपाक । १. आवश्यक नियुक्ति, गाथा ८५ २. सूर्यप्रज्ञप्ति, वृत्ति पत्र, १, गाथा ५ अस्या नियुक्तिरभूत् पूर्व श्रीभद्रबाहुसूरिकृता। कलिदोषात् साऽनेशद्, व्याचक्षे केवलं सूत्रम् ॥ ३. सूर्यप्रज्ञप्ति, व. प०१६८.-."तदेवं यथा पूर्वाचायरिदमेव पर्वसूत्रमवलम्ब्य पर्वविषयं व्याख्यानं कृतं तथा मया विनेयजनानुग्रहाय स्वमत्यनुसारेणोपदशितम ।" ४. निरयावलियाओ १४, ५ ५. History of Indian Literature, Second edition, Vol II PP. 457-458 ६. नन्दी, सूत्र ७८ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ प्रथम वर्ग में चेटक और कोणिक के भयंकर युद्ध का वर्णन है इसका उल्लेख भगवती और आवश्यक चूर्ण' में भी मिलता है। बौद्ध साहित्य में भी इस युद्ध का उल्लेख मिलता है। यह आश्चर्य का विषय है कि इतिहास में इस युद्ध का कोई उल्लेख नहीं है । युद्ध आत्मरक्षा से लिए अनिवार्य हो सकता है। उस हिसा को एक गृहस्थ के लिए आवश्यक कहा जा सकता है । फिर भी हिंसा हिंसा है, उसे अहिंसा नहीं माना जा सकता । प्रस्तुत वर्ग में यह युद्धविरोधी स्वर उभरकर सामने आया है और वह युद्ध को धार्मिक रूप देने के प्रतिपक्ष में एक सशक्त उद्घोष है। दूसरे वर्ग में धर्म की आराधना करने वाले श्रेणिक के दस पौत्रों की सद्गति का वर्णन है। तीसरे वर्ष में संयम और सभ्यवत्व की आराधना और विराधना का प्रतिपादन है। चौथे वर्ग में पार्श्वनाथ की दश शिष्याओं का निरूपण है। पांचवें वर्ग में वृष्णिवंश के बारह राजकुमारों की चारित्र आराधना और 'सर्वार्थसिद्धि' में उत्पत्ति का निरूपण है। इस प्रकार इस लघुकाय उपांग या निश्यावलिका तस्कन्ध में अनेक रुचिपूर्ण एवं महत्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन हुआ है । रचनाकार और रचनाकाल प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध के रचनाकार और रचनाकाल के बारे में कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है । यह अंगबाह्य श्रुतस्कन्ध है । इससे यह निश्चित है कि यह किसी स्थविर की रचना है । इसमें भगवती, ज्ञाता, उपासकदशः औपपातिक और राजप्रश्नीय से संबंधित विषयों की चर्चा मिलती है। किन्तु इस आधार पर रचनाकाल का निर्णय नहीं किया जा सकता। आगमसूत्रों के व्यवस्थाकाल में पूर्ववर्ती आगमों में उत्तरवर्ती आगमों के नाम उल्लिखित किए गए हैं, अतः वे रचनाकाल के पौर्वापर्य के निर्णायक नहीं बनते । व्याख्या-ग्रन्थ प्रस्तुत श्रुतस्कन्ध पर एक संस्कृत व्याख्या उपलब्ध है। विक्रम संवत् १२२८ में श्री चन्द्रसूरि ने इसकी व्याख्या लिखी थी। वह बहुत संक्षिप्त है। मुनि धर्मसी (धर्मसिंह) ने इस पर गुजराती में एक टब्बा (स्तक) लिखा था। कार्य संपूति प्रस्तुत ग्रन्थ के संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अहर्निश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य संपन्न हो सका है, अन्यथा यह गुस्तर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रमपरायणता, और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है। इनकी कार्यक्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। १. भगवती ७११७३. २१० २. आवश्यकचूणि, भाग २, पृ० १७४ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बलबूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया था। प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा । उन सबको मैं आशीर्वाद देता हं कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो। यह बृहत् कार्य सम्यग् रूप से सम्पन्न हो सका, इसका मुझे परम हर्ष है। -आचार्य तुलसी अणुव्रत भवन (नई दिल्ली) २२ अक्टूबर, १९८७ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Editorial The present volume consists of nine āgamas :- 1. Pappavanā, 2. Jambuddivapannatti, 3. Candapannatti, 4. Sūrapannatti, 5. Nirayāyaliyão, 6. Kappavadim. siyão. 7. Pupphiyao, 8. Pupphacūliyão, and 9. Vanhidasão. The upäřgas are twelve in number. Three upāngas have already been included in the 'Uvangasuttăņi', Part 4, Volume 1. The original text of the remaining nine upangas, with variant readings, has been incorporated in the present volume. "The word index of Angasuttani has already been published as a separate book (Agama śabda-kośa). To provide convenience to readers as well as the research scholars a joint word index of the above-mentioned nine āgamas is appended in this volume. With the publication of this volume, the publication work of all the 32 canons is now over. This Agama-sūtra series at present contains seven volumes as under :-- 1. Angasutiāni, Part I: Āyāro, Süyagado, Thāṇam, Samavão. 2. Angasultāņi, Part II : Bhagaval. 3. Angasultäni, Part III : Näyādhammakahão, Uvasagadasão, Antagadadasão, Anuttarovaväiyadasão, Pannāvāgaraņāim, Vivāgasuyam. 4. Uvařgasuttaņi, Part IV, Volume I: Ovāiyam, Räyapaseniyam, Jiväjiväbhigame. 5. Uvangasuttani, Part IV, Volume II : Pannavaņā, Jambuddivapaņņatti, Candapannatti, Särapannatti, Niraya. valiyão, Kappavadimsiyão, Pupphiyão, Pupphacūliyão, Vanhidasão. 6. Nayasuttăni, Part V: Avassayam, Dasaveāliyam, Uttarajjhayaņāņi, Nandi, Aņuogadārāim, Dasão, Kappo, Vavahāro, Nisihajjhayanam. 7. Agama Sabda Kosa (Angasuttāņi Sabdasüci). Under this series of original texts, the work of editing the other canons too is in progress. They are likely to contain prakirnaka, niryukti and bhâsya. On Mahāvīra Jayanti of 2012 Vikram Samvat (1955 A.D.), Acāryasri Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2018 declared his intention to edit the agamas, and the assignment was taken up in the caturmāsa of the same year. Many obstacles were faced in the work of editing for want of the correct versions. Consequently we thought of correcting the text to begin with. The work was actually started in 2014 V.S. (1957 A D.) and brought to completion in 2037 V.S. (1980 A D.) as follows: Dasavedliyam Vikram Samvat 2014 Uttarajjhayanāni 2016 Nandi, Anuogadārāim Ovãiyam, Rāyapaseniyam 2018 Thānam 2018 Samavão 2018 Suyagado 2019 Nāyādhammakahão 2020 Āyāro, Ayāracula 2022 Uvāsagadasão, Antagadadasão 2026 Anuttarovavāiyadasão 2026 Vipaka 2028 Panhāvāgaraņāim 2028 Nirayāvaliyão 2029 Bhagavai 2030 Pannavaņā 2031 Dasão, Pajjosavaņākappo 2032 Kappo 2033 Vavahāro 2033 Jlvājlvābhigame 2034 Jambuddiva pannatti 2035 Nisihajjhayanam 2035 Candapannatti, Sürapannatti 2037 It is well known to all working in this field that editing is the most difficult job, specially when the texts to be edited are separated by a gap of several millennia in respect of language, style and thought. It is unexceptionally true that a thought or a custom does not continue in its original shape through the ages. It invariably expands or contracts. The story of expansion and contraction is the story of change. What is made up' is necessarily amenable to change. The insistence on the eternality of events, facts, thoughts and customs that are subject to change leads one to untruth and false imagination. The truth is 'what is made up' is necessarily transient. Whether 'made up or 'eternal', it must needs be susceptible of change. Whatever there is must be of a nature that is not absolutely divorced from the stream of eternity and change. It is possible that an idea or truth expressed by a particular word is capable Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8? of being expressed with its original connotation at all times? The semantic change is a necessary phenomenon and so no one with a knowledge of linguistics will insist that a word continues to have the same connotation through a period of two thousand years. For example, the expression păṣaṇḍa has not the same meaning in modern frumonic literature as it had in the times of the Agamas and Ashoka's inscriptions. It has acquired a derogatory nuance. Hundreds of words in the ancient Agama literature have shared the same fate. Under the circumstances, any thoughtful person will appreciate the difficulties in the task of an editor of ancient literature. Self-confidence is an innate virtue of human beings who take great pride in the exercise of their courage, and do not shirk from responsibility however ardous. Were escapism a human virtue, not only the achievement of any enduring value would have been impossible, but whatever had been achieved in the past would have been lost at any time. About a millennium ago, Abhayadevasuri, the great commentator of the nine Angas was confronted with a great many obstacles which he had detailed as follows: (i) Absence of authentic tradition (sampradaya, about the meaning of the texts). (ii) Lack of authentic ratiocination (uh). (iii) Conflicting modes of recitation (vdcand). (iv) Vitiated manuscripts. (v) Unfathomable depth of the sutras. (vi) Differences of opinion (about the readings and the meaning). In spite of all these difficulties and hurdles, he did not draw back from the Herculean task, but on the contrary achieved something that was of a permanent value. Even today the difficulties are not fewer, but as the work of editing has been taken up by Acaryasri Tulsi himself, the task has acquired a new dimension. Any programme that is undertaken by him opens up new vistas, what to speak of the editing of the canonical literature which is by itself full of new possibilities. What is most conspicuous is that Acaryaśri has infused life in the programme through me and my colleagues, monks and nuns, who were quite tyros in the field. Not only are his inarticulate blessings with us but also his concrete guidance and active co-operation are always available to us. He has given priority to the work and devoted plenty of time to it. Under his direction, deliberative counsel and encouragement, we could solve the problems, however formidable, that cropped up from time to time in the course of our difficult enterprise. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ** Procedure adopted in editing the text Pannavana In editing the text of Prajñapana, four Ms. Adarśas were consulted, Acarya Malayagiri's Vṛtti was also used for this purpose. Muni Punyavijaya's edition was also before us. But we do not take for granted a single particular edition or manuscript for our work. The important basic points for us are the critical exposition of the commentary, other parallel agamic texts and the meanings of words. Accordingly, the reader will find many a deliberation in our edition. for the purpose of arriving at correct readings. For example, take the word "ganthi" in 'vatthula kaochula sevala ganthi. Here 'ganth' is incorrect. The correct version should be 'gatthi'. We have come across the reading 'ganthi' alone in all the available manuscripts as also in the agamas edited by Muni Punyavijayaji. This reading has been revised on the basis of Jiväjiväbhigama and Jambudvipaprajñapti. Please refer to the footnote of 1/38 of this agama. Another instance is 'titthagavadite', in place of which some âdaršas contain. the reading as "cautthagavadite", and Muni Punyavijayaji too has accepted the latter reading. But on the basis of the Vitti, we have preferred 'titthäpavadite", which is endorsed by the viti of Pappavana, 5/115,116. Please refer to Prajñāpana Vitti patra 195-196 as also the footnote of Pappavana, 5/115. Jambudvipaprajñapti Seven different texts and three commentaries were consulted in the revision of the text. We find many variant readings and notes thereon in the vṛttis of Upadhyaya Santicandra and Hiravijaya. Please refer to the footnote of 4/159. This agama abounds in variant readings. Upadhyaya Santicandra has described in detail the variant readings, as is evident from the footnote of 2/12. At other 1. Santicandryavṛtti, patra 87: Variation of text-vacanābhedastadgata paripämäntaramaha-mü e dvādaśa yojanāni viskambhena madhye'stayojanani viskambhena upari catvari yojanani viskambhena, atrapi viskambhāyāmatab sadhikatrigupam múlamadhyäntaparidhimanar sūtroktam subodham. atraha paraḥ-ekasya vastuno viskambhādiparimane dvairupyasambhavena prastutagranthasya ca sätiśayasthavirapranitatvena katham nanyataranirnayah ? yadekasyäpi rşabhakutaparvatarya mülădăvaştädiyojanavistṛtatvädi punastraiväsya dvādaśädiyojanavistṛtatvadīti, satyam jinabhaṭṭārakapām sarveṣām kṣāyikajñānavatāmekameva matam mülatab paścāttu kālāntarepa vismrtyädipa'yam vacanābhedab, yaduktam śrimalayagirisüribhirjyotiskarandakavṛttau-"ha skandilācārya pravṛ (tipa)ttau duşşamanubhavato durbhikṣapravṛttyä sädhūnām pathanagunanadikam sarvamapyanesat, tato durbhikşätikrame subhikşapravṛttau dvayoh sanghamelǎpako' bhavat, tadyatha-eko valabhyameko mathurāyām, tatra ca süträrthasaraghatane parasparar vacanābhedo jätab, vismṛtayorhi sūtrarthayoḥ smrtva sanghaṭane bhavatyavasyam vācanābheda" ityadi, tato'trápi duşkaro'nyataranis payah dvayoh paksayorupasthitayoranatiéyijäänibhiranabbinivistamatibhiḥ pravacanãsátanābhtrubhib punyapuruşairiti na käcidanupa pattib. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ places we come across incorrect explanation due to faulty text, as is given in footnote 4:49. Cundraprajñapti and Suryaprajñapri In order to revise the text, we consulted five manuscripts and the vșttis of these agamas. We rarely depended on a particular ādarśa. The complete text of Candraprajñapti is not available. Its variation from Suryaprajñapti has been given in an Appendix. We come across some manuscripts which have passed for Candraprajñapti. Their variant readings are contained in the footnotes of Süryaprajñapti. Nirayavalikā Three manuscripts and the Vitti by Sricandra sūri have been consulted in revising the text of the five chapters of Nirayávaliki. Transformation of Words and Metamorphosis PAŅŅAVAŅĀ 1/14 bendiya beindiya (ka, kha) 1/14 tendiyao teindiya (kha) 1/23 os ussa (ka, ga) 1/29 vāyamandaliya vāumandaliya (ka) 1/35 aikolla aokulla (gha) 1/38 koranțaya korinţaya (ka) korenţa (gha) 1/48/47 balimodao palimodao (ka, gha) 11934 viibhayari viyabhayam (ka, gha) 2/10 padiņa payīņa (ka) paina (kha, ga, gha) 2/13 tadāgesu talāgesu (ka) covathin cosatthim visesahiya visesadhiya (gha, pu) 317 dāhinena dakkhipenam (ka, kha, gha) 3102 vibhangaạånina vibanganāņiņa (ka, ga, gha) 3/127 aheloe aholoe (ga) adheioe (gha) 31174 asātā (kha, ga) 3/182 jaha jadhā (kha, gha) 3/183 sakasai sakasādi (ka) 4255 egunavisam ekūņavisam (ka, gha) ekkūnavisam (kha) 4/275 panuvīsam pancavisam (kha, gha) 2/40 3/1 assātā Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5/5 5/5 5/5 5/7 5/101 5/179 5/242 6/46 8/8 11/6 11/21 11/25 11/30 11/37 11/37 11/72 11/75 11/84 11/88 11/88 12/7 12/7 13/8 15/35 15/35 15/50 15/53 15/58 16/15 16/34 16/51 16/54 16/55 16/55 17/24 jadi mahura" abbhahie "vadie maņusse vaddhijjanti eeDatthepam abhilāvo osanna Panamani vage sayanam sarirapahava voyada avvoyada apamanī parivadḍhamāpāim kadallthambhāpa pisarati bitiyam bhasajjāyam baddhellaya mukke!laya osappinThi aṇāgāro Daggoha sādī pehamape pehati "thiggale "ovacaye ahavege paccatthimillam ayariyam seyansi māulungana tinduyana inatthe paṇavisam jai gati madhur abbhajc abbhatie *padie manuse vuddhijjanti enatthenam ahilão ussanna *anavani vige satanam sa: frappabhava vogada avvogada yanamaul parivadḍhemāņāim kadallkhambhaṇa pissarati pissirati nisarati biyam avasappinihi aṇāyāro" Diggoha sātī pehemäpe peheti "thiggile "ovacate ahavete pacchimillam ayaritam seinsi mātulingana tinduyana ipamatthe (ga) (kha, ga, gha) (pu) (ka, kha) (ka) (pu) (ka) (ka, kha, gha) (ka, ga, gha) (ka, kha) (kha, gha) (ka, ga) (ga) bhāsajaya baddhillaya mukkillaya (ka, kha, ga, gha) (ka) (kha, ga, gha) (ka, kha, ga, gha) (ka) (ka, kha, ga, gha) (ka) (gha) (kha, gha) (ga) (kha) (ga) (gha) (ga) (ka, kha) (ga) (pu) (ga) (kha) (kha, gha) (ka, kha) (pu) (ka) (ka, ga) (ga) (ga) (ka) Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17/106 17/119 17/124 17/125 17/126 17/128 17/132 17/150 18/1 18/56 18/64 suio 20/28 21/25 21/47 21/92 (kha, gha) (ka) (ka, gha) (ka, ga, gha) (kha, ga) (gha) (ga) (gha) (ka, kha, gha) (ka, ga) (ka, ga) (kha, gha) (kha, gha, pu) (ka) (gha) (kha) (ka, gha) (kha) (ka, gha) (ga) (ka, gha) (ka) (ka, gha) (kha, ga) (ka, gha) (kha) (ka, gha) (ka, gha) (ka, gha) (kha) (kha) (ka, ga) (ka, kha, ga, gha) (kha, ga) tinaţthe samabhiloemäņe samabhilotemäße kisha kapha haladharao halahara kairasāre kayarasārae katarasärae bālindagove bålendagope balāhae "balahate apikkānam apakkāņam agarabhāvamätze āgārabhävamayac vede vee vete vaijogi vayajogi sakasai saka sādi sakasāti savanate savapayāte sūyio dhapupuhattam dhanuha puhattam sagāim sagāti sayāim niyacchati nigacchati niggacchati kadassa katassa kayassa niyāgoyassa nitāgotassa khavae khamae aphāsāijja apphāsäijja apadivai apadivādi sagāim sataim sayātim pariyāiyanayā pariyādiņayā pariyâyanaya jāņanti yāṇanti sapariyātā saparicārā JAMBUDDIVAPAŅŅATTI vicchinnä vitthiņņā onauya naotao dhapupaţtham dhapuvattham dhanuputtham 'padoyāre 'padogāre pāsim passim duhā dudhā 2313 23/13 23/22 23/191 28/44 33/1 33/17 34/1 3416 34/15 1/8 1/18 1/23 (a, kha) (a, ka, ba) (a) (kha) (tri, ba) (a, tri, ba) (kha, sa) 1/26 1/28 1/48 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214 hatthassa udú (ka, kha) (tri) 2/4 (pa) 2/14 2/15 2/20 padoyāre meini ittha 2/32 2/70 2/78 2/131 2/133 2/133 (ba) (tri, ba) (a, ba) (ka, kha, sa) (a, kha, ba) (a, kha, ba) (pa) (a, ka, kha, ba, sa) kahaga 'hāsa väkaremāņānam hähàbhüe valīvigaya tolākiti (a) (ka, kha) (tri, sa) (pa) siunha juva 2/133 3/3 3/11 3/11 3/11 3/11 pausiyão babbari bahali kaducchuyao hitthassa udú ūu paçokāre metini yattha ettha kadhaka hassa vāgaramāņāņam hāhābbhūte palivigaya dolākiti dolāgiti tolāgitti rolagati siyaunha jūya vausīyāo pappar! pahali okadicchuya kadecchuya druhai pamhacări rūdhe drudhe pola obālayanda 'tondam antapäle antevāle ovațiasangahiya kinkiņio ajojjham aojjham avojjham sotamani sodāmaņi 'ppakäsam vissuttam 3/20 3/20 3/21 duruhai bambhayāri durúdhe 3/22 3/23 3/24 3/26 bola bālacanda otundam antavāle (ka, kha, tri, ba, sa) (ka, kha, pa, sa) (ka, kha, pa, sa) (a, ba) (a, ba) (kha) (a, ba, sa) (a, ba) (a, tri, ba) (a) (ba) (a, ba) (sa) (ka, pa, sa) (a, tri, ba) (ka, kha) (a, ba) (ka, kha, sa) (a, ba) (ka, kha, pa, sa) (tri) (ka) (kha, sa) (a, ka, kha, tri. ba, sa) (ka, sa) 3/35 3/35 3/35 Spaţtasangahiya okhinkhinio ayojjham 3/35 soyāmaņi 3/35 3/35 oppagāsamo visutam Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3/77 3/117 3/117 3/138 3/178 3/194 3/211 3/214 3/220 3/221 3/223 4/36 4/54 4155 4177 4185 4/86 cindhapatte cindhavatte (ba) mirii omariio (tri) uupa udūņa (a, kha, ba) riduna (ka, sa) "hidayao "hiyaya (a, tri, pa, ba) "hitaya (ka, sa) "hadaya (kha) nihic onihito (a, tri, ba) Onihao (kha, sa) abhiseyapidham abhiseyapedham (a, ba) ganthim ganthim (tri, pa) tisována tisomāna (a, ba) kāgani kákinio (a) käginio (b) kākanio (sa) puvvakaya puvvakaçao (ka, sa) ihāpoha ihăpüha (a, ka, kha, sa) ihāvūha (pu, vī) bāvafthim băsatthim (pa) hrassatarãe hassatare (pa) dakkhinenam dähinepam (tri) harivåsam harivassam (a, pa, ba) sankhatalao sankhadalao (pa, śāvs, puvspā) bāyale pāyāle (a, ba) bāyālise (tri) pisahassa nisaassa (a, ba) sitodā slotā (a, ba) (tri) sioa (pa) viuttare piuttare (ba) nisadbao nisabha (a, ba) nisahao (ka, kha, sa) hemavaya-herannavaya hemavaerannavaya (ka, kha, ba, sa) hemavaya era pavaya (tri) silavantassa nelavantassa (a, ka, kha, ba, sa) saniccari saņímccări (pa) uvavayasabhãe otāvasabhãe jamagão javagão (a, ba) jamigão (kha) dasa daha (a, ka, kha, ba, sa) niyaya pitiya (a, ka, kha, tri, ba, sa) 4187 4191 siodā 4/93 4196 4/102 4/103 4/109 4/140 4/140 (ka) 4/142 4/157 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 85 4/180 4/210 4/231 5/25 (a, tri, ba) (tri) (ba) (a, ba) (ka, kha) (tri) (sa) 5/58 5/58 7/31 7/122 7/126 (ka, kha) (ba) (tri) (a, ba) (ka, kha, pa) (kha) (a, ba) (ka, sa) (kha) (a, ba) (ba) (a, ba, sa) (ka, kha) (a, ba) (tri) (a) (kha, ba) 7/128 8/128 71129 parupparanti paropparanti sayajjala sayañjala palaso valāsa ghanţāpadensuyão ghanţăpadensukā ghanțāpačinsukao ghantāpadissuyā ghanţāpadaysuyao gāyāim gattâm gatäim janpu° jāņuo uddhimuha uddhammuha uddhimuhao bhāviyappa bhāviyāyā abhijiyāiyā abhijidāiya abhijādiya abhijadiya savano samane miyasara magasirao abhii abhiti abivi vahassai pahassati vahapphal kattigi kattiki kittiki kittigi assiņi asini nangulāņam lâögūlānam SURAPANNATTI ihagatassa idagatassa cauruttare caut tare pihula pidhulā puhulo poggala puggalā oyasanthiti totasanthiti oyãe otāe rayanikhettassa ratapikhettassa rātikhettassa sada sata vayam...vadāmo vatam... vatāmo savane samaño sāyam sagam 7/130 7/155 (sa) 7/159 7/178 (ba) (pa) 2/3 2/3 4/3 611 (ga, gha) (ta) (ka) (ta) (ka, ga, gha) (ta, va) (ta) (ka, ga, gha) 6/1 611 811 9/3 10/2 1015 (ga, gha, ţa, va) (va) (ga, gha) (va) Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10/7 10/10 10/77 10/78 10/79 10/87 10,89 10/136 10/147 10/173 14/2 15/31 18/34 20/1 20/2 1/42 1/66 1/72 1/91 1/97 1/97 1/117 1/127 3/115 3/134 4/19 4/21 5/6 5/10 (*) ǎsol asoinnam ādiccehim bamba savage bitiya duvihā tihi päto uvaipävettä sayavi Place kaham ahiyam mehupavattiyam ahe vaiyarie apnaya janavadam úsae piisoenam patthe andolávei nicchuhāvei lecchai suvvayão juyalarh itthä *baosiya savvouya ahevaccam ४६ assoti assodiņņam äticcehim bambha samaņe bidiya duvidha tidhi pado uvadiņävettä uvätiņävettä satävi sadāvi kadham adhiyam ahitam medhunavattiyam adho vaticarie NIRAYAVALIYÃO annada appata janavayam ūsave pitasoetam ppitthe putthe andodávei nicchubhāvei lecchati suvvadão juvalam jugalam titthå pãosiya savvoduya adhevaccam PANNAVANA Text (manuscript) (va) (ga, gha) (va) (ka, ga, gha) DESCRIPTION OF MANUSCRIPTS AND PRINTED VERSIONS PANNAVANA (ta, va) (ka, gha) (ka) (ka, gha, va) (ka, ga, gha) (ta, ba) (ka, ga, gha, va) (ga) (ka, ga, gha) (ka, ga, gha) (ta) (ka, ga, gha) (ka) (ta) (ka) (kha) (kha) (kha) (kha) (ka) (ga) (ka) (ka) (ka) (ka) (kha) (ga) (ka) (ka, ga) (ka, ga) (kha) Punamchand Budhmal Dudhoria, Chhapar. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Size 101 x 41 No. of folios 302 patras Lines per page 11 No. of letters per line 33 to 41 Script Most beautiful and correct. Special information It belongs to 15th century approximately. It ends only with the mention of granthā. gra 7787. PANNAVANA Tabbā (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. Size 94" x 4" No. of folios 465 patras Lines per page No. of letters per line 35 to 39 Script Beautiful Colophon "Pratyakaşaragañanaya anusthapacchandah samānamida granthāgram 7787 pramanam". Six verses of stabaka :-- "Samvat 1778 varșe phālguna mase suklapakse pratipadā tithau ravivāre pandita īśvareņa lipi cakre éri vennātața nagara madhye"-śrirastu kalyanamastu : Subham bhūyallekhakapāthakayoh.” Special Information It contains the text and stabaka. Ms. PANNAVAŅĀ TRIPATHI with Text and Vstti Place Order's Ms. Grantha Bhandara, Ladnun, Size 9% x 411 No. of folios 448 patras Lipes per page 1 to 16 No. of letters per line 37 to 45 Special Information Text is given in the middle, with vịtti up and down. Some pages have vitti alone. Granthägra of text is 7787 and that of vštti is 16000. The Ms. is beautiful and faultless. It must belong to 17th cen. approximately. PANNAVAŅĀ Text (Manuscript) Place Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. 131" x 5" (c) Size Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ No. of folios 138 patras. Lines per page 15 No. of letters per line 60 to 65 Script Beautiful and correct. Special Information Every patra is illustrated in the middle and out of the margin too. It appears to belong to 16th cen. Nothing else is mentioned at the end except 'grantbågram 7787). (a) Variations of Výtti written in Ms. bearing sign. (a) Vğiti (Manuscript) Place Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. No. of folios 159 patras. Special Information Manuscript, Scribing year 1977, Vai. sākha Sukla 10 (99) Variation as approved by Malayagiri. (6) Compliled with 'Pradeśa' commentary by Haribhadra süri'. Publisher --Shri Rşabhadeva Kesarimal, Ratlam, Part I; verses 11 JAMBUDDIVAPAŅŅATTI (3) Jambuddivapaņgatti Text (Manuscript) Place Palm-leaf (photoprint) Ms. of Jaisalmer. Bhandāra, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. No. of folios & pages 164, 328 Lines per page 2 to 6 No. of letters per line 30 to 35 Special Information Some of the lines are incomplete. The Ms. ends only with the mention of Granthāgra 4146. It must be belonging to 14th century in view of its accompany. ing ms. Jambuddivapaņpatti Text (Manuscript) Place Palm-leaf (Photoprint) Ms. belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. No. of folios & pages 97 and 194 Lines per page 2 to 6 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ Letters per line 47 to 50 Script year Samvat 1378 Jambuddivapaņpatti Text (Manuscript) Place Paim-leaf (Photoprint) of Jaisalmer Bhandāra, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshahar. No. of folios & pages 46 & 92 Lines per page 20 Letters per lines 70 to 74 Script year Samvat 1646 Special Information The size of letters is very small. Jambuddivapanpatti Text (Manuscript) Place Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. No. of patras 73 Jambuddïvapanpatti Text (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun No. of folios & pages 101 & 202 Lines per page 13 Letters per line 50 to 55 Special Information Ms. is antiquated and beautifully scribed. Script year is not mentioned. Jambuddivapanpatti Tripathi, Text and Vftti (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. No. of folios & pages 358 & 716 Pages 69-70 missing. Scribing year Samvat 1913 Special Information Original text scribed in the middle, with commentary at top and bottom margin. Script beautifully written. (a ) Vrtti Tripățhi by Hiravijaya Sūri (Manuscript) (tag) Variant readings as approved by Hiravijaya Sūri Place Order's Library, Ladnun. No. of patras 582 Scribing year Samvat 1919 Sepecial Information Original text scribed in the middle and Vịtti at top and bottom margin (a) Vrtti by Mahopädbyāya Punyasāgara, the disciple of Jinahansagani of Kharataragaccha (Manuscript). Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (94) Variant readings as approved by Pupyasagara. Place No. of folios & pages Scribing year Special Information Beautifully scribed. (a) Vitti by Säntyäcärya, the disciple of Hiravijaya Suri of Tapagaccha Order (Manuscript). Place (*) (IT) Scribing year Samvat 1551 () Variant readings as approved by Santyacārya. SORAPANNATTI (*) Surapappatti Text Place Serial No. of Ms. Size No. of folios Lines in each page Letters in each line Ink Scribing year Special Information. ५३ Place Size No. of patras Line in each page Letters in each line Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. 243 and 486 Samvat 1575 Scribing year Special Information. Srichand Ganeshdass Gadhaiya Library, Sardarshahar. Surapannatt!, Original, No. 60 (Manuscript) Place Size No. of patras L D. Institute of Indology, Ahmedabad. Da 2/57 121' x 5° 62 [The first leaf is missing). 13 48 to 70 Picture drawing in Green and Red ink in the centre of each page. Not mentioned. It is beautiful and easily legible. It is a very antiquated Ms. belonging to about 17th century. It ends with 25 verses in Prakrit language. L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. 101" x 41° 87 11 33 to 41 Samvat 1570 Script is beautiful, but abounds in mistakes. Surapannattl, Original, No. 607 (Manuscript) L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. 10" x 4" 66 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Place 11 Lines per page 13 Letters per line 34 to 42 Scribing year Samvat 1673 Special Information Beautiful script but abounds in mistakes. (9) Sürapannatti, Commentary, No. 48. L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. Size 125" x 5 No. of patras 224 Lines per page 13 Letters per line 44 to 60 Scribing year Samvat 1574 Special Information Script beautiful and distinct. CANDRAPRAJN APTI Candapannatti Original No. 600 (Manuscript) Place L.D. Institute of Indology, Ahmedabad. Size 101" x 17" No. of patras 68 Lines per page Letters per line 32 to 41 Scribing year Samvat 1570 Special Information Beautiful script, but abounds in errors. A bävadi in the middle of the page. (a) Candapannatti Commentary (Manuscript) Place Order's Ms. Library, Ladnun. Size 10" X 4' No. of patras 179 Lines per page Letters per line about 50 Scribing year Samvat 1762 Special Information Script beautiful Caadapannatti Țabbá (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnu. No. of patras NIRAYĀVALIYÃO Nirayāvaliyão Text (Manuscript) Place Palin-leaf (Photoprint) copy of Jaisalmer Bhandara, belonging to Madanchand Gauti, Sardarshanar. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 No. of folios & pages 25 & 50. Nine patras are photoprinted. Each page contains photos of six pages. Somewhere it is less or more. Size 12 x Lines per page 5 lines of the text. Some patra contains 2 or 3 lines also. Some lines are even incomplete. Letters per line 45 to 50 Special Information No colophon at the end. Nirayāyaliyão Text (Manuscript) Place Srichand Ganesh dass Gadhaiya Library, Sardarshahar. Size 131x 5' No. of folios & pages 19 & 38 Lines per page 15 Letters per line 71 to 75 Ink Black colour. A bävadi in the middle portion and a thojn Red ink in its centre. Scribing year Not mentioned Special Information It should belong to 16th cen. approximately on the basis of the copy accompanying Nirayāvaliyão Tabbá (Manuscript) Place Ms. Section, JVB Library, Ladnun. No. of folios & pages 63 and 126 Lines per page Letters per line 35 to 45 Size 103" x 41 Scribing year Samvat 1833 Nirayāvaliyão Vịtti (Manuscript) Place Srichand Ganesbdass Gadhaiya Library, Sardarshahar No. of patras Size 13}" x 5" Soribing year Samvat 1575 Printed Vitti Editors A.S. Gopani & V.J. Choksi Publisher Shambubhai J. Shah, Gurjar Granthratna Karyalaya, Gandhi Road, Ahmedabad. Year of publication 1934 A.D. (2) Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acknowledgement of Collaboration The tradition of councils in Jainism is very old. As many as four councils had been held before the period that ended ere a millennium and a half from now. After the time of Devardhigani no well-organised council was held. The Agamas committed to writing in his time were disorganised to a very great extent in this long interval. A fresh council was therefore a desideratum. Ācārya Sri Tulsi made an attempt at holding a Comprehensive Consentaneous Council, but could not succeed. Ultimately we arrived at the view that our Council will serve the same purpose, if it was based on impartial research and complete dedication to the cause of truth. We started our work in accordance with this resolution. The chief inspiration to this council is the Acarya Sri. The council is a deliberative assembly headed by an eminent personality who combines in him. self a variety of functions, the chief among them being teaching and instruction, translation, investigation, critical study, sorting out correct reading and so on. We enjoyed the active cooperation, guidance and encouragement in all these activities from the Acārya Sri. This indeed was our strength and support for undertaking such an arduous task Instead of feeling relieved of the burden by expressing my gratitude to the Acārya Sri, it would be better for me to feel more burdened by the support of his blessing for the future work and responsibility. In editing the text of the nine upãngas in the present volume I received sufficient cooperation from Muni Sudarshanji and Muni Hiralalji. In the work of ascertaining the readings in Pannavanā and Nirayāvaliyão, Muni Balchandji and Muni Madhukarji respectively offered assistance. In preparing the press copy, Late Mannala lji Borad also proved helpful. The work index of Pannavaņā has been prepared by Muni Srichandji, of Jambuddivapannatti, Sūrapannaiti and Candapannatti by Muni Sudarshanji and of Nirayāvaliyão by Muni Hiralalji. The first Appendix and the extent of the text was determined by Muni Hiralalji. In preparing the word indexes of Pannavanā and Jambuddivapaņgatti, Sadhvi Jinaprabhā and Sadhvi Chandanbālā respectively contributed a lot. In proof-reading Muni Sudarshanji, Muni Hiralalji, Muni Dulaharajji and Samaņi Kusumprajña actively cooperated. At certain stages Muni Vimalkumarji and Muni Sampatmalji also proved helpful. Muni Hiralalji was specially engaged in revising the text again. I express sentiments of gratitude for all those, in addition to the names already mentioned, who contributed whatever little they could in editing the text of the 32 agamas. In this task we utilised the muss. belonging to the institutions such as L. D. Institute of Indology, Ahmedabad, Shrichand Ganeshdass Gadhaiya Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pustak Bhandara, Sardarshahar, Terapantha Sabha, Sardarshahar, Punamchand Buddhamal Dudhoriya, Chhapar, Ghewar Pustakalaya, Sujangarh, Jain Vishva Bharti, Ladnun and Jaisalmer Bhandāra, in addition to Order's Bhandāra. The text of Nandi revised by Muni Punyavijayaji was also made available to us. All this provei a valuable assistance to us. An important stage of the publication of the revised text of 32 āgamas, which began under the able stewardship of Ācārya Si Tulsi as Vācanā-pramukha, is completing today. For the first time the revised and authorised version of the 32 āgamas is being made available to the scholars. It is a matter of ineffable joy for us. The work of the editing of agamas first started in V.S. 2012 at Ujjain. In that year the word indexes of almost all the 32 agamas had been prepared. Several monks and nuns were actively engaged in it. Groups, each containing three or four monks or nuns, were formed and they finished the assignment without any loss of time. On the one hand the aged monks like Muni Chauthmalji, Muni Sohanlalji (Churu) etc. were actively engaged in it while on the other hand the younger monks too devoted themselves wholeheartedly to this job, which was like a campaign and every participant was full of the awakening of a new spirit. The text was unrevised so far, so it could not be utilised fully weli. Word-indexes had got to be prepared anew, but whatever line of action was chalked out, was quite commendable. One special and worth-mentioning characteristic of this editing is that everything was done by the monks themselves and no external help from any scholar-householder was required. The whole credit goes to the leadership of Acărya Sri as also to the Terapanth Religious Order. I cannot afford to forget on this occasion the services rendered by the late Madanchandji Gothi who had a very sound knowledge of agamas and was exceedingly helpful in revising the text of agamas. Had he been alive, he would have felt satisfied on the publication of this volume. The Managing Director of the Agama series, Sri Srichand Rampuria (Vice-Chancellor, Jain Vishva Bharti) has been taking interest in this work since its inception. He is ever devoted to the task of popularising the Agamic lore. After retiring completely from his well-established profession, he has been devot. ing a major part of his time to the service of Agama literature. Sri Khemchand Sethia and Sri Srichand Bengani, the President and the Secretary respectively of Jain Vishva Bhart i have cooperated a lot towards the successful completion of this task. The English rendering of 'Editorial' and 'Introduction' has been made by Dr. Nathmal Tatia. The mention of the cooperation of the co-workers in a common enterprise is only a formality. In fact it was a sacred duty of all of us and that we have fulfilled. Anuvrata Bhawan, Delhi. Yuvācārya Mahaprajña 22nd Oct., 1987. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The present volume consists of nine agamas -uvangas-Pantavaņā, Jambuddivapagbatt, Candapappatti, Sarapannatti, Nirayavaliyão (five in number). PANNAVANA The canon under review is Paṛṇavaṇā (Prajñāpanā). It treats extensively the two substances-sentient being (jiva) and insentient being (ajiva). The term used in the beginning is prajñāpana', hence the whole canon bears the name 'Prajñāpanā". One of its aims is to interpret the Reality through QuestionAnswer method, and the same thing has been done in this canonical text. That also justifies its nomenclature as Prajñāpona. In the opening gathās, this agama has been named as 'Adhyayana' which shows that one of its names is 'Adhyayana" also. It relates to Drstivada, the twelfth anga, so it has been called as the essence or niḥsyanda of Drstivada. Subject-Matter It contains 36 topics (padas) which discuss the various aspects (paryayas) of soul (jiva) and non-soul (ajiva). It is like an ocean of the Science of Reality (tativa vidya) through which the deeper meaning of Indian Science of Reality can be appreciated. The first topic (pada) provides two classifications of vegetable-bodied beings-the individual-bodied (pratyekaśarlrl) and commonbodied (sadharanasariri). The common-bodied presents such a unique picture of Socialism which cannot even be imagined in human society. It deals in greater details with the dryas and the mlecchas. This canon is the source book of the Science of Truth (tattvajñāna). Whereas the Bhagavar is an anga-pravista canon, the Pannavana is an Upanga. Both these Agamas are inter-related on account of their common theme of the Science of Truth. Most of the Prajñāpana has been included in Bhagavat! by Devarddhigani, as is evident from the use of Jaha pannavande time and again. Its every pada is like the embodiment of abstruse metaphysical problems. It contains various important sutras about lesya and karma. Nandisutra gives us the two classifications of Agamas-angapravista and 1. Pannavana, gatha 2 21 2. 3 3. 1/32 Introduction " " " Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० angabahya. The former is again twofold-Avasyaka and Avasyaka-vyatirikta. The latter is again classified as kālika and utkálika. Thus Pannṇavaṇā is Angobahya, Avatyaka-vyatirikta and Utkäliku. Nandi does not contain any reference to Anga and Angubahya. In the latter part of the Agama age the interrelation between Anga and Angabahya was determined. Accordingly, Prajñāpana turns to be the upanga of Samaväyänga. On what basis this interrelationship was determined is a matter of research. It would have been all the more intelligible if Prajñāpand had been recognised as Upäriga of Bhagavati. Author and the Period of Composition Pannavand is the sum and substance (nibsyanda) of Drşivdda. We can thus infer that its subject-matter has been derived from Drapivada. Its author is Arya Syama 2 He was the 23rd in lineage from Acarya Sudharmasvami He was a powerful vacaka in the tradition of the lineage of vacakas. He flourished in the 4th century of Vira-nirvana. The date of composition of Punnavand is probably between the year 335 and 375 of Vira-nirvana. Nandi mentions the 'Mahaprajñāpand" which is now extinct. Both Mahaprajñāpand and Prajñāpană are independent works. It cannot be said definitely whether the former is the progenitor of the latter or the latter contains any new topic. Among the twelve updñgas, Prajñāpand holds a unique position. We can guess from this that it was composed at the period when the Purvas were passing into oblivion and their remaining portions alone were in memory Şatkhaṇḍagama too came into existence at such a period. The remaining upangas were composed in the period subsequent to the composition of Prajñapand. All this conjecture has been made on the basis of their subjectmatter. Umāsvāti flourished in 5th century of Vira-nirvana. His Tattvärthasūtra mentions the sutra "äryä mlecchaśca", which must be based on the first 'pada' of Prajñapand. The clearcut idea and definition of 'årya' and 'mleccha' appearing there is net to be found elsewhere. On this basis Pannavaṇā precedes the period of Umåsväti. Commentaries Many commentaries of Pannavana are available. They are as follows:Commentaries Author Haribhadrasūri Abhayadevasūri 1. Pradeśa-commentary 2 Triya-pada-Sangrahant Granthågra 3728 133 1. Nandi, 73-77 2. Prajñāpana Vr, patra, 471, äryasyamo yadeva granthantareşu asaliga pratipädakam gautamapraśnabhagavannirvacanarupam sūtramasti tadevāgama bahumānataḥ pathati. Prajñapana Vr. Patra, 72; bhagavan āryasyamo'pi itthameva sütram racayati. 3. Tattvärthasutra, 3/36 Date 8th Cen. First half of 12th Cen. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tavāna 3. Vivsti 14500 Malayagiri 13th Cen. 4. Abhayadeva's Titium-pada-sangrahoni avacūmi Kulamandariagani 15th Cen. 5. Vyti Anonymous 6. Vanaspoti-siplikā or Vanaspati.' icara Municandra 1/?th Ce: 7 Avucuri Padmasuri S. Bulanabodha . Dhanavimala 17th Cen Jivavijaya Year 1785 10. Stahaka Parmānanda ► 1876 11. Pannuruna ni Joda 550 Jayācārya 1978 In additioa to this, we also find some smaller commentaries of Pannavana. Muni Punyavijaya has meitioned the commentary named “Bījaka' by Harsakulagani'.! In Muni Punyavijaya's "Introduction to Prajñāpana" and in Jinaratnakośa' we find mention of 'puryāya'. "Prajñāpanā-sútra-sároddhara" is also mentioned in Jiniratnakośa'. Acarya Malayagiri mentio:as cūrņi and Vyddhayrakhya in his Vrtti? Cúrņi is untraceable at present. Malayagiri's commentary is the most elaborate among all the available commentariesĀcārya Haribhadra Sūri's commentary is the most origiual and basic too. JAMBUDDIYAPANNATTI Nomenclature This canon is known as Jambuddivapannatti (Jambūdvipaprajñapri). Prajñāpti means exposition, information or treatment. It contains the cxposition of Jambūdvīpa, hence it is called Jambūdvipap ajñapti. Sthānanga sutra mentions four ungabāhya prajñapris---(1) Candraprajñupti, (2) Süryaprajñapti, (3) Jumbidvípaprajñapti, and (4) Drīpasāgaraprajñupti.' In Kasāyopõhudu, projñaptis have been classified as the five arthadhikaras of 'parikarma' which is the first division of Drsțivada-(i) Candraprajñapti, (2) Suryaprajñapti, (3) Jambūdvipuprajñapti, (4) Dvipasāgara prajñapti and (5) Vyākhyāprujñapti.* In Nandi, Jumbūdvipaprujñapti 1. Pannavana Sattam, Part II, Introduction, p. 158 1. Vrati patra, 269: aha ca cürnikt. * 271 : äha ca cürnikrlo'pi. " " 272: yadah cūrniks!. > " 277: aha ca cürnikri. " S7:prajiāpanāyāốcũrno. ” ” 600 : tatrāivam vrddhavyakhya. 1. Thanam, 4/189 2. Kasayepähudla, Adhikara I, pejjadosavihalti, p. 137; parivamme pañca atthähirarā-randapannalla sarapannalli jamhuddivapannatti divasāyarapannarri viyahapannatti cedi. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ has been categorised as Kālika āgama. Subject matter Its main theme is Jambūdvipa. The list of peripheral and incidental topics is very long. Lord Rşabha, Kulakara, Bharata Cakravarti, Kālacakra, Sauramandala, and many others are the subjects dealt with in it. The description about Bharata Cakravarti's fourteen jewels and nine treasures has been described here in a lively manner. Under the 'wheel of eternity' (kalacakra), thrilling account has been given about the sixth spoke of the present descending cycle. Of all the available forecasts about the universal annihilation, it invites our attention most effect ively. By going through it one is confronted with the horrors of the atomic warfare. Both Lord Rşabha and Lord Mahavira have similarity in various respects. The former is called Adi Kāśyapa while the latter is called Antyakāśyapa. Both propounded the path of five Great Vows. Like Lord Mahavira, Lord Rşabha also put on garment for more than a year, followed by absolute nudity.. Bharata Cakravarti was seated in his palace of glass. While he was looking at his reflection in the mirror, he attained liberation. In later literature this incident is developed in a number of ways. At the loss of his finger-ring he felt the diminution of his beauty, which led him to deeper thought culminating into the attainment of a kevalihood. The canon gives us a beautiful picture of the termination of the 'yaugalika' state, and the beginning of social life and political administration, It is a very important document to get a clear idea of the multifaceted personality of Lord Rşabha. A comparative study of the delineation of Rşabha in the present text with that in the Srimadbhagavata is bound to be very fruitful. The canon is divided into seven chapters which are called 'vakkhäro' or ‘vakşaskāra'. Some of the topics are :-- 1. Jambůdvipa 2. Kālacakra & Rşabha-carita 3. Bharata-Carita 4. Jambūdvipa : detailed description 1. Nandi, 78 2. Jambuddivapannatli, 2/130-137 3. Dhananjaya-namamala, 114, page 57 : vharsiyan vrşabho jyäyän punaradyah prajapatih / aik svakuh kasyapo brahma gautamo nabhijo'grajah // Ibid, 115, p. 58: sarmalirmahatirviro mahaviro'ntyakaśyapah/ nathanvayo vardhamano yatirthamika sampratam // 4. Jambuddivapannatti, 2/66 5. Ibid, 3/221,222 6. Avasyakacūrni, p. 227 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 Birth Celebration of Tirtharkara 6. Geographical condition of 7. Syotiścakra. Jambūdvipa Author and Date This canon has been categorised as Upanga which shows that it was composed at a later period after Lord Mahavira's nirvana. Its author must be some anonymous elderly monk. The date of composition too is unknown. Jivājīvābhigame, containing detailed accounts of the Kalpavrkşas, was also composed by the elders. Jambúdvipaprojñupti gives only a brief account of them indicating the details through jāva'. This shows that Jambūdvīpaprajñapti was composed at a later period than that of Jivājīvābhigume. Possibly we may ascribe it to an earlier date than the emergence of a clear-cut distinction between Svetāmbara and Digambara schools which are mostly unanimous about the contents of Jambūdvīpaprajnapti. On this basis we can guess it to belong to the 4th-5th century of Vīranirvana. Commentaries About nine commentaries are available on this canon. Out of them, the V i by Sānticandra alone, has been printed; the remaining ones are unpublished. Sānticandra has mentioned that Malayagiri's commentary was lost with the passage of time, but noderii scholars have traced it out in the Jaisalmer Bhandāra. The Vrttis by Sánticandra and Punyasagara bear the mention of Cūrni. These Commentaries are as follows:--- SN. Canon Granthāgra Author Date 1. Cūrni Anonymous 2. Țikā (in Prakrit) Haribhadrasuri 3. Malayagiri - 4. Vrati 14252 Hiravijayasuri 1639 (Vikram Sam, 5. Vrati 13275 Punyasagara 1645 6. Tika 18000 Sánticandra 1660 (Prumeyaratnamañjūşa) 7. Țikā I 5000 Brahma Muni 8. Vrtti 18352 Dharmasagara and 1639 Vānara Rşi 9. Vriti Anonymous 1. Sänticandra : Vrtti patra 2: "latra prastuto'pārgasya vittih frimalayagirikytapi sampratikāla doseņu vyavacchinna." 2 Sce, Jinaratnakośa, p. 130. 3. (a) Sänticandra. Vrtti patra, 19 : "paridhyānayanopayastyayam cürnikaroktah." (b) Vr. p. 53,252,278. (c) Punyasagari vrtti, patra, 122: "etaccūrno ca." Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Muni Dharmasi has composed stubaka (labbā or bālavabodha) on it ul Gujarati. The abundance of commentaries reveals that this ca.101 was síudied very frequently CANDAPANNATTI AND SŪRAPANNATTI Nomenclature Shānanga mentions four angababya prajñaptis, of which the first is Candraprajñapri and the second is Súrraprujnapti. Kusayapähuda also mentions them in the same order. As the name comiotes, the first prajñapti deals with the moon while the second one deals with the sun, so they are named as Candruprajiapti and Sūryoprajñupti respectively, Subject Matter The list of ūgumes contains both these águmas--Candraprajñupti and Süryaprajñpti. Nandi's Agama-list too tells of Candraprajñapri as Kalika and Süryapruji-pri as Uikalika.“ 'The cause of this distinction demands investigation. The former is not available at prese it but for a very small portion of its beginning. We come across some manuscripts entitled Candrup ajñapri and Süryoprojñapti but their text throughout is identical except the initial sutra. Acārya Maluyagiri has composed cominentaries on both of them did they are almost identical "The general impressio, prevailing at present is that Cundruprujñopri is not at all available these days. Whatever is available is Süryaprajñupti alonc. Dr. Walter Schubring has put forward a conjectureSuryaprajñapti, from its 71 puhuda Ojiwards, ascribes more importance to the moon and ihe stars, so we imagine thui! Candraprajñupri begins from the 10th pāludu.' But in the absence of the whole subject matter of Candruprojiupti, Schubring's conclusions cannot be taken as authoritative outright. Even then there is much toom for consideration. Commentaries Malayagiri's commentaries are availabic On boin-Cund aprajñopli and Süty prujñopii. The commentaries are identical and whatever iheir difference is has been noted in the Appendix. According to Jinaratnak ośu, the granthägra of the commentaries of these agamus is 9300 and 9000% respectively. Bhadrabāhu's Nirvukiis mention the Niryukti on Sú paprajñop i,? which was, liowever, 1101 1. Thunani, 41189. 2 Kasayapāhida, Chapter 1-"pejjuulosa rihatti". p. 137 3. Nandi, 77,78 4. Schutring : The Doctrine of the Juina, p. 102 5. Jinaratnakosa, p. 118 6 Ibid, P 452 7. Avasyaka-niryukti, gatha, 85 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ traceable in Malayagiri's period. He has mentioned the views of his foregoing acāryas also in his commentary. Nomenclature This agama is a frutaskandhu- Its oldest name seems to be upanga Jambusvami enquired of Sudharmäsvami the meaning of upånga, whereon the latter replied "Upanga is fivefold-Nirayavalika, Kolpavatamšikā, Puspikā, Puspacalika, Vrspidasā. NIRAYAVALIYÃO The term 'upanga is here used in plural number. It is a śrutaskandha consisting of five sections. The plural number is probably used on this. reason. We do not know about its original änga. The term 'upangu' is not in vogue at present for the text. Upanga stands for the 'collection of twelve agamas.' Nandi's list of canons does not mention the term 'upanga', but only *Nirayavallyão' etc. are mentioned as five independent aganas. It may be supposed that the five canons were regarded as a śrutaskundha in later times after the composition of the Nandi, and the śrutaskandha was named as upangu. According to Prof. Winternitz, these five agamas were earlier known as 'Nirayavalika'. They were regarded as separate entities when the contents of angas and upangas were determined.4 Nirayavaliyão is also known as kalpika, as we find this in some manuscripts of Nandi. The same term has been used in the vṛtti of Nandi by Acarya Haribhadrasuri and Acarya Malayagiri It is just possible that the first group of the 'uranga was named as "kulpikä, but as it related to the karmas leading to heli, it was given the second name Nirāyāvalikā. In this way, the two names viz. 'Nirayavalika' and 'kalpika originated. Subject-matter The main theme of the Niruyavalika frutaskandha is the auspicious and inauspicious conduct and karma. and their vipäku. In the first section we find the description of fierce battle between Cetaka 1. Vrtti p. 1, gathā 5 usya niryuktirabhatpurvam śribhadrabähusűrikṛtā | kaliloşat sa nesada vyacakse kevalam sütram || 2. Suryaprajñāpti, Vrutip 168: tadevam yathā pūrvácâryairidumeva purvasütramavalamibya purvavişayam vyakhyānam krtam tatha maya vineyajanānugrahāya s.amatyanusarenopadarsitam || 3. Nirayúvaliyão, 1/4,5 4. History of Indian Literature, II Edn, Vol. II, pp. 457-458 5. Nandi, 78 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ and Srenika, which has been referred to not only in the Bhagavarii and the Avaśyaka cūrņi", but in the Buddhist literature too. It is surprising that history does not record this battle. Battle may be indispensable for self-protection, and the consequent violence may be regarded as inevitable for a householder. Even then none can deny that violence is, for all purposes, but violence and it can never masquerade as nonviolence. In the section under review, this anti-war attitude has come to the forefront, and it is a spiritual edict against the religious justification of holy wars. The second section contains the description of the salvation of Sreņika's ten grandchildren, who adopted the path of religious austerities. The third section propounds the obscrvance and non-observance of restraint and equanimity. The fourth section contains the description of the ten nuns (disciples) of Parśvanātha. We find the description of the observance of conduct by the twelve princes of Vţşņi dynasty and their birth in 'Survärthasiddhi' in the fifth section. Thus various interesting and important topics have been propounded in this small-sized upanga, that is, Nirayavalikā śrutaskandha. Author and Date of Composition No definite information is available about the author and the date of composition of this angahāhya śrutaskandha. It is, however, certain that some elderly monk composed it. It deals with the topics related with Bhagavari, jñātā, Upāsakudasā, Aupapātiku and Rajapraśniya, but this is 110t a sufficient ground to determine the date of its composition. When the Āgamas were analysed, it was found that thc earlier agamas contain the names of the later āgamas, so they cannot determine which agamas were composed carlier and which at a later date. Commentaries A Sanskrit commentary is available on this śrutuskandha. Sricandrasuri wrote its commentary, a very abridged piece of composition, in the Vikram era 1228. A fabbá (stabaka) was composed on it in Gujarati by Muni Dharmasi (Dharmasingh). Completion of the Assignment The overall credit of its editing goes to Yuväcărya Mahaprajña. The work has come to successful completion due to the single-mindedness with which he applied himself to the task day and night, without which this gigantic task would have been insurmountable Being a yogi basically, he is able to ever maintain concentration of mind. Engaged as he has been in the cditing of the agamas for a 1. Bhagavati, 7/173,210 2. Avašyaka cúrni, part II, p. 174 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ very long period, he is eminently endowed with the power to penetrate into the deeper mysteries of the canonical texts. Modesty, perseverance and complete dedication to the guru have contributed to the development of these merits in him. Such merits were inherent in him since childhood. Since the time he came to me, I have found gradual intensification of these merits. I have derived utmost satisfaction from his capability and wholehearted devotion to duty. Many other mo: ks also contributed towards the editing of the text of these canons 1 bless them all with the wish that their working capacity may be all the more developed. I had embarked upon this Herculean work of agamas, having complete faith in my disciples--the monks and nuts of the Order. I feel highly satisfied that this gigantic task has been accomplished successfully in a right way. Anuvrata Bhawan, New Delhi, - Acharya Tulsi 22nd October, 1987 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती सू० १ से ३१ सू०१ से ३ सू०१ से २ सू०१ से १० सू०१ पढम पाहुडं बीयं पाहुडं तच्चं पाहुडं चउत्थं पाहुडं पंचमं पाहुडं छळं पाहुडं सत्तमं पाहुडं अट्ठमं पाहुडं नवमं पाहुडं दसमं पाहुडं एक्कारसमं पाहुडं बारसमं पाहुडं तेरसमं पाहुडं चउद्दसमं पाहुडं पण्णरसमं पाहुडं सोलसमं पाहुडं सत्तरसमं पाहुडं अछारसमं पाहुडं एगूणवीसइमं पाहुडं बीसइमं पाहुडं परिसिळं सू० १ सू०१ से ५ सू०१ से १७३ सू० १ से ६ सू०१ से ३० सू० १ से १७ सू० १ से ८ पृ० ५६४ से ६०६ पृ० ६१० से ६१५ पृ० ६१६ से ६१७ पृ० ६१८ से ६२२ पृ० ६२२ पृ० ६२३ से ६२५ पृ० ६२५ पृ० ६२६ से ६२६ पृ० ६३० से ६३३ पृ० ६३४ से ६६१ पृ० ६६२ पृ० ६६४ से ६६८ पृ० ६६६ से ६७१ पृ० ६७२ प०६७३ से ६७५ पृ० ६७६ १०६७७ पृ० ६७८ से ६८३ पृ० ६८३ से ६९३ पृ० ६६३ से ७०५ प०७०६ से ७१२ सू०१ से ६ सू०१ से ३७ सू० १ से ३८ onar से Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती पढमं पाहुडं पढम पाहुडपाहुई उक्खेव-पदं १. तेणं' कालेणं तेणं समएणं मिहिला नाम नयरी होत्था-रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा पमुइयजणजाणवया जाव' पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। २. तीसे णं मिहिलाए नयरीए बहिया 'उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए", एत्थ णं माणिभद्दे नाम चेइए होत्था–वण्णओ ।। ३. तीसे णं मिहिलाए नयरीए जियसत्तू नाम राया, धारिणी नामं देवी, वण्णओ ॥ ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं तम्मि माणिभद्दे चेइए सामी समोसढे', परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ जाव" राया जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए । ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूती नाम अणगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे जाव" एवं वयासी-- पाहुडसंखा-पदं 'कइ मंडलाइ वच्चइ''' ? तिरिच्छा कि व गच्छइ ? ___ ओभासइ केवइयं ? सेयाइ" किं ते संठिई ? ॥१॥ १. अतः पूर्व आदर्शषु णमो अरिहंताणं' इत्येक. ६. ओ० सू० १४,१५ । पदमेव लिखितं दृश्यते । वृत्तौ तद् नास्ति ७. समोसढो (ख)। व्याख्यातम् । अतो नास्माभिस्तन्मूले ८. ओ० सू०७९,८०। स्वीकृतम्। ६. नामति प्राकृतस्वात् विभक्तिपरिणामेन २. रिद्धि (ग,घ)। नाम्नेति द्रष्टव्यम् (सूवृ)। ३. ओ० सू०१॥ १०. ओ० सू० ८२,८३ । ४. एकारो मागधभाषानुरोधतः प्रथमंकवचन- १.किति मंडलाई चरति (ग,घ)। प्रभवः, यथा कयरे आगच्छइ दित्तरूवे । १२. वा (ग,घ)। (उत्त० १२१६) इत्यादी [सूवृ] । १३. सेयाए (ग,ध)। ५. ओ० सू० २-१३ । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पाहुडं ( पढमं पा० ) of पहिया लेसा ? कहं ते ओयसंठिती ? के सूरियं वरयंती ? कहं ते उदयसंठिती ? ॥२॥ कतिकट्ठा पोरिसिच्छाया ? जोगे किं ते आहिए ? के ते संवच्छराणादी ? कइ संवच्छराइ य ॥३॥ कहं चंदमसो बुड्ढी ? क्या ते दोसिणा बहू ? के सिग्घगई वृत्ते ? कह दोसिणलक्खणं ? ॥४॥ चयणोववाते ? उच्चत्ते ? सूरिया कति आहिया ? अणुभावे के व से वृत्ते ? एवमेयाई वीसई ॥ ५॥ पढमे पाहुडे पाहुडपाहुड - पडिवत्तिसंखा-पदं ७. वोच्चे पाहुडे पाहुडपाहुड- पडिवत्तिसंखा-पदं ८. वडोवुड्ढी मुहत्ताणमद्धमंडल संठिई । के ते चिणं परियरइ ? अंतरं किं चरंति य ? ॥१॥ ओगाहइ केवइयं ? केवइयं च विकंपइ ? मंडलाण य संठाणे, विक्खंभो अट्ठ पाहुडा ॥२॥ छप्पंच सत्तेव य, अट्ठ य तिणि य हवंति पडिवत्ती । पढमस्स पाहुडस्स उ, हवंति एयाओ पडिवत्ती ॥ ३ ॥ पवित्तीओ उदए, तह' अत्थमणेसु य । भेयघाए कष्णकला, मुहुत्ताण गईइ य ॥१॥ निक्खममाणे सिग्घगई, पविसंते मंदगईइ य । चूलसीइस पुरिसाणं 'तेसि च पडिवत्तीओ ॥२॥ उदयम्म अट्ठ भणिया, भेयधाए' दुवे य पडिवत्ती 1 चत्तारि मुहुत्तगईए, हुति तइयम्मि पडिवत्ती ॥ ३॥ वसमे पाहुडे पाहुडपाहुड संखा-पदं ह. आवलिय मुहुत्तग्गे, एवंभागा य जोगसा । कुलाई पुण्णमासी य, सण्णिवाए य संठिई ॥१॥ तारगग्गं च या य, चंदमग्गत्ति यावरे । देवताण' य अज्झयणे" मुहुत्ताण नामयाइ" य ॥२॥ १. कधं (ग,घ) । २. कतियं (ख) ३. तधा (ख); तहा ( ग, घ ) | ४. तेसिव णं ( ग, घ ) | ५. भेदग्धाए (सूवृ) । ६. मुहुत्तारिमुहुत्तगतीए ( ग, घ ) । ७. वितिआइ (ख); वित्तायाए ( ग घ ) | ८. तारां (ख); तारसं ( ग, घ ) | ९. देवाण (ख) 1 १०. अझयणा (ख, ग, घ ) । ११. नामज्जाई (ग, घ ) । ५६५ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ दिवसा राइ वृत्ता य, तिहि गोत्ता भोयणाणि' य । आइच्च चार मासा य, पंच संवच्छराइ य ॥३॥ जोइसस्स दाराई, णक्खत्तविजएवि य । दसमे पाहुडे एए, बावीसं पाहुडपाडा ||४|| १०. ता कहं ते वड्ढोवुड्ढी मुहुत्ताणं आहितेति वएज्जा ? ता अट्ठ एगूणवीसे मुहुत्तस ए सत्तावीसं च सट्टिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वएज्जा ।। ११. ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडल उवसंकमित्ता चार चरइ, सव्वबाहिराओ वा मंडलाओ सव्वब्भंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, एस णं अद्धा केवइयं राइदियग्गेणं आहितेति वएज्जा ? ता तिणि छावट्ठे राइदियसए राइदियग्गेणं आहितेति वएज्जा ॥ १२. ता एयाए णं अद्धाए सूरिए 'कइ मंडलाई दुक्खुत्तो चरइ ? ता चुलसीयं * मंडलसयं चरइ-- बासीतं मंडलसयं दुक्खुत्तो चरइ, तं जहा निवखममाणे चेव पविसमाणे चेव, दुवे य खलु मंडलाई सई चरइ, तं जहा सव्वब्भंतरं चैव मंडलं सब्वबाहिरं चैव मंडलं ॥ १३. जइ खलु तस्सेव आदिच्चस्स संवच्छरस्स सई अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सई अट्ठारहुत्ता राती भवति, सई दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सई दुवालसमुहुत्ता राती भवति । पढमे छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, णत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, अत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे, णत्थि दुवालसमुहुत्ता राती । दोच्चे छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुह दिवसे, णत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, अस्थि दुवालसमुहुत्ता राती, णत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे । पढमे वा छम्मासे दोच्चे वा" छम्मासे णत्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे", णत्थि पुण्णरसमुहुत्ता राती" ॥ १४. तत्थ णं को हेतूति वएज्जा" ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवस मुद्दाणं १. आयपाणि ( ख ) ; तोयणाणि (घ ) । २. अष्टादशे आदित्यानामुपलक्षणमेतच्चन्द्रमसांच चारा वक्तव्याः ( सूवृ) । ३. x (घ, ट, व, चंबू ) 1 ४. चिन्हाङ्कितः पाठः द्वयोरपि वृत्योराधारेण स्वीकृतः । आदषु केचिद् भेदा लभ्यन्तेकति मंडलाई चरति (क,ग,घ,व); कइ मंडलाई चरति कइ मंडलाई दुक्खुत्तो चरइ (ट) । कति वा मंडलान्येकवारमिति शेषः ( सूवृ, चंव ) । ५. चूलसिति (ट) ; चूलसीती (व) । ६. वयासीयं (ट) । सूरपणती ७. सयं (ग,घ) 1 ८. राती भवति (क, ग, घ,ट,व); वृत्योरेतत्पदं नास्ति व्याख्यातम् अस्ति क्रियापदस्य विद्यमानतायां नावश्यकमपि विद्यते । ६. दिवसे भवइ (क, ग, घ, ट,व) 1 १०,११. x (क, ग, घ ) प्रथमे षण्मासे द्वितीये वा मासे ( सू व ) 1 १२. दिवसे भवति (क, ग, घ, ट, व, सूवृ); चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्ती एतत् क्रियापदं नास्ति । १३. राती भवति (क, ग, घ,ट, वृ) १४. को हेतूं वदेज्जा ( क ); के हेतुं वदेज्जा (ग,ध, व ) ; को हेउ (ट) । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पाहुडे ( पढमं पा० ) ५३७ सव्वब्भंतराए' 'सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खभेणं, तिणि जोयणसय सहस्साइं सोलस सहस्साइं दोणि य सत्तावीसे जोयणसए तिणि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई अर्द्धगुलं च किचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । ता जया णं सूरिए सव्वमंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहण्णिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छर अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभितरानंतर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरs, 'ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ", तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहि एगट्टिभागमुहुत्तेहि अहिया । से निक्खमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभितरं तच्चं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया' णं सूरिए अभितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चहिं एट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चउहि एगट्टिभाग मुहुत्तेहि अहिया । एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयागंतराओ' तयानंतर मंडलाओ मंडल संकममाणे संकममाणे दो-दो एगट्टिभागे मुहुत्तस्स" एगमेगे मंडले दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे- निवुड्ढेमाणे रयणिखेत्तस्स अभिवुड्ढेमाणे- अभिवुड्ढेमाणे सव्वबाहिरमंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वब्भंतरमंडल पणिहाय एगेणं तेसीएणं राइदिसणं तिष्णछावट्ठे एगट्टिभागमुहुत्ते सए दिवसखेत्तस्स निवुड्डित्ता रयणिखेत्तस्स अभिवृडित्ता चारं चरई, तथा णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहणए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस गं पढमे छम्मासे, एस णं 'पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे | से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे" पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिरानंतर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए वाहिरानंतर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुता राती भवति दोहि एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एट्टिभागमुहुत्ते हि अहिए । से पविसमाणे सुरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं तच्चं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ तथा णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति चउहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहि ऊणा, दुवाल - १. सं० पा० सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं । २. अमीणे (क, ग, घ ) ३. x (क, घ) 1 ४. अधिया ( क ) । ५. जदा (क,घ) 1 ६. द्रष्टव्यम् -- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः ७७६९ सूत्रस्य पाठ: पाठान्तरं च । ७. एगट्टिभागमुहुत्ते (क,ट,व) । तेसीतेणं (कट) । ८. ६. पढमछम्मासस्स (क, ग, घ ) । १०. अयमीणे (क,व); अजमीणे ( ग, घ ) । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ सूरपण्णत्तो मुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए । एवं खलु एएणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे दो-दो एगट्ठिभागमुहत्ते एगमेगे मंडले रयणिखेत्तस्स निबुड्ढेमाणे-निवडढेमाणे दिवसखेत्तस्स अभिवुड्ढेमाणे -अभिवुड्ढेमाणे सव्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसोएणं' राइंदियसएणं तिपिणछावठे एगट्ठिभागमुहुत्ते सए रयणिखेत्तस्स निवुड्डित्ता दिवसखेत्तस्स अभिवुड्डित्ता' चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता रातो भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाण। इति खल तस्सेवं आदिच्चस्स संवच्छरस्स सई अट्रारसमूहत्ते दिवसे भवइ, सइं अटारसमहत्ता राती भवति, सई दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सई दुवालसमुहुत्ता राती भवति । पढमे छम्मासे अत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, गत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, अत्थि दुवालसमहत्ते दिवसे, णत्थि दुवालसमुहुत्ता राती। दोच्चे छम्मासे अत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, णत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, अत्थि दुवालसमुहुत्ता राती, पत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे। पढमे वा छम्मासे दोच्चे वा छम्मासे णत्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे, पत्थि पण्णरसमुहुत्ता राती। णण्णत्थ राइंदियाणं वड्ढोवुड्डीए मुहुत्ताण वा चयोवचएणं, णण्णत्थ अणुवायईए, 'गाहाओ भाणियब्वाओ" ।। बीयं पाहुडपाहुडं १५. ता कहं ते अद्धमंडलसंठिती आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु 'इमे दुवे" अद्धमंडलसंठिती पण्णत्ता, तं जहा - दाहिणा चेव अद्धमंडलसंठिती उत्तरा चेव अद्धमंडलसंठिती ।। १६. ता कहं ते दाहिणा अद्धमंडलसंठिती आहितेति" वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वन्भंतर दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए १. अभिवड्ढेमागे (क,ग,घ,ट,व)। सम्प्रति क्वापि पुस्तके न दृश्यन्ते इति व्यव२. तीयसीएणं (ट))। च्छिन्नाः सम्भाव्यन्ते ततो न कथयितुं ३. अभिवड्डित्ता (क,ग,घ,ट,व) । व्याख्यातुं वा शक्यन्ते, यो वा यथा सम्प्रदाया४. वड्ढोवड्ढीए (क,ग,ध,ट,व) । दवगच्छति तेन तथा शिष्येभ्यः कथनीयाः ५. पगाहाओ भणितब्वाओ' ति अत्र अनन्त- व्याख्यानीयाश्चेति (सूत्र)! रोक्तार्थसंग्राहिका अस्या एव सूर्यप्रज्ञप्तेभंद्र- ६. आहिताति (क,ग,घ,ब)। बाहुस्वामिना या नियुक्तिः कृता तत्प्रतिबद्धा ७. इमा दुविहा (ट,व)। अन्या वा काश्चन ग्रन्थान्तरसुप्रसिद्धा गाथा ८. आहिताति (क,ग,घ)। वर्तन्ते ता भणितव्या:' पठनीयाः, ताश्च १. सू० १।१४। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम पाहुडं (बीयं पा०) ५९६ अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं आयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए अभितराणंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, जया णं सूरिए अभितराणंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगद्विभाग मूहुत्तेहिं अहिया । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए अभितरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभितरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहत्ता रातो भवति चाहिं एगद्विभागमुहुत्तेहिं अहिया। एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सुरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं तंसि-तंसि देसंसि तं-तं अद्धमंडलसंठिति संकममाणे-संकममाणे दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए सव्वबाहिरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ। एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढ़मंसि अहोरसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए बाहिराणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए बाहिरंतरं तच्चं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अट्ठारसमुहत्ता राती भवति चहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहि अहिए। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाण सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं तंसि-तंसि देसंसि तं-तं अद्धमंडलसंठिति संकममाणे-संकममाणे उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए सब्वभंतरं दाहिणं अद्धमंडसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे ॥ १७. ता कहं ते उत्तरा अद्धमंडलसंठिती आहितेति वएज्जा? ता अयं णं जंबूहीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव' परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारस १. सू० १॥१४॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णती मुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहत्ता राती भवति । जहा दाहिणा तहा' चेव, वरं-उत्तरटिओ अभितराणतरं दाहिणं उवसंकमति, दाहिणाओ अभितरं तच्चं उत्तरं उवसंकमति । एवं खलु एएणं उवाएणं जाव' सव्वबाहिरं दाहिणं उवसंकमति, सव्वबाहिरं दाहिणं उवसंकमित्ता दाहिणाओ बाहिराणंतरं उत्तरं उवसंकमति, उत्तराओ बाहिरं तच्चं दाहिणं, तच्चाओ दाहिणाओ संकममाणे-संक्रममाणे जाव सम्वन्भंतरं उवसंकमति तहेव । एस गं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे, गाहाओ॥ १.२. तहा उत्तरा (क) । वृत्ती (पत्र २०) अस्य विषयस्य पूर्णालापको लिखितो दृश्यते। कोष्ठकवर्ती पाठो वृत्तो नोपलब्धः, किन्तु पूर्णपाठानुसारेणं युज्यते, इत्यस्माभिलिखितः। सूत्रालापको यथावस्थितः परिभावनीयः, सच्चैव--से निक्खममाणे सरिए नव संवच्छरमयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्साइपएसाए अम्भित राणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरति, जया णं सुरिए अमितराणंतरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चार चरति तया णं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए अभितरं तच्चं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइं उबसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सरिए अमितरं तच्च उत्तरं अद्धमंडलसंठिई उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं अट्टारसमुहत्ते दिवसे भवति चाहिं एगट्ठिभागमुहत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहत्ता राई भवति चाहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिया, एवं खलु एएण उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं तंसि-तंसि देसंसि तं-तं अद्धमंडलसंठिई संक्रममाणे-संकममाणे उत्तराए अंतराए भागाए तस्साइपएसाए सव्वबाहिरं दाहिणमद्धमंडलसंठिई उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सरिए सव्व. बाहिरं दाहिणं अद्धमंडलसंठिइमबसंकमित्ता चारं चरति तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासम्म पज्जवसाणे । से पविसमाणे सरिए दोच्च छम्मासमयमाणे पढमंसि अहोरत्तसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्साइपएसाए बाहिराणंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइमुक्संकमित्ता चार चरति, ता जया णं मूरिए बाहिराणंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइमुवसंकमित्ता चार चरति तया णं अद्वारसमहत्ता राई भवइ दोहि य एगट्रिभागमहत्तेहि ऊणा, वालसमहत दिवसे भवइ दोहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए। [से पविसमाणे सूरिए दोच्चसि अहोरत्तंसि उत्तराए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए बाहिरंतरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सरिए बाहिरं तच्च दाहिणं अद्धमंडलसंठिति उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमहत्ता राई भवइ चउहि एगट्रिभागमहत्तेहिं ऊणा, दुवालसमहत्ते दिवसे भवइ चउहि एगदिमागमहत्तेहि अहिए । एवं खलु एएणं उबाएणं पवितमागे सरिए तषणंतराओ तयागंतरं तंसि-तंसि देसंसि तंतं अद्धमंडलसंठिई संक्रममाणे-संकममाणे दाहिणाए अंतराए भागाए तस्मादिपदेशाए सम्वन्भंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइमवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सुरिए सम्वन्भतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठिइं उवसंकमित्ता चार चरइ तया णं उत्तमकटूपत्ते उक्कोसए अद्वारसमुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवति (सूव)। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम पाहुडं (तच्च पा०) ६०१ तच्चं पाहुडपाहुडं १८. ता के ते चिण्णं पडिचरइ आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमे दुवे सूरिया पण्णत्ता, तं जहा--भारहे चेव सुरिए, एरवए चेव सूरिए। ता एते णं दुवे सूरिया तीसाए तीसाए मुहत्तेहिं एगमेगं अद्धमंडलं चरंति, सट्टीए-सट्ठीए मुहुत्तेहिं एगमेगं मंडलं संघातेंति । ता निक्खममाणा खलु एते दुवे सूरिया नो अण्णमण्णस्स चिण्णं पडिचरंति, पविसमाणा खलु एते दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स चिण्णं पडिचरंति, तं सतमेगं चोयालं ॥ १६. तत्थ णं' को हेतुति वएज्जा? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सब्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं, तत्थ णं अयं भारहए वेव सूरिए जंबुद्दीवस्स दीवस्स 'पाईणपडिणायताए उदीणदाहिणायताए" जीवाए मंडलं चउवीस एणं सएणं छेत्ता दाहिणपुरथिमिल्लसि चउभागमंडलंसि बाणउति सूरियगताई जाइं अप्पणा चेव' चिण्णाई पडिचरइ, उत्तरपत्थिमिल्लसि चउभागमंडलंसि एक्काणउति सूरियगताई जाइं सूरिए अप्पणा चेव चिण्णाई पडिचरइ । तत्थ अयं भारहे सूरिए एरवयस्स सूरियस्स जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायनाए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउवीस एणं सएणं छेत्ता उत्तरपुरथिमिल्लसि चउभागमंडलसि बाणउति सूरियगताई जाइं सूरिए परस्स चिण्णाई पडिचरइ, दाहिणपच्चथिमिल्लसि चउभागमंडलसि एक्काउणति सूरियगताई जाई सूरिए परस्स चेव चिण्णाइं पडिचरइ । तत्थ अयं एरवए सूरिए जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउवीसएणं सतेणं छेत्ता उत्तरपुरथिमिल्लसि चउब्भागमंडलंसि बाणउति सूरियगताई जाइं सूरिए अप्पणा चेव चिण्णाई पडिचरइ, दाहिणपुरथिमिल्ल सि चउभागमंडलंसि एक्काणउति सूरियगताई जाई सूरिए अप्पणा चेव चिण्णाइं पडिचरइ । तत्थ अयं एरावतिए सूरिए भारहस्स सूरियस्स जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउवीसएणं सतेणं छेत्ता दाहिणपच्चथिमिल्लसि चउभागमंडलंसि बाणउति सूरियगताइं सूरिए परस्स चिण्णाई पडिचरइ, उत्तरपुरथिमिल्लसि चउभागमंडलंसि एक्काणउति सूरियगताई जाइं सूरिए परस्स चेव चिण्णाई पडिचरइ । ता निवखममाणा खलु एते दुवे सूरिया नो अण्णमण्णस्स चिण्णं पडिचरंति । पविस माणा खलु एते दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स चिण्णं पडिचरंति। सतमेगं चोयालं, गाहाओ। १. ४ (क,ग,घ)। ४. सूरियमताई (ग,ध,ट,व) । ५. ४ (क,ध,व)। ३. पाईणपडिणाययउदीणदाहिणायताए (क,ग, ६. चिण्णं (ग,घ,ट,व) प्राय: सर्वत्र । ७. तत्थ गं (ग,क,व)। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ सूरपन्नत्ती चउत्थं पाहुडपाहुडं २०. ता केवतियं एते' दुवे सूरिया अण्णमण्णस्स अंतरं कट्ट चारं चरंति आहिताति' वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ छ पडिवत्तीओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेतीसं जोयणसतं अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा-एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च च उतीसं जोयणसयं अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति' वएज्जा--एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा - एगे एवमाहंसु ३ "एगे पुण एवमाहंसु-ता एगं दीवं एग समुई अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा-एगे एवमाहंसु° ४ एगे पुण एवमाहंसु--ता दो दीवे दो समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा -एगे एवमासु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता तिण्णि दीवे तिण्णि समुद्दे अण्णमण्णस्स अंतरं कटु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा---एगे एवमाहंसु ६ वयं पुण एवं वयामो–ता 'पंच पंच" जोयणाई पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले अण्णमण्णस्स अंतरं अभिवड्ढेमाणा वा निवड्ढेमाणा वा सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा। २१. तत्थ णं को हेतूति वएज्जा? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुदाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते, ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वभंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं 'नवणउति जोयणसहस्साइं" छच्च चत्ताले जोयणसए अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति आहिताति वएज्जा, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति ।। ते निक्खममाणा सूरिया नवं संवच्छरं अयमाणा पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया अब्भितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं नवणति जोयणसहस्साइं छच्च पणयाले जोयणसए पणवीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति आहिताति वएज्जा, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। ते निक्खममाणा सूरिया दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया अभितरं तच्चं मंडलं उवसंक्रमिता चारं चरंति तथा णं नवणवति जोयणसहस्साई छच्च १. ते (क,ग,घ,व)। आनिति बिअत्र कर्त पदे द्विवचनमस्ति तेन 'आहिताति' (आख्याताविति) इति पाठो मूले स्वीकृतः । ३. आहियति (ग,घ,व)। ४. सं० पा० –एवं एगं दोवं एगं समुदं अण्णमण्णस्स अंतरं कटट । ५. पंच (क,ग,घ,ट,व)। ६. णवणवइजोयणसहस्साई (ग,घ,ट,व)। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पाहुडं (पंचमं पा.) इक्कावण्णे जोयणसए नव य एगट्ठिभागे जोयणस्स अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति आहिताति वएज्जा, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहि एगद्विभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चाहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिया। एवं खलु एते णुवाएणं निक्खममाणा एते दुवे सूरिया तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणासंकममाणा पंच-पंच जोयणाइं पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले अण्णमण्णस्स अंतरं अभिवड्ढेमाणा-अभिवड्ढेमाणा सव्वबाहिर मंडलं उवसंकमित्ता चार चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं एग जोयणसयसहस्सं छच्च सट्टे जोयणसए अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे । ते पविसमाणा सूरिया दोच्चं छम्मासं अयमाणा पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, तया णं एगं जोयणसयसहस्सं छच्च चउप्पण्णे जोयणसए छव्वीसं' च एगट्रिभागे जोयणस्स अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चार चरंति आहिताति वएज्जा, तया णं अद्वारसमूहत्ता राती भवति दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए । ते पविसमाणा सूरिया दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिर तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं एग जोयणसयसहस्सं छच्च अडयाले जोयणसए बावणं च एगट्रिभागे जोयणस्स अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरंति, तया णं अट्ठारसमुहत्ता राती भवति चउहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चहि एगट्रिभागमुहुरोहिं अहिए। एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणा एते दुवे सूरिया तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणा-संकममाणा पंच-पंच जोयणाइं पणतीसे एगद्रिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले 'अण्णमण्णस्स अंतरं" निवुड्ढेमाणा-निवुड्ढेमाणा सव्वभंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति, तया णं नवणउति जोयणसहस्साई छच्च चत्ताले जोयणसए अण्णमण्णस्स अंतरं क8 चारं चरंति, तया ण उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे ।। पंचमं पाहुडपाहुडं २२. ता केवतियं ते दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा ? १. इक्कावणे (ग,ध,ट,व)। 'छत्तीसं' इति पदं नास्ति सम्मतम् । २. छत्तीसं (ग,ध); वृत्तिद्वयेपि 'षड्विंशति ३. अण्णमण्णस्संतरं (क,ग,घ) । चैकषष्ठिभागान् योजनस्य इति लभ्यते । तेन ४. आहिताति (क,ग,प)। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ 1 तत्थ एगे एवमाहंसु–ता एग जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं दीव समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ 'आहितेति वएज्जा'२.--एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ता एगं जोयणसहस्सं एगं च चउत्तीसं जोयणसयं दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा--- एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु--ता एग जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं दीवं समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा- एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु --ता अवड्ढे दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जाएगे एवमासु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता किंचि दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सरिए चार चरइ आहितेति वएज्जा-एगे एवमाहंसु ५ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं दोवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसू –ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं जंबुद्दीवं दीवं एग जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता रातो भवति, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं लवणसमुई एग जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकटूपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ १ एवं चोत्तीसं जोयणसयं २ एवं पणतीसं जोयणसय ३ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता अवड्ढे दीवं समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसु–ता जया णं सुरिए सव्वब्भंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं अवड्ढं जंबुद्दीवं दीवं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकटुपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एवं सव्वबाहिरएवि, नवरं -अवड्ढं लवणसमुई, तया णं राइंदियं तहेव ४ तत्थ जेते एवमासु -ता नो किचि दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, ते एवमाहंसू. -ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं नो किंचि दीवं समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमहत्ते दिवसे भवइ, तहेव। एवं सब्वबाहिरए मंडले, नवरं -- नो किंचि लवणसमई ओगाहित्ता चारं चरइ, राइंदियं तहेव, एगे एवमासु ५ वयं पुण एवं क्यामो-ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं जंबुद्दीवं दीवं असीतं जोयणसतं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जण्णिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एवं सव्वबाहिरेवि, णवरं-लवणसमुई तिणि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ट१. प्रज्ञप्तस्तद्यथा (सूव, चं)। पत्तिष्वपि एवमेव दृश्यते । २. दोवं वा (क,ग,घ,ट,व) । ४. क्वचित्तु 'सव्वबाहिरेवी' व्यतिदेशमन्तरेण ३. 'क,ग,घ' आदर्णेषु अयं पाठो नैव दृश्यते, सकलमपि सूत्रं साक्षाल्लिखितं दृश्यते (सूत्र, वृत्योरपि नास्ति व्याख्यात: 'ट' प्रतौ क्वचित- चंवृ)। क्वचित् लिखितोस्ति शेषप्राभूतानां प्रति Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं पाहुडं (छठें पा०) पत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ, गाहाओ भाणियन्वाओ॥ छठे पाहुडपाहुडं २३. ता केवतियं ते एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ सत्त पडिवत्तीओ पण्णताओ। 'तत्थ एगे'२ एवमाहंसु--ता दो जोयणाइं अद्धबायालीसं तेसीतिसतभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चार चरइ आहितेति वएज्जा... एगे एवमाहंसु १ ऐगे पूण एवमाहंसु--ता अड्राइज्जाई जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा-एगे एवमासु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता तिभागूणाई तिणि जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंप इत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा-एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु--ता तिण्णि जोयणाइं अद्धसीतालीसं च तेसीतिसयभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता विकंप इत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा-एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु ता अछुट्टाइं जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा--- एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता चउभागूणाई चत्तारि जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा-एगे एवमाहंस ६ एगे पुण एवमाहंसु-ता चत्तारि जोयणाई अद्धबावण्णं च तेसोतिसयभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सरिए चार चरइ आहितेति वएज्जा-..-एगे एवमाहंसु ७ वयं पुण एवं वयामो-ता दो जोयणाई अडतालीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगं मंडलं एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ ।।। २४. तत्थ णं को हेतुति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुदाणं सव्वभंतराए जाव' परिक्खेवेणं पण्णत्ते, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणंतरं मंडलं उवसंक मित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं दो जोयणाई अडयालीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहत्तेहिं ऊणे दुवालसमुहुता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं बरइ, ता जया णं सूरिए अभितरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं पंच जोयणाई पणतीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स दोहिं राइदिएहिं विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं १. कत्तियं (ग,घ)। ३. अद्धसीतालं (क,व)। २. तत्थेगे (ग,ध)। ४. सू० १११४। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगठ्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया । एवं खलु एतेणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे दो-दो जोयणाई अडतालीसं च एगठ्ठिभागे जोयणस्स एगमेगं मंडलं एगमेगेणं राइदिएणं विकंपमाणे-विकपमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उबसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वब्भंतरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं पंचदसुत्तरजोयणसए विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकठ्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे।। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं दो-दो जोयणाई अडतालीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए। से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरसि बाहिरतच्चंसि मंडलंसि उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं पंच जोयणाई पणतीसं च एगद्विभागे जोयणस्स दोहिं राइंदिएहि विकंपइत्ता चारं चरइ, "तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति चउहि एगट्रिभागमुहत्तेहिं ऊणा, दुवालसमूहत्ते दिवसे भवइ चउहि एगद्रिभागमहत्तेहिं अहिए। एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे दो-दो जोयणाई अडयालीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपमाणे-विकंपमाणे सव्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सन्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ तया णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं पंचदसुत्तरे जोयणसते विकंपइत्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छस्स पज्जवसाणे ॥ सप्तमं पाहुडपाहुडं २५. ता कहं ते मंडलसंठिती आहितेति' वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ अट्र पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थ एगे एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता समचउरंससंठाणसंठिता पण्णत्ता--एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता विसमचउरंससंठाणसंठिता पण्णत्ता--एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता समचउक्कोणसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमासु ३ एगे पुण एवमाहंसु-ता १. सं० पा०-राइदिए तहेव । ३. मंडलवत्ता (ग)। २. आहिताति (क,ग,घ,व).. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०७ पढम पाहुडं (अट्ठमं पा०) सव्वावि मंडलवता विसमचउक्कोणसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमासु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता समचक्कवालसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता विसमचक्कवालसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु-तासव्वावि मंडलवता चक्कद्धचक्कवालसंठिता पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु–ता सव्वावि मंडलवता छत्तागारसंठिता पण्णत्ता–एगे एवमाहंसु ८ तत्थ जेते एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता छत्तागारसंठिता पण्णत्ता, एतेणं नएणं नायन्वं, नो चेव णं इतरेहि, पाहुडगाहाओ भाणियव्वाओ।। अट्ठमं पाहुडपाहुडं २६. ता सव्वावि णं मंडलवता केवतियं बाहल्लेणं, केवतियं आयाम-विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं अहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु-ता सव्वावि णं मंडलवता जोयणं बाहल्लेणं, एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिणि जोयणसहस्साई तिण्णि य नवणउए जोयणसए परिक्खेवेणं पण्णत्ता' -एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु--ता सव्वावि णं मंडलवता जोयणं बाहल्लेणं, एमं जोयणसहस्सं एगं च चउतीसं जोयणसयं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसहस्साई चत्तारि बिउत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं पण्णत्ताएगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि णं मंडलवता जोयणं बाहल्लेणं, एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसहस्साई चत्तारि य पंचुत्तरे जोयणसए परिवखेवेणं पण्णत्ता--एगे एवमाहंसु ३ वयं पुण एवं वयामो-ता सब्दावि णं मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, अणियता आयाम-विक्खंभ-परिक्खेवेणं आहिताति वएज्जा। २७. तत्थ णं को हेतूति वएज्जा ? ता अयण जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सुरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्रिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, नवणउति जोयणसहस्साई छच्च चत्ताले जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, तिगिण जोयणसयसहस्साई पण्णरस य जोयणसहस्साई एगूणणउति जोयणाई किचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभिंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभिंतराणंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, नवणउति जोयणसहस्साई छच्च पणयाले जोयणसए पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई पण्णरस य सहस्साई एगं च सत्तुत्तरं जोयणसयं किंचिविसेसूणं १. माहितेति वएज्जा (ट); आहियाति दएज्जा (व)। २. आहितेति वएज्जा (य); आहियाति व एज्जा (व)। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ सुरपण्णत्ती परिक्खेवेणं, तया णं दिवसराइप्पमाणं तहेव' 1 से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया गं सूरिए अभिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तयाणं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, नवणउति जोयणसहस्साई छच्च एक्कावणे' जोयणसए नव य एगट्ठिभागा जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिपिण जोयणसयसहस्साइं पण्णरस य सहस्साई एगं पणवीसं जोयणसयं परिक्खेवेणं, तया णं दिवसराई तहेव' । एवं खलु एतेणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयागंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं 'संकममाणे-संकममाणे" पंच-पंच जोयणाई पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवुद्धि अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे 'अट्ठारसअट्ठारस" जोयणाई परिरयवृद्धि अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया गं सुरिए सव्वबाहिरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगद्रिभागा जोयणस्स बाहरूलेणं, एग जोयणसयसहस्सं छच्च सटठे जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साई तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं, तया गं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, एग जोयणसयसहस्सं छच्च चउप्पण्णे जोयणसए छब्बीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस सहस्साइं दोणि य सत्ताणउए जोयणसए परिक्खेवेणं, तया णं राइंदियं तहेव' । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि वाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सा १. तच्चवम्---तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ मभिवर्द्धयन्नभिवर्द्धयन् इहाष्टादशेति व्यवहारत दोहि एगद्विभागमुहुत्तेहि ऊगे, दुवालसमुहुत्ता उक्तम्, निश्चयनयेन तु सप्तदश सप्तदश राई भवति दोहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया योजनानि अष्टात्रिशतं चैकषष्टिभागा योजन(सू)। स्येति द्रष्टव्यं, एतच्च प्रागेव भावितं, न चेतत २. एक्काप्पणे (ट,व) । स्वमनीषिकाविज़म्भितं, यत उक्तं तदविचार३. तच्चवं-तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति । प्रक्रमे एव करणविभावनायां-'सत्तरस चउहिं एगठ्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालस- जोयणाई अठतीसं च एगट्ठिभागा १७३६ मुदत्ता राई भवति चउहि एगट्ठिभाग- एयं निच्छएणं, संववहारेण पुण अठारस मुहुत्तेहि अहिया (सूवृ)। जोयणाई (सुवृ)। ४. उवसंकममाणे-उवसंकममाणे (ट,व) ६. तो 'चवम्---'तया णं अट्ठारसमुहत्ता राई ५. अट्ठारस-अट्ठारस किंचूणाई (क); वृत्ती भवति दोहि एगठिभागमहत्तेहि ऊणा, निश्चयव्यवहारनययोश्चर्चा कृतास्ति- दुवालसमुहुत्ते दिवसे हवइ दोहि एगठ्ठिभाग'अष्टादश अष्टादश' योजनानि परिरयवृद्धि- मुहुत्तेहि अहिए (सू)।. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढ़मं पाहुडं (अट्ठमं पा०) ६०६ मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, एगं जोयणसयसहस्सं छच्च अडयाले जोयणसए बावण्णं च एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साइं दोणि य अउणासीते जोयणसए परिक्खेवेणं, दिवसराई तहेव' । एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणेसंकममाणे पंच-पंच जोयणाई पणतीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवुट्टि निवुड्ढे माणे-निवुड्ढेमाणे अट्ठारस जोयणाई परिरयवुड्डि निवुड्ढेमाणे-निवुड्ढेमाणे सव्वब्भतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, नवणउति जोयणसहस्साइं छच्च चत्ताले जोयणसए आयाम-विक्खंभेणं, तिष्णि जोयणसयसहस्साइंपण्णरस य सहस्साई अउणा उति' च जोयणाइं किंचिविसेसाहियाई परिक्खेवेणं. तया णं उत्तमकटुपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जण्णिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस दोच्चे छम्मासे एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। एसणं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे । ता सव्वावि णं मंडलवता अडतालीसं एगट्रिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं, सव्वावि णं मंडलंतरिया दो जोयणाई विक्खंभेणं, एस गं अद्धा तेसीयसयपडुप्पण्णो पंचदसुत्तरे जोयणसए आहिताति वएज्जा ।। २८. ता अभिंतराओ मंडलवताओ बाहिरा मंडलवता, बाहिराओ वा मंडलवताओ अभिंतरा मंडलवता, एसणं अद्धा केवतियं आहितेति वएज्जा? ता पंचदसत्तरे जोयणसए आहितेति वएज्जा ॥ २६. अभिंतराए मंडलवताए बाहिरा मंडलवता, बाहिराए वा मंडलवताए अभिंतरा मंडलवता, एस णं अद्धा केवतियं आहितेति वएज्जा ? ता पंचदसुत्तरे जोयणसए अडतालीसं च एगट्टिभागे जोयणस्स आहितेति वएज्जा ।। ३०. ता अभंतराओ मंडलवताओ बाहिरा मंडलवता, बाहिराओ वा मंडलवताओ अब्भंतरा मंडलवता, एस f अद्धा केवतियं आहितेति वएज्जा ? ता पंचणवुत्तरे जोयणसए तेरस य एगद्विभागे जोयणस्स आहितेति वएज्जा ॥ ३१. ता अभिंत राए मंडलवताए बाहिरा मंडलवता, बाहिराए वा मंडलवताए अभिंतरा मंडलवता, एस णं अद्धा केवतियं आहितेति वएज्जा ? ता पंचदसुत्तरे जोयणसए आहितेति वएज्जा। १. ते चैवम्-तया णं अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ २. अट्ठारस किंचूणाई (क) । चउहिं एगठ्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालस- ३. अउणाणउति (क,ट,व) । महत्ते दिवसे भवइ चउहि एगठ्ठिभागमूह- ४. चन्द्रप्रज्ञप्यादयोः सूत्रचतुष्कस्य (११२६-३२) तेहि महिए (सूव)! पाठो भिन्नोस्ति । द्रष्टव्यं परिशिष्टम् । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं पाहुडं पढमं पाहुडपाहुडं १. ता कहं ते तिरिच्छगती' आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ अट्ट पडिवत्तीओ पण्णताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु-ता पुरथिमाओ' लोयंताओं पादो मिरीची आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरिय लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं मिरीयं आगासंसि विद्धंसइ.-एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पादो सूरिए आगासंसि उत्तिइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए आगासंसि विद्धंसइ.-एगे एवमासु २ एगे पुण एवमाहंसु ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पादो सूरिए आगासंसि उत्तिइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता, 'पच्चत्थिमंसि लोयंतसि सायं सूरिए आगासं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता" अहे पडियागच्छइ, पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूपुरथिमाओ लोयंताओ पादो सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ--एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एबमाहंसुता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चथिमिल्लंसि लोयंतसि सायं सुरिए पुढविकायंसि विद्धंस इ---एगे एवमासु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं रिए पुढविकायंसि अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ, पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूपुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सुरिए पुढविकायंसि उत्तिदुइ--- एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरथिमिल्लाओ लोयंताओ पाओ सरिए आउकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि पाओ सरिए आउकार्यसि विद्धंसइ–एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु.-ता पुरत्थिमाओ लोगंताओ पाओ सूरिए १. कधं (क)। २. तिरच्छगती (ट)। ३. पुरत्थमिल्लातो (ट)। ४. लोगंतातो (८)। ५. सूरिए (ट); मिरी (व)। ६. x (ग,घ,ट,व)। ७. पच्चस्थिमिल्लसि (ट,ब)। ८. सूरिए (क,ट,व)। ६. चिन्हाङ्कितः पाठः क,ग,' नोपलभ्यते। आदर्शषु Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं पाहुडं (बीयं पा०) आउकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयतंसि सायं सरिए आउकायंसि अणुपविसई', अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ, पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूपुरस्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकायंसि उत्तिदुइ--- एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरथिमाओ लोयंताओ बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाई बहूइं जोयणसहस्साई उड्ढे दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं दाहिणड्ढे लोयं तिरिय करेइ, करेत्ता उत्तरडलोयं तमेव राओ, से णं इमं उत्तरढलोयं तिरियं करेइ, करेत्ता दाहिणड्डलोयं तमेव राओ, से णं इमाई दाहिणुत्तरडलोयाइं तिरियं करेइ, करेत्ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ बहूइं जोयणाइं बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई उड्ढं दूरं उप्प इत्ता, एत्थ णं पाओ' सूरिए आगासंसि उत्तिदुइ एगे एवमाहंसु ८। वयं पुण एवं वयामो--- ता जंबुद्दीवस्स दीवस्स 'पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दाहिणपुरस्थिमंसि उत्तरपच्चत्थिमंसि य चउभागमंडलंसि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ट जोयणसयाई उड्ढं उप्प इत्ता, एत्थ णं पाओ दुवे सूरिया उत्तिद्वंति ! ते णं इमाई दाहिणुत्तराई जंबुद्दीवभागाइं तिरियं करेंति, करेत्ता पुरथिमपच्चत्थिमाइं जंबुद्दीवभागाइं तामेव राओ, ते णं इमाइं पुरथिमपच्चत्थिमाइं जंबुद्दीवभागाइं तिरियं करेंति, करेत्ता दाहिणुत्तराई जंबुद्दीवभागाइं तामेव राओ, ते णं इमाई दाहिणुत्तराई पुरथिमपच्चत्थिमाणि य जंबहीवभागाइं तिरियं करेंति, करेत्ता जंबूहीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं च उव्वीसेणं सएणं छेत्ता दाहिणपुरथिमिल्लसि उत्तरपच्चथिमिल्लंसि य च उभागमंडलंसि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठ जोयणसयाई उड्ढं उप्प इत्ता, एत्थ णं पाओ दुवे सूरिया आगासंसि उत्तिट्ठति ॥ बीयं पाहुडपाहुडं २. ता कहं ते मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए चारं चरति आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता मंडलओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसुता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निवेढेति २ तत्थ जेते एवमासु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति, तेसि गं अयं दोसे, ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति एवतियं च णं अद्धं पुरतो न गच्छति, पुरतो अगच्छमाणे १. पविसइ (ग,घ)। ४. सूरिया आगासातो (ट,व) । २. पातो (क,ग,घ,ट,व) । ५. संकममाणे २ (क,ग,घ,व) । ३. पाईणपाडिणायतउदीणदाहिणायताए (क,ग, ६. निगच्छमाणे (ग,५)। घटव)। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरपण्णसी मंडलकालं परिहवेति', तेसि णं अयं दोसे। तत्थ जेते एवमाहंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति, 'तेसि णं अयं विसेसे", ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडल संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति एवतियं च णं अद्धं पुरतो गच्छति, पुरतो गच्छमाणे मंडलकालं न परिहवेति, तेसि णं अयं विसेसे । तत्थ जेते एवमाहंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं णिव्वेढेइ, एतेणं नएणं नेयव्यं, नो चेव णं इतरेणं ॥ तच्चं पाहुडपाहुडं ३. ता केयतियं ते खेत्तं सूरिए एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छति आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ चत्तारि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु ता छ छ जोयणसहस्साइं सरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति'-एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसुता पंच-पंच जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति--एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसूता चत्तारि-चत्तारि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छति--- एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु - ता छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति --एगे एवमाहंसु ४ । तत्थ जेते एवमाहंसु-ता छ-छ जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छति ते एवमाहंसू-ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहत्ता राती भवति, तंसि च णं दिवसंसि एग जोयणसयसहस्सं अट्ठ य जोयणसहस्साई तावक्खेत्ते पण्णत्ते, ता जया णं सुरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तंसि च णं दिवसंसि बावत्तरि जोयणसहस्साई तावक्खेत्ते पण्णत्ते, 'तया ५ छ-छ जोयणसहस्साड सुरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति १ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता पंच-पंच जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, ते एवमाहंसु-ता जया गं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, तहेव दिवसराइप्पमाणं', तंसि च णं दिवसंसि नवति जोयणसहस्साई तावक्खेत्ते पण्णत्ते, ता जया १. परिहावति (ध); 'परिभ्रमति' यावता कालेन ३. गच्छति आहितेति पदेज्जा (ट,व) सर्वत्र । मण्डलं परिपूर्ण भ्रम्यते तस्य हानिरुपजायते ४. तावक्खित्ते (क)। (मुव,चंव) । हस्तलिखितवृत्योः परिभ्रमति' ५. तेसिणं (क); तेसिणमित्यादि, तेषां हि तीर्थाइति लिखितं दृश्यते। किन्तु अग्रेतने परिहवेति' तरीयाणाम् (सूब चं)। वृत्तिकृता अग्रेतन क्रियापदस्य परिभवति' इति लिखितं विद्यते, प्रतिपत्तिषु ता जया णं' इति व्याख्यातमस्ति । तेन परिभवति' इति पदमेव शुद्ध सम्भाव्यते ६. अत्र प्रस्तावे दिवसरात्रप्रमाणं तथैव प्रागिव 'परिहावति' इति पदमपि परिहाणि' अर्थ द्रष्टव्यम्, 'तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए द्योतयति। अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे हवइ, जहष्णिया दुवालस२. तेणं एवमाहंसु (ट,व)। महत्ता राई भवती' ति (सूब)। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं पाहुडं (तच्चं पा०) णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं तं चेव राइंदियप्पमाणं' तंसि च णं दिवसंसि सदि जोयणसहस्साई तावक्खेत्ते पण्णत्ते, तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साई सरिए एगमेगेणं महत्तेणं गच्छति २ तत्थ जेते एवमाहंसु ता चत्तारि-चत्तारि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ, ते एवमासु · ता जया णं सुरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं दिवसराई तहेव, तसि च णं दिवसंसि बावरि जोयणसहस्साई तावक्खेत्ते पण्णत्ते, ता जया णं सरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंक्रमित्ता चारं चरति तया णं राइंदियं तहेव, तंसि च णं दिवसंसि अडतालीसं जोयसहस्साई तावक्खेत्ते पण्णत्ते, तया णं चत्तारि-चत्तारि जोयणसहस्साई सरिए एगमेगेणं महत्तेणं गच्छति ३ तत्थ जेते एवमाहंसु -ता छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, ते एवमासु ता सूरिए णं उग्गमणमुहत्तंसि य अत्थमणमुहत्तंसि य सिग्घगती' भवति तया णं छ-छ जोयणसहस्साई एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, मज्झिमतावक्खेत्तं समासादेमाणे-समासादेमाणे सरिए मज्झिमगती भवति तयाणं पंच-पंच जोयणसहस्साई एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, मज्झिमं तावक्खेत्तं संपत्ते सूरिए मंदगती भवति तया णं चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साइं एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति । तत्थ को हेतूति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं दिवसराई तहेव, तंसि च णं दिवसंसि एक्काणउति जोयणसहस्साइं तावक्खेत्ते पण्णते, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिर मंडलं उबसंकमित्ता चारं चरति तया णं राइंदियं तहेव, तस्सि च णं दिवसंसि एगट्ठिजोयणसहस्साई तावक्खेते पण्णत्ते, तया गं छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति –एगे एवमासु ४ वयं पुण एवं वयामो -ता सातिरेगाई पंच-पंच जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगेणं मुहत्तेणं गच्छति । तत्थ को हेतूति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं मूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साई दोण्णि य एक्कावण्णे जोयणसए एगणतीसं च सटिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तया णं इहगतस्स' मणुस्सस्स सीतालीसाए १. तदेव प्रागुक्तं रात्रिदिवसप्रमाणं -रात्रि दिवसप्रमाणं वक्तव्यम्, तद्यथा 'उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमहुत्ता राई हवई, जहन्निए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवती' ति (सूव)। २. ते चैवम् ‘तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे हवइ, जहन्निया दुवालस मुहुत्ता राई भवइ' इति (सूवृ)। ३. तच्चैवम् -- 'तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्रारसमहत्ता राई भवई, जहन्नए दुवालस- मुहुत्ते दिवसे भवति' (सूव) । ४. सिग्घागति (ग,घ) । ५. ते चैवम्-.-'तया णं उत्तमकट्रपत्ते उक्कोसए अद्वारसमहत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवई' (सूब)। ६. तच्चवम् --'तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उकफोसिया अट्टारस मुहुत्ता राई भवई, जहन्नए दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवइ' (सूवृ) । ७. इदगतस्स (ग,घ)। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरपण्णत्ती जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए' य सट्ठिभागेहि जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ, तया णं दिवसे राई तहेव' ! से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए अब्भितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साई दोणि य एक्कावण्णे" जोयणसए सीतालीसं च सटिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, तया णं इहगतस्स मणसस्स सीतालीसाए जोयणसहस्सेहिं अउणासीते य जोयणसए सत्तावण्णाए सट्ठिभागेहि जोयणस्स सट्ठिभागं च एगट्टिहा छेत्ता अउणावीसाए चुणियाभागेहिं सूरिएचक्खुप्फासं हव्वमागच्छति तया णं दिवसराई तहेव । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभितरतच्च मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए अभितरतच्चं मंडलं उवसंकमित्त चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोण्णि य बावणे जोयणसए पंच य सट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तया णं इहगतस्स मणूसस्स सीतालीसाए जोयणसहस्सेहिं छण्णउतीए य जोयणेहिं तेत्तीसाए य सट्ठिभागेहि जोयणस्स सद्विभागं च एगढिहा छेत्ता दोहिं चुणियाभागेहि सूरिए चक्खुष्कासं हव्व मागच्छति तया णं दिवसराई तहेव" । एवं खलु एतेणं उवाएणं निवखममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे अट्ठा रस-अट्ठारस सट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले महत्तगति अभिवुड्ढे माणे-अभिवुड्ढेमाणे चुलसीति सीताई जोयणाई पुरिसच्छायं निवुड्ढेमाणे-निवडढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उबसंकमित्ता चार चरति, ता जया णं सुरिए सव्ववाहिरं मंडलं उवसंक मित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साह तिण्णि य पंचुत्तरे जोयणसते पण्णरस य सट्ठिभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तया शं इहगतस्स मणूसस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहि अहि एक्कतीसेहिं जोयणसतेहिं तीसाए य सटिभागेहि जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हब्वमागच्छति तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भदइ । एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। १. एककवीसाए (क) । राई भवइ दोहिं एमट्ठिभागमुहत्तेहि अहिया' २. ते चवम्---'तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए (सूच) । अट्ठारसमुहुत्ते दिवो भवइ, जहणिया दुवाल- ६. अभंतरं तच्च (ट)। समुहुत्ता राई भवई' (सूब)। १०. ते चैवम्--'तया णं अट्ठारसमुहत्ते दिवसे हवइ ३. अयमीणे (क,ग,घ) । चाहिं एट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता ४. एकापणे (ट)। राई भवइ चाहिं एगट्टिभागमुहत्तेहिं अहिया' ५. एगट्ठिभागे (ग,घ)। (सूव)। ६. एगुणासीते (ट)। ११. सद्विरस- सद्विरस सट्ठिभागे (ग,घ) ! ७. एगस ट्ठिभागेहि (ग,घ); एयसट्ठिभागे (ट,व)१२. शीतानि किञ्चिन्न्यूनानीत्यर्थः (सूवृ); ८. ते चैवम् -'तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे हवइ सीया इति किञ्चिन्यूनानि (चं)। दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीयं पाहुडं (तच्चं पा०) ६१५ से पविसमाण सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सरिए बाहिरातरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साइं तिणि य चउरुत्तरे' जोयणसते सत्तावण्णं च सद्विभाए जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ तया णं इहगतस्स मणूसस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहिं नवहि य सोलेहि जोयणसतेहिं एगूणतालीसाए' सद्विभागेहिं जोयणस्स सट्ठिभागं च एगट्ठिहा छेत्ता सट्ठिए चुणियाभागे सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, नया णं राइंदियं तहेव । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साई तिणि य च उत्तरे जोययणसए ऊतालीसं च सदिभागे जोयणस्स एगमेगेणं महत्तेणं गच्छति तया णं इगतस्स मणूसस्स एगाहिगेहि बत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं एगणपण्णाए' य सटिभागेहि जोयणस्स सट्ठिभागं च एगट्टिहा छेत्ता तेवीसाए चुणियाभागेहि सरिए चवखुप्फास हव्वमागच्छति, राइंदियं तहेव । एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरि तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणेसंकममाणे अट्ठारस-अट्ठारम सदुिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले मुहत्तगति निवुड्ढेमाणेनिवुड्ढेमाणे सातिरेगाइं पंचासीति-पंचासीति जोयणाइं पुरिसच्छायं अभिवुड्ढेमाणेअभिवडढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं पंच-पंच जोयणसहस्साई दोणि य एक्कावणे जोयणसए अउणतीसं च सद्विभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति तया णं इहगतस्स मणसस्स सीतालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवढेंहिं जोयणसतेहिं एक्कवीसाए य सटिभागेहि जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फास हव्दमागच्छति तथा णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे, एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे ।। १. चउत्तरे (ट)। २. इगुणतालीसाए (क); अगुणतालीसाए (घ); एगुणचत्तालिसाए (ट); च उआलीसाए (व)। ३. एगट्ठिधा (क,ग,ध)। ४. तुच्चैवम्-'तया गं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति दोहि एगद्विभागमुहृत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे हवइ दोहि एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए' ६. चक्कावण्णाए (क,ख,घ,व); वृत्तौ ‘एकोन पञ्चाशता' इति व्याख्यातमस्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तावपि (७.२५) 'एगूणपण्णाए' इति पाठो लभ्यते । गणनयापि एतदेव लभ्यते। ७. तधेव (क,ग,घ); तच्चवम् –'तया णं अद्रा रसमूहत्ता राई भवइचउहि एगट्ठिभागमहत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे हवइ चउहि एगद्रिभागमुहुत्तेहि अहिए, (सूवृ)। ८. एगुणतीसं (ट)। ५. उणयालिसं (ट)। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं पाहुडं १. ता केवतियं खेत्तं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ बारस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता एगं दीवं एग समुदं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति' १ एगे पुण एवमाहंसुता तिण्णि दीवे तिणि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति ....एगे एवमासु २ एगे पुण एवमाहंसु ता अद्भुढें दीवे अद्भुठे समुहे चंदिमसूरिया ओभासंनि उज्जोवेति तवेंति पगासेंति --एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु ता सत्त दीवे सत्त समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति- एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु -ता दस दीवे दस समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तति पगासेंति --एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु -ता बारस दीवे वारस समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तति पगासेंति --एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु -- ता बायालीसं दीवे बायालीसं समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेति पगासेंति---एगे एवमासु ७ एगे पुण एवमाहंसु-ता बावरि दीवे बावत्तरि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति-- एगे एवमासु ८ एगे पुण एवमासु ·ता बायालीसं दीवसतं बायाल' समुद्दसतं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति---एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु. ता बावतरि दीवसतं बावत्तरि समुद्दसतं चंदिमसरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगाति-- एगे एवमाहंसु १० एगे पुण एवमाहंसु-- ता बायालीसं दीवसहस्सं बायालं समुद्दसहस्सं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति --एगे एवमाहंसु ११ एगे पुण एवमाहंसु ·ता बावत्तरि दीवसहस्सं बावत्तरि समुद्दसहस्सं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति-- एगे एवमाहंसु १२ वयं पुण एवं वयामो--ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव' परिक्खेवणं पण्णत्ते, से णं एगाए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, सा णं जगती तहेव १. पगासेंति आहितेति वदेज्जा (ट,व) सर्वत्र। परिपूर्णाश्चतुर्थस्य चार्द्धमित्यर्थः । चन्द्रप्रज्ञप्ते२. आउठे (ग,ध); 'ट,द' प्रत्योः पाठस्त्रुटि वृत्तावपि इत्थमेव व्याख्यातमस्ति । तोस्ति। सूर्यप्रज्ञप्तेर्हस्तलिखितवृत्तौ 'अद्भुट्ठ' ३. बातालं (क) । इति अर्द्ध चतुर्थ येषां से अर्द्धचतुर्थाः, तत्र ४. सू० १३१४ । ६१६ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चं पाहुडं जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए जाव' एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दोवे चोद्दससलिलासयसहस्सा छप्पण्णं च सलिलासहस्सा भवंतीति मक्खाता ।। २. जंबुद्दीवे णं दीवे पंचचक्कभागसंठिते' आहितेति वएज्जा, ता कहं जंबुद्दीवे दीवे पंचचक्कभागसंठिते आहितेति वएज्जा ? ता जया णं एते दुवे सूरिया सब्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स तिण्णि पंचचक्कभागे ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति, 'तं जहा" --एगेवि एगं दिवड्ढं पंचचक्कभागं ओभासति उज्जोवेति तवेति पगासेति, एगेवि एगं दिवढं पंचचक्कभागं ओभासति उज्जोवेति तवेति पगासेति, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहप्णिया दुवालसमूहत्ता राती भवति । ता जया णं एते दुवे सूरिया सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरंति तया णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स दोण्णि चक्कभागे ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति, तं जहा एगेवि सूरिए एग पंचचक्कवालभागं ओभासति उज्जोवेति तवेति पगासेति, एगेवि एगं पंचचक्कवालभागं ओभासति उज्जोवेति तवेति पगासेति, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भव॥ १. जं० शसे ६।२६। २. संठिता (ग,घ)। ३. वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । ४. एकोपि अपरोपि द्वितीयोपीत्यर्थः (सूव)। ५. द्वौ चक्रवालपञ्चमभागो (सूच)। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं पाहुडं १. ता कहं ते सेयताए संठिती आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमा दुविधा संठिती पण्णत्ता, त जहा -चंदिमसूरियसंठिती य तावक्खेत्तसंठिती य ।। २. ता कहं ते चंदिमसूरियसंठिती आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ सोलस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु ता समचउरंससंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता'---एगे एवमासु १ एगे पुण एवमाहंसु · ता विसमचउरंससंठिता चंदिमसूरियसंठिती पणत्ता - -एगे एवमाहंसू २ एवं समचउक्कोणसंठिला ३ विसमचउक्कोणसंठिता ४ समचक्कवालसंठिता ५ विसमचक्कवालसंठिता ६ चक्कद्धचक्कवालसंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता ---एगे एवमासु ७ एगे पुण एवमाहंसु ता छत्तागारसंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता एगे एवमासु ८ एवं गेहसंठिता ६ गेहावणसंठिता १० पासादसंठिता ११ गोपुरसंठिता १२ पेच्छाघरसंठिता १३ वलभीसंठिता १४ हम्मियतलसंठिता १५ एगे पुण एवमाहंसु · ता वालग्गपोतियासंठिता चंदिमसूरियसंठिती पण्णत्ता -~-एगे एवमाहंसु १६ तत्थ जेते एबमाहंसुः-- ता समचउरंससंठिता चंदिमसूरियसंठिती पणत्ता, एतेणं नएणं नेयव्वं नो चेव णं इतरेहिं ।। ३. ता कहं ते तावक्खेत्तसंठिती आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ सोलस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसुः ता गेहसंठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता' 'एवं जाव वालग्गपोतियासंठिता'" तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता---एगे एवमासु ८ एगे पूण एवमाहंसु--ता जस्संठिते ५ जंबुद्दीवे दीवे तस्संठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ताएगे एवमाहंसु ६ 'एगे पुण एवमाहंसुर-ता जस्संठिते भारहे वासे तस्संठिता १. सेयाए (ग); सेयाते (ट,व)। ८. गेहागारसंठिया (ट,व) ! २. कधं (क,ग)। ___६. आयिाति वएज्जा (ट,व,चंचू) सर्वत्र । ३. आहिताति वदेज्जा (ट,व); आहियत्ति १०. एवं ताओ चेव अपडिवत्तीओ णेयवाओ वएज्जा (चंवृ) सर्वत्र । जाव ता वालग्गपोतियाठिया (ट,व,चंय! ४. एवं एनेणं अभिलावेणं (ट,व) । ११. जस्संठिए णं (ट,व); 'ण' इति वाक्यालङ्कारे ५. द्वयोरपि वृत्त्योः पूर्णः पाठो लभ्यते । (चं)। ६. गेहागारसंठिता (ट,व)। १२. एवं एएणं अभिलावणं (ट,व,चंद)। ७. हम्मियनवसंठिता (ग,घ)। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं पाहुडं तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता--एगे एवभाहंसु १० ‘एवं उज्जाणसंठिता" ११ निज्जाणसंठिता १२ एग तो निसहसंठिता १३ दुहतो निसहसंठिता १४ सेयणगसंठिता---एगे एवमाहंसु १५ एगे पुण एवमासुता सेणगपट्ठसंठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता -एगे एवमासु १६ वयं पुण एवं वदामो ता उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता तावक्खेत्तसंठिती पण्णत्ता -.. अंतो संकुया' बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला', अंतो अंकमुहसंठिता बाहिं सत्थीमुहसंठिता, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ अवट्ठियाओ भवंति पणयालीसंपणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, 'दुवे य गं तीसे" बाहाओ अणवट्रियाओ भवंति, तं जहा सव्वब्भतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा॥ ४. तत्थ को हेतूति वएज्जा ? ता' अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं. ता जया णं सूरिए सबभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ नया णं उड्डीमुहकलंबुयापुष्फसंठिता तावक्खेत्तसंठिती आहिताति वएज्जा, अंतो संकुया वाहिं वित्थडा, अंगो वट्टा वाहिं पिहुला", अंतो अंकमुहसंठिया बाहि सत्थीमुहसंठिता, उभओ" पासेणं नीसे' दुवे बाहाओ अवट्ठियाओ भवंति पणथालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्ठियाओ भवंति, तं जहा--- सव्वब्भतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा।। तीसे णं सबभंतरिया बाहा मंदरपव्वयंतेणं नव जोयणसहस्साई चत्तारि य छलसीए जोयणसए नव य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिताति वएज्जा। 'ता सेणं परिक्खेवविसेसे कतो आहितेति वएज्जा ? ता जे गए मंदरस्स पब्वयस्स 'परिक्खेवे, तं'१५ परिक्खेवं तिहि गुणेत्ता दसहि छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहितेति वएज्जा। तीसे णं सव्वबाहिरिया बाहा लवणसमुइंतेणं चउणउति जोयणसहस्साइं अट्ठ य अट्ठसठे जोयणसए चत्तारि य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिताति १. 'ट,व' प्रत्योः किञ्चिद् विस्तृतः पाठो विद्यते 'बाहिं सत्थियमहसंठियत्ति' पाठो लभ्यते। ----'ता उज्जाणसंठिया णं तावखेत्ता । एवं सगडुद्धीमुह° (जंबुद्दीवपण्णत्ती ७.३१)। सर्वत्रापि। द्वयोरपि वृत्त्योः पूर्णः पाठो ५. पासिं (ट,व)। विद्यते। सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ती ‘पण्णत्ता' इति ६. तीसे णं दुवे (ट,व)। पदमस्ति, चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तो तस्य स्थाने ७. के (क)। 'आहियत्ति वएज्जा' इति पाठो विद्यते । ८. ताव (क); तो (व)। २. संकुडा (क,ग,ध,ट,व); जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ १. संकुडा (क,ग,घ,ट,व)। (७१३१) संकुया' इति पाठः स्वीकृतोस्ति । १०. पिधुला (ग,ध)। द्वयोरपि वृत्त्योः “संकुचा संकुचिता' इति ११. दुहतो (ग)। व्याख्यातमस्ति, तेन 'संकुया' इति पाठो मुले १२. सं० पा०—तीसे तहेव जाव सम्बबाहिरिया। स्वीकृतः । १३. चुलसीए (ट)। ३. पिधुला (क), पुहुलो (ट)। १४. तीसे (ग,घ,ट,व)। ४. सत्थिमुहसंठिया (ट); चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तौ १५. परिक्वेवे णं (ग,ध)। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० सूरपण्णत्ती वएज्जा। ता से परिक्खेवविसेसे कतो आहितेति वएज्जा ? ता जे णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं तिहिं गुणेत्ता दसहि छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहितेति वएज्जा ।। ५. ता से णं तावक्खेत्ते केवतियं आयामेणं आहितेति वएज्जा ? ता अद्वत्तरि जोयणसहस्साई तिण्णि य तेत्तीसे जोयणसए जोयणतिभागे य आयामेणं आहितेति वएज्जा ॥ ६. तया णं किसंठिया अंधयारसंठिती आहिताति वएज्जा ? ता उड्डीमुहकलंबुयापृष्फसंठिता' •अंधयारसंठिती पण्णत्ता -अंतो संकया बाहिं वित्थडा. अंतो वटा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिता बाहि सत्थीमुहसंठिता, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ अवट्ठियाओ भवंति पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवट्ठियाओ भवंति, तं जहा सव्वभंतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा ।। ७. तत्थ को हेतूति वएज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवस मुद्दाणं सव्वभंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उड़ीमूहकलंबूयापूप्फसंठिता अंधयारसंठिती आहिताति वएज्जा अंतो संकया बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहला, अंतो अंकमुहसंठिता बाहिं सत्थीमुहसंठिता, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ अवट्ठियाओ भवंति पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य पं तीसे बाहाओ अणवट्ठियाओ भवंति, तं जहा--सव्वब्भंतरिया चेव बाहा सव्व बाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सवब्भतरिया बाहा मंदरपब्वयंतेणं छज्जोयणसहस्साइं तिणि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिताति वएज्जा । तीसे णं परिक्खेवविसेसे कतो आहितेति वएज्जा? ता जे णं मदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता', 'दसहि छेत्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहितेति वएज्जा। तीसे णं सव्वबाहिरिया बाहा लवणसमुदंतेणं तेवट्टि जोयणसहस्साई दोण्णि य पणयाले' जोयणसए छच्च दसभागे जोयणस्स परिक्खे आहितेति वएज्जा। ता से ण परिक्वविसेसे कतो आहितेति वएज्जा? ताजे of जंबुद्दीवस्स दीवस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं दोहिं गुणेत्ता दसहि छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहितेति वएज्जा। १. एस (ग,घ)। २. केतियं (ग,ध)। ३. सं० पा० --उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंटिता तहेव जाव बाहिरिया। उद्धीमुहकलबुयापुप्फसंठिया आहितेति वदेज्जा अंतो संकुता बाहिं वित्थडा तं चेव जाव तीसे णं दुवे बाहातो अणवद्विता भवंति तं सव्वभरिता चेव बाहा सव्वबाहिरिया (ट,व)। ४. गुणिया (ट)। ५. सं० पा०--सेसं तहेव । चन्द्रप्रज्ञप्ती एष पाठः पूर्ण एव विद्यते, तद्वत्तावपि पाठसंक्षेपः सुचितो नास्ति । सूर्यप्रज्ञप्तिवत्तो सेसं तं चेव' त्ति शेषं तदेव प्रागुक्तं वक्तव्यं तच्चेदं दसहिं छित्ता दसहि भागे हीरमाणे एस णं परिक्खेवविसेसे आहियत्ति व इज्जा' इति सूचितमस्ति । ६. वाताले (ग); वाणाले (घ); बायाले (व) Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं पाहुडं ६२१ ८. ता से णं अंधयारे केवतियं आयामेणं आहितेति वएज्जा? ता अदृत्तरि जोयणसहस्साई तिणि य तेत्तीसे जोयणसए जोयणतिभागं च आयामेणं आहितेति वएज्जा, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति ॥ ६. ता जया णं सरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं किंसंठिता तावक्खेत्तसंठिती आहिताति वएज्जा? ता उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठिता तावक्खेत्तसंठिती आहिताति वएज्जा । एवं जं अभितरमंडले अंधयारसंठितीए पमाणं तं बाहिरमंडले तावक्खेत्तसंठितीए, जं तहिं तावक्खेत्तसंठितीए तं बाहिरमंडले अंधयारसंठितीए भाणियव्वं जाव तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ ।। १०. ता जंबुद्दीवे णं दीवे सुरिया केवतियं खेत्तं उड्ढं तवयंति ? केवतियं खेत्तं अहे १. सू० ४।४-८ । सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ती पूर्णपाठो लिखितोस्ति–तच्चवं सूत्रतो भए नीयं अंतो संकुडा बाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहि पिहला अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सत्थिमुहत ठिया, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ अवट्ठियाओ भवंति पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवद्रियाओ भवंति, तं जहा...-अभितरियो चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सव्वभंतरिया बाहा मंदरपव्ययंतेणं छ जोयणसहस्साई तिन्नि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहियत्ति वएज्जा। ता से णं परिक्खेवविसेसे कओ आहियत्ति वएज्जा ? ताजे णं मंदरस्स पव्वयस्म परिक्खेवे ते णं दोहिं 'गुणित्ता दसहि छित्ता दसहि भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहियत्ति वएज्जा। ता से णं तावक्खेत्ते केवइयं आयामेणं आहियत्ति वएज्जा ? ता तेसीइ जोयणसहस्साई तिन्नि तेतीसे जोयणसए जोयणतिभागं आहियाति वएज्जा । तया णं किंसंठिया अंधकारसंठिई आहियत्ति वएज्जा ? ता उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिया आहियत्ति वएज्जा अंतो संकुडा बाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहि पिहला अंतो अंकमहसंठिया बाहिं सथिमहसंठिया, उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ भवंति पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अगवट्ठियाओ भवंति, तं जहा—सचन्भतरिया चेव बाहा सव्वबाहिरिया चेव बाहा । तीसे णं सब्वभंतरिया बाहा मंदरपध्वयंतेणं नव जोयणसहस्साई चत्तारि य छलसीए जोयणसए नव य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहियत्ति वएज्जा। ताजे णं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे, तं परिक्खेवं तिहि गुणित्ता दसहिं छित्ता दसहिं भागे हीर. माणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहियत्ति वएज्जा। तीसे णं सम्बबाहिरिया बाहा लवणसमुहतेणं चउण उई जोयणसहस्साइं अट्ठ य अट्ठसठे जोयणसए चत्तारि य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिए इति वएज्जा। ता एस णं परिक्खेवविसेसे कओ आहिए इति वएज्जा? ता जे णं जंबूहीवस्स दीवस्त परिक्खेवे, तं परिक्खेवं तिहिं गुणित्ता दसहि छित्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस णं परिक्खेवविसेसे आहिए इति वएज्जा । ता से णं अंधकारे केवइए आयामेणं आहिए इति वएज्जा ? ता तेसीइं जोयणसहस्साई तिन्नि य तित्तीसे जोयणसए जोयणतिभागं आहिए इति वएज्जा। २. तवंति (क,ट,व); तावंति (ग,घ)। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ सूरपणती तवयंति' ? के वतियं खेत्तं तिरियं तवयंति' ? ता जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया एवं जोयणसयं उड्दं तवयंति' अट्ठारस जोयणसयाई अहे तवयंति, सीयालीस जोयणसहस्साइं दुण्णि य तेवट्ठे जोयणसए एगवीसं च सद्विभागे जोयणस्स तिरियं तवयंति ॥ पंचमं पाहुड १. ता कस्सिणं सूरियस लेस्सा पडिहया आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु-ता मंदरंसि णं पव्वतंसि सूरियस्स लेस्सा पहिया आहिताति वएज्जा - एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु -ता मेरु सिणं पव्वतंसि सूरियस लेस्सा पडिया आहिताति वएज्जा - एगे एवमाहंसु २ एवं एएवं अभिलावेण भाणियव्वं --ता मणोरमंसि णं पव्वतंसि ३ ता सुदंसणंसि णं पव्वतंसि ४ ता सयंपर्भसि णं पव्वतंसि ५ ता गिरिरायंसि णं पव्वतंसि ६ ना रयणुच्चयंसि णं पव्वतंसि ७ ता सिलुच्चयंसि णं पव्वतंसि ८ लोयमज्झसि णं पव्वतंसि ता लोयणाभिसि णं पव्वतंसि १० ता अच्छंसि णं पव्वतंसि ११ ता सूरियावत्तंसि णं पव्वतंसि १२ ता सूरियावरणंसि णं पव्वतंसि १३ ता उत्तमंसि णं पव्वतंसि १४ ता दिसादिसि णं पव्वतंसि १५ ता अवतंसंसि णं पव्वतंसि १६ ता धरणिखीलंसि णं पव्वतंसि १७ ता धरणिसिंगंसि णं पव्वतंसि १८ ता पव्वतिदंसि णं पव्वतंसि १६ ता पव्वयरायंसि णं पव्वतंसि सूरियस्स लेस्सा पsिहया आहिताति वएज्जा- एगे एवमाहंसु २० वयं पुण एवं वदामो--ता मंदरेवि पवच्चइ जाव पश्वयरायावि पवुच्चइ, ता जेणं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं फुसंति, ते णं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति, अदिट्ठावि णं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं परिणति, चरिमले संतरगताविणं पोग्गला सूरियस्स स्सं पहिति ॥ १. विंति ( क ) ; तवंति (ग,घट,व) | २. सवंति (क, ग, घ, टव) ३. तति (क, ग, घ, ट) प्रायः सर्वत्र । ४. अधेय (क,ग,घ) 1 ५. सीताले (व) । ६. संकि ( ग, घ ); किस ( ट ) ; कीस (व) 1 ७. पुग्गला (क,ग,घ) । ८. चरम° (ट,व) 1 ६. पडित बहितेति वदेज्जा ( ट ) ; पडिहपंति आहिमाति वदेज्जा (व) ! Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छळं पाहुडं १. ता कहं ते ओयसंठिती' आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु –ता अणुसमयमेव' सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा वेअति - एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-- ता अणुमुहुत्तमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा वेअति'--एगे एवमाहंसु २ एवं एतेणं अभिलावेणं णेतब्वाता अणुराइंदियमेव ३ ता अणुपक्खमेव ४ ता अणुमासमेव ५ ता अणुउडुमेव ६ ता अणुअयणमेव ७ ता अणुसंवच्छ रमेव ८ ता अणुजुगमेव ६ ता अणुवाससयमेव १० ता अणुवाससहस्समेव ११ ता अणुवाससयसहस्समेव १२ ता अणुपुत्वमेव १३ अणुपुव्वसयमेव १४ ता अणुपुव्वसहस्समेव १५ ता अणुपुव्वसयसहस्समेव १६ ता अणुपलिओवममेव' १७ ता अणुपलिओवमसयमेव १८ ता अणुपलिओवमसहस्समेव १६ ता अणपलिओवमसयसहस्समेव २० ता अणुसागरोवममेव २१ ता अणुसागरोवमसयमेव २२ ता अणुसागरोवमसहस्समेव २३ ता अणुसागरोवमसयसहस्समेव २४ एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा वेअति --- एगे एवमाहंसु २५ वयं पुण एवं वदामो–ता तीस-तीसं मुहुत्ते सूरियस्स ओया अवट्ठिता भवइ, तेण परं सूरियस्स ओया अणवद्विता भवइ, छम्मासे सूरिए ओयं निवुड्ढे, छम्मासे सूरिए ओयं अभिवड्ढेइ, निक्खममाणे सूरिए देसं निवुड्ढेइ, पविसमाणे सूरिए देसं अभिवुड्ढेइ । तत्थ को हेतूति वदेज्जा? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवस मुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । १.तोतसंठिती (ट,व) । २. पणुवीसं (ग,घ,व)। ३. अणुसमतमेव (ट,व)। ४. अवेति (क); वेती (ट,व); अपैति (सूव); उपैति (चं)। ५. अवेति (क); वेति (ट,व); अपैति (सूब); उपैति (चंवृ)। ६. अणुपलितोवममेव (ग,घ,व) । ७. वेति आहिताति वदेज्जा (ट,व)। ८. के (क,ग,घ); णं के (ट,व)। ६२३ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ सूरपथ्णत्ती से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभिंत राणंतर मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभिंतराणतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगेणं राइदिएणं एगं भागं ओयाए दिवसखेत्तस्स निवुड्डित्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्डित्ता चारं चरइ ‘मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहि" छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एग ट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया । से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अन्भिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं दोहिं राइदिएहिं दो भागे ओयाए दिवसखेत्तस्स निवत्तिा रयणिखेत्तस्स अभिवडढेत्ता चारं चरइ 'मंडलं अट्रारसहिं तीसेहि सएहि छेत्ता तया णं अदारसमूहत्ते दिवसे भवइ चाहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया । एवं खलु एतेणुवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे 'एगमेगे मंडले एगमेगेणं राइदिएणं एगमेगं भागं ओयाए" दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे-निवुड्ढेमाणे रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया गं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ तया णं सबभतरं मंडलं पणिधाय' एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं एगं तेसीतं भागसतं ओयाए' दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेता चारं चरइ 'मंडलं अट्ठारसहि तीसेहिं स एहि छेत्ता, तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे" पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिराणंतरं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं 'एगेणं राइदिएणं एगं भागं ओयाए रयणिक्खेत्तस्स"२ निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ 'मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहि सएहि छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहत्तेहि अहिए । से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि 'बाहिरं तच्चं" मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं १. अयमीणे (क) । २. अब्भंतराणंतरं (ट,व)। ३. अटारसहिं तीसेहिं सतेहिं मंडलं (ट,ब)। ४. अन्भतरं (ग,घ,ट,व)। ५. अट्टारसहिं तीसेहिं सतेहिं मंडलं (ट,व)। ६. एगमेगं भागं ओयाए एगमेगे मंडले एगमेगेणं रातिदिएणं (ट,व)। ७. पणिहाए (ट,व)। ८. ओताए (ट)। ६. रतणिखेत्तस्स (क,ग,५); रातिखेत्तस्स (ट)। १०. अट्ठारसहि तीसेहिं मंडलं (ट,व)। ११. अयमीणे (क,ग,घ,व) । १२. एग भाग ओयाए एगेणं राइदिएणं राति खेत्तस्स (टव)। १३. अट्ठारसहि तीसेहिं सएहि मंडलं (ट,व) १४. बाहिरतच्चं (क,ग,घ,ब)। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२५ सतमं पाई 'दोहिं राइदिएहिं दो भाए ओयाए रयणिखेत्तस्स" निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ 'मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहि छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहत्ता राती भवति चरहिं एगद्विभागमुहत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चरहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिए । एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयाणंतराओ तयागंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे 'एगमेगेणं राइदिएणं एगमेगं भागं ओयाए रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे-निवुड्ढेमाणे दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिधाय एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं एग तेसीतं भागसतं ओयाए रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ 'मंडलं अट्ठारसहि नीसेहि सएहि“ छेत्ता, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे ।। सत्तमं पाहुडं १. ता के ते सूरियं वरयति' आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ वीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु-ता मंदरे णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जा—एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता मेरु णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जा-- एगे एवमाहंसु २ एवं एएणं अभिलावेणं णेयव्वं जाव' पव्वयराए णं पव्वए सूरियं वरयति आहितेति वएज्जा-एगे एवमाहंसु २० वयं पुण एवं वदामो–ता मंदिरेवि पवुच्चइ तहेव जाव पव्वयराएवि पवुच्चइ ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला सूरियं वरयंति, अदिट्ठावि णं पोग्गला सूरियं वरयंति, चरमलेसंतरगतावि गं पोग्गला सूरियं वरयंति ।। १. दो भाए ओयाए दोहिं राइदिएहि रातिखेत्तस्स रातिखेत्तस्स (ट,व)। ४. अटारसहि तीसेहि सएहिं मंडलं (ट,व)। ५. वरति (ट,व)। ६. सू ५।१। २. अटारसहिं तीसेहिं सएहिं मंडलं (ट,व)। ३. एगमेगं भागं ओयाए एगमेयेणं राइदिएणं Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं पाहुडं १. ता कहं ते उदयसंठिती आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवतीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे वि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उतरड्ढे सत्तरसमुहत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एवं परिहावेतव्वं सोलसमृहुत्ते दिवसे पण्ण रसमुहुत्ते दिवसे चउद्दसमुहुत्ते दिवसे तेरसमुहत्ते दिवसे जाव ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहत्ते दिवसे इ तया ण उत्तरढीव बारसमुहत्तं दिवसे भवइ, ताजया ण उत्तरडढे बारसमहत्तं दिवसे भवइ तया णं दाहिणडढेवि बारसमूहत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं दाहिणडढे बारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमे णं सदा पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सदा पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, अवट्ठिया णं तत्थ राइंदिया पणत्ता समणाउसो ! एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु--ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहत्ताणतरे दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, एवं परिहावेतव्वं-सत्तरसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, सोलसम्हुत्ताणतरे दिवसे भवइ, पण रसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, चोद्दसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, तेरसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढेवि बारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणढेवि बारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमपच्चत्थिमे णं णो सदा पण्ण रसमुहत्ते दिवसे भवइ, णो सदा पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, अणवट्ठिता णं तत्थ राइंदिया पण्णत्ता समणाउसो! एगे एवमासु २ एगे पुण एवमाहंसु-ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणडढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती भवति, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती १. सता (ग,घ,ट,व)। २. बारसमुहत्ता (ग,ध)। ६२६ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं पाहुडं ६२७ भवति, ता जया णं दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता' राती भवति, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती भवति । 'एवं तब्वं सगलेहि य अणंतरेहि य एक्केक्के दो दो आलावगा' सव्वेहिं दुवालस मुहुत्ता राती भवति जाव ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे बारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती भवति, ता जया णं उत्तरड्ढे दुवालसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढे दुवालसमुहुत्ता राती भवति, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेणं णेवत्थि पण्णरस मुत्ते दिवसे भवइ, णेवत्थि पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, वोच्छिण्णा णं तत्थ राइंदिया पण्णत्ता समणाउसो! एगे एवमासु ३।। वयं पुण एवं वदामो ता जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुरगच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति पाईण-दाहिण मुगच्छ दाहिण-पडीणमागच्छंति दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीणउदीणमागच्छंति पडीण-उदीणमुग्गच्छ उदीण-पाईणमागच्छंति, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिण ड्ढे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि' दिवसे भवइ । जया णं उत्तरड्ढे दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमपच्चत्थिमे णं राती भवति । ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे गं दिवसे भवइ तया णं पच्चत्थिमे गवि दिवसे भवइ। ता जया णं पच्चत्थिमे णं दिवसे भवइ तया णं जंबडीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं राती भवति । ता जयाणं दाहिणडले उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्डेवि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ । ता जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमे गं जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति । ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंद रस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे णवि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ । ता जया णं पच्चत्थिमे णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एवं एएणं गमेणं णेतव्वं अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, साइरेगदुवालसमुहुत्ता राती भवति, सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तेरसमुहुत्ता राती भवति, सत्तरसमुहृत्ताणतरे दिवसे भवइ, साइरेगतेरसमुहुत्ता राती भवति, सोल समुहुत्ते दिवसे भवइ, चोद्दसमुहुत्ता राती भवति, सोलसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगचोद्दसमुहुत्ता राती भवति, पण्णरस मुहुत्ते दिवसे भवइ, पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगपष्णरसमुहुत्ता राती १,२. बारसमुहुत्ता (ग,घ)। बारसमुहत्तःणंतरे (ट,व)। ३. आलावका (क,ग,घ)। ५. मुग्गच्छति (क ग,घ,टव) सर्वत्र । ४. एवं सत्तररामुहुत्ते दिवसे सत्तरसमुहुत्त गंतरे ६. उत्तरड्डे (क,ग,घ,ट,व) द्वयोरपि वृत्त्योः सोलसमुहुत्ते सोलसमुहुत्ताणंतरे पणरसमुहुत्ते उत्तरार्धपि' इति व्याख्यातमस्ति । भगवत्या पणरसमुहताणंतरे चउदसमुहुत्ते चउदसमुहत्ताणं- (५४) मपि 'उत्तरड्ढे वि' इति पाठो तरे तेरसमुहत्ते तेरसमूहत्ताणतरे बारसमूहत्ते लभ्यते। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ सूरपण्णत्ती भवति, चउद्दसमुहत्ते दिवसे भवइ, सोलसमुहुत्ता राती भवति, चोइसमुहत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगसोलसमुहत्ता राती भवति, तेरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सत्तरसमुहुत्ता राती भवति, तेरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ, साइरेगसत्तरसमुहुत्ता राती भवत्ति, 'जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, उक्कोसिया अट्टारसमुहुत्ता राती भवति । एवं भणितन्वं" । ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जति तया णं उत्तरड्ढेवि वासाणं पढमे समए पडिवज्जति, जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जति, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमे णं अणंतरपुरक्खडे कालसमयंसि' वासाणं पढमे समए पडिवज्जति, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जति तया णं पच्चत्थिमे णवि वासाणं पढमे समए पडिवज्जति जया णं पच्चत्थिमे वासाणं पढमे समए पडिवज्जति तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स उत्तरदाहिणे णं अणंतरपच्छाकडकालसमयंसि' वासाणं पढमे समए पडिवण्णे भवइ । जहा समओ एवं आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उडू । एते' दस आलावगा जहा' वासाणं, एवं हेमंताणं गिम्हाणं च भाणियव्वा । ता जया णं जंबहीवे दीवे दाहिणड्ढे पढमे अयणे पडिबज्जति तया णं उत्तरड्ढेवि पढमे अयणे पडिवज्जति, ता जया ण उत्तरडढे पढमे अयणं पड़िवज्जति तयाण दाहिणड़वि पढमे अयणे पडिवज्जति ता जया णं उत्तरडढे पढमे अयणे पडिवज्जति तया णं जंबहीवे दीवे मदरस्स पव्व. यस्स पुरस्थिमपच्चत्थिमे णं अणंतरपुरक्खडे कालसमयंसि पढमे अयणे पडिवज्जति, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं पढमे अयणे पडिवज्जति तया णं पच्चत्थिमे णवि पढमे अयणे पडिवज्जति, ता जया णं पच्चत्थिमे णं पढमे अयणे पडिवज्जति तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणे णं अणंतरपच्छाकडकालसमयंसि पढमे अयणे 'पडिवण्णे भवई" । 'जहा अयणे तहा संवच्छरे जूगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे एवं जाव" सीसपहेलिया पलिओवमे १. ता जया णं जंबूद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे जहण्णए २. समयंसि (भ० ५॥१३) । दुवालसमुहत्ता रातीभवति तता णं उत्तरड्ढे ३. अणंतरपच्छाकयकालसमयंसि (ग,ष); अणंजहणं दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति । जया णं तरपच्छाकडसमयंसि (ट)। उत्तरड्ढे जहण्णए दुवालस दिवसे तता णं ४. उडुए (ट,ब)। जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमे णं ५. एवं (ग,घ); ए (ट,व) । पच्चत्थिमे णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राति ६. आलावका (क,ग,ध)। भवति । ता जया णं जंबुद्दीवमंदरपुरस्थिमे णं ७. जधा (क,ग,ध)। जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवति तता णं ८ तासा गं (ग,ध) । पच्चस्थिमे वि जहण्णए दुवालय मुहत्ते दिवसे ६. पडिवज्जति (क,ग,ध)। भवति । जया णं पच्चत्यिमे णं जहण्णं दुवाल- १०. जहा अयणे तधा संवच्छरे जुगे वाससते एवं समुहते दिवसे तता णं जंबदीवे दीवे मदरस्स (क.ग,घ); एवं संवच्छरे जुगे बाससए (ट,य)। उत्तरे णं दाहिणे णं उक्कास अट्ठारसमुहत्ता ११. भ० ५।१८ 'ट, व आदर्शयोः एष पाठः राति भवति (ट,व)। साक्षाल्लिखितो दृश्यते। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम पाहुडं ६२६ सागरोवमे। ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जति तया णं उतरड्ढेवि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जति, ता जया णं उत्तरढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जति तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमे णं णेवत्थि ओसप्पिणी व अस्थि उस्सप्पिणी अवट्टिते णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो ! एवं उस्सप्पिणीवि । ता लवणे णं समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ तहेव'! ता जया णं लवणे समुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं लवणसमुद्दे उत्तरड्ढेवि दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे दिवसे भवइ तया णं लवणसमुद्दे पुरथिमपच्चत्थिमे णं राती भवति । जहाँ जंबुद्दीवे दोवे तहेव जाव उस्सप्पिणी। तहा धायइसंडे णं दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ तहेव । ता जया णं धायइसंडे दीवे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं उत्तरडढेवि दिवसे भवइ, जया णं उत्तरडढे दिवसे भवइ तया णं धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं पुरथिम्पच्चत्थिमे णं राती भवति । एवं जंबुद्दीवे दीवे जहा तहेव जाव उस्सप्पिणी। कालोए णं जहा लवणे समुद्दे तहेब । ता अभंतरपुक्खरद्धे णं सूरिया उदीण-पाईणमुगच्छ तहेव । ता जया णं अब्भतरपुक्खरद्धे णं दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं उत्तरडेवि दिवसे भवइ, ता जथा ण उत्तरड़ढे दिवसे भवइ तया णं अभितरपुक्खरद्धे मंदराणं पव्वयाणं पुरथिमपच्चत्थिमे गं राती भवति, सेसं जहा जंबुद्दीवे दीवे तहेव जाव ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीओ॥ १. सूर्यप्रज्ञप्तेः 'क,ग,घ' संकेतितादर्शषु एतत् पदं नैव लभ्यते । द्वयोरपि वृत्त्योरेतत्पदं नास्ति व्याख्यातम् । किन्तु तयोरुद्धते बालापकपाठे एतत्पदं दृश्यते, भगवत्या (५११६) मपि एतत्पदं विद्यते, 'पढमे समए' इति प्रस्तुते क्रमेऽपि अपेक्षितमस्ति, तेनात्र एतन्मूले स्वीकृतम् । २. अतः परं 'ट,व' आदर्शयोः संक्षिप्तपाठो विद्यते-एवं लवणसमुद्दे घातीसंडे कालोए ता अब्भतरपुक्खरद्धे णं सूरिया उदीणपाईणमुग्गच्छंति पातीणदाहिणमागच्छंति एवं जंबुद्दीवं वत्तब्वता। ३. 'तहेव' त्ति यथा जम्बूद्वीपे उद्गमविषये आलापक उक्तः तथा लवणसमुद्रपि वक्तव्यः, स चैवम्-'लवणं सूरिया उईपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमाग्गछति पाईणदाहिणमुग्गच्छ दाहिणपाईणमागच्छति, दाहिणपाईणमुग्गच्छ पाईण उईणमागच्छति पाईणउईणमुग्गच्छ उईणपाईणम गच्छति,' इदं च सूत्र जम्बूद्वीपगतोद्गमसूत्रवत् स्वयं परिभावनीयं, नवरमत्र सूर्याश्चत्वार वेदितव्याः (सूव) । ४. यथा जम्बुद्वीरे द्वीपे परच्छिम्पच्चचिछमे णं राई भवाद' इत्यादिकं सुत्रमुक्तं यावदुत्सप्पिण्यवसप्पिण्यालापकस्तथा लवणसमुद्रप्यन्यनातिरिक्तं सगस्तं भणि व्यं, नवरं जम्बुद्वीपे द्वीपे इत्यस्य स्थाने लवणसमुद्रे इति वक्तव्यमिति शेषः (सूव)। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं पाहुडं १. ता कतिकट्ठ ते रिए पोरिसिच्छायं णिवत्तेति आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु - ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला संतप्पंति, ते णं पोग्गला संतप्पमाणा तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई संतावेतीति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते. एगे एवामहंसू १ एगे पुण एवमाहंसु ता जे गं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला णो संतप्पंति, ते णं पोग्गला असंतप्पमाणा तदणंत गई वाहिराई पोरगलाइं णो संतावेंतीति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते एगे एवमासु २ एगे पुण एवमासु-ता जे णं पोग्गला सरियस्स लेसं फसंति ते णं पोग्गला अत्थेगतिया संनप्पति अत्थेगतिया णो संतप्पनि, तत्थ अत्थेगतिया संतप्यमाणा तदणंतराइं बाहिराई पोग्गलाई अत्थेगनियाई संतावेति अत्थेगतियाइं णो संताति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते एगे एवमासु ३ । वयं पुण एवं वदामो ता जाओ इमाओ चंदिमसुरियाणं देवाणं विमाणे हितो लेसाओ बहिया' अभिणिस्सढाओ पतानि, एनामि णं लेसाणं अंतरेसु अप्रणतरीओ छिण्णलेसाओ संमुच्छंति, नए णं ताओ छिण्णले साओ संमृच्छियाओ समाणीओ तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई संतावेंतीति एस णं से समिते तावक्खेत । २. ला कतिकट्ठे ते सुरािण पोरिसिच्छायं णिवत्तेति आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंमु ता अणुसमयमेव सुरिए पोरिसिच्छायं णिवत्तेति आहितेति वदेज्जा एगे एवमासु १ एगे पुण एवमाहंसु -ता अणुमुहुत्तमेव सरिए पोरिसिच्छायं णिवत्तेति आहितेति वएज्जा २ एवं एएणं अभिलावेणं णेयव्वं, ता जाओ चेव ओयसंठितीए पणवीसं पडिवत्तीओ ताओ चेव णेयव्वाओ जाव' अणुओसप्पिणिउस्सपिणिमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति आहिताति वदेज्जा-एगे एवमाहं सु २५ । वयं पूण एवं वयामो.. ता सरियस्स णं उच्चत्त च लेसं च पडच्च छाउहे से. उच्चत्तं च छायं च पडुच्च लेसुद्देसे, लेसं च छयं च पडुच्च उच्चत्तुद्दे से, तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता अस्थि णं से दिवसे जंसि गं' दिवसंसि सूरिए १. बहिता (क,ग,घ,व)। ३. च णं (ट,व) । २. सू० ६.१ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं पाहुड चउपोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति अत्थि णं से दिवसे जसिणं दिवसंसि सरिए दुपोरिसिच्छायं णिवत्तेति—एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु · ता अस्थि णं से दिवसे जसिणं दिवसंसि सरिए दुपोरिसिच्छायं णिवत्तेति, अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सरिए णो किंचि पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति २ तत्थ जेते एवमाहंसु ता अस्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए चउपोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति, अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसिच्छायं णिवत्तेति ते एवमाहंसु, ता जया णं सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तथा णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दवालसमूहत्ता राती भवति, तंसि णं दिवसंसि सूरिए चउपोरिसियं छायं णिवत्तेति.तं जहा-उम्गमण हत्तंसि य' अत्थमणमुहत्तंसि य लेसं अभिवडढेमाणे णो चेव णं णिवडढेमाणे, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्रपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं णिवत्तेति, तं जहा उग्गमणमुहुत्तसि य अत्थमणमुहत्तंसि य लेसं अभिवुड्ढेमाणे णो चेव णं णिवुड्ढेमाणे १ तत्थ णं जेते एवमाहंसु ---ता अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं णिवत्तेति, अस्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए णो किंचि पोरिसियं छायं णिव्क्त्तेति, ते एवमासु, ता जया णं सुरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ जहणिया दुवालसमुहत्ता राती भवति, तंसि णं दिवसंसि सरिए दपोरिमिय छायं णिवत्तेति, तं जहा -उग्गमणमुहत्तंसि य अत्थमणमुहुत्तंसि य लेसं अभिवड्ढे माणे णो चेव णं णिवुड्ढेमाणे, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुत्ता राती भवति, जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ, तंसि णं दिवसंसि सूरिए णो किंचि पोरिसियं छायं णिव्वत्तेइ, तं जहा-- उग्गमणमुहुत्तंसि य अत्थमणमुहुर्तसि य, णो चेव णं लेसं अभिवड्डेमाणे वा णिबुड्ढेमाणे वा २॥ ३. ता कतिकट्ठ ते सूरिए पोरिसिच्छायं णिवत्तेति आहिताति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ छण्णउति पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमासु -ता अस्थि णं से देसे जंसि च णं देसंसि सूरिए एगपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति -- एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु-ता अस्थि णं से देसे जंसि गं देसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं णिवत्तेइ २ एवं एएणं अभिलावेणं णेतव्वं जाव छण्णउति पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति । तत्थ जेते एवमाहंसुता अत्थि णं से देसे जंसि णं देसंसि सूरिए एगपोरिसियं छायं णिवत्तेति, ते एवमाहंसु-ता सूरियस्स णं सव्वहेट्ठिमाओ सूरियप्पडिहीओं बहिया अभिणिस्सढाहि लेसाहिं ताडिज्जमाणीहिं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ जावतियं सूरिए १. चउपोरिसियं छायं (क,ग,घ) ! २. दो पोरिसियं छायं (क,ग,ध) । ३. या (क,ग,घ) अग्रेऽपि । ४. निव्वत्तति आहितेति वएज्जा (ट,व)! ५. सूरिपडिहामओ (ट)। ६. अभिणिसडाहिं (क,घ,ट,)। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ सूरपण्णत्ती उड़ढं उच्चत्तेनं एवतियाए एगाए अद्धाए एगेणं छायाणुमाणप्पमाणेणं ओमाए', 'एत्थ णं से सूरिए एगपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति १ तत्थ जेते एवमाहंसु - ता अस्थि से देसे जंसि णं देसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं णिव्वतेति ते एवमाहंसु ता सूरियस्स णं सव्वहेट्टिमाओ सूरियप्पsिहीओ बहिया अभिणिस्सिताहि लेसाहि ताडिज्जमाणीहि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ जावतियं सूरिए उड्ढ उच्चत्ते एवतियाहि दोहि अद्धाहि दोहिं छायाणुमाणप्पमाणेहिं ओमाए, एत्थ णं से सूरिए दुपरिखियं छायं णिव्वत्तेति २ एवं एक्केक्काए पडिवत्तीए णेयव्वं जाव छण्णउतिमा पडिवत्ती - एगे एवमाहंसु ६६ | वयं पुण एवं वदामो'- “ - ता सातिरेगअउणद्विपोरिसीणं सूरिए पोरिसिच्छायं णिब्बत्तेति, ता अवडपोरिसी णं छाया दिवसस्स कि गते वा सेसे वा ? ता तिभागे गते वा सेसेवा, ता पोरिसी णं छाया दिवसस्स किं गते वा सेसे वा ? ता चउन्भागे गते वा सेसे वा, ता दिवडूपोरिसी गं छाया दिवसस्स किं गते वा सेसे वा ? ता पंचमभागे गते वा सेसे वा, एवं अपोरिसि छोढुं छोढुं पुच्छा दिवसस्स भागं छोढुं छोढुं वागरणं जाव ता अद्धअणद्विपोरिसीणं छाया दिवसस्स किं गते वा सेसे वा ? ता एगूणवीस सतभागे गते वा सेसे वा, ता अउट्ठपोरिसीणं छाया दिवसस्स किं गते वा सेसे वा ? ता बावीससहसभागे गते वा सेसे वा, ता सातिरेगअउणद्विपोरिसी णं छाया दिवसस्स कि गते वा सेसे वा ? ता णत्थि किंचि गते वा सेसे वा ॥ ४. तत्थ खलु इमा पणवीसतिविधा छाया पण्णत्ता, तं जहा खंभच्छाया रज्जुच्छाया पागारच्छाया पासादच्छाया उवग्गच्छाया उच्चत्तच्छाया अणुलोमच्छाया पडिलोमच्छाया आरुभिता उवहितासमा पडिहता खीलच्छाया पक्खच्छाया पुरओउदग्गा पिटुओउदग्गा" १. इमाए (ट,व) 1 २. तस्थ (क, ग, घ ) 1 ३. असौ स्वीकृतः पाठः द्वयोरपि वृत्योर्व्याख्यातोस्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ट,व' संकेतितादर्शयोरपि लभ्यते, सूर्य प्रज्ञप्तेरादर्शेषु किञ्चिद् विस्तृतः पाठो दृश्यते— एवं यव्वं जाच तत्थ जेते एवमाहंसु-ता अस्थि णं से देसे जंसि णं देसंसि सुरिए छण्णउतिपोरिसियछायं णिश्वतेति ते एवमाहंसु-ता सूरियस्स णं सव्वहिट्टिमाओ सूरपडीओ बहिया अभिणिस्सडाह साहिं ताडिज्माणीहि इमीसे रयणप्प भाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो जावतियं सूरिए उङ्घ उच्चतेणं एवतियाहि छण्णवतीए अद्धाहि छायाणुमाणप्यमाणाहि ओमाए, एत्थ णं से सूरिए छण्णउति पोरि सियं छायं णिश्वत्तेति - एगे एवमाहंसु । ४. भाणियव्वं (टव) ५. वर्त (व) । ६. बतामो (व) । ७. अणुगट्ट° (ट) ८. 'दिवस भागं' ति पूर्वपूर्वसूत्रापेक्षया एकैकमधिकं दिवसभागं क्षिप्त्वा क्षिप्त्वा व्याकरणं ---- उत्तरसूत्रं ज्ञातव्यं तच्चैवम् - बिपोरिसी णं छाया किं गए वा सेसे वा ? ता छन् भागगए वा सेसेवा, ता अड्डाईपोरिसी णं छाया कि गए वा सेसेवा ? तां सत्तभागगए वा सेसे वा' इत्यादि एतच्च एतावत् तावत् यावत् 'ता अगुणट्टी' इत्यादि सुगमम् (सूवृ ) । ६. पंथच्छाया ( ट ) ; पंकच्छाया (व) । १०. पिडिङगा ( गध ) । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं पाहुडं पुरिमकंठभाओवगता पच्छिमकंठभाओवगता छायाणुवादिणी कंठाणुवादिणी छाया छायच्छाया छायाविकंपे वेहासकडच्छाया गोलच्छाया॥ ५. तत्थ खलु इमा अट्ठविहा गोलच्छाया पण्णत्ता, तं जहा---गोलच्छाया अवड्डगोलच्छाया गोलगोलच्छाया अवड्डगोलगोलच्छाया गोलावलिच्छाया अवड्डगोलावलिच्छाया गोलपुंजच्छाया अवड्डगोलपुंजच्छाया । १. x (ग,घ)। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं पढमं पाहुडपाहुडं १. ता जोगेति वत्थुस्स आवलियाणिवाते आहितेति वदेज्जा, ता कहं ते जोगेति वत्थुस्स आवलियाणिवाते आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता सव्वेवि णं णक्खत्ता कत्तियादिया भरणिपज्जवसाणा' पण्णत्ता' --एगे एवमाहंस १ एगे पूण एवमाहंस ता सब्वेवि णं णक्खत्ता महादिया अस्सेसपज्जवसाणा पण्णत्ता---एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु ता सव्वेवि णं णक्खत्ता धणिवादिया सवणपज्जवसाणा पण्णत्ता-एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वेवि णं णक्खत्ता अस्सिणीआदिया रेवइपज्जवसाणा पण्णत्ता-एगे एवमासु ४ एगे पुण एवमाहंसु -ता सब्वेवि णं णक्खत्ता भरणीआदिया अस्सिणीपज्जवसाणा पण्णत्ता--- एगे एवमाहंसु ५। वयं पुण एवं वदामो- ता सव्वेवि णं णक्खत्ता अभिईआदिया उत्तरासाढापज्जवसाणा पण्णता, तं जहा -अभिई सवणो जाव उत्तरासाढा ।। बीयं पाहुडपाहुडं २. ता कहं ते मुहत्तग्गे आहितेति वदेज्जा? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थि णक्खत्ते जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएति । अत्थि णक्खत्ता जे णं पण्णरस मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं तीसं महत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं पणयालीसे मुहत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ते जे णं णवमुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभाए मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएति ? कयरे णक्खत्ता १. पज्जवसिया (ट,व) सर्वत्र।। २. ४ (क,ग,घ; आहिते ति वदेज्जा (ट,व) सर्वत्र। ३. असिलेस° (ट)। ४. चन्द्रप्रज्ञप्तेरादर्शयोः 'ट,व संकेतितयोः पूर्णः पाठोपि लभ्यते—अभी यी समणो धगिट्ठा सत विसता पुब्बभवता उत्तराभवता रेवति अस्सिणि भरणि कित्तिया रोहिणि मिगसिरं अद्दा पुणव्वसो पुसो असिलेस मघा पुवफग्गुणि उत्तराफरगुणि हत्थो चित्ता साति विसाहा अणुराधा जिट्ठा मूलो पुवासाढा उत्तरासाढा ६३४ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (तच्चं पा०) जे णं पण्णरसमुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं तीसं मुहत्ते चंदेण सद्धिं जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जेसे णक्खत्ते जे णं णव मुहत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएति से णं एगे अभीई। तत्थ जेते गक्खत्ता जे णं पण्णरसमुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा–सतभिसया' भरणी अद्दा अस्सेसा साती जेट्ठा । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं तीसं मुहुत्तं चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं पण्णरस, तं जहा-सवणे धणिट्ठा पुव्वाभद्दवया रेवती अस्सिणी कत्तिया मिगसिरं पुस्सो महा पुव्वाफग्गुणी हत्थो चित्ता अणुराहा मूलो पुव्वासाढा । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा - उत्तराभद्दपदा रोहिणी पुणब्बस उत्तराफग्गणी विसाहा उत्तरासाढा ।। ३. ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थि णक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहत्ते सूरेण' सद्धि जोयं जोएति । अस्थि णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं च महत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते दुवालस' य मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं वीस अहोरत्ते तिणि य मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति । ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णवखताणं कयरे णक्खत्ते जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएति ? कयरे णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते बारस मुहुत्ते सरेण सद्धि जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जेणं वीसं अहोरत्ते तिष्णि य महत्ते सुरेण सद्धि जोयं जोएंति? ता एतेसि णं अदावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जेसे एक्खते जेणं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएति से णं एगे' अभीई। तत्थ जेते णखत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं च मुहृत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते ण छ, तं जहासतभिसया भरणो अद्दा अस्सेसा साती जेट्ठा । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते दुवालस य मुहुत्ते सूरेण सद्धिं जोयं जोएंति ते णं पण रस, तं जहा-सवणो धणिट्रा पुव्वाभद्दवया रेवती अस्सिणी कत्तिया मिगसिरं पूसो महा पुव्वाफग्गुणी हत्थो चित्ता अणराहा मूलो पुव्वासाढा । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं वीसं अहोरत्ते तिणि य मुहत्ते सुरेण सद्धि जोयं जोएंति ते गं छ, तं जहा- उत्तराभद्दवया रोहिणी पुणव्वसू उत्तराफग्गुणी विसाहा उत्तरासाढा ॥ । तच्चं पाहुडपाहुडं ४. ता कहं ते एवंभागा आहिताति वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अस्थि णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" पुबंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता । अत्थि १. सतभिसता (ट,व)। ५. सूरिएण (ट,व) सर्वत्र । २. समणो (ग,घ)। ६. बारस (क,ग,घ)। ३. महरिर (ग,घ)। ७. x (क,ग,घ)। ४. उत्तराभद्दपादा (ग); उत्तरभद्दवया (ट); ८. उत्तराभवता (क,ग,घ,,व)। उत्तराभहफ्ता (ब)। ६. ४ (क,ग,ध)। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" पच्छंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता। अत्थि णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" णतंभागा अवड्डक्खेत्ता पण्णरस मुहुत्ता पण्णत्ता। अत्थि णखत्ता 'जे णं णक्खत्ता" उभयंभागा दिवड्डखेत्ता पणयालीसइमुहत्ता पण्णत्ता । ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" पुव्वंभागा समक्खेत्ता तीस इमहुत्ता पप्णत्ता ? कयरे णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्त। तीसइमहत्ता पण्णता? कयरे णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता" णत्तंभागा अवड्रक्खेत्ता पण्णरसमूहत्ता पण्णत्ता? कयरे णक्खत्ता 'जे णं णक्खत्ता' उभयंभागा दिवड्डक्खेत्ता पणयालीसइमुहुत्ता पण्णत्ता । ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जेते णक्खत्ता पुव्वंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता ते णं छ, तं जहा -पुवापोटुवया कत्तिया महा पुव्वाफग्गुणी मूलो पुवासाढा। तत्थ जेते णक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्ता तीसइमुहुत्ता पण्णत्ता ते णं दस, तं जहा.... अभिई सवणो धणिट्ठा रेवती अस्सिणी मिगसिर पूसो हत्थो चित्ता अणुराहा । तत्थ जेते णक्खत्ता णतंभागा अवडक्खेता पण्णरसमुहुत्ता पण्णत्ता ते णं छ, तं जहा- सतभिसया भरणी अद्दा अस्सेसा साती जेट्ठा । तत्थ जेते णक्खत्ता उभयंभागा दिवड्डक्खेत्ता पणयालीसइमुहुत्ता पण्णत्ता ते णं छ, तं जहा–उत्तराभवया रोहिणी पुणव्वसू उत्तराफरगुणी विसाहा उत्तरासाढा॥ चउत्थं पाहुडपाहुडं ५. ता कहं ते जोगस्स आदी आहितेति" वदेज्जा ? ता अभीई-सवणा खलु दुवे णक्खत्ता पच्छंभागा समक्खेत्ता सातिरेगऊतालीसइमुहुत्ता" तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएंति, ततो पच्छा अवरं सातिरेगं दिवसं—एवं खलु अभिई-सवणा दुवे णक्खत्ता एगं राति एगं च सातिरेगं दिवसं चंदेण सद्धि जोयं जोएंति, जोएत्ता जोयं अणुपरियटुंति, अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं धणिट्ठाणं समप्येति । ता धणिट्ठा खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता ततो पच्छा राति अवरं च दिवसं एवं खलु धणिट्ठा णक्खत्ते एगं राति एगं च दिवसं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता सायं चंदं सतभिसयाणं" समप्पेति । ता सतभिसया खलु णक्खत्ते णत्तंभागे अवड्डक्खेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं" चंदेण सद्धि जोयं जोएति, णो लभति अवरं दिवरां-एवं खलु सतभिसया णक्खत्ते एगं राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता पातो चंदं पुव्वाणं पोटुवयाणं समप्पेति । ता पुवापोट्ठवया खलु णक्खत्ते पुव्वंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए पातो चंदेण सद्धि जोयं जोएति, तओ पच्छा अवरं राति --एवं खलु पुव्वापोटुवया णक्खत्ते एग दिवसं एगं च राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता पातो १-७. x (क,ग,घ) । १२. उणतालीस'इ° (ट,व) । ८. समणो (ग,घ,व); सवणे (ट)। १३. सततिसयाणं (घ); सतभिसताणं (८); ९. मिगसिरासिरं (ग,घ); मगसिरं (ट)। सतविसताणं (व)। १०. उत्तरापोट्ठवता (क,ग,घ) । १४. सागं (व)। ११. आहिताति (फ,ग,घ)। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (पंचमं पा०) ६३७ चंदं उत्तराणं पोट्टवयाणं समप्पेति । ता उत्तरापोटुवया खलु ण वखत्ते उभयंभागे दिवड्डक्खेत्ते पणयालीस इमुहत्ते तप्पढमयाए पातो चंदेण सद्धि जोयं जोएति, अवरं च राति ततो पच्छा अवरं दिवसं - एवं खलु उत्तरापोटुवया णवखत्ते दो दिवसे एगं च राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरिट्टित्ता सायं चंदं रेवतीणं समप्पेति । ता' रेवती खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएति, ततो पच्छा अवरं दिवसं... एवं खलु रेवती णक्खत्ते एग राति एगं च दिवसं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टिता सायं चंदं अस्सिणीणं समप्पेति । ता अस्सिणी खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तोसइमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति ततो पच्छा अवरं दिवस-एवं खलु अस्सिणी णक्खत्ते एगं राति एगं च दिवसं चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता सायं चंद भरणीणं समप्पेति। ता भरणी खलु णक्खत्ते णतंभागे अवक्खेत्ते पण्णरसमूहत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति. णो लभति अवर दिवसं एवं खल भरणी पक्वते एग राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता पातो चंदं कत्तियाणं समप्पेति । ता कत्तिया खलु णक्खत्ते पुत्वंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहत्ते तप्पढम्याए पातो' चंदेण सद्धि जोयं जोएति, ततो पच्छा राति एवं खलु कत्तिया णक्खत्ते एग दिवसं एगं च राति चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता पातो चंदं रोहिणीणं समप्पेति । रोहिणी जहा उत्तरभद्दवया । मिग सिरं जहा धणिट्ठा । अद्दा' जहा सतभिसया । पुणव्वसू जहा उत्तरभद्दवया । पुस्सो जहा धणिट्ठा । अस्सेसा जहा सतभिसया। मघा जहा पुव्वाफग्गुणी । पुव्वाफग्गुणी जहा पुव्वाभद्दवया । उत्तराफग्गुणी जहा उत्तरभद्दवया । हत्थो चित्ता य जहा धणिट्ठा । साती जहा सतभिसया । विसाहा जहा उत्तरभद्दवया । अणुराहा जहा धणिट्ठा। जेट्ठा जहा सतभिसया । मूलो पुव्वासाढा य जहा पुटवभद्दवया । उत्तरासाढा जहा उत्तरभद्दवया ॥ पंचमं पाहुडपाहुडं ६. ता कहं ते कुला आहिताति वदेज्जा? तत्थ खलु इमे बारस कुला बारस उवकुला चत्तारि कुलोवकुला पण्णत्ता । बारस कुला तं जहा-धणिट्ठा कुलं उत्तराभ दवया कुलं १. अत: 'व' प्रती भिन्नावाचना लभ्यते--तथा देवा रेवति खलु णखत्ते पच्छंभागे सम जहा धणिवा जाव भाग चंदं अस्सिणी णं समप्पेति, भरणी खलु णखत्ते शंतरं भागे अवड्ड जहा सतविसता जाव पादो चंदं कत्तिताणो सम- प्पेति, एवं जहा पुब्वाभवता तहा पुवंभागा छप्पि णेयम्वा, जहा धणिद्रा तहा 'पच्छंभागा' अट्ठ णेयव्वा जाब एवं खलु उत्तरासादा दो दिवसे एगं च राति ग चदेण सद्धि जोगं जोएति जोगं २ अणुपरियति जोगं २ अतिति समणं समप्पेति । २. सायं (क); सागं (घ,व) । ३. अत: 'ट' प्रती भिन्न वाचना लम्यते-एवं जहा सतभिसया तहा नतंभागाणेयव्वा, जहा पुव्वाभदवया तहा पुवंभागा छप्पि नेयव्या, जहा धणिट्ठा तहा पच्छाभागाने यव्वा, अभिति समणं समप्पिति। ४. उत्तरापोटवता (क,ग,घ)। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ सूरपण्णती अस्सिणी कुलं कत्तिया कुलं संठाणा' कुलं पुस्सो कुलं महा कुलं उत्तराफग्गुणी कुलं चित्ता कुलं विसाहा कुलं मूलो कुलं उत्तरासाढा कुलं । बारस उवकुला, तं जहा- सवणो उवकुलं पुन्वभवया उवकुलं रेवती उवकुलं भरणी उवकुलं रोहिणी उवकुलं पुण्णवसू उवकुलं अस्सेसा उवकुलं पुव्वाफग्गुणी उवकुलं हत्थो उवकुलं साती उवकुलं जेट्ठा उपकुलं पुव्वासाढा उपकुलं । चत्तारि कुलोवकुला, तं जहा--अभीई कुलोवकुलं सतभिसया कुलोवकुलं अद्दा कुलोवकुलं अणुराहा कुलोवकुलं ॥ छठं पाहडपाहडं ७. ता कहं ते पुण्णिमासिणी' आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ 'बारस पुण्णिमासिणीओ बारस अमावासाओ" पण्णत्ताओ, तं जहा--- साविट्ठी पोट्टवली आसोई कत्तिया मग्गसिरी पोसी माही फग्गुणी चेत्ती वइसाही जेट्ठामूली आसाढी ॥ ८. ता साविद्विणं पुण्णिमासि कति णक्खत्ता जोएंति ? ता तिण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा- अभिई सवणो धणिट्ठा ॥ ६. ता पोटुवतिष्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता ति णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा–सतभिसया पुब्बापोडवया उत्तरापोट्ठवया ।। १०. ता आसोइण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-- रेवती अस्सिणी य ।। ११. ता कत्तियण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा—भरणी कत्तिया य॥ १२. ता 'मग्गसिरण्णं पुण्णिम" कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोणि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा -रोहिणी मिगसिरोय । १३. ता पोसिणं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता तिणि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा--अद्दा पुण्णवसू पुस्सो॥ १४. ता माहिण्णं पुण्णिम कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोणि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा.-अस्सेसा महा य । १५. ता फग्गुणिणं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दुण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा-पुव्वाफग्गुणी उत्तराफरगुणी य । १६. ता चेत्तिण्णं पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोणि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा -हत्थो चित्ता य ।। १७. ता वइसाहिण्णं" पुण्णिमं कति णक्खत्ता जोएंति ? ता दोण्णि णक्खत्ता जोएंति, १. मिगसिरं (ट,व)। ६. विसाही (क,ग,घ,ट,ब)। २. पुब्वट्ठवता (क,ग,घ)। ७. सततिसया (ग,घ); सतविसया (व) । ३. पुणमासी (ट,व)। ८. अस्सोदिण्णं (ग,घ) । ४. दुवालस अमावसातो दुवालस पुणिमातो ६. मग्गसिरी पुषिणमं (क,ग,घ) । १०. मागसिरो (ग,ध)। ५. अस्सोती (ब)। ११. विसाहिष्णं (ग,घ); विसाहि (ट)। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (छठें पा०) ६३६ तं जहा-साती विसाहा य ॥ १८. ता जेट्टामलिण्णं पुण्णिमासिणि कति गक्खत्ता जोएंति ? ता तिणि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा–अणुराहा जेट्ठा मूलो॥ १६. ता आसाढिण्णं पुण्णिम कति जनसत्ता गोएंति ? ता दो णक्खत्ता जोएंति, तं जहा---पुन्दासाढा उत्तरासाढा ।। २०: ता साविट्टिण्णं पुणिमासिणि किं कुलं जोएति ? उवकुलं वा जोएति ? कुलोवकुलं वा' जोएति ? ता कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति । कुलं जोएमाणे धगिट्ठा णक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे सवणे गक्खत्ते जोएति, कुलोवकुलं जोएमाणे अभिई णक्खत्ते जोएति । साविट्टिण्णं पुण्णिमं कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति । कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कुलोवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया ॥ २१. ता पोट्ठवतिण्णं पुणिमं किं कुलं जोएति ? उवकुलं जोएति ? कुलोवकुलं वा जोएति ? ता कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति । कुलं जोएमाणे उत्तरापोटुवया णक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे पुवापोट्टवया णक्खत्ते जोएति, कुलोवकुलं जोएमाणे सतभिसया णक्खत्ते जोएति । पोढुवतिण्णं पुण्णमासिणि कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, कुलोवकुलं वा जोएति, कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता कुलोवकुलेण वा जुत्ता पोटुवती पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया।। २२. ता आसोइण्णं' पुण्णिमासिणि किं कुलं जोएति ? 'उवकुलं वा जोएति ? कुलोवकुलं वा जोएति ?" ता कुलंपि जोएति, उवकुलंपि जोएति, णो लभति कुलोवकुलं । कुलं जोएमाणे अस्सिणी णक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे रेवती णक्खत्ते जोएति । आसोइण्णं पुणिमं कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति ! कुलेण वा जुत्ता उवकलेण वा जुत्ता आसोई णं पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया । 'एवं णेयव्वाओ-पोसि पुणिमं जेट्ठामूलिं पुण्णिमं च कुलोवकुलंपि जोएति, अवसेसासु णत्थि कुलोवकुलं' 'जाव आसाढी पुण्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया॥ २३. ता सविट्टिण्णं अमावासं कति णक्खत्ता जोएति ? ता दुण्णि णक्खत्ता जोएंति, तं जहा—अस्सेसा महा य । एवं एतेणं अभिलावेणं णेतव्वं पोटुवति दो णक्खत्ता जोएंति, १. ४ (क,ग,घ)1 पाठो विद्यते—दुवालस अमावसाओ (अवाम२. समणे (ट,व)। सातो-व) पंतं सावट्ठि पोट्ठवति जाव आसाठी। ३. आसोदिष्णं (क,ग,घ.ट); अस्सोहण (व) । वृत्तिद्वयेपि एष पाठो व्याख्यातोस्ति, किन्तु ४. पुच्छा (व)। प्रस्तुतप्राभृतप्राभृतस्य प्रारम्भसूत्रे 'बारह ५. एवं एएणं अभिलावेणं पोसपुणिमाए जेटुमूल- अमावासाओ' इति पाठो विद्यते, तेनात्र नामो पुष्णिमाए य कुलोवकुलं भाणियवा सेसा मूले स्वीकृतः। कुलोवकुला गस्थि (टव)। ८. अमावसं (ग,घ); अवामंसं (ट) सर्वत्र । ६. ४ (क,ग,ध)। १. अस्सिलेसा (ट)। ७. अतः पूर्व 'टव' प्रत्योः एतावान् अतिरिक्तः १०. पोट्ठरतं (ग,घ,व)। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० सूरपण्णत्ती तं जहा-पुव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी । अस्सोई हत्थो चित्ता य । कत्तियं साती विसाहा य। मग्गसिरि अणराधा जेदा मलो। पोसि पवासाढा उत्तरासाढा । माहि अभीई सवणो' धणिट्ठा । 'फग्गुणि सतभिसया पुव्वापोट्टवया । चेत्ति उत्तरापोटुवया रेवती अस्सिणी य" । १. अतः'ट,व' प्रत्योः किञ्चिविस्तृत: पाठो पञ्चमी फाल्गुनीममावास्यां धनिष्ठानक्षत्रं लभ्यते। षट्सु मुहूर्तेषु एकस्य च मुहूर्तस्य द्विपञ्चाशति २. समणो (ब)। द्वापष्टिभागेष्वेकस्य च द्वाषप्टिभागस्य सत्केषु ३. फग्गुणि सतभिसया पुवापोट्ठवया उत्तरापो- द्वाषष्टी सप्तपष्टिभागेषु गतेषु ६.५२१६२ । टुवया। चेत्ति रेवती अस्सिणी य (क,ग,घ); परिणमयति । फगुणी दोणि तं जहा सतभिसता पुव्वाभवया 'ता चित्तिन्न अमावासं कइ नक्खत्ता जोएंति ? य। चेति तिणि तं जहा उत्तरभदवया रेवती ता तिणि नक्खत्ता जोएंति, तंजहा.असणि य (ट,सूब चं); चन्द्रप्रज्ञप्तेः सूर्य- उत्तरमद्दवया रेवई अस्सिणी य' एतदपि व्यप्रज्ञप्तेश्च वस्योराधारेण पाठः स्वीकृतोस्ति । वहारतो, निश्चयतः पुनरमूनि त्रीणि नक्षत्राणि सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति (पत्र १२५, १२६) --'ता चैत्रीममावस्या परिसमापयन्ति, तद्यथाफरगुणी णं अमावासं कइ नक्खता जोएंति ? पूर्वभद्रपदा उत्तरभद्रपदा रेवती च, तत्र प्रथमां ता दोणि नक्खत्ता जोएंति, तंजहा-सय- चत्रीममावास्यामुत्तरभद्रपदानक्षत्रं सप्तविंशती भिसया पुत्वभद्दवया य। एतदपि व्यवहारतो, मुहूर्तेष्कवेस्य च मुहूर्तस्य षट्त्रिंशति द्वाषष्टिनिश्चयतः पुनरमूनि त्रीणि नक्षत्राणि फाल्गुनी- भागेष्वेकस्य च द्वाषष्टिभागस्य दशसु सप्तममावास्यां परिसमापयन्ति, तद्यथा-धनिष्ठा षष्टिभागेषु गतेषु ३३१३६३१०,द्वितीयां चैत्रीशतभिषक् पूर्वभद्रपदा च, तत्र प्रथमां फाल्गु- ममावास्यामुत्तरभद्रपदानक्षत्रमेकादशसु मुहूर्तनीममावास्यां पूर्वभद्रपदानक्षत्रं षट्सु मुहूर्ते- ब्वेकस्य च मुहूर्तस्य नवसु द्वाषष्टिभागेषु ध्वेकस्य च मुहूर्तस्यैकत्रिशति द्वाषष्टिभागेषु एकस्य च द्वापष्टिभागस्य प्रयोविंशती सप्तएकस्य च द्वाषष्टिभागस्य नवसु सप्तषष्टि- षष्टिभागेषु गतेषु ११।२३, तृतीयां चैत्रीममाभागेषु गतेषु । ६१३१६, द्वितीयां फाल्गुनी- वास्यां रेवतीनक्षत्रं पञ्चसु मुहूर्तेषु एकस्य च ममावस्यां धनिष्ठानक्षत्रं विंशतो मुहर्तेष्वेकस्य मुहर्तस्यैकोनपञ्चाशति द्वाषष्टिभागेष्वेकस्य च च मुहर्तस्य चतुर्ष द्वाषष्टिभागेज्वेकस्य च द्वापष्टिभागस्य सप्तत्रिशति सप्तषष्ठिभागेष्वद्वाषप्टिभागस्य द्वाविंशती सप्तषष्टिभागेषु तिक्रान्तेषु ॥४६:३७, चतुर्थी चैत्रीममावास्याव्यतिक्रान्तेषु २०१४,२२, तृतीया फाल्गुनीम- मुत्तरभद्रपदानक्षत्रं त्रयोविंशती मुहूर्तेषु एकस्य मावास्यां पूर्वाषाढानक्षत्रं चतुर्दशसु मुहूर्तेष्वे- च मुहुर्तस्य द्वाविंशती द्वाषप्टिभागेष्वेकस्य च कस्य च मुहूर्त्तस्य चतुश्चत्वारिंशति द्वाषष्टि- द्वाषष्टिभागस्य पञ्चाशति सप्तपष्टिभागेषु भागेष्वेकस्य च द्वाषष्टिभागस्य षत्रिशति गतेषु २३॥२२॥५०, पञ्चमी चैत्रीममावास्यां सप्तषष्टिभागेषु गतेषु १४१४४१३६, चतुर्थी पूर्वभद्रपदानक्षत्र सप्तविंशती महतैष्वेकस्य च फाल्गुनीममावास्यां शतभिषा नक्षत्रं त्रिषु मुहूर्तस्य सप्तपञ्चाशति द्वाषष्ठिभागेप्वेकस्य मुहूर्तेष्वेकस्य च मुहूर्तस्य सप्तदशसु द्वाषष्टि- च द्वाषष्टिभागस्य त्रिषष्टी सप्तषष्टिभागेष्वतिभागेष्वेकस्य च द्वाषष्टिभागस्य एकोनपञ्चा- क्रान्तेषु २७१५७५६३ परिसमापयति । शति 'सप्तषप्टिभागेषु गतेषु ३।१७।४६, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तावपि (७११४६) स्वीकृतपाठाद Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (सत्तमं पा०, अट्ठमं पा०) वइसाहि' भरणी कत्तिया य । जेट्ठामूलि रोहिणी मिगसिरं च ।। २४. ता आसाढिण्णं अमावासिं कति णवखत्ता जोएंति ? ता तिपिण णक्खत्ता जोएंति, तं जहा- अद्दा पुणव्वसू पुस्सो॥ २५. ता सावट्टिणं अमावासं किं कुलं जोएति ? 'उवकुलं वा जोएति ? कुलोवकुलं वा जोएति ? ता कुलं वा जोएति, उवकुलं वा जोएति, णो लभति कुलोवकुलं । कुलं जोएमाणे महा णक्खत्ते जोएति, उवकुलं जोएमाणे 'अस्सेसा णक्खत्ते" जोएति, कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी अमावासा जुत्ताति वत्तव्वं सिया। एवं तव्वं, णवरंमग्गसिरीए माहीए फग्गुणीए आसाढीए य 'अमावासाए कुलोवकुलंपि जोएति, सेसेसु गत्थि " ॥ सत्तमं पाहुडपाहुडं २६. ता कहं ते सण्णिवाते आहितेति वदेज्जा? ता जया णं साविट्ठी पुण्णिमा भवति तया' णं माही अमावासा" भवति, जया णं माही पुण्णिमा भवइ तया णं साविट्ठी भमावासा भवइ, जया णं पोटुवती पुण्णिमा भवति तया णं फरगुणी अमावासा भवति, जया गं फग्गुणी पुण्णिमा भवति तया णं पोटुवती अमावासा भवति, जयाणं आसोई पुणिमा भवति तया णं चेत्ती अमावासा भवति, जया णं चेत्ती पुषिणमा भवति तया णं आसोई अमावासा भवति, जया" णं कत्तिई पुण्णिमा भवति तया णं वइसाही अमावासा भवति, जया णं वइसाही पुण्णिमा भवति तया णं कत्तिई अमावासा भवति, जया णं मग्गसिरी पुण्णिमा भवति तया णं जेट्ठामूली अमावासा भवति, जया णं जेट्ठामूली पुणिमा भवति तया णं मग्गसिरी अमावासा भवति, जया णं पोसी पुण्णिमा भवति तया णं आसाढी अमावासा भवति, जया णं आसाढी पुण्णिमा भवति तया णं पोसी अमावासा भवति ।। अट्ठमं पाहुउपाहुडं २७. ता कहं ते णक्खत्तसंठिती आहितेति वदेज्जा? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए सत्ता अभीई णक्खत्ते किसंठिते पण्णते? ता गोसीसावलिसंठिते पण्णत्ते॥ भिन्ना वाचना दृश्यते--फग्गुणिण्णं तिरिण-- न वक्तव्यम् (चं)। सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया। ५. जता (क,ग,ध,व) । चेतिण्णं दो-रेवई अस्सिणी य । ६. तता (क,ग,घ,ट,व)। १. वेसाहिं (क); विसाहिं (ग,घ)। ७. अवमंसा (ग,घ,व) सर्वत्र । २. पुच्छा (व)। ८. अत: 'व' प्रतो सक्षिप्तः पाठो विद्यते--एवं ३. अस्सिलेसाणक्खत्ते (व)। एएणं अभिलावेणं आसोईए चेतीए य कत्तिइए ४. अमावसाए कुलोवकुलं भाणियब्वं, सेसाणं वतिसाहीए य, मग्गसिरीए जेद्वामुले य । कुलोवकुलं पत्थि जाव कुलोवकुलेण वा जुत्ता ६. अस्सोइ (ट)। आसाढी अमावसं (अवामंसा—4) जुत्ताति १०. अत: 'ट' प्रतौ संक्षिप्तः पाठो विद्यते--एवं बत्तव्वं सिया (ट,व); कुलोपकुलं भणितव्यं, कत्तिय वतिसाहियाए य मगसिरीए जेट्ठामूलीए शेषाणां स्वमावस्यानां कुलोपकुलं नास्ति, तेन Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरपण्णत्ती २८. ता सवणे णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता काहारसंठिते पण्णत्ते ।। २६. ता' धणिट्ठा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते? ता सउणिपलीणगसंठिते पण्णत्ते ।। ३० ता सतभिसया णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता पुप्फोवयारसंठिते पण्णत्ते ।। ३१. ता पुव्वापोट्ठवया णक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते ? ता अवड्वबाविसंठिते पण्णत्ते ।। ३२. एवं उत्तरावि ।। ३३. ता रेवती णक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते? ताणावासंठिते पण्णत्ते। ३४. ता अस्सिणी णक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते? ता आसक्खंधसंठिते पण्णत्ते ।। ३५. ता भरणी णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता भगसंठिते पण्णत्ते ॥ ३६. ता कत्तिया णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते? ता छुरघरगसंठिते पण्णत्ते॥ ३७. ता रोहिणी णक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते? ता सगडद्धिसंठिते पण्णते।। ३८. ता मिगसिरा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता मगसीसावलिसंठिते पण्णत्ते ।। ३६. ता अद्दा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता रुहिरबिंदुसंठिते पण्णत्ते ।। ४०. ता पुणव्वसू णक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते ? ता तुलासंठिते पण्णत्ते ।। ४१. ता पुस्से णक्खत्ते किसंठिते पण्णते? तावद्धमाणगसंठिते पण्णत्ते ।। ४२. ता अस्सेसाणक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते ? तापडागसंठिते पण्णत्ते ।। ४३. ता महा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता पागारसंठिते पण्णते। ४. ता पवाफग्गणी णक्खत्ते किसंठिते पणते? ता अद्धपलियंकसंठिते पण्णत्ते ॥ ४५. एवं उत्तरावि ॥ ४६. ता हत्थे णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता हत्थसंठिते पण्णत्ते ॥ ४७. ता चित्ता णक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते ? ता मुहफल्लसंठिते पण्णत्ते ।। ४५. ता साती णक्खत्ते किंसंठिते पण्णते? ता खीलगसंठिते पण्णत्ते ।। ४६. विसाहा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता दामणिसंठिते पण्णत्ते ॥ ५०. ता अणुराधा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता एगावलिसंठिते पण्णत्ते ।। ५१. ता जेट्ठा णक्खत्ते किसंठिते पण्णत्ते? ता गयदंतसंठिते पण्णत्तं ॥ ५२. ता मूले णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता विच्छुभनंगोलसंठिते पण्णत्ते ।। ५३. ता पुव्वासाढा णक्खत्ते किंसंठिते पण्णत्ते ? ता गयविक्कमसंठिते पण्णत्ते ।। ५४. ता उत्तरासाढा णक्खत्ते किसंठिते पण्णते? ता सीहणीसाइसंठिते पण्णत्ते ।। नवमं पाहुडपाहुडं ५५. ता कहं ते तारग्गे आहितेति बदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभीई' णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता तितारे पण्णत्ते ।। १. समणे (व)। २. 'ट,व' प्रत्योः अतः परं संक्षिप्तः पाठो विद्यते यथा--'धणिट्ठाणक्खते राउणिपलीणगसंहिते, सभिसवाणक्खत्ते घुप्फोवयारसंठिते' एवं सर्वत्र। ३. असिलेसा (व)। ४. विच्छ्यलंगोल (ग,घ.टव)। ५. 'ट,व' पत्योः अतः परं संक्षिप्तपाठो विद्यते, यथा---'अभीयीणवत्त तितारे पसवणे णखत्ते सितारे प धणिवा पंचतारे पसयभि Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडे (दसमं पा० ) ५६. ता सवणे णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता तितारे पण्णत्ते ॥ ५७. ता धणिट्ठा णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? तापणारे पण्णत्ते ॥ ५८. ता सतभिसया णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? तर सततारे' पण्णत्ते ॥ ५६. तावापोट्टवता णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता दुतारे पण्णत्ते ॥ ६०. एवं उत्तरावि ॥ ६१. ता रेवती णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता बत्तीसतितारे पण्णत्ते ॥ ६२. ता अस्सिणी णक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ? ता तितारे पण्णत्ते । एवं सव्वे पुच्छिज्जति भरणी तितारे पण्णत्ते, कत्तिया छत्तारे पण्णत्ते, रोहिणी पंचतारे पण्णत्ते, संठाणा' तितारे पण्णत्ते, अद्दा एगतारे पण्णत्ते, पुणव्वसू पंचतारे पण्णत्ते, पुस्से तितारे पण्णत्ते, अस्सेसा छतारे पण्णत्ते, मघा सत्ततारे पण्णत्ते, पुव्वा फग्गुणी दुतारे पण्णत्ते, एवं उत्तरावि, हत्थे पंचतारे पण्णत्ते, चित्ता एगतारे पण्णत्ते, साती एगतारे पण्णत्ते, विसाहा पंचतारे पण्णत्ते, अणुराहा चउतारे' पण्णत्ते, जेट्ठा तितारे पण्णत्ते, मूले एगतारेपण्णत्ते, पुव्वासाढा चउतारे पण्णत्ते उत्तरासाढा चउतारे पण्णत्ते ॥ दसम पाहुडहुड ६३. ता कहं ते ता आहितेति वदेज्जा ? ता वासाणं पढमं मासं कति णक्खत्ता र्णेति ? ता चत्तारि णक्खत्ता णेंति, तं जहा उत्तरासादा अभिई सवणो धणिट्ठा । उत्तरासाढा चोट्स अहोरते णेति, अभिई सत्त अहोरते णेति सवणे अट्ठ अहोरते ति, धणिट्ठा एवं अहोरत्तं णेति । तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियदृति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पदाई चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवति ॥ ६४. ता वासाणं दोच्चं " मासं कति णक्खत्ता णेंति ? ता चत्तारि णक्खत्ता पेंति, तं जहा- धणिट्ठा सतभिसता पुव्वपोट्ठवया उत्तरपोट्ठवया । धणिट्ठा चोट्स अहोरते सया दमतारे प पुब्वभद्द्वया दुतारे प उत्तरभवया दुतारे प रेवती बत्तीसतारे प' एवं सर्वत्र । १. चन्द्र प्रज्ञप्तेः 'ट' प्रती 'दसतारे' इति पाठो विद्यते 'व' प्रती एष पाठः त्रुटितोस्ति । चन्द्रवज्ञप्तेवृत्तौ उद्धृतायां जबूद्वीपप्रज्ञप्तिगाथायामपि 'दन' इति पदस्य उल्ले खोस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती (७७१३१) 'पंचेक्राय' इति पाठो लभ्यते, समवायाङ्गे (१००२) पि शतसंवादी पाठो लभ्यते--' सयभसवाणवखत्ते एक्कसयतारे पण्णत्ते' । २. मगसिरे ( ट व ) । ३. पंचतारे (ग,घ.) । - ४ पादाई ( ग घ ) पयाणि ( 2 ) 1 ५. वितियं ( ट ) | ६. पुव्यभवया (ट) 1 ૬૪૧ ७. उत्तरभवया (ट); अतः परं 'ट' प्रतो संक्षिप्तपाठो लभ्यते एवं एएण अभिलावेर्ण जब जत्रुदीवरतीए तहेव एत्यपि भाणियक्वं जाव तेसि च णं मावि वट्टीए समचउरंससध्याए । गोहपरिमंडलाए कायमणुरंगिणीयः ए च्छायाए सूरिय अणुपरियट्टति । तस्स णं मासस्त चरिमदिवसे लेहठाति दोपयाति पोरसी भवति । चंद्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव संक्षिप्तपाठो व्याख्यातोस्ति । Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती णेति, सतभिसता सत्त अहोरत्ते णेति, पुत्वपोट्टदया अट्ट अहोर ते णेति, उत्तरपोट्टवया एग अहोरत्तं णेति! संसि च णं मासंसि अटुंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणपरिसट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पदाइं अट्ट अंगुलाई पोरिसी भवति ।। ६५. ता वासाणं ततियं मासं कति णक्खत्ता ति, ता ति णि णवखत्ता णेति, तं जहा- उत्तरापोट्टक्या रेवती अस्सिणी। उत्तरापोटुवया चोद्दस अहोरत्ते णेति, रेवती पण्णरस अहोरत्ते णेति, अस्सिणी एग अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अण्परियति, तस्स णं मासरस चरिमे दिवसे लेहवाई तिणि पदाई पोरिसी भवति ।। ६६. ता वासाणं चउत्थं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता तिष्णि णक्खत्ता णेति, तं जहा अस्सिणी भरणी कत्तिया। अस्सिणी चउद्दस अहोरत्ते णेति, भरणी पण्ण रस अहोरत्ते णेति, कत्तिया एग अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिणि पदाई चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवति ।। ६७. ता हेमंताणं पढमं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता तिणि णवखत्ता णेंति, तं जहा -कत्तिया रोहिणी संठाणा। कत्तिया चोद्दस अहोरत्ते णेति, रोहिणी पण्णरस अहोरते णेति, संठाणा एग अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि वीसंगुलपोरिसीए छायाए सुरिए अणपरियद इ, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिणि पदाई अटु अंगुलाई पोरिसी भवइ॥ ६८. ता हेमंताणं दोच्चं मासं कति णक्खत्ता ऐति ? ता चत्तारि णक्खत्ता ऐति, तं जहा -- संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो। संठाणा चोद्दस अहोरत्ते णेति, अद्दा सत्त' अहोरत्ते णेति, पुणव्वसू अट्ठ' अहोरते णेति, पुस्से एग अहोरत्तं णेति ! तंसि च णं मासंसि चउवीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहट्राई'चत्तारि पदाई पोरिसी भवति ।। ६६. ता हेमंताणं ततियं मासं कति णक्खत्ता ऐति ? ता ति णि णक्खत्ता वंति, तं जहा पुस्से अस्सेसा महा। पुस्से चोद्दस अहोरत्ते णेति, अस्सेसा पंचदस अहोरत्ते णेति, महा एग अहोरत्तं णेति। तंसि च णं मासंसि वीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे तिणि पदाइं अलैंगुलाई पोरिसी भवति । ७०. ता हेमंताणं चउत्थं मासं कति णक्खत्ता णेंति ? ता तिणि णक्खत्ता ऐति, तं जहा -महा पुवाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी । महा चोद्दस अहोरते णेति, पुव्वाफग्गुणी पण्णरस अहोरत्ते णेति, उत्तराफरगुणी एग अहोरत्तं णेति । तंमि च णं मासंसि सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स ण मासस्स चरिमे दिवसे तिण्णि पदाइं चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवति ।। १. पुष्वाभद्दवया (क,ग,घ) । २. अट्ट (जं०७:१६१)। ३. सत्त (जं० ७.१६१) ४. लेहट्ठाणि (क,ग,ख): Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम पाहुडं (एक्कारसम प१०) ७१. ता गिम्हाणं पढमं मासं कति णक्खत्ता गति? ता तिण्णि णक्खताणेंति, तं जहा.उत्तराफरगुणी हत्थो चित्ता । उत्तराफरगुणी चोद्दस अहोरत्ते णेति, हत्थो पण्णरस अहोरत्ते णेति, चित्ता एग अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सुरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहट्ठाई तिष्णि पदाइं पोरिसी भवति ।। ७२. ता गिम्हाणं बितियं मासं कति णक्खत्ता णति ? ता निणि णक्खत्ता णेति, तं जहा -चित्ता साती विसाहा। चित्ता चोद्दस अहोरत्ते णेति, साती पण्णरस अहोरत्ते णेति, विसाहा एगं अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि अळंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पदाइं अट्ट अंगुलाई पोरिसी भवति ।। ७३. ता गिम्हाण नतियं मासं कति णक्खत्ता णेति ? ता चत्तारि णक त्ता णेति, तं जहा --विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूलो। विसाहा चोद्दस अहोरत्ते णेति, अणुराहा सत्त' अहोरत्ते णेति, जेट्ठा अट्ठ अहोरत्ते णेति, मूलो एग अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पदाणि चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवति ।।। ७४. ता गिम्हाणं चउत्थं मासं कति णक्खत्ता णेंति ? ता तिणि णक्खत्ता णेति, तं जहा-मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा । मूलो चोद्दस अहोरत्ते णेति, पुव्वासाढा पण्णरस अहोरत्ते णेति, उत्तरासाढा एगं अहोरत्तं णेति । तसि च णं मासंसि वट्टाए गमचररंससंहिताए णरगोहपरिमंडलाए सकायमणरंगिणीए छायाए सरिए अणपरियदृति, तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे लेहढाइं दो पदाई पोरिसी भवति ॥ एक्कारसमं पाहुडपाहुडं ७५. ता कहं ते चंदमग्गा आहितेति वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थि णक्खत्ता जेणं सया चंदस्स दाहिणणं जोयं जोएंति, अत्थि णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोयं जोएंति, अस्थि णक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणणवि उत्तरेणवि पमपि जोयं जोएंति, अत्थि णक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणणवि पमपि जोयं जोएंति, अत्थि णक्खत्ते जे णं सया चंदस्स पमह जोयं जोएति । ता एतेसि ण अट्रावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति ? तहेव जाव कयरे णक्खत्ते जेणं सया चंदस्स पमह जोयं जोएति ? ता एतेसिणं अदावीसाए णक्खत्ताणं जे णं शक्खत्ता सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति ते णं छ, तं जहा --संठाणा अद्दा पुस्सो अस्सेसा हत्थो मूलो । तत्य जेते णक्खता जे णं सया चंदम्प उत्तरेणं जोयं जोएंति ते णं बारस, तं जहाअभिई सवणो धणिट्ठा सरभिसपा पुत्राभइया उत्तरापोटुवया रेवती अस्मिणी भरणी पुवाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी साती । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणेणवि उत्तरेणवि पमपि जोयं जोएंति ते णं सत्त, तं जहा कत्तिया रोहिणी पुणव्वसू महा चित्ता विसाहा अणुराहा ! तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणेणवि पमपि जोयं जोएंति ताओ णं दो आसाढाओ सव्वबाहिरे मंडले जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोएस्संति वा । तत्थ जेसे णक्खत्ते १. अट्ठ (जं० ७११६६)। २. सत्त (जं० ७५१६६) । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती जे णं सया चंदस्स पमई जोयं जोएति सा णं एगा जेट्टा ॥ ७६. ता कति ते चंदमंडला पण्णत्ता' ? ता पण्णरस चंदमंडला पण्णत्ता'। ७७. ता एतेसि णं पण्णरसण्डं चंदमंडलाणं अत्थि चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहि अविरहिया । अस्थि चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं विरहिया। अत्थि चंदमंडला जे णं रविससिणक्खत्ताण सामण्णा भवंति । अत्थि चंदमंडला जेणं सया आदिच्चेहिं विरहिया । ता एतेसि णं पण्णरसण्हं चंदमंडलाणं कयरे चंदमंडला जे णं सया णक्खत्तेहिं अविरहिया जाव कयरे चंदमंडला जे ण सया आदिच्चेहि विरहिया? ता एतेसि णं पण्णरसण्हं चंदमंडलाणं तत्थ जेते चंदमंडला जे णं सया गावखत्तेहिं अविरहिया ते णं अट्र, तं जहा.. पढमे चंदमंडले ततिए चंद मंडले छठे चंदमंडले सत्तमे चंदमंडले अट्ठमे चंदमंडले दसमे चंदमंडले एक्कारसमे चंदमंडले पण्णरसमे चंदमंडले । तत्थ जेते चंदमंडला जे णं सया एक्खत्तेहिं विरहिया ते णं सत्त, तं जहा - बितिए चंदमंडले चउत्थे चंदमंडले पंचमे चंदमंडले णवमे चंदमंडले बारसमे चंदमंडले तेरसमे चंदमंडले च उद्दसमे चंदमंडले। तत्थ जेते चंदमंडला जे णं रविससिणक्खत्ताणं सामण्णा भवंति ते णं चत्तारि, तं जहा. -पढमे चंदमंडले बीए चंदमंडले इक्कारसमे चंदमंडले पण्ण रसमे चंदमंडले। तत्थ जेते चंदमंडला जे णं सया 'आदिच्चेहि विरहिया" ते णं पंच, त जहा.. छठे चंदमंडले सत्तमे चंदमंडले अट्टमे चंदमंडले णवमे चंदमंडले दसमे चंदमंडले ॥ बारसमं पाहुडपाहुडं ७८. ता कहं ते देवयाणं अज्झयणा आहिताति' वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? ता बम्हदेवयाए' पण्णते ।। ७६. ता सवणे णक्खत्ते किदेवयाए पण्णत्ते ? ता विण्हुदेवयाए पण्णत्ते ॥ ८०. ता धणिट्ठा णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? ता वसुदेवयाए पण्णत्ते ।। ८१. ता सतभिसया णक्खते किदेवयाए पण्णत्ते ? ता वरुणदेवयाए पण्णत्ते ।। ८२. ता पुव्वापोट्ठवया णक्खत्ते किदेवयाए पण्णत्ते ? ता अयदेवयाए पण्णत्ते ॥ ८३. ता उत्तरापोटुवया णक्खत्ते किदेवयाए पणत्ते ? ता अभिवड्डिदेवयाए पण्णत्ते । एवं सब्वेवि पुच्छिज्जति--रेवती पुस्सदेवयाए", अस्सिणी अस्सदेवयाए, भरणी जमदेवयाए, कत्तिया अग्गिदेवयाए, रोहिणी पयावइदेवयाए, संठाणा सोमदेवयाए, अद्दा रुद्ददेवयाए, पुणव्वसू अदितिदेवयाए, पुस्सो बहस्सइदेवयाए, अस्सेसा सप्पदेवयाए, महा पिइदेवयाए', पुव्वाफग्गुणी भगदेवयाए, उत्तराफग्गुणी अज्जमदेवयाए, हत्थे सवियादेवयाए", चित्ता १,२. आहिताति वदेज्जा (ट,व) । यथा—समणे ण विण्हदेवताए पण्णत्ते एवं ३. इग्यारसमे (ट)। जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए जाव उत्तरासाढा ४. आदिच्चविरहिया (ग,घ,ट); आतिच्चेहि णक्खत्ते विस्सदेवताए पण्णत्ते । विरहिया (व)। ८. पूसदेवयाए (क)। ५. अभिहिताति (व)। ६. पिऊ (जं० ७.१२६)। ६. बंभ (क,ग,ध)। १०. सवितिदेवयाए (क,ग,घ) । ७. अत: 'ट,व' प्रत्योः संक्षिप्तपाठो लभ्यते, Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द समं पाडं (तेरसमं पा, चउद्दसमं पा०) ६४७ तट्ठदेवयाए, साती वायुदेवयाए, विसाहा इंदग्गिदेवयाए, अणुराहा मित्तदेवयाए, जेट्टा इंददेवयाए, मूले णिरइदेवयाए, पुव्वासाढा आउदेवयाए, उत्तरासाढा विस्सदेवयाए पण्णत्ते ॥ तेरसमं पाहुडपाहुडं ८४. ता कहं ते मुहत्ताणं नामधेज्जा आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं अहोरत्तस्स तीसं मुहुत्ता पण्णता, तं जहा - गाहा. . रोहे सेते मित्ते, वाउ सपीए तहेव अभिचंदे। माहिंद बलव' बंभे, बहुसच्चे चेव ईसाणे ॥१॥ तठे' य भावियप्पा, वेसमणे वारुणेय आणंदे। विजए य वीससेणे', पायावच्चे चेव उवसमे ॥२॥ गंधव्य अग्गिवेसे, सयरिसहे आयवं च अममे य । अणवं च भोमे रिसहे, सव्वठे रक्खसे चेव ॥३॥ चउद्दसमं पाहुडपाहुडं ८५. ता कहं ते दिवसा आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं पक्खस्स पण्णरस दिवसा पण्णत्ता, तं जहा पडिवादिवसे बितियादिवसे जाव पण्णरसीदिवसे ॥ ८६. ता एतेसि णं पण्णरसण्हं दिवसाणं पण्णरस णामधेज्जा पण्णत्ता तं जहागाहा-- पुवंगे सिद्धमणोरमे य तत्तो मणोहरे" चेव । जस भद्दे य जसोधरे सव्वकामसमिद्धे ॥२॥ इंदमुद्धाभिसित्ते य , सोमणस धणंजए य बोद्धव्वे । अत्थसिद्धे अभिजाते, अच्चसणे" य सयंजए" ।।२।। अग्गिवेसे उवसमे, दिवसाणं णामधेज्जाई ॥३॥ ८७. ता कहं ते रातीओ आहिताति वदेज्जा ? ता एगमेगस्स णं पक्खस्स पण्णरस रातीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--- पडिवाराती बितियाराती" जाव पण्णरसीराती॥ १. सुठिए (ट); सुट्ठीजे (}; स्थपीति ७. विजयसेणे (ट); विजयसेन: (चव)। (चवृ)। ८. ववसमे (क) २. माहिदे (ट,व)। ६. सत्यवान् (चवृ)। ३. बलवं (ट,व); पलंवे (सम० ३०१३)। १०. दिवसाणं णामधेज्जा (ट); दिवसानां नाम४. पम्हे (ट); नवमः पक्ष्मः (च); अतः परं धेयानि व्याख्यातानीति वदेत् (चव)।। समवायांगे (३०१३) नाम्नां व्यत्ययो भेदश्च ११. मणरहः (चव) । दश्यते---सच्चे आणंदे विजए वीससेणे वाया- १२. सञ्चकामसमिद्धेति (ग,ध,ट,व); छठे बच्चे उसमे ईसाणे तिठे भावियप्पा बेरामणे सव्वकामसमिद्धे (जं०७।११७) । बरुणे सतरिसभ मंधने अग्गिनायणे आतवं १३. अच्चासणे (ग,घ.ट,व) । आवधं तवे भूमहे रिसभ सम्वटुसिद्धे रक्खसे। १४. सयंजए चेव (जं० ७.११७) । : ५. स्रष्टा (चव)। १५. बिदियाराई (क,घ)। ६. वावरे (ट); अपरः (च)। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती ८८. ता एतासि णं पण्णरसण्हं रातीणं पण्णरस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-- गाहा-- उत्तमा य सुणक्खत्ता, एलावच्चा जसोधरा। सोमणसा चेव तहा, सिरिसंभूया य बोद्धव्वा ॥२॥ विजया य वेजयंति, जयंति अपराजिया य इच्छा य । समाहाराचेव तहा, तेया य तहा य अतितेया॥२॥ देवाणंदा राती', रयणीणं णामधेज्जाइं ॥३॥ पग्णरसमं पाहुडपाहुर्ड ८६. ता कहं ते तिही आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमा 'दुविहा तिही" पण्णत्ता, तं जहा दिवसतिही य रातीतिही य ।। १०. ता कहं ते दिवसतिही आहिते ति वदेज्जा ? ता एगमेगस्स णं पक्खस्स पण्णरसपण्णरस दिवसतिही पण्णत्ता, तं जहा गंदे भद्दे जए तुच्छे पूण्णे पक्खस्स पंचमी, पूणरविणंद्दे भद्दे जए तुच्छे पुण्णे पक्खस्स दसमी, पुणरवि गंदे भद्दे जए तुच्छे पुण्णे पक्खस्स पण्णरसी। एवं एते निगुणा तिहीओ सव्वेसि दिवसाणं ।। ६१. ता कहं ते रातीतिही आहितेति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं पक्खस्स पग्णरसपण्णरस रातीतिही पण्णत्ता, तं जहा उम्गवई भोगवई जसवई सवसिद्धा सुहणामा, पुणरवि --उग्गवई भोगवई जसवई सव्व सिद्धा सुहणामा, पुणरवि-उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहणामा । एवं एते तिगुणा तिहीओ सव्वासिं रातीणं ।। सोलसमं पाहुडपाहुडं ६२. ता कहं ते गोत्ता आहिताति वदेज्जा ? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्वत्ताणं अभीई णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णते? ता मोग्गलायणसगोते पण्णत्ते।।। ६३. ता सवणे णक्खत्ते किंगोते पण्णत्ते ? ता संखायणसगोत्ते पण्णत्ते॥ ६४. ता धणिट्टा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता अग्गभावसगोते. पण्णत्ते ।। ६५. ता सतभिसया णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता कपिणलायणसगोते पण्णत्ते ।। ६६. ता पुवापोटुक्या णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते? ता जाउकण्णियसगोत्ते पण्णत्ते ।। ६७. ता उत्तरापोटुवया णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता धणंजयसगोत्ते पण्णत्ते ।। १८. ता रेवती णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णते ? ता पुस्सायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। हह. ता अस्सिणी णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते? ता अस्सायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। १००. ता भरणी णक्खत्ते किंगोते पण्णत्ते? ता भग्गवेससगोत्ते पण्णत्ते ।। १. अभितेया (ग,घ,व)। २.णिरती (ग,घ,ट); णिरिती (ब); निरतीति पंचदश्या एवं द्वितीयं नाम (जं. हीव)। ३. दुविधा तिधी (क) । ४. एते' इति स्त्रीत्वेपि प्राप्ते पुंस्त्वनिर्देशः प्राकृतत्वात् (सूब)। ५. ४ (क,ग,ध,ट,व)। ६. समणे (ग,घ,व); अतः 'ट,व' प्रत्योः संक्षिप्त पाठो लभ्यतेन्यथा-'सवणे णक्खत्ते संखायणगोते धणिट्ठा अग्गिवेसायणगोत्ते पण्णत्ते' एवं सर्वत्र ७. अग्गताव (ग,घ); अग्गिवेसायण (ट)। ८. कत्तेलायण (ग,घ); कंडिल्लायण' (ट,); कण्णिल्ले (जं० १३२) । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम पाहुउं (सत्तरसमं पा०) १०१. ता कत्तिया णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता अग्गिवेससगोत्ते' पण्णत्ते ॥ १०२. ता रोहिणी णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता गोयमसगोत्ते पण्णत्ते ॥ १०३. ता संठाणा' णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता भारद्दायसगोत्ते पण्णत्ते ।। १०४. ता अद्दा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता लोहिच्चायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ १०५. ता पुणव्वसू णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता वासिटुसगोत्ते पण्णत्ते ॥ १०६. ता पुस्से णक्खत्ते किंगोत्ते पुण्णते? ता ओमज्जायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। १०७. ता अस्सेसा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता मंडव्वायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। १०८. ता महा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता पिंगायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। १०६. ता पुव्वाफग्गूणी णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णते? ता गोवल्लायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। ११०. ता उत्तराफग्गुणी णक्खत्ते किंगोते पण्णत्ते ? ता कासवसगोत्ते पण्णत्ते ।। १११. ता हत्थे णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता कोसियसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ११२. ता चित्ता णक्खत्ते किंगोते पण्णत्ते ? ता दब्भियायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। ११३. ता साती पक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते? ता चामरच्छायणसगोते पण्णत्ते ।। ११४. ता विसाहा णक्वते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता सुंगायणसगोत्ते पण्णत्ते ॥ ११५. ता अणराहा णवखत्ते किंगोते पण्णत्ते? ता गोलवायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। ११६. ता जेट्ठा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता तिगिच्छायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। ११७. ता मूले णखत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते? ता कच्चायणसगोत्ते पण्णत्ते॥ ११८. ता पुव्वासाढा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णते ? ता बज्झियायणसगोत्ते पण्णत्ते ।। ११६. ता उत्तरासाढा णक्खत्ते किंगोत्ते पण्णत्ते ? ता वग्घावच्चसगोत्ते पण्णत्ते ।। सत्तरसमं पाहुडपाहुडं १२०. ता कहं ते भोयणा आहिताहि वदेज्जा? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कत्तियाहिं दधिणा भोच्चा कज्जं साधेति । रोहिणीहि वसभमंसं भोच्चा कज्जं साधेति । संठाणाहि मिगमंसं भोच्चा कज्ज साधेति । अद्दाहि णवणीतेण भोच्चा कज्जं साधेति ! पुणव्वसुणा घतेण भोच्चा कज्जं साधेति । पुस्सेण खीरेण भोच्चा कज्जं साधेति । अस्सेसाहि दीवगमसं' भोच्चा कज्जं साधेति । महाहि कसरि भोच्चा कज्जं साधेति । पुव्वाहि फग्गुणीहि मेंढकमसं" भोच्चा कज्जं साधेति । उत्तराहिं फग्गुणीहिं णखीमंसं" भोच्चा कज्जं साधेति । हत्थेणं वच्छाणीएण" भोच्चा कज्ज साधेति । चित्ताहि मुग्गसूवेणं १. अम्भिवेसायण' (ट,व) । ८. मिगसिरेणं (ट,व)। २. मगसिरं (ग,ट,व)। ६. मिगमरोणं (ट,व)। ३. दभियाण (ग,व); दभियण° (ट); दब्भिय° १०. असिलेसाहिं (ट,व)। (व); दम्भा (जं० ७३१३२) । ११. दीवगमसेणं (ट,व)। ४. चामरच्छगोत्ते (क,ग,घ)। १२. कसोरि (ट); कासारी (व)। ५. अंगायण (ट,व)। १३. मेंढगमसेणं (ट)। ६. तिगिच्छायण (क,ग,घ) । १४. नभीमसं (क); णखीमसेणं (ट,व)। ७ वसभमसेण (ट,व) । १५. वच्छाणी (पण्ण० ११४०) एका वल्ली। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० सुरपण्णत्ती भोच्चा कज्जं साधेति । सादिणा फलाई भोच्चा कज्जं साधेति । विसाहाहि आसित्ति याओ' [अगत्थियाओ ? ] भोच्चा कज्जं साधेति । अणुराहाहि मिस्साकूरं भोच्चा कज्जं साधेति । जेाहि कोलट्ठिएणं भोच्चा कज्जं साधेति । मूलेणं मूलापणेण भोच्चा कज्जं साधेति । पुव्वाहि आसाढाहि आमलगसारिएणं भोच्चा कज्जं साधेति । उत्तराहि आसाढाहि बिल्लेहि' भोच्चा कज्जं साधेति । अभीइणा पुप्फेहि भोच्चा कज्जं साधेति । सवणेणं' खीरेणं भोच्चा कज्जं साधेति । धणिद्वाहिं जूसेणं भोच्चा कज्जं साधेति । सतभिसयाए तुवरीओ भोच्चा कज्जं साधेति । पुव्वाहि पोट्टवयाहि कारिल्ल एहिं भोच्चा कज्जं साधेति । उत्तराहि पोट्ठवयाहि वराहमसं भोच्चा कज्जं साधेति । रेवतीहि जलयरमंसं भोच्चा कज्जं साधेति । अस्सिणीहि तित्तिरमंसं भोच्चा कज्जं साधेति 'अहवा वट्टगमंसं " । भरणीहि तिलतंदुलगं भोच्चा कज्जं साधेति ॥ अट्ठारसमं पाहुडपाहुडं १२१. ता कहं ते चारा आहिताति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमे" दुविहा चारा पण्णत्ता, तं जहा आदिच्चचारा य चंदचारा य ॥ १२२. ता कहं ते चंदचारा आहिताति वदेज्जा ? वा पंच संवच्छरिए णं जुगे अभीई णक्खते सत्तसद्विचारे चंदेण सद्धि जोयं जोएति, सवणे" णं णक्खत्ते सत्तसद्विचारे चंद्रेण सद्धि जोये जोएति । एवं जाव उत्तरासाढा णक्खत्ते सत्तसद्विचारे चंदेण सद्धि जोये जोएति ॥ १२३. ता कहं ते आदिच्चचारा आहिताति वदेज्जा ? ता पंच संवच्छरिए गं जुगे अभीई णक्खत्ते पंचचारे सूरेण सद्धि जोयं जोएति । एवं जाव उत्तरासाढा णक्खत्ते पंचचारे सूरेण सद्धि जोयं जोएति || एगजवीसइमं पाहुडपाहुडे १२४. ता कह ले मासा आहिताति वदेज्जा ? ता एामेगस्स णं संवच्छरस्स बारस मासा पण्णत्ता ! सच दुविहा णामधेज्जा एण्णता, तं जहा लोइया लोउत्तरिया य । तत्थ लोइया णामा 'इमे, तं जहा - सावणे भवते अस्सोए कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फग्गुणे चित्ते वसा जेट्टामूले आसाढे । लोउत्तरिया णामा 'इमे, तं जहा "".. १. सातिणा ( ट ) ; सातीहि (व) । २. आत्तमियाओं ( क ); अतिसियाओ ( ट ) ; आसत्तिकः (व) | ३. मुलागसाएणं (ट) 1 ४. आमलगसरीणेणं (ग, घ ) । ५. चिलेवीओ (क); विलेवी (ग,ध ) । ६. पुप्फति (ट,व) 1 ७. समणेणं (व) । ८. तुवरातो (द) 1 ६. × (ग,घ)। १०. हमा (क,ग. ब) 1 ११. समणे (ग.घ.व ) : १२. x (क, गघ, ट, व ) १३. चन्द्रप्रप्तेः 'व' संकेतितायां प्रती पूर्णः पाठो विद्यते स भूले स्वीकृतः अन्यादर्शेषु 'अस्सोए जाय आसाढ़े' इति संक्षिप्त पाठोस्ति । १४. (क,ग,घट,व) । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम पाहुडं (वीसइमं पा०) गाहा- अभिणंदे सुपइठे य, विजए पीतिवद्धण । सेज्जसे य सिवे यावि, 'सिसिरेवि य हेमवं" ॥१॥ णवमे वसंतमासे, दसमे कुसुमसंभवे । एकादसमे णिदाहे, वणविरोही य बारसे ।।२।। वीसइम पाहुडपाहुडं १२५. ता कति णं संवच्छरा आहिताति वदेज्जा ? ता पंच संवच्छरा आहिताति वदेज्जा, तं जहा . णक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सणिच्छरसंबच्छरे ।। १२६. ता णक्खत्तसंवच्छरे णं कतिविहे पण्णत्ते ? ता णक्खत्तसंवच्छरे ण दुवालस विहे पण्णत्ते, तं जहा सावणे भद्दवए जाव' आसाढे । जं वा बहस्सतीमहग्गहे दुवालसहि संवच्छरेहि सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेति ।। १२७. ता जुगसंवच्छरे णं पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - चंदे चंदे अभिवडिए चंदे अभिवडिए चेव । ता पढमस्स णं चंदसंवच्छ रस्स चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता। दोच्चस्स णं चंदसंवच्छरस्स चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता, तच्चस्स णं अभिड्रिमसंवच्छरस्स छन्वीसं पव्वा पण्णत्ता। चउत्थस्स णं चंदसंवच्छरस्स चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता। पंचमस्स णं अभिवडियसंवच्छरस्स छव्वीसं पव्वा पण्णत्ता । एवामेव सपुवावरेणं पंचसंवच्छरिए जुगे एगे चउवीसे पव्वसते भवतीति मक्खायं । १२८. ता पमाणसंवच्छरे णं पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - णक्खत्ते चंदे उडू आइच्चे अभिवड्डिते ॥ १२६. ता लक्खणसंवच्छरे णं पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा -...'णक्खत्ते चंदे उड़ आइच्चे अभिवद्भिते । ता णक्खत्तसंवच्छरे पंचविहे पण्णते, तं जहा". गाहा -- समगं णक्खत्ता जोयं, जोएंति समगं उडू परिणमंति ! णच्चुण्हं णातिसीते, बहूदओ होति णक्खत्ते ॥१॥ १. आभिणादिते (क); अभिणदे (ग,घ); आभिणंदे (ट); आभिणादिता (व); द्रष्टव्यं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते ७११४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. सुपइट्टिते (क); सुपइट्ठिय (ग,घ); पतिट्ठो (ब)। ३.सिसिरे य सहेमवं (क,व, जं० ७.११४) । ४. सू० १०१२४ । ५. समक्खातं (ग,घ)। ७. ताणवायत्ते णं संवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते तं जहा (क); णखत्ते चंदे उद् आइच्चे अभिवद्धिते । ता णक्खते णं संवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते (ग,घ); नक्खत्ते चंदे उदू आइच्चे अभिवड्ढिते । ता नक्खत्तसंवच्छ रस्स पंचविहं लक्खणं पण्णत्तं तं (e); (व); स्थानाङ्गे (५२२१३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ती (११२) च चिह्नाङ्कितः पाठो नोपलभ्यते । २. उऊ (ट,व)। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ सूरपण्णत्ती ससि समग पुष्णिमासिं, जोएंतिविसमचारिणक्खत्ता। कडुओ बहूदओ य, तमाहु संवच्छर चंदं ॥२॥ विसमं पवालिणो परिणमंति अणुऊसू दिति पुप्फफलं । वासं न सम्म वासति, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥३॥ पुढविदगाणं च रसं, पुप्फफलाणं च देइ आइच्चे। अप्पेणवि वासेणं, सम्म निप्फज्जए सस्स" ॥४॥ आइच्चतेयतविया, खणलवदिवसा उडू परिणमंति । 'पूरेति णिण्णथलए तमा अभिवडियं जाण ॥५॥ १३०. ता सणिच्छरसंवच्छरे णं अट्ठावीसइविहे पण्णत्ते, तं जहा - अभीई सवणे जाव उत्तरासाढा । जं वा सणिच्छरे महरगहे तीसाए संवच्छरेहि सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेइ॥ एक्कवीसइमं पाहुडपाहुडं १३१. ता कहं ते 'जोतिसस्स दारा" आहिताति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु ता कत्तियादिया णं सत्त णवखत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता -एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु - ता महादिया णं सत्त णक्खत्ता पुन्वदारिया पण्णत्ता एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु - ता धणिट्ठादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता-- एगे एवमासु ३ एगे पुण एवमाहंसु ता अस्सिणीयादिया पं सत्त णक्खत्ता पुवदारिया पण्णत्ता--एगे एवमासु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता भरणीयादिया १. 'ससि' ति विभक्तिलोपात् शशिना । मतानि सन्ति, यत आह चन्द्रप्रज्ञप्याम्२. सगल (ठा० ५२१३) । 'तत्य खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पन्न३. जोएइ (ट,व, ठा० ५२१३) । ताओ. तत्थेगे एवमासु- कत्तियाइया सत्त ४, णखत्त (ठा० ५२१३) । नक्खत्ता वदारिया पन्नता एवमन्ये मधा५. सासं (ट)। दीन्यारे धनिष्ठादीनि हारेऽश्विान्यादीनि अपरे ६. पुरेति में लियाई (ग,५); पूरेः य थलाति भरण्यायोनि, दक्षिणापरीतरद्वाणि च सप्त (ट.व), पुरेति रेणुथलयाई (ठा० २२१३)। नाक प्रथामत क्रमेणैव समदसेयानीति, वयं ७. समगा (ग,ध,व)। पुण एवं व्याम:... अमियाइया णं सत्त ८. जोतिपिदार (ट)। नकलत्ता पुब्ददारिया पन्नत्ता', एवं दक्षिण६. कत्तियादी (क,ग,य) 1 द्वारिकादी-यपि क्रमेणे वेति, तदिह षष्ठं मतमा१०.द्वयोरपिवृत्योः 'एके पुनरेवमाहुः- अनुराधा श्रित्य सूत्राणि प्रवत्तानि । ‘क सङ्केतितादर्श दीनि सप्तनक्षत्राणि पूर्वद्वारकाणि प्रज्ञप्तानि' 'मघादिविषयकवाठानन्तरं अनुराधा विषयका इति व्याख्यातमस्ति, अनेन ज्ञायते वृत्ति- पाठापि लिखितोस्ति । एतेन ज्ञायते अस्मिन् कारस्य सम्मुख अनुराधादिनक्षत्रविषयकपाठ विषये वाचनाद्वयमासीत् । प्रस्तुतप्रती द्वयोरपि एव आसीत् । इदानीन्तनेषु आदर्शषु मधादि- वाचनया: सम्मिश्रणं कृतं लिपिकारेण । वृत्त्योः नक्षत्रविषयकः पाठः उपलभ्यते । स्थानाङ्ग. तस्य जेते एवमाहंसु' इत्यालापकेषु अनुराधादि. वृत्ता (पत्र ३६३) वपि अभय देवसूरिणा एष नक्षत्राणां स्पष्टीकरणपाठो नोपलभ्यते, तेन एवं पाठः उल्लिखितः--इह चार्थे पञ्च आदर्शानुसारी पाठ एव स्वीकृतः। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं ( एक्कवीस इमं पा० ) णं सत्तणक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता - एगे एवमाहंसु ५ । तत्थ जेते एवमाहंसु - ता कत्तियादिया णं सत्त णवखत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु तं जहा - कत्तिया रोहिणी 'संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो अस्सेसा" । महादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा- महा पुव्वा फग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता साती विसाहा । अणुराधादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा अणुराधा जेट्टा मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा अभिई सवणो । धणिट्ठादिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा- धणिट्ठा सतभिसया वापोट्ठवया उत्तरापोट्ठवया रेवती अस्सिणी भरणी । तत्थ जेते एवमाहंसु - ता महादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु तं जहा महा पुत्राफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता साती विसाहा । अनुराधादिया गं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा - अणुराधा जेट्ठा मूले पुत्र्वासाढा उत्तरासाढा अभिई सवणे । धणिट्ठादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा धणिट्ठा सतभिसया पुग्वापोट्ठवया उत्तरापोट्ठवया रेवती अस्सिणी भरणी । कत्तियादिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो अस्सेसा । तत्थ जेते एवमाहंसु - ता धणिट्ठादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु तं जहा - धणिट्ठा सतभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया रेवती अस्सिणी भरणी । कत्तियादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा -- कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सो अस्सेसा । महादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा - महा पुव्वा फग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता साती विसाहा । अणुराधादिया णं सत्त णवत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-- अणुराधा जेठ्ठा मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा अभीई सवणो । तत्थ जेते एवमाहंसु ता अस्सिणीयादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा - अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू । पुस्सादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा पुरसो अस्सेसा महा पुव्वाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता । सातियादिया' णं सत्त णक्खत्ता, पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा - साती विसाहा अणुराधा जेट्ठा मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा । अभीईया - दिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा अभिई सवणो धणिट्ठा सतभिसया पुव्वाभवया उत्तराभद्दवया रेवती । तत्थ जेते एवमाहंसु ता भरणीयादिया णं सत्त णवखत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, ते एवमाहंसु तं जहा भरणी कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू पुस्सी । अस्से सादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा - अस्सेसा महा पुग्वा फग्गुणी उत्तरागुणहत्थो चित्ता सती । विसाहादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं ३. सादीयादीया (क,ग,घ ) । १. जाव अस्सिलेसा (ट,व) | २. अवरदारिया (ट,व) सर्वत्र । ६५३ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ सुरपण्णत्ती जहा ---विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूलो पुव्वासाढा उत्तरासाढा अभिई । सवणादिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा -- सवणो धणिट्ठा सतभिसया पुव्वापोट्टवया उत्तरापोट्ठवया रेवती अस्सिणी- एगे एवमाहं । वयं पुण एवं वदामो ता अभिईयादिया णं सत्त णक्खत्ता पुन्वदारिया पण्णत्ता, तं जहा - अभिई सवणो धणिट्ठा सतभिसया पुब्वापोट्ठवया उत्तरापोट्ठवया रेवती । अस्सि - णीयादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी संठाणा अद्दा पुणव्वसू । पुस्सादिया णं सत्त णक्खत्ता पच्छिमदारिया पण्णत्ता, तं जहा - -पुस्सो अस्सेसा महा पुम्बाफग्गुणी उत्तराफग्गुणी हत्थो चित्ता । सातियादिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-साती विसाहा अणुराहा जेट्टा मुले पुव्वारााढा उत्तरासाढा || बावीसइमं पाहुडपाहुडं १३२. ता कहं ते णक्खत्तविजए आहितेति वदेज्जा ? ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सब्वब्भंतराए जाव' परिक्खेवेणं । सा जंबुद्दीवे णं दीवे दो चंदा पभासेंसु वा भासेति वा पभासिस्संति वा, दो सूरिया तविसु वा तवेंति वा तविस्संति वा, छप्पण्णं णक्खत्ता जोयं जोएंसु वा जोति वा जोइस्संति वा, तं जहा- दो अभीई दो सवणा दो घट्टा दो सतभिसा दो पुव्वापोट्ठवया दो उत्तरापोट्ठवया दो रेवती दो अस्सिणी दो भरणी दो कत्तिया दो रोहिणी दो संठाणा दो अद्दा दो पुणव्वसू दो पुस्सा दो अस्सेसाओ दो महा दो पुव्वाफग्गुणी दो उत्तराफग्गुणी दो हत्था दो चित्ता दो साती दो बसाहादो अणुराधा दो जेट्ठा दो मूला दो पुव्वासाढा दो उत्तरासाढा || १३३. ता एतेसि णं छप्पण्णाए णवखत्ताणं- अत्थि णक्खत्ता जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । अस्थि णक्खत्ता जेणं पण्णरस मुहुत्ते चंदे सद्धि जोयं जोएंति । अस्थि णक्खत्ता जेणं तीस मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोति । अस्थि णक्खत्ता जे गं पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति । ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे चंदे सद्धि जोयं जोएंति ? 'कयरे णक्खत्ता जे णं पण्णरस मुहुत्ते चंदे सद्धि जोयं जोएंति ? कयरे णक्खत्ता जे गं तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति" ? कयरे णक्खत्ता जेणं पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ? ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे मुहुस्स चंदेण सद्धि जोयं जोएति ते गं दो अभीई । तत्थ जेते णक्खत्ता जे गं पण्णरस मुहुत्ते चंद्रेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं वारस, तं जहा दो सतभिसया दो भरणी दो अद्दा दो अस्सेसा दो साती दो जेट्टा । तत्थ जेते गक्खत्ता जे णं तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं तीस, तं जहा- दो सवा दो धणिट्ठा दो पुव्वाभद्दवया दो रेवती अस्सिणी दो कत्तिया दो संठाणा दो पुस्सा दो महा दो पुब्बाफग्गुणी दो हत्या दो चित्ता दो अणुराहा दो मूला दो ३. जाव (ट,व) 1 १. सू० १।१४ । २. दो समणा जाव दो उत्तरासाठा I Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (बावीसइमं पा०) ६५५ पुव्वासाढा । तत्थ जेते णवखत्ता जे णं पणयालीसं मृहत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं बारस, तं जहा -- दो उत्तरापोट्टक्या दो रोहिणी दो पुणव्वसू दो उत्तराफग्गुणी दो विसाहा दो उत्तरासाढा॥ १३४. ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं अत्थि णवखत्ता जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरिएणं सद्धि जोयं जोएंति । अत्थि णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एक्कवीसं च मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । अस्थि णवखत्ता जे तेरस अहोरत्ते बारस मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । अस्थि णक्खत्ता जे णं वीसं अहोरत्ते निणि य मुहत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति । ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता जे णं तं चेव उच्चारेयव्वं । ता एतेसिणं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं तत्थ जेते पक्खत्ता जे णं चत्तारि अहोरत्ते छच्च महत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं दो अभीई । तत्थ जेते णक्खत्ता जे णं छ अहोरत्ते एषकवी सद्धि जोयं जोएंति ते गं बारस, तं जहा - दो सतभिसया दो भरणी दो अद्दा दो अस्सेसा दो साती दो जेट्ठा। तत्थ जेते णवखत्ता जे णं तेरस अहोरत्ते बारस मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएंति ते णं तीसं, तं जहा दो सवणा जाव दो पुब्बासाढा । तत्थ जेते गावखत्ता जे णं वीसं अहोरो तिणि य मुहत्ते सरेण सद्धि जोयं जोएति ते गं बारस, तं जहा दो उत्तरापोटुवया जाव दो उत्तरासादा ।। १३५. ता कहं ते सीमाविवखंभे आहितेति वदेज्जा ? ता एतेसि णं छप्पण्णाए णक्खत्ताणं-- अस्थि णक्खत्ता जेसि णं छ सता तीसा सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो। अस्थि णक्खत्ता जेसि णं सहस्सं पंचोत्तरं सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो। अत्थि णक्खत्ता जेसि गं दो सहस्सा दसुत्तरा सत्तविभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो। अत्थि णवखत्ता जेसि णं तिणि सहस्सा पण्णरसुत्तरा सत्तविभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो। ता एतेसि णं छप्पण्णाए णवखत्ताणं कयरे णवखत्ता जेसि णं छ सत्ता तीसा तं चेव उच्चारतव्वं । कयरे णक्खत्ता जेसि गं तिणि सहस्सा पण्ण रसुत्तरा सत्तट्रिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो ? ता एतेसि णं छप्पण्णाए णखत्ताणं तत्थ जेते खत्ता जेसि एं छ सता तीसा सत्तविभागतीसतियागाणं सीमाविक्खंभो ते णं दो अभीई। तत्थ जेते गवखत्ता जेसि णं सहस्सं पंचुत्तरं सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविक्खंभो ते णं बारस, तं जहा -दो सतभिसया जाव' दो जेट्ठा । तत्थ जेते णक्खत्ता जेसि णं दो सहस्सा दसुतरा सत्तट्ठिभागतीसतिभागाणं सीमाविश्खंभो ते णं तीसं, तं जहादो सवणा जाव' दो पुवामाढा । तत्थ जेते पाखता जेसिणं तिषिण सहस्सा पण रसूत्तरा सत्तटिभागतीसतिभागाणं सीमाविवखंभो ते णं वारस, तं जहा दो उत्तरापोद्वया जाव दो उत्तरासाढा !! १. सत्तसट्ठिभागा° (ट)। २. उच्चारेतन्वं जाव (ट)! ३. सू० १०११३३। ४. सू० १०:१३३ । ५. सू० १०११३३ । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ सूरपण्णत्ती १३६. ता एतेसिणं छप्पण्णाए णखत्ताणं-किं सया' पातो' चंदेण सद्धि जोयं जोएति'? किं सया सायं चंदेण सद्धि जोयं जोएति ? किं सया दुहओ पविट्टित्तापविद्वित्ता चंदेण सद्धि जोयं जोएति ? ता एतेसि णं छप्पण्णाए ‘णक्खत्ताणं किमपि तं जं५ सया पातो चंदेण सद्धि जोयं जोएति । णो सया सायं चंदेण सदि जोयं जोएति । णो सया दुहओ पविट्टित्ता-पविट्टित्ता चंदेण सद्धि जोयं जोएति । 'णष्णत्थ दोहिं अभीईहिं"। 'ता एतेणं दो अभीई 'पायंचिय-पायंचिय" 'चोत्तालीसं-चोत्तालीसं" अमावासं' जोएंति, णो चेव णं पुण्णिमासिणि ॥ १३७. तत्थ खलु इमाओ बावटुिं पुण्णिमासिणीओ मावढेि अमावासाओ" पण्णत्ताओ। १३८. ता एतेसि णं पंचण्ह संवच्छराणं पढम पुग्णिमासिणि चंदे कसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि चंदे चरिमं बावढेि पुण्णिमासिणि जोएति ताओ" पुण्णिमासिगिट्टाणाओ" मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसं भामे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे पढमं पुण्णिमासिणि जोएति ।। १३६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छ राणं दोच्चं पुणिमासिणि चंदे कंसि देसंसि नोएति ? ता जसिणं देसंसि चंदे पढमं पूण्णिमासिणि जोएति ताओ" पूणिमासिणिट्ठाणाओ" मंडलं चउवीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे दोच्चं पुण्णिमासिणि जोएति ।। १४०. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं पुषिमासिणि चंदे कसि देसंसि जोएति ? ता जंसि गं देसंसि चंदे दोच्चं पुष्णिमासिलिं बोएति ताओ पुण्णिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसं भाने उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे तच्चं पुण्णिमासिणि जोएति ।। १४१. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दुवालसमं पुण्णिमासिणि चंदे कसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि चंदे तच्चं पुण्णिमासिणि जोएति ताओ पुण्णिमासिगिट्टाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं स एणं छत्ता दोण्णि अट्ठासीए भागसए उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे १. सता (क,ग,घ)! ८. पायं पायं (क), आलं चित्ता आलं चित्ता २. पादो (ग,घ,व)। (व)। ३. जोएंति (क)। ६. चोतालीसतिम चोतालीसतिम (व) । ४, साग (ग,घ)। १०. अमावसं (क,ट); अवामंसं (ग,घ,व)। ५. णक्खत्ता णो (क,ग,घ,ट,व)। ११. अमावसाओ (क,ट); अवामंसातो (म,घ,व)। ६. ण णस्थि रातिदियाणं वुड्ढोवुड्ढीए मुहुत्ताणं १२. ता एते णं (क); ता तेणं (ग,प): ताडो च चयोवचयेणं णण्णत्थ वा दाहिं अभिया (ब)। (ट)। १३. 'ट्ठाणाते (ग,घ)। ७. 'ता एतेसि ण'मित्यादि ता इति तत्र-तेषां १४. ता तेणं (क); ता एते णं (ट); ता एसे षट्पञ्चाशतो नक्षत्राणां मध्ये एते (सूत्र, (व) प्रायः सर्वत्र । चंव)। १५. 'टाणाते (क,ग,घ) सर्वत्र । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहाडं (बावीसइमं पा०) ६५७ दुवालसमं पुण्णिमासिणि जोएति । एवं खलु एतेणवाएणं ताओ-ताओ पुण्णिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं च उव्वीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसं-दुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता तंसि-तंसि देसंसि तं-तं पुणिमासिणि चंदे जोएति ।। १४२. ता एते सि णं पंचण्हं संवच्छ राणं चरिमं बावद्धिं पुणिमासिणि चंदे कसि देसंसि जोएति ? ता जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दाहिणिल्लंसि चउभागमंडलंसि सत्तावीसं भागे उवाइणावेत्ता अट्ठावीसइभागे वीसहा छेत्ता अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहिं भागेहिं दोहि य कलाहिं पच्चथिमिल्लं चउन्भागमंडलं असंपत्ते, एत्थ णं से चंदे चरिमं बावठि पुषिणमासिणि जोएति ॥ १४३. ता एते सि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं पुणिमासिणि सूरे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि सूरे चरिमं बावट्ठि पुण्णिमासिणि जोएनि ताओ पुण्णिमासिगिट्टाणाओ मंडलं चउब्बीसेणं सएणं छेत्ता च उणवति भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सूरे पढम पुषिणमासिणि जोएति ॥ १४४. ता एतेमि णं पंचण्हं संवच्छ राणं दोच्चं पुणिमासिणि सूरे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि सूरे पढम पुगिण मासिणि जोएति ताओ पुणिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दो चउणवति भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सरे दोच्चं पुणिमासिणि जोएति ।। १४५. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं पुणिमासिणि सुरे कंसि देसंसि जोएति ? ताजंसि णं देसंसि सूरे दोच्चं पुण्णिमासिणि जोएति ताओ पुणिमासिणिटाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता चउणउति भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सरे तच्चं पुण्णिमासिणि जोएति ।। १४६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दुवालममं पुणिमासिणि सूरे कसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि सूरे तुच्चं पुषिणमासिणि जोएनि ताओ पूण्णिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता अट्टछत्ताले भागसए उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सूरे दुवालसमं पुणिमासिणि जोएति । एवं खलु एतेण वागणं ताओ-ताओ पुण्णिमामिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं स एणं छेत्ता चउणउति-च उणउति भागे उबाइणावेत्ता तंसितंसि देसंसि तं-तं पुगिमासिणि सूरे जोएति ।। १४७. ता एतेसि णं पंचण्डं संवच्छराणं चरिमं बावट्ठि पुण्णि मासिणि सूरे कमि देसंसि जोएति ? ता जंबदीवस्स णं दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाक्षिणाय जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता पुरस्थिमिल्लसि चउभागमंडलंसि सत्तावीसं भागे उवाइणावेत्ता अट्ठावीसइभागे वीसहा छेत्ता अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहिं भागेहि १. चउभागे (क,ग,घ,ट,व); असौ पाठः 'सप्त. ३. अस्थ सूत्रस्य स्थाने 'ट.व' प्रत्योः पाट संक्षा विशतिभागानुपादाय' इति वृत्त्यनुसारेण विद्यते एवं तच्चपि णवरं दोच्चाहो। ४. अट्टानीसामं भागं (ग,घ,ट,व)1 स्वीकृतः । ५. उवादिणावेत्ता (क,ग,घ); उवातिणावेत्ता २. पुणपुच्छा (ट) सर्वत्र। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती दोहि य कलाहि दाहिणिलं च भागमंडलं असंपत्ते, एत्थ णं से सूरे चरिमं बावड़ेि पुणिमासिणि जोएति । १४८. ता' एतेसि णं पंचण्हं संवच्छ राणं पढमं अमावासं चंदे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि चंदे चरिमबावढि अमावासं जोएति ताओ अमावासट्टाणाओ मंडलं चउब्बीसेणं सएणं छेत्ता दुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से चंदे पढमं अमावासं जोएति । एवं जेणेव अभिलावेणं चंदस्स पुणिमासिणीओ भणिताओ तेणेव' अभिलावेणं अमावासाओवि भणितव्वाओ, तं जहा- बिइया तइया दुवालसमी । एवं खलु एतेणुवाएणं ताओ-ताओ अमावासट्टाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छत्ता दुबत्तीसंदुबत्तीसं भागे उवाइणावेत्ता तंसि-तंसि देसंसि तं-तं अमावासं चंदे जोएति ॥ १४६. ता एतेसिणं पंचण्ड संवच्छराणं चरिमं बावटि अमावासं चंदे कसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि चंदे चरिमं बावट्टि पुण्णिमासिणि जोएति ताओ-ताओ पुणिमासिणिट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता सोलसभागे ओसक्कइत्ता', एत्थ गं से चंदे चरिमं बावद्धि अमावासं जोएति ॥ १५०. ता एतेसि णं पंचण्ह संवच्छराणं पढमं अमावासं सुरे कंसि देसंसि जोएति ? ता जंसि णं देसंसि सूरे चरिमं बावट्टि अमावासं जोएति ताओ अमावासटाणाओ मंडलं चउब्बीसेणं सएणं छेत्ता चउणउति भागे उवाइणावेत्ता, एत्थ णं से सूरे पढमं अमावासं जोएति । एवं जेणव अभिलावणं सूरस्स पूणिमासिणीओ भणियाओ तेणव अभिलावेण अमावासाओवि भणितव्वाओ, तं जहा- बिइया' तइया दुवालसमी। एवं खलु एतेणुवाएणं ताओ अमावासट्ठाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता चउणउति-चउणउति भागे उवाइणावेत्ता तसि-तंसि देसंसि तं-तं अमावासं सरे जोएति ।। १५१. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरिमं बावर्द्धि अमावासं पुच्छा। ता जंसि गं देससि सूरे चरिमं बावट्ठि पुणिमासिणि जोएति ताओ पुणिमासिणिहाणाओ मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता सत्तालीसं भागे ओसक्कइत्ता, एत्य णं से सूरे चरिमं बावद्धि अमावासं जोएति ॥ १५२. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं पुण्णिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता धणिवाहि, धणिट्ठाणं तिणि मुत्ता एगूणवीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बायद्विभागं च सत्तट्टिधा छेत्ता पट्टि चुणिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं १. 'ट' प्रती अन एव संक्षिप्तपाठा विद्यते -- एवं जेणेव अभिलावणं चंदस्स पुण्णमासिणीया भणिया तेणं चेव अभिलावण अमावसातोवि भाणियव्वाओ तं पढमा बितिया वालसमा। चंद्रप्रजाप्तिवृत्तावपि संक्षिप्तपाठो व्याख्यातोस्ति -चन्द्रविषयमतिदेशमाह-.-एवमित्यादि एवं येनाभिलापेन चन्द्रस्य पौर्णमास्य उक्ता. स्नेनैवाभिमापनामावस्यापि वक्तव्यास्तद्यथा- प्रथमा द्वितीया द्वादशी। २. अमावसं (क); अवामंसं (ग,घ,व) प्रायः सर्वत्र। ३. तेणं चेव (व)। ४. तं जहा.-.-पढमा (क,ब); अनयोरादर्शयोः प्रथमं मूत्र पूर्व लिखितमस्ति, ते न 'पदमा' इति पदं अतिरिक्त विद्यते । ५. ओसवकावइत्ता (क,ग,घ) । ६. विदिया (:,ग,५); वितिया (ट,व)। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पारडं (बावीसइमं पा०) ६५६ णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुवाफग्गुणीहिं, पुवाफग्गुणीणं अट्ठावीसं मुहत्ता अद्वत्तीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता दुबत्तीसं चुण्णिया भागा सेसा॥ _१५३. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं पुण्णिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं पोट्ठवयाहिं, उत्तराणं पोट्ठवयाणं सत्तावीसं मुहुत्ता चोद्दस य बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता बाट्ठि चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं फग्गुणीहि, उत्तराणं फग्गुणीणं सत्त मुहुता तेत्तीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता एक्कतीसं चुणिया भागा सेसा ॥ १५४. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं पुणिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अस्सिणीहि, अस्सिणीणं एक्कवीसं मुहुत्ता णव य एगट्ठिभागा मुहत्तस्स बावटिठभागं च सत्तटिठधा छेत्ता तेवटिंठ चणिया भागा सेसा। तं समयं च सरे के णक्खत्तेणं जोएति ? ता चित्ताहि, चित्ताणं एकको मुत्तो अट्ठावीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्टिधा छेत्ता तीसं चुणिया भागा सेसा॥ १५५. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दुवालसमं पुणिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाणं छव्वीसं' मुहत्ता छब्बीसं च बावद्विभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता चउप्पण्णं चुण्णियाभागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणब्वसुणा, पुणव्वसुस्स सोलस मुहुत्ता अट्ठ' य बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता वीसं चुण्णिया भागा सेसा ॥ १५६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चरिम बाढि पुण्णिमासिणि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं चरमसमए । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुस्सेणं, पुस्सस्स एगूणवीसं मुहुत्ता तेयालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेत्तीस चुण्णिया भागा सेसा॥ १५७. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढम अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अस्सेसाहिं, अस्सेसाणं एक्के मुहुत्ते चत्तालीसं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता बावठ्ठि चुण्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अस्सेसाहि' चेव, अस्सेसाणं' एक्को मुहत्तो चत्तालीसं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्टिधा छेत्ता बावट्टि चुण्णिया भागा सेसा ॥ १५८. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि फग्गुणीहिं, उत्तराणं फग्गुणीणं चत्तालीसं मुहुत्ता पणतीसं बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पण्णट्टि चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च १. छदुवीसं (ग,ध)। ३. असिलेसाहिं (ट)। २. अट्ठा (व)। ४. असिलेसाणं (ठ)। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० सूरपण्णत्ती णं सूरे केणं णवखत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं चेव फग्गुणीहि, उत्तराणं फरगुणीणं जहेव' चंदस्स ॥ १५६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता हत्थेणं, हत्थस्स चत्तारि मुहुत्ता तीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावद्विभागं च सत्तद्विधा छेत्ता बाट्टि चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता हत्थेणं चेव, हत्थस्स जहा' चंदस्स ॥ १६०. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छररणं दुवालसमं अमावासं चंदे केणं णक्खत्तेण जोएति ? ता अद्दाहि, अदाणं चत्तारि मुहुत्ता दस य बावट्ठिभागा मुहुत्तरस बावट्ठिभागं च सत्तट्टिधा छेत्ता च उप्पण्णं चुणिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अद्दाहिं चेव, अद्दाणं जहा' चंदस्स ।। १६१. ता एतेसिणं पंचण्डं संवच्छराणं चरिमं बावटि अमावासं चंदे केणं शक्खत्तेणं जोएति? ता पूणव्वसूणा, पूणव्वसूस्स बावीसं महत्ता बायालीसं च बासट्रिभागा महत्तस्स सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा चेव, पुणव्वसुस्स णं जहा चंदस्स ।। १६२. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं चंदे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाइं अट्ठ एगूणवीसाइं मुहुत्तसयाइं चउव्वीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता बावट्टि चुणिया भागे उवाइणावेत्ता पुणरवि से चंदे अण्णेणं सरिसएणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति अण्णंसि देसंसि ।। १६३. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं चंदे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाई सोलस अट्टतीसे मुहुत्तसयाइं अउणापण्णं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता पट्टि चुणिया भागे उवाइणावेत्ता पुणर वि से चंदे तेणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति अण्णंसि देसंसि ॥ १६४. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं चंदे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमाई 'चउप्पणं मुहत्तसहस्साई" णव य मुहुत्तसयाई उवाइणावेत्ता पुणरवि से चंदे अण्णणं तारिसएणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि ॥ १६५. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेण चंदे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से णं इमं एगं मुहत्तसयसहस्सं अट्ठाणउतिं च मुहुत्तसताइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से चंदे तेणं चेव गक्खत्तेणं १. यथा चंद्रस्य विषये उवतं तथैवात्रापि विषये (सूव)। वक्तव्यं तद्यथा --चत्तालीसं मरता पणतीसं च ३. सचैवम् —अदाए चत्तारि मुहत्ता दस य बावदिठभागा महत्तस्न बावट्रिभाग च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावठ्ठिभागं च सत्तटिठहा छित्ते पगठ्ठि चुणिया भागा सत्तट्ठिहा छत्ता चउपपणं चुणिया भागा सेमा (सूवृ)। सेसा (सूवृ)। २. स चैवम् --हत्थरस चत्तारि मुहुत्ता तीसं चेव ४. स चैवम्—'पुणव्वसुस्स बावीसं मुहुत्ता छायाबावट्ठिभागा मुहुतस्स बायट्ठिभागं च सत्त- लीस व बावट्ठिभागा मुहृत्तस्स सेसा (सूच)। ट्टिहा छित्ता बा वही चुणिया भागा सेसा ५. चाम् हुत्तर हस्साई (क,ग,घ,ट)। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पाहुडं (बावीसइमं पा०) जोयं जोएंति तंसि देसंसि ।। १६६. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं सूरे जोयं जोएति जंसि देसंमि, से णं इमाइं तिण्णि छावट्ठाई राइंदियसयाइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से सूरे अण्णेणं तारिसएणं चेव णक्खतेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि ।। १६७. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं सूरे जोयं जोएति तंसि देसि, से णं इमाई सत्तदुवतीसं राइंदियसयाइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से सूरे तेणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तसि देसंसि ॥ १६८. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेणं सूरे जोयं जोएति जंसि देसंसि, से ण इमाई अट्ठारस वीसाइं राइंदियसयाई उवाइणावेत्ता पुणरवि से सूरे अण्णेणं तारिसएणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि ।। १६६. ता जेणं अज्ज णक्खत्तेण सूरे जोयं जोएति जंगि देसंसि, से णं इमाई छत्तीसं सट्टाई राइंदियसयाइं उवाइणावेत्ता पुणरवि से सूरे तेणं चेव णक्खत्तेणं जोयं जोएति तंसि देसंसि ॥ ७०. ता जयाण इमे चंदे गतिसमावण्णए भवइ तया ण इयरेवि चंदे गतिसमावण्णए भवइ, जया णं इयरे चंदे गतिसमावण्णए भवइ तया णं इमेवि चंदे गतिसमावण्णा भवइ ।। १७१. ता जया णं इमे सूरिए गतिसमावण्णे भवइ तया गं इयरेवि सूरिए गतिसमावण्णे भवइ, जया णं इयरे सूरिए गतिसमावण्णे भवइ तया णं इमेवि सूरिए गतिसमावण्णे भवइ । एवं गहेवि णक्खत्तेवि ।। १७२. ता जया णं इमे चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ तया णं इयरेवि चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ, जया णं इयरे चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ तया णं इमेवि चंदे जुत्ते जोगेणं भवड । 'एवं सूरेवि गहेवि णक्खत्तेवि" !! १७३. सयावि" णं चंदा जुत्ता जोगेहि सयावि णं सूरा जुत्ता जोगेहि, सयावि णं गहा जुत्ता जोगेहिं, सयावि णं णक्खत्ता जुत्ता जोगेहिं । दुहतोवि णं चंदा जुत्ता जोगेहिं. दुहतोवि णं सूरा जुत्ता जोगेहि, दुहतोवि णं गहा जुत्ता जोगेहि, दुहुनोवि णं णक्खत्ता जुत्ता जोगेहि। मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउयाए सएहि छेत्ता। इच्चेस णखत्ते खेत्तपरिभागे णक्खत्तविजए पाहुडे आहितेत्ति बेमि ।। ५. तना (ग,घ)। ६. महा चंदे एवं सूरेवि गहे णक्य ते भाणितब्वे १. मूरिए (क,ग,पट)। २. सत्तदुबनीसं (क); सत्तदुवतीसं (ग,घ); सत्तदूवत्तीसं (८); सत्तदुपतीसा (व)! ३. x (ग,घ)। ४. जता (ग,घ)। ७. सतावि (क,ग,घ,व); सदावि (ट)। ८. पाहुडेति (य,घ,ट)। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं पाहुडं १. ता कहं ते संवच्छराणादी' आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमे पंच संवच्छरा पण्णता, तं जहा----चंदे चंदे अभिवड्डिते चंदे अभिवड़िते ॥ २. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं पंचमस्स अभिवडितसंवच्छरस्स पज्जवसाणे से णं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स आदी अणंतरपुरक्खडे समए॥ ता से णं कि पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स आदी से णं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे समए । तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं छ दुवीस मुहुत्ता छदुवीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता चउप्पण्णं चुणिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स सोलस मुहत्ता अट्ठ य बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्टिहा छेत्ता वीसं चुणिया भागा सेसा ।। ३. ता एतेसि ण पंचण्हं संवच्छ राणं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा? ता जे णं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे से णं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स आदी अणंतरपुरक्खडे समए । ता से णं किं पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं तच्चस्स अभिवतिसंवच्छरस्स आदी, से ण दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुव्वाहिं आसाढाहि, पुव्वाणं आसाढाणं सत्त मुहुत्ता तेवण्णं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता इगतालीसं चुष्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स णं बायालीसं मुहुत्ता पणतीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता सत्त चुण्णिया भागा सेसा॥ ४. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चस्स अभिवड्डितसंवच्छरस्स के आदी आहि१. संवच्छ राणाई (क); संवच्छराणाती (व)। २. के पुच्छा (ट,व)। ६६२ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कारसमं पाहुड ६६३ तेति वदेज्जा? ताजे णं दोच्चस्स चंदसंबच्छरस्स पज्जवसाणे, से णं तुच्चस्स अ संवच्छरस्स आदी अणंतरपुरक्खडे समए । ता से ण कि पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा? ता जे णं च उत्थस्स चंदसंवच्छ रस्स आदी, से णं तच्चस्स अभिवड्डितसंवच्छ रस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे समए। तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं तेरस मुहुत्ता तेरस य वावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता सत्तावीसं चुणिया भागा सेसा ।। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति? ता पुणव्वसुणा, पुणब्वसुस्स दो मुहत्ता छप्पण्णं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्रा बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता सट्ठी चुणिया भागा सेसा॥ ५. ता एतेसि ण पंचण्हं संवच्छ राणं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा? ता जे णं तच्चस्स अभिवडिनसंवच्छरस्स प्रज्जवसाणे, से णं चउत्थस्स चंदसंबच्छरस्स आदी अणंतरपूरक्खडे समए । ता से णं कि पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा? ता जे णं चरिमस्स' अभिडितसंवच्छरस्स आदी, से णं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे समए। तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाणं ऊतालीसं मुहत्ता चत्तालीसं च बाबट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता चउदस चण्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुणव्वसुणा, पुणव्वसुस्स अउणतीसं मुहुत्ता एककवीसं वावट्ठिभागा मुहुत्तस्स वावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता सीतालीस चुणिया भागा सेसा ॥ ६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पंचमस्स अभिवडितसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा ? ता जे णं चउत्थस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे, से ण पंचमत्त अभिवद्भुितसंवच्छ रस्त आदी अणंतरपुर क्खडे समए । ता से णं किं पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा ? ना जे गं पढमस्स मंदसंबच्छरस्ता आदी, से णं पंचमस्स अभिवड्डितसंवच्छरस्स पज्जवसाणे अणंतरपच्छाकडे सभए । तं समयं च णं चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाहाण चरिमसमए। तं समयं च णं सूरे केणं गक्खत्तेणं जोएति ? ता पुस्सेणं, पुस्सस्स णं एक्कवीसं मुहत्ता तेतालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेत्तीस चुणिया भागा सेसा ।। १.पंचमस्स (ट) २. सीवाली (ट); सीतालंसं (व)। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं पाहुड १. ना कति णं संवच्छरा आहिताति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमे पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा णत्रखत्ते चंदे उड् आदिच्चे अभिवड्ढिते || २. वा एतेसि णं पंचण्ड संच्छराणं पढमस्स णक्खत्तसंवच्छरस्स णक्खत्तमासे तीस मुहुत्ते अहोतेणं मिज्जमाने के लिए राइंदियग्गेणं आहितेति वएज्जा ? ता सत्तावीस राइदियाई एक्कवीस च सत्तट्ठिभागा राइदियस्स राइदियम्गेणं आहितेति वदेज्जा | ता से केवल मुत्तगेणं आहितेनि वदेज्जा ? ता अटूसए एगूणवीसे मुहुत्ताणं सत्तावीसं च सत्तभागे मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता एस णं अद्धा दुवालसकडा णक्खत्ते संवच्छरे । ता से णं केवनिए राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तिष्णि सत्तावीसे राइदियसतं एक्कावण्णं च सतट्ठभागे राइदियस्स राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता सेणं कवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता णव मुहुत्तसहस्साइं अट्ठय बत्तीसे मुहुत्तसए छप्पण्णं च सत्तट्ठभागे मुहुत्तस्स मुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा | मुटु ३. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छरणं दोच्चस्स चंद्रसंवच्छरस्स चंदे मासे तीसतिअरत्तणं गणिज्जाम के बनिए राईदिग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? वा एगुणतीसं इंदिया वत्तोस वावहिनागा राईदिवस राईदिवगेणं आहितेति वदेज्जा । ता सेणं केवतिए मुहुत्तणं आहितेति वएज्जा ? ता अट्ठपंचासते मुहुत्ते तेत्तीस च छावट्टिभागे मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा | ता एस णं अद्धा दुबालसखुतकडा चंदे संवृच्छरे । तासे णं केवतिए राइदियग्गेणं जहितेति वदेज्जा ? ता तिष्णि चउप्पण्णे राइदिसते दुवालसय बावद्विभागा राइदियम्गेणं आहितेति वदेज्जा । तासे णं केवनिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता इस मुहुत्तसहस्साई छच्च पणवीसे' मुहुत्सते पण्णासं च बावद्विभागे मुहुत्तगेणं आहितेति वदेज्जा | ४. ता एतेसि णं पंचं संवच्छरणं तच्चस्स उडुसंवच्छरस्स उडुमासे तीसतिमुहुत्तेणं ३. पणुवी ( गध) १. × ( कंट,त्र ) । २. एतैसि ( ग, घ, ट, व ) । ६६४ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं पाहुई अहोरत्तेणं गणिज्जमाणे केवतिए राइंदियग्गेणं आ हितेति वदेज्जा? ता तीसं राइंदियाणं राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता णव मुहुत्तसताई मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा उडू संवच्छरे । ता से णं केवतिए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तिण्णि सट्टे राइंदियसते राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता दस मुहुत्तसहस्साइं अट्ठ मुहुत्तसताई मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ।। ५. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चउत्थस्स आदिच्चसंवच्छरस्स आदिच्चे मासे तीसतिमूहलेणं' अहोरत्तेणं गणिज्जमाणे केवतिए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता नीसं राइंदियाइं अबडभागं च राइंदियस्स राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता णव पण्णरस मुहत्तसए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा आदिच्चे संवच्छरे । ता से णं केवलिए राइदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तिण्णि छावठे राइंदियसए राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से ण केवतिए मुहुत्तम्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता दस मुहुत्तस्स सहस्साई णव असीते मुहत्तसते मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । * ६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पंचमस्स अभिवड्डितसंवच्छरस्स अभिवड़िते मासे तोगतिमूहत्तेणं गणिज्जमाणे केवतिए राइंदियन्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता एक तीसं राइंदियाइं एगूणतीसं च मुहुत्ता सत्तरस बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स राइंदियग्गेणं आस्तिति बदेज्जा। ता से ण के प्रतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता णव एगूणसठे मुहत्तसते सत्तरस बाबा मागे नुनस्म मुहुत्तम्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा अभिवड्डितसंबच्छरे । ता से णं केवतिए राइंदियगणं आहितेति वदेज्जा? ता तिणि तेसीते राइंदियसते एकवीसं च मृहुत्ता अट्ठारस बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता एक्कारस मुहुत्तसहस्साई पंच य एक्कारस मुहुत्तसते अट्ठारस बावद्विभागे मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ।। ७. ता केवतियं ते नौजुगे राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता सत्तरस एक्काणउते राइंदियसते एगणवीसं च मुहुत्ते सत्तावण्णे बावट्ठिभागे मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता पणपण्णं चुगिणया भागा राइंदियम्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए मुहत्तम्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता तेपण्णमुहत्तसहस्साइं सत्त य अउणापण्णे मुतसते सत्तावणं बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता १. तीसतिमुहत्ते पुच्छा तहेव (ट,व)। २. अगुणपण्णा (ट,व)। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरफ्णत्ती पणपण्णं चुणिया भागा मुहतग्गेणं आहितेति वदेज्जा ॥ ८. ता केवतिए णं ते जुगप्पत्ते राइंदियम्गेणं आहितेति वदेज्जा? ता अद्वतीसं राईदियाई दस य मुहुत्ता चत्तारि य बावट्ठिभागे मुहृत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता दुवालस चुणिया भागा राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा।। ता से णं केवतिए मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता एक्कारस पण्णासे मुहत्तसते चत्तारि य बावट्ठिभागे बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता दुवालस चुणिया भागा मुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ।। १. ता केवतियं जुगे राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता अट्ठारसतीसे राइंदियसते राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । ता से णं केवतिए मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता चउप्पणं मुहत्तसहस्साइं णव य मुहत्तसताई मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा। ता से णं केवतिए बावट्ठिभागमुहत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? ता चउत्तीसं सयसहस्साई अट्रतीसं च बावद्विभागमुहत्तसते बाट्ठिभाग मुहुत्तग्गेणं आहितेति वदेज्जा । १०. ता कया' णं एते 'आदिच्चचंदा संवच्छरा" समादोया' समपज्जवसिया आहितेति वदेज्जा? ता सट्टि एते आदिच्चमासा, बावट्ठि एते चंदमासा । एस णं अद्धा छक्खत्तकड़ा दुवालसभइता तीसं एते आदिच्चसंवच्छरा, एक्कतीसं एते चंदसंवच्छरा। तया णं एते आहिच्चचंदसंवच्छरा समादीया सम्पज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ।। ११. ता कया णं एते आदिच्चउडुचंदणक्खत्ता संवच्छरा समादोया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ? ता सट्टि एते आदिच्चा मासा, एगर्द्धि एते उडू मासा, बाटूि एते चंदा मासा, स४ि एते णक्खत्ता मासा । एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा दुवालसभइता सट्टि एते आदिच्चा संदच्छरा. एगट्रि एते उड संवच्छरा, दाव एते चंदा संवच्छस, सत्तदि एते णक्खत्ता संवच्छरा। तया णं एते आदिच्चउडुचंदणवखत्ता संबच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ।। १२. ता कया णं एते अभिवडितआदिच्च उडुचंदणक्खता संबच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ? ता सत्तावणं" मासा त य अहोरता एक्कारस य मुहुत्ता तेवीसं बावद्विभागा मुहत्तस्स एते अभिवडिता माना, सहिएते आदिच्चा नासा, एट्टि एते उडू मासा, बावट्टि एते चंदमासा, सन्टु एते गावखतमासा । एस णं अद्धा छप्पण्णसतक्खुत्तकडा दुवालसभइता सत सता चोताला' एते णं अभिवड़िता संवच्छरा, सत्त सता असीता एते णं आदिच्चा संवच्छरा, सत्त सता तेणमा एते म उडू संवच्छस, अट्ठ सता छलुत्तरा एते णं चंदा संवच्छरा, अट्ठता एगरातरा एते णं णक्खत्ता १. कता (क,ग,घ,व)। यस्माभिरुभवथापि पाठः स्वीकृतः । वृत्स्योस्तु २. आदिच्चचंदसंबच्छरा (क,ग,ध,ट); प्रस्तुत- सर्वत्रापि मस्तपदं व्याख्यातमस्ति । सुत्रस्य निगमने 'क,व,घ' प्रतिष्ठापि 'आदि- ३. समातीता (ब)। च्चचंदसंबच्छरा' इति पाठो दृश्यते । आदर्शेष ४. सत्तापण्णं (ग,घ) । च क्वचित् समस्तपदान्यपि लिखितानि सन्ति, ५. चोयाला (ट) । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं पाहुडं ६६७ संवच्छरा। तया णं एते अभिवड्डिता आदिच्च उडुचंदणक्खत्ता संवच्छरा सभादीया समपज्जवसिया आहिताति वदेज्जा ।। १३. ता णयट्टयाए णं चंदे संवच्छरे तिण्णि चउप्पण्णे राइदियसते दुवालस य बावट्ठिभागे राइंदियस्स आहितेति वदेज्जा। ता अधातच्चेणं चंदे संवच्छरे तिण्णि चउप्पणे रायंदियसते पंच य मुहुत्ते पण्णासं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा । १४. तत्थ खलु इमे छ उडू पण्णत्ता, तं जहा- --पाउसे वरिसारत्ते सरदे' हेमंते वसंते गिम्हे ।। १५. ता सव्वेवि णं एते चंद उडू दुवे-दुवे मासाति चउप्पण्णेणं-चउप्पण्णेण आदाणेणं गणिज्जमाणा सातिरेगाई एगूणसट्ठि-एगूणसट्टि राइंदियाइं राइंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ॥ १६. तत्थ खलु इमे छ ओमरत्ता पण्णत्ता, तं जहा–ततिए पव्वे सत्तमे पव्वे एक्कारसमे पव्वे पण्ण रसमे पव्वे एकणवीसतिमे पव्वे तेवीसतिमे पव्वे॥ १७. तत्थ खलु इमे छ अइरत्ता, तं जहा. -चउत्थे पव्वे अट्ठमे पव्वे बारसमे पव्वे सोलसमे पव्वे वीसतिमे पव्वे चउवीसतिमे पव्वे। गाहा -- छच्चेव य अइरत्ता, आदिच्चाओ हवंति माणाहिं। छच्चेव ओमरत्ता, चंदाओ हवंति माणाहिं ॥१॥ १८. तत्थ खलु इमाओ पंच वासिकीओ पंच हेमंतीओ आउद्रीओ पण्णत्ताओ। १६. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढम वासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता अभीइणा, अभीइस्स पढमसमए । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति' ? ता पूसेणं, पूसस्स एगूणवीसं मुहुत्ता तेत्तालीसं च बावविभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेत्तीसं चुण्णिया भागा सेसा ।। २०. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं वासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता संठाणाहि, संठाणाणं ‘एक्कारस मुहुत्ता ऊतालीसं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्टिधा छेत्ता तेपण्णं चुणिया भागा सेसा"। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुसेणं, पूसस्स णं तं चेव जं पढमाए । २१. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं तच्चं वासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता विसाहाहिं, विसाहाणं तेरस मुहुत्ता चउप्पण्णं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावटिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता चत्तालीसं चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णवखत्तेणं जोएति ? ता पूसेणं, पूसस्स तं चेव ।। २२. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चउत्थि बासिकि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता रेवतीहिं, रेवतीणं पणवीसं मुहत्ता दुबत्तीसं च बावट्ठिभागा सेसा मुहत्तस्स १. सरते (क,ग,५)। २. हेमंताओ (ट)। ३. जोगं जोएति (ट,व)। ४. सो चेव अभिलावो एकारस ऋणलाभे तेपणं चेव चुणिया (ट); सो चेव अभिलावो एक्कारस ऊताली तेपण्णं चेव चुण्णिता (व)। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ सूरपण्णत्ती बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता छव्वीसं' चुण्णिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णखत्तेणं जोएति ? ता पूसेणं, पूसस्स तं चेव ।। २३. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छ राणं पंचमं वासिवि आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पुत्वाहि फरगुणीहि, पुव्वाणं फग्गुणीणं वारस मुहुता सत्तालीसं च बावट्टिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेरस चुणिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केण णक्खत्तेणं जोएति ? ता पूसेणं, पूसस्स तं चेव ॥ २४. ता एलेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं हेमति आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता हत्थेणं, हत्थस्स णं पंच मुहत्ता पण्णासं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्टिभाग सत्तद्विधा छेत्ता सट्ठि चुणिया भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति? ता उत्तराहि आसाढहि, उत्तराण आसाढाणचारमसमए । २५. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं हेमति आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता सतभिसयाहिं, सतभिसयाणं दुण्णि मुहुत्ता अठ्ठावीस च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स वावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता छत्तालीसं चुणिया भागा सेसा । तं समयं च सरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए !! २६. ता एतेसि णं पंचण्ह संवच्छराणं तच्चं हेमति आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता पूसेणं, पूसरस एगूणवीसं मुहुत्ता तेतालीसं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता तेत्तीसं चुणिया भागा सेसा। तं समयं च णं सरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहि आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए । २७. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं चउत्थि' हेमंति आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता मूलेणं, मूलस्स छ मुहुत्ता अट्टावण्णं च बावट्ठिभागा मुहत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्रिधा छेत्ता वीसं चुण्णि या भागा सेसा । तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहि, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए । २८. ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पंचमि' हेमति आउट्टि चंदे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता कत्तियाहि, कत्तियाणं अट्ठारस मुहत्ता छत्तीसं च बावद्विभागा मुहत्तस्स बावट्रिभागं च सत्तद्विधा छेत्ता छ चुणिया भागा संसा। तं समयं च णं सूरे केणं णक्खत्तेणं जोएति ? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाण चरिमसमए॥ २६. तत्थ खलु इमे दसविधे जोए पण्णत्ते, तं जहा - वसभाणुजाते वेणुयाणुजाते. मंचे मंचातिमंचे छत्ते छत्तातिछत्ते जुयणद्धे घणसंमद्दे पीणिते मंडूकप्पुत्ते णाम दसमे ॥ ३० ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं छत्तातिच्छत्तं जोयं चंदे कंसि देसंसि जोएति ? ताजंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सतेणं छेत्ता दाहिणपुरस्थिभिल्लंसि चउभागमंडलंसि सत्तावीसं भागे उवाइणावेत्ता १. बत्तीस (ग,व); वृत्त्वाः षड्विशतिश्चूणिका ३. पंचम (व)। भागाः शेषा:' इति व्याख्यातमस्ति । ४. वेणुताणुजात (ब)। २. चउत्थं (ट)। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं पाहुडं ६६६ अट्ठावीसतिभागं वीसधा छेत्ता अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहिं भागेहिं दोहिं कलाहिं दाहिणपुरथिमिल्लं चउब्भागमंडलं असंपत्ते, एत्थ णं से चंदे छत्तातिच्छत्तं जोयं जोएति, तं जहा-उप्पि चंदे, मज्झे णक्खत्ते, हेद्रा आदिच्चे । तं समयं च णं चंदे केणं णखत्तेणं जोएति ? ता चित्ताहि, चित्ताणं चरिमसमए । तेरसमं पाहुडं १. ता कहं ते चंदमसो बड्डोबड्डी आहितेति वदेज्जा ? ता अट्ठ पंचासीते मुहत्तसते तीसं च बावविभागे महत्तस्स, ता दोसिणापक्खाओ अंधकारपक्खमयमाणे चंदे चत्तारि बातालसते छत्तालीसं च वावट्ठिभागे मुहत्तस्स जाइं चंदे रज्जति, तं जहा. पढमाए पढम भागं 'बितियाए वितियं" भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भागं । चरिमसमए चंदे रत्ते भवति, अवसेसे समए चंदे रत्ते व विरत्ते य भवति, इयण्णं अमावासा', एत्थ णं पढमे पव्वे अमावासा, ता अंधकारपक्खो, तो णं दोसिणापक्खं अयमाणे चंदे चत्तारे बात छतालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स जाइं चंदे विरज्जति, तं जहा ... पढमाए पढमं भाग, बितियाए बितियं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसम भागं । चरिमे समए चंदे विरत्ते भवति, अवसेसमए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवति, इयण्णं पुणिमासिणी, एत्थ णं दोच्चे पव्वे पूण्णिमासिणी॥ २. तत्थ खलु इमाओ बावट्टि पुण्णिमासिणीओ बावट्टि अमावासाओ पण्णत्ताओ। बाढि एते कसिणा रागा, वावद्धि एते कसिणा विरागा। एते चउच्चीसे पव्वसते एते चउव्वीसे कसिणरागविरागसते, जावतिया णं पंचण्हं संवच्छराणं समया एगेणं चउव्वीसेणं समयसतेणणका एवतिया परित्ता असंखेज्जा देसरागविरागसता भवंतीति मक्खाता॥ ३. ता अमावासाओ णं युण्णिमासिणी चत्तारि बाताले मुहुत्तसते छत्तालीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा। ता पुण्णिमासिणीओ णं अमावासा चत्तारि बाताले मुहत्तसते छत्तालीसं च वावट्ठिभागे मुहत्तस्स आहितेति वदेज्जा। ता अमावासाओ णं अमावासा अट्ठपंचासीते महत्तसते तीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा। ता पुण्णिमासिणीओ णं पुणिमासिणी अट्ठपंचासीते मुहुत्तसते तीसं च बावद्विभागे मुहत्तस्स आहितेति वदेज्जा । एस णं एवतिए चंदे मासे, एस णं एवतिए सगले जुगे । ४. ता चंदेणं अद्धमासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता चोद्दस चउभागमंडलाई चरति, एगं च चउव्वीससयभागं मंडलस्स ।। १. चंदिमसा (क); चंदेमसो (ट,व) 1 २. पक्खं अयमीणे (क,ग,घ,व) । ३. बिदियाए बिदियं (क,ग,घ)। ४. अयणं (ग,घ,ट)। ५. अमावसा (क); अवामंसा (ग,घ); अवामसं (ट,व)। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० सूरपण्णत्ती ५. ता आदिच्चेणं अद्धमासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति? ता सोलस मंडलाई चरति, सोलसमंडलचारी तदा अवराई खलु दुवे अट्ठकाइं जाइं चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविट्टित्ता-पविद्वित्ता चारं चरति ।। ६. कतराई खलु ताई दुवे अट्ठकाई जाइं चंदे केणइ असामण्णकाइ सयमेव पविद्वित्तापविद्वित्ता चारं चरति ? ता इमाई खलु ते बे अट्ठकाई जाइं चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविट्टित्ता-पविट्टित्ता चारं चरति, तं जहा णिक्खममाणे चेव अमावासंतेणं, पविसमाणे चेव पुणिमासितेणं । एताइं खलु दुवे अट्ठकाइं जाइं चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविट्ठित्ता-पविद्वित्ता चारं चरति ॥ ७. ता पढमायणगते चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे सत्त अद्धमंडलाइं जाइं चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति ।। ८. कतराई खलु ताई सत्त अद्धमंडलाइं जाई चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति ? इमाई खलु ताई सत्त अद्धमंडलाइं जाई चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति, तं जहा ---बितिए' अद्धमंडले चउत्थे अद्धमंडले छठे अद्धमंडले अट्टमे अद्धमंडले दसमे अद्धमंडले बारसमे अद्धमंडले चउदसमे अद्धमंडले । एताई खलु ताई सत्त अद्भमंडलाइं जाई चंदे दाहिणाते भागाते पविसमाणे चारं चरति ॥ ६. ता पढमायणगते चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे छ अद्धमंडलाइं तेरस य सत्तट्ठिभागाइं अद्धमंडलस्स जाई चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चारं चरति । १०. कतराई खलु ताई छ अद्धमंडलाइं तेरस य सत्तट्ठिभागाइं अद्धमंडलस्स जाई चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चारं चरति ? इमाइं खलु ताई छ अद्धमंडलाइं तेरस य सत्तविभागाइं अद्धमंडलस्स जाइं चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चारं चरति, तं जहाततिए अद्धमंडले पंचमे अद्धमंडले सत्तमे अद्धमंडले णवमे अद्धमंडले एक्कारसमे अद्धमंडले तेरसमे अद्धमंडले पण्णरसमस्स अद्धमंडलस्स तेरस सत्तट्ठिभागाइं। एताइं खलु ताई छ अद्धमंडलाइं तेरस य सत्चट्ठिभागाइं अद्धमंडलस्स जाई चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चारं चरति । एतावता च' पढमे चंदायणे समत्ते भवति ।। ११. ताणक्खत्ते अद्धमासे नो चंदे अद्धमासे, चंदे अद्धमासे नो णक्खत्ते अदमासे। ता णक्खत्ताओ अद्धमासाओ ते चंदे चंदेणं अद्ध मासेणं किमधियं चरति ? ता एगं अद्धमंडलं चरति चत्तारि य सट्रिभागाइं अद्धमंडलस्स सत्तट्टिभागं एगतीसाए छेत्ता णव भागाइं॥ १२. ता दोच्चायणगते चंदे पुरथिमाते भागाते णिक्खममाणे सत्त चउप्पण्णाइं जाई चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, सत्त तेरसकाइं जाई चंदे अप्पणो चिण्णं पडिचरति । ता दोच्चायण गते चंदे पच्चत्थिमाते भागाते णिक्खममाणे छ चउप्पण्णाइं जाइं चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, छ तेरसकाई जाई चंदे अप्पणो चिण्णं पडिचरति, अवरकाई खलु दुवे तेरसकाइं जाई चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविद्वित्ता-पविद्वित्ता चारं चरति ॥ १. बिदिए (क,ग,घ)। ३. ४ (क,ग,ट)। २. पणरसस्स (क); पष्णरसमे (म,घ)। ४. किमहियं (ट,व)। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमं पाहुडं ६७१ १३. कतराई खलु ताई दुवे तेरसकाइं जाइं चंदे केणइ असामण्णकाई सयमेव पविद्वित्ता-पविद्वित्ता चारं चरति । इमाई खलु ताई दुवे तेरसकाई जाई चंदे केणइ असामण्ण काई सयमेव पविद्वित्ता-पविद्वित्ता चारं चरति, तं जहा-सव्वब्भंतरे चेव मंडले सव्व वाहिरे चेव मंडले । एताणि खलु ताणि दुवे तेरसकाइं जाइं चंदे केणइ 'असामण्णकाई सयमेव पविद्वित्ता-पविद्वित्ता' चारं चरति । एतावता च दोच्चे चंदायणे समत्ते भवति । १४. ता णवखत्ते मासे णो चंदे मासे, चंदे मासे णो पक्खत्ते मासे । ता णक्खत्ताओ मासाओ चंदे चंदेणं मासेणं किमधियं चरति ? ता दो अद्धमंडलाइं चरति अट्ठ य सत्तट्ठिभागाइं अद्धमंडलस्स' सत्तट्ठिभागं च एक्कतीसधा छेत्ता अट्ठारस भागाइं । ता तच्चायणगते चंदे पच्चस्थिमाते भागाते पविसमाणे वाहिराणंतरस्स पच्चथिमिल्लस्स अमंडलस्स ईनालीसं सत्तट्टिभागाई जाई चंदे अप्पणो परस्स य चिणं पडिचरति, तेरस सत्तट्ठिभागाइं जाई चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, तेरस सत्तट्ठिभागाइं जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति । एतावता व बाहिराणंतरे पच्चत्थिमिल्ले अद्धमंडले समत्ते भवति । १५. काच्चायणाते चंदे पुरस्थिमाते भागाते पवितमाणे बाहिरतच्चस्स पुरत्थिमिल्लस्स अद्धमंडलस्म ईतालीसं सत्तट्ठिभागाइं जाई चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचर ति, तेरस सत्तद्विभागाइं जाइं चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, तेरस सत्तट्ठिभागाई जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति । एतावता च बाहिरतच्चे पुरथिमिल्ले अद्धमंडले समत्ते भवति।। १६. ता तच्चायणगते चंदे पच्चत्थिमाते भागाते पविसमाणे बाहिरचउत्थस्स पच्चथिमिल्लस्स अद्धमंडलस्स अट्ठ सत्तट्ठिभागाइं सत्तट्ठिभागं च एक्कतीसधा छेत्ता अट्ठारस भागाइं जाई चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति । एतावता च बाहिरचउत्थे पच्चथिमिल्ले अद्धमंडले समत्ते भवति ॥ १७. एवं खलु चंदेणं मासेणं चंदे तेरस चउप्पण्णगाई दुवे तेरसकाई जाइं चंदे परस्स चिण्णं पडिचरति, तेरस तेरसकाई जाइं चंदे अप्पणो चिण्णं पडिचरति, दुवे ईतालीसकाई 'दुवे तेरसकाइं अट्ठ सत्तट्ठिभागाइं सत्तट्ठिभागं च एक्कतीसधा छेत्ता अट्ठारसभागाई जाइं चंदे अप्पणो परस्स य चिण्णं पडिचरति । 'अवराइं खलु दुवे तेरसगाई जाइं चंदे केणइ असामण्णगाई सयमेव पविद्वित्ता-पविट्टित्ता चारं चरति" इच्चेसा चंदमसोऽभिगमण-णिक्खमण-बुड्डि-णिवुड्डि-अणवट्टितसंठाणसंठिती विउव्वणगिढिपत्ते रूवी चंदे देवे आहितेति वदेज्जा । ३. चिन्हाङ्कितः पाठो वृत्त्योाख्यातो नास्ति । १. जाव (क,ग,घ)। २. ४ (ग,घ,ट,व)। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्दसमं पाहुडं १. ता कया' ते दोसिणा बहू आहितेति वदेज्जा ? ता दोसिणापक्खे णं दोसिणा बहू आहितेति वदेज्जा ॥ २. ता कहते दोसिणापक्खे दोसिणा बहू आहितेति वदेज्जा ? ता अंधकारपक्खातो दोसिणापक्खे दोसिणा बहू आहिताति वदेज्जा | ३. ता कहं ते अंधकारपक्खातो दोसिणापक्खे दोसिणा वह आहिनाति वदेज्जा ? ता अंधकारपक्खाओ णं दोसिणापक्खं अयमाणे चंदे चत्तारि बाताले मुहुत्तसए छत्तालीसं च बावद्विभागे मुहुत्तस्स जाई चंदे विरज्जति, तं जहा पढमाए पढमं भागं, 'वितियाए वितियं" भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भागं । एवं खलु अंधकारपक्खातो दोसिणा दोसिणा बहू आहिताति वदेज्जा ॥ ४. ता केवतिया गं दोसिणापक्खे दोसिणा बहू आहिताति वदेज्जा ? ता परित्ता असंखेज्जा भागा ॥ ५. ता कया" ते अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? ता अंधकारपक्खे णं अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ॥ ६. ता कहं ते अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? ता दोसिणापवखातो णं अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ॥ ७. ता कहं ते दोसिणापक्खातो अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? ता दोसणापवखातो णं अंधकारपक्खं अयमाणे चंदे चत्तारि बाताले मुहुत्तसते छायालीस च बाद्विभागे मुहुत्तस्स जाई चंदे रज्जति, तं जहा - पढमाए पढमं भागं, बितियाए बितियं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भागं । एवं खलु दोसिणापवखातो अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ।। ८. ता केवतिए णं अंधकारपक्खे अंधकारे बहू आहितेति वदेज्जा ? ता परित्ता असंखेज्जा भागा ॥ १. कता (क, ग, घ, ट, व ) 1 २. कधं (क,ग,ध) ३. अयमीणे (क, ग, घ, व ) 1 ६७२ ४. बिदियाए विदियं (क,ग,घ) 1 ५. कता (क,ग,घ) 1 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं पाहुड १. ता कहं ते सिग्धगती वत्थू आहितेति वदेज्जा ? ता एतेसि णं चंदिम-सूरिय-गहणक्खत्त-तारारूवाणं चंदेहितो सूरा सिग्घगती, सुरेहितो गहा सिग्घगती, गहेहितो णक्खत्ता सिग्घगती, णक्खत्तेहितो तारा सिग्धगती । सव्वष्पगती चंदा, सव्वसिग्धगती तारा ॥ २. ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं चंदे केवतियाई भागसताई गच्छति ? ता जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्सन्तस्स मंडलपरिक्खेवस्स सत्तरस 'अडसट्ठि भागसते " गच्छति, मंडल सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीए सतेहिं छेत्ता ॥ ३. ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं सूरिए केवतियाई भागसताई गच्छति ? ता जं-जं मंडल उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस तीसे भागसते गच्छति, मंडलं सतसहस्से अद्वाणउतीए सतेहिं छेत्ता ॥ ४. ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं णक्खत्ते केवतियाइं भागसताइं गच्छति ? ता जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस पणती से भागसते गच्छति, मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीए सतेहिं छेत्ता || ५. ता जया' णं चंद गतिसमावण्णं सूरे गतिसमावण्णे भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ? ता बावद्विभागे विसेसेति ॥ ६. ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं णवखत्ते गतिसमावण्णे भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ? ता सत्तद्विभागे विसेसेति || ७. ता जया णं सूरं गतिसमावण्णं णक्खत्ते गतिसमावणे भवति, णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ? ता पंच भागे विसेसेति ॥ ८. ता जया णं चंद गतिसमावण्णं अभीई णक्खत्ते गतिसमावण्णे पुरत्थमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे मुहुत्तस्स चंद्रेण सद्धि जोयं जोति, जोएत्ता जो अणुपरियदृति, अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति ॥ १. गहाण (ट) | २. मट्ठे भागसते (क, ग, घ ); अट्ठभागस्याति (2,a) 1 ३. जता (क, ग, घ,व) ४. अभीयी (क, ग, घ ); अभिति (ट.व ) | ६७३ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ सूरपण्णत्ती ९. ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं सवणे णखत्ते गतिसमावण्णे पुरिस्थमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियदृति, अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति । एवं एतेणं अभिलावणं णेतव्वं-पण्णरसमुहुत्ताई, तीसइमुहुत्ताइं, पणयालीसमुहुत्ताई भणितन्वाइं जाव उत्तरासाढा ॥ १०. ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं गहे गतिसमावण्णे पुरस्थिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता चंदेणं सद्धि अधाजोगं जूंजति, जंजित्ता अधाजोगं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति ।। ११. ता जया णं सूरं गसिसमावण्णं अभीई णक्खत्ते गतिसमावण्णे पुरित्थिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियति,अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति । एवं छ अहोरत्ता एक्कवीसं मुहुत्ता य, तेरस अहोरत्ता बारस मुहुत्ता य, वीसं अहोरत्ता तिणि मुहुत्ता य सव्वे भाणितव्वा जाव --- १२. जया णं सूरं गतिसमावण्णं उत्तरासाढा णक्खत्ते गतिसमावण्णे पुरथिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता वीसं अहोरत्ते तिणि य मुहुत्ते सूरेण सद्धि जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टति, अणुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति ॥ १३. ता जया णं सूरं गतिसमावण्णं गहे गतिसमावणे पुरत्थिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता सूरेण सद्धि अधाजोयं जुजति, जुंजित्ता जोयं अणुपरियदृति, अणुपरियद्वित्ता विजहति विप्पजहति विगतजोई यावि भवति । १४. ता णक्खत्तेणं मासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता तेरस मंडलाइं चरति तेरस य सत्तद्विभागे मंडलस्स ॥ १५. ता णक्खत्तेणं मासेणं सूरे कति मंडलाई चरति ? ता तेरस मंडलाइं चरति चोत्तालीसं च सत्तट्ठिभागे मंडलस्स ।। १६. ता णक्खत्तेणं मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाइं चरति ? ता तेरस मंडलाइं चरति अद्धसीतालीसं च सत्तविभागे मंडलस्स ।। १७. ता चंदेणं मासेणं चंदे कति मंडलाई चरति ? ता चोद्दस सचउभागाइं मंडलाइं चरति एगं च चउव्वीससतभागं मंडलस्स ।। १८. ता चंदेणं मासेणं सूरे कति मंडलाइं चरति ? ता पण्णरस चउभागूणाई मंडलाइं चरति एगं च चउवीससतभागं मंडलस्स ॥ १६. ता चंदेणं मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाइं चरति ? ता पण्ण रस चउभागूणाई मंडलाइं चरति छच्च चउवीससतभागे मंडलस्स ।। २०. ता 'उडुणा मासेणं" चंदे कति मंडलाइं चरति ? ता चोद्दस मंडलाइं चरति १. सभणे (ट,व)। २. सं० पा०-अणुपरियट्टिता जाब विगतजोई। ३. उडमासेणं (क,मूव,चं)। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारसमं पाहु तीसं च एगद्विभागं मंडलस्स || २१. ता उडुणा मासेणं सूरे कति मंडलाई चरति ? ता पण्णरस मंडलाई चरति ॥ २२. ता उडुणा मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाई चरति ? ता पण्णरस मंडलाई चरति पंच य बावीस सतभागे मंडलस्स || २३. ता आदिच्चेणं मासेणं चंदे कति मंडलाई चरति ? ता चोट्स मंडलाई चरति एक्का रस य पण्णरसभागे मंडलस्स || २४. ता आदिच्चेणं मासेणं सूरे कति मंडलाई चरति ? ता पण्णरस चउभामाहिगाई मंडलाई चरति ॥ २५. ता आदिच्चेणं मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाई चरति ? ता पण्णरस चउभागाहिगाई मंडलाई चरति पंचतीसं च" वीससतभागे मंडलस्स चरति ॥ २६. ता अभिवङ्क्षितेणं मासेणं चंदे कति मंडलाई चरति ? ता पण्णरस मंडलाई चरति तेसीति य छलसीयसतभागे मंडलस्स ॥ २७. ता अभिवड्ढितेणं मासेणं सूरे कति मंडलाई चरति ? ता सोलस मंडलाई चरति तिहिं भागेहि ऊणगाई दोहि अडयालेहि सतेहि मंडलं छेत्ता ॥ २८. ता अभिवडितेणं मासेणं णक्खत्ते कति मंडलाई चरति ? ता सोलस मंडलाई चरति सीतालीस एहि भागेहिं आहियाई चोद्दसहि अट्ठासी एहि सतेहि मंडलं छेत्ता ॥ २६. ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं चंदे कति मंडलाई चरति ? ता एवं अद्धमंडलं चरति एक्कतीसाए भागेहि ऊणं णवहिं पण्णरसेहिं सतेहिं अद्धमंडलं छेत्ता ॥ ३०. ता एगमेगेणं अहोरतेणं सूरे कति मंडलाई चरति ? चरति ॥ ६७५ ३१. ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं णक्खत्ते कति मंडलाई चरति ? चरति दोहिं भागेहिं अहिय' सतह दुवत्तीसेहि सतेहि अद्धमंडलं छेत्ता ॥ ३२. ता एगमेगं मंडल चंदे कतिहि अहोरतेहिं चरति ? ता दोहिं अहोरत्तेहिं चरति एक्कती साए भागेहिं अहिएहिं चउहिं वातालेहि सतेहिं राइदियं छेत्ता ॥ ३३. ता एगमेगं मंडलं सूरे कतिहि अहोरतेहिं चरति ? चरति ॥ ता दोहिं अहोरह १. पंचय (क, ट,व) 1 २. अधियं (क. ग, घ ); अहितं (ट) 1 ३. सत्तट्ठेह (फ, ग, घ ); सतट्ठे ( ट ) ; सत्तट्ठे ३४. ता एगमेगं मंडलं णक्खत्ते कतिहि अहोरत्तेहि चरति ? ता दोहि अहो रत्तेहिं चरति दोहिं भागेहिं ऊणेहिं तिहिं सत्तसेहि' सतेहिं राईदियं छेत्ता || ता एवं अद्धमंडल ३५. ता जुगेणं चंदे कति मंडलाई चरति ? ता अट्ठ चुलसीते मंडलसते चरति । ३६. ता जुगेणं सूरे कति मंडलाई चरति ? ता णव पण्णरसमंडलसते चरति ॥ ३७. ता जुगेणं णक्खत्ते कति मंडलाई चरति ? ता अट्ठारस पणतीसे दुभाग मंडलसते चरति । इच्चेसा मुहुत्त गती रिक्खातिमास - राइदिय - जुग - मंडलपविभत्ती सिग्घगती वत्थू आहितेति बेमि ॥ (a) 1 ४. रिक्खे गणमास ( ट व ) 1 ५. वदेज्जा (ट,व) । ता एवं अद्धमंडल Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमं पाहुर्ड १. ता कहं ते दोसिणा लक्खणे अहितेति वदेज्जा ? ता 'चंदलेस्सा 'इ य" दोसिणा इय ॥ २. दोसिणा इ य चंदलेस्सा इ य" के अट्ठे किं लक्खणे ? ता एगट्ठे एगलक्खणे ॥ ३. ता' सूरलेस्सा इ य आतवे इ य ॥ ४. आतवे इ य सूरलेस्सा इ य के अट्ठे ५. ता अंधकारे इय छाया इ य ॥ ६. छाया इ य अंधकारे इ य के अट्ठे किं लवखणे ? ता एगट्ठे एगलक्खणे ॥ १. दीय ( ग, घ ) । २. दोसिणा ति या चंदलेस्सा ति आ चंदलेस्सा ति आ दोसिणा ति आ ( ट व ) । ३४. एतेषु पदेषु विषये प्रश्ननिर्वचनसूत्राणि भावनीयानि' इति द्वयोरपि वृत्योर्व्याख्यातमस्ति । तेन सुरलेश्या अन्धकारसम्बन्धि ૬૦૬ किं लक्खणे ? ता एगट्ठे एगलक्खणे ॥ सङ्क्षिप्त सूत्रद्वयस्य पूर्णपाठ एवं सम्भाव्यते— ता कहं ते आतवलक्खणे आहितेति वदेज्जा ? ता सूरस्सा इ य आतवे इ य । ता कहं ते छायालक्खणे अहितेति वदेज्जा ? ता अंधकारे इय छाया इ य । Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरसमं पाहुड १. ता कहं ते चयणोववाता' आहिताति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थ एगे एवमाहंसु :- ता अणुसमयमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति'-- एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ता अणुमुहुत्तमेव चंदिमसूरिया अणे चयंति अण्णे उववज्जति २ एवं जहेव हेट्ठा तहेव जाव' ता एगे पुण एवमाहंसुता अणुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति एगे एवमाहंसु २५ वयं पुण एवं वदामो--ता चंदिमसूरिया णं देवा महिड्डिया महाजुतीया महाबला महाजसा 'महाणुभावा महासोक्खा" वरवत्यधरा वरमल्लधरा वरगंधधरा वराभरणधरा अव्वोच्छित्तिणयट्टयाए काले अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति आहिताति वदेज्जा | १. वाते (क, ग, घ, ट, व ) ; सूत्रे च द्वित्वेपि बहुवचनं प्राकृतत्वात् (सूवृ ) । २. उववज्जति आहिताति वदेज्जा (टव, सूवृ, चंवृ ) सर्वत्र । ३. सू० ६ १ । एगे पुण एवमाहंसु - ता अजुराईदियमेव चंदिमसूरिया अन्ने चयंति अन्ने उववज्जंति आहितात वएज्जा - एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसुता एव अणुपमेव चंदिमसूरिया अन्ने चयंति अन्ने उववज्जति आहियत्ति वएज्जा -- एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु - ता अणुमासमेव चंदिमसूरिया अन्ने चयंति अन्ने उववज्जति आहियत्ति वएज्जा - एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु- -ता अणुउउमेव चंदिमसूरिया अन्ने चयंति अन्ते उववज्र्ज्जति आहियत्ति वएज्जा - एगे एवमाहंसु ६ एवं तर अणुअयणमेव ७ ता अणुवच्छमेव ता अणुजुगमेव ६ ता अणुवावयमेव १० ता अणुवास सहस्तमेव ११ ता अणुवासराय सहस्तमेव १२ ता अणुपुण्यमेव १३ ता अणुपुव्वयमेव १४ ता अणुपुव्वसहस्वमेव १५ ता अणुपुव्वसघसहरसमेत्र १६ ता अणुपलिओममेव १७ ता अणुपलिओवमसयमेव १८ तर अणुपलिओमसहस्तमेव १६ ता अणुपलिओदमसय सहस्तमेव २० ता अणुसागरोवममेव २१ ता अनुसारोवयमेव २२ ता अणुसागरोवमसहस्वमेव २३ ता अणुसागरोत्रमसयस हस्तमेव २४ ( सूवृ ) । ४. महासोक्खा महाणुभावा ( ग, घ ) : महाणुभागा महासक्खा (व) | ६७७ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं पाहुडं १. ता कहं ते उच्चत्ते आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीस' पडिवत्तीओ पण्णताओ। तत्थेगे एवमाहंसु ता एग जोयणसहस्सं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, दिवड्ढं चंदे-- एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु ता दो जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढे उच्चत्तेणं, अदाइज्जाइ चर्द एग एवमाहमु २ एगे पूण एवमाहसु तातिण्ण जोयणसहस्साइ सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धाई चंदे -एगे एवमाहंमु ३ एगे पुण एवमाहंसु-ता चत्तारि जोयणसहस्पाई मूरे उड्दं उच्चत्तेणं, अपंचमाइं वंदे ..एगे एवगाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता पंच जोयशसहस्साई सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धलाई चंदे एगे एवमाहंसु ५ एगे पुण एवमाहंमु ...ता छ जोपणसहस्साई सूरे उड्ढं उच्चशेणं, अद्धसत्तमाई चंदे एगे एवमाहंसु ६ एगे पुप एवमासु ता सत्त जोयणसहस्साई सूरे उड्ढ़ उच्चत्तेणं, अट्ठमाई चंदे - एगे एवमाहंसु ७ एगे पुण एवमाहंसु ता अट्ट जोयणसहस्साई सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धणवमाई चंदे - एगे एवमासु ८ एगे पुण एवमाहंसु- ता णव जोयणसहस्साई सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धदसमाई चंदे एगे एवमाहंसु ६ एगे पुण एवमाहंसु-- ता दस जोयणसहस्साई सूरे उडढं उच्चत्तेण, अदएककारस चंदे एगे एवमाहंस १० एगे पूण एवमाहंसता एक्कारस जोयणसहस्साई सूरे उड्डं उच्चत्तेणं, अवारस चंदे ११ एतेणं अभिलावेणं णेतव्वं-बारस सूरे अद्धतेरस चंदे १२ तेन्स सूरे, अद्रचोद्दस चंदे १३ चोद्दस सूरे, अद्धपण्णरस चंदे १४ पण्णरस सूरे, अमोलस चंदे १५ सोलस सूरे, अद्धसत्तररा चंदे १६ सत्तरस सूरे, अद्धअट्ठारस चंदे १७ अट्टारम सूरे, अद्धएकोणबीसं चंदे १८ एकोणवीसं सूरे, अद्धवीसं चंदे १६ वीसं सूरे, अखएक कवीसं चंदे २० एकरवीसं सुरे, अद्धवावीसं चंदे २१ बावीसं सूरे, अद्धतेवीसं चंदे २२ तेवीस सूरे, अद्धचउवीसं चंदे २३ चउवीसं सूरे, अद्धपणवीसं चंदेएगे एदमासु २४ एगे पुण एवमाहंसु ता पणवीसं जोयणसहस्साई सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धछन्वीसं चंदे एगे एवमासु २५ १. पणुवीसं (ग, थ,); चिदीरां (ट)। २. अत: 'ट,व' प्रमोर्वृत्त्यावर संक्षिप्तपाटो विद्यते -...एवं एग अभिलावेणं तिणि जायणसह- स्सा ति सूरे उड्हें उपत्तणं अद्भुट्ठाई चंदे, तावता जोयणसहस्सानि मरे उडढं उच्चत्तेणं अद्ध एबमाइ चंदे' इत्यादि। ३. एक्कणवीसं (ग,ध); एकूणवीसतिमाति (ट.व) । ६७८ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसम पाहुई ६७६ वयं पुण एवं वदामो-ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ' सत्तणउतिजोयणसते उडढं उप्पइत्ता हेटिठल्ले ताराविमाणे चारं चरति, अद्रजोयणसते उडढं उप्पइत्ता सूरविमाणे चारं चरति, अट्ठअसीए जोयणसए उड्ढं उप्पइत्ता चंदविमाणे चार चरति, शव जोयणसयाई उड्ढं उप्पइत्ता उरिल्ले ताराविमाणे चारं चरति, हेट्ठिल्लाओ ताराविमाणाओ दसजोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता सूरविमाणे चारं चरति, णउति जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता चंदविमाणे चारं चरति, दसोत्तरं जोयणसयं उड्ढे उप्पइत्ता उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति, ता सूरविमाणाओ असीति जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता चंदविमाणे चारं चरति, जोयणसयं उडढं उप्प इत्ता उवरिल्ले तारारूवे चारं च रति, ता चंदविमाणाओ ण वीसं जोयणाई उडढं उप्पइत्ता उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति । एवामेव सपूव्वावरेण दसूत्तरजोयणसयं बाहल्ले तिरियमसंखेज्जे जोतिसविसए जोतिसं चारं चरति आहितेति वदेज्जा ॥ २. ता अस्थि णं चंदिमसूरियाणं देवाणं हिट्ठपि तारारूवा अणुपि तुल्लावि ? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? ता अत्थि ॥ ३. ता कहं ते चंदिमसूरियाणं देवाणं हिट्ठपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? उपिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? ता जहा-जहा णं तेसि णं देवाणं तव-णियम-बंभचेराई उस्सियाइं भवंति तहा-तहा' णं तेसिं देवाणं एवं भवति', तं जहा - अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा" । ता एवं खलु चंदिमसूरियाणं देवाणं हिट्ठपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि तहेव ॥ ४. ता एगमेगस्स णं चंदस्स देवस्स केवतिया गहा परिवारो पण्णत्तो? केवतिया णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तो? केवतिया तारा परिवारो पण्णत्तो? ता एगमेगस्स णं चंदस्स देवस्स अट्ठासीति गहा परिवारो पण्णत्तो, अट्ठावीसं णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तो, १. अतः परं चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितयोः प्रत्योश्चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तौ च संक्षिप्तपाठः किञ्चित्पाठभेदश्चापि लभ्यते. -सत्तणउते जोयणसते अवाहाए हिल्लेि तारारूवे चारं चरति, अट्ठजोयणसए अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, अठ्ठअसीते जोयणसते अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति, णवजोयणसए अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चार चरति, ता हेठ्ठिलातो गं तारारूवाओ दस जोयणे अवाहाए सूरविमाणे चारं चरति, तता गं असीते जोयणे अवाहाए चंदविमाणे चार चरति, एवं जहेव जीवाभिगमे तहेव णेय-सबभंतरिल्लं चारं संठाणं पमाण वहति सिहगति इढि तारतरं अगमहिसी ठिति अप्पाबयं जाव तारातो संखेज्जगुणातो। २. तधा (क,ग,घ)। ३. पण्णायति (जी. ३६६६); पण्णायए (जं० ७।१६६) । ४. वा। जहा जहा ण तेसि देवाण तव-णियमबंभचेराइ णो ऊसियाई भवति, तहा तहा णं तेसिं देवाणं एवं गो पण्णायए तं जहाअणुत्ते वा तुल्लत्ते वा (ग)। ५. तहेव जाव उपिपि तारारूवा अणुपि तुल्लावि (ग,घ)। ६. महग्गहा (जी. ३११०००, जं. ७११७०) । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० सूरपण्णत्ती छाट्ठ सहस्साई व चेव सताई पंचसत्तराई तारागण कोडिकोडीणं परिवारो पण्णत्तो ॥ ५. ता मंदरस्स णं पव्वयस्स केवतियं अवाहाए जोतिसे चारं चरति ? ता एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाहाए जोतिसे चारं चरति || ६. ता लोयंताओं णं केवतियं अबाहाए जोतिसे पण्णत्ते ? ता एक्कारस एक्कारे जोयणसते अबाहाए जोलिसे पुष्णत्ते ॥ ७. ता जंबुद्दीवे णं दीवे कतरे णक्खत्ते सव्वभंतरिल्लं चारं चरति ? कतरे णक्खत्ते सन्दवाहिरिल्लं चारों चरति ? कतरे णक्खत्ते सव्युपरिल्लं' चारं चरति ? कतरे णक्खत्ते सव्वहिट्टिल्लं चारं चरति ? ता अभीई णक्खत्ते सव्वन्तरिल्लं चारं चरति, मूले णक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरइ, सानी णक्खत्ते सव्युपरिल्लं चारं चरति, भरणी णवत्ते सव्वहेट्टिल्लं चारं चरति ॥ ८. ता चंदविमाणे गं किंसटिते पण्णत्ते ? ता अद्धकविदुगसंठाणसंठिते सव्वफलिहामए' अब्भुग्गय मूसियाहसिए विविह्मणिरयणभत्तिचित्ते जाव' पडिरूवे । एवं सूरविमाणे गहविमाणे णवत्तविमाणे ताराविमाणे । ६. ता चंदविणे णं केवलियं आयाम विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं, केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? ता छप्पर एगट्टिभागे जणस्स आयाम विक्खभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं, अट्ठत्रोस एगट्टिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। १०. ता सूरविभागे णं केवतियं आयाम विक्खंभेणं पुच्छा । ता अडयालीसं एगट्टिभागे जोवणस्स आवाम विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं, चउब्दीसं एगद्विभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ ११. ता महविगाणं पुच्छा । ता अद्धजोयणं आयाम विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं कोस बाहल्लेगं पण्णत्ते ॥ १२. तापवखत्तविमाणे णं केवतियं पुच्छा । ता कोस आयाम विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं, अद्धसं वाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १३. ता नाराविमाणे णं केवतियं पुच्छा । ता अद्धको आयाम - विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेस पर पंच धणूसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १४. ता चंदवणं कति देवसाहस्सीओ परिवहति ? ता सोलस देवसाहस्सीओ परिवहति तं जहा पुरत्थिमेणं सोहरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, दाहिणेणं गयरूपधारीणं बतारि देवसाहस्सीय परिवहंति, पच्चत्थिमेणं वसहरूवधारीणं चत्तारि देवसाहसीओ परिवति, उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवर्हति । एवं सूरविमाणंपि ॥ १५. तागविभाणं कति देवसाहस्सोओ परिवहंति ? ता अनु देवसाहस्सीओ परिवहति तं जहा पुरस्यमेण सोहरूवधारीणं देवागं दो देवसाहस्सीओ परिवहति, एवं जाव १. पंचुत्तराई (घ) 1 २. सवुवरिल्ले ( ग घ ) । ३. फलियामए (ग,घ ): फालिया नए ( जी० ३।१००८, जं० ७ १७६) । ४. जी० ३।१००८ | ५. विमाणे णं ( गध) सर्वत्र | Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं पाहुड उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं ॥ १६. ता णक्खत्तविमाणं कति देवसाहस्सीओ परिवर्हति ? ता चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहति तं जहा पुरत्थिमेणं सोहरूवधारीणं देवाणं एक्का देवसाहस्सी परिवहति एवं जाव उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं देवाणं ॥ १७. ता ताराविमाणं कति देवसाहस्सीओ परिवहंति ? ता दो देवसाहस्सीओ परिवति, तं जहा पुरत्थिमेणं सीहरूवधारीणं देवाणं पंच देवसता परिवहति एवं जाव उत्तरेणं तुरगरूवधारणं ॥ १८. ता' एतेसि णं चंदिम-सूरिय- गहगण-णक्खत्त- ताराख्वाणं कयरे कयरेहितो सिग्गती वा मंदगती वा ? ता चंदेहितो सूरा सिग्धगती सूरहितो गहा सिग्घगती, गहिंतो णक्खत्ता सिग्घगती, णक्खत्तेहितो तारा सिग्धगती । सव्वप्यगती चंदा, सव्वसिग्घगती तारा ॥ १६. ता एतेसि णं चंदिम-सूरिय-गहगण णक्खत्ता-तारारूवाणं कयरे कय रेहितो अप्पिड्डिया वा महिड्डिया वा? ता ताराहिंतो गक्खत्ता महिड्डिया णक्खत्तेहितो गहा महिड्डिया, गहेहितो सूरा महिड्डिया, सूरेहिंतो चंदा महिड्डिया । सव्वप्पिड्डिया तारा, सव्वमहिड्डिया चंदा || २०. ता जंबुद्दीवे णं दीवे तारारूवरस य तारारूत्रस्स य एस णं केवतिए अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? ता दुविहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा वाघातिमे य निव्वाघातिमे य । तत्थ णं जेसे वाघातिमे से गं जहणेण दोण्णि छावट्ठे जोयणसते, उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साई दोण्णि बाताले जोयणसते तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । तत्थ णं जेसे निव्वाघातिमे से णं जहणेणं पंच धणुसताई, उक्कोसेणं अद्धजोयणं तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ६८१ २१. ता चंदसणं जोतिसिदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा चंदप्पा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा । तत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि चत्तारि देवीसाहस्सी परिवारो पण्णत्तो । पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णाइं चत्तारि चत्तारि देवी सहस्ताई परिवारं विउव्वित्तए । एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवीसहस्सा । सेत्तं तुडिए ॥ २२. तापभू गं चंदे जोतिसिदे जोतिपराया चंद डिसए विभाणे सभाए सुहम्भाए डिएसद्धि दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? जो इणट्ठे समट्ठे ॥ २३. ता कहं ते णो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसिया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुम्याए तुडिएणं सद्धि दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमा बिहरितए ? ता चंदस्स णं जोतिसिस्स जोतिसरण्णो चंदवडिसए त्रिमाणे सभाए सुधम्माए माणवए चेतियखंभे वइरामएस गोलवट्टसमुग्गएसु बहवे जिसकधा सष्णिक्खित्ता चिट्ठति, ताओ णं चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णा अण्णेसि च बहूणं जोतिसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ १. तुरगा (क,ग,ध) । २. 'ता एएसि ण' मित्यादि, शीघ्रगतिविषय प्रश्नसूत्रं निर्वचनसूत्रं च सुगमं एतच्च पश्चादप्युक्तं ( १५1१ ) परं भूयो विमानवह प्रस्तावादुक्तमित्यदोषः, अन्यद्वा कारणं बहुश्रुतेभ्योऽवगन्तव्यम् (सूवृ) Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ सूरपण्णत्ती वंदणिज्जाओ पूणिज्जाओ सककारणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेयं पज्जवासणिज्जाओ। एवं खल णो पभ चंदे जोनिगिंदे जोतिसराया चंदडिसए विमाणे सभाए सुधम्माए तुडिएणं सद्धि दिवाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए । पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदडिसए विमाणे सभाए सुहम्माए चंदसि सीहासणंसि चहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि, तिहिं परिसाहिं सत्तहि अणिएहि सत्तहिं अणि पाहिबईहिं सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अण्णेहि य बहूहिं जोतिसिएहि देवेहिं देवीहि य मुद्धि महयाहयाट्ट-गीय-वाइय-तंती-तलताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, केवलं परियारणिड्डीए, णो चेव णं मेहुणवत्तियं ॥ २४. ता सरस्स णं जोतिसिदस्स जोतिस रणो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--सूरप्पभा आतवा अच्चिमाली पभंकरा, सेसं जहा चंदस्स, णवरं सूरवडेंसए विमाणे जाव णो चेव ण मेहुणवत्तियं ॥ २५. ता जोतिसिया णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? ता जहण्णेणं अदुभागपलिओवम, उक्कोसेणं पलिओवम वाससतसहस्समब्हियं ।। २६. ना जोतिसिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहणणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धरलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि अब्भहियं ।। २७. ता चंदविमाणे ण देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? ता जहण्णणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेण पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं ।। २८. ता चंदविमाणे णं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णता ? ता जहण्णेणं चउब्भागपलिजोत्रमं, उक्फोसेणं अडलिओवमं पण्णासाए वापसहस्पेहि अमहियं ।।। २६. ता सूरविमाणे पं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? ता जहणणं चउभागपलियोवम, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्रामभहियं ।। ३०. ता सूरविमाणे णं देवीगं देवी यं कालं ठिती पण्णत्ता? ता जहण्णेण चउभागपलिओव, उवा सेणं अपलिओम पंचहि वासस एहि अमहियं ॥ ३१. ला गहविपाणे देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? ता जहण्णेण चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं ॥ ३२. ता गहविमाणे गं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहणणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ।। __३३. ता णक्खतविमाणे णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहणेणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ ३४. ता णक्खत्तविमाणे णं देवोणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ता जहणणं 'अटुभागपलिओवम, उक्कोसेणं चउभागपलिओवम" ।। ३५. ला ताराविमाणे ण देवाणं पुच्छा। ता जहाणेणं अटुभागपलिओवम, उक्कोसेणं १. मेधुणवत्तियं (क,ग,घ) । भागपलिओवमं (पष्ण० ४.१६८, जी० २. पलितोवमं (क,ग,घ) सर्वत्र । ३।१०३४) । ३. चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं चउ .----... - Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगणवीसइमं पाहुडं ६८३ चउब्भागपलिओवमं ।। ३६. ता ताराविमाणे णं देवीणं पुच्छा । ता जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं साइरेगअट्ठभागपलिओवमं ॥ ३७. ता एएसिणं चंदिम-सूरिय-गह-णक्खत्त-तारारूवाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? ता चंदा य सूरा य-एते णं दोवि तुल्ला सव्वत्थोवा, णक्खत्ता संखेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, तारा संखेज्जगुणा ।। एगूणवीसइमं पाहुडं १. ता कति णं चंदिमसूरिया सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ दुवालस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु-ता एगे चंदे एगे सूरे सव्वलोयं ओभासति उज्जोएति तवेति पभासेति'. एगे एवमाहंस १ एगे पुण एवमाहंसु .--ता तिण्णि चंदा तिणि सूरा सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति--- एगे एवमासु २ एगे पुण एवमाहंसु---ता आहुट्टि चंदा आहदि सूरा सव्वलोय ओभासंति उज्जोएति तवंति पभासंति -एगे एवमाहंस ३ एगे पण एवमाहंसु--- एतेणं अभिलावेणं' णेतव्वं --सत्त चंदा सत्त सूरा ४ दस चंदा दस सूरा ५ बारस चंदा बारस सूरा ६ बातालीसं चंदा बातालीसं सूरा ७ बावत्तरि चंदा बावतरि सरा ८ बातालीसं चंदसतं बातालीसं सूरसतं ६ बावत्तरं चंदसतं बावत्तरं सूरसतं २० बातालीसं चंदसहस्सं वातालीसं सूरसहस्सं ११ बावत्तरं चंदसहस्सं बावत्तरं सूरसहस्सं सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति --एगे एवमाहंसु १२ वयं पुण एवं वदामो- -ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुदाणं सब्बभतराए जाव परिक्खेवेणं पण्णत्ते । ता जंबुद्दीवे दोवे दो चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा १. पभासेति आहितेति ददेज्जा (ट,व); आख्यात क्रमेण ज्ञातव्याश्चतुर्थ्या प्रतिपत्तौ प्रत्येक सप्त इति वदेत् वृत्त्योरपि सर्वत्र । चन्द्रा: सूर्याश्च वक्तव्याः । पंचम्यां दश एव २. आउछि (ग,ध); आउट्टि (ट)। यावद द्वादशभ्यां प्रतिपत्ती द्वासप्ततं चन्द्रसहस्रं ३. अतः परं चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,ब' संकेतितयोः प्रत्यो: द्वासप्ततं सूर्यसहस्रमिति । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तौ च भिन्ना पाठपद्धतिर्दश्यते, ४. सू० १११४ । ट,व :- जातो चेव ततिए पाहडे दुवालस- ५. अतः परं सूर्यप्रज्ञप्तेः 'क,ग,घ' संकेतितेष पडिवत्तीओ ताओ वेव इहपि यन्वा । आदर्शषु अतिरिक्तः पाठो लभ्यते-ता ता णवरं सत्त य दस जाव ता बावत्तरिचंद- जम्बुद्दीवे २ केवतिया चंदा पभासिस् वा सहस्सं बावत्तरिसुरियसहस्सं सव्वलोयं ओभा- पभासिति वा पभासिस्सति वा? केवतिया संति जाव आहितेति वदेज्जा एगे एवं । चंव सूरिया तविसु वा तवेंति वा तविस्संति वा ? - या एव तृतीये प्राभुते द्वादशप्रतिपत्तयः केवतिया णखत्ता जोयं जोइसु वा जोएंति उक्तास्ता एव इहापि ज्ञातव्याः, नवरमनेन वा जोइस्संति वा? केवतिया गहा चार Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ सूरपण्णत्ती दो सूरिया तव इंसु वा तवइंति वा तवइस्संति वा, छप्पण्यं णक्खत्ता जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, छावरि गहसतं चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, एगं सथसहस्सं तेत्तीसं च सहस्सा णव य सया पण्णासा तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा । संगहणी गाहा- दो चंदा दो सूरा, णक्खत्ता खलु हवंति छप्पण्णा । छावत्तरं गहसतं, जंबुद्दीवे विचारी णं ॥१॥ एगं च सयसहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई । णव य सया पण्णासा, तारागण कोडिकोडीणं ।।२।। २. ता जंबुद्दीव णं दीवं लवणे णामं समुद्दे वट्टे दलयागार सटाणगंटिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ॥ ३. ता लवणे णं समूहे कि समचक्क वालसटिते ? विसमचयावालसंठिते ? तालवणसमुद्दे समचक्कवालसंठिते, णो विसमचारुवालसंठिते ॥ ४. ता लवणसमुद्दे केवतियं चकमा बालविक्खंभेणं केवतियं परिवखवेणं आहितेति वदेज्जा? ता दो जोयणसतसहस्साई चक्कवालविवखभण. पण रस जोयणसयसहस्साई एक्कासीइंच सहस्साई रातं ,ऊताल किनविसेणं आहितेति वदेज्जा ।। ५. ता लवणसमुद्दे केवतिया चंदा पभानुदान पुछा जान केनियाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभिसु वा सोभक्ति वा शोभितलि का? लवणे समुद्दे चत्तारि वंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पाकिस्संति बा, उत्तारि सूरिया कप इंसु वा तपाइंति वा तवइस्संति दा, बारस णखत्तसतं होयं जोएंसु वा जाति या बोइस्मति वा, तिण्णि बावण्णा महग्गहराता चारं चरिस् बाबरंति वा बरितिका, दो रासहरमा सदि च सहस्स णव यसता तारागण कोडिमोडोसोभो शिवा। संगहणी माहा . पण बराहरलीन मनचा मिचिलिमेगालो. मनारिकवतो ।।११ अत्ताधिदेव मका, लत्ताक साए । बारन मात्र साग, यामा सामा२। दो चेव सतलहस्सा, सत्राहि खलु भवे सहस्साई। णव य सता लवण जले, तारागण कोडिकोडाणं ॥३॥ चरिंसु वा चरति वा चरिस्मतिबा ? वेनिया चन्द्राज्ञप्ते: 'ट, संकेतितयोः प्रत्योः एवं तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभेस् वा संक्षिप्तपाठो लमते ना जंबूदीवे गं दीवे दो सोभेति वा सोभिमति चा? सूर्य प्राप्तिवत्तौ बंदा पभाषितु पभाति जहा जीवाभिगमे जाव नैष व्याख्यातोस्ति । प्रस्तुतस्त्रस्य रचना तारातो। चन्द्रप्रतिवृतावपि एष एव पाठो क्रमेणापि नैष उपयुक्तोस्ति । 'वयं पुण एवं व्याख्यातोस्ति। वदामो' इति पाठान्तरं स्वाभिमतप्रतिपादनं १. 'ण' इति वाक्यालङ्कारे (व) । भवति, न तु प्रश्नोतरशैली पूर्व क्वापि प्रयक्ता २. उगुताल (क)। दृश्यते । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं पाहुडं ६८१ ६. ता' लवणस मुदं धाय ईसंडे' णामं दीवे कट्टे वलयागारसंठाणसंटिते तहेव जाव' णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ ७. धायईसंडे णं दीवे केवतियं चवकवालविवखंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता चत्तारि जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं ईतालीसं जोयणसतसहस्साई दस य सहस्साई शव य एगट्टे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिवखेवेणं आहितेति वदेज्जा ।। ८. धायईसंडे दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव । ता धायईसंडे णं दीवे बारस चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, वारस सूरिया तवेंसु वा तति वा तविस्संति वा, तिपिण छत्तीसा णक्खत्तसया जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, एगं छप्पण्णं महग्गहसहस्सं चारं चरिंग का चरिति बा चरिस्संति वा, अठेव सयसहस्सा तिणि सहस्साई सत्त य सयाई तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभेसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा॥ संगहणी गाहा. --- धाय ईसंडपरिरओ, ईताल दसतरा सतसहस्सा। णव गया रागदा, किचिविससेण परिहीणा ॥२॥ उनीस सभिरविणो, णखत्तराया य तिणि छत्तीसा। एगं च गहसहस्सं, छप्पण्णं धायईसंडे ॥२॥ अठेव सतसहस्सा, तिण्णि सहस्साई सत्त य सताई। धायईसंडे दीवे, तारागणकोडिकोडीणं ॥३॥ ६. ता धायईसंडं णं दीवे कालोए णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जाव' णो विसमचक्कवालसंठाणसंठिते ।। १०. ता कालोए णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिवखेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता कालोए णं समुद्दे अट्ठ जोयणसतसहस्साई चक्कवाल विक्खंभेणं पण्णत्ते, एक्काणउति जोयणसतसहस्साइं सतरिं च सहस्साई छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ।। ११. ता कालोए ण समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा। ता कालोए समुद्दे बातालीसं चंदा पभासेंसु वा पभासेति वा पभासिरसंति वा, बातालीसं सूरिया तवेंसु वा तवेंति वा तविस्संति वा, एक्कारस बावत्तरा णक्खत्तसया जोयं जोइंसु वा जोएंति वा १. अत: चंद्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतित प्रत्योः भिन्ना ४. अत: चन्द्रप्रज्ञप्ते: ट,व संकेतितप्रत्योः भिन्ना वाचना विद्यते - ता लवणसमुदं ता धायति- वाचना विद्यते-धायति संडेणं दीवे कालोए संडे णाम दीवे बट्टे वलयाकारसंठिते जाव णं समुद्दे वट्टे बलया जाव चिट्ठति । ता चिट्ठति । ता धायतिसंडे णं दीवे कि सम- कालोए ण समुद्दे कि समचक्कवालसंटिते चक्कसंटिते एवं विक्खंभो परिक्खेको जोतिम बिसम एवं बिक्खंभो परिवखेवो जोतिसं च जहा जीवाभिगमे जाव तारातो । चन्द्रप्रज्ञप्ति- भाणि यवं जाव तारातो । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि वृत्तावपि एष एव व्याख्यातोस्ति । एष एवं व्याख्यातोस्ति । २. धातकीसंडे (क)। ५. सू० १६२,३ । ३. सू० १९६२,३। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ सूरपण्णत्ती जोइस्संति वा, तिण्णि सहस्सा छच्च छण्णउया महग्गहसया चारं चरिंसु वा चरेंति वा चरिस्संति वा, अट्ठावीसं सयसहस्साई बारस य सहस्साइं णव य सताई पण्णासा तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभेसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा । संगहणी गाहा-- एक्काणउति सतराई, सहस्साइं परिरओ' तस्स । अहियाइं छच्च पंचुत्तराई कालोदधिवरस्स ॥१॥ बातालीसं चंदा, बातालीसं च दिणकरा दित्ता। कालोदहिमि एते, चरंति संबद्धलेसागा ॥२॥ णवखत्तसहस्सं एगमेव छावत्तरं च सयमण्णं । छच्च सया छण्णउया, महम्गहा तिण्णि य सहस्सा ॥३॥ अट्ठावीसं कालोदहिमि बारस य सहस्साई । णव य सता पण्णासा, तारागणकोडिकोडीणं ॥४॥ १२. ता' कालोयं णं ससुई पुक्खरवरे णाम दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ।। १३. पुक्खरवरे णं दीवे कि समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? ता समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ १४. ता पूक्खरवरे णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं ? ता सोलस जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बाणउति च सतसहस्साई अउणाणउति' च सहस्साइं अट्ठचउणउते जोयणसते परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ॥ १५. ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव । ता चोतालं चंदसतं पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चोतालं सूरियाणं सतं तवइंसु वा तवइंति वा तवइस्संति वा, चत्तारि सहस्साई बत्तीसं च णक्खत्ता जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, बारस सहस्साइं छच्च बावत्तरा महग्गहसया चारं चरिंसु वा चरेंति वा चरिस्संति वा, छण्णउति सयसहस्साई चोयालीसं सहस्साई चत्तारि य सयाई तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा ।। संगहणी गाहा---कोडी बाणउती खलु, अउणाणउति भवे सहस्साइं। ___ अट्ठसता चउणउता, य परिरओ पोक्खरवरस्स ॥१॥ १. परिरतो (क,ग,घ)। २. सयसहस्साई (क); मूलपाठे 'अट्ठावीसं सयसहस्साई बारस य सहस्साई इत्युपलभ्यते, किन्तु प्रस्तुतगाथायां 'बारस य सयसहस्साइ" मूलपाठपद्धत्या नास्ति समीचीनम् अथवा छन्दोदृष्टया एवं संक्षेपीकरणं स्यात् । ३. अत: चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना वाचना विद्यते--ता कालोयं णं समुद्दे पुक्खरवरे णं दीवे वट्टे वलया जाय चिट्ठति । ता पुक्खरवरे णं दीवे कि समचक्कवाल विखंभो परिक्खेवो जोतिसं जाव तारातो। चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव पाठो व्याख्यातोस्ति । ४. अउणावण्णं (ग,घ) । ५. तधेव (क)। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणवीस मं पाहु चौताल चंदसतं, चोतालं चेव सूरियाण सतं । पोक्खरवरदीवम्मि, चरंति एते पभासंता ॥२॥ चत्तारि सहस्साई, बत्तीसं चैव हंति णक्खत्ता । छच्च सता बावत्तर, महग्गहा बारह सहस्सा ||३|| छण्णउति सयसहस्सा, चोत्तालीसं खलु भवे सहस्साइं । चत्तारि यसता खलु तारागणकोडिकोडीणं ॥ ४ ॥ १६. ता पुक्खरवरस्स णं दीवस्स बहुमज्झदेसभाए' माणुसुत्तरे णामं पव्वते पण्णत्तेवट्टे वलयागारठाणसंठिते जे णं पुक्खरवरं दीवं दुधा विभयमाणे विभयमाणे चिट्ठति, तं जहा अभितरपुक्खरद्धं च बाहिरपुक्खरद्धं च ॥ १७. ता' अभितरपुक्खर णं किं समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? ता समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते || १८. ता अभितरपुक्खरद्धे णं केवतियं चक्कवाल विक्खभेणं केवतियं परिवखेवेणं आहितेति वदेज्जा ? वा अट्ठ जोयणमयसहस्साइं चक्कवाल विक्खंभेणं, एक्का जोयणकोडी वायालीसं च सबसहस्साई तीसं च राहस्साई दो अउणापणे जोयणसते परिवखेवेणं आहितेति वदेज्जा | ६८७ १६. ता अभितरपुक्खरद्धे णं केवतिया चंदा प्रभासेंसु वा पभासेति वा पभासिस्संति वा? केवतिया सूरा तविसु वा पुच्छा। ता बावतरि चंदा पभासिसु वा पभासेति वा पभासिस्संति वा, बावन्तरि सूरिया तवइंसु वा तवइति वा तवइस्संति वा, दोणि सोला णक्खत्तसहस्सा जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, छ महग्गहसहस्सा तिष्णि य [सया ? ' ] छत्तीसा चारं चरेंसु वा चरेंति वा चरिस्संति वा, अडतालीस सतसहस्सा बावीसं च सहस्सा दोणि य सता तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभिसु वा सोमे॑ति वा सोभिस्संति वा ॥ २०. ता' समयक्खेत्ते णं केवतियं आयाम-विवखंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता पणतालीसं जोयणसय सहस्साई आयाम - विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं [तीसं च सहस्साइं ?"] दोण्णि य अउणापणे जोयणसते परिक्खेवेणं १. चक्क वालविक्खंभस्स बहुमज्भदेस भागे एत्थ णं (ट,व) । २. अतः चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना वाचना विद्यते - अब्भितरपुक्खरद्धे णं कि समचक्कपालसंटिते, एवं विवखंभो परिक्खेवो जोतिसं जाव तारातो चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एप एव पाठी व्याख्यातोस्ति । ३. अस्य अपेक्षायै द्रष्टव्यम् - जीवाजीवाभिगमे ३३८३४ | ४. अतः चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना वाचना विद्यते ता मणुस्सखेत्तं केवतिय आयाम-विवखंभेणं केवतियं एवं विक्खंभो परिक्खेवो | चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव ५. कोष्ठक वर्तिपाठः आदर्शपु त्रुटितो वर्तते । पाठो व्याख्यातोस्ति । वृत्तौ एष व्याख्यातोस्ति एका योजनकोटी द्वाचत्वारिंशत् द्विचत्वारिंशच्छतसहस्राधिका त्रिशत्सहस्राणि द्वे शते एकोनपञ्चाशदधिके एतावत्प्रमाणो मानुषक्षेत्रस्य परिरयः । जीवाजीवाभिगमे (३२८३५) पि वृत्तिसंवादिपाठो लभ्यते एगा जोयणकोडी बायालीस च सयसहस्साई तीसं च सहस्साइं दोण्णि य एऊणपण्णा जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । --- Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८९ सूरपण्णती आहितेति वदेज्जा॥ २१. ता समयक्खेत्ते णं केवतिया चंदा पभाससु वा पुच्छा तहेव । ता बत्तीसं चंदसतं पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बत्तीसं सूरियाणं सतं तबइंसु वा तवइंति वा तवइस्संति वा, तिणि सहस्सा छच्च छण्णउता णवखत्तसता जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा, एक्कारस सहस्सा छच्च सोलस महम्गहसता चारं चरिस् वा चरेंति वा चरिस्संति वा, अट्टासीति सतसहस्साई चत्तालीसं च सहस्सा सत्त य सया तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा ! संगहणी गाहा- अट्टेव सतसहस्सा, अभितरपुक्खरस्स विक्खंभो । पणयालसयसहस्सा, माणुसखेत्तस्स विक्खंभो ॥१॥ कोडी बातालीसं', 'सहस्सा दो सता" अउणपण्णासा। माणुसखेत्तपरिरओ, एमेव य पुक्खरद्धस्स ।।२॥ बावतरं च चंदा, बावत्तरिमेव दिणकरा दित्ता। पुक्खरवरदीवड्ढे, चरंति एते पभासेंता ॥३॥ तिण्णि सता छत्तीसा, छच्च सहस्सा महग्गहाणं तु । णवखत्ताणं तु भवे, सोलाई दुवे सहस्साई ॥४॥ अडयालसयसहस्सा, बावीसं खलु भवे सहस्साई । दो य सय पक्खरद्धे, तारागणकोडिकोडीणं ॥५॥ बत्तीसं चंदसतं, बत्तीसं चेव सूरियाण सतं । सयलं माणुसलोयं, चरंति एते पभासेंता ॥६॥ एक्कारस य सहस्सा, छप्पि य सोला महग्गहाणं तु। छच्च सता छण्ण उया, णवखत्ता तिष्णि य सहस्सा ॥७॥ 'अट्ठासीति चत्ताई, सयसहस्साई मणुयलोगंमि"। सत्त य सया अणूणा, तारागणकोडीकोडीणं ॥८॥ २२. एसो' तारापिंडो, सव्वसमासेण मणुयलोयंमि । बहिथा पुण ताराओ, जिणेहि भणिया असंखेज्जा ॥१॥ एवतियं तारगं, जं भणियं माणसंमि लोगंमि । चारं कलंबुयापुप्फसंठितं जोइसं चरति ॥२॥ १. बादालीसा (क); एषा गाथा संक्षिप्ता वर्तते 'बातालीसं स. स्सा' एते द्वे अपि पदे केवल संकेतं कुर्वतः। वस्तुत: 'बातालीसं सयसहस्साई तीसं सहस्साइ' इति पाठो युज्यते । २. सहस्स दुसया (ग,घ)। ३. अडसीइ सय सहस्सा, चत्तालीससहस्स मणुय लोग मि (जी० ३१८३७ पादटिप्पणम्) । ४. अतः चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना वाचना विद्यते - जोतिसं गाहातो य जाव एगससिपरिवारो तारागणकोडिकोडीणं । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एवं पाठो व्याख्यातोस्ति । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं पाहुडं ६८६ रविससिंगहणक्खत्ता, एवतिया आहिता मणुयलोए । जेसिं णामागोत्तं, ण पागता पण्णवेहिति ॥३॥ छावर्द्वि पिडगाई, चंदादिच्चाण मण्यलोयम्मि । दो चंदा दो सूरा', हुंति एक्केक्कए पिडए ॥४॥ छावर्द्वि पिडगाई, णक्खत्ताणं तु मणुयलोयम्मि। छप्पण्णं णक्खत्ता, हुंति एक्केक्कए पिडए ॥५॥ छावर्द्वि पिडगाई, महग्गहाणं तु मणुयलोयंमि । छावत्तरं गहसयं, होइ एक्केक्कए पिडए ॥६॥ चत्तारि य पंतीओ, चंदादिच्चाण मणुयलोयम्मि । छावट्टि छावटुिं, च होंति एक्किक्किया पंती ॥७॥ छप्पण्णं पंतीओ, णक्खत्ताणं तु मणुयलोयम्मि । छावट्टि छावट्टि, हवंति एक्के क्किया पंती ॥८॥ छावत्तरं गहाणं पंतिसयं हवइ मणुयलोयंमि । छावट्टि छावटुिं, हवंति य एक्कक्किया पंती ॥६॥ ते मेरुमणचरंता, पदाहिणावत्तमंडला सव्वे ।। अणवट्ठितेहिं जोगेहि, चंदा सूरा गहगणा य ॥१०॥ णक्खत्ततारगाणं, अवट्ठिता मंडला मुणेयव्वा । तेवि य पदाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति ॥११॥ रयणिकरदिणकराणं, उड्ढं च अहे य संकमो पत्थि । मंडलसंकमणं पुण, सब्भंतरबाहिर तिरिए ।।१२।। रयणिकरदिणकराणं, णक्खत्ताणं महग्गहाणं च । चारविसेसेण भवे, सुहदुक्ख विही मणुस्साणं ॥१३॥ तेसिं पविसंताणं, तावक्खेत्तं तु बड्डते णिययं । तेणेव कमेण पुणो, परिहायति णिक्खमंताणं ॥१४॥ तेसिं कलंबुयापुप्फसंठिता हुंति तावखेत्तपहा । अंतो य संकुडा बाहिं, वित्थडा चंदसुराणं ॥१॥ केणं ववति चंदो, परिहाणी केण होति' चंदस्स । कालो वा जोण्हो' वा, केणणुभावेण चंदस्स ।।१६।। किण्हं राहुविमाणं, णिच्चं चंदेण होइ अविरहियं । चउरंगुलमप्पत्तं, हिट्ठा चंदस्स तं चरति ॥१७॥ बाट्ठि-बावर्द्वि, दिवसे-दिवसे तु सुक्कपक्खस्स । जं परिवड्डति चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥१८॥ १. सूरा य (ग,घ)। २. हंति (ग)। ३. जुण्हो (क)। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती पण्णरसइभागेण य, चंदं पण्णरसमेव तं वरति । पण्णरसइभागेण य, पुणोवि तं चेव वक्कमति ॥१६॥ एवं वति चंदो, परिहाणी एव' होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा, एयणुभावेण चंदस्स ॥२०॥ अंतो मणुस्सखेत्ते, हवंति चारोवगा तु उववण्णा । पंचविहा जोतिसिया, चंदा सूरा गहगणा य ।।२१।। तेण परं जे सेसा, चंदादिच्चगहतारणक्खत्ता। णत्थि गई णवि चारो, अव द्विता ते मुणेयव्वा ॥२२॥ एवं जंबुद्दीवे, दुगुणा लवणे चउग्गुणा हुंति । लावणगा य तिगुणिता, ससिसूरा धायईसंडे ।।२३।। दो चंदा इह दीवे, चत्तारि य सायरे लवणतोए। धायइसंडे दीवे, बारस चंदा य सूरा य ॥२४॥ धायइसंडप्पभिति, उद्दिट्ठा तिगुणिता भवे चंदा। आदिल्लचंदसहिता, अणंतराणंतरे खेत्ते ॥२५॥ रिक्खग्गहतारग्गं, दीवसमुद्दे जतिच्छसी गाउं । तस्स ससीहिं गुणितं', रिक्खग्गहतारगम्गं तु ॥२६।। बहिता' तु माणुसणगस्स, चंदसूराणवद्विता जोआ। चंदा अभीइजुत्ता, सूरा पुण हुंति पुस्सेहिं ॥२७॥ चंदातो सूरस्स य, सूरा चंदस्स अंतरं होई। पण्णाससहस्साइं, तु जोयणाणं अणूणाई ॥२८॥ सूरस्स य सूरस्स य, ससिणो ससिणो य अंतरं होइ। बाहिं तु माणुसणगस्स, जोयणाणं सतसहस्सं ॥२६॥ सूरंतरिया चंदा, चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता। चित्तंतरलेसागा, सुहलेसा मंदलेसा य ॥३०॥ अट्ठासीर्ति च गहा, अट्ठावीसं च हुँति णक्खत्ता। एगससीपरिवारो, एत्तो ताराण वोच्छामि ॥३१॥ छावट्ठिसहस्साइं, णव चेव सताइं पंचसतराई। एगससीपरिवारो, तारागणकोडिकोडीणं ॥३२॥ १. अत्र छन्दोदृष्टया अनुस्वारलोपो दृश्यते ! २. एवणुभावेण (ग,घ)। ३. तिगुणियं (ग,घ)। ४. जीवाजीवाभिगमे (३१८३८) एषा गाथा अंतिमा विद्यते। ५. द्वयोरपि वृत्त्योः 'तेया' इति पाठो व्याख्यातो दृश्यते--- बहिश्चन्द्रसूर्याणां तेजांसि अवस्थितानि भवन्ति, किमुक्तं भवति ? सूर्याः सदैवानत्युष्णतेजसो न तु जावचिदपि मनुष्यलोके ग्रीष्मकाल इवात्युष्णतेजसः, चन्द्रमसोपि सर्वदेवानतिशीतलेश्याका नतु कदाचनाप्यन्तम. नुष्यक्षेत्रस्य शिशिरकाल इवातिशीततेजसः। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं पाहुडं २३. ता' अंतो मणुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्डोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावण्णगा? ता ते णं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा, विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा, णो चारद्वितिया गतिरतिया गतिसमावण्णगा उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं 'बाहिराहिं वेउब्बियाहि" परिसाहिं महताहतणट्ट-गीय - वाइय-तंती- तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं महता उक्कुटिसीहणाद'-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडल चारं मेरु अणुपरियटुंति ॥ २४. ता तेसि णं देवाणं जाधे इंदे चयति से कधमियाणि पकरेंति ? ता चत्तारि पंच सामाणियदेवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जावण्णे तत्थ इंदे उववणे भवति ॥ २५. ता इंदट्ठाणे णं केवतिएणं कालेणं विरहिते पण्णत्ते ? ता जहण्णेणं इक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासे ।। २६. ता बहिता णं माणुस्सक्खेत्तस्स जे चंदिम-सूरिय-गह 'गण-णक्खत्त- तारारूवा ते णं देवा कि उड्डोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारद्वितिया गतिरतिया गतिसमावण्णगा? ता ते णं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगाणो चारोववष्णगा, चारद्वितिया, णो गतिरतिया णो गतिसमावण्णगा पक्किगसंठाणसंठितेहि जोयणसयसाहस्सिएहि तावक्खेत्तेहिं सयसाहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहि महताहतणट्ट-गीय-वाइय- तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पड़प्पवायइ°रवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति, सुहलेसा मंदलेसा मंदायवलेसा चित्तंतरलेसा अण्णोण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडा इव ठाणठिता ते पदेसे सव्वतो समंता ओभासंति उज्जोति सवेंति पभाति ॥ २७. ता तेसि णं देवाणं जाहे इंदे चयति से कहमियाणि पकरेंति ? ता' चत्तारि पंच सामाणियदेवा तं ठाणं तहेव जाव छम्मासे ॥ २८. ता पुक्खरवरं णं दीवं पुक्खरोदे णाम समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो' १. अतः प्रारभ्य 'जाव छम्मासे' इति पर्यन्त: ५. सं० पा०----वाइय जाव रवेणं । (सूत्र २३-२७) आलापक: चन्द्रप्रज्ञप्ते: 'ट,व' ६. ता जाव (क,ग,घ)। संकेतितयोद्धयोरपि प्रत्यो स्ति ! चन्द्रप्रज्ञप्ति- ७. अतः चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ट,व' संकेतितप्रत्योः भिन्ना वृत्तावपि अस्य आलापकस्य उपलब्धेविरलता वाचना विद्यते--ता पुक्खर णं दीवं पुक्खरोदे प्रतिपादितास्ति-इहान्यान्यपि सूत्राणि वा णामं समुद्दे बट्टे वलया जाव चिट्ठति । प्रविरलपुस्तकेषु दृश्यन्ते न सर्वेषु पुस्तकेषु, एवं विवखंभो परिवखेवो जोतिसं च ततस्तान्यपि विनेयजनानुग्रहाय दयन्ते । भाणियव्वं जहा जीवाभिगमे जाव सयंभुरमणे । २. वेउब्वियाहिं बाहिराहि (०७५५) । चन्द्रप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एष एव पाठो ३. उक्कट्ठि (ग,घ)। व्याख्यातोस्ति। ४. सं० पा०--- गह जाव तारारूवा। ८. सं० पा०-सव्व जाव चिट्ठति । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ सूरपण्णत्ती •समंता संपरिक्खित्ताणं चिति ॥ २६. ता पुक्खरोदे णं समुद्दे कि समचक्कवालसंठिते ? 'विसमचक्कवालसंठिते ? ता पुक्खरोदसमुद्दे समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ।। ३०. ता पुक्खरोदे णं समुद्दे केवतियं चकवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता संखेज्जाइं जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, संखेज्जाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा॥ ३१. ता पुक्खरवरोदे णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव । ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव संखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभेसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा । एतेणं आभिलावणं-वरुणवरे दीवे वरुणोदे समुद्दे । खीरवरे दीवे खीरवरे समुद्दे । घतवरे दीवे घतोदे समुद्दे । खोदवरे दीवे खोदोदे समुद्दे ।। पंदिस्सरवरे दीवे गंदिस्सरवरे समुद्दे । अरुणोदे दीवे अरुणोदे समुद्दे । अरुणवरे दीवे अरुणवरे समुद्दे । अरुणवरोभासे दीवे अरुणवरोभासे समुद्दे । कुंडले दीवे कुंडलोदे समुद्दे । कुंडलवरे दीवे कुंडलवरोदे समुद्दे । कुंडलवरोभासे दीवे कुंडलवरोभासे समुद्दे । सव्वेसि विक्खंभपरिक्खेवो जोतिसाइं पुक्खरोदसागरसरिसाई ॥ ३२. ता कुंडलवरोभासण्णं समुई रुयए दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो' 'समंता संपरिक्खित्ताणं चिति ।। ३३. ता रुयए णं दीवे किं समचक्कवाल •संठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? ता रुयए दीवे समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ।। ३४. ता रुयए णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता असंखेज्जाई जोयणसहस्साई चक्कवालविखंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा । ३५. ता रुयगे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा। ता रुयगे णं दीये असंखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव असंखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभेसु वा सोभेति वा सोभिस्संति वा । एवं रुयगे समुद्दे । रुयगवरे दीवे रुयगवरोदे समुद्दे । रुयगवरोभासे दीवे रुयगवरोभासे समुद्दे । एवं तिपडोयारा तव्वा जाव सूरे दीवे सूरोदे समुद्दे । सूरवरे दीवे सूरवरे समुद्दे । सूरवरोभासे दीवे सूरवरोभासे समुद्दे । सव्वेसि विक्खंभपरिक्खेवजोतिसाई रुयगवरदीवसरिसाइं॥ ३६. ता सूरवरोभासोदण्णं समुदं देवे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव' णो विसमचक्कवालसंठिते ।। ३७. ता देवे णं दीवे केवतियं चक्कवाल विक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा ? ता असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। १. सं० पा०–समचक्कवालसंठिते जाव णो। ४. सं० पा०–सम्वतो जाव चिट्ठति। . २. खोतवरे (क)। ५. सं० पा०-समचक्कवाल जाव णो। ३. खोतोदे (क,ग,ध)। ६. सू० १६।३। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहुडं ६६३ ३८. ता देवे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव ! ता देवे णं दीवे असंखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव असंखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभेसु वा सोभेति वा सोभेस्संति वा । एवं देवोदे समुद्दे । णागे दीवे णागोदे समुद्दे। जक्खे दीवे जक्खोदे समुद्दे । भूते दीवे भूतोदे समुद्दे । सयंभुरमणे दीवे सयंभुरमणे समुद्दे । सव्वे देवदीवसरिसा॥ वीसइमं पाहुडं १. ता कहं ते अणुभावे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ । तत्थेगे एवमाहंसु –ता चंदिमसूरिया णं णो जीवा अजीवा, णो घणा झसिरा', णो वरबोंदिधरा' कलेवरा, णत्थि णं तेसिं उट्टाणेति वा कम्मेति वा बलेति वा वीरिएति वा पुरिसक्कारपरक्कमेति वा, ते णो विज्ज लवंति णो असणि लवंति णो थणितं लवंति । अहे' णं बादरे वाउकाए संमुच्छति, संमुच्छित्ता विज्जुपि लवंति असगिपि लवंति थणितंपि लवंति-.एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु---ता चंदिमसूरिया णं जीवा णो अजीवा, घणा णो झुसिरा, वरबोंदिधरा णो कलेवरा, अत्थि णं तेसिं उट्ठाणेति वा कम्मेति वा बलेति वा वीरिएति वा पुरिसक्कारपरक्कमेति बा, ते विज्जुपि लवंति असणिपि लवंति थणितंपि लवंति–एगे एक्माहंसु २। वयं पुण एवं वदामो-ता चंदिमसूरिया णं देवा महिड्डिया •महाजुतीया महाबला महाजसा महासोक्खा महाणुभावा वरवत्थधरा वरमल्लधरा वराभरणधारी अवोच्छित्तिणयदयाए अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति' ।। २. ता कहं ते राहुकम्मे आहितेति वदेज्जा ? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंस-ता अत्थि णं से राह देवे, जेणं चंदं वा सरं वा गेण्डति-पगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु---ता णत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति -एगे एवमाहंसु २ तत्थ जेते एवमाहंसुः–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु--ता राहू णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धतेणं गिण्हित्ता बुद्धतेणं मुयति, बुद्धतेणं गिम्हित्ता मुद्धतेणं मुयति, मुद्धतेणं गिण्हित्ता १. झूसियारा (ट)। महासुक्खा (ट); महेसक्खा (व) यावत्कर२. बादरबोंदिधरा (क); बादरबुंदधरा (ग,घ); णात् 'महज्जुइया महबला महाजसा - वायरवोदिधरा (ट); वादरवोदिधरा (व)। महेसक्खा ' इति द्रष्टव्यं......"तथा महेश इति ३. अघो (क)! महान् ईश:-ईश्वर इत्याख्या येषां ते महे४. बादरबुदिधरा (क,ग,घ); वादरबोंदेधरा शाख्याः, क्वचित् महासोक्खा इति पाठः, तत्र (ट); वादरवोंदियरा (व)। महत् सौख्यं येषां ते महासौख्याः (सूव)। ५. सं० पा.----महिड्ढिया जाव महाणुभावा। ६. उववज्जति आहितेति वदेज्जा (ट,व)। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती बुद्धतेणं मुयति, मुद्धतेणं गिहित्ता मुद्धतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता वामभुयंतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिहित्ता दाहिणभुयंतेणं मुयति, दाहिणभुयंतेणं गिण्हित्ता वामभुयंतेणं मुयति, दाहिणभुयंतेणं गिण्हित्ता दाहिणभुयंतेणं मुयति । तत्थ जेते एवमाहंसु--- ताणत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु तत्थ णं इमे पण्णरस कसिणपोग्गला पण्णत्ता, तं जहाः सिंघाडए जडिलए खरए खतए अंजणे खंजणे सीतले हिमसीतले केलासे अरुणाभे परिज्जए णभसूरए कविलए पिंगलए राह। ता जया णं एते पण्णरस कसिणा पोग्गला सया चंदस्स वा सूरस्स वा लेसाणुबद्धचारिणो भवंति तया णं माणुसलोयंसि माणुसा एवं वदंति एवं खलु राहू चंदं वा सूरं वा गेण्हति । ना जया णं एते पण्णरस कसिणा पोग्गला णो सया चंदस्स वा सूरस्स वा लेसाणबद्धचारिणो भवंति, णो खलु तया णं माणुसलोयम्मि मणुस्सा एवं वदंति -एवं खलु राहू चंदं वा सूरं वा गेण्हनि - एगे एवमाहंसु। वयं पुण एवं वदामो ता राहू णं देवे महिड्डिए महाजुतीए महाबले महाजसे महाणुभावे वरवत्थधरे वरमल्लधरे' वराभणधारी। राहुस्स णं देवस्स णव णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा ...सिंघाडए डिलए खतए खरए दद्दरे मगरे मच्छे कच्छभे कण्हसप्पे।। ता राहस्स णं देवस्स विमाणा पंचवण्णा पण्णता, तं जहा ...किण्हा णीला लोहिता हालिद्दा सक्किला। अत्थि कालए राहुविमाणे खंजणवण्णाभे पण्णत्ते, अत्थि गीलए राहुविमाणे लाउयवण्णाभे पण्णत्ते, अत्थि लोहिए राहुविमाणे मंजिट्ठावण्णाभे पण्णत्ते, अत्थि पीतए' राहविमाणे हालिद्दवण्णाभे पण्णत्ते, अस्थि सुक्किल ए राहुविमाणे भासरासिवण्णाभे पण्णत्ते। ता जया णं राहदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सुरस्स वा लेस्सं पुरथिमेणं आवरित्ता पच्चत्यिमेणं बीतीवयति तया णं पुरत्थिमेणं चंदे वा सुरे वा उवदंसेति, पच्चत्थिमेणं राहू । जया णं राहुदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं दाहिणेणं आवरित्ता उत्तरेणं वीतीवयति तया णं दाहिणणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरेणं राहू । एतेणं अभिलावेणं पच्चत्थिमेणं आवरित्ता पुरथिमेणं वीतीवयति, उत्तरेणं आवरित्ता दाहिणेणं वीतीवयति । जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं दाहिणपुरस्थिमेणं आवरित्ता उत्तरपच्चत्थिमेणं वीतीवयति तया णं दाहिणपुरथिमेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरपच्चत्थिमेणं राहू । जया णं राह देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं दाहिणपच्चत्थिमेणं आवरित्ता उत्तरपुरस्थिमेणं वीतीवयति तया णं दाहिणपच्चत्थिमेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरपुरस्थिमेणं राहू। एतेणं अभिलावेणं उत्तरपच्चत्थिमेणं आवरेत्ता दाहिणपुरस्थिमेणं वीतीवयति, उत्तरपुरस्थिमेणं आवरेता दाहिणपच्चत्थिमेणं वीतीवयति । ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे ३. हालिद्दए (क,ग,घ)। १. सता (क,ग,घ,ट,व) । २. सं० पा०. वरवत्थधरे जाव बराभरणधारी। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइम पाहुडं वा चंदरस वा सूरस्स वा लेसं 'आवरेत्ता वीतीवयति" तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति--... ‘एवं खलु" राहुणा चंदे वा सूरे वा गहिते एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा गहिते। ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पासेणं वीतीवयति तया णं मणुस्सलोयंमि मणुस्सा वदंति 'एवं खलु" चंदेण वा सूरेण वा राहुस्स कुच्छी भिण्णा एवं खलु चंदेण वा सूरेण वा राहुस्स कुच्छी भिण्णा । ता जया णं राहुदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पच्चोसक्कति तया णं मणस्सलोए मणस्सा वदतिएवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वंते-एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वंते । ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता मज्झमज्झेणं वीतीवयति तया णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति · एवं खल राहुणा चंदे वा सूरे वा वइयरिए...एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वइयरिए । ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्बमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ताणं अहे सपक्खिं सपडिदिसि चिट्ठति तया णं मणुस्सलोयसि मणुस्सा वदंति-- एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा घत्थे ---एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा घत्ये॥ ३. ता कतिविहे णं राहू पण्णत्ते ? ता दुविहे पण्णत्ते, तं जहा --धुवराहू य पव्वराह य । तत्थ णं जेसे धुवराहू, से णं बहुलपक्खस्स पाडिवए' पण्णरसतिभागेणं पण्णरसतिभाग चंदस्स लेसं आवरेमाणे-आवरेमाणे चिट्ठति, तं जहा---पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भाग, चरमे समए चंदे रत्ते भवइ, अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवति । तमेव सुक्कपक्खे उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठति, तं जहा. पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भाग, चरिमे समए चंदे विरत्ते भवति, अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ । तत्थ णं जेसे पव्व राहू, से जहण्णेणं छण्हं मासाणं, उक्कोसेणं बायालोसाए मासाणं चंदस्स, अडतालीसाए संवच्छराण सूरस्स ।। ४. ता 'कहं ते चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा? ना चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो मियंके विमाणे कंता देवा कंताओ देवीओ कंताई आसण-सयण-खंभभंडमत्तोवगरणाई, अप्पणावि य णं चंदे देवे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभगे पियदसणे सुरूवे ता 'एवं खलु'" चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा ।।। ५. ता 'कहं ते" सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा? ता सूरादिया १. आवरेति (ट,ब)। २. ४ (क,ग,ध)। ३. x (क,ग,घ)। ४. तिचरिए (ट); वेतिचरिए (व) । ५. पडिवए (ग,घ,ट,व)। ६. से गं केणछेणं एवं वुच्चइ (ट); से केण ठेणं एवं बुच्चति (ब); भगवत्या (१२।१२५) मपि एवं विद्यते। ७. से तेणठेणं एवं बुच्चइ (ट,व)। ८. से केणठेणं एवं बुच्चति (ट,व) । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती णं समयाति वा आवलियाति वा आणापाणूति वा थोवेति वा जाव' ओसप्पिणिउस्सप्पिणीति वा, ‘एवं खलु" सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा ।। ६. ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा, 'जहा हेढा त चेव जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं । एवं सूरस्सवि भाणितव्वं ॥ ७. ता चंदिमसूरिया णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरति? ता से जहाणामए केइ पूरिसे पढमजोवणदाणबलसमत्थे पढमजोव्वणद्राणब समत्थाए भारियाए सद्धि 'अचिरवत्तविवाहे अत्थत्थी' अत्थगवसणयाए सोलसवास विष्पवसिते, से णं ततो लद्धठे कयकज्जे अणहसमग्गे पुणरवि णियगघर हब्वमागए पहाते कतबलिकम्मे कतकोतुक-मंगल-पायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिते अप्पमहग्याभरणालंकितसरीरे मणुण्णं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं भुत्ते समाणे तंसि तारिसगसि वासघरंसि अंतो' सचित्तकम्मे बाहिरओ दूमिय-टु-मढे विचित्तउल्लोयचिल्लियतले 'बहुस मसुविभत्तभूमिभाए मणिरयणपणासितंधयारे" कालागुरु-पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूव-मघमत-गंधुद्धयाभिरामे सुगंधवरगंधिते गंधवट्टिभूते तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि दुहओ उण्णए मज्झे णत-गंभीरे सालिगणवट्टिए 'उभओ विब्बोयणे" सुरम्मे गंगापुलिणवालुयाउद्दालसालिसए 'सुविरइयरयत्ताणे ओयवियखोमियखोमदुगूलपट्टपडिच्छायणे रत्तंसुयसंवुडे सुरम्मे आईणगरूतबूरणवणीततुलफासे सुगंधवरकुसुमचुण्णसयणोवयारकलिए ताए तारिसाए भारियाए सद्धि सिंगारागारचारुवेसाए संगतगतहसितभणितचिट्टितसंलावविलासणिउणजुत्तोवयारकुसलाए अणुरत्ताए अविरत्ताए मणोणुकूलाए एगंतरतिपसत्ते अण्णत्थ कत्थइ मणं अकुव्वमाणे इठे सद्दफरिसरसरूवगंधे पंचविधे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरेज्जा ! ता से णं पुरिसे विउसमणकालसमयंसि केरिसयं सातासोक्खं पच्चणुभवमाणे विहरति ? ओरालं समणाउसो ! ता तस्स णं पुरिसस्स कामभोगेहितो एतो अणंतगुणविसिटुतरा चेव वाणमंतराणं देवाणं कामभोगा, वाणमंतराणं देवाणं कामभोगेहितो अणतगुणविसिट्रतरा चेव असुरिंदवज्जियाणं भवणवासीण देवाणं कामभोगा, असूरिंदवज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं कामभोगेहितो अणंत गुणविसिटतरा चेव असुरकुमाराणं इंदभूयाणं देवाणं कामभोगा, असुरकुमाराणं इंदभूयाणं देवाणं कामभोगेहितो अणंतगुण विसिटुतरा चेव गहगणणक्खत्ततारारूवाणं कामभोगा, गहगणणक्खत्ततारारूवाणं कामभोगेहिंतो अणंतगुणविसिट्टतरा चेव चंदिमसूरियाणं देवाणं कामभोगा, १. भ० १२:१२६; ठाण २१३८८,३८६। ८. मणिरयणपगासियंधयारे बहुसमरमणिज्जे २. से एएणं अट्ठणं एवं बच्चति (ट,) । भूमिभागे पंचवण्णरस २ सुरभिमुक्कपुष्फ३. एवं तं चेव पुव्वभणियं अट्ठारसमे पाहुडे पुंजोवयारे कलिते (ट,व)। तहा णेयध्वं जाव मेहुणवत्तियं (ट,व)।। ६. पण्णत्तगंडविब्बोयणे (ग,घ,सूवृपा, चंपा) । ४. x (ट,व)। १०. उवचितदुगुल्लपट्टपडिच्छयणे सुविरइयत्ताणे ५. अचिरवत्तविवाहकज्जे (भ० १२११२८)। (ट,ब) । ६. अभितरओ (ट,व)। ११. विसिट्टतराए (ग,घ) । ७. आइण्णतले (चंब); चिल्लगतले (चंवृपा)। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहु ता एरिसए णं चंदिमसूरिया जोतिसिदा जोतिसरायाणो कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरति ॥ ८. तत्थ खलु इमे अट्ठासीति महग्गहा पण्णत्ता, तं जहा इंगालए वियालए लोहितक्खे' सणिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कंसे कंसगाभे कंसवण्णाभेणीले नीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे भासरासी तिले तिलपुप्फवणे दगे दवणे का काकंधे इंदग्गी धुमकेतू हरी पिंगलए बुधे सुक्के बहस्सई राहू अगत्थी माणवर्ग 'कासे फासे" धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे [ पियल्ले ? ] पयल्ले जडियायलए अरु अग्गिल्लए काले महाकाले सोत्थिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे णिच्चालोए णिच्चुजोते सयंप अभासे सेयंकरे खेमंकरे आभंकरे पभंकरे अरए विरए असोगे वीतसोगे विमले' वितत्ते विवत्थे विसाले साले सुव्वते अणियट्टी एगजडी दुजडी करकरिए रायग्गले फकेतु भावके । संग्रहणी गाहा १. लोहिते ( ग घ ) । इंगालए' वियालए, लोहियक्खे सणिच्छरे चेव । आणि पाहुजिए, कणगसणामा उ पंचेव ॥१॥ ૬૭ १. लोहितके ( क ) ; लोहिएके (ग,ध ) ; लोहित्यकः ( सूवृ); चंद्रप्रज्ञप्तिवृत्ती 'लोहिताक्ष:' इति व्याख्यातमस्ति, तथा स्थानाङ्गे (२/३२५) 'लोहितक्खा' जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती (७११८६) च 'लोहितक्खे' इति पाठो लभ्यते । २. बंधे (क, ग, घ ) वृत्तिद्वयेपि 'बन्ध्यः' इति व्याख्यातमस्ति । 'बन्ध्यः' इति पदस्य 'बंझ' इति रूपं स्यात्, कथं 'बंधे' इति प्रश्नोस्ति । तथा स्थानाङ्गे 'कक्कंधा' इति पाठो लभ्यते । ३. सूर्यप्रज्ञप्तेः 'क' प्रतौ 'कासफासे' इति पाठो ५. स्थानाङ्गवृत्तौ ‘इदं तत्रैव संग्रहणीगाथाभिनियन्त्रितम्' इत्युल्लेखपूर्वकं नव गाथा उद्धृताः सन्ति, तासु विद्यमानानां नाम्नां गद्यभागवतभिर्नामभिः सह संवादित्वमस्ति तेन एता गाथा: मूले स्वीकृताः । चन्द्रप्रज्ञप्तेः ‘ट,व' संकेतितयोरादर्श योस्तद्वृत्तौ च संग्रहणीगाथा नोपलभ्यते । सूर्यप्रज्ञप्त्यादर्शेषु एता निम्ननिर्दिष्टा गाया लिखिताः सन्ति, सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तौ च एतेषामेव नाम्नां सुखप्रतिपत्त्यर्थं सङ्ग्रहणिगाथा षट्कमाह' इत्युल्लेखपूर्वकं नव गाथा उद्धृताः सन्ति । एतासु गाथा यानि नामानि सन्ति तेषां नाम्नां गद्यभागवतिभिर्नामभिः सर्वथा संवादित्वं नास्ति, तेन नेता: मूले स्वीकृताः - इंगालए वियालए, लोहितके' सणिच्छरे चेव । आणिए पाहुणिए कणकसणामावि पंचैव ॥१॥ विद्यते तथा चन्द्रप्रज्ञप्तेः 'ट,व' सङ्केतितप्रतिद्वये 'कासे फासे' इति पाठोस्ति, सङ्ख्यादृष्ट्यापि 'कासे फासे' इति नामद्वय युक्तमस्ति । वृत्तिद्वयेपि 'कामस्पर्श इति व्याख्यातमस्ति । सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तावुद्धृतासु गाथास्वपि 'कामफासे' इति पाठो विद्यते, किंतु स्थानाङ्गे (२।३२५) 'दो कासा दो फासा' इति पाठो लभ्यते । ४. x ( ट ) ; एतत् पदं वृत्तिद्वयेपि व्याख्यातं नास्ति । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = सोम सहिते अस्सासणे य कज्जोवए य कब्बरए । अयकरण भए, संखसणामाथि तिम्णेव || २ || J तिणे व कंसणामा, णीले रुप्पी य हुंति चत्तारि । भास तिल पुप्फवण्णे, दगवण्णे' काय बंधे य ॥३॥ इंदग्गि धूमकेतू प. हरि गिलए बुधे व सुक्के य वहसति राहु अवस्थी, माणवए कामफासे य ॥४॥ धुरए पमुहे वियडे, 'विसंधिकप्पे पल्ले" | जडियाइए' अरुणे अमल करते महाकाले || ५ || सोत्थिय भोवत्थिय वद्धमाणग तथा पलंबे य । जिच्चालीए णिज्जोए सपने चैव भासे ॥६॥ सोयंकरे खेमंकर, आभंकर पभंकरे य बोधव्वे | अरए विरए य तथा असोगे तह बीतसोगे य ॥७॥ विमल वित्त वित्थे, विसाल तह साल सुव्त्रते चेत्र । अणिय एमटि य होई बिजी य बोधव्वे ||८|| कर करिए रायम्मल, दोधव्वे पुष्क भावकेतू य अट्ठासीति खलु महा, सब्वा आणुपुब्बीए ॥en जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तावपि एता गाथा लभ्यन्ते इंगालए विद्यालए, लोहिते सचिरे देव । आणिए पाहुणिए, कणगसणामावि पंचेव ॥१॥ सोने सहिए अस्सासणे व कोवए कम्बरए । अयकर दुंदुभए वि य, संखसणामावि तिन्नेव || २ || तिग्नेव कंसणामा, नीले रुप्पी हवंति चत्तारि । भास तिल पुप्फवन्ते दगवन्ने काय बंधे य ॥३ इंदगि धूमकेऊ, हरि पिंगलए बुधे य सुक्के य । वहसइ राहु अगत्थी, माणवगे कामफासे य ॥४॥ रए पमुहे बिगडे, विधिक सहा पयल्ले' य जडियालए" य अरुणे, अग्गिल' काले महाकाले || ५ || सोत्थिय सोविय बद्धमाणग तहा पलंबे म । निच्चालोए निन्चुज्जोए सपने चेव ओभासे ||६|| सेयंकर खेमंकर, आभंकर पर्यकरे व बोधव्वे । " अरए विरए य तहा, असोक तह वीयसोगे य ॥७॥ "विमल वितत्त" विवरये विसाल तह साल सुखए चेव । , अनिट्टी एगजडी, य होइ वियडी य बोधव्वे ||८|| १. दगपंचवणे ( म,घ ) २. विसंधीकप्पे तहा यिल्ले या ( ग, घ ) | ३. जडियालए ( ग घ ) । ४. लोहिके' चिल्लोक्षि (पु) । ५. पुरवण्ण दग ( ही ) । ६. पमप्ये (ही) | ७. जाडालए ( ही ) । ८. अग्नि व (ही) ९. होइ वितत्व (ही) 1. सुरपण्णत्ती Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहुड सोमे सहिए आसासणे य कज्जोवए य कब्बडए । अयकरए दुंदुहए, संखसनामाओ तिन्नेव ||२|| तिन्नेव कंसणामा, णीला रुप्पी य होंति चत्तारि । भास तिलपुष्पवन्ने, दगे य दगपणवण्णे य काय काकंधे ||३|| safir धूमकेऊ, हरि पिंगलए बुहे य सुक्के य । बहस्सर राहु अगत्थी, माणवए कास फासे य ॥ ४ ॥ धुर पमुहे विडे, विसंधि णियले तहा पयल्ले य । जडियाइलए अरुणे, अग्गिल काले कहाकाले ||५|| सोत्थिय सोवत्थिय, वद्धमाणगे तथा पलंबे य । निच्चालोए णिच्चुज्जोए सयंपभे चेव आभासे ||६|| सेयंकर खेमंकर, आभंकर पभंकरे य बोधव्वे । अरए विरए य तहा, असोग तह वीयसोगे य ॥७॥ विमल वितत वितत्थे, विसाल तह साल सुव्वए चेव । अनियट्टी एगजडी, य होइ विजडी य बोद्धव्वे ॥ ८ ॥ करकरए रायग्गल, बोद्धव्वे पुप्फ भावकेऊ य । अट्ठासी गहा खलु, यव्वा आणुपुन्वीए ॥ ६॥ ९. इइ एस पाहुडत्था, अभव्वजण हिययदुल्लहा इणमो । उक्कित्तिता भगवती, जोतिसरायस्स पण्णत्ती ॥ १ ॥ एस हितावि संती थद्धे गारविय माणि पडिणीए । अबहुस्सुए ण देया, तव्विवरीते भवे देया ||२|| सद्धा-धिति-उद्वाणुच्छाह - कम्म बल वीरिय-पुरिसकारेहिं । जो सिक्खओवि संतो, अभायणे पक्खिवेज्जाहि ॥ ३ ॥ सो पयवण-कुल- गण - संघबाहिरो णाणविणयपरिहीणो । अरहंतथेरगणहरमे रं किर होति वोलीणो ॥४॥ तम्हा धिति उद्वाणुच्छाह - कम्म-बल-वीरिय सिक्खियं गाणं । धारेयव्वं नियमा, ण य अविणीएसु दायव्वं ॥५॥ वीरवरस्स भगवतो, जरमरण किलेस दोसर हियस्स । वंदामि विणयपणतो, सोक्खुप्पाए सदा पाए ॥ ६ ॥ ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर ७५, ८७५ अनुष्टुप् श्लोक २,३७१ अक्षर ३ कर करिए' रायग्गल, बोधव्वे पुप्फ भाव केऊ य । अठासी गहा खलु, नायव्वा आणुपुवीए ॥६॥ चन्द्रप्रज्ञप्तिसूर्यप्रज्ञप्त्योरादर्शेषु, स्थानाङ्गे तद्वृत्तावुद्धृते सूर्य प्रज्ञप्तिपाठे, जंबूद्वीपप्रज्ञप्तेः संक्षिप्तपाठे तद्वृत्ती तथा त्रिलोकप्रज्ञप्ती च उपलब्धानि महाग्रह्नामानि अत्र कोष्ठकेषु प्रदर्शितानि सन्ति१. करए (ह्रीवृ) । ६६६ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०० सूरपण्णत्ती व 'क' ग, घ' ठाण २१३२५ ठाणं वृत्ति इगालगा लोहितके लोहिएके सणच्छंदे सणिच्चरे सणिच्चरा इंगालए वियालए लोहितक्खे सणिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताणए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कणगवियाणए कणगविताणगा कणगसंताणए कणगसताणए कणगसंताणगा ओसो . अस्सासणे अस्सास अस्सासणे आसासणे रुकं १५ १५ कज्जोयए कज्जावए कब्बरए x कबरणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखवणे संखण्णेभे संखणाते संखवण्णा संखवणे संखणाभे संखवण्णाभे कसे कंसणाभे कंसवण्णाभे णीले णीलोभासे ३. . : . . . . . कंसवणे कंसवण्णा कंसवण्णे २४ , रुप्पी णीलोतासी रुप्पाभासा णीला णीलोभासा २७ नीलाभासे रूवी रूवीभास रुप्पे रुप्पी २६ ३० रुप्पोभासे भासे भासरासी १. अङ्गारकादयोऽष्टाशीतिहाः सूत्रसि द्वा. केवल मस्मद् दृष्टपुस्तकेषु केषुचिदेव यथोक्तपंख्यां संवदतीति सूर्यप्रज्ञप्स्य. नुसारेणासाविह संवदनीया, तथाहि तत्सूत्रम् -तत्य......(व)। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीस इमं पाहुडं ७०१ ज० ७११८६ सूव चंव जं० पुष ६० ही तिलोयपण्णत्ति शुक्र अङ्गरकः , विकालकः विकालगः लोहित्यक: लोहिताक्ष: लोहितांक शनैश्चरः आधुनिक: प्राधुनिकः कण: बुध विकाल: लोहिताक्षः बृहस्पति मंगल शनि काल लोहित कनक नील कणकवितानक: विकाल फणसंतानक: कवयव कनक-संस्थान आश्वासनः दुन्दुभक कणक: केश कणकणक: कणवितानक: कणसन्तानक: सोमः सहितः आश्वासनः आश्वासनः ना रूतः १५ एवं भाणियच जाव भावके उस्स....... इमाहि माहाहि-इंगालए पियालए, लोहितक्ते सणिच्छे चेव । आहुणिए पाहुणिए, कणगसणामा पचेव ॥१॥ सोमे सहिए आसासणे यकज्जोवए य कब्बडए क्यकरए दंदुभए संखसणामेवि तिण्णेव ॥२॥ कर्बुर कर्बुरक: कार्योपगः कबंटक: अजकरक: दुन्दुभक: कब्बुरः शङ्ख शनाभः शङ्खवर्णाभः कंस: कंसनाभः कंसवर्णाभः रक्तनिभ नीलाभास अशोकसंस्थान कंस रूपनिभ कंसकवर्ण शंखपरिणाम तिलपुच्छ शंखवर्ण उदकवर्ण पंचवर्ण उत्पात धूमकेतु तिल नौलः नीलावभासः नीलोवभासः रूप्पी रूप्यावभास: भस्म भस्मराशिः २. क्वचिल्लोहिताक्षः। क्षारराशि Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ सूरपण्णत्ती ठा २३२५ तिले तिलपुप्फवण्णे ३२ दगे दगयवण्णे दगपंचवण्णा ३५ दगवणे काए काकंधे इंदग्गी धूमकेतू ३७ पिंगलए पिगए पिंगला बुधे सुक्के वुक्के ४३ बहस्सई राहू - : : :: ४५ आगत्था ४६ अगत्थी माणवगे कासे * . . . . . . . . . . . . . कासफासे कामफासे फासे हु. : ........ धुरे ५२ विसंधीकप्पेल विसंधी नेतले पत्तल्ले जडियातिलते विसंघी णियल्ला पइल्ला जडियाइलगा ५४ जडिएबलए अग्गिलए अग्गन्नए पमुहे विथडे विसंघीकप्पे विसंघी [णियल्ले?] परलx पयल्ले जडियायलए जयले अरुणे अग्गिलए काले महाकाले सोथिए सोवथिए वद्धमाणगे पलंबे णिच्चालोए णिच्चुज्जोते सयंप महाकालगा ६२ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसइमं पाहुडं ७०३ ठाणं वृत्ति सूव० चल चंब जं० पुव जं. ही तिलोयपण्णत्ति विजिष्णु पुष्पवर्णः दगपंचवण्णे सदृश संधि कलेवर अभिन्न ग्रन्थि मानवक कालक कालकेतु निलय अनय विद्युज्जिह्व पिंगले सिंह अलक निर्दुःख काल महाकाल तिलः तिलपुष्पवर्णक: ,, दक: दकवर्णः दकवर्णः कायः वन्ध्यः इन्द्राग्निः धूमकेतु: सून केतु: हरिः पिङ्गलः बुधः शुक्र: बृहस्पतिः राहुः अगस्तिः माणवकः कामस्पर्श: घुरः प्रमुखः विकट: विसंधिकल्पः प्रकल्पः जटाल: अरुणः अग्नि : काल: महाकाल: स्वस्तिक: सौवस्तिकः वर्द्धमानक: प्रलम्बः नित्यालोकः नित्योद्योतः स्वयंप्रभः अवभासः श्रेयस्करः विसंधी नियल्ले जडियाइल्लए महारुद्र सन्तान विपुल संभव स्वार्थी क्षेम चन्द्र निर्मन्त्र ज्योतिष्माण दिशासंस्थित विरत वीतशोक निश्चल प्रलम्ब भासुर स्वयंप्रभ विजय वैजयन्त Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती घ ठाणं १३७५ ओभासे से यंकरे खेमंकरे आभकरे पमंकरे अरए विरए असोगे खेमंकरे पमंकरे , अपरातिए अपरते अपराजिता अरया ७३ ७४ विगयसोगे विगतसोगे विगतसोगा वीतसोगे विमले x " वितत्ते " वितते वितता वितत्था विवये वितत्थे विवत्थे विसाले साले о б а в о л л 16KWN००GMe я л л л л я л सुष्यते __ सब्दतो अणियट्टिए अणिवी अही अणियट्टी एगजडी दुजडी करकरिए रायम्गले पुप्फकेतू भावकेतू कर करिए कर करिए कर ८३ करिए ८४ कर करिए राय गले राय म्गले राय ८५ भगले ८६ राय गले ॥ पुप्फकेता - X Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीरादमं पातुर्ड ठाणं वृत्ति "" " " 13 27 अपराजिए अरए 33 "} वियत्ते वितस्थे ======== सूवृ ० क्षेमंकर: आभंकरः प्रभङ्करः अरजा विरजा अशोकः वीतशोकः वितप्त: विवस्त्र: विशाल: शाल: सुव्रतः अनिवृत्तिः एक जटी द्विजटी करः करिक: राजः अर्मल: पुष्प: भाव: केतुः चं " 21 अरजा: 33 अशोकावीति वितप्तग्रहः धिवत्रः "3 अतवृत्तिः "" " 31 11 राजा जं० पुव 12 भावकेतुः धूम्रकेतु पुष्यकेतुः 33 17 "J "1 17 विमल: ७४ वितप्तः ७५ 17 1 13 17 1 " J राजा जं० ही 37 पुष्पकेतुः ८७ भावकेतु ८८ 33 21 #1 27 अरजा: विरजा: 21 " वितत: " "" 23 " "} राजा 71 27 27 ७०५ तिलोयपण्णत्त सीमंकर अपराजित जयन्त विमल अभयंकर विकस काली विकट कज्जलो अग्निज्वाल अशोक केतु क्षीररस अघ श्रवण जलकेतु केतु १. अतः चन्द्रप्रशनिवृत्तौ एतावान् अतिरिक्तः गाठी व्याख्यातस्ति एते अंगारकादयो ग्रहाः सर्वेपि प्रत्येकं चतुर्णां सामानिक्सहस्राणां चतसृणापत्र महिषीणां सपरिवाराणां निमृणां पर्पदां सप्तानामनीकानां सप्तानामनीकाधिपतीनां पोडश (नामावालकदेव सहस्राणामन्येगां च स्वविमानवास्तव्यानां देवानां चाधिपत्यमनुभवति । अंतरद एकसंस्थान अश्व भावग्रह महावह Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिळं चन्द्रप्राप्ति व सूर्यप्रज्ञप्ति का पाठभेद सूर्यप्राप्ति चन्द्रप्राप्ति सूत्र १० सूत्र ६-६ १११ से ६ पाहुडपाहुडों में कहीं-कहीं शब्दभेद है। ११७ पाहुडपाहुड में पाठभेद है । वह इस प्रकार हैचन्द्रप्र० सूर्यप्र० ता समचउरंससंठाणसंठिता गं' मंडलसंठिती ता सव्वावि मंडलवाता समचउरंससंठाणसंठिता आहितेति वएज्जा एगे एवमासु १ एगे पुण पण्णता एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहसुता एवमाहंस....ता विसमसंठाणसंठिता णं मंडल- सव्वादि मंडलवता विसमचउरंससंठाणसंठिता संठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु २ एगे पगणत्ता एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु.-ता पुण एवमाहंसु--ता समचउक्कोणसंठिता णं सव्वावि मंडलवता समचउक्कोणसंठिता पण्णत्ता मंडलसंठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमासु ३ एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु-ता सब्दावि एगे पुण एवमाहंसु.- ता विसमचउक्कोणसंठिता मंडलवता विसमचउक्कोणसंठिता पण्णत्ता एगे णं मंडलसंठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि एवमाहंसु ४ एगे पुण एवमासु.-ता मंडलवता समचक्कवालसंठिता पण्णत्ता एगे एवमासमचक्कवालसंठिता णं मंडलसंठिती आहितेति हंसु ५ एगे पुण एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता वएज्जा एगे एवमाह सु ५ एगे पुण एवमाहंसु विसमचक्कवालसंठिता पण्णता एगे एवमाहंसु ६ -. ता विसमचक्कवालसंठिता णं मंडलसंठिती एगे पुण एवमाहंसु--- ता सब्वावि मंडलवता आहितेति वएज्जा एगे एवमासु ६ एगे पुण चक्कद्धचक्कवाल संठिता पण्णत्ता एगे एवाहंस ७ एवमाहंसू -- ता चक्कद्धचक्कवालसंठिता गं मंडल- एगे पुण एबमाहंसु.--ता सव्वावि मंडलवता संठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमासु ७ एगे छत्तागारसंठिता पण्णत्ता एगे एवमाहंसु---८ तत्थ पुण एवमाहंसु--ता छत्तागारसंठिता णं मंडल- जेते एवमाहंसु-ता सव्वावि मंडलवता छत्तागारसंठिती आहितेति वएज्जा एगे एवमाहंसु 'तत्थ संठिता पण्णत्ता, एतेणं नएणं नायव्वं, नो चेव णं १. 'ण' इति वाक्यालंकारे। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिट्ठ ७०७ जेते एबमाहंसु ता छत्तागारसंठिता णं मंडल- इतरेहि, पाडगाहाओ भाणियवाओ। संठिती आहितेति वएज्जा," एतेणं नएणं नायव्वं, नो चेव णं इतेरेहिं । चं. १२६-३२ सू०१२८-३१ २६. 'ता अब्मंतराए मंडलवयाए बाहिरा मंडल- २८. ता अभितराओ.... बाहा बाहिराए मंडलवयाए अभितरा मंडलबाहा एस णं अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसते आहितेति वएज्जा । ३०. ता अन्त राए मंडलवयाए अब्मंतरा मंडल- २६. अभितराए मंडलवताए"" बाहा बाहिराए मंडलवयाए एस णं अद्धा पंचदसुतरे जोयणसए अडतालीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स आहितेति वएज्जा" ! ३१. 'ता अब्भतराए मंडलवयाए अभितरा ३०. ता अब्मंतराओ... मंडलबाहा बाहिराए मंडलवयाए बाहिरा मंडलबाहा एस णं अद्धा पंचनवृत्तरे जोयणसते तेरस एगट्ठिभागे जोयणस्स आहितेति वएज्जा" ३२. 'अभंतराए मंडलवयाए अब्मंतरा मंडलबाहा ३१. ता अभितराए.. बाहिराए मंडलवयाए एस णं अद्धा पंचदसूत्तरे जोयणसते आहितेति वएज्जा"। चं, चंव सू०, सूवृ० ४१२. आहियत्ति वएज्जा पण्णत्ता (सर्वत्र) १. x ()। २. ता अब्मंतरातो मंडलवतातो बाहिरा मंडलवता बाहिरा मंडलवतातो अब्मंतरा मंडलक्या । बाहिरा मंडलवयाते एस एं अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसते अडतालीसं च एगट्रिभागे जोयणस्स आहिया (); ता अब्भंतराए मंडलवयाए अभंतरा मंडलबाहा बाहिराए मंडलवयाए अब्मंतरा मंडलबाहा एस णं अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसते आहियाति वदेज्जा। ता अब्मंतराए मंडलक्याए अब्भतरा मंडला बाहिरा एस णं अद्धा पंचनबुत्तरे जोयणसते अडयालीसं च एगद्रिभागे जोयणस्स आहिए (व)। ३. ता अभंतराए मंडलवयाते अभंतरमंडलबाहा बाहिराए मंडलवताए बाहिरा मंडलबाहा एस णं अद्धा पंचनवुत्तरे जोयणसते तेरस एगट्ठिभागे जोयणस्स आहितेति वदेज्जा (ट); अब्भंतराए मंडलवयाए बाहिरा मंडलवाहा वाहिराए मंडलवयाए अब्भंतरा मंडलबाहा एस णं अद्धा पंच नवृत्तरे जोयणसते तेरस एगद्विभागे जोयणस्स आहिता (व) । ४. अब्भंतराते मंडलवताते अभंतरा मंडलवता बाहिराए मंडलवयाते एस णं अद्धा केवतियं आहितेति वदेज्जा? ता पंचदसूत्तरे जोयणसते आहियति वदेज्जा (ट); अब्भतराए मंडलवयाए बाहिरा मंडलबाहा एस ण अद्धा पंचदसुत्तरे जोयणसते आहिताति वएज्जा (व) । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्णत्ती ४॥३. एवं ताओ इत्यादि । एवमुक्तेन प्रकारेण एवं जाव वालग्गपोत्तिया संठिता तावखेत्तसंठिई चन्द्रसूर्यसंस्थितिगतेन प्रकारेणेत्यर्थः ८ एवानन्त- पण्णता। इति एवमनन्तरोक्तेन प्रकारेण चन्द्ररोदितचन्द्रसूर्यसंस्थितिगता गेहसंस्थितया सहाऽष्टौ सूर्य संस्थितिगतेन प्रकारेणेत्यर्थः गृहसंस्थिताया प्रतिपत्तयो नेतव्या: यावदियमष्टमा वालग्गपोत्तिया ऊवं तावद् वक्तव्यं यावद् वालाग्रपोत्तिकासंठिया तावखित्तसंठिए आहियत्ति वएज्जा । संस्थिता प्रज्ञप्ता इति तच्चैवम् । ४।३ एवमुक्तेन प्रकारेण एतेनान्तरोदितेनाभिला- एके पुनरेवमाहुः पेन । १०६।२५ चंवृ हस्त० पत्र ७८ सूवृ पत्र १२७ एवं नेयम्बमिति एवमुक्तेन प्रकारेण शेषमप्यमा- 'एवं नेयम्व' मिति एवमुक्तप्रकारेण शेषमप्यमावावास्याजातं नेतव्यम् । नवरं मार्गशीर्ष्या माध्यां स्याजातं नेतव्यम्, नवरं मार्गशीर्षी माघीं फाल्गुन्यामाषाढयां च कुलोपकुलं भणितव्यम्, फाल्गुनीमाषाढीममावास्यां कुलोपकुलमपि युनशेषाणां त्वामावास्यानां कुलोपकुलं नास्ति ततो क्तीति वक्तव्यम्, शेषासु त्वमावास्यासु कुलोपकुलं न वक्तव्यम् । नास्ति । १०१६।५८ : चंवृ पत्र ८० सूवृ पत्र १३१ तिग तिग पंचग दस तिग तिग पंचग सय जं०७१३० तिग तिग पंचेगसयं दोनों वृत्तियों (चंब व सूव) में गाथाएं उद्धृत १०१०१६४ : चंवृ पत्र ८०,८१ सूब पत्र १३३ एवमित्यादि एवमुक्तेन प्रकारेण एतेनाऽनंतरोदि- तत्र धनिष्ठा तस्मिन् भाद्रपदे मासे प्रथमान तेनाभिलापेन यथैव जंबूद्वीपप्रज्ञप्ती भणितं तथंव चतुर्दश अहोरात्रान् स्वयं अस्तङ्गमनेनाहोरात्रइहापि भणितव्यम् । यावदाषाढमासचितायां। परिसमापकतया नयति, तदनन्तरं शतभिषकनक्षत्र तस्सि च णमित्यादि । तच्चवं धणिट्ठा चउद्दस सप्ताहोरात्रान् ततः........."एवं शेषमासगताअहोरत्ते नेइ, सयभिसया सत्तअहोरत्ते नेइ, पुव्व- न्यपि सूत्राणि भावनीयानि । भद्दवया अट्ठअहोरत्ते नेति ।""पश्चात्यं तु सूत्र सकलमपि सुगमम् । १०११३१८४ सुपीए...'ट' सुठिए 'व' सुट्टीजे 'चंव' पंचम: स्थपीति: । 'सूब' पञ्चम: सुपीतः । बंभे----'ट' पम्हे 'चंवृ' नवमः पक्ष्मः । 'सूवृ' नवमः ब्रह्मा । तठे--'चं' द्वादशं स्रष्टा । 'सूवृ' द्वादश त्वष्टा । वारुणे--- 'ट' वावरे 'चं' अपर: पञ्चदशः । 'सूव' पंचदशः वारुणः । वीससेणे-.-.'ट' विजयसेणे 'चंव' अष्टादशो विजयसेन: । 'सूव' अष्टादशो विश्वसेनः । सव्वळे.--'चंव' एकोनत्रिशतितमः सत्यवान् । 'सुव' एकोनत्रिशत्तमः सर्वार्थः । १०।१४।८६ चं तृतीयो मणरहः तृतीयो मणोहर : दिवसाणं णामधेज्जा (ट)। दिवसा। दिवसानां नामधेयानि व्याख्यातानीति वदेत् । दिवसा आख्याता इति वदेत् । सूब Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिढें ७०६ १०॥२२॥१४८ चंव पत्र ११० सूवृ पत्र १८४ चन्द्रविषयमतिदेशमाह.---..एवमित्यादि एवं येना- चन्द्रविषयं प्रश्नसूत्रमाह--.'ता एएसिण' मित्यादि, भिलापेन चन्द्रस्य पौर्णमास्य उक्तास्तेनैवभिला- तत्र युगे एतेषामनन्तरोदितानां पञ्चानां पेनाऽमावास्याऽपि वक्तव्यास्तद्यथा प्रथमा द्वितीया संवत्सराणां मध्ये प्रथमाममावस्यां चन्द्रः कस्मिनतृतीया द्वादशी। देशे स्थित: परिसमापयति ? भगवानाह----'ता जंसिण' मित्यादि, तत्र यस्मिन् देशे स्थितः सन् चन्द्रश्चरमां द्वाषष्टि -द्वाषष्टितमाममावस्या परिसमापयति, ततोऽमावास्यास्थानाद्-अमावास्यापरिसमाप्ति स्थानात् परतो मण्डलं चतुर्विशत्याधिकेन शतेन छित्त्वा तद्गतान् द्वात्रिंशतं भागान् उपादायात्र प्रदेशे स चन्द्रः प्रथमाममावास्यां परिसमापयति 'एव' मित्यादि, एवमुक्तेन प्रकारेण येनैवाभिलापेन चन्द्रस्य पौर्णमास्यो भणितास्तेनैवाभिलापेनामावास्या अपि भणितव्याः । तद्यथा द्वितीया तृतीया द्वादशी च । १८।१ चंवृ पत्र १५५ सूवृ पत्र २६१ वयं पूण मित्यादि । वयं पुनरुत्पन्न केवलज्ञाना 'वयं पुण एवं बदामो' इत्यादि, वय पुनरुत्पन्नएवं वक्ष्यमाणेन वदामस्तमेव प्रकारमा । ता केवलवेदसः एवं--वक्ष्यमाणेन प्रकारेण बदामस्तइमीसे इत्यादि । ता इति पूर्ववत् अस्या रत्न- मेव प्रकारमाह.... 'ता इमीसे' इत्यादि, ता इति प्रभायाः पृथ्व्याः बहुसमरमणीयाद्भूमिभागादूर्वं पूर्ववत, अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्या बहुसमरमणीसप्तयोजनशतानि नवत्यधिकानि अबाधया कृत्वा यात् भूमिभागादूर्ध्व सप्तयोजनशतानि नवतानि इति गम्यते । अन्तरीकृत्येति भावः अत्रान्तरेऽध- नवयधिकानि उत्प्लुत्य गत्वा अत्रान्तरे अधस्तनं स्तनोरूपं ज्योतिश्चक्र चारं चरति । मंडलगत्या ताराविमानं चार चरति-मण्डलगत्या परिभ्रमणं परिभ्रमणं प्रतिपद्यते। तस्या अस्या एवं रत्न- प्रतिपद्यते। प्रभायाः पृथिव्या बहुसमरमणीयात् भूमिभागात् ऊर्वमष्टौ योजनशतान्यबाधया कृत्वा अत्रान्तरे सूर्यविमानं चार चरति । तथा अस्था रत्नप्रभायाः पृथिव्या बहुसमरमणीयाद् भूमिभागाद् उद्धर्वमष्टौ योजनशतान्यबाधया कृत्वा अत्रान्तरे सूर्यविमानं चारं चरति । तस्मादेवाधस्तया अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्या बहुसमरमणीयात् भूमिभागादूद्ध अष्टौ योजनशतानि अशीत्यधिकानि अबाधया कृत्वा अत्रान्तरे सूर्यविमानं चार चरति । तस्मादेवाधस्तनात् तारारूपाज्जोतिश्चक्रादूर्ध्व नवति योजनान्यूर्वमबाधया कृत्वा अत्रान्तरे चन्द्रविमानं चार चरति। दशोत्तरयोजनशतमबाघया कृत्वा अत्रान्तरे चंद्रविमानं चारं चरति । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरपण्पत्ती दशोत्तरं योजनशतमबाधया कृत्वा अत्रान्तरे सर्वोपरित तारारूपं ज्योतिश्चक्रं चारं चरति । तथा सूरविमाणातो इत्यादि । ता इति तस्मात्सूर्यविमानाद्धर्वमशीतियोजनान्यबाधया कृत्वा अत्रान्तरे चन्द्रविमानं चारं चरति । एवं जहेव जीवाभिगमे तहेव नेयव्वमिति एवमुक्तेन प्रकारेण यथैव जीवाभिगमेऽभिहितं तथैव ज्ञातव्यम्। १६१ चंव पत्र १६१ सूवृ पत्र २७१ एवमवतेन प्रकारेण एतेनानन्तरोदितेनाभिलापेन एवं-उक्तेन प्रकारेण एतेनानन्तरोदितेनाभिलापेन या एव तृतीये प्राभूते द्वादशप्रतिपतयः उक्तास्ता तृतीयप्राभतप्राभतोक्तप्रकारेण द्वादशप्रतिपत्तिएव इहापि ज्ञातव्याः नवरमनेन क्रमेण ज्ञातव्या- विषयं सकलमपि सूत्र नेतव्यं, तच्चैवम् – 'सत्तचंदा श्चता प्रतिपत्तौ प्रत्येक सप्त चन्द्रा: सूर्याश्च सत्त सूरा' इति, एगे पुण एवमासु ता सत्त। वक्तव्याः । पंचम्यां दश एवं यावद् द्वादश्यां प्रतिपत्ती द्वाशप्ततं चन्द्रसहस्रं द्वासप्तसूर्यसहस्रमिति । तत्र चैवमभिलाप: एगे पुण एवमाहंसु । ता सत्त...." चंव पत्र १६१ १६१ सूवृ पत्र २७२ ता जंबुद्दीवे गंदीवे दो चंदा इत्यादि अत्र जहा 'ता जंबुद्दीवे गं दीवे दो चंदा इत्यादि, जम्बूद्वीपे जीवाभिगमे जाव ताराओ ति वचनं सूत्र पाठो द्वो चन्द्रौ....... द्रष्टव्यः । दो चंदा पभासिंसु वा पभासिति वा । दो सूरिया तवयंसु वा तवयंति वा तवइस्संति वा । छप्पन्नं णक्खत्ता जोगं जोएंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा । छावत्तरं गहसयं चारि चरिंसु वा चरिस्संति का। एग सयसहस्सं बत्तीसं च सहस्सा नव सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं सोमंसु वा सोभिस्संति वा दो चंदा दो सूरा नक्खत्ता खलु हवंति छप्पन्ना । बावत्तरं गहसयं, जंबूदीवे बियारी णं ।। एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई। नवसयसया पन्नासा, तारागणकोडिकोडीणं ।। इति । अस्थ व्याख्या द्वौ चंद्रो......... चंव पत्र १६२११ सूव पत्र २७३ ता लवणे समूद्दे चत्तारि चंदा पभासिसु वा जाव ता लवणेणं समुद्र इत्यादि सूगम, लवणसमूहे ताराउत्तिवचनं......" | इदं सकलमपि सूत्रं सुगमं चत्वारः । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसिठं ०११ नवरम् लवणसमुद्दे चत्वारः । चंदू १६२११ सूवृ पत्र २७३ ता लवणन्नं समुद्दमित्यादि सुगमं। ता धायइ- 'ता लवणं णं समुह' मित्यादि सकलमपि सुगमम्, संडेणमित्यादि। अत्र जहा जीवाभिगमे जाव नवरम् ताराउत्ति.............तारागणकोडिकोडीणमिति । इदमपि सुगमं नवरं चंवृ पत्र १६२१२ सूवृ पत्र २७३ धायइसंडेणमित्यादि सुगमं । ता कालोए णं समुद्दे ता धायइसंडण्ण' मित्यादि, एतदपि सकलं सुगम, इत्यादि । अत्र एवं विष्कंभो......"तारागणकोडि- 'ता कालोए णं समुद्दे' इत्यादि, एतदपि सुगम, कोडीणमिति एतदपि सुगमं । नवरं नवरं चंवृ १६३३१ सूवृ २७३ ता कालोय णं समुद्दपुक्खरवरेण मित्यादि सुगम, ता कालोयं णं समुदं पुक्खरवरेण मित्यादि सुगम, ता प्रक्खरवरेणमित्यादि। अत्र एवं विष्कंभो गणितभावना त्वियं पुष्करवरद्वीपस्य पूर्वत: षोडश परिक्खेवो इमं जाव ताराउत्ति"तारागणकोडि- लक्षा अपरतोपीति द्वात्रिशल्लक्षा: कालोदधेः कोडीणमिति सुगम । गणितभावना त्वियं पुष्क- पूर्वतोष्टी अपरतोऽप्यष्टाविति षोडश धातकीखण्ड रवरद्वीपस्यकतोपि चक्रवालविष्कंभः षोडशलक्षा एकतोपि चतस्रो लक्षा अपरतोपि चतस्र इत्यष्टौ । परतोपि षोडशेति । द्वात्रिंशतिकालोदधिसमुद्रे एकतोप्यष्टी लक्षा अपरतोप्यष्टाविति षोडशधातकीडे त्वेकतोपि चतसो लक्षाः अपरतोपि चतन्नो। चं पत्र १६३ सूवृ पत्र २७४ ता अभ्यंतरपक्खरद्धेणमित्यादि सुगमं ।"तारा- ता अभितरपुक्खरद्धे वा' मित्यादि सर्वमपि सूगर्म, गणकोडिकोडीणं । सो सु वा इति सुगमं । नवरं नवरं परिधिगणितभावना परिधिगणितभावना चंव पत्र १६४११ से १६५।१ सूवृ पत्र २७४ ता मणुसखेत्तेणं केवइयं आयामविष्कभेणं केवइयं ता मणु सखेत्ते णं केवइयमित्यादि सुगम । नवरं परिक्खेवेणं आहियत्ति वएज्जा। एवं विष्कंभो मानुषक्षेत्रस्यायामविष्कंभपरिमाणं पञ्चचत्वारिपरिक्खेवो जोइस जोइसगाओ य जाव एकससी- शल्लक्षा: परिवारो...."एतस्य समस्तस्यापि सूत्रस्य क्रमेण व्याख्या तत्र मनुष्यक्षेत्रस्यायामविष्कं भविषये पंचचत्वारिंशल्लक्षाः चं पत्र १७६ सूव पत्र २६३ तथा विचित्र नारूपंरुल्लोचश्चन्द्रोदयैराकीणं विचित्रण.-विविधचित्रयूक्तेनोल्लोचेन ...- चन्द्रोक्वचित् । चिल्लगाति पाठसूत्रचिल्लगं देदीप्यमानं दयेन 'चिल्लिय' त्ति दीप्यमानं Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ सूरपण्णत्ती चंवृ पत्र १७७ सूवृ पत्र २६५ तत्थ खलु इत्यादि । तत्र तेषु चंद्रसूर्यग्रहनक्षत्र- तत्थ खलु' इत्यादि, तत्र-तेषु चन्द्रसूर्यनक्षत्रतारातारारूपेषु मध्ये इमेऽप्टाशीति संख्या ग्रहा: प्रज्ञप्ता- रूपेषु मध्ये ये पूर्वमटाशीतिसङ्ख्या ग्रहा: प्रज्ञप्ताः स्तद्यथा इंगालए इत्यादि अंगारक: १ विकालकः ते इमे, तद्यथा 'इंगालए' इत्यादि सुगम एतेषा२ लोहिताक्ष: ३ शनैश्चर: ४....." अतवृत्ति: ८० मेव नाम्नां सुखप्रतिपत्त्यर्थं संग्रहणीगाथाषट्कमाह एकजटी ८१ द्विजटी ८२ करः ६३ करिक: ८४ इंगालए वियालए लोहियंके सणिच्छरे चेव ।..... राजा ८५ अर्गल: ८६ भावकेतु ८७ धूम्रकेतुः अनिवृत्ति ७६ एकजटी ८० द्विजटी ८१ करः ६२ पुष्पकेतु: ८८ एते अंगारकादयो ग्रहाः सर्वेपि करिकः ८३ राज: ८४ अर्गल: ५५ पुष्पः ८६ प्रत्येक चतुर्णा सामानिकसहस्राणां चतसणां अग्र- भाव: ८७ केतुः ८८ ! सम्प्रति सकलशास्त्रोपमहिषीणां सपरिवाराणां तिसणां पर्षदां सप्ता- सहारमाह-. नामनीकानां मामानीकाधिपतीना छोडशाना आत्मरक्षकदेवसहस्राणामन्येषां च स्वविमानवास्तव्यानि देवानां चाधिपत्यमनुभवन्ति । सम्प्रति सकलशास्त्रोपसंहारमाह--- चंवृ पत्र १७८ सूव पत्र २६६ एसमहियावसंतीथद्धेगार वियमाणि पडिणीए। 'एचा गहियावि' इत्यादि गाथाद्वयं, एषा--... अबहस्सुए न देयातविचरीए भवेदेया एषा चन्द्र- सूर्यप्रज्ञप्ति: स्वयं सम्यत्करणेन ....... प्रज्ञप्तिः सूर्य सम्यक्करणेन........ सद्धाधिउवाणुच्छाहकम्मबलविरियपुरिसकारेहिं । 'सद्धे' त्यादि, श्रद्धा श्रवणम: जो सिक्खाओविसंतो अभायणे पविखविज्जाहिं ! सो पवयणकुल-गण-संघबाहिरो नाणविणयपरिहीणो अरहंत-थेर-गणहर-मेरं किर होइ वोलीणे श्रद्धा श्रवणं........ स्वयं शिष्यतोपि चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्रार्थोभयोपि सन् स्वयं शिक्षितोपि गृहीतसूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रार्थोभयोपि यो दाक्षिण्यादिना अन्तेवासिन्यभाजनेऽयोग्ये सन् यो दाक्षिण्यादिना अन्तेवासिनि अभाजने--- प्रक्षिपेत् .... अयोग्ये प्रक्षिपेत् .... यत् चन्द्रप्रज्ञप्तिलक्षणं ज्ञानं मुमुक्षणा सता यत् ज्ञानं . सूर्य प्रज्ञप्त्यादि स्वयं मुमुक्षुणा सता शिक्षितं । तन्नियमादात्मन्येव धर्तव्यम् । ननु शिक्षित तन्नियमादारमन्येव धर्तव्यं, न तु जातुजातचिदप्यविनीतेषदातव्यं तदानोक्तप्रकारेण चिदप्यविनीतेषु दातव्यं, उक्तप्रकारेण तहाने आत्म पर....... आत्म-पर Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल पूसं-स्थल ३०१२७,२८ १७११३० १७११२५ २३१६८,७४ ३०.२६ पूर्ति मापार-स्थल ३०१२८ १७११२३ १७११२३ २३६० ३०१२५ संक्षिप्त-पाठ अणागारहिं जाव पासति अणितरिया चेव जाव अमणामतरिया अणिटुतरिया जाव अमणामतरिया अबाहा जाव णिसेगो आगारेहिं जाव जं आभिणिबोहियणाण एवं जहेव कण्हलेस्साणं तहेव भाणियव्वं जाव चाहिं इट्तरिया चेव जाव मणामतरिया उट्टे जाव एलए उदएणं जाव अविहे उववेया जाव फासेणं एत्तो जाव अमणामतरिया एवं जहा इंदियउद्देसए पढमे भणियं तहा भाणियब्वं जाव से तेणठेणं एवं जहा नेरइयाणं एवं मणूसाण वि कंता जाव मणामा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ता कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ते कालं जाव खेत्तओ खेत्तं जाव पासति जाव इत्तरिय गोयमा जाव णण्णत्थ गोयमा जाव रोएज्जा जहा पंचेंदियतिरिक्खजोगिएस जाव जेणं १७:११३ १७:१२६,१२७,१३४ १११७,१६,२० २३।२१,२२ १७.१३४ १७११३१,१३२ १७१११२ १७।१३८ ११०१६ २३१३ १७११३३ १७४१२३ ३४११२ २८१३६ ३४१६ २८.१०५ २३।२०० २३॥२०१ १८१११७ १७।१०७ ११११६,२० २०१३४ २०१८ १०४६ २८१२२ ३४॥ . २८२४ २३३१६६ २३३१६६ १८२६ १७११०६ १११११ २०१७ २०१७ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८॥३३ १५.४७ १२५१ १७।१०६ १७।१०६ १७११५१ १५१५२ ३४११५ ३४|१८ २३॥१३ २३.१५ ३०१२६ १७११३२ १७।१०८ अहा भासुद्देसए जाव पियमा २८११२.१६ जहेव नेरइया तहेव २८.३५ जाणंति जाव अत्येगइया ११४६ जावतियं तं चेव ११५१ रइए जाव पासति १७११०७ रइए तं चेव जाव इत्तरिय १७११०७ तं चेव १७१५४ तं चेव जाव चिट्ठति १२५२ तं चेव जाव णो ३४३१६ तं चेव जाव मणपरियारणा ३४११८ तहेव पुच्छा २३.१६ तहेव पुच्छा उत्तरं च, णवरं-अमणुण्णा सद्दा जाव कायदुहता २३३१६ तेणठेणं जाव णो ३०१२६ पसत्येणं जाव फासेणं जाव एत्तो १७.१३३ पासइ जाव विसुद्धतरागं १७४११० पुच्छा १५.१७,१८,२०-२३,२६-३६,३६, ४२-४४,४६,४६-५१,५७,६२,६३, ६५,६६,६८,७०-७५,७७,७८,८०, १२,८४,८५,८७-६०,६३,९४,९७, ६८,१००-१११,११३,११४,११६, ११७,११६,१२०,१२२,१२३,१२५१२७ २११४० २३।१६,२१,२३ पुच्छा २३२२८,३०,४० पुच्छा २४१११ २८.४१,४३,४८ पुच्छा । गोयमा ! एवं चेव, णवरं---अणिद्रा सद्दा जाव होणस्सरता दोणस्सरता अणिदुस्सरता अकंतस्सरता 5 वेदेते सेसं तं वेब जाव चोद्दसविहे २३३२० पुच्छा । गोयमा! एवं चेव, णवरं—जातिविहीणया जाव इस्सरियविहीणय २३२२२ बस्स जाव कतिविहे २३३१७ पुच्छा पुच्छा १८११ २११३८ २३३१३ २३३२५ २४१४ २८।२४ पुच्छा २३.१६ २३१२१ २३६१३ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९ २३३१४,१५ २०१३ बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणाम मणुस्सा एवं चेव, णवरं-आभोगणिन्वत्तिए जहष्णेणं अंतोमुहुत्तस्स उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स आहारट्टे समुपज्जति २८१४६-७१ २८१४-१६,३२,२१, २२,४०,४३-४५ ३६.१० ३६६८० २३३६६ मणसस्स अतीता वि पुरेक्खडा वि जहा रइयस्स पुरेक्खडा माहिड्ढीए जाव महासोक्खे वाससताइं जाव णिसेगो सपज्जवसिए जाव अवड्ठं समझें एत्तो जाव अमणामतरिया सम्मुच्छिमसामण्णपुच्छाकायव्वा सिझति जाव अंतं सीलं वा जाव पडिवज्जित्तए सेसं जहा नेरइयाणं जाव आहच्च ३६९ २०३० २३३६० १९५६ १७११२३ १७६१२४ ४११३४ ३६१६२ २०१३४ २८/३२,३३ ३६६८५ २०१७ २८।२०,२१ जंबुद्दोवपण्णत्ती २०६८ अंचेइ जाव पणाम ३११२ अंचेता जाव करयलपरिग्गहियं ५।५८ अंतलिक्खपडिवण्णे जाव उत्तरपुरस्थिमं ३३१३० अंतलिक्खपडिवण्णे जाव पूरेते ३४३ अंतवाले जाव पडिच्छइ ३६१३३,१३४ अकोहे जाव अलोहे अच्छरगणसंघसंविकिण्णा जाव पडिरूवा अणंते जाव समुप्पन्ने २१८५ अणुपविसइ जाव णमि ३११३७ अणुसज्जिस्संति जाव सणिचारी २।१६३ अणेगखंभसयसण्णि विठे जाव सुहसंकमे ३११०० अणेगखंभसयसण्णिविठेहि जाव सुहसंकमेहि ३१०१ अणेगरायवरसहस्साणुयायमग्गे जाव समुद्दरव ३११८० अदंडकोदंडिम जाव सपूरजणजाणवयं ३१२१२ अपत्थियपत्थगा जाव परिवज्जिया ३।१२४ अयमेयारूवे जाव संकप्पे अवक्कमित्ता जाव अब्भवद्दलए विउन्वंति २ जाव तं णिहयरयं १७ अहोरत्तंसि जाव चारं ७.२७ ३१६ ५२२१ ३१४३ ३१३० ३१२६,२७ पज्जो० ७८ पण्ण० २३० पज्जो० ८१ ३।२० २।४६ ३६६ ३६६ ३१२२ ३३१२ ५१२२ ५२२० राय० स० १२ ७१२६ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ ३।४३ राय० सू०४० ३११५,१६ २१४१ ३७ आउहघरमालाओ तहेब जाव उत्तरपुरत्थिमं आपुरेमाणा जाव अतीव आभिसेक्कं जाव पच्चप्पिणंति आयामेणं जाव वासं आसत्तोसत्तविपुलवट्ट जाव करेइ आसयंति जाव भुंजमाणा आसयंति जाव विहरति आसोए जाव आसाढे इट्टत्तराए चेव जाव आसाए इत्तरिया चेब जाव मणामतरिया इटाहि जहा पविसंतस्स भणिया जाव विहराहित्तिकट्ट इट्ठाहिं जाव जयजयसई इड्ढी एवं चेव जाव अभिसमण्णागए इत्थिरयणेणं जाव णाडगसहस्से हिं इमं जाव विणमी इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था इव जाव ससिव्व ईरियासमिए जाव पारिद्रावणियासमिए ईसर जाव पभितयो उक्करं जाव मागह उक्किट्ठाए जाव अट्टाहियं जाव पच्चप्पिणति उक्किट्ठाए जाव उत्तरेणं उक्किट्ठाए जाव एवं उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं उक्किट्ठाए जाव देवगईए उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणे उक्किट्ठाए जाव सक्कारेइ सम्माणेइ, २ ता पडिविसज्जेइ जाव भोयणमंडवे, तहेव महामहिमा कयमालस्स पच्चप्पिणंति उक्किट्ठिसीहणाय जाव करेमाणे उत्तरेणं जाव चउणवई उप्पलहत्थ गया जाव अप्पेगइया उल्ला जाब पीइदाणं से, णवरं चुडामणि च दिवं उरत्थगे विज्जग सोणियसुत्तगं कडगाणि य .... तुडियाणि य जाव दाहिणिल्ले अंतवाले जाव अद्राहियं ३२६० ५॥३८ ३०१७३,१७४ २२१४४,१४५ ३.८८ ११३३ ४१२ ७।१०३ २।१८ २०१६ ३१२०६ श५८ ३३१२६ ३३२१४ ३११३८ ३१८८ ३२६,१७ २१६८ १११३ १११३ भ० १८१२१६ जी. ३५६६ जी० ३३२७६ ३१८५ ३११८५; शाव ३६१२६ ३२२०४ ३१२६ ३१२६ ओ० सू० ६३ पज्जो०७८ ओ० सू० ५२ ३११२ ३२८ ३१६४-६७ ३११३३ ३६५६ २।१० २५,४४ ५१४७ ३।२६ ३१२६ जी० ३४४३ ३।२६ ३।२६ ३१७२-७५ ३२९६ ४१८६ ३११० ३।२२ १३२० शाव ३१३७-४२ ३१२३-२६ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४५-५० ३१२१६ ७८४ ३१२३-२६ ३१८६ ७१७८ २५ ४१ उल्ला जाव पौइदागं से, णवरं माल मडि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडयाणि य आभरणाणि य सरं च णामाहा पभासतित्थोदगं च गिण्हइ २ ता जाव पच्चत्थिमेणं पभासतिस्थमेराए अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी जाव पच्चत्थि मिल्ले अंतवाले, सेसं तहेब जाव अट्ठा हिया निव्वत्ता उवट्ठाणसाला जाव सीहासणवरगए उवाएणं जाव संकममाणे उवागच्छित्ता जाव आगायमाणीओ उवायच्छित्ता जाव ससिव्व एज्जमाणा जाव निव्वु इक रेणं एयारूवाए जाव अभिसमण्णागए एवं ओववाइयगमेणं जाव तस्स एवं पच्चथिमिल्लाए जाव पच्चथिमिल्लं कटु जाव पडिसुणेइ कडगाणि य जाव आभरणाणि कडगाणि य जाव मागह कडगाणि य जाव सो चेव गमो जाव पडिविसज्जेइ कत्तिइण्णं जाव वत्तव्वं करयल जाव अंजलि करयल जाव एवं करयल जाव कटु करयल जाव जएणं करयल जाव मत्थए करयलपरिम्गहियं जाव अंजलि करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए करेइ अवसिझें तं चेव जाव निहिरयणाणं करेत्ता जाव गट्टविहिं करेत्ता जाव वेयड्ढगिरिकुमारस्स करेता जाव सिंधूए कामगमाणं जाव मणोरमाणं किण्हचामरझया जाव सुक्किल' केणठेणं जाव सासए कोटुपुडाण वा जाव पीसिज्जमामाण कोडीए जाव दोहिवि पुढे ३१२२२ ३६ ५।३८ रायः सू० ४० ३२१२२ ३१२६ ३३१७८,१७६ शाव, हीवृ, ओ० सू० ६४ ४११०८ ३१८४ ३११६ ३२७२ ३१२६ ३२२६ २२६ ३१५६,५७ ३२६,२७ ७१४२ ७१४१ ३६,२०४ ሃ ५॥४६ ३२५ ओ० सू० २० ओ० सू० २० ३८८ ३१५१ ३२११४,१२६,५१५८ ३६१६४-१६६ ३३१८-२० ५१५८ शा ३६१८-२० ३१५२-५४ ३।१८-२० ७११७५ ७११७५ ४१२६ जी० ३१२८८ ४१३४ ४१२२, पुत्र, हीव ४११०७ जी० ३२२८३ ४११७२ ४११०८ ३२५ ३१५ ३१५ ३२५ ३.५ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोहे वा जाव लोहे गच्छति जाव नियमा गवई जाव दुरु मामाइ वा जान सणिवेसाइ गाहावइकु इप्पमाणं जाव मंगलावत्त गुणेा जायतं चैव घडमुपवत्तिएण जाव साइरेग घाय जाव दिसोविसि चंदिम जाव तारारूवा चंदे जाव संकममाणे चनकरयणदेसियमम्गे जाव खंदगप्पवावगुहाओ चच्चर जाव महापह चरइ जाव कैवइयं चेच जाव गंधे छत्तपडागा जाव संपट्टिया जा पढममज्झिमेसु वत्तव्यया ओसिप्पिणीए सा भाणियव्या जुगमुसलमुट्ठि जाव वासं जुगमुसलमुट्ठि जान सत्तरत जोएइ जान कुलोवकुलं जोयतरिएहि जाव जोपणुज्जोयकरेहि णरवई जाब सच्चे णवजोयणविच्छिण्णं जाव कथमालस्स णवजोयणविच्छिण्णं जाव खंधावारणिवेसं णवजोयणविच्छिण्णं जाव विजयखंधावारणिषेसं णवरं पम्हलसूमालाए जाव मउड गाणामणिपंथ जाय कित्तिमेहि futarnाणसवि जाव अपवियुज्झमाणे गिरयगामी जान अंतं गिरयगामी जाव अप्येगइया ૭૨૪ तलवर जाब सत्यवाह तहेव पविसंतो मंडलाई आलिहइ तहेव सेसं जाव विजयखंधावार निरयगामी जाव देवगामी निरयगामी जाव सव्वदुक्खाणमंत या बेडो भरहस्स यो वेव णं तेसि मणुयाणं आवाहं बाबाहं वा जान पग भट्या तयवंतराओ जाव संकममाणे २१६६ जो०७२ ७१४०-४० भ० १।२५८-२६६, शा ३।१७ ३१२१५ २।२१ ४१६५ ७/३३ ४१६०,११ ३।११० ७५० ७/७५,७८ ३।१६३ ३।२१२ ७८० ४११०७ ३११७८ २१५८ ३।१२२ २११४२ ७१३६ ३।६६ ३।१३१ શ૬૨-૦ ३।२११ २।१२७ ३।२०४ ११५१ २।१४८.४।१०१ २०१२३ २।१२८ ३।१०६ २४१ ७१८१ ३।१७५, १८८, २१६,२२१ ३।१५८-१६० 쥐 ३.१८० ३।१६४ ठाणं २३६० ४११८३: हीवृ ७।३१ ४२३ ३३१०८ ७५५ £ ३१६३ ३।१८२ ७७६ जी० ३१२८१ ओ० ० ६४ २२५५ ३।११५ २।१४१ ७।१३६ L ३१२४ ३१८-२० ३११५ ३।१८ जी० ३४४६ २५७ ३।१८६ १/२२ १।२२ ११२२ १।२२ $190 २।३६ ७६६ ३।१० ३११४-१६ ३।१८ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तित्यगरचयगं जाव अणगारचियग तिरथगरचिय जाव दिवेति तित्थगरचियगाए जाव अणगारचिबगाए तित्थगरचियगाए जाव विउब्वंति तिस्वगर सरीरगं जाव अणगारसरीरमाणि तित्थयरस्स जाव फुट्टिही तिकट्टु तिसोवाणपडिरूवएणं जाव पज्जुवासंति तुरंग जाव वलयभत्तिचित्ताओ तुरियाए जब उयाए तुरियाए जाव वीतिवयमाणा तेणेव जाव पञ्चपिणंति तेरसहि जाव घेता तोरणेणं जान पढा दंडणायग जाव दूय दंडणायग जाव सद्धि दिव्वतुडिय जाव आपूते दिव्वा वा जाव पडिलोमा दुरंत तलवणे जाव परिवज्जिए दुरंतपंतलक्खणे जाव हिरिसिरि दुरुहिता जाव सीहासणंसि दुरुहिता तहेब जाव णितीयंति दुस्समदुस्समाकाले जव सुसमसमाकाले देवराया जाय पच्चपिण देवापिया जाव अम्हे देवा य जाव विहरति देविड्ढि जाव उवदसेमाणे देविडिव दिवं देवेण वा जाव अग्गिपओगेण वा जाव उवित्तए नाणेणं जाव चरितेणं परंजित्ता जाव पम्हसूमालाए परवेयाए जब संपरिक्खिता पंडुयए जाव संखे पकरेंति जान जहणे परिहिता जाव अट्ठमभतं पचमाभिमुद्दे जाव समप्ये पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुट्ठा ७९५ २।१११ २११२ २१०५-१०७, १०९ २।१०८ २।१०८ ५।७३ ३।२०६ २।१०१ ३११३८ ३।११३ ५/७० ७१८०,८१,८३ ४१७७ ३६ 3100 ३।१७२ २६७ ३।१२२ ३।११४ ५२४१ ५।४२ २३ ५।७१ ३।१३८ १०३६ ५।४४ ५१४४ ३।१२५ २७१ ५।५८ ४२४२ ३११७५ ७५६, ६० ३।१८२ ६।२४ ४|५५ २२६५ २।१११ २/१५ २।१०७ २ १०७ ५।७२ ३१२०५ १८३७ ३।२६ ३।२६ ३।१३ ७७६ ४/३५ शाकृ ३६ ३।१४ पज्जो० ७७ ३।२६ 龍 राय० सू० ४७ ५:४२ २२ ३।१३ ३२६ १:१३ राय० सू० ५६ राय० सू० ५६ ३।११५ पज्जो० ८१ शावृ, जी० ३१४६६ ४।३ ३।१६७ ७५६,५७ ३।२० ६।२४ ४।१ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६६ ११४८ ३३३३,३४ ३१२०० १०२० ३१२०,२१ पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुढे पच्चप्पिणइ सेसं तहेव जाव मज्जणघराओ पच्चप्पिणह जाव पच्चप्पिणंति . पच्चुवसमंति एवं पुप्फवद्दलगंसि पुप्फवासं वासंति, वासित्ता जाव कालागुरुपवर जाव सुरवराभिगमणजोग्गं पडिणिक्खमित्ता जाव उत्तरपुरस्थिमं पडिणिक्खमित्ता जाव गंगाए पडिणिक्खमित्ता जाव दाहिणं पडिणिक्खमित्ता जाव पूरते पडिसाहरेमाणे जाव जेणेव पण्णत्ते सयणिज्जवण्णओ भाणियव्यो पतणतणाइस्सइ जाव खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ जाव वासं पत्तेयं जाव अंजलि परामुसइ वेढो जाव छत्तरयणस्स परिगरणियरियमझो जाव तए परिभुज्जमाणाण वा जाव ओराला पवरवाहण जाव सेणाए "पवरवीर जाव दिसोदिसिं पाईणपडीणायया जाव पच्चस्थिमिल्लाए पाउप्पभाए जाव जलते पारेत्ता जाव सीहासणवरगए पासाईयाओ जाब पडिरूवाओ पामादीया जाव पडिरूवा पिंडिम जाव पासादीयाओ पीइमणे जाव अंजलि पुष्फारुहणं जाव वत्थारुहणं पुरथिम जाव पुढे पेच्छिज्जमाणे एवं जाव णिग्गच्छइ जहा ओववाइए जाव आउलबोल बहुलं ५७ राय० सू०१२ ३११४० ३।४३ ३।१४६ ३१४३ ३।१३६ ३१४३ ३३५१ ३४३ राय० सू०५६ ४१३ जी० ३.४०७; शावृ २११४२ २१४१ २११४३ २११४१ ३३२०६ जी० ३।४४६ ३२११६ ३६२ ३।१३१ ३।२४ ४११०७ जी० ३।२८१ ३२२१ ३३१७ ३।१०६ ३११०५ ४११ १।१२० ३११८८ ओ० सू० २२ ३१५८ ३।२८ २।१५ १८ २।१४ २।१२ ओ० सू०७ ३।१६ ३॥८८ ३।१२ ४११८ श २०६५ पोसहसालाए जाव अट्ठमभत्तिए पोसहसालाए जाव णमि पोमहसालाए जाव णिहिरयणे पभिइओ तेवि तह चेव णवरं दाहिणिल्लेणं फामपज्जवेहिं जाव परिहायमाणे वंभयारी जाव अट्ठमभत्तिए ३१६३ ३११३७ ३११६६ ३१२०६ २।१३० ३२८४,८५ ओ० सू० ६६ वाचनान्तर; वृतित्रय ३१५४ ३१५४ ३१५४ ३।२०५ २१५१ ३२०,२१ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६७ ३१२० २।११४ ३३१७८ ३।६७ ११२२ बंभयारी जाव कयमालगं ३७१ बंभयारी जाव दन्भसंथारोवगए बहवे जाव करेंति २।११५ बहवे जाव सत्यवाह ३३१० बहुमझदेसभाए जाव उम्मुग्ग ३११६१ बहुसंघयणा जाव अप्पेगइया ११५० बहसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ, मणयाणं जा चेव ओसप्पिणीए पच्छिमे तिभागे वत्तन्वया सा भाणियव्वा, कुलगरवज्जा उसभमामिवज्जा २११५६,१५७ भगिणी में जाव संगथसंथुया २०६६ भवण जाव वेमाणिएहिं ४१२४८ भवणवइ जाव अट्ठाहियाओ २।१२० भवणवइ जाव जे ५७३ भत्रणव इ जाव तित्थगर जाव भारग्गसो २१११० भवणवइ जाव देवेहि ४।२५२ भवणवइ जाव भारहगा ४१२५० भवणवइ जाव वेमाणिए २।१०१,१०६,११४ भवणवइ जाव वेमाणिया २।६६,१००,१०२,१०४,११३,११६ मंसाहारा जाव कहि २११३७ मग्गे जाव समुद्दरवभूयं ३।१०६ मडंब जाव जोयणंतरियाहिं ३११८० मणगुत्ते जाव गुत्तबंभयारी ३।६८ मणुण्णा जाव गंधा ४११०७ महज्जुईए जाव पलिओवमट्ठिईए ३१२५६ महज्जुईए जाव महासोक्खे ३१११५ महज्जुईया जाद महासोक्खा महया जाव आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव विहराहित्तिक? ३११८५ महया जाव भुजमाणे ३।१८७ महाणईओ सहेव णवरं पच्चथिमिल्लाओ ३।१६१ महामेहणिग्गए जाव मज्जणघराओ ३।२१ महिड्ढीए जाव णो ३।१२५ महिड्ढीयं जाव उद्दवित्तए ३।१२४ माडंबिय जाव सत्थवाह ३८६ य जाव छेत्ता ७.८२ रयणकुच्छिधारिए एवं जहा दिसाकुमारीओ जाव धण्णासि ०४६ २२५७,५८ सू० २१११५१; शावृ ४१२४६ २.११६ ५७२ ११०६ ४१२४८ ४।२४८ २०६५ २०६५ ११३५ ३।२२ ३११८ पज्जो० ७८ जी० ३२८१ ११२४ १०२४ श२४ शाव ३१८२ ३१६ ३।११५ ३।११५ ३.१० ७७६ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१३८ ३१८६ २११५७ ३१३२ ३३१९८ ३।१३६ ३६१७३ रा० सू० १२ ४१२५ ३६१० २।१२८ ३।१३ ३११३ ३२७ ३३३१ ३३१३३ ३।२६ ५१४३ (राय० सू० ५४, शावृ रयणाणं जाव संवट्टगवाए रययाम यकूले जाव पासाईए जाव पडिरूवे राईसर जाव सत्यवाह रायधम्मे जाव धम्मचरणे राया जाव तमाणत्तियं राया जाव पच्चप्पिणंति राया जाव पडिविसज्जेइ राया जाव पास इ रुटठे जाव पीइदाणं सम्वोसहि च मालं गोसीसचंदणं कडगाणि जाव दहोदगं रूवेहिं जाव णिओगेहिं रोहिया णं जहा रोहियंसा पवहे य मुहे य भाणियब्वा जाव संपरिक्खित्ता लवणं जाव समप्पेइ लुहेता एवं जाव कप्परक्खगं लोगपालेहिं जाव चउहि वंदणघडसुकय जाव गंधुद्ध याभिरामं वंदेज्ज वा जाव पज्जुवासेज्ज वणसंडेणं जाव संपरिक्खित्ते वणसंडेहि जाव संपरिक्खित्ते वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुण' वण्णपज्जवेहिं जाव परिवढेमाणे वण्णपज्जवेहि तहेव जाव अणंतेहिं उढाणकम्म जाव परिहायमाणे वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए वण्णेणुववेए जाव फासेणुववेए वाइय जाव दिब्वाई वाइय जाव मुंजमाणा वाइय जाव भोगभोगाई वालग्गे एवं हेमवयएरण्णवयाणं मणुस्साणं पुवविदेह अवरविदेहाणं मणुस्साणं वित्थडा तं चेव जाव तीसे विमलदंडं जाव अहाणुपुब्बीए विसयवासी जाव अहण्णं विसुद्धरुक्खमूलाई जाव चिठ्ठति ४१७२ ४१३७ ५।५८ रा. ३१७ २०६७ ४१७६ ४१५६ २१५४,१३८,१४०,१५३ २।१४६ ४१४३ ४१३५ शाव, जी० ३।४४६ ॥१६ ओ० सू० ५५ शाव ४॥३१ ४१३१ २२५१ २२५१ २२१२१ २।१२६ २०१८ ७१८२ ७।५८ २१५१ २१५१ जी० ३१५६६ ५।१८ ५।१८ ११८ २१६ ७१३३ ३११७८ ३१३३ २२६ ७१३१ ओ० सू० ६४ ३३२६ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २।८८ ३११८८ ३।१६२ ३१२११ २०६७ ३८८ ३२८४ ३६ ५२२२ ३३९८ ५।२१ ५।२६ ३३१३८ ३।१४१-१४८ २१८६ ३३१८८ ३।१६२ जी० ३१४४६ शा ३.१२ ३१२० ओ० सू० ६३ श२० ३१६८ श२० ५१२२ ३३२६ ३।५२-५६ वीइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे बीरिय जाव केवलकप्पे वेउब्विय जाव समोहण्णंति वेढिम जाव विभूसियं वेत्तेण वा जाव कसेण वेरुलियविमलदंडं जाव धूवं संथरइ जाव कयमालस्स सकोरंट जाव चाउचामर सक्कस्स जाव अंतियं सक्करा वा जाव मणुस्से सक्के जाव आसणं सक्के तं चेव जाव अंतियं सखिखिणीयाइं जाव जएणं सच्चेव सब्बा सिंधुवत्तव्वया जाव णवरं कुभट्ठसहस्सं रयणचित्तं णाणामणिकणगरयण भत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई सेसं तं चेव जाव महिमत्ति सपणद्धबद्धवम्मियकवया जाव गहियाउह सद्दावेत्ता जाव अट्ठाहियाए महामहिमाए सहावेत्ता जाव पोसहसालं समचउरसे जाव तिक्खुत्तो आदाहिणपयाहिणं करेइ वंदति वंदित्ता जाव एवं समाणीए जाव पच्चत्थिमं समाणे जाव सरसगोसीस समाणे सेसं तहेव सम्माणेता जाव पुरोहियरयणं सयंति जाव फलवित्तिविसेसं सव्वज्जुईए जाव णिग्योसणाइयरवेणं सव्वबलेणं जाव निग्घोसनाइएणं सहइ जाव अहियासेइ सहस्सा जाव समति सासया जाव णिच्चा सिंगारागार जाव जुत्तोवयारकुसलं सिंघाडग जाव एवं सिंघाडग जाव महापह सिझंति जाव अंतं सिझति जाव सव्वदुक्खाणमंतं ३।१२४ ३३५८,५६ ३११८०-१५२ ३१७७ ३२८,२६ ३११८-२० ११५,६ ३२६८ ३८२ ३३३६ ३२२१६ ११३० ३११८० ३१७८ २०६७ ६।२६ १२११ ३११३८ ५७३ ३।१८५,५७२ ४११०१ १२५०,२१५८ भ० ११६,१० ३१४३ शा ३२२२ ३।१८६ १४१३ ३३१२ ३१० पज्जो०७७ ६१२६ ११४७ २०१५ ५१७२ ओ० सू० ५२ १।२२ १।२२ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिया जाव तहेब जं सिरियच्छ जाव कम गह सिरिवच्छ जाव दप्पणे सिरिवच्छ जान पडदा सिरिवच्छसरिसरूवं वेढो भणियन्वो जाव दुवालस सुरभिवरवारिपणेहि जान महया सुवणं मे जाव उवगरणं सुसमा तहेव सुसमासमा सहय सुस्सुसमाणा जाव पज्जुवासंति सुस्सुसमागे जाव पज्जुवासइ सूरिय जाव तारारूवा सेणावरयणे जाव पुरोहियरयणे सेणावहरवणे जाय सत्यवाह० सेणिप से सिह सद्दावणया जाव णिहिरयणाणं अट्ठाहियं महामहिम करेइ हट्ट करयल जाव एवं हट्ठ जाव सोमणस्सिए टुटुटुचिमादिए जाव करयल तुट्टचितमादिए जाव विणएवं हद्दुचित्तमाणंदिया जाय हिथया हट्ट जाव को बिय हट्ट जाव पोसहसालाओ हट्ट जाव हियए हट्ट जावहिया हत्थिसंधवरगया जाव घोसंति हयगय जव सण्णाता गरह तव अंजणगिरि हयगयरपवर जाय चाउरंगिणि हयमहिय जाव परिसेहिया हरिय जाव सुहोवभोगे हारोत्ययसुकपरइयवच्छे जाव अमरबद्द ८०० सूरपण्णत्ती सम्वतराए जाव परिक्खेवेणं एवं एवं दीवं एवं समुदं अणमण्णस्स अंतरंकट्टु ५१५ ३१८८ ३११७८ ४१२८ ३।११६ २२०६ २१६६ २.१५१-१६१ २।१६२,१६३ ३।२०५ २१६०,५५८ ७५५ ३१५८,२१० ३१२०६,२१५ ३।१६८,१६६ ३७७,८४ ३ १०० ३।११४ २।३१,१७३ ३१६६ ३११५ ५२७ ३।२१३ REE ३।१७५-१७७ ३।७७ ३।१११ २१४६ ६।१३,१५० राय० सू० १२ ३।१२ ३।१२ जी० ३२८७ ३।७६ जी० ३०४४४ सू० २।१।५० २१५०-५२ २५०,७ ३।५०, ५१ ३८ ३५ ओ० सू० ५६ ३६ ३३५ ३१५ १।१४ १२० १४६ १/६ ७५५ ३।१७८ ३३१८८ ३।१६ ३१५ ३३५ ३१५ ३१५ ३५ ३।२१२ ३|१५ ३३१५-१७ ३।१५ ३१०८ २११४५ ३।१८ जं० ११७ १२० Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राइदिए तहेव सीसे सब जान सव्यवाहरिया उहीमुहका पुष्कसंटिता तहेव जान बाहिरिया से तहेव अणुपरियद्विता जाव विगतजोई गह जाव तारारूत्रा वाइव जाव रवेणं सन्जाब चिति समचत्रकवालसंटिते जाव णो सव्वतो जाव चिट्ठति समचक्कवाल जाव णो अंतरं वा जाव मम्म अंतराणि जाव पडिजागरमाणे अतिए जाव पडिवज्जइ अगाराओ जाव पचइत्तए अज्जयं जाव उव संपत्ति अवाणं जान पवदत्तए अभरिए अमथिए जाव समुपज्जित्था अत्थियं जाव वियाणित्ता अनगारे जाव अप्पाणं ८०१ उवंगा अत्तए जाव वेहल्लं अपत्यपत्थर जान परिवज्जए अम्माओ जाव अंगपडिचारियाओं निरवसेसं भाणियन्त्र जाव जाहे वि य णं तुमं वेयणाए अभिभूए महया जाव तुसिणीए अम्मयाओ जाव एतो अम्मयाओ जाव जम्म अयमेव वेजाव ममुपज्जिस्था असण जाव सम्माणेत्ता अहं जाव पव्वइत्तए अहsरूवं जाव विहरति आएहि जान ठि १।२४ ४४ ४६,७ ४७ १५।१४ १६।२६ १६।२६ १६।२८ १६१२६ १६।३२ १९:३३ १११०५ ३।१०४ ३।१०६ ११११६ ३।१०६,१३० ३२६ १।१५ ३।४८,५०१५ ५१३५ ५। ३७ ५३२ १।११४ १२८१. १।६६ १।७४-८७ ३१०१ १/३४ १५१, ११: ३।१०६ ३०५० ४१४ ५२६ १२४३ ११२४ ४३ ४१३,४ ४|४ १५।१० ११।२३ १६।२३ ર १६/३ १६२ १६।३ १।६५ १।६५ ३११०३ ३ ११८ १.१०६ ३ १०६ १।१५ राय० सू० ६ १।१५. भ० १।५१ १।११० उवा० २।२२ १।३४-६२ ३६८ ना० ११:३३ १११५ ना० १।७।६ ३।१२८ ३६६ १।४१ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०२ वृत्ति २।३ आघवित्तए वा जाव विण्णवित्तए ३१०६ ३३१०६ आरंभेहि जाव एरिसरण १।१४० ११२७ आलोएहि जाव पायच्छित्तं ३१११५ ठाणं ३१३३८ आसाएमाणीओ जाव परिमाएभाणीओ ११३४ वि० ११।२६ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धण ११२२ आहारपज्जत्तीए जाव भासमणपज्जत्तीए ३११५ राय० सू० ७६७ आहेवच्च जाब विहरइ ५११० ना० १६५६ इच्छिए जाव अभिरुइए ३३१३ ना० १११।१०२ इट्ठाहिं जाव वगृहिं १४४ ११४१ इमेयारूवे जाव संकप्पे ३।६८ १३१५ उखेवओ ३८८,१५४,१६७ ३२२० उक्खेवओ ४।३।५।३ उक्खेवओ जाव दस ४११,२ २१,२ उक्खेवओ भाणियचो ३१२३,२४ ३।२०,२१ उड्ढे जाणू जाव विहरइ ओ० सू०८२ उबट्टवेत्ता जाब पच्चप्पिणंति १।१७,१८ राय० सू० ६६०,६९१ उवट्ठवेत्ता जाव पच्चप्पिणह ४।१६ १११७ एयारूवे जाव समुपज्जित्था ११५४ १५१५ एवं मारेउ बंधेउ २७३ एवमाइक्खइ जाब परुवेइ १९९८ ओ० सू० ५२ ओग्गहं जाव विहरंति ३११३२ ३११ ओहय जाव झियाइ ३१६८ १४१५ ओहयमण जाव झियाइ १११५ वृत्ति कंता जाव भंड ३०१२८ ना० ११०२०६ कयवलिकम्मा जाव अप्प० श१६ ओ० सू० २० करयल० ११३६:५८ ; ३१०६१३८, ५११६ करयल० १६४५,४।१५ १४५ करयल० १५१०७ ओ० सू० २० करयल जाव एवं १६६ करयल जाव कटु करयल जाव पडिसुणेता ११४५ ओ० सू० ५६ करयल जाव बद्धावेंति ११२२ १।१०७ करयल जाव वद्धावेत्ता श११६ १२१०७ काणि जाव वेहल्लं १६११२ १११११ कुणिएणं करयल जाव पडिसुणेत्ता ११४५ गामागर जाव सविणवेसाई ३।१०१ ओ० सू० ८६ चउत्थ जाव अप्पाण ५।२८ २०१० १७३ वृत्ति १२१०८ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०३ २०१० राय० सू० ६८६ ३।४८ २०१० ५१३६ २११० ११० ना० ११११२०१ ४११८ १११५ १११०६ भग० १२०५-२२१ चउत्थ जाव भावेमाणे ३.१४ चरमाणे जेणेव रायगिहे नयरे जाव अहापडिरूवं श२ चिण्णाई जाव जुवा ३१५० छ? ४/२४ टुट्ठम जाव मासद्ध ३।८३ हम जाव विचित्तेहि छट्टम जाव विहर २११० छत्तादीए जाव धम्मियं १६ जइस्सइ जाव कालं श२१ जहा पढम जाव वेहल्लं ११११३ जहा पण्णत्तीए । सामिलो निग्गओ खंडियविहणो जाव एवं वयासी.-- जता ते भंते ! जवणिज्जं च ते भंते ! पुच्छा । सरिसवया मासा कुलत्था एगे भवं जाव संबुद्धे ३।२६-४५ जहा भगवया कालीए देवीए परिकहियं जाव जीवियाओ ववरोविए १।१४० जहा सिवो जाव गंगाओ ३१५६ व्हाए जाव सव्वालंकार' १२७० व्हायं जाव पायच्छित्तं ३३११० पहाया जहा कालादीया जाव जएण' १२१२६,१३० व्हाया जाव पायच्छित्ता १।१२१,५११६ तं चेव जाव कट्ठमुद्दाए ३२५५ तं चेव जाव निवेयणे तं चेव भाणियव्व जाव वेहल्लं ११११० त चेव सखंधावारे ११११६ तं चेव सव्व भाणियब्वं जाव आहारं अहारेइ, नवरं इमं नाणत्तं -दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्यियं अभिरक्खउ सोमिलं महापरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव अणुजाणउ त्ति कट्ट दाहिणं दिसि पसरइ। एवं पच्चत्थिमेणं वरुणे महाराया जाव पच्चत्थिमं दिसि पसरइ । उत्तरेणं वेसमणे महाराया जाव उत्तरं दिसिं पसरइ। पुवदिसागमेणं चत्तारि वि दिसाओ भाणियब्वाओ जाव आहार आहारेइ ३१५३, ५४ तलवर जाव संधिवाल श६२ तलवर जाव सत्यवाह ३।१०१ तवसा जाब विहरंति ३२९६ ११२२ ३३५१, भग० १११६४ ओ० सू०७० ११७० ११२१,१२२ ११७० ३।५५ ११६१ १।१०६ १२११५ ३१५१ ओ० सू० ६३ ११६२ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ ओ० सू० ५२ १०७ ओ० सू० ८१ ११८ तहारूवाणं जाब विउलस्स १११७ तहेव भाणियब्वं जाव बेहल्लं १।१०८ तिक्खुत्तो जाव एवं ११२१ ते जाव पच्चप्पिणंति ४.१७ दंतिसहस्सेहिं जाव ओयाए १।१५ दंतिसहस्सेहि जाव मणुस्सकोडीहि १११३६ दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं ११२१ दंतिसहस्सेहिं जाव सत्तावण्णाए १।१३७ दिव्या जाव अभिसमण्णगया ३१८५ दुज्जाएहि जाव नो संचाएमि विहरित्तए ३११३४ दुरंत जाव परिवज्जिया ११११५ देवसयणिज्जसि जाव ओगाहणाए ३८३,४१२४ देवसयणिज्जसि जाव भासमणपज्जत्तीए ३११६११६२ देविड्दी जाव अभिसमग्णामया ३३१२२ देवी जाव कहि ४१२६ देवे जाव एवं ३७५,७६ नमसंति जाव पज्जुवासंति ५।३६ नरए जाव नेर इयत्ताए ११४० नाइ जाव रवेणं ४।१८ निवखेवओ ३८७,१६६ १७०४।२७ ; ५१४३ निसम्म जाव हियया १२२१ नीय जाव अडमाणे ३।१३३ पढम भणइ तहेव ३७७ परिजाणइ जाव तुसिणीए ३॥६१ पवर जाव पच्चप्पिणति ५११८ पासादीए जाव पडिरूवे पुप्फ जाव दरिसणिज्जे पुधरत्ता जाव समुप्पज्जित्था ११६५ पुल्वाणपुचि जाव अंबसालवणे विहरइ ३।२६ बहुपडिपुण्णाणं जाव सूमालं ११५३ बहण नगरनिगम जहा आणंदो ६।११ बुज्झिहिइ जाव अतं १।१४१ बुझिहिइ जाब सव्व ५.४३ भगवं जाव पज्जुवासामि १२१७ भवित्ता जाव पब्बयाइ ३।११२ भवित्ता जाव पब्धयाहि ३।१३६ श१४ २१४ १११४ राय० सू० ७६७ ३।१३१ ११८६ ३२१२० ३१८३,८४ ३१८४ ३.१२५ ३१५७,५८ ओ० सू० ५२ १२६ ३११११ ३३१६ ओ० सू० ८१ ३११०० ३१५६ ३१५६ १११२३ ना०११५२४ ११५१ ओ० सू० ५२ ओ० सू० १४३ उवा० १।१३ ओ० सू० १५४ ओ० सू० १५४ ओ० सू० ५२ ३११०६ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०५ ना० १११।१६० ३१११२ ३३९८ २१२४ ३।१०६ ३११०६ ३।१०६ ३।१०६ ना० १४१६२८ ३१११४ भीए जाव संजायभए भीया जाव देवाणुप्पियाणं भोगभोगाइ जाब विहरामि मज्जणघरे जाव दुरुढे मुंडा जाव पन्बयाई मुंडा जाव पब्वयामि मुंडा जाव पव्वयाहि मुंडे जाव पव्वइत्तए मुच्छिया जाव अज्झोववण्णा मुच्छ्यिा जाव अभंगणं रज्ज च जाव जणवयं रज्जसिरि जाव विहामि रज्जेण वा जाव जणवएण राईमर जाव मत्थवाह' लोह जाव गहाय मुडे जाव पन्चइए लोह जाव घडावेत्ता जाब उवक्खडावेत्ता लोह जाव दिसापोक्खिय वसही जाव वद्धावेता वाणारसीए जाव पुप्फारामा य जाव रोविया विउलाई जाव विहरामि विउलाई जाव विहरित्तए संकाय जाद कट्ठमुद्दाए संजमेणं जाव विहार सण्णद्ध जाव गहियाउह. सद्द जाव विहरइ सद्धि जाव भुंजमाणी समाणी जाव पवइत्तए समाणे जाव भासमणपज्जत्तीए सीय जाव विविहा सुरं च जाव पसण्ण मोल्लेहि य जाव दोहलं हट्ठ जाव हियया हीलिज्जमाणीए जाव अभिक्खण श६६ ४।१६ ३।१०६ श१६ ४१६ ३११३६ ३।१०७,१३६ ३२ ३३११४,११५ ३।११६ १।१४ ११७१ १९६ ५२२० ३२५५ ३१५५ ३५० १।११० ३१५५ ३३१०६ ३३१३१ ११६५ श६६ १९२ ३२५० ३५० ३३५० राय० सू० ६८३ ३१४८ ३११८ ३।१३१ ३.७३ राय० सू० ६८६ राय० सू० ६६४ ओ० सू० १५ ३११३० ३।१०६ ३।१५ ना० १२१२२०६ वि० ११२१२६ श२ १११३८ ५।२० ३।१३१ ३।१०८ ३१८४ ३११२८ १३४ ११४६ ११४२, ३३१२८ ३।११८ ओ० सू० २० ३११७ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणविधि ● अव्यय, सर्वनाम का साक्ष्य स्थल का निर्देश प्राय: एक बार दिया है। धातुएं हैं। उनके रूप भी दिए गए हैं। • रूट (f) अंकित वा • शब्द के बाद साक्ष्यस्थल पण्णवणा पहला प्रमाण पद का दूसरा सूत्र का और तीस जंबुद्दीवपणती पहला प्रमाण वनखार का दूसरा सूत्र का है । चंदपण्णत्ती, सुरपण्णत्ती पहला प्रमाण पाहुड का दूसरा सूत्र का तीसरा श्लोक का परिचायक है। 1 उवंग अंक १ हिरयावलियाओ, अंक २ कप्पवडसियाओ, अंक ३ पुग्यिाओ, अंक ४ पुष्कचूलियाओ, अंक ५ वहिदसाओ का परिचायक है । दूसरा सूत्र का प्रमाण, तीसरा श्लोक का है । अध्ययन (पद, यवखार) आदि के परिवर्तन का संकेत (;) सेनिकोलन है । जहां एक सूत्र में अनेक श्लोक आ गए हैं वहां आगे के सूत्र की संख्या से पहले अध्ययन की संख्या भी दी गई है । जैसे उप्पल ( उत्पल) पा० ११४६, १२४८६ ४४ ११६२ । शब्द पहले सूत्र में आया फिर उसी सूत्र के श्लोकों में आया तो उसके दोनों प्रमाण दिए हैं, जैसे- अइकाय ( अतिकाय) प० २।४५, २४५३२ । श्लोक का परिचायक है। तीसरा श्लोक का परिचायक Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ (अ) प ११६६७ अइ (अपि) प २१६४७ अइ (अयि) उ ११२६; ५।४० अइकंत (अतिकान्त) ज २।१५ अइकाय (अतिकाय) ५ २१४५,२१४शर अइगच्छमाण (अतिगच्छत् ) ज ३।२१७ अइगय (अतिगत) ज ३८१ अइछत्त (अतिछत्र) प २।४८ अइतेया (अतितेजा) ज ७१२०१२ अइदूर (अतिदर) ज २१६०; ३।२०५,२०६; अइपडागा (अतिपताका) ज ३१७ अइमुत्तग (अतिमुक्तक) ५ ११४ अइमुत्तय (अतिमुक्तक) १ १४४०१३ अइमुत्तय (लता) (अतिमुक्तकलता) प १३६१ अइरत (अतिरात्र) सू १२॥१७११ अइरित (अतिरिक्त) उ ५६४५ अइरेक (अतिरेरु) ज २११५ अइवइत्ताण (अतिव्रज्य) प ३४११६ अइविकिट्ठ (अतिविकृष्ट) उश११० अइविगिट्ठ (अतिविकृष्ट) उ १११२६,१३३ अइसीय (अतिशीत) ज ७।११२११ अइ (अति- इ) अईइ ज ३.१५७,१८६ अईव (अतीव) ज २१८,६; ७।२१३ उ ३.४६ अउज्झ (अयोध्य) प २।३०,३१,४१ अउणतीस (एकोनत्रिंशत्) सू २१३ अउणत्तर (एकोनसप्तति) ज ६:१० अउणत्तरि (एकोनगप्तति) ज ७८२ अउणपणास (गकोनपञ्चाशत्) सू० १६७२२२ अउणाउति (एकोननवति) सू १२७ अउणागति (एकोननवति) सू १९।१४,१५११ अउणाणवइ (एकोननवति) ज ७७३ अउणापण्ण (एकोनपञ्चाशत्) ज ४।२४० सू० १०.१६३ अउणावीस (एकोनविंशति) सू २।३ अउणासीई (एकोनाशीति) ज १७११ अउणासीत (एकोनाशीति) सू श२७ अउणासीति (एकोनाशीति) सू २१२१३ अउणासीय (एकोनाशीति) ज ४।२३४; ७।१६ अउण्णापण्ण (एकोनपञ्चाशत) १ २०६४ अउय (अयुत) ज २।४; ७.१७८ अउयंग (अयुतांग) ज २४ अउल (अतुल) ज ३।६५,१५६ अओज्झ (अयोध्य) ज ३६११७, ४२१२ अंक (अंक) प १॥२०॥३, २।३०,४८,४६; १७।१२८ ज २११५, ४२१२,२५५, ५१५ अंकमय (अंकमय) ज ७।१७८ अंकमुहसं ठित (अंकमुखसंस्थित) ज ७१३१, ३३ सू ४१३,४,६,७ अंकलिवि (अंकलिपि) प १९८ अंकवडेंसय (अंकावतंसक) प २१५१,५६ अंकावई (अंकावती) ज ४२०२१२,२११; ७।१७८ अंकिय (अंकित) प २।३० अंकुर (अंकुर) ५ ३६१६४ ज २११३१,१४४ से १४६ अंकुस (अंकुश) ज २११५; ३१३; ५॥३८; ७।१७८ अंकेल्लण (दे०) ज ३१०६ अंकोल्ल (अंकोल, अंकोठ, अंकोट) प १३५॥१, ११३७१५ अंग (अंग) प १९३।१,१११०१।६,८ ज २११४; ३१६,३५,१०६, २२१,२२२ उ १११२२,१२६; २११०; १२; ३।१४, १५०,१६१,१६६; २२८,३६,४१ अंगइ (अंगजित्) उ ३११०,११,१३,१४,२१ अंगण (अंगन) १ १११२५ ज २१६६%; ५५,७ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१० अंगद ( अंगद ) प २१३०,४६ अंगपडियारिया ( अंगपरिचारिका) उ१।३६, ३७ अंगमंग ( अंगांग ) ज २।१६,११३ अंग ( अंगद ) प २।३१, ४१ ज ३३६, २११, २२२ अंगलोय ( अंगलोक ) ज ३८१ अंगा ( अंग ) उ १११२२ अंगारग (अंगारक ) प २४८ अंगुल ( अंगुष्ट ) ज ३०१०६ अंगुल ( अंगुल ) प ९ ७४,७५,८४; २२६४, २२६४/५ १२ १२,१६,२७,३१,३२,३७,३८; १५।७ से ६,२२,४० से ४२; १८।४१,४३,६५, ११७;२१।३८,४० से ४३, ४८,६३ से ७१,८४, ८६,६० से ९२; ३३/१२,१३,१६,१७; ३६।६६,७०,७२ से ७४,८१ ज १२७२।६ सू १।१४; १०/६३ से ७३; १६/२२/१७. उ ३३८३, १२०,१६१; ४।२४ अंगुलपुत्तिय ( अंगुल पृथक्त्वक ) प १९७५ अंगुलि ( अंगुलि ) प २/३०,३१,४१ ज २।१५; ३६,१८४,१८६,२०४,२२२ अंगुलिज्जग (अंगुलीयक) ज ३१६,२२२ अंगुलित ( अंगुलित ) ज ३७,६८ अंगुलिय ( अंगुलिक) ज ५।५८ अं ( कृष्) अंचेइ ज ३।६ अंचिय (अञ्चित ) ज ५।५७ अंता (कृष्ट्वा ) ज ३।६ अंज (अ) अंजेइ उ ३१११४ अंजन ( अञ्जन ) प १।२०१२ २३१; १७।१२३ ज ४१२०२५१५, २१ सू २०१२ उ ३१११४ अंजणई ( अञ्जनकी ) प १२४०१५ अंजण केसियाकुसुम ( अञ्जनकेशिकाकुसुम) प १७११२४ अंजणग ( अञ्जनक ) २ ११७, ११६,१२० अंजणगिरि ( अञ्जनगिरि) ज ३११७ अंजणगिरिकूड (अनगिरिकूट ) ज ३६१,१७७, १८३,२०१,२१४ अंजणा ( अञ्जना ) ज ४ १५५/२,२२३|१ अंजणगिरि ( अञ्जनगिरि) ज ४१२२५।१ अंजलि ( अञ्जलि ) ज २०६५ ३१५,६,८,१२, १६,२६,३६,४७,५३,५६,६२,६४,७०,७२, ७७,८१,८४,८८,६०, १००, ११४,१२६, १३३, १३८,१४२,१४५,१५१,१५७,१६५,१५१, १८६, १८६, २०४ से २०६,२०६५१५, २१,४६,५८ उ ११३६,४५, ५५,५८,८०,८३, १६,१०७,१०८, ११६,११८, १२२ : ३।१०६, १३८ : ४११५ ५/१७ २१६० ; अंजलिपुट ( अञ्जलिपुट) ज ३१८१ अंडंग ( अण्डज ) ज ५।३२ अंत ( अन्त ) प ६।११० २०११ ३६८८, ६२ ज ११२२,२७,५० २।५८, ८४,१२३,१२८,१५१,१५७ : ४११०१,१०३, १७१,१७८, २०० सू ४१४, ७, २०१२,७ उ १।४२,१४१,१४७; २।१३; ३।२१, ८६, १५२, १६५ ५ ४३ अंतकड ( अन्तकृत ) ज २२८८,८६ अंतकम् (अन्तकर्मन् ) ज ५५८ अंतकर ( अन्तकर) उ १।५४,७६ अंतकिरिया ( अन्तक्रिया ) प १।११५ २० १ १, २०।१ से ४, ६ से १३,४०, ४४, ४६,४८ अंतक्खरिया ( अन्त्याक्षरिका ) प ११६८ अंतगड ( अन्तकृत ) ज ३।२२५ अंतगमण ( अन्तगमन) उ१।४२ अंतर ( अन्तर ) प २१३०,३१,४१, ११७० ज १५१७ ३१३,३५,२२१, ४१२७,४६, १४०१२, ७१६, ६५, ८६, १६५, १७८, १८२ चं ३११ सू० ११७ १,१ १६,२०,२१,२४,२७; २१२ ६११; १८१२०; १६।२२।२८ उ १४२४, ४७, ६५, ६६, ६८, १०, १२, १०५. १०६ अंतरकंद ( अन्तरकन्द ) प ११४८१४२ अंतरगत ( अन्तर्गत ) सू ५११ ; ७/१ अंगद अंतरगत Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरणई- अंतोमुहुत अंतरण (अन्तनंदी) ज ४।२१२ ५५५ अंतरदीव ( अन्तद्वीप ) प २०२९ ६६४ अंतरबीय (अन्तपज, दीपक ) प १०५,६६ ६।७२,८१,६७, १०८ १७/१७२ २१।७२ अंतरीचय (अन्तद्वीपज, दीपक) प १८४,०६ ६/७६ १७ १६२, २१।५४ अंतरवीहिय ( अन्तर्वोधिक) ज ३१७ अंतराय ( आन्तरायिक) २२२०२३१ ८,१२,२२,२४,५६,१३३,१५४, १५६,१६३, १६६,१७५१६६,११०,२०२, २४३१; २५१ ३ २६१,७ २७१.४ अंतरा ( अन्तरापथ ) प १६।२२ अंतराय ( अन्तराय) प २४ । १५ अंतरवास (अन्तरावास) उ ११००, १२६,१३३ अंतरिम ( अन्तरित) ज ३१८३१६५२६. १५१, १६०,१५० ११३४ ३३१४,८३,१२०, १६१ ४२४ अंतरिया ( अन्तरिका ) सू १६१२२/३० अंतक्खि ( अन्तरिक्ष) ज ३११४,२६,३०,३६, ४३,४७,५१,५६,६०,६४,६८,७२, ११२,१३६, १३८, १४०, १४५ १४६, १७२३३।६६ अंतवाल ( अन्तपाल ) ज ३।२६,३१,४७, ११३ अंतिम (अन्तिक ) प ३४।११,२१ ज ३२६,८,१३ ७७,८४,६१,१०७,११३ से ११५,१२५. १३८, १५३, १६६५/२२, २३, २६ से २८.७३ १।२१,२३,३७,४१,४५,८८, ११५११७, ११६,१२१,१२६ २१०, १२ : ३।१३,१४, २६, ५०, ५५,५७,६५, ६९, ७२,७५,७६, १०३, १०४,१०६ से १०८, ११२, ११८, १३४,१३६. १३८, १३१, १४८, १५०,१६१,१६१ ४१४, १६,२०,२८ ५१२८,३२,३९,४१,४३ अंतिया (अन्तिकतम् उ ३।११० अंतेउर (अन्तःपुर ) ज २१६४ ३१२२४; ५१५, ७ उ ११६,६३,९७,६५,१०५ से १०७,११९ अंतेवासि (अन्तेवासिन् ११५२१०२.८३ चं १० सू १५ उ १२,३ ५।२०, ४०, ४१ २२७, २० से २७. २३१६१, १२६, १७७, ३३।२७ मे २१ ज १।१३,१४,३१,३२२१०४०११,४१, ५०, ११४,११७,१३१, २३४, २४० ; ५।३२; ७१३१,३३,५५, १६८१४३, ४, ६, ७ १६।२२।१५,२१, ११।२३ २०१७ अंत (असर) प २०७४, २४ २९ से ३५, ४१, ४८ १८२,१५६,११० ८११ अंतोमुहत ( अन्तर्म से) व ४२,३,४,६,८,९,११, १२,१४, १५, १७, १८, २०,२१,२३,२४,२६, २७,२६,३०,३२,३३,३५,३६,३८,३६,४१,४२, ४४,४५,४७,४६,५०,५१,५३,५४,५६ से ६७, ६६ से १६४,१६६, १६७,१६९,१७०, १७२, १७३, १७५, १७६,१७८, १७६, १८१,१८२, १-४१०५, १०७, १००, ११०,११,१२३, ११४,१६,११७,११६,२००,२०२,२०३, २०५,२०६, २०६, २०१, २११,२१२,२१४, २१५,२१७, २१८, २२०, २२१,२२३,२२४, २२६,२२७,२२६,२३०,२३२,२३३,२३५, २३६,२३८,२३९,२४१, २४२, २४४, २४५, २४७, २४०, २५०, २५१, २५२, २५४, २५६, २५७,२५१,२६०,२६२,२६३,२६५, २६६, २६८, २६६, २७१, २७२, २७४, २७५, २७७, २७८, २००,२६१,२०३२८४,२६६, २८७, २८१,२०,२१२, २४३, २१५,२१६,२६८, २११६२०,२१; १८३, ४, ६, १,१०,१२, १४ से १६,१० से २४,२६ से २८,३० से ३६,४१ से ५४,४६,५७,२६,६१,६३ से ६७, ६६ से ७४,७६ से ७६,८३,८५,६०,९१,६३, २६,१०३ से १०५,१०७, १००, ११०, ११२. ११०,११३, ११४,१११, ११७,११६, १२०; २०१६३० २३६०,६२,६५,६७, ७२,७८,७६, १२३, १४७, १५८,१६२,१६५,१६२, १७०, १६, १८४ २८४७, ५० ३६६१,७६ जं २२८४,१२३, १२८, १४८, १५१ ४ १०१ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१२ अंतोन ( अन्तर्मुहूर्तक ) प ११७१ अंतमुत्तद्धाय ( अन्तर्मुहूर्ताद्वायुष्क ) प ११७४ अंतमुत्ता ( अन्तर्मुहूर्तायुक) प १८४ अंतोहुत्तिय (आन्तर्मुहूर्तिक ) प १५/६१; २८ १४,३ : ३६।२,८४,६२ अंतोवाहिणी (अन्तर्वाहिनी) ज ४।२१२ अंदोलाव (आन्दोलय् ) अंदोलावेइ उ ११६७ अंधकार (अन्धकार) ज ३०६३, १५, १५७, १५६, १६३ सू १४५ से ८ १६५,६ अंधकारपra (अन्कारपक्ष ) सू १३/१३ १४५२, ३, ५ से ८ अंधयार ( अन्धकार ) प २१२० मे २७ ज ११२४; ३।३१,१०६ अंधयारसंठिति ( अन्धकार संस्थिति) ज ७।३३, से ३५ सू ४६,७,९ अधिया (अन्धिक! ) प ११५१।१ अंब (आम्र ) प १३५ | १; १६।५५; १७/१३२, १३३ ज ३।११६ अंबर ( अम्बष्ट ) प ११६४५१ अंबर ( अम्बर) ज ७१७८ अंबरतल ( अम्बरतल) ज ३ १४,३०,४३,५१,६० ६८, १३०,१३६,१४०,१४६, १७२ अंबसालवण ( शालवन) उ ३२६ - ६,६५ अंबाडग (आम्रातक) प १।३६।१; १६।५५; १७/१३२ अंबाराम (आम्रा राम ) उ ३।४८ से ५०, ५५ अंबिल ( अम्ल ) प ११४ से ६ ; ५।५, ७,२०५; २८/२६,३२,६६ ज २१४५ अंबिलसाय ( अम्लक ) प ११४४५२ अबिलिया (अ) ज ३१११६ अंबिलोदय ( अम्लोक ) ११०२३ अंबुभक्खि (अम्बुभक्षिन् ) ३५० अंस (अंस) उ १।१३८ अंसु (अश्रु ) ज २६०, १०३,१०६, १०८ अकंटय (अकण्टक) ज २११२ तो मुहुत्त-अकिरिय अकंत ( अकान्त ) ज २११३३ अकंततरिया ( अकान्ततरका ) प १७।१२३ से १२५, १३० से १३२ अतत्त ( अकान्तत्व ) प २८।२४ अकं तस्सर (कान्तस्वर ) ज २।१३३ अतस्तरता ( अकान्तस्वरता ) प २३|२० अकंप ( अकम्प ) ज २२६८, ३२७६.६६ से १०१ ११६ अवज्ज ( अकार्य ) ज २१३३ अकण्ण ( अकर्ण ) प ११८६ अकत्तिम ( अकृत्रिम ) ज २।१२२, १२७४ । १००, १७० अकम्पभू ( अकर्म भूमज ) प १८५, ८७ ६।७२ ८१८४, ९५,६७, १०८ २११५४,७२ अम्मभूलय ( अकर्म भूमज ) प ६७६ १७ १६२, से १६४,१७२ अम्मभूमि ( अकर्म भूमि ) १९८४ २२६ अकवपुण्य (अकृतपुण्य) उ ११६२ ३१६८, १०१ १३१ अकरंडुय (अकरण्डक) ज २।१५ अकरणया (अरणता ) उ ३।११५ अकविल ( अकपिल ) ज २११५ अक्साइ (कपायिन् ) प ३६८; १३१६; १८।६७ २८।१३८ taaree मुग्धा ( अकषायसमुद्घात) प ३६४८ अकसाथि ( अकपायिन् ) प ३६८ अकाइय ( अकायिक ) प ३१५०; १८२६ अकामय (अकामक) उ३।१०६ अकामिय (अकामित) उ ११५२,७७ अकाल ( अकाल ) ज ३११०४, १०५ अकालता (अकाल तालु) जं ३।१०६ अकालपरिहीण (अपरिहीन ) जं ५१२२,२६ से २८ अकित्तिम (अकृत्रिम ) जं ११२१, २६, ४६; २५७, १४७,१५०,१५६ अकिरिय (अक्रिय ) प १७ २५ २२७, ८,२६,३० Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकुडिल-अम्गमहिसी ८१३ ३२ से ३४,३६,३७,४५ अक्खीण (अक्षीण) प ३६.८२ अकुडिल (अकुटिल) ज २०१५ अक्खोड (अक्षोट) प १६:५५ अकुश्वमाण (अकुर्वत्) मू २०१७ अक्खोस्य (अक्षोटक) प १७११३२ अकेसर (अकेसर) प २४८।४६ अक्खोभ (अक्षोभ) ज ३१३ अकोह (अक्रोध) ज २१६ अगंतूण (अगत्वा) प ३६।८३१२ अक्क (अर्क) प ११३७।३ अगंथ (अग्रन्थ) ज २१७० अक्कबोंदी (दे०) प ११४०१५ अगक्छमाण (अगच्छत्) सू २।२ V अक्कम (आ- अम्) अक्कमइ उ १।११६ अग (दे०) ५२१४,१३.१६ से १६,२८,१११७७ अक्कमाहि उ ११११५ ज २३१ अक्कमित्ता (आरम्य) उ ११११५ अगणि (अग्नि) प ११४८१५६; २०२० से २५ अक्किज्ज (अक्रेय) ज ३।१६७११३ अगणिकाय (अग्निकाय) ज २११०५ से १०८ अक्किट्ठ (अक्लिष्ट) ज २०४६ अगस्थि (अगस्ति) प १३८१२ ज २११० सू अक्कुस्समाण (आक्रोशत्) उ ३:१३० २०१८,२०८।४ अक्कोप्प (अकोप्य) ज २।१५ अगलहुय (अगुरुलघुक) प १५१५७ ज २।५१,५४, अक्कोसमाण (आक्रोशत्) उ ३१३० १२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४९,१५४,१६०, अवख (अक्ष) ज २६,१३४ ।। अक्खय (अक्षय) ज ११११,४७ ; ३।१६७,२२६; अगस्यलहुयपज्जव (अगुरुलघुकपर्यव) ज २११४६, ४१२२,५४,६४,१०२,१५६; २१ ७२१० उ ३४३,४४ अगरुयलहुयपरिणाम (अगुरुलघुकपरिणाम) अक्खर (अक्षर) ज २१६,१३४ प १३१२१,३० अक्खरपुठिया (अक्षरपुष्टिका, "पृष्टिका) १९८ " _ अगार (अगार) प २०११७,१८ ज २१६५,६७,८५, अक्खाइया (आख्यायिका) प १११३४११ ८७ उ ३।१३,१०६ से १०८, ११२,११८, अक्खाइयाणिस्सिया (आख्याधिकानिश्रिता) १३६,१३८,१३६,४१४,१६, ५॥३२,४३ प११३४ अगारवास (अगारवास) ज २१८७ ; ३।२२५ अक्खात (आख्यात) प ११४६,६६,७५,८१ उ ३।११८ २।२१ से २६,३०,३२ से ३६,४१,४३,४६, अगुरु (अगुरु) ज २११०६,११० ४० से ५२,५५ से ५७.६० ये ६२ सू अगरलघुअणाम (अगुरुलघुक नामन्) १ २३५१ ३२१,१३३२ अगुरुलहुणाम (अगुरु लघुनामन् ) प २३।३८,११ अक्खाय (आख्यात) प ११५०,५१,६०,७६; अग्ग (अग्र) प २।३१ ज ११३७ , २०१२०,३३१२, २२०,३१,५०,५६ ज , १२६; ४१२१; १८,२२,३१,७६,८८,१०७,१२५ से १२८, ६.१०,११,१४,१५,१८ से २२,२६४,६३ १५१,१५२,१५६,१८० ८७ सू१०।१२७ अग्गंगुलिया (अग्रांगुलिका) उ ११५६,६१ से ६३ अक्खिव (आ-+-क्षिप्) अक्खिक्इ उ १५१०५ ८४,८६,८७ अक्खिविउकाम (आक्षेप्तुकाम) उ १६१०५ अग्गभाव (अग्रभाव) ज ७।१३२११. सू १०६४ १. टीका में अक्षस्प्टिका है। अग्गमहिसी (अ महिपी) प २।३० से ३३,३५, Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१४ अग्गर-अच्चुय ४१, ४३,४८ से ५२ ज ११४५; २१६०, अचरित्ति (अचरित्रिन्) प १३३१४,१८,१६ ४.१५१; ५:१६,३६,४१,४४,५०,५२,५३; अचरिम (अचरम) प १११०३,१०६,१०७ १०६ ७।१६८१२,१८३,१८६ सू १८२१,२३,२४, ११०,११३,११४,११६,११६,१२०,१२२, २०१६ १२३,३।१२३,१०।२ से १३,२१,२६ से ५३; अग्गर (दे०) प ११८६ १८११२७ अग्गल (अर्गल) सू २०१८ अचरिमंत (अचरमान्त) प १०।२ से ५,२१,२६,से अग्गसाला अग्रशाला) ज २।१०।४।१६६ अग्गसिहर (अग्रशिखर) ज ११३७ अचल (अचल) ज ३१६ से १०१,५१२१ अग्गहत्य (अग्रहस्त) ज २०१५ अचवल (अचपल) ज ५१५,७ अग्गाणीय (अग्रणीक) ज ३३१०७ से १०६ अचित्त (अचित्त) प ६१३ से १७,१६ ज २१६६ अन्गि (अग्नि) प २।३०।१,२।४०।२,६,११; अचित्तजोणीय (अचित्तयोनिक) प ६।१६ ३६।६४ ज २१६ ; ३।३,६५,११५,१२४,१२५ अचित्ताहार (अचित्ताहार) १२८।१,२ १५६; ५॥१६,५२,७१३०,१८६।३ उ ३४८, अचिरयत्त विवाह (अचिरवृत्तविवाह) सू २०१७ ५०,५१,६४ अचेलय (अचेलक) ज २०६६ अग्गिकुमार (अग्निकुमार) प १४१३१; १३ अचोक्ख (दे०) ज ५१५ ६.१८ ज २११०५,१०६ अच्च (अर्च ) अच्चे इ उ ५।अच्चेति ज० २११२० अग्मिदेवया (अग्निदेवता) सू १०१८३ अच्चंत (अत्यन्त) उ ११७२,७३,८७,८८,६२, अग्गिमाणव (अग्लिमानव) प २१४०१७ ३।४८,५०,५५ अग्गिमेह (अग्निमेघ) ज २।१३१ अञ्चणिज्ज (अर्चनीय) ज ७११८५ सू० १८१२३ अग्गिल (अग्निल) सू २०१८।५ अच्चणिया (अनिका) ज ४११४०११ अग्गिवेस (अग्निवेश्मन्) ज ७१११७,१२२१३, अच्चसण (अत्यशन) ज ७.११७१२ सू १०।८६४२ १३२।३ सू १०८४।३,१०।८६।३ अच्चासण्ण (अत्यामन्त्र) ज २१६०३।२०५,२०६, अग्गिसीह (अग्निसिंह) प २१४०१६ ५५८ अग्गिहोत्त (अग्निहोत्र) उ ३।५५,६३,७०,७३ अच्चासन्न (अत्यासन्न) ज ११६ अग्गिहोम (अग्निहोम) ज ५११६ अग्धा (आना )-अग्याति प १५।३८,४२ अच्चि (अचिस्) प १।२६२१३०,३१,४१,४६ अच्चिणेत्ता (अर्चयित्वा) ज ३८८ अग्घाडग (दे० अपामार्ग) प १।३७१४ अच्चिमालि (अचिर्मालिन् ) प २१५०,५४,५८ से६० अचंचल (अचञ्चल) ज ३।१०६ अचंडपाडिय (अचण्डपातित) ज ३।१०६ ज ७१८३ सू १८।२१,२४,२०१६ अच्चिसहस्तमालणीय (अचिस्सहस्रमालनीक) अचक्खदसण (अचक्षुर्दशन) प ५१५,७,१०,१२, ज४।२७,५२८ १४,१६,१८,२०,२१,४५,५३,५६,५६,६३, अच्च इंद (अच्युतेन्द्र) ज ५१५८ ६८,७१,७४,७८,६३,६७,२६।३,७.१०, १३,१४,१७,१६ से २१ अच्चुण्ह (अत्युषण) ज ७११२।१ सू१०।१२६।१ अचक्खुदंसणावरण (अचक्षुदर्शनावरण) प २३।१४ । अच्चुत (अच्युत) प १४१३५२१४६,५६,६०,३११८३ अचक्खुदंसमि (अचक्षदर्श निन् ) प ३।१०४; अच्चुतव.सय (अच्युतावतंसक) प २६५६ ५१४७,६५,८०,६६,११७,१८१८६ अच्चुय (अच्युत) प २१४६,५६,५६२,६३,४१२६४ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्चुयग-अजीवपज्जव ८१५ से २६६६१३८,५६,६६,८५,८६,१८.७।१६; अजसोकित्तिणाम (अयश:कीर्तिनामन ) प २३१३८, १५८८,२०।६१,२११६१,३०,६१,६२२८८६; १२८ ३०।२६:३३।१६,२४,३४११६,१८ ज १९४; अजहण्ण (अजघन्य) प २३.१६१ से १६३ ज २११५ ५१४६,५४,५६,५८,५६ उ0000४१ अजहणशमणुक्कोस (अजघन्यानुत्कर्ष)प ४।२६७, अच्चुयग (अच्युतक) ज ५१४६ २६६; १।४२,४६,६४,७६,११२,११६,२४४; अच्चेत्ता (अर्चयित्वा) ज २।१२० ७।३०,१८:१०२,२३।६३;२८।६७ अच्छ (रुक्ष) प ११६६।११।२१ ज २॥३६,१३६ अजहण्णमणुक्कोसगुण (अजघन्यानुत्कर्पगुण) अच्छ (अच्छ) प १९३।४:२१३०,३१,४१,८६,५० प ५।३८,६०,७५,१०,१०८,१२१,१६८,२०१, ५२,५८,५६,९३,६४ ज से १०,०३,३१, २०४,२०८,२१२,२१५,२१६,२२२,२२५,२४३ ३५,५१:३।१२,८८,१०६,१६४,४११,३,७.१२, अजहष्णमणुक्कोसद्वितिय (अजघन्यानुत्कपस्थितिक) १५,२४,२५,२८ से ३१, ३ से ४१,४५,५७, प १।३५,५७,७२,८७,१०५,१७५,१७८,१८२, ६२,६४,६६ से १८,७४ से ३६,८६,८८,६१ १८५,१८८,२४० से १३,१०३,११०,११४,५१८,१४३,१५६ अजहण्णमणुक्कोसपदेसिय (अजघन्यानुत्कपंप्रदेशिक) १७८,२०३,२०६,१३,१८,२४२,२४५, प ५१-३१,२३२ २५१,२५२,२६०१:५१५८,७५५ म् ॥3 अजहण्णमणुक कोसमति (अजघन्यानुत्क मति) १६२३ प ५१६४ अिच्छ (आस् ) अच्छेज्ज प २०६४।१६ अजहण्णमणुक्कोसोगाणग (अजघन्यानुत्कर्ष वगाहअच्छत्तय (अछत्रक) उ ५।४३ नक) प ५१७१,१७२,२३६,२३७ अच्छरगण (अप्सरोगण) प १३०,३१,४१ ज १।३१ " अजहण्णमणुक्कोसोगाहणय (अजघन्यानुत्कर्षावगा हनक) प ५१५०,५४,६६,८४,१०२,१५५,१५८ अच्छरसातंडुल (अप्सन सतण्डुल') ज ३११२,८८; ५।५८ १६०,१६४,१६७,१७२,२३७ अच्छरा (दे०) प ३६१८१ अजहष्णुक्कोस (अजघन्योत्कर्ष) प ४६४,६८ अच्छरा (अप्सरम्) प ३४।१६ से २४ उ ५१५ अजहण्णुक्कोसोगाहणग (अजघन्योत्कर्षावगाह्नक) अच्छि (अक्षि) प ११४१४७,१२२५ च १३१ ज प ५१३१,३२ अजहण्णकोसोगाहणय (अजघन्योत्कपीवगाहनक) २१४३,३११७८,७१७८ उ० ३.११४ अच्छिण्ण (अच्छिन्न) प १५१४० से ४२ प ५।३२,१६१ अच्छिद्द (अछिद्र) ज २११५ अजाइय (अयाचित) उ० ३।३८ अच्छिरोड (अक्षिरोट) प ११५१ अजावणिज्ज (अयापनीय) ज२११३१ अच्छिवेह (अक्षिवेध) प ११५१ अजिण (अजिन) ज २७८ अच्छी (ऋक्षी) प १११२३ अजिम्ह (अजिह्म) ज २०१५ अच्छेरग (आश्चर्य) ज २११५ अजिय (अजित ) ज० ३।१८५,२०६ अजीरग (अजीरक) ज २४३ अजर (अजर) प २१६४।२१ अजीव (अजीव) प १३१०१।२,१५१५७ ज २१७१ १ अच्छो 'रसो येषां ते अच्छरमाः प्रत्यासन्नवस्तु २०११उ ३।१४४५॥३४ प्रतिबिम्बाधारभूताइवातिनिर्मला इतिभावः अजीवपज्जव (अजीवपर्यव) T५१,१२३से १२५, टीका पत्र १६२ २४४ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१६ १३०१,२१,११ अजीवपण्णवणा (अजीवाना) ११ से ४१ अजीव परिणाम (अजीपर) अजीवमिस्सिया (अजीवमिश्रिता ) प ११३६ अजोगवा (अयोगता ) प ३६४१२ अजोगि (अयोगिन् ) प ३९६ १३१६, १००५८ २८११३८ अजोगकेवली (अयोगिकेवलिन् ) प ११२०८, ११०. १२१,१२३ अजोगिभवत्थकेवलि ( अयोगिभवस्थ केवलिन् ) १०१०१ १०३ अजोणि (अयोनि ) प ६१६ अजोणिय ( अयोनिक) प ६।१२,१६,२५ अज्ज ( अद्य) ज २११४६ सू १०।१६२ से १६६ उ ११४२ अन्न (आ) ज ३।१२४७२१४ अजय (अजंक) ज ५४७२,७३ अग (आक) उ १।१०५ से १०७.११९ अज्जम ( अर्थमन्) ज ७२१२०, १८६४४ अज्जमदेवता ( अर्थमदेवता ) सू १०/०३ अज्जय (अर्जक ) प ११४४१३ अज्जल ( आयल ) प १1८8 अजय ( आजंव) ज २०७१ अज्जसम्म (आर्यसुधर्मन्) १२,३ अज्जा (आर्या ) उ ३।२६ से १०४,१०६ से १०८, १११ से १२०, १३२ से १३२,१४१.१४२ १४३, १४५, १४६, १४० से १५०४।२१ से २४ अजय (अति) ३।१७५ अज्जिया (आर्यिका ) ज २२७५,८२३।१२ अण (अर्जुन) प ११३६३४२०१३०११० अत्ययण (अध्यात्मवचन) प ११००६ अज्झत्थिय (आध्यात्मिक ) ज ३।२६,३६,४७,५६, १२२,१२३, १३३,१४५ १८८५१२२ १।१५ १७,५१,५४,६५,७६,७६, ६९, १०५;३:२६ ४८,५०,५५, १८, १०६.११६,१३१:५१३६,२७ अायण (अध्ययन) प २०१३ ज ७११४ चं ५२ अजीवपण्णवण अ गु १२२२१०७८ ११६ से ८ १४२.१४३, १४८ २०१ ३,१४,१५,२१,३२,३,११,२०, २२,२३,६३,८०,१५३,१५४.१६६.१६७,१७०, ४०१ से ३,२७:५४२,३,४४,४५ अमवसरण (अध्यवसान) १ ३४।१११,३४०१३ ज ३।२२३ अमावस (अधि आ वम्) - अभावग ज २१६४ अमावसमाण (अध्यावत्) ज २१६४ अवसा (अध्ययन २०६४ अशोचवण (पपत्र) अनुसिर (अशुषिर ) ज ३४३ अट्ट (आ) उ ११५२,७७ अट्टर (दे० ) १० ११३७/३ अट्टज्झाण (आर्तध्यान ) ज ३।१०५ उ १ । १५;३६८ अट्टालग (अट्टासक) ज २०२० अट्टालय ( अट्टालक ) प २०३०,३१,४१ ३११४.११५.११९ अट्ठ (अष्टन् ) प ११५० ज १८ ३३२ अट्ठ (अर्थ) प ५२३,४,७,१०,१२,१४,१६,१५,२०, २४,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६,५३,५६, ५.६,६३,९८,७१,७४,७८,०३,०६,८१,१२,१७, १०१, १०४, १०७,१११, ११५, ११६, १२७, १२९, १३१.१३४,१३६,१३८, १४०, १४३, १४५, १४७, १५०,१५४, १५७,१६२, १६६,१६२,१७२, १७४, १७७,१०१, १०४,१८७, १२०, १२३, १६७,२००, २०३,२०७,२११,२१४,२१८,२२१.२२४, २२०,२३०,२३२,२३४, २३७,२३६,२४२ ११०३,११ से २०, ३९, ४१: १५०४४, ४०, ४९ १७।१ से ६ से १७,२०,२२,२४,२५,२७, १०७, १०, १११, ११६,११,१२३ से १२८, १३० से १३२,१३५, १५०,१५२, १५५, २०१२ ३,१४ से १७, १० से २५, २० से ३०,३३,३४, ३१ से ४८,५० से ५२,५५,५६,२२६,७१, ८०,८२, १२, १४, १५, २६१४, २५,२७,२६,३८, ४०,५०,७३ से ७५,६७,२६१७,१२ से २१: ३०११६,१६,२१,२३,२५,१६,२०:३४.१२. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठअसीय-अट्ठहत्तर ८१७ १६,१८,३५११८,२०,२३; ३६१८०,८१,८३, ८८६२,६४, ज १११,४५,४७,५१; २११७,१८,२१ से २३,२५,२६,३० से ३३, ३८ से ४०,४२,४३,५२,५६,१५६.१६१,३।१ ६,६१,६८,१०६.१०७,११३,११४,१८६, १६६,२०९,२२६,४।१६,२२,३४,३७,४१,५१, ५३,५४,६०,६१,६४,७०,७६,७६,८१,८५, ८६,८६,६०,६३,६७,१०२,१०७,१०८,११०, ११३,१४१,१४२,१४६,१५१,१५६,१६१,१६६, १७७,१८०,१८४,१८६,१८८,१६३,१६६, १६६,२००,२०३,२०५,२०६,२०६ से २११,२६१,२६४,२६६,२७०,२७२,२७३, २७६,२७७,२७,७५१६६,१८४,१८५,२०६, २१३,२१४ सू १६।२,४,६,१८१२२ उ ११४, ८,१७,२३,२४,३७ से ४०,४२,४३,५५,५७, ५८,६७,८०,८२,८३,८८,६६,१००,१०२, १०४,१०७,११५,११७,११६,१२०,१२२, १२७.१४२,१४३,२।१,३,१४,१५,२१,३३१, ३,१३,१६,२०,२२,२३,२६,३८,४०,४२,४४, ५६,६१,७७,८७,८८,१०२,१०७,११६ से ११८,१२३,१४०,१४७,१५३,१५४,१६०, १६६,१६७,१७०,४।१,११,२७,५१,३,१५, ३८,४३,४४ अट्ठअसीय (अष्टाशीति) सू १८।१ अट्ठक (अप्टक) सू १३०५,६ अट्ठकणिय (अप्टकणिक) ज ३४६४,१३५,१५८ अद्वछत्ताल (अष्टचत्वारिंशत् ) सू १०।१४६ अट्ठजोयणिय (अप्टयोज निक) प २१६४ अट्ठतरि (अप्टसप्तति) सू ४।५ अट्ठतीस (अष्टत्रिशन् ) प २।३८ ज ११२० सू. १०११५२ उ ३.१२ अट्ठपंचासत (अप्टपञ्चाशीति) सू १२३ अठ्ठपदेसिय (अष्टप्रदेशिक) प १०।१३,१४ अपिणिठ्ठिया (अष्टपिटनिष्ठिता) ५१७११३४ अट्ठभाग (अष्टभाग) प ४११७१,१७३,१७४, १७६,२०१,२०३,२०४,२०६, ज २।५९; ४१२१५,७।१६५,१६६ सू १८१२५,२६,३४,३६ अट्ठम (अष्टम) प ३६।८५,८७ ज २१७१,४।२११ ५।१०।७१६७ मू १०७७:१२।१७,१३१८ उ २०१०,२२, ३११४,८३.१५०,१६१,४१२४; ५।२८,३६,४३ अट्ठमंगलग (अष्टमंगलक) ज ३।१७८,२०२, २१७,४।२८,११५,१३८,१५८,५१४३,५८ अट्ठमंगलय (अप्टमंगलक) ज ३१२,८८,४।१२५ अट्ठमभत्त (अष्टमभक्त) प २८१५० ज ३२०, २१,२८,३३,३४,४१,४६,५४,५५,५८,६३, ६४,६६,७१,७२,७४,८४,८५,१११,११२, ११३,१३१, १३७ से १३६,१४३,१४४, १४७,१६६,१६८,१८२,१८३,१८७,१६१, २१८ अट्ठमभत्तिय (अष्टमभक्तिक) ज ३।५४,६३,७१, १११,११३,१३७,१४३,१६७,१६० अट्ठमी (अष्टमी) ज ७।१२५ अट्ठया (अर्थ) सू १७११;२०११ उ ३१४४ अट्ठविह (अष्टविध) प ११४,१३२,१३१२६; २११५५:२२०२१ से २३,२८,८३,८४,८६,८७ १०:२३।१५,१६,२१,२२,३०,३१,५०,५८%; २४।२ से ८,१० से १३,२५।४.५:२६१२ से ६, ८ से १०,२७१२,३; २६।२ सू ६३५ अट्ठवीस (अष्टविंशति) प २१५६।१ अठ्ठसइय (अष्टशतिक) ज २१६४ अठ्ठसठ (अष्टपप्टि) ज ७३१ सू ४।४ अट्ठसठ्ठि (अप्टषष्टि) ज ६।१५ अट्ठसमइय (अप्टसामयिक) प ३६१३,८५ अठ्ठसयमंगुलमायत (अष्टशताङ्गुलायत) ज ३।१०६ अट्ठसुवण्ण (अप्टसुवर्ण) ज ३।६५,१५६ अट्ठसोवपिणय (अप्टगौवणिक) ज ३१६४,१५८ अट्ठहत्तर (अष्टसप्तति) प २।२१ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१८ अदृहत्तरि-अणंत अठहत्तरि (अष्टसप्तति) ज ७३२,३४ अड (दे०) प ११७६ अट्ठा (अष्टा) ज २१६५ अडड (अटट) ज २१४ अट्ठाणउइ (अष्टनवति) ज ७६८ अडडंग (अटटाङ्ग) ज २१४ अट्ठानउति (अष्टनवति) सू १०११६५ अडतालीस (अष्टचत्वारिंशत् ) सू ११२३ अट्ठाणउय (अप्टनवति) सू १०११७३ अडमाण (अटत् ) उ ३।१००,१३३ अट्ठार (अष्टादशन) प १०।१४।४ से ६ ज ४।६२ अडयाल (दे०) ५२।३० अटठारस (अष्टादशन् ) प २१२४ जं ११४८ स अडयाल (अष्टचत्वारिंशत् ) ज ११२० सू ११२४ १११३ उ १५१०४ अडयालीस (अप्टचत्वारिंशत् ) ज २१६ सू ११२४ अडवीबहुल (अटवीबहुल) ज १११८ अट्ठारसवंक (अष्टादशवक्र) उश६६,१०२ से अडसदिछ (अष्टषष्टि) सू १५।२ ११७,११६,१२७,१२८ अडिल (अटिल) ११७८ अठारसविह (अष्टादशविध) प १६८ अड्ढ (आढ्य) ज ३।१०३ उ १६१४१:३।१०,२१ अट्ठावण्ण (अष्टपञ्चाशत) ज ४११४२ २८,६६,१५८,४७ अट्ठावय (अष्टापद) ज २॥१५,८८,६०,३१२२४ अठ्ठावीस (अष्टाविशति) प २१२३ ज ११७ ११४ अड्ढाइज्ज (अर्धतृतीय) प ११३४,८४,२७,२६; १८१४५;२११६६,६७,३३१५,६ ज ११३८,४३; अट्ठवीसइभाग (अष्टाविंशतिभाग) सू १०११४२ ४।१०,१२,४३,४५,५७,७२,७८,११०,१४७, अट्ठावीसइविह (अप्टविशतिविध) ज ७।११३ सू १८३,२१५,२२१,२४५,२४८,५१५.२ सू ११२३ १०।१३० १८१ अठ्ठावीसतिभाग (अष्टविंशतिभाग) प २३११०२ अणंगसेणा (अननसेना) उ ५।१०,१७ से १०४,१५२ मू १२१३० अणंत (अनन्त) ११५१३,४८,११४८७,८, १० से अठावीसतिविह (अष्टाविंशतिविध) प ११८६; १६,३० से ३३,३८ से ४२,५०,५२,५७,५८, ६०,२२६४।१०,११,१३,१५,१६:५२ से ७, अठ्ठावीसविमाणसयसहस्साहिवइ (अष्टाविंशति ६ से २०,२३,२४,२७ से ३४,३६,३७,४०, विमानशतसहस्राधिपति) ज २६१ ४१,४४,४५,४८,४६,५२,५३,५५,५६,५८,५६, अटासोइ (अष्टाशीति) सू २०१८16 ६२,६३,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७७,८२,८३ अट्ठासोति (अष्टाशीति) सू १८१४,२०१८ ८५,८८,६२,६६,१००,१०१,१०३,१०६,११० अट्ठासीय (अप्टाशीति) ज ११२३ सू १०११४१ ११४,११८,११६,१२६ से १३०,१३३,१३५, अठ्ठाहिय (अष्टाहिक) ज २१११७ से १२०७३।१२ १३७,१३६,१४२,१४४,१४६,१४६ से १५४ से १४,२८,३०,४१,४२,४३,४६ से ५१,५८ से ६०, १५६,१६२,१६५,१६८,१७१,१७३,१७६, ६६ से६८,७४ से ७६,१३६,१३६,१४७ १८०,१८३,१८६,१८६,१६२,१९६,१६६,२०२ से १५१,१६८ से १७०, ५७४ २०६:२१०,२१३,२१७,२२०,२२३,२२७, अछि (अर्थिन् ) ५२८.११,२८१३,२५,२८,३७, २२६,२३१,२३३,२३८,२४१,६४६३,१०।१६, ४६, ज ३।१०६ १८ से २०,१२१७ से ११,२०१५।१४,१५, अदिठकच्छभ (अस्थिकच्छप) प १४५७ २७,३२,५७,८३,८४,८७,८६ से १६, १०३, अट्ठिय (अस्थित) प १११८० से ८३ १०४,१०६,११२,११५,११८,११६,१२१, अठिय (अस्थित) प१०४१ १ अडयाल शब्दो देशीवचनत्वात् प्रशंसायाची , રા: Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंतक-अणघ १२२,१२६,१२६,१३०,१३५ से १३७, १३६ से १४२,१६:३७,१७११४२,१८।३,१४, २७,४५,५६,६४,७७,८३,६०,१०८:३६५८, १२,१४,१६,१८ से २६ ३२ से ३४,४४ से ४७,८३१२ ज २१६,५१,५४,७१,८५,१२१ १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, १६३;३।२२३:५।२१,५८ अणंतक (अनन्तक) ज ३१२११ अणंतखुत्तो (अनन्तकृत्वस्) ज ७१२१२ अणंतगण (अनन्तगुण) प २०६४1१५,३।३८ स ४२ ४६ से ५२,६० से ६३, ७१ से १४,८४ से ८७,६५ से १०२,१०५ से ११५,११८,१२२, से १२४,१७५,१७७ से १७६,१८२,१८३; ५१५,१२६,१५१,१५२,६।१२,१६,२५,१०१४, ५,२९,३०,१११५४,५६,५८,६०,६१,७२,७८, १०।१२।७,१०,२०,१५:१३,१६,२६,२८,३१, ३३,१७१५६,५६,६६,१४४,१४६,२१।१०४; २८1७,१०,११,४१,४४,५३,५६,५७,७०; ३६।३५,४८ ज २१५१,५४,१४६,१५४,१६०, १६३ सू २०१७ अणंतनाणि (अनन्तज्ञानिन् ) ज ६४।३ अणंतपएसिय (अनन्तप्रदेशिक) प ५११३७,१३८, १६८,१६६,१७१,१७२,१८७,२०२,२०३, २०६,२०७,२२४;१०११४,१७,२०,२४,२६, ३०,१११४६;१५।११,२४,१६।४३ । अणंतपदेसिय (अनन्तप्रदेशिक) प ३११७६; ५।१२७,१७२,१८६,२०७,२२३,२२४१०१७, २५,१६३३६,१७।१४०:२८१२,५१,३०॥२६, १७ से २५ २७,२६,३२,३४,३८ से ४०,४५ ५२,३४।१।१३४।१ से ३; ३६३६२ ज ३।१७८ २११:४।३६,७२,७८,६५,१०३,१४३,१७८, २००,२०२,२१२,५४४३,७।६,१०,१२,१३,१५ १६,१८ से ३० ४२,५०,६८,६६,७१,७२,७४ ७५,७७,७८,८०,८३,८४, सू१।१४,१६,१७, २१,२४,२७,२।२,३;६।१८।१६।१:१३।१४; १६।२२।२५ उ ११४१:३१६२,१२५,४।२६, २८,३०,४३ अणंतरपच्छाकड (अनन्तरपश्चात्कृत) सू८०१, ११२ से ६ अणंतरपुरक्खड (अनन्तरपुरस्कृत) सू८।१; १११२ से ६ अणंतरसिद्ध (अनन्तरसिद्ध) प १११,१२, १६३५,३६ अणंतरोवगाढ (अनन्तरावगाढ) प १११६३,६४, २८।१३,१४,५६,६० अणंतरोववण्णग (अनन्तरोपपन्नक) प १५१४६ ३४.१२ अणंतसमयसिद्ध (अनन्तसमयसिद्ध) पश१३ अणंताणुबंधि (अनन्तानुबन्धिन् ) प १४।७; १८।१; २३।३५ अणंसुपाति (अनथुपातिन् ) ज ३१०६ अणगार (अनगार) ५ १५.११,१५१४३; ३६।७६ ज १३५; १६५,६७,८३,८५,८७, ८८,६५,९६,१०० से १०२,१०४,११४,चं १० सू१।५ उ १।२,३२६ से १२,३११३, १४,१६१,५।२१,२२,२७,२८,३२,३८ से ४१ २८ ४३ अणगारचियगा (अनगारचितका) जं २।१०५ से अणंतभाग (अनन्तभाग) प ५१५,१२६,१२१७,१०, २०:१५।५७२८।२२,३४,३६,६८ अणंतमिस्सिया (अनन्तमिश्रिता) प १११३६ अणंतय (अनन्तक) प १२४८।५२ अणंतर (अनन्तर) प २१६४:६१९६,१०१,१०३, १०५,११०,१११६६।१,२०११।१:२०१६ से १५ अणगारिया (अनगारित!) प २०११७,१८ उ ३।१३,१०६ से १०८,११२,११८,१३६, १३८,१३६४१४,१९,५३२,४३ अपघ (दे०अक्षत) ज० ३८१ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२० अणगघाइज्जमाण-अगाहारग अणागार (अनाकार) प २१६४।१२।२६।११; ३०१२६ से २८ अणागारपस्सि (अनाकरदर्शिन् ) प ३०।१५ से१८ २०,२२,२३ अणागारपासणता (अनाकार दर्शन, पश्यत्ता) प३०१७ अणागारपासणया (अनाकारदर्शन, पश्यत्ता) ५३०११,३,५,७,१२,१३ अणागारोवउत्त (अनाकारोपयुक्त) प ३३१०६, १७४; १३।१४; १८१६३, २६१६ से २१ अणागारोवओग (अनाकारोपयोग) १ १३१८,२६११ ३,५,७,८,१०,१३,१४ अणाघाइज्जमाण (अनाघ्रायमाण) प २८१४४,७० अणाढाइज्जमाण (अनाद्रियमाण) उ ३१६२ अणाढायमाण (अनाद्रियमाण) उ ३.५६,६१,७७, अणग्घाइज्जमाण (अनाघ्रायमाण) प २८॥४३, ४४,६६,७० अणग्घिय (अनधित) ज ३।६२,११६ अणतिवर (अनतिवर) ज ३.११६ अणदभवाह (अदभ्रवाह) ज ३११०६ अणभिम्गहिय (अनभिग हीत) प ११०१११ अणभिग्गहिया (अनभिगहीता) प ११३७।२ अणरिह (अनह) उ १४०,४३ अणव (ऋणवत्) ज ७।१२२।३ सू१०८४१३ अणवकंखमाण (अनवकाङ्क्षत् ) ज ३।२२४ उ० २।११ अणवगल्ल (अनवकल्प) ज २।४।१ अणवति (अनवस्थित) सू ६।१०८११०; १३।१७,१६३२२।१०,२७ अणवठ्यि (अनवस्थित) प ३३.३५,३६ ज ७१३१,३३ सू ४३ से ७ अणवष्णिद (अणपन्निकेंद्र) प २१४६ अणवणिय (अणपलिक) प २१४१,४६ अणवण्णियकुमारराय (अणपन्निककुमारराज) प २०४६ अणवन्निय (अणपन्त्रिक) १२१४६,४७११ अणवरय (अनवरत) ज २१६४; ३।१८५,२०६ अणसम (अनशन) उस१२,३३१४,८३,१२०, १५०,१६१,५२८,३६,४१,४३ अणस्साइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प २८१४३,४४ ६६,७० अणह (अनघ) सू२०१७ अणह (दे० अक्षत) ज ३१८१ अणाईय (अनादिक) प १८११३,१०५ अणाएज्जणाम (अनादेयनामन्) प २३५१२६ अणागतद्धा (अनागताध्वन्) २०६४,३६।६३ अणागय (अनागत)ज १६०, ३१२६,३६,४७, ५६,१३३,१३८,१४५; ५॥३,२२, ७।३६,५२ अणागयद्धा (अनागताध्वन ) प ३६।६४ अणागयवयण (अनागतवचन) प १११८६ अणाढिय (अनादत) ज ४।१५०,१५६,१६०; ७.२१३ उ ३१२,१७१ अणाणत्त (अनानात्व) प २१३,६,६,१२,१५ अणाणुगामिय (अनानुगामिक) प ३३१३५ अणाणुयुव्य (अनानुपूर्व्य) ज ७४७ अणाणपुल्वी (अनानुपूर्वी) प ११४६८,२८1१८, ६४ अणादि (अनादि) सू११६,१२१ अणादीय (अनादिक) प १८।२५,५५,५६,६४,६८ ७७,८३,८६,६०,१११,१२२,१२३,१२६, १२७ अणादेज्ज (अनादेय) ज २११३३ अणादेज्जणाम (अनादेयनामन्) प २३३३८ अणाभोगणिवत्तिय (अनाभोगनिर्वतित) ५१४।९% २८१४,५०, ३४१५ अणारिय (अनार्य) ज २१४३ अणालोइय (अनालोचित) उ ३१८३१२०, ४१२४ अणाबुटिठबहुल (अनावृष्टिबहुल) ज १२१८ अणासाइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) ५२८१४०, अणाहारग (अनाहारक) ५३।१०७, २८।१०८ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणाहारय-अणुत्तर ५२१ से ११०,११२,११४ से ११६,११५११६, १२१,१२३ मे १२५,१३०,१३१,१३६ से १३६,१४१,१४२ अणाहारय (अनाहारक) प १८९७ से १०३; २८।१०६ से १०८,१११,११३,११७,११६, १२०,१२२,१२५,१२७ से १२६,१३२,१४३ अणिद (अनिन्द्र) प १६०,६३ ।। अणिदिय (अनिन्द्रिय) प ३।४०; १३१६; १८११७ अणिदिया (अनिन्दिता) ज ५११ अणि क्खित्त (अनिक्षिप्त) उ० ३५० अणिगण (अनग्न) ज २०१३ अणिच्चजागरिया (अनित्यजागरिका) उ० ३१५५ अणिच्छियत्त (अनिष्टत्व) प २८।२४ अणिज्जिण्ण (अनिर्जीर्ण) प ३६८२ अणिट्ठ (अनिष्ट) प २३।२० ज २११३३ अणितरिया (अनिष्टतरका) ११७४१२३ से १२५,१३० से १३२ अणिद्वत्त (अनिष्टत्व) १२८१२ अणिट्ठस्सर (अनिष्टस्वर) ज २११३३ अणिट्ठस्सरता (अनिष्टस्वरता) प २३।२० अणिढि (अद्धि) प ६१६८२११७२ अणिढिपतारिय (अनद्धिप्राप्तार्य) प ११६०,६२, १२६ अणित्थंथ (अनित्यंस्थ) प २१६४३६ अणिदा (दे०) १३५।१।१,३५१६ अणिदाया (दे०) प ३५११७ मे २०,२२,२३ अणिमिस (अनिमेष) ज ५।६७ अणिय (अनीक) १३० मे ३३,३५,४१,४३,४८ से ५१ ज ११४५, २१६०३१२५५१,१६, ४३,४४,५०,५६, सू १८१२३ अणियट्टि (अनिवृत्ति) मू २०१८,२०1८1८ अणियत (अनियत) सू ११२६ अणियय (अनियत) प १७२० अणियाधिवति (अनीकाधिपति) प २।३७ में ३३ ४१,४३,४८ से ५१ अणियाहिव (अनीकाधिप) ज ४।१५२२ अणियाहिबई (अनीकाधिपति) ज ११४५; १९० ४।१६,१५१,५१,१६,३६,४३,४८,५०,५२, ५३,५६ मू १८।२३ अणियाहिवति (अनीकाधिपति) प १३० अणिल (अनिल) ज २१६८ अणिवारिय (अनिवारित)उ ३.११६४१२२ अणीय (अनीक) उ १११४६; १४७ अणु (अणु) प १११६४,६५,६६।१२८।१४,१५, ६०,६१ ज ७१४३,५०,१६८ मू ६।१६।२; १७१,१८१२,३, १६२१ अणुउ (अन्तु) सू १०११२६।३ अणुकतनुक (दे०) ज ३.१०६ अणुगंतव्य (अनुगन्तव्य) ५११४८; १४०१५१५५ ज ७।१३४ 4 अणुगच्छ (अनु गम्) अणुगच्छइ ज ३१६:५।२१ उ ३।१०१ अणुगच्छति ज ३१०,११,५१,८६,८७ अणुगच्छति प १६१४८ अणुगच्छमाण (अनुगच्छत् ) ज ३।१८,३१,१८० अणुगच्छित्ता (अनुगम्य) ज ३१६ उ ३११०१ अणुगम्ममाण (अनुगम्यमान) उ ३११३० अणुगिण्हमाण (अनुगृण्हान) उ ११०७,१०८ 4 अणुचर (अनु+चर) ___ अणुचरंति सू १६।२२।११ अणुचरंत (अनुचरत्) सू १९४२२।११ अणुचरिय (अनुचरित) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८ ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ 1 अणुजाण (अनु-ज्ञा) अणुजाणउ उ ३१५१ अणुजाय (अनुयात) ज ३।२२,३५,३६ अणुडिया (अनुतटिका) र १११७७ अणुतष्ठियाभेद (अनुतटिकाभेद) प ११७७,७६ अणुडियाभेय (अनुतटिकाभेद ) 4 १११७३ अणुत्त (अणुत्व) ज ७।१६६ सू १८।३ अणुत्तर (अनुतर) परा२७,२७।८।४६,६३; Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ अणुत्तरविमाण-अणुलित २११५५, ३४।२३,२४ ज २०७१,८५, ३।२२३ अणुत्तरविमाण (अनुत्तरविमान) प २१६२।१; १०१२,३०।२६ अणुत्तरोववाइय (अनुतरोपपातिक) प १११३६, १३८, २।४६.६३ ; ३११८३, ६१४६,६६,६६, २८,११३ ; २०१५.७:२११५५,७१,८३,६३, ९४,३३११८,२६,३४।१६,१८ ज०२।८१ अणुत्तरोववातिय (अनुत्तरोपपातिक) ५२०५६; २११६२ अणुदु (अनृतु) ज ७.११२।३ अणुद्धय (अनुद्धृत) जं ३।१२,२८,४१,४६,५८ ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ ; ५५ अणुपरियट्ट (अनु--परि + वृत) अगुपरिट्टइ ज ७.१५६ से १६७ सू१०१६७ अणुपरियति ज ७१५५ सू १६।२३ अणुपरियट्टति सू १०५ अणुपरियट्टित्ता (अनुपरिवृत्य) सू १०५ अणुपरिट्टित्ताणं (अनुपरिवृत्य) प ३६८१ अणुपरिवाडीय (अनुपरिपाटीक) ज ७१३० अणुपविट्ठ (अनुप्रविष्ट) ज ३३८१ उ १।३३, ३८,१००,१३३ अणुपविस (अनु -प्र+विश्) अणुपविसइ ज ३१६,१७,२०,२१,२८,३१ से ३४,४१,४६,५४,६३,७१,७७,६५,१३७,१३६, १४३,१५६,१६६,१७७,१८२,२०१,२०४, २१८,२२२ सू२।१ अनुपविसंति ज ३१२०५, २०६ अणुपविमति ज ३.१८३,१८४ अणुपविसह उ ३।१०१ अणुपविसमाण (अनुप्रविशत) ज ३११८४,१८५ अणुपविसित्ता (अनुप्रविश्य) ज ३।६ मू २।१ अणुपुत्व (अनुपूर्व) ज २११५, ४१३।२५,३५ सू ६.१ उ ११५७,५८,८२,८३:३१४६ अणुप्पत्त (अनुप्राप्त) उ ३११२७,१२८,५१४३ अणुप्पयाहिणीकरेमाण (अनुप्रदक्षिणीकुर्वत्) ज ३१२०४ से २०६,२०८,५१४१ अणुप्पवाएमाण (अनुप्रवाचयत्) ज ३१२६,३६, ४७,१४३ अणुप्पवाय (अनु-प्र- वाचय) अणुप्पवाएइ ज ३।२६,३६,४७,१३३ अणुबंध (अनुवन्ध) ज २४२ अणुबद्धचारि (अनुवद्ध चारिन् ) सू २०१२ अणुब्भड (अनुभट) ज २११५ अणुभाव (अनुभाव) प २३५१३१,२३।१३ से २३ ज ४१८३ च १५ १६६१५१६२२११६,२० अणभावणामणिहत्ताउय (अनुभावनामनिधत्तायुष्क) प६।११८ अणुभावणामनिहत्ताउय (अनुभावनामनिधत्तायुक) ५६।११६,१२२ अणुभावनिहत्ताउय (अनुभावनिधत्तायुप्क) १६१२३ अणुमण्ण (अनु। मन्) अणुमण्णित्थ; उ ३३१०६ अणुमय (अनुमत) प १११३०३१,२ ज २०१५ उ ३.१२८ अणुमाण (अनुमान) सू ।३ अणुमाणइत्ता (अनुमान्य) उ ३५५ अणुयाय (अनुयात) ज ३१६३,९६,१०६,१६३, १७५,१८० अणुरंगिणी (अनुरङ्गिनी) सू १०१७४ अणुरंजिएल्लिय (अनुरञ्जित) ज ३१११७ अणुरत्त (अनुरक्त) सू २०१७ उ १५१३६ अणुराग (अनुराग) प २१४०।११ उ ११७२,७३, ८७,८८,६२ अणुराधा (अनुराधा) सू १०१२ से ३, १८ अणुराहा (अनुराधा) ज ७.१२८,१२६,१३६।१, १४०,१४६,१५२,१६६, सू १०१२ से ६,१८, २३,५०,६२,७३,७५,८३,११५,१२०,१३१, अणुलिप (अनु ।-लिप) अलिपइ ज २१९९%3B ३॥१२ अणुलिपति ज २१००३।१२,२११, ५१५८ अणुलिपित्ता (अनुलिप्प) ज २NEE अणुलित्त (अनुलिप्त ) प २।३१ ज ३१६,२२२ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणु लिह अण्णत र ठितिय अलिह ( अनु + लिह) अतिज ३१७८६ ५।४३ अलिहंत ( अनुलिहत ) उ५५ अणु लमाण (अनुलिखत् ) प २४८ अणुलेवण (अनुलेपन) प २१२० से २७,३०,३१, ४१, ४६ ज २२७० अणुलोम (अनुलोम ) ज २०१६,६७ अणुलोमच्छाया (अनुलोमछाया ) सू ६४ अणुवत्त (अनुपयुक्त ) प १५१४८, ४६; ३४।१२ अणुवत्तमाण ( अनुवर्तमान) ज ५।२७ अणुवम ( अनुपम ) प ३० २७, २८ अणुवरयकाइया ( अनुप रतकायिकी) प २२२ अणुववेत ( अनुपेत) प १७।१३२ अणुवसंत ( अनुपशान्त ) प १४६ अणुवसंज्ज माणगति ( अनुपसंपद्यमानगति ) प१६३८,४२ अणुवसंपज्जित्ताणं ( अनुपसंपद्य ) प १६:४२ अणुवाय (अनुवाद) ज ४।१०.७ अनुवाइ ( अनुपातगति ) सू १११४ अणुवासिय (अनुवासित ) ज ५ । ५ अणुविद्ध (अनुविद्ध ) ज ३११२,८८ ५।५८ अणुध्वय ( अणुव्रत ) उ ३२८१,५२ अणुसज्ज माण ( अनुसजत् ) ज ४।२०५ अणुसज्ज ( अनु | पंज् ) अणुसज्जित्था ज २५० अणुमज्जिस्पति ज २११६२,१६४ अणुसमवयणोववत्तीय ( अनुसमवदनोपपत्तिक) ज ३।१६७।१२ अणुसमय ( अनुसमय ) प ६ । १६,६२, ६३, १११७०; २८१४,२६,५० अणुसार ( अनुसार ) प २१1८० ज० ५।५७ उ ५।४५ अणुहर ( अनु + हृ ) अणुहरति ज ३|१३८ अहो ( अनु ! भु) अजुहोति प २।६४।२२ अणूण ( अनून) १६३२१८ १२२२८ ८२३ अग ( अनेक ) प १1३८१३१४८१६,४७, १1१०१। ७ : २१४१,६४ ज ११३७,२११२,११३,१४६; ३१३,६,१२,२२,२४,२८,३१,३६,४१,४६,५८, ६६,७४,७७, ६३, ६६से १०१, १०६,१११,११६, १२०,१४७,१६३,१६८,१६३,२१२, २१३, २२२,४३,६,२५,३३,१२०, १४७,२१६, २४२, ५३, ४,२८,३२,३३,४३ उ ११६७ से ६६; ३।४३, ४४ ; ५।१०, १७ अगजीfar ( अनेकजीवित जीवक ) प ११३५,३६ वह (अनेकविध ) प ११३,२०,२३,२६,२६, ३५ से ५१,५६,६३ से ६६,७०,७१,७५,७६, ७८,७६.८६, ६६; १६।३०,३७ अगसिद्ध ( अनेक सिद्ध ) प १।१२६१६।३६ अगदि ( अनेकेन्द्रिय ) प ११३८ अणेर ( अनैरयिक) प १७६०, ६१ अणेसणिज्ज (अनेषणीय ) उ ३।३८ अणोगाढ ( अनवगाढ) प ११/६२ २८ । १२,५८ अणोवम ( अनुपम ) ज ३१६२,१०६,११६ अणोवमा ( अनुपम ) प २२६४।१६; १७।१३५ अणोषमा (दे० ) ज २१७ अणोवाहणय ( अनुपानत्क ) उ५१४३ अणोहट्टिय (दे० ) उ ३।११६,४१२३ अण्ण (अन्य ) प १२०, २३, २६,२६,३५ से ३७,३६ से ४७,४८१७,१० से २६; ११४८ से ५१,५६, ६०,७८,६६, १७, २३० से ३३,४८ से ५५; ११/२१ से २५; ३६३६४ ज ११४५,४६ ; २१२०,७१, ६०, ३१८१,१८६,१८८, २०६, २१०, २१६,२२१, ४११३, १४,५२, ११४, १४६, १५६,१६५,२०६, २१६,२१६,२२१; ५११, ५, १६,२४,३८, ४७,५०,६७, ७५६, ५६, १८३, १८५ स ६ । ११०।१६२ से १६४,१६६; १७११; १८१२१,२३,१६१११,२४; २०११ उ ५।१०,१७ अष्णतर (अन्यतर) भू ६११ अण्णतर ठितिय (अन्यतरस्थितिक ) प २८/५०,५१ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२४ अण्णत्थ-अस्थि अण्णत्थ (अन्यत्र) प ११।११ से २०,४६ र १।१४, अतिवतित्ताणं (अतिव्रज्य) प २८।१०५ ; ३४।१६ - १७,१०११३६; २०१७ अतिसीत (अतिशीत) सू १०११२६।१ अण्णमण्ण (अन्योन्य) प१६।३६,४२ ज २।३६, अतिहि (अतिथि) उ ३१४८,५०,५१ ४१,१४६,३।१०५,१०७,११३ से १३८; अति (अति-!-इ) अतीति ज ३।६३,६५ ५१३,२७,३८ सू १११८ से २१ उ ११४७,६८, अतीत (अतीत) प १५१८३,८४,८६ से ६७,६६ १३८,१३६ से १०१,१०३ से १०६,१०६,११०,११२ अण्णयर (अन्यतर) प २२१६१ से ६५:२३।१६१ से ११७,११६,१२०,१२२,१२३,१२५ १६२ ज २६६ में १३२,१३५,१३६,१४०,१४१,१४३, ३६१८ अण्णया (अन्यदा) ज ३।४,८३,१०४,१३०,१५४, से २६,३० से ३४,४४, से ४७ १७२,१८८,२२२ उ १११४; १८, ३१४६; अतीय (अतीत) प १५१०८,११८,३६१३४ ४।२१:५।१३ अतीव (अतीव) ज ५।३८ अण्णलिंगसिद्ध (अन्यलिङ्गसिद्ध ) प ११२ अतुरिय (अत्वरित) ज ५१५,७ अण्णहा (अन्यथा) प ११०११३,५ उ १।१०६ ___ अतुल (अतुल) प २१६४।२० अण्णाण (अज्ञान) प ५१२४,२८,३०,३२,३४,३७, अत्त (आत्मन) प १५१५० ज ३।२२२ उ ३८३, ४३,४५,४६,५३,५६,६८,७१,७४,८०,८३,८४ १२०, १५०५२८,४३ ८६,८७,८६,६७,६६,१०१,१०२,१०४,१०५, अत्तय (आत्मज) उ १२१०,३१,६५,१०६,११०, १०७,११७ ११३,११४, २६ अण्णाणपरिणाम (अज्ञानपरिणाम) प १३।१४,१६ । अत्तया (आत्मजा) उ ४ाह १७,१६, अत्थ (अत्र) ज ४१४२,३ सू ।१ उ ३.१५१ अण्णाणि (अज्ञानिन्) प११७४,८४,५२६४,१८।८३ अत्थ (अर्थ) ज ५।२६ चं ११३ म २०१७ उ ३.४० २३१२००,२८११३७ अत्थ (अस्त्र) ज ३१७७,१०६ अण्णाणुपुवी (अनानुपूर्वी) प २८.१८,६४ स २६ अत्थओ (अर्थतस्) प १११०१८ अण्णोष्ण (अन्योन्य) प २१६४११० ज ७५८ अत्थजुत्त (अर्थयुक्त) ज ५१५८ सू १६।२६ अत्थणिउर (अर्थनिकुर) ज २।२४ अण्हाणय (अस्नानक) उ ५१४३ अस्थणिउरंग (अर्थनिकुराङ्ग) ज २०४ अतसी (अतसी) प १६३७१२ अत्यस्थि (अर्थाथिन ) सू २०१७ अतिक्कम (अतिक्रम) ज २११३३ अत्यस्थिय (अर्थाथिक) जे ३।१८५ अतितेया (अतितेजा) सू १०८८२ अस्थमंत (अस्तवत् ) ज ३.१६ अतित्थगरसिद्ध ((अतीथंकरसिद्ध) प ११२ अस्थमण (अस्तमयन) ज ७।३६ से ३८ च ४११ अतिथसिद्ध (अतीर्थ सिद्ध) प११२ गू श८।१२।३६।२ अतिदूर (अतिदूर) ज ११६ अत्थसत्य (अर्थशास्त्र) उ ११३१ अतिभाग (अतिभाग) सू ४।८ अत्यसिद्ध (अर्थ गिड) ज १११२ सू १०८६।२ अतिमास (अतिमास) सू १५१३७ अत्थाम (अस्थामन्) ज ३।१११ अतिराउल (दे०) प ११:१४,१६ अस्थि (अस्ति) प १७५२१६४।१४,५८०, अतिरेग (अतिरेक) ज ३१३५,२११; ५१५८ १९६११०,१२।६; १५१४५,४७ मे ४६, Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्थिकायधम्म-अद्धजोयण ८२५ ६०,६२,६३,६५,६६,८७,६४ में १०१,१०३ १४१,१८०; १५,७ उ ११३, ३१२६५६ से १०६,१०८,११२ से ११४,११६,१३८, अदेवीय (अदेवीक) प ३४११५,१६ १४१,१७४१३,३५; १८।११२, २०११,४,१७ अद्द (आर्द्र) प २।३१ १८,२२,२५,२८,२६,३४,३८,३६,४६,५०,५३, अद्दरूसग (अटरूपक,आटरूषक) प ११३७१४ ५८२११८ मे १००,१०३,२२१६,११,१२, अद्दा (आर्द्रा) ज ७/१२८,१२६११,१३४ से १३६, १४,१६,१८,५८,५६,७७,७६,८१,८२, २३१६ १३६।१,१४०,१४६,१६१, स १०।३ से ६, २८११२३,१३६,१४१,१४५,३४१७ में ६,११, १३,२४,३६,६२,६८,७५,५३,१०४,१२०, १२,१५,१६,२०, ३६८ से ११,१७ से २३, १३१ से १३४१२,१३५२,१६० २५,२६,२६ से ३२,३४,४४ ज ११४७, अद्दाय (दे०) प १५.१११५१५० सू ११३६१ उ ३।१०१४।५५१२६ अट्टारिठ्य (आर्द्रारिष्टक) प १७।१२३ अस्थिकायधम्म (अस्तिकायधर्म) प १।१०१११२ अद्ध (अर्ध) ज १११६,३।१०६।४।२०८,५२३८ अस्थिय (अस्थिक) प ११३६।१।३।१।२ ७.१७६,१७७१३ सू २।२ ।३ उ१११०३, अत्थोगह (अर्थावग्रह) प १५६८,७० से ७२,७४, १०६,११०,११३,११४ अद्धअउणछि (अर्दुकोनषष्टि) स ६।३ अथिरणाम (अस्थिरनामन्) प २३१३८,१२२ अद्धअट्ठारस (अर्धाष्टादश) सू १८।१ अद (अदस्) म् १६४ अद्धएकोणवीस (अर्धकोनविंशाति) स १८.१ अदंड (अदण्ड) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६,७४ ।। अद्धएकवीस (अर्धेकविंशति) सू १८१ १४७,१६८,२१२,२१३ अद्धएकारस (अधैंकादश) सू १८१ अदंतवणय (दे० अदन्तधावनक) उ ५५४३ अद्धंगुल (अर्धाङगुल) प ३६८१ ज १११७; अदि (अयि) उ ५१४१ ३।१०६७।२०७ सू १।५४ अद्धकविठग (अकपित्थक) प २१४८ सू १८१८ अदिइ (अदीति) ज ७।१८६३ अद्ध कुंभिक (अर्द्धकुम्भिक) ज ५।३८ अदिज्ज (अदेय) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, अद्धकोस (अद्धकोश) ज ११३७,४२,५१,४९, ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अदिट्ठ (अदृष्ट) सू ५११७११ १५,२४,३३,३६,११४,११८,१२८,१४७, १५४,१५५,२४२, सू १८।१२,१३ अदिद्वैत (अदृष्टान्त) ५३०।२७,२८ अद्धगाउय (अर्द्धगव्यूत) ५ ३३।२,६ ज ७।१० अदिण्णादाण (अदत्तादान) प २२।१४,१५,८० अद्धचउवीस (अर्द्ध चतुर्विंशति) सू १८१ अदिति (अदिति) ज ७३१३० अद्ध चंद (अर्द्धचन्द्र) प अदितिदेवया (अदितिदेवता) सू १०८३ ४८,५०,५६, ज ११२०; अदुक्खममुह (अदुःखासुख) प ३५॥१॥२,३५।१० ३१२४,७६,११६ ; ४।४६,१०८,२४५ अद्धचंदसंठाणसंठित (अर्द्धचंद्रसंस्थानसंस्थित पश५८ अदुत्तर (दे०) ज २।४७,१३१; ३1२२६; ४।२२, अद्धचोद्दस (अर्धचतुर्दश) सू १८११ ३४,५४,६४,१०२,१०५,११३,१५६.१६१, अद्ध छट्ट (अर्द्धषष्ठ) सू १८।१ १६६,२०८,२१०,२६१ उ ११११६ अद्धछव्वीस (अर्द्धषड्विंशति) सू १८११ अदुवा (दे०) ज ७।२१२ अद्धछन्वीसतिविह (अर्द्धषड्विंशतिविध) प ११६३ अदूरसामंत (अदूरसामन्त) प ३४१२२,२३ अद्धजोयण (अर्द्धयोजन) ज १७१, ११६,१०,१७, ज १५,३।१८,३१,५२,६६,१३१, २३,२५, ४१६,७,१४,२४,३६,४२,४६,५९,७१, १२ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२६ अद्धट्रम अधिपति ७४,७८,११२,११४,१११,११६,१२३, अद्धमंडलसंठिति (अर्द्धमण्डलसंस्थिति) सू १७।१, १२६,१२७,१४६ सू १८११.२० १.१५ से १७ अट्ठम (अष्टिम) ज २१७८,४।११०,११६, अद्धमागहा (अर्द्धमागधी) प ६८ १२८ सू१८।१ उ १३५३,७८ अद्धमास (अर्द्धमास) प ६।१२; २३७१,१८४ अट्ठारस (अप्टिादश) प २३।१०४ __ सू १३।४,५,११ अद्धणवम (अर्द्धनकम) सू १८१ अद्धमासिया (अर्द्धमासिकी) उ ३३१४,८३,१२० अद्धणाराय (अर्द्धनाराच) प २३।४५,६७ अद्धवीस (अर्द्धविंशति) सू १८१ अद्धतिवण्ण (अत्रिपञ्चाशत् ) पश२७।३ अद्धसत्तम (अर्द्धसप्तम) स १८।१ अद्ध तेरस (अर्द्ध त्रयोदश) प ११६०,८११; अद्धमत्तरस (अर्द्धसप्तदश) सू १८।१ २३।१०२ ज ४१३६,४३,६६,७२,११४,१२०, अद्ध सीतालीस (अर्द्धसप्तचत्वारिश) सू श२३ १२२ स १८१ अद्धसोलस (अर्द्धषोडश) ज ४।११६ सू १८।१ अद्धतेवट्ठि (अर्द्ध त्रिषप्टि) ज ४।२४०३७ अद्धहार (अर्धहार) ज ३।६,२११,२२२:५॥३८ अद्धतेवण्ण (अद्धं त्रिपञ्चाशत् ) प २।२७ अद्धतेवीस (अर्द्ध त्रयोविंगति) प६३१ स. १८।१।। अद्धा (अद्धा, अध्वन्) प १६४।१५,१६,१५। अद्धदसम (अर्द्धदश) सू १८१ ५८।१:१५॥६३,६४; १८.१,१२५; ३६।१२, अद्धद्धमिस्सिया (अद्धि मिथिता) प १२३६ ६४, मू१११,१२,२७ से ३१; रा२; ६३; अद्ध पंचम (अर्द्धपञ्चम) ५४३४,३६,४०,४२ १२।२ से ६,१० से १२ सू १८१ अद्धामिस्सिया (अर्द्धमिश्रिता) ५ १११३६ अद्धपण्णवीस (अर्द्धपञ्चविंशति) म १८१ अद्धासमय ('अद्धा'समय) प १५३,३।११४,११५, अद्धपण्णरस (अर्द्धपञ्चदशन ) स १८१ १२१,१२२,१२४; ५।१२४,१५५३ से ५५, अद्धपलिओवम (अर्द्धपल्योपम) प ४११६८,१७०, ५७,१८।१२५ १७४,१७६,१८०,१८२,१८६,१८८,१६२, अद्भुट्ठ (दे०) प ३३३३,४ ज ४११६ सू ११२३, १६४,१६५,१६७ ज ७।१८८,१६०,१६२, ३।१; १८११ उ ५।१० १६३ सू १८।२६,२८,३०,३२,३३ अधरण (अधन्य) उ ११६२, ३।९८,१०१,१३१ अद्धपलियंकसंठित (अपर्यक संस्थित) स १०॥४४ ।। अधमस्थिकाय (अधर्मास्तिकाय) प ११३ ; ३१११४, अद्धपोरिसी (अर्द्धपौमषी) सू ।३ ११५, ११७.१२२, ५११२४; १५१५३,५४ अद्धबारस (अर्द्रद्वादश) सू १८।१ अधर (अधर) ज २११५ अद्धबयालीस अर्द्धवाचत्वारिंश) स ११२३ अधरिम (अधरिम) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, अद्ध बाबण्ण (अर्द्धद्विपञ्चाशत् ) सू ११२३ ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अद्धबावीस (अद्वंद्वाविशति) स १८।१ अधाजोग (यथायोग) सू १५:१० अद्धभरह (अदभरत) ज ३१६५ अधाजोय (यथायोग) मू १५१३ अद्धभाग (अर्धभाग) ज १।२३,४८, ४।१,६२,८१ अधातच्च (यथातथ्य) सू १२११३ अधारणिज्ज (अधारणीय) ज ३११११ अद्धमंडल (अर्द्ध मडल) च ३३१ सू १६१८; १३१७ अधिगय (अधिगत) प १३१०११२ से ११,१४ से १६:१५।२६ से ३१ अधिपति (अधिपति) ज ३१२५,४६ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिय-अपत्थियपत्थग अधिय (अधिक) सू १३।११,१४ १८३,४२,५,८,११,१४,१७,२०,२३,२६,२६, अधिवति (अधिपति) प २१५०,५१ ३२,३५,३८,४१,४४,४७,५०,५३,५७,६०,६३, अधेसत्तमा (अधःसप्तमी) प ३।१८३ ६६,६८,७०,७३,७५,७७,८०,८३,१०२,१०५, अनिल (अनिल) ज २६८,१३१ १०८,१११,११४,११७,१२०,१२३,१२६, अपइट्ठाण (अप्रतिष्ठान ) प २२७ १२६,१३२,१३५,१३८,१४१,१४४,१४७, अपच्चक्खाण (अप्रत्याख्यान) प १४।७,२३।३५ १५०,१५३,१५६,१५६,१६३,१६६,१६६, अपच्चक्खाणकिरिया (अप्रत्याख्यानक्रिया) १:३२,१७५,१७८,१८१,१८४,१८७,१६०, प १७११,२२,२३,२५; २२१६०,६४,६६, १६३,१६६,१६६,२०२,२०५,२०८,२११,२१४, ७२,७४,६८,६६ २१७,२२०,२२३,२२६,२२६,२३२,२३५, अपच्चक्खाणि (अप्रत्याख्यानिन्) प २२१६४ २७१;६७१,७२,७६,८३,८४,९७,१०२; अपच्चक्खाय (अप्रत्याख्यात) प १११८६ १११३१,३५,३६१८१८,१८,३०,३६,११४; अपज्जत्त (अपर्याप्त) प १।१७,२२,३१,४६ २११४०,४२, २३११६३; २८/१४३ से १४५; से ५१,६०,६६,७५,७६,८१,२।१७,२० ३६।५२ से ३६,४१ से ४३,४८ से ६३ : ३१४३ से ४६, अपज्जत्ति (अपर्याप्ति) प २८.१४३ ५३ से ६०,६४ से ७१.७५ से ८४,८८ से १५, अपज्जवसित (अपर्यवसित) १६४ ११०,१७४ ; ४१५५,८६,८६,६१,६३,६६,६६, अपज्जवसिय (अपर्यवसित) प १८७,१३,१७, २३८,२४१,२४४,२४७,२५०,२५३,२५६, २५,२६,५५,५८,५.६,६३,६४,६७,६८,७५ २५६,२६२,२६५,२६८,२७४,२७७,२८०, से ७७,७६,८२,८३,८६,८८,९०,६२,१००, २८३,२८६,२८६,२६२,२६५,२६८, २११६, १०५,१११,११२,११५,११८,१२१,१२३, १६,१८,२३ से ३२,३६,४०,४१,४८,५०,५३, १२४,१२७ अपज्जुवासणया (अपर्युपामना) उ ३।४७ अपडिक्कत (अप्रतिक्रान्त) उ ३१८३,१२०,४२४ अपज्जत्तग (अपर्याप्तक) प १२०,२३,२५,२६,२८ अपडिबद्ध (अप्रतिबद्ध) जरा७० २६,४८१६०; १९४८ मे ५१,५३,८४, १३१ अपडिबद्धगामि (अप्रतिबदगामिन्) जश६८ से १३३,१३५,१३७,१३८,२१२,३,५, अपडिबुज्झमाण (अप्रति बुध्यमान) ज २०६५ ६,८,६,११,१२,१४ से १६३४१,८३ से ४६,५१,५३ से ६०,६२,६४ से ७१,७३,७५ अपडिवाइ (अप्रतिपातिन) प ३३।१११,३३३३५ से ८४,८६,८८,६१,६३ से ६५,११०,१४२, अपडिवाति (अप्रतिपातिन) प११११४ १४८,१५१,१८३,६७१,७२,८३,१०२; अपडिसुणमाण (अप्रतिशृण्वत्) उ १११२७ १११३६,४१,१५१४६१८१४८,२११५,१०, अपडिहय (अप्रतिहत ) प १११८६ १३,२०,३३,३४,३६,४१,५२ से ५५,७२, अपडोयार (अप्रत्यवतार) प ३०।२७,२८ ३४.१२ अपढ़म (अप्रथम) प १३१३,१०३,१०६,१०७, अपज्जतगणाम (अपर्याप्तकनामन् ) २३१३८,१२० १०६,११०,११३,११४.११६,११६,१२०, अपज्जत्तय (अपर्याप्तक) प ११२६,३१६२,६६ १ २२,१२३ ;१६।३७ से ६८,८६,८६,६०,६२,६३,६५,१४५,१५४, अपत्थियपत्थग (अप्राथितप्रार्थक) ज ३।१२४ १५७,१६०,१६३,१६६,१६९,१७२,१७४, उ १।११५.११६ ५५ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२८ अपत्थियपत्य ( अप्रार्थित प्रार्थक ) ज ३।२६,३६, ४७,१०७,११४, १२२,१३३ उ ११८६ अपदेसया (अप्रदेशार्थ ) प ३३१७६,१८१ अपमत्त ( अप्रमत्त ) प १७ ३३२१/७२ अपमससंजत (अप्रमत्तसंयन ) प ६६८ अपमत्तसंजय ( अप्रमत्तसंयत ) प ६६८; १७१२५, २२/६३ अपमाण ( अप्रमाण ) प ३०।२७, २८ अपराइय (अपराजित ) ज ३ | ३ अपराइया (अपराजिता ) ज ४१२१२ अपराजित (अपराजित ) प १२१३८ २२६३ ६।५६७२६ ज १११५ अपराजिता (अपराजिता ) ज ४।२०२७११८६ अपराजिय ( अपराजित ) प ४।२६४ से २६६; ६२४२१५/६६,६२,१००,१०५, १०८,१०६, ११४,११६,१२०,१२१,१२३, १२५,१२६, १३१,१३९; २८/६६ अपराजियत (अपराजितत्व ) प १५।११३ अपराजिया (अपराजित) ज ४५२१२।४; ५८११ ; ७/१२०/२ सू १०८८ २ अपरिह (अपरिगृहीत) प ४।२२२ से २२४, २३४, से २३६, अपरिमाणमाण (अपरिजानत् ) उ ३१५६,६१,७७, ११६ अपरिताविय (अपरितापित ) ज २४६ अपरित्त (अपरीत ) प ३।१०६; १८११०६ अपरिभुंजमाण (अपरिभुञ्जत् ) उ १।३५ अपरिभूय (अपरिभूत) ज ३११०३ उ ३११०, २८ ६६ अपरिमिय (अपरिमित ) ज ३।१६७ अपरियाग ( अपरिपाक, अपर्याय ) प १७।१३२ अपरियार (अपरिवार ) प ३४।१५,१६ अपरियार (अपरिचारक ) प ३४।१८,२५ अपरिसेस (अपरिशेष ) प २८१४०, ६६ ज४।८३, २७४ अपत्थियपत्थय- अप्प अपरिसेसि (अपरिशेषित) २८१२३ अपविट्ठ (अप्रविष्ट ) प १५/३६, ४१ अपसत्य ( अप्रशस्त ) प १७ । ११४ १ २३५६, १०६,११७,१२८ अपाणय ( अपानक) ज २२६५, ७१,६८ ३१२२५ अपि (अपि) ज १।२२ ११६७, ३।६० ५ १७ अपिक्क ( अपक्व ) प १७ १३२ अपुट्ठे ( अस्पृष्ट ) प ११६१, १५१३६ से ३८, ४१; २२१५६ २८१११,५७ ज ७१४०, ५३ अपुणरावित्ति ( अपुनरावृत्ति) ज ५।२१ अपुणरुत्त (अपुनरुक्त) ज २२६४, ५३५८ अपुण्ण ( अपुण्य) उ १६२: ३१८,१०१,१३१ अरिसक्कार ( अपुरुपकार) ज ३।१११ अपुरोहिय ( अपुरोहित) १ २६०,६३ अपुब्व (अपूर्व) २८१२०,३२,६६ अवकरण (अपूर्वकरण ) ज ३।२२३ अपोह ( अपोह ) ज ३१२२३ अप्प ( आत्मन् ) प० १२४०१४, २२१४ से ६ ज ११५ २०७१, ८३, ३१८८ ५१५७ सू१।१६; १३।१२,१४ से १७१६८ २०४ उ १।२,३,४६,६५,६८,७२, २११०,१२, ३११४, २६, ५०, ५१, ५३, ५४, ८३,६६, १३२, १४४,१६१, ४२४, २८, ५२६, २८,३२,३६, ४३ अप्प ( अल्प ) प ३1३८ से ११६, ११७ १,११८ से १२०,१२२ से १२४, १७४, १७९ से १८३; ६।१२३ ८१५,७,६,११, ६ १२, १६, २५, १०1३ से ५,२६ से २६, ११७६,६०, १५।१३,१६,२६,२८,३१,३३,६४, १७२५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ५३,१४४ से १४६; २०१६४; २१३१०४, १०५, २२११०१, २८/४१, ४४,७०, ३४।२५ ३६ ३५ से ४१, ४८, ४६ ज १५० २१५८, ८३, १२३, १२८, १४८, १५१, १५७; ३।१०,११,८५,८७,११७२१, १८४; ४११०१; ५१५२७,५७,७१११२१४, १६८, १६७ सु १०११२६।४ १५ १६ १८१८, ३७, १६८ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्प - अबाहा २३,२६; २०१७ उ १।१६,४२, ६३, ३।२६, १४१, ४।१२ अप्प (अल्प ) जवासा प ११४०१४ अपकपिय ( आत्मकल्पित ) उ १९४६ अप्पकम्मतराग (अल्पकर्मतरक ) प १७३, १६ अप्प चक्खाण (अप्रत्यख्यान ) प १४१७ पचखाकिरिया (अप्रत्यास्थान किया. ) प २२/६४,६६,७४, १७, १०१ अप्पच्चकखाणवत्तया ( अप्रत्याख्यानप्रत्यया) प २२/६४ अप्पfsबुज्झमाण (अप्रतिबुध्यमान) ज ३३२०४ अपsि (अप्रतिहत ) ज ३१८१,८८, १०६,१५१; ५/२१ अपणया (आत्मन् ) प २८/२०,३२,६६ अप्पतराय (अल्पतरक ) प १७१२, २५ अप्पतिट्ठिय (अप्रतिष्ठित ) प १४ ३ अप्पत्त (अप्राप्त) सू १६१२२।१७ अप्पत्थियपत्थय ( अप्रार्थितप्रार्थक ) ज ३११०७ अप्प (अल्पबहु ) प १७ ११४|१; २१।१।१; ३४१११२ ज ७ ११६८२ अप्पमेय ( अप्रमेय ) ज ५।५८ अप्पस (आत्मवश ) उ ३।११८ अप्पवेदणतराग (अल्पवेदनतरक) व १७६, २७ अप्पसत्य ( अप्रशस्त ) प १७/१३८ २३।११६, १३२, ३४।१३ अप्पसरीर (अल्पशरीर ) प १७/२, २५ अप्पसोय (अल्पशोक ) उ ११६३ अप्पयगति ( अप्रहतगति ) ज २२६८ अप्पाas (अल्पबहु ) प ६।१२३; १५।१।१ अप्पा बहुग (अल्पबहुक ) प १७३६,७० अपाबहुय (अल्पबहुक) १० १०२८ ११।८०; १५.१८, १६, १५।५८ १ १७।७७ अपिच्छ (अल्पेच्छ ) ज २०१६ affset (अल्प ) प १७१८४ से ८७,८६ ज० ७ १८१ १८ १६ अप्पिण (अर्पय्) अप्पिणइ उ० १।११८ अप्पिणामि उ० १।११७ अप्पिणित्ता (अपयित्वा ) ज ३२८१ अप्पिय (अप्रिय ) ज २।१३३ ८२६ अप्पियतरिया (अप्रियतरका ) प १७ १२३ से १२५, १३० से १३२ अपित्त (अप्रियत्व ) प ० २८ । १४ अप्पियस्सर (अप्रियस्वर) ज २११३३ अप्पुस्य (अल्पीत्सुक्य ) ज ३।२६,३६,४७,१३३ अप्पेस (अप्रेष्य ) प० २३६०,६३ अष्कुण्ण (दे) उ ११२३,६१ अप्फोड ( आ + स्फोटच ) - अप्फोडेंति ज ५७ अल्फोडिय (आस्फोटित ) ज ३।३१, ७ १७८ अल्फोया (आस्फोता ) मल्लिका, अपराजिता प ११४०१३ अफासाइज्जमाण ( अस्पृश्यमान ) प २८|४०, ४१, ४३,४४,६६,७० अफुण्ण (दे० ) प ३६ ५६, ६०, ६६ से ६८,७०,७१, ७३ से ७५ असमाण (अस्पृशत् ) प १३।२३ असमानगति (अस्पृशद्गति ) प १६०३८, ४०; ३६।६२ अफुसिता (अस्पृष्ट्वा ) प १६१४० अबंध (अन्धक ) प ३११७४; २२८४; २६६ अबंध ( अबन्धक ) प २२८३ ८४ ८६ २६८ से १० अबल ( अबल) ज ३।१११ अबस्य ( अबहुश्रुत ) सू २०६२ अबाधा (अवाचा ) सू २८/२० अबाहा (अबाधा ) प २१६४; २३।६० से ६४,६६, ६८,६६,७३ से ७७, ८१, ८३,८५ से ६०,६२, ६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८, १२७,१३०,१३१,१७६, १७७, १८२,१८३,१८७,१६० ज १।१७ ३१; *४।११०,११६,१४१,१४२, २०६, २०७ ७५, Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३० ६,८ से १३,६४,६५,६७ से ७२,८८,८६,६१, ९२,१६८१,१७१ से १७४,१८२ १८१५, ६ अबाहूनिया (अवात्रोनिका ) प २३/६० से ६४,६६ ६८,६६,७३ से ७७,८१,८३, ८५ से ६०,६२, ६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८,१२७, १३०,१३१,१३३,१७६, १७७,१८२,१८३, १८७,१९० अबीय ( अद्वितीय) ज ३१२०,३३,६४, १८२ अभय (अभ्यधिक ) प १८१४ अभंग (अभि + अ ) अब्भंगेइ उ ३१११४ अभंगेति ज ५।१४ अभंगण ( अभ्यञ्जन) उ३।११४,११५, ११६ अभंगेत्ता (अभ्यज्य ) ज ५।१४ अभ्यंतर ( आभ्यन्तर ) प ३६।८१ ज ३११६४; ४।१५२, ७।५,८,६,१०,१३ से १६,१६ से २२,२५ से २७,३०,३१,३३,६४,६७ से ६६, ७२ से ७५,७८ से ८१,८४,८८,६१,६३,६५, १७५ ११११,१२,१४,१६,१७,२१,२४, २७,३०; २३; ३११,२, ४१७ ६११; ६१२; १०११३२; १३।१३, १६१, १६/२२/१२ अभंतर पुरक्खरद्ध (आभ्यन्तर पुस्करार्द्ध) सू८१ १६।१६ से १६ अन्तरिय (आभ्यन्तरिक ) ४१३,४,६,७ अभंतरिल्ल (आभ्यंतरिक ) ज ७।१७५ सू १८/७ अम्भपडल (अभ्रपटल ) प १।२०१२; ११६७५ अभयलय (अभ्रवालक) ज ५/७ अन्भवा (अवालुका) प १२०/२ अमहिय ( अभ्यधिक ) प ४ १७१,१७३, १७४, १७६, १७७, १७६, १८०, १८२,१८३,१८५, १८६, १८८, ५१५, १०, २०,३०,३२,७२,८१,१०२, १२६,१३१,१३२,१३४,१६०, १७७, १६३, २१४,२२८; १७।६३; १८१२८, ४७,६०,६६ से अबाहूनिया अभवसिद्धिय ७४,८४ २३७८,७६,१६६, २६ २१ ज ३११८, ६३, १८० ७ १८७ से १६० सू १८१२५ से ३० उ ३११६ अभितर (आभ्यन्तर ) प १५ ।५५ ३३|१|१ ११७ २११२४१८, २१ ५३६ १११४, १६,२१,२४,२७ से २६,३१ २१३ ४६; ६ १ ८१, १६।२१।१ अग्निंतरओ (अभ्यन्तरतस् ) ज ३।२४।२, १३१।२ उ २८ अभिंतरग (अभ्यन्तरक ) प १।४८।४५ अभिंतरय (आभ्यंतरक) उ १०४४ अभिंतरिय (आभ्यंतरक) ज ४।१६ अक्ख ( अभि + उक्ष ) अभुक्खेइ ज ३११२, ८८३०४।२१ अभुक्ता (अभ्युक्ष्य ) ज ३।१२ अब्भुग्गय (अभ्युद्गत) प ४।४८ ज १।४२ : २।१५; ४४६, २२१, ७ १७६,१७८ सू १८१८ अब्भुट्ठ (अभि + उत् + ष्ठा) अब्भुट्ठेइ ज ३।६,२६,३६,४७,१३३, २१४ ५२१ उ ३।१०१ - अभुट्ठेमि उ ३११३६६ ४११४ - अब्मुट्ठ ेहि उ ३।११५. अन्भुण्णय ( अभ्युन्नत) ज २११५ ७ १७८ अब्भुवगम ( अभ्युपगम ) प ३५।१।१ अभक्खाण (अभ्याख्यान ) प २२/२० अभगुणाय (अभ्यनुज्ञात) उ३।१०६, १०८, १३८ अन्भोरुह (अभ्यव रुह ) प ११४४|१ ४।११ अब्भुट्ठिय (अभ्युत्थित) ज २७० अब्भुट्ठेत्ता (अभ्युत्थाय ) ज ३।६ उ३|१०१, १३४ अभोवगमिया (आभ्युपगमिकी ) प ३५।१२,१३ अभंग (अभङ्गक) प २६ ६; २८११६ अभवय ( अभक्ष्य ) उ ३।३७ से ४० अभड ( अभट) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६,७४, १४७, १६८,२१२,२१३ अभय (अभय ) उ ११३१,४२ से ४६,४८ अभयदय ( अभयदय ) ज ५।२१ अभवसिद्धिय ( अभवसिद्धिक) प ३।११३,१८३ १२७,२० १८।१२३; २८।११२ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभव्व जण-अभिरूव अभव्वजण (अभव्यजन) सू २०६१ अभायण (अभाजन) सू २०६।३ अभाव (अभाव) प ३६१२१ अभासग (अभाषक) १ ३।१०८; १११३८ से ४१, अभिणंद (अभिनणद् ) अभिणंदति ज २१६४ अभिणंद (अभिनन्द) सू १०११२४११ अभिणंदत (अभिनन्दत्) ज २१६४; ३।१८५, २०६ अभिणंदिज्जमाण (अभिनन्द्यमान) ज २०६५ अभिणंदिय (अभिनन्दित) ज ७११४।१ अभिणय (अभिनय) ज ५१५७ अभिणिसढ (अभिनिमृत) सू ६।१,३ अभिणिस्तव (अभि+नि । स्र ) अभिणिस्पति ज ४११०७ अभिणिस्सित (अभिनिथित) सू ६३ अभिणी (अभिणी ) अभिणेति ज ५१५७ अभिष्ण (अभिन्न) प ११।७२ अमिथुण (अभि : प्टु) ___ अभिथुणंति ज २१६४ ; ३।२१० अभिथुणंत (अभिष्टु वत्) ज २१६४ ; ३।१८५,२०६ अभिथुब्वमाण (अभिष्टयमान) ज २१६५, ३१८६ २०४ अभासय (अभाषक) १०१८।१०५ अभिइ (अभिजित् ) ज ७।११३।१, १२८ से १३१, १३३,१३४११, १३५,१३६,१३८,१४१,१४६, १५६,१७५ सू १०।१ से ६,८,२०,२३,२७,५५, ६३,७५,७८,६२,१२०,१२२,१२३,१३० से १३६; १२।१६; १५।८,११; १८७; अभिओग (अभियोग) उ ३६१ अभिक्ख (अभीक्षण) ज २११३१ अभिक्खण (अभीक्ष्ण) ११७१२,२५, २८।२१,३३, ६७ ज०१।१८, २११३१,१३३; ३।१०४, १०५ उ ११५६,८४,६७, ३।११७; ४१२१ अभिगम (अभिगम) प ३४।१२ अभिगमण (अभिगमन) ज ५७,४१ सू० १३११७ उ १।१७; ३७ अभिगय (अभिगत) उ ३३१४४; ५।३४ Vअभिगिण्ह (अभि+ ग्रह )अभिगिण्हइ उ ३।५५ अभिगिहिस्सामि उ ३१५० अभिगिण्हेत्ता (अभिगृ ह्य) उ ३१५० अभिग्गह (अभिग्रह) प १११३७१२ उ० ३१५० अभिचंद (अभिचन्द्र) ज २१५६, ६१; ७/१२२११ सू १०१८४।१ अभिजात (अभिजात) सू१०1८६४२ अभिआय (अभिजात) ज ३१३; ७१११७.२ अभिजिणमाण (अभिजयत् ) ज ३१८,३१,१८० अभिजिय (अभिजित) ज ३।३६,३६,४७,५६,६४, ७२, १२६१४, १३३,१३८,१४५,१८८) ७/१२६ अभिजेतुं (अभिजेतुम् ) ज ३१६५ अभिज्झियत्त (अभिध्यातत्व) प २८।२४,२६ अभिनिविट्ठ (अभिनि विष्ट) प २०१३६ अभिनिस्सब (अभि-नि+स.) अभिनिस्सवेइ उ १४५६ अभिभूय (अभिभूत) ज २११३३ उ ११६०,६२,८५, ८७,६३ अभिमुह ((अभिमुख) ज ११६; २६०३.१४, १५,२२,३०,३१,३६,४३,४४,५१,५२,६० ६१,६८,६६,१३०,१३१,१३६,१३७,१४०, १४११४५,१४६,१५०,१७२,१७३,२०५,२०६, ४।१,३७,३८,६५,७१,७३,६०,६१,६४; ५।५८,६।२३ से २६ उ १।१६३४३ अभिरक्ख (अभिरक्ष ) अभिरकरवउ उ ३३५१ अभिरममाण (अभिरममाण) ज २११४६ : ५१६७ अभिराम (अभिराम) प २१३०,३१,४१ ज ३.१, ७,६,१७,२१,३४,८८,१०६,१७७,२२२; ४१२७,५७,२८,४३ सू २०१७ उ ५५ अभिरुइय (अभिरुचित) उ ३११३८ अभिरूव (अभिरूप) प २१३०,३१,४१,४८,४६, Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३२ ५६,६३,६४ ज ११८,२३,३१,४२,२।१२,१४, १५,४३,६,१३, २५, २७, २६,३३,४६, १४६ ; ५।६२०१११ उ०५/४ से ६ अभिघमाण (अभिलङ्घमान) ज ४ ४६ अभिलाव ( अभिलाप ) प ४५५ ६१४६,५६,६६,७८ १११,१२३; ११।८३ १५३८, ५०; १७८८, ६१,६६,११७,१४५ १४६ : २११५५ : २२५८; २३।१६१; ३६।६५ ज ३।२११६४१२३८ ; ७। १५५ सू ५।१ ; ६ । १७११ १२, ३१०।२३. १४८, १५० : १५६; १८ १ १६ १,३१६२०१२ अभिवंदिऊण (अभिवन्द्य ) प १|१|१ अभिवढि ( अभिवृद्धि ) ज ७ १३० अभिवदित (अभिवर्धित ) सू १०।१२८, १२६; ११११ ; १२।१,६,१२,१५।२६ से २८ अतिसंवछर (अभिववितसंवत्सर) सू ११ २ से ६; १२/६ अभिवदित्ता (अभिवर्ध्य ) सू ६।१ अभिवदेवया ( अभिवृद्धिदेवता ) सू०१०१८३ अभिवयि ( अभिवर्धित ) ज ७ १०५, ११० से ११२५ १०११२७,१२६१५ अभिवढियसंवच्छर (अभिवर्धितसंवत्सर) सु १०११२७ अभिवदेता ( अभिवर्ध्य ) ज ७/२७ सू६ । १ अभिवढे माण (अभिवर्धमान ) ज ७ १०, १६,२२,२५,२७,३०, ६६,७५,८१, सू १२०, २१,२७६।१२ अभिव (अभि + वृध् ) अभिवुड्ढे इ स ६ । १ अभिवुढा (अभिवयं ) सू १११४ अभिबुड्ढेमाण (अभिवर्धमान ) सू ११४; २३;हार अभिसमण्णा (अभिसमन्वागत ) प २०३६ मू ३१२६,३६,४७,१२२,१२६,१३३३३८५, ६४, १२२, १६३ ५।३१ अभिसरमाण (अभिसरत्) उ ३१६८ अभिचि ( अभि + सिंच्) अभिसिंचइ ज २१६४ अमिसिचंति ज ३।२१०, ४१२४८, २५० से २५२:५/५६ अभिसिंचति ज ३।२०६६ ५६० अभिलंघमाण-अमणुष्ण / अभिसिचाव (अभि + सेचय् ) अभिसिचाइ उ १९६८ अभिसिचावेसि उ १।७२ अभिसंचावित्तए (अभिषिञ्चयितुम् ) ज ३११८८ उ० ११६५ अभिसिंचिता (अभिषिच्य ) ज २२६४ अभिसिंचिय (अभिषिञ्चित ) ज ३।२१२ अभिसित (अभिषिक्त ) ज ३१२१४ अभिसेक (अभिषेक) ज ३१२०४, २१४, २१७, ४१४० अभिसेक्क ( अभिषेक्य ) उ १।१२३,१३१ अभिसे (अभिषेक) ज २।१५; ३।२०६; ४१ १४० ११ १६०,२४४,२४८; ५१५७,५८,६१,६५ अभिपीढ (अभिषेकपीठ ) ज ३११९४ से १६६, २०४ से २०६,२१४ से २१६ अभिसेघमंडव ( अभिषेकमण्डप) ज ३ । १९१,१६३, १९४,१८,२०४ से २०६,२०८,२१४ अभिसेयसभा ( अभिषेकसभा) ज ४११४० अभिसेसला ( अभिषेकशिला) ज ४ २४४; ५४७ अभिसेयसिहासण ( अभिषेक सिंहासन ) ज ४२४८; ५४७ ~ अभिहण ( अभि + हन् ) अभिांति प ३६ / ६२,७७ अभिहणमाण ( अभिघ्नत् ) ज ३११०६ अभिहिय ( अभिहित ) प ११०१।१२ अभीइ ( अभिजित् ) ज २२८५,८८,१३८७११३६ । १ सू १६।२२१२७ अभी ( अभीत) ज २६४ अभेज्ज (अभेद्य ) ज ३२७६,६६ से १०१,११६, अमेल (अभेल) ज ३।१०६ अमच्च (अमात्य) ज ३१,६,७७,२२२ अमणाम (दे० ) ज २।१३३ अमणामतरिया ( 'अमणाम' तरका) प १७ १२३ से १२५,१३० ते १३२ अमणामत्त ( 'अमणाम' त्व) २८१२४ अमणुण्ण ( अमनोज्ञ ) १ २३।१६,३१२११३१, १३३ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमणुण्णतरिया-अरतिरति ८३३ अमणण्णतरिया (अमनोज्ञ तरका) प १७११२३ से १२५,१३० मे १३२ अमणुण्णत्त (अमनोज्ञत्व) प २८१२४ अमणूस (अमनुष्य) प २१७२ अमम (अमम) ज २।५०,१६४,४।१०६ २०५, ७१२२६३ सू १०८४।३ अमयमेह (अमृतमेघ) ज २६१४४,१४५ अमर (अमर) प २१३०,३१,४१, २०६४।२१; ज०७१, ३।३५,१०६,१३८ अमरपति (अमरपति) ज ३१३१ अमरवइ (अमरपति) प २१४५२ ज ३।३.१८, ६३,१८० अमल (अमल) ज ४।२६ अमाइसम्मपिठिउववण्णग (अमायिसम्यक दृष्ट्यु पपन्नक) प १७४२७,२६ अमाइसम्मद्दिठी (अमायिसम्यकदष्टि) प१५।४६; ३४।१२,३५॥३ अमाइसम्महिठी उबवण्णग(अमायि सम्यकदृष्ट्युप पन्नक) प १७।२७ अमाण (अमान) ज २१६८ अमाय (अमाय) ज २१६८ अमावासा (अमावास्या) ज ७।१२५,१३७,१४७, १४८.१५०,१५१,१५४,१५५, सू १०७,२३ से २६,१३६,१३७,१४८ मे १५१,१५७ से १६१, १३.१ से ३,६, अमिज्ज (अमेय) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, ७४,१४७,१६८ २१२,२१३ अमित्त (अमित्र).ज ३।२२१ अमिय (अमृत) प २१६४११६ अमिय (अमित) प२१४०१७ ज ७१७८ अमियवाहण (अमितवाहन) प २१४०१७ अमिलाय (अम्लान) ज ३।१२,२८,४१,४६,५८, ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ अमिलाव (अमिलाप) ज ४१२३८ अमूढदिदिठ (अमूढदृष्टि) | ११०१।१४ अमोहा (अमोहा) ज ४११५७।१ अम्मता (अम्बा) उ ४१११ अम्मया (अम्बा) उ १२३४,४०,४३,७४, ३६८, १०१,१३१ अम्मा (अम्बा) प १११३,१८ उ १७१,७३,८८ अम्मापिइ (अम्बापितृ) उ राह अम्मापियर (अम्बापितृ) उ ११६३ ; ३११२६,१२८ ४।११,१४,१५,१६, २७,३८ अम्ह (अस्मत्) प ११३ ज ५।३ सू ११२० उश१५ अय (अज) प.१६४; ११।१६ से २० ज २१३४, ३५७।१८६।३ अय (अयस्) प १२०१ ज १७ अयकरय (अजकरक) ज ७:१८६।२ स २०१८,८।२ अयखंड (अयस्खण्ड) प ११।७४ अयगर (अजगर) ११४६८,७२ ज २०४१ अयगोल (अयोगोल) ११४८१५६ अयण (अयन) ज २१४,६६७१२६,१२७ सू ६.१८१११३७,६,१२ से १४ अयदेवया (अजदेवता) स १०।८२ अयमाण (अयमान) ज ७१२०,२३,२६,२८ सू १११४,१६,२१,२४,२७, २॥३,६६१,१३११ १४॥३,७ अयल (अचल) ज ३७६,११६ अयसिकुसुम (अतसीकुसुम) प १७।१२४ अयसी (अतसी) ५११४५२२।३१ ज १३७ अयाणंत (अजानत्) प १।१०१५ अयोझ (अयोध्य) ज ३१३५ अयोमुह (अयोमुख) प ११८६ अर (अर) ज ३१३५ अरइ (अरति) प २३७७ जं २७० अरजा (अरजा) ज ४१२१२ अरणि (अरणि) ज ५११६ उ ०३१५१ अरण्ण (अरण्य) ज २२६६,१३१ अरति (अरति) प २३१३६,१४५ अरतिरति (अरतिरति) प २२०२० Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरत्त-अवज्झा अरत (अरक्त) प २१७० ६४,७२,७८,१५०,१८०,२०६,२२४;५।१४, अरय (अरक) ज ३।३० २२,३६,४१,४३ उ ११३५,७०,३१५०,११०, अरय (अरजस्) सू २०१८१७ ११३; ४११८,२०, ५।१७ अरयंबर (अरजोम्बर) प १५० से ५३,५४ अलंकारिय (अलंकारिक) ज ४।१४० ज २१६१ अलंकित (अलङ्कृत) सू २०१७ अरयंबरवत्थधर (अरजोम्बरवस्त्रधर) ज ५१८, अलंकिय (अलङ्कृत) प २१४८ ज ३१६,८५,२११, ४५ २२२,४१४६,५१५८ उ १।१६,४२,३३२६, अरया (अरजा) ज ४।२१२१२ १४१ ; ४.१२ अरबाक (अरबक) प ११८६ अलंबुसा (अलम्बुसा) ज ५१११११ अरविंद (अरविन्द) प ११४६.११४८।४४ अलकापुरी (अलकापुरी) ज ३।१ ज ३११७ अलत्तग (अलक्तक) उ ३३११४, अरसमेघ (अरसमेघ) ज २।१३१ अलद्ध (अलब्ध) उ ३.३८ अरह (अर्हत्) ज २१६३ से ६७,७३ से १०; अलभमाण (अलभमान) उ ११६६ ५३५८,६५ उ ३।१२,१४,२९,४६,७६,४।१०, अलसंडविसयवासी (अलसण्ड विपयवासिन) ११,१३,१४,१६,२०,५।१४,२०,३२,३३,३६, ज३८१ ३७,३६ से ४१ अलाय (अलात) ५११२६ अरहंत (अर्हत्) प ११६१ ६।२६ ज ११:५।२१ अलिय (अलीक) उ ११४७ सू० २०१९४४ उ १६१७ अलेस्स (अलेश्य) प ३१६६,१३।१६, १७१५६, अरहंतवंस (अर्ह वंश) ज २११२४ ५८,१८७५, २८११२४ अरि (अरि) ज २।२८ अलोग (अलोक) प १०१२,४,५; १५:१२ अरिट्ठ (अरिष्ट) ५१३५।२ अलोय (अलोक) प २१६४१३,१५।५७,३३३१३ अरिठ्ठनेमि (अरिष्टनेमि) उ ५११४,२०,३२,३३, अलोवेमाण (अलोपयत् ) उ १११११,११२ ३६,३७,३६, से ४१ अमोह (अलोभ) ज २१६८ अरिस (अर्शस ) ज २१४३ अल्ल (आद्र) उ ११४४ से ४६ अरिह (अह) ज १२ उ ११३६,४२ अल्लइकुसुम (आद्र कीकुसुम) प २७।१२७ अरुण (अरुण) ज ४।८४,८५ सू २०१८,८१५ अल्लग (आद्रक) ज ३१११६ अरुणवर (अरुणवर) प १५।५५।१ सू १६६३१ अल्लोण (आलीन) ज २११५,१६, ७।१७८ अरुणवरोभास (अरुणवरावभास) सू १९३१ अवक्कम (अव- क्रम्) अवक्कमइ उ ३।११३, अरुणोभास (अरुणावभास) ज ४१८५ अवक्कमति ज ३११११,११५.१६२,२०८; अरुणाभ (अरुणाभ) सू २०१२ ५५,७,५५ अवक्कमह ज ३१२४,४१२० अरुणोद (अरुणोद) सू १६३१ अवक्कमित्ता (अवक्रम्य) ज ३।१११, उ ३१११३; अरुय (अरुज) ज ५।२१ ४१२० अरूवि (अरूपिन् ) प ११२,३,५।१२,३,१२४ अवगाह (अवगाह) प १७१११४।१ अरुह (अह.) अवचिज्ज (अव: चि) अवचिज्जति अरुहत ज ३११२६ प २११६७ अलंकार (अलङ्कार) ज २१६५,६६,१००,३।१२ अवज्झा (अवध्या) ज ४१२१२,२१२१४ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवद्वित-अवाय ५३५ अवठित (अवस्थित) ६.१,१६२२॥११ ५५,५७,६५,६८,७२,७५,७६,९८,१०६,१३१, अवत्तिा (अवस्थाय) यू १६।२२।२२ अवठिय (अवस्थित) प ३३१२५ ज १।११,४७, अवर विदेह (अपरविदेह) प १६।३०।१७।१६१ ३।६२,११६,२२६,४१२२,५४,६४,१०२,१५६, जे रा६४/६४,६६,२१३,२६३।१ २१२ ; ७।३१,३३,१०१,१०२,२१० सू ४१३ अबरविदेहकूड (अपरविदेहकूट) ज ४१६६ ४,६,७,८१ उ ३।४३,४४ अवरयेयालि (अपर'वेयाली') प १६।४५ . अवड्ढ (अपाधं) प १८५६,६४,७७.८३,६०,१०८ अबराइया (अपराजिता) ज ४।२०२।२,२१२, सू ११२२;६।३ २१२।२ अवड्ढखेत्त (अपार्धक्षेत्र) १०।४,५ अवलद्ध (अपलब्ध) ५१४३ अवडढगोलगोलच्छाया (अपार्धगोलगोलछाया) अवव (अवव) ज २१४ सू ६५ अववंग (अववाङ्ग) ज २।४ अवडढगोलच्छाया (अपाधंगोलच्छाया) ६।५ अवस (अवश) उ १५२,७७ अवडढमोलपुंजच्छाया (अपाधंगोल पुजछाया) अवसण (अवसन) ज ३११११,११३ मू ६५ अवसाण (अवसान) प ८१३ ज ३।६,२१७,२२२ अवडढगोलावलिच्छाया (अपार्धगोलावलिछाया) अवसिठ्ठ (अवशिष्ट) प २३३१७५ ज ४११६२ से १६४,२०४,२०८,२१०, अवड्ढभाग (अपार्धभाग) सू १२॥५ २६२,२७१,२७४ ,५१४६,५० अवडढवाविसंठिय (अपार्द्धवापीसस्थित) सू १०.३१ अवसेय (अवशेष) प २५४; ३३१८२५१३७,३६, अवणीयउवणीयवयण (अपनीततोपनीतवचन) ७४, ८६,१०७,१४६,१५६,१६०,१६३,१६७, प१११८६ २००,२०३,२०५,२०७,२२४,२४२१७।१७, अवणीयवयण (अपनीतवचन) प ११३८६ २०१२३,२२१२४; २४११:२६।४,८,२७१२; अवण्ण (अवर्ण) प ३०।२७,२८ २८११२५,१३३,१३६,१३७,१४१ से १४३; अवतंस (अवतंस) सू ५१ ३०१२४,३६१२० ज २१४६,५६,६२,६५,६६, अवतव्बय (अवक्तव्यक) प १०१६ मे १३ १०१,१०२,११३,११४; ४।५३,१४०,१६५, अवदाल (अवन दलय) अवदालेति प ३६।८१ २६५,२६८,५।४२,४५,७१३४१४,१३५१४, अवदालेत्ता (अवदल्य) प ३६८१ १५३ सू १०१२२:१३११, २०१३ अवद्दार (अपद्वार) उ ११११७ मे ११६ अवहाय (अपहाय) ज २१६ अवमंस (दे० अमावास्या) ज ७।१२७१,१६७१। अवहार (अपहार ) प १२॥३२ अवय (अवका) प ११४६,११४८११,११६२ शैवाल अवहिय (अपहृत) ५१२४,३३ अवर (अपर) प १११६,११४८१४,८११६१ ज अवहीर (अप । ह) अवहीरंति प १२।७,८,१०, ४११७; १३७,१५१,५३६ च ५२ सू ।। १२,१६,२०,२४,२७,३२ अवहीरति २.१,३।११०१५,१२७,१३१५,१७,१८१, १२।२७,३२ अवहीरमाण (अपह्रियमाण) प १२।२४,३३ अवरक (अप-क) म १३११२ अवाउक्काइय (अवायुकायिक) प २१:५० अवरत्त (अपरात्र) उ १५१,६५,७६, ३।४८, १० अवाय (अवाय) प १५१५८।२१५।६६ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधि-असंखेज्ज अवि (अपि) प २११३ ज ४२०० सू १।२५,५1१। उ ११३१, ३१११,४१६५४५ अविदमाण (अविन्दान) उ १२४१,४३ अविग्गह (अविग्रह) प ३६।६२ अविग्ध (अविघ्न) ज २०६४ अविणिज्जमाण (अविनीयमान) उ १५३५,४०,४३ अविणीय (अविनीत) ज ३१०६ २०१६१६ अवितह (अवितथ) ज २७८ उ ११२४,४२ ३।१०३ अवियाउरिया (दे० अविजनयित्री) उ ३११३१ अवियाउरी (दे० अविजनयित्री) उ ३६७ अविरत (अविरत) प ३।१८३ अविरत्त (अविरक्त) सू २०१७ अविरय (अविरत) प ११८६ अविरल (अविरल) ज २१५ अविरहिय (अविरहित) प ६१९,६२,६३, ११। ७०,२८१४,२६,५० सू १०७७; १६३२२।१७ अविराहियसंजम (अविराधितसंयम) प २०१६१ । अविराहियसंजमासंजम (अविराधितसंयमासंयम) प २०६१ अविसय (अविषय) प १११६७,२८३१७,६३ ज ७१४६ अविसारय (अविशारद) १० १११०१।११ अविसुद्ध (अविशुद्ध) प १७:१३८ अविसुद्धलेस्सतराग (अविशुद्धलेश्यतरक) प १७७ अविसुद्धवण्णतराग (अविशुद्ध वर्णतरक) प १७।६, १७ अविसेस (अविशेष) प २।३,६,६,१२,१५ अविसेसिय (अविशेषित) ज १५१ अविस्साम (अविश्वाम) प २१४८ अवीरिय (अवीर्य) ज ३.१११ अवे (अप-। इ) अवेति प २८५१०५; ३४।१६ अवेद (अवेद) प २६४।१ अवेदग (अवेदक) प ३।६७:१३६१६ अवेदणा (अवेदना) प २१६४।१ अवेदय (अवेदक) प १८१६३; २८।१४० अवेदिय (अवेदित) प ३६८२ अब्वय (अव्यय) ज ११११,४७,३३१६७,२२६; ४।२२,५४,६४,१०२,७।२१० उ ३१४३,४४ अन्वहिय (अव्यथित) ज २१४६ अव्वाबाह (अव्याबाध) प २१६४११४,२०,२२; ३६४६४११ ज ५१२१ उ ३.३०,३५ अश्वोच्छिण्ण (अव्यवच्छिन्न) ज ३१३ अन्योच्छित्तिणय (अव्यवच्छित्तिनय) सू १७११ २०११ अन्वोयड (अव्याकृत) प १११३७ार अस (अस्) अत्थि प ११७५,८०,५।६६; १२।६,१५१६५,६६,१७३३,२८।१२३,१३६, १४१,१४२,१४५ ज ११४७ आसि ज २४७ आसीप २६४१५ सिया स१०।२५ असइ (असकृत) ज ७१२१२ असंकिलिट्ठ (असंक्लिष्ट) प २।३१,१७११३८ असंख (असंख्य) प ११४८।६० असंखभाग (असंख्यभाग) प ११४८६० असंखिज्जइभाग (असंख्येयभाग) प २३.१०१, १५१,१५७ असं खिज्जगुण (असंख्येयगुण) ५१८१६३,२११४० असंखिज्जतिभाग (असंख्येयभाग) प २१४८ असंखिज्जसमइय (असंख्येयसामयिक) प १५।६१ असंखेज्ज (असंख्येय) प १११३,२०,२३,२६,२६, ४८,११४८१८,४०,५६,२।१०,११,४१ से ४३, ४६,४८५०,५६३११८०:५२,३,५,१२६, १२७,१४४,१४५,१५१,६१४२,६० से ६४,६८, १०।१६.१८ से २०,२३,२५,२८,३०,११।५०, ७०,७२,१२१७,८,१२,१६,२०,२४,२७,३१, ३२,१५.१२,२५,५८११:१५८३,८४,८७,६१, ६२,६४ से ६६,१०३,१०४,११८,१२० से १२३,१२५ से १२८,१३५ से १३७,१४० से १४२,१७११४१,१४३:१८१३,२६,२७,३७ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंखेज्जइभाग-असंविदित ८३७ ३८,४१,४३,६५,१०७,११७,२८1५,५१:३३॥ २८१२२,३४,३६,६८,३३३१२,१३,१६,१७, १०,१२,१३,१६,१७,३४११३:३६।८,१३ से ३६।६६,७०,७३,७४ १५,१७ से २०,२२,२३,२५,२६,३३,३४,४४, असंखेज्जपएसिय (असंख्येयप्रदेशिक) प ५१३५, ६६,६८,६२ ज ११४६:२१४,५८,८४,९०,१५७; १३६,१६५,१६६,१८३,१८४,१६६,२००, १३४१६५४ ३३३;४।५२,१६५:५।४४ सू १३१२,१४।४,८%; २२०,२२१,१०१७,२२,२७,१११४६ १८.१,१६।२२।११६१३४,३५,३७,३८ असंखेज्जपदेसिय (असंख्येयप्रदेशिक) ३३१७६; असंखेज्जइभाग (असंख्येयभाग) प १७४,८४; ५११२७,१८४,१०,१७,१६,२३,२८ २२१,२,४,५,७,८,१३,१६ से ३२,३४ ३५,३७. असंखेज्जभाग (असंख्येयभाग) प ५१५,१०,२०,३०, ३८,४१ से ४३,४६,४६,५०,५२,५८ से ६०; ३२,१०२,१२६ ४११४६,१५१,१५७:१५।२२,१८।२७,७० से असंखेज्जवासाउय (असंख्येयवर्षायुष्क) प ६७१, ७२,६५,११७,२०६३,२११३८,४० से ४२, ७२,७६,८१,६४,९५,६७,१०७,१०८,११६; ४८,६३ से ६७,७०,७१,८४,८६,६० से १२ २११५३,५४,७२ २३१६१,६४,६६,६८,७३,७५ से ७७,८३ से असंखेज्जसमइय (असंख्येयसामयिक) १९७१ ८६,८८ से १०,६२,६५ से १६,१०२ से १०४, २८१४,३८,३६१२,८४,९२ १११ से ११४,११७,११८,१३४,१३५,१३८, असंखेज्जसमयट्ठितिय (असंख्येयसमयस्थितिक) १४०,१४२,१४३,१५१ से १५३,१५५,१५६, प ५१४८,११:५१ १६०,१६१,१६४,१६६ से १६६,१७१ से असंखेज्जसमयठितीय (असंख्येयसमयस्थितिक) १७३,२८।४०,६६ उ ३।८३,१२०,१६१; प३१८१ ४।२४ असंखप्पद्धपविठ (असंक्षेप्याध्वप्रविष्ट) असंखेज्जग (असंख्येयक) ५ १२१७ प २३।१६३ असंग (असम) प २१६४११,२१ असंखेज्जगुण (असंख्येयगुण) प २०६४।११,३।१०।। असंजत (असंयत) प ३३१०५, ६१६७,६८ से २३,२६,२६ से ३६,३८,३६,४५ से ५२,५६ असंजय (असंयत) प ३।१०५; १७।२३,२५,३०; से ६३,७१ से ६६,१०१,१०३ से १०५,१०७, १८६०; २०१६०; २१७२३२११ से ४,६ १११,११६,११७,११६,१२०,१२२,१२५ से। असंजयभबियदव्वदेव (असंयतभविकद्रव्यदेव) १२६,१३१ से १७३,१७५ से १७७,१८२, प २०६१ १८३,५१५,१०,२०,३२,१२६,१५१;६।१२, असंठाण (असंस्थान) ५३०४२७,२८ १९,२५,१०।३ से ५:११४६०:१५।१३, असंत (असत्) प २१६४।१७ १७०५७,६०,६३,६४,६७,६८,७१,७३,७४,७६, असंतप्यमाण (असंतप्यमान स 12 ७६ से ८३,१४४ से १४६,२०१६४,२१।१०४, ' असंदिद्ध (असंदिग्ध) उ० १२४,४२ १०५,२८७,५३;३४।२५,३६।३५ से ४१,५२, , " असंपत्त (असंप्राप्त) प १४२०,२३,२६,२६,४८% ६२ २३१,१६।२२ ज ४।४२,७१,७७,९४,२६२, असंखेज्जजीविय (असंख्येयजीविक) प ११३५,३६ __५१५,३८,४४ सू१०।१४२,१४७,१२।३० असंखेज्जतिभाग (असंख्येयभाग) प २१५१,६१,६३, असंभंत (असम्भ्रान्त) ज ५१५,७ ६४ ; ४११५५,१२१८,१२,१६,२४,२७,३१, असंविदित (असंविदित) उ ११०७,१०८,११६, १५७,८,४०,४२:१८१३,४१,४३,२३१५१, Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३८ असंसारसनावण्ण ( असंसारसमापन्न ) प ११० से १३ असंसारसमावण्णन (असंसारसमापन्नक) प ११३६, २२८ असकण्णी ( अश्वकर्णी ) प ११४८ । १ अक्काfरय (असत्कारित) उ ११११७ से ११६ असच्चामोसभासम (असत्यमृषाभाषक ) प ११ ६० असच वामोसमण (असत्य मृषामनस् ) प १६११,७ असच्चामो समणजोग (असत्यमृषा मनोयोग ) प ३६४५६ असच्चामोसवइ (असत्यमृषावाक् ) प १६ ३, ६, १३ असच्चामोसवइजोग (असत्यमृषावारयोग ) प ३६६० असच्चामोसा (असत्यमृषा ) प १११२,२,३५,३७, ४२ से ४६,८३ से ८५,८८,८६ असण ( अशन ) प १३५१३ उ ३१५०,५५, १०१, ११०,१३४, १४६ असण ( अशनि ) प ११२६ नू २०११ असणिमेह ( अशनिमेघ ) ज २।१३१ असण्णि (असंज्ञित् ) प ११८४ ३११२ १७/२०; १८१२०:२०१६१,६३, २३१६७,१७१ २८/११७ से ११६; ३१११ से ३, ५, ६,६११ः ३५।२० असणिआउय (असंज्ञयायुष्क ) प २०१६२ असणभूत (असंज्ञिभूत ) प ३५।२० असणिभूय (असंज्ञिभूत ) प १५३४८, १७१६; ३५।१८ असणिहि (असन्निधि) ज २११६ असणिभूय (असंज्ञिभूत ) प १७।२० अथ (अगस्त्र ) ज ३६२, ११६ उ ३३८,४० असमोहत (असमवहत ) प ३१७४ असमोहय ( अममवहत ) प ३११७४ ३६।३५ से ४१,४८ से ५१ असम्मानिय ( असम्मानित ) उ० १।११७ से ११६ असरीर (अशरीर ) प २६४ १२:३६ १३,६४ असरीरि (अशरीरिन् ) प २८ ११४१ असंसारसमावण्ण असुरकुमार असाढ (अपादक ) प ११४२१ असात (असात ) प ३५।११२; ३५८, ६ असातवेद (असातवेदक ) १ ३११७४ असातावेयणिज्ज ( असातावेदनीय ) प २३१२६,१८० ternoon ( असामान्यक ) सू १३१५, ६, १२,१३,१७ असाय ( असात ) १२२५ असायावेदणिज्ज (असातावेदनीय ) प २३|१६ असायावेयणिज्ज ( असात वेदनीय ) प २३ १६,६४, १३६ असासय ( अशाश्वत ) ज ७२०८, २०६ असाहुदंसण ( असाधुदर्शन) उ ३१४७,७६ असि (असि ) प २२४१; १५।१।२३१५१५० ज २।२३,३१,१७८ ३।१७८ उ १।१३८ असि (असित ) प २३१ असिरयण ( असिरत्न ) ज ३।१०६१७८, २२० असिरयणत्त ( असि रत्नत्व) प २०६० असिलेस (अश्लेष ) ज ७ १२६११,१६२ असीड ( अशीति ) प २२५६१३ retsमंगुलसि (अशीत्यङ्गुलोच्छ्रित) ज ३।१०६ असीति ( अशीति) प० २१५११।२२१२१५, १२ असुइ (अशुचि ) प २२० से २७ ज २।१३३; ५५ उ १।६३;३।१२६,१३० असुइजाय कम्मकरण ( अशुचिजातकर्मकरण ) उ० ११६३, ३११२६ असुइय ( अशुचिक ) प १३८४ असुभ (अशुभ) १२/२० से २७; २२२४ अभणाम (अशुभनामन् ) प २३।३८,१२३ अभत्त (अशुभत्व ) प २८१२४ उ १।२७,१४० असुर (असुर) प० २१३० १.२१४० १, ५, १०; ५।३३६।४६ ज २१६४ ३।२४/१,२, १३१११,२,३ १८५, २०६६ ५५२; चं ११२ असुरकुमार (असुरकुमार ) प १।१३१; २/३१ से ३३,४०१८ ४१३७ से ३६५६ से ८,४८ से ५०, १२१; ६।१७, ५२,६१,८१,८५,६३,१०१, १०६,१११, ११२, ११४ ७ २ ८ ३ ; ६३, Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असुरकुमारत्त-अहवणं ८३६ १५,१०,१११४४; १२२,१५,१६,३१; १३।१५,२०१५।१६,३५,७१,७८,८४,८७, १०२,१३६,१३८; १६:३,११,१६,१७:१४ से १७,२६,३०,३३,३४,६३,६८,६६,१०१, १०२,१०५,१६१; २०१३,५,६,११,१२,१५, २० से २४,२७,३५,३७,४४,६०, २११५५, ६१,७०,६०%, २२।२३,३७,४५,२८.१,२५, ७४,१०६ ; ३१।२; ३३।१०,२०, ३४।२,४,५, ३५१३,३६५,८,१६,२०,२३,२४,२६,३७, ४१,५०,५५,६९,७२ उ २०१७ असुरकुमारत्त (अमुरकुमारत्व) प १५१६५,६७, ११६,१४१३६।१८,२०, २२ से २४ असुरकुमारराय (असुरकुमारराज) प २।३१,३२ ज २११३,५१५०,५१ असुरकुमारिद (असुर कुमारेन्द्र) प २१३१,३२ असुरकुमारी (असुरकुभारी) प ४१४० से ४२; २०१२ असुरिंद (असुरेन्द्र) ज २१११३,५१५० से ५२ सू २०१७ असुह (अशुभ) प २२० से २७ असेलेसिपडिवण्णग (अशैलेशीप्रतिपन्नक) प १११३६, २२१८ असेस (अशेष) ज ७।१३५३२ असोग (अशोक) प० ११३५३ ज २१६५, ३।१२, ३५,८८,१८८,४।२१२१२,५०५८ सू २०१८, २०१८१७ उ १२१, ३६५६,६४,६६,६८,७६ असोग (लता) (अशोकलता) प ११३६१ असोगवडेंसय (अशोकावतंस) प २।५०,५२ असोगवणिया (अशोकवनिका) उ ११५५ से ५७, ८० से ८२ असोगवण (अशोकवन) ज ४११६ असोगा (अशोका) ज ४१२१२ अस्प्त (अश्व) प ११६३ अस्संजत (असंयत) प ३२०६१ अस्संजय (असंयत) प ११८६; २८।१२६% ३२।६।१ अस्संजयभवियदव्वदेव (असंयतभविकद्रव्यदेव) प२०६१ अस्सण्णि (असं जिन्) प ११७४६।८०१ अस्सतर (अश्वतर) प ११६३ अस्सदेवया (अश्वदेवता) सू १०८३ । अस्सपुरा (अश्वपुरा) प ४।२११ अस्सरह (अश्व रथ) प ३१२१,२२,३४ अस्मातावेदग (असातवेदक) प ३११७४ अस्सातावेदणिज्ज (असातवेदनीय) प २३१६ अस्सातावेयणिज्ज (असातवेदनीय) प २३११६ अस्साय (आ-!- स्वादय) अस्साएइ प १५।३.८ अस्साएंति प २८१२२,३६,६८ अस्सायण (आश्वायन) ज ७१३२ सू० १०६६ अस्सायावेदणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।३१।। अस्सिणी (अश्विनी) ज ७।११३११,१२८,१२६, १३६,१४३,१४६,१५५,१५८,१५६, सू१०११ से ६,१०,२२,२३,३४,६२,६५,६६,७५,८३, ६६,१२०,१३१ से १३३,१५४ अस्सेसा (अश्लेषा) ज ७/१२८,१३४,१३६,१४०, १४७,१५० सू १०१ से ६,१४,२३,२५,४२, ६२,६६,७५,८३,१०७,१२०,१३१ से १३४।२, १५७ अस्सोई (आश्वयुजी) ज ७।१४०,१४३,१४६ सू १०१२३ अस्सोय (आश्वयुज) सू १०।१२४ अह (अथ) प ५१५ उ० ३१२६ अह (अधस्) ज ३११८८ अहक्खाय (यथाख्यात) प १३१२४,१२६ अहक्खायचरित्तपरिणाम (यथाख्यातचरित्रपरिणाम) प०१३।१२ अहत (अहत) ज २११००; ३1३५,२११,५१५८ अहत्ता (अधस्ता) प० २८१२४,२६ अहमिद (अहमिन्द्र) प २०६०,६१,६२।१,६३ अहय (अहत) ज ३१६,११७.१२,२२ अहर (अधर) प २१३१ अहवणं (अथवा) प० १२११२ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४० अहवा-अहोसिर अहवा (अथवा) प १११०३ ज २।६६ सू १०।१२० बांधे जानेकला उ ११११५ अहिवइ (अधिपति) ज ३१२६,३६,१५६,५१८,४६ अहाछंद (यथाछन्द) उ ३३१२० अहिसलाग (दे०) प ११७१ अहाछंदविहारि (यथाछंदविहारिन् ) उ ३।१२० । अहीण (अहीन) उ ५१४५ अहापडिरूव (यथाप्रतिरूप) उ ११२, ३।२६,६६, अहीय (अधीत) उ ३।४८,५० १३२,५।२६ अहणोववण्ण (अधुनोपपन्न) उ ३११५,८४,१२१, अहाणुपुम्वी (यथानुपूर्वी) ज ३११७८,१७६,२०२, १६२ २१७:५१४३ अहे (अधस्) प २।२० से २७,२७१३,२।३०,३१, अहाबायर (यथाबादर) ज ३.१९२,५१५,७ ४१,११६६५,६६,६६१,१६:५५, २११८७, अहामालिय (यथामालिक) ज ३१६ ६०,६१,२८।१५,१६,६१,६२, ३३।१६ अहारिह (यथाह) उ ३।११५ ज २१६५,७१,७१५४,१६८।१ सू २:१; अहासुह (यथासुख) उ ३११०३,११२,१३६,१४७, ४।१०,१६:२२, २०११,२ उ ११४६, ३१५६, १४८,४।११,१४,१५,१६ ६४,६८,७१,७४ अहासुहम (यथासूक्ष्म) ज ३१६२ अहे (अथ) उ ३१५११ अहि (अहि) प श६८,६६,७१ ज० २।४१ अहेतु (अहेतु) प ३०१२७,२६ अहिंग (अधिक) सू ११२७; १५२४,२५ अहेदिसा (अधोदिशा) ५ ३।१७६,१७८ अहिगम (रुइ) (अधिगमरुचि) प १११०१११ अहेलोइय (अधोलौकिक) प २११६२,६३ अहिगमरुइ (अधिगमरुचि) प १५१०११८ अहेलोय (अधोलोक) ५० ३।१२५ से १७३,१७५, अहिगरणिया (आधिकरणिकी) ५२२६१,३,४८, १७७ ५३ से ५६,५८,५६ अहेसत्तमा (अध:सप्तमी) प ३।१७,१८,४॥२२ से अहिगरणिसंठिय (अधिकरणीसंस्थित) ज ३.९४, २४६.१६,५१,६०,८०,८८,६१,६२,१००, १३५,१५८ १०६१०२,३,१६२६,२०७,४३,५७%, अहिगरणी (अधिकरणी) प २२१४८ २११५२,५६,६७,८७,३०१२६,३३१६,१७ अहेसत्तमापुढवि (अध:सप्तमीपृथ्विी) १० २०१५२ अहिछत्ता (अहिछत्रा) प ११९३२ अहिज्ज (अधि- इ) अहिज्जइ उ २०१० अहो (अहो) ज ३११२६ उ ११६२,५१२२ अहोरत्त (अहोरात्र) ज २१४,६६; ७२० से २४, ३३१४:५२८ २६ से २६,१२२,१२६,१२७,१३४११, अहिज्जंत (अधीयान) प ११०१०६ १३५२१ से ४,१५६,१५७,१६० सू १११४, अहिज्जित्ता (अधीत्य) उ २६१०३।१४; ५॥३६ १६,२१,२४,२७,२२३; ६:१; ८।१,१०१३,६३ अहिय (अधिक) प २१२७१२,१३।२२।२,२३।१४७, से ७४,८४,१३४,१२।२ से ५,१२,१५१११, १५८,१६२,१६५ ज २११३१३१३६,७६,११७, १२,२६ से ३१,३४ २२२,४१४६७२७,२९,३० सू १११४,१६, अहोलोग (अधोलोक) ज ५१ से ३,५ २१,२४,६।११।२८,३१,३२:१६।११.१ अहोलोय (अधोलोक) प २१,४,१०,१६ से १६,२८ अहियास (अधि+सह, आस्) अहियासिज्जति अहोवाय (अधोवात) प १२६ उ ५१४३ अहिया सेइ ज २१६७ अहोसिर (अध:शिरस्) ज १५; १८३ उ०१३ अहिलाण (दे०) ज ३।१०६,१७८ घोड़े के मुंह पर Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आइ-आउहघरसाला ८४१ आ आइ (आदि) प ५१४,१४३,२१८, २५।४ ज २१२१:५१२७,४०,५५,५७, ७/४५,५० उ २२२२, ५।४५ Vआइक्ख (आख्या ) आइक्खइ ज ७२१४ उ१६८ आइक्खग (आख्यायक) ज २०६४ आइगर (आदिकर) ज ११ उ ३।१२,५११४ आइच्च (आदित्य) ज ३१३,७४२५,३०,१११, ११२१४,५ सू १६।३।१०।१२८,१२६१४,५ आइच्चचार (आदित्यचार) च ५१३ आइणग (आजिनक) ज ४।१३ आइण्ण (आकीर्ण) ज २१३४, ३.१०३,१७८ आइय (आदिक) ५ ११५०,५१,६०,७५,७६,८१, २४।८ ज १३५,६४,१४४,३११८५; ४१२४८,२५१, ५.३८,५७,७११२६ उ २११०, १२३३१४,१६१,२५०२८,३६,४१ आइय (आचित) १७११६ आइल्ल (आदिम) प ५.१०२, २२।३५,५१,५४ आइल्लिग (आदिम) प १७।३० आइल्लिय (आदिम) प २२।७३,७४ आईणग (आजिनक) सू २०६७ आईय (आदिक) ५ १४।१८, २८।११६; उ १६६,६७,६४,४११३३ आउ (दे० अप) प ६६१०२,१०४,११५; ६।४; १११२६ से २८; १३१६:१७।३३१८१२६, ३२,२०१८,२२,२८,२११८५:२२।२४:२८।१२३ आउ (आयुष) ज ११२२,२७,५०,२१४६,५१,५३, ५४,५८,१३३ से १३५,१६१; ३१३; ७११३०, १८६।४,२११ आउ (काइय) (दे० अकायिक) प १७१४० आउकाइय (अप्कायिक) प ११५, ३१५० से ५२, ५५, ६० से ६३,६६,७१ से ७४, ७७,८४ से ८७,६०,६५,१५६ से १६१,१८३,४।६५ से आउकाइयत्त (अकायिकत्व) ज ७।२१२ ७०,५॥३,११,१२,६.१६,१०२,१५११३७ आउक्काइय (अप्कायिक) प ११२१:२।४ से ६ ३।३।६।८६,१२।२२,१५।२६,८५,१७१६०, ६६,१०२,१८।३८,४०,४२,५०,२०११३,२५, २६,४४:२११२४,४०; २२॥३१ आउकाय (अप्काय) सू २।१ आउक्खय (आयुःक्षय) उ० २११३; ३३१८,८६, १२५,१५२,४१२६, ५।३०,४३ आउज्जीकरण (आवर्जीकरण) प ३६१८४ आउट्ट (आ+वृत्) आउज्जा ज २१६७ आउट्टि (आवृत्ति) सू १२।१८ से २८ आउड (आ.कुट ) आउडेइ ज ३१८८,१३५, १५५ आउडिय (आकुटित) ज ३।८६,१५६ आउत्त (आयुक्त) प १११८६ ज ३३१७८ आउदेवया (अब्देवता) सू१०।८३ आउपज्जव (आयुषपर्यव) ज २१५१,५४,१२१, १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ आउय (आयुष्क) ए ३३१७४; २०१६१,६३; २२।२८, २३११,१२,१८,३७,१४६,१६६,१८५ १६१,१६३,१६७ से २०१; २४११४:२६:११; २७१५,३६.८२,८३।१,६२ ज २१४६,५८,१२३, १२८,१४८,१५१,१५७, ३१२२५४।१०१ आउयबंध (आयुष्कबन्ध) प ६।११८,११६ आउयबंधद्धा (आयुष्कबन्धाध्वन् ) प २३।१६३ आउल (आकुल) प० २।४१ ज० २०६५ सू २०१७ आउस (आयुष्मत् ) प २।३,६,९,१२,१५,२० से २७, ६० से ६३; ३।३६, १५६४३,४५,३६७६, ८१ ज ११६.१६ से २१,२३,२५,२६,२८, ३० से ३६,३६ से ४३,४८,४६,५१,५४,१२१, १२६,१३०,१३३,१३८,१४०,१४६,१५४,१५६, १६०,१६३, ७.१०१,१०२,१२६, सू ८।१०; २०१७ आउह (आयुध) ज ३७७,१०७,१२४ उ ११३८ आउहघरसाला (आयुधगृहशाला) ज ३१४,५,६,१२, Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४२ आउपरिय-आणंदकड १४,३०,४३,५१,६०,६८,१३०,१३६,१४०, ___ आगायमाण (आगायत्) ज ५१५,७ से १२,१७ १४६,१७२,२२० उ० ३।११४ आउधरिय (आयुधगृहिक) ज ३१५,६ आगार (आकार) ५११३८१३; ३३।१६,२४ आएज्जणाम (आदेयनामन्) प २३।१२६ आगार (आगार) प ३०.२५,२६ आएस (आदेश) ज ३।१६७।६ आगारभाव (आकारभाव) ज १७,२१,२६,२७, आओग (आयोग) ज ३११०३ २६,३३,४६,५०; २५.१४,१५,२०,५२,५६ से आओजित (आयोजित) प २२२५७ ५८,६५,१२२,१२३,१२७,१२८,१३१ से १३३, आओजिय (आयोजित) प २२१५८ १३६,१४७,१४८,१५०,१५१,१५६,१५७,१५६ /आओस (आ+ क्रुश्) आओसइ उ ११५७ १६१,१६४,४१५६,८२,१००,१०१,१०६,१७०, आओसणा (आक्रोशना) उ १६५७,८२ १७१ आकासिया (आकाशिका) ज २११७ आगारभावमाता (आकारभावमात्रा) प १७:१५०, आकुल (आकुल) ज ३१६,२२२ १५२,१५५ आकोसायंत (आक्रोशायमान ) ज २०१५ आगरिस (आकर्ष) प६।१।१६।१२०,१२१,१२३ आगइ (गति) ज २०७१ आगास (आकाश) प २१६४११६१५१५३,५४, आगच्छ (आ। गम् ) आगज्छइ ज २१२४, ५७ ज ३३१०४,१०५,१०७,२११,५१५८ ३.१०७,११४;७/२० से २५,७६,८२ सू २०३ सू २१६ उ १७० आगच्छति प१११७२,२८/४०, आगासस्थिकाय (आकाशास्तिकाय) प ११३; ४३.६६ ज २१३४,३५,३७,१०१,७१०१, ३१११४,११५.११८,१२२,५१२४; १५:५३, १०२,२०२,२०४,२०६ सू ८।१ आगच्छति ५४,५७ सू २३ आगच्छेज्ज प ३६१६१ आगच्छेज्जा आगासथिग्गल (आकाशथिग्गल) प १५।५३,५६ प३६।८१ ज २२६ १४।१२३ आगासफलोवम (आकाशफलोपम) ज २१७ आगच्छमाण (आगच्छत् ) सू २०१२ आगासफालिओवमा (दे०) प १७११३५ आगत (आगत) प२०१६,१० आघवणा (आख्यान) उ ३।१०६ /आगम (आ+ गम् ) आगमेसि ज २८१ आघवित्तए (आख्यातुम् ) उ ३३१०६ आगमण (आगमन) उ ३.१६६ आचिट्ठ (आ- स्था) आचिट्ठामो ज ३१११३ आगमेस्स (आगमिष्यत्) ज २११३८,१६१ आजीविय (आजीविक) ५ २०६१ आगम्म (आगम्य) ज ५१५५ उ ५७ आजोजित (आयोजित) प २२२५७ आगय (आगत) प २०१६ से १,११ से १३; आडोव (आटोप) ज ७१७८ ३४।१।१ ज ३१८२ सू २०१७ उ० १२१७,२२, आढई (आढकी) १६३७११ १०७,१०८,१२७,१२८,१३८,१४०, ३१७,२१, आढत्त (आरब्ध) प १७११४८ २५,२६,६१ आढा (आ--द) आढाइ उ ११३८, ३१५६ आगर (आकर) प १।५४ ज २१२२,१३१; आति उ ३११८ ३।१८,३१,८१,१६७।२,८,३११८०,१८५,२०६, आणद (आनन्द) ज ७/१२२।२ सु १०।८४१२ २२१ उ० ३।१०१:५३३६ उ १७१,७२,२१२१ आगरपति (आकरपति) ज ३१८१ आणंदकड (आनन्दकूट) ज ४।१०५ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आणंदा-आदरिस ८४३ आणंदा (आनन्दा) ज ५।८।१ आणा (आज्ञा) प ११०१।५ ज ११४५,३१८, आणंदिय (आनन्दित) ज ३१५,६,८,१५,१६,३१, १६,५३,६२,७०,७७,८४,१००,१४२,१६५, ५२,५३,६१,६२,६६,७०,७७,८४,६१,१००, १८१,१८५,१६२,२०६,२२१:५।१६,२३,७३ १३४,१३७,१४१,१४२,१५०,१६५.१७३, उश२०,४५,१०८ १८१,१८६,१६६,२१३,५१५,१५,२१,२३,२७, आणाईसर (आज्ञेश्वर) प२१३०,३१,४१,४९ २८,२६,४१,५५,५७,७० उ ११२१,४२; उ ५.१० ३११३६ आणापाणु (आनप्राण, आनापान) सू ८११:२०१५ आणण (आनन) ५२१४६ ज ३।६,१८,६३,१८०, आणापाणुचरिम (आनप्राणचरम, आनापानचरम) २२२ प१०।४०,४१ आणत (आनत) प १११३५ आणापाणुपज्जत्ति (आनप्राणपर्याप्ति, आनापानआिणत्त (अन्यत्व) प १५।४४,४५ पर्याप्ति) प २८।१४२ आणत्ति (आज्ञप्ति) ज ३।२६,३६,४७,५६,६४, आणामिय (आनमित) ज २०१५ ७२,१३३,१३८,१४५५६६१ उ १११६ आणारुड (आज्ञारुचि) प ११०१११,५ आणत्तिया (आज्ञप्तिका) ज २१०५,३७,६,१२, आणु (आन) प ११४८।५३ १३,१५,१८,१६,२८,२६,३१,३२,४१,४२, आणुगामिय (आनुगामिक) प ३३१३५,३६ ४७,४६,५०,५२,५३,५८,५६,६१,६२,६४, आणुपाण (आनप्राण, आनापान) प ११४८।५५ ६६,६७,६६,७०,७४ से ७६,८३,६६,१००, आणुपुटिवणाम (आनुपूर्वीनामन्) प २३।५४,१११, १२८,१४१,१४२,१४५,१४७,१४८,१५१, ११३,११४,१४६ १५४,१६४,१६५,१६८ से १७१,१७३,१७५, आणुपुवी (आनुपूर्वी) प ४४७।३।११।६८,६६, १८०,१८१,१६१,१६८,१६६,२१२,२१३,५।३, ६६।१२३३११२,११५,१७५,१६०; २८.१८, २८,६८,६६ से ७३ उ १।१७,१८,१२३,३।७; १६,६४,६५ ज ७४७,५० सू २०१८ उ २।१२, ४।१६,१७,५१८ २२:५॥३६ आणपाणपज्जत्ति (आनप्राणपर्याप्ति, आनापान आणुपुत्वीणाम (आनुपूर्वीनामन ) प २३१३८ पर्याप्ति) उ ३११५८४ | आणे (आतुम्) उ ११०७ आणपाणु (आन प्राण, आनापान) प १०५३।१ आणेत्ता (आनीय) उ ४११६ आणम (आ+ नम ) आणमंति, ७४१ से ४,६ आणेयव्य (आनेतव्य) ज २६४ आयपत्त (आतपत्र) ज ३।३ आणमणी (आज्ञापनी) प १११६,६,२७,३७१ आतरक्ख (आत्म-क्ष) प २१३१,४३ आणय (आनत) ५२१४६.५८,५६,५६।२,६३,३।१५३; आतव (आतप) ज २।१३४,३।११७ सू १६॥३,४ ४१२५५ से २५७, ६।३५,५६,६६,८६,६६, आतवा (आतपा) सू१८१२४ ११३;७१६:१५।८८,२११७०,६२:२८१८३; आतीय (आदिक) उ ४।१८ ३३।१६३४११६,१८ ज ४।२४६,५१४६; आस (आदर्श) ज ३१११,५१८ ७.१७८ आदंसघर (आदर्शगृह) ज ३१२२२,२२४ आणव (आज्ञापय ) आदसिया (दे०) प १७११३५ ज २०१७ आणवेइ ज ५।२२,२६ उ ११११० आदरिस (आदर्श) ज २१६८ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४४ आदाण-आभिणिबोहियणाणि से ६ आदाण (आदान) सू१२।१५ आपुच्छित्ता (आपृच्छ्य ) उ २०११; ३१५०,५॥३८ आदाय (आदाय) ज २०६५ आपूरेत (आपूरयत्) ज ३३१४,१७२ आदि (आदि) प ११६४,७६,८९२५,४६,१३१, आपूरेमाण (आपूर्यमाण) ज ४।३५,४२,६४,१७४, १३४,१३६,१४०,१४७,१६३,१६६,१६६, २६२,५१३८ १७२,१७४,१७७,१८१,१८४,१८७,१६३, आबाहा (आबाधा) ज २३०,३६,४१ १६७,२००,२०३,२०५,२२१,२२४,२३०,२३२, आभकर (आभङ्कर) सू २०१८,२०८७ २३४,२३७,२३६,१०।२:११६६,६७,६६।१; । आभरण (आभरण) प २१३०,३१,४१,४६% २०१२५,२३।१०८:२४१८; २६१६; २८११२, ११।२५,१५१५५।२ ज २१६५, ३।६,११,१२, २८.१६,१७,६२,६३,१२३,१३३,१३६,१३७, २६,३६,४७,५६,६४,७२,७८,८१,८५,१३३, १४०३६।२०,४६ ज २।६।१,२१७१,१३१, १४५,१८४,२२२,२२४; सू २०१७ उ १११६ १४५ च १३ सू११६।३।५।११०१५,११२२ ४२,३।२६,११३,१४१,४११२,२० आभरण (वासा) (आभरणवर्षा) ज ५१५७ आदिच्च (आदित्य) सू १।१३,१४,१६,१७,२१, आभरणयिहि (आभरणविधि) ज ३११६७४ २४,२७, २०३६।११०५,१०,११,७७, आभरणारहण (आभरणारोहण आभरणारोपण) ज३।१२ १२।१,५,१० से १२,१३१५:१५।२३ से २५; आभासिय (आभाषिक) प ११८६,८६ १६।२२१४,७,८,२२, २०१५ आभिओग (आभियोग) प २०१६१ ज २१२६,६७, आदिच्चचार (आदित्यचार) सू १०।१२१,१२३ आदिपदेस (आदिप्रदेश) सू १३१६ ९८५११४,१५,५३,६१,७२,७३ उ ३१३७,६१ आभिओगसेढी (आभियोगश्रेणी) ज ४।१७२ आदिय (आदिक) प ११४६,६६,२८१४५ आभिओगिय (आभियोगिक) प २०१६१ ज ५।३, सू १०११,१३१, २०१५ ४,२८,४३,५० आदिल्ल (आदिम) प ५१०५, २२१५१ आमिओग्ग (आभियोग्य) ज १११३,३।१६१, सू१६।२२।२५ आदिल्लिय (आदिम) प १७१९७ १६२,१६६,२०७,२०८५१२८,५४,५५ आभिओग्गसेढी (आभियोग्यश्रेणी) ज १२२८ से आदीय (आदिक) प ६१२३,१११३०,२२१४५; ३२, ६६५ २४।९ से ११२६१८,२८.१२३,१२६,१३७, आभिणिबोहिय (आभिनिबोधिक) प १७।११२, १४०,१४५,३६।२० उ १११६,११६ से १२२, १२५, ३।३१,४० आभिणिबोहियणाण (आभिनिबोधिकज्ञान) प ५१५, आदेज्ज (आदेय) ज २०१५ ७,२०,२४,४१,४२,४६,७८,६३,६७,१११, आदेज्जणाम (आदेयनामन्) प २३१३८ ११२,१७।११२,११३,२०।१७,१८,३४; आदेस (आदेश) प १८१६० २६२,१२,१७,१६,२१ आधाव (आ+धाव) आधाति ज ५१५७ आमिणिबोहियणाणारिय (आभिनिबोधिकज्ञानार्य) आपडिपुच्छमाण (आप्रतिपृच्छत् ) ज २१६५ प१९९६ आपुच्छ (आ+प्रच्छ) आपुच्छइ उ ३११४८% आभिणिबोहियणाणावरणिज्ज (आभिनिबोधिक ४१५ आपुच्छामि उ ३३१३६, ४।४५।२७ ज्ञानावरणीय) प २३।२५ आपुच्छणा (आप्रच्छना) उ २६ आभिणिबोहियणाणि (आभिणिबोधिकज्ञानिन) आपुच्छणिज्ज (आप्रच्छनीय) उ ३६११ प ३.१०१,१०३,५१४० से ४२,७७ से ७६, Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभिणिबोहियनाणपरिणाम-आयाम ५४५ ६२ से १४,६६,१०० से ११२,११७:१३३१४, १७,१६,१८१८०; २८११३६ आभिणिबोहियनाणपरिणाम (आभिनि बोधिज्ञान परिणाम) प० १३६ आभियोगसेढी (आभियोगश्रेणी) ज ४१२०० आभिसेक्क (आभिषेक्य) ज ३।१५,१७,२०,३१, ३३,५४,६३,६४,७१,७७,६१,१४३,१५१,१६६, १७३,१७५,१७७,१७८,१५२,१८३,१८५, १६६,२०२,२०४,२१४,२१७,४११४० उ ५:१८ आभिसेय (आभिषेक) ज ३।१०६ आभूय (आभूत) उ १७४ आभोएत्ता (आभोग्य) ज २१६० आभोएमाण (आभोगयत्) उ ३७,६१ आभोग (आभोग) प १४११८१ आभोगणिबत्तिय (आभोगनिवर्तित) प १४१६% २८१४,२५,२७,३७,४७,५०,७३ से ७५; ३४१५ आभोय (आ+ भोगय) आभोएइ ज २१६०,६३; ३१५६,१४५,५२१ आभोएंति ज३।११३; आयंक (आतङ्क) ज २१४३,५१५ उ ३।३५,११२, १२८ आयंत (आचान्त) ज ३८२ उ ३१५१,५६ आयंस (आदर्श) ज २।१५,५१५५ आयंसमुह (आदर्शमुख) प ११८६ आयंसलिवि (आदर्श लिपि) प १०६८ आयत (आयत) प ११४ से ६२२५० से ५२,५७, ५८,६१,६२,१०११५ से २५,२७ से ३०; १५१५२ ज ३।२४,१०६,१३१,१३८।१ आयय (आतत) १७,२॥३१,५३ से ५६,५६, ६०१०।२६:१३।२४ ज १।१८,२०,२३,२५, २८,३२,४८,४।८१,६८,१०३,१०८,१७२, १६१,२०३,२०५,२१४,२४५,२५१,२५२, २६८ उ ११२२,१४० आयर (आदर) ज ३११२,७८,१८०,२०६:५।२२, २६ आयरक्ख (आत्मरक्ष) प २१३० से ३३,३५:४०।५; २०४१,४८ से ५६ ज २४५२।१०४२०, ११२,१५११२२११५६११,१६,४०,४६ से ५१,५२।२,५३,५६ सू १८।२३ आयरिय (आचार्य) प१६५१ ज ३१३५ च १२ उ ५१२६,२८ आयव (आतप) ज ७/१२२।३ सू १०८४१३ आयवणाम (आतपनामन्) प २३।३८,११५ आयसरीर (आत्मशरीर) १२८१२०,३२,६६ आयाए (आदाय) उ १६३ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमित (आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमित) उ ३.66 आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिय (आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमित) ज ३१६८ आयाम (आयाम) ५२१५०,५.६,६४, २११८४,८६, ५७,६० से १३,३६१६६,६८,७०,७२ से ७४, ८१ ज १७,२०,२३ से २५,२८,३२,३७,४०, ४३,४८,५१, २१६,१५,१४१ से १४५:३११, १८,३१,५२,६१,६६,६५,६६,१३१,१३७, १३८,१४१,१५६,१६०,१६४,१८०४११,३, आमोयण (आभोगन) प ३४।१।१ आमंत (आ+ मंत्रय) आमतेइ उ ३।११० ४.१६ आमंतणी (आमन्त्रणी) प १११३७११ आमंतेत्ता (आमन्त्र्य) उ ३१५०, ४११६ आमलग (आमलक) प ११३६।१ आमलगसारिय (आमलकसारिक) सू १०।१२० ५ आमुस (आ - मृश्) आमुसइ उ १६१ आमुह (आमुख) सू१६१२३ आमेल (आपीड) प २१४१ ।। आमेलग (आमेलक) ज २११५:)३.१०६ आय (दे०) प १।४७ आय (आत्मन्) प १४१३ ; १४।१८१ आय (आय) उ १४१,४३ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४६ ६, ७, ६, १२, १४, १५, १६, २४, २५,३१,३३,३६ से ४१,४७, ५२ से ५४,५७,५६,६२,६४,६६ से ६८,७०,७४ से ७६,८०,८१,८६,८८,८६,६१ से ९३,६८,१०२,१०३,१०८, ११०,११२, ११४, ११६,११० से १२०,१२२ से १२७,१३२, १३६,१४०,१४३,१४५ से १४७, १५३ से १५६, १६५,१६७,१६६, १७२, १७४, १७६,१७८, २००,२१५,२१६,२१८,२१६,२२१,२४२, २४५,२४८; ५।३५;७७, १४, १६,३१,३२३१, ३३,३४,६६,७३ से ७८,६०,६३,६४,१०७, २०७१।१४,२६,२७:४१३, ५ से ८१८६ से १३, १६ २०,३०३५/४ आयारभाव ( आकारभाव) ज १।२२ आघावण ( आतापन) उ३१५० आयावणभूमी (आतापनभूमी) उ ३१५०,५१,५३ आयामाण (आतापयत् ) उ ३१५० आयाहिण (आदक्षिण) ज ११६ ; २१६; ३१५; ५१५,४४,४६ उ १।१६,२१३ ११३४॥१३ आरंभ (आरम्भ ) उ १।२७, १४० आरंभिया (आरम्भिक ) प १७ ११, २२, २३, २५; २२/६०,६१,६६ से ६६,७६,६१,६८,१०१ आरंभिया किरिया (आरम्भिकी क्रिया ) प २२ ६७ से ६६ आरण (आरण ) प १।१३५ २४६,५६,५६१२, ६०,६३,३।१८३,४१२६१ से २६३, ६/३७,५६, ६६,७११८, १५।८८ २१ ७०, ९२,२८८५; ३३/१६; ३४/१६, १८ ज ५२४६ आरद्ध (आरब्ध ) प २०१६० आरबक ( अरब ) ज ३१८१ आरबी (आरवी) ज ३१११।२ आरम्भ (आरब्ध ) प १७।३२ आरभड (आरभट ) ज ५१५७ / आरस (आ+रस् ) आरसइ उ ११६० आरससि उ १६८५ आरसिया (आरमित) उ ११६१, ८६ आराम (आराम ) ज २२६५:५५ ७ ३ ३३३६,३६ आयारभाव - आलोअंत / आराह (आ· - राध) आराहेहिति उ ५ ४३ अ राहणविराहणी (आराधनविराधनी) १ ११३ आराहणी ( आराधनी ) प ११३८ आराहय ( आराधक ) प ११८६ उ १२० आराहेत्ता ( आराध्य ) ३५१४३ आरिय (आर्य ) प १३८८,६०,६३६, १११२६ उ १११७ आरूढ ( आरूढ ) ज ३।३५, १२१ आरुभित्ता (आरुह्य ) सू ६१४ / आरुह ( आ :- रुह ) आरुहेति ज २।१०३, १०४ आरुहेत्ता (आरुह्य ) ज २।१०३ आरोग्य (आरोग्य) ज ३१९२, ११६ आरोहग (आरोहक ) ज ३११७८ आलइय (आलगित ) प २१५० ज ५११८ आलंकारिय ( आलंकारिक) ज ३११५० आलंबन (आलम्बन) ज ४२६ आलंबणभूय (आलम्वनभूत) उ३१११ आलय (आलय) ज २०७१ आलावग (आलापक) प १७ । १६७ से १७२; २११३१ सू८।१ लिंगट्टिय (आलिङ्गनवर्तिक) ज ४|१३ सू २०१७ आलिंगgक्खर (अलिङ्गपुष्कर ) ज १११३,२१,२६, ३३,३६,३६,४६, २७, ३८,५२,५७,११२, १२७, १४७, १५०,१५६,१६१,१६४,३।१६२, ४१२, ८, ११५।३२ आलित्त (आदीप्त) उ ३।११३ आलिसंद (दे० ) प ११४५१ आलिसंदग (दे० ) ज २३७ / आलिह (आ -: लिख ) आलिहइ ज ३११२,८८ ५।५८ आहिमाण ( अलिखत् ) ज ३।६५, १५६ आलिहिज्जमाण (आलिख्यमान) ज ३१६६,१६० आलिहिता (आलिख्य ) ज ३।१२ आलुग ( आलुक ) प ११४८।२ आलोअंत (आलोकमान ) ज ३ । १७८ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आलोइय-आसय ८४७ आवास (आवास) ५१५२५५।३ ज ३११८,५२,६१, ६६,७७,८४,१४१,१५३,१६४,१६७।१३,१८० उ ५।४१ आविद्ध (आविद्ध) ज ३१९,७७,१०७,१०६,१२४, २२२; ५५६ उ १११३८ आविद्धकंठ (आविद्धकण्ठ) ज ३।२०६ आवीकम्म (आविष्कर्मन्) ज २०७१ आवेढिय (आवेष्टित) प १५३५१ आस (अश्व) प २१४०।१०।११।२१ ज २।३५ ३।६८,१६७१४,१७८,१७६,२२१,७४१३, १८६।३ उ १३१४,१५,२१,१२१,१२६,१३३, आलोइय (आलोचित) उ०१२;३।१५०,१६१, ५२८,३६,४१ आलोगभूय (आलोकभूत) ज ३९६,१६० आलोय (आलोक) ज ३१६,१२,१८,७७,८८,६३, ६५,१५६,१७८,१८०,२२२, ५१४३,४६ आलोय (आ+ लोच ) आलोएहि उ ३.११५; ४।२२ आवकहिय (यावत्कथिक) प १११२५ आवज्ज (आ+पद) आवज्जति प १११७२ आवड (आवर्त) ज ५१३२ आवडिय (आपतित) ज ५।२५ आवण (आपण) ज ३१३२ आवणगिह (आपणगृह) ज ३।१६७२ आवत्त (आवतं) प ११६३ ज ३१३,४१२३,३५, ३७,४२,७१,७७,६४,१८८ से १६१,२६२; ७।५५ सू१६।२२११०,११,१६१२३ आवत्तकूड (आवर्तकूट) ज ४।१६२ आवत्तग (आवर्तक) ज ३।१०६ आवरण (आवरण) ज ३१३५,११६,१६७।६,१७८ आवरित्ता (आवृत्य) सू २०१२ आवरिस (आ+वष ) आवरिसेज्जा ज ५७ आवरेत्ता (आवृत्य) सू २०१२ आवरेमाण (आवृन्वत्) सू २०१३ आवलि (आवलि) ज ५१२८ आवलिया (आवलिका) प १२।२७,१८१३,२७ ज २।४ चं ५११ सू १।९।१८११ २०१५ आवलियाणिवात (आवलिकानिपात) सू१०१ आवस (आ । वस्) आवसामि उ ३।११८ आवसह (आवसथ) ज ३११६,३१,३२।२,५३,६२, ७०,१४२,१६५,१८१ आवसित्ता (ओस्य) ज ३१२२५ आवस्सग (आवश्यक) उ ३१३१ आवाग (आपाक) प २३११३ से २३ आवाड (आपात) ज ३३१०३ से १०५,१०७ से ११५,१२५ से १२७ आस (आस्य) प २।४०११० आस (आम्) आसि ११४७ आसकरण (अश्वकर्ण) प १८६ आसक्खंधसंठिय (अश्वस्कन्धसंस्थित) सू१०॥३४, आसखंध (अश्वस्कन्ध) ज ४११७८ आसखंधग (अश्वस्कन्धक) ज ७।१३३।१ आसग (आस्यक) उ १८६,६० आसण (आसन) प १११२५ ज २८६,६०,६२, ६३; ३,५५,५६,६४,७२,१०३,११२,११३, १४४,१४५; १२,३,७,२०,२१ सू २०१४ उ ३।१०१,१३४ आसत्त (आसक्त) प २।३०,३१,४१ ज २१७,३०, ३५,८८ आसत्थ (आश्वस्त)उ १२४,६२ आसधर (अश्वघर) ज० ३।१७६ आसपुरा (अश्वपुरा) ज ४१२१२२२ आसम (आश्रम) प १७४ ज २।२२,१३१; ३१८,३१,३२,१८०,१८५,२०६ उ ३१५५,१०१ आसमुह (अश्वमुख) प ११८६ आसय (आस्यक) उ ११६१,६२,८६,८७ आसय (आस्) आसयंति ज १११३,३०,३३,३६; २।७,४१२,६४,८७,१०४,१७६,१८५,१६१, १९७,२००,२०१,२०६,२१४,२३४,२४०, २४१,२४७ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४८ आसरयण ( अश्व रत्न ) ज ३४१०६,२२० आसरयणत्त ( अश्व रत्नत्व) प २०१५६ आसरह (अश्वरथ) ज ३।३४ से ३६ उ १।११० ; ५१३८ आसल (दे० ) प १७|१३४ आसव (आश्रव ) प १११०१।२; १७ १३४ आसा (आशा) उ३।१५६ आसाएमाण (आस्वादयत् ) उ ११३४,४६,७४ आसाढ (आपाढ) ज २२६५७ १०४, ११३, ११४, १२६ सू १०।१२४,१२६ उ ३१४० आसाढा ( आषाढा) सू १०।७५, १२०, १५५, १५६; ११२ से ६; १२/२४ से २८ आसाढी ( आषाढी) ज ७ १३७, १४०,१४६, १४६, १५३,१५५ सू १०१७,१६,२४,२५,२६ आसाय (आस्वाद ) प १७।१३० से १३५ ज २२१७,१८ आसाय ( आ + स्वाद ) आसाएंति प २८१२२, ३४,६८ आसायणिज्ज (आस्वादनीय ) प १७।१३४ ज २०१८ आसालिय (आशालिक, आसालिंग ) प १२६८,७३, ७४ आसासग ( अश्वास्यक ) प २१४० १० आसासण ( आश्वसन ) ज ७ १८६२ सू २०१८, २०१८ार आसिय (आसिक्त) ज २२६५; ३७, १८४ ५७ आसीत (आशीत ) प २२७ १ आसरयण आहारगसरीर सू १०११२६ २,५ आहच्च (दे० ) प १७ २,२५६२८।२१,३३,३८,६७ आहत (आहत ) प २३०, ३१, ४१, ४६ सू १६२३, २६ आय ( आहत ) ज ११४५; ३१२६,८२,१३३; ५०१, १६७१५५, ५८ सू १८१२३ ( आहर ( आ + हृ ) आहरेइ उ ३।५१ आहार ( आ + ह् ) आहारिस्सइ ज २९१४६ आहारिस्संति ज २११३४, १४६ आहारेइ उ ३५० आहारति प १५।४६ से ४६; १७१२, २५; २८।५ से ७, ६ से २३, ३० से ३५, ३६, ४०,५१,५२, ५३, ५५ से ६६,६८ से १०१ ; ३४१६ से १,११,१२ आहारेमि प ११।१२, १७ आहार (आहार) प १ । १ ७, ११४८३५५ ३|१|१; १०१५३।१११।१२; १५३१११ ; १७।१११ ; १७१५; १८११११ ; २८|१|१२८१३ से ५, २०,२७ से ३०,३२,३७,३८, ४०, ४७, ४६ से ५१,६६,६६,७३ से ७५,६७,१०६।१; ३४।१११,३४११ से ३, ५ ३६।१।१ ज २।१६, १६,५२,५६,१४६,१५६,१६१ उ ३१५१,५३,५४ आहार (आधार) उ ३।११ आहारग (आहारक ) प ३।१०७:१२।१३,२८, ३६; २१।१०४,१०५ : २३१४२,६१,६२,१४६, १७४; २८ १०८ से ११०, ११२,११४ से ११६, ११८,११६,१२१,१२३, १२४, १३०, १३१, १३६, १३७,१४१,१४२ आसीत्तय (दे० ) सू १०११२० सीविस (आशीविष ) प ११७० ज ४।२१२ आसुरत (आशुरक्त) ज ३।२६,३६,४७,१०७, १०६,१३३ उ ११२२,५७,८२,११५ से ११७, ११६,१४० आसोइ (आश्वयुजी ) ज ७ १३७ सू १०१७,१०,२२, २३, २६ आसोत्थ ( अश्वत्थ ) प १३३६।१ आहारगसमुग्धात (आहारकसमुद्घात ) प ३६ ३३ आहारगसमुग्धाय (आहारकसमुद्घात ) प ३६ १ २,७,९,१०,१३,१४,३०, ३५, ५३, ५८, ७४ आसोय (आश्वयुज) ज ७।१०४ उ ३।४० (आह (ब) आहंसु सु १३२० आज ७ ११२२२, ५ आहारगसरीर ( आहारकशरीर ) प १२/१३,२१, आहारगमीसगसरीर ( आहारकमिश्रकशरीर ) प १६।१५ आहारगमीससरीर (आहारक मिश्रशरीर ) प १६ १, १०,१५,३६१८७ आहारगमीसासरीर (आहा रकमिथकशरीर ) प १६ १०, १५; ३६/८७ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहारगसरीरय-इंदियपरिणाम ८४६ ३४१६११,१०,१५, २१।७२ से ७४,९६,६६, इंगाल (अङ्गार) प १।२६ उ ३।५० १०१,१०२,१०४,१०५; २३।१८६३६१८७ इंगालभूय (अंगारभूत) ज २११३२,१४१ आहारगसरीरय (आरारकशरीरक) प १२१६ इंगालय (अंगारक)ज ७४१८६६१ स २०१८,२०११ आहारगसरीरि (आहारकशरीरिन् ) प २८।१४१ इंगिय (इङिगत) ज ३.८७ आहारचरिम (आहारचरम) प १०।४२,४३ इंद (इन्द्र) प २।४०,४५,४७३१ ज २।९४३।२४१३, आहारत्त (आहारत्व) प २८१२२ से २४,३४ से ३७११,४२११३१।३,१८५,२०६५४६, ३६,३६,४०,४२,४५,४८,६८,६६,७१,३४१६ ५२,५७,७१५६,५७,५६,६०,१३०,१८६१४ आहारपज्जत्ति (आहारपर्याप्ति) प २८.१४२,१४३, सू १६।२४,२७ उ ३।१५,८४ इंदगोवय (इन्द्रगोपक) प १५० आहारपय (आहारपद) ज ७५० इंदग्गह (इन्द्रग्रह) ज २०४३ आहारभूय (आधारभूत) उ ३१११ इंदग्गि (इन्द्राग्नि) ज ७।१३०,१८६।२,४ आहारय (आहारक) प १२११,५,२५; १८।१४ से सू २०१८,२०१४ ६७,२१११; २८।१०६ से १०८,१११,११३, इंदगिदेवया (इन्द्राग्निदेवता) म १०८३ ११७,११६,१२०,१२२,१२५.१२७ से १२६, इंदज्य (इन्द्रध्वज) ज ३।३ १३२,१४३ इंदाण } इन्द्रस्थान) सू १६१२५ आहारयसरीर (आहारकशरीर) प १२।१७ इंदणील (इन्द्रनील) ज ३१३५ आहारसण्णा (आहारसंज्ञा) प ८१ से ११ इंददेवया (इन्द्रदेवता) सू१०८३ आहारेता (आहार्य) ज २११६ इंदधणु (इन्द्रधनुष्) ज ३।२४ आहारेमाण (आहारयत्) प ११।१२,१७ इंदनील (इन्द्रनील) प १२००३ ज ३.१०६ आहिंड (आ-+- हिण्ड) आहिडह उ ३.१०१ इंदभूइ (इन्द्रभूति) ज ११५ आहित (आस्यात) सू १।१०,११,१५ से १८,२०, इंदभूति (इन्द्र भूति) चं ११४,१० सू ११५ २२,२३,२५; १६॥२२॥३ इंदभूय (इन्द्रभूत) सू २०१७ आहिय (आख्यात) प ३४.१११ ज २।४।२; इंदमह (इन्द्रमह) ज २६३१ ७.३१,३३ चं २।३,५ सू १६३,५ इंदमुदधाभिसित्त (इन्द्र मुर्धाभिषिक्त) ज ७।११७।२ हिवच्च (आधिपत्य) ज ३।१६७।१३ सु १०८६२ आहुछि (दे०,अर्ध चतुर्थ) सू १६१ इंदिओवउत्त (इन्द्रियोपयुक्त) प ३।१७४ आहुणिय (आधुनिक) ज ३१९८५१५७११८६।१ इंदिकाइय (द०) १५० आहूय (आहूत) उ ३।४८:५० सू २०१८,२०८११ इौदय (इन्द्रिय) प १११।५।३।१।११३।१७; आहेबच्च (आधिपत्य) प २१३० से ३३,३५,३६, २५६१,१७,१६,२०,३०,३४,५८।१,१५१५८ से ४१,४३, ४८ से ५१,५७,२६ ज ११४५,१८५, ६०,६२,६३,६५,६६,६७,७५,७६,१३४,१४३, २०६,२२१, ५११६ उ ५।१० १७।१३४; १८1१।१, २८।१०१ इंदिय उवउत्त (इन्द्रियोपयुक्त) प ३११७४ इंदियजवणिज्ज (इन्द्रिययापनीय) उ ३.३२,३३ इ (इति) प ११४८१२ ज ११२६ मू ११८ इंदियपज्जत्ति (इन्द्रियपर्याप्ति) प २८.१४२ इ (चित् ) उ ११३६,३१११ उ ३११५,८४ इइ (इति) सू २०१६ इंदियपरिणाम (इन्द्रियपरिणाम) ५० १३१२,१४ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५० १६,१७,१६ इंदीवर ( इन्दीवर ) प १४४३ इक्क (एक) ज १।२० सू १६१२५ इक्कड (इक्कड) सरकंडा, पानी का पौधा ११४८|४६ strate ( एकविंशति) ज २ १३४ इक्कार ( एकादशन् ) ज ४।२७५ इकारसम ( एकादश ) सू १० ७७ इक्कारसी (एकादशी) ज २२७१ इक्कावण्ण ( एकपञ्चाशत् ) सू ११२१ इक्क्क्कि (एक) ज ७ १७८१२ इक्aाग ( इक्ष्वाकु ) प १६५ (इ) १/४१११, ११४८।४६ क्वाडिया ( इक्षुवाटिका ) प ११४८।४६ इक्खुवाडी ( इक्षुवाटी ) प ११४१।१ इगतालीस ( एकचत्वारिंशत् ) ज ७ ७५ सू ११।३ इगुणापण ( एकोनपञ्चाशत् ) ज ७।७५ इगुणालीस ( एकोनचत्वारिंशत् ) ज ७।२४ √ इच्छ (इब्) इच्छइ उ १।५१ इच्छंति १६४६ इच्छसि स १६ । २२२६ इच्छामि उ १२७६, ३ १०६४।११ इच्छामो प २८ । १०५ ३४।१६, २१ से २४ इच्छा ( इच्छा ) ज ७।१२०२१०१६८२ इच्छानुलोम (इच्छानुलोम ) प ११ |३७|१ इच्छामण ( इच्छा मनस) प २८ । १०५ ३४ । १६, २१ से २४ इच्छिय (इष्ट, ईत्सित ) ज ३१८८, १३८ उ ३।१३८ इच्छित्त (इष्टत्व ) प २८।२६ इच्छियव्व (एष्टव्य, एषितव्य ) ज ३८१ इट्ठ ( इप्ट ) प २३/१६:२८ ११०५ ज २४६४; ३१२४,८२,१८५, १८७, २०६,२१८, ५३५८ सू २०१७ उ ११४१, ४४, ३।११२, १२८, ४१६; ५१२२, २५ इट्ठतर ( इष्टतर ) ज २११८४ १०७ इंदीवर - इत्थी इट्ठतरिय (इष्टतरक) प १७ १२६ से १२८,१३३ से १४५ ज २।१७ इट्ठत्त (इष्टत्व ) प ३४१२० इट्ठस्सरता ( इष्टस्वरता ) प २३|१९ इड्ढि ( ऋद्धि ) प २३०, ३१, ४१, ४६; ६६८, १७८६२११७२ ज २२२५; ३११२,१८,३१, ७८,८८,६३,१२६, १८०, १८६,२०६,२१६; ४११४०;५।२२,२६,२७,४३,४४,४६,४७,५६, ६७ उ ११६२,१२१,१२२,१२६,१३३,१३४, १३८,३४६,५०,१११, १२२:४१८५ । १७, १९,२३,३१ पित्तारि ( ऋद्धिप्राप्तार्थ ) प १६०, ६१ इमिंत (ऋद्धिमत् ) ज ७।१६८।२ इढिसय (दे० ) ज ३।१८५ इणं ( एतत् ) प १ १ ३ ज २११७ सू १८।२२ इतर (इतर) सू ११२५ ; २१२:४२ इति (इति) प १ ७५ ज ११२६; ३।३२११ सू १० १० १ १७ इतरिय ( इत्वरिक ) प १११२५; १७ १०६ १०७ इत्तो ( इतस् ) प २२६४।१८ ज ३११२४ इत्थ (अत्र ) प २ ३१ ज ४।१४७ इत्थं (अत्र) ज २२० इथि (स्त्री) प १६०,६६,७५,७६,८१६ ७९, ८०८०३२१११५ से १०,२३,२६ से २८ १७११६६ से १७२ ज ३।२२१ इत्थिरयण ( स्त्रीरत्न ) प ६।२६ ज ३।७२,१३८, १७८, १८६, २०४, २१४,२२० इत्रियणत ( स्त्रीरत्नत्व) प २०५८ इत्थवयण (स्त्रीवचन ) प ११२६,८६ इथिवेद ( स्त्रीवेद ) प १८६०; २३७३; २८ । १४० इथिवेदग (स्त्रीवेदक ) प १३११४, १६ इथिवे (स्त्रीवेद ) प २३।३६,१४१ इत्थवेयपरिणाम ( स्त्रीवेदपरिणाम ) प १३११३ इथिवेग ( स्त्रीवेदक ) प १३०१५ इत्थी (स्त्री) उ ३३६,४२ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इत्थीलिंगसिंद्ध-उउ ८५१ इत्थीलिंगसिद्ध (स्त्रीलिंगसिद्ध) प ११२ ईसर (ईश्वर) प २।४७।२:१६.४१ ज २१२५; इत्थीवेदग (स्त्रीवेदक) प ३।६७१३।१८ ३११२६:३;५।१६ उ ११२।१० इम (इभ्य) ११६।४१ ज २२५,३१०,८६, ईसर (ऐश्वर्य) ज ११४५,३।१०,१८५,२०६,२२१ १७८,१८६,१८८,२०६,२१०,२१६,२१६, ईसाण (ईशान) प ११३५२१४६,५१,५३,६३; २२१ उ ११६२,३१११,१०१,५१० ३१३०,१८३,४।२२५ से २३६,६।२८,५६,६५, इन्भजाति (इभ्यजाति) ५११९४१ ८५,१११,१५११३८:२०१६०;२८१७६:३४।१६, इम (इदम्) प ११४८ सू १४१५ उ २१५२६ १८ ज २९१ से ६३,११३,११६;४।१७२, इय (इति) प श६४।१८ ज १७ सू११६ २००,२२१,२२४११,२३५,२४०,२४२,२४३; इयर (इतर) प २११३५ ५।४८,५६,६०,७१२२११ सू १०१८४।१ इयाणि (इदानीम् ) सू १६२४ उ ३१५५ उ १२०,२२,५१४१ इरियावहियबंधग (ईर्यापथिकबन्धक) प २३।६३ ईसाणकप्पवासि (ईशानकल्पवासिन) प २१५१ इरियावहियबंधय (ईपिथिकबन्धक) प २३.१७६ ईसाणग (ईशानज) प २१५१,६।६५७१६१५१८७% इरियासमिय (ईर्यासमित) उ २९३३१३,६६, २११७०,६०,३३.१६ ज ५१४६ १०२,११३,११५,१३२,१४६,४१२२,५१३८,४३ ईसाणवडेंसग (ईशानावतंसक) प २२५५,५७ इलादेवी (इलादेवी) ज ५११०११ उ ४।२।१ ईसाणवडेंसय (ईशानावतंसक) प २१५१ इलादेवीकूड (इलादेवीकूट) ४१४४,२७५ ईसि (ईषत् ) प २।३१,६४,१७।१३४,२३३१६५ इव (इव) ५ २।४८ उ ३११२८ ज ३११०६,१७८,४१५४,५१५,२१,३८,५८; इसि (ऋषि) प २१४७२ ज ३।१०६ उ १२० ७/१७८ इसिपाल (ऋषिपाल) प २१४७१२ ईसिउच्छंग (ईषदुत्सङ्ग) ज ३११७८ इसिवाइय (ऋषिवादिक) प २।४१,२।४७११ ईसिणिया (ईशानिका) ज ३।११०१ इसीपब्भारा (ईषत्प्रागभारा) २६१,२१४९० ईसितुंग (ईषत्तुङ्ग) ज ३।१७८ इस्सरियविसिठ्ठया (ऐश्वर्यविशिष्टता)प २३२१, ईसिदंत (ईषदान्त) ज ३।१७८ ईसिमत्त (ईषन्मत्त) ज ३११७८ इस्सरियविहीणया (ऐश्वर्यविहीनता) प २३१२२, ईसीपमारा (ईषत्प्रागभारा) प २१६४:१०.१,२; २११६०,३०।२६,२८ इह (इह) ज २।६६ उ १९ ईसीहस्सपंचक्खरुच्चारणद्धा (ईषद हस्वपञ्चाक्षरोइहं (इह) प १७५ उ ११७ च्चारणाध्वन् ) प ३६.९२ इहगय (इहगत) ज ५१२१,७४२०,२२ से २५,७६, ईहा (ईहा) ११५१५८।२,१५१६७ ज ३१२२३ ईहामइ (ईहामति) उ ११३१ ईहामिग (ईहामृग) ज २१३७,१०१:४।२७ ईतिबहुल (ईतिबहुल) ज ११८ ईताल (एकचत्वारिंशत् ) सू १९८१ ईतालीस (एकचत्वारिंशत् ) सू १३।१४ ईतालीसक (एकचत्वारिंशत्क) सू १३११७ ईरियासमिय (ईर्यासमित) ज २११६५ उ (तु) प १४४८१६ ज ११४७ सू ११७ उ ११७ उईर (उदीरण) प १४।१८।१ उउ (ऋतु) ज २१६६३१११७१७।१११,११२१५, १२६, १२७ उ ५४२५ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५२ उउय-उक्कोसपय उउय (ऋतुक) प २१४१ उंबर (उदुम्बर) प ११३६१ उ ३७४,७६ उंबेभरिया (दे०) प १।३५१२ उक्कड (उत्कट) प १५० ज ३।३१ उक्कर (उत्कर) ज ३।१२, १३,२८,४१,४६,५८, ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ उक्करिया (उत्करिका) प ११७८,१३१२५ उक्करियाभेद (उत्करिकाभेद) १ १११७८,७६ उक्तरियामेय (उत्करिकाभेद) प १११७३ उक्कलिया (उत्कलिका) ५११५० उक्कलियावाय (उत्कलिकावात) प ११२६ उक्का (उल्का) प २६ उक्कामुह (उल्कामुख) प १८६ उक्कालिय (उत्कालिक) ज७ उक्किट्ठ (उत्कृष्ट) ज २६०३।१२,२६,२८,३६, ४१,४७,४६,५६,५८,६४,६६,७२,७४,११३, १३८,१४५,१४७,१६८,२१२,२१३;५।५,४४, ४७,६७,७१५५ उ ११३८,३।१२७ उक्किट्ठि (उत्कृष्टि) ज ३१२२,३६,७८,६३,९६, १०६,१३३,१६३,१८० उक्किण्ण (उत्कीर्ण) प २।३०,३१,४१ ज ३१८२ उक्कित्तिता (उत्कीर्तिता) मू २०१६।१ उक्किरिज्जमाण (उत्कीर्यमाण) ज ४।१०७ उक्कुट्ठ (उत्कृष्ट ) स. १६।२३ उक्कुडुठ्ठिय (उत्कुट कस्थित') ज २।१३३ उक्कुरुडिया (दे०) उ १५४ से ५७,५६,६३,७६ से १७/१४५,१४६;१८२ से ४,६,८ से १०,१२, १४ से १६,१८ से २४,२६ से २८,३० से ३६, ४१ से ५४,५६,५७,५६ मे ६७.६६ से ७४, ७६ से ७६,८१,८३ से ५,८७,८६ से ११, ६३,६५,६६,६८,१०३ से १०५, १०७,१०८, ११०,११३,११४.११६,११७,११६,१२०, २०१६ से १३,६१,६३,२११३८,४० से ४४, ४६ से ४८,६३ से७१,७४,८४,८६,८७,६० से ६३,२३।६० मे ७६,८१,८३ से १२,६५ से ६६, १०१ से १०४,१११ से ११४,११६ मे ११८,१२७,१२६ से १३१,१३३ से १३५, १३८,१४०.१४२,१४३,१४७१५१ से १५५, १५७,१५८,१६० मे १६२,१६४ से १६६, १०१ से १७३,१७६,१७,१८२,१८३,१८६, १८७,१६०,२८२,२७,८७,५०,७३ से १६; ३३१२ से १३,१५ से १७:३६१८ से १०,१७, १८,२०,३०,३४,४४,६१,६६,६८,७०,७२,७४, ७६ ज १६,४८,४५,५८.१२३,१२८,१३३, १४८,१५१,१५७४।१०१,७१५७,६०,१८२, १८७ से १६६,२०६ सू १८१२०,२५,३६; १६२५ उ २२०,२२,३६१३० उक्कोसकालठिईय (उत्कर्षकालस्थितिक) प२३१२०० उक्कोसकालठितीय (उत्कर्षकालस्थितिक) प२३।१६४ से १९६,१६८ मे २०१ उक्कोसग (उत्कर्षक) प १७११४५,१४६; २३।१८४ उक्कोसगुण (उत्कर्ष गुण) प ५।३८,६०,७५,६०, १०८,१६१,१६४,१६८,२०१,२०४,२०८, २१२,२१५,२१६,२२२.२२५,२४३ उक्कोसटिईय (उत्कर्षस्थितिक) १८५ उक्कोसद्वितीय (उत्कर्षस्थितिक) प ५१३५,५७, ७२,८३.१०५.१७५,१७८,१२२,१८८,२४० उक्कोसपएसिय (उत्कर्षप्रदेशिक) ५ ५।२२६,२३० उकोसयद (उत्कर्षपद) प १२॥३२ उक्कोसपय (उत्कर्षपद) ज ७१६८,१९६,२०२, उक्कुला (उत्कूला) सू १०१६ उक्कूवमाण (उत्क्रूजत्) उ ३११३० उक्कोस (उत्कर्प) प ११७४ ; रा६८।६ ४११ से ६७,६६ से २९६,२६८,५१४२,४६, ७६,६४, १८,११२,११६६१ से १८,२० से ४५,६०, ६१.६४,६६ से ६८,१२०,१२१,१२३,२,३, ६ से २६११।७०,७१:१२२९१५:४० से ४२; १. अस्थिक इत्यपि भवति विकल्पेन । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्कोसमति-उच्छोल ८५३ उक्कोसमति (उत्कर्यमति) प ५६४ ५७,५६,६२,८०,८४,८६,६६,१०१,१०३, उक्कोसमदपत्त (उत्कर्षमदप्राप्त) १ १७।१३४ ११०,११२,११४,११५.११६ से १२२,१२५, उक्कोसय (उत्कर्षक) प १५६४२११०५ १२८,१३६,१४२,१४६,१४७,१४६,१५५, जे ७।२६ सू१११६,१७,२१,२२,२४,२७,२।३; १५६,१६३ से १६५,१७२,१७५,१७८,२०३, ३१२:६।१८११, ६।२, २०१३ २१२,२१६,२१७,२१६,२२१,२२६,२४२; उक्कोसा (उत्कधक) प १७:१४६ ११३८,४६,७२,७३:३७,३८,२०७२१५ उक्कोसिया (उत्कपिका) ज २१७४ से ८०,७१२८ सू १६५९१२,३,१८१ सू११४,२१,३,४।६६.१ उच्चत्तच्छाया (उच्चत्वछाया) मू ६।४ उक्कोसोगाहग (उत्कर्षावगाहनक) प ५।३० उच्चत्तपज्जव (उच्चत्वपर्यव) ज २५१,५४,१२१, उक्कोसोगाहणय (उत्पविगाहनक) प ५२९, १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, ३०,५०,५४,६६,८४,१०२,१५५,१५८,१६०, १६४,१६७,१७०,२३५ उच्चत्तुद्देस (उच्चत्वोदेश) मू हार उक्खित्त (उत्क्षिप्त) ज ५१५७ उच्चागोय (उच्चगोत्र) प २३१२१,५७,५८, उक्खेव (उत्क्षेप) ज ५१४६,६०,६ १३१,१५३,१८८ उग्ग (उम्र) प ११६५ ज २,१६५ उच्चार (उच्चार) प ११८४ उम्गच्छ (उद्गत्य) ज ७।१०१,१०२ मू८११ (उच्चार (उन्:-चारय) उच्चारेइ उ ३.७६ उम्गतव (उग्रतपम् ) जे १५ उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघापपरिवणियासमिय उग्गमण (उद्गमन) ज १३६ से ३८ सू २।३; (उच्चारप्रस्रवणश्वेल 'जल्ल' 'सिंघाण' परिष्ठापनिकासमित) ज २१६८ उग्गममाण (उद्गच्छन्) प १८८५२ उच्चारपासवणखेलसिंघागजल्लपरिट्ठावणियासमिय उग्गय (उद्गन) १३७३१२४,४१२७,५१२८ (उच्चारप्रस्रवणश्वेल 'सिंघाण' 'जल्ल' परिष्ठाउग्गवई (उपवती) ज १२१ मू १०६१ पनिकासमित) 3 ३६६ उग्गविस (उनविए) प ११७० उग्गसेण (उनमेन) उ ५१० उच्चारतव्व (उच्चारयितव्य) मू१०११३५ उग्गह (अवग्रह) ११५१६८,७१,७२ उच्चारेयव्व (उच्चारयितव्य) ज ७११६८ उग्गा (दे०) २१७ सू१०।१३४ उग्घोस (उद्घोप) ज २१६५ उच्चावय (उच्चावच) ५३४।२३,२४ उ ११५७, उग्घोसेमाण (उद्घोषयन्) ३।२१२,२१३; ८२,५४३ ५३२२,२६ उच्चाविय (उच्च कृत्वा) प १७।१११ उच्च (उच्च) उ ३११००,१३३ उच्छंग (उत्सङ्ग) उ ३६८,११४ उच्चंतय (उच्चंतग) प? १२४ उच्छण्णा (उत्सन्न) ज २१८,६ उच्चत्त (उच्चत्व) ॥ २१॥८॥२ ज ११८ उच्छण्णणाणि (उत्सन्नज्ञानिन्) प २३।१३ से १०,१६,२२ से २४,२,३५,३७,३८,४०, उच्छप गदसणि (उत्सन्नदर्श निन् ) प २३।१४ ४२,४६,५१:२६,१५,४५,५१,५४,५६,५८, उच्छाह (उत्माह) सू २०१६।३,५ ८६,१२३,१२८,१३८,१४०,१४८,१५१,१५७, उच्छूढसरीर (उत्क्षिप्तशरीर) ज ११५ १५६४११,६,१०,१४,३३,४५,४७ से ४६,५४, उच्छोल (दे० उतक्षालय) उच्छोलेंति Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५४ उजुसेदि-उड्ड ज ५५७ उज्झरबहुल (निर्भरबहुल) ज ११५ उजुसेढि (ऋजुश्रेणि) प ३६।१२ ‘उज्झाव (उज्झय) उज्झावेसि उ ११५७ उज्जय (उद्यत) ज २११३३ उज्झावित्तए (उज्झयितुम् ) उ ११५४,५६ उज्जल (उज्ज्वल) ज ११३७,७४१७८ उजिमज्जमाण (उज्झयमान) उ ११५६,६३,८४ उज्जाण (उद्यान) ज २१६५,७१,५१५,७ उ ३३३६; । उजियत (उज्झित) उ ११५६,८१ ५१६,७,२४,२६,३७ उज्झिय (उज्झित) उ ११५७,८२ उज्जाणसंठित (उद्यानसं स्थित) सू ४१३ उट्ट (उष्ट्र) प ११६४; ११२१६ से २० ज २१३५ उज्जाल (उत्+ज्वालय) उज्जालंति ज ५१६ उिट्ठा (उत्+ष्ठा) उठेइ उ ११२४ उज्जालेइ उ ३१५१ उज्जालेंति ज २११०८ उठेति ज ३१११४,१२६ उठे ति ज ११६ उज्जालेह ज २११०७ उट्ठा (उत्था) उ ११२४ उज्जालित्ता (उज्ज्वाल्य) ज ११६ उट्ठाण (उत्थान) प २३।१६,२० ज २१५१,५४, उज्जालेत्ता (उज्ज्वाल्य) उ ३३५१ १२१,१२६,१३०,१३५,१३८,१४०,१४६, १५४,१६०,१६३ सू २०११,७,६३,५ उज्जु (ऋजु) प २।३१ ज २०१५ उट्ठाय (उत्थाय) ज ११६ उज्जुय (ऋजुक) ज २०१५ उठ्ठिय (उत्थित) ज ३।१८८ उ ३४८,५०,५५, उज्जुसुय (ऋजुसूत्र) प १६१४६ ६३,६५,७०,७४,१०६,११८ उज्जोइय (उयोतित) प २१४६ ज ३१६,१८,६३, उठेत (उत्तिष्ठत् ) ज ३३५ १८०,२२२ उठेत्ता (उत्थाय) ज ११६ उ ११२४ उज्जोत (उद्योत) प० २१४१,५६,६६ उडय (उटज) उ ३३५१,५३ उज्जोय (उद्योत) प २।३०,३१,४६,५६,६३ उडिय (दे०) ज ७/१७८ ज १८,३१,३१६३,१२१,५३२ उडु (ऋतु) सू ६.१,८११०।१२८,१२६१२२१, Vउज्जोय (उद्- िद्योतय्) उज्जोए ति सू १६१ ४,११,१२,१४,१५,१५।२० से २२ उज्जोएति सू १६१ उडु (उडु) सू१०११२६।१.५ उज्जोयकर (उद्योतकर) ज ३।९५,६६,१५६,१६० उडुकल्लाणिया (ऋतुकल्याणिका) ज ३११७८, उज्जोयणाम (उद्योतनामन्) प २३१३८ १८६,२०४,२१४,२२१ उज्जोयभूय (उद्योतभूत) ज ३।६६,१६० उडुपाण (उडुपान') प १५।१२,१५१५० Vउज्जोव (उत् । द्युत् ) उज्जोवेइ ज ४२११ उड्ड (उड़) प १८६ उज्जोवेति ज ७५१,५८ सू ३।१ उज्जोवेति उड्ढ़ (ऊर्ध्व) प २१४,४८ से ५३,६०,६३,६४; सू ३।२ १११६५,६६,११६६।१,१५१५२,२२८७, उज्जोवणाम (उद्योतनामन्) प २३।११५ ६० से ६३२८११५,१६,६१,६२,३३३१६, उज्जोविय (उयोतित) ज २।१६ उ ११५६,८१ १७; ३६१६२ ज ११८ से १०,२५,२८,३२, उज्जोवेमाण (उद्योतयत्) प २।३०,३१,४१,४६ ३५,३७,३८,४०,४२,५१,२१६,५६,८६,१२३, उज्झ (उज्झ) उज्झइ उ १२५५ उज्झाहि १२८,१४८,३३१३१,१३२,४।१,६,१०,२३, ४५,४७,५७,५६,६२,८६,१०१,१०३,११०, उज्झर (उज्झर) प २१४,१३,१६ से १६,२८ ११२,११४,११५,११६ से १२२,१२८,१३६, १. उडु (जलम्) आप्टे पृ० ४०१ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उड्डजाणु-उत्तरडकच्छ ८५५ १४२,१४६,१४७,१५५,१५६,१६३ से १६५, १७५,१७८,२०३,२१२,२१६,२१७,२१६, २२१,२२६,२३४,२४० से २४२५१६४; ७१४४,५४,१६८११,२०७ सू २११४११०; ६१३;१८।१:१६२२११२,१६१२३ उ १९७; २।१२,३१५०:५१४१ उड्ढजाणु (ऊर्ध्वजानु) ज ११५,२१८३ उ ११३ उड्ढत्त (ऊर्ध्वत्व) प २८१२४,२६ उड्ढदिसा (ऊर्ध्व दिशा) प ३६१७६,१७८ उड्ढमुह (ऊर्ध्वमुख) ज ३।३; १७:१६८ उड्ढलोग (ऊर्वलोक) ज ५१६,६७ उड्ढलोय (ऊर्ध्व लोक) १ २११,४,१०,१३,१६ से १६,२८,३११२५,१२७ से १७३,१७५,१७७ उड्ढवाय (ऊध्वंवात) पश२६ उड्ढामुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठित ('उद्धी'मुखकलम्बुकपुष्पसंस्थानसंस्थित) सू १६।२३ उड्ढीमुहकलयापुप्फसंठित ('उद्धी'मुखकलम्बुक पुष्पसंस्थित) ज ७३३१,३३,३५ सू४।३,४,६, ७,६ उड्ढोबवण्णग (ऊवोपपत्रग) ज ७५५५ सू १६।२३, उत्तमपुरिस (उत्तमपुरु) प६।२६ उत्तमा (उत्तमा) ज ७।१२०११ सू ५११,१०८८१ उत्तर (उत्तर) प २।२१ से २७, २७११,२,२१३० से ३६,४४,४८,५१,६०,६१,६२।१२।६३; ३१ से ३७,१७६,१७८,१५१८५१८१६० ज १११८,२०,२३,४८,३११,८२,१२६।४,१३१, १३३,१३८,१५१,४।१,१७,३८,५५,६२,७३, ७६,८१,९६,६१,६३,६८,१०३,१०८,११४, १२६,१४१ से १४३,१५०,१५६,१६०,१६५, १६७,१६६,१७२,१७३,१७५,१७७,१७८, १८०,१८१,१८४,१८५,१८७,१६०,१६१, १६३,१६६,१६७,१६६ से २०३,२०५,२०८, २०६,२१३,२२६,२३१,२३४,२३७,२३८, २४६,२५२,२६२,२६५,२६८,२६६,२७१, २७२,२७४,२७५,५।११,३६,४२,६।११, १४,२४७१५,१५,१७,२४,२५,६४,७४,७६, ७८,८३,८४,८८,६४,१२७,१२६,१३४।३, १३५।३,१७४,१७८,२०१,२०४ सू१।१५ से १७,२४,२६ से ३१,१३,१०७५,१३५, १२।१२,१३१६,१०,१८।१४ से १७:१६८१, ११।१२०१२ उ ३.५४,५५,६३,६७,७०,७३, ४।१६,५१४१ उत्तर (उत्+तु) उत्तरइ ज ३११०१,१२६ उत्तरओ (उत्तरतस्) ५२१४०१४ ज १११८ उत्तरकुरा (उत्तरकुरु) ज ४।६६,१०३,१०८ से ११०,१४१,१४३,१६१,१६२,२०५,२१३ उत्तरकुरु (उत्तरकुरु) प १८७१६३०१७३१६४ ज २१६,४११४२१३.१६११२,१६२,२०७, २६२,५२५५ उत्तरकुरुकूड (उत्तरकुरुकूट) ज ४११०५,१६३ उत्तरकूल (उत्तरकूल) उ ३५० उत्तरगुण (उत्तरगुण) प १११४६ उत्तरड्ढ (उत्तरार्द्ध) प २१५१,८।१ उत्तरड्ढकच्छ (उत्तरार्द्धकच्छ) ज ४११६८,१७२, १७३ से १७६ उण्णं दिज्जमाण (उन्नन्द्यमान) ज ३३१८६,२०४ उग्णय (उन्नत) ज २।१५ ३1१०६,१३८,४।१३; ७।१७८ सू २०१७ उण्णाय (उन्नाक) उ ५।४३ उण्ह (उष्ण) प १७।११४११,१७।१३८,२८१२६ उ ३३१२८ उतालीस (एकोनचत्वारिंशत् ) सू १२१२० उत्तत्त (उत्तप्त) प २।४०६ उत्तम (उत्तम) प २१४६ ज २०१५, ३१३,१२, १२५,४१२६०।१५।५८ सू ५१ । उत्तमकठ्ठपत्त (उत्तमकाष्ठाप्राप्त) ज २१७,५२, । १३१,१६१,१६४,७।२६,२८ सू ११४,१६, १७,२१,२२,२४,२७, २।३,३१२,४८,९; ६।१६२ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५६ उत्तरडभरह-उत्तरिल्ल उत्तरढभरह (उत्तरार्द्धभरत) ज ११६,४७ से ५१,३।१०३,११३;४१३५ उत्तरढभरहकूड (उत्तराद्ध भरतकूट) ज ११३४ उत्तरलवणसमुद्द (उत्तरलवणसमुद्र) ज ४।२७७ उत्तरढलोकाहिवइ (उत्तराद्धलोकाधिपति) ज ५।४८ उत्तरण (उत्तरण) ज ३१७६,११६ उत्तरदारिया (उत्तरद्वारिका) सू १०॥३१ उत्तरदाहिण (उत्तरदक्षिण) ज ११२४४११०६, १६४,१६७,१६६,१७८,१८०,१८१,१८५, १८७,१६१,१६६ से २०१,२०३,२०६,२१५, २४५,२४८,२५१,२५२ स ८१ उत्तरदाहिणायया (उत्तरदक्षिणायता) ज १।२४; ४११०३,१६२,१६७,१६६,१७८,१८५,१८७, १६१,२००,२०३,२४५,२५१ उत्तरद्ध (उत्तरार्द्ध) ज २०६१ उत्तरद्धभरह (उत्तरार्द्धभरत) ज ११२३ उत्तरपच्चस्थिम (उत्तरपाश्चात्य) प ३।१७६,१७८ ज ३१४३,४४,४११०३,१०६,१५०,२२४,२३१, २३२ सू २१,२०१२ उत्तरपच्चथिमिल्ल (उत्तरपाश्चात्य) ज ४२३८ सू. १।१६; २३१,२००२ उत्तरपाई (उत्तरप्राची) में ३।१२६ उत्तरपुरस्थिम (उत्तरपौरस्त्य) प३।१७६,१७८ ज ११३,३।६०,६१,१३०,१३१,१४०,१४१, १६१,१६२,२०४,२०८,४।१७,१२०,१३६, १३६,१५०,१५४,१६२ से १६४,२२१,२२६, २३३,२३९,५५,७,३६,४४,५५ च ७ सश२ २०१२ उ ३।११३ ; ४।२०। ५१५ उत्तरपुरथिमिल्ल (उत्तरपौरस्त्य) ज ४।१५६, २३७,२३८,५।४८,४६ सू १।१६ उत्तरपोट्टवया (उत्तरप्रोष्ठपदा) ज ३।२०६ सू १०।६४ उत्तरफागुणी (उत्तरफल्गुनी) ज ७/१२८,१२६, उत्तरभद्दवया (उत्तरभद्रपदा) ज ७११२८,१२६, १३६,१३६,१४२ उत्तरवेउन्विय (उत्तरवैयिक) प १५.१८,१६%3 २११५८,५६,६१,६५ से ६७,७०, ३४११६,२१ से २३ ज ३।२०६५४१ उत्तरवेयड्ढ़ (उत्तरवैताढय) ज ३८१ उत्तरा (उत्तर) सू १०३२,४५,६०,६२,१२०, १५३,१५५,१५६,१५८ ११०२,४ से ६; १२।२४ से २८ ज ७११३ उ ३।५५.६३,६५, ६७,७०,७४ उत्तरापोवया (उत्तरप्रोष्ठपदा) सू १०१५,६,२१, २३,६५,७५,८३,६७,१३१ से १३५ उत्तराफग्गुणी (उत्तरफल्गुनी) ज ७।१४०,१४८, १५१,१६३,१६४ सू १०।२ से ६,१५,२३,७०, ७१,७५,८३,११०,१३१ से १३३ उत्तराभद्दवया (उत्तरभद्रपदा) ज ७१४६,१५७, १५८ स १०१२ से ६,१३१ उत्तराभिमुह (उत्तराभिमुख) 3 ३१५५,६३,६७, ७०,७३ उत्तरासंग (उत्तरासङ्ग) ज ३।६; ५।२१ उत्तरासाढा (उत्तरापाढा) ज १७१,८५, ७/१२८, १३०,१३६,१४०,१४६,१५६,१६७ सू १०१ से ६,१६,२३,५४,६२,६३,७४,८३,११६, १२२,१२३,१३० से १३५,१५१९,१२ उत्तरिज्ज (उत्तरीय) ज ३१,२२२ उत्तरित्तु (उत्तीर्य) ज १११८१ उत्तरिय (औत्तरिक) प ३६१२१,२२,२४,२६,२७, ४६ उत्तरिल्ल (औदीच्य) प २।३३,३६,३६,४०,४४, ४७,१६१३४ ज ११२६,२१११६३।१०२, १०६,१३३,१३७,१५४ से १५७,२०५,२१५, २२०, ४१३८,४२,७३,33,६१,९४,१७२, १६६ से २०२,२०६,२०७,२१२,२३२,२३३, २३८,२४८,२५१,११११,१४,४४,४५,४६,५२, ७१७८ उ ३६१ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरोट्ठ-उद्धय उत्तरोठ (उत्तरौष्ठ) ज २।१५ उत्ताण ( उत्तान ) उ३।१३० उत्ताणग ( उत्तानक) ज ३११११, ११३ उ १४६ उत्तणय ( उत्तानक ) प २०६४१।४६ उत्ताणसेज्ज ( उत्तानशय ) उ३।१३०,१३१,१३४ उत्तासण ( उत्त्रासन ) प २।२० से २६ उत्तासणय ( उत्त्रासनक ) प २०२७ उत्तिण ( उत्तीर्ण) ज ३१८१ उत्तिमंग ( उत्तमाङ्ग ) ज २११५ उदग (उदक) २।१३१,३१२६,३६,४७,१०६, १३३,२२१:५१५५. उदगधारा (उदकधारा) ज ३८ उदय (उदय) प २३१३,१३ से २३ सू ११६१२, ११८३१ उदय (उदक ) प ११४११२, ११४६,१०११७१ १६।५४ ज ३१६, २०६,५११४,५६,७१११२/१, २ चं २।२४।१, ३ सू १०।१२६।१,२ उदयसंठिति ( उदयसंस्थिति ) सू १ १६ २, ११८११,३ उदर (उदर) उ ११४३ उहि (उदधि ) प २३०१, २२४०१२,८,१०; १५ ११२ ज २११५; ५१५२ उदहिकुमार (उदधिकुमार ) प ११३१,५३,६१८ उदार (उदार ) ज ३१२४,१३१ उदाहु ( उताहो ) प २०१६,१५१४६,४७,३४१६ उ १११२७ उदिष्ण ( उदीर्ण ) प २०१३६,२३३, १३ से २३ उदीण ( उदीचीन ) प २११०,५० से ५२,५४,५६, ५८ से ६० ज ११८,२०,२३,२५,२८,३२, ४८, ३११,४११, ३,५५६२,८६,८८, १०८,१७२,२०५,२१४,२५२, २६२,२६८; ७११०१,१०२ ८१ उदीर्णदाहिनायता ( उदीच्यदक्षिणायता ) सू १११६, २१:१० ११४२.१४३,१२/३० उदीर्णवाय ( उदीचीनबात ) प ११२६ ( उदोर (उद् ईर् ) उदीरति प १४/१५ उदीरिस्सति प १४|१८ उदीरेति उ ३।३४ ८५७ उदीरें १४।१८ उदीरेति प २२१५ उदीरण ( उदीरण ) ज २।१३१ उदीरिज्माण ( उदीर्यमाण ) प २३।१३ से २३ उदीरिय ( उदीरित) प २३।१३ से २३ उदु (ऋतु) ज २२४७१११२।१ उद्दंडग (उद्दण्डक ) उ ३१५० उडिय ( उद्दण्ड ) ज ३१३२ उद्दव ( उ ) उद्दति प ३६/६२,०७ उवित्त (द्रवयितुं ) ज ३।११५ उद्दात्ता (उद्भुत्य ) ज ६६४ उद्दाल ( उद्दाल) जरा उद्दाल (अवदाल ) ज ४११३ सू २०१७ उद्दाल' (आ छिन् ) उदा उ १।१०५ उहाले काम (काम) उ ११०५ उद्दि (दे० ) सू १६४२२१२५ उद्दिस ( उत् + दिश् ) उद्दिसंति उ ५ ४५ उद्दिस्यि (उद्दिश्य ) प १६।५१ उद्दिपविभत्तगति ( उद्दिश्यप्रविभक्तगति) १६६३८,२१ उद्देश ( उद्देश ) ज ७ १०१,१०२ उद्देग (देशक) १४५ उद्देश्य (क ) प १७/१४ उद्देहिया (३०) प ११५० उद्ध (ऊ) ३३२४ ज १११६, २३, २४; २१६, ५८,६५,१५७ ११५७,८२ उस (उन् वृष) उस उ १५७ उणा (उद्धर्पणा) उद्धसेत्ता (उद्वयं) ११५७ उद्धत (उद्धत ) ज २६५ उद्धिय (उद्धृत) ज ३१२२१ उद्भुत ( उ ) २४८ उद्धय (उद्धृत ) प २३०, ३१, ४१ ज २६०, ३७; २४१३,२६,३७११, ३६.४५।१,४७,५६,६४, ७२,८८,११३,१३११३,१३८, १४५,१७८; १. हेम ४११२५ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५८ ४१४६; ५१५, ७,४३, ४४, ४७, ६७ सू २०१७ उद्धर (उडर) ज ५५; ७२१७८ उद्धवमाण ( उद्भूयमान) ज ३११८,३१,६३,१८० उ ५ १६ √ उपगच्छ (उप + गम् ) उपगच्छंति ज ३।१६७।१४ उपचयंकर ( उपचयङ्कर ) ज ३।१६७ उपरिल्ल ( उपरितन ) सू १८७ उपसंत ( उपशान्त ) प २०३६ उप्पइत्ता ( उत्पत्य ) प २४५ से ६३ ज ११२५ सू २1१; १८ ।१ उत्पज्ज ( उत् + षद्) उप्पज्जइ सू ६।१ उप्पज्जेति ज २२६७ उपज्जेत ( उत्पद्यमान) ज ३।१६७३५ उपज्जय ( उत्पद्यक) ज ३१३ उप्पड ( उत्पट) प ११५० उत्पण्णमिस्सिया ( उत्पन्नमिश्रिता ) प ११।३६ उत्पण्णबिगमिस्सिया ( उत्पन्नविगतमिश्रिता ) प ११।३६ उत्पत्ति (उत्पत्ति ) प ११६३३६१४|५; ३६।६४ ज ३११६७१३, ६, ८,६,१० उत्पत्तिया (औत्पत्तिकी) उ ११४१, ४३ उत्पन्न ( उत्पन्न ) ज ३१२६,३६,४७, ५६, १३३, १३८, १४५, १७५; ५1३, २२ उत्पन्नको हल्ल ( उत्पन्नकुतूहल ) ज १।६ उत्पन्नसंसय (उत्पन्नसंशय) ज ११६ उत्पन्नसड्ढ ( उत्पन्नश्रद्धा) ज ११६ उपनिव ( उत्पातनिपात ) ज ५१५७ √ उपय ( उत् + पत्) उप्पयंति ज ५ ५७,६४ उप्पल ( उत्पल ) प ११४६,११४८।४४,११६२; १५/५५१२ ज १।५१ २२४, १६:३१३,८६, १८८, २०६४।३,२२,२५,३०,३४,६०,११३, २६६,२७२,५१५५,५६,७११७८ उप्पलंग ( उत्पलाङ्ग ) ज २१४ उप्पलहत्यगय ( हस्तगतोत्पल) ज ३।१० उपला (उत्पला ) ज ४११५५।१,२२२ उद्धर- उम्मुग्गजला उप्पलिणीकंद (उत्पलिनीकन्द ) प ११४८१४२ उत्पल गुम्मा (उत्पलगुल्मा ) ज ४।११५ १,२२२ उप्पलुज्जला ( उत्पलोज्वला ) ज ४।११५।१,२२२ उत्पाइय ( औत्पातिक) ज ३।१०४, १०५, १०६ उप्पाएता ( उत्पाद्य ) प २८१२०,३२,६६ / उप्पाड ( उत् + पादय् ) उप्पाडेज्जा प २०११७, १८,३२ से ३४,४७ उपाय ( उत्पाद ) प ११५० / उप्पाय ( उत् + पादय् ) उप्पाएंति ज २१३६,४१ उप्प ( उपरि ) प २५२ से ६२ ज १११०, १२, १४,१६ १२ ३०:१८१२,३ उ १/४६; २१६; ५।१३,२०,२७,३१ उप्पीलिय ( उत्पीडित) ज ३।७७, १०७, १२४ उ १।१३८ उफिडिय ( उ फिट्य ) प १६४४ उफेस (दे० ) प २।३० उब्बहिया (उद्वाह्य ) प १६ ५४ उभड ( उद्भट ) ज २।१३३ उब्लिज्जमाण ( उद्भिद्यमान) ज ४११०७ उभओ (उभयतस् ) ज ११२३,२५,२८,३२, ३०१७९,४१,१३,३६,४३,६२,७२,७६,८६, ६५,६८,१०३, ११०,१८३,२००, २०१,२०६ ; ५।४६,६०,६६,७१३१,३३४१३,४,६ ; २०१७ उभय (उभय ) ज ३।३ उभयभाग (उभयभाग ) सू २०१४,५ उम्मज्जग ( उन्मज्जक) उ ३१५० उम्मत्तजला (उन्मत्तजला ) ज ४।२०२ उम्माण ( उन्मान ) ज ३।६५, १३८, १५६, १६७/३ उम्ममालिनी ( ऊर्मिमालिनी) ज ४।२१२ उम्मिलिय (उन्मीलित ) प २०४८ ज ३१८८ ४४६ उम्मुक्क (उन्मुक्त ) प २।६४।२१ ज ३१२०,३३, ५४,६३,७१,८४,१३७, १४३, १६७, १८२ उम्मुरगजला ( उन्मुक्तजला ) ज ३३६७ से १०१, १६१ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपर-उबट्टत्ता ८५६ उयर (उदर) उ ११३४,४०,४६,४८,४६,५१,५४, उवंग (उपाङ्ग) उ ११४ से ८,२।१३।१,२, ७४,७६,७६ ४।१,३,५॥१,३,४५ उर (उरस्) ज ५५ उ ३।११४ उवकुल (उपकुल) ज ७/१३६.१,१४१,१४३ से उरग (उरग) प६१८०१ ज ३.२४ १४६,१५० से १५३ सू १०१६,२० से २२,२५ उरत्थ (उरःस्थ) ज ३१३६ उवक्खड (उपस्कारय् ) उवक्खडावेइ उ ३३११०; उरपरिसप्प (उर:परिसर्प) प ११६७,६८,७५; ४।१३१ से १३६,६७१, २०१४ से १६,३५, उवक्खडावेत्ता (उपस्कार्य) उ ३१५० ४५,६० उवगच्छ (उप-+-गम् ) उवगच्छइ ज ३१४१ उरम्भरुहिर (उरभ्ररुधिर) प १७.१२६ उवगच्छित्ता (उपगम्य) ज ३१४१ उराल (उदार) १११४४१३ गुलू नामक वृक्ष उवगय (उपगत) प २१६४।१४,२० ज ३१२०,३३, उराल (दे०) ज ५॥३८ ५४,५६,८४,१०५,१०८ से १११,११३,१३७; उरु (उरु) ज २११५,१६:५१५; ७१७८ ५६५,७ उ १२१५,२५,३१६८,१०६:५।३५ उरुलुंचग (दे०) प १५० उबगरण (उपकरण) ज २१६६ सू २०१४ उ ११९३, उलंघ (उत् + लङ्घ) उलंघेज्ज प ३६।६१ १०५,१०६,३।५५,६३,७०,७३ उल्ल (आर्द्र) ज ३।२२,३६,४४,१२५,१२६ उवगिज्जमाण (उवगीयममान) ज ३८२,१८७, उल्लाल (उत् + लालय) उल्लालेइ ज ५२३ १८८ उ ५२५ उल्लालिय (उल्लाल्य) ज २४ उवग्गच्छाया (उपाग्रछाया) सू ६४ उल्लालेमाण (उल्ललायत्) ज ५१२२ उवधाइय (उपधातिक) ५० १११३४।१ उल्लोइय (उल्लोचित) प २१३०,३१,४१ ज ११३७; उवणाय । उवग्गहिय (औपग्रहिक) प २३१६ ३।७,१८४ उवघायणाम (उपघातनामन् ) प २३।३८,५२,११० उल्लोय (उल्लोच) ज ४।११६५।३४,६७ उवधायणिस्सिया (उपघातनिधिता) प १११३४ सू २०१७ उवचय (उपचय) प १५:५८१११५२५८,५६ उल्लोयण (उल्लोचन) उ १२४६ उपचय (उप-|-चि) उवचयंति प ६।२६ उवइय (उपचित) ज ४।२७ उचिण (उप-चि) उवचिण प १४।१८।१ उवउज्जिऊण (उपयुज्य) ५१६२०, २२१४५ उवचिज्जति प १४।१८११२१९९७ ३६.३२ उवचिणंति प१४।१५ उवउत्त (उपयुक्त) प २२६४।१२,१३,८।४ से ११; उवचिणिसु प १४११४ उवचिणिस्संति १५।४८,४६,२६१७,१६,२०,३४११२ प१४११६ ज ५२६ उवचित (उपचित) प २१३१,४१ उवएसरुद्द (उपदेशरुचि) पश१०१।१,४ उचिय (उपचित) १२।३०,२३३१३ से २३ उवओग (उपयोग) १५१७३।१११,१५१५८।१; ज।१४५,१४६,३७,४१३,२५,२७,७१७८ १५१६३,६४१८।१।१२८११०६।१:२६।१५, उवज्जिय (उपार्जित) ज ३१८५,२०६ ८,११,१५ उवज्झाय (उपाध्याय) प १६:५१ च ११२ उपओगपरिणाम (उपयोगपरिणाम) प १३१२,१४, उवट्ट (उद्+वृत्) उवट्ठति ज ५।१४ उवदे॒त्ता (उद्वत्य) ज ५११४ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६० उवटुव-उवलालिज्जमाण Vउवठ्ठव (स्थापय ) उवट्ठति ज ३१२०८, उबभोग (उपभोग) ११४६ १५. उबट्ठति ज ३११२० उपट्ठवह उवभोगतराय (उपभोगान्तराय) प २३१२३ म २१५.४:३।२०७ उ११७ उवमा (उपमा) प २६४।१७:३५।२५,२६ उववेत्ता (उपस्थाप्य) ११७ ज ३१२४।४३०२,४५१२,१३१४ उ ३१६८ उवाइ (उपस्थायिन् ) ज ३।३२१ उवयार (उपचार) प २३०,३१,४१ ज २।१०, उववासाला (जस्थानशाला) ५,१२,१७, १५.६५:३७,१२,८८,१३८,४११६६,५१७, २१,२८,३४,४१, ४६५८,६६,३४,७७,१३५, ५८,७१३३११ मू २०१७ १४७,१५१,१७७,१८८,२१६ उश१६,४१, उवयारियालयण (उपकारिकालयन) ज ४१११८ ४२,१२४,४।१२:११६ उवरक्खिय (उपरक्षित) प२।३०,३१,४१ उदिव्य (उपस्थित) ११२० उरि (उपरि) प २२१ से २७,३० से ३६,४१ उवणी (उमणी ) उवर्ण६ ज ३१२६,३६,४०, मे ४३,४५१२१३२ ज ११३५,४।१५६।१, ४७,५६,६४,७२,१३३,१४५,१५१ उवणेति ब ३८१,१२६:१६१ । १।४५ उवह उरितल (उपरितल) ४।१४२६१,२,४।२१३ उरिम (उपरितन) प २१२७।३,६२११ उवणीयअवगीयवयण (उपनीतापनीत वचन) उरिमउवरिमगवेज्जग (उपरितनोपरितनग्रेवेयक) प११८६ प१११३७,४१२६१ से २६३७१२८,२८१६५ उवणीयवयण (उपनीतवचन) प ११८६ उवरिमगवेज्जग (उपरितनग्रंवेयक) प २१६२ उवणेत्ता (उपनीथ) 1३।१२६ ३११८३,६।४१,५६,२०१६१:३३:१७ उवत्या मिया (स्थानिका) । ३१२६,३६,४७, उपरिमगेवेज्जय (उपरितनग्न व्यक) ५ २०६१ उरिममज्झिम (उपरितनमध्यम) प२८१९४ Vउवः (- ) उवदमहज 21५७,५८, १२.१४ : ११२३ उवाति) ज ५१५७ उरिममजिसमगेवेज्जग (उपरितनमध्यमग्रेवेयक) "वदराति गू२०१२ प११३७४१२८८ मे २६०७।२७ उपसण (दन २६१ उरिमठिम (उपरितनाधस्तन) १२८१९३ उपसाप (दशयितुम् ) 3 ३१११२ उरिमठिमगवेज्जग (उपरितनाधस्तनप्रैवे. क) उत्तिा (उपदश्य) उ३।२१५ प१११३७४२८५ मे २८७७१२६ उबदस्यि (उपदोस) ५१।११२ उरिल्ल (उपरितन) प २१६४:५११३१.१३४, उतरता (पद) प ५१५८ १३६,१४०,१४३,१६६,१६६,१८१,१८४, उवयंसेमाण (उपदशंयत्) ३४१२२ ज ५१४४ १६३,१६७,२००,२२८,२३४:१६।३४; सु २०१३ २२१५१,२०,७१.२४ ज २१११३;४१२५३, उतक्टिठ (जगदिष्ट) प ११०१४ च ४३ २५६,२५६१७३ से १७५ सू १८६१ Vउदिम (उस दिश) उवदिगई प २१६४ ।। उरिल्लय (उपरितन) प २८११४३ उदणि सिता उपदिश्व) पश६४ उवल (उपल) प १२०१ ज ४।२५४ उपदा (उपद्रव) २१४०।३।१०५ उवलद्ध (उपलब्ध) प ११०११६ उ ३।१०१ उवप्पयाण (उपादान) १३१ उवलालिज्जमाण (उपलाल्यमान) ज ३१८२,१८७, उयबूह (प ) ११०१:१४ २१८ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवलित्त-उवागच्छ उलित्त (उपलिप्त) ज ३११८४:५।५७ उ ३११३०, उववेत (उपेत) प १७।१३: १३१,१३४ उववेय (उपेत) प १७१३४ ज २११४,१८ उवलेवण (उपलेपन) उ३।५१,५६,७१,७६ उ ५५ 1/उववज्ज (उप-!- पद्) उववज्जइ ॥ १७१६५ उवसंकम (उप । सं। क्रम) उवगंवार नि उज्जति प ६।४७ मे ५६,६० मे ६४,६६ स १।१७ ७० से ७२,७८ ११०,११२,११३ ज २०४६ उवसंकमित्ता (उपगम्य) ,१६,१६; मू १७१ उववज्जति प १६५०;१७१६०,६२, सू १।११:१४ ६४,६५,६९ से १०४ उवज्जिहिइ उ १।१४१; उवसंत (उपशान्त) प १४१३; 20128 12, ३।१८,४।२६ उववजिहिति ज २११३५ से ६८; १७. उ ३३५ १३७ उवसंतकसाय (उपशान्तकपाय११०,१०३. उववज्जमाण (उपपद्यमान) १२०१६१ उववज्जावेयब (उपपादयितव्य) १६६२,६४ उवसंपज्जमाणगति (उपमनानगनि) उववण्ण (उपपन्न) ज ७५६,५६,२१२ सू१६। प१६।३८४१ २२१२१,१६।२४ ३ ११२५ से २७,१८०; उवसंपज्जिका उपपद्य) ९८1. २११२,३।१४,८३,१०,१६१,४२८५१२८, ज७५६५.६.१६१२४. १२२ ३०,४०,४१ उवसम्ग (उपसर्ग) जरा६४,६५, ६६२.११५, उववण्णग (उपपन्नक) प ३।३६:१५१४६,३४११२ ११६,१२५ ३५२३ उवसम (उपगम) ज ७११७,१२२।२. उववण्णपुर (उपपन्नपूर्व) ज ७१२१२ स १०१८४१२, ८२ उबन्नग (उपपन्नक) प १५१४६,३४।१२ उदसामय (उपशामक) १६१,१६२ उववाइय (औपपातिक) प ६७३ उपसोभिय (उप भित) ११३,२१,२६,२६, उवदाएयव्य (उपपादयितव्य) प६७३,७४ ३३,४६,२१,५७,१२२,१२७,१७,१५०, उवात (उपप त) प २०१६०. चं १५. स १५,१६४, ३५१७८,६६२,४।१६६३ ८२; १६।५१७।१ ५।३२,३८१७।१७८ उववातगति (उपपातगति) प १६।३७ उवसोभाण (उपगोभमान) ३४३ उवातसभा (उपपातगभा) ३३।१४ उवदाय (उपपात) ५२।१,२,४,५,७,८,१०,११, उक्सोभेमा (पभमान) 15.123 १३,१४,१६, से ३०,४६ ; ६।१ से ४,१० से ७१२१३ २३,२७,४३,५६,६३,६६,८०२,८१,५३, उवसोहिय (उपशोभित) ४१ १४; १६७ ८६,६२,१००,१०३,०७,१०८ ; २०१६१. उदस्य (जलाशय) ६११११,११८,१४१४१२२ ज २१७२:४।१४०।१,१६०; १५१,६० उवहाण (उपधान) ज ४११३ उ १२०,२२३३१६६ उहि (उपधि) प १४।५ उपवायगति (उपपाताति) ५ १६:१७,२४ से ३.. उवहित (उपहित) सू ६।४ उववायसभा (उपयातसभा) ज ४।१४० उ ३1८३; उवाइणावेत्ता (उजातिकम्य) सू १०।१३८ १२०,१६१,४१२४ उवागच्छ (34; आ गम्) बागच्छद उववास (उपवास) ज०२।१३५ ज ११६; २।१०।३।५.६,१२,१७,१८,४१ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६२ उवागच्छित्ता-उस्सासणाम उ ११२३१२६४।११।५।१६ - उवागच्छति उव्वेहलिया (दे०) प ११४८५० प ३४१२२,२३. ज २१११६. उ १।४५५।१७ उसभ (ऋषभ) प २।४६ ज० ११३७,५१, २।१५, -उबागच्छति. ज २।१६५, ३१२८,३२,४१, ५६,६२,६४ से ६७,७३ से ८६,१०१, ४६,२१६ उवागच्छसि. उ ३७६ ४६७, ५।२८ उवागच्छित्ता (उपागत्य उपागम्य) प३४१२२, उसभकूट (ऋषभकूट) ज० १:५१३।१३५; ज ११६. उ० ११६, ३१२६, ४१११:५११६ ४।१७४,१७५, ६.१६ उवागय (उपागत) उ १।१२२,१३०, ३७१,७६, उसभणाराय (ऋषभनाराच) प २३:४५,६५ ६६,१०६,१३८,४।१५,१८,१६ ५।२६ उसभसेण (ऋषभसेन ) ज० २।७४ उवाय (उपाय) प० १११७१, ३६६२ ज १०, उसह (ऋषभ) ज २६३,६०४।२७ १३,१६,१६,२२ से २५,२७,३०,६९,७२,७५, उसहक ड (ऋषभकूट) ज० ११५१,१३५,४।१७५, ७८,८१,८४ सू १११४,१६,१७,२१,२४,२७, उसहच्छाया (ऋषभछाया) ११६४७ २१३, ६।१।१०।१४१,१४६,१४८,१५० उसहसंधयण (ऋषभसंहनन) ज ३।३ उ १४१,४३ उसिण (उष्ण) प ११४ से ६५१५,७,१२६,१५४, उवागय (उपागत) ज २१६५,७१,८८, ३१२२५ २११,२१४,२१८,२२१,२२६६१ से ११ उवे (उप-1 इ) उवेइ प १३१२२२२. उ ३११११ ११।५६,६०, २८।३२,६६,१०५, ३४११६ उति ज २१६, ३।१२६ उवेह ज' ३.१२५ ३५१ से ३ उन्वट्ट (उद्+वृत्) उव्वति प ६१५८,६८ उसिणजोणिय (उष्णयोनिक) प १२ उव्वट्टति प १७६१,६२,६४,६५,१००,१०२ उसिणोदय (उष्णोदक) प १२३ से १०४ उन्वटे इ उ०३।११४ उसीरपुड (उशीरपुट) ज ४।१०७ उव्वट्ट (उद्वर्त) प २०११ उसु (इषु) ज ३१२४,३७,४५,१३१ उ ११२२, उव्वट्टण (उद्वर्तन) प ६१.१. उ० ३१११४ १४० उन्वट्टणया (उद्वर्तन) प ६१६,७ उसुय (इषुक) उ ३।११४ उव्वट्टणा (उद्वर्तना) १६८,६,४५,४६,५६,६६, उस्सक (उत्+वष्क) उस्सक्कति १००,१०२,१०३,१०७,१०८ प १७।१५०,१५२ उव्वट्टिता (उद्वर्त्य) १६६६ उ १११४१ उस्सण्हसहिया (उत्श्लक्षणश्लक्षिणका) ज २१६ उव्विग्ग (उद्विग्न) प २।२० से २७ ज ३।१११, उस्सप्पिणी (उत्सपिणी) प १२१७,८,१०,१२, १२५ उ ११८६; ३१११२; ४११६ १६,२०,२७,३२,१८१३,२६,२७,३७,३८,४१, उम्बिद्ध (उद्विद्ध) ज २६५,३।३१,५१२८ ४३,४५,५६,६४,७७,८३,६०,९५,१०७, जिविह (उद्-व्यध्) उबिहइ उ ११६१ १०८. ज २११,३,६,१३८,१६१,१६४; उब्वेह (उदवेध) ज० ११२३,५१,४११,३,६,१४; ७१०१ सू ६५१८।१६।२; १७१;२०१५ २५,३६,४०,४३,५४,५७,६२,६४,६७,७२, उस्सास (उच्छ्वास) प १२११४१७११११ ७८,८०,८४,८६,८८,६०,६५,१०३,११०, उ ५१४३ १२८,१४६,१५४,१५६,१७२,१७८.१८३, उस्सासणाम (उच्छ्वासनामन्) प २३॥३८,५५, २०३,२१३,२२१,२२६७२०७ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उस्सासखाएक्कहत्तर ८६३ उस्सासद्धा (उच्छ्वास अद्धा') ज १४ उस्सासविस (उच्छ्वासविष) प १७० उस्सिय (उच्छ्रित) ज ३११८४. सू १८१३ उस्सीसग (उच्छीर्षक) ज ५१६७ उस्सुक्क (उच्छुल्क) ज ३११२,१३,२८,४१,४६, ५८,६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ उस्सेह (उत्सेध) ज ११४०,३।१२,८८,१६७।११; ४।१०३,१७८,५१५७,५८ च १० उ १३; ३।१२ उस्सेहंगुल (उत्सेधाङ्गुल) ज २१६ ८८,६०,६२,१०४,११७,११५,१३४,१३५, १३८,१४०,१४२,१४३,१५१,१५३,१५५, १५७,१६०,१६१,१६४,१६६ से १६८,१७१ से १७३ ज २।६,१२६,१२४ ऊताल (एकोनचत्वारिंशत्) सू१९१४ ऊतालीस (एकोन चत्वारिंशत्) सू २३ ऊर (ऊरु) उ ११३८,३।११४ ऊस (ऊष) प ११२०१ ऊसय (उत्सव) उ १९७१,७२ ऊसविय (उच्छित) ज ५२१ सू १८१८ ऊसस (उत् +-श्वस्) ऊससंति प ७१ रो३; १७४२२८।२१,३३,६७ ऊसास (उच्छवास) प११४८।५३ ज० २।४।१ ऊसिय (उच्छित) प २१४८,१५१५२ ज ११४२; २११५,१६,५२,१६१,३७,३५,१०६,१७८; ४१६,१४,३१,४१,४६,६८,७६,६३,२२१; ५१४३;७।१६६,१७६,१७८ सू १८८. उ०३७ ऊण (ऊन) १२२६,२७१४,२१६४।७,४।३,६,६, १२,१५,१८,२१,२४,२७,३०,३३,३६,३६, ४२,४३,४५,४६,४८,४६,५१,५२,५४,५८,६४, ६७,७१,७४,७८,८१,८७,६०,६४,६७,१००, १०३,१०६,१०६,११२,११५,११८,१२१, १२४,१२७,१३०,१३३,१३६,१४२,१४५, १४८,१५१,१५४,१५७,१६०,१६४,१६७, १७०,१७३,१७६,१७६,१८२,१८५,१८८, १९१,१६४,१६७,२००,२०३,२०६,२०६, २१२,२१५,२१८,२२१,२२४,२२७,२३०, २३३,२३६,२३६,२४२,२४५,२४८,२५१, २५४,२५७,२६०,२६३,२६६,२६६,२७२, २७५,२७८,२८१,२८४,२८७,२६०,२६३, २६६,२६६।१२।१०।१५१५७,१८१६,१०,१२, ५६,६४,७७,८१,८३,८४,८९ से ११,६५, ६६,१०८,२११७४:२३।७६,१५६ ज १११७६१,२१८८४१५५,६२,७४२७,२६, ३० सू १११४,१६,२१,२३,२४;६:१:१५।१८, १६,२९,३४ ऊणक (ऊनक) सू १३।२।। ऊणग (ऊनक) प २३१६६,८१,८३ से ८६,८६, ६५ से १६,१०१ से १०३,१११ से ११४, १५२ ज ३१२२५,१५१२७ ऊणय (ऊनक) प २३१६१,६४,६८,७३,७५,७७, एकादसम (एकादश) सू १०११२४१२ एकावलि (एकावलि) ज ३१२११ एकासीइ (एकाशीति) ज ४।११० एकणवीसतिम (एकोनविंशतितम) सू० १२।१६ एक्क (एक) प ११४८1५४ ज १।३२ सू १०।१५७ एक्कग (एक) ज ७१३१४१ एक्कड (इक्कट) प ११४११ एक तरह का सरकंडा जिसकी चटाई बनाई जाती है। एक्कतीस (एकत्रिशत्) प ४२९१ ज ४।११३ सू २।३ एक्कतीसधा (एकत्रिंशद्धा) सू १३।१४,१६,१७ एक्कमेक्क (एकक) ज ५१ एक्कवीस (एकविंशति) १७१६. ज २६ सू २१३. उ ५:१० एक्कवीस (एकविंशतितम) प १०११४।४ एक्कहत्तर (एकसप्तति) ज ११४८ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६४ एक्काणउति-एगवउ एगगुण (एकमुण) प ३११८२,५११४६,१५०; १११५.४.५६,५८,६०:२८७,१०,५३,५६ एगग्ग (एकात्र) ज ५१२५ एगजडि (एक टिन्) सू २०१८ एगजोक (एकव) प२४७।१ एकजीविय (एकत्रीविका) प१४७।१ एगट्ठ (एकार्थ) सू १६६२,४,६ एगट्ठिभाग (एक टिनम) सू १११४,१६,२०, एक्काणउति (गकनवनि) सू १११६ एककार (एकादश) व १०।१४१३ एक्कार (एकादशन) सू १८१६ एक्कारस (कादान्) ११.१ ज ११४८. सू १२१६. र १६६ एक्कारस (एकादश) ५ १०११४१२ एक्कारसग (एकादश) ज ७११३१२ एकारसम (एकादश) प१०।१४।१ ज ७१६७ सू १०१७७१३।१० उ १११४,१५,२१,१४०; ३११२६ एक्कारसविह (एकादशयि) प १६१३,२० एक्कारसी (एकादशी) १.५ एक्कावण (करना) : ७१६ सू ११२७ एक्कासी (एक शीति) सू १६१८ एक्कासीइ (एकाशीति) ज ४११४३ एक्कासीत (एकाशीति) सू १६५ एक्कासीतिविह (काशीतिविध) ५० १७४१३६ एकिक्किय (एककक) सू १६।२२।८ एक्कणवीसइम (एकोनविंशतितम) प ११४८१६२ एक्केक्क (एकैक) प ११४८१५८ ज ७१७८।१.२. सू८।१:१६।२२।४ से ६ एग (एक) प १२० ज १७. सू १।१४ उ १११७ एगइय (एकक) प १७५:११४५,४७ से ४६; १७१३,२०६१,४,१७,१८.२२,२५,२८,२६, ३४,३८,३६,४६,५०,५३,५८,२२१५६,२३६; ३४१७ से ६,११,१२,१५,१६ १२२,५०, २२५८,८३,१२३,१२८,१४८,१५१,१५७; ३३१०,११,८६,८७,१४४,४।१०१,१८४; ५।२७,५७,६१४ उ ११६७३।११४,१३०, १३१,१३४,१५१:५।१७,२६ एगओवत्त (एकतोवत्त) प ११४६ एगत (एकान्त) ज ३१९८५१५,२६. सू २०१७. उ ११५४ मे ५७,५६,९३,७१ से १८४ एगखर (एकखुर) प ११६२,६३ एगठ्ठिय (एकास्थिक) प ११३४,३५ एगठिहा (एकपष्टिधा) सू२१३ एगणासा (एकनासा) ज ५११०।१ एगतओ (एकततम् ) 3 १{१२५ एमतारा (एकताग) सू १०१६२ एगतिय (एकक) प ६।११० सू । एमतीस (एकत्रिशत् ) ज ४।६२ सू १३।११ एगतोनिसहसंठिय (एकतानिषधसं स्थित) सू ४१३ एगत्त (एकत्य) प ११८३,८५,२२।२५,२८; २३१८,१२,२४।६।२५१४;२७।२;२८१२४; १३०,१३१,१३६,१४३,१४५ एगदिसि (एकदिश) ज ७४८ एगपएसिय (एकप्रदेशिक) प १११४६ एगमेग (पकैक) प १०१५१५।८३,८४,८६,६४ स ६७,१००,१०३ से १०६,१०६,११४,११५, ११७,१३५,१४१,३६१८ से ११,१८ से २२, ३०,३१,४४,४६ ज २१४:४१६४,११५,२६२, ६।१४,१६,२१,२२,७१३,१६,१६ से २५, ६६,७२,७५,७८ से ८२,८४,९५,९६,९८ से १००,११४ से ११६,११६,१७० सू ११८, २०,२१,२३,२४,२७,२६३, ६।११०।८४,८५, ८७,६०,६१,१२४:१५।२ से ४,२६ से ३४; १८।४,२१ एगयओ (एकततस्) ज ३.१११ एगराइय (एकररात्रिक) प २१७० एगलक्खण (गकलक्षण) सू १६।२,४,६ एगवउ (एकवचस्) प ११२१ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवयण-एत ८६५ एगवयण (एकवचन) प ११३८६,८७ ५०,५७,६४,७५,७६,७६,८०,८५,९४; एगविह (एकविध) ५ २१३,६,९,१२,१५,२२१८३, २२।२५,८२,२३।४०,८५,१३४,१३५,१३७ ८४,८६,२४।१० से १२:२६१२,४,६,८ से १० से १४०,१४२,१४३,१५०,१५६,१५६; एगवीस (एकविंशति) १४।२,६१ सू २३ २४।१३:२६।४,५,६:२८.११२,२८१६८,६६, एगसट्ठि (एकषष्टि) ज ७७ १०२,१०६,११२,११५.११६,१२३,१२६, एगस ट्ठिभाग (एकषष्टिभाग) ज ७१२७,२६,३०, १२७,१२६,१३२,१३३,१३७ से १४१,१४३; ६६.७२,७५ ३४१५,१४,३५७,३६०५६,६६ ज ३।१६७१५, एगसदिठमाय (एकषष्टिभाग) ज ७.६५,६६,७१, १७८ ७२,७५,७७ एगिदियरयण (एकेन्द्रियरत्न) ज ३११७८,२२०; एगसटिठहा (एकषष्टिधा) ज०७२१,२२,२४,२५ ७।२०५,२०६ एगसत्तर (एकसप्तति) ज ४११६६ सू १२११२ एगूणणउद (एकोननवति) ज ७१४ एगसमइय (एकसामायिक) प ३६।६०,६७,६८, । एगणणउति (एकोनवति) ज २१८८ सू ११२७ ७१,७५ एगणतालीस (एकोनचत्वारिंशत्) सू २१३ एगसमइयद्वितीय (एकसमयस्थितिक) प ५।१४६, एगूणतीस (एकोनत्रिंशत् ) प ४१२८५ सू २३ १४७,१११४१ एगूणपण्ण (एकोनपञ्चाशत् ) ज २०४६ सू २।३ एगसमयठितीय (एकसमयस्थितिक) प ३१३८१ एगणवण्ण (एकोनपञ्चाशत् ) प ४६८ एगसाडिय (एकशाटिक) ज ३१६:५२१ एगणवीस (एकोनविंशति) प ४१२५७ ज ७१४ एगसिद्ध (एगसिद्ध ) प ११२ सू१।१० एगसेल (एकशेल) ज ४११६६,१६७ एगणवीसइ (एकोनविंशति) ज ११८ एगसेलकूड (एकशेलकूट) ज ४।१६८ एगूणवीसइभाग (एकोनविंशतिभाग) ज ११२३; एगागार (एकाकार) पश६०,७२,७३,८०,८१, ४।८१,६०,६८,१६६ ८४;१३.२०,२१७२२३०५१ से ५३,५५,५६, एगणवीसइभाय (एकोनविंशतिभाग) ज १११८,२०, ज ४१२५६ एगारस (एकादशन्) ज ३।१ ४८,४६८,२००,२०१ एगावण्ण (एकपञ्चाशत् ) ज ७।२० एगणवीसति (एकोनविंशति) ज २८८ एगावलि (एकावलि) ज ७१३३ एगूणसट्ठि (एकोनषष्टि) सू १२।६ एगावलिसठिय (एकावलिसंस्थित) सू १०॥५० एगणासीइ (एकोनाशीति) ज २१५६ एगासीति (एकाशीति) ज ३१३२ एगेंदिय (एकेन्द्रिय) प १२१५,३।४६ एगाहच्च (एगाहत्य) उ १२२,२५,२६,१४० एगोरुय (एकोरुक) प ११८६ एगाहय (एकाहिक) ज २।६,४३,७१२५ सूरा३ एज्जमाण (एजमान) ज ३४१०७ एगिदिय (एकेन्द्रिय)प १११४,४८,३१४० से ४२,४४, एज्जमाण (आयत्) उ १२२,८६,१४० ४६,१४१ से १४३,१८३;६।७१,८३,८६,६२, एज्जेमाण (आयत्) ज ४१३५,४२,७१,७७,६४ १००,१०२,१०७,११२; १०१३६:१११३६, एड (एड्) एडेइ ज ३१९८ एडेंति ज ५१५ ४१,८०,८४,१३।१६१५:१०३;१६२७, एउता (एलित्वा, एडित्वा) ज ५१५ १७।३६,५६,६०,६२,८७,१८।१४,२०; एणी (एणी) ज ३३१०६ २०१३५२१२ से ५,२२ से २५,३६,४०४६, एत (एतद् ) प १२० Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतारूब-ओगाहणठ्या एतारूव (एतद्रूप) प १७१२३ से १२५,१२७, १२८,१३० मे १३२,१३४,१३५ एतार (एतावत् ) ज २।४ एतादत (एतावत) सू१३३१०,१३ से १६ एत्तो (इतर) प १७११३५ उ ३।१०१ एत्थ (अत्र) प ११७४ ज १३ चं ७ मू ११२ उ ३१४५ एमेव (एवमेव) प ११०११३ एय (एतद् ) प ११२६ ज ३१०७ चं २१५ सू ११६ उ१११७ एयारूव (एतद्रूप) १ १७१२६ ज ११११, २।१७,१८,३२६,२७,३६,४०,४७,४८,५६, ५७,६४,६५,७२,७३,११२,१२२,१२३,१३३, १३४,१३८,१३६,१४५,१४६,१५८,१६५, १६७,४७,१५,२६,१०७,१४६,५।१३,२२ उ १।१५,१७,३४,४०,४३,५१,५४,६३,६५, ७४,७६,७६,६६,१०५,३।२६,४८,५०,५५, १८,१०६,११८,१२६,१३१:५२३,३१,३६, एलय (एलक) प १११६ से २० एलवालु (दे०) प ११४८१४८ एलवालुंको (दे०) प ११४०।१ एलापुड (एलापुट) ज ४।१०७ एलावच्चा (एलापत्या) ज ७१२० सू १०८८१ एक (एव) ज १११६ स १६३११ उ ११२ एवई (एतावत् ) ५ ३६१६० एवइय (एतावत् ) प ३६१५६,६६,७४ एवं (एवं) प १४६०११६ चं २।५ सू ११५ उ११४ एवंकरणया (एवंकरण) ज ३११२६ एवंभाग (एवंभाग) सू१९१०४ एवंभूय (एवंभूत) प १६:४६ एवति (इयत्, एतावत् ) प ३६६७,७१,७५ एवतिय (एतावत्, इयत्) प ३६१६६,६८,७०,७३ सू २१२,१६।२२।२,३ एवमेव (एकमेव) प ३४११६ एवामेव (एवमेव) प २८।१०५ ज ११२६ सू ३११; १०११२७११६३ एसणासमिय (एषणास मित) ज २१६८ उ ३६६ एसणिज्ज (एषणीय) उ ३१३६,३८ ३७ ओ एरंड (एरण्ड) प ११४२१२; ११४८१४६ एरंडबीय (एरण्डबीज) प ११७८ एरणवय (ऐरण्यवत) प १७।१६३ ज १६ एरवत (ऐरवत) प १८८ एरवय (ऐरवत) प १६:३०:१७१६० ज ४।१०२ ५५५५, ६१६,१३,१६,२० सू ११८,१६ एरदयकूड (ऐरवतकूट) ज ४।२७५ एरावण (ऐरावण) ज ४११४२१३,२०७,२६२; ५।१८ एरावणवाहण (ऐरावणवाहन) प २१५० एरावतिय (ऐरावतिक) सू १।१६ एराक्य (ऐरावत) जा२७४,२८७ एरात्रयग (ऐरावतक) ज ४।२५२ एरिसय (ईदशक) प २३११६५,१६६,२०० सू २०१७ उ श१४० एरिसिय (ईदृशक) प २३१२०१ एलग (एलक) ५ ११६४ ज २।३४,३५ .. ओअवण (दे० साधन, स्वायत्तीकरण) ज ४॥२७७ ओइण्ण (अवतीर्ण) उ १६०,६१ ओगाढ (अवगाढ) प३।१८०,१८२,५११३६ से १४५:१०.१८ से ३०,१११५०,६२ से ६४, ६६।१:१५३१११,१५११२,२५,१७११४१; २८१५,१२,१३,२०,३२,५१,५८,५६,६६ * ७१४१,४२,५०,५८ ओगाह (अव । गाह) ओगाहइ ज ३१२२,२६ चं ३१२ सू १।७२ उ ३१५१ ओगाहई ५ ११०१।६ ओगाहेइ ज ३।४४ ओगाहणठ्ठया (अवगाहनार्थ) प ५१५,७,१०,१२, १४,१६,१८,२०,२४,२५,२८,३०,३२,३४, ३७.४१,४५,४६.२३,५६,५६,६३,६८,७१, Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगाहण संठाण ओयविय ७४,७८,८३,८४,८६,८६,६३,६७,१०१,१०२, १०४,१०५, १०७,१११.११५, ११६,११७० ११६,१२६,१३१,१३२,१३४,१३६,१३८, १४०,१४३, १४५, १४७, १५०, १५४, १६०, १६३,१६६,१६६,१७२, १७४, १७७, १७६, १८१,१८४,१८७, १९०१६३,११७,२००, २०३,२०७,२११,२१४,२१८,२२१, २२४, २२८,२३०,२३२,२३४,२३७,२३६,२४३; १५।१३,२६,३१ ओगाणसंठाण (अवगाहन संस्थान ) प १।११६ ओगाना ( अवगाहना ) प १०७४, ८४, २२६४४, ६ से ९:५/६६,१३२, १६५; ११।७२ १५।१३,२६,३०,३१,५८२, ६५, २१।१ ।१. २१।३८,४० से ४२,४८,६३ से ३६,६८ से ७१,७४,८८ से २४,१०५ उ ३८३, १२०, १६१,४१२४ ओगाहणाणामणिहत्ताउय ( अवगाहनानामनिधत्ता युक) प ६।११८ ओगाहणाणामनित्ताउय ( अवगाहनानामनिधत्तायुष्क ) प ६।११२ ओगाणानामनिहाय ( अवगाहनानामनिधत्ता युष्क ) प ६।११६ ओगाहिण (अवगाह्य) ज ४ । २४० ओगाहिता ( अवगाह्य ) प २१२१, २२, २४ से २७, ३० से ३२,४१ से ४३; १५३४३,४५, ५२ ज ११४६; ४।२२१; सू १।२२ उ ३१५१ ओगाहेत्ता ( अवगाह्य ) प २।२३,३३,३५,३६ ओहिता ( अवगृह्य ) उ १।२; ३ २६; ५१२६ ओडिय ( अवगुण्डित) ज २११३३ ओह (अवग्रह ) ११२:३२६,२९,१३२; ५२६ ओघ ( ओघ ) ५।२२ से २४ ओघमेघ ( ओधमेव ) २२१४१, १४२, १४५ ; ३१११५.११६,१२२,१२४ ओघण्णा (ओवसंज्ञा ) प ८११,२,३ ओघस्सर ( ओघस्वर) ज ५१५०,५२ ८६७ ओचूलग ( अवचूलक) ज ३।१२५,१२६,१७८; ७१७८ ओच्छण (अवच्छन्न) ज २११२, १३, ३।१२१ ओट्ठ ( ओष्ठ ) प २।३१,३२ ज २१४३७११७८ उ ३।११४ ओट्ठावलं विणी ( ओष्ठावलम्बिनी ) प १७ १३४ ओणय ( अवनत ) ज २१६० ओत्यय ( अवस्तृत) ज ३६,१८, ६३, १८०,२२२ ओभंजलिया (दे० ) प १।५१ अभास ( अव - भास् ) ओभासइ ज ४।२१० चं २११ सू ११६।१ ओभासंति सू० ३।१ ओभासति सू ३।२ ओभासेंति ज ७१४६,५८ अभास (अवभास) ज ११२३ २ १२४।२०१, २१४,२४०, २६४,२७० सू २०१८, २०१८६ ओम (अवम) सू 1३ ओमंथिय (दे० अवमस्तिक) उ १११५, ३५; ३६८ ओमज्जायण ( अव मज्जायन) ज ७ १३२११ ; सू १०११०६ ओमत्त (अनमत्व ) प १५/४४,४५ ओमरत ( अमरात्र ) सू १२११६,१७/१ ओमुइत्ता ( अवमुच्य ) ज २०६५ उ ३।११३ / ओमुय (अव + मुच् ) ओमुयइ ज २२६५,२२४; ५१२१३११३४/२० ओमोय (दे०) ज ३१६ ओम्मिलिणी ( ऊर्मिमालिनी) ज ४३२११ ओय (ओजस् ) चं २२ सू १।६।२६।१६३ ओमि (ओजस्विन्) ज ३१७७,१०६ 1 ओवर ( अब तू ) ओयर उ १६७ / ओधव (६०) ओइ ज ३१७५ ओयवेहि ज ३१७६,१२८, १५.१,१७० ओवण (दे०, साधन, स्वायत्तीकरण ) ज ३११२६,४।१७७ sa (दे० अधीनीकृत्य ) ज ३१७१ ओविय (३० परिकर्मित ) प २१३१ ज ४|१३ सू २०१७ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६८ ओयवेऊण (दे० स्वायत्तीकर्तुं ) ज ३।८१ ओयवेत्ता (दे० अधीनीकृत्य ) ज ३३७६ ओयसंठिति (ओजः संस्थिति ) सू ११६; ६ १६ शर ओयाय (उपयात ) उ १११४,१५,२१,१३६, १३७ ओयाहार (ओज आहार ) प २८११०४,१०५ ओराल (दे०, उदार ) प ३४११६,२१,२२ ज ११५; २१६४३।१८५४।१०७ सू २०१७ उ ११४०, ४१, ४३, ४४ २१११ ओरालिय ( औदारिक) प १२१, ३ से ५, ८, ६, ११ से १३, १५ से १७,२१,२३,२७ से २६, ३२,३३,३५,३६,२१११,३६,८०,८२,१०२, १०४,१०५२३।४१ से ४४,८६,६२,३६।१२ ओरालियामीसगसरीर ( औदारिकमिश्रकशरीर ) १६।१५ ३६८७ ओरालियमीससरीर ( औदारिक मिश्रशरीर) १६।१,४ से ७ ओरालियमीसासरीर ( औदारिक मिश्रकशरीर ) क १६।१२ से १५; ३६८७ ओरालियसरीर ( औदारिकशरीर ) प १२/२३,२७, ३२,१६।१,४ से ७,१२ से १५,२११२ से ५, १६ से २५,२८ से ३२,३६,३५,४० से ४२, ४८,७६,७७,६५,६८ से १००,१०४,१०५; २२१३७,४४,४५,२८११०४,१४१,३६१८७ ओरालियरीरग (औदारिकशरीरक) प १२१२० ओरालियसरीरय ( औदारिकशरीरक ) प १२७ ओरालियसरि ( औदारिकशरीरिन् ) प २८१२,१४१ ओरोह (अवरोध ) ज ५।२२,२६ ओलंग ( अवलम्ब) ज ७ १७८ ओलुग्ग ( अवरुग्ण ) उ १।३५ ओवय (दे० ) प ११५० ओवक्कमिया ( औपक्रमिकी ] प ३५ | १|१:३५ ।१२, १३ ओमिय (ओमिक) ज २०४, ५ ओयवेऊण - ओहडिय ओवन ( औपम्य ) प २६४।१८ ओवम्मसच्च ( औपम्यसत्य ) प ११।३३।१, ११:३३ / ओवय ( अव + पत्) अवयंति ज ५।५७ ओयवमाण (अवपतत् ) ज ५१४४ ओववाइय ( औपपातिक) ज २१८३५।५७ ओवाय (अवपात) ज २२३८ ओवासंतर ( अवकाशान्तर ) प १५१५१ ओविय (दे० ) ज ३६,२४; ५१२१,२८ / ओक्क ( अव + ष्वप्क् ) ओसक्कति प १७ १५२, १५५ ओसक्कत्ता ( अवष्वष्क्य) सू १०।१४८ ओसण्ण ( अवसन्न ) प ६१४,६,८,१०२८१२०, २६,३२,६६ ज २।१३३,१३५ से १३७ उ ३।१२० ओसण्णविहारि ( अवसन्नविहारिन् ) उ३।१२० ओसत्त ( अवसक्त ) प २ ३०, ३१, ४१ ज ३७,८८ ओसधि ( ओषधि ) प १०३३।११।४५ ज २३१३१, १४४ से १४६; ३।१३३,२०,२११५ ॥५५, ५६ ओपिणी ( अवसर्पिणी ) ११२७, ८, १०,१२,१६, २०,२७,३२; १८१३, २६, २७, ३७, ३८,४१,४३, ४५,५६,६४,७७, ८३, ६०, ६५, १०७, १०८ ज २११,२,६,७,५२,५६,१३५३१ सू८११; ६६२; १७११;२०१५ ओसरिता ( अपसृत्य ) ज ५।५८ ओसह ( ओषध) उ ३।१०१ ओसही ( ओषधी) ज ४२००११ नगरी का नाम ओसा (दे० ) प १।२३ ओसारिय ( उत्सारित) उ ११३८ ओसोवणी (अवस्वापिनी ) ज ५/४६,६७ ओहय ( उपहत, अवहत ) ज ३३१०५, १०६, २२१ उ १।१५,३५,४१ स े ४४,७१३३६८ ओहस्सर ( ओघस्वर) ज २०१६ : ५|५१ ओहडिय ( अवघटित ) ज १।२४ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओहारिणी-कंतरिय ८६६ ओहारिणी (अवधारिणी) प ११११ से ३ ओहि (अवधिप ११७१७।१०६ से १०८, ११०; ३३।१।१; ३३.१ से १३,१५ से १६, २६,२७,३५ ज २१६०,६३, ३।१२,५६,८८, ११३,१४५, ५.३,७।२१,५८ उ ३७,६१ ओहिणाण (अवधिज्ञान) प ५१५,७,२४,४१,४६, ६७,११५,१७१११२,११३, २०१७,१८,३४; २८.१३६,२६२,६,१७,१६,३०।२,६ ओहिणाणारिय (अवधिज्ञानार्य) प १९६ ओहिणाणि (अवधिज्ञानिन्) प ३।१०१,१०३; ५६४३,६६ मे १६,११४ से ११७; १३।१४; १८१८०२८।१३६, ३०1१६ ज २१७६ ओहिदसण (अवधिदर्शन) प ५१५,७,४५,६७; २६॥३,७,१७,१६,३०१३,७ ओहिदसणावरण (अवधिदर्शनावरण) प २३।१४ ओहिदंसणि (अवधिदशं निन्) प ३.१०४:५।४७, ६६,११७,१८१८७,३०१६ ओहिनाणपरिणाम (अवधिज्ञानपरिणाम) प १३१६ ओहिनिगर (अवधिनिकर) ज ३३१२,८८ ओहिय (औधिक) प २।३४,३७,४२,४३,५०%; ४।५५,६८,७५,६१,६७३,७४;१११८२,८३; १२२६,२८,२६,३२ से ३४,३६:१५.१८, १६,३०; १७।२८ से ३०,३२,३३,३५,५८, ६०,६२,६३,२११३१,३६,४२,४४ से ४७, ६१,७०:२२१२४,२३।१७६,१८१,१६५,१६०, २६१५ कओ (कुतस्) प ६८२,६३,१११३०११ ज ७।३१ कंक (कक) प १७६ ज २११३७ कंकरगहणी (कङ्कग्रणी) ज २०१६ कंकडग (कंकटक) ज ३1३५,१७८ कंकण (कडकण) उ ३।११४ कंकावंस (दे०) प ११४११२ कंग (कङ्गु ) प ११४५१२ ज २१३७,३।११६ कंगुया (कंग) प ११४०१२ कंचण (काञ्चन) ज ११३७२११५,७०,३११२, २४,३५,८८,१०६.११७:५१५८,७१७८ कंचणकूट (काञ्चनकूट) ज ४।२०४११ कंचणकोसी (काञ्चनकोशी) ज ३१७८ कंचणग (काञ्चनक) ज ४।१४२२१ कंचणगपव्यय (काञ्चनकपर्वत) ज ४।१४२ ६१० कंचणपुर (काञ्चनपुर) प ११६३१ कंटक (कण्टक) ज ४।२७७ कंटकबहुल (कण्टकबहुल) ज ११८ कंटग (कण्टक) ज २६३६ कंटय (कण्टक) ज ३१२२१ कंठ (कण्ठ) ज ५।५६७।१७८ कंठाणुवादिणी (कण्ठानुवादिनी) सू ११४ कंड (काण्ड) प २६४१ से ४३,४६ कंडावेलु (कण्डावेणु) प ११४१।२ कंडुइय (कण्डू यित) ज १११३३ कंडक्क (कंडुक) प ११४८१५०,६२ भिलावा, तमाल कंडुरिया (कंडुर) प ११४८१२ एक तरह का सरकंडा कंत (कान्त) प २१४१,२८।१०५ ज २।१५,६४, ६५;३।६२,११६,१८५,२०६:५।२८,५८ सू २०१४ उ ११४१,४४,३।११२,१२८,५२२ कंततर (कान्ततर) ज २११८,४।१०७ कंततरिय (कान्ततरक) प १७११२६,१२७,१३३ ___ से १३५ ज २११७ कंतत्त (कान्तत्व) प ३४।२० कंतयरिय (कान्ततरक) प १७१२८ क क (किम् ) प ११ ज ११४५ सू ११६ उ ११४ कइ (कति) प १५१५३,१५।१४१,२२।४०,४१, ६०,२५१४ ज ११३४,४१२१४ चं ११.३ सू ११६।१,३ उ ११६; २।१,४।१ कइविह (कविविध) प १६११:२११७,१३,३०२ __ ज २।५७११०४,१०५,१११ से ११३ कइरसार (करीरसार) प १७११२५ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० कंतस्सरता-कट्ट कंतस्तरता (कान्तस्वरता) प २३११६ कंति (कान्ति) ज २६५:३।१८६,२०४ कंद (क-द) प ११३५,३६,४८७,११,२१,३१,३५, ६१,१११०१,१२८ ज ४७ उ ३३५०,५१,५३ कंदप्प (कन्दर्य) १ १४१ कंदपिय (कान्दर्पिक) २०१६१ ज ३।१७८ कंदमाण (क्रन्दत्) उ ११९२३.१३० कंदमूल (कन्दमूल) प ११४८१८,६१ कंदर (कन्दर) ज २१६५ ; ३१३५ कंदल (कन्दल) ज ३३५ कंदलग (कन्दलक) प ११६३ कंदील (कन्दली) प ३७२,१।४३३१ कंदली (कंद) (कन्दलीकन्द) प ११४८०४३ कंदलीथंभ (कन्दलीस्तम्भ ) प १११७५ कंदाहार (कन्दाहार) उ ३.५० कंदित (ऋन्दित) प २१४१ कंदिय (ऋन्दित) प २।४।१ कंदु (कन्दु) उ ३१५० कंदुक्क (कंदुक) ब ११४८.५० कंपण (कम्पन) ज ३।३५ कंपिल्ल (काम्पिल्य) प ११९३२ कंबल (कम्बल) प १५१११२,१५१५१ कंबु (कम्बु) प ११४८३ कंस (कांस्य) प १११२५ ज २।२४,६६ सू २०१८ कंसणाभ (कंसनाभ) सू२०१८, २०१३ कंसताल (कांस्यताल) ज ३।२१ कंसवण्णाभ (कांस्यवर्णाभ) सू २०१८ कसोय (कंसीय) प १११२५ ककुह (ककुद) ज ७।१७८ कक्कस (कर्कश) उ ३१९८ कक्केयण (कतन) ज ३१३५,१०६ कक्कोडइ (कर्कोटकी) प १४०।२ कक्ख (कक्ष) ज० २।१५ उ० ३।६८ कक्खंतर (कक्षान्तर) उ ४१२१ कक्खड (कवखट) प ११४ से ६; २।२० से २७; ३११८२,५५,७,२०६ से २०८:१३।२६) १५११४,१६,२७,२८,३२,३३,२३३१०२८९ १०,२०,३२,५५,५६,६६ कच्चायण (कात्यायन) ज ७१३२१४ सू १०।११७ कच्छ (कक्ष) ज ४।२४८ कच्छ (कच्छ) ज १८१,४।१६२२१,१६७,१७२।१, १७७,१७८,१८१,१८४,१८७,१६०,२००; ७.१७८ कच्छकूड (कच्छकूट) में ४।१६३,१६४,१८० कच्छगावइ (कच्छकावती) ज ४।१८५ से १८६ कच्छगावइकूट (कच्कावतीकूट) ज ४।१८७ कच्छगावती (कच्छकावती) ज ४११८७ कच्छभ (कच्छप) प ११५५,५७ ज २११३४; ४१३,२५ सू २०१२ कच्छभी (कच्छभी) ज ३।३१ कच्छविजय (कच्छविजय) ज ४।१६३,१६६,१६६ कच्छा (कक्षा) वराही नामक पौधा, भींगुर प११४६,११४८१६२ कच्छ (कच्छू) ज २११३३ कच्छुल (कच्छुरा) प ११३८१२ कच्छुरी (कच्छुरा) ५१३७११ कज्ज (कृ) कज्जाइप २२।१०,१५,१६,१८,४८, ५०,५२,६७ से ६६,७२,८२,६१ से ६३,६८, ६९ ७५२,५३ कज्जति ११७।११,२२, २३,२५,२२।५१,७१,७३।७४ कन्जति प १७१२५,२२१६,११ से १४,१७,१६,४८ से ५०,५२ से ५६,६१ से १५.६७ से ६६,७१ से ७४,७६ से ७६,८१,६१,६४,६७ से ६६ कज्ज (कार्य) सू१०११२० उ ३।११,५१,५६ कज्जल (कमल)५१७४१२३ कज्जलप्पभा (कज्जलप्रभा) ज ४।१५५।२, २२३०१ फज्जोक्य (कार्योपग) ज ७१८६।२ सू २०१८; २०१८२ कटु (कृत्वा) प ११७० ज श६४ सू १२०, २१ उ १११७ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कट्ठ-कण्णपाउरण ८७१ कट्ठ (काष्ठ) प १६४८।३० से ३७ ज २१६५, ६६,९८,१३१,३१६८,५५,१४ से १६ उ ३१५०,५१ कठ्ठपाउयार (काप्ठपादुकाकार) प १६७ कट्ठमुद्दा (काष्ठमुद्रा) उ ३।५५,५६,६३,६४,६७, ६८,७०,७१,७३,७४,७६ कट्ठसेज्जा (काप्ठशय्या) उ ५।४३ कट्ठा (काष्टा) सू १४६३११६१ से ३ कट्ठाहार (काष्ठाहार) प ११५० कड (कृत) २०१३९;२३।१३ से २३ ज १११३, ३०,३३,३६,२७१,४।२ सू १२१२ से ६,१० से १२ उ ११२७,१४० कडक्ख (कटाक्ष) ज ७१७८ कडग (कटक) प २१३० ज ३१६,६,१७,२६,२६, ४७,५६,६४,७२,६७,१०६,१३३,१३५,१३८, १४५,१५०.१६१,२११,२२२२५२१,५८ उ ५१५ कडय (कटक) पश३१,४१,४६ ज ११६,३१६५, १५६,४१६ कडाह (कटाह) प ११४८४६ कटावक्ष कडि (कटि) ज ३।१७८७११७८ उ ३३११४ कडिसुत्त (कटिसूत्र) ज ३।६,२२२ कडुमतुंबी (कटुकतुम्बी) १७१३० कडुगलंबीफल (कट कतुम्बीफल) प १७।१३० कडुच्छुग (दे०) ब १२४०,४११३६,२४२ कडुच्छ्य (दे०) ज ३१११,१२,८८,४१२१६; ५।५५,५७,५८ उ ३१५०,५५ कडय (कटक) प १४ से ६५५,७,२०५; २८१२०,३२,६६, ज २११४५,७।११२१२ सू १०११२६।२ कढिण (कठिन) उ ३३५० कण (कण) सू २०१८ कणहर (करवीर) प १३८१ ज २०१० कणिकार का पेड कणकण (कणकण) ज ५२४ कणकणय (कणकणक) सू२०१८ कणग (दे०) ज ३.३५ बाण कणग (कनक) प १५१, २१४०1८,६२१४८ ज ११५,१६,३८, २११५,६४,६८,६६; ३६, २४,३५,५६,८१,१४५,१७८,२११,२२२; ४११०,११५, ४।२१०११,२१७; १५८, ७.१७८ कणगमय (कनक मय) ज ३.१६७४१२ कणगरयणदंड (कनकरत्नदण्ड) ज ३।१०६ कणगसणाम (कनकसनामन्) ज ७।१८६? सू २०११ कणगामई (कनकावती) ४.७,१५,२४५ कणगामय (कनकमय) ज ११४६,३३१०६,१६७ ४।१,११०,१५६ कणगावलि (कनकावलि) ज ३१२११ कणय (कनक) प ११४११२ पलाश, धतूरा कण्दय (दे०) ज ३३१ । कणय (दे०) सू २०१८ एक ग्रह का नाम कणयदंडियार (कनकदण्डिकार) ज ३।३५ कणयमय (कनकमय) ज ११४६।१ कविताणय (कनकवितानक) सू २०१८ ग्रह का नाम कणसंताणय (कन कसंतानक) सू२०१८ ग्रह का नाम कणवीर (करवीर')ज २११५,३३१२,८८,५।५८ कणिक्कामच्छ (कणिका मत्स्य) प ११५६ कणीयस (कनीयम) उ ११६५ कण्ण (कर्ण) ज २१४३,६४,५१२६,३८,७१७८ उ३।१०२ कण्णकला (कर्णकला) सू १।८।१२१२ कण्णगा (कन्यका) उ ५१३,२५ कण्णत्तिय (दे०) प १९७८ कण्णपाउरण (कर्णप्रावरण) प ११८६ १. हे० ११२५३ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७२ कण्णपीढ ( कर्णपीठ ) प २३०,३१,४१,४६ कणमूल (कर्णमूल ) ज ५११६ कण्णा (कन्या) ज ३१३२ कण्णायत ( कर्णायत ) ज ३।२४,१३१ कण्णा ( कर्णायत) उ ११२२, १४० कण्णिा (कणिका) ज ४७ कण्णिया ( कणिका ) प ११४८१४५ ज ३१११७; ४१८,१५,१६ कणियारकुसुम (कणिकारकुसुम ) प १७ १२७ कण्णलायण (कणिलायन) सू १०/६५ कण्णिल्ल (कणिल ) ज ७ १३२११ कह (कृष्ण) प ११४४१३, १६४८१७, ११६३३६; २/२०१७ २६,५६ से ६६,७१ से ७६,८१ से ८७,६४,१०० से १०४,१०६, १०९, ११२. १६६,१६७,१६९ से १७२ उ १७; ५१६,१५, १७ से १६ कण्ह (वल्ली ) ( कृष्णवल्ली ) प १|४०|३ hupia (कृष्णकंदक ) प १७ १३० कण्हकडबु (दे० ) प ११४८ । ३ कण्हलेस (कृष्णलेश्य ) प १३३१५, १७८३,६२, ६४,६५,१०३,१०४, १०७, १०८, १२१,१२६, १७०,१७२, १८१६६,२३११९५,२०० कण्हलेस ट्ठाण (कृष्णले श्यास्थान ) प १७ । १४६ कण्हलेसा ( कृष्णलेश्या ) प १७|१२१:२८ ११२३ कण्हलेस (कृष्णलेश्य ) प १३ १४, १६ कण्हलेस्सट्ठाण (कृष्णलेश्यास्थान ) प १७।१४६ कण्हलेस्सा (कृष्णलेश्या ) प १३ १४, १६, १६/४६, ५०,१७२३६,३८,३६,४१,४३,४७,५०,८२, ११४ से ११६,११८,१२१,१२३,१३०,१३६ से १४५,१४७ से १५०,१५६ से १६४ कण्हलेस्सापरिणाम (कृष्णलेश्यापरिणाम ) प १३६ कसप ( कृष्णसर्प ) प १७० सू २०१२ कत (कृत ) प २८ १०५ ३४।१६ सू २०१७ कतर (कतर ) प ३१३८ से ४८, ५० से १२०,१२२ से १२४,१७४, १७६ से १८२, ६ १२३, ८५, कण्णपीढ कतिविह ७,६,११,६।१२,१६,२५,१०१३ से ५, २६, २८,२६,११७६,६०,१५१३,१६,२६,२८, ३१,३३,६४,१७/५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८३, १४५, १४६, २०१६४, २१३१०४, १०५; २८१४१,४४,७०,३४१२५ ३६ ३५ से ३७,३६ से ४१,४८,४६ सू १३४६, ८, १०, १३, १८७, ३७ कति ( कति ) प ६ १२०, १२१८११ से ३,१०११ ,१५,११।३०११; ११।४२,८८१२३१ से ५; १४१ से ३, ५, ११ से १४, १७, १५।१।१, १५११, १२,१७,१६,२०,२५, ३०,५४,५६, ५७,७७ से ८०,१३३,१३४; १७/३६ से ४०,११२ से ११४,१२६,१३६,१३७, १४७, १५६,१५७,१५६ से १६१,१६३, २१।१,६५,६६,२२११, २१ से २३,२६,२७, २६,३०,३२ से ३६, ४२ से ४७,५७,६६,८३, ८४,८६,८७,८६,६०,२३।१।१,२३१,२,६,७, २४,२४११ से ५,१० से १५:२५ १,२,५; २६३१ से ४, ८, ६, २७११ से ३,५,६,२८/३१; ३६।१,४ से ७,४२,४३,५३,५४,५८,६२ से ६४,७७, ७८ ज १।१५,४।२६० चं २।३,५ सू १ ६ ३, १६।१ से ३:१०८ से १६,६३ से ७४,७६,१२।१,१३१४, ५, १५ से ३७ १८३१४ से १७,१६११ कतिपएसिया ( कतिप्रदेशिक ) प १५११, २४ कतिपदेसिय ( कतिप्रदेशिक ) प १७ १४० कतिपगार ( कतिप्रकार ) प ११।३०११ कतिभाग ( कतिभाग ) प २८।१।१,२८।२२,३४,३६ ६८ कति भागावसे साउथ ( कति भागावशेषायुष्क) प ६।११४ से ११६ कतिविध ( कतिविध ) प ६।११८, १७११३६ कतिविह ( कतिविध ) प ५।१,१२३ से १२५; ६१११६,६१,१३,२०,२६,११।३१ से ३७, ७३, ८६,१३।१ से १३,२१ से ३१, १४७, ६, १५/५८ से ६०,६२,६३,६५ से ७४,७६, Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिसमइय कब्बडय १६१२,३,१७,१६,२०,२०६२ २१।२ से ६, मे १२, १४, १५, १६,२०,४६,७२, ७५ से ७७,६४,२२१२ से ६; २३३१११,२३।१३ से २३, २५ से ४७,४७ से ५६; २६।१ से ३, ५ से ७,६,१०,१२,१३,३०१, ३, ५ से ११,१३; ३३।१,३४।१७:३५ १,४,६,८,१०,१२,१६ ज २१ से ३४।२५४,२५५ सू १०।१२६; २०१३ कतिसमय ( कतिसामयिक ) प १५१६१ : ३६२, ३,८४,८५ कतो ( कुतस् ) प० ६।७० सू ४/४ कत्तिई (कार्तिकी) ज ७ १४०,१४४,१४६ सू १०/२६ कत्तिगी (कार्तिकी) ज ७।१३७,१५५ कत्तिम (कृत्रिम) ज २।१२२, १२७, ४११००, १७० कत्तिय (कार्तिक) ज ७।१०४,११३११,१३७ उ ३१३,४० कतिया ( कृत्तिका ) ज० ७ १२८, १२६,१३६, १४०,१४४,१४६,१५,१६० सू १०।१ से ६, ११,२३,३६,६२,६६,६७,७५,८३,१०१,१२०, १२४,१३१ से १३३,१२/२८ कत्तिया ( कार्तिकी) सू १०1७,११,२३,२६ कत्तो ( कुतस् ) प ६।१।१६।७५,७८,८०,८१,८७, ६०,६४,६६ ज ३।१२७ कत्थ (कुत्र ) प २१६४२ कत्थइ ( कुत्रचित् ) ज २ ६६ सू २०१७ कत्थुल ( कस्तुल) ज २।१० कवलीथंभ (कदलीस्तंभ ) प ११।७५ कद्दम ( कर्दम ) ज० ३।१०६ उ ११३६ कदुइया (दे० ) प ११४०१२ ai ( कथं ) सू १९ । २४ कथ्य ( कल्प ) प ० २११,४,१०,१३,५० से ५६, ५६१२२३६०,६३,३।२६ से ३६, १८३४।२१३ से २४०, २४३, २४६, २५८, २६४,६२८,६५, ६८,१०६,२०१६१,२११७०, ६१,६२,३०।२६; ८७३ ३४/१६,१८ ज ५।१८, २४ मे २६, ४४, ४६ उ २२०, २२ : ३१६०, १२०, १५६, १६१,४/५, २४.२८ v कप्प ( कृप् ) – कप्पइ उ ३।५०,४१२२कप्पेंति ज ५ १३,१८,२४,२५ Veer ( कल्पय् ) कप्पेह उ५११८ कप्पकार (कल्पकार ) ज ३१११७ कपणा (कल्पना) ज ३१३५ कप्पणी (कल्पनी) ज ३१३१ कप्पणिrयि (कल्पनीकल्पित) उ ११४६ कपरुक्ख (कल्पवृक्ष,कल्परूक्ष ) ज ३६, २११,२२२ कप्परुषखग (कल्परूक्षक ) ज ५।५८ पडसिया (कल्पातंसिका ) उ ११५ : २११ से ३,१४,१५,२१,३११ कपाईय (कल्पातीत ) प १।१३८ कप्पातीत (कल्पातीत ) प १।१३४; २१ ५५,७१ कप्पातीतग (कल्पातीतक ) प ६६५,६२ कप्पातीय (कल्पातीत ) प १११३६, २१।६२ कपाससमजिया (कार्पासास्थिसमज्जिका) प ११५० कप्पासिय ( कार्पासिक ) प १६६ कप्पिद ( कल्पेन्द्र ) प १५५५।२ कप्पिय (कल्पित ) ज ३३६,२२२ कप्पूरपुड ( कर्पूरपुट) ज ४११०७ कप्पेत्ता ( कल्पयित्वा ) ज ५।१२ कप्पेमाण ( कल्पमान) ज १।१३४ कप्पोवग ( कल्पोपग ) प १।१३४, १३५ ६८५ ८६, ६५; २१।५५ कप्पोववण्णग (कल्पोपपन्नक) ज ७ ५५ सू १६१२३ २६ बंध (कवन्ध ) उ १११३६ कब्बड (कर्बट) प १।७४ ज २१२२,१३१,३११८, ३१, १८०,१८५,२०६,२२१ उ ३१०१ कब्बडय ( कर्बटक) ज ७ १८६२सू२०१८, २०१८/२ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ कम-कयपुण्ण कम (क्रम) ज ३।३१,१०६,२१७ ; ४१२०२,७१३० कम्मपगडि (कर्मप्रकृति) प १४।११ से १४,१७; सू १६२२।१४ २२।२१ से २३.२८,८३,८४,८६.८७,८६, किम (क्रम्) कमइ २१६, ४।२०२७।१३० ६०।२३।१ से ५,२४,२४।१ से ५.१० से १५; कमंडलु (कमण्डलु) ज २०१५ उ ३१५१११ २५.१.२.४५,२६।१ रो ४८६;२७११ से ३, कमल (कमल) ज २११५,३१३,६,१८८,२०६, २१०,५।२१,५६ उ १११५,३५,३१६८ कम्मबीय (कमबीज) प ३६।१४ कमलमाला (कमलमाला) उ ११३५ कम्मभूमग (कर्मभूमिक) १११८५,८८,१२६; कमलागर (कमलाकर) ज ३।१८८ ६।७२,८४ ६७.६८,११३,२११५४,७२ कमलामेल (कमलामेल) ज ३.१०६ कम्मभूमग (कर्मभूमिज) य २३।२०० कम्म (कर्मन् ) प १११६:२१६४।२५,३।१७४; कम्मभूमगपलिभागि (कर्मभुमिकपरिभागिन्) १११८६; १७।१।१:१७११८:२०१३६; प२३।१६६,१६६ स २०१ २१११०२:२२२६,२७,२३१३,६,७,६ मे ११, कम्मभूमय (कर्मभूमज) प ६७६;१७।१५६,१६१, १३ से २३,२५,२६,२६ से ४१,४७,४८,५७ १७१,२३।१६६.१६६ से ६४,६६,६८,६९,७३ से ७७,८१,८३,८५ कम्मभूमि (कर्मभूमि) प १।७४,८४,२७,२१ से १०,६२,६३,६५ मे १६.१०१ से १०४, कम्मभूमिग (कर्मभूमिज) प २३१२०१ १११ से ११४,११६ से ११८,१२७,२३०, कम्मय (कर्मक) प १२०१ से ५,३५,३६,२१११ १३१,१३३ से १३५,१३७.१३८,१४२,१४३, काम कम्मवेदय (कर्मवेदक) प १३१६६ १५५,१६१,१६५,१६७,१७१,१७६,१७७, कम्मसरीर (कर्मशरीर) प १२८ १८२,१८३,१८७.१६१ से २०१:२४१२ मे ५, कम्मा (कर्मक) प १२।२५२११०२ ११,१२,१४:२५।२,४,५,२६१२ से ४,८,९ कम्मार (कार) ज २६ २७२,३.६:३६।८२,८३३१,३६॥६२ ज १२१३, कम्मारिय (कार्य) ९२,६६ ३०,३३,३६; २१५१,५४,६४.७०,१२१.१२६, कम्मासरीर (कर्मकशरीर) ५ १६।१ से ८.१० से १३०.१३८,१४०,१४६,१५४.१६०.१६३ १ ५.१६ ३।३।२,३५,१२५.१६७७.१७८,२११,२२३; कम्मिया (काभिकी) उ११४१,४३ ४।२७।११२।३ सू १०११२६।३२०११,२, कम्हा (कस्मात् ) ज७३८ २०१६।३,५ उ ११२७,१४० कय (कृत) २।३०,३१,४१ ज ३६,१८,५८, कम्मंस (कमांश) ५३६१२,६२ ६६.७२.७४.७७८१.८२,८५,६२,६३, कम्मकर (कर्मकर) ज ३।१७८ ११७११,११६ १२१,१२५,१४७,१८० २२१, कम्नखंध (कर्मस्कन्ध) प ३६।९२ २२२.२२६; १२६,५६ उ ११६,७०,८८, कम्मग (कर्मक) प १२।१४.२१,२६,२६; २१६६, ६२.१२१३४८,५०,५१,५६,११०,५१७ १०५:२३।४१,४३,४४,३६।१२ कयंब (कदम्ब) प ११३६।३ कम्मगर (कर्मकर) ज ५१५७ कयकज्ज (कृतकार्य) सू २०१७ कम्मगसरीर (कर्मकारीर) प १२११०,१६.१५, कयग्गह (कच ग्रह) ३।१२,८८,५७,५८ १८.२१:२११६४.१०० १०३ से १०५,३६।८७ कयत्य (कृतार्थ ज ५१५.४६ उ २३४ कम्मगारोरि कर्मकशरीरिक प २८।१४१ कयपुण्ण (कृतपुण्य) उ १३४ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कयमाल-करीर ८७५ कयमाल (कृतमाल) ज २१८, ३७१ से ७४,७६, १६।५०; ३६१८२११३६८५,६२ ज २१६६, ८४ ११७ करेमि ज २।९०३।२६,३६,४७,५६ . कयमालक (कृतमालक) ज ३७१,१५० १३३,१४५ ; ५३२२ उ १।४२ करेमो कयमालय (कृतमालक) ज ११२४,४६, ६.१६ ज ३।११३,११५,१३८,५१३ करेसि उ ३७६ कयर (कतर) ३१४६; १७।१४४ ; २२६१०१, करेस्सामी उ ३१२६ करेह ज २११४,३७, ३६।३८ ज ७।१२६,१७५,१८०,१८१,१६७ १२,२८,४१,४६,५८,६१,६६,७४,१४७,१६८ सू १०।२ से ४,७५,७७,१३३ से १३ करेहि ज ३।१८,१६.३१,५२.६६,६६,१४१, १८१८,१६ १६४,१८० सू३।१०३ करेहिइ उ ३१२१ करेहिति ज २११५१.१५७ उ ३११२६ काहिइ कयलक्खण (कृतलक्षण) उ ११३४ उ११४१३१८६ कीरइ उ ५।४३ कयलोखंभ (कदलीस्तंभ) ज २११५ कर (कर) ज २११५,७१, ३१३,१३८ उ १।१३६ कयलीहर (कदलीगृह) ज ५।१४ करंज (करञ्ज) प ११३५१ कंजा जिसके फल कयलीहरम (कदलीगृहक) ज ५११३ आदि दवा के काम आते हैं कयवर (कचवर) ज २।३६, ५५ करंडग (करण्डक) उ ३३१२८ कयविहब (कृतविभव) उ १२३४ करंडुग (दे०) ज २०१६ कया (कदा) ज ७४१२५ च १४ सू ११६।४;१४११ करंत (कुर्वत्) उ १८८,१२ कयाइ (कदाचित् ) ज ११४७३।४,८३,१०४, करकर (करकर,अकरकरा) प ११४२१२,११४८।४६ १५४,१७२,१८८,२२२,२२६, ४।२२,५४, अकरकरा १०२ उ २१४३१४६,४।२१,५१३ करकरय (करकरक) सू २०१८18 कयाई (कदाचित् ) उ१८ करकरिय (करकरिक) सू २०१८ कर (कृ) अकासी ज २१८४ करवाणि ज ३१३२११ करण (करण) ज १११३८१३२१२६,२०६; करण करिस्सामि ज १६,५१४६ करिस्सामो ५१५; ७११२३ से १२६ ज ५१५,७ करेइ प ७४३६८८ ज १६; करतल (करतल) ज ३१२०६ १६५.६०३३५,६,१२,१८ १६,३१.३२१२, करधाण (करध्मान) ३१३१ ४६.५२,५२ ६१,६२ ६६,७०,८८,६५.१००, करमद्द (करमर्द) प ११३७।४ करौंदा,आंवला १३१,१३७.१४१ १४२,१५६,१६४,१६५, करय (क रक) प ११२३ १८०,१८१.२२४; १२१,२६,४४,४६ ४८ करयल (करतल) ३१५,६,८,१२,१६,२६.३६, सू २११ उ १।१६,३१५१:४।१३ करेंति ४७,५३.५६,६२६४,७०,७२,७७,८४,८८, प १८४, ६।११०.२०१६ से ८३४।१६,२१ ६०,१००,१०५,११४,१२६,१३३,१३८ १४२, से २४ ज ११२२,२७,५०; २।१०.५८,१००, १४५,१५१,१५७ १६५,१८१.१८६,२०५, ११५.११६,११८,१२०,१२३,१२८, ३११३, २०६:५१५७,,२१,४६,५८ उ १११५,३५, २८,४२,४७,५० ५६,६७,७५,६२.११६,१३६. ३६,४५.५५.५७,५८,६१,६२,८०,८२,८३ १४८ १६६.१८४,२११, ४।१०१,१६६.१७१; ८६,८७,६६,१७,१०८,११६,११८,१२२; ५५.७,१४,१६,४६.५७,६०,६६,७४ ३६८,१०६,११४,१३८,१४८,४११५,५।१७ सू २१ उ११६३ करेजा प२०११ से ४,१८, करयलपुर (करतलपुट) ज ५११४,१७,६०६६ ४०,४४,४६,४८ ज ५७, करेति प ११७१ करिय (कृत्वा) ज ५१५८ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७६ करिए (कर्तुम् ) प २८।१०५५।२२ करीर (करीर ) प १०३७२४ करील करें (कुर्वत्) २४६५ करेलए ( कर्तुम् ) प ३४।११, २१ से २४ ज २११० उ ३।११५ करेत्ता ( कृत्वा ) प ३६१६२ ज ११६ सू २११ उ १११६; ३ ७ ४।१३ करेभाण ( कुर्वत्) ज २२६५, ७८ ३२२, २८, ३१, ३२,३४ से ३६,५४,७८,८६,६३,६६.१०२ १०६,१११.११३,१३७, १४३, १५६, १६२. १६३,१००, २०४ से २०६,२०८.२०१,२२३ उ १।२२,६५,६६,७१,९४,१११, ११२.१३८, १४० ३।५० कल ( कल ) प १२४५०१ ज २२७ सामवृक्ष कलंकलोभाव ( कलंकलीभाव ) प २२६४ कलंबुया ( कदम्बक ) प ११४६; १५/२,१८ सू ४१३, ४,६,७,६,१६१२२१२, १५, ११/२३ कलकल ( कलकल ) ज २२६५; ३।२२,३६,७८,१३, १२.१०६.१६३.१८०७ ४५.१७८ सू १६ २३ उ ११३८ कलकुसुम ( फल कुसुम) प १७।१२५ कलताल (कलताल ) ज ३१३१ कलस (कलश) प २।३०,३१४१ ज २११५; ३१७८, २०६४।२६ ५५६ से ५० उ ३।५१.५६ कलह ( कलह ) प २।४११२२।२० ज २१४२.१३३ कलहंस ( कलहंस ) प १।७२।१२ कला (कला) ज २१६४७११३४।१ सु १०।१४२, १४७, १२।३० उ ५ १३ कलाव (कलाप ) प २१३०, ३१, ४१; १५/२६; २११२५३७,८६,११७ कलिंग (कलिङ्ग) प १।२३११ कलिद (कलिन्द ) प १४९४९१ कलिय (कलित ) प २०२०२१४१,४८ ३३१०, १५.६५३७ १२.१५, २१.२२.२८, ३१. ३२२.३४ से ३६,४१ ४९,४८,६६,७४,७७, करिए कसरि ७८,८५,६१,१४७, १६८, १७३, १७५, १८४, १६६.२१२,२१३ ४।२७, ४९ १६६५०७ २८,४३ सू २०१७ उ १।१२२३५।१८ कलय (कलुक ) प १४४६ कलुस (कलुष) २।१३१ कलेवर ( कलेवर ) प ११८४ २०८१ कल्ल ( कल्य) ज ३३१८८३३१४८, ५०, ५५,६३, ६७,७०,७३, १०६,११० कल्लाण (कल्यानी ) प ११४१२ जंगली ३३८ कल्लाज (कल्याण) ज १।१३,३०,३३,२६६ २/१८,६४,६७,४१२ सू १८।२३ उ १११७, ४१, ४४; ५।३६ कल्लाग ( कल्याणक ) प २ ३०, ३१, ४१, ४६ ज ३६,२२२ कल्हार (कल्हार ) प १।४६ सफेद कोइ, एक पुष्प कवठ ( कपट) ज २११३३ कवय (कवच ) प २१६४२१ ज १।३७६३।३१. ७७.७६, १६, १००,१०१, १०७,११६,१२४ उ ११३८ कवाड ( कपाट ) प २१८,३०,३१,४१ ज ११२४; ३३८५०,१०२,१५४ से १५७. १६२.१६७/१२ कविजल ( कपिञ्जल ) प १७६ कविट्ठ ( कपित्थ ) प १०३६ १६ १६ ५५ १७११३२ ज ३।११९; ७।१७६ कैथ कविट्ठाराम ( कपित्थाराम) उ३।४८, ४५ कवित (कपिल) ज २११२,६५,१३३ कविलय ( कपिलक) सू २०१२ राहु का नाम कविसीस ( कपिशीर्षक) ज ३११३४।११४ atara ( कपिशीर्षक) ज ४।११४ कवोय ( कपोत ) प १।७६ ज २।१६ कवोल ( कपोल) ज २।१५ कव्व ( काव्य ) ज ३ | १६७|१० कस ( कष) ज २२६७; ३११०६ कसरि (दे०) सू १० १२० Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कसाय-कामभोग ८७७ कसाय (कषाय) १११११५,११४ से ६३.११ काउलेसट्ठाण (कापोतलेश्यास्थान) प १६।१४६ ५१५,७,२०५;१४।१,२,१८।१।१,२३।६८, काउलेसा (कापोतलेश्या) प १७६१२१२८११२३ १४०,१८३,१८४; २८१३२.६६,१०६।१; काउलेस्स )कापोतलेश्य) प ३९६१३११४; ३६।११ ज २११४५ १६।४६:१७१३२,५६,५७,५६ से ६१,६३,६४, कसायपरिणाम (कषायपरिणाम) प १३१२,५,१४ ६६ से ६४,७१ से ७४,७६,८१ से ८५,८७, १४,१००,१०२,१०३,१११,१६७,१८७१ कसायवेयणिज्ज (कषायवेदनीय) व २३:१७,३४, काउलेस्सट्ठाण (कापोतले श्यास्थान) प १७४१४६ ३५ काउलेस्सा (कापोतलेश्या) प १६६४६१७३६, कसायसमुग्घात (कषायस मुद्घात) प ३६६५ । ३७,११७,११८,१२१,१२२,१२५,१२६,१३२, कसायसमुग्घाय (कवायसमुद्घात) प ३६११४,५, १३६,१४४,१४५,१५१ से १५३ ६,७,२१,२२२८,३५ से ४३,४६,५३ से ५८ काउलेस्सापरिणाम (कापोतलेश्यापरिणाम) कसाहिया (दे०) प १७१ प १३।६ कसिण (कृष्ण) प २१३१ ज २२१५ काऊ (कागोती) प २१२० से २५ कसिणपुग्गल (कृष्णपुद्गल) सू २०१२ काऊण (कृत्वा) ज ३।१२ कसेरुया (कशेरुक) प ११४६ एक तरह का घास काओदर (काकोदर) प १७० कह (कथं) प २३।१११ काओली (काकोली) ११४८१५ एक वनौषधि जो किह (कथय ) कहेइ उ २०१२ अष्टवर्ग के अन्तर्गत है, जीवंती कहं (कथं) ज ७५६ चं २१४ सू ११६ उ १७२, काकंदी (काकन्दी) उ ३।१७१ ३७८ काकंध (काकन्ध) सू २०१८,२०८१३ कहग (कथक) ज २१३२ काग (काक) प १७६ कहा (कथा) उ १।१७,५७,८२,६६,१०७,१२७; कागणि (काकिणी) प १४४०१५ ज ३१६५,१५६ ३।१३,२६,१४७,१६०,४।११५१५,३८ कागणिरयण (काकिणीरत्न) ज ३।६४,१३५,१५८, कहि (क्व) प १७४ जे १७ १७८,२२० कहि (क्व) प ६९६ ज २११५ च २।२ सू १४६।२ कगणिरयणत्त (काकिणीरत्नत्व) १२0१६० काणण (कानन) ज २१६५ कहिचि (कुत्रचित्) उ ३३१०१ कातन्य (कर्तव्य) ५ ५।१६१,१७६६५६,६६, कहिय (कथित) ज ११४ च ६सू ११४ उ ११२ ७४ से ७८,८०,१११ काइय (कायिक) ज २१७१ कामंजुग (कामयुग) प ११७६ काइया (कायिकी) प २२।१ २,२२१४६ से ५०,५३ कामकाम (कामकाम) प २१४१ कामकामि (कामकामिन् ) ज २११६ काउ (कापोत) प १३१६,१७१२२ कामगम (कामगम) ज ५।४६।३;७१७८ काउं (कृत्वा) उ ३।१११४१६ कामगामि (कामकामिन्) ज २१२२ काउंबरी (काकोदुम्बरिका) १ ११३६।२ कामगुणित (कामगुणित) प २।६४।१६ काउलेस (कापोतलेश्य) प १७६२,६४,६५,१०३, कामस्थिय (कामाथिक) ज ३११८५ ११०,१११,१६८ कामभोग (कामभोग) ज ३१८२,१८७,२१८ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७८ सू २०१७ उ ११११ कामभोग (कामभोग) ३५२५ कामरुव (कामरूप ) प २०४१ काय (काक ) प २०४७ काय ( कार्य ) प १८६३११११; १५१५३,५४,५६, ५७,१६३१ से ८, १० से १५,१८,१६,२१, ५४; १८११२३३१५,१६,२०,२१,३४१११२ ज २२६७,६।१६७ १० १७४; २०१८ २०१८१३ कायपरित (फायअपरीत) प १८१०९, ११० कायगुल ( कायगुप्त ) २६३९९ कायजोग ( काययोग ) प ३६८६ से ८८,६१,६२ कायजोगपरिणाम ( काययोगपरिणाम ) प १३७ कायजोगि (काययोगिन् ) प ३६६ १३ १४, १६: १८५३२८१२८ कायfor ( कार्यस्थिति ) प १११।५, १८१११२ कायपरित ( कायपरीत ) प १८३१०६,१०७ कायपरियार (कायपरचार ) प ३४।१२ कायपरियार (काय परिचारक) १३४११६,१६, २१,२५ कापरियारणा ( कायपरिचारणा ) प ३४ । १७ से १६ कायमाई ( काकमाची ) प १३७१२ मकोय काययोग (काययोगिन् ) प १३०१७ काव्य (कर्तव्य) प ५।१३२,२२६६१४६.११० : १३११७,१५।३४, ३८, ७५, १०६१ २८।११२ ज ४।१७२ कायसत्रिय (कामत) २१० कारंडव ( कारण्ट ) ज २०१२ कारण (कारण) प ८४,६,८,१०२२०२६, ३२,६६ ज ७।२१४ १ ३६,११६, १२७; ३।११,२६ कारभरिय (कारनारिक) ३१०५ कारव (कार) कारर्खेति ज ३११३ कारवेह ज ३॥७ कारवेत्ता ( कारयित्वा ) ज ३१७ कामभोय-काल कारियल (कारवल्ली ) प ११४०२ करेना कारिया (दे०) प १२७१५. कारिल्लय (दे० ) सु १० । १२० कारेमाण ( कान्यत् ) प २१३०,३१,४१,४६,५७ ज १/४५:३११८५,२०५,२०६,२११:५।१६ उ ५।१० कारोडिय (कारोटिक) ज ३।१८५ काल ( काल ) प ११४ से ६,३४,८४२१२० से २७, ३१ से ३३,४०१८ २१४२ ४३ ४५११ २०४६,४७, ६४४११ से ४६,५६ से ५८,६५,७२,७६,८८, १५,६८,१०१,१०४, ११३,१३१,१४०, १४६. १५८,१६५,१६५,१७१,१७४,१८३,२०७, २१०,२१३, २९४, २६७, २६६,५५,७,३७,३८, ७४, १०७,१२६,१५०,१५२,१५४,१६०,१६२, १६७,२००,२०३, २४२२४४६।१ से २३, २७,४२ से ४५७११ से ४,६ से ३०११५२, ५४; १२१२४,३२,३३,१३२६:१६५०; १८३, १४, १५, २६, २७, ३७,३८,४१,४३,४५, ५७, ५६,६२,६४,७७,८३,६०,६५,१०५. १०७, १०८, ११०,११६,११७,१२० २३:४७, ६० से ६२,१०५,१६३ से १९६,१६० से २०१ २६१४, ६, ७,२०,२१,३२,३८, ५०, ५२, ५३, ६६:३६१६०,६१,६७/७१,७२,७५,७६,६३, १४ व ११२,४,५, २१ से २,६,४४,४६,५१, ५४,६६,७१,८८,८६,६१,१२१,१२६,१३०, १३१,१३३ ते १४१, १४९,१५४,१६०,१६३३ ३०३,२४,३१,३२,१२,१५,१०३,१११,१३८११, १५६, १६७१,७,१७८२२४५१.६ से १३,१८,४८,५० से ५२७१५७,६०,१०१, १०२,१८७, २१० ६.१,१०१११,४,५ २२; ८११७११:१८२५ से ३४:१६ २५ २०१७ उ ११ से ३, ७, ९,१३ से १६,२१.२२, २५ से २८,५१,६५ से ६७,७६,१३,६४,११९ से १२२, १२५,१४०, १४१, १४४, १४७,२०४, ६, ७,६,११,१६,२२,३१४ से ६,९,१२,१४,१६, २१,२४,२५,२७,४०,४८,५०,५५ से ५७,६४, Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काल- फिरिस ६५,६८,६६,७१,७२,७४,७५,७६,८३,८६, १०,६५,६८,१६,१०६,१२०,१२४,१३१,१३२. १५०,१५५ से १५७,१५६, १६१, १६४,१६८ १६९, ४१४ से ६,१०,१६,२४५१४, १४.२१. २४,२५,२६२८,३६,४०, ४१ काल (काल) सू २०१७ २०१८१५ काल (दे० कृष्ण ) कालओ (कालतस् ) प ११४८, ५११२७८.१० १२,१६,२०,२७,३२,१८१ से १०,१२ मे १७, १६ से ३९,४१ से ४७४६ मे ५१. ५४ से ५१,६१ से १०,९३ से १११.११३,११४, ११६.११७.११, १२०.१२२.१२३.१२५ से १२७:३५ ४ ज २२६६ १९२२।१६,१८,२० काल (काल) २११८२२२७२८८ १०७,९४९.१५०, १६०,१२३.१९७.२०० कालय ( कालगत ) २२८८६६३।२२५ उ १।२२,६२२११२:५३६,४० कालण्याण ( कालज्ञान) २०१६७७ कालनाण ( कालज्ञान ) ज ३।३२ कालतो (कालतस् ) प १२/२०१६१३,१८,४१, ४३,६०,६५२८१५, ५१ कालमास ( कालमास ) ज २१४६,१३५ से १२७ उ ११२५ से २७,१४०, ३११४,८३,१२०, १५०, . १६१.४।२४. ५४२८, ४०, ४१ कालमुह ( कालमुख) ३१ कालय ( कालक ) प ३।२८२५/३६ से ३८५८ से ६०,७३ से ७५,८१,२०,१०६ १०८, १५०, १५१,१६ से १६४,१९६ से २०४,२४१ से २४२१७१२९ सू २०१२ काललोहिय ( काललोहित) २१७१२ कासि (कालपिन्) काला (काला) ज २।१३३ कालावरु (कालागुरु ) प २०३०,२१,४१२६५ ३११२,५७,५८ कालागुर (कालागुरु) सू २०७ कालायस (काला) ३।२०६१७५ कालिंग ( कालिङ्ग ) प ११४८।४८ ज ३।११६ की (काली) काली (काली) २१५,६ काशीद (ल) मू १२।११।१ कालीदह (कालोदधि) सृ. १९११११२,४ काय (क) १३५१५५,५५११ सु ८/१ (मुद्र) १६३० कारण (कापान ) प १७।१३४ फास (काश, कास) प १३७१४ सटिजन का पेड़, एक पाय १२४०१ १११२.१२.१४,१७,१९ मे २४ कास (कास) १४३ कारा (काम) सू २०१८ २०१४ कारूपात (काका) ३१३५ कासव (काश्यप) ७/१३२९१३ कासवगत ( काश्यपगोत्र ) उ ११३ कामिका (कालिया) ज २२४६ कासी (काशी) प १३६३।११।१२७ से १३०, ७६ १३२ काह ( कथय् ) काहि उ २११३,५४४३ काहार (दे० ) ज ७११३३११ काहारसंटिय (काहार स्थित ) १०।२७ कि (किम् ) प १०११७२१११४६ किकर (रि) प २०३०,२१,४१ ५ ३३२६,३६, ४७,१६,१४,७२, ११३,१३८, १४५, १७८ किंचि (चित् ) १ २२६४।१८ ज ११७ सू ११४,२२,२७ किसे (चिन) ४१२,४०, ५५,६७.१६७,१६९ १११६४, ५११, १११६१७ ; ८११ किंबुग्ध (किस्त) ज ७।१२३ से १२५ यि (पर्यवसित) ११३० किंवहन (विभव) प ११।३० किरिस (fr) प ११३२६२१४२,४५, ४५।२३।११५,१२४, १२५ १९४८: १२७१ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म८० किसठिय-कीलंत किसठिय (सिंस्थित) १११३० किण्हा (कृष्णा) ज ११२३,२११२ किसुय (किंशुक) ज ३।१८८ किण्हासोय (कृष्णाशोक) प १७४१२३ किसुयपुप्फ (किंशुकपुष्प) ५१७४१२६ किण्होमास (कृष्णावभास) ज ४१२१५ उ ३.४६ किच्च (कृत्य) उ १।६२ कित्ति (कोति) ज ३,१७,१८,२१,३१,६३,१७७, किच्चा (कृत्वा ) ज २१४६ उ १२२५, ३.१४; १८० उ ४।२।१ ४।२४,५२८ कित्ति (कूड) (कीतिकूट) ज ४२६३३१ किच्छ (कृच्छ) ज ३११०८ से १११ कित्तिम (कृत्रिम) ज ११२१,२६,४६, २१५७,१४७, किटिभ (किटिभ) ज २११३३ १५०,१५६ किट्टि (किट्टी) प ११४८।४ कित्तिय (कीर्तित) प १४४८१६३ किट्ठीय (किट्टिया) प ११४८।२ किन्नर (किन्नर) प १११३२,०४१ किढिण (किठिण) उ ३१५१,५३,५५,५६,६३,६४, किन्नरछाया (किन्नरछाया) प १६:४७ ६७,६८,७०,७१,७३,७४,७६ किब्बिसिय (किल्विषिक) प २०१६१ ज ३।१८५ किणा (कथं) प १५१५३ किमंग (किमङ्ग) उ १११७; ३।१०२ किण्णं (किंनं) ज ३११२४ उ १६६ किमिरागकंबल (कृमिरायकम्बल) प १७६१२६ किण्णर (किन्नर) प २।४५,४५१२ ज ११३७; किमिरासि (कृमिराशि) प ११४८६ २१०१३३११५,१२४,१२५,४।२७,५२८ ।। किर (किल) ज २१६ सू २०१६।४ किण्णा (कथं) उ ५२२३ फिरण (किरण) ज २०१५३।२४ किण्ह (कृष्ण) प०४८१६ कालीमीर्च, करौदा किरिया (क्रिया) प १३१६:१७:११,२२,२३, किण्ह (कृष्ण) प २२१ से २७ ज २१३,१४, २५,३०,३३,२२११ से ५,६ से १६,२६,२७, २१७,१२,२३,१६४,४१२६,११४,११६,१२६, २६,३०,३२ से ५०,५२ से ६३,६५ से ६६, २०१,२१५,२४०,२४१ सू १६।२२।१७ ७१ से ७४,७६,६१ से १४,६७ से ८६,१०१; २०१२ उ ३१४६ २६६१०,३६।६२ से ६४,६७,६८,७१,७७,७८ किण्हकणवीरय (कृष्णकरवीरक) प १७११२३ ज ७१५२ किण्णकेसर (कृष्णकेशर) प १७११२३ किरिया (रुइ) (क्रियारुचि) प ११०१११,१० किण्हपत्त (कृष्णपत्र) प ११५१ किरियारइ (क्रियारुचि) प १११०१११० किण्हबंधुजीवय (कृष्ण बन्धुजीवक) प १७:१२३ किलकिलाइय (किलकिलायित) ज ७।१७६ किण्हब्भ (कृष्णाभ्र) ज २१५ इकिलाव (क्लम्) किलावेंति प ३६.६२ किण्हमत्तिया (कृष्णमृत्तिका) १११६ किवणबहुल (कृपणबहुल) ज ११८ किण्हय (कृष्णक) प ११४८।६२ किलेस (क्लेश) चं १।२ सू २०६६ किण्हलेसा (कृष्णलेश्या) प १७:२१ किसलय (किसलय) प ११४८।५२ किण्हलेस्स (कृष्णलेश्य) प ३९६,१७३१,८४; किसि (कृषि) ज २३ २३।१६६ कोड (कीट) प १३५११ किण्हलेस्सा (कृष्णलेश्या) प १७।३७,११६,१२०, 1 कोड (क्रीड्) कीडंति ज ११३०,३३ १२२,१२३,१३६ Vकील (क्रीड्) कोलंति ज १११३४१२ किण्हसुत्तय (कृष्णसूत्रक) प १७/११६ कोलंत (क्रीडत्) ज ३१७८ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीलग-कुप्पर ८८१ कोलग (कोलक.) ज ५१३२ कीलण (क्रीडन) प २१४१ कोलायण (क्रीडन) उ १163 से ६६ कीस (स्मिात् ३१५७८२ कीसत (शी शता) प २८१२४,३६,४२,४५,७१ कुंकुन (ककुम) ज ३१३५ कुंकुमपुड (ककुमपट) - ४११०७ कंजर (कुमार) ब ११३७२११०१, ३१३ ; ४।२७; ५२८ कुंड (कुण्ड) म ११॥२५ ज ४।२५,४०,६७,६८, ७१,७५,६०,६२,१३४ ने २७६,१८२,१८३, १८८,१८६१६४६१८ कुंडल (वृण्डल) २१३०,२१,४१,४६.५०%3 १५०५५.? ३.६.१८,२६,६३,१८०, २११,२२२,४१२०२५३१८,२१.६७ सू १६।३१ कुंडलवर (कुंडलवर) सू १६६३१ कुंडलवरोद (कुडलवरोद) सू १६।३१ कुंडलवरोभास (डलबरावनाम) सू १६।३१,३२ कुंडलोद (कुण्डलोद) सू १६६३१ कुंत (कुत्त) प१४१ ज ३।१७८ कुंदग्ग (कुन्नार) उ २१११५,११६ कुंतम्गाह (कुताह) ज ३१७८ कुंथु (कुथु) प १२० कुंद (कुन्द) प १।३।३, २१३१,१७११२८ जरा१०.१५३1३.१२.३५, ८ ५८ कुंद (लता) (वृन्दलता) प ११३९१ कुंदरुक : (दश).२६५,३८८ एक कर __ और उन सिकी तबीयानी है कंदुरुक्क ( वा) ॥ ३०, ३ १ ज ३१७.१८८५13:५८ सू २०१७ कुंभ (कुम) ज ३,५६,१२०,१४५,७१७८ उ १६७ कुंभगत (भा प्रस्) ११०६.११० कंभिक्क (कम्भिक, भात) ज ५१३८ कुंभी (कुम्भी) ज ३१६२ कुक्कुड (कुक्कुट ! प ११५१११,१७६ कुक्कुडि (कृकुटी) उ ११६:३,८४ कुक्कुह (दे.) ११५१११ कुच्च (वर्च प ११३७५ 1 कुच्छ (कुल) कुच्छेजा ज २१६ कुच्छि (कुक्षि) । ११७५२ २१६.६३ सू २०१२ उ ३१९८५॥३० कुच्छि (कुक्षि) २०४३ अडतालीस आंगुल का मान कुच्छितिरिय (कृक्षिकृमिक) प ११४६ कुच्छियहत्तय (कुक्षिपृथक्त्वि क) प १७५ कुज्जय (ब्जा.) प १३८११ कुज्जाय ( ) ज २११० कुमा (हातल) ज ३१६,२२२ कुठायाण (कुस्थानामन) २२१३३ कुडगछल्ली (कुटज छल्ली) प १७११३० कुडगपुष्फरालि (कूट अपुप्पराशि) प १७११२८ कुडगफल (कुट फल) १७११३० कुडगफाणिय (टफाणित) प ११३० कुडभी (कुडमी) ५.४३ कुडय (कुटको पश३६।३,१६४२१७४१३० ज३३५ कुडुंब (कुटुम्व) 3 ३१११,१३,५०,५५ कुडंबजारिया (कूटम्बजागति) १११५ २४८, ०.७६,६८,१०६,१३१ कुडुमय (कर) (कुम्बादप ११४८०४३ कुक (दुण) प ११४७ कशाला (वृणाला) ११६५ लिम (दे णप) ज २११४६ कुराहार ('वृणिः'माहार) ज१३५ ते १३७ कुत्युंभार (कुस्तुमरी) प ११३६१२,३७१२ कुदंतण (कुदर्शन ) ए १११०१।१३ कट्टि (कुदृष्टि) प ११०१।११ कुपमाप (कुत्रमाण) ज २:१३३ कुष्पर (नयर) ज ३१२२,३५,३६,४५ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८२ कुबेर ( कुबेर ) ज ३३१८६,२१७ कुभोइ ( कुभोजिन् ) ज २११३३ कुमार (कुमार) उ १११३ से १५,२१,२२,२५ से २७,३१,४२ से ४६,४८,६४ से ६६, ६४ से ६, १०२ से ११७,११६ से १२२,१२५, १२७,१२८, १४०,१४१, १४६, १४७, २१६,७, ६,१८,१६३।११४,१२०५।१०,२०,२२, २३,२७,३१,३२,३४ से ३८ कुमार (कुमार) उ १६ कुमारगह (कुमारग्रह) ज २१४३ कुमारावास ( कुमारावास ) ज २२६४, ८७ ३।२२५ कुमारिया (कुमारिका ) उ३।११४,१३० कुमुद ( कुमुद ) प १४६ ज ३।११७;४।१५४, १५५,२१२,२२५११, २३० कुमुददल (कुमुददल ) प ११२८ कुमुदप्पभा (कुमुदप्रभा) ज ४।२२१।१ कुमुद पहा (कुमुदप्रभा) ज ४ । १५५ । १ कुमुदा (कुमुद) ज ४ १५५ १,२२१ कुमुय ( कुमुद ) ज २१५४१३,२५,२१२३१ कुमुहत्थगय ( हस्तगत कुमुद ) ज ३३१० कुम्भ ( कूर्म ) ज २०१४, १५,६८३1३; ७ १७८ कुम्मण्णा (कूर्मोन्नत) २६ प कुरंग ( कुरङ्ग) प ११६४ ज २।३५ कुरज्ज ( कुराज्य ) ज ३।२२१ कुर (कुरब) प १।४७ लालफूलवाली कटसरैया कुरल ( कुरल) प ११७६ कुरा (कुरु) ज ४।१०८,१४१,१४३,२०५, २०७ २०८ कुरु (कुरु ) प १९३२; १५।५५ । ३ कुरुविंद ( कुरुविन्द) प ११४२२ कुरू (कुरूप ) ज २।१३३ कुल (कुल) ज ३१३, ६, १७, २१, २४,३४,१०६, १७७४।२१२,५१५, ४६, ५५ ७१२७३१, १३६।१,१४१ से १४६,१५० से १५३, १६७।१ च ५।१ सू ११६ ११०१६,२०,२१, २२, २५ २०१६१४ उ ११५४,७६,१४१ : कुबेर-कुसील ३१४८, ५०, ५५, १००,१३३ ५५ कुल कोडि ( कुलकोटि) प १२४६ से ५१,६०,६६, ७५,७६, ८१, ८१।१ कुलख (कुलाक्ष ) प ११८६ कुलक्षय ( कुलक्षय ) ज २१४३ कुलगर (कुलकर) ज २१५० से ६३ कुलत्थ ( कुलत्थ ) प १३४५।१ ज २१३७३|११६ उ ३१४१,४२ कुलत्था ( कुलस्था ) उ ३३४२ कुलदेव ( कुलदेव) ज ३।११३ कुलदेवया ( कुलदेवता ) ज ३।१११,११३ कुलधुया (कुलदुहित) ३१४२ कुलमाया (कुलमातृका ) ३०४२ कुलरोग (कुल रोग) ज २१४३ कुलवधुया ( कुलवधु ) उ ३१४२ कुलविसिट्ठिया ( कुलविशिष्टता ) प २३।२१ कुलविहीणया ( कुलविहीनता ) प २३२२ कुलारिय ( कुलार्य ) प १६५ कुलोवकुल (कुलोपकुल) ज ७११३६,१४१ से १४६,१५० से १५३ १०१६, २० से २२,२५ कुवधा (दे० ) प १/४०२ कुवलय ( कुवलय) चं १११ कुविदवल्ली ( कुविन्दवल्ली ) प ११४० १३ कुविय ( कुपित) ज ३३२६,३६,४७, १०७,१०६, १३३ उ १।२२,१४० कुबुट्ठिबहुल (कुवृष्टिबहुल) ज १११८ कुवमाण ( कुर्वत् ) प २३३,५०,५१,५६ कुवर ( कूबर) ज ३।३५ कुस ( कुश ) प १/४२/१ ज २८.६३।५१,५६ फुसंघयण ( कुसंहनन ) ज २।१३३ कुसंठिया ( कुसंस्थित) ज २।१३३ कुट्ट (कुशावर्त ) प ११६३२ कुसल (कुशल) ज २२११६ ३ ३२,७७,८७,१०६, ११६,१३८, १७८ ५१५ सू २०१७ कुसील ( कुशील) उ३।१२० Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसीलविहारी केवइय ८८३ कुसीलविहारी (कुशीलविहारिन्) उ ३।१२० १४३,२०६,२११ कुसुंभ (कुसुम्भ) प ११४५।२ ज २०३७ कूलधमा (कूलमायक) उ ३१५० कुसुम (कुसुम) प २१३१,४१ ज २११०,५३,६५, कूवग्गह (कूपग्राह) ज ३११७८ १६२, ३११२,३०,३५,८८,२२१,४।१६६; कूवमाण (कुप्यत्) उ ३३१३० ५।५,७,२१,५८ सू२०१७ केइ (केचित्) प ११४८१४१ ज २११३ कुसुम (कुसुम्) कुसुमेति ज २।१०४।१६६ केउबहुल (केतुबहुल) ज २०१२ कुसुमसंभव (कुसुमसंभव) ज ७११४१२ केउभूय (केतुभूत) ज २०१२ सू १०११२४१२ केऊर (केयूर) ज ३१६:५।२१ कुसुमासव (कुसुमासव) ज २।१२ केषकय (केकय) प ११८६ कुसुमिय (कुसुमित) ज २।११;७१२१३ केणइ (केनचित्) पू १३३५ कुसेज्जा (कुशय्या) ज २६१३३ केतकि.पुड (केतकीपुट) ज ४११०७ कुहंड (कुष्माण्ड) ज २०४१,४७।१ केतु (केतु) प २।४८ कुहंडियाकुसुम (कुष्माण्डिकाकुसुम) प १७।२७ केमहालय (नियत्महत) ज ११७;७।२६ से ३० कुहण (कुण) प १।३३।१,११४७ केमहालिय (वियत्महत ) प २११३८,४० से ४२, कुहर (कुहर) ज २६५ ४८,६३ से ६६,६६ से ७१,७४,८४ से ६३ कूड (कट) प २।११५१५५।३ ज ११३४,३५,४१, केयइ (केतकी) प ११३७१५,११४३।१ ४६।१२।१३३;४।४४ से ४६,४८,५३,७६, केयइअद्ध (केकयार्द्ध) प ११६३६ ६६,६७,१०५,१०६,१५६११,१६२ से १६५, केयूर (केयूर) ज ३।२११ १६७,१६६,१७२।१,१८०,१८६,१६२,१६८, केरिस (कीदश) सू २०१७ २०४,२१०,२१२,२३६ से २४०,२६३,२६६, केरिसिय (कीदृशक) प २३।१६५,१६६,१६६ से २७५,२७६,५।१६ से ८,१३,६१६:१,६।११, २०१ ज ११२१,२२,२६,२७,२६,३३,४६,५०% १६;७५८ सू १९२६ २।७,१४,१५,१७,१८,२०,५२,५६ से ५८, कासामली (कूटशाल्मली) ज ४१२०८ १२२,१२३,१२७,१२८,१३१ से १३३,१३६, कूडसामलोपेढ (कूटशाल्मलीपीठ) ज ४१२०८ १४७,१४८,१५०,१५१,१५६,१५७,१५६, कूडागार (कूटागार) ज २१२० १६१,१६४,४१५६,१००,१०१,१०६,१७०, कूडागारसाला (कूटानारशाला) उ ३१८,२६,६३, १७१ उ १२७ केरिसिय (कीदृशक) प १७११२३ से १२८,१३०, कूडाहच्च (कूटाहत्य) उ ११२२,२५,२६,१४० कूणिय (कणिक) उ ११० से १२,१४,१५,२१, केलास (कैलाश) ज ३११८६,२१७ २२,६३ से ७४,८८,८६,६१ से १५,६८ से केलास (कैलाश) सू २०१२ राहु का नाम १२६,१३१,१३४,१३६,१४०,१४४,१४५;२।४, केलि (केलि) प २१४१ ५,६,१६,१७,५११६ केवइ (क्रियत्) प ७।६।३६१६०,६१,७५ कूर (कर) उ ३११३० केवइय (वियत्) प ५८२,६१३,१२।११,१२, कूल (कल) ज ३।१४,१५.१८,५१,५२,६६,१४६, १५।३२,२०१११, ३६।४४ ज १११७:२२४, १५०,१६१,१६४,४१३,२५,६४,८८,११०. ४४,४५,४।२५७, ६७,८,१०,११,१५ से Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८४ १८.२३ से २५:७११.३ से २५,३२,५४,५७, ६०,६२ ६४ से ७३,७६,७६ से ८२,८६ से १६ मे १००.१२७.१७० से १७२,१७४, १०२. १८७.१९०, ११९,२०१ से २०७ चं २११६३१२ ग् ११६।११।७।२३।१६, १२४,१६४ केवरि (चिरं) १८२ १०,१२ ३७ प से मे ४१ से ४७,४६ ५१,५४ मे ८२,८४ से ६०. २३ मे १११, ११३.११४,११६.११७.११६, १२०.१२२,१२३,१२५ मे १२७ ७२१० केवनि (कियत् ) प ७१ से ४,६ से ८,१० से ३० २६/१११,२८४४,२९.३८५०३६१६७.७१.७२, ७६ केय (कियत्) व ४१ में ४६,५६ मे १८,६५, ७२.७६,६८,१२,१८,१०१, १०४, ११६,१३१. १४०, १४७, १५८,१६२.१६८१७१.१७४, १८३,२०७,२१०, २१३, २६४,२६७,२६६, ५०४,६,६,११,१७,२३,२७,२६,३१,३३,३६, ४०, ४४, ४८, ५२,०२,६२,१००,१०३,१०६, ११०,११४,११८,१२८, २३१,२४१६११.२. ४ से २३,२७,४३ से ४५,६० से ६४,६७,६८ १२१७ से १०,१३,१५,१६,२०,२१,२२,२७, ३१.३२ १५३७, ८, १४, १५,२२,२३,२७,४०, ४१,८३ से ६५,८१,६१,६४ से १०, १००. १०३ से १०६,१०८,१०,११३ से १२०, १२३,१२६,१२७, १२६,१३१,१३२,१३५, १३९ से १४१,१४३ १७११०६, १०२, ११०, १४२, १४३, २०१६, १०, १२, १३:२३०६० से ६२,३३१२,३,१०,१२,१३१५ से १८ ३४।१३:३६।६ मे २२.३० से ३४,४४ से ४७,५६,६६,७०,७३,७४७१७३ १०२०,२२,२३,२६,२६ से ३१२३ ३२१,४,५,६,१०,१२१२ मे १८०४८ १५२ से ७१८।४ मे ६,९,१०,१२,१३,२०, २५ से ३४ १२४,५.७.८, १०, ११, १४, १५. १६ मे २१.२५,३०,३१,३८,३५,३७,३ चिर- केवलसमुयाय केवल केवल (के) प २०१७.१०२२.३४ २ २४७१. २५ ३२२३७१३५१.१०५ १८१२३ (के) १२६.२६ ४०.४६.८४, ७०, १३२.१२०, १४५. १७५. १८५,१८८, २०६,२११३३१७,६१ केवल (पा) के ज्ञान) १२२१७ ज्ञान ) २६४४१६५४२४, केवलवाण १०२,१०७.११० १११३ २०१२८, ३१ २६२३०१२ haant (ज्ञाना) १६६ केवलावा रणिज्ज (केवलज्ञानावरणी ) १२३।२५ वाणि (केज्ञानिन् ) प ३११०१.१०३ ५१.११६.११६६१३४१२१८६२ २८१३६, १४०३०११६, १७ सण (केवलदर्शन) १५०२४.१२.१०२. १०७,११६, २०१३, १७६३०१३, १७ सणावरण (केदार) २३|१४ केवलसणावरणिजकेनी) " प २३।२८ केवलसणि (केवल दर्शन ) प ३२१०४ : ५१२० १६३० १६ केवल २४६४१२ केवलमाण (केवलज्ञान ) प ५ १०५ केवलनाणपरिणाम (के ज्ञानपरिणाम ) प १३१६ वाणि ज्ञानिन् २।११२ heatre (cोधि ) उ५१४३ केवल (केन्) १०१०४,१०० १२१,१२६६ १८६८,६६,६७,६६२०१७,१८,२२,२५,२० २६,३४,४५ २०१५५ से २०२६६२,६२, ८३१२ ज ६३,०१, ३२२४, २२५. १०२,१३४.१४२ केवरिया (के) ३२२५ केज (कै) ३६।१।१ केला (वनीसमुद्घात) १ ३६ १३७ ११.१५ मे १७,३१,२४२५४१०२.८५ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केस-कोडिंग केस (केश ) प २१३१ व २।१३३,३०२६, ३९, ४७, ९२,११६ heatre (केशानस्थितनख ) ज ३ | १३८ केस (कीदृश) २३११२२ केसर ( कैमर ) प ११४८२४५, ४६ ज २१२४:४१३, ७, २५.७ । १७८ केसरद्दह (केसरिद्रह ) ४४२६२ केलोय (केशन ) ३५२८३ केसि (क्रेशि ) १२:२६ केसु (शु) ३१२५ कोइल (कॉफिन) ११५३३५ ३५१५ कच्छ (कुसुम) प १७।१२५ कोइला (कला) ५१७६ कोड (क) ३३,८२,८५,१९२५,१२६, ०२२ १ १३,७०,१२१,३।११०,५१७ को हल्ल (कौतुहल) २१३२ कोहल (ह) १२६ कोवत्तिय ( कौतून प्रत्यय) ज ५२७ कोंग (क) ११८६ कोंच (कोच) प १७६,८६ उ ५ ५ कोंचार ( क्रौञ्चार ) ज ३१८६, १०२, १५६,१६२ स्तर ( क्रौञ्चस्वर) ज २।१६; ५।५२ कोंडलग (कुण्ड नक) ज २११२ कोत (कुन्त) ३,३५ कोकंति (दे० ) ज २१३६ लोमड़ी कोकणद (कोकनद ) प १२४६, ११४८१४४ कासि (द० विकसित ) ज ३११०६ कोकुइय (कीकुचिक ) ज ३१७ बलिया (द) ११६६६ १११२१,२३ कोज्जय ( कुब्जक) ज ३११२८८ कोटेज्जमान ( कुट्टन् ) ज ४।१०७ कोट्टणी (दे०) ३३२ कोट्ठ (कोप्ठ) ज ३३२ फोग (कोलक) प २०३०,३१,४१ कोठवुड ( कोष्ठपुट) ज ४।१०७ १. ६० १२६ कोट्टय ( कोष्ठक) उ ३६,१२ कोट्ठसमुग्ग (कोठसमुद्ग ) ज ३।११।३ कोयत्यय ( हस्तगतकोष्ठसमुद्ग ) ज ३।११ कोट्ठागार (कोठागार) ज २२६४ उ १२६६,६४, && ८८५ कोडा कोडि ( कोटिकोटि ) प २२४६, ५०, ५२,५३० ५५,५६,६३; १२।२७, ३२; १८१४२,४४,४६, - ३६० से ६४,६६,६८,६६,७३ से ७७, ८१,८३,८५ से ६२,६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ से ११८, १२७,१२६ से १३१,१३३,१७६, १७७, १८२,१८३,१८६, १८७,१६० ज २२६, ५१,५४,१२१,१२६,१५४, १६०,१६३,७११, १७० कोडि (कोटि ) प २३०, ४९, ५०, ५२,६२,६३,६४ ज १४२०,२३,४८, २२६ ३१२४, १७८, २२१; ४११,२१,५५,६२,८१,८६,६८,१०८, १७२; ५६८ से ७०; ६।८।१७।१।११।१४, १५, २१,१२१,१२२,१२६,१३३,१३६, १३७, १४०; ५।१० कोडिकोडि ( कोटिकोटि) यू १८२४; १६ १११, ५१३, ८ १३,१११४, १५१४, १६१६,२११५, ८, १६१२२१३,१६१३१,३५,३८ कोडिगार ( कोटिकार ) प १।६७ पेडो (कोट) सु १९११४,१५१,१८,२११२ कोडीवरिस (कोटिय) १६३१५. कोटुंबिय (क) प १६४४१ उ १११७, १८, ६२,१२३,१३१, ३ ११,१०१४११६, १७; ५११०,१५,१६,१८ कोतुक ( कौतूक) सू २०१७ कोत्तिय (दे० ) उ ३१५० कत्थंभरि ( कुस्तुम्बरी) ज ३३११६ कोयलवाहा (दे० ) प ११५० कोदंडिम (कुदण्डिम) ज ३११२,२८,४१,४६,५८, Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८६ कोदुसा-खंडाभेद कोसागार (कोशागर) ज ३१८१ कोसिय (कौशिक) ज७१३२१३ सू १०११११ कोसेज्ज (कौशेर) ज ३१२४१३,३७.१,४५११ १३११३ कोह (क्रोध) प १११३४११,१४१३,५,७,६,११ से १५,१७,२२।२०।२६।६,३५,७० से ७२,१८४ ज २।१६,६६,१३३ उ ३१३४ कोहकसाइ (क्रोधकतान्)ि प ३६८,१३,१४, १६; १८१६५, २८१३३ कोहकसाय (क्रोधकषाय) प १४११,२ कोहकसायपरिणाम (क्रोधकषा परिणाम) प १३।५ कोहकसायि (कोधकषानिन ) प ३९८ कोहणिस्तिया (क्रोधनिश्रिता) प ११:३४ कोहसंजलना (क्रोधसंज्वलन) १२३।६६,१४० कोहसण्णा (क्रोधसंज्ञा) प ८.१,२ कोहसमुग्धाय (कोधसमुद्घात) ५३६।४२,४४ से ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ कोदूसा (कोरदूष?) ५११४५।२ कोद्दव (कोद्रव) प ११४५२ ज २१३७,३।११६ कोद्दाल (दे०) ज २१८ कोमल (कोमल) ज २।१५; ३।१०६,२८८ उ ३६८ कोमुई (कौमुदी) ज २११५ कोरंट (कोरण्ट) ज ३।१७८,५१५८ कोरंटय (कोरण्टक) प १३८।१ ज २।१०; ३।१२,८८ कोरग (कोरक) ज २१२ कोरव (कौरव्य) ५११६५ कोरेंटमल्लदाम (कोरण्ट माल्यदामन ) प १७११२७ कोलठिय (कोलास्थिक) सू१०।१२० कोलव (कौलव) ज ७११२३ से १२५ कोलसुणग (कोलशुनक) प ११६६ ज २॥३६,१३६ कोलसुणय (कोलशुनक) १ १११२१ कोलसुणिया (कोलशुनिका) प ११।२३ कोलालिय (कौलालिक) प १०६६ कोलाह (कोलाभ) प १९७० कोलाहल (कोलाहल) प २१४१; ज २११३१ कोस (क्रोश) प ३६८१ ज १७,३५,३७,४२,५१, ४१७,६,१४,१५,२४,३१,३३,३६,३६,४१,४३, ४६,५६,६६,६८,७०,७२,७६,६३,११२,११४, ११५,११६,१२०,१२२,१३४,१३७,१४७, १५३ से १५५,२४२,७१७७१३,२०७ सू११४,१८,११,१२ कोस (कोष) ज २१६४,३१३,१७५, ४१६७।१७७ उ ११६६,६४,६८ कोसंब (कोशाम्र) प ११३५११ कोसंबी (कौशाम्बी) प ११६३।३ कोसल (कौशल) प ११६३१२ कोसलग (कौशलक) उ १११२७ से १३०,१३२ कोसलिय (कौशलिक) ज २६३ से ६७,७३ से ८२,८६ से ६० खइरसार (खदिरसारक) प १७।१२५ खओवसमिय (वायोपशभिक) प ३३११ खंजण (खजन) प १७:१२३ खंजण (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खंजणवणाभ (खजनवर्णाभ) सू २०१२ खंड (खण्ड) प १३१२५; १७४१३५३३११३ खंड (खण्टा __ ज २।१७, ६।६।१,६७ उ १।१४,१५,२१ खंडग (खण्डक) ज ४।१७२।१,६७ खंडगप्पवायगुहा (खण्डप्रपात गुफा)ज ३१५४,१६१ खंडप्पदायकूड (खण्डप्रपातकट) ज १।४१ खंडप्पवायगुहा (खण्डप्रपातगुफा) ज १।२४; ३।१४६,१५०,१५५ से १५७,१५६ से १६१ ४।३५, ६।१६ खंडप्पवायगुहाकड (खण्डप्रपातगुहाकट) ज ११३४ खंडय (खण्डक) ५११६७४ खंडाभेद (खण्डभेद) प १११७६ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडाभेय-खाइम खंडामेय (खण्डभेद) प १११७३,७४ खंडिय (खण्डित) ज ७४१३४।१ खंति (क्षान्ति) ज २१६४,७१:३।१०६ खंतुं (क्षन्तुम् ) ज ३११२६ खंद (स्कन्द) ज २१३१ खंदग्गह (स्कन्दग्रह) ज २०४३ खंध (स्कन्ध) प ११४,३५,३६,४७११,११४८३१२, २२,३२,३६,३।१७६; १२५,१२७,१३४, १३६,१३८,१५४,१६६,१६६,१७२,१८१,२२७ से २३२,१०७ से १४,१०११४१५.६; १३१२२।१,१६५३६,४३ : ३०।२६,२८ ज ३११८,७८,९३,२१२,२१३ ; ४११४६,५५५ ७१७८ उ १६७,१२१,१४०,३१११४ खंधावार (स्कन्धावार) ५११७४ ज ३।१८,२८, ३१,३२१२,४१,४६,५२,६१,६६,८१,८८,६५, १०१,११५ से ११७,११६,१२१११,१२२, १२४,१३१,१३५,१३७,१४१,१५१,१५६, १६४,१६७।२,१७२,१८० उ ११११५,११६, १३३,१३४ खंभ (स्तम्भ) ज ११३७, ३१६६ से १०१,१६३; ४।६,२६,२७,३३,१२०,१४७,२१६,२४२; ५३३,४,२८,३२ सू २०१४ खंभच्छाया (स्तम्भछाया) सू ६।४ खग्ग (खड्ग) पश६५,२२४६ ज ३।३१ ४१२००१ खम्गपुरा (खड्गपुरा) ज ४।२१२,२१२।४ खग्गरयण (खड्गरत्न) ३.१०६ खचिय (खचित) ज २३७, ३१२११५१५८ खज्जग (खाद्यक) उ ३.१३० खज्जलग (दे०) उ ३१११४ खज्जूरसारय (खजूरसारक) प १७।१३४ खज्जरी (खरी) प ११४३१३ खज्जूरीवण (खजूरीवन) ज २६ खट्टोदय ('खट्ट' उदक) प ११२३ खड्डाबहुल ('खड्डा' बहुल) ज ११८ खण (क्षण) ज ७/११२ सू १०११२६५ इखण (खन्) खणंति ज ५११३ खणित्ता (खनित्वा) ज ५१३ खतय (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खत्तमेघ ('खत्त'मेघ) उ २११३१ खत्तिय (क्षत्रिय) ज २१६५, ५१५,४६ खिम (क्षम्) खमई ज २१६७ खमंतु ज ३।१२६ खामेमु ज ३११२६ खम (क्षम) ज २१६४ खमा (क्षमा) ज ३११०६ खय (क्षय) प ३३१११ ज ३११२३ उ १११३६ खयकर (क्षयकर) ज ३।११७ खर (खर) प २१८,२०,१११६ से २० ज २११३३ खरमुही (स्वरमुखी) ज ३।१२,३१,७८,१८०,२०६ खरय (दे०) सू २०१२ राहु का नाम खरोट्ठी (खरोष्ट्रिका) प ११९८ खल (खल) ज २१६६ खलंत (स्खलत्) ज २११३३ खलु (खलु) प ११४८।५२,६१८०।११७४१५०, १५२,१५५;२३।३,६,३६८२ ज १४६ सू१।१२ उ १५, १२,३।२४।२,५२ खल्लू ड (खल्लूट) प११४८७ खव (क्षपय्) खवेइ सू १६१२२ खवइत्ता (क्षपयित्वा) प ३६।१२ खवय (क्षपय्) खवयति प ३६१६२ खवेइ सू १६।२२।१८ खवेति प ३६४१२ खवय (क्षपक) प २३११६१,१६२ खवल्लमच्छ (दे०) ५ ११५६ खवेता (क्षपयित्वा) प ३६६६२ खस (खस) प ११८६ खसर खसर) ज २११३३ खहचर (खेचर) प ११५४,७७,६१३१८३; ४।१४६ से १५७, ६७१,७६,७८,६४,२११८, १७,३५,४७,५३,६० ज २११३१ खाइम (खाद्य) उ ३.५०,५५,१०१,११०,१३४; ४१६ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६८ खाइय ( खादित) उ ११५१,५४,७६,७२ खाण ( स्थाणु) ज २१३६६४१२७७ खाबहुल (स्थावल ) १११८ खात (खात) प २१३० खाय ( खात) प २१३१,४१ ज ३।३२ खार (क्षार) १७६ खारतउसी (क्षारत्रगुणी ) प १७३१३० खारतजसीफल ( क्षात्रपुपीकल ) प १७।१३० खारमेघ (क्षारमेघ) ज २२४२, १३१ खारोदय ( श्रारोदक) ११२३ खासीय (खाशिक ) प ११८६ खिखिणी ( किंकणी ) ज ३१३५ खिल (खि) खिसति उ ३।११७ विज्जिया (विस्यमान) उ २।११८,१२३ खियामेव ( चिप्रमेव ) २८१०५ ३४११६,२१, २४ ज २१६५,६७, १०१, १०५, १४०७, १०६, १११११४,११५,१४१ से १४५; ३७,१२, १५,१८.१६,२१,२५,२८,३१,३२,३८,३८, ३०४६,४६,५२,५३,५८,६१,६२,६६,६६, ७०, ७४, ७७,८०.८३,९१.६६.०६.१००. ११५.११८.१२१.१२४,१२८.१३२.१४१, १४२१४७,१६० से १६४.१६८, १७३, १७५, १८०, १८१.१८३,१६१.१६६.२०७.९२२ २१३, ५१३,७,१४,१५२२,२८,५४,६८ रो ७०,७२.७३ खीन (क्षीण ) २६ ३१२२५ atraara (क्षीणपाय ) प १।१०२,१०८ से ११०,११५.११७ से १२३ खोर (खीर) प १४२३१ लीकी खीर (धीर) प १५ । ५५।१६ १७ ११६,१२८ सू १०।१२० उ ३।११८,१३० खोरकाओ (क्षीरकाकोली ) ११४८ खीरपुर (सीपुर ) प १७३१२८ खीरमेह (श्री मेघ) १४२,१४३ खोवर (ब) सू १६३१ खरिणी (ओरिणी ) प १३२ खीरोद ( श्रीराद) ज ६,६८ खीरोग (क्षीरोदक) ज २०१७ से १००,१११, खाइय-खेत्त ११२:५१५५ खीरोदय (श्रीगोदक ) ग ११२३ ज ५१५५. खोरोदा (क्षीरोदा ) ज ४।२१२ खीरोया (क्षीरोदश ) ज ४।२१२ खोलग ( कीलक ) ज ७।१३३१३ खील संठिया ( कीलक्स स्थित ) सू १०/४८ खोलच्छाया (कीलछायः) सूबाट खोलिया (कीलिका) प २३१४५.६८ खु ( खलु ) ३।२४ ३१ १७४१६०,८३,११३ खुज्ज ( कुटज) प १५/३५२३।४६ ज ३।११।१,८७ खुज्जा ( कुब्जा ) १०१६ खुड्ड (क्षुद्र) खुड्डग (क्षुद्रक) ज ४।१३६ खुड्डार (शुद्रतर) ज ४१५४ खुड्डाग (क्षुद्रक ) प १९५ खुड्डा (शुद्रक) सू २०१४ खुड्डिया (क्षुद्रिका) ज ४१६०,८३,११३ खुभिय (क्षुभित ) २६५ खुर (र) ३३०, १७८ ज खुरप ( प्र ) प शर० से २७१५५ ज ३।३० खुल्ला (क्षुल्लक) पाट खुहा (क्षुत्रा) (२२१११ १२ खेड (खेट) प ११३४ ज २२२१३१३११८,३१, ८१,१०,१८५,२०६,९२१ ३ १०१ खेडग (खटक) २०३५ खेड (खेटक ) ज ३१३१ खेड्डकारग ( खलकारक ) ज ३१७८ खेत (क्षेत्र) २२६४३११२६१२३२८१४१५ १४११८११; १५५२,१७/१०६ से १९१; २८।२०,३२,६६,३३१२,३,१०,१२,१३,१५ से १८, ३६।५६,६०,६६ से ६८,७० से ७४ जरा६६३३७१२० से २५, २६, ५२,५४, ७६ से २,६५,६६ सू १|१४; २३३|१: Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेत्तओ-गंध ८८६ ६.१; ६।१:१०१४,५,१७३; १९२२॥२५. प६.११८ खेत्तओ (क्षेत्रतस्) १११।४८,५०,१२१७,८,१०, गइपरिणाम (गनिरिणाम) प १३१२३ १२,१६,२०,२७,३२; १८१३,२६,२७,३७,३८, गइप्पवाय (गतिप्रपान) '१६।१७,५५ ४१,४३,४५,५६,६४,७७,८३,१०८,११७; गइरइय (गति रतिक) ज ५५,५८ २८१५,५१, ३५१४ ज २६६ गंगदत्त (गङ्गदत्त) उ ३।१३,१६० खेत्ततो (क्षत्रतस्) प १८।१०,६२,६५ गंगष्यवायकुंड (गंगाप्रगानण्ड) ज ४।२५,२६,३१, खेत्ताणुवाय (क्षेत्रानुपात) प ३।१२५ से १७३, १७५,१७७ गंगा (गंगा) ज १११८,२०,४८,२१६१,१३३, खेत्तारिय (क्षेत्रार्य) प ६६२,६३ १३०, ३११,१४,१५,१८,१४१,१४३ से १५१, खेत्तोववातगति (क्षेत्रोपपानगति) प १६१२५ खेत्तोववायगति (क्षेत्रोपपातगति) प १६१२४ ३६,१६७,१७,२७४; ५५५६।१६ से ३०३२ सू २०१७ उ १९७३०५१,५६,६८ खेम (क्षम) प २१३०,३१,४१ गंगाकुंड (गंगाकुण्ड) ज ११५१४।१७५१७६ खेमकर (क्षेमकर) जरा५६,६० सू२०१८,२०१८७ गंगाकड (गंगाक्ट) ज ४।४४ खेमंधर (क्षमंधर) २१५६,६१ गंगाकूल (गंगाकूल) उ ३.५० खेमपुरा (क्षमपुरा) ज ४।१८१,२००।१ गंगादीव (गंगाद्वीप) ज ४१३१,३२ खेमा (क्षमा) ज ४।१७७,२००१ गंगादेवी (गंगादवी) ज ३।१४०,१४१,१४३,१४५, खेल (श्वेल) प १८४ खेल्लणग (खेलनक) उ ३।११४ गंगावत्त (गंगावतं) ज २११५ खेल्लणय (खेलनक) उ ३।१३० गंगावत्तणकूड (गङ्गावर्तनकूट) ज ४।२३ खेवणी (शेपणी) ३३१ गंज (गजा) ११॥३७५ खोत (क्षोद) प १५१५५११ गंठि (प्रन्थि) प ११४१३८ ईख खोतोदय (क्षोदोदक) प ११२३ खोदवर (क्षोदवर) सू १६६३१ गंड (गण्ड) प १६५:२२५० ज ४।१३,५१६७; खोदोद (क्षोदाद) सू १६।३१ 15८ खोद्दाहार (क्षौद्राहार) ज १३५ से १३७ गंडतल (गण्डतल) ५२१३०,४६ खोम (क्षीम) ज ४।१३; ५१६७ सू २०१७ गंडयल (मण्डतल) प २३१४१ खोमिय (क्षौमिक) सु २०१७ गंडलेहा (गण्डरखा) २०१५ गंडीपद (गगडीपद) प ११६२ गंडीपय (गण्डीपद) प ११६५ गइ (गति) ए ४८ ज ११५,७१,१३३,३३, गंडूयलग (गण्डमदर) प १४६ १३८,१७८,५१२१, १२१,२५,५५,५८,८१, गंता (गत्वा) ग ११७२३६।३२ ज ३।२५.३८, १७५,१७८ च ४११ सू११६,१।८।१; १६२२१२२ गंतूण (गत्वा) प २१६४।२,३ गइकल्याण (गति वाल्याण) १८१ गंध (गन्ध्र) ध ११४ ३ ०१,४१,४६; गइनामणिहताउय (गतिनामनिधत्तायुष्क) ३११८२७५११०,१२.१४.१६.१८,२०,२४,२८, Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६० गंधओनाच्छ ३०,३२,३४,३७,३६,४१,४५,५३,५६ ५६, ६१.६३,६८,७१,७४,७६,७८,८३,८६,८६, ९१ ९३,६७,१०१,१०४,१०७.१०६,१११, ११५,११६,१२६,१३८,१५०,१५२,१५४, १६०,२०७,२११,२१४,२२८.२४२,२४४; १०॥५३।११११५५,१५३८,४२,१५१५५१२ १७१११४११,१७:१३२ से १३४; २३।१५ १६. १६,२०,१६०,२८१२०,३२,६६,३६८०,८१ ज ११३,२१७,१६,१८,१२०,१४२१६४, २११:३१३,७.६.११.१२,२१,३४.७८,८२, ८५,८८.१०६,१८०,१८७,२०६,२११,२१८, २२२,४।८२,१०७,१०६:५।५,७,२२,२६, ३२,५५,५८,७।२०६ सू २०१७ उ ११३५; ३१५०,११०।५।२५ गंधओ (गन्धतस्) प१५ से६१११५६२८१८, २०,२६.३२,५४,५६ गंधकासाइय (गन्धकासायिक) ज ३।६,२११,२२२; ५५८ गंधचरिम (गन्धचरम) प १०१४८४६ गंधट्टय (गन्धाट्टक) ज ५११४ गंधणाम (गन्धनामन्) प २३॥३८,४८,१०६,१०७ गंधतो (गन्धतस्) प १७ सेह गंधदेवो (गन्धदेवी) उ ४।२१ गंधदधुणि (गन्धध्राणि) ज २११२ गंधपज्जब (गन्धपर्यव) ज २१५१.५४,१२१,१२६, १३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ गंधपरिणाम (गन्धपरिणाम) प १३१२१,२७ गंधमंत (गन्धवत् ) प १११५.२,५५,२८१५,५१ गंधमायण (गन्धमादन) ज ४।१०२,१०४ से १०८, १६२,२०४,२१५ गंधमायणकूड (गन्धमादनकूट) ज ४११०५ गंधवट्टिभूत (गन्धवर्तिभूत) प २।३०,३१,४१ ज ३७,८८,१८४,१६३,५५७ सू २०१७ गंधवाट्टिभूय (गन्धवतिभूत) ज ५७ गंध (वासा) (गन्धर्षा) ज ५१५७ गंधव (गन्धर्व) प १११३२,२१४१,४५,६१८५ ज ३।११५.१२४,१२५७।१२२।३ सू१०१८४१३ गंधव्वछाया (गन्धर्वछाया) प १६१४७ गंधवलिवि (गन्धर्व लिपि) प १९८ गंधव्वाणीय (गन्धर्वानीक) ज ५१४१,४४ गंधहत्थि (गन्धहस्तिन) उ ११९६ से १६,१०२ से २ १११२१ गंधादेस (गन्धादेश) प ११२०,२३,२६ २६,४८ गंधावइ (गन्धापातिन) ज ४२६६ गंधावइवट्टवेयड्ढपव्वय (गन्धापातिवृत्तवैतादय पर्वत) ज ४।२६२ गंधावति (गन्धापातिन् ) प १६।३० गंधाहारग (गन्धारक) प १३८६ गंधिल (गन्धिल) ज ४।२१२,२१२।३ गंधिय (गन्धिक) प २।३०,३१,४१ ज ३१७,१२, ८८,२११,२२१,४।२६,५१७,५८ उ ३।१३१ गंधिलाबई (गन्धिलावती) ज ४११०३,२१२, २१२१३ गधिलायइकर (गन्धिलावतीकूट) ज ४।१०५ गंधोदग (गन्धोदक) ज ५७ गंधोदय (गन्धोदक) ज ३१६,२२२ गंभीर (गम्भीर) प ११५१:२१२० से २७,३०,३१, ४१ ज २०१५,६८,३१३५,१३८।१,४।३,१३, २५:०२२ से २४७।१७८ सू २०१७ गंभीरमालिणी (गम्भीरमालिनी) ज ४।२१२ गगण (गगन) ल ११२६,२।६८,३।१७८,४।४६ गगनतल (गगनतल) प २१४८ ज ३३१७८,५१४३ गग्गर (गद्गद) ज १७८ गच्छ (गम् ) गच्छ ज ३१८३,१७० उ ११५४ गच्छइ ज ४।२६८ २७४; १२२,२६,७।२० से २५,७६ से ८४,९५६८ से १००,१३५; ७।१३५११ च ११ सू ११६११ गच्छं ज ३।१५४,१७० गच्छति प ६१६६.१०५, ११०,३६३८३ ज २१४६,७१३६ से ४८ गच्छति प १६३४,४१,४२,४४,४५,४७,५१, ५४,३६.८२,८३।१ सू २१२ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छमाण-ब्भवतिय ८९१ गच्छह ज ३।१२५,१२७ उ ११४४ गच्छामि गत (गत) प २१३०,३१,६३ ; १७१०७,१५१, ज २०६०,३१२६,३६,४७,५६,१३३,१४५; १५४,२११५२,५५,७७,३४१२०,३६१८३१२, ५।२२ उ १:१७,३।२६ गच्छामो ज ३।१३८; ३६।८६,८८ सू २१३,६।३; १३७,६,१२,१४ ५१३ गच्छाहि ज ३।७६,१२७,१२८,१५१ से १६:२०१७ गच्छिहिइ उ १११४१;३।१८,४।२६,५१४३ गति (गति) प ३३१११,३१३८,३६१०१५३११ गच्छिहिति ज २११३५ से १३७ गच्छेज्ज १६.३६,४०,४३,४६,५५,१७।११४।१; प ३६९१ १८।१।१२३३१३ से २३, ३६८३१२ सू गच्छमाण (गच्छत् ) सू २२, २०१२ २।३१५।१,३७,१८१८ गच्छित्ता (गत्वा) ज ५११४ गतिचरिम (गतिचरम) १०३१ से ३३ गज्ज (गर्ज ) गज्जति ज ५१७ गतिणाम (गतिनामन्) प २३१३८,३६,८१ से गज्जिय (गजित) ज ३.१०४,१०५७११७८ ८४,१४६,१४८,१४६,१७१,१७२ गड्ड (गर्त) ज २१३८,१३१३१८८ उ ३१५५ गतिणामनिहत्ताउय (गतिनामनिधात्तायुष्क) गढिय (ग्रथित) उ ३११४,११५,११६ प६११६,१२२ गण (गण) प २१३०,३१,४१,४८,६० से ६३; गतिपरिणाम (गतिपरिणाम) प १३१२,३,१४,१६ २१६४११५ ज ११३१, २।८,१२,१३,२०,३६ से २१,२३ ४१,६४,४।३,२५ सू १६।२२।१०,२१, २०१६।४ यतिमाता (गतिमात्रा) सू १५१५ से ७ उ ४।११,५१५ गतिरतिय (गतिरतिक) सू १६२३,२६ गणग (गणक) ज ३।६,७७,२२२ गतिसमावण्ण (गतिसमापन्न) सू१०।१७०,१५।५ गणणा (गणना) चं ११३ गणधम्म (गणधर्म) ज २।१२६ गतिसमावण्णग (गतिसमापन्नक) सू १६।२३,२६ गणनायग (गणनायक) ज ३१६,७७,२२२ गत्त (गात्र) प २१३१ ज ३।६,२२२,४।१३; गणराय (गणराज) उ १।१२७ से १३०,१३२ १५७।१७८ गणहर (गणधर) प १६१५१ ज २।७३,६५,९६, गद्दभ (गर्दभ) प ११६३ १०० से १०२,१०४ सू २०१६।४ गब्भ (गर्भ) प ६।२६, १७/१६६,१६७,१६६ गणहरचियगा (गणधरचितका) ज २११०५ से से १७२ ज २१८५,३१३ उ १५० से ५२, ११२,११४ ५४,७४,७६,७७,७९ गणावच्छेइय (गणाव च्छेदक) ५ १६:५१ गम्भवक्कंतिय (गर्भावक्रान्तिक) प ११६०,६६, गणि (गणिन ) प १६.५१ ज ३१३५, १६७ च १३३ ७५,७६,८१,८२,८४,८५,१२६; ३३१८३; गणिज्जमाण (गण्यमान) सू १२।३ से ६,१५ ४।११० से ११२,११६ रो १२१,१२८ से गणितलिवि (गणितलिपि) प ११६८ १३०,१३७ से १३६,१४६ से १४८,१५५ से गणिय (गणित) ज २१४,६४,३।१६७३,६७,८ १५७,१६२ से १६४, ६१२२,२४,६५,६६, गणियपय (गणितपद) ज ६।८।१ ७१,७२,८४,६७,६८,१०८,११३,६७,१०, गणिया (गणिका) ज ३११२,२८,४१,४६,५८, १७,२३, १६।२८,१७१४३,४७,६३,६४,६६, ६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ उ ५.१०, ६७,८६२११६,१०,१२,१३,१५ से २०,३१, १७ ३४,३६,४३ से ४८,५३,५४,७२ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६२ गमवसहि-गवेसित्ता 21१६ गयवति (गपति) ज ३।१२६।२ गयवर (बर) जा६१ गयविक्कम (गनविक्रम) १३३।३ गयविकामसंठिय (जविक्रमथित) सु १०१५३ गरह (गई.) रति उ ३३११७ गरहेहि उ३।११५ गरहिज्जमाण (गई यमान) उ ३१११८ गराइ (गर) ज १२३ मे १२५ गरुय (गुरुक) प ११४ से ६:३।१८२:५॥५,७, २०६१५।१४,१६,२७,२८,३२,३३,२८४२०, गब्भवसहि (गर्भवमति) प २१६४ गभिणी (गभिगी) ज ३।३२ गम (गम) प १५१४३,२३।१६७ ज २५६, १५६:३१३,१८३,२०३,२१७४११३६, १४०११,१६७,२४३,५१४० मू का? गमण (गमन) ज ३१६,३५,८५.१८३ उ ११४२, ८८,१२६:३।१२७,१२८ गमणिज्ज (गमनीय) ज २६४,३११८५,२०६ ५॥५८ गमय (गमक) प ५११७६१७1८,३५. गमित्तए (गन्तुम्) उ ४३११ गय (गज) प १३० ज १५.६५,३११५,१७, २१,२२,३१,३४ से ३६,७७,७८,६१,१७३, १७५,१७७,१७८,१६६ उ१११२३,१३८, ५११८ गय (गत) १६४१:१७।१०६,१११:२११५५ ज २१५३१८,१३८७।१३३१३,१३५ चं १।१,२ उ ११२५,४६,५१,५४,६४,७६,७६ ८८,८६,६१,१११.११२,१२१,१३८, ३.१५,३५,५१,५६,८४,१२१,१६२:४।२४; ५.१३,२०,२७,३१,४० गयंद (गजेन्द्र) चं १११ गयकण्ण (गवाण) प १९८६ गयकलभ (गजकलभ) प १३।१२३ गयछाया (गजछाया) ११६१४७ गयण (गगन) ज ३१३ गयणलल (गगनतल) ज ५।४३ गयतालुय (गमतालुक) प १७४१२६ गयदंत (गजदन्त) ज ३।३५,४११०३,७।१३३।३ गजदतठय (मजदतगस्थित) सू १०५१ गयपुर (गपुर) प १९३२ गयमारिणी (जमारिणी) प ११३७५ गयरूवारि (नजरूपधारिन् ) ज १७८ म् १८।१४ गयव३ ( पति) प २१४६ ज ६।१७,१२६१२, १७७,१८३,२०१,२१८७१११२४,१३१; गरुयत्त (गुरुकरका) प १५३४४,४५ गरुयलहुयपज्जव (गुरुक रघु पयंत्र) ज २१५१, ५४,१२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४, १६०,१६३ गरुल (रुड) प २।३०,३१ ज ३।१०६४१२०८ च १२ गरुलम्वूह (माटव्यूह) उ १।१४,१५,२१,१३६, गल (पल) ज २११५७१७८ गल (गत्) चं १११ गिल (ल) इ उ १५१ गलय () ज १७८ गललाय (गालात) ज ३११७८,१७८ गल्ल (गल्ल) ज ५१% गवक्ख (वाक्ष) जे १९२०४१६ गवय (गबय) प ११६४ ज २१३५ गवल (गवल) प २१३१,१७।१२३ ज ३१२४ गवलवलय (गवलवलय) प १७११२३ गवेलग ( वेलक) ज ३११०३ गवेलय (विलक) ज २११३१ गवेस (वेम्) वेसइ उ ३६११४ गवेसग (गवेपक) ज ३११०६ गयेसणा (वेपणा) ज ३१२२३ सु २०१७ गवेसित्ता (वेपयित्वा) उ ३३११४ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गविष-गाहेता गव्विय (वित्त) ज ७।१७८ यह (ग्रह) १०१३३:२२ मे २७,४८ से ५१. ६३ ज ११२४, ७ १७७३ १८०, १६१, १८६, ११७ १०।१७१ से १७३१५१.१०.१३ १८१४१८१२३७१९४१,५१२८१२, १६।२२१३.६, ९, १०, २१,२०,२६,३१:२०१८ ग्रहगण (प) ४३०१,१७,२१,३४,१०७,२२२; ७१५५, ५८, १८०, १८१.१६७, सू १८१८ १६।२२, २३, २६:२०३५ २०१२५४१ गहण ( मन ) प १।४८।५३ से ५५ ११०५३, ५५, ५७. ५२, ७१: १६१६५२२१५.०० १७१ महणया ( ग्रहण) उ १०१७ महत (त्व) २८३ शहर (दे० ) प ११७e मदिरा (मान) ज ७।१७८११, १६१,१६२ ३१,३२ हाय (गृहीत्वा ) प ३६८११२६७ ३१५० गहिण (हत्या) ज ३०२४ गहित ( गृहीत ) सू २०१२, ६२३३१५५ महिष (गृहीत) १६ मे १९४ गहिर ( गंभीर ) प २१४ १८८, ११, १५, २४१६१२४७१७२३३१२, ७७,८८ १०७, १२४ ४७,३८ ११३८ ३१६३,७०,७३ (५०५७ गाउय (ब्यून ) प १३५२१६४२१४२,४४,४६, ४७११.२०२४८२३२६.४५ J ४१६६१०३, ११०,१४३, १३०.२०३,२२६, ७६०, १८२ गाउयपुत्तिय (व्यूत पृथवित्वा) १७५ गागर (दे ) प ११५६२३ गात (३४२११, २०१८ गाम (न) ११७४१६१२२२११९२.६३ २१२२.६६७०.१३१.२०१६.३१.३२.०१. १६७२, १८०.१८५,२०६, २२१३३।१०१. ५१३६ गामकंटय (कण्टर) ५१४३ गामिण (समणिमण' ) प ८४ गाममारी (ग्राममारी) ज २१४३ ग्रामरोग (ग्राम)२४३ गाय (गो) १२१४ गामाणुयाम (गानुम) १४२१७३२६,६६, १३२:५/३६ ८६३ नाम (१।१११.११२ गाय (गो) प ११४ गाय (धन) १७०१३४ २०१५, १८२८२. २११५५३५० गायंत (यत्) ३०१७ गारव (ग) ३५३ गारविय (गौरव) सू २०१६१२ गालण ( गालन ) उ ११५१, ७६ लिए) उ ११५२.७६.७७ यामाण ( गालगत ) उ५।२५ गावी (यो ) ज २१३४ गाह (ग्रह) प ११५५.५८ गाह (ह) माहिति ) ज २०१६४ गाहा (गाया ) प १४० २०४० १५०५५ १०१७, १६.२५ गाहाव (गृहपति) ज ४११८१,१०३, १८४,१८६, १९५३।१०,११.१३,२१.१५८,१६०,१६६० ४१७ से १,१६,१८ हाइकुण्ड (पछि ६४१८२१९४ गाहायइणी (गृहपत्नी) उ४ गावइदीप (गृहपतिद्वीप) ४।१८२ गाहारयण (बृहपतिरत्न ) ज ३११, १२०, १७८,१६,१५५१०६, २१०, २१६, २१६, २२० गाहावइरयणत ( गृहपतिः) २०५८ गार्हता (ग्राहयित्वा ) ज २२१३४ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ गिण्ह-गुत्ति गिण्ह (ग्रह.) गिण्हइ ज ५१६०,६६ उ ११५७ किण्हति ज ५।१४,१७,५५ उ ११४५ गिण्हह उ ११४४ गिगहेइ उ ११४८ गिण्हउकाम (ग्रहीतुकाम) उ १११०५ गिण्हमाण (गह णत् ) प १११७० गिण्हित्तए (ग्रहीतुम्) उ ११११६ गिरिहत्ता (गृहीत्वा) ज ५११४ सू २००२ उ ११४५ गिण्हेऊणं (गृहीत्वा) उ ३६८ गिण्हेत्ता (गहीत्वा) उ ११४८ गिम्ह (ग्रीम) ज २१६४,७०,७११६४,१६७ सू८।११०।७१ से ७४;१२।१४ उ ५।२५ गिरिकुमार (गिरिकुमार) ज ३११३३,१३६ गिरा (गिरा,गिर्) ज २०१५ गिरि (गिरि) ज २.१५,६५,१३१,१३३,१३४; ३।३२,७६,७७,१०६,१२६.४,१२८,१३८, १५१,१७०,१८५,२०६,२२१,४।२३४,२४० गिरिकण्णइ (गिरिकर्णी) प ११४०१५ अपराजिता गिरिदरी (गिरिदरी) ज ३।१०६ गिरिराय (गिरिराज) ज ४२६०।१सू ५१ गिरिवर (गिरिवर) ज २१६५,३।३,८८ गिल्लि (दे०) ज २१३३ गिह (गृह) ज ३।३२,१८३,१८६ उ ११४२,४४, १०८,३१२६,१००,१०१,१३१,१४१,१४८; ४११२,१३ गिहिलिगसिद्ध (गहलिङ्गसिद्ध) प १११२ गीत (गीत) प २१३०,३१,४१ सू १८१२३; १६१२३,२६ गीतजस (गीतयशस्) प २१४५,४५।२ गीतरति (गीतरति) प २१४५ गीय (गीत) ५ २१४१,४६ ज ११४५,२०६५; ३.८२,१८५.१८७,२०४,२०६,२१८,५१, १६.७५५,५८,१८४ गीयरइ (गीतरति) प२४२ गोवा (ग्रीवा) ज २०१५ गुंजत (गुञ्जत् ) ज २११२ गुंजद्ध (गुजार्ध) ज ३।३५,१८८ गुंजद्धराम (गुजार्ध राग) प १७।१२६ गुंजालिया (गुजालिका) प २।४,१३,१६ से १६, २८,१११७७ गुंजावल्ली (गुञ्जावल्ली) प १।४०१४ चूंघची गुंजावाय (गुञ्जावात) प १।२६ गुच्छ (गुच्छ)प १३३।१,३७१।४८१६,६१ ज २।१२,१३१,१४४,१४६ उ ५१५ गुच्छवहुल (गुच्छबहुल) ज ११८ गुज्म (गुह्म) उ ३११ गुझंतर (गुह्यान्तर) ज ४१२१ गुण (गुण) ५२१६४११३,१७,५१३६ से ३८,५८ से ६०,७३ से ७५,८८ से १०,१०६ से १०८, १४६,१५०,१५१४ से १६,२७,२८,३२,३३, ५७,२०१७,१८,३४,२८१२०,२६,३२,६६, ३४/२० ज २०१५,६५,३।३,३२,११७११, ११६,१८६,२०४,२०६५५६,६८,७० ‘गुणड (गुणाढ्य) ज ३३२।१ गुणनिष्फपण (गुणनिष्पन्न) उ १२६३ गुणरयण (गुणरत्न) ज ५१५८ गुणसिलय (गुणशिलक) उ १११,२,३१४,२१,२४, ८६,१५५,१६८,४।४,६,१३,१८ गुणसेढि (गुणश्रेणि) १ ३६१६२ गुणसेढीय (गुणश्रेणिक) प ३६१६२ गुणहर (गुणधर) ज ३११२६.१ गुणित (गुणित) सू १६।२२।२६ गुणिय (गुणित) ज २६ गुणेत्ता (गुणयित्वा) ज ७।३१ सू ४।४,७ गुणोववेय (गुणोपेत) ज २।१४ गुत्त (गुप्त) प १३०,३१,४१ ज २१६८, ३२३५ गुत्तबंभयारि (गुप्तब्रह्मचारिन् ) ज २१६८ उ २१६%3 ३३१३,८६,१०२,११३,११५,१४६,१६०; ४१२०,२२; ५।२७,३८,४३ गुत्ति (गुप्ति) प ११० १११० ज २०७१ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुत्तिदिय-गोयम ८९५ गुत्तिदिय (गुप्तेन्द्रिय) ज २१६८ उ ३६६ गुमगुमंत (गुमगुमायमान) ज २।१२ गुम्म (गुल्म) प ११३३।११।३८१३,११४८१६१ ज २।१०,१२,१३१,१४४ मे १४६,३।२२१; ४।१६६ उ ५५ गुम्मबहुल (गुल्मबहुल) ज ११८ गुरु (गुरु) प १११११ २११३३ गुरुजण (गुरुजन) उ १७२ गुरुजणग (गुरुजनक) उ १८८,६२ गुल (गुड) प १७।१३५ ज २०१७ गुलगुलाइय (गुलगुलायित) ज २१६५,३।३१; ५१५७ गुलिया (गुलिका) प २१३१ ज ७१७८ गुलगुलाइय (गुलगुलायित) ज ७।१३८ गुहा (गुफा) ज १।२४,३।३२ गूढदंत (गूढदन्त ) प १८६ गूढछिराग (गूढशिराक) प ११४८१३६ गण्ह (ग्रह ) गेण्हइ प १११७१ ज २१११३; ३१२६,३६,४७,५६,६४,७२,१३३,१३८, १४५,५।५५ उ ३।५१ गेहंति प ११८१ २८१२२ से २४,३४ से ३६,३६,४०,४२,४५, ६८,६६,७१,३४।६ ज २।११३,५१५५ गेण्हति प १११४७ से ७०,८०,८१,८३,८५ सू २०१२ गेण्हमाण (गह णत) सू २०१२ गेण्हित्ता (गृहीत्वा) ३१२६,३६ उ ३१५१ गेय (गेय) ज ५१५७ गेरुय (गरिक) प ११२०१४ गेविज्ज (वेय) उ ११३८ गविज्जग (वेयक) ज ३१६,३६,२२२ गेविज्जविमाण (ग्रेवेयकविमान) 3 ५।४१ गेवज्ज (ग्रेवेय) प २१४६,६३,३४।१६,१८ ज ३१७७,१०७.१२४,७११७८ गेवेज्जग (वेयक) ११३६,१३७२।४६,६० से ६२,६।६६,९८,१५।८८,६१,६६,१०४,१०८, ११२,११५,११६,१२२,१२५,१२७,१२६, १३६२११५५,६२,७१,९३,३३१२५ गेवेज्जगविमाण (वेयकविमान) पश६०, ३०१२६ गेह (गेह) ज ६६ र ४।२,३ गेहावण (गेहायतन') ज २१२१ गेहावणसंठित (गेहापणसंस्थित) सू ४।२ गो (गो) ज ३११०३ गोकण्ण (गोकर्ण) प ११६४,८६ ज २१३५ गोक्खीर (गोक्षीर) प २०६४ गोखीर (गोक्षीर) १ २।३१ ज ४११२५:५१६२; ७।१७८ गोजलोय (गोजलौका) प१४६ गोड (गोड) प १८६ गोण (गौण) प ११६४,११११६ से २० ज २१३५ गोणस (गोनस) प १७१ गोतम (गौतम) प ३६।१२,८१ च ११४ गोत्त (मोत्र) प ३६३६२ ज ११५,७१२७११, १३२।४,१६७१ च ५।३,१० सू १६५६१४; १०६२ से ११६; १९४२२१३ गोत्तफुसिया (गोत्रस्पर्शिका) प ११४०१५ मोध (गोध) प ११८६ गोधूम (गोधूम) प ११४५।१ गोपुच्छ (गोपुच्छ) ज १:१८,३५,५१:२।१५; ४१४५,११०,२१३, २४२ गोपुर (गोपुर) ज २२० सू ४।२ गोमयकीडग (गोमयकीटक) प ११५१ गोमाणसिया (दे०) ज ४११३० मोमुह (गोमुख) प १८६ गोमेज्जय (गोमेदक) प १५२०१३ गोम्ही (दे०) प ११५० गोय (गोत्र) ५ २२१२८,२३.१,२,५७,२४११५; २६।११:२७१५,३६१५२ ज ३१२२५ उ १११७ , गोयम (गौतम) प ११७४,८४,२११ से ३६,४१ से १.गेहेषु आपतनानि वा उपभोगार्थमागमनानि । Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६६ गोयम ४४,४६,४८ से ६४,३।३८ गे १२०,१२२ में १२४,१७४.१७६ ते १८२,४११ से ५४, ५६ मे ६७.६६ ये ७४.६ ६०,६२ २६९५१ से ७.६ से २०,२३.२४,२७ से ३४.३६,३,४०,४१,४४,४५,६५,८६,५२, ५३,५५.५६,५८,१.६,६२,६३,६१.६८,30, ७१,७३,१४,७७,७८,८२,८३,८५,६६.८८, ८६,६२,९३,९६,६७,१००,१०१,१०३,१०४, १०६,१०७,११०,१११,११४,११५.११८, ११६,१२३ से १३१,१३३ से १४०,१४२ में १४७,१४६,१५०,१५३,१५४,१५६,१५७. १५६,१६२,१६३,१६५.१६६,१६८,१६६, १.१ मे १३४,१७६,१७७.१८०,१८१.१८३, १८४,१८६,१८,१८६,१६०,१६२,१६३, १६६,१६७.१६६,२००,२०२,२०३,२०६, २०७,२१०,२११,२१३,२१४,२१७,२१८, २२०,२२१,२२३,२२४,२२७ से २३४, २३६२३६,२४१,२४५७६५१से ४५, ४७ मे ५५,५७,५८,६० से ६४,६७,६८,७० मे ७२,७४ मे ८५,८७ मे ६१,६३,९४,९६ से १०३,१०५ ११०,११२,११४ से ११६, ११८ से १२१,१२३,७१ से ४,६ से ३०%, ८.१ से ११,६।१ से ४,६ से १६,१६ से २२, २५,२६:१०११ से ५,७ से १३,१५ से २४, २६ से २६,३१ से १३:११।१ से ४४,४६, ७३,७६ ६०:१२११ से 37 १३,१५, १६.२०,२१,२३,२४,२७,३१३३:१३११ मे १६.१ मे ३१:१४.१ से ३.१,७,६११ ने १५,१७,१५२१ । २८,३० से ३३,३६ से ५४, ५७ से ७४,७६ से ८४,८६,६१ से ६८,१००, १०३ से १०६,१०८,१०६,११३ से ११६, १२६,१२६,१३२ से १२५,१४०,१४१,१६.१ से ४,६ गे ८,१० से १३,१५,१७,१६ से २१,१७१ से ६,८ से १७,१६ से २२,२४, २५,२७,२६,३३,३६ से ६१,६३ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८७,६० से ६२,६४,६५,१००, १०२ से १०४,१०६ से ११६,११८ से १३३, १३६ से १४०,१४६ से १५२,१५४ मे १६४, १६६,१६७,१६६ मे १७२,१८।१ मे १६,१२ मे ३३,३६,४१ से ४१,४६ से १०,६२ मे १२७:१६।१ से ३,५,२०११ से ४.६.७६ मे २५,२७ मे ३०.३२ मे ३४,३८ मे ५४,६१ से ६४,२१११ से १५,१६ से २५,२८ मे ३२, ३६ से ३८,४० मे ४२,४८ से ८१,८३ से ६६,९८ से १०१,१०३ से १०५,२२११ से ११,१३,१५,१७,१६,२१ से २३.२६,२७, २६,३०,३२ से ५०,५२,५३,५:०,५६ से ६६, ७८.७६.८२ से ८४,८६,८७,८६ से ६५,९७ मे २६,१०१,२३५१ से ७६ से ११,१३ से ५०,५७ से ६२,६५,६६ से ७६,८१,८३ मे ८६,८६,६०,६५,९८,६६,१०१ मे १०४, १०६,१११ से ११८,१२८,१२६,१३१ से १३५,१३७ से १४०,१५४,१५५,१५३,१६१, १६१,१६४,१६७,१७१,१७३,१७६,१७७, १९१ से १६६,१६८ से २०१,२४.१ से६,८, १० से १५,२५॥१,२,४,५२६११ से ४,६८ मे १०:२७११ से ३,५,६; २८।१,२ से ७,१० से १६,२१ से २४,२६,३१,३३ से ३७,३६ से ४२,४४,४५,४६ से ५३,५६ से ६५,६७ से ७१,७६ से १६,१०२,१०४,१०६ से १२०, १२२,१२३,१२५,१२७ से १२६,१३२:२६।१ से ३.५ से १३,१६ से २१:३०११ से ३,५ मे १३,१५ से २३,२५ मे २८,३१११ से ३,६,३२११ से ४,६,३३३१ से ३,७ १०, १२,१३,१५ से २६,३१ से ३३,३५,३६; ३४.१ से ३,५ से २,११ से १८,२०,२५; ३५.१ से १३,१६ से २०,२२,२३,३६११ से २२,३० से ५१.५३ से ६४,६६,६७,७०,७१, ७४ मे १०,६२,६४ 7 १५ मे ७,१५ से १८,२० से २३,२६,२७,२६,३३ मे ३५,४१, Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयम-घणघणाइय ६७ गोवल्ल (गोवल) ज ७/१३२१३ गोवल्लायण (गोवलायन) सू१०११०६ गोवल्ली (दे०) प १४०१४ गोसीस (गोशीर्ष) प १३०,३१,४१ ज २१६५, ६६,६६,१००,३७,६,१२,८२,८८,१३३, १८४,२११,२२२:५११४ से १६,५५,५८ गोसीसावलि (मोशीर्षावलि) ज ७।१३३११ गोसीसावलिसंठिय (गोशीविलिसंस्थित) सू१०।२७ मोहा (गोधा) १७६ गोहूम (गोधूम) ज २।३७:३।११६ ४५ से ५१;२११ मे ४,७,१४,१५,१७ से २३, २५,४२,४४ से ४८,५०,५२,५६ से ५८, १२२,१२३,१२७,१२८,१३१ से १३७,१३६, १४७,१५०,१५१,१५६,१५७,१५६,१६१, १६४:३११,६८,२०८४४१,२२,३४,४४,४५, ४८,५१,५२,५४ मे १६० से ३२,६४,७६, मे ८२,८४ से ८६,८६,६६ से ६८,१०० से १०० से १०३,१०५ से ११०,११३,११४,१४१,१४३, १५६ से १६७.१६६ से १७८,१८० से १८२, १८४,१८५,१८७,१८८,१६० से १९४,१६६, १६७,१६६,२००,२०२ से २१०,२१२ से २१४,२२५,२२६.२३४,२३६,२३७,२३६, २४१,२४५,२४६,२५१ से २७.१,६२,४,७ से २६१ से ३,३८ में ४८, २ ते ५७,, ५६ से १६८,१११ से १४४,१४७,१४८, १५०,१५४ से १६,१७० से १७८,१८० से १८५,१८७,१६७ से १६६,२०१ से २१३, च १० सू० ११५,१०११०२ उ ११२५,२६,२८, १४०,१४१:२११२.१३,३१८,६,१६ से १८, २६,२७,८५,८६,६३,६५,१२२ से १२५,१५२, १५७,१६३ से १६५,४१६,२५,२६ गोयम (गौतम) ज ७४१३२१२ गोयर (गोचर) ज २११३२ गोर (गौर) पु २४०१८,२१४६ ज १५ गोरक्खर (गौरखर) प १६३ गदर्भ की एक जाति गोलगोलच्छाया (गोलगोलच्छाया) सू ६।५ गोलच्छाया (गोलच्छाया) सू ६४,५ गोलपुंजच्छाया (गोलपुआच्छाया) सू ६३५ गोलवट्टसमुग्गय (मालवृत्तममृद्ग) २०१२०, ७।१८५ गोलवायण (गौलव्यायन) ज ७१३२।४ मू १०।११५ गोलावलिच्छाया (गोलाबलिच्छाया) सू ६५ गोलोम (गोलोमन) ५११४६ गोवग (गोपक) ज ३१३५ घओदय (घतोदक) प ११२३ घंटा (धण्टा) ब ११३७,३।३५,१७८४१३०%; ५।२२ से २६,२८,४८ से ५३७१७८ उ १।१३८,३७,६१ घंटिया (घण्टिका) ज २१६४,७११७८ घंटियाजाल (घण्टिकाजाल) ज ३१२४,३०,१०६; २८ घट्टणया (घनता) प१६१५३ घछ (प्ट) प|३०,३१,४१,४६,५६,६३,६४ ज १८,२३,३१ सू २०१७ घड (घट) ५२।३०,३१,४१ ज ३७,४१२३,३८, ६५,७३,६०,६१ घड (घटय घडति ज ५११६ घडावेता (घटयित्वा) उ ३.५० घड़िया (घटिका) ज ४११२६ घडेत्ता (घटयित्वा) ज ५११६ घण (घन) प १।४८।३८२१३०,३१,४१,४६%) १२।१२,३८; ज ११२४,४५,६५,३१३,२४, ८२,१६७,१८५,१८७,२०६,२१८,२२४; ४।१२५,५।१,५,१६,५७,६२,७१५५,५८, १७८,१८४ सू १८।२३;१६।२३,२६ घणघण (घनघन) ज २१६५ घणघणाइय (घनघनायित) ज० ५१५५७ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६८ घणघणेत-चउक्कय घणघणेत (धनघनायमान) ज ३।३१ घणदंत (घनदन्त) प १८६ घणवाय (धनवात) प १।२६२११० घणवायवलय (घनवातवलय) १ २११० घणसंमद्द (धनसंमर्द } सू १२।२६ घणोदधि (धनोदधि) १ २१२४ घणोदधिवलय (घनोदधिवलय) प २१४ घणोदहि (घनोदधि) प २०१३ घणोदहिवलय (घनोदधिवलय) प २११३ घत (घृत) प १५।५५।१ सू १०।१२० घतवर (घृतवर) सू १६३१ घतोद (घतोद) सू १९१३१ चित्त (ग्रह ) घत्तामोज ३।१०७ घतिहामि उ१४१ धत्तेह ज ३।११४ पत्थ (ग्रस्त) सू २०१२ घय (घृत) ज २०१०६११० उ ३३५१ घयमेह (धृतमेघ) ज २११४३,१४४ घर (गृह) सू२०१७ उ ३.१०० घरग (गृहक) ज १११३ घरधरग (घरघरक) ज ७.१७८ अनुकरणशब्द । घरोइला (गृहकोकिला) प १७६ घाइय (घातित) ज ३३१०८ से १११ उ श२२; १४० घाएउकाम (हन्तुकाम) उ१७२ घाडिय (घाटिक) ज २१२६ घाण (घ्राण) प १५७७,८१,८२, ३६८१ ज ४।१०७ घाणविण्णाणवरण (घ्राणविज्ञानावरण) प २३३१३ घाणावरण (घाणावरण) प २३३१३ घाणिदिय (प्राणेन्द्रिय) प १३।४,१५११,४,८, १३,१६,४२,५८,६४,६९,७०,२८.४५,४६, ७१ उ ३।३३ घाणिदियत्त (घाणेन्द्रियत्व) प ३४१२० घाणिदियपरिणाम (घ्राणेन्द्रियपरिणाम) प १३१४ घाणेदिय (ध्राणेन्द्रिय) प १५॥३४ घायय (घातक) ज २।२८ घुल्ला (दे०) ११:४६ घेत्तूण (गृहीत्वा) ज ३८१ घोडग (घोटक) ५ १६३ घोडय (घोटक) ५ ११११६ से २० घोणा (घोणा) ज ३।१०६ घोर (घोर) ज ११५ घोरगुण (घोरगुण) ज ११५ घोरतवस्सि (घोरतपस्विन्) ज ११५ घोरबंभचेरवासि (घोरब्रह्मर्यवासिन ) ज १२५ घोलंत (घोलत) ज ३१६; २१ घोस (घोष) प० २१४०१६ ज २१६५,३१३५, १८६,२०४ घोस (घोषय) घोसंति ल ३१२१३ घोमेंति ज ५७३ घोसेह ज ३१२१२,५१७२,७३ घोसणा (घोषणा) ज ५१२६,७२,७३ घोसाडइफल (कोशातकीफल) ११७।१३० घोसाडई (कोशातकी) प ११४०१ घोसडय (कोशातक) प ११४८१४८ घोसाडिय (कोशातकी) प १७१३० घोसेत्ता (घोषयित्या) ज ३१२१२ च (च) प ११ ज १७ सू १७ उ १७, ३१७; ४११० चइत्ता (त्यक्त्वा ) प २०१४६ ज २१६४ उ ३३१८, १२५,१५२,४१२६,२८:१३०,४३ चइत्ता (च्यत्वा) ज २८५ चउ (चतुर) प १११३ ज ११८ चं ४।३ सु ११८ उ २।२२ चउक्क (चतुप्क) प २१।१६:२३।२६,२८,६२, १३४,१७८ ज २१६५,३११८५,२१२,२१३: ५१७२,७३,७।१३१२२ उ १११८ चउक्कग (चतुष्क) ज ७१३१२ चउक्कय (चतुष्क) प६८३:२३१२८ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउगुण-चउम्मुह 488 चउगुण (चतुर्गुण) १२१५६ ज ५५१ चउदस (चतुर्दशन) ज ३१२२१ चउग्गुण (चतुर्गुण) प २१४०१५ ज ५५४६,५२।१।। चउदसव्वि (चतुर्दशदिन ) ज २१७८ म १६।२२।२३ चउद्दस (चतुर्दशन्) ज ७१५६ सू बा१ चउजमलपय (चतुर्यमलपद) प १२१३२ चउद्दसपुचि (चतुर्दशपूर्विन्) ज २१७८ चउठाणवडित (चनु.स्थानपतित) प ५।१२,१४, चउद्दसम (चतुर्दश) सू १०७७,१३।८ १६,१८,२४,२८,३४,३५,३७,४१,४५,४६, चउद्दसी (चतुर्दशी) ज ७।१२५ ५०,५४,५६,५६,६३,६६,७१,७४,७८,८६, चउद्दिसि (चतुर्दिश्) ज ४।४,२०,११८,१२६, ५७,८६,६३,६४,६७,१०२,१०४,१०५,१०७, १४४,१४७,१५११२,२१६,२३५,२४६; १११,११२,११६,११६,१३१,१३४,१३६, ५१४०,६१ १३८,१४०,१४३,१४५,१४७,१४८,१५०, चउनाणोवगय (चतुर्ज्ञानोपगत) ज ११५ १५१,१५४,१६६१६७,१६३,१७२,१७५, चउपएसिय (चतुःप्रदेशिक) प ५१५६,१०१६ १७८,१८२,१८४,१८५,१८७,१८८,१६०,१६३, चउपण्ण (चतु पञ्चाशत् ) ज २१७७ १६७,२००,२०३,२००,२११,२१४,२१८, चउपण्णग (चतु.पञ्चाशत्क) सू १३।१७ २२१,२२४,२२८,२३०,२३२,२३४,२३७, चउपुरिसपविभक्तगति (चतुःपुरुषप्रविभक्तगति) चउप्पएसिय (चःतुप्रदेशिक) ५११६० चउठाणवडिय (चतुःस्थानपतित) प ५७,२५, चउप्पगार (चतुःप्रकार) प ११॥३०॥२ चउप्पण्ण (चतुःपञ्चाशत् ) ज ४१२३४ चउणउत (चतुर्नवति) सु १६।१४,१५१ चउप्पदेस (चतुःप्रदेशिक) प १०११४।२ चउणउति (चतुर्नवति) सू ४।४ चउप्पय (चतुष्पद) प ११६१,६२,६६,४।१२२ से चउणउय (चतुर्नवति) ज ४।२४१ १३०,६।७१,७७;२११११ से १३,३५,४४, चउणवइ (चतुर्नवति) ज ४१८६ ५३,६० ज २११३१७१२३ से १२५ चउतीस (चतुत्रिशत् ) सु ११२० चउम्पाइया (चतुष्पादिका) प १७६ चउत्तीस (चतुत्रिंशत् ) सू ११२२ चउभाग (चतुर्भाग) ज ७१६० से १६५ सू चउत्य (चतुर्थ) प ३।२०,१८३,६१८०1१; १११६:१०११४२,१४७,१२।३०,१८१२७ से १०११४।४,५,६,११।३,४२,८८,१५।१४३; १७.१४८,३३॥१६,३६०८५,८७ ज ४।१८०, चउभंग (चतुर्भङ) प १६।१०:२६.६,६ २०२; ११०६,१५६,१६३ सू १०७०,७४, चउभंगि (चतुर्भङ्गिन्) प १०१६ ७७,१२७ ; ११५५,६,१२१५,१७,२७,१३१८, चउभाग (चतुर्भाग) प ४.१७७,१७६,१८०,१८२, १६ उ १०,१२,३११४,५४,७१,८३,८८, १८३,१८५,१८६,१८८,१८६,१६१,१६२, १५३,१५.४१६१,४।१,३,२४:५६१,२८,३६,४३ १६४,१६५,१६७१६८,२००,२०१,२०३ चउत्थभत्त (चतुर्थ भक्त) १२८।२५ ज २।५६,१५६ ७१८७,१८८ सू१।१६,२११,६१३; चउत्था (चतुर्थी) सू १२०२२ १०1४७,१२।३०।१३।४।१५।१७ से १६,२४। चउत्थाहिय (चतुर्थाहिक) ज २१४३ चउत्थी (चतुर्थी) १२५ ३ ११२६,२७. चउम्मुह (चतुर्मुख) ज ३११८५,२१२,२१३; १४०,१४१ ५।७२.७३ ३ १९८ २५ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०० चउरंगुल-चंद चउरंगुल (चतुरङ्गुल) सू १०६३१६१२२ चउरंगुलकण्णाक (चतुरङ्गुलकर्णक) ज ३।१०६ चउरंगुलजण्णुक (चतुरङ्गुलजानुक) ज ३।१०६ चउरंगुलमूसियखुर (चतुरमुलोच्छितषुर) ज३।१०६ चउरंस (चतुरस्र) प १४ से ६२०२० से २७, ३१ से ३५,४१,१०।१५,२६,२११६२ ज ११३१२।१५:३१६५,१५६,४।११४ चउरासीई (चतुरशीति) ६ २१४६ ज २१४ चउरासीति (चतुरशीति) प २१२० ज २१७३ चरिदिय (चतुरिन्द्रिय) प १३१४,५१,२।१८) ३।६,४० से ४२,४७,४६,१५० से १५२, १८३,४११०१ से १०३,५१३,८१,६।२०,६५, ७१,८३,१००,१०२,१०४,११५, ६१४,१६, २२११।४५१२१३,३०,१३।१७:१५।३४,७५, ८२,८६,१३७:१६१६,१३,१७४२२,४०,६२, ८८,६६,१०३,१८१५,२३,२०१८,१६,२३, २५,२८,३३,४७,२११६,२८,४२,७६,८०,८६; २२।३१,७३,२३३८८,१५१,१६४,२८।४३, ४६,१०१,१२५,१३६,२६।१४,२१:३०।१२, १३,२२,२३,३११३,३२१२,३४,३,७,३५।१३, २०३६।६,३६ चरिदियत्त (चतुरिन्द्रियत्व) प १५/६७,१४२ चउरेंदिय (चतुरिन्द्रिय) प६८६;१६१३ चउवत्तर (चतुःसप्तति) ज ४१५५ चउवीस (चतुर्विशति) प६।११ ज २६ सू ४१७ चउवीसतिम (चतुविशतितम) सू १२११७ चउवीसय (चतुर्विशति) सू १।१६ चउब्विह (चतुर्विध) प ११४,५२,६२,६८,७७, १०११३,१३०,५२१२५१३१३,५,१४१७,६; १५१६६,७५:१६६,२६,३१,५३,१७११३; २०१६२,२११७७,२३।१८,२८,३७,३६,५४; २५२४,५,२६१३,१२:३०१६,३५१४ ज २२५३, ६६,१६२,३।१६७१०,२११:४।६६,२५४, २५५:५१५७ चउन्वीस (चतुविशति) प ६।१० सू२११ चउव्वीस (चतुविशतितम) प १०।१४।३ चउसट्ठि (चतुःषप्टि) प २।३२ ज २०५२ चउसमइय (चतु:सामयिक) १३६१६७,६८ चउहा (चतुर्धा) प १६.१ चंकमिय (चंक्रम्य) ज ७१७८ चंगेरी (चंगेरी) ज ३।११:५७,५५ चंचल (चञ्चल) प २१४१,५० ज ३।१०६,१७८, ५।१८,७१७८ चंचलायमाण (चंचलायमान) ज ३१२४१३,३७१, ४५११,१३१३३ चंचुच्चिय (दे०) ज ३।१७८६७।१७८ कुटिलगमन चंचुमलइय (दे०) ज ५।२१ चंड (चण्ड) २६०,१३१ चंडिक्किय (दे०) अत्यधिक कुपित ज ३।२६,३६, ४७,१०७,१०६,१३३ उ १।२२,१४० चंडी (चण्डा) ५११४८।४ चंद (चन्द्र) प ११३३;२१२० से २७,४८,१५१३, ४,२१,५५।३,१७४१२८,२११२३,८० ११२४२।१५,६८,१३१,३।३,२४।४,३२१, ३५,३७४२,४२,४५।२,७६,८५,६५,१३१।४, १५६,१८५,२०६; ४।१४२,२११:७१,७२, ७५,७८ से ८२,८४,६८,१०५.१११, ११२।२,१२६,१२७११,१२६,१३४११,४, १६७।१,१७०,१७७।१,१७८।१,१८०,१८१, १८३ से १८५,२०७,२१२,२६२ सू १०।२, ५,७५,१२२,१२७ से १२६२,१३२,१३३, १३६,१३८ से १४२,१४८,१४६,१५२ से १६५,१७०,१७२,१७३;११११ से ६:१२।३, १५,१७११,१६ से २८,३०,१३३१,३ से १७; १४।३,७,१५॥१,२,५,६,८ से १०,१४,१७ से २०,२६,२६,३२,३५,१८।१४,१८,१६,२१ मे २४,३७, १६१११,५।२,८,११६२,१५।२, १६,२१।३,६,१६।२२।४,७,१०,१५ से २५, २७,२८,३०,१६३३१,३५,३८, २०१२,३,४,६ उ ११६३;३।२।१,३।६.१४ से १८,२१,२५ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदचार चक्कट्ट चंदचार (चंद्रचार) सू १०।१२१,१२२ चंदण ( चन्दन ) प १ २०२४; ११३६१३, ११४६; २१३०,३१,४१ ज २७०,६५,६६,६६,१००: ३१६,१२,८२,८८, १३३,२०६, २११,२२१, २२२:५३१४ से १६,५५,५६,५८ चंदणकयचच्चाय (चन्दनकृत चर्चा ) ज ३।२०६ चंदणys ( चन्दनपुट) ज ४।१०७ चंदा ( चन्दना) उ ३।१७१ चंदद्दह ( चन्द्रद्रह ) ज ४।१४२।३,२६२ चंदवण्णत्ति ( चन्द्रप्रज्ञप्ति) ज ७।१०२ चंदव्य ( चन्द्रपर्वत) ज ४२२२ चंदप्पभ ( चन्द्रप्रभ ) प ११२० ४ ज २ १३; ३१२,८८५५८ चंदप्पा (चंद्रप्रभा ) प १७।१३४ ज ७।१८३ सू १८/२१:२०६ चंदमंडल ( चन्द्रमण्डल) ज ३१५, ११७,१५६, १७८७६१ से ७३,७६,७८, ६७,१७७ सू १०१७६,७७ चंदमग्ग (चन्द्रमार्ग) चं ५१२ सू १।६।२; १०/७५ चंदमस (चन्द्रमम्) चं २१४ ; सू १।६।४; १३।१,१७ चंदमा (चन्द्र) ११६; १३।१,१७ चंदमात ( चन्द्रमास ) सू १२।१० से १२ चंदलेस्सा (चन्द्रा ) सू १६/१,२ चंदवडिस (चन्द्रावतंसक ) सू १८१२२,२३ उ ३६, १४ चंदविमाण ( चन्द्रविमान ) प ४ १७७ से १८२; ६१८५ ज ७११७३,१७४, १७६ से १७८१८८ सू १८१,८,९,१४,२७,२८ चंदसंवच्छर (चन्द्र पंवत्सर) ज ७ १०६, १०७ सू १०।१२७११।२ से ६,१२।१,३,१० से १३ चंदा (चन्द्राभ) ज २१५.६,६२ चंद्रायण ( चन्द्रायण) सू १३।१०,१३ ६०१ चंदिम ( चन्द्रमम् ) प २०४८ से ५१,६३ ज ७१५.५, ५८,१६८, १८०, १८१,१६७ सू ३१; ६ १ ; १५ ११७११ ; १८१२,३,१८,१६,३७; १६ १, २६, २०११,७ उ २११२६५१४१ चंदमसूरियसंठिति ( चन्द्रमर सूर्यमस्थिति ) सु४१,२ चंदिमा (चन्द्रिका) ज ७।१०२ चंदोतारायण (चन्द्रावताराचन) उ ३।१५७ चंप (चम्पक) प १७ २७ चंपकवण (चम्पकवन ) ज ४।११६ चंपग (चम्पक) ज २११०३।१२,८८१२३, ६१ चंपगजाति (चम्पकजाति) प ११३८ । ३ चंपकवडेय (चम्पकावतंसक) २३५०, ५२ चंपछल्ली (चम्पक छल्ली ) प १७ १२७ चंपभेद (चम्पकभेद ) प १७।१२७ चंपकुसुम (चम्पक कुसुम ) प १७ १२७ चंपलता (चम्पकलता ) प १।३६।१ चंपा (चम्पा ) प १९३१; १७ १२७ उ ११६,१०, १२,१६,६३,९५, ६७, ६८, १०५, १०६, ११०, ११६,१२२, १२५,१४४,१४५ २०४, ५, १६, १७ चंपापुर (चम्पकपुट) ज ४१ : ०७ चक्क ( चक्र ) ज २११५,३३,३५,६५,१५६, १६७ ११,१२ सू ३२ चक्रुद्धचक्कवालसंठित ( चक्रार्धचक्रवालसंस्थित ) सू १/२५,४२ चक्कपुरा ( चक्रपुरा ) ज ४१२१२,२१२१४ चक्करयण ( चक्ररत्न) ज ३१४ से ६, ६, १२, १४, १५,१८,२२,३०,३१,३६,४३,४४,५१,५२, ६०,६१,६८,६६,६३,६६,१०६,१३०,१३१, १३६,१३७, १४०,१४१, १४६, १५०, १६३, १७२,१७३,१७५,१७८, १८०,२२० चक्करयणत्त (चक्ररत्नत्व) प २०१६० चक्कट्टि (चक्रवर्तिन् ) प ११७४,६१,६३२६ ज २१८,६३,१२५; १५३, ३१२,३,२६,३६, Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ ४७,५६,७१, ६५, ११५, ११६,१२४,१३३, _१३५१,१३६,१३८, १४५,१५६, १६७१५, १४; ४१६४,१६२,२७७, ५।२१,५८,७११६६,२०० hai ( चत्वि ) प २०१५०,५२ चक्कविंस (चक्रातिवंश) ज २ १२४, १५२ चक्कट्टिविजय (चतिविजय ) ज ४११६६, २६२;५।१,५५,६११४,१६ काग (चक्रवाक) उ५।५ arrata (चक्रवात) ज २।१२ चक्कवाल (चक्रवाल) न १२६५,४१२३४, २४०, २४१ सू १६/४,७,१४, १८, ३०, ३४, ३७ उ ३।१२,१४१,४/१२,१३ चक्काग (चक्रवाक ) प ११४८३८१७६ चक्कि ( चक्रिन् ) प ११९३१६,२०२१।१ चक्किय ( चक्रिक ) ज २६४ चक्किया ( शक्नुयात्) ज ३११८५ aftaar (चक्षुरिन्द्र ) प १५ १,३,८,१३,१६, ३४,४१,५८,६४,७०,२८१४६,७१७ ३/३३ चखिदियस (चक्षुरिन्द्रियत्व ) १३४।२० परिणाम (चक्षुरिन्द्रियपरिणाम ) प १३४ चक्खु ( चक्षुप ) ज ५१५, ४६ चक्खुदंसण (चक्षुर्दर्शन) प ५१५,७,२१,४५,८१, ६३,६७,२६१३,७, १४, १७, १९, २१,३०१३,७, १३ चक्बुदंसणावरण (चक्षुर्दर्शनावरण) प २३१४ चक्खुदंसणावर णिज्ज (चक्षुदर्शनावरणीय) प २३३२८ चक्खुदंसण ( चक्षुर्द शिन् ) प ३११०४ खुद (चक्षुर्द) ज ५३२१ चक्खु फास (चक्षुःस्पर्श ) ज ७२० से २५,७६, ८१ चक्खुफास ( चक्षुः स्पर्श) सू २०३ चक्खू भूय ( चक्षुर्भूत) उ३।११ चक्खुन ( चक्षुष्मत् ) ज २२५६,६१ चल्लोयणलेल (चक्षुर्लोकनलेश ) ज ४।२७; ५२८ चक्कवट्टत्त-चर चक्बुहर (चक्षुर्हर ) ज ३१२११५१५८ चच्ays ( चर्चपुट) ज ३३१०६ चच्चय ( पक) ज ३३८८ चच्चर ( चत्वर) ज २२६५ ३११८५,२१२,२१३; ५१७२,७३३ १६८ चच्चा (दे०) ज ५।५६ चच्चिय ( चर्चित ) ज ३१२११ चडकर (दे०) ज २२६५ चडगर (दे० ) ज ३१७,२१,२२,३६,७८, १७७ चण ( चणक) ज ३।११६ चत्ताल ( चत्वारिंशत् ) ज ४।५५ सू १।२१ चत्तालीस ( चलारिंशत् ) प २३३६ ज ५।४६ सू १०११५७ चमर ( चमर ) प ११६४६ २१३१,३२,४०१६ ज ११३७, २१३५, १०१,११३,११६,३११८५, २०६४।२७ : ५।२८, ५० चमरवंचा (चमरचञ्चा) ज ४।१६५,२१० : ५१५० चमरोगंड ( चमरगण्ड ) ज ३।१७८ चम्म ( चर्मन् ) ज ५।३२ चम्पक्खि (चर्मपक्षिन् ) प ११७७,७८ चम्मरयण (चर्मल) ज ३७ से ८१,११६, ११७, १२१,१५१,१७८, २२० चम्मरयणत ( चर्मरत्नत्व ) प २०१६० चम्मेट्ठग (चर्मेण्टक) ज ५१५ चय (चय, व्यव ) प २०१४६ ३ ३१८, १२५, १५२; ४/२६,२८; ५/३०,४३ चय ( स ) नए प २२६४।१७ चय (च्यव्) चयंति प ६।१११,९२६ १७६६ सू १७९ चयति स १६२४ चयंत ( त्यजत् ) प २।६४।५ चयण ( च्यवन ) प ६४६,५६,६६, १७/६१,१०५ चं २५ सू १६।५; १७११ चयोवचय (चयोपचय ) सू १।१४ चर (चर्) चरइ ज ७ १०,१३,१६,१६ से ३०, २४,६६,७२,७५,७६ से ८२,६४,६५,६६,६८ से १००,१७१,१७३, १७५ स् १।११ चरति Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर-वामरत्व १७५२४८ ३९५ १२५७११ चं ३१ सू १७११:१९ १,१११२,१५४२,२११३.६ चरति १३, १६।२२४२१७ परिति सू ११० चरि ज ३९५७१ चरिस्सति ज ३१६५७१ १६१ १६१ वरेति सू १६१११ चर (घर) ज ७।१२४, १२५ चरण (चरक) प २०१६१ ज ३०१०१ चरण (चरण) ज ३२२.१२० चरम ( चरम ) सू ७११:१० १५६ २०१३ चरमाण (चरत्) ११२, १७:३४२९,९९,१३२, १४६, १५२, ४।११:५।३६ चरित (चरित्र) १०१०१।१० ज २०७१ चरितधम्म ( चरित्रधर्म ) प ११०१।१२ चरितपरिणाम ( चरित्रपरिणाम ) प १३२,१२, १४,१८,१९ चरितमोहणिज्ज (चरित्रमोहनीय ) प २३१३२,३४ बरिताचरिति (चरित्राचरिजिन् ) प १३१४,१८, १६ चरितारिय (चरित्रार्थ ) प १२, १११ से १२६ चरिति (चरित्र) प १३।१४,१८,१६ चरिम (चरम ) प १११०४,१०३,१०६, १०७,१०६, ११०,११३,११४,११६,१११,१२०,१२२,१२३ २०६४।५ ३।१।२२।१२२१०१२ से १३, २१ से २४,२६ से २६, ३१ से ५३; १५:४३:१८१११२,१६११२६६२३।१९३ ३६।७९ ज ४११४३, ७ । १५६ से १६७ सू ५११ ; १०१६२ से ७४, १३०, १४२, १४३, १४७ से १५१,१५६,१६१: ११:५६:१२।२४ से २८, ३०.१३/१४ ५४३ चरिमंत (चरमान्त ) प २२६४,१०१२ से ५,२१, २६, २७ से २६, १६।३४; २१।२०३३।१६, १७ ज ४ ११०, १४१, २०६,२००,२५२ चरिमभव (चरमभव ) प २२६४|४ चरु (च) ३०५१,६४ चल (बल) ज ३।१७८ ७१७८ चल (चल) चल ज २२१२:२०५५,६४,७२, १४४५ | २० चलति ज ३।२,१११, ११२;५।२,७ चलंत ( चलत् ) ज ३।३१,७११७८ चलचल (चपल ) प २०४१ चलण (चरण) ज २२१४, १५:३।३४,१०९७८१७८ चलनीबहुल (चलनी' बहुल) ज २१३२ चलिय ( चलित) ज २१८६, ६०, ६३ : ३१५६,११३, १४५५३,२१,२८ चवल (चपल ) ज २२६०,३१६,२६,३५,३६,४७, ५६,६४,७२,१०८, ११३, १३८, १४५, १७८; ५१५,२१,२६,४४,४७,६७३७११७८ ६०३ चलायंत (चपलायमान) ज २९१५ चविया ( चव्य ) प १७ १३१ चाउरघंट (चतुर्घण्ट ) ज ३।२१,२२, ३४ से ३६ उ ५३८ चाट (तुष्ट) १।११० चाउरंगिणी (चतुरङ्गिणी) ज ३१५,२१,३१,३४, ७८,६१,१७३, १७५,१६६ उ १११२३ १२७, १२८,५३१८ चाउरंत (चतुरन्त ) ज २१८३२,२६,३६,४७, ५६, ११५,१२४, १२३, १३८१४५५१२१,५० बाउस्सालय (चतुःशालक) ज ५|१३ चाउस्सालय (चतुःशालक ) ज ५३१३,१४ चाटुकार (चाटुकारक) ज ३०७८ चामर ( चामर ) प ११।२५ ज २२१५; ३६, १८, २४,३१,३५,६३,१०६,१७८, १८०,२२२: ४।२६,३०५।११, ४३,४६, ५५,५७,६०,६६, ७१७८ चामरगाह (चामरग्राह) ज ३२१७८ चामरच्छाय (चामरच्छायन) ज ७११३२/३ चामरच्छायण (नामरच्छावन ) सू १०।११३ चामरहत्यगय (हस्तगतचामर) ज ३।११ १ चलनप्रमाण कर्वमः चलनीत्युच्यते Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०४ चामीकर-चित्त चामीकर (चामीकर) ज ३११ चार (चार) प २१४८,१६:५५ ज ७११,१०,१३, १६, १६ से ३१, ३५, ६६,७२,७५,७८ से ८२,८४,६५,६६,९८ से १००,१७१,१७३ से १७५ सू श६,११,१४,१६,१७,१६ से २४, २७:२२२,३,३१२:४।४,७,६६।१६।२ १०।१२१,१२२,१३।५ से १०,१२,१३,१७; १५१२ से ४,१८१,५,७,१६.१,५,८,११,१५, १६,२१,१६३२२१२,१३,२२,१६।२३ चारगसाला (चारकशाला) उ १८८,६१ चारद्विइय (चारस्थितिक) ज ७५५,५८ चारद्वितिय (चारस्थितिक) सू १९३२३,२६ चारण (चारण) प १९१ चारि (चारिन् ) प २०४८ चारिय (चारिक) प १७६३१ चारियत्व (चारयितव्य) प १७:३१,६७ चार (चारु) प २।४१,५० ज २११४,१५,३११०६, ११६,१३८,५१८ चारुभासि (चारुभासिन् ) ज ३७७,१०६ चारेयव्व (चारयितव्य) प २१।१०२; २२१७० चारोवग (चारोपण) सू १६॥२२२२१ चारोववष्णग (चारोपपन्नक) ज ७१५५,५८ सू १६१२३,३६ चाव (चाप) ज २।१५,३।३१,१७८ चावग्गाह (चापग्राह) ज ३।१७८ चाववंस (दे०) प ११४१२२ चास (चाष) प ११७६१७४१२४ चासपिच्छ (चाषपिच्छ) प १७।१२४ चि (चि) चिज्जति १२११९५,९६ चिउर (चिकुर) प १७११२७ चिउरराग (चिकुरराग) प १७१२७ चिचाराम (चिञ्चाराम) उ ३।४८,५५ चित (चित्) चितेमि प ११११ चितय (चिन्तक) उ ११३१ चिता (चिन्ता) ज ३१०५ उ २।११ चितिय (चिन्तित) ज ३१२६,३६,४७,५६,८७, १२२,१३३,१४५,१८८,५१२२ उ १११५,५१, ५४,६५,७६,७६,६६,१०५:३३२६,४८,५०, ५५,९८,१०६,११८,१३१,५१३६,३७ चितेमाण (चिन्तयत्) ज ३११८८ चिध (चिह्न) प २१३०,३१,४१,४८,४६ ज' ३३२४,३१,७७,१०७ से १११,११७,१२४, १७८ उ १।१२,१४० चिक्खिल्ल (दे०) प १२० से २७ चिट्ठ (स्था) चिट्टइ उ १।४७ चिट्ठई ज ११६, ४०,४७,३१५४,६३,७२,१३७,१४३,१६७, २२२,४११४०,१६८,२३४,२४०,२४१,५१६७, ६८ चिट्ठति प० २१६४;२।६४१२०१५।४३, ४५,२८.१०५:३४।१६,२२ से २४,३६,७६, ८१,६३,६४।१ ज १११३,३०,२१७ से ६,१३, ६० से ६२, ३।१११,११३;४१२,१२६,१३७; ५१५,७ से १२,३८,५७,६०,६७७।१८५,२१३ सू १८१२३ उ ३.४६ चिट्ठति प १५२५१,५२ सू १६२ चिट्ठह ।।११३ चिट्ठामि उ १.११७ चिट्ठाहि उ १।११५ चिट्ठज्ज प ३६१६१ चिठ्ठित (स्थित) सु २०१७ चिठ्ठिय (चेष्टित) ज २।१५, ३११३८ चिडग (चटक) प १७९ चिणण (चयन) प २१११११ *चिण (चि) चिण १४॥१८१ चिति प१४५१२ पिणियु, १४१११ चिणिस्संति प १४।१३ चिण्ण (चीर्ण) चं ३।१ सू १७,१८,१६,१३३१२, १४ से १७ उ ३३४८,५.०,५५ चित्त (चित्त) २८१ ज ६५,६,८,१५,१६,३१,५२, ५३,६१,६२,६६.७०,७७,८४,६१,१००,१०६, ११४,१३७,१४१,१४२,१५०,१६५,१७३, १८१,१६६,२०८,२१३,५१५,१५.१८,२१, २६,२७,२६,४१,५५,५७,७० उ ११२१,३१, Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्त-चुलसीइ ४२,१०८, ३११३६,५१२० चिलाइ (किराती) ज ३१११११ चित्त (चित्र) प १२१२३२१३०,३१,४१,४८,५० चिलाइया (किरातिका) ज ३१८७ ज ३१२४१३,३७१,४५३१,७६,११६,१२४, चिलाय (किरात) ज ३११०३ से १०५,१०७, १३१॥३,१४५,१७८,७११७८ ११५,१२५ से १२७ चित्त (चैत्र) सू १०.१२४ चिलायविसयवासि (किरातविषयवासिन) चित्तंतरलेस (चित्रान्तरलेश्य) ज ७/५८ सू १६२६ प१८६ चित्तंतरलेस्साग (चित्रान्तरलेश्याक) चिल्लम (दे०) प २१४१ सू १६२२३० चिल्लल (दे०) प १३८६; २।४,१३,१६ से १९,२८ चित्तकणगा (चित्रकनका) ज ५३१२ चिल्ललग (दे०) प ११॥२२ चित्तकूड (चित्रकूट) ज ४११६६,१६६,१७२,१७३, चिल्ललय (दे०) प ११।२१,२४ १७६,१७८ से १८१,१८५,१६१,१६७,२००, चिल्ललिया (दे०) प १११२३ २०६,२०७,६६१० चिल्लाय (किरात) प १८६ चित्तग (चित्रक) प ११६६ चिल्लियतल (दे०) सू २०७ देदीप्यमान तल चित्तगुत्ता (चित्रगुप्ता) ज ५।६।१ चीण (चीन) १८६ चित्तपक्ख (चित्रपक्ष) प ११५१ चीणपिठरासि (चीनषिष्ट राशि) ५१७११२६ चित्तगहुल (चित्रकबहुल) ज २।६४ चीवरघारि (चीवरधारिन् ) ज श६६ चित्तय (चित्रक) प ११।२१ चुचुण (चुञ्चुण) प १।६४।१ चित्तलंगमंग (चित्रलाङ्गाङ्ग) ज २११३३ चुचुय (चुञ्चुक) प ८६ चित्तलग (चित्रलक) प ११६६ ज २११३६ चुच्चु (दे०) प १३७।२ चित्तलि (चित्रल,चित्रलिन् ) प १७१ चुण्ण (चूर्ण) प ११४८।३८ ज २१६५, ३।११,१२, चित्तविचितकूड (चित्रविचित्रकूट) ज ४१६४ ८८ सू २०१७ चित्ता (चित्रा) ज ५१२,७४१२८,१२६,१३६, चुण्णग (चूर्णक) उ ३।११४ १४०,१४६,१६४,१६५ सू१०१२ से ६,१६, चुण्णवास (चूर्णवास) ज ५१५७ २३,४७,६२,७१,७२,७५,८३,११२,१२०, चुण्णविहि (चूर्गविधि) ज ५१५७ १३१ से १३३,१५४,१२१३० चुण्णिया (चूणिका) प १११७६ ज ७।२१,२५,६५, चित्तामूलय (चित्तामूलक) प १७६१३१ ६८,६६,७१,७२,७४ सू २।३,१०११५२ से चितार (चित्रकार) प १९९७ १६०,१६२,१६३,१११२ से ६,१२१७,८,१६ चित्तिया (चित्रिका) प १११२३ से २८ चिय (चित) प २३।१३ से २३ ज ३१२१७ चष्णियाभाग (चणिकाभाग) ज ७.२१,६६,७४,७५ चिय (एक) सू १०।१३६ चणियाभाय (चूर्णिकाभाग) ज ७२५,६५,६८, चियगा (चितका) ज २।९५,९६,१०३,१०४,११४ ७१,७२,७५,७७,७८ चियत्तदेह (क्तदेह) ज २१६७ चुणियाभेद (चूपिकाभेद) प १११७६,७६ चिर (चिरम् ) ज ३।१२६६१,२ चण्णियामेय (चूणिकाभेद) प १११७३,७६ चिरंजीव (चिरंजीव) ज ३।१२६ चुय (च्युत) ज २१८५७१५६,५६ चिराईय (चिरातीत) चं ७ उ ५७ चुलसीइ (चतुरशीति) १२१३४ ज २०७४ च ४।२ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुलसीति-चोरग चुलसीति (चतुरशीति) प २१४०११ सू २।३ चेडरूव (चेटरूप) उ ३.११४ चुलसीय (चतुरशीति) सू १११२ चेडिया (चेटिका) उ ३।१४१ चुल्लमाउया (क्षुल्लमातृका) उ १।१२,४३,४४, चेडी (चेटी) ११५४,५५,७६,८०,४।१२,१३ १४५,२१५,१७ चेतियखंभ (चैत्यस्तम्भ) सू१८३ चुल्लाहमवंत (क्षुल्ल हिमवत् ) प १६।३० ज १।४८; चेत्त (चैत्र) ज १०४ उ ३।४० ४।४८ चेत्ती (चैत्री) ज ७।१३७,१४०,१४६,१५५ चुल्लहिमवंतकूड (चुल्लहिमवत्कूट) ज ४१४४,४५, सू १०७,१६,२३,३६ ४८,५१,५२,७६,६६,२२६ चेदि (चेदि) प ११६३४ चुल्लहिमवंतगिरिकुमार (क्षुल्लहिमवगिरिकुमार) चेय (त्यज्) चेएइ उ० ४.२१ चेएसि उ ४१२२ ज ३११३१ से १३४,१३६,४१५२ चेलपेला (चे लपेटा) उ ३३१२८ चूचुय (चुचु ( ज २०१५ चेल्लणा (चेलना) उ ११०,३२ से ४१,४३,४४, चूडामणि (चूडामणि) प २।३० ३१ ज ३१३६, ४६,४८ से ५५,५७,५८,७० से ७४,८८,६५, १०६,११०,११३,११४ चूतलता (चूतलता) प ११३६११ वेव (चैव प१:१७ चूयमंजरी (चूतमञ्जरी) ज ३११२,८८,५१५८ चोइयमइ (चोदितमति) ज ३११३८ चूयवण (चूतवन) ज ४११६ चोक्ख (चोक्ष) ज ३८२,१०६ उ ३।५१,५६ चूयवडेंसय (चूतावतंसक) प २६५०,५२ चोताल (चत्वारिंशत् ) सू १२११२,१६११५१२ चूलासोइ (चतुरशीति) सू १८।२ चोत्तालीस (चत्वारिंशत् ) सू १०।१३६ चूलियंग (चूलिकाङ्ग) ज १४ चोत्तीस (चतु:त्रिशत् ) प २३६ ज ४।११० चुलिय (चलिक) ज २१४,४।२४२ सू ११२२ चेइय (चैत्य) ज ११३;२३१,६७,७१२२४ चं ७,६ चोइस (चतुर्दशन ) प २२६; ज ११४८ सू ११२,४,१८।२३ उ ११,२,६,१७,१६, सू३।११०१६३ १४४,२१४,१६,३१४,६,२१,२४,२६,४६,८६, चोहसपुब्धि (चतुर्दशपूविन्) ज ११५ ६५,१५५,१५७,१६८,१७१४।४,६,१३,१८, चोदाय (चतुर्दश) ज २।८८ २८,५१३६ चोहसरयणीसर (चतुर्दशरत्नेश्वर) ज ३११२६।३ चेइमखंभ (चैत्यस्तम्भ) ज २११२०४।१३३; चोट्सविह (चतुर्दशविध) प २३।१६,२० ७१८५ चोप्पाल (दे०) ज ४,१३७ आयुधशाला चेइयथूभ (चैत्य स्तुप) जरा११४,११५ चोप्पालग (दे०) ज २१२० वरण्डा चेइयरुक्ख (चैत्य रूक्ष,चैत्यवृक्ष) ज ४११२६,१२७ चोय (दे०) ज ३.१११३ चेट्ठा (चेष्टा) ज २११३३ चोयपुड ('चोय'पुट) ज ४११०७ चेड (चेट) ज ३।६,७७,२२२ चोयाल (चतुश्चत्वारिंशत् ) प २१४०।३ ज ७७६ चेडग (चेटक) उ ११२२,१०७,१११,११५,११६, सू ११८ ११६,१२८,१३७,१४० चोयालीस (चतुश्चत्वारिंशत् ) प २।३५ ज ७८ वेडय (चेटक) उ १२२,२५,२६,१०५ से १०७, चोयासव (चोयासव) प १७।१३४ १०६,११०,११३,११४,११६ से ११६,१२७, चोर (चोर) प १७१३२ उ ३।१२८ १२६ से १३४,१४० चोरग (चोरक) प ११४४१३ असबरक, एक बढ़िया Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोवट्ठि-छप्पण्ण घास जो रेशम रंगने के काम आता है। चोर्वा (चतुष्यष्टि) १२३१ चोत्तर (चतुरसप्तति) ज ७० चोवीस ( चतुर्विंशति) ज ७।१०६ चोसट्ठि (चतुष्षष्टि) २०६४ छ छ ( षष् ) प ११६४।१ ज १।१८ चं ३२३ सू १/७ उ ५।२५ छमत्थ ( छद्यमस्थ ) प १।१०१ ४,१११०४ से १०७, ११७ से १२०, १२१३११८३: १५४४४,४५ १८६४,६५,६७,९८६३६८०,८१ उमरथपरिया (छद्मस्थय ज २६६ छक्क ( षट्क) ज ७।१३१।१ छवखुत्तो ( षट्कृत्वस् ) सू १२११० छगल (छगल ) प २०४६ छज्ज (राजु) छज्जद्द व ३२१२४१४, २७२, ४५२, १३१।४ छठ ( पष्ठ ) प ३११८, १८३ ६८०२; १०।१४|४ से ६:१२।३२; १७१६५३३१६३६८५,८७ २६५८५७१७.११७११०१७७ १३८ ३ २१०, २२:३१४,५०,५५,८३,१५० १६१, १६७,१७० ४ १२४ ५ २८, ३९, ४३ छठमण (पक्षपण) उ ३१५० से ५४ इभक्त (पष्टभक्त) प २८६४७ ज २१५२.१६१ छाडि (पधानपतित ) प ५१५.७, १०, १२ १४,१६,१८,२०,२४,२५,२८,३०,३२,३४, ३७,३८,४१,४२,४५,४६, ४१, ४३,४६,४९, ६०,६२,६४,६८,७१,७४,७१,७८,७६,८२, ८४,०६,८१,१०,१३, १४, १७, १०१, १०२, १०४, १०५१०७,१०,१११, ११२.११६,१२६, १३१,१३४,१३६,१३८, १४०, १४३, १४५, १४७, १५०,१५१,१५४,१६२.१६६,१६९.१७२, १७४.१०७,१८१,१०४, १८७, ११०,१९१. ११३,१४,१६७, १६८, २००, २०१.२०३,२०४, २०७,२०८,२११, २१२,२१४,२१५,२१८, २१६,२२१,२२२, २२४, २२५, २२८,२३०, २३२,२३४,२३७,२३६,२४२ से २४४ उट्ठाणचडिय (पदस्थानपतित ) प २५ ७ ११५. ११६,१६६ छट्ठी ( पष्ठी ) प २२७/२ ज ७।१२५ छण्ण ( छन्न) ज ३।३ छण्णउइ ( षण्णवति) प २४०११; १२ ३२ ज २६; ३११७८ छण्णउत ( पण्णवति) सू १९१२१ छण्णउति ( पष्णवति) सू २१३ छष्णउप (पण्णवति) toy १६।११।३:२११७ (छ) प २०४८, ६४११०२५ ज २०१५, २० ३१३,६,१८,३१,३५,७७, ७८, ६३, १७८, १८०, २२२,५०४३,५५,५७१२।२६ उ १०१६ ४।१३.१८ सहयगय (हस्तगतछ ज ३।११ छाया (छत्रछाया) प १६॥४७ छत्तरयण ( छत्ररत्न ) ज ३।११७।१, ११८, ११६, १२१,१७६,२२० छत्तरयणत्त (छत्र रत्नत्व) प २०१६० छत्तल (पाल) ३०२३,१३५,१५० छत्ताइच्छत (तिच्छत्र) ४३०, ४९, ५०४३ छत्तागारसंठित (छत्राकारसंस्थित) सू ११२५, ४२ छत्तातिच्छत (छत्रातिच्छत्र) सू१२।२१,१० छत्ता (छत्राक ) प १४७ कुकुरमुत्ता, धनिया, सोया, जाल ववूर का वृक्ष छत्तार ( छत्रकार ) प १६७ छत्तालीस (पद्मत्वारिंशत् ) १२२५ छत्तीस (पशित् ) प २२४०२४ २०२ सू १०।१६९ छत्तोह (छत्रौष ) प १०३६३ छप्पएस (पप्रदेशिक) ए १०।११ छप्पण्ण ( पट्पञ्चाशत् ) प ११८४ ज ४१८६ सू ३०१ छप्पण्ण (दे० षट् प्राज्ञक) ज २११६ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०८ छप्पय ( षट्पद) ज २।१२ छन्भंग ( षट्भङ्ग ) प २८ ।११६, १२३, १२५, १३३, १३६,१४३ से १४५ भाग ( षभाग ) प २१६४ ज १२१८६०३२।१ छमास ( पण्मास ) सू १ १६ छम्मास ( पण्मास ) ज २२४६, ७।२३, २५, २८, ३०, ५७,६०१२१३,१४,१७,२१,२४,२७२ ३; ६११,१६।२५,२७ छम्मासावसेसाउय (छण्मासावशेषायुष्क ) प ६।११४ छल (षष्) ज ७ २०१ १२।१२ छलंस ( षडस्र ) ज ३१६२,११६ छलसीय ( षडशीति) ज ४/४५, ७।३१ सू ४/४; १५।२६ छल्ली ( छल्ली ) प ११४८ ३० से ३७,६३ छवि (छवि) ज २११६,३६,४१,१३३३/१०६ छविच्छेय (छविच्छेद) ज २१३६, ४१ छविधर ( छविवर ) ज ७ १७८ छविहर ( छविधर) ज ७११७८ छविध ( षड्विध ) प ६३११८ छविय (दे० ) प ११६७ कट आदि बनाने वाला छविह ( षड्विध ) प ११९१,६४,६५,६ ११६; १३।६; १५ ३५,७०,२१२६,३१,३२,३४,३६; २२१८३, ८४, ८६, २३१४५,४६, २४१२, ४, ८, १० से १२:२६ २, ४, ६, ८ से १०:२११६; ३०१२ ज २२,३, ५०, ५८, १२३, १२८, १४८, १५१,१५७, १६४,४११०१,१७१ छब्बीस ( पविशति ) प २।२३ ज ७।१०८ सू १।२१ छाउद्देस ( छायोद्देश) सू २ छाउमत्थिय (छाद्मस्थिक ) प ३६।५३ से ५६,५८ छाणविच्छु (छगणवृश्चिक ) प १।५१ छायच्छाय ( छायाछाया ) सू २४ छाया (छाया) प २।३०,३१,४१,४६; १६१४८ ज ११८,२३,३१,२।१६,२०,१४६; ३३,११७१ १२७५/३२७।१५६ से १६७।१ सू ६३४; १०१६३ से ७४ १६५,६ छायागति ( छायामति ) प १६३८, ४७ छप्पय छेत्तुं छायामाणसाण ( छायानुमानप्रमाण ) सू ३ छायाणवादिणी ( छायानुवादिनी) सू ६४ छायावायत ( छायानुपातमति ) प १६३८,४८ छायाल] ( षट्चत्वारिंशत् ) प २।४०।४ ज ४८६ छायालीस (पट्चत्वारिंशत् ) सू १४।७ छायादिकंप ( छायाविकम्प ) सू ६१४ छारियभूय ( क्षारिकभूत ) ज २११३२,१४१ छावट्ठ ( पट्पष्टि ) ज ७।२७ छावट्ठि ( पट्पष्टि ) प १८७६११२० सू १।११,१२१३ छावत्तर ( षट्सप्तति) ज ७११ सू१६११११, ११३ छावतार ( षट्सप्तति ) प २२४०१२ छिंद (छिद्) छिदंति ज ५५७ छिमि १८८ हिज्ज (छेद्य) ३।११४ छिष्ण (छिन्न) ज ८८८६३१२२५ छिण्णरुहा (छिन्नरुहा) १ ११४८१३ गुडूची छिद्द ( छिद्र ) प २११० उ १।६५,६६,१०५ छिण्णलेसा (छिन्न लेश्या) सू 1१ छिन्नसोय (छिन्नस्रोतस छिन्नशोक ) ज २२६८ छिप्पर ( क्षिप्रतूर्य ) उ १।१३८ छिपा (दे०) ज २।६७ छीइत्ता ( क्षुत्वा ) ज ४६ छोरविरालिया (क्षीरविडालिका ) प १७६ छोरविराली (क्षीरविदारी ) प ११४० ४; ११४८२ सफेद और अधिक दूध वाली विदारी छुरघरगठिया (क्षुरगृहकसंस्थित) सू १०1३६ छुरघरय (क्षुरगृहक) ज ७११३३|१ छुहा ( क्षुधा ) प २२६४।१६ छेत्ता ( छित्त्वा ) उ ३११५०५१२८, ४१ छेज्ज (छेद्य) ज ३१३२ छेत्ता ( छित्त्वा ) ज ७२२ सू १।१६ छेत्तुं (छेत्तुम् ) २२६६।१ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छेद-जभग १०६ छेद (छिद् ) छेदेइ उ ३।८३ छेदेहिइ उ ५।४३ छेदित्ता (छित्वा) उ २०१२;३।१४ छेदेत्ता (छित्त्वा) उ ३१८३ । छेदोवठावणिय (छेदोपस्थापनीय) प१।१२४, १२६ छेदोवठावणियचरिस्परिणाम (दोपस्थानीय चरित्रपरिणाम) प १३११२ छेय (छेद) ज २३६,४१,६०,३११७८,५१५ छेय (छिद्) छेएइ उ ५१३६ छयणगदाइ (छेदनकदायिन्) प १२।३२ छेरमाण (रिच्यमान) उ ३।१३० छेलिय (दे०) ज ३।३१ छेवट (सेवार्त) ५२३१४५,९६,१०५,१०७.१०६, छोड़े (क्षिप्त्वा ) सू ६३ ज (यत्) प १४ ज १२६ सू ११४ उ ११२,३३१; ५।३६ जइ (यदा) प १२ जइ (यदि) प २६४।१६ सू १११३ उ १६; २।१,३३१,४:१;५१ जइ (यत्र) प२३.१६० जइण (जविन्) ज २।१०३।२,३५,३६,४७,६४, ७२,१०६,११३,१३८,१४५,५१५,२८,४४,४७, ६७७१७८ जइया (यावत् ) ज ७।१३१ जंगम (जङ्गम) ज ३।१०६ जंगल (जग) प ११६३।२ जंघा (जङ्घा) २११५ उ ३१११४ जंत (यंत्र) १२१३०,३१,८१ ज ३१३२,७६,१०६, ११६,१७८,४१२:७,५।२८ जंतु (जन्तु) ज २१४।१ जंपमाण (जल्पत्) ज ३१८१ जंबु (जन्तु, जम्बू) प १।३३।१।१३१ उ १३ से १. हे० ४।१४३ क्षिप्-छुह ५,७,९,१४२,१४४,२।२,४,१४,१६,२१,३१२, ४,१६,२१,२२,२४,८७,८६,१५३,१५५,१६६, १६८,१७०,४।२,४,२७,५२,४,४४ जंबुद्दीव (जम्बूद्वीप) प २३२,३३,३५,३६,४३,५०, ५१,१५१५४,५५१,१६।३०,३६।८१ ज १७, १५,१६,१७।१,१८,२०,२३,३४,३५,४६,४८, ५१,२।१,७,१६,५२,५६,६०,१६१,१६४,३३२६, ३६,४७,५६,११३,१३३,१३८,१४५,४।१,६, ५२,५५,६२,८१,८६,६८,११४,१५६,१६०, १६५,१६७,१६६,१७२ से १७४,१७८,१८१, १८२,२०१ से २०३,२०६,२१३,२६२,२६५, २६८,२७१,२१७४,२७७,२३,२२,२६,६३१,५,७ से २६;७१,४,८ से १४,३१,३३,३६ से ३६, ५२,५४,६२६३,६७ से ७२,८६,८७,६१,६२, १०१,१०२,१७५,१८२,१९८ से २०८,२१० से २१३ सू १११४,१६,१७,१६,२१,२२,२४, २७:२।१,३,३११,२,४।३,४,७,१०,६।१८११; १०।१३२,१४२,१४७,१२१३०,१८७,२०, १६।१,२,१६।२२।२३ उ ११९३७,६१,१२५, १५७:५।२४,४३ जंबुद्दीवपण्णत्ति (जम्बूद्वीपज्ञप्ति) ज ७।१०१,१०२, २१४ सू ३११ जंबू (जम्बू) ज ४।१४६ से १५०; १५१।१,२,१५.२ से १५४,१५६,१५७१२,१५८,१५६,२०८% ७२१३ जंबूणय (जाम्बूनद) ज ३।३०,३५ जंबणयामय (जाम्बूनदमय) ज ११५१,४१७,१३, ११८,१४३,२५६ जंबूपेढ (जम्बूपीठ) ज ४।१४३ से १४५ जंबूफल (जम्बूफल) प १७.१२३ जंबूफलकालिया (जम्बूफलकालिका) प १७:१३४ जंबूरुषख (जंक्ष) ज ७२१३ जंबूवण (जम्बूवन) ज ७।२१३ जंबूवणसंड (जम्बूक्नषण्ड) ज ७।२१३ जंभग (जुम्भक) ज २६६ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० जंभ ( जृम्भक ) ज ५७० जंभात्ता ( जम्भयित्वा ) ज २२४६ जवख ( यक्ष ) प १।१३२ २ ४१.४५; १५।५५।३ ज २०३१३०१४,१८,३०,३१,४३,५१.६०.६८ १३,१३०.१३६,१४०,१४६.१७२.१८० सू १२।१० ५४७, २४,२६ जखम्गह ( यक्षग्रह) २०४३ खाण (वक्षायतन) २७,८,२४,२६ जक्खोद ( यक्षोद) सू १६३८ जग (जगत् ) ज ५१५,४६ जगई (जगती) ज १७ से १, १२, १४४०६, ३५, ३७,४२,४५, ७१.७७, १०, १४,२६२ जगईस मिया (जगतीस मिका) ज १११० जगती ( जगती) सू २०१ जगप्पईवदाइय (जगत्प्रदीपदायिका) ज ५१५, ४६ जघण ( जघन ) ज ३११३८ जच्च ( जात्य) ज २११५,३३१०६,१७८ अचकण (जायकनक) ज २०६८ जड (इष्ट) उ ३२४८, ५० जडि ( जटिन् ज ३११७८ जडियाइलय (जटिकादिलक) सू २०१८१५ जया (दे० टिकालिक) सू २०१८१५ जढिलय ( जटिलक) सू २०१२ जद ( त्यक्त) ज ३॥१२७ V जण ( जन्) जणइस्सर ज २११४२, १४३, १४५ जप १७१६६.१६७.१६९ से १७२ जन (जन ) प १।११२ ११२६६ २०६५ ३०१.९४० १०२११९,१३८,१५६ ११ ११३८, १३६; ३।११४, ११५, ११९५७,२०,२७ जणक्य ( जनक्षय) ज २१४३ जगणी (जननी) ज ५५ ४६ जणवद (जनपद) उ ११६६ जणक्य (जनपद) प ११।३३।१ ज २११३१,३१८१, १८६, २०४,२२११११४,९९,१०३१०९, ११०.११२, ११४,१२२,१२६,१३३ जणवल्लाणिया (जनपदकल्याणिका) ज ३११७८, १८६,२०४,२१४,२२१ जणवयविहार (जनपद विहार) उ ३२४६, १४५: ५/३३ traयसच्च ( जनपदसत्य ) प १११३३ जणिय ( जनित) उ३४४८,५० जण (यज्ञ) ज २ ३०३ ३१४८,५० aon ( यज्ञकिन् ) ३५० जणु (जानु ) व ३।१२.०६ ५७,५० जण्हवी ( जाह्नवी ) ज ३।१६७१११ जल (यत ) प २३०.४१ जंभय-जम्म जति (यदा ) प ५ २०६५।१३४ १९२२२६ जति ( यत्र ) प २३११६७ जतिविह ( यतिविध ) प १६:२० जता (यात्रा) उ३०३०,३१ जलिय (वत्) १५०६६.१०३२३ १७५ ज ७१२०० जत्थ ( यत्र ) ज ३७६ उ ३।५५४१२१ ; ५३६ जया (या) ज ७ २० जदि (यदि ) प ५१५ जप्पभि ( यत्प्रभृति) ज २२६७ उ २३।११८ जम (यम) ज ७।१३०,१८६३ उ ३१५३ जम (काइब ) ( यमकायिक) ज १।३१ जमग (मक) ज ४|११२ से ११५, ११७,१२०, १४०१२, १४१, १६५ जगपव्यय ( यमपर्वत) ज ४।१११, ११३, २०६. २६२३६।१० जमगवण्णाभ ( यमकवर्णाभ ) ज ४|११३ जमगसंठाणसंठिया ( यमकसंस्थानसंस्थित) ज ४।११० जमगलगम (दे० ) ज ३०१२,३१,७८,१०६,१५० २०६५।२४ जमदेवया (मदेवता ) सू १०१८३ जमय ( यमक ) ज ४।११६ जमल (मल) ज १।२४; २११५६ ४१२७५१५, २८ जमालि ( जमालि) उ ४६१५६४१२०,२७,३८ जमिगा (मिका) ज ४।१६० जन्म (जन्मन् ) प ३६।१४ ज २११०३६, १०४ उ १३४३११८, १०१,१३१ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्मण-जसंसि जम्मण (जन्मन् ) ज ५१३,५,७.१७,२२,२६,४४, ४६,६७ से ७०,७२ से ७४ उ २।३.११२; ४।१६५२५ जम्हा (स्मात् ) उ १।६३,२।६ जय (त) प २१३१ जय (ज) ज २११५.६४.६५, ३।५,६.१८,२६,३६. ४७,५६,६४,७२.७७.६०,६३ ११४,१३३, १३८,१४५,१५१.१५७.१७८,१८०,१८५, २०५,२०६,२२२, ५१५८, ७।११८ उ ११०७, ११०.११६,११८,१२२.१३०,५।१७ जिय (जि) जइस्स इ उ १।१५ जयंति उ ११३५ जयंत (जान्त) प १११३८ । २०६३,४।२६४ से २६६।६।४२,५६;७।२६, १५८६,६२,१००, १०२.१०५,१०८,१०९.११३,११४,११६, १२०,१२१,१२३,१२५,१२६,१३१,१३६; २८९६ ज ११५,४१६४ जयंती (जबन्ती) ज ४१२१२, २१२।४।५1८1१; ७।१२०१२,१८६ सू १०८।२ जयणा (यतना) उ ३३३१ जयहर (जधर) ज ३११२६११ जया (यदा) ज ५१ सू ११११ उ ३३११८ जया (जया) सू १०६०,१७०,१७२ जर (जरा) प १११११; ३६।८३।२ सू २०१६।६।। जर (ज्वर) ज २१४३ जरा (जरा) प २१६४,२०६४।६,२२,३६।१४।१ ज २८८,८६.१०३,१०४,१३३,३।२२५ जरुला (दे० प १५१ जल (गल) प ११७५ ज २११३४३६३२,८१,६८, १५१:४१३,२५ उ ३१५५ जिल (ज्वल ) जल ति ज ५७ जलंत (ज्वलत) ज ३११८८,४।६.१४,३१,४१,६८, ७६.६३ उ ३।४८,५०,५५६३,.६७.७०,७३, १०६,११८ जलकंत (जलकान्त ) प १५२०।४।२।४७१६ जलकिड्डा (जलक्रीडा) उ ३॥५.१,५६ जलचारिया (जलचारिका) प ११५१ जलट्ठाण (जलस्थान) प २१४,१३,१६ से १६.२८ जलण (ज्वलन) ज ३१३५ जलपह (जलपथ) प १६।४५ जलप्पह (जलप्रभ) प २१४०1७ जलमज्जण (जलमज्जन) उ ३१५१,५६ जलय (जलज) प ११४८।४० ज ४२६५७ जलय (जलग) ज ३।३२ जलयर (जलचर) प ११५४,५५,६०,३।१८३; ४।११३ से १२१,६७१.७८,८३,२१८ से १०,३२ से ३४,४३,५३.६० सू १०।१२० जलरुह (जरूरुह) प १।३३१,११४६ जलवासि (जनवासिन्) उ ३.५० जलविच्छ्य (जलवृश्चिक) ५ ११५१ जलाभिसेय (जलाभिषेक) र ३१५०,५१,५६ जलासय (जलाशय) प २।४,१३,१६ से १६,२८ जलिय (ज्वलित) ज ३१३५ जलोउय (जलोतुक) प ११४६ जलोया (जलौका) प ११४६,७८ जल्ल (दे०) ज २१३२ जल्लेस (यत्लेश्य) प १७१६२,१०२ जल्ललेस्स (गत्लेश्य) प १७१६२,१०२ जव (यव) प ११४५।१ ज २११५,३७, ३३११६ जवजव (यवयव) प ११४५।१ ज २।३७ जवण (पवन) प ११८६ जवणदीव (यवनद्वीप) ज ३।८१ जवणाणिया (यवनानिका) प ११८ जवणालिया (वनालिका) प ३३।२६ जवणिज्ज (यापनीय) ज ३।३०,३२,३४ जवमज्श (यवमध्य) ज २१६ जवसय (यवासक) प११३७।३ जवासा नामक पौधा, एक तरह का खदिर जवासाकुसुम (यवासककुसुम) प १७।१२५ जस (यशस् ) ज ३।३५,७७,१०६,१२६,१२६, १६७,१८५,२०६ जसंसि (यशस्विन्) ज ३१३,१२६१३ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ जसधर ( यशोधर ) ज ७१११७।१ जसभद्द ( यशोभद्र ) ज ७ । ११७।१ सू १०८६।१ जसम ( यशस्वत्) ज २१५६,६१ जसवई ( यशस्वती) ज ७ १२१ सू १०/६१ जसोकित्ति ( यशः कीर्ति ) प २३|१६,२०,१५३ जसोकित्तिणाम ( यशः कीर्तिनामन् ) प २३१३८, १२७, १८८ जसोधर ( यशोधर ) सू १०८६१,८८ १ जशोहरा ( यशोधरा ) ज ४ । १५७|१५||१; १२०१ जस्संठित ( यत् संस्थित) सू ४ ३ जह ( यथा ) प ११११३ उ १११०६ जहण ( जघन ) ज २११५ जहण ( जघन्य ) प १२७४ २२६४८४३१ से ५४, ५६ से ६७,६१ से ८६, ६१ से १३३,१३५ से २६६, २६८, ५४०, ४१, ४४, ४५, ७७, ७८, ६२, ६३.६६,६७, ११०,१११, ११४,११५,१५३, १५४,१५६,१५७,१५६, १६२,१६३, १६५,१६६, १६८,१६,६।१ से १८,२० से ४५,६०,६१, ६४,६६ से६८,१२०,१२१, १२३, ७३२, ३, ६ से २६;११।७०,७१;१२१६, १३२२२; १५१४० से ४२; १७/१४६; १८१२ से ४, ६, ८ से १०,१२,१४ से १६, १८ से २४,२६ से २८.३० से ३६,४१ से ५४,५६,५७,५६ से ६७,६० से ७४,७६ से ८१,८३ से ८५,८७,८६ से ६१,६३,६५,६६, ८,१०३,१०४,१०५, १०७.१०८, ११०,११३, ११४,११६,११७,११६, १२०, २०१६ से १३, ६१,६३,२१1३८, ४० से ४२,४८,६३ से ७१, ७४,८४,८६,८७,६० से ६३,२३६० से ७६, ८१, ८३ से ६२, ६५ से ६६, १०१ से १०४, १११ से ११४,११६ से ११८, १२७,१२६, १३१,१३३ से १३५, १३८, १४०, १४२,१४३; १४७, १५१ से १५३, १५५,१५७,१५८,१६० से १६२,१६४ से १७३, १७६, १७७,१८२,१८३ १८६ से १८८, १६० से १६३; २८/२५,४७,५०, जसधर - जहण्णोगाहणम ७३ से ६६; ३३।२ से १३,१५ से १७,३६८ से १०,१७,१८,२०,३०,३४,४४,६१,६६,६८, ७०७२ से ७४,७६, १२ ज २१४४, ४५,५८, १२३, १२८, १४८, १५१, १५७, ४११०१, ७/२८, ५७,६०,१८२,१८७ से १६६,२०६ सू १।१४; १८।२०,२५ से ३४; १६१२, २०१३ जहण्णग ( जघन्यक ) प १७ १४४, १४६, २३ १५२, १८४ जहण्णगुण ( जघन्यगुण ) प ५२३६, ३७,५८,५६,७३, ७४,८८,८९,१०६, १०७,१८६, १६०, १६२, १९३,१६६, १६७,१६६,२००,२०२, २०३, २०६,२०७,२१०, २११,२१३,२१४, २१७, २१८,२२०, २२१, २२३, २२४, २४१,२४२ जहणतीय ( जघनःस्थितिक ) प ५१२३, ३४,५५, ५६,७०,७१,८५,८६,१०३, १०४, १७३, १७४, १७६,१७७, १८०, १८१, १८३, १८४, १८६, १८७,२३८,२३६ जहणवितीय ( जघन्यस्थितिक ) प ५१५६ जहणपएसिय ( जघन्यप्रदेशिक ) प ५२२८ जहण्णपदेशित ( जघन्य प्रदेशिक ) प ५।२२८ जहण्णपदेसिय ( जघन्यप्रदेशिक ) प ५।२२७ जहण्णय ( जघन्यपद ) ज ७ १६८,१६६,२०२, २०४,२०६, १२३२ जहणमति ( जघन्यमति ) प ५१६२,६३ जहणय ( जघन्यक ) प १५ ६४; १७ १४४; २१११०५;२३।१६३ ज ७।२६ सू १।१४,१६, १७, १९, २१, २२, २४, २७, २१३ ३२,४७,६ ६११८|१,६२ जणुक्कोसग ( जघन्योत्कर्षक ) प १७।१४६ हक्कोस (जन्योत्कर्षक ) प १५/६४; २११०५ जहणोगाहणग ( जघन्यावगाहनक ) प ५।२७, २८, ४८,४६,५२, ५३,६७,६८,८२,८३,१००,१०१, १५३,१५४,१६२१६३,१६५,१६६,१६८. १६६,२३३,२३४ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जहण्णोगाहणय-जातरूववडेंसग जहण्णोगाहणय (जघन्यावगाहनक) प ५२८,४६, जाउकणिया (जातुकणिका) सू १०१६६ ५३,६८,६६.८३,१००,१५४,१५६,१५६, जाउलग (जातुक) प ११३७१५ जागर (जागर) प ३।१७४२३।१६५,१६६ से जहन्न (जघन्य) प४।१०,१३४ जहा (यथा) प ११ ज १११ सू १।१२ उ १।२; २ १०२ जागरमाण (जाग्रत् ) उ ११५,३१४८,५०,५५,८७, २०२३१२४१२.५ ६८,१०६,१३१, ५१३६ जहाणाम (यथानामन्) सू २०१७ जागरिया (जागरिका) उ ११६३ जहाणामय (यथानामक) १६५२,५४; जाण (ज्ञा) जाण प ११४८१५६ ज ७।११२१५ १३१०७,१०६,१११,११६,११६,१२३ से जाणइ प १११११,१७।१०८ से ११०:२३११३ १२८,१३० से १३५:२८।१०५,३४।१६; ३०।२७,२८ ज २१७१:७१११२ उ १६८ ३६।१४ ज १।१३,२१,२६,३३,३८,४६२।७, जाणंति प २१६४।१३१५४६ से ४६,३३।२ १७.१८,३८,५२,५७,१२२,१२.७,१४७,१५०, से १३,१५ से १८,३४११११,३४१६ से ६,११, १५६,१६१,१६४; ३।१६२:४२,८,११,१०७; १२ जाणति प ११११२ से २०११४४,४५; ५१५.७.३२ १७४१०६ से १०८,११०,१११;३०।२५ से जहाभूय (यथाभुत) 3 १४२ २८,३६८०,८१ जाणाहि सू १०।२२६ जहारिह (यथाई) ज २१११३:३८१ जाण (यान) ज २।१२,३३:३।१०३ ३ १२१७,१६, जहाविभव (यथा विभव) उ ५११७,२५ २४,४११२,१३,१५ जहिच्छिय (यथेष्ट) ज २१६,२२ जाणमाण (जानत्) ज २१७१ जहेव (यथव) सू१७१३ ३१२१ जाणय (ज्ञ) ज ३१३२ जहोचिय (यथोचित) उ १३५ जाणवय (जानपद) ज १२२६;३।१,१२,४१,४६, जा (या) जति प ६१८०१ ज ७१३५।४ ५८,६६,७४,१४७,१६८,२१२ से २१४ जाइ (जाति) प ११३८२ छोटा आंवला. चमेली, सू ११ जायफल जाणविमाण (पानविमान) ज ५१३,५,२२,२६,२८, जाइ (जाति) प ११४६,६०,६६,७५,७६११९ ३०,३२,४४,४५ उ ३७,६१ ज २।८८,८६,२२५,३१३,१०६५१५,४६ जाणविमाणकारि (मानविमानकारिन) ज ५१४६ सू१।१६।१२।१५ १०,१२ से १७:१४।३७ । जाणिउकाम (ज्ञातुकाम) प २३।१३ उ१२,३४,४६,४:३।१५१५२६ जाणिता (ज्ञात्वा) प २३।१३ ज ३११२३ उ श६८%; जाइज्जमाण ( च्यमान) १३१०५ ५४० जाहणाम (जातिनामन } ५२३।३८,४०,८५,८७ जाणियत्व (ज्ञातव्य) प १५।१४३;१६।१५।२३।१३ मे ८६,१५० जाणु (आनु) ३६,१२,८८,५१२१,५८ जाइनामनिहलाउय (नातिनाम निश्चत्तायुक) जाणुकोपरमाया (जानुकूपरमात, लानुकूपरगाव) ६.१२१ उ ३९७,१३१,३।१०५,१३१ जाइय (याचिन) ३१३८ जात (यात) प ११७५ जाइविटिया (जातिविशिष्टता) १ २३।५८ जात (जात) ज २११४६३१३ जाहहिंगुलय (जातिशिल मादक प १७॥१२६ जातकस्म (जातकर्मन्) उ १।६३,३।१२६ जाउकषण (नाक) १३२।१ जातरूवब.सग (जातरूपावतंसक) प ५१ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ जाति-जिणवर जाति (जाति) प ११५०,५१,८१,८१११:२०६४, जालघरग (जालगृहक) ज २११३ २६४१२२:११।८ से १०,३६१६४।१ ज २११०; जाला (ज्वाला) प ११२६ ५१५ जाव (गवत् ) प ११३, २०३२ से ४०,४२ से जातिआरिय (जात्यार्य) प ११६२,६४ ४६,४८,५० से ६३,४।५५७१६ से ३०; जातिणाम (जातिनामन् ) प २३१८६,१५०,१५१ ८३,४,६ से ११;६॥२२:१०।१६ मे २५,२७ जातिणामणिहत्ताउय (जातिनामनिधत्तायुष्क) से ३०,३२ मे ४३,४५ से ५३; २०१५२,५६, __ प ६.११८,१२०,१२३ ६०,६३,६४ ज ११६ च १० सू११ उ १२; जातिनामनिहत्ताउय (जातिनामनिधत्तायुष्क) २१;३।१,४११:५१ - प ६१११६,१२३ जावइ (यावी) प ११३७१५ जातिपुड (जातिपुट) ज ४।१०७ जावइय (यावत् ) ज २१६४।१४०१२ जातिविसिठ्ठया (जातिविशिष्टता) प २३१२१ जावज्जीव (बावज्जीय) उ ३१५० जातिविहीणया (जातिविहीनता) प २३।२२.५८ जावति (यावी) प ११४३११ जातीय (जातीय) ज ३।१०६ जावतिय (कावत्) प १५१५१,५२ मू ६।३१३३२ जाधे (यदा) सू १६।२४ जावय (ज्ञापक) ज ५१२१ जाय (जात) ज ११६,२७१,५५,१२८,१४६; जावेत (मापयत् ) ज ३११७८ ३१८०,६५,६६,१०३ उ ११६६,६३,२१६; जासुमण (जपासुमनस्) प १।३७.१ ज ३।३५ ३।१३,४६,१०५,११३,१४४,१४६४१२१, जासुमणकुसुम (जपासुमनस्कुसुम) प १७११२६ २७,३४,३८ जासुवण (जपासुमनस्) प १४०६३ जाय (जन) जायइ ज ३।६२,११६ जायंति जाहा (जाहक) प १९७६ ज ३१६२,११६ जाहिं (बत्र) प २४९ ‘जाय (याच) जायेइ उ १।१०२ जाहे (यदा) ज ७५६ सू १६।२७ उ ११५२; जायकोउहरूल (जातकौतूहल) ज ११६ ३।१०६ जायणी (शचनी) प १११३७११ इजि (जि) जयति च ११ जायतेय (जाततेजस्) जे २।१२६,१५८ जिण (जिन) प ११६३१६,१११०१।३,४,१२; जायय (जातक) उ ३।३८ ३६०८३३२ ज ११४०२६३,७१,७८,८०, जायरूव (जातरूप) ज २१६८,४१२५५,५१५ ५१५,२१,४६, सू१६।२२११ जायरूवखंड (जात रूपखण्ड) प ११७४ इजिण (जि) जिणाहि ज ३।१८५ जायरूपवमय (जात रूपावतंसक) ५ २०५६ जिणसकधा (जिन सकधा') सू १८।२३ जायसंश्य (जातसंशय) ज ११६ जिणसकहा (जिन 'सकहा') ज २।१२०,४।१३४; जायसढ (जातश्रद्ध) ज ११६ उ ११४५२२ ७.१८५ जार (जार) ज ५१३२ जिणघर (जिनगृह) ज ४।१३६ जारु (चारु) प ११४८२ जिणपडिमा (जिनप्रतिमा) ज ११४०,४६४७,१२६, जाल (जाल) प ११११५ ज ३।६,१७,२१,३४,३५, १३६,१४७,२१६ १७७,१२२,१७८,५।२८ जिणभत्ति (जिनभक्ति) ज २।११३ जालंतर (जालान्तर) प २१४८ जिणवर (जिनवर) प ११२ चं ११४ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिणवरद-जीविय जिणवरद ( जिणवरेन्द्र ) प १११११ ज ५५८ जिणंद ( जिनेन्द्र ) प ५१४१ जिन्मगार (जिलाकार ) प ११६७ जिभिदिय ( जिह्न ेन्द्रिय) १५१,२,६,१३,१६, ३० से ३३,४२,५८,६४,६६, ७०, ८०: २८/४२, ४५,४६.७१३१३३ जिभिदियपरिणाम (ह्निपिरिणाम ) प १३४ जिमिया (जिह्निका ) ज ४१२४,३६,६६,७४, १०, ६१ जिमिथ ( जिमित ) ज ३१८२ उ४।१६ जिय ( जित) ज ३११३५१२,१८५,२०६ जियंतय (जीवन्तक) प ११४४१२ जीवंत शाक जियंति (जीवन्ती ) प ११४००४ अन्य वृक्षों पर रहकर फैलने वाली लता जिर्यानिद्द ( जितनिद्र ) ज ३४१०६ जयपरीसह ( जितपषह ) ज ३।१०६ जिसत्तु ( जितशत्रु ) ज १३ च ८ सू ११३ उ ४१६ जीमूय ( जीमूत) प १७।५२३ जीव ( जीत ) ज २२६०.११३३१२६,३६,४७,५६, १३३,१३८, १४५, ५१३,२२,२७ जीव (जीव ) प १।४७११, ११४८१७ से ४३,४५, ४७, ४० से ५१,५५ से ५६, ११८४,१०१।२; २३६४, ३।११२, ३११,६६ से ११३,१२३ से १२५,१४१ से १४३.१५० से १५२.१७४, १८३,६ । १२०, १२३, ६११२,१६,२५.२६; १० ३१,११।३०, ३८.३६, ४३.४६, ४७,७० मे ७२,८० से ८२,८४,८५,६०,१२।१० ; १४|११ से १५.१७.१८,१६१२.१०,१६. २१,२३,१७१६८४.८६, ११२,११३; १८११११, १८११,१६६१; २०११,६३; २११८४; २२७ से १०.१२ से २२.२४ से २७,२६ से ४०,४२ से ४५,४८ से ५०,५२ से ५६,५८, ५६,६७ से ६६,७५ से ६५ से ६४,६६, ६७.१००; २३५१।१.२३।३.५ से ७,६ से ११, १३ से २३,१३४ १३५,१३७ से १३६, १५५, १५७.१६०,१६१,१६४.१६७, १७१,१७६. ६१५ १९३, २४१२ से ४, ६ से ११, १३ से १५ ; २५/२, ३, ५, २६।२ से ४, ८, ६,२७१२, ३, ६; २८।१०६, १०८, १०६,१११ से ११८,१२० से १२६,१२८ से १३३, १३६ से १४५, २६/४, १६, १७, २२,३०२४,१४ से १६, २४, ३१११,४; ३२३१,६११ : ३५/६; ३६११।१,३६।३०, ३२, ३५,४६ से ४८, ५२, ५६, ६२ से ६६, ६९, ७०, ७२ ७३, ७४, ७७, ७८, ६४ ज २२६८, ७१,५१५,४६; ६/४७१२११,२१२ उ ११६०,६१,३/१४२, १४४; ५।३४ / जीव (जीव ) जीव ज ३।१२६१२ जीविस्सइ उ १११५ जीवंजीव ( जीवंजीव ) प १७८ जीवंजोग (जीवजीवक) ज २०१२ जीवंत ( जीवत् ) उ १११०६,११०,११४ जीवंत ( जीवत्क ) उ ११६६,१०३,१३३ जीवण ( जीवधन ) प २२६४१२३६॥६३,६४ जीवणिकाय ( जीवनिकाय) प २२३१०,७८ ज २७२ जीवत्थिकाय (जीवास्तिकाय ) प ३।११४, ११५, ११६,१२२ जीवदय ( जीवदय ) ज ५।२१ जीवपज्जव ( जीवपर्यव ) प ५१ से ३,१२२ जीवपण्णवणा ( जीवप्रज्ञापना ) प १११,१० से १५, ४६ से ५२,१३८ जीव परिणाम ( जीवपरिणाम ) प १३११,२,२० जीवमाण (जीवत् ) उ १।१५,२१,२२ जीवमिस्सिया ( जीवमिश्रिता ) प ११1३६ जीवलोक ( जीवलोक) ज २६५; ३१३१,१२४ जीवा (जीव) ज ११२०, २३, ४८ ३ २४; ४|५५, ६२,८१,८६,६८,१०८,१७२,२६२,२६५, २७१, २७४ १।१६:२।१६ १०११४२, १४७:१२/३० ; २०११ ११३८ जीवाजीवमिस्सिया ( जीवाजीवमिश्रिता ) प ११३३६ जीवाभिगम ( जीवाभिगम ) ज ११११ ; ५/४६,५१ जीवि (जीवित) प ११४८५,४१,२२२६ ज २२७० ११२२,२५,२६,३४, १४०३६८, १०१. Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६ जीवियंत करण-जोइस १३१,१५६ जुद्धसज्ज (युद्धसज्ज) उ १११५ से ११७ जीवियंतकरण (जीवितान्तकरण) ज ३१२४ जुम्ह (युष्मत्) सू १।६ उ ११२२,३।२६; ४१११ जीवियारिह (जीविताह) ज ३.६ जुय (युग) ज ७११० जीहा (जिह्वा) प २१३१,१५१७७,८१,८२ जुयणद्ध (युगनद्ध) सू १२।१२६ ज २११५,३११०६; ७१७८ जुयल (युगल) ज १५२४२११५,१००,३१२११: जुइ (धुति) प २६३१ ज ३११२,७८,८८,६२,११६, ४।२७,३०,५१५,२८,५८,६७,७१७८ १२६,१८०५.२२,२६ उ ३।१३४ जिंज (युज) जुजइ प ३६.८६,८७,८६,६० जुयलग (युगलक) ज २०४६ उ ३.१२६ जजति ५३६८६ से १० सु १५।१०।। जुवराय (युवराज) प १६:४१ ज २१२५ मुंजमाण (युञ्जान ) प ३६.८७,८६ से ११ जुवलय (मुगलक) प २१४०।२ जुजिता (युक्त्वा) सू१५।१० जुवाण (युवन् } ज ५१५ जुग (युग) ज २१४,६,१४१ से १४५; ३।३,११५, जुब्वण (यौवन) ज ३।१३८ ११६,१२२,१२४;७१२७ सू६.१८.१, जूय (यूप) ज २०१५ १०११२२,१२३,१२७:१२१६१३१३,१५१३५ जया (यूका) प १५० ज २६,४० जूव (यूप) ज ३१३ उ ३१४८,५०,५५ जुगंतकरभूमि (युगान्तकरभूमि) ज २१८४ जूस (यूष) सू १०.१२० जुगप्पत्त (युगप्राप्त) सू १२१८ जहिया (यूथिका) प १३८।२ ज २।१०।३ जुगमच्छ (युगमत्स्य) प ११५६ जहियापुड (यूथिकापुट) ज ४११०७ जुगव (युगपत्) १ ३६१६२ ज ५१५ जेठ्ठ (ज्येष्ठ) ज १२५,३११०६ चं १० ११५ जुगसंवच्छर (युगसंवत्सर) ज ७।१०३,१०५,११०। जेठ्ठपुत्त (ज्येष्ठपुत्र) उ ३.१३,५०,५५ सू१०।१२५,१२७ जेट्ठा (ज्येष्ठा) ज ७१२८,१२६,१३४१२, जुग्ग (युग्य) ज २।१२,३३ १३५।२,१३६,१४०,१४६,१५२,१६६ सू १०२ जुज्झसज्ज (युद्ध सज्ज) उ १३१२७,१२८,१३३ से ६,१८,२३,५१,६२,७३,७५,८३,११६,१२०, जुज्झ (युध) जुज्झति उ १५१३६ जुज्झह उ १।१२६ जुज्झामो उ१११२८ जुज्झित्था उ १११२७ जेठामूल (ज्येष्ठामूल) ज ७।१०४,१४६,१४६, जुण्णकुमारी (जीर्णकुमारी) उ ४ाह १५५ सू १०११२४ उ ३१४० जुण्णा (जी) उ ४६ जेट्ठामूली (ज्येष्ठामूली) ज ७१३७,१४० जुति (द्युति) प २१३०,३१,४१,४६ ज ५५२०९ सू १०१७,१८,२२,२३,२६ । जुत्त (युक्त) ज २११५:३।३,३५,७७,६५,१०६, जेणामेव (यव) प ३४।२२ ज ३१५ १३८,१५६,२११,४१२७,५॥२८,५८,७११४१ जो (द्योत) सू१२२७ से १४४,१५० से १५२,१७८ सू १०२० से जोइ (ज्योतिष) सू १४१८,६,११ से १३ २२,२५,१७२,१७३;१६।२२७,२०७ जोइस (ज्योतिस्,ज्योतिष) प २१४८:३४६१८ उ १११७,११६,१२८ ज ११२४; २१६४ से ६६,१००,१०२,१०४, जुत्ति (युक्ति) ज ३१२०६ १०६,११०,११३ से ११७:५।४७,६७,७२ से जुत्ति (युक्ति,धुति) उ ५१२।१ ७४,७१७१ से १७४ च ५।४ सू १।६।४; जुद्धणोइ (युद्धनीति) ज ३११६७।६,१७८ १९४२२१२ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोइसगणरायपण्णत्ति-जोय जोइसगणरायपण्णत्ति (ज्योतिर्गणराजप्रज्ञप्ति) १७३।१२।२६।१५।१०:१६।२२।१० उ ३१३१ चं १३ जोगपरिणाम (योगपरिणाम) प १३।२,१४,१६, जोइसपह (ज्योति:पथ) प २।२०,२४,२५,२७ १७,१६ ज ११२४ जोगसच्च (योगसत्य) प १११३३ जोइसप्पह (ज्योतिःपथ) प २।२२,२३,२६ जोगि (योगिन् ) १३६१६२ जोइसराय (ज्योतीराज) ज ७।१८३ से १८५ जोग्ग (योग्य) ज ३११०६:५७,४१ उ ३७ जोइसरायपण्णत्ति (ज्योतीराजप्रज्ञप्ति) चं ११४ जोणय (जोनक) ज ३।८१ म्लेच्छ जोइसिंद (ज्योतिरिन्द्र) प १४८ ज ७।१८३ से जोणि (योनि) प ११११४,११४८१६३,२१६४;६? १८५ उ ३१६,१५ से १८ से ४,६ से ११,१३ से १७,१६ से २३,२६ जोइसिदत्त (ज्योतिरिन्द्रत्व) उ ३।१४ ज २११३५ से १३७,३।३ जोइसिणी (ज्योतिषी) ५ ३११३८,१८३;४।१७४ जोणिप्पमुह (योनिप्रमुख) प १२०,२३,२६,२६, से १७६,१७१५३,७८,६२,८३,२०।१३ ४८,५०,५१,६०,६६,७५,८१ जोइसिय (ज्योतिधिक) प १११३०,१३३, २।४८; जोणिभूय (योनिभूत) प ११४८१५१ ३१२८,१३७,१८३,४।१७१ से १७३; ५३, जोणिय (योनिक) ज ३११११ २६,१२२;६।२६,४६,५६,५६,६५,६६,८५,९४, जोणिसूल (योनिशूल) ज २१४३ । १०६,१११,११७७।६।६।११,१८,२४,१५१३५, जोणीपमुह (योनिप्रमुख) प ११४६,७६ ४८,८७,६६,१२४; १६१६१७४२७,३०,५३, जाह (ज्योत्स्न) १०११३१,१८।१,५,६; ७८.८१,८३,६६,१०५;२०।१३,१६,२५,३०, १९।२२।१६,२०;१६६३१ ४८,५४,६०,२१।५५,६१,७०,६०; २२१३१, जोतिस (ज्योतिष् ) प २।४८,३१।६।१;३४।१६ ३६,८८,१००,२८1७३,११७,२६।१५,३११५ सू १०११३१,१८।१,५,६:१६६३१ ३३११५,३०:३५।१५,२२,२३ ज २१६४ जोतिसराय (ज्योतीराज) सु १८।२१ से २४; ४॥२४८,२५० से २५२,५१५३,५६,७२ से ७४; २०१४,६,७,६।१ जोतिसिद (ज्यौतिरिन्द्र,ज्यौतिषेन्द्र) स १८१२१ मे ७१८५ २४,२०१४,६,७ जोइसियत्त (ज्योतिपिकत्व) प १५१२६ जोतिसिणी (ज्यौतिषी) मू १८१२६ जोइसियराय (ज्योतीराज) प २०४८ जोतिसिय (ज्योतिधिक) ५ १२१६,३७,१३१२०, जोईरस (ज्योतीरस) ज ५१५ १५।१०४,१०७,१६१६१७।३३,३४,६१; जोएअव्व (योजयितव्य) प १०।२६ १६१४,२०।३५,३७,२२।७५:२६॥२२३२।५; जोएत्ता (युक्त्त्वा ) सू १०५,१५८६ ३३।२३,३४,३७,३४१४,१०,३५२२३३६१२६, जोएमाण (युञ्जत् ) ज ७१४१ से १४५,१५०, ४१,७२ १८२३,२५,१६।२२ जोतिसियत्त (ज्योतिषिकत्व) प १५५१११,३६।२२ जोग (योग) प३।१११:११३३११:१८११११ जोत्तग (योक्त्रक) ज ७।१७८ २८॥१०६१३६।१२ ज २१६५,७१,८८,६५; जोय (योग) ज ३११७८,७१२६ सू १०२,३,५, ३।१५६,२२५७।१,११२१२,१२७।१,१२६, ७५,१२२,१२३,१२६१,१३२ से १३४,१३६, १३०:१३४।१,४,१३५,१३८ से १४०,१६७११ १६२ से १६६१२।२६,३०,१५।८,११,१२, चं १३,५.१ सू ११६३,१।६।१:१०.१,५,१७२, १३,१६।१,५,८,१५,१६,२१,१९४२२१२१ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ जोय-असणा जोय (युज) जोइंति ज ७/१२६ जोइंसु जोयणसहस्सहत्तिय (योजनसहस्रपृथक्रिक) ज ७११२६ जोइस्संति ज ७१२६ मू १६१ प ११७५ जोएइ ज ७/१२६ जोएंति ज ७।१,११२१२ जोवण (यौवन) प २।३१,३४१२० ज २११५; सू १०१५,१२६।१,२ जोएंसु ज ७।१ सू१०।७५ ३।६२,११६,१३८,५६८,७० सू २०१७ जोएति सू १०१२० जोएस्संति ज ७१ उ३।१२७ सु १०७५ जोयंति ज ७/११२११ जोव्वणग (यौवनक) २३१२७ १२८,५१४३ जोयण (योजन) प १७४,७५,८४,२।२१ से २७, जोह (योध) ज ३।१५,२१,२२.३१,३४,३६,७७, २६ से ३६,३८,४१ से ४३,४६,४८ से ५५, ७८,६१,६८,१६७।६,१७३,१७५,१६६ ५६,६३,६४,१११७२,१२१२७,३६,१५१४० से उ १११२३ ; ५११८ ४२,२११३८,४१ से ४३,४५,४७.१,२,२११६३, ६८ से ७०,८७,३३।१०,११:३६१६६.६८, . झंझावाय (भ.झावात) प १२६ ७०,७२,७४८१ ज ११७,८,१२,१४,१६, झय (ध्वज) ज ११३७,२।१५,२०,३१७,३१,३५, १७।१,१८,२०,२३,२८,३२,३५,४६,४८,५१; २१६३११,१८,२५,३१,३८,४६,५२,६१,६६, १७८,१७६ ७६,८१,६५,६६,१११,११६,११८,१३१,१३२, झया (ध्वजा) उ १२२,१४० झल्लरि (भल्लरी) प ३३।२३ ज ३।१२,७८, १३७,१४१,१५६,१६०,१६४,१८०,१६२; १८०,२०६ ४।१,३,६,७,१४,२३ से २५,३१,३६,३८ से ४३,४५,४७,४६,५२,५५,५७,५६,६२,६४ से झस (झस) ज ३३ ६८,७२ से ७८,८१,८६,८८,६० से १५,६८, झिा (ध्य) भियाइ र १४१५३९८ झिामि १०३,१०८,११०,११२,११४ से ११६,११८ उ ११४० झियासि उ ११३७ मिह उ २४२ से १२८,१३२,१३६ से १४१ १४२११,१४३, झिाहि उ ११४१ १४५,१४६,१५३,१५४,१५६.१६३ से १६५, झाण (ध्यान) उ३१३१ १६६,१७४ से १७६.१७८,१८३,२००,२०१, झाणंतरिया (ध्यानातरिका) ज २१७१ २०३:२०५ से २०७,२१३,२१५ से २१९, झाणकोट्टोवगय (ध्यानकाप्टोपगत) ज ११५; २२१,२२६,२३४,२४० से २४३,२४५,२५७ १८३ उ ११३ से २५६,२६२,५।३,५,७,२२ से २४,२८.३५, झिाम (दह ) भामेति ज २।१०८ झामेह ज १०७ ४३,४४,४६,५०,५३, ६६.१,६८,७।३ से झिगिर (दे०) ५ ११५० २५,३१ से ३४,५८,६२ से ८४,८६,८८,८६, झिगिरिड (दे०) ५ १५० ११ से १६,१७१ से १७४,१८२,२०७ ‘झिया (ध्य,ध्मा) झियायंति ज ३।१०५ सू १११४,२० से २४,२६ से ३१:११,३, झियायमाण (ध्यायत) उ ११३६,३७,४२,७१ ४।३ से ५,७,८,१०,१८११,५,६,६ से ११,२०, झिल्लिया (झिल्लिका) ११५५० १६४,७,१०,१४,१८,२०,२२।२८,२६, झिल्ली (झिल्ली) प ११४८१४२ १६।२३,२६,३०,३४,३७, उ १५१३४३७, झुसिर (शुषिर) ज ५।५७ २०११ ६१:५४ झूस (शोपय् ) भूसेइ उ ३१८३ महिइ जोयणपुहत्तिय (योजनपृथक्त्विक) प ११७५ उ ५१४३ जोयणसत्तपुहत्तिय (योजनशतपृथक्त्विक) प १७५ असणा (जोषणा) ज ३१२२४ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिता-ठिवि सूसिता (कोपर) २०१८ भूमि (जुष्ट) ज ३१२२४ झूसेता (शोपथिला) उ३१८३,५४४३ झोसेत्ता (शोपयित्वा ) उ २११२:३।१० ट टंक ( प ११ टिट्टिय (दे० ) ज ५११६ टोलकिति (दे० ) ज २११३३ 5 √ ठेव ( स्थापय) व २०६५ विस्त २१४६ २६५ ४१८२१०४ उवेसि उहि प १४६५८,५६ ठवणा (स्थापना) प ११।३३।१ उपवास (स्थापनासत्य ) प ११।३३ √ठवाव ( स्थापय् ) ठ १४६ वित्ता (स्थापयित्वा ) उ ११४६ ठवेत्ता (स्थापयित्वा ) उ १११६ ठविय ( स्थापित ) ज ३१८१ ठवेत्ता ( स्थापयित्वा ) २२६५ ठा (छ) १२२ ठाकण ( स्थित्वा ) ३२०२४ ठाण (स्थान) ११४६४२१३६,४१ से ४३,४६, ४८ से ५.२,५४ से ६४३६।११० १४१५,११ से १५, १७ १७ ११४११, १७ १४३ से १४५२३०१०१:२३३६.७.१६० ३।२४, १०१६; ३।५१ २०७ ८१,१०२,१५६,१६२: ५।२१७५६ ६० सू १०।१३० से १४१,१४३ से १४६,१४८ से १५१,१६१२४,२७१।२२,१४०५३।५१।१६ ३२८३, ११५.१२०:४।२१,२२,२४ ठाणति (स्थानस्थित ) सू १९२६ ठाणमग्गण ( स्थानमार्गण ) प २८१६,५२ ठापित (स्वानी) १२४४, ४५ ठाय ( स्थापय् ) ठामि ३१३ ठावेता (स्थापयित्वा ) उ ३१५० ६१६ टि (स्थिति) प १३१२४४२५५०५.०४.११५, १४८,२१४; २३।१६३ ज २१५६,७१,१५६; ७१६६२,१८७३ ११४१, ४३ २११२.२२: १६.०५.१२४,१५०,१६४,१६९,१७१; ४१२५५२६,४२ ठिकाण ( स्थितिका) ज २०१ ठिक्य (स्थितिक्षय ) उ३११८, १२५, १५२,४२६; ५/३० ठि (स्थितिक) १।२६,१४०२२० ठिईय (स्थितिक ) ज ११२४, ३१, ४६, ४७;२।४४; ३१२२५,४१२२,३४, ५४,६०,६१,६४,८०,०५, ८६, १७, १०२, १४१,१४२,१६१.१६७. १७७, २०६,११६,२०८, २६१,२७०,२७२७०१५. ५८, २१३ ठिच्चा ( स्थित्वा ) प १७१०७३४१२२,२३ उ १४२०:३।२६ ठितलेस्स ( स्थित लेश्य ) प २०४८ ठिति (स्थिति) प ४१ से ४,६४६,५६ से ५८, ६५,७१,७९,८८,१५,१६,१०१.१०४, ११२, १३१,१४०, १४६,१५८, १६५,१६८, १७१. १७४, १०३,२०७, २१०, २१३,२६४,२९७. २११:५०, १०, १२,१४,१६,१८,२०,२४ से २६,२८,३०,३२,२४,२७,४१,४५,४६,५०,५२, ४६,५६,६३,६८,७१,७२,७४,७८,८३,०६० ६३,९४,९७,१०१,१०२.१०४, १०५. १०७, १११,११२,११६,१२२,१२६.१३१.१३४, १२६,१३८, १४०,१४३, १४५, १४७, १४८, १५०,१५४,१६२,१६६.१६९,१७०, १७२ १७४, १७५.१७७.१७५१०१, १०२, १०४, १०५. १०७.१००, ११०,१९२.१९७,२००, २०३,२०७,२११,२१८,२२१,२२४,२२८, २३०,२३२,२३४, २३५, २३७, २३६,२४०, २४२: १०।५३।१:२३०१३ से २३,६० से ६४, ६६,६८,६६,७२ से ७७,६०,२१,८३,८५ से १०,१२,१३,९५ से ६२,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ से ११८, १२७, १३०, १३१,१३३, Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ठितिपडिया-पक ख १७६,१७७,१७६,१८१,१८२,१८३,१८५, पई (नदी) ज ४१२००,२०२,२१२ १८७,१६० से १६३;२८१५,३६५८२११,८३१ । णउति (नवति) १८१ गु १८।२५,२६ से ३४ णउय (नवति) ज ११८ ; ४१२५६१८७८२, ठितिणामनिहत्ताउय (स्थितिनामनिधत्ताश्रूष्क) प ६.१२२ णउल (नकुल) प ११७६ ठितिनामणिहत्ताउय (स्थितिनामनिधत्तायुक) णं (दे०) प ११२० ज ११३ सू ११२ उ ११५; २११; प६११८ ३११,४११:५।१ ठितिपडिया (स्थितिपतिता) उ ११६३ जंगल (लाङ्गल) ज ।३ ठितीचरिम (स्थितिचरम) प १०॥३४,३५ णंगलई (लाङ्गलिकी) प४८१६ ठितीणामणिहत्ताउय (स्थितिनामनिधत्तायुक) गंगलिय (लाङ्गलिक) ज १६४६४१८५ प६.११६ गंगूल (लाल) ज ७११७८ ठिय (स्थित) प १११४७,४८,८० से ८३ गंगोलि (लागुलिन्) १११८६ ज ३१६२,११६,१३८,५३,२८,७५८ सू१११७ द (नन्द) ७११८ उ १११६ गंदणवण (नन्दनवन) ज २१६५,६६४१२१४, २३४,२३६,२३७,२३६,२४०,५१५५ णंदणवणकड (नन्दनवनकट) ज ४१२,३६ डंस (दश) ज २।४० णंदणवणविवरचारिणी (नन्दनवनविवरचारिणी) डब्भ (दर्भ) प ११४२१ डमर (डमर) ज २१४२ ज २१५ णंदा (नन्दा) ४१८०५।८।१,६८:४११८ डमरबहुल (उमरबहुल) ज १३१८ सू१०१६० डिह (दह) डहेज्जा ज २६ डाव (दे०)उ ११३८ गंदापुक्खरिणी (न-दापुका शी) ४१२२१ डिब (डिम्ब) ज २१४२ गंदावत्त (नन्दावत्त ) प १७१११ ज ३।३,३२ डिबबहुल (डिम्बबहुल) ज १६१८ णं दिघोष (नन्दिपंग) २.१६३१३०,५१५२ डिभय (लिम्भक) उ ३१६२,११४,१२३,१३० णंदिपुर (नईन्दपुर) प ११६६।३ हिभिया (डिम्भिका) उ ३।६२,११४,१२३,१३०, शंदिय (नन्दित) २१ णंदियावत्त (नन्द्यावत) ५ ११४६ ३।१७८; डोंगरू (दे०) ज २।१३१ ४।२८,५१४६३ डोंब (दे०) प १८६ णंदिरुक्ख (नन्दिरूक्ष) प १।३६।२ डोंबिलग (दे०) प १८६ दिबद्धणा (नन्दिवर्धना) ५.८१ कंदिस्सर (नंदिस्वर)) २११६:४८८,५२,७४ सू१९६३१ ढंक (ध्वाक्ष) प १७६ ज २१४०,१३७ णंदुतरा (नन्दोत्तरा) २८१ ढिकुण (दे०) प ११५१११ ज २।४० पका (नन्ह) प १५६ णक्क (ना) ११८६ ण (न) प १।१०१।३ ज १६ मु१३१४१०१२६ णक्ख (नख) १५,१६३१७८ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्सत्त-णसगवयण ६२१ णक्खत्त (नक्षत्र) प १२० से २२,४६,५१, ज १२६,४११७२ १५१५५।३ ज १५२४२१६५,७१,५८,१३८; णग्गोह (न्यग्रोध) प ११३६१२ ज २०७१ ३।२०६,२२५७।१,५५,५८,६५,६६,१००, गरगोहपरिमंडल (न्यग्रोधपरिमण्डल) प १५१३५; १०३,१०४,१११,११२।१,२,११३,१२६, २३।४६ ज ७१६७ सू १०७४ १२८,१२६१,१३० से १३३,१३४।२,३,४, पणच्च (नत) पच्चंति ज ३।१०४,१०५:५।५७ १३५४४,१३८ से १४५,१४७,१४८,१५०, णच्चण (नर्तन) प २१४१ १५१,१५२,१५६ से १६७,१७०,१७५, णिज्ज (ज्ञा) णज्जइ ज ३११०५ १७७१३,१७८१२,१८०,१८१,१६७ च ५।४ पट्ट (नाट्य) प ६३१,४१ ज २१३२,३८२, सू १०११ से ५,८ से २५,२७ से ३१,३३ से १६७।१०,१८५,१८७,२०६,२१८,५१,१६, ४२,४४,४६ से ५६,६१ से ७५,७७ से ८३, ५७,७१५५,५८,१८४ सू १८१२३:१६४२३,२६ १२ से १०७,१०६ से १२०,१२२,१२३,१२८, णमुमालग (नाट्यमालक) ज ३११५०,१५१ १२६।१,२,१३० से १३५,१५२ से १६६, णमालय (नाट्यमालक) ज १५२४,४६, ६.१६ १७१ से १७३,१११२ से ६१२।१६ से २८, मद्रमाल (नाट्यमाल) ज २।८ ३०; १३।११,१४,१५.१,२,४,६ से ६,११, णट्रविहि (नाट्यविधि) ज ३।१६७।१०,५१५७,५८ १२,१४ से १६,१६ २२,२५,२८,३४,३७, णट्टाणीय (नाट्यानीक) ज ५१४१,४४ १८१४,७,१८,१६,३७, १६।१।१,५२,८१२, गट्ठरय (नष्टरजस्) ज ५७ ११४३,१५॥३,१६,१६४२१४,७,२२।३,२२,३१, णडपेच्छा (नटप्रेक्षा) ज २१३२ १६२३,२६,२०१७ उ ५।४१, णत (नत) सू २०१७,२०।६।६ णक्खत्तमंडल (नक्षत्रमण्डल) ज ७९८५ से ६४,६७, णतंभाग (नक्तंभाग) सू १०१४,५ ११३ सू १०।१२६,१३० पत्तु (नप्त) ज २११३३ णक्खत्तमास (नक्षत्रमास) म १२।२,१२ णत्थि (नास्ति) ५ १७५,८०,२६५२,६४।१८, णक्खत्तविजय (नक्षत्रविजय) सू १।६।४; १०११३२, ५१४३,६६,८०,६६,१८०,१२१६,११,२१,२८; १७३ १३।१६१५२८७,६४ से १०१,१०३ से १०६, णक्खतविमाण (नक्षत्रविमान) प ४।१६५ से २०० १०८ से ११०,११२ से ११७,११६ से १२३, ज७।१६३,१६४ मू १८१८,१२,१६,३३,३४ १२५,१२६,१२८ से १३२,१३८ से १४१, णक्खत्तसंठिति (नक्षत्रसंस्थिति) म १०१२७ १४३,१७७०,२११६२ से १०१, २२॥४२; णक्खत्तसंवच्छर (नक्षत्रसंवत्सर) ज ७।१०३,१०४ २३११३७,१३६२८११४२,१४५:३०।१७; सू १०११२५,१२६,१२६,१२।२ ३६.८ से ११,१५ से २३,२५,२६,२८,३०, णख (नख) सू २०१२ ३१,३३,३४,४४ सू १११३,१४,१०।२२,२५ णखीमंस (नखीमांस) सू१०।१२० कथारी की जड णगर (नगर) प ६४१ मे ४३,२२६४।१७; दि (नद्) गदति ज ५१५७ णदी (नदी) प ११७७ ज २१३१ ज १२६:२।२२,६६,७०,१३१,३।१८,३१,५२, णदीबहुल (नदीबहुल) ज ११८ ६१,६६,८१,१३१,१३७,१४१,१६४,१६७१२, १८०,१८५,२०६;५१५,४४ णपुंसग (नपुंसक) प ११६६,७६११६५ से १०,२५ गरणिमण (नगर गिद्धमण') प १।८४ से २८ णगरावास (नगरावास) प २।४१,४२,४६ णपुंसगवयण (नपुंसकवचन) ५ ११२६,८६ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ णसगवेद-णक्य णपुंसगवेद (नपुंसकवेद) प १८१६२; २३१३६,८२, णरवइ (नरपति) ज ३।६,१७,१८,२१,२४१४, १४३,१४८,१५० ३।२८,३०,३४,३५,३७४२,४१,४५।२,४६,८८, णपुंसगवेदग (नपुसकवेदक) १३।१४,१५,१८ ६१ से ६३,१०६,१३१४,१३६,१४१,१७७, णपुंसगवेदय (नपुंसकवेदक) प २८१४० १८०,१८३,२०१,२१४,२२२ णपुंसगवेय (नपुसकवेद) प २३११४५ परवति (नरपति) ज ३११२६२ नपुंसगवेयपरिणाम (नपुंसकवेदपरिणाम) प १३.१३ परवरिद (नरवरेन्द्र ) ३।१३५१२ पपुंसय (नपुंसक) प ३३१८३ गरसभ (नरवपन) ज ३१८,६३,१८० णभ (नभ) ज २१६५ सू २०१२ णरसीह (नरसिंह) ज ३।१८,६३,१८० णभसूरय (नभःशूक) मू २०१२ रिद (नरेन्द्र) ज ३१६.६,१८,३२।१,२,६३,११७, णमंस (नमस्य) नमसइ ज ६०५।२१,५८,६८ १२६।१,१८०,२२१,२२२ णमंसति उ ११२१ णमंसामि उ १११७ णल (नल) प १४११ णमंसण (नभस्यन) उ १।१७ णल (नड,नल) प ११४१।१,१४८१४६; ११७५ णमंसमाण (नमस्यत्) ज ११६,२१६०,३।२०५, णलिण (नलिन) ज२४;४।३,२५,२१२,२१२।१ च ११ २०६:५४५८ णलिणंग (नलिनांम) ज २४ णमंसित्ता (नमस्यित्वा) में २१६० उ ११२१ पलिणकड (नलिनबाट) ज ४।१६० से १६३ णमि (नमि) ज ३११३७ से १३६ पमिय (नत) ज २११५ णलिणा (नलिना) ज ४१५५।१,२२२।१ गव (नवन ) प ११५१ ज १।२० सू १०१२ णमो (नमस्) ज १।१३।२४।१,१३१ अमोत्थु (नमोस्तु) ज ५१५,२१,४६,५८,६५ णव (नव) प २१५० ज ५।१८ चं ११ गवई (नवनि ) ज ४२१३ णय (नय) प १६।४६ णय (नत) ज ४.१३ णवग (नवक) प १८१ पयगति (नवगति) प १६।३८,४६ णवणउइमंगुलपरिणाह (नबनवतत्यङ्-गुलपरिणाह) ज३११०६ जयठ्ठया (नयार्थता) सू १११३ णवणवति (नबनर्वाल) ज ४२१३ णयण (नयन) पश३१ ज २११३,६०,१०३,१०६, वजहदति (नवनिविपति) ज ३१२६२,१७५ १०८,१३३,३१३,६,६५,१०६,१३८,५२१ णवगोड्या (ननीतिका) प ११३८।३ ज २०१० णयणमाला (नयनमाला) जश६५,३३१८६,२०४ जयर (नगर) ज ५७०,७२ र ३।१०१ णवणीत (नवनीत) मू१०।१२०,२०१७ णयरी (नगरी) ११६३।६ ज श२,३,७१२१४ णवणीय (नवनीत) प १११२५ ज ४.१३ णयविहि (न विधि) प १११०१६ णवम (नवम) प १७१६६ ज ७।११४१२ सू १०७७, जर (नर) ज ११३७; ११०१,१३३,३१६२,११६, १२४।२।१३।१० १७८,१८६,२०४४१२७,५२८ णवमालिया (नवमालिका) ज ३११२,८८,१०६ णरकता (नरकान्ता) ज ४२६६,२६८,२६६३२; ५५८ ६१२१ णमिव (नवमीपक्ष ) ज २६६४ परः २) ११९० से २७ ज २१३५ से १३७ मियामका ज ५११००१ परगाव, काना) प २२६ पवमी (नवबी) ल १९११. णरदाय णय नरदापनि) ११६६ गवयपदक प२४०,८३,४४ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवरं णाणावरण वरं (दे० ) प २०४५, ५२ से ५६,६१५।२१,२६, ३५, ३८,४३,५७,६०,६६,७२,७५,००,०१,८४, १०,१४,१०२.११६.१५१.१६०,१६१,१६४, १६१, १६५, २०१६६६, ६५, ६८, १०४,११३; १०१३० १११८५ १२०२६,३१,२६ से ३५३ १३१६ से १८,२०१५।१८,१६,२६,३०,३४, ३५, ३८, ४९, ५५,६३,६५,६७,७५,८५,८६,६१० ६७,६८,१०२,१०३, ११५.१२१, १२२,१२५. १२६,१३६,१३७.१२५, १४०, १४१, १४२ १६/४, १२, १७:२१,२५,२७,२१,३०,३२,३२, ३५,५८,६०,६३,७०,६१,६३,६६,१०५, २४५, १७२; १६८० २०१४ ३२,५४५५ ५७.५८ २१।३५,६१,७०,७१.१२:२२ ४१, ४२, ४४. ७६,८०८२,६०२३।१०,१२,५६,५८,१५६, १६६,१६७,१७०, १७२, १७५, १८८, १६० २४१३,११,२६१९; २८१२७, ३१, ३८, ४३,४७, ७३,७४, १०९,११५.१३३.१३८ २९।१४, २१: २३०१७३२३।१६,३४०३, ५.१४, ३५०७ : २६१६, ७,११,१३,१५,२४,२६,२८ से ३४,३८,४६, ५२,५६,६५,६६,६६,७२,७३२१५२ १११७१०१२५; १८२४ वरि (दे०) ज ३३५० नवविह ( नवविध ) प ११६२,१३७ : २११५.५; २३।१४ ३६ ह ( नख ) ज २।१५,४३,१३३, ३१६२,११६,१४५ पहिया (नखिका ) प ११४७ ही (नखी ) प ११४८५ जाइ (न) ज ३११२६ पाइ (शांति) ज ३२१८७ पाय (नादित) ११२१,१२२.१२५,१२६, १३३,१३४,१३८३०१११.४११०४३१९ गाउं (शाम) सू १९।२२।२६ नाग (नाग) प २।४०११, ८ ५१३, १५१५५।३; ज २।३१३।२४।१.२.१६१०१,२,१७९ ४१२१२:५५२७।१२३ से १२५ १६।२८ नागकुमार (नागकुमार ) प २०३४ से ३६,३८,३२ ७१३,५२०१७२३३१११,१४:३६०२० ज ३।१११ से ३१५.१२४ से १२६ ४।१४१ नागकुमारत (नागकुमार ) प ३६।२० जागकुमारराय (नायकुमार ) प २२३४,३५ नागकुमारि (नागकुमारेन्द्र ) ए २१३४ से ३६ नागधर (नागधर) ज ३।१७९ णागड (नागस्फटा ) प २३० नागपुरक (नागपुष्य) ज ३४३ नागरुक्ख (नागरूक्ष ) प १।३५।३ णागलया (नागलता ) प ११४० ३ नागोद (नागोद) यू १६ २८ नाइज (नाटकी) व ३११२,२८,४१,४६,५८, ६६.१४७, १६, २१२,२१३,२२१ नाग (नाटक) ज ३३१७५,२०४,२१४,२२१ णागविहि (नाटक विधि) ज ३२१६७|१० पाय (नाटक) ३०२, १०६. १०७,२१८ ५१२२,२६ ε२३ णा (ज्ञान) प १।१०१।१० ३।१११.३११.२८,३०, ३२, ३४, ३७.४३,४५,१८,६१,७२,७४,८०, ८३, ६४,८७,८१,१४,११,१०१, १०२.१०१, १०७. ११२,११७१७।११२, ११३. १८०१०१ २८।१०६।१:३०१२६२८ २०६४, ५. गाणत ( नानात्व) प २०४५ ६६८ १५४४, ४५; २३।११०: २६०१४, १५ ज २४५२,५६,१५९, १६१४१३६, १४१.१६२,२६२५४८ से ५०: ७/३५,५८ गाणपरिणाम (ज्ञानपरिणाम ) प १३३२,९,१४,१६. १७,१६ जाणा (नाना) व २२४६ १५१६,११,२२,२१:२१, २२,२७,५६,६०,६१,७८,७६३३१२१: ज १०३७३।१२.३०,५६,१०१.१४५, २२२: ४१३,५,७,१२,२५ से २७,४९,६२,११४; ५१६.३८.६७३११७८ णाणारिय (ज्ञानायं ) प ११६२,६६ गणावरण (ज्ञानावरण) प २८००६,११ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णाणावरणिज्ज-णास णाणावरणिज्ज (ज्ञानावरणीय) प २२२२६,२७, २६८,२७२,२७४,२७७ : ५११८,२८,४६,५७; २३३१,३,६,७,६ से १३,२४,२५,६०,१३४, ७।११४,२१३,२१४ चं ११४ सू १०।१२४; १३६,१५४,१५५,१६०,१६४,१६७,१७६, १२।२६; १९३२,६,६,१२,१६, २२॥३,२८,३६ १७८,१८६,१६१,१६४ से १६६,२०२,२४।१ से ५,८,१५:२५।१,२,२६।१ से ४,७,१२, णामक (नामक) ज ३।२६,३६,४७,१३३,१३५ २७।१ से ३ णामग (नामक) ज ४।२०० जाणाविध (नानाविध) ज २१७:३।१८६ से १६२ पास गज णाणाविह (नानाविध) प ११४७११,२।४१ २२६,४१२२,३४,५४,६४,१०२,१०७,११३, ज १११३,२१,२६,३३,३७,४६,२।१२,५७, १५७/२,१७७.२६०७/११४,११७.१२० १२२,१२७,१४७,१५०,१५६,१६४३।७, सू १०१८६,८८,१२४;२०१२ १०६,१८४,१६२,४१६३,५।३२ णामधेय (नामधेय) ज ५२१ गाणि (ज्ञानिन्) प १८१७६; २३।२००; २८.१३५ णामय (नामक) ज १२४६२११७४११०६,१६३, २०४,२१०,२११ णाणोव उत्त (ज्ञानोपयुक्त) प ३६।६३,६४ णामसच्च (नामसत्य) प १११३३ णात (ज्ञात) ११६५ णामसूरय (दे०) सु २०१२ णाम (नाम) ज २०१५ णामाहयक (नामाहतक) ज ३१२६,३६,४७,१३३ णाभि (नाभि) ज २।५६,६२,६३, ४१२६०११:५११३ णायग (ज्ञायक) ज ५५५,४६ णाभिणाल (नाभिनाल) ज ५११३ णायय (ज्ञातक) ज २६ णाम (नामन्) ११०१०१।१०,२१४८,५० से ५२ णायव (ज्ञातव्य) प १३१०११३,६,७,६,११ ५४ से ५७,५६,६०,६२ से ६४,६४।१७,११३, १८।१।२३५।११ १११३३११, २२१२८:२३।१,१२,३८,२४।१५ णारग (नारक) प १२६,२४।१०,११:२६।८६ २६.११:२७।५३६।२,६२ ज ११२,३,५,१६, णाराय (नाराच) प २३१४५,४६ ज ३१३,३१ १८ से २०,२३,३५,४१,४५,४६,४८,५१,०८, पारिकता (नारीकान्ता) ज ४।२६२,६१२१ १३,५१,५४,६० से ६३,१२१,१२६,१३०, णारी (नारी) ज ३।१८६,२०४ १४१ से १४५,१४६,१५४,१६०,१६३; ३११, णारीकंता (नारीकान्ता) ज ४१२१६६ २,२६,३०,३५,३६,४७.५६,६७,१०३,१०६, णारीकूड (नारीकूट) ज ४२६३।१ १११,११५:१३३,१४५,१६१,१६७।३,२२५, णाल (नाल) ज ४७ ४११,३,२५,३१,३४,४०,४१,४५,४८,४६,५१, णालबद्ध (नालबद्ध) प १४८१४० ५२,५५,५१,६२,६४,६७,६८,७५,७६,८१,८४, णालिएरीवण (नालिकेरीवन) ज राक्ष ८६,८८,६२,६८,१०३,१०६,१०८,११०,१४१, णालिया (नालिका) ज २१६ १४३,१५६ से १६५,१६७ से १६६,१७२ से णालिया (नालिका, नाडीका) ५ १२४०।१ १७८,१८० से १८२,१८४,१८५,१८७,१८८ णाबा (नौ) प १६:४५ ज ३१८०,८१,१५१, १६०,१६१,१६३,१६४,१६६,१६७,१६० से ७१३३।१ सू १०१३३ २०३,२०५ से २०६,२१०११,२१२,२१३, गावागति (नौगति) प १६।३८,४५ २१४,२२६,२३४,२३७,२३६ से २४२.२४५, पावासंठिय (नीलपित) १०३३ २४६,२५१,२५२,२६१,२६२,२६५,२६६, मास (ना) णासेंति ज ३१६५ १५६ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णासा-णिज्जुत्त ६२५ णासा (नासा) प १३१ ज २।१५.१३३ णिगोद (निगोद) प ३१६२,८६,१८१३८ णिइय (नित्य) ज ७२१० णिगोय (निगोद) प १८४४५,५३ ज २।१३३ णिउण (निपुण) ज २।१५:३१६,२४,८७,१३८, णिगंथी (निर्ग्रन्थी) ज २०७२ २२२,५१५,२१,२८ र २०१७ णिग्गय (निर्गत) ज ११४; ३१६,१७,२१,३१,३४, णिओग (नियोग) ज २११३३,५१४३ १७७,२२२ णिओय (निगोद) प ३१६१.६३ णिग्गुंडी (निर्गुण्डी) प १३७।३ इणिद (निन्द् ) णिदेहि उ ३।११५ णिग्गुण (निर्गुण) ज २११३५ णिब (निम्ब) ११॥३५१:१७।१३० णिग्याय (निर्धात) प १।२६ णिबछल्ली (निम्बछल्ली) प १७.१३० णिग्घायण (निर्घातन) ज २१७० णिबफाणिय (निम्बफाणित) १ १७।१३० पिग्घोस (निर्घोष) ज ३१८८,१८०,१८३,३५, णिबसार (निम्बसार) प १७११३० २६,४६,४७,५६,६७ उ १।१२१,१२२ १२५, णिकुरंब (निकुरम्ब) ज २०१० १२६,१३३,१३४,१३८,३।१११४१८% णिक्कंकड (निष्ककट) ज १८,२३,३१ ५।१६ निक्कंकडछाया (निकट छाया) प २।३१४१ णिचिय (निचित) ज ३।३; ५१५७११७८ णिक्खमंत (निष्कामत ) म १९२२११४ णिच्च (नित्य) प २१२० से २७ ज ११११,२४, णिक्खमण (निष्क्रमण) ज ४१२७७ मू १३११७ । ४७, २।११,६७,१३३, ३।२२६,४।२२,५४, णिक्खममाण (निष्कामत्) ज ३।२०३;७।१०,१६, ६१,६४,१०२,१६६,१६७,१७७,२०३,२१०, २० से २२,२६,२७,६६,७५,८१ च ४१२ २६४,२७३,५।२६;७।२१०,२१३ सू १३३६,१२ सू १६।२२।१७ मिक्खित्त (निक्षिप्त) ज ३१२०,३३,५४,६३,७१, णिच्चमंडिया (नित्यमण्डिता) ज ४११५७११ ८४,१३७,१४३,१६७,१८२ णिच्चालोय नित्यालोक) सू २०१८ ‘णिक्खिय (नि-क्षिप्) णिविखवइ ज ३१६२; णिच्चुजोत (नित्योद्योत) सू २०१८ ५।६७ णिच्चुज्जोय (नित्योद्योत) सू २०६८।६ णिक्कुड (दे०, निष्कुट) प २६१० ज ३७६,७७, णिच्छिण्ण (निश्छिन्न) प १६४।२२३६।१४।१ १०६,१२८.१५१,१७० , ५२२५ णिच्छीर (निःक्षीर) प ११४८१३६ इणिगच्छ (नि : गम् ) णिगच्छइ ज २१६५ : ३३१४, णिच्छुभ (नि-क्षिप) णिच्छुभइ प ३६।७३,७४ १७२.२०४,२२६ णिगच्छति ज ५१६३ णिच्छुमति प ३६।५६६१,६६,७०,७६ णिगच्छित्ता (निर्गत्य) ज २१६५ णिच्छद (निक्षिप्त) प ३६।६२,७७ णिगम (निगम) ज २१२२ उ ३३१०१ णिजुत्त (नियुक्त) प २४१ णिगर (निकर) ज ३।१२,३५,८८,६५,१५६; णिज्जरा (निर्जरा) प १५१४३ से ४७,४६; ३६७६ ४११२५,५१५८ से ८१ णिगरिय (निकरित निगडित) ज ३।२४।३, णिज्जाणभूमि (निर्याणभूमि) ज ५१४६ ३७।१,४५।१.१३१३ णिज्जाणमग (निर्याणमार्ग) ज ५१४६ vणिगिण्ह (नि । ग्रह ) णिगिरहइ) ज ३२८ णिज्जिय (निजित) ज ३।१७५,२२१ णिगिरिहत्ता (निगृह्य) ज ३।२८ णिज्जुत्त (निर्युक्त) ज ३।१५८ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णिज्झरबहुल-गिरह णिज्झरबहुल (निर्भरबहुल) ज ११८ इणिमज्जाव (नि-|- मज्जय) णिमज्जावेइ ज ३।६८ णिट्ठियट्ठ (निष्टितार्थ) प ३६॥६३,६४ णिमुग्गजला (निमग्नजला) ज ३।६७ से १०१, णिडाल (ललाट) ज २१५,३।३६,३६,४७,१३३ णिण्याग (निन्नग) प १८९ णिम्मम (निर्मम) ज १७०,५५,४६,५८ णिण्णथल (निम्नस्थल) ज ७।११२१५ णिम्मल (निर्मल)१२।३०,३१ ज १८,२३,३१; णिण्णथलय (निम्नस्थलक) मु १०।१२६५ २।१५,४११२५,५१६२,७।१७८ णिण्णुपणय (निम्नोन्नत) म ११३१ णिम्माणणाम (निर्माणनामन्) प २३४३८,१२८ णिण्हझ्या (निह्नविका) प ११८ णिम्माय (निर्मात) ज ३१ णितंब (नितम्ब) ज ११५१, ३१६१,१३७,४।१७४, णिम्मिय (निर्मित) ज ३।३५ १७११७६.१८२,१८८८ णिम्मेर (निर्मर्याद) ज २११३५ णित्थारण (निस्तारण) ज ३११०६ इणियंस (नि:- वस) पियंसति ज २११०० णिदा (दे०) १३५३१११,३५११६ णियंसेइ ज २०६६ णिदाया (दे०) प ३५११७,१८,२०,२२,२३ णियंसण (निवसन) १२१४१ णिदाह (निदाघ)मु १०।१२४१२ ििणयंसाव (नि-बासय) णियंसाति ज ३४२११ निद्दा (निद्रा) प २३।१४.२६,२७,१३४ १५५, णियंसावेता (निवास्य) ज ३।२११ १७७,१८० णियंसेत्ता (न्युष्य) ज 168 णिद्दाणिद्दा (निद्रानिद्रा) प २३।१४ णियग (निजक) ज २९४,३१३,१८७,१८८ णिद्ध (स्निग्ध) प ११६२१३१,५।१५४,२११; सू२०१७ ११:५६,६०; १३।२२।१,२,२८।२६,३२,६६ इणियच्छ (निर्+दा) णियच्छति प २३१३ ज २११५,३१३,२४,३५, ७१७८ णियत (नियत) ज ३८१ णियतिया (नयतिकी) प १७।११,२२,२३ णिद्धत (निर्मात) परा३१ णिद्धया (स्निग्धता) प १३।२२११ णियत्व (दे०) ज ३।१२५,१२६ णिद्धाइत्ता (निर्धाव्य) ज २।१३४ णियम (नियम) प १२०,२३,२६,२६, ६.११४, इणिद्धाव (निर --- धाव) णिद्धाइस्मति ज ११३४, ११६,१०।२:१११५३,५७,५६,६६,६६१, १४६ २१४९६,६६,१००,१०३, २२।४८,५१,६८, णिप्पंक (निष्पंक) ज ११८,२३ ६६,७१ से ७४,२३।१०,१२:२४।१४:२५१२, णियच्चकखाणपोसहोववास ४;२७।६।२८११६,३८,६५,६८ से १०१,३६।५६ (निष्प्रत्याख्यानपौषधोपवास) ज २११३५ ज ७.५०,५३,१६६ सू १८।३ इगिफज्ज (निर पद) णिप्फज्ज इज १६ णियमा (नियमा) ज ७३२।१ सू २०१६ शिष्फत्ति (निष्पत्ति) ज ३११६७१६ णियय (नियत) ज ११११,४७,३१२२६; ४१२२, णिकाइय (निष्पादित) ज ३११२० ५४,६४,१०२,१५९; २२२,२६ णिष्फत्यय (निष्पादक) ज ३।११६ णियय (निजक) सू१६२२।१४ णियफावग (निप्पावक) ज २।३७ णियया (नियता) ज ४३१५७।१ णिभय (निर्भय) ज ३११२६:५।५८ णियर (निकर) ज ११५ णिभिज्जमाण (निभिद्यमान) ज ४।१०७ णिरह (निऋति) ज ७।१२०,१३०,१८६४ णिभ (निभ) ज ३१३०,१७८ सू१०८३ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णि रइदेवता-णिव्वाणमा १२७ णिरइदेवता (निऋतिदेवता) म १०८३ णिल्लेव (निर्लेप) ज २१६ णिरइयार (निरतिचार) प ११२६ णिवद्दय (निपतित) ज ३१२६,३६ णिरंतर (निरन्तर) प १०३२ से ३४,४०,१११४१५ णिवढेता (निवृधा) ज ७।३० ७१:२०१२५,२१,५९; २२११३,१५,१७,१६ से लिवड्ढेमाण (निवर्धमान) ज ७४१३,१६,२२,७२, २१३६८, ज २०१५ णिरय (निन्य) प २१,१०, २।३६,८१.१११, णिवण (निपण्ण) ज ७.१७८ १४६,१०१ णिवतित (निपतित) ज २११४२ से १४५ णिरय (निरन) ज २६१३१ णिवत्त (निवृत्त) 3 ३.१२६ णिरयगतिपरिणाम (निन्यगतिपरिणाम) प १३१३ इणिवय (नि-- पत्) णिवयंति ज ५१६४ णिरयगतिय (नित्यगतिक ) १३१४ णिवह (निवह) ज ३.१०६ णिरयगामि (निरयगामिन ) १२२,५०,२१५८, णिवात (निपात) प ३६८१ ज २६१३१ १२३,१२८,१४८,१५१,१५७,४।१०१ णिवाय (निपात) ज ३।३५,१०६ णिरयावास (निरयावास) प १२० से २४ णि विट्ठ (निविष्ट) प २०१३६ जिरवसेस (निरवदोप) प ६६२:१०।२८:१७१२८%; इणवुड्ढि (निवृद्धि) सू १३।१७ २१३९४,३४।२४:३६॥२८,४६,६५,६६,७२। णिवुड्ढेत्ता (निवयं ) सू ६१ णिरहंकार (निरहुकार) ३२७० णिवुड्ढेमाण (निवर्धमान) सु ६०२ णिराणंद (निरानन्द) ज २।६०१०३,१०६,१०८ णिवेइत्ता (निवेद्य) ज ३८१ हिरातंक (निरातङ्क) ज २।१६ ििणवेद (नि+वेदय) णिवेएइ ज ३१८१५०५८ णिरालय (निरालय) ज २०६८ णिवेदम ज ३१५ णिवेदेमो ज ३४९० णिरालोय (निरालोक) ज २।१३१ णिवेस (निवेश) प १७४ ज ३।२८,३१,४१,४६, णिरावरण (निरावरण) ज २१७१,८५ ५२,११५,१३५,१४१,१५१,१६४,१६७२,१८० इणिरंभ ( निरुध)-णिरु भइ प ३६१६२ इणिवेस (नि ! वेगय) णिवेरोइ ज ५।२१,५८ णिरु भति ५ ३६।१२। णिवेसेत्ता (निवेश्य ) ज ५१२१ णिरुंभित्ता (निरुथ्य) प ३६४१२ णिध्यण (निवण) ज ११५,३११७७,७१७८ णिरुद्ध (निरुद्ध) प २३।१६३ णिवत्त (निर्। वृत्) णि रोइ म २ णिवत्तेति प २३.१६१ गू ? णिरुवकिट्ठ (निरपश्लिष्ट) ज २।४.? थिव्वत (निवृत्त) ज ३।३०,४३,५१.६०,६८,७६, णिरुच्छाह (निम्त्याह)ल।१६३ हिरवलेव (निशा नेप) ३ १३६,१५१,१७०,१७८,२१६ णिरुबय (निरुपात) ज २१५ णिध्वत्तपया (नियंर्तन) १३४१२,३ णि रुविय नितिन) १९१६ णिध्वत्तणा (निवंतना) प १५१५८.१,११६१ जिल्हा (नीरुहा) प ११४८।३ णिव्वत्तिय (निर्वतित) प २३११३ से २३ गिरेयण (निरेजन) प ३६॥६३,६४ णि व्वय (निर्वत) ज २१३५ णिरोगय (नीरोगक) ज २।१२ णिव्वाघाय (निव्याघात) प १६६५५; २११९५; णिरोह (निरोध) ५३६९२ २८।३१ ज १७१,८५ मिल्लज्ज (निर्लज्ज) ज २०३३ णिव्वाण मग (निर्वाणमार्ग) ज १७१ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ Vव्वाण ( निर्वापय् ) णिव्वाविस्सति ज २।१४१ णिव्वाहि ज ५।२८ णिव्दावेंति ज २।११२ णिव्वादेह ज २११११ freasee (निर्वृतिकर ) ज २०६४ ३ ३ ३ ४ ११४६ frogsकरण (निर्वृतिकरण ) प १३१२ freafter ( निर्वृतिकर) ज ४।१०७ निसंत ( निशान्त) ज ५१२६ सिमा ( निसर्ग ) ११।१०११२ पिसठ (निःसृष्ट) ज ३२५, ३८,४६,४७,१३२ सिट ( निपध ) प १६।३० ज ४।१६ णिसढकूड ( नियधकूट) ज ४।६६ सिण (निषण्ण ) ज २१८८३१६,८१,२२२ णिसम्म ( निशम्य ) ज ३१६ जिसह (निषेध) ज ४१८१, ८६,८७,६७, ६८, २०१ से २०३, २०६, २०७,२०६,२३८,२६२ पिसहकूड (निषधकूट) ज ४।२३६ सिहद्दह (निषधद्रह ) ज ४३ २०७ / सिर ( नि + सृज् ) णिसिरइ ज ३।२४,२६, ३७,३६,४५,४७,१३१,१३३ णिसिरंति ३११६२ ४१५, ७; ५५,७ णिसिरति ११७१,७२,८४,८५ णिसिरण ( निसृजन ) प १११७१ णिसिरमाण ( निसृजत् ) प ११।७१ जिसीइता (निषद्य ) ज ३०४६ णिसीय ( नि + षद्) णिसीएज्ज प ३६।६१ णिसीयइ ज ३८, ४१, ४६, ५८, ६६,७४, १४७, २१५,२२२ णिसीयंति ज १।१३,३०,३३, २२७४१२५४२ णिसीयति ज ३।१८८ / निसीयाव ( नि + पादय् ) निसीयावेंति ज ५।१४,१७ णिसोयवेत्ता (निषाद्य) ज५।१४ णिसेग (निषेक) प २३/६० से ६४,६६,६८,६६, ७३,७५ से ७७, ८१, ८३, ८५ से ६०,६२,६५, से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ से ११८, १२७,१३०,१३१,१३३,१७६, १७७, १८२,१८३,१८७ णिस्संग (निःसङ्ग ) ज ५५८ freerees ( निसर्गरुचि) प १११०११३ पिस्सा ( निश्रा ) प ११२०,२३,२६,२६,४८ मिस्साय ( निश्राय) ज ३११०६ णिस्सील ( निःशील ) ज २११३५ जिस्सेस ( निःश्रेयस् ) ज २१७१ free (निहृत्य ) ज ३।६ √ णिण ( नि + हन् ) हिणंति ज ५।१३ हिणित्ता ( निहत्य ) ज ५।१३ हियरय ( निहत रजस् ) ज ५१७ हि (निधि) प १५१५५।२ ज ३।१६७|१३,१४, निवाण णीलय १६८ मिहिय ( निहित ) ज ३।११६,२२१ णि हिरयण ( निधिरत्न) ज ३ १६७, १७०,७१२०१, २०२ हिय ( स्निहूक ) प ११४८४१ √णी (नी) इ ज ७ १५६,१५७, १६१,१६५, १६६; ३।१६३ णेति ज ७ १५६ सू १०१६३ ति सु १०/६३ / णी ( गम् ) णीति ज ३।१०६ णीइ (नीति) ज ३।१६७ गोणिया (नीनिका) प ११५१ णीम ( नीप ) प १।३६।३ णीय (नीत ) प १५ १०२ णीयतर ( नीचतर ) ज ४।५४ णीयागोय ( नीचगोत्र ) प २३/२२,५७,५८,१३२ गोर (नीरजस् ) प २ ३०,३१,६३,३६/६३,६४ ज १११८,२३,३१; २।६ ; ५५८ पीरागदोस (नीरागदोष) ज ५२५८ पील (नील ) प १६ से ८ २१३१,२२४०१११; ५।५, ७ ; १३१६; १७ ६४; २३११०४; २८/३२, ६६ ज ३१३१; ४।२६४ सू २०१२, ८, २०१८/३ ] गोलकणवीर (नीलकरवीरक) प १७।१२४ पोलकूड (नीलकूट) ज ४।२६३।१ बंधुजीवय (नीलबन्धुजीवक ) प १७११२४ नील (नीलक) प १७ १२६ सू २०१२ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णीललेसणे इय ६२६ गीललेस (नील ) प १७८३,६२,६४,६५, णेग (नंक) प २८१४०,४३,६६ ज ३१३,३२ १००,१०३.१०८,१:८; १९७० णेगम (नगम) प १६।४६ णीलले ठाण (नील लेश्यास्थान) प १७१४६ दव (नेतव्य) सू६१८।१६।३१०।२३,२५; णीललेत (नीललेश्या) १७।१२१.१२४; १५१६, १८:११९४१,३५,२०१८ २८११२३ णेतु (नेतृ) सू १०॥६३ णीललेस्स (नीम इत्या ) प ३९६,१३११४:१७।३१, णेत्त (नेत्र) प १५१७७,८२ .1328,६५६४,६ ६८,७१ से ७४, तविण्णाणावरण (नेत्रविज्ञानावरण) १२३११३ 3६८१ मे ८५,८७,१००,१०३,१०६ से १११, णेत्तावरण (नेत्रावरण) प २३११३ णद्दर (दे० नेहर) प १८९ णीललेस्सठाण (नीललेश्यास्थान) प१७११४६ णेम (नेम) ज १।११ णीललेस्सा (नील नेत्या) T१६६४६; १७.३६, णेमि (नेमि) ज ३।३०,६५,१५६,१७८ ११५ से १-१२४,१२६,१३१,१३६,१४४, णेमिपास (नेमिपाव) ज ३१२२ १४५,१४८ से १५२ जेम्म (नेम) ४१२६ णीदले जाकर जान नीलामापरिणाम) १३१६ णेय (जेय) प २११५३ ज ३७७,१०६,१२६, होती . ४९८,१०३, ७१२७११,१६७१ च ५२ १२ १०८:१०,१८० १.१ से १४३,१६२,१६५, यतिया (नवतिकी) १७१२५ १६७,१७३ से १७६,७८,१८० से १८२, णयब्द (नेता) ४।५५,५११६१८।३१११८१; १८४,१८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३, १५.१०२,१०८,१४३,१७।८८,२११५२; १९४,१६६,१६७,१६३,२००,२२५२१,२२७, २२१७६; ३६।२२,२६,३२,४६ ज १११२ से २६२ से २६५ १४,२५,४६:२।४,६,४६,५६,६४,१३६,१५६; णोलसुत्तय (नीलसूत्रक) प १७११६ ३॥६४,१५०,१५१,२१७,४११०,४७,५३,५६, णोली (नीली) ३।२४ ६०,६४,७६,८४,६०,६२,६६,१०६,१४१, पीलुप्पल (नीलोत्पल), १७१२४ १४७,१६०,१६३ से १६५,१७३,१७४,१६७, णीसंद (निप्यन्द) : ११३ चं १११ २०७,२१०,२३८,२४३,२६२.२६८,२७४, णीसल्ल (नि:शप) ५८ २७७, ५१५३ : ६१५७१३५,५०,५८१३०, पीसस (निर: वीरागंलिप १७॥२,२५, १३१ १३५.१५५,१७६ सू ७१,६।२,१०१२२ यु (गत) सू १६ णीसास (नि: ::२११६ गरइअत्त (नैरकत्व) प १५।१४ मोहम्ममाणा ( निज ६६३१ त्य (नरक) प २।२०,२१, ३११६,२२,४।३; गीहारिन (मिला). १२ १०३२ से ३८,४० से ४२,४४ से ५२; णीह (स्निह) प? ११॥४४,८०,११२,११ से १३,१५,३६; णणं (जन) 2212:१:४९५ से १०४, १३११४,१६ रो १६; १४१२,३,५,७,६,११ से ११५.१२.१: ० ४८,१४६,१५१,१५.४; १५,१८,१५११७,१८,३५,४६,४८,५६,६२, ३६१८१ ६३,६५,६६,७१,७५,७८,८२,८३,६१,६४ से उर (दे०) १४६१ ६,१००,१०२,१०७.१०८,११८ से १२०० Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रइयअसण्णिआउय-णोराहमणोवादर १२४,१३४,१३५,१३८,१४०,१४१,१६३,६, सप्प (नसर्प) ३।१६७१२,१७८ ११,१४,२०,२५,२६,३१,३२,१७११ से ६, णो (नो) प १११६८ ज २१६ सु ८१ ८ से १४,१७,१८,२३,२५,२८,२६,३२,३७, ___णोअपरित्त (नाअपरीत) १८।११२ ४०,४२,४६,५७,८५,६० से ६२,१००,१०६ णोअसंजय (नोअसंयत) प १८१६२ से १११,१८।२,५,८,६,११,१६।१,२०११११; णोअसण्णि (नोअसंज्ञिन् ) प ३१५,६ २०११ से ३,६,७,९,१०,१४,१५,१७ से २०, णोइंदिय (नोइन्द्रि) प १५७० २३ से २५,२७,३२,३४,३५,३८ से ४२,४६, णोसायवेयणिज्ज (नोकषायवेदनी :) २३:१७, ५२,२११५१,५२,५८,५६,६५,६६,७७,८१, ८७; २२।११.१३,१५,१७,१६ से २१,२३, णोपज्जत्तयणोअपज्जत्तय २४,२६.२७,३०,३१,३३,३५,३७ से ४५,४७, (नोपर्याप्तकनोअपर्याप्तक) प १८१११५ ५३,५७.६६,७३,७५,७६,७६,८२,८७,८८, गोपरित्त (नोपरीत) प१८११२ १०,१८,१००,२३१२,४,६,७,१०,१८,३७,५४, णोभवसिद्धियणोप्रभवसिद्धिय ७८.८०.१४६,१६४ से १६६,१६८,२४।१,३, (नोभवसिद्धिानोअभवसिद्धिक) ५.८,१४,१५:२५॥१,२,४,२६११,३,२७११,६; प१८।१२४, २८।११३,११४ २८।१,३ से ५,२१ से २६,३०३८,६८,१०१, गोभवोवातगति (नामोपपातमति) प १६१३७ १०२,१०४,१०६,११७,११६.१३३,१४३ से गोभवोववायगति (नोभवोपपातगति) प १६॥२४, १४५; २६।५ से ७,१५,१८,१६,२२; ३०५ से ७,१४,१७,२४,३११२,४,६६१,३२१२, जोमालिया (नवमालिका) प ११३८१ ज २१०% ३३।१ से ७,१६,२७,३०,३१,३४,३५,३७, ३४११,३,५,६,१०,१३,१४,३५१२,५,७,६,११, गोमालियाधुड (नवमालिकापुट) ज ४११०३ १३,१५,१७,१८,२१:३६।४,८,९,११ से १३, गोसंजतण असंजतकोसंजयासंजय १५,१८,२० से २२,२४,३० से ३४,३६,४३ (नोगतनोअसं तनोरायतासंबत) से ४७,४६,५४,६५,६८,६६,७२ ज २१७१ प३२.१,२ परइयअपिणआउय (नैरयिकासंज्ञयायुष) गोसंजतणोअसंजयणोसंजतासंजय प २०१६२,६४ (नोस तनोअसंतनोस तासंत) ५ ३२१४ रइयत्त (नर कित्य) प १५०१०३,१०४,१०६, जोसंजय (नोगत) प १८१६२ १११.११५,११८,१२२,१२६,१२६,१४१, गोसंजयण असंजयणोसंजयासंजय ३६।१८,१६,२१,२३,२५,२६.३० रो ३४,४६, (नोसं तनोअसंयतनीसंवतासंत) रइयाउय (नरयिका राष्) प २३.१८,३७,७८, प२८॥१३१,३२॥३,६ ८०,१४६.१६६.१७० णोसंजयासंजय (नोसंतासंयत) प १८६२ रतिय (नरयिक) प १०३६ णोरुपिणणोअसलि (जोसजिन्नाअसंजिन) वच्छ (नेपथ्य) प २१४१ प १८।१२१,२८.१२०,१२१,१३४,१३६ णवत्थ (नेपथ्य) ज ५१४३,७१०१ ३१११ से ३,५,६ णेवाण (निर्वाण) पश६४१२० णोसुहमणोवादर (नोनुक्ष्मनोवादर) प १८॥११८ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ण्हाण-तटु Vव्हाण (प्णा) रहाणे इ उ १९७ ण्हाणेति ज २११०० पहाणति २०६६ ण्हाणपीढ (स्नानपीठ) ज ३१६,२२२ व्हाणमंडव (स्थानमण्डप) ३१९,२२२ व्हाणमल्लियापुड (स्नानलिकापुट) ज ४।१०७ व्हाणेता (स्नात्वा) जERE हा (स्नात) सु २०१७ हाय (स्नात) ज ३१५८,६६,७४,७७,८२,८५, १२५,१२६,१४३,१५३ ३ १।१६,४२,७७, १२१,१२२,१२६ ; ३।२६,११०,१४१,४।१२, १८,५१७ व्हारु (स्ना) ज २११३६, ३।२४ पहाव (स्नापय ,स्नपय ) पहावेद ३३।११४ व्हावेता (स्ना , स्मापयिता) ज २११०० त (तत्) प ११ सू११ १११ तइय (तती?) १३१२१,81८०।११५३१४३ ज।१३५।१।४।५६,९७,१४२॥३,७१०८, १५८ च ४१३ सू १८।३ उ १२२७३६६८ ४१ तइया (तृतीया) ज ७।१२५ १०११४८,१५० तइविह (ततिविध) प १५५६ उखंड (पुखण्ड) प ११७४ तउय (पुनः) प १२०।१ तउस (अपुस) प ११४८१४८ ॥ ३१११६ खीरा तउत्तमिजिया (चसमितिका) प ११५० उसी (पुत्री) ११.१ खीरा की लता तए (ततस् ) - १४, २।८।३।११:५३१३ तओ (तता) ३४१ से ३,३६१७७,६२ 3३५१.५३,५४,८६,१०७,११०,१३६; ४१२१ तंजहा (तदया १२ तंडव (ताहर) ५१५७ तंडुल (ताल) १।१२,८८,२१५८ उ ३१५१ नंत (तान्त) उ १५. तंतवा (तान्त्रवक) प ११५१ तंती (तन्त्री) प २१३०,३१,४१,४६ ज ११४५; २।६५:३१८२,१८५ से १८७,२०४,२०६, २१८,५१,१६७।५५,५८,१८४ सू१८।२३; १६।२३,२६ तंतु (तन्तु) ज ३।१०६ तंतुवाय (तन्तुवाय) प ११६७ तंदुल (तण्डुल) उ ३३५१ तंदुलमच्छ (तण्डुल मत्स्य) प १३५६ तंदुलेज्जग (तन्दुलीय) प ११४४।१ वायविडंग, ___चोलाई का साग तंब (ताम्रप १२०।१२।३१:१७११२५ ज२११५:३११३८।१ तंबकरोडय (ताम्र करोडय') प १७/१२५ तंबखंड (ताम्रखण्ड) प १११७४ तंबच्छिकरण (ताम्राक्षिक रण) प१७१३४ तंबछिवाडिया (ताम्र छिवाडिया') ११७६१२५ तंबिय (ताम्रिक) उ ३३५०,५५ तंस (त्र्यस्त्र) प ११४ से ६१०१५,१६ तक (तकत्) ज ३१६५,१५६ तक्करबहुल (तस्करबहुल) ज १११८ तक्कलि (तकिल) प १।४३११ चक्रमर्द वृक्ष, चकवड तगरमेला (तगरमेला)ज ३।११०३ तगरपुड (तगरपुट) ज ४११०७ तच्च (तृतीय) प ३११८३,२१६०,३३।१६:३६।९६२ ज ७।१६२ सू ११४,१६,१७,२१ उ ११३६, ४०,११५,११६, ३१,२,२३,५४,६०,६१,७७, ७८,८७,१८,१०८ तच्चा (तृतीया) सू १२०२१ तच्छण (तक्षण) ज २१७० तट्ट (दे०, स्थल) परा८ त? (स्त) ज ७/१२२।२ सू १०१८४१२ तदेवया (त्वष्ट्रदेवता) सू १०८३ तठ्ठ (त्वष्ट्र) ज ७११३०,१८६६४ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६.३२ नड-तयणंतर तड (तट) ज ३३१०६ उ ५१ तडाग (तटाक) प २०१३ तडित (तडित् ) ज ३।२४ तण (नण) प ११३३११,११४२,४४११,१।४।४६; ३८६१ ज ११३,२१,२६,२६,३३,४६:२१७, २६.५७,१२२,१२७,१४४ से १४७,१५०, १५६,१६४,३३९८,१६२,४१६३,८२५१५ तणमूल (तृणमूल) प ११४८१८ तणय (तृणक) ज २।३६ तणवणस्सइकाइय (तण वनस्पतिकायिक) ज २२१३१ तविटिय (तुणवन्तक) प ११५० तणविहूण (तणविहीन) ज १।१४ तणसोल्लिया (दे०मल्लिका) ज ३१३५ हणाहार (तृणाहार) प ११५० तणु (तनु) प २१६४ ज ११५१,२।१५,१३३; ४१४५,१५६,७११७८ तणुक (तनुक) ज ३।१०६ तणुतणु (तनुतनु) प २०६४ तणुय (तनुक) ज ११८,३५,५१,२।१५; ३११३८।१४:४५,११०,११४,१५६,२१३, २४२ तणुयतर (तनुकतर) प ११४८१३४ से ३७ तनुयरी (तनुतरी) प २२६४ तणुवाय (तनुवात) प ११२६; २०१० तणुवायवलय (तनुवातवलय) प २०१० तण्हा (तृष्णा) प २।६४११६ ज ३११२१।१ तत (तत) ज ५१५७ ततगति (ततगति) प १६१७,२२ तति (तति) प १५।१३४ ततिय (ततीय) प १०।१४।१ से ३,१११४२,८८, १२॥३२,३८,३६।८५,८७ सू १०१६५,६६,७३, ७७,१२।१६:१३३१० उ १२६३ ततिविह (ततिविध) प १६:२० तते (ततस) ज ११६ ततो (ततस्) प ३४।१,३,३६१८५ ज ३।३५ तत्त (तप्त) प ११४८१५६,२१३१,४८ ज ३१११७ तत्तकवेल्लुयभूय (तप्त कावेल्लुय'भूत) ज २११३२, १४१ ततजला (तप्तजला) ज ४।२०२ तत्ततव (तप्ततपस्) ज ११५ तत्तसमजोइभूय (तप्तसमज्योतिर्भत) ज २११३२, १४१ तत्तिय (तावत्) ५ १५३१०३ ज ७२०० सू १०६५,६६,७३,७७,१२२१६:१३।१० तत्तो (ततस् ) प १३१७,११४८११२१६४१४; २११४७।१,२,३४११,२ तत्थ (तत्र) प ११२० ज १२१३ सू१।१४ उ ११० तत्थ (त्रस्त) प २२० से २७ ज ३।१११.१२५ उ १८६ तत्थगय (तत्रगत) ज ५।२१ तदणुरूव (तदनुरूप) ज २।१४१ से १४५ तदुभय (तदुभय) प १४।३,२२१४ से ६; २३:१३ से २३ तप्प (तप्र) प ३३११६ तप्पभिइ (तत्प्रभृति) ज २१६७ उ ३।११८ तप्पाउग्य (तत्प्रायोग्य) प २३१२००,२०१ तम (तमस) ज २१३१ तमतमप्पभा (तमस्तमःप्रभा) प ११५३,२१,२०, १०११ तमतमा (तमस्तमा) प २।२७,२।२७१३ तमप्पभा (तमःप्रभा) प ११५३; २१,२०,२६ ३।१६,४१६ से २१:१०।१ तमस (तमम् ) प २१२० से २७ तमा (तमा) प ३.१५,१६,१८३, ६.१५,७८,६१, २०१४२२११६७,३३१८,१६ तमाल (तमाल) प ११४३।१ तय (त्वच) उ ३१५०,५१,५३ तयणंतर (तदनन्तर) ज ४।२१३ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तयणुरूव-तह पगार तवणुरूव (तदनुरूप) ५११७४ तव (तम्) तवइंति सू १६१ तवामु ज ७।१ तया (त्वच् ) प १।३५,३६,११४८।१३,२३,६३; सू १६१ तवइस्सति सू १६१ तवंति ११४८ ज २२६७,१४५,१४६ ज १५७ तवयंति ज ७५४ सू ४।१० तया (तदा) सू १११४१०१२६ उ ३१६२ तविसु सू १६१ तविस्संति ज २११३१ तयाणंतर (तदनन्तर) सू १।१४,१६,२१,२४,२७, सु १०११३२ तवति ज ७१ यु ३१वेंसु म १६ तवेति सू ३१२ तयावरणिज्ज (तदावरणीय) ज ३१२२३ तवणिज्ज (तपनीय) प ११४८१५६२।३१,४८ तयाविस (त्वगविष) प ११७० ज ३१२४,३५,१०६,११७,४१४६,५३८,६७, तयाहार (त्वगाहार) उ ३१५० ७।१७८ तरंग (तरङ्ग) २३१५,१३३: ५।३२ तवणिज्जमय (तपनीयमय) ज ४७,१३,८६,२०६, तरच्छ (तरक्ष) प १४६६११०२१ ज २३६,१३६ २५१,२५२,५१३४ तरच्छी (तरक्षी) प ११२३ तवविसिठ्ठया (तपोविशिष्टता) प २३१२१ तरमल्लिहायण (तरोमल्लिहायन) ज ७१७८ तवविहीणया (तपोविहीनता) प २३३२२ तरण (तरुण) ज २१५, ३१३,२४,३०,१७८; तविय (तप्त) ज ३१३५,१०६७।११२१५ सू१०१२६।५ तरुणी (तरुणी) ज ३१८२,१८७,२१८ तवोकम्म (तपःकर्मन) उ२।१०,३।१४,५०, तल (तल) परा२० से २७,३०,३१,४१,४६ ४१२४:५।२८,३६,४३ ज ११४५,२१६५,३।७,८२,१७८,१८४,१८६, तबोवहाण (तपउपधान) उ ३.८३ १५७,२०४,२०६,२१८,४।३,२५,४६,६७,६२, तध्वरित (तद्व्यतिरिक्त) प २३।१६१,१६३ ८५,१२५,१४२,५।१,५,१६,६२;७।५५,५८, तव्यतिरित्त (नव्यतिरिक्त) प २३।१६२ १७४,१७८,१८४ सू१८१२३,१६०२३,२६ तसकाइय (त्रसकायिक) ५ ३१५० से ५२,५६,६०, तलऊडा (त्रपुटी) प ११३७१३ छोटी इलायची ७२ मे ७४,८३ से ८७,६५,१७१ से १७३; तलभंगय (तलभङ्गक) प २।३१ १८१२८,३०,३६,४७,५४ तलवर (तलवर) प १६।४१ ज २२५; ३१६,१०, तसकाय (सकाय) प १५।५३,५४ ७७,८६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०,२१६, तसणाम (वसनामन्) प २३।३८,११७ २१६,२२१,२२२ उ १६२,३१११,१०१; तसरेणु (त्रसरेणु) ज २१६ ५१० तसित (तृषित) प २।२३ तलाग (तडाग) १११७७ ज २।३१ तसिय (तृषित) ५ २०२० से २२,२४ से २७ तलाय (तडाग) प २१४,१६ से १६,२८ उ १८६ तलिण (तलिन) ज २११५ तह (तथा) प १११३ ज ३३११ चं ४।१ गू श८ तलिय (तलित) उ ११३४,४६,७४ उ ३७६ तल्लेस (तल्लेश्य) प १७।६२,१०२ से १०४ तह (तथ्य) उ १।२४,३११०३ तव (तपस्) प ११०१।१० ज ११५,२।७१,८३, तस्संठित (तत्संस्थित) ज ४१३ ३।३२११,११७,२२१:७११६६ उ ११२,३; तहत्ति (तथेति) ज ३१५३,१०० ३।२६,३१,६६,१३२,५२६,३२ तहप्पगार (तथाप्रकार) प ११२०,२३,२६,२६, Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३४ तहप्पगार-तालियंट ३५ से ३७,३६ से ५१,५६,६०,६३ से ६६, ७०,७१,७५,७६,७८,६६,६६१११२१ से २५ तहा (तथा) प ११३१३ ज ३३१०७ सू ८१ उ १७ तहारूव (तथारूप) उ१।१७:२।१०,१२,३३१४, १६१,१३६,४१,४३ तहाविह (तथाविध) प ११४८७,१० से ३७,४१, ४३ तहिं (तत्र) प २१६४१५ तहेव (तथव) प ११४८।२ ज ११५१ सू ११७ उ १७ ता (तावत्) मू १५१० ताओ (ततस्) ज १२२० उ २।१३,३।१८।। तागंधत्त (तदगन्धत्व) प १६।४६:१७१११५,११६, ११८,१४८,१४६ ताडिज्जमाण (ताड्यमान) मू ६।३ ताण (त्राण) ज ५।२१ ताफासत्त (ततस्पर्शत्व) प १६।४६,१७४११५, ११६,११८,१४८,१४६ तामरस (दे०) ११:४६ तामलित्ति (ताम्रलिप्ति) प ११६३६१ ताय (तात) उ १.४२ से ४४ तायत्तीसा (त्रयस्त्रिंशत) प २१३२,३३,३५,५०,५१ ज २१६० तार (तार) प ११:२५ तारंतर (तारान्तर) ज ७१६८०२ तारगग्ग (तारकाग्र) चं ५२ सू १९९२ तारग (तारक) सू १६।२२।११ तारग्ग (ताराग्र) ज ७१२७।१,१३११२,१६७।१ सू १०५५,१६२२१२,२६ तारया (तारका) प २।४८ ज ५१२१ सू१०१५५; १९४२२ तारसत्त (तद्रसत्व) प १६:४६;१७।११५,११६, ११८,१४८,१४६ तारा (तारा) प ११३३ ज ३१७६,११६,१८५, २०६७१३१,१७७१३,१८२ तू १०॥५५, ५६,५७,५६,६६,६२७१५११,१८१४,१८,१६, ३७, १६२२।१,१६२२,३१ तारागण (तारागण ३१६,१७,२१,३४,१७७, २२२,७११।१,१७० सू १८१४; १९३१,५१३, ८.३,१११४,१५१४,१६,२११५,८,१६२२।३२, १६:३१,३५,३८ तारापिण्ड (तारापिण्ड) १६२२११ तारारूव (तारारूप) ५२१४६ से ५१.६३ ज ४।२७, ७५५,५८,१६८,१७३,१७४, १७८।२,१७६ से १८२,१६७ सू १५१; १८.१ से ३,१८ से २०,३७,१६।२३,२६; २०१७ उ १२:५१४१ ताराविमाण (तासनान) प ४१९०१ से २०६, ६.८५ जे ७.१६१,१६६१८६१,८,१३, १७,३५,३६ तारिस (तादृश) १०।१६४, २०१७ तारिसग (तादृशक) सू२०१७ उ १३६, १८,२०% ५।१३,१५,३१ तारूवत्स (तद्रूपत्व) प १६।४६; १७११५,११६॥ ११८ से १२८,१४८ स १५२,१५४,१५५ ताल (ताल) प १४७११, २१३०,३१,४१,४६ १४५; १६५,३१८२,१८६,२०४,२०६, २१८,२२२; ५११,१६, ७५५,५८,१८४ सू१८१३, १६॥२३,२६ ताल (ताड) पश४३।१ पताल (ताडय) ताइउ ५।१६ तालेहि उ ५।१५ तालण (ताडन) ज १७८ तालपुडग (तालपुटक) उ १८६,६० तालायार (तालाचार) ज ३११२,२८,४१,४६,५८ ६६,७४,१४७,१२८,२१२,२१३ तालिय (ताहित) ५१७ तालियंट (तालदन्त) ज ३१११५।१०,५५ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालु-तित्थगरत्त तालु (तालु) प २।३१ ज २११५, ३।३५,१०६, ४४,४६,५८ उ १११६,२१,३११०३,११३, ७११७८ ४।१३,१६ ताव (तायत्) प २४।७ उ ११५१ तिग (त्रिक) ज २६५, ३११८५,२१२,२१३, ताव (ताप) ज ५१३२ उ ३।५० ५७२,७३,७४१३१।१ उ १९८ तावइय (ताक्त) ज १११६,३।८४।१२१,१४०।२, तिगिछद्दह (तिगिच्छद्रह) ज ४1८८ से ११ २१७ तिगिच्छकूड (तिगिच्छकूट) ज ४।२७५ तावक्खेत (तापक्षेत्र) सू २१३ ; ४।५ ; ६३१; तिगिच्छायण (चिकित्सायन) सू १०१११६ १९४२२११४,१६१२३,२६ तिगुण (त्रिगुण) ज २१६, ७७,६६,६०,११८,१२१, तावक्षेत्तसंठिति (तापक्षेत्रमंस्थिति) ज ७।३१,३५, सू १०।६०,६१,१८१६ से १३ सू४।१,३,४,६ तिगुणित (त्रिगुणित) सू १६।२२।२३,२५ तावखेत (तापक्षेत्र) ज ७३२,५५,५८,१६८,२१२, तिजमलपय (त्रियमलपद) प १२१३२ तिछाणवडित (त्रिस्थानपतित) प ५१२,१४,१६, ताखेत्तयह (तापक्षेत्रपथ) सू १६।२२१५ २०,२६,५३,५७,१६,६३,६८,७२,७४,७८,८३, तावण्णत्त (तद्वत्व) प १६४६१७११५, १४,६७,१०१,११२,११५.११६,१२२ ११६,११८,१४८,१४६ हिट्ठाणवडिय (त्रिस्थानपतित) ५ ५।१८ तावतिय (तावत् ) प १५३५१,५२,६२ ज ४।१० तिणिस (तिनिश) ज ३।३५,१७८ तावत्तीस (वात्रिंश) ज ५५० तिण्ण (तीर्ण) ज ५।२१ तावत्तीसग (बायस्त्रिंशक) प २१३२,३३,३५,४६ ििततिक्ख (तितिक्ष) तितिक्खइ ज २१६७ से ५१ ज ५११६ तित्त (तप्त) प श६४११६ तावतीसय (बायस्त्रिंशक) ज २६६० तित्त (विक्त) प १४ से ६५1५,७,२०५:११।५८, तावत्तीसा (त्रायस्त्रिंशक) १२।३० से ३२ १३।२८२३४६,२८१२०,३२,६६ ज २१४५ तावस (तापस) प २०१६१ उ ३१५०,५५ तित्तिर (तित्तिरि) प १७६ सू १०११२० तावसत्त (तापसल) उ ३१५०,५५ तित्तीस (त्रयस्त्रिंशत् ) ज ४८ ताहि (तत्र) प २४१६ तित्थ (वीथं) ज ३३१४,१५,१८,२०,२२,३०,३१; तम्हे (तदा) ज ७५६ उ ११५२, ३।१२३ ४।३,२५,५५५,६।६,१२ से १४ ति (त्रि) प १११३ ज ११७ च ३।३ सू १७ तित्थकर (तीर्थकर) ज २६३,१२५ १।१४ तित्थगर (तीर्थकर) प २०११।१ ज २१६०,६५, तिउड (द०) ज ४।२०२ १०१ से १०३,११३ ११४,११६,१५३; तिदु (तिन्दु) प ११३६।१ ५१७,२२,७०,७३ तिदुय (निन्दुम) प १६३५५ तित्थगरचियगा (तीर्थकरचिनया) ज २११०५ से तिदूय (निन्दुक) प ११४८१४८ ११२ हिक्ख (तीक्ष्ण) २१३३७।१७८ तित्थगरणाम (नीर्थकरनामन ) प २३।३८,५६, तिक्खरग (तीक्ष्णाग्र) ज ७१७८ १२६,१४६,१७४,१८६ शिक्खधार (तीक्षार) ज २११३१,३।१०६ रिस्थगरणामगोय (तीर्थकरनामगोत्र ) प २०१३६ तिक्खुतो (विल) ज१६; २१६०, ३५,८८,८६, तित्यगरत्त (तीर्थकरत्व) ५२०३८ से ४०,४५, ६८,१३१,१३५,१५५,१५६,५।५,२१ से २४, ४६,५१ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तित्वगरव-तिरिक्खजाणिवत्त तित्थगरवंस (नीर्थकरवंश) ज २।१२४,१५२ ८३,८५८८६,६३,६५ ले ९० १०२, तित्थगरलरीरग (तीर्थकरशरीरक) ज २१६६ १०६,१५५:४।३७.१७२।१.१७८,६।१६ तित्थगरसिद्ध (तीर्थकरसिद्ध) प १३१२ तिमिसगुहाकड (निभिसागुहाट) । ११३४ तित्ययर (तीर्थकर) ज ४१२४८,२५० से २५२, लिय (वि:) १६११५ ७१३१११ ११.३.५,८ से १४,१६,१७,२१.२२,४४,४६: लिय (इदिय) प्रीमियम १७१६६ ६०,६२,६४,६६ से ६६.७२,७३,७११६८ सियभंग (विभः) ५२४७,१३,२६,६; तिस्थयरमाउ (तीर्थक रमात) ज ५९ से १२ २८।११२,११६,११६,१२१,१२३,१२५,१२६, तित्ययरमायरा (तीर्थकरमात) ५५,१४,१७ १२८,१२६,१२,१३६,४३६ से १४५ तित्थयरमाया (तीर्थकरमात) ज ५॥७,८,४६,६७ तिरिक्ख (तिच) ॥ १७॥३३,२१७ तित्थयराइसय (तीर्थक रातिशय) उ४।१३ लिरिक्खजोनिधी (पर्याय) प३।६८,१२८, तित्थयरातिसय (तीर्थकराशिय) उ १।१६,४१८ १८३:१७166,:.६ ,९१८।४,१०; तित्थयराभिसेय (तीर्थकराभिषेक) ज ५०५४ से ५६ २०११३:२३।१६४,१०६.१६८ तित्यप्तिद्ध (तीर्थ सिद्ध) ५ १:१२,१६॥३६ हिरिजोणिय लिया ११५२,६४,५५., सिधा (त्रिधा) ज ११८ ६० से ६२, ६ ७ ,७,८१२।२८, तिपएसिय (त्रिप्रदेशिक) प ५११३१,१५६;१०८ २४,३५,२६१२७,१८६ ४.१०४ से १५७; तिपडोयार (त्रिप्रत्यवतार,त्रिपदावतार) सू १९१३५ ५.३,२२,२२,८३,८५.८६,८८,८६,६२,६३, तिपदेस (त्रिप्रदेशिक) प १०६१४३१ ६६.६७६२१,२०४८,५८,६५,७०,७१,७८, तिभाग (त्रिभाग) प २१६४१४,६,७,९;६.११६; ८१,८२,८३,८८,८६,९२,६६,६६ से १०३, २११६१,२३१७८,७६,१४७,१६२,१६६, १०५,१०,११:.११६, ८६,६१६,७,१६: जे १२०,४८,२१५८,१२६,१५५,९५७,१५६, १७,२२,२६, ११:४६,१२१४.२१:१६।१८; ३११,७१३२,३४ सू ११२३,४१५८६३ १५॥३.५,५६,६७,१०,१२,१३८,१६७,१४, तिभागतिभाग (त्रिभागत्रिभाग) ५६।११६ २५,२७; ११२९५,३८,८१ से ४३,५८, तिभातिभागतिभागावसेसाउय ६३ से ६६८ ७,८६,६७.१०४:१८।३,१० (विभागत्रिभागत्रिभागावशेपा बुक) ५६।११५, १९१४,२०११३,१३,२६,२५,२६,३४,३५,४८, २११८ स १८,६ स ३२,४३,५३,६०,६८, तिभागतिभागावसेसाउय (विभागत्रिभागावशेषायुक) ७७,८२,८८२३१,०८,८७.९८२७६, प६।११५ १६४,१०६,१६८,१६६२४७२८१४७,४८, तिभागावसेसाउय (त्रिभागावशेपायुक) प ६.११५, ११६,१३०,१३,१६७,१४४,२६१५,२२, ३११४;३२११, २२११,१२,२१,२८,३२,३६ तिभागूण (त्रिभागान) परा६४१७ सू १२३ ३४।३,८,६५४१८,२१ १७.४०,५१,५७, तिभाय (विभाग) ज २१५५ से ५७,५६,१५६,१५८ ७२.७३ ज 2,१३५ से १३७ तिमि (तिमि) प ११५६ तिरिक्खजो गयअस आज्य हिर्शमगिल (तिमिङ्गिल) ५ ११५६ (तिर्यनिवासया ५) ५६१६४ तिमिर (तिमिर) पश४१।१ ज ३१६५,१५६ तिरिक्खजोषियत्त (तियंग्यौनिकत्व) १५११७, तिमिसगुहा (तिमिस्रागुहा) ११२४३१६८,६६, Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिरिक्खजोणियाउय-तुच्छ तिरिक्खजोणियाउय (तिर्यग्योनिकायुष) तिवण्ण (त्रिवर्ण) प ७.१७८ प २०१६३,२३१७६,१४७,१५८,१६२,१६५, लिवलि (त्रिवलि) ज ३११३८११ १७० तिवलियवलिय (त्रिपालिकवलित) ज २११५ तिरिच्छ (तिर्यच) सू १।६।१ तिवलिया (त्रिवलिका) ज ३१२६,३६,४७ तिरिच्छगति (तिर्यगति) सू २।१ च २१ उ १२२,११५,११७,१४० तिरिय (तिर्यच) १ २१४१ से ४३,४६,४८; तिविह (विविध) प १११११,११५४.६०.६६,७५, ११६६५,६६:१५१५२:२०१५३,२११८७,६० से ७६,८१,८५;६।१,६,१३,२०,२६,१३७,१०, ६३,२३१३६,८२,११२,११५,१४८,२८११५, ११,१३,१५७५१६१४,२४;१७।११,२५, १६,६१,६२,३१६६।१,३२१६।१,३३३१६,१७ ३०,१३६ १८१५६,६४,७७६०,१०५२११८; ज २१४६,७१,६०,१३७,३७६.११६,११८%, २२।४ से ६२३१३३,४२,२६७,३०१३; ४१५२,५१५,४४,७।४४ ५४ सू २।१४।१०; ३५१,६,८ से १० चं ११४ उ ३।३८,४२ १८।११६।२२।१२ तिव्व (तोत्र) परा२७,२६ तिरियगति (तिर्यगति) प ६२.७,२३।१७२ तिसत्तखत्तो (त्रिसप्तकृत्वस्) प ३६.८१ तिरियगतिपरिणाम (तिर्यग्गतिपरिणाम) ५ १३.३ तिसमइय (त्रिसामयिक) प ३६.६०,६७ से ६६, तिरियगतिय (तिर्यग्गतिक) ५१३।१६ से १८ तिरियगामि (तिर्यगगामिन्) ज ११२२,५०,२१५८, तिसरय (त्रिसरक) ज ३१६,२२२ तिहा (विधा) ज १।२०२५५१५५ १२३,१२८.१४८,१५१ १५७,४११०१ तिहि (तिथि) ज ३।२०६७।११८,१२१ सू श६ तिरियलोग (तिर्यक्लोक) प २११८६ तीत (अतीत) ज ७१३६ सिरियलोय (तिर्यक् लोक) प ११.४,८,१०,१३, तीतवयण (अतीतवचन) प १११८६ १६ से १६.२८३।१२५ से १७३,१७५,१७७ तिरियवाय (तिर्यग्वात) प ११२६ तीय (अनीत) प १५:५८२ ज २।६०,३।२६,३६, तिरियाउय (तिर्यगायुप) प २३११८ ४७,५६,१३३,१३८,१४५, ५॥३,२२,७५२ तिरोड (किरीट) प २।४६ ज ६।३१ तीर (तीर) ज ४।३,२५,६७ तिल (तिल) प ११४५॥१.१२४७१३ ज १३७,११६ तीस (त्रिशत्) प १८४ ज ११२० सू१११८ तिलक (तिलक) ज ३।१०६ उ ३।१४ तिलग (तिलक) ज ३११२,८८,१७२,५१५८; तीसइ (त्रिंशत्) सू १०।४ ७/१७८ तीसति (त्रिंशत्) सू १०३५ तिलचुण्ण (निलचूर्ण) प ११७६ तीसतिविह (त्रिंशद्विध) प १३८७ तिलतंदुलग (तिलतण्डुलक) सू १०।१२० तु (तु) मु १६।२२ तिलपप्पडिया (तिलपर्प टिका) प १।४७१३ संग (तुङ्ग) ५२।३१,४८ ज २११५,३८१,१५१, तिलपुष्फवण्ण (तिलपुष्पवर्ण) सू२०१८.२०।८३ ४१४६५।४३ उ ५५५ तिलय (तिलक) प ११३६:३;२०४८१५।५५१२ तुंड (तुण्ड) ज ३१२४ ज ४१४६ उ ३.११४ तुंब (तुम्ब) प ११४८१४८ उ ३।३०,३५,११६ तिलसिंगा (तिलसिला') प १११७८ तिल की फली तुंबी (तुम्बी) प १४०१ तिवई (त्रिपदी) ज ३।१७८,५१५७ तुच्छ (तुच्छ) ज ७११८ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुच्छत्त-तूली तुच्छत्त (तुच्छत्व) प १५६४४,४५ तुच्छा (तुच्छा) पू १०६० तुट्ठ (तुष्ट) ज २१४६,३१२,६.८,१५,१६,२६, ३१,४२,१०,५२,५३,५६,६१,६२,६७,६६, ७०,७५,७७,८४,६१,१००,११४,१३७,१४१, १४२,१४८,१५०,१६५,१६६.१७३,१८१, १८६.१६२,१६६,२०८,२१३,५१५,१५,२१, २३,२७ से २६,४१,५५,५७,७० उ १२१, ४२,४५,१०८, ३.१३,१०१,१०३,११३,१३६, १६०,४१११,१४,२०,५१५,३८ तुठ्ठि (तुप्टि) ज २१७१ उ ११७१,७२ तुडित (तूर्य) प २।३०,३१,४६ तुडित (त्रुटिक) ज ११३१,३।२६ तुडित (त्रुटि) प २१३०,३१ तुडिय (त्रुटित) प २३०,३१,४१ ज ३६,६,२६, ३६,४७,५६,६४,७२,१३३,१३८,१४५,२११, २२१:५२१,५८ तुडिय (दे० त्रुटित ) ज २१४ संख्। विशेष तुडिय (तुर्ष) प २।३०,३१,४१,४६ ज १११४५; स६५, ३३१४,३०,४३,५१,६०,६८,८२,१३०, १३६,१४७,१४६,१७२,१८०,१८५,१८६, १८3,२०४,२१८५११,१६,२२,२६७।५५, ५८,१८४ सुडिय (३०) ज७१६८१२ सु१८१२३ अन्तःपुर तुाडयंग (दे० अटिनांग) ज १४ दुड़ियंग ( ङ्गि) ज ३११६७६१० तुण्णाग (तुम्नाय) ५ १९७ तुयट्ट (ताद : वृत्) यट्ट ति ज १।१३,३०, ___३३:२१७४१२ तुटेज प ३६।६१ तुरग (तुग्ग) ज ११३७,२३१०१,३३,२३,२८, ३५,३७,४१,४५,६७,४६,१७८,४।२७,५१२८ तुरगरूवर (तु गरूपधारिन्) म १८१४ से १७ पुरय (नग) ज ३११३१,१३५ सुरिय (ब) १२७८ तुरिय (नि) ६५,६०३१६,२६,३६ ४७, ५.६,६४,७२,७८,११३,१३३,१३८,१४५,१८०, २०६५३५,२१,२६,२८,४४,४७,६७ तुरुक (तुरु) प २१३०,३१,४१ ज २६५,१०६, ११०; ३७.१२,८८,५७,५८ - २०१७ तुल (नुना) ज ७.१३३१२ तुलसी (दुमली) ११३७॥१,२१४४१३ तुलासंठिय (तुमाथित) १०४० तुल्ल (गुरु) प ३३८ से १२०,१२२ से १२४, १७४,१७६,१७८ स १८२:५५,७,१०,१२,१६, १८,२०,२४,२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६, ५३,५६,५६,६३,६८.७१,७४,७८,८३,८६, ८६,९३,६७,१०१,१०२,१०४,१०७,१११, ११५.११६,१२६१३१,१३४,१३६,१३८, १४०,१४३,१४,१४७,१५०,१५४,१६३, १६६,१६,१७०,१७२,१७४,१७७,१८४, १८७,१६०,१६३,१६७,२००,२०३,२०७, २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३४, २३५,२३७,२३६,२४२, ६।१२३,८१५,७,६, ११; ६।१२,१६,२५२१०१३ से ५,२६ से २९ ११७६,६०,१५११२,१६,२६,२८,३१,३३, ६४; १७५६ से ६६,७१ ते ७६,७८ से १३, १४४ मे १४६:०६४, २१११०४,१०५; २२११०१,२८।४१,४४,७०,६४।२५,२६.३५ से ४१,४८,८६,८३.१ ज ३।३,३५,७।१६८,१६७ मु १८।२,३,३७ तुल्लत्त (तुल) ज १६८ १८१३ तुवर (तुर) ज ३।२०३५५५,२६ तुवरी (तुयी) - १०।१२० तुसार (तुपार) परा६४ तुसिणीय (नुग्णी) ज २१६० उ ११३८,६१,६२, ५६,८७,२००, १२.६.५६.६१,६४,६८,७१, सूली मी) ज ४१३ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तूवरी- तेया तुवरी ( तुवरी ) प १३७ ३ तेइंदिय ( त्रीन्द्रिय) प ११५० २७ ३८४० से ४२,४६,४९,१४७ से १४६, १८३ ४ ६८ से १००५३,२१,८१६।२०, ६५, ७१,८३,८६, १०४,११५; ६ |४; १११४५ १५३४,७५,८१, ८६, १३७, १७४०,६२,१०३, १८११५, २२; २०१८,२३,२८,३३,४७२१६, २८, ४२; २२३१,२३८७,१५१,१६०,१६१ २८ ।४५ से ४७,१०१,१२५,१३६; २६।१३;३०।११, २१,३१३,३४/६ तेईदियत्त (त्रीन्द्रियत्व ) प १५६७.१४२ तेज (तेजस् ) प ६८६,६२,१०४, ११५; १३३६, १६; १७/४०, ६६; १८१२६, २०१८.२३,२८, ५७,२११८५, २२१२४ तेउकाइय (तेजस्कायिक) प १।१५२।७ से ६; ३ ५० से ५२,५६,६० से ६३,६७,७१ से ७४,७८, ८४ से ८७,६१,६५,१६२ से १६४, १८३,४१७२,७५ से ७७५/३,१३,१४,६ १६,१०२ तेउका इयत्त ( तेजस्कायिकत्व) ज ७१२१२ तेइ (तेजस्कायिक ) प ११२४, २०७१ ३४, १६४,१८३६१५; १२१२२; १५१२६,८५,१३७; १७६१ से ६३,१०३, १८१३,३८, ४०, ५१ ; २०२७,२६,३१,४५, २११२५, ४०, २२/३१ तेउलेस (तेजोलेश्य ) प १३।१५; १७६५, ६, १०२,१६८ तेउलेसट्ठाण (तेजोलेश्यास्थान ) प १७ १४६ तेउलेसा (तेजोलेश्या ) प १७५५,१२१,१४६ तेउलेक्स (तेजोलेश्य ) प ३१६६; १३ १६, २०; १७३३,५६,५६,६०,६२,६४,६६ से ६८, ७१ से ७६,७ से ८४,८७,८६,६५,२१०१,१०२, १६७१८७२ २८/१२३ तेउलेस्तट्ठाण (तेजोलेश्यास्थान ) प १७ १४६ तेउलेस्सा (तेजा ) प १६१४६; १७३४ से ३६,३६,५०,५३,५४, १३, १६, ११७, ११८, १२१,१२२,१२६,१२६,१३३, १३७.१४४, ६३६ १५३,१६२ से १६४; २८।१२३ तेउलेस्सापरिणाम (तेजोलेश्यापरिणाम ) प १३१६ तेंदिय ( त्रीन्द्रिय) प १२१४,५०३२४२, ४६,४६ तेंदुय ( तिन्दुक ) प १७/१३२,१३३ तेंदूस ( विन्दुस ) प ११४८४८ तेगिच्छायण ( चिकित्सायन) ज ७ १३२२४ बहुल ( स्तेनवहुल) ज १।१८ तेण ( तेन ) सू ६।१ तेणउति ( त्रिनवति) सु १२/१२ ते उय ( त्रिनवति) ज ४६२ तेणामेव ( तत्रैव ) प ३४१२२ ज ३१५ तेतलि (तेजस्त लिन्, तेतलिन् ) ज २१५०, १६४; ४११०६, २०५ तेतालीस ( त्रिचत्वारिंशत् ) सू ११/६ तेत्तीस ( त्रयत्रिंशत् ) प २०६४।६ ज ४१६८ सू १२० उ ११२६ तेदुरणमज्जिया (दे० ) प १५० तेपण (त्रिपञ्चाशत् ) सू १२/२० तेय ( तेजस् ) प २१२०,३१,४१.४६,२८।१४१ ज २११३३,३३,१८,६३,१८०,१८८७ ११२१५ सू १०८८, १२६१५ उ ३४८, ५०, ५५,६३, ६७,७०,७३, १०६,११८ तेयंसि ( तेजस्विन् ) ज ३१७७, १०६ तेग ( तैजस ) प २१।७६६३६।३२ तेयगसमुग्धाय ( तैजससमुद्घात ) प ३६/८,१२,२६, ३२, ३५, ३७, ४१, ५३, ५५,५७,५८,७३ तेयगसरीर ( तैजसारीर ) प २१ ७५ से ८१,८३, ६०.६४,१००, १०२, १०४ तेयगसरीरय ( तैजसशरीरक ) प १२११० ते (तेजस ) प १२१ से ५:२१११,३६।१।१ तेयलि (दे० ) प १३४३३१ तेयलेस्स (तेजोलेश्य ) ज ११५ तेयसि (स्थिन् ) २२६८,१३८ तेया (नैनस ) प १२।१४,१८,२१.२४.२६.२६,३५. २११६६, १०२.१०४,१०५२३१९२१३६।६२ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० १०८८२ तेया (तेजा ) ज ७।१२०१२ तेयाल ( त्रिचत्वारिंशत् ) ज १।२३ तेयालीस ( त्रिचत्वारिंशत् ) सू १०/१५६ तेयासमुग्धाय (+जससमुद्घात ) प ३६११, ५, ७, ४० तो (तुण ) प ३१३१,३५,१७८ ज ३१३१,३५. तेहिय ( व्याहिक) ज २०६ तो ( ततस् ) प २२७३ तोट्ठ (दे० ) प ११५१ तेयासरीर (तैजसशरीर ) प २११८४ से ६३ १७८ उ ११३८ तेयाहिय ( त्र्याहिक) ज २१४३ तेरस (त्रयोदशन् ) प ३६।८१ ज १७ सू १।१४ तेरसक (त्रयोदशक ) सू १३३१२,१३,१७ तेरसम ( त्रयोदश ) प १० | १४ | ३ सु १० ७७; १३।१० तोमर (तोमर) ज ३३५,१७८ तोयधारा (तायधारा ) ज ५४१११,६३,६४ तोरण (तोरण ) प २१,३०,३१,४१ ज ११३७ २।१५,२०,३७,१७८, १६५,४५, २३, २७ से ३०, ३५, ३७, ३८, ४०, ४२, ६५, ६७,७१,७३, ७५,७७,६० से ६२,६४, ११८, १२८, १४४, १७४,१८३,१८६,१६५,२२१,२४६ : ५१३१ त्ति (इति) प १११ चं १४ स्थिभंग (स्तिभक ) प ११४८।१ रिथमिय ( स्तिमित) ज ११२,२६,३१,३,१८,३१, १८० चं ६ सू १।१ उ १११,६, २८, ३।१५७; ५१२४ त्थिहु ( स्तिभु ) प ११४८१ तेरसविह (त्रयोदशविध ) प १६ | ७ तेरसी (त्रयोदशी) ज २२८८७ १२५ तेरिच्छिय (तैरश्चिक ) प २०१६१ ज ३६२,११६ तेलापूर (तैलापूप ) प ३६।८१ ज १३७ सू १/४ तेलोक्क (त्रैलोक्य) प १|१|१३ । १२५ से १७३, १७५,१७७ तेल्ल (ल) प ११०११७,१५।१।२; १५।५० ज ३।११।३, ५११४ उ ३११३० तेल्लकेला (तलकेला ) उ ३११२८ तेल्लसमुग्ग ( समुद्ग ) ज ५१५५ तेल्लसमुग्गहयगय ( हस्तगत तैलसमुद्ग ) ज ३।११ तेल्लोक (त्रैलोक्य) उ५१५ तेवट्ठ (त्रिपष्टि ) ज ७ २० २/३ तेवट्ठि (त्रिषष्टि) ज २२६४ तेवण्ण (त्रिपञ्चाशत् ) प ४।१३४ ज ४१६२ सू १११३ तेवर्त्तार ( त्रिसप्तति ) ज २४ तेवीस ( त्रिविशति ) प २१४६ ज २।१२५ सू २/३ तेवीस (त्रिविशतितम) प १०३१४१३ तेवीसइम (त्रिविशतितम ) प १०१४१२ तेवीसतिम (त्रिविशतितम) सू १२।१६ तेसट्ठि (त्रिषष्टि) ज ७।३३ तेसीइ ( व्यशीति) ज २१६४ तेसीत ( त्र्यशीति) सू ११२३ सीति (यशीति) सु ११२३ तेसीय (व्यशीनि ) मू ११४ तेया धणिय कुमार थ थंभणया ( स्तम्भन ) प १६५३ थं भय ( स्तम्भिन ) प २१३०, ३१, ४१, ४६ ज ३३६, २२२:५१२१,२८ / थक्कार (दे० ) थक्कारेति ज ५।५७ ण (स्व) ज २११५:३११३८ उ ३।१८,१३०, ४६ गंतर (स्वनकान्तर) उ४४२१ थणपाय ( स्तपाय ) उ ३।१३० थणभूल ( स्तनमूल) उ ३३६८ यणित ( स्वनित) सू २०११ णिय ( स्तति ) प २२३०११,२१४०१२, ८, १० ज ५।२२ यणियकुमार ( स्तनितकुमार ) प ११३१,४।५५; ५१३,८,५१,६।१८,५२,६१,८१,८५,१०२,१०९, ११४; ७/३८२३,६१३, १५, ११/४४; १२२, १६,१३।१५; १५।१६,७१,७८,८४,१३६, Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थणियकुमारत्त-दंडपति ६४१ १६३,१११७११७,६३,१०१:१६।१२००८, थम (स्तूप) प १११२५ ज २११५,२०,३१; १२,२१,२३,२४,२७,३५;२११५.५,६१,७०,६० ४ १२५,१२६ २२।२३,३०,३६,७३,६८,२४४५,२८।२७,६८, थूभियग्ग (स्तूपिकान) प २६४ ११६,२६७,१६,३०७,१७:३११२; ३३११, थूभिया (स्तूपिका) प १११६,३७,४।१०,४६ २०,२७,३१,३५:३४।२,३५।१८ ; ३६१५,२४, थभियाग (स्तृपिका) प ४८ ज ११३८,४११०, ३७,७२ ११५,२१७,२२६ थणियकुमारत्त (स्तनिल कुमारत्व) प १५२९५,१४१; से थेज्ज (स्थैर्य) उ ३३१२८ ३६१२२,२५ थेर (स्थविर) प १६१५१ सू २०।६।४ उ २।१०, थद्ध (स्तब्ध) ज ३।१०६ सू २०४।२ १२;३११४,१५६,१६१,१६७,५१३६४१,४३ थल (स्थल) प १७५ ज २११३१,१३४:३३३२,६८ थेरग (स्थविरक) ज २११३३ उ ३१५५ थोव (स्तोक) प ३।१ से १७,२४ से १२०,१२२ थलय (स्थलज) प ११४८१४० से १८१,१८३,६१२३,७२,३,८।५,७,६,११, थलय (स्थलक) ज ५।७ ६।१२,१६.२५:१०।३ से ५,२६,२७,१११७६, थलयर (स्थलचर) प ११५४,६१,६२,६६ से ६८ ६०,१५३१३,१६,२६,२८,३१,३३,३४.६४; ७६,३११८३;४।१२२ से १४८:६।७१,७८; १७९५६ से ५६,६१.६४,६६ से ६८,७१ से २११८,११ से १६,३५,४४,५३,६० ७४,७६,७८ से ८३,१४४ से १४६,२०१६४; थवईरयण (स्थपति रत्न) ज ३१३२११ २१।१०४,१०५,२२।१०१:२८१४१,४४,७०; थाल (स्थाल) १११।२५ ज २०१५,३३११५५५ ३४।२५,३६१३५ से ४१,४८ से ५१,८२ थालइ (स्थालकिन्) उ ३१५० ज२।४।२,६६ सु ८।१२०१५ थारुकिणिया (थारुकिनिका) ज ३।११११ थोवतराग (स्तोकत रक) ५३२२ थालीपाक (स्थालीपाक) म् २०१७ थोवूण (स्तोकोन) ज २०१५ थालीपाग (स्थालीपाक) ज २।३० थावरणाम (स्थावरनामन्) ५ २३।३८,११७ थासग (स्थासक) ज ३३१०६,१७८%,७१७८ दओदर (दकोदर) ज २१४३ थिग्गल (दे०) प १२११२ दंड (दण्ड) प २१३०,३१,४१,३६१८५ ज २१६, थिबुग (स्तिबुक) ११५१२६२११२४ ६० से ६२,३१३,१२,८८,११७,१७८,१६२; थिर (थर) ज ७।१२४,१२५,१७८ ४१२६,५।५,७,५८,७।१७८ उ १६३१ थिरणाम (स्थिरगामन्) प २३१३८,१२२ दंडग (दण्डक) ६६१२३१४८३,८५,१४१६,८, थिरीकरण (स्थिरीकरण) प १।१०१।१४ १०,१८,२०१५,२२१२०,२५,२८,४५,५६,५८ थिल्ली (दे०) ज २।३३ ७६,२३१८,१२,२८.१४५,३६८,१२,२०,२६ थी (स्त्री) प १८४ से ३१,३३,३४,४४,४५ थीणद्धि (स्त्यानद्धि) प २३११४,२७ दंडणायग (दण्डनायक) ज ३१६,७७,२२२ थीविलोयण (त्रीविलोचन) ज ७।१२३ से १२५ दंडणीइ (दण्डनीति) ज २१६० से ६२,३।१६७६ थुरय (दे०) प १४४२१२ दंडदारु (दण्डदारु) उ ३१५१०१ थूणा (स्थूणा) प १५॥१॥२.१५:५२ दंडपति (दण्डपति) ज ३३१०६ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ दंडय ददुर दंडय (दण्डक) प १११८०,८२ से ८४,१४१३४; सणावरणिज्ज (दर्शनावरणीय) प २३।१,३,८, १५॥१०२.१४०,१७१८६,२२१३३,३५,४१.५४ दंडरयण (दण्ड रत्न) ज ३१८८,८६,१५५,१५६, दक्ख (दक्ष) ज ५१५,५२ १७८,२२० दक्षिण (दक्षिण) ज ११८६,४१५२,५५,८१,८६, दंडरधमत्त (दण्ड रत्नम) प २०१६० ६८,१०८,१४३,१५१।१,१५६,१६४,१६५, दंडि (दण्डिन ) ज ३११७८ ।। १८५,१६३,१६७,१६६,२००,२०४,२०६ दंडिया (दण्डिका) ज १३५ से २०८,२१३,२२७,२३०,२३७,२३८,२४६, दंत (द-1} प २।३१ ज २।४३,१३३,१३४; २६२,२६५,२६८,२७१,२७७,५१४८,६१२३; ३३१०६,१७८७।१७८ ७।१२६ दंतंतर (दन्तान्तर) उ १३९७ दक्षिण कूल (दक्षिणकूल) उ ३५० दंतरंग (दन्तान) ज ७।१७८ दक्खिणा (दक्षिणा) उ ३१४८,५० दंतमाल (दन्तमाल) जरा दक्खिणिल्ल (दाक्षिणात्य) ज ११२६, ३५१६३; दंतमूसल (दन्त मुगल) उ ११९७ ४१३५,६५,७१,६०,११०,१४१,२०२,२१२, दंतार (दन्तकार) प १९७ २२८,२२६,२३८,५१४६७११७८ दंति (दन्तिन) प ११४८।४ ज ३१२२१ उ १११४, दग (दक) प१७११२८ ज ३३१२५७, १५,२१,२२,२५,२६,१२१,१२५,१२६,१३२, ७११२।४ १०११२६४,२०1८,२०८।३ १३३,१३६,१३७,१४०,१४७ दगकलसग (दककलशक) ज ५७ दंतक्खलिय (दन्त'उक्खलि।') उ ३।५० दगभग (दककुम्भक) ज ५७ दंस (दंश) 3 ३११२८ दगथालग (दकस्थालक) ज ५७ दंसण (दर्शन) प ११०१११०, २०६४।१२, दगपणदण्ण (दकपंचवर्ण) २०1८,२०१८३ ३।१।१५।२१,२४,२८,३०,३२,३४,३७,४१, दगपिप्पली (दक पिप्पली) प ११४४१२ ४६,८०,८३,८४,८६,८७,८६,६४,६६,१०१, दगरय (दकरजस्) प २।३१,६४,१७४१२८ १०२,१०४,१०५,१०७,१११,११२,११५, ज २११५ ११७,१३.१६१८११११,२०६६१, २३।२६, दमवण्ण (दकवर्ण) सू २०१८ २८,६२,१३४,१७८,३०१२६,२८ ज १७१, दगवारग (दकवारक) ज ५७ ८५; ३११७८,२२३,५।४३ उ ३१४४,५।१३, दठच्व (द्रष्टव्य) प १५२६ दड्ढ (दग्ध) प ३६।१४ दसण (उपउत्त) (दर्शनोपयुक्त) प ३६।६३,६४ दढ (दृढ) ज ३१२४;५१५;७।१७८ दसणधर (दर्शनवर) ज २१ दढपइण्ण (दृढप्रतिज्ञ) उ १११४१२।१३ दसणपरिणाम (दर्शनपरिणाम) प १३१२,१४,१६, दढरह (दृढरथ) उ ५१२११ १५,१६ दत्त (दत्त) उ ३।२।१,३।१७१ दसणमोहणिज्ज (दर्शनमोहनीय) प २३१३,३२,३३ दद्दर (दे०) प २।३०,३१,४१ ज ३७,२४,१८४, दसणवत्तिय (दर्शन प्रत्यय) ज ५।२७ २२१,५५५ दसणारिय (दर्शनार्य) प ११९२,१०० से ११० ददु (दद्रु) ज २।१३३ दसणावरण (दर्शनावरण) प २४१६ ददुर (दर्दुर) सू २००२ प २१४६ २००२ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दधि-दव्वीकर १४३ दधि (दक्षि) ज ४११२५:५१६२ सु १०।१२० दलिय (दलिक) ज ३१३५ दप्पण (दर्पण) च ३३१२,१०८:४।२८,५१५८ वव (द्रव) प २१४१ दप्पणिज्ज (दपणी) १७१३४ २०१८ दवारग (द्रबकारक) ज ३।१७८ दप्पिय (दपित) ३१२४; ७१७८ दव (द्रव्य) प १११०१।९३.१२४,१७७,१७८%; दभ (दर्भ) ज ११२२ उ ३५१५६ १०५:१११४७,५३,५५.५.७,५६.७० से ७३,७६ दभपुप्फ (दर्भपुल) र १० से ८५,१५।५७,१६।५०:२१११।१,२११२२; दम्भसंथार (दर्भस्तार) ज ३।२०३३,५४,६३, २२।१३,१५,१७,१६,८०,८२,२८।५; ७१,८४,१३७,१७,१५२ उ१४३ ३५।१।१ उ ११४० दब्भसंथारग (दास्तारः) ज ६।२०,३३,५४, दवओ (व्यतम्) ११११४८,४६१२१७,१०; २८५,५१, ३५१४,५ ज २६६ दभियायण (दायिन): १०।११२ दव्वजाय (द्रव्य जात) ज २१६६ दरणग (दमा ) प ११४४।३ ज ५१८ दोनावृक्ष, दव्वछ (द्रव्यार्थ) प३।११६ से १२०,१२२, द्रोणलता १७६ से १८२; १०।३ से ५,२६ से २६; दमणगड (दा कमुट) ज ४११०७ १७९१४४ से १४६,२११०४ दमणय (दग्गज ३११२८८ दवट्ठता (द्रव्याथं) प ३।११६ से ११८ दमिल (द्राविडी १८६ देवठ्ठया (द्रव्यार्थ) प ३३११४,११६,१२०,१२२, दमिली (विडा द्रमिका) ज ३।१११२ १७६ मे १८२,५१५,७,१२,१४,१६,१८,२०, दरि (दरि) ज २१३८,३८८,१०६ २४.२८,३०,३२,३४,३७,४१,४५,४६,५३, दरिदा (दरिबहुल) न १।१८ ५६,५६,६३,६८,७१,७४,७८,८३,८६,८९, दरिय (दप्त) ज २११३३३४ ६३,६७,१०१,१०४,१०७,१११,११५,११६, दरिसणावरणिज्ज वसंता रणी ) प २२१२८; १२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५, २३।१४,२६,२६१७,२७१४ १४७,१५०,१५४,१६३,१६६,१६६,१७२, ररिसणिज्ज (दर्शनी प|३०,३१,४१,४८, १७४,१७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६३, ४६,५६६३.६४ ज ११८.२३.३६ ४२,२।१२. १६७,२००,२०३,२०७,२११,२१४,२१८, १४,१५:३११७८,४॥३६.१३,२५,२७,२६, २२१,२२४,२२८,२३०,२३२,२३४,२३७, ३३.४६,११,१२८ ४३.६२ गु ११ उ ५।४ २३६,२४२,१०।३ से ५,२६ से २६, १७४१४४ से १४६,२१११०४ ज ७।२०६ दरी (दरी) उ ३१५५ उ ३४४ दल (दल) ज. २३१५३:१०६ चं ? दलइत्ता (दत्वाज दव्वणिया (द्रव्यहलिका) प ११४७ दिलय (द) दलल्म उ ३१२८ दल इ विदिय (द्रव्येन्द्रिय) प १५३५८१२,१५०७६ से ज ३१६,४१६१:५॥४६ ११०१३३११४ ८४,८६,६१,६४ से ६७,१००,१०४ से १०६, दलयंतिपदा तिज ३८८ दलयह १०८,१०६,११४,११५,११७ से १२०,१२३, उ११०३ दलमि उ१०३:३१११२ १३१,१३२.१४०,१४२,१४३ दलयानो उ ४ दवी (दार्वी) प ११४४।२ दारुहरिद्रा दलयित्ता (दत्वा) ३.८८ दध्वीकर (दर्वीकर) ५११६६,७० Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ दब्वेंदिय-दार दव्य दिय (द्रव्येन्द्रिय) प १५.१०३,१२६,१२६, दहफुल्लइ (दे०) प ११४०।५ १४३ दहबहुल (द्रहबहुल) ज १५१८ दस (दशन्) प ११६६ ज ११२३ सू १।२४ दहावई (दहावती) ज ४।१८८,,१८६ उ११७ दहावईकूड (दहावतीकूट) ज ४।१८८ दस (दशम) प १०।१४३ दहावती (द्रहावती) ज ४।१८७,१६० दसगुण (दशगुण) प ५११५१,२८॥७,५३ दहि (दधि) प १०२५:१७।१२८ ज २०१५ दसण (दशन) ज २११५,३।३५,१३८,५।२१ ७११७८ दसणह (दशनख) ज ३।२६,३६,४७,५६,६४,७२, दहित्ता (दग्ध्वा) ज ३१२ ७७ १३३,१८५,५।२१ दहियण (दधिधन) ज २।३११७१२८ दसण्ण (दशार्ण) प ११६३।४ दहिमुह (दधिमुख) ज २।११६ दहिमुहपदवय (दधिमुखपर्वत) ज २१११८,११६ दसवण्ण (दशार्धवर्ण) ज २११०,३६१२,८८; दहिवण्ण (दधिपर्ण) प१॥३६॥३ ४११६६,५७,५८ पदा (दा) दिति सू १०।१२६ देइ ज ७११२१४ दसघणु (दशधनुष्) उ ५:२२१ सू१०।१२६ उ ११११०देंति ज ७।११।३3B दसपएसिय (दशप्रदेशिक) प ५।१३०,१६१,१७६, उ ३1४८ १६५,२१६ दाइज्जमाण (दर्शयमान) ज ३।१८६,२०४ दसपदेसिय (दशप्रदेशिक) प ५१२७,१७६ दाइय (दायिक) ज २१६४ दसम (दशम) प १०११४१२,११२३३११,१११३४११ दाऊण (दत्वा) ज ५२५८ ज ७४६७,१०२,११४।२ च २४ सू ११६; दाडिम (दाडिम) प०३६।१ ज २११५ १०१७७.१२४/२०१२।२६,१३१८ उ १७; दाढा (दंष्ट्रा) ज ७१७८ २।१०,२२,३३१४,८३,१५०,१६१,४।२४; दाण (दान) ज ३११९७१ ५।२८,३६,४३ दाणंतराइय (दानान्तरायिक) ब २३१५६ दसमी (दशमी) ज ७१११८,१२५ सू १०१६० दाणंतराय (दानान्तराय) प २३।२३ दसरह (दशरथ) उ ५२२१ दाणकम्म (दानकर्मन्) ज ३।३२ दसविध (दशविध) सू १२।२६ दागव (दानव) ज ३।११५,१२४,१२५ दसविह (दशविध) प १३,१०१,१३१:५।१२४; दाम (दामन्) प २१४८ ज ३.१६७,४१४६,१२६% ११।३३,३४,३६,१३।२,२१,२३।१३ ५.३८ दससमयदिईय (दडसमयस्थितिक) प ५११४८ दामणिसंठिय (दामनीसंस्थित) सू १०।४६ दसहा (दशधा) प २।३०१ दामणी (दामनी) ज७।१३३।३ सू १०1४६ दसार (दसार) उ ५१५,१०,१७,१६ दामिणी (दामिनी) ज २।१५ दसारवंस (दसारवंश) ज २११२४,१५२ दामिली (द्राविडी) प ११६८ दह (द्रह) प २१४,१३,१६ से १६,२८,१११७७; दाय (दाय) ज २०६४ उ २०६५।१३,२५,५२ १५॥५५॥२ ज २१३१,३२१३३,४।३,६४,८८, दायव्य (दातव्य) सू २०६५ १४०।२,१४१,१४२,२०७,२६८,२७४।५।५५; । दार (द्वार) प २६१ ज १:१५ से १७,३८; ६१६१ ३।१०६,१६३, ४११०,६४,११५,१२१,१२२, दिह (दह.) दहइ ज ३।१२ १४७.२१७,२६२ च ५।४ भू ११६०४१०११३१ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दार- दाहिणिल्ल दार (दार) दारग ( दारक) ३१४८, ५० ११५३ से ५५,५७ से ५६,६१ से ६३,७८,८६,८२, २२६ ३६२.६८.१०१, १०६,१३०,१३१ दारगरूव (दारुरूप) उ३।१२६,१३४ दाय (दारक) ५३५७ ११५२.५४,५६,६० से ६२.७६ ७६,२४६.१० ३।११४.१२३.१२४ दारियत ( कात्व) उ३।१२५ दारिया (दारिका ) ३३६२, १८.१०१.१०६ ११४, १२३.१२६.१२८,१३०;४५,६,११ से १६१८, १६,२० दारु (दारू) ज ३।३२ दारु (दारुक) ज ३१७८ वालयिता (रवि) ज ४।३५ बालिताणं ( दलयित्वा ) प ११७४ दालिम ( दाडिम) प १६।५५; १७ १३२ दास (दास) ज २१२६६३।१०३ उ ११५४,५५,७६, ८० दासी (दासी) प ११३७५ काकजंघा, नीलाम्ला, नीलभिटी दासी (दासी) ज ३११०३ दाह (दाह) ज २४३ दाहिण (दक्षिण) प २११०,३२.३३.३५, ४३.५० से ५२.५४, ५६ ५८ से ६०,३११ से २७,१७६, १७८ ज १११८,२०,२३,२५.२६,३२,४६,४८, ५.१, २।६५.११३,३१६,१२,३६.१३६, १३७, १४६.१५०,१९,२०४,४१,२,१६.२३,२६. ३७,५५,६२,६५,८१,८६,८,६०,६. १०३.१०९,१०८.१२९,१३२,१६७ से १६६. १७२ से १७४१७७,१७८ १८०१८१,१८३, १८७,१६ मे १९१,१३४,१३३२०१ से २०३,२०५.२१०,२१४,२२०२३८,२६२, २६.२७१, २७४३.२१.३६.५३ ७१०१.१००.१२६ १७ ११५ से १७, १६:२११, ८११:१०१७२:१३१७६६ १८१४: ६.४५ २०१२ उ ३१५१,५३,६२ दाहिणअवर (दक्षिणापर) ज ३१८१ दाहिण उत्तराय ॥ ( दक्षिणोत्तरायता) ज ४।१४१ दाहिणओ (दक्षिणतस् ) प २२४०१३ दाहिणड्ढ (दक्षिणार्ध) १२।५० सू २१८११ दाहिणड्ढरट (दक्षिणार्धकच्छ) ज ४।१६८ से १७४ दाहिणभरह (दक्षिणार्धभरत ) ज १३१६, २१ से २३.४५ से ४७,३१,२०८४।३५ उ५।१० दाहिणड्ढ भरहकूड ( दक्षिणा भरतकूट ) ज ११३४, ४१,४५,४६ दाहिण दारिया ( दक्षिणद्वारिका ) यू १०।१३१ दाहिणभरह (दक्षिणाभरत) ज ११२० दाहि पदमि (दक्षिणपाश्चात्य ) १ ३ १७६, १७८ ज ३।३०,३१,१७२, १७३, ४११६,१६३. २०.२०६.२२३,२२६.२३०,५१३६, ४६ सू २०१२ दाहिणपच्चरिथमिल्ल ( दक्षिणपाश्चात्य ) ज ४१२३८ दाहिणपडोण (दक्षिणापाचीन) सु १११६ दाहिणपुरत्थि ( दक्षिणपौरस्त्य ) प ३ १७६, १७८ ज ४।१६.१०६.२०३,२२२,२२७,२२८; ५/३६, ४३ सू २११.२०१२ दाहिण पुरथिमिल्ल (दक्षिणपौरस्त्र) ज ४।२३८; ५१४४,४६ सू १११६;२1१; १२१३० दाहिणभुयंत (दक्षिणभुज न्त) सू २०१२ दहिमा (दक्षिणवात ) प ११२६ दाहियाल (दक्षिण' याली' ) प १६४४५ दाहिल ( दाक्षिणात्य ) प २१३२,३३,३५,३६, ३८,४३,४४,४७,३।१८ से २३:१६ ३४ ज १।२६,५१:२।११६,३३१४ ज १।२६,५१; २।११३,३३१४, १५, १८,३६,५१,५०,६१,८३, ८५८० से ६०,६२, ६३, १२९,१६२,२०६,२१६; ४।१७४ से १७६, १८२, १८३,१८८, १६५, २०१.२०२,२१२,२४८, २५१:५११४,४२,४५. Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ५२ १० १४२, १४७ दिदिलय (दे० ) उ ३१११४ दिट्ठ ( दृष्ट ) प ११०१३, ८ ज३।१२६ दिट्ठत ( दृष्टान्त ) प १७११४८३१८,२६,६३ दिट्ठेतिय (दान्तिक ) ज ५।५७ दिट्ठाभट्ठ (दृष्टाभाषित) उ ३२५५ दिठि (दृष्टि ) प २८ । १०६ । १ ज ३३१०५५/६७ दिट्ठिवाय ( दृष्टिवाद ) प १११।३१।१०१८ दिट्ठीविस ( दृष्टिविष ) प ११७० दिणकर ( दिनकर ) सू १६।१११२, १६१२११३, १६।२२।१२,१३ दियर (दिनकर ) ज ३१८८ १६।२२३० उ ३।४८,५०,५५,६३,६७,७०,७३, १०६,११२ दिण्ण (दत्त ) प २३३०,३१ ज ३३७, १८४५/२६ उ ११६६, १०३, १०९, ११०,११३, ११४; ३१४८, ५० दित्त ( दीप्त ) प २२४६ ज ३१६,१८, ६३,१०३, १८०,२२२७/१७८ सू १६/११/२,२११३, १६।२२।३० दित्त (दृप्त) ज ३|१०३ दित्ततव ( दीप्ततपस्) ज ११५ वित्तसिर ( दीप्तशिरस्क ) ज ३१६,१८ दिन्न (दत्त ) प २/४१ दिपंत ( दीप्यमान ) ज ३१६,१७,२१,३४,१७७, २२२ दिप्यमान (दीप्यमान ) ज ३११८,६३,१८० दिल्ली (दे० ) प ११५८ frase (द्वर्धद्वयपाधं ) १२३।७३,८३,१३५, १५२,१७२३३७,८ ज ६१८ १ ३१२:३; १८११ दिवड्ढखेत ( द्वयपार्धक्षेत्र ) सू १०/४, ५ दिवस (दिवस) २८ २७,७३ से ७६ ज २२६४; ३७६,६५,६६,११६,१२०,१३६,१६०,२०६; ७१२६ से ३०,११२।५,११७, ११८, १२६, १५६ से १६७ चं ५।३ सू ११६।३,१।१३,१४,१६, दिगिंदलय - दिसाणुवाय २१,२२,२४,२७,२१३, ३१२,४१८, ६, ६११, ८१,६२,३,१०१५,६३ से ७४,८६३, १२६६५ १६२२/१८ उ १६३,३१६४,६८,७१,७४, ७६,१२६,५।१३,४५ दिवसखेत ( दिवसक्षेत्र ) ज ७ २७, ३० दिवसतिहि ( दिवसतिथि ) सू १०१८६, १० दिवा (दिवा) ज ७।१२५ दिव्व (दिव्य ) प २ ३०,३१,४१,४६ ज ११३१, ४५,२१६७,६०,१००, ३१४, ५, १२, १४, १५, १८, २६,३०,३१,३६, ४३, ४४, ४७, ५१, ५२, ५६, ६०,६१,६४,६८,६६,७२,७६,८८,६२,६५, १०६,११३,११६,११७, ११६,१२२,१२३,१२६, १३०,१३१,१३३,१३६ से १३८, १४०, १४१, १४५, १४, १५०,१५६,१७२, १७३,१७८, १८०,२०६, २११, ५३१, ३, ५, ७,१६,२२,२६, २८,३०,४१,४३ से ४५,४७,५५,५७,५८, ६७,७।५५,५८,१८४, १८५ १८/२२, २३, १६।२६ उ ३ १७, ८५, १४, १२२, १२३,१६३; ४२५ दिवा (दिव्याक) प १३७१ दिसा (दिशा) प २/३०,३१,२४०१२, ८, १०, २१४१, ४६ ज १।३८ २ १३१ ३ १४, १५, २२,३०,३१,४३,४४,५१,५२,६०,६१,६८,६६, १०० से १११,१२५, १३०, १३१,१३६, १३७, १४०, १४१, १४९, १५०, १७२,१७३, १६५, २११६४।१०,१२१,१५३, १६३,२१२,२१७, २३८५१५२, ७४, ७ १७८ सू १२४; ५०१ उ ११२२, १४० ; ३५१, ५३, ५५,६३,६७,७०, ७३ दिसाकुमार ( दिशाकुमार ) प १११३१५।३; ६।१८ दिसाकुमारी (दिशा कुमारी) ज ५।१ से ३, ५ से १०,१२ से १७ दिसाचक्कवाल ( दिशा चक्रवाल ) ३१५० दिसावाय ( दिशानुपात ) प ३१ से १७,२४ से Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिसादि- दुक्ख ३७, १७६, १७८ दिसादि ( दिशादि) ज ४२६०१२ मेरुपर्वत दिशापोक्खि (दिशाप्रोक्षिन् ) उ ३।५० दिसापोक्खिय ( दिशःप्रोक्षिक) उ ३१५०, ५५ दिसापकिय (तावस ) ( दिनाप्रक्षितःपस ) उ ३१५० दिसाहत्यिकूड ( दिश: हस्तिकूट ) ज ४।२२५ से २३३ दिसि (दिश् ) प २२७, २२३०११, २०६३, ३११११ ; ११।६६,६६।१:२१।६५, १६, २८१६,३१,६५, ३६।५६,६६,६८,७०,७२ से ७४ ज ४:२०४, २१०,२१६,२२०:५१३०, ७१४८, ५०, ५२, ५३ उ १ । २४; ३ । ५१,५३,६२,८१,१४३, १५६ दिसोभाग ( दिग्भाग) ज ३।२०८, ५५,४४,४५ उ ३।११३३४५२० दिसोभाय ( दिग्भाग) ज ११३,३३१६२,२०४, २०८४।१२०,१३६,५५,७ चं ७ सू ११२ उ ५१५ दोण (दीन) उ ११५, ३५, ३१९८ दणस्सर ( दोन स्वर ) ज २।१३३ दीणस्सरता ( दीनरवरता ) प २३१२० दीव (द्रीप ) प १।७४,७५,८०,८१,८४,२१,४,७, १३,१६ से १६,२८,२६,३०११,२३२,३३,३५, ३६, ४०१२,६,११,२१४३,५०,५१,१५११२, १५।५४,५५,१६ । ३०,३३।१० से १२,१५ से १७३६।८१ ज ११७,१५ से १८,२०,२३, ૪૭ १०२. १७५, १८२.१६८ से २०८,२१० से २१३ सू १।१४,१६,१७,१६ से २२,२४,२७,२।१, ३,३।१,२,४१३.४,७, १०,६११, ८११,१०११३२, १४२, १४७, १२।३०:१८१७.२० १६ १.२.६, ७ ८१३,६,१२ मे १४,१५१३, १६ १६, १९२२, २४,१६३२८.३१ से ३४ उ ११६; ३१७,६१, १२५, १५७ ५१२४,४३ दीवकुमार (दीपकुमार ) प १।१३१,५३,६११८ दीवग ( द्वीपिक) सू १०।१२० दीवणिज्ज ( दीपनीय ) प १७ । १३४ २०१८ दीविग ( द्वीपिक) ज २३६ दोदय ( द्वीपिक ) प १६६११।२१ ज ३१३६; ५३२ दविगाह (दीपिका) ३।१७ दीपिया (दीपिका) प ११।२३ दीविया हत्यगय ( ह्तगत दीपिका) ज ५ १२ / दीस (दृश् ) दीनं ति प १३४८३५७ ज ७ ३६,३८ दीह (दी ) प ६४/४; १३।२३ ज २।१५,६६; ३।१०६, १६७।११ दोहसर (दीर्घतर ) ज ४ । ८० दीहवेयड्ड ( दीर्घवंत ढ्य ) ज ६ १० दोहिया (दीधिकः ) प २०४, १३, १६ से १६,२८; ११।०३ ज २।१२ दु ( ) प १|१३ सू ११४ दुइ (द्वितीय) प ३२२ ३४,३५,४६.४८,५१,२०१,७,५२,५६,६०,११६, दुंदुभय (दुन्दुमक) ज ७ १८६।२ सू २०१८ (दुन्दुभक) सू २०१८१२ ३१२,७८, १८०, २०६५१५ २२२६,४६,४७.५६,६७ उ ११२१,१२२, १२५.१२६,१३३.१३४,१३८, ३।१११; ४११८; १६१, १६४,३१६६,३६,४७,५६,११३,१३३, १३८,४११,३१,३२,३४,४१,५२,५४,६२,६८, ६६,७६,८१,८६,९०,६३,२८,११४,१५६, १६०,१६५,१६७,१६६,१७२ से १७४, १७८, १८१,१०२,२०१ से २०३,२०६,२१३,२६२. २६५,२६८,२७१, २७४,२७८,५१३,२१,२२, २६.४४,५२,७४६।१ से ५७ से २६७|१, ३.४, ८ से १४,३१,३३,३० से ३९.५२. ५४, ६२,६३,६७ से ७२, ८६, ८७.६१.६२,१०१. दुहि (दुन्दुमि ) ५।१६ दुक्काहुन ( दुष्कालबहुल ) ज १।१८ दुक्ख ( दु:ख ) प २६४।२२,६१११०;२०११८; ३५/१/१,२,३५११०,११; ३६३८८,६२,६४११ जे ११२२,२७.५०: २२५८,७१,८८,८६,१२३, Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४८ दुवखत्त-दुरूव दुपदेसिय (द्विपदेगिक) प ५१२७,१३०,१३१; १२८,१५१,१५७; ३।७७,६२,१०६.११६, १२१११,१२५,४११०१,१७१ सू १६०२२।१३ उ ११६३,१४१:३१८६५१४३ दुक्खत्त (दुःखत्व) प २८१२४ दुक्खभागि (दुःखभागिन् ) ज २११३३ दुक्खुत्तो (द्विम् ) सू १११२ दुखुर (द्विखुर) प ११६२.६४ दुग (द्विक) ज ७१३११२ दुगुंछा (जुगुप्सा) प २३१३६,७७,१४५ दुगुण (द्विगुण) सू १६३२२।२३ दुगुणिय (द्विगुणित) ज १२५ दुगूल (दुकूल) सू २०१७ दुग्ग (दुर्ग) उ ३१५५ दुग्गइगामि (दुर्गतिगामिन्) प १७११३८ दुग्गंध (दुर्गन्ध) ज २१३३ उ ३३१३०,१३१,१३४ दुग्गम (दुर्गम) ज ३१७७,१०६ दुग्गबहुल (दुर्गबहुल) ज ११८ दुग्गुल (दुकूल) ज ४११३ दुषण (छैधण) ज ५१५ दुजडि (द्विजटिन्) सू २०१८ दुज्जम्मय (दुर्जन्मक) उ ३११३१,१३४ दुज्जाय (दुर्जात) उ ३११३१,१३४ दुटठाणवडित (द्विस्थानपतित) प ५११३४,१४३, १४८,१५१,१६३,१६४,१८१,१६७,२१८ दुठ्ठ (दुष्टु) उ १८८,६२ दुतीस (द्वात्रिंशत्) ज ४१६४ दुईत (दुर्दान्त) उ ५१० दुईसणिज्ज (दुर्दर्शनीय) ज २११३३ दुद्ध (दुग्ध) प १११२५ उ ३१६८ दुधा (द्विधा) सू १९१६ दुन्निकम्म (दुनिष्क्रम) ज २१३२ दुपएसिय (द्विप्रदेशिक) प ५१५३,१५४,१५७, १५६,१६०,१७६,१७७,१६२,१६३,२१३, २१४,१०।७:११:४६ ; ३०१२६ दुपदेस (द्विप्रदेशिवः) प १०११४१ दुप्पउत्तकाइया (दुष्प्रयुक्ताायिकी) प २२२२ दुप्पव्वइय (दुप्प वजित) उ ३१५८,६०,७६ से ७६ दुप्पवेस (दुप्पवेश) ज ११२४ दुफास (दुम्पर्श) ज २११३३ दुबत्तीस (द्वि द्वात्रिंशत् ) सू १०११३८ से १४१, १४८,१५२,१२।२२ दुब्बल (दुबल) ज २१३३ दुभि (दुर्) प १३१२७,३१,२३।१०७ दुरिभक्खबहुल (दुर्भिक्षवहुल) ज ११८ दुबिभगंध (दुर्गन्ध) प ११४ से ६२०२० से २७; ५१५,७,२०५; १११५६:१७।१३६२८।२०, ३२,६६ ज ५५ दुब्भूय (दुर्भूत) ज २१४३ दूभागमंडल (द्विभागमण्डल) सू १५॥३७ दुम (द्रुम) ज २१८,१३,२०,५५० दुय (द्रुत) ज ५१५७ अभिनय का प्रकार दुरंतपन्तलक्खण (दुरन्तप्रान्तलक्षण) ज ३१२६, ३६,४७,१०७,११४,१२२,१२४,१३३ उ १८६,११५,११६ दुरभि (दुरभि) प२३१४८ दुरस (दूरस) ज २११३३ दुरहियास (दुरध्यास,दुरधिसह) प २०२० से २७ दुरुढ (आरूढ) ज ३।१७,२१,२२,३५,३६,७७, ६१,१७७,१७८,१८३,२०१,२०२,२१४,२१७; ५।२२,२६,४३ दुरुह (आ- रुह) दुरुहइ ज ३१२०,३३,५४,६३, ७१,८१,८४,१०६,११७,१३७,१४३,१६६, २०४,२२४;५१४१,४२३ १११६ दुरुहति ज ३।१११।४।५:१५ दुरुहति प १७।१०६, दुरुहिता (आम्ह य) ५ १७११०६ ज ३।२० उ १३१६ दुरुढ (वारूढ) उ १६१२४,१३१४।१२:५1१४ दुरूव (दुरूप) २११३३ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुरुह-दूसमदूसमा दुरूह (आ--रुह) दुरूहइ उ ११११०,४।१५ १४,१६,१८,२३ ज २११,५,६,५॥१६७।११४ दुरूहेइ उ ४।१८ सू १०८६,१२१,१२४,१८१२०,२०१३ दुरूहित्ता (आरुह य) उ ११११०,४।१५ उ ३१३१,३८,४०,४२,४४ दुरूहेत्ता (आरह य) उ ४११८ दुन्विसय (दुर्विपत्र) ज २।३१ दुल्लह (दुर्लभ) ज३।११७ सू २०६१ दुसमइय (द्विसामयिक) प १११७१:३६।६०,६७, दुव (द्वि) ज ११२५ च ४.३ सु ११८१३ उ १११११ ६८,७१,७५ दुवयण (द्विवचन) प ११८६ दुसमयद्वितीय (द्विसमयस्थितिक) प १११५१ दुवण्ण (दुर्वण) ज २११५,१३३ दुसमसुसमा (दुप्पमसुपमा) ज २१४६ दुवार (द्वार) ज ३०८३,८५,८८ से ६०,६३,१०३, दुस्समदुस्समा (दुप्पमदुप्पमा) ज २।२,३,६ १५४,१५७,१६२.१८६ दुस्समसुसमा (दुप्पमसुसमा) ज २२२,३,६,४६ दुवालस (द्वादशन ) प २१६४ ज १२० सू १११३ दुस्समा (दुष्पमा) ज २१२,३,६ उ२११० दुहओ (द्वितस्,द्वय) ज ४१६१ सू १०।१३६,२०१७ दुवालसंसिय (द्वादशासिक) ज ३१९४,१३५,१५८ दुहओवत्त (द्वितआवर्त) प ११४६ दुवालसक्खुसो (द्वादशकृत्वस्) ग १२।२ स ६,११ दुहणाम (दुःखनामन्) प २३१२० दुवालसमा (द्वादशी) सू १०।१४१,१४६,१४८,१५५, दुहट्ट (दुधाट्ट) उ १४५२,७७ दुहता (दुःखता) १ २३११६ दुवालसमी (द्वादशी) १०११४८,१५० दुहतो (द्वितम् द्वय) सू १०.१७३ दुवालसविह (द्वादविध) प ११३४; १२१३७ दहतोनिसहसंठिय (द्वितोनिषधसंस्थित) सू ४।३ ज ७१०४ सू १०।१२६ उ ३१७६,१४३ दुहत्त (दुःखत्व) प २८।२६ दुविध (द्विविध) सू ४१ दुहया (दुःखता) प २३१३१ दुविह (द्विविध) प१।१,२,४,१०,११,१६ ने १८ दुहा (द्विधा) ज १११६,२०,२३,४११,४२,६२,६४, २० से ३२,३४,४८ से ५१,५३,५७,५६ से १०८,१७२ ६१,६६,६७,६६,७५,७६,८१,८२,८८,९०, दूइज्जमाण (यमाण) ज ३.१०६ उ१२,१७, १००.१०२ से १२३.१२५ मे १२६,१३१ से ३।२६,६६,१३२,५:३६ १३८,५१,१२३,६।११५,११६:१११३१,३२, भगणाम (दुर्भगनामन्) प २३1३८,१२४ ३५,३६,४१,१२७ से १३,१६ स १८,२०, दूमिय (दे० धवलित) सू २०१७ २१,२३,२४,२७.३१ से ३३,१३११,८,२२ दूमिय (दून) उ १।५६,६३,८४ २३.२७.३१:१५॥१८,१६,४८.४६,६८,७१, दूय (दूत) ज ३१६,७७,२२२ उ ११९२,१०७ से ७२,७५,७६,१६३५,२८,३३,३५,१७४२.४,६, ११६,१२७ ६.१६,२३,२५.२७,१८११३,२५,५५.६३,६७ ६८,७६.७६,८६.६४.६७,६६१०१.१०६. दूर (दूर) प २१४६,५०,५२,५३,६३,१७११०६ १०६.१११,१२७,२११४ से ७,६ से २०,४६, ज ७।३६,३८ सु।।१ ५५.५८,५६,६१.६५,६६,७०।२२।२,३.८; दूरतराग (दूरतरक) प १७।१०८,११० २३१६,२६,२६,३२,३४,४८,५६,५७:२८१४, दूस (दुष्य) ज २१२४,६५,६९,३१९,२२२ ४०,५०,३६, २६३१.५,८,६,११,१४,३०१,५, दूसमदूसमा (दुष्षमदुष्षमा) ज २११३०,१३५, ७,११,१२७३३३१,३४११२,३५।११२,३१२, १३६ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५० दूसमदुसमा-देवगतिपरिणाम दूसमसुसमा (दुष्पमसुसमा ) ज २११२१ दूसमा (दुष्षमा) ज २।१२६,१४० दूसरणाम (दुःस्वरनामन्) प २३।३८,१२५ सि (दूष्य) प १७।११६ देय (देय) सू २०६२ देयड (दे० दृतिकार) प ११६७ देव (देव) प ११५२,१३०,१३८, २०३० से ३६, ४१ से ४३,४६,४७४१,४८ से ६३,२०६४।१४; ३।२६ से ३६,३८,३६,१३१,१३३,१३५,१३७, १३६,१८३:४१२५ से २७,३१ से ३३,३७ से ३६,४३ से ४५,४६,५५,१६५ से १६७,१७१, १७७ से १७६,१८३ से १८५,१८६ से १६१, १६५ से १६७,२०१ से २०३,२०७,२१३ से २१५,२२५ से २२७,२३७ से २४३,२४६, २४६,२५२,२५५ से २६६;६१२७ से ३८,४१ से ४३,५०,५२,५६,६५,७०,८१,८२,८५ से ८७,८६,९०,६२,६३,६५,६६,९८,६६,१०१, १०३,१०५,१०६,११०,११२,११३,७१८ से ३०८११०,११,६११११२१४५,५५॥३,८७ से ६३,१०८,१०६,११४,११५,११७,१२५,१२६, १३२,१३६,१४३;१६।२५,२६,३१,१७१४६, ५१,५२,७१:७३,७४,७६,७८ से ८१,८३,८६; १८१५,११:२०।४६,२११५१,५५,६१,६२,७०, ७१,७७,८३,६१ से ६३,२२६४१,४२,४५,७६; २३१३६,५४,८४,११४,१४६,१७२, १६४, १६६,१६८,२८९७,१०२,१०५,१३३,१४३ से १४५,३३३१,१६ से १८,२४,२५,३४।१५, १६,१८ से २५;३६।५०,८१ ज १११३,२४, ३०,३१,३३,३६,४५ से ४७,५१,२१६४,६०, ६५ से १६,१०० से १०२,१०४ से ११६, १२०,३।२०२४११,२,२५ से २८,३०,३२१२, ३३,३८ से ४१,४३,४६ से ४६,५१,६३ से ६५,६८,७१ से ७४,७६,८४,६२,१११ से ११५,११६,१२३ से १२५,१३१११,२,१३२ से १३४,१३६,१५०,१५१,१६७।१३,१७८,१८४, से १८६,१८८,१८६,१६१,१६२,१६८,१६६, २०७ से २१०,२१६,२२१,२२४,२२६;४।२, १३,१६,२०,५१ से ५४,६०,६१,८०,८४,८५, ६७,१०२,१०६,१०७,११२.११३,११४,१२०, १४१,१४२,१५०,१५६ से १६१,१६३,१६५, १६६,१७७,१८०,१८४,१८६,१८७,१६३, १६६ से २००,२०३,२०४,२०८ से २१२, २१५,२२६ से २३४,२३६,२४७,२४८,२५० से २५२,२६१,२६४,२६६,२६७,२७०,२७२, २७३,२७६,२७७, ५११,३ से ५,१४,१५,१६, २२,२३,२६ से २६,३६,४२,४३,४५,४७,४६, ५०,५.३ रो ५६,६१,६७,६६ से ७४,६।१६; ७।५५,५,६,५६,१६६,१७८।१,१८५,१८७, १८६,१६१,१६३,१६५,२१३,२१४ सू ६१; १३।१७,१७११:१८।२ से ४,१४ से १७,२१, २३,२५,२७,२६,३१,३३,३५,१६२३,२४, २६,२७,२०११,२,४,७ उ २।१३,३३५१,५६ से ६२,६५,६६,६६,७२,७५ से ६१,१५१, १५२,१५६,१६२ से १६५,५।५,२६,३०,४२, देव (देव) स १६।३६,३८ देव नामक द्वीप देवमण्णिआउय (देवासंज्ञवायुष्) ५ २०१६२,६४ देवउत (देवकुल) ज ५१५,७ देवकहरूहम (द कहकहक) ल ५१५७ देवकुमार (देवकुमार) उ ३१६२ देवकुमारिया (देवकुमारिका) उ ३१६२ देवकुरा (देव कुरु) ज ४।६४,६६,२०३,२०६ से २०८,२१३ देवकुरु (देवयुरु) प १८७,१६।३०,१७१६४ ज २।६।४।२०४११,२०७,२०८,२१०।१ देवकुल (देवकुल) ज २६५ उ ३३६ देवगइ (देवगति) ज २१६०३।२६,३६,४७,५६, ६४,७२,११३,१३३,१४५:५५५,४४,४७,६७ देवगइय (देवगतिक) प १३१२० देवगति (देव ति) प ६४,६ देवगतिपरिणाम (देवगतिपरिणाम) प १३।३ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवगतिय-देविंद १५० देवगतिय (देवगतिक) प १३।१५ देवगामि (देवगामिन्) ज १।२२,५०,२१५८,१२३, १२८,१४८,१५१,१५७,४११०१ देवच्छंदग (देवच्छंदक) ज ४२१६ देवच्छंदय (देवच्छंदक) ज ११४०,४।१३६,१४७, २१६ देवजुइ (देवद्युति) ज ३।२६,३६,४७,१२२,१२६, देवजुति (देवद्युति) ज ५।४४ उ ३.८५,१२२ देवज्जुइ (देवद्युति) उ ३।१२३ देवड्ढि (देवद्धि) ज ३१२६,३६,४७,१२२,१३३ ।। देवता (देवता) च ५२ सू हार देवत्त (देवत्व) प १५६६ से १०१,१०४ से १०६, १०८,११२,११४ से ११७,११६ से १२३, १२५,१२७ से १२६,१३१,१३२,१४३, उ २११२;३।१५०,१६१,५२८,४१ देवदारु (देवदारु) प ११४०।२ देवदाली (देवदाली) प ११३६१२,१७११३० देवदालिपुप्फ (देवदालीपुष्प) प १७.१३० देवदुहदुहग (देवदुहदुहक) ज ५१५७ देवदूस (देवदुप्य) ज २६५,१००,२११,५१५८ उ ३।१४,८३,१२०,१६१,४।२४ देवपव्वय (देवपर्वत) ज ४२१२ देवमइ (देवमति) ज ३।१०६ देवय (देवता) प १४८ ज ७/१२७११,१६७११ देवय (दैवत) ज २१६७,३१८१ सू १८१२३, उ १११७,७२,८८,६२,५।३६ देवया (देवता) ज ३३२,१०४,१०५,४१५३, १०६,२०४,२१०,७३० सू १०७८ से ८३ देवराय (देवराज प २१५० से ५६ ज १३१; १८६ से ६३,६५,६७,६६,१०१,१०३,१०५, १०७,१०६,१११,११३,११४,११७ से ११६, १८६,२१७,४१२२१,५।१८,२० से २३,२६ से २६,३६ से ४१,४३ से ४८,५४,५६,६०, ६१,६२,६५ से ६८,७१ से ७३ उ ३३१२२, देवलोग (देवलोक) प २०१६१ ज २०४६,१५६; ३।१ उ २।१३;३।१८,८६,१२५,१५२,१६५; ४।२६:५।३०,४३ देवलोय (देवलोक) ज २।४६ उ ५१४ देवसंघाय (देवसंघात) ज ७१७६ देवसयणिज्ज (देवशयनीय) उ ३१४,८३,१२०, १६१,४।२४ देवसयसहस्सीसर (देवशतसहस्रेश्वर) ज ३११२६।३ देवसिरि (देवश्री) उ ३११७१ देवाउय (देवायुषक) प २०१६३,२३३१८,३७,८०, १४६,१७० देवाणंदा (देवानन्दा) ज ७/१२० सू१०८८।३ उ ३.११३; ४१२० देवाणुप्पिय (देवानुप्रिय) ज ६५,६७,१०१, १०५,१०७,१०६,१११,११४,१४६, ३३५,७, १२,१५,१८,२१,२६,२८,३१,३४,३६,४१, ४७,४६,५२,५६,५८,६१,६४,६६,६६,७२, ७४,७६,७७,८३,६०,६१,६६,१०५,१०७, ११३,११४,१२५,१२६१४,१२८,१३३,१३८, १४१,१४५,१४७,१५१,१५४,१५७,१६४, १६८,१७०,१७३,१७५,१८०,१८३,१८८, १६१,१६६,२०७,२१२:५॥३,५,७,१४,२२, २६,२८,४६,५४,६८,६६,७२,७३ उ १११७, ३७,३६,४१,४४,५४,५७,६६,७६,८८,६८, १०७,१०६,१११,११३,११५,११६,१२१, १२३,१२७,१२६,१३१,३११३,७८ से ८१, १०२,१०३,१०६,१०८,११२,११५,१३६, १३८,१३६,१४८,४।११,१४ से १६,१६,२२, ५।१५,१८,२७,३२,४० देवाणुभाग (देवानुभाग) ज ३११२६ देवाणभाव (देवानुभाव) ज ३१२६,३६,४७,१२२, १३३,५१४४ उ ३.८५,१२२,१२३ देवाहिव (देवाधिप) ज ५१५४ देविंद (देवेन्द्र) परा५० से ५६ ज ११३१२१८६ से ६५,६७,६६,१०१,१०३,१०५,१०७,१०६, Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९५२ देविडि-दोणमुह १११,११३,११४,११८,११६४।२२१५१८, २० से २३,२६ से २६,३६,४०,४३ से ४८, ५४,५६,६० से ६२,६५ से ६८,७१ से ७३ उ ३१२३,१५० देविढि (देवद्धि) ज ५।४४ उ ३।१७,८५,६४, १२२,१२३,१६३, ४१२५ देवित्त (देवीत्व) उ ३११२० देवी (देवी) प २।३० से ३३,३५,४१,४३,४८ से ५१,३।३६,१३२,१३४,१३६,१३८,१४०, १८३,४१२८ से ३०,३४ से ३६,४० से ४२, ४६ से ४८,५२,५५,१६८ से १७०,१७४,१८० से १८२,१८६ से १८८,१६२ से १६४,१६८ से २००,२०४ से २०६,२१० से २१२,२१६ से २२४,२२८ से २३६:१७१५०,७२,७३,७५, ७६,७८,८०,८२,८३,१८।६,८,१२:२३॥ १६४,१६६,१६८ ज २३,१३,३०,३३,३६, ४५:२।१०,३१५२ से ५८,६०,१४०,१४१, १४३ से १४७,१४६,४१२,१७ से २०,२२,३३, ३४,५३,६४,८६,१५६,१६४,२०३,२३७, २३८,२४८,२५० से २५२,५१,५,१६,२६ से । २८,४२,४३,४५,४७,६७,७२,७३७१८३, १८५,१८८,१६०,१६२,१६४,१६६,२१४ चं ८ सू ११३;१८।२१,२३,२६,२८ ३०,३२, ३४,३६,२०६४ उ ११० से १३,१५,१७,१६ से २४,३० से ४१,४३,४४,४६,४८ से ५५, ५७,५८,७० से ७४,८८,६५,९७,६६ १०२, १०६,११०,११३,११४,१४६ से १४६,२।४ से ६,१६,१७,१६,२०,३६०,६२,९४,१२१ से १२५, ४१२५,२६,५।१०,१२,१३,१७,२५,३०, ६१,६६,१०८,२१।७४,२२१५५,५६,५८,७६ ज ११३०,३३,२२४:४१२२,३४,८३,११३, ११४,१६६,५१२६,७२१३ सू१।१६६.१; है।३।१०।१३८ से १५१,१६२ से १६६; १२।३०:१३।२ देसपंत (देशप्रान्त) उ १११३३,१३४ देसभाग (देशभाग) प २०१६.१७,३०,३१,४१,५०, ५२ ज २०१२,६५:३१३,११७,५।३५ सू ३९८ देसभाय (देशभास) प ११८.१६,२८,५१,५६,६४ ज ३।७,५१३३,३८ देसमाण (दिशत्) ज २०७२ देसि (देशिन्) प २१४१ देसिय (देशित) ज ३१२२,३६,६३,६६१०६,१६३, १८० देसूण (देशोन) ११२,१४,१७,२३,३५,३७,५१; २६४४,४५,४१११४ देसुणग (देशोनक) ज ३१२२५४।६,३३,१४७, १५५,२४२ देसोहि (देशावधि) प ३३।१।१,३३।३१ से ३३ देह (देह) ज ३।१०६ देहधारि (देहधारिन ) प ४१ ज ३१३ देहमाण (दे० पश्यत्) - ३१२२२, ५१६७ दो (दि) प२०१५६ १७.१११४ उ १११३५ दोच्च (द्वितीय ६८०१३३।१६,३६१६२ ३।१२८,१५१.१६२३.२५,२८ से ३०,१५७.१६१,१६५.१७० सू १११३.१४, १६.१७.२१.२४,२७,९१३, ६११; १०१६४.६८, १२७.१३६.१४०,१८४.१४५,१५८,१११२ से ४,१२१३,२०,२५; १३।१,१२,१३ उ ११३६, ४०.१११,१४३, २११,१५.२१,३३१,२०,२२ २३.५१.५३ ६०,६१.७७,७८.१०८ दोच्चा (द्वितीया) प३।१८३ दोणमुह (द्रोण मुख) प १७४ ज २२,१३१; ३११८,३१,३२,१६७१२,१८०:१८५.२०६, २२१ उ ३११०१ देवलिया (देवोत्कलिका) ज ५१५७ देवोद (देवोद) सू १६:३८ देस (देश) प ११३,४,२१६४।११,४१४३,४५,४६, ४८,४६,५१,५२,५४,५३१२४,१२५,१५३५३; ५४,५७,१८१५६,६४,७७,८१,८३,८४,५६ से Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोला-धम्मवर ६५३ दोला (दे०) १५१ २३,२४,३५,३७,६५,१३१,१५६,१६०,१७८; दोवारिय (दौवारिक) ज ३।६,७७,२२२ ४।१०,१२,५५,६२,८१,८६,६८,१०१,१०८, दोस (दोष) प ११॥३४१, २२१२०, २३१६ ११०,११४,१४७, ५४,२४८,२६२,२६५, ज ३१३२,११७ सू २२, २०।६।६ उ ३१३५ २६८,२७१,२७४ ७.१८२,२०७ सू १११४; दोसपिस्सिया (दोषनिधिता) प १११३४ १८।१३,२० उ १२२,१३८,१४० दोसपुरिया (दोषपूरिका) प ११६८ धणुगह (धनुर्ग्रह) ज २१४३ दोसिणा (दे० ज्योत्ना ) चं २।४ सू ११६।४; धणुप्पट्ठ (धनुष्पृष्ठ) ज १।१८,२०,२३,४८, १४।१ से ४,१६॥१,२ ४।१,१७२ जापाव (दोसिडाप्रल - 319.9818 से धणु हत्तिय (धनुःपृथकिवक) ५७५ धणु वर (धनुर्वर) ज २१६६,३७६,११६,११६, दोसिणाभा ('दोसिणा'आभा) ज ७१८३ १२०,१६७।३,१८५,२०६ सू १८१२१,२०१६ धणुह (धनु) ज ३१३१ दोसिणलक्खण (दोसिणा'लक्षण) चं ॥४ धण्ण (धान्य) प ११०२६ से २८ ज २१६६;३७६, सू १६४ ११६,११६,१२०,१६७।३,१८५,२०६ दोसिणालक्खण (दोगिणा'लक्षण) सू १६१ उ ३१४०५१४ धण्ण (धन्य) ज ५१५,४६,५८ उ ११३४,४०,४१, दोस्सिय (दौगिक) प ११६६ ४३,४४,७४,३।६८,१०१,१३१:५।३६ दोहाग (दीर्भाग्य ) ज २०१५ धन्न (धन्य) ज २१६४ उ ३१३८ दोहल (दोहद) उ ११३४,३५,४०,४१,४३,४४, धमाससार (धमाससार) प १७।१२५ धम्म (धर्म) प २०१७,१८:२२,२५,२८,२६,३४, ४५ ज ११४,२०६४,७२,११३,१३३ च ६ सू ११४ धंत (ध्मात) प ११४८१५६ ज २४ उ १२,२०,२१,३।१३,१०२,१०३,१३४ से धंतधोयरुप्पपट्ट (ध्मात धोतरूप पट्ट) प १७:१२८ १३६,१३८,१४२,१४७, ४.१४:५१२०,२७ धण (धन) २६६४,६६,३३१०३, १६७११४ धम्मत (ध्मा मान) जे ३३११७ धणंजय (धनञ्जय) ज ११७॥२.१३२॥१ धम्मकहा (धर्मकथा) उ ३७१ सू १०८६।२६७ धम्मचरण (धमंचरण) ज २१२६,१५८ घणवइ (घ. पति) ज ३१३,१८,६१,६३,१८० धम्मजामरिया (धर्मजागरिका) उ २।११,५१३६ धम्मणायग (धर्मनायक) ज ५।२१ धणिट्ठा (धनिष्ठा) ज ७११३।१,१२८ से १३०, भर धम्मस्थिकाय (धारितकाब) प ११३,३३११४ से १३६,१३८,१४१,१४६,१५६,१५७ सू १०११ ११६,१२२,५११२४,१५१५३,५४,५७; से ६,८,२०,२३,२६,५७,६३,६४,७५,८०,६४, १८.१२५ १२०,१३१ से १३३,१५२ धम्मदय (धर्मदय) ज ५।२१ घणु (धनुप) प ११७५२१६४।६।२१।४६,४७, धम्मदेसय (धर्मदेशक) ज ५२१ ४७।१,२,२११६५ से ६७,३६८१ ज १७,६, धम्मरुइ (धर्मरुचि) प १११०१।१,१२ १०,२३,२५,३८,४०,४३:२।६,१६,५२,५६, धम्मरक्ख (धर्मरूक्ष) प १६४३।१ ५८,८६,१२३,१५१,१५७,१५६,१६१, ३१३, धम्मवर (धर्मवर) ज २१६३:५।२१,२८ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मसरहि-धोव धम्मसारहि (धर्मसारथि) ज ५।२१, धम्मिय (धार्मिक) उ १४१७,१६,२४:४।१२,१३, धय (ध्वज) उ ३३१०८,१८४ धर (घर) प २१३०,३१,४०११०,२१४१,४६ से ५४ 1धर (५) धरेइ ज ५१४६,६०,६६ धरण (धरण) ज २३४,३५,४०६ ज ३।१८५, २०६५५२ धरणि (धरणि) ज २०१३२ धरणिखील (धरणिकील) सू ५१ धरणितल (धरणितल) ११७१०७,१०६,१११ ज ३।६।१२,३५,१०६ ; ४१२१३,२१५, ५।२१, ५८ धरणिसिंग (धरणिशृंग) सू ५।१ धरणीयल (धरणीतल) ज ३।१०६,११७५।५,४४ उ ११२३,६१ धरिज्जमाण (ध्रियमाण) ज ३।६,१८,७७,७८,६३, १८०,२२२ घरेत (धरत्) ज ३६२ धब (धव) प १३६।३ धवल (धवल) प २१३१ ज ११३७,२०१५३३६, १७,२१,३१,३४,३५,११७,१७७,१७८,२११, २२२,५१५८,७१७८ धवलक्सभ (धवलवृषभ) ज ५.६२,६३ धस (दे०) उ ११२३,६१ धाइकम्म (धातृकर्म) उ ३१११५ धाई (धातृ) उ १६४ धाय (धात) प २१४७१२ धायइसंड (धातकीषण्ड) प १५३५५१६३३०; १७।१६५ सू ८.१,१६।७,८११,२,१६४९% १६।२२।२५ धायई (धातकी) प ११३५१२,१५१५५११ धायईसंड (धातकीषण्ड) सू १६।२२।२३,२४ Vधार (धारय्) धारे ज ३।१२६।१ धारणा (धारणा) ज ३१३ धारणिज्ज (धारणीय) प २२११५,८० धारा (धारा) ज २११४१ से १४५३।१२,११५; ११६,१२२,१२४ धाराहय (धाराहत) ज ५१२१ धारि (धारिन् ) प २१३०,३१,४१,४६ धारिणी (धारिणी) ज ११३, २०१५ चं ८ सू ११३ धारिणी धारेयव्व (धर्तव्य) सू २०६५ धावण (धावन) ज ३।१७८,७११७८ धिइ (धृति) ज ४१८६ उ ४१२११ धिइकूड (धृतिकूट) ज ४१६६ धिक्कार (धिक्कार) ज २६२ धिति (धृति) सू २०६१३,५ धुर (धुर) सू २०१८ धुरय (धुरक) सू २०१८।५ धुरा (धूर) ज ३।३५,१७८,१८८ धुव (ध्रुव) ज ११११,४७,३।१६७,२२६, ४।२२, ५४,६४,१०२,१५६, ७४२१० धुवराहु (ध्रुवराहु) सू २०१३ धूमकेउ (धूमकेतु) प २।४८ सू २०१८।४ धूमकेतु (धूमकेतु) सू २०१८ धूमप्पभा (धूमप्रभा) प १।५३,२।१,२०,२५; ३११५,१६,२०,१८३;४।१६ से १५; ६३१४,७७,७८,१०११; २०१७,४१, २१४६७; ३३१७,१६ धूमट्टि (धूमवति) ज ३।१२,८८,५२५८ धूमाय (धूमाय) धूमाहिति) ज २११३१ धूया (दुहित) ज २।२७,६६ उ ३।११४,४१८,१६ धूलि (धुलि} ज २१३१,१३२ धूव (धूप) प २३०,३१,४१ ज २४०,२६५ ३१७.६.११,१२,२१,३४,८५,८८,४।१३०, १३६,२१८,२४२,५७,५७,५८ सू २०१७ उ ३१५०,११० धोत (धौत) ज ३।११७ धोय (धौत) प २१३१ ज ३१२४ धोरण (दे०) ज ३३१७८,७।१७८ Vधोय (धाव) धोवइ उ ४१२१ धोवसि उ ४१२२ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धोव्व-नलिणिगुम्म ५५ घोम्ब (दे०) ज ३।१६७६ नपुंसकलिंगसिद्ध (नपुंसकलिङ्गसिद्ध) प १११२ नपंसग (नपुंसक) प ११४६ से ५१,६०,७५,७६, ८१:१११२७ न (न) उ ११३७ नपुंसगवेद (नपुंसकवेद) प १८१६२,२३१७५ नउय (नयुत) ज २१४ नपुंसगवेदग (नपुंसकवेदक) प ३६७,१३।१६ नउयंग (नयुताङ्ग) ज २।४ नपुंसय (नपुंसक) प ६१७६ नंद (नन्द) ज २१६४; ३।१८५,२०६ नभ (नभस्) ज २१६५ नंदण (नन्दन) उ २।२।१ निमंस (नमस्य ) नमसइ ज ११६:५५८ नंदणयण (नन्दनवन) उ ५।६,७,३६ ३७ उ १।१६।३।८१,४।१३:५।२० नमसंति नंदा (नन्दा) उ ११३०,३१ उ४।१६,५१३६ नमसीहामि उ ३।२६ नंदि (नन्दि) प १५५५।१ नमसेज्ज ज २०६७ मंदिघोस (नन्दिघोष) ज ३।१७८ नमसमाण (नमस्यत्) उ ११६ नंदिय (नन्दित) ज ३१५,६,८,१५,१६३१,५३, नमंसित्ता (नमस्यित्वा) ज ११६ उ १८१६,३१८१; ६२,७०,७७,८४,६१.१००,११४,१४२,१६५, ४।१४।५।२० १७३,१८१,१८६,१६६.२१३;५।२७ नमिऊण (नत्वा) ११२ नंदीमुह (नन्दिमुख) ज २१२ नय (नय) सू श२५;२२,४१२ उ ११३८,४०,४२ नंदीसरवर (नन्दीश्वरवर) ज २।११६ नयण (नयन) उ १११५.३५,३१६८ नक्खत्त (नक्षत्र) पश१३३,२।२३ से २७,४८,५०, नयर (नगर) उ १२,२८,२६.१२१,१२२:३१४, ६३ उ २०१२ २१,२४,८६,१५५,१६८,१७१,४।४,६.७,१३, नगर (नगर) पश७४ ज २१७१:३१६,७७,२२२ १५,१८,२८,५।२४ से २६,४३ नगरावास (नगरावास) प २४४३ नयरी (नगरी) चं ६,७,८ सू१।१ से ३ उ १५६, नगरी (नेगरी) उ ११११० १०.१२.१६ ६३,६५६७,६८,१०५ से १०७, नग्गभाव (नग्न भाव) उ ५१४३ ११०,१११,११५,१२२,१२५,१२६,१३०, नच्चंत (नत्यत्) ज ३११७८ उ ११३६ १३२,१४४.१४५, २१४,५,१६,१७,३१६,११, निज्ज (ज्ञा) नज्जइ उ ११५४ २१ २७ से २६,४६,४८,५०,५५,६५,६६,६६, नट्ट (नाट्य) प २१३०,३१,४६ ज १४५ १००,१११,१५७,१५८,१६६,१७१,५।४,५,६, नदृविहि (नाट्यविधि) उ ३१७,२१,२५,६२,१५६, १६९७४।५ नर (नर) ज २६५,७१ नट्ठ (नष्ट) ज २११३३ नरग (नरक) प २२२ से २७,२।२७।३,४ नत्ती (नप्त्री) उ ३१११४,११५,११६ उ ११२६ नत्तु (नपत) ज २६६ उ २२२ नरच्छाया (नरच्छाया) प १६१४७ नत्तुय (नप्नक) उ १५१०६,११०,११३,११४; नरय (नरक) प २।२३;६१८०१२ उ १।१४० ३।११४ नरवइ (नरपति) उश१२४,१३१:५।१६ नत्यि (नास्ति) ५११८१,५११५५; ३६१३३ नलिण (नलिन) प ११४६,१४४८१४४ नदी (नदी) प २१४,१३.१६ से १६,२८; नलिणहत्थगय (हस्तगतनलिन) ज ३.१० १५५५।२ नलिणिगुम्म (नलिनीगुल्म) उ २।२।१ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव-निक्कट्ठ नव (नवन्) प ११८११ ज ३।१०६ सू श१४ उ११५३ नव (नवम) प १०।१४।३ नवणउति (नवनवति) सू ११२१ नक्ण उय (नवनवति) सू १२६ नवणवति (नवनवति) सु ११२१ नवति (नवति) सू २१३ नबम (नवम) ५ १०११४।१,२ उ १ २२ नयरं (दे०) प २।४०,४४,६२,५१४२,४३,४६, ५०,५४,६४,८७,९८,१०२,१०५,१०८.११२, ११७,१२२,१३२.१४८,१५१,१६७,१७०, १७५,१७८,१७६,१८२,१८५,१८८,१६४, १६८,२०४,२०,२०८,२१३,२१५.२१६, २१६,२२२,२२५,२३५,२४०,२४३, ६।४६, ५६,७४ से ७८.८०,८१,८३,८४,८६,८६,६२, ६४,१००,१०७,१०८,११२,११८२,८३, १२॥३१, १३।१५,१५।६०,६२,६६,६७,१४३; १७.६६, ३६।६ सू११२२ उ १११४८,२१२०; ३१७,१३, ४१५५११३ नवविह (नवविध) प १७:१३६ नह (नख) उ ११३६,५५,५८,८०,८३,६६,११६ ११८,३।१०६,१३८,५१७ नाइ (ज्ञाति) उ ३.४२,११०,१११:४११६,१८ नाइय (नादित) ज ३७८,५।२२ नाग (ग) प २३०११,२१४०।१० ज ३११८५, २०६ नागकुमार (गकुमार) प १११३१,२।३५,४१४३ से ४५.५५,५८,६१८.६१ नागकुमारत्त (नागकुमारत्व) प ३६।२४ नागकुमारराय (नागकुमारराज) प २१३६ नागकुमारी (नागकुमारी) प ४१४६ से ४८ नागपव्यय (नागपर्वत) ज ४१२१२ नागमाल (नाममाल) ज २१८ नागलता (नारलता) प ११३६१ नाडइज्ज (नाटकीर) ज ३१७४ नाण (ज्ञान) प २१६४।१२।४३,८७,१०२,१०५, ११५ ज २१७१,८५,३।२२३:५।२१ उ ३।४४ नाणत्त (नानात्व) प २४० नाणा (नाना) ज ४।१३ नाणाविह (नानाविध) उ ५१५ नादित (नादित) ज ३।२०६ नाम (नामन्) ५१।१०११५, २१३०११,२१५८,६१; २३३१५१ ज ११४६,३।२४४।२६२ च ६,७, ८,१० सू ११ मे ३,५,६ उ १११ से ३,९ से १३,२८ से ३२,६५,१४४ से १४६, १४८; २।४ से ७.१६ से २०,२२, ३1४,६,१०,२१, २७.२८,४८,५०,५५,८६,६५ से १७,१३२, १५५,१५७,१५८,१७१,४७ से ६.२८; ५।२।१,४ से ७,६.११ से १३,२१,२४ से २६, ४०,४१ नामधिज्ज (नामधेय) प २१६४ नामधज्ज (नामधेय) ज ३।१३५.१ सू १०।८४ उ ११६३; २६।३।१२६ नामय (नामक) च ५२ सू १६२ नायव्य (ज्ञातव्य) ५११४८६.१६१०११४,१२ सूश२५:२।२ नारी (नारी) ज १६५ नालिएरी (नालि केरी) प ११४३१२,११४७११ नालियावद्ध (नालिकाबद्ध) प १४८१४१ नासा (नासा) ज ३१२११:५५८ निउण (पुण) प २१४१ ज ५७ निओय (नियोग) ज ३११७८ इनिंद (निन्द) निदंति उ ३.११६ निदिज्जमाण (निन्द्यमान) उ ३।११८ निबकरय (निम्बकरज) ११३५३ निकुरंब (निकुरम्ब) उ ३।४६ निक्कंकड (निष्कङ्कट) ज २३१ निक्कंकडछाया (निकट छाया) प २।३०,४६. निक्कंखिय (निष्कासित प १११०१।१४ निक्कठ (निकृष्ट) उ १११३८ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निक्खंत-निन्भच्छणा ६५७ निक्खंत (निष्क्रान्त) उ ३.१७०४।२८,५।२७ निच्छय (निश्चय) उ ३३११ निक्खम (निर्-। क्रम्) निक्खमइ उ १११६ निच्छुहाव (नि ! क्षेपय ) निच्छहावेइ उ ११११७ निक्खमण (निष्क्रमण) ज ४११७७ उ ३३१०६; निच्छुहाश्यि (निक्षेपित) उ ११११६ निच्छूद्ध (निक्षिप्त) उ१।११८ निक्खममाण (निष्कामत् ) सू १।८।२,१११२ १४, निज्जर (दिर : ज़) निज्जरंति प १४।१८ १६,१८,१६,२१ २४,२७, २।३:६११ निजरिसु प १४.१८ जिनिस्संनि निक्खमित्ता (निष्क्रम्य) उ १२११६ प १४११८ निज्जरेंसु प १४६१८ निक्खित्त (निक्षिप्त) उ ३।४८.५०,५५ निज्जरा (निर्जग) प १४।१८१ निक्खेव (निक्षेप) उ १११४८ निज्जाणसंठिय (निर्याणसं स्थित) सू ४१३ निगम (निगम) प ११७४ ज ३६,७७,२२२ निज्जाणभूमि (निर्याणभूमि) ज ५१४८ निगर (निकर) ज ३।१२,८८; १५८ निज्जाणमग (निर्माणमार्ग) ज ५१४४ उ ३१६१ निगिण्ह (नि-+ग्रह ) निनिम्हइ ज ३१२३,३७, निज्जुत्त (नियुक्त) प २।३० निज्झर (निर्भर) ज २।४,१३ १६ से १६,२८ निगिहित्ता (निगृह य) ज ३१२३ निट्टियट्ठ (निष्टिताथं) ५३६९४ निगोद (निगोद) प ३६१ से ६३.७० से ७४,५२, निण्ण (निम्न) ज ३१७७,१०६ ८४ से ८७,६४,६५,१८३;१८।४६ नितंब (नितम्ब) ज ४।१६४ निगोय (निगोद) प ११४८।५६ से ५८,३१८७ नित्तेय (निस्तेजम्) उ १६३५ निग्गंथ (निन्थ) ज २१७२ उ ३१३८,४०,४२, निदाया (दे०) ३५१८,१६ १०३,१३६,४।१४।५।२० निदाह (निदाघ) ज ७१११४१२ निम्गंथी (निर्ग्रन्थी) ज ३।१०२,११५,११७,११८; निद्दा (निद्रा) प २३६१ ४१२२ उ ३११०२,११५,११७.११८,४१२२ । निद्दायमाण (निद्रायमान) उ ३।१३० निग्गच्छ (मिर-गम्) निगच्छइ उ १११६; निद्ध (स्निग्ध) प१४ से ६.५,७,१२६.२१४, ३।१३; ४.१३,५।१६ २१८,२२१,२२६; १३३२२; १७११३८ निग्गच्छित्ता (निर्गत्य) उ ११६,३।२६,४।१३ __ ज ३।१०६ निग्गय (निर्गत) चं ६ सू ११४ उ ११२,१६२।६; निन्न (निम्न) उ ३१५५ निष्पंक (निप्पङ्क) प २।३०,३१,४६,५६,६३, ३१५,१२,२४,८६.१४७१५५,१५६,४१४,१०; ५।१४,२६,२७,३७,३८ ६४ ज १३१ निष्पपसिणशागरण (निःस्टप्रश्नव्याकरण) निग्घोस (निर्घोष) ज ३११२,७८ उ ३.२६ निघस (निकष) ज ११५ निप्पाण (निष्प्राण) उ १२६० ६१ निचिय (निचित) ज ५५ Vनिष्फज्ज (निर्- पद्) निष्फज्जए ज ७।११२।४ निच्च (नित्य) परा२४,२६,२७ सू१०।१२६१४ निष्फज्जति पहा२६ निच्चच्छणय (नित्यासः क, नित्यक्षणक) उ ५५ निष्फन्न (निष्पन्न) ज २११८ निच्चालोय (लित लोक) सू २०८१६ निम्फाव (निप्पाव) प ११४५३१ ज ३।११६ सेम निच्चिट्ठ (निश्चेष्ट) 3 १।१०.६१ निम्भंछ (निर| भत्सं ) निभच्छेइ उ ११५७ निच्छुभिउकाम (निक्षेप्नुकाम) उ १११३ निभच्छणा (निर्भर्सना) उ ११५७,८२ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निम-निविट्ठ निभ (निभ) ज ३।१०६ निरुवक्कमाउय (निरुपक्रमायुष्क) प ६।११५,११६ निमज्जग (निमज्जक) उ ३१५० निरुवलेव (निरुपलेप) ज २१६८ निमित्त (निमित्त) उ १४१,४३ निरुवहय (निरुपहत) उ ३१३२ निम्मंस (निर्मास) उ ११३५ निरोदर (निरुदर) ज २१५ निम्मम (निर्मम) प २१६४।१ निलाड (ललाट) उ ११२२,११५,११७,१४० निम्मल (निर्मल) प २१३१,४१,४६,५६.६३,६४ ।। निवइय (निपतित) ज ३।२५,३८,४६ ज ७४१७८ ििनवज्जाव (नि। सादय) निवज्जावेइ उ ११४६ नियम (निजक) ज २१६३ उ १११६,१३६, ३२५०, निवज्जावेत्ता (निप.द्य) उ १।४६ ६८,११०,१११,१२८,४११३,१६,१८ निवडिय (निपतित) उ ११२२,१४० नियत्त (निकृत्त) उ ११२३,६१ निवडढेत्ता (निवऱ्या) ज ७४२७ नियत्थ (दे०निवसित) उ ३१५१,५३,५५,६३,६७, निवडढेमाण (निवर्धयत् ) ज ७१२५,२७,३० ७०,७३ सू११२० नियम (नियम) प ६।११६,१०।६,२१,१११५५ निवत्त (निवृत्त) उ १२६३ २१:१०३ ; २२१५० से ५२,६७, २७।२ भिवयउप्पय (निपातोत्पात) ज ५१५७ उ ३।३१ निवह (निवह) ज २१६५,३१६३,१५७.१६३ नियमसो (नियमशस) प २१६४१११ निवार (नि+ वारय्) निवारेंति उ ३१११७ नियमा (नियमा) ज ७/४८ निदारिन्जमाण (निवार्यमाण) उ ३३११८ नियल (निगड) उ १.६५,६६,६८,७२,८८,६२ निवृढिता (निवi) सू १।१४ निरंगण (निरङ्गण) १ १११२५ निवुड्ढेत्ता (निवध्यं) सू ६१ निरंजण (निरञ्जन) ज २६८ निवुड्ढेमाण (निवर्धमान) सू ११४,२१,२७,२॥३; निरंतर (निरन्तर) १६४७ से ५८,१०६,११०% १०३५ से ३६,४१ से ५३,१११७०,२०११६. निवेदण (निवेदन) ज २१३० ४४,६०,२२१११,२७,५३, ३६।२४ ज ५५,७, निवेस (निवेश) प १७४ ज ३।१८,६१,६६, निरय (निरय) परा१,१० ज २१३३ १३१,१३७ उ १११३३,१३४ निरयगति (निरयगति) प ६१,६ निवेसिय (निवेशित) उ ३९८ निरयपत्थड (निरयप्रस्तर) प २११ निश्वत्त (निर्वत्त) २१६७११ ज ३।१४,४३,१४६ निरयावलिया (निरयावलिका) प २।१,१० उ ११५ निव्वत्तणया (निर्बर्तन) प ३४।१,२,३ से ८,१४२,१४३,१४८,२१,५१४५ निव्वत्तणा (निर्वर्तना) प १५१६०,६५ निरयावास (निरयावास) प २।२५ निब्वत्तणाहिकरणिया (निर्वर्तनाधिकरणिकी) निरवकंख (निरवकाक्ष) ज २१७० प २२।३ निरक्यव (निरवयव) उ ३७६ निवत्ति (निर्वृत्ति) प १४८५३ निरवसेस (निरवशेष) प ३४२१ ज ४११६०,२७७ निवाघाइय (नियाघातिक) ज ७/१८२ उ११४७ निवाघातिम ( निघातिन, निर्याघातिम) निरालंबण (निरालम्बन) ज २१६८ सू१८१२० निरालोय (निरालोक) उ११२२,१४० निवाघाय (निाघात) ज १७ ज ३२२३ निरावरण (निराकरण) ज ३१२२३ निस्विट्ठ (निर्विष्ट) ज ३६३२।१,२२१ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निविट्टकाइय-नोइंदियउवउत्त निविठकाइय (निविष्टकायिक) प १११२७ निविण्ण (निर्विण) उ ११५२,७७ निम्वितिगिच्छा (निविचिकित्सा) प११०१११४ निविसमाण (निविशमान) प ११२७ निव्वुइकर (निर्वृतिकर) ज ५१३८ निवडढ़ ( निर्धय) निबुड्ढेइ सू ६.१ नित्य (निर्वत) उ १।६१,६२,८६,८७ निवेड्ढ (निर्+ वेष्टय) निवेड्ढे इ सू २।२ निव्वेढेति सू २।२ निव्वेयण (निर्बेदन) 3 १६१,६२,८६,८७ निसंत (निशान्त) उ ३११३८ निसढ (निषध) ज ४१९४ उ ५।२६१,५।१३,२०, २२,२३,३१,३२,३४ से ४३ निसम्म (निशम्य) ज ३।६१ उ १२१:३११३; ४११४:५/३० निसामत्तए (निशमितुं) उ ३३१०२,१३४ निसास (निःश्वास) ज ३।२२१ उ ५६४३ निसीय ( निषद्) निसीयइ उ ११४१ निसीयित्ता (निषद्य) उ ११४१ निसीहिया (निषाधिका,नषेधिकी) उ ४॥२१ से २३ निसेग (निषेक) प २३।७४ निस्संकिय (नि:शंकित) प११०१।१४ निस्सग्ग (निसर्ग) प ११०१११ निस्सासविस (निःश्वासविष) ५ १७० निहाण (निधान) प १।११२ निहिरयण (निधि रत्न) ज ३।१६६ से १६८ इनीण (ती) नीणेइ उ ११६७ नीय (नीच) उ३११००,१३३ नीरय (नीरजस) प १४१,४६,५६,६३,६४ नील (नील) प ११४ से ६; ५।२०५:१११५३; २८।२० ज ४२६ नीलपत्त (नीलपत्र) प ११५१ नीलमत्तिया (नीलमत्तिका) प १११६ नोललेस्स (नीललेश्य) प १७१६४ नोललेस्सा (नीललेश्या) प १७३७ नीलवंत (नीलवत्) ज ४११४२।३,१७८,१८०,२०७ २२७ नीलासोय (नीलाशोक) १७।१२४ नोली (नीली) प ११३७।१ नील नीव (नीप) ज ५।२१ इनीसस (निरन श्वस्) नीससंति प ७१ से ४, १ से ३०; १७१२५ नीसा (निश्रा) ज २।१३३ नीसास (नि:श्वास) प ११४८८५३ ज २१४१; ५८ नीहरण (निर्हरण) उ १६२ नूणं (नूनम् ) उ ३।३८ ने उर (नुपूर) ज ११२६ नेमि (नेमि) ज ३।३५ नेयत्व (नेतन्य) प २।४७१३, ३६.२७ ज ४।७५ सू २।२४।२ उ ११४८, २।२२,५१४५ नेरइय (नरयिक) प ११५२,५३,२।२० से २७; ३।१० से २३ ३८,३६,१२६,१८३,४।१,.. से २४,५२३ से ५,८,२२,२७ से ३४,३६,३७, ४०,४१,४४,४५,६।१० से १६,४५,४६.५१, ५८,६०,६५,६८,७०,७३ से ७८,८०८:, ८७,८८,६० से ६३,६६,६६,१०१ से १०३, १०५,१०६,११०,११४,११७,११६,१२१ ७१,८१२,४,५,६२,१४,२१,२४,१०१ : ५१; १११४०,४१,१५१६०,६१,८८; ११::: १७१६,१०१,१८१२,२०१६३;२०१३ २८।१०६,३६१२२ उ १।२६,१४० नेरइयअसपिणआउय (नरयिकासंज्ञयानक प २०१६४ नेरइयत्त (नरयिकत्व) उ ११२६,२७,१० नेवत्थ (नेपथ्य) ज ३३१७८ नेसप्प (नंसर्प) ज ३।१६७१ नेह (स्नेह) उ ११७२,७३,८७,८८.६२ नो (नो) पश२ सू १११८ उ १।१५८ ४१२२ नोइंदियउवउत्त (नोइन्द्रियोपयुक्त) ५ ३।१७० Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोइंदियजवणिज्ज-पउस. नोइंदियजवणिज्ज (नाइन्द्रिययापनीय)3३।३२, ३०,६०,६४,८४,१५४,१५५,२६६,२७२; ५।५५ ५६७।१७८ उ२१२,६ से १३ नोजुग (नोयुग) सू १२१७ पउम (कंद) (पद्मकन्द) ५११४८।४२ नोपज्जत्तगनोअपज्जत्लग (नोप निकनोअपर्याप्तक) पउमंग (पद्गाङ्ग) जरा४ प३।११० पउमगुम्म (पद्मगुल्म) उ २१२११ नोपज्जत्तनोअपज्जत (नाप प्तिनो पर्याप्त) पउमद्दह (पद्मद्रह) ज ४।३,४,६,२२,२३.३७, प३१११० ३८,६४.८६,१४१,५४५५ नोपरिर नोअपरित (नोपरीतनो अपरीत) प३।१०६ पउमपरा (पद्मपत्र) ज ५१३२ नोभवसिद्धियोअभवसिद्रिय यमप्पभा (पत्रमा) ज ४।१५४,१५५।१,२२१ (नोम सिद्धिकनोभवमिडिक) प ३।११३ पउमभद्द (पद्मभद्र) २२.१ नोसंजतनोअसंजतनोसंजतासंजत पउमलता (पद्मलता) प ११३६१ (नोनयननो संयतनो दामन) प३।१०५ पउमलया (पदमलता) ज १३७,२।११,१०१; ४।०७।२८,३२३४;७।१७८ नोसंजयनोअसंजयनोसंजतासंजत पउमबरोइया (पद् गवरवेदिका) ज ११० से १२, (ोतं तनातनोगयतागयत) प ३३१०५ १४,२३,२५,२८,३२,३५,५१:४३१,३,२५,३१, नोसणि नोअसष्णि (नोगंज्ञिनोसंजिन) प ३१११२ २६,४३,४५,५७,६२,६८,७२,७६.७८,८६, नोसुहुमनोबादर (नोसूक्ष्मनोबादर) ५ ३।१११ ६५,१०३,११०,११८,१४१,१४३,१४८,१४६, १७८,१८३,२००,२०१,२१३,२१५,२३४,२४० पइठ्ठ (प्रतिष्ठ) ज ७/११४।१ से २४२ पइट्ठा (प्रतिष्ठा) ज ५१२१ पउमसेण (पद्मसेन) उ २।२।१ पइट्ठाण (तिष्ठान) ज ३।१६७।११,३।२०६, पउमा (पद्मा) प ११४८४ ज ४११५५११,२२१ २१०।४।२६:५१५६ पउमहत्थगय (हस्नगतपद्म) ज३।१० पइति ( : तिष्ठित) प २६४१२ पउमावई (पदमावती) ज ५।१०११उ ११११, पइट्टिय (अतिटित) १२१६४।३ ; १४१८।१ १६ से १.२,१४४२।४,७ से १,१६:५।२५ पइण्ण (कीर्ण ) ज ३।१२० पउमुत्तर (पदमोत्तर) प १७।१३५ ज ४१२२५॥१, पइण्णग (प्रकीर्णक) प १११०१।८ पिउंज ( गुज) पउंजइज २१६०,६३,३१५६, १४५५॥२१,५८ पउंज ति ज २११८३।११३; पउनुपलपिधाण (पद्मोत्पल पिधान) ज ३।२०६ १८५,२०६३ पउय (प्रयुत)ज २१४ पउंजमाण (प्रमुजान) ज ३।१७८ पउयंग (प्रताङ्ग) ज २१४ पउंजिता (प्रयुज्य) ज २०१० पउर (प्रचुर) ज २३१३१,३११०३ उ ५५ पउट्ठ (कोष्ठ) ज ७११५८ पउरजंघा (प्रचुरजंघा) ज २१५३,१६२ पउम (पद्म) प ११४६,११४८१४१,४४,६२, पउरजण (पौरजन) ज २१६५ २।४६११।२५ ज ११५१,२१४,१५,१६,३१३, पउल (दे०) प ११४८।६ १०,१०६:२०६;४१६,७,१४,१५,१७ से २२, पउस (पओम) पर Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउसीया-पंचवीस ९६१ पउसिया (बकुसिका) ज ३।११०१ पंचगुमितल (पंचांगुलितल) ज ३१५६ पएस (प्रदेश) प १४,११४८१५८,५९२१६४, पंचोलिया (पञ्चाङ्गुलिका) प १४०।१ २०६४।११:३।१८०।५।१३२,१३६ से १४५, पंचगि ((गच्चाग्नि) उ ३०५० १६०,१६१,१७६ १६५,२१४,२१६:१०१२ से पंदण उय (पञ्चनवति) ज ४।११८ १,१८ से २४,२६ से ३०,१११५०; १५।१११; पंचतीत (पञ्चविंशत् ) सू १३१२५ १५॥१२,२५,५४ ; १५११४१ ; २०१।१; पंचपएसिय (पञ्चप्रदेशिक) प १०१० २२१५६,३६८२ ज २१५:३।११७,५१३८%, पंचम (पञ्चमी पंचम (पञ्चय) प ३।१६,१८३,६८०१; ६६१,३,७१७८ १०११४।३;१२१३२:१७१६५; २२१४१,४२, पएसठ्ठया (प्रदेशार्थ) प ३।१२२,१८०,५१२४, ३३११८:३६१८५,८७ ज १८८,४११०६; २८,६८,७८,८६,११५,१३६,१३८,१४०,१४३, ७।१०१ से ११०,१३११ सू१०७७.१२७; १४७,१५०,१५४,१६३,१६६,१६३,१६७ ६३३१११२,६,१२१६,१३१० उ २।२२, २००,२१४,२१८,२२१,२३०,२४२:१०॥३,२७ 1७४,७६,१५४,१६६,१६७,५११,३,४५ से २६:१५॥१३,२६,३१,१७१४४ से १४६, पंचमी (पटनमी) ज ३१२४१४ १२:४५२,११८, २११०४ उ ३१४४ १२५,१२११४ सु १०।६०; १२१२८ पओग (प्रयोग) प ११११५,१६११ से १८ पंचमठिय (परमप्टिक) ज ३।२२४ उ ३।११३ __ ज ३।१०३,११५,१२४,१२५ पंचय (पञ्चक) प २३।२६,२७,६१ पओगगति (प्रयोगगति) प १६।१७ से २१ । पंचराइय (पञ्चरात्रिक) ज २७० पओगि (प्रयोगिन् ) १६१० से १५ पंचलइया (चलतिकर) ज ३१८८ पओय (प्रयोग) उ ३।१०१ पंचम (चवर्ण) ज १।१३,२१,२६,३३,३७, पंक (पङ्क) प १६।५.४ ३६,२७,५७,१२२,१२७,१४७,१५०,१५.६, पंकगति (पङ्कगति) प १६१३८,५४ १६४:३१,७,२६,३६,४७,५६,६४,७२,८८, पंकरपभा (पङ्कप्रभा) प १५३,२१,२०,२४; ११३,१३३,१३८,१४५,१६२,४१६३,११४; ३.१४,२०,२१,१८३:४११३ से १५६१३, ५१३२,४३ सू २०१२ ७६,७७,१०११;२०१६,१०,४०,२१६७:३३१६, if पंच पिणय (पंचणिक) ज ३।११७ काज १६ उ ११२६,२७,१४० पंचध (पञ्चविध) सू २०१७ पंकबहुत (पङ्कवहुल) ज २११३२ पंचविह (पञ्चविध) प १४,१४,१५,५५,५८,६६, पंकय (पङ्कज) ज ३।३५ १२४,१३३,१३८,१११७३;१३१४,६,१२,२४ पंकावई (पावती) ज४।१९३ से १६६ से २६,२८; १५॥१८ से ६०,६२,६३,६.५ से पंकावती (पावती) ज ४१६५ ६७; १६।५,१७,२५,२७,२११२,३,५५,७५,७६, पंच (पञ्नन्) प ११७४१९ च ३।३ सू १० १४:२३।१७,२३,२५,२७,४०,४१,४३,४४,४६, उ १२ ५६३४।१७,१८ ज २२१४५:३१८२,१८७, पंच (पंचम) प १०१४।४ से ६ २१८,७।१०५,१११,११२ सू १०।१२७ से पंचक (पञ्चक) प २३।१.४ १२६:१६।२२।२१ उ ३३१५,८४,१२१,१६२ः पंचग (पञ्चक) प २३११५५,१३७,१८० ४१२४:५१२५ ज७१३१२ पंचवीस (पञ्चविंशति) सू ११२१ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पंचसइय-पक्कणी पंचसइय (पञ्चशतिक) ज ४११६२,१६८,२०४, ३६७,४०,५१,५७,७२,७३,६२ २१०,२३७,२६३,२६६,२७५ पंजर (पञ्जर) १ २।४८ ज ३१११७,४१४६ पंचसतर (पञ्चसप्तति) सू १९४२२१३२ पंजलिडड (प्राञ्जलिपुट) ज ३।१२५,१२६,५४५७ पंचसत्तर (पञ्जसप्तति) सू १८१४ । उ १३१६ पंचाणुब्वइय (पञ्चानुनतिक) उ ३७६ पंजलियड (प्राञ्जलिपुट) ज १६:२१६०३।२०५, पंचाल (पाञ्चाल) प १४६३०२ २०६५१५८ पंचावण (दे० पञ्चपञ्चाशत) ज ७८१,८४ पंडग (पण्डक) उ ३३६ पंचासीइ (पञ्चाशीति) ज ७२५ पंडगवण (पण्डकवन) प २११८७ ज ३।२०८; पंचासीत (पञ्चाशीति) सू १३११ ४।२१४,२४१,२४२,२४४,२४५,२४६,२५१, पंचासीति (पञ्चाशीति) सू २।३ २५२,५१४७,५५ पंचिदिय (पञ्चेन्द्रिय) प ११५२,५४,५५,६६, पंडर (पाण्डुर) १२॥३१४०१८ १३८% २।१६,२८,३११५३ से १५५.१८३; पंडिय (पण्डित) ज ३१३२ ४।१०५५१३६।१०७,१२१५,१३३१४,१५:३५, पंडुकंबलसिला (पाण्डुकम्बलशिला) ज ४१२४४, १७१२३,२०१३४,३५, २११४३,७०, २२॥३१ २४६ २३।१६५ ज ३।१६७५ पंडुमत्तिया (पाण्डुमृत्तिका) प १।१६ पंचिदियरयण (पञ्चेन्द्रियरत्न) ज ३१२२०; पंडुय (पाण्डुक) ज ३।१६७३ ७।२०३,२०४ पंडुयय (पाण्डुक) ज ३।१६७।१,१७८ पंचेंदिय (पञ्चेन्द्रिय) प १।१४,६० से ६२,६६ से पंडुर (पाण्डुर) ज ३।११७,१८८ ६८,७६,७७,८१, ३।२४,४० से ४२,४८,४६, पंडुरोग (पाण्डुरोग) ज २१४३ १५३;४११०४,१०६ से १५७:२२,८२,८३, पंडुलइयमुही (पाण्डुरकितमुखी) उ ११३५ ८५,८६,८८,८६,६२,६३,९६,६७,६२१,२२, पंडुसिला (पाण्डुशिला) ज ४।२४४ से २४७ ५४,६५,७१,७८,८३,८७,२६,६२,१००,१०२, पंति (पङ्क्ति ) ज २१६५,३२०४:४।११६ १०५,१०७,११६ ; ६४६,७,१६,१७,२२,२३, सू १६।२२।७,८,९ १११४६१२।३१:१३।१८,१६१५॥१७,४६, पंतिया (पङ्क्तिका) उ ३३११४ ८७,६७,१०२,१०३,१०६,१२१,१३८,१६७, पंसु (पांशु, पांसु) ज २११३३;३३१०९ १४,२७,१७।३३,३५,४१ से ४३,६३ से ६८, पंसुकीलियय (प्रांशक्रीडितक) उ ३१३८ ५६,६७,१०४;१८।१६,१८,२४,१६।४; पकड्ढ (प्र: कृष्) पकड्डइ ज ५१४६ २०११३,१७,२३,२५,२६,३४,४८,२११२,७ से पकड्ढिज्जमाण (प्रकृष्यमाण) ज ५१४४ १६,१६,२०,२६ से ३२,३६,४६,५१ से ५५, पकर (प्र+कृ) पक रेंति प ६।११४ से ११६: ५८ से ६२,६५,६८,६६,७१,७७,८२,८८,६४; २०१८ से १३ ज ७।५६ सू १६।२४ २२१७४,८७,६६२३१४०,८६,१५०,१६७, पकरेति २०१६३ १७१,१७६,१७७,१६६,१६६ से २०१,२४।७; पकरेमाण (प्रकुर्वत्) प ६.१२३,२०१६३ २८।४७,४८,६८,११६,१३०,१३६,१३७, पक्क (पक्व) प १६५५ १४२,१४४,२६।१५,२२:३११४,३२१३,३३११, पक्कणिय (दे०)प १८६ १२,२१,२८,३०,३६,३४।३,८,३५११४,२१, पक्कणी (दे०) ज ३१०२ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्कमंत-पच्चत्थिम पक्कमंत (प्रकामत् ) ज ३।१०६ पगास ( प्रकाश) पगासइ ज ४१६१,२७३, पक्किमृगसंठाणसंठित (पक्वेष्टकसंस्थानसंस्थित) ७.१७८ पगासेति मू ३.१ पगासेति सू ३१२ सू १६.२६ पगिझिय (प्रगृह्य) उ ३।४२ पक्किट्टगसंठाणसंठिय (पक्वेष्टकसंस्थानसंस्थित) पगिण्ह (प्र+गह ) पगिण्हइ ज ३।२०,३३,५४, ज ७:५८ ६३,७१,८४,१३१,१३७,१४३,१६६,१८२ पक्कोलिय (प्रकीडित) ज ३११,१२,२८,४१,४६, पगिण्हं ति ज ३।१११ ५८,६६,७४,१४७,१६८,२१२,२१३ पगिरिहत्ता (प्रगृह्य) ज ३।२० पक्ख (पक्ष) प ७२,७ से ३० ज २०४,६४,६६, पग्गहेत्तु (प्रगृह्य) ज ३।१२,८८,५१५८ ८८,७११५,११६,११८,११६,१२६,१२७ पघसिय (प्रर्षित) ज ३१३५ सू६।१८।१:१०८५,२७,६०,६१ पच्चक्ख (प्रत्यक्ष) ज ३११,२४१३,३७११,४५११, पक्खच्छाया (पक्षच्छाया) सू ६।४ १३११३ उ ५४४ पिक्खल (प्र+स्खल) पक्खलेज्ज उ ३।५५ पच्चक्खयाविणीय (प्रत्यक्षविनीत) ज ३१०६ पक्खि (पक्षिन) ५६१८०।१११४, २११४७।१ पच्चक्खवयण (प्रत्यक्षवचन) प ११८६ . ज २११३१ सू २०१२ पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान) ५ २०१७,१८,३४ पक्खित्त (प्रक्षिप्त) प १२।३२ उ १५६० पच्चक्खाणावरण (प्रत्याख्यानावरण) प १४७; पविखप्प (प्रक्षिप) पक्खिप्पई ज ३११८ पिक्खिव (प्र+क्षिप) पक्खिवइ उ ११४६३३५१ २३।३५ पच्चक्खाणी (प्रत्याख्यानिनी) प १११३७।१ पक्खिवंति ज २।१२०५।१६ पक्खिवेज्जाहि पच्चणुभवमाण (प्रत्यनुभवत्) प २१२० से २७ सू २०१६।३ पक्खिवित्ता (प्रक्षिप्य) ज २।१२० उ ११६१; पच्चणुभवमाण (प्रत्यनुभवत्) ज १:१३,३०,३६; ३१४१ ३।१२६,४।२ सू२०१७ उ ११११,९८,६९; पक्खिविराली (पक्षिविराली) प ११७८ ३१११४,११५,११६ पक्खुभिय (प्रक्षुभित) ज ३।२२,३६,७८,६३,६६, पच्चत्थाभिमुहि (पश्चिमाभिमुखिन्) ज ४।४२,७७, १०६,१६३,१८० २६२ पक्खेवाहार (प्रक्षेपाहार) प २८१४०,६६,१०२,१०३ पच्चस्थिम (पाश्चात्य) प ३.१ से ३७,१७६ १७८, पक्खेवाहारत्त (प्रक्षेपाहारत्व) प २८१४०,६६ ज १११६,१८,२०,२३,२४,३५,४१,४६,४८, पक्खोलणय (प्रस्खलत्) उ ३।१३० ५१,३१,४४,६८,६६,६७,१२८,४।१,१६, पगइ (प्रकृति) ज २११६,३१३,११७,७।१८० २६,३७,४२,४५,४८,५५,५७,६२,७७,८१,८४, उ ५१४०,४१ ८६,६४,६८,१०३,१०८,१२६,१३५,१४३, पगइभद्द (प्रकृतिभद्र) ज ११४१:२।३६,४१ १५१०२,१६२,१६७,१६६,१७२ से १७८,१८१, पगडि (प्रकृति) प २३३१०१ १८२,१८४,१८५,१६०,१६१,१६३,१६४, पगय (प्रगत) उ ५२।१ १६६.१६७,१९८,२०० से २०३,२०५,२०६, पगरेमाण (प्रकुर्वत्) प ६११२३ २०८,२०६,२१३,२१५,२२६,२३२,२३८, पगार (प्रकार) ज ३१८१ २५१,२६२,२६५,२६६,२७१,२७२,२७४, पगास (प्रकाश) पश३१ ज २१५,३१३५.११७, ५।१०,३६, ६.१६ से २४,२६,७।१७८ १८८,४११२५,५१६२७१७८ उ ५१६ सू २।१८।१:१३३३२,१४,१६,१८११४; Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्चत्थिमलवणस मुद्द-पच्छिमदारिया २०१२ उ ३३५४ पिच्चुत्तर (प्रति --उत्+त) पच्चुत्तरइ ज २०२८ पच्चत्थिमलवणसमुद्द (पाश्चात्यलवणसमुद्र) ४१,४६ उ ३१५१ ज ४१२६८,२७७ पच्चुत्तरिता (प्रत्युत्तीर्य) ज ३१२८ उ ३१५१ पच्चस्थिमिल्ल (पाश्चात्य) प १६३४ ज ११२०, पच्चुप्पण्ण (प्रत्युत्पन्न) ज २१६०; ३।२६,३६,४७, २३,४८,२।११६,३१४७,७६,६५,१४६.१५०, ५६,१३३,१३८,१४५ ,५३,२२ १५६,१६१,१६४ ; ४१३७,५५,६२,८१,८६६८, पिच्चुवसम (प्रति ।-उप गम्) पच्चुवसमंति १०८,१७२.२१२,२१३,२३०.२३१,२३८% . ज ५७ ७१७८ २।१,१०११४२,१३।१४,१६ पच्चुवसमित्ता (प्रत्युपशम्य) ज ५७ पच्चत्युय (प्रत्यवस्तृत) ज ३३११७ पिच्चुवेक्ख (प्रति !- उप-!- ईक्ष) पच्चुवेक्खइ पिच्चप्पिण (प्रति अपय) पच्चप्पिण ज ३११८७ ज ३।३२,१७१,५७१ पच्चप्पिणंति ज ३१८, पच्चुवेक्खित्ता (प्रत्युप्रेक्ष्य) ज ३।१८७ १३,१६,२६,४२,५०,५६,६७,७५,१४८,१६६, पच्चोयड (दे०) ज ४।३,२५ १७४,१७६,१६८,२००,२१३,५१७०,७३ पच्चोरुभित्ता (प्रत्यवरुह्य) ज ४११३ पच्चप्पिणति ज ३।१६,५३,६२,७०,१४२, पिच्चोल्ह (प्रति अव- रुह ) पच्चोरहइ १६५,१८१,५०५ पच्चपिणह ज २१०५; ज ३१६,२०,३३,५४,६३,७१,१४३,१५१,१६६, ३७,१२,१५,४१,४६,५८,६६,७४,१३०,१४७, १८२,१८६,२०४,२१४,५।२१,४४ उ १.१६; १६८,१७३,१७५.१६१,१६६,२१२,५२६६ ३१५१ पच्चोरुहति ज ३१२१५,५१५,४५ ७२ उ १।१७,४११६:५११८ पच्चप्पिणामि पच्चोरुति ज ३१२८,४१ पच्चोरहेइ उ०१०६ पच्चप्पिणामोड १११२७ ज ३।१११:४।१८ पच्चप्पिणाहि ज ३.१८,३१,५२,६१.६६,७६, चोरुहिता (प्रत्यरुह्य) ज २१६५ उ १११६, ८३,९८,१२८,१४१,१५१,१५४,१६४,१७०, ३१५१,४११५ १८०,५१२८,६८ उ श११५ परमपिणिज्जइ पच्चोषक प्रति अब.क) पच्चोसक्कइ उ १११२८ पच्चप्पिणेमा ५ ३६११ ज: ३.१२,८८,१५५ पच्चीसक्कति मु २०१२ पच्चय (प्राय) ज ३११०६ पच्चोसक्कित्था ज ३८६,१०२,१५६,१६२ पच्चामित्त (प्रत्यात्रि) ज १२८ पच्चोसक्कित्ता (प्रत्यवकप्क्य) ज ३११२ पिच्चाया (प्रति जन) पच्चा तिब६४ पच्छभाग (पश्चाभाग) सू १०१४,५ पच्चायति ज २६४ पच्चाबाहिद उ ४३ पच्छा (पश्चात् ) प ३४११,२,३६८५,८८ सु १०१५ पच्चायात (प्रत्याजात) ज २११३३ उ ३७,५१,५३,५४,६१,१०७,११८,१३६; पच्चावड (प्रत्याक्त) ज ५१३२ ४॥२१ पच्चावरण्ह (प्रत्यापराण्ह) उ ३१५६,६४,६८,७१, पच्छाकड (पश्चात्कृत) सू ८.१ ७४,७४ पच्छिम (पश्चिम) ज २१५५,५७ से ५६.६४,१२६, पच्चद्वित्तए (प्रत्युत्थातुम् उ ३१५५ १५५,१५६; ३३१३५॥१ पिच्चुपणम (प्रति + उत्... णम्) पच्चण्णमइ पच्छिम्कंठभाओवगता (पश्चिमकण्ठभागोपगता) ज ५१२१,५८ सू४ पच्चुण्णमित्ता (प्रत्युसम्य) २१ पच्छिमदारिया (पश्चिमद्वारिका) सू १०११३१ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्छिमग-बज्जुवट्ठिय पच्छिमग (पश्चिमक) प १७७० १३६,१४२,१४५,१४८,१५१,१५४,१५७, पच्छिमड्ड (पश्चिमाध) प १६।३० १६०,१६४,१६७,१७०,१७३,१७६,१७६, पच्छिमद्ध (पश्चिमार्ध) प १६।३०,१७११६५ १८२,१८५,१८८,१६१,१६४,१६७,२००, पिच्छोल (प्र+क्षालय) पछोलेंति ज ५१५७ २०३,२०६,२०६,२१२,२१५,२१८,२२१,२२४, पच्छोववण्णग (पश्चादुपपन्नक) प १७१४,६,१६,१७ २२७,२३०,२३३,२३६,६७१,७२,७६,८३, पजंपिय (प्रजल्पित) उ ३।६८ ६७,६८,१०२,१११३१ से ३४,१८१६ से १२, पज्जत्त (पर्याप्त) प १४१७,२२.३१,४८१६०, १६ से २४,३१ से ३६,४०,४६ से ५१,५३. ११४६ से ५१,६०,६६,७५,७६,८१२।१६ से ५४,११३,२११४०,४२,४४,४५,२३११६६, ३६,४१ से ४३,४८ से ६३; ३१११२,४३ से १६६ से २०१२८११४२,३६।१२ ४६,५३ से ६०,६४ से ७१.७५ से ८४,८८ पज्जत्ति (पर्याप्ति) प २८४,२३।१९५,१६६, से ६५,११०,१७४,४१५५,७८,८७,६०,६१, १६६ से २०१२८११०६।१,२८।१४२ ६४,६७,१००,२३६,२४२,२४५,२४८,२५१, उ ३.१५,८४,१२१,१६२,४।२४ ।। २५४,२५७,२६०.२६३,२६६,२६६,२७२, पज्जव (पर्यव) १३।१२४,५११ से ७,६ से २०, २७५,२७८,२८१,२८४,२८७,२६०,२६३, २३,२४,२७ से ३४,३६ से ३८,४० से ४२, २६६,२६६।६।६८,१८११२२११६,१६,१८, ४४,४५,४८,४६,५२,५३,५५,५६,५८,५६, २३ से ३४,३६,४०,४१,४४,४८,५०,५३,५५; ६२,६३,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७७,७८, २३।१६३,१६५ ८२,८३,८५,८८,८६,६२,६३,६६,६७,१०० पज्जत्तग (पर्याप्तक) प ११२०,२३,२५,२६,२८, से १०७,११० से ११२,११४,११५,११८, २६,४८ मे ५१,५३,१३१ से १३३,१३५, ११६,१२८ से १३०,१३३ १३७ से १३६, १३७,१३८,२१ से १६, ३४२ से ४६,५२ से . १४४,१४६,१४६,१५०,१५४,१५६,१६३, ६०,६३ से ७१,७४ से ८४,८७ से ८६,६१,६२, १६०,१६३,१६७,२००,२०३,२०५,२०७, ६४,६५.११०,१४३,१४६,१८३; ६७१,७२, २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३० से ८३,६७.१०२,११३,१११३६,४१:१५।४९; २३२,२३७,२३६.२४१,२४२,२४४,१०१५ २११५,१०,१३,२०,४१,५२ से ५५,७२; ज २।५१,५४,७१,१२१,१२६,१३०,१३८, ३४।१२; ३६१६२ १४०,१४६,१५४,१६०,१६३,७१२०६ पज्जत्तगणाम (पर्याप्तकनामन ) प २३१३८,१२० उ ३।४७ पज्जत्तभाव (पर्याप्तभाव) उ ३।१५,८४,१२१, पज्जवसाण (पर्यवसान) प ११४६६,६७,१४११८; १६२,४१२४ २८.१६,१७,६२,६३,३६.२० ज २१६४,५२५६; पज्जत्तय (पर्याप्तक) प ३७४,८७,८६,६०,६२, ७।२३,२५,२८,३०,४५ सू २१४,१६,१७, ६३,६५,१४६,१५२,१५५,१५८,१६१,१६४, २१,२४,२७,२।३,६।११०।१,१११२ से ६ १६७.१७०,१७३,१७४,१८३,४।३,६,६,१२, उ ३१४० १५,१:-,२१,२४,२७,३०,३३,३६,३६,४२, पज्जवसित (पर्यवसित) सू १११२ से ६ ४५,४८,५१,५४,५८,६१,६४,६७,६८,७१,७४, पज्जवसिय (पर्यवसित) प ११:३० ७५.८१,८४,१०३,१०६,१०६,११२,११५, पज्जुण्ण (प्रद्युम्न) प ५१० ११८,१२१,१२४,१२७,१३०,१३३,१३६, पज्जुवट्ठिय (प्रत्युपस्थित) ५ १६।५२ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जुवास-पडिणिक्खम पिज्जुवास (परि+उप+आस्) पज्जुवासइ ५७ ज ३१३५,१०८ से १११,१७६४|४९%3 ज २१६०,६३,५१४८,५०,५८,६५ उ १११६; ५।४३,७१३३१२,१८४ उ ११२२,१४० ३३१३:४:१३:५११६ पज्जुवासंति ज ३।२०५, पडागाइपडागा (पताकातिपताका) ज ३१७,१८४; २०६:५४६ उ ५।३६ पज्जुवासामि उ १११७ ४१३० पज्जुवासिज्जा उ ५१३६ पज्जुवासीहामि पडागातिपडागा (पताकातिपताका) १३५६ उ ३।२६ पज्जुवासेज्ज ज २१६७ पडिसुया (प्रतिश्रुत्) ज २१६५ पज्जुवासणया (पर्युपासन) उ १।१७ पिडिकल्प (प्रति+कृप) पडिकप्पेइ ज ३११५, २१,३३ पडिकप्पेह ज ३।२१,३४,७७,६१, पज्जुवासणिज्ज (पर्युपासनीय) ज ७:१८५ सू १८।२३ १७३,१७५,१६६उ १११२३ पष्टिकंत (प्रतिक्रान्त) उ २११२३३१५०,१६१; पज्जुवासमाण (पर्युपासीन) ज १६ चं १० ५।२८,३६,४१ उ ११४,५२२ पिडिक्कम (प्रति+क्रम्) पडिक्कमेहि उ ३३११५ पज्झंझमाण (प्रमझमान) ज ५१३८ पडिगय (प्रतिगत) ज १४;३।१२५:५७४ च ६ पट्ट (पट्ट) ज ३१२४,३५,७७,१०७,११७,१२४; सू ११४ उ ११२,२४;३।७,२१,२५,४५,६२, ___४।१३ सू २०१७ उ १११३८ ६६,६६,७२,८१,१४३,१५६:४१५५१२० पट्टगार (पट्टकार) प १६७ पडिचर (प्रति+चर्) पडिचरइ सू १११८ पट्टण (पत्तन) प ११७४ ज २१२२,१३१, ३।१८, पडिचरंति सू १११८ पडिचरति सू१३।१२ ३१,३२,८१.१६७४२,१८०,१५५,२०६,२२१ । पिडिच्छ (प्रति--इष्) पडिच्छइ ज ३१४०,४८, उ३।१०१ ५७,६५,७३,१३४,१३६,१४६,१५१,१५२ पट्टणपति (पत्तनपति) ज ३१८१ पडिच्छति ज ५११५ पडिच्छंतु ज ३१२६,३६, पट्टिया (पट्टिका) ज ३७७,१०७,१२४ उ ११३८ । ४७,५६,६४,७२,१३३,१३८,१४५ उ ३१११२, पट्ठ (पृष्ट) ज २११५;३।१०६।११७ उ ११९७ ४१६ पडिच्छाहि ज ३७६,१२८,१५१ पछविय (प्रस्थापित) प २०३६ पडिच्छण्ण (प्रतिच्छन्न) ज २१८,६,१३ पछित (प्रस्थित) प १६:५२ पडिच्छमाण (प्रतीच्छत्) ज २।६५,३।१८,३१, पठिय (प्रस्थित) प १६५२ १८०,१८६,२०४ पड (पट) ज ३।६,८१,१२५,१२६,२२२ पडिच्छायण (प्रतिच्छादन) ज ४।१३ सू २०१७ पिड (पत्) पडइ उ ११५१ पडिच्छित्ता (प्रतीष्य) ज ३७६ उ १३३ पडमंडव (पटमण्डप) ज ३१८१ पडिच्छिय (प्रतीष्ट) उ ३११३८ पडल (पटल) ज २६१३१, ३३११,४१३,२५ पडिजागरमाण (प्रति जाग्रत् ) ज ३१२०,३३,८४, पडलग (पटलक) ज ५।५५ १८२,१६० उ११६५१०५ पडलहत्थग (पटलहस्तक) ज ३।११ पडसाडय (पटशाटक) ज २६६ पडिण (प्रतीचीन) सू १११६ पडह (पटह) ३३.२२ ज३।१२,७८,१८०,२०६ पडिणिकास (प्रति निकाश) ज ३२९५,१५६ पडाग (पताका) परा४१,४८ ज ११३७ २०१५, पिडिणिक्खम (प्रति+निर्+क्रम) पडिरिएक्समाइ ३१३,३१ ज ३१५,१२,१४,१७,२१,२८,३०,३४,४१,४३, पडागसंठिय (पताकासंस्थित) सू १०१४२ ४६,५१,५८,६०,६६,६८,७४,७७,८४,८५, पडागा (पताका) प ११५६,७१,१५१२६२१०२६, १३६,१३६,१४०,१४७,१४६,१६८,१७२, Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिणिक्खमित्ता-पडिवज्जितए ६६७ १७७,१८७,१८८,१६८,२१४,२१८,२१६, २२२,२२४; ५२३ पडिणिक्खमंति ज ३१८, १५३,५१७३ पडिणिक्खमें ति ज ३।१३ पडिणिक्खमित्ता (प्रतिनिऋम्य) ज ३१५ पडिणिक्खमेत्ता (प्रति निष्क्रम्य) ज ३११३ पडिमियत (प्रति नियत) ज ३८१ पडिणिन्वुड (प्रतिनिर्वृत) ज २०६८ पडिणीय (प्रत्यनीक) ज २२८ सू २०१६२ पडिदिसि (प्रति दिश्) सू २०१२ पडिदुवार (प्रतिद्वार) प २१३०,३१,४१ ज ३७, पिडिनिक्खम (प्रति- निर--क्रम्) पडिनिक्खमइ उ ११४२३१४६,४११२ पडिनिक्खमंति उ ११४५३११४५ पडिनिक्खमति उ ३।२६ पडि निक्खमह उ १११२१ परिनिक्खमित्ता (प्रतिनिष्क्रम्य) उ १५४२३।२६; ४।१२ पडिनिग्गच्छित्ता (प्रतिनिर्गत्य) उ १।१२४,५५१६ पिडिनियत्त (प्रति+नि+वत्) पडिनियत्तति प ३६१८८ पडिनियत्तित्ता (प्रतिनिवृत्य) प ३६१८८ पउिपाति (प्रतिपातिन् ) १ २३११३४,१३५,१३८, १४०,१४२,१४३,१५१ से १५५,१५७,१६०, १६१,१६४,१६६ से १६८,१७१ से १७३ पडिपाद (प्रतिपाद) ज ४।१३ पडिपुच्छण (प्रतिप्रच्छन) उ १११७ पडिपुच्छणिज्ज (प्रतिप्रच्छनीय) उ ३।११ पडिपुष्ण (प्रतिपूर्ण) प २११७४ ज २११५,७१, २५,३३११७,१६७।१२,२०६,२२३,२२५; ५५६,७।१७८ पडिपुण्णचंद (प्रतिपूर्णचन्द्र) प २१५४,६०,३६८१ ___ ज ११७ सू १।१४ पडिबंध (प्रतिबन्ध) ज २१६६ उ ३३१०३,११२, १३६,१४८,४३११ पडिबुद्ध (प्रतिबुद्ध) उ ११३३; २१८, ५॥१३ पडिबोहण (प्रतिबोधन) ज ५।२६ पडिमंजरी (प्रतिमंजरी) ज ७१२१३ पडिमोयण (प्रतिमोचन) ज २११२ पडिय (पतित) उ ३।१३१,१३४,४।६ पडियाइक्खिय (प्रत्याख्यात) ज ३१२२४ पिडियागच्छ (प्रति- आ-! गम) पडियागच्छद सू२२१ पडियागच्छिता (प्रत्यागत्य) सू २।१ पडिरह (प्रति रथ) उ ११२२,१४० पडिरूव (प्रतिरूप) प २१३० से ३२,३४,३५,३७, ३८,४१ से ४३,४५,४५.१,२,४६,४८ से ५२, ५८ से ६१,६३,६४ ज १८ से १०,२३,२४, २६:३१,३५,४२,५१,२।१२,१४,१५; ३३१. १६५४.१,३,४,१३,२५,२७ से ३०,३३,४६, १४६.१७८,२०३,५१३१,३३,३४,६२ सू १११ १८ाउ ५१४ से ६ पडिरूवग (प्रतिरूपक) ज ३।१६५,४।४,५,२६, २७,८६,११८,१४४,२४६,५२३०,३१,४६,६७ पडिरूवय (प्रतिरूपक) ज ३.१६५,२०४ से २०६, २१४,२१६:५।४१,४२,४४,४५ पडिरविय (प्रतिरूपित) ज ३११२० पिडिलाम (प्रति+ लाभय) पडिलाभेइ उ ३३१३४ पडिलाभत्ता (प्रतिलाभ्य) उ ३।१०१ पिडिलेह (प्रति + लिख्) पडिलेहेइ ज ३३२२४ पडिलेहित्ता (प्रतिलिख्य) ज ३।२२४ पडिलोम (प्रतिलोम) ज २१६,६७ पडिलोमच्छाया (प्रतिलोमच्छाया) सू ६।४ पडिवक्ख (प्रतिपक्ष) प ५।२२६ पिडिदज्ज (प्रति+पद्) पडिवज्जइ प ३६१९२ उ ३।१०४,५४२० पडिवज्जति सू ८१ पडिवज्जाहि उ ३१११५ पडिज्जिसु ज २१५१,५४,१२१ पडिवज्जिस्सइ जस१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, १६३;३।१३४ पडिवज्जित्तए (प्रतिप्रत्तुम् ) प २०११७,१८,३४ उ ३३१११ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ पडिपज्जिता-पड पडिवज्जित्ता (प्रतिपद्य) ३.४५,१०४,१४३;५२० पिडिसुण (प्रति+श्रु) पडिमुणति ज ५१७३ पडिवडितसम्मद्दिछि (प्रतिपतितसम् दृष्टि) पडिसुइ ज ३११६,५३.६२,७०,७७,८४, प ३।१८३ १००,१४२,१६५,१८१,५३२३,६६ उ ११५५; पडिवण (प्रतिपन्न) १३६१६२ ज ३।१४,२६, ३.१४० पडिसुणति ज ३१८,१३,१०७,११३ ३०,३६,४३,४७,५१,५६,६०,६४,६८,७२, १८६,१६२ उ ११४५ पडिसुणेमि उ ११८३ ११३,१३०,१३६,१३८,१४०,१४५,१४६, पटिमणेत्ता (प्रतिश्रुत्य) ज ३१८ उ ११४५ १७२ सू ८१ उ ३१६६,७६ परिसेविय (प्रतिसेवित) ज २१७१ परिवति (प्रतिपत्ति) चंद सू १७३३,१।८।१,२, पिडिसेह (प्रतिषेध) १६७४ से ७८,८०,११०%; ३,१०२० से २३,२५,२६,२।१ से ३,३२१:४।२, २०१२५ ३:५११६३१७१८।१,६११ से ३,१०११, पडिसेह (प्रति सेध) पडिसेहेइ ज ३१११० १३१:१७१११८११,१६०१,२०११,२ उ १११६ पडिसेहेति ज ३११०८ पश्विया (प्रतिपत्) ज २११३८ पडिसेहित्तए (प्रतिपेद्धभ्) ज ३।११५,१२४,१२५ पहिवा (प्रतिपत्) ज ७११२५ पटिसेहिता (प्रनिपिः ) उ ११११६ पहिवाइ (प्रतिपातिन् ) प ३३६११,३३३३५ पडिसेहिय (प्रनिषिद्ध) ज ३१६५,१०६,१११,१५६ पडिवाति (प्रतिपातिन् ) प ११११४ उश२७ पहिवादिवस (प्रतिपदिवस) ज ७११६ सू १०८५ पडिसेटेयव (प्रतिपेशवा); पडिसेहेयध्व (प्रतिषेधव्य) प ६१९८१०१६ से : पडिवाराइ (प्रतिपत्रात्रि) ज ७।११६ पडिस्सुइ (प्रतिश्रुति) ज २१५६,६० परिवाराति (प्रतिपात्रि) सू १०1८७ पडिहण (प्रति --हन्) पडिहमति सू ५१ पडिवालेमाण (प्रतिपालयत्) उ १११३३ पडिहत (प्रतिहत) प २६४१२,३ ज ४१२५ पिडिविसज्ज (प्रति वि+सजय्) पडिविसज्जइ पडिहता (प्रतिहता) सू ९१४ उ३।१०४ पडिविसज्जेइ ज ३६,२,७,४०, पदिय (प्रतिहत) चं २ मू ११६:५१ ४८,५७,६५,७३,१२७,१३४,१३६,१४६,१५२, पडीण (प्रतीचीन) प २।१०,५० से ६२ ज १११८, १७१,१८६,२१६ उ ११०६:३११३७ २०,२४,३११:४।१,३,८६,८८,६८,१०३,१०८, पडिविसज्जिय (प्रतिविजित) ज ३११७१ १४१,१६२,१६७,१६६,१७८,१८५,१८७, उ १३३,११० १६१,२००,२०३,२४५,२५१;७१०१ पडिनिसज्जेत्ता (प्रतिविसयं) ज ३१६ सु १११६२११ परिसंवेमाण (प्रतिसंक्षिपमाण) ज ५१४४ पडीणउदीण (प्रतीचीनोदीचीन) सूसा पिदिसंवेद (प्रति संवेद) पडिसंवेदेति पडोणवाय (प्रतीचीनवात) प ११२६ प १५॥३८ पडीणा (प्रतीची) ज ११८,२०,२३,२५, पडिसत्तु (प्रनिशत्रु) ज ३११३५१ २८,३२,४८,३।१४।१,३,५५,६२,८१,८६,८८, पिडिसाहर (प्रति+संह) पडिसाहरइ ज ५१६७ १८,१०३,१०८,१७२,२०५.२१४,२४६, पहिसाहरंति ज ३।१२५ पडिसाहरति २५२.२६२,३६८ प ३६१८५ पडु (पटु ) प २।३०,३१,४१,४६ ज ११४५,३१८२, पडिसाहरित्ता (प्रतिमहत्य) प ३६१८५ ज ३११२५ १८५,१८७,२८६,२१८,५१,१६७१५ पडिसाहरेमाण (प्रतिसंहरत्) ज ५१४४ . ५८,१८४ सू १८१२३:१६७१६३२३,२६ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडुच्च-पणिवय पडुच्च (प्रती ) प १९७४ : २७६ ६३ ८१४, ६, ८.१०.१११४६,५३,२५,५७.५६ १४५ १६११,२११९५ २३१६३,१७९२८१६,९६,२० २६.३१.५२.५५.६ से १०१ ज ४४.४ म २ पतच्च (पती) पण (१ १२ १२,३२,३० ७।३१,५६ ११२७ ११३३,११।३३।१ पडप्पण्णभाव (प्रत्युन्नभाव ) प २०१८ से १०१ पडपण्णवयण (नवलन ) प १११८६ पडे (प्रतिश्रुत्५२५ पडोयार (प्रवतार ) प ३०।२५, २६ ज १७,२१, २२,२६,१७,२२,३२,४६,५०,२१७.१४, १५, २०,५२,५६,१०,१२२, १२३, १२७,१२८,१३१, १३२,१३३,१३३, १४७, १४८, १५०, १५१, १५६,१५७.१५६,१६४४१५६,०२,६६ से १०१, १०६.१७०,१७१ पडोल (पटोल) प १०३७१२, ११४०११, ११४८४८ पढम ( प्रथम ) प १1१०३, १०६, १०७,१०९, ११०, ११३. ११४,११६,११६,१२०.१२२१२३; २३१६८०१:१०।१४।१ से ३:१२।१२. १६,३१,१२:२२०३३, ४१३६८५,८७,१२ ज २१५५,५६,६३,६४,१३८, १५५ से १५८ ३६३०,१३५,२१७, ४११४२३१५३.१५४, १८०७१,२०,२३, २६,२८,९७,१०१.१०६. १५६,१६०,१६४ ३३ १७,१३,१४, १६.२१,२४,२७ २१३,६११८६१; १०१६१, ६७,७७, १२७,१३८, १३६, १४३, १४४, १४८, १५०,१५२,११४२.२ १२१२,१६,२०,२४६ १३१,७,६,१०६१८०३७ उ १०६ से ८,६३, १४२, १४३, १४, २११,३, १४, १५, २२:३१३, १६,२०५००१४४०१,२७१२१३,४४ परीसर (वर) ३।१२६३ (१९४६५१ पदमा (२) १२११४१०५०४८ म १०१५ पण (पञ्चन्) सु १०५७ पण जीव ( पनकजीव ) प ३६१९२ पण गमतिया (पनमृत्तिका) ११६ ( पणञ्च ( प्र + नृत् ) पणच्चति ५ ५७ पण (प्रनष्ट) प १२४८०३६ पणतालीस (पञ्चचत्वारिंशत् ) प १८४ ese भ्रू १६।२० पणतीस (पत्) सू १।२० पणतीतिभाग (भाग २३०६,८८, २५ से १८:११, १५१ पणपण (दे०चपञ्चाशत् ) प ४१२८४।१७२ यू १२।७ पण (दे० ) प १४६, १२४६११.११६५ २०१३३ पाय ( प्रणत) ज ३१८१.१०९ पण बहुल ( पनक" बहुल ) ज २।१३२ पणयाल ( पञ्चचत्वारिंशत् ) ज ७ १३४ सु १।२१ पाली पञ्चचत्वारिंशत्) १०६ ४३ उ५।२८ पणव (प्रणव) ज ३११२,७८, १८०,२०६ ; ५१५ पण (पञ्चपञ्चाशत् ४१५५ वणवण (पणपनिक) २०४१ पणवन्निय (पणपनिक) प २२४७११ पणवीस (पञ्चविशति ) प २२२ ज १३२३ भू १।२१ वणवीसतिविध ( पञ्चविंशतिविध ) सू ९६४ पणाम (प्रणाम ) ज ३१५,६,१२,८८ पणाव (प्र- नामय् ) पण वेइ उ १।११६ पणावेहि उ १।११५ पणावेत्ता (प्रणाम्य) उ १ ।११५ पणासित ( प्रणाशित ) सू २०१७ पणिधाय (प्रणिधान) प १७।१११ सू ६।१ पणिय (पनि) ज २२३ पणिवय ( प्रणिपतित ) ज ३ । १२५ पणिय ( प्रणि+पत्र) पणिवयामि ज ३१२४११ १३१।१ १. पनकः प्रतलः कर्दम: - टीका Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पणिहार-मत्तिय पण्णास (पञ्चाशत) प २१ ज ११२३ र १२१३, ८ उ ५.१३ पण्य (प्रस्नन) ३ ३९८ पितणतण (प्र+तनतनाय)नणतणाइस्सइ ज २११४१,१४५ तणतणानि ज ३१११५; ५७ पणिहाय (प्रणिधाय) प १७।१०६ से १११ ज ४१५४,८०, ७२७,३० सु१।१४,२४ पणुवीस (पञ्चविंशति) प ४१२७३ उ ३७ पणुवीसइम (पंचविंशतितम) प १०.१४१३ पण्णट्ठ (प्रणष्ट) ज ३१३ पण्ण (पञ्चषष्टि) ज ७१६५,६६ पण्णट्टि (पञ्चपप्टि) ज ४११६५ मु १०।१५२ पण्णत्त (प्रज्ञप्त) प १११ ज १७ सू१।१४ उ ११४ पण्णत्तर (पञ्चसप्तति) ज ४१४५ पण्णत्तरि (१ञ्चसप्तति) ज ४.१४२ पण्णत्ति (प्रज्ञरित) सू २०१६।१ उ ३।१६० पण्णर (पञ्चदशन्) प १०।१४१४,५ पण्णरस (पञ्चदशन्) १ १७४ ज ११२३ सू १५१३ पण्णरसइ (पञ्चदशन्) सू १६।२२।१६ पण्णरसति (पञ्चदशन्) सु २०६३ पष्णरसम (पञ्चदश) ज ७।६७ सू १०१७७; १२१६१३।१,१०६; १४१३,७:१६।२२, २०१३ पण्णरसविह (पञ्चदशविध) प ११८८१६११,२, पतणतणाइत्ता (प्रतनतनाट ) २११४१ पतर (प्रतर) प १२११२,१६ १. पतव (प्र तर) पतवनि ५५७ पिताव (प्र- तापम् ) पताओंति सूहा? पतिट्ठिय (प्रतिष्ठित) प १४३ पतिसम (प्रतिराम) ज ३।६२,११६ पत्त (प्राप्त) ५ २१६४।२०६।१८१७२२३१३ - से २३,३६१६४१ ज २१८५२:३६,४३, १२२,१२६,१३३, ४153 ,९८,१०१, १२२,१५०,१६१; ४१२५,२३,२८,३१,३६, पण्णरसी (पञ्चदशी) सू १०१६०;१३।११४।३,७ पण्णरसीदिवस (पञ्चदशीदिवस) ज ७११६ सू १०८५ पण्णरसोराइ (पञ्चदशीरात्रि) ज७११६ पण्णरसीराति (पञ्चदशीरात्रि) सु १०।८७ पिण्णव (प्र+ ज्ञापय) पण्णवेइ ज ७१२१४ उ १२६८ पण्णवेहिति सू १६।२२।३ पण्णवणा (प्रज्ञापना) ५ १११४२,४,४६,१३८%; २८1९८ से १०१ उ ३३१०६ पण्णवणी (प्रज्ञापनी) प ११।४ से १०,२६ से २६, ३७।१,८७ पण वित्तए (प्रज्ञप्तुम् ) उ ३.१०६ पण्णवीस (पञ्चविंशति) प २७।४ पण्णा (दे०) ५२।४०।३ ज ५१४६ पिण्णा (प्र + ज्ञा) पण्णायए ज ७११६९ पण्णावग (प्रज्ञापक) ज ३।६५,१५६ पत्त (पत्र) ११३५,३६,४७१,१६४८१६,१६,२६, ३६,४५,४७,४६,५१,६३ ज २१८,६,१२,१५, ६८,१४५,१४६ ; ३।११३,३।१२,८८,६८, १०६,४३,२५,५५,५८, ७/१७८ उ ३५०, ५१,५५ पत्त (प्राप्त, पात्र) उ १११२८ पत्तउर (पत्तूर) प १।३७१३ पत्तकयवर (पत्रकचार) ज २१३६ पत्तच्छष्ण (पत्राच्छन्न) ज २११२ पत्तळ (दे०) ज ५१५ पत्तपुड (पत्रपुट) ज ४।१०७ पत्तल (पत्रल) ज २११५,३११०६७/१७८ १११ पत्त (वासा) (पत्रवर्पा) ज ५१५७ पत्तविच्छय (पत्रवृश्चिकः) प ११५१ पत्तामोड (पत्रामोट) उ ३१५१ पत्तासव (पत्रासब) प १७।१३४ पताहार (पकाहार) प ११५० उ ३१५० पत्तिय (पत्रित) उ ३३४६ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्तिय-पभंकरा ९७१ /पत्तिय (प्रति !-इ) पत्तिएज्जा प २०१७, १८०,१८२,५१२४,१२५,१३१,१६१,१७७, १८,३४ पचिवामि ३ ३३१०३ १७६,१६३,२१६,२१८,१०१२,४,५,१८,१६, पत्तेय (प्रत्ये) : १८८161,४७,४६,६०,२१४८%, २१ से २३,२५,२६,१२।३०,५३,५७; ६।१८।४।१०।१४,१६३१५ ज ११४६; १७१११४।१।२२।५८,७६:२८१५,५१ ज २१६५ ३।२०६:४१५,२७,११०,११४,११६,११८, ४।१४३ सू १९०२६ १२२,१२५,१२८,१३६, ५१ से ३,५,७,३१, पदेसघण (प्रदेशघन) प २१६४१५ ४२,५६ उ १११२१,१२२,१२६ पदेसठ्ठता (प्रदेशार्थ) प ३.११६ से १२०,१२२ पत्तेयजिय (प्रत्ये। जीव) प १२४८६ पदेसठ्ठया (प्रदेशार्थ)प ३।११५,११६,१२०,१२२, पत्तेयजीविय (प्रत्येकजीवित) ५११३५,३६ १७६ से १८२,५१५,७,१०,१४,१६,१८,२०,३० पत्तेयबुद्ध सिद्ध (प्रत्येकबुद्धसिद्ध) ॥ १।१२ ३२,३४,३७,४१,४५,४६,५३,५६,५६,६३,७१, पत्तयसरीर (प्रत्येक शरीर) ११२३२,३३,४७; ७४,८३,८६,६३,६७,१०१,१०४,१०७,१११, ४७।२,३,३७२ से ७४,५१,८४ से ८७,६५, ११६,१२६,१३१,१३४,१४५,१६६,१७२, १८३,१८१४४,५२ १७४,१७७,१८१,१८४,१८७,१६०,२०३, पत्यसरीरणाम (प्रायकवारीरनामन् ) प २३:३८, २०७,२११,२२४,२२८,२३२,२३४,२३७, २३६१०१३,४,५.२६,२७,१७११४४,१४६; पत्थ (थ्य) ज ४।३,२५ २१११०४ पत्थड (प्रस्तट) प २।१,४,१०,१३,४८,६० से ६२ पदेसणामणिहत्ताउय (प्रदेशनामनिधत्तायुष्क) ज४१४६ प६.११८ पदेसणामनिहत्ताउय (प्रदेशनामनिधत्तायुष्क) पत्थाइत्तए (प्रस्थातुम् ) उ ३३५ ५६.११६,१२२ पत्थाण (प्रस्थान) उ ३१५१,५३.५५ पिधार (प्र-धु) पधारेइ ज ५७२,७३ पस्थिज्जमाण (प्रायमान) ज २१६:३।१८६,२०४ पधारेति प २२।४ पस्थिय (प्रार्थित) ३१२६,४७,५६,८७,१२२, पपोत (प्रधौत) ज ३।१०६ १२३,१३३,१४५,१८८,५१२२ उ १११५,५१, पन्नरस (पञ्चदशन् ) प १८४ ५४,६५,७६,७६,६६,१०५,३१२६,४८,५०, पन्नरसविह (पञ्चदशविध) प १४१२,१६:३६ ५५,१८,१०६.११८,१३१:५।३६,३७ पप्प (प्राप्य) प १६१४६ १७/११५ से १२२, पस्थिय (प्रस्थित) उ ३१५१,५३,५५ १४८,१५४,२३३१३ से २३,२८।१०५% पत्थिव (पार्थिव) ज १३ ३४।१६ पद (पद) ५१११०१७,१२१३२१८१२; पप्पडमोदय (पर्पटमोदक) प १७४१३५ २८1१४५,३६७२ ज ३:३२ सू १०।६३ से ७४ पप्पडमोयय (पर्पटमोदक) ज २०१७ पदाहिण (प्रदक्षिण) सू १६।२२।१०,११,१६२३ पफ्फुल (प्रफुल्ल) ज ४१३,२५ ‘पदीस ( दश) पदीसई प ११४८.१० से पन्भट्ठ (प्रभ्रष्ट) ज ३११२,८८,५७,५८ १७,१६ से २३ पदीसए प १४४८।११ से १३ पब्भार (प्रागभार) प२।१ ज ३१८५,१०९ प्रदीसति प ११४८१२५ से २६ पदीसती उश२७,१४०,५१५ प ११४८।१८,२४ पभंकर (प्रभङ्कर) सू २०१८,२०८७ पदेस (प्रदेश) प ११३,४२१६४।१,११,३११२४, पभंकरा (प्रभङ्करा) ज ४।२०२,७११८३ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७२ पभजण-पम्हगंध सू १८२१,२४,२०१६ पमज्जित्ता (प्रमृज्य) ज ३।१२ पभंजण (प्रभञ्जन) प २१४०१७ पमत्त (प्रमत्त) प १७६३३२१७२ ज २६ पणिय (प्रभणित) उ ३९८ पमत्तसंजत (प्रमत्तगयन):६१६८ पमत्तसंजय (प्रमत्तमयत) प ६१९८१७२५२२१६१ पभव (प्रभव) प १११३०१२ पमद्द (प्रमदं) ज ७११२६ १०७५ उ १११३६ पिभव (प्रभू) भवति ११३०११ पमद्दण (प्रमर्दन) ज ५१५ पभा (प्रभा) प २१३०,३१,४०।१०,२१४१,४६ पमाण (प्रमाण) प ११०१।९।१२।१२,८; ज ३१३५,२११:४१२२,३४,६०,२७२,५।१८, १५.१०,२३,२१।११,२१८४,८६,८७,६० से ६३;३०।२५,२६:३३।१३,३६।५६,६६,७०, पभाव (प्रभाव) ज ३१६५,१५६,२२१ ७४ ज ११३२,३५,४१:२१४,६१,१५,१३३, पभावई (प्रभावती) उ १६३३ १३८,१४१ से १४५,३११०६,११७,१३८, पभावणा (प्रभावना) प ११०१।१४ १६७।३;४११,६,२५,६४,७०,७६,८६,६०, पभास (प्रभास) ज ४१२७२९६.१२ से १४ १०६.१२३,१३३,१३६,१४०१२,१३४ से १६०, पिभास (प्र-भाष) पभासइ ज ४१२११ १६२ से १६५,१७४,१७५,१६४,२०२,२२२११, पभास (प्र+भास्) पभासंति ज ७१ २३५,२३६,२४६,२७.०,२५.१,५४४६,४६; पभासिसु ज ७१ सू १९१६ पभासिस्नति ७।३५,१६८१२,१७८ १।२७, २१३४16 ज ७१ सू १९६१ पभासे ति ज ७५१,५८ उ १।१३८,३१११ सू. १९६१ पभासेंसू सू १६।१ पमासेति मू १९०१ पमाणभूय (प्रमाणभूत) उ ३३११ पभासंत (प्रभासमान) सू१६।१२ पमाणमित्त (प्रमाणाव) ३१६५,११५,११६, पभासतित्य (प्रभासतीर्थ) ज ३१४३,४४,४६ १५६।३८ पभासतित्थाधिपति (प्रभासतीर्थाधिपति) ज ३४६ पमाणमेत्त (प्रमाणमात्र) ज ११४०,२११३३,१३४, पभासतित्थाहिवइ (प्रभासतीर्थाधिपनि) ज ३१४७ १४१ से १४५:३११,८८,६२,११६,११६, पभासतित्थकुमार (प्रभासतीर्थकुमार) ज ३१४७ से १२२,१२४,४।१०,213,५८,६७ ४६,५१ पमाणसंवच्छर (प्रमाण-पत्रार) ज ७।१०३,१११ पभासेमाण (प्रभासमान) प २१३० से ३३,३५,३६, १०१२५,१२८ ४१,४८ से ५२,५८ पमुइय (प्रमुदिन) २६४१, ११२६,२१६५:३११, पभिद (प्रभति) ज २।१४६,३१८६.१७८,१८६, १२,२८,४१,४६,५८,६६,७४,१४७,१६८, १८८,१८६,२००,२१०,२१६,२१६,२२१ २१२,२१३ २ ११ उ ३।१०१,५१०,१७,१६,३६ पमुह (प्रमुख) ज ७।१७८ २०१८,२०/८१५ पभिति (प्रभूति) ज ३३१० सू १६२।२५ पमोय (प्रमोद) ज ३१२१२,२१३,२१६ पभु (प्रभु) ज ५५,४६,७।१८३,१८४,१८५ पम्ह (१क्ष्मन्) ॥ २॥४६,४१२०९,२१०,२१२ सू१५ से २३ उ ५।३२ २१२११ पभूय (प्रभूत) ज ३१८१,१०३,१६७।१४; ५१७ पम्ह (पदग) ज १५,२५१ पिमज्ज (प्र+मज) पमज्जइ ज ३११२,२०,३३, पम्हकूड (पक्ष्मकूट) ज ४।१८४ से १८७,२१० ५४,६३,७१,८८,१३७,१४३,१६६ पम्हगंध (पद्मगंध) ज २२५०,१:४:४११०६,२०५ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पम्हगावई-परक्कम ६७३ पम्हगावई (पक्षमावती)ज ४१२१२,२१२।१ पम्हल (क्ष्मल) ज ३१६,२११,२१२:१५८ पम्हलेस (पदमलेशस) १७१६८ पम्हलेसट्ठाण (पद् लेन्यास्थान) १७.१४६ पम्हलेसा (पद्मश्रा) : १७:१२१ पम्हलेस्स (पद्मले ), ३६६१३।२०:१६६४६; १७३५,५६,६४,६६ से ६८,७१.७३,७६ से ८१,८३,८४,११२,१६७,१८१७३:२८११२३ पम्हलेस्सट्ठाण (पद्मलेश्यास्थान) १७.१४६ पम्हलेस्सा (दमा ) प१६।४६,१७।३५,३६, ५४,११७,११८,१२१,२२५,१२७,१२६,१३४, १३७,१४४,१५३ से १५५ पम्हलेस्सापरिणाम (पदमप्यारिणाम) १३१६ पम्हावई (पक्षमावती) ज ४२०२१२,२१२ पय (पद) प १।१०११३,२२१४५; २३।१४६; २८।१।२,२८११२३,३६१६६,७२ ज ३१६,१२, ८८,१५५,१६७७,२१,५८,७११५६ से १६७ उ ३।१०१,१३४ पयंग (पतङ्ग) प १:५११ पयग (पतग, पदक) ज २०४१,२१४७११ पयडि (प्रकृति) ५ २३।१।१ पयणु (प्रानु) ज २१६ पयत (पतग,पदग) ८ २२४१३ पयत (प्रत) ३.१२८८11८ पयत्त (प्रवृत्त) ज ५।२४,५७ पययपद (पलगपति,पदगपनि ) प ६४७३ पयर (प्रसर) प ११४८।६० : १२१८,२७,३६,३७ पयरग (प्रत ) ३.१०६१३८,६७ पयरय (प्रतरक) प ११७५ पपराभेद (प्रारद) प१११७५,७६ पयराभेय (प्रारद) ११५७३ पयला (प्रचला) प२३।१४ पयलाइय (दे०) व १९७६ पयलापयला (च पच५ २३।१४ पर्यालय (प्रचलित प्रगनित) ३६, ५३२१ पयल्ल (प्रकल्प) मू २०१८,२०१८४५ पया (प्रजा) ज २१६४,३११८५,२०६ पिया (प्र-जन ) पाएज्जा उ ३११०१ पामि उ१७८३१६८ पयाहिइ उ ३।१३६ पयात (प्रयात) ज ३११४,१५,३१,४३,४४,५१, ५२,६०,६१,६१,६६,१३०,१३१,१३६, १३७,१४०,१४१,१४६,१५०,१७३ पयाय (प्रगत) ज ३१३०,१४६,१६७,१७२ फ्याय (प्रजात) उ ११५३ ; ३३१३४ पयायमाण (प्रजनयत्) उ ३।१२६ पयार (प्रचार) ज २।१३१ पयालवण' (प्रालवन) ज २६ पयावइ (प्रजापति) ज ७।१३०,१८६३ पयावइदेवया (प्रजापतिदेवता) मू१०८३ पयाहिण (प्रदक्षिण) ज ११६; २१६०; ३१५, ५१५, ४४,४६ उ १।१६,२१, ३१११३; ४।१३ पयाहिणावत्त (प्रदक्षिणावर्त) ज २।१५; ७।५५ पयोहर (पयोधर) ज २११५ पर (पर) प १११०११४, २०६३,३१३६,६८०१२; १४१३;२२१४ से ६:२३११३ से २३ सु ११६; ६६१:१३३१२, १४ मे १७ पर (पर) प ११८१ परंगण्य (पर्यङ्गत्) उ ३।१३० परंपर (परम्पर) प २०१६ से ८ ज ७१४२ परंपरगत (परम्परगत) प २६४।२१ परंपरसिद्ध (परम्परसिद्ध) प १।११,१३,१६।३५, परंपरा (परम्परा) उ श१११,११२ परंपराघाय (परम्पराघात) प ३६१६४,७८ परंपरोगाढ (परम्पर वगाढ) प १११६३ परंपरोबवण्णग (परम्परोपपन्नक) प १५:४६; ३४१२ परक्कम (पराक्रम) प २३११६,२० ज २१५१,५४, १२१,१२६,१३०,१३८,१४०.१४६,१५४, १. पिकालवण इति कल्पनापि जाते। Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७४ परक्कममाण-परिग्गहिय १६०,१६३,३१३,७७,१०६,१११,१२६,१२६, १८८,७११७८ सू २०११ परावत्तेत्ता (परावृत्य) ज ३१२८ परकाममाण (पराक्रममाण) उ ३११३० पिरिकह (परि कथम्) परिकहेइ उ ११२०:४।१४ परधर (परगृह) उ ५१४३ परिकति उ ३११३५ परिकहेमो उ ३११०२ परट्ठाण (परस्थान) प ६।६३,१५।१२१,३६१२०, परिकहेह उ११४२ २४,२७,४७ परिकण (परिकथन ) उ ५।१३ परपरिवाय (परपरिवाद) प २२२२० परिकहेउं (परिकार तुम) २१६४।१७ परपुछ (परपुष्ट) प १७११२३ परिकिष्ण (परिकीर्ण) उ ३३१४१,४३१२,१३ परभवियाउय (परभविकायुक) प ६।१११,११४ ।। परिक्खित्त (परिक्षिप्त) ज ३१२२,२४,३०,३६,७६, से ११६ ७८,१७८, ४१११०,११६,११८,५१२८,४४ परम (परम) प २१२० से २७; २३।१६६ ज २।४, उ १११६:५१७ ६६,७१,१३३, ३३,५,६,८,१५,१६,३१,५३, परिवखेव (परिक्षेप) प २१५०,५६,६४, ३६८१ ६२,७०,७७,८१,८२,८४,६१,१००,११४, १४२,१६५,१७३,१८१.१८६,१९६,२१३, ज १७,१०,१२,१४,२०,२३,३५,४८,५१; २।६,४।१,२१,२५,३१४०,४१,४५,४८,५३ ५२१,२७ उश२१,४२,३१५१,५६,१३०, से ५५,५७,६२,६७,६८,७५,७६.८०,८१,८४, १३१,१३४,१४४ परमत्य (परमार्थ) ५११०१।१३ ८६,६२,६३,६६,६८,१०८,११०,११४,११८, १४३,१६५,२१३,२२६,२४१,२४२,७१७,१४ परमाणु (परमाणु) प १०११४११ ज २।६।३ से १६,३१,३३,६६,७३ से ७८,१०,६३,६४, परमाणुपोगग्ल (परमाणुपुद्गल) प ११४; ३।१७६, १८ से १००,२०७१।१४,१६,१७,१६,२१, १८२,५११२५,१२७ से १२६,१७३,१७४,१८६, २४,२६,२७,२१३;३।१,४४,७,६:११०११३२; १६०,२०२,२१०,२११,२२६; १०१६;१६।३४, १५॥२ से ४,१८१६१६१,४,५११,७,१०,१४, ३६,४३,३०१२६,२८ १८,२०,३०.३१,३४,३५,३७ परलोय (परलोक) ज २१७० परिगय (परिगत) ज ३।३०,११७:४।२७,५।२८ परवस (परवश) उ ३३१२६ परसु (परशु) उ ११२३,८८,८६,६१ परिगर (परिकर) ज ३१२४६३,३१,३७१,४५१, परस्सर (पराशर) प ११६६,१११२१ ज २।१३६ । परस्सरी (पराशरी) प १११२३ १३१३३ परहुय (परभृत) ज ३।२४ परिगायमाण (परिगागन ) ज ५१५,७ से १२,१७ पराघायणाम (पराघातनामन्) प २३।३८,५३,११० उ ३१११४ पिराजय (परा : जि) पराजिणिस्सइ उ १११५ परिग्गह (परिग्रह) प २२।१५,१६ ज २०४६ परामुठ्ठ (परामृष्ट) ज ३।७६,८०,११६,११८ परिग्गहसण्णा (परिग्रहसंज्ञा) प ८।१,२,४ से ११ पिरामुस (परा+मृश) परामुसइ ज ३११२,२३, परिग्गहिय (परिगृहीत) ५ ४।२१६ से २२१,२३१ ३७,४५,७८,८८,६४,११६,११७,११६,१३१, से २३३ ज २।१५६,३१५,६,८,१२,१६,२६, १३५ उ १२२ ३६,४७,५३,५६,६२,६४,७०,७२,७७,८४,८८, परामुसित्ता (परामृश्य) ज ३।१२ उ ११२२ ६०,१००,११४,१२६,१२७,१३३,१३८,१४२, पिरावत (परा+वृत्) परावत्तेइ ज ३१२८,४१, १४५,१५१,१५७.१६५,१७८,१८१,१८६, Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिगहिया परियच्छिय २०५, २०६, २०६, ५१५, २१,४६, ५८ उ ११३६, ४५,५५,५८,६४,८०,८३,६६, १०७, १०८, ११६,११,१२२:३।१०६, १३८, १४८; ४।१५; ५।१७ परिगहिया ( पारिग्रहिकी ) प १७।११,२२,२३, २५, २२६०,६२,६७,७०,७६,६२,१०१ परिघ ( परिवृष्ट) ज ४१२८४१४३ परिछण (परिच्छन्न) ज २११२ परिजन ( परि + ज्ञा) परिचाणइ उ १३८; ३५८ परिजाणाइ उ ११०० परिजानेंति उ ३।११८ परिज्जय (दे० ) सू २०/२ परिणत (परिणत ) ११।४ से ६, ११४८।५६ (परिणम (परि + णम् ) परिणमति २८।२४ से २६,३६,४२,४५,४६,७१,७४, १०५३४/२०, २२ से २४ ज ७१११२१, ३, ५ १०११२६३१, ३, ५ परिणमति प १६।४६ १७ ११५ से १२२, १३,१४८ से १५२, १५४,१५५ परिणममाण (परिणमन् ) ज ३।२१,३४,५५,६४, १५२,८५,११२,१३८, १४४,१६८, १८३,१६१ उ ११६० परिणय ( परिणत ) प ११४, ६ से १ ज २०१६,५१५ उ ३३८, ४०, १२७, १२८; ५।४३ परिणयत्व (रणन्तव्य ) ज २११३३ परिणाम ( परिणाम ) प ११०५: १३ १:१७ ११४१, १३९; २३।१३ से २३,१६५,१६६ मे २०१ २८।१।१ ज २।१६,१३१: ३।२२३७।१३६३१, २११ / परिणाम ( परि - नमय् ) परिणामेति ११७/२; २८१२१,३३,६७ परिणामणया ( परिणामन ) प ३४। १ से ३ परिणामिय (नामित ) प २३।१३ से २३ परिणामेमाण (रिणमयत् ) उ ११४१, ४३ परिणाह ( परिणाह ) ज ४११०२ परिणिय ( परिनिष्ठित ) ज ३१३५ / परिणित्वा ( परि + नि । वा ) परिणिव्वंति ज ११२२, ५० २१५८, १२३, १२८ ४ १०१ परिणाइ ३६८८ परिणिव्वायंति १ ६।११० परिणिव्वाति प ३६३६२ परिणिव्वाहिति ज २।१५१,१५७ परिणिवाण (परिनिर्वाण ) ज २।११६ परिणिवुड (परिनिर्वृत) ज २२६८, ३।२२५ परिणिय (परिनिर्वृत) ज २२८५,६० परितंत (परितान्त) उ ११५५,७७ परित (एरीत ) १।४८।२० से २६, ३४ से ३७, ४३, ५२, ५६ ३११२,१०६, १८१११२.१०६; म १३१२, १४४,८ परितमितिया (पतमिश्रिता) १११।३६ परित्तास (रित्रास ) ज २३७० परिधान रिपाव् ) परिधाति ज ५१५७ V परिनिन्दा (परि+नि+वा) परिनिव्वाहिइ उ ५।४३ परिनिव्वुड (परिनिर्वृत) ज २८८८ परिपीलइत्ता (परिपीड्य ) प २८१२०,३२,६६ परिपीलिय (परिपीडित) ज २११३३ परिपु छणा (परिप्रच्छन) ज ७११७८ परिभट्ट (परिभ्रष्ट ) ज २।१३३ परिभाएता (१रिभाज्य ) ज २१६४ परिभाएमाण (परिभाजयत् ) उ११३४,४६,७४ परिभाग (परिभाग) सु १०।१७३ परिभुंजेमाण (परिभुञ्जान) उ ११३४,४६,७४ परिभुज्जमाण (रिभुज्यमान) ज ४११०७ परिभोगत (परिभोगत्व) ज २१२४,३४,३५,३७, ७२०२,२०४,२०७ परिमंडल (परिमण्डल ) प ११४ से ६,१०।१५ से २४,२६ से ३०/११/२५१३।२४ ज ५१५,७, २२ से २४ परिमंडिय (परिमण्डित) ज ११३७३१,३५, १०६,११७.११८, १७८५२४३ ७ १७८ परिमाण (परिमाण) ज २३६ ; ४।१६८,२४३ परियच्छ ( परिकक्षित ) ज ५१४३ ६७५ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७६ परिषण-परिवुडि परियण (परिजन) ज ३।१८५ सू १६४२२११८ रिवद्भिज्जति प ५११६१ परियर (रि ! चर) गरिमारइ च ३३१ परिषड्ढमाण (रिवधान) १२७२ ज ४१३६, सू १७१ ४३,३२,७८,९५,१०३,१७८ उ ३१४६ परियाइत्ता (यादाय) १६।२० परिवडिट (परिवद्धि) ज११३८,१४०.१४६, परियाइयणया (पदिान) ३४।१ से ३ १५४.१६०.१६१ परियाग ( य) २११२, ३३१४,८३,१२०, परिवढेमाण (पबिधमान) ज २।१६८,१४०, १५०,१६१; ४।२४; ५१२८,३६,४१,४३ १४६.१५८.१६६ १६३ परियागय (पांगत) १६६५५ परिचय बनपन्विति ५१५७ परियाण (गरि- ज्ञा) परिणइ उ ३।१०८ परिवस (... ग) परिवगइ प २।३८ पिरियादि (गरि : आ. दा) परियादियंति ज ११४५.४७:३।१२१४१५१.५४.६०.६१,' ज ३११६२ ६४८०८६.६७.१०२ १०७.१६१,१६६, परियादित्ता (पदा) ज ३६१६२ १८६.१३३.१६६,१६६.२०३,२०८,२१०, परियाय (पर्याय) ज २८३,८४,४१२७२ उ २।२२, २६१.२६४.२६६,२६७,२७०,२७२.२७३, ३।१६६ परियायतकरभूमि (पीयान्तकरभूमि) ज २१८४ २७६; २१३ उ ३१२८ परिवमई उ ३।१५८%; ४७ परिवति । १२० मे २७,३० से ३६. परियायसंगइय (व साङ्गतिक) ३ ३।५५ ४१ मे ४३.४८,४६,५१ से६४ ज ११२४,२६, परियारणया (परिचारण) प ३४१ से ३ परियारणा (परिचारणा) १ ३४१२, ३४।१ से ३, ३१:३११०३,४११०२ परिवसति प २१३२,३३, १७,१८ ३५.३६.३६,४४,५१,५३ से ५५,५७ से ५६ परियारणिढि (परिचारणद्धि) सू १८.२३ परिवगह ज ३।१२७ परिवसामो ज ३११२६१४ परियारिड्ढि (परिचारद्धि) ज ७।१८५ परिवसण (परिवमन) ज २०१६ परिमारिय (रिवारित) प २।३१ १. परिवह (रि चर) परिवहइ उ १५० परियारेमाण (परिचार पत्) सू २०१२ परिवहति ज १७८: सु ११४ परिवहति परियाल (रिवार) ज २११३३;५।२२,२६ शु १८६१६ गरि हामि उ १६७५ उ १६१९,६३,९७,६८,१०५ से १०७ परिवाडी (सिटी) ६१५१५५,२३.१०८ परियाव (परि-तापय्) परिवेंति प ३६।६२ परिवायणी (रिवाउनी) ३३१ परियावण्य (पर्यापन्न) ६१७।१३३ परिवार (परिवर) ज २।६३,९४,५५६ परियावण्णग (पपिन्नक) प २१३.६,६,१२,१५ ७।१८८.१.१७०.१८३ सू १८१४,२१.२३; परिरय (परिरय) ज४।१४२१२,१५६।१,२३४, १६२२३१.६२ उ १११६; ४१५.१३ २४०७.१६,१६,७५,७८ सू ११२७,१८१६ से परिवारणारिवारणा) ज ४१४०११ १३, १९०८।१,११११,१५१,२११२ परिवारिय (रिकारित) २३०,४१ परिलित (परिलीयमान) ज २१२ परिविक्षस (- वि.! ध्वंस) परिविद्धसेज्जा परिली (दे०) १११३७१५ ।। परिवदिय (परिवन्दित) चं शर परिविद्धंसइत्ता (परिविध्यस्य) ५२८।२०,३२ परिवज्जिय (परिवजित) उ ४६ परिवड (पवित)ज ५१४४ उ ४१११,१३ “परिवड्ढ़ (परि + वृध्) परिवति परिवुड्ढि (रिद्धि ) । ५।१३२,१६१,१७६, Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवेदिय पलिओवम १६५, २१६११।७२,१३११७; १५।३४,७५ ज ४११०३,१७८ परिवेदिय (रिवेष्टित ) १५५१ ज २।१३३ परिव्वाय ( परिवाजक) ५ २०१६१ ज ३४१०६ परिसडिय (परिशटित ) ज ३।१३३ उ ३।५० परिसप्प (परिसर्प ) प २६१,६७,७६; ६ ७१; २१।११,१४,५३,६० परिसा (परिषत् ) प २।३० से ३३,३५,४१,४३, ४८ से ५१ ज ११४,४५ ; २६४६०४१६; ५११६,३६,४६ से ५१.५६, ७ ५५, ५८ चं ६ सू ११४:१८/२३३११/२३,२६ उ ११२,१६, २०:२६; ३१५,१२,२४,२८,८६,१५५, १५६; ४१४, १०, १४; ५८१४,२६,३७ परिसाड (गरियाट) १८४ / परिसाउ (परि + शादय् ) परिसाउँति ज ३११६२५१५,७ परिसाडइत्ता (परिशाट्य ) २८१२०,३२,६६ परिसाडेत्ता ( परिशाट्य ) ज ३११६२५५ परिहत्थ (दे० ) ज ४१३,२५ गरिवेति सू २१२ परिहव ( परि + परिहा (रिखा) परिहा ( परि--हा) परिहायति सू १६।२२११४ २३३०,३१,४१ ज ३१३२ परिहाण (परिधान ) प २४० परिहाणि (परिहाणि ) प २६४ ज २५१,५४, १२१,१२६,१३०, ४११०३, १४३ सु १६।२२।१६,२० परिहायमाण (रिहीयमाण ) १२६४ ज २१५१, ५४, १२१,१२६,१३० ४।१०३,१४३, २००, २१०,२१३ उ ३१४७ परिहारविसुद्धिय (परिहारविशुद्धिक) १।१२४, १२७ परिहारविसुद्धियचरित परिणाम (परिहारविशुद्धिकचरित्रपरिणाम ) प १३।१२ परिहावेत (परिहारयितव्य ) सू८ ।१ परिहित (परिहित ) सू २०१७ परिहिय ( परिहित ) प २१३१, ४१, ४६ ज ३३२६, ३६.४७,५६,६४,७२,८५,११३,१३३,१३८, १४५ उ १।१६ परिहोण (परिहीण ) २२६४६; ३६/६२ ज ५।२२,२६ से २८ सू १६८११ ; २०१६१४ परीसह ( परीषह ) ज २६४ ६७७ परुप्पर (परस्पर) ज ४ । १८० परूढ (प्ररूढ ) ज २१६,१३३,१४५,१४६ √ परुव ( प्र + रूपय् ) परूवेइ ज ७ २१४ उ १६८ पवण (प्ररूपण ) ज २६ परेंत (दे० पर्यन्त ) ज ३।१२६ परोक्खवयण (परोक्षवचन ) प ११८६,८७ परोप्पर (परस्पर) प २२१५१, ७३ ७४ ज ११४६ ( लंघ ( प्र + लङ्घ्) पलंघेज्ज प ३६।९१ पलं'डु (कन्द ) ( पलाण्डुकन्द ) प ११४८१४३ लंब ( प्रलम्ब) प २०३०, ३१, ४१, ४६ ज २११५; |३|१७८५११८७ १७८ सू २०१८ लंबमाण ( प्रलम्बमान) ज ३१६, ६.२२२५१२१, ३८ पलवमाण ( प्रलपत्) उ ३।१३० पलास (पाश) प १।३५।१ ज ४।२२५।१ पलिओम (पल्योपम ) प ११२४, ४१३०, ३४,३६. ४०,४२,४३,४५,४६,४८,४६, ५१, ५२, ५४, १०४,१०६, ११०,११२, १२४, १४६, १५१, १५५,१५७.१५८,१६०,१६२, १६४, १६५, १६७,१७१,१७३, १७७, १७६,१८०, १८२, १८३.१८५,१८६,१८८, १८६, १६१,१६२, १६४,१६५, १६७, १९८, २००, २०१,२०३, २०४,२०६,२०७, २०६, २१०, २१२,२१३, २१५,२१६,२१८, २१६,२२१,२२२, २२४, २२५, २२७.२२८,२३०,२३१,२३३, २३४, २३६,६।४३; १२।२४; १८४, ६, १०, १२,६०, ७० से ७२ २०६३ २३/६१,६४,६६.६८,७३, ७५ से ७७,७६,८१,८३ से ५६८८ से १०, ६२, ६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११७,११८,१३४,१३५, १३८, १४०,१४२. Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८ पलिभाग-पविज्जुयाइत्ता १४३,१५१ से १५३,१५५ से १५७,१६०, ४०,५५ पवत्तति प १६१४३ १६१,१६४,१६६ से १६६,१७१ से १७३ पवत्त (प्रवृत्त) ज ३।११५,१२३ ज ११२४,३१,४५ से ४७, २१५,६,४४,५२, पत्ति (प्रवनिन्) प १६६५१ ५६,५६,१५६,१६१, ३.१६७,२२६;४।२२, पवत्ति (प्रवृत्ति) ज ४१२३,३८,६५,७३,६०,६१ ३४,५४,६०,६१,६४,८०.८५,८६,६७,१०२, पवयण (प्रवचन) प १।१०१५५,११ सू २०१६।४ १४२,१६१,१६६,१६७१३,१७७,१८६,१६६, पवर (प्रवर) | २३०,३१,४१,४६ ज ३७,६, २०८,२६१,२६६,२७०,२७२,७१८७ से १६६ १२,१५,१७,२१,२२,२४,२६,३१.३२,३४ मू ६।१८११८१२५ से ३६ उ ३.१६,८५, से ३६,३६,४७,५६,६४,७२,७७,७८,८१, १२४,४।२५ ८५.८८,६१,१०८ से १११.११३,१३३,१३८, पलिभाग (प्रतिभाग) प १२।२७,३६,३७,१५३५० १४५,१६७।५,१७३,१७५, १७७,१७८,१६६, ज २६५ २२२, ५३५,७,४६,५८ सू २०७२ ११७, पलिभागभाव (प्रतिभागभाव) प १७१५०,१५२ १६,२२,२४,१२३,१४०।४।१२,१३,१५; पलिमंथ (परिमन्थ') प ११४५११ ५११८ पलिय (पलित) ज २११५,१३३ पवह (प्रवह) ज ४।३६,४३,७२,७८,६०,६५, पलियंक (पर्यङ्क) ज ११८,४८,४।५५,६२,६८, १७४,१८३,२६२, ६।१८ १६७,१६६,७१३३१२ पवा (प्रपा) ज २१६५,५१५७3 ३१३६ पलुम (पलुआ) प १४४८१६ सन की जाति का एक पवाइत (प्रवादित) प २१३१,४६ पौधा पल्ल (पल्य) ज २६ पवाइय (प्रवादित) प २१३०,३१,४१ ज ११४५, पल्लग (पल्यक) प ३३।२० ज ४१५७ ३.१२,७८,५२,१८०,१८५,१८७,२०६,२१८; पल्लल (पल्वल) २१४,१३,१६ से १६,२८ ५।१,५१६७१५५,५८,१८४ सू १८६१३, पल्हत्थ (पर्यस्त) ज ३३१०५ १६।२३.२६ पल्हत्थमुह (पर्यस्तमुख) उ १११५, ३१६८ पवात (प्रपात) उ ५५ पल्हव (पल्हव) प ११८६ पवादित (प्रवादित) ज ३.२०६ पल्हविया (पल्हविका) ज ३।११।१ पवाय (प्रभात) ज २।३८,३१८८४२३,३८,४२. पल्हायणिज्ज (प्रह्न दनीय) १७११३४ ज २।१८, ६५.६७,६८,७१,७३,६० से १४ १८५ पवायबहुल (प्रपातबहुल) ज १११८ पवंच (प्रपञ्च) प २१६४ पवाल (प्रवालय ११२०१२,११३५,३६:११४८।१५, पवग (प्लवक) ज २१३२ २५,६३; २१३१ ज २१२४,६४,६६,१३१,१४४, पिवड (प्र-+पन्) पवडइ ज ४।२३ से २५,३८ १४५,१४६,३।३५,११७,१६७।८ से ४०,६५ से ६७,७३ से ७५९९० से १२ पवालंकुर (प्रवालाकुर) प १७.१२६ पवडेज्ज उ ३१५५ पवालि (प्रवालिन) ज ७।११३ सू १०११२६।३ पवडणया (प्रपतन) प १६:५३ पविचरिय (प्रविचरित) ज ४१३ पवण (पवन) प २।३०।१ ज ३।३५ १०६; २५ पिविज्जुय (प्र- विद्युत्) पविजुयाइस्सइ पिवत्त ( प्रयतंय्) पवत्तड १६८,१६५३६ ज ११४१ से १४५ पविजुयायंलि ज ३।११५ १. वनस्पतिकोश में हरिमन्थ शब्द मिलना है। पविजुयाइत्ता (प्रविद्युत्य) ज २११४१ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पविजुयायित्ता-पसत्य ६७६ पविज्जुयायित्ता (प्रविद्युत्य) ज ३।११५ पविट्ठ (प्रविष्ट) प१५११११,१५१३६,४०,४२ ज ३।१०५,१७८.२२३;७।१७८ पविठित्ता (प्रविश्य) सू १०।१३६,१३१५,६ पवित्थर (प्र--वि- स्त) पवित्थरइ ज ३७६, ११६,११८ पविभत्त (प्रविभक्त) ज १११८,२०,४८,४११६७, २१५ पविभत्ति (प्रविभक्ति) सू १५:३७ पवियरिय (प्रविचरित) ज ४१३,२५ पवियारण (प्रविचारण) प १३१७ पविरल (प्रविरल) ज २६१३३; ५७ पिविस (प्र-विश) पविसं ति ज ३।१८३ पविसंत (प्रविशत्) च ४।२ सू १८१२; १९४२२१४ पविसमाण (प्रविशत्) ज ३१२०३११३,१६,२३ से २५,२८ से ३०,७२,७८,८४ सू १११२,१४, १६,१८,१६,२१.२४,२७,२६३, ६।११३१६ से १०,१४ से १६ पिवुच्च (प्र- वच्) पवुच्चइ सू ५१ पढ़ (प्रव्यूढ) ज ३।६७,१६१,४१२३,३५,३५,४२, ६५.७१,७३,७७,६०,६१,६४,१७४,१८३, १६५,२६२ पवेस (प्रवेश) ज ११६,३८,३।१२,४१,४६,५८, ६६,७४,७७,१०६,१४७,१६८,२१२,२१३; ४११०,११५,१२१,२१७ उ ५।४३ पव्व (पर्वन् ) प ११४८।४७,११।२५ ज ७।१०६ से ११० सू १०.१२७:१२।१६,१७,१३३१,२ पव्वइत्तए (प्रवजितुम) प २०१७,१८ उ ३१५०; ५॥३२ पवइय (प्रवजित) ज २६५.६७,६५,८७ उ २१६; ३३१३,२१,५०,५५,५८,६०,७६,७७,७६,११३, ११८, ५॥३८ पव्वंस (दे०) उ ५२२५ मिशिर ऋतु पव्वग (पर्वक) प १४३३११:११४१,११४८।४६ ___ ज २११४४ से १४६, ३।३१ पिन्वज (प्र-व्रज्) प जिहिइ उ ५४३ पन्वज्जा (प्रव्रज्या) उ ३११६६ पब्बत (पर्वत) प २।३२,३६,५०,५१,१७११११ ज ११४६;३।२२४ सू ५।११६२६ पव्वतराय (पर्वतराज) सू १६४२३ पवतिद (पर्वतेन्द्र) सू ॥१ पव्वय (पर्वक) ५ ११४२११ पन्वय (पर्वत) ६२३३,३५,४३,४४,१६।३०; १७४१०६ ज १११६,१६,२०,२३ से २५,२८, ३२,३३,४६।१,४७,४८,५१:२१३१,१०,११७, ११८,११६,१३१,१३३,३।१,६१,८१,१३०, १३१,१३५ से १३७,२२४;४।२३,३८,४८, ५७,५९,६०,६५,७१,७३,८४,६०,६१,६४, १०३,१०६,११०,१११,११३,११४,१४२, १६०,१६२,१६३,१६७,१६८,१७२,१७३, १७५,१७६,२००,२०५ से २०८,२१२ से २१६,२२०,२२१,२२५,२२६,२३४,२३५, २३७,२३६ से २४१,२५३,२५४,२५७,२५६, २६० से २६२९५१४४,४७,४८,४६,५५,६।६।१; ६।१०,१६,२३,२४,७१८ से १३,३१,३३,५५, ५८,६७ से ७२,६१,९२,१७१ सू ४१४,७,७११; ८.१,१८।५ उ ३३५५,५५,६ पिन्वय ( प्रव्रज) पव्वयाइ उ ३.११२ पव्वयामि उ ३११३;४।१४ पन्वयाहि उ ३।१०७ पव्वयग (पर्वतक) ज १११३ पन्वयबहुल (पर्वतबहुल) ज ११८ पवयराय (पर्वतराज) ज ७।५५ सू ५।१,७११ पवयसमिया (पर्वतसमिका) ज ११२३,२५,२८ पत्रयाउय (एवनायुप् ) ज ५॥१६ पव्यराहु (पर्वराहु) सू २०१३ पसंत (प्रशान्त ) ज २१६८,५७,२६ पसदिल (प्रशिथिल) १२१४६ पसष्णा (प्रसन्ना) उ११३४,४६,७४ पसत्त (प्रसक्त) ज ५१२६ पसत्थ (प्रशस्त ) प १७१३३,१३४,१३८,२३४५६, १०६,११६:३४।१३ ज ११३७२।१५:३।३,६ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० पसय- उन्भूय १८,३५,६३,१०६,१८०,२२२,२२३;७११७८ पसय (दे०) प ११६४ ज २१३५ पसर (प्र स) पसरइ उ ३.५१ पसरई १११०१७ पसरित्ता (प्रमृत्य) उ २५१ पिसव (प्र+स) पसवंति ज २०४६ पसार (प्रसारय) पसारेइ उ ३६२ पसासेमाण (प्रशासयत्) ज ३१२ उ ५१६,११ पसिण (प्रश्न) ज ७।२१४ उ ३१२९ पसिय (प्रमृत) ज ३१३५ पसु (पशु) प १११४ उ ३१३६,४८,५० पसूय (प्रसूत) ज ३१०६ उ ३।४८,५०,५५ पसेढी (प्रश्रेणी) ज ५।३२ पसेणइ (प्रसेनजित्) ज २१५६,६२ पसेणी (प्रश्रेणी) ज ३.१२,१३,२८,२६,४१,४२, ४६,५०,५८,५६,६६,६७,७४,७५,१४७,१४८, १६८,१६६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०, २१६,२१६,२२१ पह (पथ) ज ३१८५,१८८,२१२,२१३,५७२, ७३ सू १६।२२।१५ उ १६८ पहंकरा (प्रभङ्करा) ज ४।२०२।२ पहकर (दे०) ज २११२६५,३।१७,२१,१७७ पहगर (दे०) ज ३१२२,३६,७८ पहत (प्रहत) ज २११३१ पहरण (प्रहरण) ज ३३३१,३५,७७,१०७,१२४, १६७१६,१७८,४।१३७ उ १११३८ पहरणरयण (प्रहरणरत्न) ज ३३५ पहराइया (प्रभाराजिका, प्रहारातिगा) प ११८ पहव (प्रभव) ५ १११३० पद्दसिय (प्रहसित) प २१४८ ज ११४२,४१४६, २२१ : ७६१७६ सू १८८ पहा (प्रभा) प २१३१ ज ११२४ पहाण (प्रधान) ज २।१५,६४,१३३,३१३,३२, ११७६१,१३८,१७५७।१७८ पहार (प्रहार) ज ३।१०६ उ ३।१३१,१३४ पहार (प्र. धारय) पहारेत्थ ज २६३18, १८३ उ १८८ पहारेमाण (प्रधारयत्) प ३४०२४ पहाविय (प्रधावित) ज १६५ पहिय (प्रथित) ज ३११७,१८,२१.३१,६३,१७७. १८० पहीण (पहीण) ज २१८८,८६,३१२२५ पहु (प्रभु) ज ७११६८१२ पाई (पाची) प ११४४।१ एकलता, मरकतपत्री पाइक्क (दे०) ज २०६५ पाईण (प्राचीन) प २१०,५० से ५२,५४ से ६२ ज ११२०,२३ से २५,२८,३२,४८,३११, १२६।४।४।१,३,५५,६२,८१,८६,८८,६८, १०३.१०८,१४१,१६२.१६७.१६६,१७२, १७८,१८५,१८३,१६१,२००,०३,०५, २१५,२४५,२४६,२५१,२६२,६८,१११०१, १०२ सू८।१ पाईणपडिणायता (प्राचीनापाचीनायता) सू१।१९; २।११०११४२,१४७,१२१३० पाईणपडीणायता (प्राचीगापाचीनायता) प २।५० से ६२ ज ११२० । पाईणपडीणायया (प्राचीनापाचीनायता)ज ११२०% ३.१:४।१,३,८६,८८,९८,१०८ पाईणवाय (प्राचीनवात) प २६ पाउण (प्र+आप) पाउणइ उ ३११४,५।३६ पाउणति प ३६.९२ पाउणि सई उ ५।४३ पाउणित्ता (प्राय) प३६९२ ज २१८८,३१२२५ उ २।१२३।१४,४१२४:५१२ पाउप्पभाय (प्रादुष्प्रभात) ज ३।१८८३३१४८, ५०५५,६३,६७,७०.७३,१०६,११८ पाउब्भव (प्रादुन्। भू) पाउभभंति ज ५१२७ पाउन्भवह ज ५२२,२६ उ १११२१ पाउभवामि उ ३।२६ पाउमविस्था ज ३.१०४ पाउभविस्थाइ ज २११४१ मे १४५ पाउभवमाण (प्रादुर्भवत्) ज ५१२८ पाउन्भूय (प्रादुर्भत) ज ३११०५.११३,१२५; Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाउभवित-पादुभ ५/७४ स ११४ उ १।२४,३४, ४०, ४३,७४, ३१५७,६२,६५,६९,७२,७५,८१,१४३, १५६ पाउभवित (दुर्भवितुम् ) ३१११३ पाया (पादुका) ज ३१६, १७६६ ५।२१ पाउस (प्रा) ज ७।१२६ । १२११४ उ५।२५ पाओ (२१ पाओग (प्रा) उ २।११ पाओसिया ( प्रादोपिकी) १२२२४६, ५६ पागड (प्र:ट) ज ३।३ चं १।३ पागभाव (कटभाव) ज २२६८ पागडिय ( प्रकटित) : २२४८, ४६ पाटि (प्राकर्षिन् ) ज ५१५,४६ पागल ( शकृत) १६ २२ ३ पागल (पान) १ २५० ज ५११८ पवार (कार) १२१३०,३१,४१ ज ३११; ४। ११४,११६६७।१३३।२ पागारच्छाया (प्राकारच्छाया) सू ६१४ पाचारसंठिय(माका- संस्थित) सू १०|४३ पाड (पातय् ) पाडेइ उ ३१५१ पाडेंति ज ५११६ पाडण (कन ) उ ११५१,८६ पाडल (पाटल) ज ३१२,८८,५५८ (ट) १३७५ पाहलिवुड (पाटलिपुट) ज ४।१०७ (क) ३३६१८ ४ २२ पडिलए (म्) उ ११५१,७६,७७ पारतिय (प्रात्यन्तिक) २३५७ पाडिया (अ) सू २०१३ पाडिहारिय (प्रानिहारिक ) प ३६।९१ पाडेता ( पानयित्वा ) ज ५।१६ उ ३।५१ पाढा (ठा) ११४८४१७।१३१ पाण (ण) ; ३६/६२,७७ ज २।१३१ ३११० से १११२१२ पाण (प्राण) ज २२४११, २ पाण (पान) उ ३१५०, ५५,१०१,११०, ११४,१३४; ४११६ ६८१ पाणक्य ( प्राणक्षय) ज २१४३ पाणत ( प्राणत ) १ १ १३५ / पाणम ( प्र + अन्) पाणमंति प ७/१ से ४,६ पाणय ( प्राणत ) १२२४६, ५८, ५६, ५६२, ६३; ३।१८३४१२५८ से २६०६।३६,५६,६६; ७ १७१५८८ २१ ७० २६१८४३३३१६; ३४ १६,१८ ज ५२४६२१२२ पाणय ( पानक) उ३।११४;४।२१ पाणयग ( प्राणतज ) ज ५२४६ पाणयवडेंस (प्राणतावतंसक ) प २२५८ पाणावात किरिया ( प्राणातिपातक्रिया ) प २२ १ पाणाइवाय ( प्राणातिपात ) प २२६ से ११,२१ से २३ पाणावाय किरिया ( प्राणातिपातक्रिया ) प २२६, ४६,४७,५०,५२,५७,५६ पाणाइवायविरत ( प्राणातिपात विरत ) २२८३, ८४, ६१ से ४,६६ वायरमन (प्राणातिशतविरमण ) २२२७७ से ७६ पाणातिवास किरिया ( प्राणातितक्रिया ) प २२/६ पाणि (प्राणिन् ) ज ३११७८ पाणि (पाणि) ज ५/५ उ १।११ से १३,३०,३२; २७,४१८५११२,२५ पाणिग्गहण ( पाणिग्रहण ) उ५।१३ पाणिय ( पानीय) उ३।१३० पाणियग ( शनीयक) ज २११३१ पाणिलेहा (पाणिरेखा) ज २२१५ पाणी (पाणि) प १/४०/४ पात (प्रातस् ) सू १०1५, १३६ पाती (पात्री) ज ३३११;५१५ पाद (पाद) १७।१११ ज ४।१३ पादपीठ (पादपीठ) ज ३।१७८ उ१।११५ पादणपडणाया (प्राचीनावाचीनायता ) ज १।१८ (प्रा :- दुर् । भू) यति ६ ३४।१६, २१ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ पादो-पास पादो (प्रातस) सू २१ पारगामि (पारगामिन् ) ज ३७० पादोसिया (प्रादोषिकी) प २२॥१,४,५६ पारणग (पारणक) उ ३१५१,५३,५४ पामोक्ख (प्रमुख,प्रमुख्य) ज ११२६; २१७४,७७; पारस (नारस) प २८६ ४११३७ उ ५११०,१७,१६। पारसी (पारसी) ज ३३१०२ पाय (पाद) ज ३११२५,१२६,२२०,२२४:५१५,७।। पारिणामिया (पारिणामिकी) उ ११४१,४३ सू २०१६१६ उ १.११,१३,३० से ३२,७१, पारिप्पन (पारिप्लक) ५११७६ १४:४।८.२१:५।१२ पारियावणिया (पारितापनिकी) प २२११,५,५०, पाय (प्रातस्) सू १०।१३६ । ५२,५६ पायचारविहार (पादचारविहार) ज २१३३ पारेत्ता (पारयित्वा) ज ३१२८ पायच्छित (प्रायश्चित्त) ज ३७७,८१,८२,८५, पारेवत (पारापत) ११६५५, १७१३२ १२५,१२६ सू २०१७ उ १११६,७०,१२१ पारेवय (पारापत) ६११५९ ज ३३५ ३।११०,११५,५११७ पारेवयगोवा (पारापतग्रीवा), १७।१२४ पायत्त (पादात) ज ३।१७८ पाल (पालय) पानयाहि ज ३।१८५ पालेंति पायताणीय (पादातानीक,पादात्यनीक) ज ३११७८ ज १२२,५०,५८,१२३,१२८:४११०१ पायत्ताणीयाहिवई (पादातानीकाधिपति, पाले हिति ज २११४८ पादात्यनीकाधिपति)ज २२,२३,२६,४८ पालइत्ता (पालयित्वा) ज १८८ से ५२,५३ पालंब (प्रालम्ब) ज ३१६,६,२२२:५।२१ पायत्तिय (पादातिक) उ १११३८ पालक्का (पालका) प ११४४११ पायददरय (पाददर्द रक) ज ५१५७ पालण (पालन) ज ३१८५,२०६ पायपीढ (पादपीठ) ज ३१६५२१ उ १५११५ पालय (पालक) ज ५।२८,२६,४६३ पायमूल (पादमूल) उ ३।१२५ पालियायकुसुम (पारिजातकुमुम) १७१२६ पायरास (प्रातराश) उ १११०,१२६,१३३ पालेत्ता (पालयित्वा) ज १।२२ पायव (पादप) ज २।६५,७१, ३।१०४,१०५ पालेमाण (पालयत् ) ए २१३०,३१,४१,४६ उ १११,६१,३१५६,६४,६६,६८,७१,७४,७६ ज श४५,३।१८५,२०६,२२१:५११६ पायवंदय (पादवन्दक) उ १७०४।११ उ १६५,६६,७१,६४,१११,११२,५।१० पायविहारचार (पादविहारचार) उ ३।२६ पाव (प्र+आप) पाये प २१६४।१५ पायसीस (पादशीर्ष) ज ४११३ पाव (पाप) म १११०११२,१११८६ पायहंस (पादहंस) प १७६ पास्यण (प्रवचन) उ ३३१०३,१३६,४।१४।५।२० पायाल (पाताल) ५२११,४,१०,१३ पाववल्ली (पावकवल्ली) ८ ११४०१२ पायावच्च (प्राजापत्य) ज ७/१२२१२ सू १०१८४१२ पावा (पावा) प ११६३३५ पायीण (प्राचीन) ज २१५३ कपास (दश) पासइ ११७१०८ से ११०, पायोवगय (प्रायोपगत) ज ३१२२४ ३०१२८ ज २१७१,६०,६३,३३५,१५,२६,३१, पार (पारय) पारेइ ज ३१२८,४१,४६,५८,६६, ३६,४४,४७,५२,५.६,६१,१०६,११६.१३१, ७४,१३६,१४७,१८७ १३७,१४१.१७३,५१३,२१,२८,६३ उ १११६; पारगत (पारगत) प २१६४१२१ ३।७,४११३,५१२२ पासउ ज २१ मंति Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पास- पिंगायण प २।६४।१३; १५/४६ से ४६, ३३२ से १३, १५ से १५; ३४ । ६ से ६,११,१२ ज ३।१०५, ११३ ११३६ पासति १५/३७, ४१, ४४, ४५, १७ १०६ से १११,२३।१४;३०/२५ से २८ ३६३८०, ८१ पास ज ३।१२४ वासिज्जा उ १११५ पासिहित ज २।१४६ पासिहिसि उ ११२२ पासेइ उ १।५७ पासेज्जा उ ११२१ पास (पास) १८६ पास (पा) ज २०१५; ३१३२, ४। १४२,२०२,२१२ ५।१७,४३,४६,६०,६६, ७ ३१,३३ सू ४/३,४; २०१२ उ ३।१२,१४,२१,२८,२६,४६,५१,७६; ४१०, ११,१३,१५,१६,२०,२८ पाश (पाश) ज ३|१०६ पडबहुल (पाण्डवल ) ज १११८ पासंदधम्म (पापण्डधमं ) ज २२१२६ पासंग (पाशक ) ज ७११७८ पासग्गाह (पाशग्राह) ज ३।१७८ पाणया (दर्शन, पश्यत्ता) प ११७,३०१, ५, ८, १० पासत्यविहारि (मास्थविहारिन् ) उ ३११२० पासमण (पश्यत् ) ज २२७१ पासवण (प्रस्रवण ) १८४ पासाईय ( प्रासादीय, प्रासादिक ) प २२३१,४८,५६, ६३ ११२३,४१, २०१५, ४१३, ६, १३, २५, २६, ३३,४६, १४६६ ५६२उ ५१६ पासाण ( पाषाण ) ज ३११०६,४३,२५,७११३८ पासाद (प्रसाद) २२६५ पासादच्छाया (प्रासादच्छाया ) सू ३४ पासादसंठित ( प्रासादसंस्थित) सू ४२ पासादीय (प्रासादीय, प्रासादिक ) प २०३०,४१,४६, ६४ ज ११८, ३१२।१२.१४,४।२७ १११ उ ५१४,५ पासा ( प्रासाद) ज ११४२, ४३ २२०, ६५, ३।३२, ८२,१८७,२१८,२१६, ४३, ४९, ५०, ५३, ५६, १०६,११२,११६,११६, १२०, १४७, १५५, १५६, २२१ से २२४,२२६,२३५,२३७,२३८, २४०, ६८३ २४३,५११६, २५ उ ११४६, ६४; २६; ५१३, २०,२७,३१ पासायवडेंसय ( प्रासादावतंसक ) ज ४११०२,११६, २२१,२२२,२२३११,२२४।१ पासि (पाव) ज १२३,२५,२८,३२,३१७६; ४११,४३,६२,७२,७८,८६,६५,६६, १०३,१७८, १८३,२००,२०१,५१४६,६०,६६ पासि (द्रष्टुम् ) प ११४८५७ पासिकाम ( द्रष्टुकाम ) प २३|१४ पासित्ता ( दृष्ट्वा ) १२३।१४ ज २६० उ १।१६; ३।१०१, ४११३:५।१३ पासित्ताणं ( दृष्ट्वा ) उ १४३३२२८ पासियस्व ( द्रष्टव्य ) प २३|१४ पासेत्ता ( दृष्ट्वा ) उ ११५७ पाहाण ( पाषाण' ) ज ५ १६ पाहुड (प्राभृत) ज ३२८१ चं ३२, ३, ५१४ सू १७; ६२४,२५,१०११७३ पाहुडस्थ ( प्राभृतस्थ ) सू २०१६ पाहुडपाहुड (प्राभृतप्राभूत) चं ५।४ सु ११६ पाहुणिय ( प्राधुनिक) ज ७ १८६१ सू २०१८ पाय ( प्राभृत) १५० पि (अपि) उ३।३० पिs (स्तु) उ ११६१; ५।४३ fusदेवया (देवता) सू १०१८३ पिड ( पितृ) ज ७ १३०, १८६४ उ ११५२,५४, ७६,७९,३१५१,५६ fusसेकण्ड (कृष्ण) उ ११७ पिंगल ( पिङ्गल) ज ३१६, १६७४,२२२ पिंगलक्ख (पिंगलाक्ष ) ज ७ १७८ पिंगलक्खग ( पिंगलाक्षक) ज २।१२ पिंगलग ( विगलक ) ज ३।१६७ पिगलय ( पिंगलक ) ज ३३१६७|१,१७८ सू २०१२, ८, २०१८१४ पिंगायण (गायन) ज ७११३२ । ३ सू १० १०८ १. दे १।२६२ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ पिंडय-गीइदाण पिंडय (पिण्डक) ज ६६६१ पिड़वाय (पिण्डपात) उ ५।४३ पिडित (ण्डित) घ २०६४।१५,१६ पिडिम (पिण्डिम) ज २११२५५ पिक्क (पत्र) प १७:१३३ पिखुर (दे०) ज ३१८१ पिच्छय (च्छिक) उ ११५६,६३,८४ पिच्छि (पिच्छिन्) ज ३११७८ पिट्ट (दे०) उ ३.११४ पिट्ठओ (पृष्ठतम्) ज ३।१०,११,८६,८७,१७६; पिढओउदग्गा (पृष्ठत उदग्रा) सू ६४ पिटठंत (पृष्ठान्त) उ ३१३ पिट्ठर (पृष्ठान्तर) उ २०१६; ५५ पिट्ठीय (पृष्ठ) उ ३१११४ पिदिठकरंडक (पृष्ठकरण्डक) ज २०१६ पिटिठकरंडग (पृष्ठकरंडक) ज २०४८,१५६ पिट्टिकरंडुक (पृष्ठकरण्डक) ज २१५२,१६१ पिट्टिकरंडुय (पृष्ठकरण्डक) ज २१५६ पिडग (गिटक) सू१६२२१४,५,६ पिडय (निटक) सू१६।२२।४,५ पिणद्ध (पिणद्ध) ज ३।६,७७,१०७.१२४,२२२ उ ११३८ पिणद्ध (नि- नह) पिणद्धति ज ३।२११ पिणद्धाव (पि+नाहय,पि+नि+धाय्) पिणद्धावेइ ज ५१५८ पिणद्धावित्ता (पिनाह्यगिनिधाप्य) ज ५१५८ पिणवेत्ता (दिनह्य) ज ३।२११ पितिपिंड (पितृपिण्ड) ज २१३० पित्त (पित्त) प ११८४ पित्तिय (पैत्तिक) उ ३।३५,११२,१२८ पिप्परि (पिपाली) प ११३६।२ पिप्पलिचषण (विष्पलिचूर्ण) प १११७६,१७.१३१ पिप्पलिया (पिलिका) प ११३७।२ पिप्पली (हिणली) ५१७।१३१ पिप्पलीमूलय (पिप्पलीमूलक) १७१३१ पिप्पीलिया (विप्पीलिका) १५० पिय (प्रिय) १२१४१, २८1१०५ ज २१६४,३१५, ६०,१५७,१८५,२०६ ; ५१५८ उ ११४१,४४; ३।१२८,५।२२ इपिय (पा) पियंति उ ३।६८ पिय (पित) उ १७२,८८,६२,४१२८ पियंगाल (दे०) १।५१ पियंगु (प्रियङ्गु) ५२।४०१६ पियट्ठया (प्रियार्थ) ज ३१५,११५,१२५ पियतर (प्रियतर) ज २१८,४।१०७ पियतरिया (प्रियतरका) प १७११२६ से १२८, १३३ से १३५ ज २०१७ पियदसण (प्रियदर्शन) ज ३।६,१७,२१,२८,३४, ४१,४६,१३६,१७७,२२२ सू २०१४ उ ५।५,२२ पियर (पित) ५ ११।१३,१८ पियस्सरता (प्रियस्वरता) प २३।१६ पिया (पितृ) ज २२२७ पिया (प्रिया) ज २।६६ उ ४८,६ पियाल (प्रियाल) ज १३५१२ पिरिली (पिरिली) ज ३।३१ पिलग (पिलक) ज २११३७ पिलुक्खरुक्ख (प्लक्षरूक्ष) ११३६१२ पिल्लण (प्रेरण) ज ३।१०६ पिव (इव) ज ३१२२ उ ११३८,३।५० पिवासा (पिपासा) उ ३.११४,११५,११६,१२८ पिसाय (पिशाच)११३२, २१४१ से ४३,४५ ४६६८५ पिसायइंद (पिश चेन्द्र) ५२१४२ से ४४ पिसायराय (पिशाचराज) प २१४२ से ४४ पिसुय (पिशुक) प १५० ज २१४० पिधान (विधान) ज ५१५६ पिहुजण (पृथक् जन) प ६४२६ पिहुल (पृथुल) ज २११५, ७३१,३३ सू ४।३,४, पोइगम (प्रीतिगम) ज ५।४६।३,७।१७८ पीइदाण (प्रीतिदान) ज ३।६,२६,२७,३६,४०, Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीइमण-पूच्छा ४७,४८,५६,५७,६४,६५,७२,७३,१३३,१३४, ३६८१ ज १७ सू १११४ १३८,१३६,१४५,१४६ पुक्खरद्ध (पुष्करार्ध) प १५२५५:१७११६५ पीइमण (प्रीतिमनस्) ज ३१५,६,८,१५,१६,३१,५३, सू१६२०२,५ ६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४,१४२,१६५, पुक्खरवर (पुष्करवर)सू १९१२ से १६:२११३,२८ १७३,१८१.१८६,१९६,२१३,५।२१,२७ पुक्खरवरदीवड्ढ (पुष्करवरद्वीपार्ध) ५ १६।३० उ ११२१,४२,३।१३६ म १६०२१ पीइवद्धण (प्रीतिवर्धन) ज ७.११४।१ पुक्खरवरोद (पुष्करबरोद) सू १६०२८ से ३१ पीढ (पीठ) १३६६१ उ ३१३६ पुक्खरसारिया (पुष्करसारिका) प १६८ पीढग्गाह (पीठग्राह) ज ३.१७८ पुषखरिणी (पुष्करिणी) प २।४,१३,१६ से १६, पीढमद्द (पीठमद) ज ३१९,७७ २८,१११७७;२११८७ ज १।१३,३३,२११२; पीण (प्रीणय ) पीणेति ज ५१५७ ४।१४०,१५४,२२१ से २२४,२३५,२४३ पीण (पीन) ज २०१५ पुवखरोद (पुष्करोद) ज ५।५५ सू १६।२८ से ३१ पीणणिज्ज (प्रीणनीय) १ १७११३४ पुक्खल (पुष्कल) ज ४११६६ पीणित (प्रीणित) सू १२।२६ पीतय (पीतक) सू २०१२ पुक्खलकूड (पुष्कलकूट) ज ४११६८ पीति (प्रीति) उ १११११,११२ पुक्खलचक्कट्टिविजय (पुष्कलचक्रवति विजय) ज४।१६४,१६५ पीतिदाण (प्रीतिदान) ज ३।१५० पुक्खल विजय (पुष्कलविजय) ज ४११६७ पोतिवद्धण (प्रीति वर्धन) सू १०।१२४११ पीय (पीत) ज ३१२४,३१ पुक्खलसंवट्टय (पुष्कलसंवर्तक) ज २।१४१,१४२ पीयकणवीरय (पीतकरवीर) प १७११२७ पुक्खलावइचक्कवट्टीविजय (पुष्कलावतीचक्रवर्ति पीयबंधुजीवय (पीतबन्धुजीवक) ५ १७११२७ विजय) ज ४।२०० पीयासोग (पीताशोक) र १७११२७ पुखलाई (पुष्कलावती) ज ४१६६ पीलु (पीलु) 4 ११३५११ पुक्खलावईकूड (पुष्कलावतीकूट) ज ४११६६ पीवर (पीपर) ज २१५७.१०८ पुग्गल (पुद्गल) ५ २८॥३५ पीसिज्जमाण (विष्यमाण) ज ४११०७ पुच्छ (प्रच्छ) पुच्छड चं ११४ उ २०१२ पोहगपाय ('पोहग'पान) उ ३।१३० पुच्छिज्जति सू १०।६२ पूच्छित्सामि उ १११७,३२६ पुंख (पुख) ज ३।२४ पुंज (पुञ्ज) प २।३०,३१,४१ ज २।१०:३७,८८ पुच्छणी (प्रच्छनी) ५१११३७।१ ४।१६६:५७ पुच्छा (पृच्छा) प २१४४,४१५० से ५४,५४ से ६४, पुंडरीका (पुण्डरीका) ज ५१११११ ६६,६७,६६,७०,७१,७३,७४,७६,७७,८०,८१ पुंडरोगिणी (पुण्डरीकिणी) ज ४०२००११ से ८७.८६,६०,६२ से ६४,६६,६७,६६,१००, पंडरीय (पुण्डरीक) ५ २१४८ ज ३।१०:४१४६,२७४ १०२.१०३,१०५ से ११२,११४ से १३०, पुक्कार (पुक्का रय) पुक्कारेंति ज ५१५७ १३२ से १३६,१४१ से १४८,१५० से १५७, पुक्खर (पुष्कर) ५ १५६५५३१ ज २१६८ १५६ से १६४,१६६,१६७,१६६,१७०,१७२, सू १६२१३१ १७३,१७५ से १८२,१८४ से २०६,२०८, पुक्खरकणिया (पुष्करकणिका) परा३०,३१,४१, २०६,२११,२१२,२१४ से २६३,२९५,२६६, Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुच्छिज्ज-युद्धविच्काइय .६६६१,१५१,१५१३६ से ४०,४५,२०१३६; २२१५६२३।१३ से २३:२८।११,१२,५७,५८ ज०१८,२०,२३,४८3३३३५,४१,५५,६२, ८१,८६,६८,१०८,१७२, ६।१,३,७१४०,५०, २९८५१३,१५,१६,५५.५८,६२,६७,७०, ७३,८८,६६,१३०,१३३,१३५,१३७,१३६, १४२,१४४,१४६,१४६,१५३,१५६,१५६, १६२,१६५,१६८,१७१,१७३,१७६,१८०,१८३, १८६,१८६,१६२,१६६,१६६,२०२,२०६, २१०,२१३,२१७,२२०,२२३,२२७,२२६, २३३,२३६,२३८,६१२४ से २६,२८ से ४२, ७४,७६,७७,११०,११२,६४२२;१०१७ से १३, २२ से २४;१२।२४,३३,१४।१५,१५१४ से ६, ६,१०,४२,५७,८१,८२,८५,८६,६२,६३; १६.४,६ से ८,१७:१४,१७,२८,२६,३३,४१ से ५५,६५,१०२,१०४,१३१ से १३४,१५८, १६२,१६४,१८१२६,६२,११२,११८,१२१, १२३,१२४,१२७:१६।२,३,५,२०१४.७,१६, ३०,३५,४१ से ४४,४६ से ४८,५३,५४; २११३७,६७, २२१६८,६६,६५,६८२३६४८ से ५०,६५,६६ से ७६,८१,८३ से ८६,८८ से ९०,६५,९८,६६,१०१ से १०४,१०६,१११ से ११८,१२८,१२६,१३१ से १३३,१५४,१७३; २४।६,८,२६।६,१०,२८७६ से ६७,६६, १०६,११०,१२६,१४५,२६१८,११,२०,२१; ३०।१२,१८,२०,२२,३१।२,३,६,३२१३,४,६, ३३१७ में ६,२० से २६,२८,२६,३२,३३,३६, ३४।७ से ६,११,३५।३.११,१६,२२,३६१३४, ५०,५१.५५ से ५७ ज ४।२०४,२१०,२५८, २५६७।६३.७४,७७,८३,८४,१०८,१४२ से १४४ सू ९३१०।१५१,१८११० से १३,३५, ३६:१९३५,८,११,१५,१६,२१,३१,३५,३८ उ २०१३;३१८,२१,२६,६४,१५६,१६६ ; ४।५; ५१२३ पुच्छिज्ज (प्रच्छ) पुच्छिज्जइ प ३।१२१ पुच्छिज्जति प १११८२,८३,८५,१७।३०; २११६१,२८।११५,११७ पुच्छिज्जति प२८॥१४५ पुठ्ठ (स्पृष्ट) ५ २६४११०,११,१११६१,६२, पुड (पुट) ज ५११४,१७ उ १५५,५७,६१,६२, ८०,८२,८६,८७,३।११४ पुढवि (पृथ्वी) प ११२०११,११४८३८११५३, २।१,२० से २७,३० से ३७,४१ से ४३,४६, ४८ से ५१,६३,६४,३१११ से २३,१८३:४।४ से २४,६१० से १६,४५,५१,७३ से ७८,८०; ८०१,२,६।८८,६१,६२,१००,१०६:१०१ से ३,११।२६ से २८,१५॥५५२,१६१२६; १७१३३१८११०७.११६.२०१६ से १०,३८ से ४२,४६,५६,२११५२,५६,६६,८५,८७, ६०:२२२२४; २८१२३,३०१२५ से २८, ३३१३ से ८,१६,१७ ज २।१६,१७,६८; ३१२२४; ४।२५४,७११२१४,२११,२१२ सू१०।१२६१४ पढधिकाइय (पृथ्वीकायिक) प १४१५,१६, २१ से ३,३१२,५० से ५२,५४,६० से ६३,६५ ७१ से ७४,७६,८४ से ८७,८६,६५,१५६ से १५८.१८३,४१५६ से ६४,६८,५१३,६,१०, ५२,५३,५५,५६,५८,५६,६२,६३,६।१६.५३, ६२,८२,८३,८६,८६,१०२,१०३,११५; ७।४;८१३;६।४,१६:१२१२०,२१,२३,२५,२६, १३.१६,१५१२० से २८,५३,५४,७२ से ७४, ७६.१३७;१६।१२,१७१६५.१०२,२०१२४; २।३७, २८१२८,२६।२० ज २०७२ सू २१ पुढधिकाइयत्त (पृथ्वीका कत्व) प १५।६६,३६।२२ ज ७१२१२ पुढविक्काइय (पृथ्वीकाक) प १२।३,२४; १५१५७,८५,१६।४१७।१८ से २२,४०,६०, ८७,६४,६५,६७,१०२,१८१२६,३२.३८,४०, पुढविकाय (पृथती माय) सू ११ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविक्काइयत्त-पुष्फबद्दलय १८७ ४२,५०।१६।२:२०६१३,२२,२४ से २६,२८, १४२ च ५१ सू १।६।११०२१ ३२,३५, २११३ से ५,२३,४०,७६,८० पुण्णा (पूर्णा) सू १०१६० २२॥३१,७३,२४१६:२८१२६.३० ३३ से ३६, पुण्णाग (पुन्नाग) ११॥३५१३ ज ३।१२,८८,५८ ३८,६६२६८ से १०,२०:३०।८,६,१८,१६ पुण्णिमा (पूर्णिमा) ज ७:१२५,१२७११,१३७ से ३११३,३४।३;३५१६.२०,३६१६,२५.२६, १४५,१५४,१५५,१६७।१ सु १०१६ से १७, १६ से २२,२६ पुढविक्काइयत्त (पृथ्वीकाविकत्व) प १५३१४१; पुण्णिमासी (पौर्णमासी) ज ७४१३८,१४१ च ५१ ३६१२६ सू१०७,८,१८,२०,२२,१२६२,१३६ से पुढविसिलापट्टक (पृथ्वीशिलापट्टक) उ ५।८ । १५६,१३।१ से ३,६ पूढविसिलापट्टग (पृथ्वीशिलापट्टक) ज ३।२२३ पुत (पुत) उ ४६ पुढविसिलापट्टय (पृथ्वीशिलापट्टक) उ ११ पुत्त (पुत्र) ज २१२७,६४,६६,१३३ उ ११०,१३, पुढविसिलावट्टय (पृथ्वीशिलापट्टक) ज १११३ १५,२१ से २३,३१,४३,९७,७२,७४,८२,८७, पुढवी (पृथ्वी) सू २।१,६१३,१८११ उ ११२६,२७, ६५,१०६,११०,११३,११४,१४६२१६,६,१८, १४०,१४१ २२,३१४८,५०,५५,११४ पुण (पुनर्) प६१८०।१ सू ११२० उ ११७ पुत्तंजीवय (पुत्रजीवक) प ११३५१२ पुणं (पुनर्) उ ३।१०२ पुत्तत्त (पुत्रत्व) उ ५३०,४३ पुणब्भव (पुनर्भव) प २०६४ पुष्फ (पुष्प) प १३५,३६:१।४८।१७,२७,४०,४१, पुणरवि (पुनरपि) प ३६१६४ ज २१६,३१८१; ४७,६३,२।३०,३१,४०।१०,४१,१५।२ ज २१८ ७११८,१२१ सू२।१ से १०,१२,१५ से १८,६५,१४५,१४६ ; ३।७, पुणव्वसु (पुनर्वसु) ज ७/१२८,१२६१३४ से ११,१२,२१,३४,७८,८५,८८,१०६,१८०, १३६,१४०,१४६,१६१ सू१०२ से ६.१३, २०६४।१६६,५७,२२,२६,४८,४६,५५% २४,४०,६२,६८,७५,८३,१०५,१२०,१३१ ७।३१,३३,३५,५५,११२१३,४ सू ४।३,४,६, से १३३,१५५,१६१,१११२ से ४ ७,६१०२०,१२६६३,४;१६।२२।२,१५; पुणो (पुनर्) ज ३।१०६ सू १६।२२ उ ३१६८ १६।२३,२०1८।६ उ ११३५,३१५०,५१,५३, ११०,११४:५६ पुण्ण (पूर्ण) प १४०१६ ज २१६०,१०३,१०६, पुष्फ (पुष्प) पुप्फति ज ३११०४,१०५ १०८,१७८,३१६,२२२, ४।३,२५,१७२११ १४६७४१७८ पुष्फकेतु (पुष्पकेतु) सू २०१८ पुण्ण (पुण) प ११०१२ ज ३१११७१५५,४६ पुष्फचंगरी (पुष्प 'चंगेरी') ३३१२५ ज ३।११; पुण्णकलस (पुर्णकलश) प २।३० ज २४३ ५७,५५ पुण्णचंद (पूर्णचन्द्र ) ज ३।३,११७ पुष्फचूला (पुष्पचूला) उ ४।२०,२२,२८ पुण्ण (भद्द) (पूर्णभद्र) उ ३१२११ पुप्फलिया (पुप्पलिका) उ ११५४।१ से ३, पुण्णभद्द (पूर्णभद्र) ए २१४५.४५।१ ज ४११६२११, २७,५१ १६५ उ १६.१६,१४४; २।१४,१६:३।१५६, पुष्फछज्जिया (पुष्पछादिका) ज ५१७ १५८,१६० से १६५.१६९.१७१,५१८ पुप्फपटलहत्थगय (हस्तगतपुष्पपटल) ज ३।११ पुषणभद्दकूड (पूर्णभद्रकूट) ज ११३४,४६:४।१६५ पुष्फपडलग (पुष्पपटलक) ज ५७ पुण्णमासी (पौर्णमासी पूर्णमासी) ज ७११२।२, पुष्फबद्दलय (पुष्पवादलक) ज २७ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४।१ ८१ ६८८ पुष्फमाला-पुरिस पुष्फमाला (पुष्पमाला) ज ५१।१ ज १११६,१८,२०,२३,२४,३५,४१,४६,४८, पुप्फय (पुष्पक) ज ५१४६।३ ५१,३११,१४,१५,२२,२६,५१,५२,१६१,४११, पुप्फ (वासा) (पुष्पवर्षा) ज ५१५७ १८,२६,३५,४५,५५,५७,६२,७१,८१,८४,८६, पुष्फविटिय (पुष्पवृन्तक) प ११५० ६०,१०३,१०६,१०८,१२६,१५१११,१५३, युएफाराम (पुष्पाराम) उ ३।४८ से ५०,५५ १६२,१६७,१६६.१७२,१७८,१८१,१८२, पुप्फारुहा (पुष्पारोहण पुष्पारोपण) ज ३११२,८८ १८४,१८५,१६०,१६१,१६३,१६४,१६६, पुरफासव (पुष्पासव) प १७६१३४ १६७,१९६ से २०३.२०५,२०६,२०८,२०६, पुप्फाहार (पुष्पाहार) उ ३५० २१३,२१५,२१६,२२८,२३३,२३५,२३८, पुफिय (पुष्पित) उ ३१४६ २४३,२४५,२६२,२६५,२६६,२७१,२७२, पुफिया (पुष्पिका) उ ११५:३११ से ३,१६,२०, २७४,२७७,५८.१०,३६,४७,६।१६ से २४; २२,२३,८७,८८,१५३,१५४,१६६,१६७,१७०; ७.१७८ सू२।१८।१:१३।१२,१५,१५।८ से १३:१८११४ से १७, २०१२ उ ३१५१ पुप्फुत्तर (पुष्पोत्तर) प १७११३५ पुरस्थिमपच्चत्थिम (पौरस्त्यपाश्चाल) सू २१ पुरफुत्तरा (पुष्पोत्तरा) ज २११७ शक्कर की जाति पुष्फोदय (पुष्पोदक) ज ३१६,२२२% पुरस्थिमलवणसमुह (पौरस्त्यलवणसमुद्र) ज ४।२६८ पुष्फोवयार (पुष्षोपचार) ज ७१३३११ पुरथिमिल्ल (पौरस्तर) प १६१३४ ज ११२०,२३, पुष्फोवयारसंठिय (पुष्पोपचारसंस्थित) सू १०११३० ४८,२।११७,३।२६.६५,६७,६६,१३५,१५१, पुम (पुंस्) प १११५ से १०,२४,२६ से २८ १५६.१७०,२०४,२१४,४।१,२३.५५,६२,८१, पुमवयण (पुंस्वचन) प ११।२६,८६ ८६,९८.१०८,१४३.१४७,१५६.१७२,२२६, पुर (पुर) ज २१६४ २२७,२३७,२३८,२६२,५।१४,४४,७११७८ पुरओ (पुरतस्) ज ३।१२,८८,१७८,१७६,२०२, सू २।११०।१४७:१३।१३ २१७,४।५,२७,१२२,१२४,१२७,५१३१,४३, पुरवर (पुवर) ज ३१३२.३५,२२१ ४४,४६,५७,५८,६०,६६ उ ३१५०,११२:४११६ पुरा (पुरा) ॥ १।१३,३०,३३,३७,४१२ पुरओउदग्गा (पूरत उदगा) सू६।४ पुराण (पुराण) ज ३।१६७ पुरंदर (पुरन्दर) प २१५० ज ५:१८ परिभकंठमाओवगता (पूर्वकण्ठगापमता) सूहा४ पुरक्खड (पुरस्कृत) स ८१ पुरिमड्ढ (पूर्वाद्धं) प १६।३० पुरजण (पुरजन) ज ३११२,२८,४१,४६,५८,६६, पुरिमाल (पुरिमताल) ज २७१ ७४,१४७,१६८,२१२,२१३ पुरिमद्ध (पूर्वाद्ध ) प १६:३०;१७।१६५ पुरतो (पुरतम्) सू २।२ पुरिस (पुरुष) पश६०,६६,७५,७६,८१,८४; पुरत्याभिमुह (पौरस्त्याभिमुख) ज ३१६,१२,२८, २१६४११६,३।१८३,६७६;१६४८,५२,५४; ४१,४६,५८,६६,७४,१४७,१८८,२०४,२१६ १७.१०८,१०६,१११ ज ३१७,८,१५,१६,२१, २२२,५।२१,४१,४७,६० उ१।४१,३१६१ ३१,३४,३५,७,८१,१२५,१६७६४,१७३, पुरस्थाभिमुहि (पौरस्त्याभिमुखिन् ) ज ४।२३,३५, १७६,१७८,१८३,१६६,२००,२१२,२१३ चं ४। २ ८।२,२०७ उ १११७,१८,४४, पुरस्थिम (पौरस्त्य,पूर्व) प ३१ से ३७,१७६,१७८ ४५,१२३,१३१,३११०,१११।४।१६ से १८; Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिसकर-पुव्ववेयाली ५१५,१५ से १८ पुरिसकार (पुरुषकार) गु २०६।३ पुरिसक्कार (पुरुपकार) ५ २३११६,२० ज २०५१, ५४,१२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४, १६०,२६३,३।१२६,१८८,७१७८ म २०११ पुरिसच्छाया (पुरुपच्छाया) ज २२,२५ मु २।३ पुरिसजुग (युरुपयुग) ज २८४ परिसवरगंधहस्थि (पुरुषवरगन्ध हस्तिन ) ज १२१ पुरिसवरपुंडरीय (पुरुष रपुण्डरीक) ज ५१२१ । परिसलिगसिद्ध (पुरुषङ्गिनिद्ध) ५१११२ पुरिसवेद ( पुरुषवेद) प १८१६१,२३३१४२,१८७; २८।१४० परिसवेदग (पुरुषवेदक) प ३३९७:१३।१४,१८,१६ पुरिसवेय (पुरुषवेद) प २३:१६,७४,८४,१४४ पुरिसबेयग (पुरुषवेदक) T१३।१५ पुरिसवेयपरिणाम (पुरुषवेदपरिणाम) प १३.१३ पुरिससीह (पुरुषसिंह) ज ५।२१ पुरिसादाणीय (पुरुषादानीय) उ ३।१२,२६,७६ ४।१०,११,१३,१४,१६ परिसोत्तम (पुरुषोत्तम) ज ५२१ पुरोष (पुनीप) उ ३३१३०,१३१,१३४ पुरेक्खड़ (पुरस्कृत) प १५८३ से ८५,८७,८६ से १०१,१०३ से १०६,१०८ से ११०,११२ से १२३,१२५ से १३२,१६५ से १४३,३६८ से पुव (पूर्व) प १६।२१:३६१६२ ज २१४,१६१; ३११८५,२०६,२२१,४।१३५,२३८७१३८, २१२ च ११३ सू ३।१:८।११८।१,२१ उ ११६६,१०६,११०,११३,११४ पुत्वंग (पूर्वाङ्ग) ज २४,७११७१ सु८११; १०१८६१ पुचंभाग (पूर्वभाग) गु १०१४,५ पुवकोडाकोडि (पूर्वकोटिकोटि) ज ३११८५,२०६ पव्वकोडि (पूर्वकोटि) प ४११७७,१०६,११३.११५, ११६,११८,११६,१२१,१३१,१३३,१३७,१३६, १४०,१४२,१४६.१४८:१८।४,६०,८१,८४, ८६.६६:२३७८,७६,१४७,१५८,१६२,१६५, १६६ ज २।१२३,१५१:३।१८५,२०६४।१०१ पुब्बग (पूर्वक) ११।४६ पुचितिय (पूरचिन्तित) उ ३१७६ पुषण्णस्थ (पूर्वन्यस्त) ज ५१४२ पुवण्ह (पूर्वह्नि) ज २०७१,८८ पुव्वदारिया (पूर्वद्वारिका) सू१०।१३१ पुब्बपडिवण्ण (पूर्वप्रतिपन्न) उ ३.८१,८२ पुब्बपोट्ठवया (पूर्वप्रीष्ठादा) मू १०।६४ पुब्बफग्गुणी (पूर्वफल्गुनी) ज ७१२८,१२६,१३६ पुदभद्दवया (पूर्वभाद्रपदा) ज ७।१२८, १२६,१३६, १३६,१४२ सू १०१६ पुत्वभव (पूर्वभव) उ ३१६,२१,२६,१४६,१५६, १६६,१७१४।५,२८ पुब्वभाव (पूर्व भाव) प २८१६८ से १०१ पुब्दरहतगुणसेढीय (पूर्वरचितगुणश्रेणिक) प ३६।६२ पुस्थरत (पूर्वर.) उ ११५१,६५,७६,३१४८,५०, ५५,५७.६६,७२,७५,७६,६८,१०६,१३१ पुववण्णिय (पूर्ववणित) ज २।५२,१६१,३११७१; ४।६६,१०१,१०६,१६०,२३७,२४३,५६,७; ७।३५,१६७ पुनविदेह (पूर्वविदेह) प १६।३०१७३१६१ __ज २१६, ४।६६,६६,२१३,२६३११ पुन्ववेयाली (पूर्व 'वेयाली') प १६१४५ पुरेडिय (पुरस्कृतक) प १५३५८१२ पुरोहियरयण (राहिसार) ज ३३१७८,१८६, १८८,२०६,२१०,२१६,२१६,२२० पुरोहियरयणत (पुरोहितल) २०५८ पुलग (दुलक) ११५८ ज १५:१५ पुलय (पुलक) : १।२०।४ ज ३.३५ पुलाकिमिया (दे०) प १४६ पुलिद (जिन्द) ११८६ पलिदी (हिन्दी) ज ३३१११२ पुलिण (पुलिन) ज ४।१३ । २०१७ पुलिय (पुलित) ज ३।१७८,७।१७८ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० पुवसंगइय-पेच्छाघरमंडव पुब्वसंगइय (पूर्वसांगतिक) उ ३१५५ ६०,६१,११३,११६; २११४४ से ४७,४७११, पुश्वसयसहस्स (पूर्वशतसहस्र) ज २१६४,८७,८८; २,६.२११६८,२४।१४,१५, २५२,४,२७१२,६; ३।१८५,२२५ २८।२७,७३ से ७६,१२१,१२४,१२७ से पृन्दाण पूवी (पूर्वानुपूर्वी) उ ११२,१७,३।२६,६६, १३२,१३६,१४३,१४५.;३६११७,३४ १३२,१४६,१५६; ४।११,५१३६ पुहत्तय (पार्थक्त्विक) घ १११८५ पुवा (पूर्व) सू १०१५,१२०,१११३;१२२२३ पुहवी (पृथ्वी) ज ३१३,३५, ५११०११ पुवापोट्ठवता (पूर्वप्रौष्ठपदा) सू १०॥५६ पूअफलीवण (पम्फलीवन) ज २६ पुवापोवया (पूर्वग्रीष्ठपदा) सू १०१४,५,६,२१, पूइ (पोई) प ११३५४३ २३,३१,८२,६६,१३१,१३२ पूइत्त (पुतित्व) ज २१६ पुवाफग्गुणी (पूर्व फल्गुनी) ज ७.१४०,१४८, पूइय (पूर्जित) ज ३।८१५१५ १५१,१६३ सु १०।२ से ६,१५,२३,४४,६२, पूजित (पूजित)उ ३१४८,५० ७०,७५,८३,१०६,१२०,१३१ से १३३,१५२; पूय (पूर्व) प १८४;२२० से २७ ज ३१२० १२।२३ उ ११५६,६१,६२८४,८६,८७ पुटवाभद्दक्या (पूर्व भद्र'दा) ज ७१४६,१५७ पूयथय (दे०) १११६५ सू१०।२,३,५,७५,१३१,१३३ पूयणवत्तिय (पूजनप्रत्यय) ज ५१२७ पुव्वामेव (पूर्व मेव) प ३६६२ उ ४।२१ पूणिज्ज (पूजनीय) सू १८१२३ पुवावर (पूर्वापर) ज १।२६,४१२१,१४२,२५६; पूयफली (पूगफली) ५ ११४३।२ ६।१०.११,१४,१५,१८ से २२,२६,७१४,६३, पूया (पूजा) उ ३१५१ ८७,११०,१८३ कपूर (पूरय्) पूरयंते ज ३१३१ पूरेड प ३६१८५ ज ७।११२१५ पुरेति ज ५११३ पूरेति पुत्वासाढा (पूर्वाषाढा) ज ७।१२८,१३६,१४०, मु १०1१२६५ १४६,१६७ सू १०।२ से ६,१६,२३,५३,६२, पूरग (पूरक) ज ३१८८ ७४,८३,११८,१३१ से १३५ पूरयंत (पूरयत्) ज २१६५,३१३१ पुटिव (पूर्वम् ) उ ३१११८ पूरिम (परिम,पूर्य) ज ३।२११ पुबिल्ल (पूर्वीय) ज ५।४१ पूरेत (रयत) ज ३१३०,४३,५१,६०,६८,१३०, पुयोववण्णग (पूर्वोपपन्नक) ६१७४४,६,१६,१७ १३८ से १४०,१४६,७११७८ पुस (पुष्प) ज ७।१२६।१ पूरेता (पूरयित्वा) ज ५।१३ पुस्स (पुष्य) ज ११३६,१४०,१४६,१६१,१६२ पूस (पुरुष) ज७।१२८.१३०,१८६।३ यु १०१४; सु १०।२,३,५,६,१३,२४,४१,६२,६८,६६, १२११६ से २३,२६ ७५,८३,१०६,१२०,१३१ से १३३,१५६; पूसफली (पुरुफली) ५११४०११ १११६१६।२२।१७ पूसमाणय (पुष्यमाणव) ज ३११८५ पुस्सदेवया (पुष्यदेवता) सू १०८३ पूसमाणव (पुष्यमाणव) २१६४,५३२ पुस्सफल (पुष्यफल) प १।४८४८ पेच्छणिज्ज (प्रेक्षणी) ज २०१५ पुस्सायण (पुप्यायण) ज ७/१३२१२ सू १०११८ पेच्छा (प्रेक्षा) ज २१२०,३२ पुहत्त (पृथक्त्व) प ७१३,६ से १११८१,८३,८४, पेच्छाघरसंठित (प्रेक्षागृहसं स्थित) मु४१२ १२।६१५।६,१८१४,१६,२४,३१,३६,४९,५४, पेच्छाघरमंडव (प्रेक्षागृहमण्डप) ज ३।१६३; Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेच्छिज्जमाह-पोलिंदो ९६१ ४।१२३,१२४;५।३३ १६:३३,३४,१७।२,२५, २१:१।१,६५,६६; पेच्छिज्जमाण (प्रेक्ष्यमान) ज २१६५:३।१८६,२०४ २३।१३ से २३:२८।२०,२२ से २४,३२,३४, पेज्ज (प्रेम) प १११३४।१।२२।२० ३६,३६ से ४२,४४,४५,४८,६६,६८ से ७१. पेज्जणिस्सिया (प्रयोनिधिता) १११३४ १०५,३४११११,३४१६.१६,२०,३६।५६,६१, पेढ (पीठ) ज ४११४३,२०८; ५१३ ६२,६६.७०,७३,७४,७६,७७.७६ से ८१; पेम्म (मेमन्) ज २१२७ ज १६, ३१६२,५२१,७,७।२११ सू ५।१; पेरंत (पर्यन्त) ज ११६ ; ३११२६।४।४।१४३, ७१,६१,२०१२ २४५,२४६,२५१७१७८ पोग्गलगति (पूद्गन्दगति) प १६१३८,४३ पेलव (पे१५) ज ३१२११:५।५८ पोग्गल स्थिकाय (पुद्गलास्तिका) ५३१११४ पेस (प्रेः) ज २२६ ११५,१२०,१२२ पेस (प्र. इ) पेसिज्ज इ उ ११२८ पेसेइ पोग्गलपरियट (पुदगल परिवर्त) प १८१३,२७,४५, उ १।११० पेसेमि उ १।१०६ पेसेमो ५६,६४.७७,८३,६०,१०८ उ ११२७ पसेह उ १११०७ पेमेहि उ ११११५ पोच्चइ (दे०) उ ३.१३० पेसल (पेशल) प १७११३४ पोट्ट (दे०) २४३ पेसित्तए (पितुम्) १।१०७ पोलिया (पोट्टालिका) ज ५११६ पेसिय (प्रेपित) उ १३११६,१२७ पोवई (प्रौष्ठादी) ज ७४१३६,१४२,१४८,१५१, १५५ पेसुग्ण (पशुन्य) प २२१२० पोवती (प्रौष्ठपदी) सू १०७,६,२१,२३,२६ / पेह (प्र- ईक्ष् ) पेहति प १५५० पोट्टक्य (प्रौष्ठपद) मू १०१५,१२०,१५३ पेहमाण (प्रेक्षमाण ) प १५:५० पोडइल (पोटगल) प ११४२११ तल तृण पेहुणमिजिया (पेहुण' मजिका) १७.१२८ पोतिया (दे०) ११५११ पोंडरीय (पौण्डरीक) प ११४६,७६ ज ४।३,२५ पोत्तिय (पौत्रिक) उ ३१५० पोंडरीयदल (पौण्डरीकदल) प १७।१२८ पोत्थगग्गाह (पुस्तकग्राह) ज ३।१७८ पोक्ख (प्र-+उक्ष) पोखेद उ ३५१ पोत्थयरयण (पुस्तकरत्न) ज ४।१४० पोक्खरस्थिभय (पुष्करास्थिभार) ज ४७ पोत्थार (पुस्तकार) प ११६७ पोक्खरपत्त (पुस्करपत्र) ज ३।१०६ पोरग (पोर) ११४४।१ इक्षु पोक्खरवर (पुष्करवर) सू१९६१५३१,२ पोराण (पुराण) प २८१२०,२६,३२,६६ पोक्खरवरदीव (पुष्करवरद्वीप) सू १६११५ ज १११३,३०,३३,३६,४२ पोक्खल (पुष्कर) प ११४६ पोरिसिच्छाया (ौरुषीच्छाया)म् ११६। ३१ से ३ पोक्खलस्थिभय (पुष्करास्थिभाग) प ११४६ पोरिसी (पौरुषी) ज ७११५६ से १६७ मु १०।६४ पोक्खलावतीचक्करदिविजय से ७४ (पुष्कलावतीचक्रवति विजय) ज ४११६७ पोरिसीच्छाया (पौरुषीच्छाया) चं २३ पोग्गल (पदगल) १९८४:३।११२,१२४,१७५, पोरेवच्च (पौरपत्र पौरोवत्य) प २।३० से ३३, १७६,१८० से १८२,५३१४०,१४३,१४५, ३५,४१,४८ से ५१ ज १।४५; ३।१८५.२०६. १४७.१५०.१५४.२३३,२३४,२३६ से २३६, २२१,५।१६ उ ५।१० २४१,२४२,६२६१५१४० से ४७.४६: पोलिंदी (पोलिन्दी) ५ १६८ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पोस (पौष) ज २११६७|१०४ सु १०११२४ उ ३१४० पोसह (पौषध) ज २११३५ पोसहघर (गृह) ज ३१३२ पोसहसाला (पौषधशाला ) ३।१८ से २१,३१, ३३, ३४, ५२ से ५४ ५८,६१,६३,६६,६६,७०, ७१,७४,८४,८५, १३७, १३६,१४१ से १४३, १४७,१६४ से १६८, १८० से १८३,१६०, १६६ उ ५ ३५ पोसहिय ( पोपधिक) ज ३।२०,३३,३५,५४,६३, ७१,८४,१३७,१४३, १६७,१८२ पोसहवास (पौषधोपवास) प २०१७,१८,३४, पोसो (पौषी) ज ७।१३७, १४०, १४६, १४६, १५५, लु १०१७,१३,२२,२३,२६ पोहत ( पृथक्त्व ) प १५१।१,१५ ८ से १०,२३, ३०.१४०२४।६ पोहत्तिय (पार्थ क्विक ) प २२२५, २८:२३८, १२ फ फग्गुण (फाल्गुन) ज २२७१७३१०४ स १० । १२४ उ ३१४० फग्गुणी ( फल्गुनी) ज ७ १३७,१४०,१४६, १५३, १५५; १० ११२०:१२/२३ तु १०१७,१५,२३. _२५,२६,१२०,१५३,१५८,१२।२३ फणस ( स ) प १३६३१:१६।५५; १७।१३२ फणिज्जय ( फणिज्भक ) व ११४४१३ मरुआ फरिस (स्पर्श) ज ३०२,१८७, २११,२१८५३५८ ग्रु २०१७ उ ५ २५ फरस ( रुप ) ज २३१३१,१३३ फल (फल) ११३३५,३६,१४८६,१८,२८,६३, २३।१३ से २३ ज १११३,३०,३३,३६,२८, ६,१२,१६,१७,१८,७१, १४५, १४६; ३०११७, २२१:४/२७/११२।३, ४ १०।१२०, १२६/३,४ उ ११३४,१८, ६६, ३५०, ५३, ६८, १०१,१३१; ५१६ फलग (फलक) ५ ३६।६१ ज ३।३१ उ ३।३६ पोस- फासचरिम फलगग्गाह (फलक ग्राह) ज ३११७८ फलय ( फलक ) ज ४१२६ उ १।१३८ फल (वासा) ( फलवर्षा ) ज ५:५७ फलविटि ( फलवृन्तक ) प ११५० फलहसेज्जा ( फलका) उ५१४३ फलासव (फलासव ) ६ १७ १३४ फलाहार ( फलाहार ) उ३१५० फलिय ( फलित ) उ ३०४६ फलिहकूड ( स्फटिककूट) २१५१,५६ 'फलिहामय (स्फटिकमय ) सु १८८ फाणिय ( फाणित) ५ १५।११२,१५५० फालिय (स्फटिक) ज ४१३, २५ फालियामय ( स्फटिकमय ) प २१४८ ज ७।१७६, १७८ फास (स्पर्श) प ११४ से ६, २२० से २७,३०,३१, ४१, ४८, ४६; ३११८२५१५, ७, १०, १२, १४,१६, १८,२०,२४,२८,३०,३२,३४,३७३६, ४१, ४५. ५३,५६,५६,६१,६३,६८,७१,७४,७६,७८, ८३, ८६,८६,६१,६३,६७,१०१, १०४, १०७, १०६,१११, ११५,११६,१२६,१३१,१३४, १३६,१३८, १४०, १४३, १४५, १४७, १५०, १५२,१५४,१६३,१६६, १६६,१७२, १७४, १७७, १८१, १८४, १८७, १६०, १६३, १६७, २००,२०७,२११,२१४,२१८,२२१,२२४, २२८,२३०,२३२,२३४,२३७,२३६,२४२, २४४; १० । ५३।१; ११५६; १५१३८, ७७,८१, ८२,१७११३२ से १३४,२३।१३ से २३,१०६, २८१६,१०,२०,३२,५५,५६,६६, ३४१११२; ३६।८०,८१ ज १११३,२७,१८, ६८, १४२; ३।१३८; ४।२७,४६,८२५३२७ २०६ सू २०१७,८,२०१८,४ फासओ ( स्पर्शतम् ) प १५ से ६; ११/६०; २८११०,२०,२६,५६ फासचरिम ( स्पर्शचरम ) प १०३५२, ५३ १० १११६७ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फासणाम-बंधणविमोयणगति ६६३ फासणाम (स्पर्शनामन्) प २३।३८,५० फुसमाण (स्पृशत्) प १३।२३ फासतो (स्पर्शनस् ) प २६ से २८१३२,६६ फुसगणगति (स्पृशद्गति) प १६१३८,३६ फासपज्जव (स्पर्शपयंव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, फुसित्ता (स्पृष्ट्वा ) प १५३५१,१६।३९,३६७६,८१ १३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३; ज ३२१३१ ७/२०६ फुसिय (स्पृष्ट) ज ५७ फासपरिणाम (सार्शपरिणाम) ५१३१२१,२६ फेण (फेन) ज ३१३५:४:१२५,५२६२,७१७८ फासपरियार (म्पर्शपरिचार) ५ ३४।२१ फेणमालिनी (फेनमालिनी) ज ४१२१२ फासपरियारग (स्पर्शपरिचारक) ५ ३४।२८,२१,२५ फासपरियारणा (स्पन्चिारणा) १३४।१७,२१ फासमंत (स्पर्शवत) १११५२,५६,२८।५,६,५१, बउल (बकुल) प११३५१ बउस (बकुश) प ११८६ फासविण्णाणावरण (स्पर्श विज्ञानावरण) प २३३१३ बंध (बन्ध) १३.११२,१३१२२११,२,१४११८।१: फासादेस (स्पर्शादेश) प १२०,२३,२६,२६,४८ २६।१२ ज २११३३ फासावरण (सावरण) प २३।१३ बंध (वन्ध) बंधइग २३॥३,१६८२४।१३ से फासिदिय (मर्श न्द्रिय) ५ १५१,६,७,१० से १८, १५ ३१५५ बंधति १९.१८२२२२२,२३, २० से २७,३०,३१.३५,४२,५८ से ६४,६६,७०, ८६,६०२३१५,७,१३४,१३५,१३७ से १४०, ७३,७४,८०,८५,१३३,२८/४२,४५,४६,७१ १४२,१४३,१४६,१४७,१५१ से १५८,१६० से १६२,१६४,१६६,१६७,१६६,१७१ से फासिदियत्त (स्पर्श न्द्रियत्व) १२८१२४,२६,३४१२० १७४,१७६,१७७,१८१,१८५,१८६,१६०% फासिदियपरिणाम (स्पर्शेन्द्रियपरिणाम) ५१३१४ २४१४,५,१० से १२,१५:२६१४.६ ज ५११३ फासु (प्रासु) उ ३।३६ बंधति प २२२२१,८३,८६,८७:२३।१।१, फासुय (प्रासुक,स्पर्शक) उ ३।११४ २३६४,६,१६४ से १६६,१६ से २०१:२४१२, फासुयविहार (प्रासुकनिहार) उ ३१३०,३६ ३,१०,१५:२६।२,३,८ बधिसु प १४११७ फासेंदिय (स्पर्शेन्द्रिय) ११५।१६,२८,३१ से ३३, बंधिस्संति प १४:१८ बंधेसु प १४११८ ६४ से ६७,७६,१३४:२८१३६ बंधेसि उ ३७९ फुट्ट (दे०) ज २१३३ बंधग (बन्धक) प ३।१७४;२२१२२,२३,८४,९०; फुट्ट ( फुट) फुट्टउ उ ५१७२ फुट्टिहि ज ५७३ २३१६३, २४१४ से ८,१० से १३;२६।४ से फुट्टमाण (फुटत् ) ज ३१८२,१८७,२१८ ६,८ से १०:२७१५ फुड (स्पृष्ट) ५१५१५३ से ५७,३६।५६,६०,६६ बंधण (वन्धन) प २१६४१२२,१६१५५,३६।८।१, से ६८.७०,७१,७४,७५,८१ च ११३ ८३३१,६४११ ज २२२७,२६,८६,८६,१३३; फुडित्ता (स्फुटित्वा) प १११७८ ३।२२५ उ ११६६,६८,७२,८८,९२ फुडिय (फुटित) प २११३३ फुल्ल (फुल्ल) ज ३।१८८ बंधणछेदणगति (बन्धनछेदन गति) प १६.१७,२३ फुल्लावलि (फुल बलि) ज ५१३२ बंधणपरिणाम (बन्धनपरिणाम) प १३१२१,२२ -फुस (स्पृश् ) फुसइ ज ३।१३१ फुसई प रा६४११ बंधनविमोयणगति (बंधन विमोचन मति) फुसति ५ ११।७२ सु ५।१ फुसंतुज ३१११२ Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६४ बंधगाण-बल विसिट ठया बंधमाण (बध्नत् ) प २२२६,२७:२४।२ से ५,६ बत्तीसमंगुलमूसियसिर (द्वात्रिंशदङ्गलोच्छित शिरस्क) से १५:२५।२,४,५ ज ३३१०६ बंधय (बन्धक) प १३१६२,२२१२१ ८३.८६,८७, बत्तीसविह (द्वात्रिशविध) ज ३।१५६ २३।१।१,२३.१६१ से १९३,२४१२,३,७,८, बदर (बदरा) प ११३७।२ कपास का पौधा १०,१२:२६।२ से ४,६,८ से १० बद्ध (बद) प १५१५८१२;२०३६, २३।१३ से २३ बंधिता (बद्वा) ज ५११३ उ ३।५५ ज ३१२४,३५,७७,८२,१०७.१२४,१७८,१८६, बंधुजीदग (वन्धुजीवक) १ ११३८।१ ज २६१०, १८७,२०४,२१४,२१८,२२१४१३.२५ ३१३५ उ ११३८ बंधेउकाम (बद्धकाम) उ ११७३ बद्धग (दे०) ज ७!१७८ एक आभूषण बंधेत्ता (बद्ध्वा ) ज ५।१६ उ ३७६ बद्धेल्लग (दे०) प १२२८ से १३,१६,२०,२१,२३, बंभ (ब्रह्मन्) प २१५४,१५१८८ ज ७१२२।१ २४,२७,२८.३१ से ३३,१५१८३ से ८६,८६ गू १०१८४१ से ६३,६५ से ६७,६६ से १०६,१०८ से १२३, बंभचेर (ब्रह्मचर्य) ज ७११६६ गु १८१३ १२५ से १३२,१३५,१३६ से १४१,१४३ बंभचेरवास (ब्रह्मचर्यवास) उ ५।४३ बद्धेल्लय (दे०) प १२१७,८,१२,२०; १५१९४ बंभग्णय (ब्राह्मण्यक) उ ३।२८,३८,४०,४२ बंभयारि (ब्रह्मचारिन् ) ज ३१२०,३३,५४,६३,७१, बब्बर (वर्वर) प ११८६३८१ बब्बरी (बर्बरी) अ ३।११।१ ८४,१३७.१४३,१६७,१८२ बम्ह (ब्रह्मन्) ब ७।१३०,१७६,१८६१३ बंभलोग (ब्रह्मलोक) प २२४६,५४,५५,६०,७११२; बम्हदेवया (ब्रहादेवता) १०७८ ३३.१६,३४११६ बरग (दे०) ज ३।११६ शालि विशेष बंभलोय (ब्रह्मलोक) म १११३५,२।४६,५४ से ५७, ६३,३।३३,१८३,४१२४३ से २४५,६।३१,५६, बरहिण (वहिन) प १७६ ६५; २०१६१;२११७०,२८१७६; ३४।१८ बल (बल) प २०११६१,२३।१६,२० ज २।५१,५४, 3२।२२५२८ ६४,७१.१२१,१२६,१३०,१३८,१४०,१४६, बंभलोयग (ब्रह्मलोकज) ज ५/४६ १५४,१६०,१६३; ३३३,१२,३१,७७,७८,८१, बंभलीयडिसय (ब्रह्मलोकावतंसक) ५ २१५४ १०१.१०३,१०६,११७.१२६,१२६,१५१, बंभी (ब्राह्मी) ६११६८ ज २७५ १८०,१८८,२०६४।२३६ ५।५,२२, बकुल (बकुल) ज ३।१२,८८,५१५८ २६,७१७८ २०११,७,६१३,५ उ १२६६, बग (बक) १७६ ६६,११५.११६३।२।१,१७१ बज्झ (बंध) बज्झति उ ३.१४२ बलफर (वलकर) ज ३११३८ बत्तीस (द्वात्रिशन्) ।२२ गुरा३ ड ३११२६; यलफूड विलकूट) ४१२३६,२३६ बलदेव (ब ) प ११७४,६१, ६।२६ ज २११२५, बत्तीसइ (द्वात्रिशन) ज ३११८६,२०४ १५३; १२०० उ ५१० से १२.३० बत्तीस इविह (द्वात्रिशविध) ज ५१५७ उ ३११५६ बलदेवत्त (बलदेव) प२०१५५ बत्तीसग (द्वात्रिंशन्) ज ७।१३१११ बलव (बलवन्) ज ५१५७।१२२६१ रु १०।८४११ बत्तीसजणवयसहस्सराय (द्वात्रिशद जनपदसहस्र- बलवग (बल क) उ:१५ राजन्) ३।१२६२ बलविसिठ्ठया (वलविशिष्टता) प २३।२१ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलविहीणया-बहुबीया ९६५ बलविहीणया (वलविहीनता) प २३.२२ ६१,६३,६४,३।१८३६।२६११२२२,१७ बलाग (बलाक) ज ३।३५ १३६,२२२१०१,३६८२ ज ११४५; बलागा (बलाका) प १७६ २१११,१२,५८,६५,८३,८८,६०,१२३, बलावलोय (बलावलोक) ज ३१८१ १२८१३३,१३४,१४५,१४८,१५१,१५७; बलाहगा (बलाहका) ज ५।६३१ ३१६,११.२४,३२।१,८१,८७,१०३,१०४ बलाहया (बलाहका) ज ४।२१०.२३८ १०५,११७,१७८,१८५,१८६.१८८,२०४, बलि (बलि) प २१३१,३३,४०७ ज २११३, २०६.२१६,२१६.२२१,२२२.२२५,४१२,३, ११६; ५।५१ उ ३१५१,५६,६४ २५,२८ से ३०,३४,६०,१४०,१५६,२४८, बलिकम्म (बलिकर्मन्) ज ३१५८,६६,७४,७७,८२, २५०,२५१,२५२,५३१.५,१६,४३,४६,४७, ८५,१२५,१२६,१४७ सू २०१७ २१११६, ६७,७/११२१,२,७१६८,१८५,१६७,२१३, ७०,१२१ : ३।११०,५३१७ २१४ चं २।४ सू १२६१४,२६११०।१२६।१, बलिपेढ़ (बलिपीठ) ज ४।१४० २,१४।१ से ८:१८२३; १९१६, २०१७ बलिमोडय (दे०) प ११४८:४७ उ१।१६,४१,४३,५१,५२.७६.७७,६३,९८; बव (वब) ज ७१२३ मे १२५ २।१०,१२,३।११,१४.२८,५५,८३,१०१,१०६, बहल (बहल) ज ३११०६ १०६,११४,११५,११६,१२०.१३० से १३२, बहलतर (बहलतर) प ११४८१३० से ३३ १३४,१५०,१६१,१६६४।२४:५७.१० बहलिय (बहलीक) ११८६ बहुआउपज्जव (वह वायुःपर्यव) ज १।२२,२७,५० बहली (बहली) ज ३१११ बहुउच्चत्तपज्जव (बहुच्चत्वपर्यव) ज ११२२,२७,५० बहव (बहु) ज १।१३,३१,२७,१०,२०,६५,१०१, बहुम (बहुक) प २।४६,५०,५२,५३,५५,६३ १०२,१०४,१०६,११४ से ११६,१२०,३।१०, बहुजण (बहुजन) ज ३।१०३ ८६,१०३,१७८,१८५,२०६,२१०,४१२२,८३, बहुणाय (बहुज्ञात) उ ३३१०१ ६७,११३,१३७,१६६,२०३,२६६,२७६,५।२६, बहुतराग (बहुत रक) प १७।१०८ से १११ ७२ से ३४ म् १८।२३ उ ३१४८ से ५०,५५, बहुतराय (बहुतरक) प १७.२,२५ ६२,१२३ , ५।१७ बहुपडिपुण्ण (बहुप्रतिपूर्ण) ज २१८८, ३१२२५ बहस्सइ (बृहस्पति) सु २०१८,२०।८।४ उ १३४,४०,४३,५३,७४,७८,२।१२:५।२८, बहस्सइदेवया (बृहस्पतिदेवता) १०८३ ३६,४१ बहस्सति (बृहस्पति) प २।४८ बहुपदिय (बहुपठित) उ ३३१०१ बहस्सतिमहग्गह (बृहस्पतिमहाग्रह) सू १०।१२६ बहुपरियार (बहुपरिचार) उ ३१६६,१५६५१२६ बहिं (बहिर) प २।४८ बहुपरिवार (बहुपरिवार) उ ३.१३२ बहिता (बहिस्तात्,बहिम्) सू १६१२२।२७ बहुपुत्तिय (बहुपुत्रिक) उ ३६०,१२० बहिया (बहि-तात,बहिस्) ज ११३ २१७१७।५८ वहुपुत्तिया (बहुपुत्रिका) उ ३१२११,६०,६२,६४, सू १।२६।१.३,१९४२२२१ उ २२; ३१२६, १२०,१२५,४१५ ४६,४८.५०.५५,१४५, ५१५,३३ बहुप्पयार (बहुप्रकार) ज २।१३१ बहु (बहु) प १।४८॥५४, २१२० से २७,३० से ३५, बहुबीयग (बहुबीजक) प ११३४,३६ ३७ से ३६,४१ से ४३,४६,४८ से ५५,५८ से बहुबीया (बहुबीजक) प १३६ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुमज्झदेसभाग-बारवती बहमनदेसभाग (बहुमध्यदेशभाग) ज ११३७, ११७,११८,१३१,१६६,१७०,१७९,२३४,२४० ४१३५ सू १६६१६ से २४२,२४७,२४८,२५०:५१३२,३५ र २११ बहुमज्झदेसभाय (बहुमध्यदेशभाग) ज १२१०,१६, १३;१८.१,२०१७ ४०,४२,४३,३११,६७,१६१,१६३,१६४,१६७; बहुस्सुय (बहुश्रुत) उ ३६६,१५६,५१२६ ४।३,६,६,१२,३१,३३,४१,४७,४६,५७,५६, बाउच्चा (वाकुची) प १।३७१२ ६४,६८,७०,७६,८४,८८.६३,६८,११२,११८, बाण (वाण) ५११३८१२ वाण का फल ११६,१३६,१४१,१४३,१४५ से १४७,१५६, बाणउति (द्वानवति) म १११६१:१६११५१ १६८,१७७,२०७,२०८,२१३,२१८,२२१,२४२, बाणउय (द्वानवति) ज ११४८ २४८,२५०,२५२,२६६,२७२,५११३ बाणकुसुम (वाणकुसुम) प १७११२४ बहुमय (बहुमत) उ ३११२८ बाताल (द्वि चत्वारिंशत्) गु १३३१ बाय (बहक) प११४७१३,११४८।५४,३।३८ से १२०। बातालीस (द्विचत्वारिंशत) ग १६१:२११२ १२२ से १२४,१७४,१७६ से १८२,६१२३; बादर (बादर) प २.१,२,४,५.७,८,१०,११.१३, ८.५.७,६,११,९।१२,१६,२५,१०।३ से ५,२६ १४; ३७२ से १५,१११,१८३,४६२ से ६४, से २६१११७६,६०१५।१३,१६.२६,२८,३१, ६६,७०,७६.७७,८५ ८७,६२ से १४,६८३, ३३,६४,१७।५६ से ६६,७१ से ७६.७८ से १०२, १११६४१८१४१ से ४४,४६,४७,४६, ८३,१०६,१०७,१४४ से १४६,२०६४; ५०,५४,११७, २११४,५,२५.४०,४१ ५०; २१।१०४,१०५:२८:४१,४४,७०,३४१२५; २८।१४,१५,६०,६१ सू २०११ ३६।३५ से ४१,४८,४६ सू १८१३७ बादरआउक्काइय (बादरअप्कायिक) पश२१,२३ बहुल (बहुल) प २१४१ ज २।१२,६४,६५,७१, बादरकाय (बादरकाय) प ११२०१२ ८८,१३३,१३४,१३८,४।२७७,७।१२६ बादरणाम (बादरनामन्) प २३१३८,११६ बहुलपक्ख (बहुलपक्ष) ज ७११५,१२५ सू २०१३ बादरतेउक्काइय (बादरतेजस्कायिक) प १।२४,२६ बहुवत्तव (बहुवक्ता) प १३१४ बादरवणस्सइकाइय (बादरवनस्पतिकायिक) बह्वयण (बहुवचन) प ११५९६ प११३०,३२,३३,४७,४८ बहुविह (बहुविध) प २०६४।१७,१७३१३६ बादरवाउकाइय (बादरवायुकायिक) प ११२७,२६ ज ३१६,२२२ बादरसंपराय (बादरसंपराय) प १।११४ बहुसंघयण (बहुसंहनन) ज १२२२,२७,५० बायर (वादर) प ६१०२११।६५,६६।१,१८१५२; बहुसंठाण (बहुसंस्थान) ज श२२,२७,५० बहुसच्च (बहुसत्य) ज ७१२२।१ मू १०1८४१ २१।२३,२४,२६,२७ ज ७१४३ बायरसंपराय (बादरसम्पराय) ५११११२:२३३१६२ बहुसम (बहुसम) प २।४८ से ५१,६३,३३३६; १७११०७,१०६,१११ ज १११३,२१,२५,२६, बस्याल (द्वि चरिशत्) ज ४।८६,१०८ सू ३.१ बायालीस (द्विचत्वारिंशत् ) प २१६४ ज २६ २८,२६,३२,३३,३६,३७,३६,४०,४२,४६% २१७,१०,३८,५२,५६,५७,१२२,१२७,१४७, सू ३.१ उ ५ बायालीसदिह (द्विचत्वारिंशतविध) प २३।३८ १५०,१५६,१५६.१६१,१६४,३१८१,१६२, १६३,१६६,१६७,४२,३,८,६,११,१२,१६, बार (दादा) प १०।१४१३ ३२,४६,४७,४६,५०,५६,५८,५६,६३,६६,७०, बारबई (द्वारवती) उ ५।४,५,६,११,१६,३०,३३ ८२,८७,८८,१००,१०४,१०६,१११,११२, बारवती (द्वारवती) प ११६३.३ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारस-बिइय बारस (द्वादशन् ) प ११७४ ज ११८ सू ३११ २४८,२५७,२५८,२५६,५१३५७७.६६,९० उ ५२४५ १७७।१,२,३ सू ११२६,२७:१८११,६ से १३ बारस (द्वादश) ज ७३११४।२ र १०1१२४१२ बाहा (बाहु) ज ११२३,४८,२११५,३।६६ से १०१, बारसग (द्वादशक) प २३२६८,१४०,१८३,१८४ ४।१,२६,५५,६२,८१,८६,६८,११५,१७२; बारसम (द्वादश) प १०११४.२ मू १०७७; ५।१४,१७,७१३१,३३,१६८११,१७८ सू ४।३, १२।१७,१३८ ४,६,७ उ ३३५० बाहाओ (बाहुतस्) सू४१३,४,६,७ बारसविह (द्वादशविध) प१:१३५, २११५५ बाहि (बहिस्) प २२० से २७,३० से ३६,४१ बारसाह (द्वादशाह) उ ११६३, ३३१२६ से ४३,३३२७ से २६ ज १२१२,३१,४।४६, बारसी (द्वादशी) ज७१२५ ११४,२३४,२४०,७१३१,३३,१६८।१सू ४१३, बाल (बाल) ज २१६५,३१२४,७।१७८ ४,६,७:१६।२२११५,१६ बालग (बालक) ज ११३७ बालचंद (बालचन्द्र) उ ३।२४ बाहिर (बाह्य) १ ११४८१४५; १।१०११६; बालदिवागर (वालदिवाकर) प १७४१२६ १५।५५३३।११ ज २२१२,४७.२१:५।३६% बालभाव (बालभाव) उ ३।१२७,१२८, ५१४३ ७।१० से १३.१६,१८.१६,२२,२५.२७ से बालब (बालक) ज २११३८,७।१२३ से १२६ ३०,३५,५५,५८,६६ से ७२,७५,७७,७८,८१, बालिदगोव (बालेन्द्रगोप) प १७:१२६ से ८४,६६,१२६।१,१७५ सु ११११,१२,१४, बालुया (वालुका) ज ४.१३ १६,१७,२१,२२.२४,२७ से ३१,२३३१२, बावट्ठ (द्वाषष्टि) ज ४१४७ ४।६; ६१,६१,२,१०७५;१३।१३ से १६; बावछि (द्विषष्टि) प २१४६७ सू १०।१३७ १६॥२२११२; १६२३,२६,२०१७ बावण्ण (द्विपञ्चाशत् ) ज १।१७ सू १।२१ बाहिरओ (बाह्यतस ) ज ३१२४११,१३१११; बावत्तर (द्वासप्तति) ज ४११० ७।१२६ बावत्तरि (द्वासप्तति) ५।३० ज २०६४ सू २।३; बाहिरपुक्खरद्ध (बाह्यपुष्करार्द्ध) सू १९१६ १६११:२११३ बाहिरय (बाहिरक, वाह्यक) । १।७५.८०,८१ बावीस (द्वाविंशति) प ४.१६ ज २१८१ च १४ ज ७५,१७,६४,७६,८८ २ १।१२ बाहिरिया (बाहिरिका) ज ३१५,७,१२,१७,२१, बावीसइम (द्वाविंशतितम) प १०३१४१५ २८,३४,४१,४६,५८,६६.७४,७७,१३५,१४७, बावीसग (द्वाविंशतितम) प १०।१४।४ १५१,१७७,१८४,१८८,२१६:४।१६;७।३१, बासीत (द्वयशीति) सु१।१२ ३३ सू ४३,४,६,७ उ १११६,४१,४२,१२४, ४.१२,५।१६ बाहल्ल (वाहल्य) प १७४;२।२१ से २७,३० से ३६,४१ से ४३,४६,४८,६४,१५,११,१५७, बाहिरिल्ल (बाह्य) प २१११० सू१८७ २२.३०,२११८४,८६,८७,६० से ६३,३६.५६, बाहु (बाहु) ज ३।१२७,५१५ ६६.७०,७४ ज ११४३:२।१४१ से १४५; वि (द्वितीय) प १०।१४।४ से ६ सू॥२६ ४६,७,१२,१४,१५,२४,३६,६६,७४,६१, बि (द्वि) ज ४।६३,६५१४ सू १२६ ११४,११८,१२३,१२४,१२६ से १२८,१३२, बिइंदिय (द्वीन्द्रिय) प १७।६६ १३६,१४०,१४३,१४५,१४७.२१७,२४५, बिइय (द्वितीय) प २१३१,३६।८५ ज ३१३; सू १६ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ बिइया-वेइंदिय ७१०७ उ २१२२,३१६४ बीयय (वीजक) प १३८१ बिजौरानीवु बिइया (द्विनीया) ज ७४११७,१२५ सू १०११४८, बीयरुइ (दीजरुचि) १ १११०१११,७ १५० बीयरुह (जीजरुह) प १।४८१३ बिइयादिवस (द्विनी दिवस) ज ७११६ बीय (वासा) (बीज र्षा) ज ५१५७ विदु (विन्दु) प ११०१७,१२६,२१२४ बीविटिय (वीजतन्तक) प ११५० ___ ज ३।१०६;७१३३।२ बीयाहार (वीजाहार) 3 ३५० बिंब (विम्ब) प २१३१,३२ बुक्कार (दे०) वुक्का ति ज ५।५७ बिबफल (बिम्बफल) प २।३१ ज ३१३५ बुज्झ (बुध) बुज्झइ प ३६८८ बुज्झति बिहणिज्ज (बंदणीय) ज २०१८ ६.११० ज ११२२,५०, २०५८,१२३,१२८% बिगुण (द्विगुण) ज २।४ । ४११०१ युज्झति प ३६१६१ बिडाल (विडाल) प ११६६ ज २६३६ बुज्झिहिइ उ १११४१,३८६,५१४३ बितिय (द्वितीय) १११४२,८८,१२११२,३८% बुझिहिति ज २१५१,१५७ बुज्झज्जा २२१३३,४१,३६१८७ ज ३१६५, ४११४२२३ प २०।१७,१८,२६,३४ सू १०७२,७७,८५,८७,१३।१,८,१४१३,७ बुज्झित्ता (बुवा) उ ५१४३ उ १२६३ बुद्ध (बुद्ध) प २६४।२१ ज २१८८,८६,३३२२५; बितियादिवस (द्वितीनदिवस) मू १०८५ ५।५,२१,४६,५८ बितियाराति (द्वितीयरात्रि) सू १०१८७ बुद्धंत (बुध्नान्स) सू २०१२ बिब्बोयण (दे०) ज ४।१३ बुद्धबोहिय (बुद्धबोधित) प १३१०५,१०७,१०८, बिभेलय (विभीनक) पश३५२ १२० बिराल (विंडल) ज २११३६ बुद्धबोहियसिद्ध (बुद्ध बोधितसिद्ध ) प १११२ बिल (विल) प २१४,१३,१६ से १६,२८ बुद्धि (बुद्धि) ज ३१३,३२,४१२६६।१३ ४।२।१ ज २१३४,१४६ बुध (बुध) सू २०१६ बिलतिया (क्लिपडितका) प २४,१३,१६ से। ‘बुय (ब्रू) वुयापि प ११।११,१६ १६,२८ ज ४१६०,११३ बुयमाण (ब्रुवाण) प १११११.१६ चिलवासि (विलवासिन्) ज २१३३ उ ३.५० बुह (बुध) प २१४८ सू २०।८।४ बिल्ल (बिल्ब) प ११३६११,१६५५१७१३२ ब (ब) वेमि सू १०।१७३ उ १६१४२२।१४; गु१०।१२० ३।१६२४४ बिल्लाराम (दे०) उ ३।४८,५५ बूर (दे०) २०१७ बिल्ली (चिल्ली) प ११३७१२ एकसण, वथुया बे (द्वि) प १२।३७ सू १३१६ बिल्ली (विल्पी) प११४४।१ बेइंदिय (द्वीन्द्रिय) प ११४६; २।१६:३७,४० से बीभच्छ (शीभत्स) उ ३।१३० ४२,४५,४६,१४४,१४५,१८३,४।६५ से १५ बीय (बीज) ११४५।२,११४८।१६,२६,५१,६३ ; ५१३,१६,२०,६७,६८,७०,७१,७३,७४,७८% ३६१६४ ज२।१०,१३३,३२१६७।३ उ ३१५१, ६।२०,५४,६४,७१,८३,८६,१०२.१०४,११५; ९।४,२२,१११४५:१२।२७,१३।१७.१५।३० से बीय (द्वितीय) प १२।१२ भु १०७७ ३३,७५,८०,८६,१३७:१६।६,१३,१७१८०,६२, Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेदियस त १०३:१६/१५, २१:११०३२०१६,२३,२८,३२, ४७.२११६,२६,४२,०६.०२२३१:२३१०६. १५१.१५४ से १५७,१६३,१३६.१६७,१७५; २८/३७ से ४०,४२,१००, १०३. ११६, १२५, १३६,२६।११ से १३,२१३०११० से १२, २०,२१:३१।३;३६।३६,६२ बेइदियत्त ( द्वीन्द्रियत्व ) प १५३६७,१४२ बॅट्ठाइ ( वृन्तस्थायिन् ) ज ५७ दिय (डीन्द्रिय) प १११४, ४१ २०४२,४५,४९, १४६ : ५५७६७१ बेयासविह (द्वित्रिचत्वारिंशत्तविध) प १७/१३९ माहिय ( याहिक) २०४३ बेहिय ( याहिक) ज २२६ बोंड (दे०) प ११३७१ बोंदि (दे० ) प २१३०,३१,४१,४६,६४१२,३ ज ५।१८ बोद्धव्व (बोद्धव्य ) प १०।१४१२३४।१।२ ४।१५६०१,१६२०१.२०४५१,२१०११ ७११७२.१२०१,१३२।१,१६७ १. १७७१,२,१०६४ १०२६६,६६२०१६१६ उ १११७३।२।१,४१२१ atraa (बोद्धव्य ) प ११२०१४, ३३१,३५/२, ३६४२,३७१३,४२१२,४३१२,४०० ४०, १२६१११ : २१६४१६,७६६०१२१०१५३।१ ११४३७२ १७११।१२।१११ २०६७ बोर ( वदर ) प १६।५५; १७०१३२ बोल (दे० ) प २२४१ ज २१४२,१५,३२२,३६, ७६,६३,६९,१०६.१६३,१६०५।२६, ७१५५, १७८ सू १९।२३ उ १११३८ बोहग ( बोधक) ज ५४५,४६ बोहय ( बोधक) ज ३११८८५१२१ बोहि (योधि ) प २०११७,१८,२१,३४ बोह्रिदय (बोधिदव) ज ५४२१ यहि (बोधित) ज २०१५:३१३ भ / भइज्ज (भज् ) भइज्जति प २२०७४ मइति २२७३ £28 भइता ( भक्त्वा ) सू १२ १० से १२ भइत (भक्त) प २६४११६ भंग (भङ्ग १४६१० से २०१०१६ मे २ १४२२६ : १६१०,१५,२१:२२३२५,८४,८६ २४१५,८,१२,२६।४,६,६,१०,२८१११८ भंगुर ( भङ्गुर ) ज २।१५ भंगी (भृङ्गी ) प ११४८१५; १७।१३१ मंगी (भङ्गी ) प १२३४५ भंगीर (भृङ्गिरजम् ) प १७।१३१ भंड (भाण्ड ) ज ३१७२,१५०,४।१०७,१४० सू २०१४ उ १२३, १०५.१०६,११६.३४५०, ५५,६३,७०,७३, १२८ मंड (भाण्डक ) २५०,५५ भंडवेयालय (भाण्डवैचारिक) प १९६ भंडार (भाण्डकार ) प ११६७ मंडी (अण्टी ) प १३७।५ शिरीष का पेड़ भंत ( भदन्त ) प ११७४, ८४, २१ से ३६,४१ से ४३,४६,४८ से ६४३३८ से १२०,१२२ से १२४,१७४, १७२ से १८३४११ से ४२.५२, २६ से १८,६५,७२,७१,०६,१५,१८,१०१. १०४,११३,१३१.१४०, १४९,१५८, १६५, १६० से १७१,१०४,१७७, १७८, १८०,१०१, १०२,२०७,२१०.२१३.२६४,२६७५१ से ७,६ से १२,१४,१६ से १८,२०,२३,२४,२७ से ३४,३६,३७,४०, ४१, ४४, ४५.४८,४६,५२, ५३, ५५,५६,५८,५६.६२,६३,६७,६८,७०,७१, ७७७८८२८३८५६६६००१,९२,९३, १६,६७,१००, १०१.१०२, १०४,१०६, १०७, ११०,१११, ११४,११५,११८,११६,१२३ से १२६,१३१,१३४,१३६,१३८, १४०, १४३, १४५, १४७, १५०,१५३,१५४,१५६, १५७, १६२,१६३,१६५,११६,१६८, १६६,१७१. Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 000 १७३.१००, १९२, ११६, ११६,२०२, २०३, २१०,२१७,२२७,२२६,२३१,२३२,२३६, २३८,२४१३६।१ से २३,२७,४३ से ४५, ४७ से ५५,५७,५८,६० से ६४,६७,६८,७०,७५, ७८,८०८२,८७,६०,६३,१४,६६,६६, १०१.१०३,१०४, ११०,११४ से ११६,११८ से १२१,१२३७३१ से ४,६ से ३००१ से ११:२१ से ४६ से १६,१६ से २१,२५,२६० १०।१ से १३,१५ से २४,२६ से ५३; ११ १ से ४४,४६ से ४८,६१ से ७३,७६ से ९०; १२।१ से ५,७ से १२,१५,१६,२०,२१, २३,२७,३१ से ३३:१३।१ से ३१; १४०१ से ३,५,७,६,११ से १५,१७३१५१ से ३,७,८,११ से २८, ३० से ३३,३६ से ४१.४३ से ५४,५६ से ७४,७६ से ८०,८३,८४,८६, ६१,६४ से ६७,१००,१०३ से १०६,१०६, ११४,११५, ११७.११० से १२०,१२३,१२६, १२६,१३२ से १३५, १४०, १४१; १६।१ से ३,१० से १३,१५,१७.१२ से २११७।१ से ६८ से १६,१६ से २१,२४,२८,२९,२३,३६ से ४०,५१,५६ से ६६७१ से ७६७५ से ७ ६० से ६२,६४,६५,६६ से १०४,१०६ से ११६.११० से १२०,१२२ से १३०,१३५ से १३७,१३ से १५२.१५४ से १५७,१५९ से १६१, १६६, १६७,१६९ से १७२१८११ से १०, १२ से ३७, ३६, ४१ से ४७,४६ से ५१, ५४ से २,६४ से १०,१३ से १११,११३. ११४,११६ से १२०,१२२.१२३.१२५ से १२७ १९०१ २०११ से ३,६.७६ से १५.१७ से २५,२७ से २९.३२ से ३४,३५ से ४०, ४५.४६ से ५१,६१ से ६४; २११ से १५, १६ से २५,२८ से ३२.३६,३८,४० से ४२, ४८, ४९, ५६ से ६६.६६ से ८१, ८३ से १६,१० मे १०१.१०३ से १०५ २२११ से ११,२१ से २३,२६,२७,२६,३०, ३२ से ५०,५२ से ६६,७६ से ७६,८१ से अंत ८४,८६,७,८ से ६४,६७ से ६६,१०१; २३१ से ७,९,११,१३ से ४०, ५७ से १२, ८१,१०,१३४,१३५,१३७ से १४०,१५४, १५५,१५७, ११०,१६१, १६४, १६७,१७१. १७६,१७७,१११ से १६६,१६८ से २०१ २४१ से ५,६,११,१२,१४:२५ १,२, ४,५२६११ से ४,८,१२७१ से ३,६ २८११,३ से ५,११ से १६,२१ से २५,२८ से ३१,३३ से ४२,४४,४५, ४८ से ५०, ५१,५७ से ६०,६२ से ६४,६७ से ७१, १८,१०२,१०४,१०६ से १०८,१११ से १२०, १२२,१२३.१२५, १२७,१२८,१३२/ २९।१ से ३५ से ७,६,१०,१२,१३,१६ से १६,३०२१ से ३,५ से ११.१३, १५ से १७, १९,२१.२५ से २०३११:३२१,२,४३३१ से ३,५,६,१२ से १८,२०,२२,१५०१,२,४ से १३.१६ से १८,२०,२३,३६११ से २२,३० से ४२,५३,५४,५८ से ६७,७०,७१,७२ से ८८,६२,६४ ज १७, १५ से १८,२० से २३, २६,२७,२६,३३ से ३५,४१,४५ से ५१:२११, ४,७, १४, १५, १७,४३,५२,५६,५७,५८,१२२. १२३,१२७,१२८,१३१ से १३७,१३९, १४७, १४८, १२०, १५१,१५६, १५७, १६१,१६४, ३।१,६८४।१,२२,३४,४४,४५,४८,५१, ५२, ५४. ५५,५६,५७,६०,६२,७६ से ८२,८४ से ८६,९६ से ९८५१०० से १०३,१०६ से ११०, ११३,११४,१४१,१४३.१५९ से १६७, १६६ से १७८,१५० से १५२,१०४, १०५, १८७, १८८११० से ११४,११६, १६७,१६६ से २०३,२०५ से २०६,२११ से २१५,२२५, २२६,२३४,२३६,२३७,२३२ से २४१,२४४, २४५, २४६, २५१ से २५५, २५७, २६० से २७७६४१,२,४,७ से २६७१ ४०, ५०, ५२७३७६.७८ से १०७,१११ से १४५. १४७ से १५१.१५४ से १६७१६९ से १७८, १८० से १५५, १८७, १६७ से १९६,२०१ से Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतसंभंत-भद्द २१३ उ ११४,६,८,२१,२४,२५,१४१,१४३; भट्टिदारय (भर्तदारक) ५ १११५,२० २।१,३,१३,१५,३।१,३,८,१६,१८,२०२३, भट्ठरय (भ्रष्ट रजस्) ज ५१७ २६,३० से ३२,३५ से ४१,४४,८६,८८,६३, भट्ठि (दे०) ज २६१३१ ६४,१२३ से १२५,१५२,१५४.१६४,१६५, भड (भट) ज ३१७,२१,२२,३६,७८,१७७ १६७,४१,३,१४,२६,५१,३,२०,२२,२३, भडग (भटक) प १६ ३२,४०,४३ भिण (भण्) भणइ उ ३१६६ भणंति प १७८९ भंतसंभंत (भ्रान्तसम्भ्रान्त) ज ५।५७ मणित (भणित) प ११४८१६,४७,श६३।६, २१४०%; मंभा (दे०) ज ३१३१ ३॥१८२, ५१२४४;६।५६,६६,८३,८६,६२, भंभाभूय (भंभाभूत)ज २१३१,१३६ १००१५५५, २१७७ सू १०.१४८, २०१७ मक्खेय (भक्ष्य) उ ३३३७ से ४२ मणितम्व (भणितव्य) सू ८१११०१४८,१५०%; मग (भग) ज ७।१३०,१३३,१८६।४ सू १०६३५ १५ भगंदर (भगंदर) ज २१४३ मणिय (भणित) प ११४८१५२:२।२७१३,४७; भगदेवया (भगदेवता) सू १०८३ ६४।४६.८,५१५२,११५८०१२।१३,१५, भगव (भगवत्) प ११॥३,३६८१ ज ११५,६; २१,१५।१८,३०,१४०,१६३१८,१७७,६७; २१६८,७०,७२,९०,६३,६५,६६,१०१ से । २०१२६,३५,२११७६,६४:२२।५४:२३११००, १०३,११३,११४; ५५३,५,७ से १४,२१,२२, १०८,१५६,१७६,१८१,१८५,१६०२४१८,६; २६,४४,४६,५८.६०,६२,६४,६७ से ७०,७२ २९१५,३६।२०,२४,४६ ज २०४१३,२११५; से ७४७।२१४ च १० सू ११५ २०६६ ३।१०६,१३८,१६७।३,४,४१२०० चं ४।३ उ १२,४ से ८,१६,१७,१६ से २६,१४२, सू१८१३,१०।१५०,१६।२२।१,२। १४३;२।१ से ३,१० से १२,१४,१५,२१,३३१ भिण्ण (भण्) भण्णइ प ५२२६ ज ७।१४६ से ३,७,८,१६,२०,२२,२३,२६,८७,५८,६०, भण्णति प ५।२०५ भण्णाति प ५।२०५,२११; ६३,१५३,१५४,१५६,१६१,१६६,१६७,१७०%; ३६६८ ४।१ से ३,२७; ५।१ से ३,४४ भत (भक्त) ज २२६५,७१,८८,३२२५ उ २।१२; भगवंत (भगवत् ) प २।६४ ज २१६६.७१,८३ ३.१४,१२०,१५०,१६१,१६६५२८,३६,४१, ५१.२१ उ १.१७ भत्तपाण (भक्तपान) ज ३१०३,२२४ भगवती (भगवती) सू २०६१ भगसंठिय (भगसंस्थित) सू १०३५ भत्तसाला (भक्तशाला) ज ३1३२ भत्ति (भक्ति) ज ३।१६७/६ भगिणी (भगिनी) ज २।२७,६६ भत्तिचित्त (भक्तिचित्र) प २।४८ ज ११३७, भग्ग (भग्न) ५११४८१० से २६ उ ३६१३१,१३४ भग्गवेस (भार्ग वेश) ज ७१३२।२ सू १०११०० २।१०१,३।३६,१२,५६.८८,१०६,११७, भज्जमाण (भज्यमान) प ११४८।३८ १४५,२२२,४१२७,४६५१६,२८,३२,३४, मज्जा (भार्या) ज २१२७,६६ उ १११२,१४५; ५६ सू१८१८१६२२।१,२ २१५,१७ भत्तिय' (दे०) प १।४२११ भज्जिय (भजित) उ ११३४,४६,७४ भद्द (भद्र) प २१३१ ज २१६४८१:३१३,१२,५६, भट्टित्त (भर्तृत्व) प २१३०,३१,४१,४६ ज ११४५; ८८,११७,१३८,१८५,२०६४।४६,५।२८; ३।१८५,२०६,२२१; ५।१६ उ ५।१० १. वनस्पति कोष में भूतीक शब्द मिलता है। Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००२ ७१११८ उ २१२; ३१६६ से १८,१००,१०१ ७५,८३,१००,१२०,१३१ से १३४१८१७ १०६ से ११२ भरह (भरत) प १३८८,१६।३०,१७११६० भङ्ग (भद्रक) ज २०१६ ज १११८ से २०,२३,४६,४७,५१, २७ से भद्दमुत्था (भद्रमुस्ता) ज १:४८६६ १५,२१ मे ४५,५०,५२,५६,५७,५८,६०,१२२, भद्दय (भद्रक) ज ३।१०६ उ ५१४०,४१ १२३,१२७,१२८,१३१,१३२,१३३,१३६, भद्दवत (भाद्रपद) सू१०।१२४ १४१ से १४७,१५०,१५६,१५७,१५६,१६१, भद्दवय (भाद्रपद) ज ७१०४,११३११,११४ १६४,३।१ से १३,१५,१७,१६ से २३, सू १०।१२६ उ ३१४० २५ मे ३४,३६ से ४२,४४ से ५०,५२ से ५६, भट्टसालवण (भद्रशालवन) ज ४१६४,२१४,२१५, ६१ से ६७,६६,७७,८३,८४,६० से १४,६६, २१६,२२०,२२१,२२५,२२६,२३४,२६२ ६६,१००,१०१,१०३,१०६ से १०६,११५ से भद्दसेण (भद्रसेन ) ज ५१५२ १२६,१३१ से १३५।१,१३७,१३८,१३६,१४१ भद्दा (भद्रा) ज ५।१०।१५।६८,७।११८ सू १०२, से १४८,१५० से १५४,१५७,१५८.१६०, १६३ से १७०,१७३.१७५,१७७.१७८,१७६, भद्दासण (भद्रासन) ज ३१३,५६,१७८,४/२८, १८१ से १६२,१६८,१६६,२०१,२०२,२०४ ११२:५।३६,४२ से २२६,४।१,४८,५३,१०२,१७२,१७४,१७७, भद्दिलपुर (भद्दिलपुर) प ११६३३३ २७७,५१५५,६७,६,१२,१६ भमंत (भ्रमत, भ्रम्यत्) ज ४।३,२५ भरहकूड (भरतकूट) ज ४।४४,४८ भमर (भ्रमर) प ११५१,१७४१२३ ज २।१२;३१२४ भरहवास (भरतवर्ष) ज २।१५,४।३५ भमराक्ली (भमरावली) ११७११२३ भरहवासपढमवति (भरतवर्षप्रथमपति) भमास (दे०) ५११४१११,११४८।४६ ज ३११२६१२ भय (भय) ५ ११११,२१२० से २७:१११३४।१; भरहाहिब (भरताधिप) ज ३।१८,८१,६३,१२१११, २३१३६,७७,१४५ ज २१६६,७०,३१६२,१११, १३५॥२,१६७।१४,१८०,२२१ ११६,१२१११,१२५,१२७ उ १८६३।११२, भरिय (भत) ज २६३३१७८ १५६४।१६ भरिलो (भरिली) प ११५१ भयंकर (भयङ्कर) ज २१३१ भरु (भरु) प १८६ भयग (भूतक) ज २।२६ भरेत्ता (भृत्वा) उ ३३५१ भयणा (भजना) प ११४८५० भल्लाय (भल्लात) प ११३५१२ भणिस्सिया (भयनिश्रिता) प १११३४ भल्ली (भल्ली) ५११४०१४ भयभेरव (भयभैरव) ज २६४ भव (भव) प २१६४।५,६; ३१११२१०१५३११; भयव (भगवत्) प १।१।२ ज २१६०,५१३,१४, १८।११२,१८१६५; २३।१३ से २३ ज ३।२४, १६,१७,२१,६६ भयसण्णा (भयसंज्ञा) प ८.१,२,४,५,७,६,११ भव (भवत्) ३ ३.४३ भिर (भृ) भरेइ उ ३१५१ भिव (भू) भवइ ज ११४.४% २१६६ सू १:१३ भरणी (भरणी) ज ७१११३११,१२८,१२६,१३४१२, उ ११२० भदउ ज २१६४,१५७ भवंति १३५१२,१३६,१४०,१४४,१४६,१५६, प११४६ से ५१,६०,८०,८१,५१४३:१६११५; १७५ सू१०११ से६,११,२३,३५,६२,६६, २११८४:२३११५२,३६।२०,८२,६३ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "भवंत-भाणितव्व ज ४१५१।१ सू ३११ उ १११४१, ३।५० भवति १४५ २८.३२.११ २२४७३ १५५८१ ३६।१।१ ज १।२६ ११३ भवतु ज २१६४ भवह उ ११४२ भविस्सइ अ १४७, १२७२|७१,१३१ १६४१.५०४३ भरिति ण २।१३३ भवे प १४५३० से ३८ २६ सू १९११११, ५१३, १५११,४, १६।२२।१३,१५,२११४,५ भवेज्जा ३८१ भवंत ( भवत् ) ज ३।२४/१,२,१३१।१,२ भवक्खय ( भवक्षय ) प २२६४।१० उ ३१८, १२५, १५२४।२६ ५।३०,४३ भवचरिम ( भवचरम ) प १०३६,३७ अवण (भवन) ए २१,४,१०,१३, ३० से ४०, ४०१३, ४,२१४२,४३,१११२५ ज ११३१,५१; २४१५,२०,६१,१२०,३३,२५,२६,३२१२, ३८,३६,४६,४७,५१,५२,१०३, १४०, १४१, १८३,१८६, २०४,४६, १०, ११,३३,४१,७०, १०,१३,१४७, १५२, १५५,१७४१०२,२३८, २४३५/१५ से ७,१७,४४,६७,७० उ १।३३ भवणपति ( भवनपति ) ज ३३१८६,२०४ भवणपत्थड (भवन प्रस्तट ) प २११ भवणवद्द ( भवनपति ) प १६।२९, २०१५४ ज २०६५० २६१०० से १०२,१०४,१०६,११०,११३ से ११६, १२०, ४२४८, २५०, २५१, ५२४७,५९, ६७,७२ से ७४ भवणवति ( भवनपति ) प ६।१०६, ३४।१६,१५ वणवासि (भगवान्) प ११३०,१३१:२४३०, ३०११,२३२:३।२६,१३३,१८३४।३१ से ३३,६१६५१७५१,७४,७६,७७,८१,०३ २०६१:२१।५५,६१,७० २।१४ ५५२ सू २०७ भवणवासिणी ( भवनवासिनी ) प ३।१३४,१०३: ४१३४ से ३६, १७।५१,७५,७६,८२, ८३ भवणावास भवनवास २०२० ३६ भवत्थवलि (नवस्थकेवलिन् ) ११८/६६, १०१ भवपारणिज्ज (भवधारणीय) व १५१८. १६ २११५८,५६,६१,६२,६५ से ६७,७०,७१ भवपच्चय (नवत्यधिक ) प ३३|१ भवसिद्धिय (भवसिद्धिक) प३।११३,१८३ 1 १८।१२२,२८।१११,११२ भवित्ता ( भूत्वा ) प २०१७ २२६५ उ ३११३ ४११४;५।३२ भविष (भविक ) प १।१।२२८ १०६।१ भविय ( भव्य ) ज ५५८२२४३, ४४ भवोवग्गह (भवोपग्रह ) प ३६३८३३१ भवोचवायगति (भवोपघातयति) १६०२४, ३१, ३२ भव्व ( भव्य ) प १६।५५: १७ १३२ कमरख, करेला भव्वपुरा ( भव्यपुरा ) ज ३।१६७/७ भसोल (दे०) ज ५५७ भाइ (भागिनेय) ०३ ३१२० भाइयत्व ( भेतव्य ) ज ५३५,७ से १०,१२,१३,४६ भाइल्लय (दे०) ज २२६ भाग (भाग) प २०१०,११:२३ १६०,१६४, १६७,. १७५२८४०, ४३,६९ २०६४ चं ५.१ नू ११६,२४.२६, २७.२९.३० २१.१.३२३ ४:४, ५, ७, १०, ६१.९१३: १०१२, १३२,१३५, १३८ से १४२.१४४ से १६३:११।२ से ६ १२१२,३.६ से ९.१२.१२.११ से २५, २० १३११.३,४.७ से १२.१४ से १७१४/३,७: १५२ से २०,२२ से २९.३१,३२,२४१०११ १०,२५,२६,१६२२।११, २०१३ भागसप ( भागशत ) ज ७१८१,८४,१८,१६,१०० भागसहस्स (भागसहस्र) ७८१,६५,९६ भाणित ( भणित) २१३२,४०, ४२,५०; ३।१८२४।६८, ५१२२.३९,४३,६१,७६.६६, १०,११७,१२२.१५२,२०६,२२६.२४४; ६२४६, ५६,६६, ८१, ८३,८६,८६,६२,६५, १००.१०२.१०३ १०७ १०८ १०११४:१६ २० १।१४,२२,२५ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००४ भाणिय-भावेमाण ५१२४ भाणिय (भणित) ज ३१२४,१३१ भायण (भाजन) ज ३।३२ उ ११४६ भाणियव्य (भणितव्य) प १४३,४५,४७,६२; भारंडपक्खि (भारण्डपक्षिन) प १७८ ५।६१,११७,१२०,२०५,६६६१,१२३,६३४; भारग्गस (भाराग्रशस्) ज २११०६,११० १०१२८११:४१,४६,८३,८५,१२१८ से १३. भारद्दाय (भारद्वाज) ज ७.१३२२ सू १०।१०३ १५ से १७,२१,२५,१५।३०,५६,६२,८४, भारह (भारत) ज २३४,३५,२।१३।१३५२२ १०२,१०३,१२१,१३४,१३८,१४०।१६।१८, सू११८,१६,४१३ उ १२६,३२१२५,१५७; २१,३२,१७७,२८,२६,३३,३५,६५,७०,७७, ८६,६७,१०२,१०३,१०५,१४६,१४८,१६५, भारहग (भारतक) ज ४१२५० १६७,२०१२५,२६,२११३५,४३,७७,८०,९४; भारहय (भारतक) सू ११६ २२२०,२५,२८,३३,३५,४१,४५,५४,५८, मारियत्त (भार्यत्व) उ ३११२८ ५३,८४,८६२३३१००,१०८,१५२,१५६, भारिया (भार्या) ज २१६३ सू २०१७ उ ३६७, १६०,१६४,१६७,१७५,१७६,१६०,१६१; ११२,१२८,४१८ भाव (भाव) प १३१२,१०१॥३,४,६,२१६४।१३; ५,२८।१०,२५,५६,८७,१०२,१४५:२६।१५, १११३३।१ ज २२६६,७१ उ ३१४३,४४ ३४।२१,३६।२०,२४,२६ से ३०,३२,३४,४६, भावओ (भावनस्) प १११४८,५२,५३,५५; ४७,६५ ज १५१६,२३,२६,४४,४६,२१७, २८।५,६,६,५१,५२,५५,३५४४,५ ज २१६६ ७२,६३,३।१२६,१५५,१७१४१३,४,२५,३१, भावकेउ (भावकेतु) ज ७१८६ भावकेतु (भावकेतु) उ २०१८,२०1८18 ३६,४१,५२,५७,७०,७६,८२,८४,६०,६३, भावचरिम (भादचरम) प १०।४४,४५५३११ १०६,११०,११२,११६,११८,१२८,१६५, १७५,१७७,१८४,१६३,१६६,२०१,२०२, भावणा (भावना) ज २१७१ २०४,२०८,२१२,२१५,२१७,२२० से भावणागम' (भावनागम) ज २१७२ २२२,२२६,२३७,२४०,२४८,२४६.२६२, भावतो (भावतस्) प ११:५७,५६ २६५,२७१,५३,७,१३,३२,४६,५५,५६६५; भावरुई (भावरुचि) प ११०१११८ ६१३;७।१८६ सू ४।६१८११,१५१११; भावसच्च (भावसत्य) ज १११३३ २०१६ उ १११४७,१४८;२।२२:४१२८; भाविअप्प (भावितात्मन् ) प १५१४३ ५।१७,२५ भाविदिय (भावेन्द्रिय) प १५४५८१२,१५७६,१३३ भाणी (दे०) प ११४६,११४८१६२ से १३५,१४०,१४१,१४३ भाय (भाज) भाएंति ज ५।५७ मावित्ता (भावयित्वा) उ ३।१६१ भाय (भाग) ज ११८,४८,३११,१३५४१,४१, भाविय (भावित) प १७1८८ २३,३८,५५,६२,६५,८१,८६,९१,९८,१०३, भावियप्प (भावितात्मन्) प ३६७६ ज ७/१२२१२ १०८,११०,१४१,१६७,१७८,२००,२०५,२०७, सू१०।८४१२ २१२,२१४,२४०,७७,९,१०,१२,१३,१५, भावेमाण (भावयत्) ज १५,२१७१,८३ उ ११२, १६,१८ से २५,३१,३३,५४,६५,६६.६८,६६, ३;२११०३३१४,२६,८३,६६,१३२,१४४,१५०% ७१,७२,७६,१३४,१७७३१,२ उ १६६६,६४ ४१२४; ५२६,२८,३२,३६,४३ भाय (भ्रातृ) ज २।२७.६६ उ ११९५ १. आयारचला पञ्चदशाध्ययनानुसारी Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावेयम्व-मुज्जो १००५ भावेयव (भावयितव्य) प २२।४५ भिगार (भृङ्गार) प११।२५ ज ३१३,११,१७८%, भास (भाष) भासइ ज ७२१४ उ ११८ ५१६,४३,५५ भासंति प ११०४३ से ४६ भासती भिगारग (भृङ्गारक) ज २११२ प१११३०११,२ भासिति प १९८ भिडिमाल (भिण्डिमाल, भिन्दिपाल) भास (भस्मन्) म २०१८,२०।८।८ ज ३।३१,१७९ भिक्खायरिया (भिक्षाचर्या) उ ३३१००,१३३ भासंत (भाषमाण) ५ १११८६ भासग (भापक) प ३३११२,१०८१११३८ से ४१% भिज्जमाण (भिद्यमान) प ११७९ १८ गा २ भिण्ण (भिन्न) प ११७२ सू २०१२ भासज्जात (भाषाजात) ५११६४२ भित्तिकडग (भित्तिकटक) ज ३१७ भासज्जाय (भाषाजात) प ११३८८,८६ भित्तुं (भेत्तुम्) ज २१६११ भासत्त (भाषात्व) १ १११४७,७० से ७२,८० से । भिभिसमाण (बाभाष्यमाण) ज ४।२७।५।२८ मिस (विस) प ११४६,११४८१४२ ज २०१७; भासमणपज्जति (भाषामनःपर्याप्ति) उ ३।१५,८४ ४१३,२५ १२१:४१२४ भिसंत (दे० भासमान) ज ३११७८७।१७९ भिसकंद (विषकंद) प १७।१३५ भासमाण (भाषमाण) प ११1८६ भिसमाण (दे०) ज ४।२७,५१२८ भासय (भाषक) प १८।१०४ भासरासि (भस्मराशि) प २१५०,५६,६० सू २०१८ भीत (भीत) प २०२० से २७ भीम (भीम) प २०२० से २७,४५,४५११ भासरासिप्पा (भस्मराशिप्रभ) प २१५४,५८ उ१११३६ भासरासिवण्णाभ (भस्मराशिवर्णाभ) सू २०१२ भीय (भीत) ज २१६०,३।१११,१२५ उ १८६; भासा (भाषा) प १३१५,१६८;२।३१; __ ३११२,४।१६ १०५३।१:१०१ से १०,२६ से ३०,३०११, मंज (भज) भंजइज ३.३ भंजए ज ४।१७७ २,१११३१ से ३७,३७।१,२,१११४३ से ४६, भुंजाहि उ ३११०७ ८२,८३,८७,८६,२८।१४२,१४४,१४५ भुंजमाण (भुजान) प २।३० से ३२,४१,४६ ज ३७७.१०६ ज ११३३,४५:२।६१,१२०, ३१८२,१७१, भासाचरिम (भाषाचरम) प १०३८,३६ १८५,१८७,२०६,२१८४११३,५५१,१६; भासारिय (भाषायं) प १६२,६८ ७।५५,५८,१८४,१५५ सू १८।२२,२३, भासासमिय (भापासमित) ज २१६८ उ ३६६ १६२६ उ ३१६०,६८,१०१,१०६,१२६ से भासुर (भानुर) प २१३०,३१,४१,४६ ज ५७.१८ १३१,१३४,५२२५ भिउडि (भृकुटि) ज ३१२६,३६,४७,१३३ vमुंजाव (भोजय) भुजावेइ उ ३१११४ उ ११२२,११५,११७,१४० भुकंड (दे०) भुकडे ति ज ३१२११ भिंग (भृङ्ग) ५ १७४१२४ भुक्खा (दे० बुभुक्षा) उ ११३५ से ३७,४० भिगनिभा (भृङ्गनिभा) ज ४२२३३१ भुजंग (भुजङ्ग) ज २११५ भिगपत्त (भृङ्गपत्र) प १७।१२४ भुज्जो (भूयस्) १६.४६,१७११५ से १२२, भिगप्पा (भृङ्गप्रभा) ज ४११५५।२ १५४,२८।२४ से २६,३६,४२,४५,४६,७१, भिगा (भृङ्गा) ज ४११५५।२,२२३११ ७४,३४१२०,२२ से २४ ज ३।१२६७।२१४ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुत्त (भुक्त) ज २१७१३१८२ सू २०१७ उ ४११६ भुत्तभोइ (भुक्तभोगिन् ) उ ३.१०७,१३६ भुमगा (भू) ज २।१५ भुयग (भुजग) प २२४६ चं ११२ भुयगवड़ (भुजगपति) प २१४१ भयपरिसप्प (भजपरिसप) १६७,७६,४११४० से १४८,६७१.७५ २०१४,१६,३५,४६,६० भुयमोयग (भुजमोचक) १ १२००३ भुयय (भुजग) प २११४७.१ भुयस्वख (भूतवृक्ष) प ११४३।२ भुया (भुजा) प २१३०,३१,४१,४६ ज २१,५८, उ ३६२ भुस (बुश) ५ १६४२११ भू (भू) मू २।१ भूत (भूत) प॥६४ सू१९३८ भूतिकम्म (भूतिकमन्) ज ५११६ भूतोद (भूतोद) सू १६३८ भूमि (भूमि) प ११७४ ज १।२६ भूमिगय (भूमिगत) ज ३।१०५ भूमिचवेडा (भूमिचपेटा) ज ५१७ भूमितल (भूमितल) ज ५१५ भूमिभाग (भूमिभाग) प २।४८ से ५१,६३; १७११०७,१०६,१११ ज १३१३,२१,२५,२६, २८,२६,३२,३३,३६,२७,३६,४०,४२,४६; २१७,१०,३८,५.२,५६,५७,१२२,१२७,१४१, १४.७,१५०,१५६,१५६,१६१,१६४ ; ३१८१, १६२,१६३,१६६,१६७,४१२,३,८,९,११,१२, १६,३२,४६,४७,४६,५०,५६.५८,५६,६३,६६, ७०,८२,८७,८८,९३,१००,१०४,१०६,१११, ११२,११७,११८,११६,१२२,१२३,१३१, १६६,१७०,१७६,२१७,२३४,२४० से २४२, २४७,२४८,२५०,५१३२,३३,३५,७३३ सू २।१६।३।१८।१:२०१७ भूमिया (भूमिका) ज ३१३२ भूमी (भूमि) ज ११२।१३२,१४२,१४३,४।११६ भूय (भूत) प १११३२,२१४१,४५,६४,१५१५५:३; ३६.६२,७७ उ २।१०,३१,१३१,३११,६,२२, ३६,७८,८०,८१,६२,६३,६५,६६,११६,१२१, १५१,१५६,१०,१६३,१८०,२२२७४२१२ उ ११३८,३१४३.४४,४६,५१४ भूय (भूयर) ज ३१ भूयग्गह (भूतग्रह) ज २१४३ भूयणय (भूतृणक) प ११४४१३ भूयस्थ (भूतार्थ) प ११०१२ भूयवाइय (भूतादिक) १ २१४१,२।४७११ भूया (भूता) र ४४६,११ से १६,१८ से २४ भूयाणंद (भूतानंद) प २१३४,३६,४०।७ भूसण (भूपण) प २३०,३१,४१ ज ३८१,१८८; ७१७८ भूसणधर (भूपरणधर) ज ३।६,२२१,५।२१ भूसिय (भूषित) ज ३१३०,३५,१७८ भे (भोस् ) उ ३।३८,४०,४२,४४ भेद (भेद) प १४८१३८,६८३;११।७४,७६ से ७८%3; १५१५३,२१११६,४०,४३,४४,५२,५५,७६,७७, ६४,२२२०३३१११ भेदल (भेदक) ज ३११०६ भेदपरिणाम (भेदपरिणाम) प १३३२१,२५ भेय (भेद) प १११७२,७३,७५,१६।३२,२११७७ उ ११३१ भेयघाय (भेदघात) चं ४।१,३ सू श८।१,३, २२ भेयपरिणाम (भदपरिणाम) प १३१२५ भेरि (भरि) ज ३।१२,७८,१८०,२०० भेरी (भरी) उ१५ से १७ भेरुतालवण (भेरुतालवन) ज २१६ भेसज्ज (भैषज्य) उ ३३१०१ भेसण (भीषण) ज २।१३३ भो (भोस्) ज २१६५,६७,१०१,१०५,१०७,१०६, १११,११४:३।७,१२,२६,३६,४७,४६,५२, ५६,६१,६६,८३,६१,६६,११३,११५,१२२, १२४,१२७,१२८,१३३,१४१,१४७,१५१, १५४,१६८,१७०,१७५,१८०,१६६,२०७, Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोग-मंजसा १००७ : २१२:५१३,१४,२२,२६,५४,६८,६६,७२ २२१,२२२:५११८,२१ उ २१७,१२३,१३१:४।१६:५।१५,१८ मउय (मृदुक) प २४ से ६३.१८२,५।५७,२०६; भोग (भोग) प १६५ ज २१६५;३1३ भू १८१२२, १५।१५,१६,२७,२८,३२,३३,२८१२६,३२,६६ २३:१६।२६ उ ११२७,६३,१४०:३६८,१०१, ज२।१५३१३५५,७,१७८ १०६,१०७,१२६ से १३११३४,१३६ मउल (मुकुट) प २१४१ भोगकरा (भोगङ्करा) ज ४।१०६,५५११ मउल (मुकुल) ज २।१५,३३१७८,७१७८ भोगतराय (भोगान्तराय) प २३।२३ मउलि (मुकुलिन्) प ११६६.७१ भोगस्थिय (भोगाथिक) ज ३११८५ मउलि (मौलि) प २१३०,३१,४१,४६' भोगभोग (भोपभोग) ५ २।३०,३१,४१,४६ मउलिय (मुकुलित) ज ३१६; ५।२१ ज २६१,१२०:३११७१,१८५,२०६५.१,१६; मंकुणहत्थि (मत्कुणहस्तिन् ) प १६५ ७।५५,५८,१८४,१८५ मंख (मङ्ख) ज २१६४,३३१८५ भोगमालिणी (भोगमालिनी) ज ४।१६४:५११११ मंगल (मंगल) ज २१६७,३१६,१२,१८,७७,८२, भोगवइया (भोग तिका) प ११९८ ८५,८८,६३,१२५,१२६,१८०,२२२:५१५,४६ भोगवई (भोवती) ज ४।१०६:५।।१७।१२१ सू१८१२३,२०1७ उ १२१७,१६७०.१२१, सू १०१६१ ३१११०:५।१७,३६ भोगविस (भोगविष) प १७० मंगलग (मंगलक) ज ३११७८,४।१५८,५१५८ भोच्चा (भुक्त्वा) सू १०।१२० उ ५११६ भोत्तूण (भुक्त्वा ) प २१६४।१६ मंगलावई (मंगलावती) ज ४।१६१,२०२।२,२०३ भोम (भौम) ज ७४१२२१३ गु १०१८४१३ मंगलावईफूड (मंगलावतीकूट) ज ४।२०४११ भोमेज्ज (भौमेय) प २।४१,४३ ज ३१२०६; मंगलावत्त (मंगलावर्त) ज ४।१६३.१६५ मंगलावत्तकूड (मङ्गलावतंकूट) ज ४११६२ भोमेज्जग (भौमयक) परा४१,४३,४६ मंगल्ल (गांगल्य) ज २६४,३१८५,१८५,२०६; भोमेज्जा (भौमेयक) प २२४१,४२ ५।५८ उ ११४१,४४ भोयण (भोजन) पश६४।१६ ज २०१८ च ५।३ मंगुस (दे०) ११७६ सू ११९१३१०।१२०,२०१७ उ ३१११०,११४ मंच (मऊ) सू १२२६ भोयण जाय (भोजनजात) ज २११८ मंचाइमंच (ञ्चातिमञ्च) ज ३७,१८४ भोयणभंडर (भाजनमण्डप) ज ३१२८,४१,४६, मंचातिमंच (मञ्चातिमञ्च) सू ११२६ ५८,६६,७४,१३६१४७,१४६,१८७,२१८ मंजरिका (मञ्जरिका) ज ५१७२,७३ मंजिठ्ठावण्णाभ (मञ्जिष्ठावर्णाभ) सू २०१२ मइ (मति) ज ३।३२ मंजु (मञ्जु) ज २१६५; ३.१८६,२०४ मइअण्णाणि (मत्य ज्ञानिन् ) प ३।१०२,१०३; मंजुघोसा (मंजुघोषा) ज १५२,५३ १८८३२८।१३७ मंजुपाउयार (मजुपादुकाकार) प ११६७ मइल (दे० गलिन) ज २।१३१ उ ३३१३० मंजुल (मजुल) उ ३।१८ मउड (मुकुट) प २१३०,४८ से ५०,५.१८ मंजुस्सर (मंजुम्वर) ज ५।५२,५३ ज ३।३,६,६,१८,२६,३१,४७,६३,१८०,२११, मंजूसा (मञ्जूषा) ज ३।१६७,४१२००।१ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००८ मंडण-मगदंतिया मंडण (मण्डन) ज ३११०६ मंद (मन्द) ज २१६५:५१३८,५७,७१५८ सू २१३; मंडल (मण्डल) ज ३।३०,३५,६५,६६,१०६,१५६, १८१८ १६०२७।२,१०,१३,१६,१६ से ३१,३५,५५, मंदकुमारय (मन्दकुमारक) प १११११ से १५ ५६,७२,७५,७८ से ८४,६५,६६,९८,६६, मंदकुमारिया (मन्दकुमारिका) प ११।११ से १५ १००,१०४,१२६१ च ११,३१२९ ११६३१मंदगइ (मन्दगति) चं ४२ सू शका२ १७।२,१३११,१२,१४,१८ से २५,२७,२११ ।। मंदर (मन्दर) ५२१३२,३३,३५,३६,४३,४४,५०, से ३,३१२,४१४,७,६६।१६।२१०७५, ५११५॥५५१३:१६६३० ज १११६,२६,४६,५१; १३८ से १५१,१७३।१२।३०:१३१४,५,१३; २६८,३२,४१६४,१०३,१०६,१०८,११४, १५।२ से ४,१४ से ३६,१६।२२११० से १२, १४३,१६०.१६२,१६३,२०३,२०५,२०८, १६०२३ २०६,२१२ से २१६,२१६ से २२२,२२५, मंडलगइ (मण्डलगति) प २।४८ २३३ से २३५.२३७ से २४१,२५३.२५४, मंडलम्ग (मण्डलान) ज ३३५ २५७,२५६,२६०।१,२६१,२६२,५०४७ से ५०, मंडलपति (मण्डलपति) ज ३।८१ ५.३;६।१०,२३,२४,७३८ से १३,३१,३३,६७ मंडलरोग (मण्डल रोग) ज २०४३ से ७२,६१,६२,१६८।१,१७१ सू ४।४,७; मंडलवत (मण्डलवत्) सू ११२५ से ३१ ५११७१८११,१८१५ उ ११०,२६.६६ मंडलसंठिति (मण्डलसंस्थिति) सू ११२५ मंदरकूड (मन्दरकूट) ज ४१२३६,६१११ मंडलि (मण्डलिन् ) प १७१ मंदरचूलिया (मन्दरचूलिका) ज ४।२४१,२४२, मंडलिय (माण्डलिक) प १।७४,२०११ २४३,२४५,२४६,२५१,२५२ मंडलियत्त (मण्डलिकत्व) प २०५७ मंदरपब्वय (मन्दरपर्वत) प १६।३० सू ४।४,७ मंडलियराय (माण्डलिकराज) ज ३१२२५ मंदलेस (मन्दलेश्य) सू १९२२१३०,१९२६ मंडलियावाय (मण्डलिकावात) प १२६ मंदायवलेस (मन्दातपलेश्य) ज ७५८ सू १६।२६ मंडव (मण्डप) ज ३१८१५१३५ मंदिर (मन्दिर) सू ७१ मंडवग (मण्डपक) ज १११३,२३१२ मंस (मांस) प ११४८/४६२।२० से २७ मंडव्वायण (माण्डव्यायन) ज ७।१३२।३ सू१०।१२० उ११३४,४०,४३ से ४६,४८, मू १०।१०७ ४६,५१,५४,७४,७६,७६ मंडित (मण्डित) प २१३१ ज ३।१८४ मंसकच्छभ (मांसकच्छप) प ११५७ मंडिय (मण्डित) प २।३१ ज ३१७,१८,३१,१८०; मंसल (मांसल) ज २११५;७।१७८ ५।२१,३८ मंसाहार (मांसाहार) ज २११३५ से १३७ मंडुक्को (मण्डूकी) प ११४४२ मंसु (श्मश्रु) ज २११३३ मंडूकपुत्त (मण्डूकपुत्र) सू १२।२६ मक्कार (माकार) ज रा६१ मंड्य (मण्डूक) प १६॥४४ मगइत (दे०) उ १११३८ मंडूयगति (मण्डूकगति) ५ १६:३८,४४ मगइय (दे०) ज ३।३१ मंत (मन्त्र) ज ३.११५,१२४,१२५ उ ३३११,१०१ मगत (दे०) उ १११३८ मंति (मन्त्रिन ) ज ३६,७७,२२२ मगवंतिया (मदयंतिका) प ११३८।२ ज २११० मंथ (मन्थ) प ३६१८५ मेंहदी Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मगर-मज्झिमउवरिम १००६ मगर (कर) ११५५,५६,२।३० ज ११३७; २११०१,४१२४,२७,३६,६६,६१,५५३२ सु २००२ मगरंडग (रकराण्डका) ज ५।३२ मगरज्मय (मकरध्वज) ज २०१५ मारमुहविउट्टसंठाणसंठिय (मकरमुखनिवृतसंस्थान गरिधत) ज ४१२४,७४ मगसिरी (मार्गगिरी) सू१०१७,१२ मगसीसावलिसंटिय (मगशीविनिमंस्थित) सू१०३८ मगह (मगध) प १६३।१ मगूस (दे०) प ११७८ मग्ग (मार्ग) ज १६४:३१२२,३६,६३,६६,१०६, १६३,१७५,१८० मगओ (दे० पृष्ठत ) ज ५१४३ मगण (गर्गण) ज ३१२२३ सग्गदय (मार्गदय) ज ५।२१ मग्गदेसिय (मार्गदेशिक) ज ५१५,४६ मम्गमाण (मार्ग:त्) उ ३११३० मगरिमच्छ (मकरीपत्स्य) प ११५६ मांगसिर (मार्गशी) ज ७।१०४,१४५,१४६ सू १०।१२४ उ ३१४० मग्गसिर (मृगशिरस) ज ७१४०,१४५,१४६ मग्गसिरी (मागं शिरी) ज ७।१३७,१४०,१४५, १४६,१५२,१५५ सू१०१७,१२,२३,२५,२६ मग्गिज्ज (मार्गय) मज्जिद ५ १२।३२ मघमत (दे० प्रसरत् ) ॥ २॥३०,३१.४१ ज ३७, ८८,५७ २०१७ मघव (मघवन् ) प २१५० ज ५११८ मघा (मघा) ज ७१२८,१२६,१३६,१४० सू १०१५,६२ मच्छ (मराय) प ११५५.५६:६।८०।२ ज २१५, १३४,३१७८४१३,२५,२८५४३२,५८ सू २०१२ मच्छंडग (मत्स्याण्डवः) ५।३२ मच्छडिया (मत्सण्डिका) ५ १७४१३५२११७ मच्छाहार (मत्स्याहार) ज २।१३५ से १३७ मच्छिय (मक्षिका) प १५०१ मच्छियपत्त (मक्षिकापत्र) प २१६४ मज्जण (मज्जन) ज ३१९,२२२ मज्जणघर (मज्जनगह) ज ३।६,१७,२१,२८,३१, ३४,४१,४६,५८,६६,७४,७७,५५,१३६,१४७, १५३,१६८,१७७,१८७,१८८,२०१,२१८, २१९,२२२ उ १।१२४;५१६ मज्जणय (मज्जनक) उ १६७ मज्जणविहि (मज्जन विधि) ज ३१९,२२२ मज्जाया (मर्यादा) ज २११३३ मज्जार (मार्जार) प१४४।१ चित्रक मिज्जाव (मज्जय ) मज्जावेंति ज ५११४ मज्जावेत्ता (मज्जयित्वा) ज ५११४ मज्जिय (ज्जित) ज ३२६,२२२ मज्झ (मध्य) प ११४८१६३, २०२१ से २७,२७।३, २०३० से ३६,३८,४१ से ४३,४६,५० से ५६, ६४,१११६६,६७,२८1१६,१७,६२,६३ ज १८,३५,४६,४७१,५१,३१६,१७,२१, २४१३,३४,३७११,४५११,१०६,१३११३,१७७, १८५,२०६,२२२,२२४,२२५,४।१३,४५, ११०,११४,१२३,१४२।१,२,१५५,१५६.१, २१३,२२२,२४२,२६०११,५३१४,१५,१७,३३, ३८,७४५,२२२११ सू १२।३०,२०१७ मझमज्झ (मध्यमध्य) ज २१६५,६०,३११४, १७२,१८३,१८४,१८५,२०४,२२४;॥४४ सू २०१२ उ १२१६,६७,११०,१२५,१२६, १३२,१३३,३।२६,१११,१४१,४।१३,१५, १८५१६ मज्झंतिय (मध्यान्तिक) ज ७.३६,३७,३८ मज्झगय (मध्यगत) ज ७१२१४ मज्झयार (दे० मध्य) ज ७।३२११ मज्झिम (मध्यम) प २०६४।७:२३३१६५ ज २१५५, ५६,१५५,१५.६४/१६,२१,५।१३,१६,३६ सू २१३ उ ३.१००,१३३ मज्झिमउवरिम (मध्यम उपरितन ) प २८६२ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मझिमउवरिमगेवेज्जग-मणि मज्झिमउवरिमगेवेज्जग (मध्यमउपस्तिन देयक) १७६११२,११३,२०१८,३२,४७,२६२ प११३७,४।२८२ से २८४,७१२५ ३०१२ मज्झिमग (मध्यमक) प २०६१ मणपज्जवणाणारिय (मन:पर्यवज्ञानार्य) ५ १६६ मज्झिमगेवेज्ज (मध्यमवेयक) प ६१४० मणपज्जवणाणि (मन.पर्यवज्ञानिन ) प ३१०१, मज्झिमगेवेज्जग (मध्यमवेयक) प २।६१,६२, १०३,५३११७:१८।८१२८४१३६,३०११६,१७ ३५१८३;६१५६३३३१६ मणपज्जवनाण (मनःपर्यवज्ञान) प २०१३३ मज्झिममज्झिम (मध्यमाध्यम) प १८१६१ मणपज्जवनाणपरिणाम (मन पर्यज्ञानपरिणाम) मज्झिममज्झिमगेवेज्जग (मध्यपमध्यमवेयक) १३ प १११३७,४१२७६ से २८१,७१२४ मणपरियारग (मन:परिचारक) प ३४११८,२४,२५ मज्झिमय (मध्यमक) १ २०६२।१ मणपरियारणा (मनःपरिचारणा) प ३४११७,१८, मज्झिमहेट्ठिम (मध्यमाधस्तन) प२८१६०० २४ मज्झिमहेटिठमगेवेज्जय (मामाधस्तनप्रवेषक) मणभक्खण (मनोभक्षण) प २८.१०५ प१:१३७,४१२७६ से २७८;७।२३ मणभक्खत्त (मनोभक्षत्व) प २१०५ मझिमिल्ल (मध्यम) ज ४।२५३,२५५,२५८ मणभक्खि (मनोभक्षिन) प२८११२,२८।१०४, मज्झिय (मध्यक) ज २०१५ मझिल्ल (मध्यम) ज ३।१ मणसमिय (मनःसमित) ज १६८ मट्टिया (मृत्तिका) ज ३१२०६:५१५५,५६ मणसाइय (मनःस्वादित) ज ३।११३ मठ्ठ (मृष्ट) प २।३०,३१,४१,४६,५६,६३,६४ मणसीकत (मनीकृत) प २८।१०५ ज ११८,२३,३१,२।१५,४११२८:५॥४३ मणसीकय (मनीकृत) प ३४।१६,२१ से २४ सू २००७ मणसीकरेमाण (मनीकुर्वत्) ज ३१५४,६३,७१, मट्ठमगर (मृष्टमकर) प १२५६ १११,११३,१३७,१४३,१६७ मडंब (मडम्ब) प १७४ ज २।२२,१३१,३११८, मणहर (मनोहर) ज २१२,६५,३११३८,१८६, ३१,८१,१६७।२,१८०,१८५,२०६,२२१ २०४:४।१०७५1५,२८,३८,७/१७८ उ ३।१०१ मणाभिराम (मनोभिराम) ज ३।१०६ मण (मनस्) प २२१४:२३११५,१६, ३४१११२, मणाम (दे० 'मन' आप) ५२८1१०५ ज २१६४; ३४१२४ ज २१६४,७१,३।३,३५,१०५,१०६% ३११८५,२०६५।५८ उ ११४१,४४,३।१२८; ४११०७,१४६,५।३८,७२,७३ सू २०१७ ५१२२ उ ११५,३५,४१ से ४४,७१,३।१८ मणामतर (मन:आपतर) ज २१८,४।१०७ मणगुत्त (मनोगुप्त) ज २०६८ उ ३९E मणामतरिय ('मन' आपतरक) प १७११२६ से मणजोग (मनोयोग) प ३६।८६,८८,८६,६२ १२८,१३३ से १३५ ज २।१७ मणजोगपरिणाम (मनोयोगपरिणाम) प १३७ मणामत्त ('मन' आपल) प २८१२६,३४१२० मणजोगि (मनोयोगिन् ) ३९६:१३.१४,१६ मणि (गणि) प ११२०१२,२।३१।४१,४८,१५।११२, १८१५६,२८११३८ १५।५० ज १११३,२१,२६,३३,४६:२।७,२४, मणपज्जत्ति (मनःपर्याप्ति) प २८।१४२,१४४,१४५ ५७,६४,६६,१२२,१२७,१४७,१५०,१५६, मण (पज्जवणाण) (गन:पर्यवज्ञान) प २६:१७ १६४,३।१,६,२०,२४,३०,३३,३५,५४,५६, मणपज्जवणाण (मनःपर्यवज्ञान) प ५१२४,११५, १. भिक्षुशब्दानुशासन पास१६ अरुभनश्चक्षु.. Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिकंचण-मणुस्सलोय ६३,७१,८१,८४,६५,१०६,११७,१३७,१४३, १४५.१५६,१६७८.१२,१७८,१८२,१६२, २२२:४१३.१६,२५.४६,६३,८२,११४:५:१६, ३२.३८ सू२०१७,१८ मणिकंचण (मणिकाञ्चन) ज ४।२६६१ मणिदत्त (मणिदत्त) उ ५१२४,२६ मणिपेढिया (मणिपीठिका) ज ११४३,४४,४।१२, १३,३३,१२३,१२४,१२६.१२७,१३२,१३३, १३६,१३६,१४५,१४६,१४७,२१८,२१६% मणिमय (मणिय) प २१४८ ज ११४३,३।२०६; ४१५,७,१२,१३,२६,२७.४६,११४,१२३, १२४;५।३५.५५ मणिरयण (मणिरत्न ज ३१६,१२,२४,३०,८८, ६२,६३,११६.१२१,१७८,२२०,२२२,४।१६, ४६,६७, ५।२८,५८,७१७८ मणिरयणक (मणिरत्नक) ज ११३७,३।६३ मणिरयणत्त (मणिरत्तत्य) प २०१६० मणिवइया (मणिमती) उ ३३१५०,१५८ मणिवई (मणिमती) उ ३।१६६ मणिवर (मणिवर) ज ३१६२,११६ मणिसिलागा (मणिशलाका) प १७:१३४ मणुई (मनुजी) ज २११५ मणु ण (मनोज्ञ) प २३।१५,३०२८।१०५; ३४.१३,२१ ज २१६४, ३।१८५,२००; ४।१०७; ५५३८.५८ सू २०१७ उ ११४१,४४, ३११२८,५१२२ मणण्णतर (मनोज्ञतर) ज २११८४११०७ मणुण्णतरिय (मनोज्ञतरक) प१७११२६ से १२८, १३३ से १३५ ज २१७ मणुण्णत्त (मनोज्ञत्व) १ ३४।२० मणुणस्सरता (मनोज्ञस्वरता) प २३।१६ मणुय (मनुज) प ६१८०२,६८१;२०१५३, २३।३६,८३.११३,१४६,१७२,२८!१४४, १४५:३१।६।१,३२।६।१ ज ११२२,२७,५०; २२१४,१६,१६,२१ से २६,२८ से ३७,४१ से ४६,५६,५८,६४,१२३,१२८,१३३,१३४, १३५,१४६,१४८,१५१,१५७,१५६,४१८५, १०१,१७१ उ १२१४,१५,२१,३१६८,१०१, १३१,५१२३,३१ मणुयअसणिआउय (मनुजासंज्ञयायुषक) प २०६४ मणुयगति (मनुजगति) प ६३,८ मणुयगतिय (मनुजगतिक) प १३.१६ मणुयगामि (मनुजगामिन् ) जे १२२,५०:२।१२३, १२८,१४८,१५१,१५७,४।१०१ मणुयगतिपरिणाम (मनुजगतिपरिणाम) प १३१३ मणुयरयण (मनुजरत्न) ज ३१२२० मणुयलोग (मनुजलोक) सू १६।२१।८ मणुयलोय (मनुजलोक) सू १९१२२३१,३ से है मणुयदइ (मनुजपति) ज ३१३ मणुयाउय (मनुजायुष्क) प २०१६३,२३।१८,१५८ मणुस्स (मनुप्य) प११५२,८२ से ८५.१२६; २।२६,३।२५,३८,३६,१२६,१८३,४१५८ से १६४,५३३,२३,२४,१००,१०१,१०३,१०४, १०६,१०७,११०,१११,११४,११५.११८ से १२०,६१२३,२४,४६,५५,६५,६६,७०,७२, ७६.८१,८२,८४,९०,६२,६४,९६,६७,६९ से १०४,१०८,११०,११३,११६,७१४८1८,६; 810 से १०,१६,१७,२२,२३,१११२१,२२, २४,२६,१२१५,३२,१३।१६:१।१२२; १७१४५,४६.१२६.१६४,१७१:१६।४,२१७, ४८,२२१३६२३.१६४,१६८; २६६१५; ३४॥३,३६।१।१,३६.४१,५२ ज २१६,७,५०, ५३,१६२,१६४,३१६८,१७८,२२१ सू २।३; १६।२२।१३,२०१२ उ १११२१,१२२,१२६, १३३,१३६,१३७,१४० मणुस्सखित्त (मनुष्यक्षेत्र) ५११७४ मणुस्सखेत्त (मनुष्यक्षेत्र) प १३८४,२१७,२६ सू१६॥२२॥२१ मणुस्सगामि (मनुष्पगामिन् ) ज २१५८ मणुस्सरुहिर (मनुष्यरुधिर) प १७११२६ मणुस्सलोय (मनुष्यलोक) सू २०१२ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१२ मस्साउय-मत्थय मणुस्साउय (मनुष्याप्क) प २३३१४७,१६२,१६५, मणोणुकूल (गनोनुकूल) मु २०१७ १७० मणोमाणसिय (मनोमानसिक) उ १५१३ मणुस्सी (मानुषी) प ३।३६,१३०,१८३।११।२३; मणोरम (मनोम) प ३४११६,२१,२२ १७.४८,१६०; २३।१६४,१६८,२०१ ज २७ ज ४२६०१,५३४६।३,७१७८ ५११ मणस (मनुष्य) प६८४,८७,१५१३५,४४,४५, उ ५।२८ ४७ मे ५०८७,६१,९८,१०३ से १०६,११५, मणोरह (मनोरथ) ज ३८८,२२१ १२११२३,१२६,१३८,१६१८,१५,२५,२८, मणोहरमाला (मनोरथमाला) ज २१६५,३११८६, १७।२४,२५,३०,३३,३५.४७,७०,६७,१०४, २०४ १५७,१५६ से १६३,१६६,१६७.१७०,१७२; मगोसिला (मन शिला) पश२०१२ ज ३।१११३ १८१४,१०,२०१४,१३ १८,२५,३०,३२.३५, मणोहर (मनोहर) प ३४११६,२१ ज २११२; ३६,४८, २१११६,२०,३६,५४,६०,६६,७२, ७११७१ सू१०८६१ ७७,८२,८६,२२॥३१,४५,७५,७६८०,८३ से मिण (मन्) मण्णामि प १११ मण्णे १२१५; ८५,८८,६०,६६,१००।२३।१०,१२,७६, ३९८ १६६,२००,२४१३,८,१०,१२,२५।४,५, मति (मति) प १३।१० ज ३११ २६॥३,४,६,८,१०,२७।२,३,२८१२,४६ से मतिअण्णाण (मत्यज्ञान) प ५१५,७,१०,१२,१४, ५१.६७ से ६६,७१,१०३,११६ से १२१, १६,१८,२०,५६,६३,२६४२,६,६,१२,१७,१६ १२४,१२८,१३०,१३६ से १३८,१४१ से से २१ १४३,२६।२२,३०।१४,२४,३११४,३२१४; मतिअण्णाणपरिणाम (मत्यज्ञानपरिणाम) १३.१० ३३११,१३,२१,२६,३३,३६,३४१६;३५१४, मतिअण्णाणि (मत्यज्ञानिन्) प ३.१०३:५१८०,६६, २१,३६७,१०,११,१३ से १५,१७,२६,३०, ११७:१३३१४,१६,१७:१८८३ ३१,३३,३४,५८,७२,८०,८१ ज ४।१०२, मतिणाण (मतिज्ञान) प २६६ ७.२० से २५,७६,८२ सू २१३ मत्त (मत्त) ज २।१२ मणूसखेत्त (मनुप्यक्षेत्र) प २११६२,६३ मत्त (अमत्र) म् २०१४ उ १६३,१०५,१०६ मणूसत्त (मनुष्यत्व) प १५।१८,१०४,११०,११५, मत्तंग (मत्ताङ्ग) ज २।१३ १२६,१३०,३६।२२,२६३०,३१,३३,३४ मत्तजला (मत्तजला) ज ४।२०२ मणूसाउय (मनुष्पायुष्क) प २३७६ मत्तियावई (मत्तिकावती) प १६३।४ मणसी (मनुष्यणी) २७१५८,१५६,१६१ ले मत्थगसूल (मस्तकशूल) ज २०४३ । १६४,१८१४,१०,२०११३:२३।१६६,२०१ मत्थय (पस्तक) ज ३१५,६,८,१२,१६,२६,३६, मणोगम (मनोगम) ज ७१७८ ४७,५३,५६,६२,६४,७०,७७,८१,६२,८४, मणोगय (मनोगत) ज ३।२६,३६,४७,५६,१२२, ८८,६०,१००,११४,१२६,१३३,१३८,१४२, १२३,१३३,१४५,१८८५२२ उ १।१५,५१, १४५,१५१,१५७,१६५,१८१,१८७,१८६, ५४,६५,७६,७६,६६,१०५:३३२६,४८,५०, २०५,२०६,२०६,२१८,५१५,२१,४६,५८ ५५,६८,१०६,११८,१३१,५१३६,३७ उ ११३६,४५,५.५,५८,८०,८३,६६.१०७, मणोगुलिया (मनोगुलिका) ज ४१२६ १०८,११६,११८,१२२,३११०६,१३८,४११५; मणोज्ज (मनोज्ञ) प ११३८.१ ज २०१० ५.१७ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मदणसलागा-महंत मदणसलागा (देनशलाका) प १७६ मदणसाला (मदन शाला) उ ५१५५ मद्दम (दे०) १ ११३७६४ मद्दव (मार्दव) ज २०१६,७१ मदुग (मद्गुक) ज २।१३७ मधु (मधु) प १७४१३४ ज २।१०६,११० मधुर (मधुर) ज ३।१८६,२०४ मिन्न (मन्) मन्ने ज ३।१०५ मम्म (मर्मन) उ १६६ मम्मण (मन्मन) उ ३६८ मय (पद) च ११ मयकिच्च (मृतकृत्य) उ ११६२ मयणिज्ज (मदनीय) प १७:१३४ ज २०१८ मयूर (भयर) प १७६ ज २११५ उ ५।५५ मरगय (मरकत) ११२०१३ ज ३११०६ मरण (मरण) प १४११२१६४;२१६४१६,२२; ३६।१।१,३६१८३१२,६४।१ ज २७०,८८, ८६,१०३,१०४,३१२२५ सू २०६६ उ ३३११२,१५६;४।१६ मरीइ (मरीचि) ज ११३७ मरीइया (मरीचिका) ज १३२ मरुदेव (मरुदेव) ज २१५६.६२ मरदेवा (मरुदेवा) ज २६३ मरुय (मरुक) प १८६ मरुयग (रुबक) प ११४४।३ मरुआ मरयरायवसभरुप्प (मरुद राजवृपभकल्प) ज ३११८,६३,१८० मरुयापुड (मरुबकपुट) ज ४११०७ मलय (मलय) प ११८६,१।६३१३ ज ११२६,३।२) २११:५१५५ उ १११०,२६.६६५११ मलयगिरि (लागिरि) ज ३१२४ मलिण (मलिन) ज २११३३ भलिय (मदित) ज ३१२२१ उ ११३५,३१५०, ११०,११३:४२० मल्ल (माल) ५२१३०,३१,४१,४६ ज २११२०: ३१६,११,१२,२१,३४,५५५,५७ उ ११३५; ३१५०,११० मल्ल (मल्ल) ज २१३२,३७८,८५,८८,१८०, २०६,२११,२२१,५।२२,२६ मल्लई (मल्लवि) उ ११२७ से १३०,१३२ मल्लदाम (माल्यदामन ) प २१३०,३१,४१ ज ३७,६,१२,१८,२८,३०,३५,४१,४६,५८) ६६,७४,७७,७८,८८,६३,११७.११६,१४७, १६८,१७८,१८०,२१२,२१३,२२२ मल्ल (वासा) (माल्यवर्षा) ज १५७ मल्लि (मल्लि) ज ३।१०६ मल्लिया (मालिका) ५ ११३८२ ज २।१०; ३.१२,८८,१७८,५१५,५८,७४१७८ महिलयापुड (पल्लिकापुट) ज ४।१०७ मविज्जमाण (माप्यमान) प ११४८।५६ मवेज्जमाण (माप्यमान) प ११४८।५८ मसग (मशक) प ११५११ ज ६४० उ ३१२८ मसारगल्ल (दे०) प ११२०१३ ज ३।१०६५ मसि (मसि, मपि) ज २१२३ मसूर (मसूर) ११४५।१,१७६१५१३,२१; २११२३,८० ज २।३७ मह (महत) प २१३०,३१,४१,४६,६२,२३११९३ ३६.८१ ज १।१२,१४,३७,४०,४२,४३; २३१,३।२४,१६१,१६३,१६४,१६७,४१३, ६,६,१२,१३,२४,२५,३१,३३,३६ से ४१,४७, ४६,५६,६६ से ६८,७०,७४,७५,७६,८८,६३, १५६,२१६,२१८,२२१,२३५,२४३,२५०; ५।५,,३५ से ३८,५४,६७,७१५० मह (स्थ) पहिति ज ५११६ महेइ उ ३१५१ महाल (महाश्व) ३१७६ महइ (महती) प २१२७ ज १११०; २१११४,११५; महइमहालिय (महती हत) ११२०:४।१४ महंत हा प २३।१३३१६,२६, ३२ ११०,२६.६६; १११ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१४ महंततर-महाणई ५।२२,२६,५६,५७,५८,७२,७३,७५५,५८, १७८,१८४ सू १६२३,२६ उ १।१०,२३, २६,६०,६२,६५,६८,६६,७२,८५,८७,६१ से ६३,१३८,१३६,५८,११,१६,२०,२७ महरिह (महाह) ज ३१६८१,११७,२०७,२०८, २२२:५१५४ महव्यय (महाव्रत) ज २०७२ महा (मधा) ज ७११४७,१५०,१६२,१६३ स् १०११ से ४,६,१४,२३,६६,७०,७५,८३.१२०,१३१ महंततर (महत्तर) ज ४१८०,१०२ महग्गय (महाग्रह) ज ७।११३ महगह (महाग्रह) ज ७१,१०४,१७० सू १०१३० ,१६५,८; १११३,१५।३,१६, २११४,७,१६।२२१६.१३; २०१८ उ ३१२५, ८४ से ८६ महम्गहत्त (महाग्रहत्व) उ ३८३ महग्ध (महार्घ) ज ३१८५,२०७,२०८,२२२; १५४ सू २०१७ उ १११६,४२, ३१२६,१४१:४।१२ महज्जुइ (महाद्युति) ज ११२४,३१:३।११५,१२४, १२५,२२६; ४।१६५,५११८ महज्जुइय (महाद्युतिक) ५२१४६ महज्जुतीय (महाद्युतिक) प १३०,४१,३६८१ महड्ढिय (महद्धि क) ५ २१४६ महड्ढीय (महद्धिक) ज ४।१७७ महण (मथन) ज ३१२२१ महत (महत्) सू १८।२३ महति (महती) ज ३१३१ महतिमहालय (महतीमहत ) प २०६३ महत्तरग (महत्तरक) उ १११६ महत्तरगत्त (महत्तरकत्व) प २।३०,३१,४१,४६ ज ३।१८५,२०६,२२१,५।१६ उ ५:१० महत्तरिया (महत्तरिका) ज ४।१८५।१ से ३,५ से १०,१२ से १७ उ ३६०, ४१५ महत्थ (महार्थ) ज ३२२०७,२०८:५१५४,५५ महदंडय (महादण्डक) प ३।११२ महद्दह (महाद्रह) ज ५५५, ६१७ महत्पत्थाण (महाप्रस्थान) उ ३१५५ महप्प (महात्मन्) ज ३।७७,१०६ महाबल (महाबल) प २।३०,३१, ३६८१ उ ५१२५ महया (महत् ) ज १।२६,४५,२।१२,६५,३१२,१२, २२,३६,७८,८२,८८,८६,६३,६६,१०२,१०६, १५५,१५६,१८०,१८५,१८७,२१२,२१३, २१४,२१८,४।२३,३८,६५,७३,६०,६१,१७७; महाओहस्सर (महौघस्वर) ज १५१ महाकदिय (महा क्रन्दित) प २।४१,४२,४७११ महाकण्ह (महाकृष्ण) उ ११७ महाकच्छ (महाकच्छ) ज ४११८२ से १८५ महाकच्छकूड (महाकच्छकट) ज ४।१८६ महाकम्मतराग (महाकमतरक) प १७१४,१६ महाकाय (महाकाय) प २।४१,४५,४५२ महाकाल (महाकाल) प २१२७,४४,४५,४५११, २१४६,४७ ज ३११६७४१,८,१७८ सु २०१८, २०८१५ उ १७ महाघोस (महाघोष) प १४०१७ ज ५१४८,४६ महाचाव (महाचाप) ३१२४१४,३७१२,४५१२, १३११४ महाजस (महायशस्) स १७११, २०११,२ महाजाई (महाजाति) प ११३८।३ ज २।१० महाजुतिय (महाद्युतिक) प १७१:२०११,२ महाजुतीय (महाद्युतिक) ५ २१३४ महाजुद्ध (महागुद्ध) ज २१४२ महाणई (महानदी) ज १५१६,१८,२०,४८,२।१३३; १३४,३११,१४,१५,१८,५१,५२,७६.७८,८१, ६७ से १०१,१११,११३,१२८,१४६ से १५१, १६१,१६४,१७०,४।२३,२४,२५,३५,३६,३८ से ४०,४२,५७,६५ से ६७,७१,७३,७४,७७, ७८,८४,६० से ६२,६४,९५,११०,१४१,१४३, १६७,१६६,१७४,१७७,१७८,१८१,१८३ से १८५,१८७,१८६,१६०,२००,२०१,२०२, Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाणक्खत्त महावीर २०६,२०८,२१२,२१५.२३२,२६२; ५ १५५; ६।१ से २२ उ १।६७,३१५१,५६,५८ महाणखत (महानक्षत्र ) स १० २५,४३,१०८ महानदी ( महानदी ) ज ४ । १६५,२६८ महाणिरय ( महानिरय) प २।२७ महाणिहि ( महानिधि ) ज ३।१७८, १८३,२२०, २२१ महाणुभाग ( महानुभाग ) प २३०, ३१, ४१, ४६; ३६१८१ ज ११२४, ३१, ३१११५, १२४, १२५, २२६; ४।६०;५।१८ १७११ २०११, २ महाणुभाव ( महानुभाव ) सू १७/१ २०११, २ महातव ( महातपस्) ज ११५ महादंडय ( महादण्डक ) प ३३१८३ महाद्दुम ( महाद्रुम ) ज ५१५१ महाधनु ( महाबनुप् ) उ५१२११ महानिहि ( महानिधि ) ज ३।१६७११,१० महानील ( महानील) प २०३१ से ३३ महापउम (हापद्म) २।१६७१,६,१७८ उ २१२,२० महापमद्दह (महापद्मद्रह् ) ज ४१६४, ६५, ७३,८६ महावउमा ( महापद्मा ) उ २११६, २० महापम्ह ( महापक्ष ) ४२१२,२१२।१ महापह ( महापथ) ज ३११८५ २१२,२१३, ५।७२, ७३ उ ११६८ महापाताल ( महापाताल ) प २१६१ महापुंडरी ( महापुण्डरीक ) ज ४१२६८ महापुंडरीमहत्यय ( हस्तगत महापुंडरीक ) ज ३३१० महापुरा ( महापुरा ) ज ४।२१२२ महापुरिस ( महापुरुप ) प २२४५२२४५२ महापुरिसपडण ( महापुरुषपतन ) ज २२४२ महापोंडरीय (महारौण्डरीक ) प ११४६ ज ४१३,२५ महाफल ( महाफल) उ १११७ महाबल ( महाबल ) प २१३१, ४१, ४६ ज ११२४, ३१३७७, १०, ११५, १२४, १२५, १२६, २२६:५१ १७११, २०११.२ उ २६ ५/१३,२५ १०१५ महाभीम ( महाभीम ) प २१४५ २०४५।१ महामंडलिय (महामाण्डलिक ) प १२७४ महामंति ( महामन्त्रिन्) ज ३१६,७७,२२२ महामहिम ( महामहिमन् ) ज २१११७, ११८, ३।१२,१३,१४,२८,३०,४१,४२,४६ से ५१, ५८ से ६०,६६ से ६८, ७४ से ७६ १३६,१३६, १४७ से १५१,१६८, १६६,१७० ५।७४ महामेह ( महामेघ) ज २११०,१४१,१४२,१४५ ; ३६, १७,२१,३१,३४,३५,१७७,२२२३।४६ महास ( महायशस् ) प २/३०,३१,४१,४६, ३६।५१ ज १।२४,३१,३१११५, १२४, १२५, २२६;५।१८ महारह ( महारथ ) ज ३१३५ महाराय (महाराज) ३१२०७,२०८, २२५ उ ३१५१, ५३,५४ महारावास ( महाराजवास) ज २१६४ महारुधिरपडण (महारुचिरपतन ) ज २२४२ महारोष्य (महारोरुक ) प २२७ महालय (महत्, महालय ) प २२२७,६३ ज २।११४,११५;५१४३ महावच्छ (महावत्स ) ज ४/२०२।१,२०३ महाव ( महाव) ज ४।२१२,२१२१३ महाविजय ( महाविजय ) ज २।१७ महावित्त ( महावृत्त) ज ५. । ५८ महाविदेह (महाविदेह ) प १७४८८२१७ ज ४८६,६८ से १०३,१०८,१६२,१६७, १६६,१७२ से १७४, १७८. १८१,१८२, १८४, १८५, १८७,१८८, १६०,१६१,१६३,१६४, १६६, १६७,१६६,२०० से २०३, २०५,२०६, २१३,२६२,६१६,१४,२२ उ १११४१, १४७; २११३,२२,३।१८,२१,८६,१५२.१६५, १६६, ४२६, २८; ५१४३ महाविमाण ( महाविधान ) प २६४ महावीर (महावीर ) प १११११११५,६,७३२१४ चं १० सू २५ ७ ११२.४८,१६,१७,१६ से २६,१४२,१४३,२११ से ३,१० से १२,१४, Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१६ ईमहावेदणतराग-महेसर १५,२१,३११ से ३,७,८,१२,१९.२०,२२, महिंदज्झय (महेन्द्रध्वज) ज ४११२८,१३३,१३६; २३.२६,८७,८८,६१,६३,१५३,१५४,१६६, ५।४३,४४,४६,५०,५२,५३ उ ३।७ १६७,१७०४१ से ३,२७,५११ से ३,४४ महिड्ढीय (महद्धिक) परा३०,३४.३५ से ३७, महावेदणतराग (महावेदनतरक) प १७६,२७ ३६,४१,४६,४६,५०,५८ महासंगाम (महासंग्राम) ज २।४२ महित्ता (मथित्वा) ज ५:१६ महासत्थपडण (महाशस्त्रपतन) ज २१४२ महित्य (दे०) प ११३७६४ महासमुह (महासमुद्र) ज ३२२,३६,७८,६३,६६, महिमा (महिमन) ५ २१६१,६०,११६,५३,७,२२, १०६,१६३,१८० ४६,७४ ज २।३१,६०,११६,५३,७,२२,४६, महासरीर (महाशरीर) प १७.२,२५ महासुक्क (महाशुक्र) प २१४६,५६,५७, ३१३५, महिय (महित) प २३०,३१,४१ ज ११३७,३७, १८३ ; ४।२४६ से २५१,६।३३,५६, ७।१४; । १०८ से १११ २११७०; २८।८१, ३३।१६३४११६,१८ महिय (मथित) उ ११२२,१४० उ २।२२ मह्यिा (महिका) प ११२३ महासुक्कग (महाशुक्रज) ज ५।४६ महिला (महिला) ज ११५,६४; ३११३८,१६७४ महासुक्कवडेंसय (महाशुक्रावतंसक) प २१५६ महिलिया (महिलिका) ज३।१२६।३ महासुमिण (महास्वप्न) उ१४० ४३ महिवड (महीपति) ज ३।११७ महासेणकण्ह (महासेनकृष्ण) उ ११७ महिस (हिष) प ११६४; २।४६,१११२१ महासेत (महाश्वेत) प २१४७१३ ज ३।२४,१०३ महासोक्ख (महासौख्य) प १३०,३१,४१,४६; महिती (महिषी) प १०२३ ज २।३४,७।१६८१२ ३६८१ ज १।२४.३१, ३।११५,१२४,१२५, महु (मधु) ज ७।१७८ उ १३४,४६,७४; ३।५१ २२६; ५११८ सू १७।१,२०११ महु (मधुः) प ११४८३ महाहिमवंत (महाहिमवत् ) प १६३३० ज ४१५४, महुयरी (मधुकरी) ज २०१२ १५,६१ से ६३,७६ से ८१,२६८ महुर (मधुर) प ११४ से ६ ५,७,२०५; महिड्ढिय (महद्धिक) परा३१,३७,३६.४२,४३, १११५८,१३१२८२३६४६,१०८, २८।२६, ४८,५०,५२; १७८४ से ८७,८६, ३६१८१ ३२,६६ ज २।१२,१५.६५,१४५,४।३,२५; ज ११२४,३१,४५,४७,५१,३१११५,१२४, ५२८,७१७८१४१,४४,३१६८ १२५,२२६; ४१२२,३४,५१,५४,६०,६१,६४, महुरतण (धुरतृण) प ११४२।२ ८०,८४,८५,६७,१०२,१०७,११३,१५६, महुरयर (मधुरतर) ज ५१२२ से २४ १६१,१६५,१६६,१७७,१८०,१८४,१८६, महुररस (मधुर रस) प ११४८१४ १९६,१६८,२०३,२११,२६१,२६४,२६६, महुरा (मथुरा) प ११६३५ २७२,५१८,७१८१,२१३ सू १७।१; मसिंगी (मधुशृङ्गी) प १४८३ १८।१६,२०११,२ महुस्सर (मधुस्वर) प ५१५२ महिंद (महेन्द्र) ज १२६,३१२ उ ११०,२६,६६; महेत्ता (मथित्वा) उ ३१५१ महेसर (महेश्वर) प २।४७।२ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोरग-मार्याणि महोरग ( महोरग ) प ११६८,७५,१३२ २०४५ ज ३१११५.१२४, १२५ महोमच्छाया (महोरगच्छाया) प १६१४७ मा (मा) उ १४१ ३ १०३,११२ : ४।११ माइ (मातृ) उ १२४६ २१२२, ४१२८ ६ ५।४३ माइमिच्छद्दिठि (मादिध्यादृष्टि ) प १५४६; १७ २२; ३४११२; ३५।२३ माइमिच्छहिउद ( मिथ्यादृष्टयुपपन्नक ) प १७२७,२६ माइमिच्छद्दिट्ठीउववण्णग (सामिध्यादृष्ट् युपपन्नक) प १७२७ माइय ( मात्रिक ) ज २११५ माईवाह (मातृवाह ) प ११४६ माउय (मातृक) ज ५१६ से १२,१७,४६,७२,७३ माउलिंग (मातुविङ्ग) प १।२६।१ माउलिंगाराम (मातुलिवाराम) उ ३२४८, ५५ माउलिंगी (मातुलिङ्गी ) प १।२७।१ माउलुंग ( मातुलिङ्ग) प १६।५५; १७।१३२ माह ( मागध ) ज ५।५५,६११२ से १४ मागकुमार ( मागधकुमार ) ज ३।१३१ मागतित्थ ( मागधतीर्थ ) ज २११४,१५,१५,२२१ २६,५५५ मागतित्थकुमार (भगवतीर्थकुमार ) ज ३१२०, २६,२७,२८.३० मागहतित्याधिपति ( माराघतीर्थाविपति) मागतित्याहिवर ( मागतीर्थाधिपति) माघी ( माघी) ज ७१४० माबिय (साम्बिक ) प १६।४१ ज २१२५; ३१, १०,७७,८६,१७८, १८६,१८,२०६,२१०, ३१२५ ३१२६ २१६,२१६,२२१,२२२११६२३।११, १०१,५११० माढरी (नाठरी ) प ११४८।४ माढी (माठी) ज ३।३१ माण (मान) प ११।३४।११४४४,६,८,१० १४ २२/२०,२३६,३५,१६४ ज २।१६,६६,१३३, ३६५,१३८, १५६,१६७ ३,२२१ १२ १७ १ उ ३१३४ माणसा (गालायिन् ) प ३१८:२८ ।१३३ माणसाय ( मानकपाय ) प १४ । १ भाकतायपरिणाम (मानकषायपरिणाम ) प १३१५ मादकसाथ (पानकपायिन् ) प ३६८ माणिस्तिया ( माननिथिता ) प ११।३४ माणसूरण (मानभञ्जन') ज ५१५८ भागवग ( माणवक ) ज २।१२०,३१६७१,६, ३।१७८४।१३५ सू २०१८ मानव ( मनवक ) ज ४११३३; ७ १८५ १०१७ सू १८/२३; २०१८४ माणस ( मानस ) प ३५१११२,३५६,७ ज ५।२६ माणसंजलणा (मानसंज्वलना) प २३१७० माणसण्णा ( भानसंज्ञा ) प ८१,२ मासराय (मानसमुद्घात ) प ३६ ४२,४६, ४८ से ५२ माणि ( मानिन्) ज ४३१७२ ।१ सू २०१६ २ माणिक्क (माणिक्य ) ज ३ | १०६ माणिभद्द ( माणिभद्र ) प २०४५ २०४५।१ ज १३; ७।२१४ च ७६ ११२, ४३।२।१३।१६९ भिड (माभित्रकूट ) ज ११३४,४६ माणूस (मानुष ) प २६४ १ १४ ज २।१५,६७; ३१९२, ११६,४११७७ सू १६२२/२/२०१२ सासवे ( मानुषक्षेत्र) १६।२१।१,२,१६१२६ (मानुषन) १६२२१२७,२६ १६।२१।६, २०२ राय (मानुपलोक ) भासुर (धनुषोत्तर) ७।५५, २८ सु. १६/१६ आयुस्तंग ( मानुष्यक) उ३।१३७ माणुस्य (धानुष्यक ) ज ३८२,१८७,२१८, २२१,४११७७ २०७१।११,३४, ५१२५ माता (मात्रा) २६४ माय (वा) माजा प २।६४।१६ सायंजय (पाताञ्जन) ज ४।२०२ माघकर (पायिन् ) प ३३६८, १८।६५ भार्याणि (मादनि) उ ५ २ १ १ ० ४ १०६ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१८ माया-माह माया (माया) प ११३४।१।१४।४,६,१० से १४:२२।१०२३।६,३५,१८४ ज २१६,६६, १३३ ३ ३।३४ माया (मात) जरा२७,६९५५,७ से १०,१२, १४,१७,४६.६७ उ १।१४८ माया (मात्रा) ज ४१३६,४३,७२,७८,६५,१०३, १४३,१७८,२००,२१३ मायाकसाइ (मायाकपायिन्) ५ २८१३३ मायाकसाय (मायाकपाय) १४११ मायाकसायपरिणाम (मायाकपायपरिणाम) १३१५ मायानिस्सिया (मायानिश्रिता) ११३४ मायामोस (मायामषा) प २२१२०,८० मायामोसविरय (मायामपाविरत) प २२१८५,६६ मायावत्तिया (मायाप्रत्यया) प १७।११,२२,२३, २५, २२२६०,६३,६८,७१,६३,६६,१०१ मायासंजलण (मायासंज्वलन) प २३७१ मायासण्णा (मायासंज्ञा) प ८।१,२ मायासमुग्घात (मायासमुद्घात) प ३६।४६ मायासमुग्घाय (मायासमुद्घात) ५ ३६१४२,४८ से ५१ मारणंसियसमुग्घाय (मारणःन्तिकममुद्घात) प १५१४३; २११८४ से ६३३६१,४,७,२७, २६,३५ से ४१.४६,५३ से ५८,६६ मार (मार) ज ५१३२ मार (मारय) मारिस्सइ उ १८६ मारिबहुल (मारिबहुल) ज ११८ मारुय (मारुत) ज ५१५ मारेउकाम (मारयितुकाम) उ १०३ माल (मालक) ५११३७।५ नीम माल (माला) प २१५० ज ५१८ मालक (मालव) प १८६ मालवंत (माल्यवत) ज ४/१०८,१४२१३,१४३, १६२११,१६३ से १६७,१६६,१७२ से १७४, २०३,२०७,२०६,२१०,२१५,२६२ मालवंतकड (माल्यवत्कट) ज ४११६३ मालवंतद्दह (माल्यवद्रह) ज ४२६२ मालवंतपरियाय (माल्यवतपर्याय) प १६।३० ज ४।२७२ माला (माला) प २।३०,३१,४१,४६ ज ३१६,२०, ३३,४७,५४,६३,७१,८४,११३,१३७,१४३, १६७,१८२,१८६,२०४,२२२ मालागार (मालाकार) ज ५१७ मालि (मा लिन ) प ११७१ सांग विशेष मालिया (मालिका) ज ७१७८ मालुय (मालुक) प ११३५.१ मालुया (मालुका) प ११४०।५,११५० मास (मास) घ ४११०१,१०३, ६१५,१३ से १६, ३५,३६,४४:१८१२३ ; २३१६६,७०,१६५, १८४ ज २१४,६४,६६,८३,८८,३।११६; ७११४१२,११५,१२६,१२७,१३६३१,१५६ से १६७ च ५।३ सू १३६६.१ ८.१; १०१६३ से ७४,१२४,१२।३ से ६,१० से १२,१५; १३१३,१४,१७,१५.१४ से २८, २०१३ उ १६३६,४०,४३,५३,७४,७८,३१४० मास (माष) प ११४५१ ज २१३७, ३।११६ उ ३१३६.४० मासखमण (मासक्षपण) उ२।१०।३।१४,८३; ४।२४५।२८,३६,४३ मासचुण्ण (माषचूर्ण) प १११७६ मासद्ध (मासा) उ २११०३.१४ ८३,४।२४; ५।२८,३६,४३ मासपण्णी (मापपर्णी) प ११४८१५ मासपुरी (मासपुरी) प १६६३।५ मासल (मांराल) प १७।१३४ माससिंगा (मास 'सिंगा') प ११७८ उडद की फली मासवल्ली (मापवल्ली) प १४०१४ मासिय (मासिक) ज ३१२२५ मासिया (मासिकी) उ२।१२:३१५०,१६१,१६६ ५२८,४३ माह (गाघ) ज २।८८,७।१०४ सू १०।१२४ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहण-मिसिमिसेत १०१६ माहण (माहन) उ ३।२८,२६,४५,४७,४८,५०, ६६,७२ से ७४,६४,६५,६७ से ६६.१०१ ५५,५८,६०,७५,७६.७६ मिच्छादसणसल्ल (मिलादर्शन शल्य) प २२।२०,२५ माहणकुल (माहनकुल) उ ३३१२५ मिच्छादसणसल्लविरय (मिध्यादर्शनशल्यविरत) माहणरिसी (मानषि) उ३१५१ से ५७,६२,८२ प २२।८६,८७,८६,६०,६७ से १६ माहणी (माहनी) उ ३।१२६ से १३१,१३४ से मिच्छादसणसल्लवेरमण (मिथ्यादर्शनशल्यविरमण) १४४,१४७,१४८ प २१०८१,८२ माहिद (माहेन्द्र ) प १११३५२१४६,५३,५४,६३; मिच्छादंसणि (मिथ्यादर्शनिन ) प २२१६५ ३।३२,१८३,४१२४० से २४२,६१३०,५६.६५, मिच्छादिट्ठि (निश्यादृष्टि) प २३:१६५ १५।८८२१८७०,२८७८,३४।१६,१: मिज्जमाण (मीयभान) सू १२।२ ज ५१४६७१२२।१ सू १०1८४१ उ २।२२ मित (मित) उ १४१,४४ माहिदग (माहेन्द्रक) ५ २१५३; ७१११,३३।१६ मित्त (मित्र) ज २।२६,३१८७,७।१२२२१, माहिंदवडेंसय (माहेन्द्रावतंसक) प २०५३ १३०.१८६.४ सू १०१८४१ उ ३१३८,५०, माही (माघी) ज ७.१३७,१४६,१५३,१५४ ११०,१११:४।१६,१८ सू १०७.१४,२३,२५,२६ मित्तदेवया (मित्रदेवत।) सू १०३ माहेसरी (माहेश्वरी) प १६८ मिय (मृग) प ११६४१११४ ज २।३५ उ ५१५ मिउ (मृदु) ज २११६,३।११७७।१७८ मिय (मित) ज २०१५ मिजा (मज्जा) प ११४८१४५,४६ मियंक (मृगाङ्क) म २०१४ भिग (मृग) प २१४६ सू १०।१२० मियगंध (मृगगन्ध) ज २१५०,१६४,४११०६,२०५ मिगसिरा (मृगशिरा) ज ७।१३६,१६०,१६१ मियलुद्ध (मृगलुब्ध) उ ३१५० सू १०१२ से ५.१२,२३,३८ मियवालंकी (मृगवालुकी) पश४८।४; १७:१३० मिगसीसावलि (मृगशीर्षावलि) ज ७१३३११ पियवालुंकीफल (मृगवालुकीफल) प १७।१३० मिच्छत्त (मिथ्यात्व) प २३१३ उ ३।४७ मिरिय (परिच) प १७।१३१ मिच्छत्तवेदणिज्ज (मिथ्यात्ववेदनीय) प २३११६८, मिरियचुण्ण (मरिचचूर्ण) प १११७६; १७।१३१ १८२ मियसिर (मृगशीर्ष) ज ७।१२८ मिच्छतवेयणिज्ज (मिथ्यात्ववेदनीय) १२३११७. मिरीइ (रीचि) ज ३१११७ ३३,६६,१३८,१५७,१६१,१६६ मिरीचि (मरीचि) सू २११ मिच्छत्ताभिगमि (मिथ्यात्वाभिगमन ) प३४११४ मिरीया (मरीचि) सू २१ मिच्छद्दिछि (मिथ्यादृष्टि) प १७४,८४; मिलक्ख (म्लेच्छ) प १८८,८१ ज ३१७७,१०६ ३११००,१८३ : ६।६७,१३।१४,१६,१७; मिलाइता (भिलित्वा) ज ५।६४ १७।११,२३,२५; १८७७; १९१से ५ मिलाय (मिलय) भिलाइ उ १११२५ मिलायंति २१४७२२३।१६६,२००,२८।१२६ ज ३१११ मिच्छादसणपरिणाम (मिथादर्शनपरिणाम) मिलायित्ता (मिलित्वा) ज ३११११ १३.११ मिलिय (मिलित) ५१६१५२२१८४ मिच्छादसणवत्तिया (मिथ्यादर्शन प्रत्यया) मिसिसित (दे०) ज ३११०६,५१२१ ५ १७११,२२,२३,२५, २२१६०,६५,६६, मिसिमिसेंत (दे०) ज ३१६,२४,२२२:५।२८ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२० मिसिमिसेमाण-मुद्दा मिसिमिसेमाण (दे०) ज ३१२६,३६,४७,१०७, १०६,१३३ उ ११२२,५७,८२,११५,१४० मिस्स (मिथ) प १४४७१२ मिस्सकेसी (मिश्रकेशी) ज ५१११११ मिस्तार (मिथाकूर) सू १०२० मिहिला (मिथिला) पश६३१३ ज ११२,३; ७२१४ च ६ से ८ सू १।१ से ३ उ ३११७१ मिहुण (मिथुन) ज २११२; ४१३,२५ उ ५१५ मीसग (मिथक) ५ ३२१६१ मौसजोणि (मिथयोनि) प ६१६ मौसजोणिय (मिश्रोनिक) प ६।१६ मोसय (मिश्रक) ज २१६५,६६ मीसाहार (मिश्राहार) प २८।१.२ मीसिय (मिश्रित) प ६३१३ से १७ मुइंग (मृदंग) प २१३०,३१,४१,४६,३३।२४ ज ११४५;३.१२,२८,४१,४६,५८,६६,७४, ७८,८२,१४७,१६८,१८०,१८५,१८७,२०६, २१२,२१३,२१८,५१,५,१६, ७५५,५८, १८४ सू१८।२३,१६१२३,२६ मुइंगपुक्खर (मृदंगपुष्कर) ज २६१२७ मुंच (मुच्) कोच्छिहिति ज २११३१ मुंजपाउयार (मुजपादुककार) प श६७ मुंड (मुण्ड) प २०११७,१८ ज २१६५,६७,८५,८७ उ ३३१३,१०६ से १०८,११२,११८,१३६, १३८,१३६,४।१४,१९:५३२ मुंडभाव (मुण्टभाव) उ२२४३ मुंडि (मुण्डिन् ) ज ३३१७८ मुक्क (मुक्त) प २१३०,३१,४१ ज २११०,१५; ३७,८८,४११६६५७ मुक्केलम (दे०) प १२१८ से १३.१६,२०,२१, २३,२४,२७,२८,३१ से ३३ मुक्केलय (दे०) प १२।७ से १०,१६,२०,२४,२७, २८,३६ मुगुंद (मुकुन्द) ३।३१ मुग्ग (मुद्ग) प ११४५३१ ज २१३७,३१११६ मुग्गचुण्ण (मुद्गचूर्ण) प ११७६ मुग्गपण्णी (मुद्गपर्णी) प १:४८५ मुग्गसिंगा (मुद्ग सिंगा') प १११७८ मूग की फली मुग्गसूव (मुद् गसूप) सू १०११२० मुच्च (मुच्) मुच्चइ प ३६.८८ मुच्चंति प६११० ज ११२२,५०,२१५८,१२३,१२८; ४११०१ उ ३११४२ मुच्चति प ३६।११ मुच्चिहिइ उ १११४१,३।४६:५१४३ मुच्चिहिति २।१५१ गुच्चेज्जा प २०१८ मुच्छिय (मूच्छित) ज ५१२६ उ ११४७,३।११४ ११५,११६ मुछि (मुष्टि) ज २११४१ से १४५,३।११५, ११६,१२२,१२४ मुठ्ठिय (मौष्टिम,मुप्टिक) ज २।३२; ५,५ मुणाल (मृणाल) प ११४६,११४८।४२,२०६४ ल ३११०६४३,२५ मुणालिया (मृणालिका) प २।३१ मुणेयव (ज्ञात य) प १३८१३,२१४०१६,११; १५६१४३ ज ४।१४२।३,७४१३४१४ सू१६२२१११,२२ मुत्त (मुक्त) २१८८,८६,३७६,११६,११७,२२५ १५,२१,४६ मुत्त (मूत्र) उ ३३१३०.१३१,१३४ मुत्तजाल (मुक्तजाल) ज ३३१७७ मुत्तमाण (मुद्रयत्) उ ३।१३०,१३१,१३४ मुता (मुक्ता) ज ४।२७ मुत्ताजाल (मुक्ताजाल) ज ३।३०,४७,२२२ सुतादास (मुक्तादामन्) ज ५१३८ मुत्तालय (मुक्तालय) प २१६४ मुत्तालि (मुक्तावनि) ज ३।२११,४१२३,३८, ६५,७३,६०,६१ मुत्ति (मुक्ति) प २१६४ ज २०७१ मुत्तियाजालय (मौक्तिकजालक) ज ३।१०६ मुत्तिसुह (मुक्तिमुख) प २१६४११५ मुत्तोली (दे०) ज ३११०६ मुद्दा (मुद्रा) प २१३१ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्दिया-मेंढमुह १०२१ मुद्दिया (मृद्वीका) प ११४०१४ ६५,९६,६८ से १००,१२२,१२६,१२७, मुद्दिया (मुद्रिका) ज ३१६,२११,२२२ १३४।१,२,३,१३५१ से ४ च ३३१४११:५।२ मुद्दियासारय (मृद वोरासारक) प १७१३४ सू१।७।१,११८।१,११६२,११०,१३,१४,१६ मुद्ध (मुर्धन् ) ज ५१२१,५८,६४,७२,७३,७१७८ से १८,२१,२२,२४,२७,२१३,३१२,४८,९; मुद्धत (मूर्द्धान्त) सु २०१२ ६।१८:१; ६।२;१०।२ से ५,८४,१३३,१३४, मुद्धय (दे०) प ११५८ १५२ से १६५,१११२ से६१२१२ से ६, मुद्धागय (मूर्द्धगत) ज ३९२,११६ १२,१३,१६ से २८,१३॥१.३,१४१३,७; १५२ मुम्मुर (मुर्मुर) प ११२६ से ४,८,६,११,१२,३७:१७.१ उ श२४,४७, मुम्मुरभूय (मुर्मुरभूत) ज २११३२,१४१ ९०,६२ मुय (मुच्) मु ति कु २०१२ मुहत्तगइ (मुहूर्त गति) चं ४।३ मुयंत (मुञ्चन्) ज २:१२ मुहत्तरंग (मुहूर्ताग्र) च ५११ सू १।६।११०१२; मुरव (मुरज) ज ३।१२,७८,१८०,२०६ १२॥२ से । मुरुंड (मुरुण्ड) प ११८६ मूल (मूल) प १३५,३६,११४८।१०,२०,३०,३४, मुरुंडी (मुरुण्डी) ज ३।१११२ ५१ ज १८,३५,५१,२१६३१२२२०,४७,१५, मुसल (मुसल) प २१३०,३१.४१ ज २१६,१४१, ४३,४५,७२,७८,६०,६५,११०,११४:१२०, १४५, ३१३,२०,३३.५४,६३,७१८४,११५, १४२११,१४६,१५६।१,१७४,२१३,२४२; ११६,१२२,१२४,१३७,१४३,१६७,१८२; ५६७,७१३६,३८,६२४११,१२८,१२६, ७.१७८ १३२।४,१३६,१४०,१४६,१५२,१६६,१६७, मुसावाय (मृषावाद) प २२।१२,१३,८० १७५ सू१०।२ से ६,१८,२३,५२,६२,७३ से मुसावायविरय (मषावादविरत) प २२१८५ ७५,८३,११७,१२०,१३१ से १३३,१२।२७; मुसंढी (दे०) प ११४८।१२।३०,३१,४१ १८१७ 3 ३१५०,५१,५३ मुह (मुख) ज २०७१,१३३,३।१०५,१०६, यूलग (मूलक) प ११४४।२,११४५१२ ज ३१११६ १६७१११४१२३,३६,३८,३६,४३,६५,६६, मूलांग (मूलाग्र) प ११४८१६३ ७२,७३,७८,६०,६१,६५,१८३.२६२७।१७८ मूलपासायव.सय (मुरुप्रासादावतंसक) ज ४।१२० उ ३१५५,५६,६३,६४,६७,६८,७०,७१,७३, भूलय (मूलक) प १।४८।२ ७४,७६, ४।२१ मूलाग (मूलक) उ १९६२ मुहफुल्लय (मुखफुल्लक) ज ७१३३१२ मूलाषण्ण (मूतकपर्ण) १०११२० मुहफुल्लसंठिय (मुख'फुल्ल'स स्थित) सू१०४७ मूलाबीय (मुलना वीज) ज २१३७ मुहभंडग (मुखभाण्डम.) ज ३११७८ मूलाहार (मूलाहार) उ ३५० मुहमंगलिय (मुखमाङ्गलिक) ज २१६४;३३१८५ मुसग (मुषक) प ११७८ मुहमंडव (मुखमण्डप) ज ४.१२२ मूसा (भूषक) प १७६ मुहुत्त (मुहूर्त) ६१ से ४,६ से १०,१७,१८,२२ मेइणी (मेदिनी) ज २११५ से ३०,४५७१३,६ से ६२३१६३,१२७,१३१, मेइणीय (मेदिनीक) ज ३११८,३१,१८० १८८ ज २१४१२,३,२१६६,१३४,३३३२१२, मेंढक (मेंढक) सू १०।१२० मेढानिंगी लता २०६७।२० से ३०,३६ से ३८,७६ से ८२, मेंढमुह (मेंढमुख) प ११८६ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२२ मेघ-या मेहा (मेघा) ज ३३ मेहाणीय (मेघानीक) ज ३।११५,१२४,१२५ मेहावि (मेधाविन्) ज ३।१०६ मेहुण (मथन) २८१६,१७,८० मेहुणवक्तिय (मशनर) ज ७११८५ १८।२३, २४;२०१६ मेहुणसण्णा (मथुनसंज्ञा) प ८११ से ५,७ से १,११ मोढ (दे०) ३ ११८६ मोक्ख (मोक्ष) ज २।७१ मोगली (गली) एक जंगली पेड । १४०।५ मोग्गर (मुद्गर) ११३८१२; २१४१ ज २।१० मोग्गलयण (मौद्गलायन) ज ७।१३२२१ सू १०१६२ मोत्ति (मौक्तिक) ज ३११६७।८ मोत्तिय (मौक्तिक) २४६ ज २।२४,६४,६६) मेघ (मेघ) ज ३।२२४ मेघमालिनी (मेघमालिनी) ज ४१२३८ मेघस्सर (मेघस्वर) ज ५१५२ मेच्छ (म्लेच्छ) प २१६४१७ मेच्छजाइ (म्लेच्छजाति) ज ३१८१ मेढी (मेढी) उ ३।११ मेढीभूय (मेढीभूत) उ ३१११ मेत्त (मात्र) प ११४८६०,११७४,८४; १२११२, २४,३८,१५१०,२३,२११८४,८६,८७,६० से ६३,३३३१३,३६।५६,६६,७०,७४ ज २।१३४ उ ३।८३,१२०,१२१,१२७,१२८,१६१; ४१२४;५१२३ मेद (मेदस्) प २।२० से २७ मेधावि (मेधाविन्) ज ५१५ मेय (मेद) १८६ मेरग (मैरेय) उ ११३४,४९,७४ मेरय (मैरेय) प १७:१३४ मेरा (मर्यादा) ज ३१२६,३६,४७,७६,१३२,१३३, १३८,१५१,१८८ सू २०१६।४ मेराग (मर्यादाक) ज ३।१२८,१५१,१७०,१८५, २०६,२२१ उ ५.१० मेरु (मेरु) ज ४१२६०।१७।३२११,७१५५ सू ५।१; ७।१:१६२२११०,११,१६१२३ मेरुतालवण (मेरुतालवन) ज राह मेलिमिद (दे०) ५११७० मेसर (दे०) प १७९ मेह (मेघ) ज २१३१, ३१७.६३,१०६,१२५, १७,१६३,५१२२ से २४ उ ११ मेहंकरा (मेघकरा) ज ४।२३७,५०६१ मेहकुमार (मेषकुमार) उ २११११,११२ मेहमालिणी (मेघमालिनी) ज ५१६१ मेहमुह (मेघमुख) २ १८६ ज ३१११ से ११५ १२४ से १२६ मेहबई (मेघवती) ज ४२३८; ५।६।१ मेहवण्ण (मेघवर्ण) उ ५१२४,२६ मोद्दाल (दे०) ज २१८ मोयई (मोची) १३५१ हिलमोचिका साग मोयग (मोचक) ज ५।२१ मोरगीवा (मयू रग्रीवा) प १७६१३४ मोसभासग (मपाभाषक) प ११०१० मोसमण (मृपामनम् ) प १६:१,७ मोसमणजोग (मृपामनोयोग) प ३६१८६ मोसवइजोग (मपावाक्योग) ५ ३६.६० मोसा (मृपा) ११११२ से १०२६ से २६,३२, ३४,४२,४३,४५,४६,८२,८४,८५,८७ से ८६ मोह (मोह) प २३११६१ ज २१२३३ मोह (माहय् ) मोह ति ज ११३ मोहणिज्ज (मोहनीय) प २२१२८,२३११,१२, १७,३२,१६२, २४।१३:२६।१२, २७१६ मोहरिय (मौखरिक) ज ३११७८ य (च) ५१।१० ज १७ सू १७ उ १७, ३।२।१४।२। १ २।१ या (च) उ ३१२११ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याण-रत्या १०२३ याण (ज्ञा) याणंति प १५।४६,४८,४६% रठ्ठ (राष्ट्र) उ ११६६,६४,६६ ३४.११.१२ याणति प २३११३ याणामो रट्ठकूड (राष्ट्र कूट) उ ३३१२८ से १३१.१३३, उ १।३६ १३६,१३८ से १४०,१४७,१४६ याव (यावत्) प ११२०,२३,२६,२६,३६.३७,३६ रणभूमि (रणभूमि) उ १११३५ से ४७,११४८७.१० से ३७,४१,४३,१४४८ से रतण (रत्न) ५२१४८ ५१,५६,६०.६० से६६,७०,७१,७५,७६,७८, रतणप्पभा (रत्नप्रभा) प २१४८,४६३३१८३; रतणम्पमा रत्नप्रभा) ६६.६७ ६।६११०१२,३ रतणबडेंसय (ग्लावतंसक) १२१५१ रतणामय (रत्नमक) २०४६ रई (रति) १४१ ज ५१२६ रति (रति) २३६३६,७६,१४४ रइकरग (रतिकर क) ज ५१४८,४६ रतिणाम (रतिनामन्) प २३१६४ रइकरगपन्वय (रनिकर कपर्वत) उ ५१४४ रतिपसत्त (रतिप्रसक्त) सू २०१७ रइत (रचित) ए ३६१६२ रत्त (रक्त) प २१३१,२१४०।१० ज ३७,२४,२५, रइत्त (रतिद) ज ३१३५ १८४,१८८७१७८ सू १३.१,२०१३,७ रइय (रचित) १ २।३०,३१,४१ ज ११३७,२१५, उ१९७२,७३,८७,८८,६२ ३१६,६,१८,२४,३५,६३,१०६,११७,१७८, रत्त (रात्र) ज २६.१,२।१४१ से १४५,३३११५, १८०,२२१,२२२,५१४३०१५५ ११६,१२१,१२२,१२४ रइय (रतिक) प २१४८ रत्तंसुय (रक्तांशुक) ज ४११३ सू २०१७ रइय (रतिद) ज २११५ रत्तकंबलसिला (रक्तकम्बल शिला) ज ४१२४४, रइयामय (रजत मय) ज ४११३ २५२ रउस्सल (रजस्वल) ज २।१३१ रएत्ता (रचयित्वा) उ१।१३७, ३१५१ रत्तकणवीरय (रक्तकरवीरक) प १७१२६ रंग (रङ्ग) ज ३।१६७१६ रत्तचंदण (रक्तचन्दन) प २१३०,३१,४१ रक्खस (राक्षस) ५ १५१३२, २१४१,४५ ज ७१२२ रत्तबंधुजीवय (रक्तवन्धुजीवक) प१७११२६ रत्तरयण (रक्तरत्न) ज २१२४,६४,६६,३।१६७ रक्खा (रक्षा) ज ५११६ रत्तवई (रक्तवती) ज ४१२७४।६।१६ रज्ज (राज्य) ज २१६४;३१२,१७५,१८८ उश६६. रत्तवईकूड (रक्तवतीकुट) ज ४।२७५ १४,६६,१०३,१०६,११०,११३,११४,१२१, रत्तसिला (रक्तशिला) ज ४१२४४,२५१ १२२,१२६,५९,११ रत्ता (रक्ता) ज ४१२७४; ६.१६ रिज्ज (रञ्ज) रज्जति सु १३३१ रत्ताकूड (रत्ताकूट) ज ४।२७५ रज्जधुरा (राजधूर्) उ १।३१ रत्ताभ (रक्ताभ) प २१४६ रज्जवास (राज वास) ज २१८७ रत्तासोग (रक्ताशोक) ११७६१२६ रज्जसिरि (राज्यश्री) उ ११६५,६६,७१,६४,९८, रत्ति (त्रि) ज ३१६५,१५६ ६९,१११,११२ रस्तुप्पल (रक्तोत्पल) प १७:१२६ ज २।१५; रज्जु (रज्जु) ज ३३१०६७।१७८ ७११७८ रज्जुच्छाया (रज्जुच्छाया) गू६१४ रत्था (रथ्या) ज ३७ सू १०८४१३ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२४ रम (रम्) रमंति ज १११३,३०,३३३३७४१२ रमंत ( रममाण ) ज ३११७८ रमण ( रमण ) ज ३|१३८ रमणि ( रमणी) २०३१,४० से ५१.६३३ १७ १०७, १०२ १११ १.१३.२१,२५,२६, २८,२६.३२.३३.३०, ३७, ३२४०, ४२, ४६; २३,१०,१४,१८,४२,५६,५७,१२२, १२७ १४७,१५०,१५६,१५,१६१.१६४३१२,८१ १९२, १९३,११६,११७,२२२४१२.३.०९.११. १२.११,३२,४६,४६,४७, ४९, ५०, ५६,५८,५६, ६३,६१,७०,६२,८७,८८,१००,१०४,१०६. १११, ११२,११७, ११८, १३१,१६६,१७०, १७१,२०२११,२३४,२४० २ २४२,२४७, २४८, २५०, २६७५।३२,३५७ १७८ यू २१६०३. १८११ रम्म ( रम्य ) ज २२१०, १२; ३३८१; ४।२०२११ उ ३४९;५१६ रम्मग ( रम्यक) ज ४।१०२,२०२ रम्गकूड ( रम्यककूट) ज ४/२६३|१,२६६११ रम्भगवास (रम्पकवर्ष ) प १३८७,१६३० [ज] ४४१०२,१६२,२६६ से २६८,६६,११ रम्य ( रम्बक ) प १७११६४ ज ४।२०२११,२६५ से २६७ रम्यास ( रम्यकवर्ष) २२६ (ज) २।२२३६५१७ / रय (रचय) रएइ उ १११३७,३१५१ रति ज २१६ गृह ज २६५ २ ३।११४ रण (रत्न ) प १।१।२; ११३,४८,२१३०,३१,४१, ४८ ११।२५ १५०५५/२, २०११११ व २२६४, ६६; ३६,१२,१८,२४,३०,३१,३२/१,३५, ५६,६४,७६,७७,८१,११७.१२५ से १२८, १३८, १४५,१५१,१५२.१६७११.५,१२,१४: ३१६८१७५ १७८१८०,१५४, १६२,२११. २२१,२२२,४८४६, १३७ ५१५, ७,१३,१६, ३८५५७१७८ १८८ २०७१।१११. ११२,१२३,१३१ रयणकरंड ( रत्नकरण्ड ) ज ३१११ श्यक) ५१५५ ३०१२८ कुविधारिय ( रत्नकुक्षिश्राविका ) ज ५१५, ४६ रणचित (चित्र) व ३१५६,१४५ यत्पा (भा) ११५३२१२०,२१, ३० से ४०, ४१ से ४३,४५, ५०, ५१,६३; २११२१४६० से ९६।१०,४५,४१,७२, ८१,१०११०११ से ३,२८,३०६१६१२६ २०१, २, ३८.२६.४१, ५०, ५.६, २११५२,५१, ६६ ३० २५ से २०३३०३,१६ २०१३ ०३:१०११ रयणप्यभविणे (पृथिवीनरक) रम-रयणी १ २०१५०.५१ रयणडेय (वतंस ) प २५६ रण (वासा) ( रत्नवर्षा ) ज ५।५७ रयणमय (सनम ) २/३०,३१,४१ से ४३, ४६,५० से ५२.५८ से ६०,६२ १२.१०. ३१,३५,४०,४६११:२०११४.११४, २०१६, १००,१०१४१२८, ३०, ४१,४५, ५७,६२,७४, ७६, १०३, ११४.१३९,१७८.२१२.२१७, २७६ ५.१३७ रयणसं (नया) ज ४१२०२१२ (रत्नावली ) ज ३।२११ रण रणि (नि) १४७५ २२६४७, ८, २१।६६,६७, ७०,७१,७४ ज २।१३३ रण (नि) १६१४६६१ रविकर (रनिकर) ३।१०९ मू १९२२११२. १३ त) न ७२७,३० पियर (जनिकर) ज ३।११७ १७५ (नि) ४११० रणियर ( रजनिकर) ज २११५;३।११७ री (रनि २६, १२५,१३३,१४८ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणी-रहवर १०२५ रयणी (रजनी) ज २१२८,१३३,३११८५,७१२० ७.११२१४,२०६ सू१०११२६।४;२०१७ सू१०।८८३ उ ३३४८,५०,५५,६३,६७,७०, उ १२५ ७३,१०६,११८ रसओ (रसतग) प १५ से १२८।२६,३२,६६ रयणुच्चय (रलोचय) सू श१ रसचरिम (रराचरम) प १०५०,५१ रयणोच्चय (रत्नोच्चय) ज ४।२६०११ रसणाम (सना मन्) प २३३३८,४६ रयत्ताण (रजस्त्राण) ज ४।१३ सू २०१७ रसतो ( सतस्) प १६,८,६१११५८,२८।८,२०, रयमत्त (रतमत्त) ज २।१२ रयय (रजत) ज ३।१०३,४१२५,१२५,१४६; रसदेवी (रसदेवी) उ ४२११ १६२।१,२३८,२५.५:५१५,६२,७१७८ रसपज्जव (रसपर्यव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, रययकूड (रजतकूट) ज ४।१६४,२३६ १३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ रययखंड (रजलखण्ड) ११७४ रसपरिणाम (रसपरिणा) प १३।२१,२८ रययवालुया (रजतवालुका) ज ४१३ रसभेय ( द) प ११४८१५ रययामय (रजतमय) ज ११२३।१२,८८,४३, रसमंत (समवत्) प १११५२,५७,२८१५,५१ १३,२५,६४,८८,२०३:५११८७४१७८ रसमेह (रमध) ज २१४५ रसविण्णाणावरण (सज्ञान व गा) १२३।१३ रव (रक) २।३०,६१,४१,४६ ज ११४५, २०६५ रसादेस (सादेश) प ११२०,२३,२६,२६,४८ ३१२२,३६,७८,८३,६३,६६,१६३,१८०,१५३, रसावरण (२सावरण) ५ २३.१३ १८५,१८७,२०४,२०६,२१३,२१६,५१,५, रसिदिघत (सेन्द्रियत्व) प ३४१२० ६,२२,२६,४४,४६,४७,५६,६७,७१५५,५८, रसिय (: सित) ज ३।३५:५।२२ से २४,२६ १७८,१८४ सू १८.२३; १९४२३,२६ रसोदय (सोदक) १ ११२३ उ १२१२१,१२२,१२५,१२६,१३३,१३४,१३८% रस्सि (नि) ज ३१३,१८८ ३११११:४११८:५1१६ रह (रथ) ज ११२६,२।१२,३३,६५,१३४;३।३, रवभूय (रवभूत) ज ३११०६ १५,१७,२१ से २३,२८,३१,३६,३७,४१,४५, रवि (रवि) ज २११५३१३,३०७/१२७।१,१६७ ४६,७७,७८,६१,६८,१०६,१३१,१३५,१७३, सू१०७७,१६।८।२२२।३ १७५,१७७ से १७६,१६६,२२१:५१५७ रविकिरण (रविकिरण) ज २०१५ उ १.१४,१५,२१,२२,१२१,१२६,१३३,१३६ रस (रस) प ११४ से ६३।१८२,५५,७,१०,१२, से १३८,४११५;५१८ १४,१६,१८,२०,२४,२८,३०,३२,३४, ३७.३६, रहवक्कवाल (रथचक्रवाल) प ३६।८१ ज १७ ४१,४५,५३,५६,५६,६१,६३,६८,७१,७४, ११६२१६८१७१.७०, सू ११४ ७६,७८.८३,८६,८६,६१,६३,६७,१०१,१०४, रहन्छाया (स्थच्छ।या) १६५४७ १०७.१०६,१११,११५,११६,१२६,१३८, रहनेउरचकवाल (स्थनूपुरचक्रवाल) ज ११२६ १५०,१५२,१५४,१६०,२०५,२०७,२११. रहपह (रथाथ) ज २११३४ २१४,२२८,२४२,२४४;१०॥५३११:११:५७, रहमुसल (रथमुसल) उ १:१४,१५,२१,२२,२५, ५८,१५॥३८,१७११४।१,२३११५,१६,१९, २६,१३६,१३७,१४० २०,१०८:२८१२०,३२.६६,३६१८०,८१ रहरेणु (रथरेणु) ज २१६ ज २।१८,४५,१४२,३८२,१८७,२१८% रहवर (रथवर) ज २११५,३।२२.३६,४४ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२६ रहसि र-रायहंस रहसिर (रशिरस्) ज ३।१३१,१३५ रहस्स (रहस्य ) उ ३।११ रहस्सियग (राहसिक) उ११४६ रहस्सियय (राहसिक) उ ११४४ रहस्सीकर (रहस्यीकृ) रहस्सीकरेसि उ ११३६ रहिय (रहित) ए३२१६।१,३५३१२ ज २११५, १३३ सु २०६६ रहोकम्म (रहःकर्मन्) ज २१७१ राई (रात्रि) ज २११५,३।११७,७१२६ से ३०, १२०,१२१ च ५२ सू १९३२।१,३, १६.११.१ राइ (राजन) उ ५.१० राइंदिय (रात्रिदिव) प ६३०; १८।३३,५१; २३११६२ ज २१४६,५२,५६,१५६.१६१ ७.२७,३०,१५८,१६१से १६७ सू ११११, १४,२२ से २४,२७, २॥३,६।१८।१ १०।१६६ से १६६१२२ से ६,१३,१५; १५:३२,३४,३७ उ १५३,७८ राइदियग्ग (रात्रिंदिवान) सू ११११,१२।२ से ६, से २६,३१ से ३४,३६ से ४२,४४ से ५०,५२ से ५.६,६१ मे ६७,६६ से ७४,७६,८३,८८, ६० से ६४,९६,६६ से १०१,१०६ से १०६, ११५ से १२०,१२१११,१२२ से १२५; १२६६१,१२७,१२८,१३१ से १३४,१३५११, १३७ से १३६,१४१,१४३,१४५ से १४७. १५० से १५४,१५७ से १६०,१६३ से १६७, १७०,१७३,१७५.१७७,१८१ से १८३,१८५ से १६२,१६८,१६६,२०१,२०२,२०४ से २१२,२१४,२१५,२१८,२१६,२२१ से २२३; ४।१७७,१८१,२००:५१५,७ चं ८ सू ११३,४ उ ११० से १२,१४,१५,२१,२२,२५,२६,२६ से ३२,३४,३६ से ४४,४६,४९,५७,५८,६१, ६२,६५,६६,६८ से ७४,८२,८३,८६ से १६, १८ से ११६,१२१,१२७,१२६ से १४५; २।४,५,१६,१७,३१४,१५ से १८,२१,२४,८६, १५५,१६८,४१४,६:५६,११ से १३,२५,३० रायकुल (राजकुल) उ १११११,११२:५१४३ रायगिह (राजगह) प १६३।१ उ १६१,२,२८,२६, ९३,३३४,२१,२४,८६,१५५,१६८,४४,६,७, राइण्ण (राजन्य) प ११९५ ज १६५ राईसर (राजेश्वर) ज ३१६,७७,८६,१७८,१८६, १८८,२०६,२१०,२१६,२१६,२२१,२२२ उ ३।११,१०१:५।१०,१७,३६ । राग (सग) प २१४१,१७१११६; २३१६ ज २१२६, ३७,३५,१८४,१८८ ९ १३१२ राति (रात्रि) सू १६१३,१४,१६,२१,२२,२४,२७, २१३; ३१२,४।८,६६।१८।१६।२; १०५, ८८३ रातिदिय (रात्रिदिव) १४।७२,७४,७६,७८,९८, १००,६।११,२६,३१ से ३४,१८१२२ रातोतिहि (रात्रितिथि) मू १०।८६,६१ राम (राम) १६३६ रामकण्ह (गमकृष्ण) उ ११७ राय (राजन) प १६।४१ ज ११३,२६,२।१६,२५, ६३:३।२ से ७,६ से १३,१५,१७ से २४,२६ रायग्गल (राजार्गल) र २०१८,२०1८६ रायत (राजत) ज ३।११७ रायतेय (राजतेजस्) ज ३.१८,६३,१८०,१८७ रायधम्म (राजधर्म) ज २११२६,१५८ रायपवर (राजप्रवर) ज ३१६५,६६,१५६ रायप्पसेणइज्ज (राजप्रतीय) ज ४।११५,५५३२ रायबहुल (राजबहुल) ज ११८ रायमग (राजमार्ग) ज २६५ रायलच्छी (राजलक्ष्मी) ज ३१११७ रायवण्णय (राजवर्णक) ज १२२६;३३३ रायवर (राजवर) ज ३९२,३६,६३,६६,१०६, १६३,१७५,१७८,१८०,१८८,२१६,२२४ रायवल्ली (राजवल्ली)११४८१४ रायसरिस (राजसदृश) उ १११३८ रायहंस (राजहंस)पश७६ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रायहाणी-रुहिर १०२७ रायहाणी (राजधानी) प ११७४ ज १११६,४५, ७१७८ ४६,५१, २।२२,६५, ३१,२,७,८,१४,१७२. द (दे०) ज ७४३२१ १७३,१८०,१८२ से १८५,१६१,१६२,२०४, रुक्ख (रूक्ष) प १।३३।१,११३४,३६,४७१; २०८,२०६,२१२,२२०,२२१,२२४;४।५२, १७।१११ ज १२०,३१,१३१,१४४ से १४६) ५३,६०,८४,६६,१०६,११४ से ११७,१५६, ३१३२,१०६,१२६ उ ५।५ १६०,१६३ से १६५,१७४,१७५,१७७ १८०, रुक्खगहालय (रूक्षगेहालय) ज २।१६,२१ १८१,१६२,२००,२०२,२०४,२०६,२०७, रुक्खमूल (रूक्षमूल) प ११४८६१ ज १८,६ २०८,२१०,२१२,२२६ से २३३,२३७ से रुक्खबहुल (रूक्षबहुल) ज २१८ २३६,२६३,२६६,२६६.२७२,२७५,५१५०; रुक्खमूलिय (रूक्षमूलिक) उ ३३५० ६.१६,७१८४,१८५ उ ३३१०१ रु (रुष्ट) ज ३।२६,३६,४७,१०७,१०६,१३३ रायाभिसेय (राज्याभिषेक) ज १८५,३११८८, उ ११२२,१४० २०६,२१२,२१४ उ ११६५,६८,७२ रुद्द (रुद्र) ज ७१३०,१८६।३ रायारिह (राजाह) ज ३१८१ रुद्ददेवया (रुद्रदेवता) सु १०।८३ रालग (रालक) प ११४५१२ ज २।३७,३।११६ रुप्प (रूप्य) प ११२०१ ज ३.१६७/८ उ ३।४० दक्षिण भारत के जंगलों में मिलने वाला एक रुप्पकला (रूप्यकला) ज ४१२६८,२६६।१,२७२, सदावहार पेड़ ६२० राव (रावय्) राति ज ५।५७ रुप्पपट्ट (रूप्यपट्ट) ज ४।२६,२७० रावेत (रावयत्) ज ३११७८ रुप्पमणिमय (रूप्यमणिमय) ज ५१५५ रासि (राशि) प २१६४११६,१२१३२१७४१२६ रुप्पमय (रूप्यमय) ज ४२६,५१५५ राहु (राहु) प २।४८ सू २०१२,८,२०1८।४ रुप्पामय (रूप्यमय) ज ३।२०६४।२७० राहुकम्म (राहुकर्म) सू २०१२ रुप्पि (रुक्मिन्) प १६॥३० ज ४।२६५,२६८, राहुदेव (राहुदेव) सू २०१२ २६६१,२७०,२७१ सू २०१८,२०८१३ राहुविमाण (राहुविमान) सू १६।२२३१७२०१२ । रुप्पिणी (रुक्मिणी) उ ५।१० रिउम्य (ऋजुर्वेद) उ ३१२८ रुप्पोभास (रूप्यावभास) सू २०१८ रिक्ख (ऋक्ष) ज ३१६,१७,२१,३४,१७७,२२२ रुयग (रुचक) प २१३१ ज ११२३,२।१५,३।३२; सू ११३७, १६।२२२६ ४११,६२,८६,२३८; १८ से १७ सू १९३५ रिगिसिगि (दे०) ज ३।३१ वाद्य विशेष रुयगकूड (रुचककूट) ज ४१६६,२३६ रिठ्ठ (रिष्ट) ज ३१६२,५।५,७,२१ रुयगवर (रुचकवर) सू १९३५ रिठ्ठपुरा (रिष्टपुरा) ज ४१२००१ रुयगवरोद (रुचकवरोद) म १९३५ रिट्ठा (रिष्टा) ज ४१२००१ रुयगवरोभास (रुचकवरावभास) सू १६।३५ रिट्ठामय (रिष्टमय) ज ४।७,२६ रुयय (रुचक) ११।२०।३ सू' १६३२ से ३४ रिद्ध (ऋद्ध) ज श२,२६,३।१ च ६ सु १११ रुरु (रुरु) प ११४८१२ ज ११३७,२६३५,१०१, उ ११,६,२८,३३१५७,५।२४ ४२७५२८ रिसह (नाभ) ज ७/१२२।३ सु १०1८४१३ रुहिर (रुधिर) प १२० से २७ ज ३१३१ रुइल (रुचिर) प २।४८ ज २११५:३।३५:४।४६ उ ११४४ से ४६ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२८ रुहि रकम-रोहियंसा रुहिरकद्दम (रुधिरकर्दम) उ ११३६ रेवयग (रेवतक) उ ५१६ रुहिरबिंदु (रुधिर विन्दु) ज ७:१३३१२ रोइंदग (ोविन्दक) ज ५१५७ रुहिरबिंदुसंठिय (रुधिरबिन्दुसंस्थित) सू १०।३६ रोग (रो:) ज २१४३,१३१ उ १३५,११२ रूत (रूत) ज ४।१३ सू २०१७ रोगबहुल ( बहुल) ज १११८ रूयंता (रूपांशा) ज ५११३ रोज्झ (दे०) प१६६४ रूयगावई (रूपकावती) ज ५११३ रोद्द (रौद्र) ज ७।१२२।१,१२६ १०१८४।१ ख्या (रूपा) ज ५।१३ रोग (रोमन्) १११८६ ज २१५,१३३ रूव (रूप) ११॥२५,३३।१:१२।३२,१५।३७, रोमक (रोम) ज ३१८१ ४१:२२।१७,८०; २३।१५,१६,१६,२०, रोमकूद (रोगका) ज २२१ ३४।१,२,३४।२० से २२ ज २।१५,१३३; रोमग ( क) र ११८६ ३१३,६,७६,८२,१०३,१०६,११६,११७,११६, रोमराइ (रोमराजि) ज २११५ १३८,१७८,१८६,१८७,२०४,२१८,२२२; रोय (रुच) रोएइ १११०११२ रोएज्जा ४।२७,४६,५१२८,४१,४३,५७,६८,७० २०११७१८,२४ सेयर : १।१०११५ सू २०१७ उ ३।१२७,५१२५ रोय (रोचय) रोएमि उ ३३१०३ रूवग (रूपक) ज ४१२७,५२८,७११७८ रोय (रोग) उ ३।१२८ रूवपरियारग (रूपपरिचारक) प ३४५१८,२२,२५ रोयणागिरि (ोवनगिरि) : ४३२२५३१,२३३ रूवपरियारणा (रूपपरिचारणा) ५३४११७,२२ रोयमाण (रुदत) उ १९२३११३० रूवविसिठ्या (रूपविशिष्टता) प २३१२१ रोख्य (रोहक,नैः) २२७ रूवविहीणया (रूपविहीनता) प२३१२२ रोबाव (रोय) शेवग्वेइ उ ३१४८ रोजावित्तए (योगनितुम्) उ ३१४८ रूबसच्च (रूपसत्य) ११.३३ रोवाविय (रोहित) उ ३१५०,५५ रूवि (रूपिन ) प ११२.४,६ ; ५:१२३.१२५,१४४ रोह (रुह) रोहति ज ३७६,११६ सू १३११७ रोहिणिय (रोहिणीक): १५० रूवी (रूपिका) पश३७४१ सफेद आक का वृक्ष रूसमाण (रुष्यत्) उ ३।१३० रोहिणी (रोहिणी) ज ७११३।१,१२८,१२६, रेणु (रेणु) ज २१६,६५,१३१:५७ १३४१३,१३५३,१३६,१४०,१४५,१४६,१६० रेणु बहुल (रेणुवहुल) ज २।१३२ सू १०.२ ६.१२,२३,३७,६२.६७,७५,८३, रेणया (रेणकः) पश४८.५ रेणका, संभाल के बीज १०२,१२०,१३१ से १३३ रेरिज्जमाण (र: राज्यमान) उ ३।४६ रोहियंस (रोहितांज) १६८२१ एक प्रकार का रेवई (रेवती) ज ७१११३११,१२८,१२६,१३६, तण १४०,१४३,१४६,१५८ सू १०.१ उ ५।१२, रोहियं तकूड (रोहिताशकूट) ज ४१४४ रोहियं सदीर (रोहितांशही ) अ ४१४१ रेवतय (रैक्तक) उ ५।५ रोहियं सप्पयायकुंड (रोहितांशाप्रपात कुण्ड) रेवती (रेवती) सू १०।२ से ६,१०,२२,२३,३३, ज ४।४० से ४२ ६१,६५,७५,८३,९८,१२०,१३१ से १३३; रोहियंसा (रोहितांशा) ४।३८ मे ४०,४२,४३, १२।२२ ५७,१८२,२७०६।२० Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६।२० रोहियकूड-लयाबहुल १०२६ रोहियकूड (रोहितकूट) ज ४७९ लक्खणसंवच्छर (लक्षणसंवत्सर) ज ७१०३,११२ रोहियदीव (रोहितद्वी7) ज ४१६८,६६ सू १०११२५,१२६ रोहियप्पवायकुंड (रोहितप्रातकुंड) ज ४१६७,६८, । लक्खणसहस्सधारक (लक्षणसहस्रधारक) ज ३।१२६।१ रोहियमच्छ (रोहितमत्स्य) ? ११५६ लक्खारस (नाक्षारस) प १७११२६ रोहिया (रोहिता) ज ४१६५ से ६७,७१,७२,२६८; लख (लक्ष) ज ३।३१ लच्छिकड़ (लक्ष्मीकूट) ज ४।२७५ रोहीडय (रोहितक) उ ५।२४ से २६ लच्छिमई (लक्ष्मीमती) जह? लच्छी (लक्ष्मी ) ज ३११८,६३,१८० उ ४१२११ लज्जिय (लज्जित) ज २१६० उ०५८,८३ लउड (लकुट) ज ३१११ लठ्ठ (लष्ट) ज ११३७,२।१५, ३१६,३५,११७, लउय (नकुच) प ११३६।३ २२२,४।१२८,२४३,७११७८ लउल (लकुट) ज ३११७८ लउस (लकुश) प ८६ लठ्ठदंत (लष्टदंत) १८६ लउसिया (कुशिकी) ज ३११११२ लठ्ठि (यष्टि) ज २०१५ लेख (लख) ज २१६४,३।१८५ लग्गिाह (यष्टिग्राह) ज ३११७८ लंघण (लङ्घन) ज ३३१०६,१७८; १५,७१७८ ।। लडह (दे०) ज २०१५ लंतग (लान्तक) २१४६.५५,६३, ६।३२,५६, लव्ह (श्लक्षण) ५२१३०,३१,४१,४६,५६.६३,६४ ६५:७।१३,१५३८८,२११७०३३।१६,३४।१६, ज १८,२३,३१,४११ १८ ज ५४६ लता (लता) प ११३३१ लंतगवडेंसय (लान्तकावतंसक) २५५ लद्ध (लब्ध) ज ३१२६,३६,४७,१०३,११७,१२२, लंतय (लान्तक) र १११३५२२५५,५६, ३।३४, १२६,१३३,१८५,२०६ उ १११७.५७,८२,६६, १८३; ४१२४६ से २४८; २०१६१; २८१८० १०७,१२७,३।१३,२६,३८,८५,१२२.१४७. उ २१२२ १६०४।११,२५,५११५,२३,३१,३८,४२ लंबिय (लम्बित) ज ७१७८ लट्ठ (लब्धार्थ) सू २०१७ लंबूसग (लम्सा ) ज ५१३८,६७ लद्धि (लब्धि) प ११४६:१५१५८1१,१५१६२ लंभ (लभ) लभंनिज ३१३५ लिब्भ (लभ) लभइ ज ७१४३ लंभणमच्छ (लम्भनम स्य) प ११५६ लिभ (लम्) लभइ ज ७।१५१ लभति गु १०।५ लक्ख (लक्ष) १८११ ज ३।१०३ लभज्जा प २०१७,१८,२२२५,२८,२९,३४, लक्खण (लक्षण) २४८५५,२६४११२ ३८,३६,४१ से ४३,४५,४६ से ५२,५४,५५, ज २११४,१५,१६,३१३,३५,७७,१०६,१३८, १६७।१२,७११७८ च २।४ सू ११६:४१६॥२, लय (लता) ७१७८ ४,६ उ ११३४ लया (लता) प ११३६ ज २।११,६७,१३१,१४४ लक्खणधर (लक्षणधर) ज २१५ मे १४६,३।१०६ उ ११२३,५१५ लक्खणधारि (लक्षणधारिन् ) ज २११५ लयाबहुल (लताबहुल) ज १११८ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लयावण्ण-लूहेता लयावण्ण (लतावर्ग) ज २६११ लाउयवण्णाभ (अलाबुकवर्णाभ) सू २०१२ लिल (लल,लड्) ललंति ज १११३,३०,३२, २७ लाघव (लाधव) ज २७१ ललंत (ललत्) ज ३११७८,७११७८ लाढ (लाढ) प ११६३३५ ललाड (ललाट) ज ७११७८ लाभ (ला) ज ३११७८,७।१७८ ललित (ललित) ज ३१९,२२ लाभंतराय (लाभान्तराय) प २३१२३ ललिय (ललित) ज ३१६,१७८,२२२,७११७८ लाभत्थिय (लाभार्थिक) ज ३।१८५ ललियबाहा ('ललितबाहु) ज २११५ लाभविसिठ्ठया (लाभविशिष्टता) प २३१२१ लव (लव) २२४१२,२१६६७७११२१५ सू ८।१; लाभविहीणया (लाभविहीनता) प २३।२२ १०।१२६५ लायण्णत्त (लावण्यत्व) प ३४१२० लिव (लप) लवति सू २०११ लाला (लाल!) ज ७१७८ लबंगरुक्ख (लवङ्गरूक्ष) प ११४३३२ लालाविस (लालाविष) प ११७० लवण (लवण) प १५२५५१ ज ६११,२,४,७४, लावग (लाक्क) प १७६ ३२।१,६३,८७ मू ८.१,१६३२,३,५, लावणग (लावणिक) म १९४२२१२३ १६३२२।२३ लावण्ण (लावध) प २३११६,२० ज २१५, लवणजल (लवणजल) सू १९।५।३ श६८,७० उ ३३१२७ लवणतोय (लवणतोय) सू १६१५१२:१६४२२१२४ लास (लासय) लासेंति ज ५१५७ लवणसमह (लवणसमुद्र) ५ १५१५५ १६॥३० लासग (लासक) ज २१३२ ज १११६,१८,२०,२३,३५.४८,४६, ३.१,२२, लासिया (लासिका,ल्हासिका) ज ३११११२ २८,३६,४१,४४,४६ ; ४११,३५,३७,४२,४५, लिक्खा (लिक्षा) ज २१६,४० ५५,६२,७१.७७,८१.८६,६०,६४,६८,२००, लित्त (लिप्त) प २१२० से २७ २०१,२६२,२६५,२७१,२७४,६३,५,१६ से लिवि (लिपि) प ११६८ २६,७।३१,३३,८७ सू श२२,४१४,७, ८.१; लिहिय (लिखित) ज ७/१७८ १६१३ से ६ लीला (लीला) ज ५१३,२८ लवणोदधि (लवणोदधि) सू १९५१ लुक्ख (रूक्ष) प १४ से ६; १५,७,१२६,१५२, लवणोदय (लवणोदक) प ११२३ १५४,२११,२१८,२२१,२२६,२४४,११५६ लह (लघु) ज ३२३५,४८,४६७।१७८ से ६१:१३।२२।२,१३१२२,२६,१७११३८%; लहुपरक्कम (लघुपराक्रम) ज ५१४८,४६ २३।५०; २८१६ से ११,२०,३२,५५ से ५७,६६ लहुभूय (लघुभूत) ज २२७० लुक्खत्तण (रूक्षत्व) प १३१२२११ लहुय (लघुक) प ११४ से ६,३११८२; ५१५,७, लुक्खया (रूक्षता) प १३।२२११ ज २११३१ २०६१५३१५ से १७,२८,३२,३३,२८।२६, लुद्धग (लुब्धक) उ ३६८ लूह (मृज्,रूक्षय्) लू हेइ ज ५१५८ लूहेति लहुयत्त (लघुकत्व) ५ १५१४४,४५ ज ३१२११ लाइय (दे०) प २।३०,३१,४१ ज ११३७,३।७,१८४ लूहिय (मृष्ट,रूक्षित) ज ३।६,२२२ लाउय (अलाबुक) ज ३१११६ लहेत्ता (मृष्ट्वा,मार्जयित्वा, रूक्षयित्वा) ज ३१२११; १. टीका में 'ललिनो बाहु' है। Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेक्ख-लोभसमुग्धात १०३१ लेक्ख (लेख्य) १६८ ५८ से ६१.६३,१०।२,३,५,१२१७,१०,२०; लेच्छइ (लिच्छवि,च्छवि) उ १११२७ से १३०, १५६११२,१५१४३,४५,५६:१६१३४,१८१३, २६,२७,३७,३८, ३६७६,८१,८५ ज २।६५, लेछु (लेष्टु) ज २१७०,७१, ३।३५,६५ ७१;३।३५,६५,१५६,१६७,४१२६०।१ लेप्पार (लेप्यकार) प १६७ सू १६२२ लेस (लिश) लेभेलिप ३६१६२ लोगंत (लोकान्त) ५२२६४२१११३०,२११८४,८६, लेसणया (श्लेषण) ५ १६१५३ ८६ ज ७।१,६८,१६८।१,१७२ लेसा (लेश्या) १११५१३०,३१,४६,३३११ लोगणाली (लोकनाली, लोकनाडी) प ३३११८ १७।४३ से ४५,४७,६६,६७,११४,१४७,१५६ लोगणाह (लोकनाथ) ज ५१५,२१,४६ से १५८,१६१,१७२ च २२ ज ३१६५,१५६, लोगपईव (गोकप्रदीर) ज ५२१ २२३,७।३८,५८ स् ११६।२,१७११६।१ से लोगपज्जोयगर (लोकप्रद्योतकर) ज ५१२१ ३,१६३२६,२०१२,३ लोगपाल (लोकपाल) प २१३० से ३३,३५,४६ से लेसागति (लेश्यागति) ५ १६।३८ ५१ ज ६०,११८,११६:५।१६,५०,५६ लेसापडियाय (लेश्याप्रतिघात) ज ७१३८ लोगमज्झ (लोकमध्य) ज ४२६० लेसापरिणाम (लेश्यापरिणाम) प १३१२ लोगमज्यावसाणिय (लोकमध्यावसानिक) ज ५१५७ लेसाहिताव (लेश्याभिताप) ज ७१३८ लोगसष्णा (लोकसंज्ञा)प ८.१,२ लेसुद्देस (लेसोद्देश) सू ६२ लोगहिय (लोकहित) ज ५२२१ लेस्सा (लेश्या) २६४१;१६१५.०,१७११११,१७१७, लोगागास (लोकाकाश) प ११४८१५८% २०१० १७,१८,३०,३६ से ४१,८८,६७,११४,१२६, लोगाधिवति (लोकाधिपति) प २५०,५१ १३६,१३७,१४७,१५६,१५७,१५६,१६० से लोगालोग (लोकालोक) प १०१५ १६३,१८५१११२८।१०६१ लोगाहिवइ (लोकाधिपति) ज २१६१५१८,४८ लोगुत्तम (लोकोत्तम) ज ५॥५.२१,४६ लेस्सागति (लेश्यागति) व १६।४६ लेस्साणुवायगति (लेमानुपातगति) प १६:३८,५० लोण (लवण) प ११२०११ लेस्सापरिणाम (लेश्यापरिणाम) प १३६,१४,१६, लोद्ध (लोध्र) प ११३६१३ १८ से २० लोभ (लोभ) प १११३४।११४।४,६,८,१० से लेह (लेख) ज २६४ उ ११११५.११६ १५,१७, २२।२०,२३३६,३५,१८४ ज २११६, लेहठ (रेखास्थ) ज ७१५८,१६१,१६४,१६७ १३३ उ ३१३४ __ सू १०१६५,६८,७१,७४ लोभकसाई (लोभकषागिन) 4 ३११८१३।१४; लोअण (लोचन) ज २२१५ १८६६,२८१३३ लोइय (लौकिक) ज ७११४ सू१०।१२४ लोभकसाय (लोभकषाय) ५ १४१,२,३६१४६ उ ११६२ लोभकसायपरिणाम (लोभकषायपरिणाम) प १३१५ लोउत्तरिय (लोकोत्तरिक) ज ७.११४ सू १०११२४ लोभणिस्सिया (लोभनिश्रिता) प १११३४ लोक (लोक) ज ३११०६,१६७ लोभसंजलणा (लोभसंज्वलना) २३७२,१४० लोग (लोक) प ११४८१६०:२११०,१६,३०,३२. लोभसण्णा (लोभसंज्ञा) प ८१,२ ३४,३५,३७,३६,४१ से ४३,४८,५० से ५२, लोभसमुग्धात (लोभसमुद्घात) प ३६१४७ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३२ लोभसमुग्घाय-वइर(वासा) लोभसमुग्धाय (लोमस मुद्यात) प ३६.४२,४४ से लोहित (लोहित) प ५१२०५ सू २०१२ लोहितक्ख (लोहिताक्ष) ज७।१८६१ सू २०१८ लोम (लोमन) १ २०२० से २७ ज ३१३,१०६; लोहिय (लोहित) प ११४ से ६५1५,७,१११५३; ७.१७८ १७.१२६; २३।१०३:२८।३२,६६ ज ४।२६ लोमपक्खि (जोमपक्षिन् ) प ११७७,७६ सू २०१२ लोमहत्थ (लामहस्त) ज ३८८ लोहियक्ख (लोहिताक्ष) ११२०१३,२१३१,३२ लोमहत्यम (लोमहस्तक) ज ३.१२ ज ४११०६,५।५ सू २०१८।१ लोमहत्यगपटलहत्यगय (हस्तगत लोमहातकपटत) लोहियक्खकूड (लोहिताक्षकूट) ज ४।१०५ ज ३।११ लोहियक्खमणि (लोहिताक्षमणि) प १७:१२६ लोमाहार (लोमाहार) प २८।१।२,२८१४०,६६, लोहियक्खमय (लोहिताक्षम4) ज ४१२६ १०२,१०३ लोहियक्खामय (लोहिताक्षमय) ज ३।३० लोमाहारत्त (लोमाहारत्व) प २८16०,६६ लोहियपत्त (लोहितपत्र) प १३५१ लोय (लोक) १४४८१५८,५६,२१ से ३१,४६, लोहियमत्तिया (लोहितमृत्तिका) प ११६ ४६;३३।१३ सू २।१।१६।१,२१ उ ३६१३ लोहियसुत्तय (लोहितसूत्रक) प १७।११६ लोय (लोच) ज २१६५, ३१२२४ उ ३३११३ ल्हसणकंद (लगुनकन्द) प ११४८१४३ लोयंत (लोकान्त) प २६४११०,११६७२ सू २०१० ल्हसिय (तहासिक,लासिक) प ११८६ १८।६ लोयग्ग (लोकाग्र) प श६४,२१६४।३ लोयग्गथूमिया (लोकास्तूपिक:) प २६४ व (वा) प ११०१।६ ज ३१११३ – २११ सू १६ लोयग्गपडि बुज्झणा (लोक अप्रतिबोधना) ५ २०६४ वई (वाच) प १६६१,७:२३।१५,१६ ज २१६८ लोयण (कोन) ज ७:१७८ वइउल (दे० व्याल) प १७१ लोयणाभि (लोकनाभि) सू ५१ वइगुत्त (वारगुप्त) ज २१६८ लोयमज्झ (ोकमध्य) सू ५११ वइजोग (वाम्योग) प २का१३८,३६।८६,८८,६०, लोयाणों (दे०) प ११४८१६ ६२ लोल (लोल) ज २०१२ वइजोगपरिणाम (वाम्भोगपरिणाम) प १३१७ लोह (लोभ) ज २१६६ वइजोगि (सम्बोगिन) प ३९६:१३।१४,१८१५६; लोह (लोह) ज ३।३,३५,१६७८ २८।१३८ लोहकडाह (लोहाटाह) उ ३१५०,५५ वइत्ता (वदित्वा) ज २३ लोहकसाइ (लोभकपायिन) प ३९८ वइयरिय (व्यतिचरित) सु २०१२ लोहदंडग (लोहृदण्डक) ज ३.१०६ वइयोगि (वाग्योगिन्) प १३३१७ लोहबद्ध (नोहवर्ध) ज ३।३:: वहर (वन) ५ ११२०६१ ; २३३० ज ३।१२,१८, लोहयक्खमय (लोहिताक्षम।) ज ४।१३ २४,३५,८८,१०६,१८४,२१६४१३,२५,४६, लोहि (लोह) प ११४८।१ सफेद सुहागा ६७,२३८,२५४,५।५,१३,२८,५८,७११७८ लोहिच्च (लौहित्य) ज ७१३३।२ वइरउसह (वज्रऋषभ) ज ३१३ लोहिच्चायण (लोहित्यामग) सू१०।१०४ वइरकूड (वज्रकूट) ज ४।२३६ १. लोचनी-बड़ी गोरखमुण्डी। बइर (वासा) ( व र्षा ) ज ५१५७ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वइरवेइया-वग्ग १०३३ वहरवेइया (वज्रवेदिका) ज ११३७,४१२७,५२८ वइरसारमइया (बज्रसारमतिका) ज ३८८ वइरसेणा (वज्रसेना ) ज ४।२३८ वइराड (वैराट) प ११६३४ वइरामय (वज्र मय) ज १७,८,११,२४,२।१२०; ३१३०,४१३,७,१३,१५,२४ से २६,२६,३१, ३६,६६,६८,७४,६१,६३,१२८,१४६ ५।३८, ४३,७।१७८,१८५ सू १८।२३ वइरोयणराय (वैरोचनराज) प २३३ ज २१११३ वहरोयणिद (वरोचनेन्द्र) प॥३३ ज २१११३ वइरोसभणाराय (वज ऋषभनाराच) प २३।४५, ६४ ज २४६ वइसमिय (वाक्समित)ज १६८ बइसाह (वैशाख) ज ३१२४;७।१०४,१४६,१५५ सू १०११२४ उ ११२२,१४०,३१४० बइसाही (वैशाखी) ज ७।१३७ सू १०१७,१७,२३, २६ वइस्सदेव (वैश्वदेव) उ ३१५१,५६.६४ वउ (वाच्) प १११५,८,२१ से २६ वंक (वक्रयङ्क) ज २।१३३ वंकगति (वङ्कगति, वक्रगति) प १६१३८,५३ बंग (वन) प ११६३।१ ज २०१५ बंजण (व्य ञ्जन) ज २११४ सू २०१७ वंजणोग्गह (पञ्जनावग्रह) प १५५८१२, १५॥६८,६६,७१ से ७३,७५ वंजुलग (वजुलक) प ११७६ वंझा (वन्ध्या) उ ३६७,१३१ वंत (वान्त) प १८४ सू २०१२ विंद (वन्द्) बंदइ ज ११६२।६०, २१,६५ उ१३१६३८१,४।१३, ५१२० वंदंति उ ४११६,५१३६ वदामि प ११११ ज ५।२१ सू २०६६ उ ११७ वंदिज्जा उ ५१३६ वंदीहामि उ ३१२६ वंदेज्ज ज २१६७ वंद (बन्द) ज ३१२२,३६,७८ उ १३१६ वंदण (बन्दन) उ १११७ वदणकलस (वन्दनकलश) ज ३७,८७,५।५५ वंदणकलसहत्यगय (हस्तगतवन्दनकलश) ज ३।११ वंदणवत्तिय (वन्दनप्रत्यय) ज ५२७ बंदणिज्ज (वन्दनीय) सू १८.२३ वंदिऊण (वन्दित्वा) चं ११४ वंदित्ता (वन्दित्वा) ज ११६ उ १११६,३।८१; ४१४:५४२० वंदिया (वन्दिका) उ४।११ वंस (वंश) ११४१०२ वास वस (वश) १११७५ ज २।१२४,१५२,३१३१, १०६ उ ५१४३ वंसमूल (वंशमूल) ५११४८८ वंसी (वंशी) प ११४७ बंसीपत्त (वंशीपत्र) प ६।२६ वंसीमुह (वंशीमुख) प ११४६ वक्कंत (अवक्रान्त) प ११४८.५३ ज २८५ वक्कंति (अबक्रान्ति) प १११४ बिक्कम (अव--ऋम्) वक्कमइ ५ ११४८१५१ वक्कमति प ११२०,२३,२६,२६,४८६२६ वक्कमति म १६॥२२॥१६ बक्कल (वल्कल) उ ३।५१११ बकवासि (वल्लवासिन्) उ ३१५० वक्ख (वक्षस्) ज २११५ वक्खार (वक्षस्कार) १ २१११५५५२ ज ४१२१२: ६.१० वक्खारकूड (वक्षस्कारकूट) ज ४।२०२, ६.११ वक्खारपव्वय (वक्षस्कारपर्वत) ज ४१६४,१०३ से १०८,१४३,१६२,१६३,१६६,१६७,१६६, १७२ से १७४,१७६,१७८ से १८१,१८४, १८५.१६०,१६१,१६६,१६७,१६६,२००, २०२ से २०५,२०८ से २१२,२१५,२६२, ५.५५;६१० वग (वृक) प११२१ ज २।१३६ वगी (वकी) ५१११२३ वग्ग (वर्ग) प २।६४११५,१६,१२११०,३२,३६, ३७ उ २५ से ८3११,३११,२,४।१,३:५।१, Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्ग-वट्टमाण ११७ १२६१६:३२,१७१५८२०५६ से ५८; विग्ग (कल्प) वग्गति ज ५१५५ २२१२५,२३।१६१,१६७; २४।१३, २५।३; वग्गण (वल्गन) ज ३।१७८ २६।४२८११२,१२३,१२६,१२७,१२६, वग्गणा (वर्गणा) प १११७२१७१११४११,१४२ १३२,१३३,१३७ से १४१,१४३ ज २१७०, वग्गमूल (वर्गमूल) ॥ १२॥१२,१६,२७,३१,३२,३८ १३१,३।६,४।१७७,२१०,२४०,२४८,५।१३, वग्गु (वल्गु) प २६४।१५ ज २१६४,३११८५, ४६,५११ २०६४१२१२,४१२१२।३ : ५।५८ वज्ज (वाद्य) ज ५२५७ वग्गु (वाच) उ ११४१,४४ वज्जकंदय (बज्रकंदक) व १७११३० वग्गुरा (वागुरा) उ ५।१७ वज्जण (वर्जन) प ११०११३ वग्गुलि (वल्गुलि ) प १७८ वज्जणिज्ज (वर्जनीय) ज २११४६ वग्ध (व्याघ्र) ११६६:१११२१ ज २१३६,१३६ वज्जपाणि (बज्रपाणि) १२५० ज ५।१८,४६,६६ वग्घमुह (माघ्रमुख) प ११८६ वज्जमाण (वाद्यमान) उ १११३८ वग्धारिम (दे०) ज ३1८८ बज्जरिसभणाराय (वज्रऋषभनाराच) ज ११५; वग्धारिय (दे०) प २१३०,३१,४६ ज २१७,८८, २१४६ वज्जरिसहणाराय (वजऋषभनाराच) ज २।१६,८६ वग्धावच्च (व्याघ्रापत्य) ज ७/१३२१४ सु १०।११६ बरिसनाराय (बज्रऋषभनाराच) सु ११५ वग्घी (व्याघ्री) प १११२३ वज्जसंठिय (बज्रसंस्थित) प १११३० विच्च (वच्) वच्चंति ज ७।१३५२,३ वज्जसूलपाणि (वज्रशूलपाणि) ज ५।५७ विच्च (वज्) वच्चइ सू १६ बज्जिऊण (वर्जयित्वा) प १२७।३ वच्छ (वक्षम् ) प १३०,३१,४१,४६ ज ३1३,६, वज्जित्ता (बर्जयित्वा) प २१२२,३२,३४ ज ४।१३४ १,१८,१३,१८०,२२१,२२२:५।२१ ।। वज्जिय (वर्जित) प १०।१४।६ ज ५।५२ सू २०१७ बच्छ (वत्स) प ११६३१४ ज ४/२०१,२०२।१,२४८ वज्जेता (वर्जस्त्विा ) प२।२१,२३ से २७,३०, वच्छगावई (वत्सकावती) ज ४।२०२।१ ३१,३३,३५,३६,४१ से ४३,४६ वच्छमित्ता (वत्समित्रा) ज ४।२०४,२३८,५६ वज्झ (वा) ज ३६२,११६ वच्छल (वत्सल) प ३११२५; १।५,४६ वज्झार (वर्धकार) प ११६७ वच्छल्ल (वात्सल्प) प १।१०१।१४ वज्झियायण (ध्यान) ज ७१३२।४ सू १०१११८ वच्छाणी (वत्सादनी) प ११४०।४ सू १०११२० विट्ट (वृत्) वट्ट ति उ ३।३३ वट्टति प १६१२२ गजपीपल, गुडूची वट्ट (वृत्त) १११४ से ६,११६३।१२।२० से २७, वच्छावई (वत्सावती) ज ४२०२ ३० से ३६,४१ से ४३,१०।१५,२६,३६१५१ वज्ज (वन)५११४८७ वनकंद, कोकिलाक्षवृक्ष, ज १७,३१:२११५:३७,८८,११७,४१३,२५, तालमखाना ६७,११४,१२८,२३४,२४०,२४१:५।५,४३; । बज्ज (वर्जय) बज्जेज्ज प १०११४।४ ७।३१,३३,१६७,१७८ सू१।१४:४१३ से ७; बज्ज (वज्र) ज २०१५ १०७४,१६८२,६,६,१२,१६,२८,३२,३६ वज्ज (वयं ) प २१४०।५,२१५२,६१४६,५६,६६, बट्टग (वर्तक) प११७६ ज ५।१६ ८६,६४,६५,१०२,१०४,१०१३६,१११४१,८०, वट्टगमंस (वर्नकमांस)-१०१२० कमलकंद ८४१२१३,१३।२२।२,१५४९८,११५,१२१, वट्टमाण (वर्तमान) १ २१३१ ज २१७१३।१३८, Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वट्टवेयड्ड-वणस्सई ५१५७ वट्टवेयड्ढ (वृत्तवैताद य) प १६।३० ज ४४२, ५७,५८,६०,७१,७७,८४,२६६,२७२, ५९५५; ६।१० बट्टि (वर्ति) प ११४७।२ वट्टिय (वर्तित) ज २११५,७१७८ वट्टिया (वर्तिका) प ११४७१२ वड (क्ट) ५ ११३६११ उ ३७१ वड (दे०) प ११५६ मत्स्य विशेष वडगर (दे०) प ११५६ मत्स्य विशेष वडभी (वडभी) ज ३।११।१ डिसग (अवतंसक) प २१५४,५८ वडिय (पतित) ज ३।१२५,१२६ वडेंस (अवतंस) ज ४।२२५,२३२,२६०११ व.सग (अवतंसक) प २।५०,५२,५५ से ५६ ज ११४३,३।१७८,१८३;४१५०,१०६,११२, ११६,१५५,१५६,२३७,२३८,२४०,२४३ बडेंसगधर (अवतंसकधर) ज ७१२१३ वडेंसय (अवतंसक) प २५० से ५३,५६ ज ११४२:३११८६,४१४६,५६,१०२,११६, १२०,१४७,२२१ से २२४,२३७,५१,६,१८, ७१८४,१८५ विड्ड (वृध्) वड्डति सू १६१२२।१६,२० वडते म् १९।२२।१४ वड्डिजति प १७६, बड्ढेत्ता (वर्धयित्वा) उ ३१५१ वड्ढोवुड्ढि (वृद्ध यपवृद्धि) च ३३१ सू ११७१, ११०,१४,१३१ वण (वन) ज ४१२००,२०१,२१२,२१४,२१५, २३४,२३६,२३७,२४०,२४१,२४४,२४५, २४६,२५१,२५२,५१५५,५७, ७.११४ वणप्फइ (वनस्पति) प १८।१४,१०५,११०,१२०; २०१२२ बणप्फइकाइय (वनस्पतिकायिक) ५६।१६,८३; १२।२६:१३,१६,१५२६,५३,५५,७४;१४०; १६१४१७९६२,६६,१०२,१८।३८,१६२, २०११३,२६,४६,२११३,२७,७६,८५,२२।२४; २८१३६,१२३,२६१०,२०,३०१९३६।१३ से १६,३४,३८ वणप्फइकाइयत्त (वनस्पतिकायिकत्व) ५ १५९६ वणप्फतिकाइय (वनस्पतिकायिक) १६१२; १७/४० वणमाला (वनमाला) प ३०,३१,४१,४६ ज ११३८,४।१०,१२१,१४७,२१७, १८ वणयर (वनचर) ३११६१ वणराइ (वन राजि) प १७:१२४ ज २०१२ वणलय (वनलता) प २३६१ वणलया (वनलता) ज ११३७,२६१०१,४।२७; ५२८ वणविरोह (वनविरोध) ज ७।११४१२ वणविरोहि (वनविरोधिन् ) सू १०।१२४१२ वणसंड (वनषण्ड) ज श१२ से १४,२३,२५,२८, ३२,३५,४।१,३,२५,३१,३६,४३,४५.५७,६२, ६८,७२,७६,७८,८६६०,६३,६५,१०३,११०, ११६,११८,१४१,१४३,१५२ १५३,१५४, १५६,१७४,१७६,१७८,१८३,२००,२१२, २१३,२१५,२२१,२३४,२४०,२४१,२४२, २४५;७१२१३ उ ५८ वणस्सइ (वनस्पति) प६१०४,१७६३३ १८१५७,६२,२०१२८ बिड्ढ (वर्धय) वड्ढे इ उ ३।५१ वड्ढे सि उ ३.७६ बड्ढइरयण (वर्द्धकिरत्न) ज ३११८,१६,३१,५२, ५३,६१,६२,६६,७०,६६,१००,१४१,१४२, १६४,१६५,१७८,१८०,१८१,१८६,१८८, २०६,२१०,२१६,२१६,२२० वढइरयणत्त (वर्द्धकिरत्नत्व) प २०१५८ वड्ढमाणय (वर्धमानक) प ३३१३५ वड्ढावय (वर्धापक) उ ३३११ बढियय (वधितक) उ ३३८ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वणस्स इकाइय-वग्णिय वणस्सइकाइय (वनस्पति कापि) प १।१५,३०; १३५,१६६,२६६,२७२,५॥३२,५८,७१७८ २११३ से १५,३१६,५० से ५२,५८,६० से ६३' वण्णओ (वर्णतस) ८ ११५ से ६१११५४,२८७, ६६,७१ से ७४,८०८१,८४ से ८७,६३,६५. २०,२६,५३ १६८ से १७०,१८३,४८८,६० से ६४;५६३, वण्णम (दे०वर्णक) उ ३।११४ १७,१८,६६,६।५३,८६,१०२,११५,६।२१ वण्णग (वर्णक) ज ११३२,३६,२०,३३,५४,६३, १५.८५,१२१.१३७,१८१२७,३५,४०,४३, ७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२,१६३,१६७, ४४,५२,२०1८,२११५,४१,२२।३१,३६६३३ २२२,४।१,११७,५११३७।५५ ज २।१३१.१४४ वण्णचरिम (वर्णचरम) प १०।४६,४७ बणस्सइकाइयत्त (वनस्पतिकायिकत्व) ज ७२१२ वण्णणाम (वर्णनामन्) प २३२३८,४७,१०१ से वणस्सति (वनस्पति) प६।१०२,६।४ १०६,१०६ वणस्सतिकाइय (वनस्पतिकारिक) प ३३५०,५१, वण्णतो (वर्णतस) प ११८,६,२८१३२,६६ ६०,६३,६५,१८३,४।८६,५३१८,६१६३,८३; वपणनाम (वर्णना मन्) प २३११०१ १५७६, २४१६,३०।१६ वण्णपज्जव (वर्णपर्यव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, वणिज (वणिज) ज ७/१२३ से १२५ करण नाम १३०.१४०,१४६,१५४,१६०,१६३,७२०६ बणिय (वणिज्) ज २।२३ वण्णपरिणाम (वर्णरिणाम) प १३१२१,२६ वणीमगबहुल (वनीपकबहुल) ज १११८ वण्णमंत (वर्णवत्) प १११५२,५३,२८१५,६,५१, विण्ण (वर्णय) वण्णइस्सामि प १।१।३ वण्ण (वर्ण) प ११४ से २० से २७.३०,३१, वण्णय (वर्णक) प २३२,४२,४३ ज ११२,३,१२, ४०,४०1९२१४१,४८,४६,६४,३।१८२,५२५, १६,२३,२५,२८,३१,३५,३८, ११,८३; ७,१०,१२,१४,१६.१८,२०,२४.२५,२८,३०, ४।३,२५,३१,३६,४०,४७.५७,६७,७६,११०, ३२,३४,३७ से ३६,४१,४५,४६,५३,५६,५६, ११२,११५ से १२०,१२६,१२८,१३५,१३६, ६१,६३,६८,७१,७४.७६,७८,८३,८६,८६,६१, १४१ से १४४,१४७ से १४६,१५३ से १५६, ६३,६७,१०१,१०४,१०७,१०६,१११,११५, १७८,१८३,२००,२०१,२१३,२१५,२१६, ११६,१२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०, २२१,२३४,२४०,२४५,२४६,२४८,५३, १४३,१४५,१४७,१५.०,१५२,१५४,१६३, २६ से ३३,३५ से ३७ च ६,७,८ सू १।२,३ १६६,१६६,१७२,१७४,१७७,१८१,१५४, उ १५१, ३।६१,४।१०।५।१४ १८७,१६०,१६३,१९७,२००,२०३,२०७, वण्णय (दे०वर्ण इ.) उ ३।११४ २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३०, वण (वासा) (वर्णवर्षा) ज ५१५७ २३२,२३४,२३७,२३६,२४२,२४४; वण्णादेस (वर्णादेश) पश२०,२३,२६,२६,४८ १०१५३.१,१११५३:१७।१११,१७१७,१७,१८% ११४११,१२३ से १२६,१३२ से १३४; वण्णाभ (वर्णाभ) १ २०२० से २५,५०,५६,६० २३।१०८,१६०,२८६,७,२०,२६,३२,५२, ज ४।२२,३४,६०,६४,८४,११३,२६६,२७२ ५३,६६, ३०१२५,२६:३६८०,८१ ज १११३, वण्णावास (वर्णमास) ज ११११,४६,३।१६५, २६; २७,१८,१३३,१४२, ३।३,११,१२,८८, १६७:४१४,७,१५,२६,८४,१४६ ; ५।१३ २११४१२२,३४,३६,६०,८२.८४,८६,६४, वणिय (वर्णित) प ११११३१६१२१ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहिदसा-वय १०३७ २५. वहिदसा (वृष्णिदशा) उ ११५,६:५११ से ३ वदित्ता (उदित्वा) ज ३।१२५ वित्त (वर्तय) बत्तइस्सामि प ३।१८३ वर्तेति बद्ध (वर्ध) ज ३।३५ प ३६१६२ वद्धमाण (वर्धमान) प २।३० ज ३३२ वत्तमंडल (वृत्तमण्डल) ज ३११७८ बद्धमाणग (वधानक) ज २१६४,३।३,१२,१७८%; वत्तव्व (वक्त०) ज ४।२६६७।१४१ से १४५, ४।२८,५:३२, ७।१३३१२ २०८,२०१६ १५० से १५२,१५४,१८६ सू१०।२० से २२ वद्धमाणगसंठिय (बद्ध मानकरा स्थित) सू १०१४१ वद्धमाणय (वर्धमानक) ज ३।१८५ बत्तन्वया (वक्तव्यता) प २।४०,४४,५११५२, वहाव (वर्धय्) बद्धावेइ ज ३।५,२६,३६,४७, २०५,२४४१११८०१५।१८ ज ३११५०. ५६,६४,७२,९०,१३३,१४५,१५१,१५७ १६१,२७७,४१५३,६४,७५,७६,८३,८६,६०, उ १।११० वद्धाति ज ३।११४,१२६,१३८, ६२,१०६,११५,१२६,२००,२०५,२०७,२२८, २०५,२०६ उ १११२२५४१७ वद्धावेहि २४०,२४६,२६२,२६८,२७७,७११०२ उ १११०७ वस्थ (वस्त्र) प २१३०,६१,४१,४६ से ५४; बद्धावेत्ता (व त्वा) ज ३१५ उ १५१०७ १५५५१२, १७११६ ज ३१६,११,१२,२६, वध (वध) उ ३१४८,५० ३६,४७,५६,६४,३२,७८,८१,८५,११३,१३३, वप्प (वत्र) ज ४१३,२५,२१२,२१२।३,२५१ १३८,१४५,१६७।६,१८०,२९१ सू २०१७, वरपगावई (वप्रकावती) ज ४।२१२।३ उश१६,३५:३१५१,५३,६३,६७,७०, बप्पावई (वप्रावती) ज ४।२११ वष्पिण (दे०), २१४,१३,१६ से १६,२८ वत्थधर (वस्त्रधर) ज २१६१५१४८ वमण (वमन) उ ३।१०१ वत्थव्व (वास्तव्य) ज ५१ से ३,५ से ७ वममाण (वमत् ) उ ३३१३० वत्थारुहण (वस्मारोहण, वस्त्रारोपण) ज ३।१२,८८ बमिय (वमित,वान्त) उ ३।१३०,१३१,१३४ वस्थि (वस्ति) ज २१५, ३१११७ वम्म वमन्) ज ३३१ वत्थिकम्म (वस्तिकर्मन) उ ३११०१ वम्मिय (अमित) ३७७,१०७,१२४ उ १११३८ वस्थिपुडग (दे०) उ ११४४ से ४६ । बय (पच्) बुच्चइ च २११ वोच्छं प २१६४११८ वस्थिभाग (वस्तिभाग) ज ३१११६ वत्थु (वस्तु) १४१५ ज ३१३२७।१०१,१०२ बिय (द्) यएज्जा ज ७।३१ सू १०११० श्यंति सू १०।१:१५॥१,३७ ज श६५१,६४ वयह उ ३.१०३;४११४ व मि वत्थुपरिच्छा (वस्तुपरीक्षा) ज ३।३२ उ १७६ कामो सू ११२०-यासी जशक्षा वत्थुप्पएस (वस्तृप्रदेश) ज ३।३२ २१६४,६०,६५,६७,१०१,१०५,१०७,१०६, वस्थुल (वास्तुक) प १।३७।२,३८।२,४४०१ १११,११४,३१५,७,१२,१८,२१,२६,२८,३१ ज २०१० से ३४,३६,४१,४७,४६,५२,५६,५८,६१,६४, विद (वद) वदा र ३१७७ वदंति सू २०१२ ६६.६६,७२ ७४,७६.७७,५३,६०,६१,६६, वदह ज ३।११३:५७२११२४ बदामो १०५,१०७,११३ से ११५,१२४,१२५,१२७, मू५११ वदिस्थति ज २११४६ वदेज्जा १२८,१३३,१३८,१४१,१४५,११,१५४, सू ६३१२ १५७.१६४,१६८,१७०,१७३,१७५,१८०,१८५, Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३८ वय-वरुण १८८,१६१,१६६,२०६:५२३,५,१४,२१,२२,२६ वरगंधघर (वरगन्धधर) सू १७१ २८,४६,५४,६६,७२ चं १० सू ११५ उ ११४; वरगंधित (वरगन्धिक) सू २०१७ ३।२६४११४,५१५ वयाहि ज १२२ वरगय (वरगत) ज ३१६,१२,१८,२८,४१,४६, उ १११०७ ५८,६६,७४,७८,८२,६३,१३६,१४७,१८०, वय (जयस) ज २।३१ १८७,१८८,२१२,२१३,२१८,२१६,२२२, वय (व्रत) प २०।१७,१८,३४ उ ३१४८,५०,५५ ५१४७,६० वयंस (बस्य) ज २१२६ वरचंपग (वरचम्पक) ज ३१३ राजचंपक वयगुत्त (वचोगुप्त) उ ३६६ वरण (वरण) प १६३।४ वयण (वचन) प १११८६ ज २११३३, ३।३,८, वरदत्त (वरदत्त) उ ५१२१,२२,२४,३१,४०,४१,४३ १३.१६,२४,३२१२,५३,६२,७०,७७,८४, वरदाम (बरदामन्) ज ३।३०,३१,३३,३६,३६,४१, १००,१३१,१४२,१६५,१८१.१६२,२१३; ६।१२ से १४ ५।१५,२३,२६,२७,६९,७३ उ ११३३,४५,१०८ वरदामतित्थकूमार (बरदामतीर्थ कुमार) ज ३१३३, वयण (वदा) ज २।१५,१६,३६,५१२१ ३६ से ४१,४३ उ १:१५,३५,३१६० वरदामतित्थाधिपति (वरदामतीर्थ धिपति) ज ३१३८ क्यणमाला (वदनमाला) ज २१६५३।१८६,२०४ बरपसण्णा (वरपसन्ना) प १७४१३४ वयमाण (बदत्) प १११२६,८७ वरपुरिसवसण (वरपुरुषवसन) प १७११२७ वर (वर) १ २।४०1८,२१४६,३६१८३१२ वरबोंदिधर (वर बोंदि'धर) सू १७.१,२०११ ज ११६,३७,३८,२।१५,२०,६५,७१,८५, वरमल्लधर (वरमाल्यधर) सू १७:१;२०११,२ ६५,६६,१००,१२०, ३।३,६,७,१२,१८,२२, वरवत्थधर (वरवस्त्रधर) सू १७।१:२०११,२ २४,२८,३१,३२,३५,४१,४६,५२,५८,६१, वरवारुणी (वरवारुणी) प१७४१३४ ६६,६६,७४,७६,७७,७८,८२,८८,६३,१०७, वरसीधु (वरसीधु)प १७११३४ १०६,१२४,१२५,१२८,१३१,१३७,१३५, वराडा (वराटक) व १४६ १४१,१४७,१५१,१५२,१६३,१६४,१६८; बराभरणधर (वराभरणधर) सू१७११ १७५,१७८,१८३,१८६,१८७,२०६,२१०, दराभरणधारि (वराभरणधारिन्) सू २०११,२ २१३,२१८,२२१,२२३, ४११०,११५,२१७; वराह (वराह) प ११६४२।४६ उ २१३५ ५७,२१,४३,५६,५८,७१७८ सू १६।११।१ वराहमंस (वराहमांस) सू १०।१२० वाराहीकंद उ ११,४१,४६,६४,६१,१२१,१३८,२।६; बराहरुधिर (वराहरुधिर) प १७१२६ ३।५६,६४,६६,६८,७६,८१,५१५,१३,१६, वरिठ्ठ (वरिष्ठ) ज ३१८१,५१२१ २०,२५,२७,३१ बरिस (वर्ष) ज ३११७५ वर (चरक)प १६४५२ तण धान्य, चीनाधान वरिसारत्त (वर्षरात्र) सू १२११४ उ ५१२५ वर (वरय) वरति सू १६२२॥१६ वरयंति वरुट्र (वरुड) प ११९७ पिच्छिकार, बेंत का काम चं २।२ मू ११६२ वरयति सू ७/१ करने वाला वरकणगणिहस (परकनकनिकष) प १७:१२७ वरुण (वरुण) प १५१५५१ ज ७११३०,१८६६३ वरग (वरक) ज २।३७ तृणधान्य उ ३.५४ वरम (वरक) उ ४६ वरगंध (वरगन्ध) प २१३०,३१,४१ १. अतोऽनेकस्वरात् इति इक प्रत्ययः । Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरुण-वहिय १०३६ वरुण (काइय) (वरुणकायिक) ज ११३१ ७७,८४,६१,१००,११४,१४२,१६५, वरुणदेवया (वरुणदेवता) मु १०।८१ १६७।१४,१७३,१८१,१८६,१९६,२१३; वरुणवर (वरुणवर) सू १६३१ ५२१,२७,४१ उ ११२१,४२, ३।३३,१३६ वरुणोद (वरुणोद) सू १६३१ वसंत (बसन्त) प ७।१४४।२ सू १२११४ उ ५.२५ वरेल्लग (दे०) १७६ वसंतमास (बसन्तगास) सू१०।१२४।२ वलभीधर (वलभीगृह) ज २१२० वसंतलय (बामन्तीलता) ज ५१३२ वलभीसंठित (वलभीसंस्थित) म ४१२ वसट्ट (वसात) उ १२५२,७७ वलय (वलय) प ११३३।१,११४३ ज ३।६,२२२ वसण (दमन) ५ २।४०।१०,११ ज ३१७,१८४ उ ३११३० वलयाकारसंठाणसंठिय (वलयाकारसंथानमंस्थित) ज ४१२३४,२४०,२४१ वसणभूय (बसनभूत) ज २।४३ वलयागार (वलयाकार) सू१६२,६,६,१२,१६, वसभर्मस (वृषभमांस) सू १०।१२० २८,३२,३६ वसभवाहण (वृषभ वाहन) प २१५१ ज २१६१;; वलवा (वडवा) ५ १११२३ ५१४८ वलि (वलि) ज २११५,१३३ उ १।३४,४०,४३, वसभाणुजात (वृषभानुजात) सू १२।२६ ४६,४८,४६,५१,५४,७४,७६,७६ वसमाण (वसत्) प ३३१८,३१,१८० उ ११११०, बलिय (वलित) ज २११५, ३११०६; २५ १२६,१३३ वल्लभ (वल्लभ) ज ११२६ वसह (वृषभ) ज २६१,७१७८ च १४ बल्लि (वल्ली) ज २११३१,१४४ से १४६:३३२ वसहरूवधारि (बषभरूपधारिन् ) ज ७११७८ सू१८।१४ वल्ली (वल्ली) प ११३३११ ११४०,११४८१६१ वसहि (वसति) ज २।१६,३।१८,३१,१४० वल्लीबहुल (वल्लीबहुल) ज १११८ उ १११०,१२६,१३३,३३३६ ववगय (व्यपगत) प १११।१२।२० से २७ वसा (सा) परा२० से २७:१५३११२,१५१५० ज ११२४ ; २।१५,२३,२५,२६,२८,३० से ३२, बसिट्ठक ड (वाशिष्ठकूट) ज ४१२०४११ ३६,४०,४२,४३,७०,३१२०,३३,५४,६३,७१, बसु (वसु) ज ७।१३०,१८६।३ ८४,१३७,१४३,१६७,१८२ वसुंधरा (वसुन्धरा) जाला? Vबवरोव (कि- अप-1 रोपय ) ववरोवेइ प २२१६ वसुदेवया (वसुदेवता) सू १०८० उ ११२२ वसुहर (सुधर) ज ३११२६।१ ववरोविय (व्यपरोपित) उ ११२५,२६ वसुहा (वसुधा) ज ३११८,३१,१८० ववसाय (व्यवसाय) ज ४।१४०।१ वह (वध्) बहंति ज ७।१६८।२ बवसायसभा (व्यवसायसभा) ब ४११४० यह (बध) उ १११३६, ३।४८,५० ववहार (वहार) प ११।३३।१:१६।४६ उ ३१११ वह (व्यथ) उ ५२।१ ववहारसच्च (व्यवहारसत्य) प ११३३३ ।। वह (वह) उ ५।२।१ विस (वस्) वसइ ज ३।१२२ बसाहि वय (वधक) ज २८ ज ३११८५ वहस्सइ (बृहस्पति) : ७/१३०,११।३ वस (वश) ज ३१५,६,८,१५,१६,३१,५३,६२,७०, बाह्य (व्यथिन) ज ३११११,१२५ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४० बा (वा) प ११।८७ ज २१३६ सू १।१४ उ ११२७; वाउभक्खि ( वायुभक्षिन् ) उ३१५० बाउल (व्याकुल) ज २।१३१ वाकमाण ( व्यागुणत्) ज २७८ ३।१०१ वा (वा) वाहिति ज २।१३१ वाइ ( वादिन् ) ज २८० वाइंगण (दे० वातिकुण ) प १३७३१ बैंगन का गाछ वागणिकुसुम ( 'वाइंगणि कुसुम ) प १७ १२५ वाइत (वादित ) प २०३०,३१,४६ वाइय (वादित ) प २४१ वाइय (वाद्य) ज ११४५, २२६५; ३२८२, १८५, १८६, १८७, २०४, २०६, २१८, ५१, १६; 1७1५५, ५८, १८४ १८१२३; १६१२३, २६ वाइ ( वातिक) ३।११२,१२८ वाउ (वायु) प ६८६, १०४, ११५; ६ ४ १३।१६; १७१४०,६६; २०१८,२३,२८,५७,२११८५ २२।२४ ज २११६,३११७८४१४६, ५४३,५२; ७११२२११,१३०,१८६२४ सू २०२८४।१ वाउकाइय (वायुकायिक) १।१५२।१० से १२; ३।५, ५० से ५२,५७,६० से ६३,६८,७१ से ७४,७६, ८४ से ८७,६२,६५,१६५ से १६७, १८३४७६,८०,८२, ८३, ८५ से ८७ ५३, १५,१६,६।१६,६२,६२,१०२ वाकाथ ( वायुकाय ) सू २०११ वाजकुमार (बायकुमार ) प १११३१; २।४०११, ६,११,५३६।१८ ज २११०७, १०८ वाक्क लिया (वातोत्कलिका ) प १२६ वाक्काय (वायुकायिक ) प ११२७२।११; १२/३,४,२३, १५/२६,८५,१३७ १६१५, १२, १७/६१,१०३; १८।२६,३४,३८, ४०.४२, ५२; २०१३१,४५;२१।२६, ४०, ५०, ५७,६४,२२/३१; ३४१३, ३६६, ३८, ५६, ७२.७५ वाकाइयत्त (वायुकायिकत्व) ज ७।२१२ वाक्काय (का) ज २२१०७,१०८ बाउन्भाम (वतोभ्राम ) प १।२६ वान्वाणमंतरी √ वागरा (वि + आ + कृ ) नागरेहिति उ ३३२६ बागरेहिती उ ३२ वागरण (व्याकरण) ज ७।२१४ सू ६।३ उ १।१७; ३२६ बागल (वाल्कल) उ ३१५१,५३,५५,६३,६६,७०, ७३ बागली (दे० ) प ११४०१२ बागुची, एक औषधि वाघ (व्याघातिक) ज ७ १८२ वाघात (व्याघात) प ११७४; २११६५ वाघातिम] ( 'व्याघातिम, व्याघातिन् ) सू १८/२० ११६५,६६ वाघ (व्याघात) प २७ २८ ३१ वाण (वाण) प ११३७४ वाणपत्य ( दानप्रस्थ) उ ३१५० वाणमंतर ( वानव्यन्तर ) १ ११३०,१३१२/४१, ४३;३।२७,१३५, १८३४।१६५ से १६७; ५१३,२५,१२१,६२५,५६,६५,८५,६३,१०६, १११,११७; ७१५; ६११, १८, २४; १२६,३६; १३।२०,१५१३५,४८,८७,६६, १०४, १०७, १११,१२४; १६६, १६; १७/२६,३०,३२,३४, ५२,७७,८१,८३,६८,१०५,१६४; २०१३, १६,२५,३०,३५,३७,४८,५४,६१,२११५५,६१, ७७,६०,२२।३१,३६,७५,८८, १००, २४१८; २८७२,११७,११६; २६/१५,२२; ३११४; ३२।५; ३३३१४,२२, ३०, ३४, ३७, ३४ ४, १०, १६,१८; ३५।१५,२१:३६।२५,४१,७२ ज १११३,३०,३३, ३६, २९४, ९५, ६६,१०० से १०२,१०४,१०९, ११०,११३ से ११६, १२०, ४१२,२४८, २५० से २५२; ५:४७, ५३,५६,६७,७२ से ७४ सू २०१७ वाणमंतरत्त (वानव्यन्तरत्व ) प ३६।२२,२६ वाणमंतरी ( वानव्यन्तरी ) प ३३१३६, १८३ १. भावादिमः इति सूत्रेण इमः, Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणारसी-वास १०४१ ४।१६८ से १७० १७१५२,८२,८३, २०१३ वाणारसी ( गणसी) प ११९३।१ उ ३।२७ से २६४६,४८,५०,५१,६५,६६,६६,१००,१११ वाणिज्ज (वाणिज्य) ज २२३ वातिय (पातिक) उ ३।३५ बाध (व्यावाध) ज २१३६,४१ वाम (काम) ज २११३, ३१६.१२.२४।४,३७१२, ४५२,८८,११७,१३११४५२१.५८ उ१११५,११६ ; ३१६२ तामण (बामन) १ १५:३५; २३।४६ वामणी (वा पनी) ज ३१११११ वामभुयंत (समभुजान्त) सू २०१२ वामेय (मामे) प २१३१ वाय (कान) २४८ ज २१६.१०,१३१,१३३, ३१११,२४।३,३७।१,४५॥१,११७,१३१।३, २११४।१६६,५१३८,५८ ‘वाय (वाचथ्) बाएंति ज ५।५७ वायंत (वाद न्) ज ३।१७८ वायकरग (व:तक रक) ज ३१११; ५।५५ वायमंडलिया (वातमण्डलिका) प ११२६ वायस (वायस) प ११७६ वायुदेवया (वायुदेवता) सू १०.८३ वारि (शरि) ज ३२२०६:५२५६ वारिसेणा (नारिषणा) ज ४१२१०५६१ वारुण (आरुण) ज ७.१२२२ सु १०१८४।२ वारुणी (वारुणी) ज ५१११११ वारुणोदय (वारुणोदक) १ ११२३ वाल (व्याल) ज ३१२२२ उ ३.१२८ वाल (बल) ज ७१७८ वालग (व्यान) ज ११३७, २१४१,१०१, ३१२०; ४।२७।५।२८ बालग्ग (वालाग्र) जश६,७१७८ वालग्गपोइया (दे०) ज २१२० वालगपोतियासंठित ('वालाग्रपोतिका'संस्थित) वालपुच्छ (व्यालपुच्छ) ज ७।१७८ वालिघाण (वालधान) ज ७।१७८ वालिहर (वालिधर) ज ७१७८ वाली (पाली) ज ३३० वालुंक (वालुक) प ११४८४८ कपिप्थ की छाल वालुयप्पभा (वालुकाप्रभा) प ११५३, २११,२०, २३,३११३,२१,२२,१८३४।१० से १२; ६।१२,७५,७६,१०११;२०१६,३६,२११६७; ३३१५ वालुया (बालुका) प ११२०११, २१४८ ज ३११११, ११३, ४११३,२५,४६ सू २०१७ उ ३१५१,५६ वावण (व्यापन्न) व १२१०१।१३ वावण्णम (व्यापन्नक) प २०१६१ वावहारिय (व्यावहारिक.) ज २१६ वादिय (व्यापित) ज ३७६.११६ वावी (वापी) ५२।४,१३,१६ से १६.२८,१११७७ ज ११३३,२।१२,१५, ४१६०,११३,७११३३११ वास (वर्ष) प ११४६; २२१,४११,३,४,६,२५,२७, २८,३०,३१,३३,३४,३६,३७,३६,४०,४२, ४३,४५,४६,४८,४६,५१५२,५४,५६,५८, ६२,६४,६५,६७,६६,७१,७६,८१,८५,८७, ८८,६०,६४,१२५,१२७,१३४,१३६,१४३, १४५,१५२,१५४,१६५,१६७,१६८,१७०, १७१,१७३,१७४,१७६,१७७,१७६,१८०, १८२,१८३,१८५,१८६,१८८६.३७ से ४१; १६।३०।१८२,६,६,१२,२०,२१,२८,३२, ३४,३५,४७,५०,५२,२०१६३;२३।६० से ६४, ६६.६८,६६,७३ से ७८,८१,८३,८५ से १०, ६२,६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३,१४७, १५८,१६६,१७६,१७७,१८२,१८३,१८७, २८/२५,७४ से ८७,९७ ज १११८ से २३, ३४,३५,४७ से ५१२।१,४,६ से १५,२१ से ४५,५०,५२,५६ से ५८,६५,७१,८८,६०, १२२,१२३,१२६ से १२८,१३० से १३४, Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४२ १३८ से १५०,१५४, १५६, १५७, १५६, १६१, १६४३०१, ३,२६,३२,३६.४७,५६,६४,७२, ७७,७६, १०३, १०६,११३.१२४,१२६,१३३, १३५।२, १४५,१६७.१७५, १८५.१८८, २०६, २२१,२२५,२२६, ४११,३५,४२, ५५,५६,६१, ६२,७१,७७,८१ से ८३,५६,१४,१८, २६ से १०३,१०८१६२,१६७७, १६९ १७२ से १७४,१७८,१८१, १८२.१८५, १८७, ११२. १९४,१६,१६ से २०३,२०५,२०,२१३, २६२,२६५, २६६,२७१ से २७३, २७७ ५०५५ ६६।१,६६,१२,१३,१४,१९७१५६ से १५६,१५७ से १२० ४ ३ ६ १ १० ६३ से ६६ ११८/२५ से ३०:२०१७ ११६ १४१, १४७, २०१२,१३,२२३।१४,१६,१८, २१,८३,८६,१०४, ११८, १२५, १५०, १५२, १५७,१६१,१६५,१६९, ४२४,२६,२८ ५।२४,२८,३६,४१,४३ वास (वर्ष) वर्षा ज ३१११५, ११६५७; ७११२३४ १०।१२६।३.४ ( यास (वृष) वासंति ज २१८४ ५७,५७ वासति सू १०।१२६३ वासह ज ३११२४ वासिस्स ज २१४१ से १४५ वासिहित ज २११३१ वासंतिष ( वासन्तिक) ज २।१० वासंतिला वासन्तीलता) ११३६।१ वासंती ( वासन्ती ) प १३८३२२।१५ वासचर (कामगृह ) ज ३।३२ सू २०१७ १३३ २१२५ वासपुड ( वासपुट) ज ४।१०७ वासमा (वत्) ज ३।११६ वासयंत ( वासवत् ) ज २२६५ वासरेणु ( वासरेणु) ज २२६५ बाहर (वर्षवर ) प १५५५१२ ज २४६५ : ३।१३१ ४११०२, १०८, ११०,१४३, १६२.१६७.१८१. १०२, १८४,१६०, २००६ १०.१६ वासहरकूड (वर्षधरकूट ) ज ६१११ वासहरपव्यय (घ) २०११६३० ११८,४८,२१:२०१३१:४११ २ ४४, ४५. ४८, ५४,५५,६१ से ३,७२१.६,८७, १६ से १०.१०२.१०२.१००, ११०,१४३, १६२,१९,१७३ मे १७६.१७,१५०.१०४. १९०,२०० से २०६२०२१२६२ २६४ २६० से २७०,२७२ से २७६५।१४.१५: ६.१०,१८ वासावास ( वर्षावास ) ज २१५० वासि (तुम) २०११५ वासिकी ( वार्षिकी) सू १२/१८ से २३ वासिड (वाशिष्ठ) ७१३२२ १०११४. वासिता (वर्षवित्वा) २७ वासी (बागी) ज २७० वासुदेव ( वासुदेव ) प ११५४, ९१, ९२६, २०११११ ४२.१५, १७ से ज २।१२५ १५३७२०० १६ वास-विउल वासुदेव ( वासुदेवस्य ) ६२०१५६ वाण (वान) ज २६४३।१७,२१,३१,३२, ८१, १०३, १०२, १७७.२०१५,२२,२६ १३६६,६४,६९,११५,११६ वाहि ( व्याधि) ज २०१५.१११,१२३ वाहिनी (वाहिनी) उ ३।११०१४११६,१८ वि (अपि) प १३५ ज १।१६ १६ उ १११७ विक्कत (शिकान्त ) २२७११६८१४० √ विजयकम (वि उन् ! क्रम) विउक्कमंति I ६१२६ विट्ट (विवृत) २०११५ उट्ट (निस) विजल (वि) ४१३०,६६,६१ २०२०२१४१११५ २२६४,६५.११.१२०.२०२,६७.१०३१८५, २०६५।२६, ५४७१७६११७.२३ २२११३०७,५०,४,५,९१.१८.१०१.१०६ १०७.११०.१२९,१३१.१३४,१३६.१४६ ४११६ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विउलमइ-विग्गह १०४३ विउलमइ (विपुलमति) ज १८० विउ (वि - कृ) विउव्य इ ज ५१४१,४६,६०, ६६३।१२ विउब्बति प ३४.१६ २१ से २३ ज २११०२,१०६,१०८,३१११५,१६२,१६४, १६५,१६७,१९८५१५५,५७ विउवह ज २११०१,१०५:१३ विउब्वाहि ज ५१२८ विउब्वेह ज ३३१६१ विउव्वणगिडिढपत्त (विकिद्धिप्राप्त) सू१३:१७ विउवणया (विकरण) उ ३४१ से ३ विउदणा (विकारणा) उ ३१७ विउव्वमाण (विकुर्बाण) सू २०१२ विउवित्तए (किर्तम) ज ७१८३ मू १८।२१ विउव्वित्ता (दिकृत्य) प ३४।१६,२१ से २३ १२३ विउविय (विकृत) प २१४१ विउब्वेत्ता (विकृत्य) ज ३।१६१ विउसमण (व्यवशमन) सू २०१७ विझगिरि (विन्ध्यगिरि) उ ३३१२५ विंट (वृन्त) प ११४८१४६ विहणिज्ज (बृहणीय) प १७४१३४ /विकंप (वि-+कम्प ) त्रिकंपइ च ३।२ सू १७२ विकंपइत्ता (विकम्प्य) सू१२४ विकंपमाण (विकम्पमान) सू ११२४ विकप्प (विकल्प) ज ३१३२ विकप्पिय (विकलित) ज ३११०९ विकल (विकल) ज २११३३ विकिण्ठ (विकीर्ण) ज ७।१७८ विकिय पूय (विकृत भूत) ज ५१५७ रिगर (निकिरणकर) ज ३।२२३ विकिरिज्जमाण (विकीर्यमाण) ज ४११०७ विकुस (विकुरा) ज २१८,६ विक्कत (विक्रांत) ज ३।१०३ विक्कम (का) ज ३।३:७११७८ च १११ विक्खंभ (विष्कम्म) प १७४, २१५०,५६,६४; २१८४,८६,८७,६० से ६३,३६.५६,६६, ७०,७४,८१ ज १७ से १०,१२,१४,१६,१८, २०,२३ से २५,२८,३२,३५,३७,३८,४०,४२, ४३,४८,५१,२१६,१४१ से १४५,३३६५,९६, १५६,१६०.१६७:४११.३,६,७,९,१०,१२,१४, २४,२५,३१,३२,३६,३६ से ४१,४३,४५,४७, ४८,५६,५२ से ५५,५७,५६,६२,६४,६६ से ६६,७२,७४,७५,७६,७८,८०,८१,८४ से ६६, ८८,८६,६१ से १३,६५,६६,६८,१०२,१०३, १०८,११०,११४ से ११६,११८ से १२७, १३२,१३६,१४०,१४३,१४५ से १४७,१५४ से १५६,१६२,१६५,१६७११,१६६,१७२ १७४,१७६,१७८,१८३,२००,२०१,२०५, २१३,२१५ से २१६.२२१,२२६,२३४,२४० से २४२,२४५,२४८; १६५७७,१४ से १६, ६६,७३ से ७८,६०,६३,६४,१७७,२०७ चं ३१२ मू १७२१।१४,२६,२७,१८१६ से १३; १९६४,७,१०,१४,१८,२०,२१५१,३०, ३१,३४,३५,३७ विक्खंभसइ (विष्कम्भः ) १२११२,१६,२७, विक्खय (विक्षत) ज २११३३ विवखुर (दे०) प ७१७८ विग (वृक) ज २१३६ विगत (विगत) प १८४ विगतजोइ (विगतज्योतिस्) म १४११०,१५१८ से विगय (विकृत) ज २११३३ विगयमिस्सिया (विगतमिश्रिता) प १११३६ विलिदिय (निकलेन्द्रिय) ११८३ से ८५; १५५१०३, २०१३५:२२।८२:२८११११,१२७, १३८,३११६।१,३४११४;३५।११२,३५१७; ३६।५६ विगलेदिय (विकलेन्द्रिय) प १११८२ विगोवइत्ता (विगोप्य) ज २६४ विगह (विग्रह) । ३६१६०,६७ से ६६,७१,७५ ज़ ५॥४४ उ ३३६१ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४४ विनारि-विज्जुष्पभह विचारि (विवारिन) म १६१ विचित्त (विचित्र) ५२।३०,३१,४१,४६ ज २०१२; ३।६१०६,२२२,७१७८ ३ २०१७ उ २११० ३.१४,८३,१०२,१३५,१४२,४१२४,५।२८, विचित्तकूड (विचित्रकूट) उ ६।१० विचित्तपक्ख (विचित्रपक्ष) प ११५१ विचित्ता (विचित्रा) ज ५११ विच्छड्डयित्ता (विच्छद्य) ज २१६४ विच्छड्डिय (विदित) ज ३११०३ विच्छिण्ण (विस्तीर्ण) : २१५१,५२,५४,५६,६० ज ११८.१८,२०,२३,२५,३२,३५,४८,५१, २११५,३११,१८,३१,३५,५२,६१,६६,१०३, १०६,१३१,१३७,१३८।१,१४१ १६४,१८०; ४।१,३,४५,५५,६२,८६,८८,६८,१०३.१०८, ११०,११४,१४१,१५६.१६२.१६७.१६६, १७२,१७८,१८५,१८७,१६१.२००,२०३, २०५,२१३,२१५,२४२,२४५,२४६,२५१, २५२,२६२,२६८,२३,२८,४६;७.१७७।१,२ उ ३१३७ विच्छिण्णतर (विस्तीर्णतर) ज ४११०२ विच्छिप्पमाण (विस्पृश्यमान') २१६५; ३।१८६,२०४ विच्छुत (वृश्चिक) प १३५१ विच्छुयअल (वृश्चिक ल) ज ७१३३।३ विच्छ्यनंगोलसंठिय (वृश्चिक लांगूलनास्थित) सू १०१५२ विडि (द्विजटिन्) सू२०१८,२०१८) विजय (विजय) प १११३८,२११,४८.६३ ; ४१२६४ से २६६,६१४२,५६७२६ १५१५५१२,१५८६,६२,१००,१०५,१०८, १०६,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२३, १२५,१२६,१३१,१३६; २८९६ ज १११५, १६,४६,५१,११७:३३५,१८,२४१४,२६, ३१,३५,३७१२,३६,४५१२.४७.५२,५६.६१, ६४,६६,७२,८१,९०,११४ से ११६,१२२, १२४,१२६,१३११४,१३३.१३५,१३७,१३८ १४१,१४५,१५१,१५७,१६४,१३२,१७८, १८०,२०५,२०६,२०८,२०६; १४६५२, १०३,१६२,१६७ से १७,१८१ मे १८४, १८७ से १९१,१६३,१९६.१६७,१६६ २०३,२०६,२१२,२६२।४३,५५,५३,५८ ६.६. १ १:४,१२२१२ च ५१४११०१८४ २,१२४११ उ ११०७.११०,११६,११८, १२२,१३०,५१७ विजय (दिचय) १९ विजयखंधावार स्वा३।१७२ विजयडूस ( ४८५ विजयपुरा ( 1) १२ विजयवेजइया (विजयी ) १२,२८, ४१,४६,५५.६६,७८,४७,१६८ विजया (विजया) ४२१८,२१२१४५१८।१; ७१२०१२,१२६ विजह (वि : हा) विहति सू १५३८ विज्ज (विद्) विज ३११२१११ विज्जल (दे०, वि ): ३८ विज्जा (विद्या) ३१६०१ विज्जाहर (विद्याधर) १६१.२११६३ ज ३.१३७ रो १३६,२०:४/७ २ ।२८ ३ ५१५ ज्जिाहरसेढी विद्या मोज ११२५ से २८% ४११७२:६।१५ विज्जु (विधु) १९६६१,२१४०।६,११ ____ ज ४।२१०१? सू०१ विज्जुकुमार (विध कु. :) ११३१; १३; ६.१८ विज्नुकुमारिका ) विन्दुः (न्यूयत) विज्छप्पन (६.बुर से २१० विजुप्पम शुभ १२१० विजुप्पभदह (विद्युमन ल ४६६४ १. हे०४।२५.७ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्जुपविद्ध हि (वि) ज ४।२१५ रज्जुप्पहार (युत्प्रभवक्षस्कार ) ज ४।२०५ विज्ह (विमुख ) प १८६ विषेश (वि) ज २१३१,४ । २११ ; शर दिज्जु ( () विज्जुयाति ज ५७ विज्gare (विद्युत्यत्वा ) ज ५७ विज्झडिय (३०, मिश्रित ) ज २।१३३ विज्झिडियमच्छ (सिडिय मत्स्य ) प १।५६ विद्धि (विष्टि ) ५११२३ से १२५ fastu (f) ७२१७८ विडिय (२० प ) २४६ ४१४६ विमिंदर (६०, पिटपान्तर ) ज २०१६ दिड्डा (त्रीडा) ११५८,८३ विण (निप्ट) ज २११०३.१०४ विर्णामि (निमि) ३११३७,१३८,१३६ विजय (विनय ) प १११०१।१० ज ११६, २२६०, ६०,१३३, ३१८,१३,१९५३,६२७०,७७,८४, १००,१४२.१४७,१६५, १८१,१८६,१९२ २०५,२०६२१३५११५,२३,५८,६६,७३ यू २०१६ उ १११६,४५,५५,५६.६७ ८०,०३,१०८.११६,१२०,३११२० विणास (नाम) प १७४ विभासण (विजन ३८८१०९५७ विनियमं (विच्छा) ३११०६ विणित (त्) ११३७३।१२, ६८४१५८ वणी (वणी) वि२०४६ वर्णेति उ ११३४ निमि १।७४ विणीला ( विनीतः) ज ३११८२ विणीय (त्रित) उ५१४०, ४१ footer (२/१६,६५,३११२७,८, १४,८७,८५,१०६,१७२, १७३, १८०, १८३ से ܬܘ &o3 ex Po,> ?, ?, . ܔܔ २१२२२०२६१२४११०० विore (विशक) २०१२७, १२७३५४४३ √ विष्णव (वि + ज्ञपय् ) विष्णवे उ ११०१ बिष्णवणा (विज्ञान) उ ३३१०६ विगविज्जना (विज्ञप्यमान ) उ१।१०२ विवि (विज्ञपयितुम् ) उ १६६ विve (विष्णु) ज ७।१३०,१८६१३ faughar (foदेवता ) सू १०१७९ वितत (वि) ज ५३२, ५७ तिपक्खि (तितपक्षिन् ) प १७७,८१ वित्त ( वितृप्त ) सू २०१८,२०1८1८ वितत्य ( वित्रस्त ) सू २०१८, २०१८ तिथि ( वितरित) ज २१६ वितिमिर (वितिभिः ) प २/६३३६६३,९४ वितिरितराग (वितिमिरतरक) ५१७ १०८, ११० वित्त (वित्त) ज ३११०३, ५५८ वित्त (वेव) ज ३ | १०६ विति (वृत्ति) ज १११३.३०,३३,३६,२११३४; ४२ वित्थड (विस्तृत) ज ३।११७,७१३०,३१,३३ मु ४५३, ४, ६, ७,१६/२२११५ वित्थय (विस्तृत) ज ३१३२,१०६ विस्थर ( विस्तर) ज २।१३४ fararves (विताररुचि ) प १।१०१।१,६ वित्थिष्ण (ती) प २२५०,४६,५८ ज ११२४, २८ ३१२१,५१४ विदिशा (विदिशा ) ज ४११०६,१५५,२०४,२१०, २१२.२३५.२३७५।१२ विदिसि (विदिश् ) प ३६।७०,७२ ज ५।१२ विसिवाय (विदित) ५१।२६ विदेह (देह) प ११६३३,६४१११।१२६, १३३ विदेहजंबू (विदेहजम्बू) ज ४११५७।१ विदुम (वि) ज ३।३५ वि (विद्ध) ज ३।२५ (ध्वंस) १०४५ : विद्धरोहित सरदर १११७२२८१४०,४३,६६ २११५१ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४६ विद्धंसइत्ता-विमाण .११६ विद्धंसइत्ता (विध्वस्य) प २८।६६ विभत (विभक्त) ज २११५,१३३ विद्धंसण (विध्वंसन) उ ११५१,५२,७६,७७ विभयमाण (विभजमान,रिभजत्) ज १११६,४७, विद्धंसित्तए (रिध्वंसितुम् ) उ ११५१,५२.७६,७७ ४१४२,७१,७७,६४,१६८,१८३,१८६,१६५, विद्धि (वृद्धि) ज ७:१८६१३ २६२ सू १६:१६ विधाउ (विधान) ५ २।४७१२ विभाग (विभाग) ज ३१३२ विधुय (विधुत) ज २११०,४।१६६ विभावणा (विभावना) २८१११२ विपुल (निपुल) ज १६६३८८,१०६ विभास ( विभाष ) विभासिज्जा ज ५१५५ विपुलतर (विपुलतः) ज ४११०२ विभासेज्जा ज १५७ विष्पजढ़ (विहीण) उ ११६०,६१ विभासियत्व (विभापितव्य) ज ५१४०,५७ ‘विप्पजह (वि । प्रहा ) विप्पजहति प ३६१६२ विभु (विभु) ज ५१५,४६ सू १५८ विभूइ (विभूति) ज ३।१२,७८,१८०,५१२२,२६ विष्पजहण (पिहाण) + ३६४१२ विभूति (विभूति) ज ३।२०६ विप्पजहिता (विप्रहाय) प ३६।१२ विभूसा (विभूषा) ज ३.१२,७८,१८०,२०६; विप्पडिवण (विप्रतिपन्न) उ ३।४७ ५।२२,२६ विभूसिय (विभुषित) ज २१६६,१००,३१६,३५, विष्पमुक्क (विषमुक्त) प २१६४११,६,१६३१५ ७८,१०६,२११,२२०;५११४,४१,४३,५८; ३६१८३१२ ज ३१२,८८,६२,११६:५७, ७/१७८ उ १७०७३।११०,४।१८:०१७ ५८ उ ३।१५६ विभेल (विभेल) उ ३३१२५,१३२,१३३,१४१,१४५ विष्परिणामइत्ता ( परिणम्) ग २८१२०,३२,६६ विमण (विमन) ज २६०,१०३,१०६,१०८ विष्पलायमाण (प्रलापयत् ) उ ३.१३० उ ११३५ विष्पासित (विप्रोपित) सू २०१७ विमय (दे०) प ११४१।२ विष्पहय (वि.महत) उ ३३१३१,१३४ विमल (विमल) प २।३१,६४ ज ११३७, २०१५; विबुद्ध (विबुद्ध) ज ३।३।। ३६,१२,१८,७७,८१,८८,१०७,११७,१२४, विजोयण (३०) गु२०१७ उपधान १५१,१७८,२२२; ४१३,२५,१२५,२०४११ विभल (विह्वल) ज २११३३ ५१५,४६१३,५८,६२७१७८ २०८1८ विभंगअण्णाणपरिणाम (विभंग ज्ञानपरिणाम) उ १११३८ प १३.१० विमलवाहण (विमलवाहन) ज २१५६,६१ विभंगणाण (विभङ्गज्ञान) प ५१५.७, २६२,६, विमाण (विमान) ६ २११,४,१०,१३,४८ से ५२, १७,१६,३०१६ ५६।२,२०५१ से ६३;७१२६१२२५:२११६२, विभंगणाणि (विभंगज्ञानिन्) १३।१०२,१०३; ६३,३३,१६,१७ ज २।१२०,३१३,११७; ५९९,१०७; १३११४,१७,१८१८४,२८११३७, ४।११५:५१३,५,१८,२२,२५,२६,२८,३०,३२, ३०।१६ ४१,४३ से ४५,४६,५०,५२,५३,७१७८।१, विभंगनाण (विभंगज्ञान) प ३०२ १७६,१८४ से १९६ सूह।१,१८।२२ से २४; विभंगु (दे०) १।४२१२ २०१२ से ४ उ ३।६,७,१४,२५,८३,६०,१२०, विभज (दि--भज्) विभज्जइ ज २६५५ १५६,१६१,१६६,१७१४।५,२४,२८,५।२८, विभजिस्सइ ज २११५५ पमण (वि ४१ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमाणकारि विव विणकर (विमानकारिन् ) ज ५४८ से ५०, ५३ विरल्लिय ( तत' ) प १५/५१ विमाणवास ( विमानवास ) ज ३।११७ विमाणावलिया ( विधानावलिका ) प २११, ४, १०, १३ विमाणात (विवनाम ) प २४८ से ६३ ज ५ १५, १६, २४,४८ विमाणववण्णग ( विमानोपपन्नक) सू १६१२३, २६ विमुक्क (विमुक्त ) प ६४ १०,१६,२२:३६ ६४।१ विमोक्षण (विमोक्षण ) ज २२७१ विट्टछउम ( विवृत्तछद्मन्) ज ५१२१ aिrs ( विकट ) प २० से २३ ज २९१५ चं १।३ सू २०१८,२०१८ विडजोणिय (कटयोनिक) प ६२५ fastas ( विकटान्)ि ज ४७७,८४,२६६ विडावति (टापातिन् ) । १६।३० वियस्थि ( वितस्ति ) प १।७५ वित्तिय ( वितस्तिपृथक्त्वक) १२७५ / वियर (वि: 1 ) वियरह ज ३११६८ वियरम (दे० ) ज ५|१३ वियरय (विचरित) ज २१२ विल ( विकल ) प २४१७ विवसंत ( विकारात् ) प २०४९ विर्याय (क) १२३१,४८ ज ३६; ४१४६ ५८२१ विषाण(क) विराणाहि ५ १२४८१३८,३६ वियत (वित्) १२२६४।१७ विणय (वि) ज ३।३२,७७,१०२ विषिता (शि) उ५३७ वियाणिय ( विज्ञत) ज ३१५७ विद्यालय (निकाल) ज ११८६१ सू २०१८१ विरइय (विरचित) ज ३४३,६,२२२ / विरज्ज (वि) विरज्जति सू १३।१ विरत (परत) २६ १० विरति (पिरति ) २०४१ विरत ( ) विरय (ज) १३।१,२०१३ रेगन, २०१७ विरयाविरति (विरताविरति ) प २०१४२ १०४७ √ विश्व (वि + रचय् ) विवेइ उ १।४६ विरवेत्ता ( विरव्य ) उ ११४६ विरसमेह ( विरसमेघ) ज २ १३१ विरह (विरह) उ ११६५,६६,१०५ विरहित (विरहित ) प ६।५ से ७,४३ विरहिय ( विरहित ) प ६।१ से ४,८ से २३,२७, ४४,४५ ज २१४०; ७१५७,६० सू १०७७ विराइय ( विराजित ) प २।३०,३१,४१,४६ १६२५ ज २।१५; ३।११७७ १७८ विराग (विराग ) सू १३।२ विरायंत ( विराजमान, विराजत् ) ज ३२६ : ५१२१ विराल ( विडाल ) प ११:२१ विराली ( विडाली ) प ११।२३ √ विराय (वि + रावय् ) विरावेहिति ज २।१३१ विराहणी (विराधनी ) प ११।३ विराय ( विराधक ) प ११८६ विराहिय ( विराधित) उ३।१४,२१,८३ विराहियसंजम (विराधितसंगम ) प २०१६१ विराहियसंजमा संजम ( विराधितसंयमासंयम ) प २०१६१ विरिच (वि + भज्) विश्चिइ उ ११६४ विरिचित्ता ( विभज ) उ ११६६,९४ विरिय (वीर्य) प २३३१९, २० ज ३३१०७, ११४ विशेषण (विरेचन) उ ३११०१ विलंब ( विलम्ब) प २४०१६ विलवाण ( विलपत् ) उ ११६२,३११३० विलास (विलास ) ज २।१५,३।१३८ सू २०७ विलिय ( व्रीडित ) ज २१६० उ ११५८,८३ विलिहिज्ज माण (विलिख्यमान ) प २३५० ज ५।१८ विलेवण ( विलेपन) ज ३१६,२०,३३,५४,६३,७१, ८४, १३७, १४३, १६७,१८२,२२२ बिन (इ) ११३८, ६८ उ ११२३३११२८ १. हे० ४।१३७ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४८ विवंचि (विपञ्ची) ज ३१३१ विवज्जिय (विवर्जित) उ ३१३६ विवडिय ( पतित ) ज ३ १०८ से १११ सु १०११२६/२ विघढ (त्रि- वृध्) विवड्ढति ज ३२६५, १५६ विसमबहुल (विषमबहुल ) १११५ विवड्ढत ( विवर्धमान ) प ११४८५२ विवरण ( विवर्ण) उ १।१५,३१८ विवत्थ ( विवस्त्र ) सू २०१८ विवर (विवर) ज २२६५५१५ विवरीत (विपरीत) मु २०६२ विवरीय (विपरीत) ज ३।११७११ विवाग ( विपाक ) प २३|१३ से २३ विवाह (विवाह) सू २०१७ विवि (विविध) प २४१, ४८ ज ३।२४,११७, १६७/१२; ४।२७,४६,५३८, ६७ ७/१७८ म १८१८ उ ३।३५,११२,१२८ विस (विष) उ ११८६,६० विधि (सन्धि ) भू २०/८५ विसंधिकप (सन्धिकल्प ) मु २०१६ विसज्जिय ( विसर्जित) ज ३१८१ विसयमाण (वित्) ज २११५; ३५,६,८,१५, १६,३१,५२,६२,७०,७७,८४,६१,१००, ११४, १४२,१६५,१७३, १८१,१८६,१६६,२१३, ५।२१,२७,४१३ ११२१,४२, ३।१३६ विसम (विष) प १३२२२; १६१५२,३६८२११ ज २/३८, १३६,१३३,३७६,८८, १०६,१२८, १५१,१७०६७।११२/३ सू १०११२६/३ उ ३३५५ विसमकोणसंठित (विषमचतुष्कोणसं स्थित ) सु ११२५४१२ विसमचउरंसठाणसंठित (विषमचतुरस्रसंस्थान संस्थित) १२५ विसमचउरंससंठित (विषमचतुरस्रसंस्थित) सू ४१२ विसमचक वालठाण संठित (विषमचक्रवालसंस्थान संस्थित) सू १६६ विसमचक्क बालसंठित ( विषमचक्रवालसंस्थित ) विवंचि विसुद्धतर सू १/२५४१२, १६१३,६,१३,१७,२६,३३,३६ विसमचारि (विषमचारिन् ) ज ७१११२।२ विसमाउय (विषमायुष्क ) प १७|१३ विसमेह ( विषमेघ) ज २११३१ सिमोववण्णग (विषनोपपन्नक) प १७|१३ विसय (विषय) प २४८, ११६२१११५ १११, १५१४०,४१,३३११।१ ज २।४३।१०४, १०५, १०७, ११४,१२६।४; ५१४६७ १९७८ १८११ विसय ( विशद ) ज २४,६५,१२६ विसयवासि ( विषयवासिन् ) ज ३।२४/२,३२६, ३६,४७,५६,६४,७२, १३११२,१३३.१३८, १४५ fantryaat (विषयानुपूर्वी) ज ७५० विसह (विषय) ज २२६८ विसहरण (विषहरण ) ज ३।६५, १५६ विसाएमाण (विस्वादयत् ) उ ११३४,४६,७४ विसायणिज्ज (विस्वादनी) जे २११८ विसारय ( विशारद) ज ३१७७, १०६ उ १।३१ विसाल (विशाल) २२४७२ ज २२१५; ३११७८; ४११५७२७ १७८ सू २०१६, २०६८ विसाहा (विशाखा ) ज ७११२८, १२९, १३४१३, १३५३३,१३६,१४०, १४९, १६५, १६६ सु १०१२ से ६,१७,२३,०६,६२,७२,७३,७५, ८३, ११४,१२०,१३१ से १३३१२/२१ विसाही ( वैशाखी) ज ७७१४० विसिट्ठ (विशिष्ट) प २४०७ ११३७ २ १५, २०,३१६,३५,१०६, ११७ २२१,२२२,५८४३; ७१७८ विसितर (विशिष्टतर) सू २०१७ विमुज्झमाण (विशुध्यमान) १०११३,१२८ २३।२००,२०१ ज ३।२२३ बिसुद्ध (वि) ज २१८, ६,३३,१०६५।५८ उ ५१४३ विसुद्धतर ( विशुद्धतर ) ज २०७१ २६३; १७/१३८३६/६३,६४ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसुद्धतराग-वीइक्कत १०४६ विसुद्धतराग (विशुद्धतरक) ११७।१०८ से १११ विसुद्धलेस्सतराग (विशुद्धलेश्यातरक) १ १७१७ विसुद्धवष्णतरग (विशुद्ध र्णतरक) प १७१६,१७ विसेस (विशेष) प ११११४२१६४११८,१२६३१ १५।२६,३०; १७१३०,१४६ ज २१३,३० ३३,३६,२।४५,१४५,३१३२,४१२,२५ सू २।२,४१४,७; १५५ से ७:१९८२२११३ विसेसाहिय (विशेषाधिक) पश६४,३११ से ६, २४ से ३२,३७ से १२०,१२२ से १२५,१२७, १४१ से १४३,१५६ से १७०,१७४ से १८३, ६।१२३,८५,७,६,११६१२,१६,२५,१०१३ से ५,२६ से २६११७६,६०,१५।१३,१६, । २६ से २८,३१,३३,१५।५८/१,१५।६४; १७१५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८३,१४४ से १४६; २०६४, २११०४,१०५; २२११०१२८।४१,४४,७०:३४।२५,३६६३५ से ४१,४८,४६,५१,८१ ज १७,२०,४१४५, ५७,६२,६८,११०,१४३,२१३,२३४,२४१; ७१४,१६,७३ से ७५.६३,१६७,२०७।। मु१६१४,२७,१८३७:१६६१० विसोह (वि-!-शोधय) विसाहेहर३।११५ विस्स (विश्व) ज ७।१३०, ८।४ विस्संभर (विश्वम्भर) ५१७६ विस्तदेवया (विश्वदेवता) १..३ विस्सुत (विश्रुत) ज ३।३५ विस्सुथ (विश्रुत) ज ३१७७,१०६,१२६,१६७ दिहंगु (दे०) प ११४८९४६ विहग (हिग) ११३७, २१६८,१०१,४।२७; २८ विहाफइ (बृहस्पति) ज ७१०४ विहर (वि-ह) विहरइ प १५० से ५३ ज१५,४५,२।७० ६१,३१२,२०,२३,३३, ८२,८४,१५३,१७१,१८२,१८६,२१८,२१६, २२४; ४११५६,१६ उ ११२,२७,३१६, ४।११:५१६ विहरति प १२० से २७,३० से ३७,३६ से ४२,४६,४८ से ५२,५४,५५,५७ से ५६ ज १११३,३०,३३,२।८३,१२०,४।२, ११३; ५११,३,८ से १३,६८, ७५६,५६ सू १९२४ उ ३.५०, ५१२६ विहरति प २।३२,३३,३५,३६,४३ से ४५,४८,५१ ५३ से ५६ ज २१७२; ३।१२६; १८ से १३ सु २०१७ विहरसि उ ३८१ विहरामि उ ११७१, ३१३६ विहराहि ज ३३१८५,२०६ विहरिस्संति ज ११३४,१४६ विहरेज्जा सू २०१७ उ ५१३६ विहरमाण (विहरत्) ज २१७१ उ ११२,२० विहरित्तए (विहर्तम) ज ७।१८४,१८५ सु १८।२२ उ ११६५,३१५० विहरिय (विहत) उ ३१५५ विहव (विभव) ज २४३ विहाड (वि-घटय) विहाडेइ ज ३३९०.१५७ विहाडेहि ज ३।८३,१५४ बिहाडिय (विघटित) ज ३।६० विहाडेता (विघटा) ज ३१८३ विहाण (विधान) पश२०१२,११२०,२३.२६,२६, ४८,६८ विहाणमग्गण (विधानमाण) ५२८१६,६,५२,५५ विहायगति (बिहायोगति) ५१६१७,३८,५५ विहायगतिणाम (विहानगतिमान) प २३।३८, ५.६,११६,११७,११६,१२८,१३२ विहार (बिहार) ज २१७१ विहि (विधि) प २१४५; २१।११ ज ३१२४२, म १९४२२ विहिण्णु (विधिज्ञ) ज ३१३२ विहूण (विहीन) प १०।१४१५ ज ४१६४,८६,१३६, २०८ दिहूसण (विभूषण) ज ४।१४०।१ वीइ (वीचि) ज ३।१५१ वीइक्कंत (व्यतिक्रान्त) ज २१५१,५४,७१,८८, ८६,१२१,१२६,१३०,१४६,१५४,१६०,१६३; ३२२२५ उ ११५३,७८,३११२६ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीइभय-वच्छ वीइभय (बीतिभय) पशE३४ बीरियंतराइय (वीर्यान्तरायिक) प २३६५६ वीइय (बीजित) ज ३।६,२२२ बीरियंतराय (धीर्यान्तराय) प २३।२३ बीइवइत्ता (व्यतिब्रज।) ज१११६,४६,४१५२ वीवाह (विवाह) ज २।१३० उ५१४१ वीस (चित्र) प २१२० से २७ वीईवयमाण (व्यतित्रजत) ज २१६०३१२६,३६, वीस (विशति) प२।२४ ज ११२३ मू ७१ ४७,५६ ६४,७२,१३३,१४५,५१४४,४७,६७ उ ५।२८ वोचि (वीचि) ज २१५:३१८१ वीस (विशतितम) १०.१४१४ वीणग्गाह (वीणानाह) ज ३११.७५ वीसइ (विंगति) ज ३।१०६ च ६५ सू ११६१५ बीतराग (जीनाम) प१:१०७ से ११०,११५, वीसइअंगुलवाहाक (विशव्यंगुलबाहुक) ज ३।१०६ ११७ से १२३ वीपति (विशति) प २३७५ योत्तरागसंजय (वीरागत) ११७४२५ वीसतिम (विंशतितम) सू १२:१७ वोतसोग (वीतशोक) २०१८ वीसधा (विशतिधा) सू १२२३० वोतिमिर (वितिभिर) । २०६३ बीससा (सिमा) १६.५५; २३३१३ से २३ वोतिययभाण (व्यतित्) ज ३।११३; ५१४४ चीससेण (विश्वसेन) ज ७१२२२२ सू १०१८४२ 1वीतीवय (वि:-अति-व्रज्) वीतिकथति वीसहा (विशतिधा) सू १०११४२,१४७ भू २००२ वीसायणिज्ज (विस्वादनी) प १७।१३४ वीसुत (विश्रुत) ज ३।३५,११६ वीतीवतित्ता (अतिव्रज:) प २१६३ वीहि (बीहि) प ११४५।१ ज २।३७ वीयणी (बीजनी) ज ३१३ विच्च (वच ) बुच्चइ प ५१७,३४,१०१,११६,१६९; वीयराग (नराग) प ११००,१०४ से १०७, ११॥३,४१,१७१२,१३,२०,२७,११६,११६, १०६ से १११,११५,११६.११८,१२१ से १२३ १५२,१५५,२०१३६ ज ११४५,४७, २।४।१; वीयराय (बीतराग) प ११०२ से १०४,११६, ३।१,६८,२२६४।२२,३४,५१,५४,६०,६१, ११७,११६,१२०.१२२ ८०,८५,८६,६७,१०२,१०७,११३,१५६,१६१, वीयसोय (तांक) ज ४२१२,२१२१२ १६६,१७७,२०८,२११,२६१,२६४,२७०, सू२०६७ २७३,२७६,७१६६,१८५,२०६,२१३,२२६ वीर (धीर) ३१९,१०३,१०८ से १११,२२२ उ ३।३८ दुच्चंति प २२१४५,३०११७ बुच्चति चं११ उश२२,१४०,21५,१० प ५३,५,७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४, वीरंगय (बीगङ्गद) उ ५।२५,२७ से ३० २८,३०,३२,३७,४१,४५,४६,५३,५६,५६, वीरकण्ह (हर कृष्ण) उ ५.१० ६३,६८,७१,७४,७२,८३,८६,८६,६३,६७, वीरण (वीरण) प १४४११ १०४,१०,१११,११५,१२७,१२६,१३१, वीरवर (वीरवार) सू २०६।६ १३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, वीरसेण (ओरसेन) उ ५.१० १५०,१५४,१५७,१६३,१६६,२०३,२४२; वीरिय (वीर्य), २३।६ ज २५१,५४,७१,१२१, १०॥३:१११३,३६,४१,१५१४५,४८,९८; १२६,१३०,१३८,१४०,१४६.१५४,१६०, १७१२,४,६,६,११,१६,१७,२०,१०७,१०६, १६३,३।३,१२६,१८८७१७८ २०११, १११,११६,११६.१५०,१५५, २०।३६,५१, २०६३,५ २२१८,४५, २३।१६०; २६.१७,१६ से २१ ; Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुट्टि-वेद १०५१ ३०.१६,१६,२१,२३,२६,२८,३४!१२,१६, ३६८७ १८३५॥१८,२०,२३,३६२८,८१,६४ वेउब्वियसरीरग (वक्रिपशरीरक) प १२।३६ बुठि (वृष्टि) ज ३।११७ बेउब्वियसरीरय (वैक्रिशरीरक) प१२१८,२१.३१ वृड्ढकुमारी (वृद्धकुमारी) उ ४६ देउब्वियसरीरि (4 क्रियशरीरिन् ) प २८।१४१ वृड्ढय (वृद्धक) ज २१६५ वेंट (वन्त) ५१४४८४५ बुड्ढा (वृद्धा) उ ४६ वेटबद्ध (वन्तबद्ध) प १४४८।४० बुढि (वृद्धि) प ३३।१।१ ज ७१,१०,१३,१६, बेग (वेग) प २०२१ से २७,३० ज २११६ १६,६६,७२,७५,७८ चं २।४ सू ११६४,१२२७; वेगच्छिग (वैकक्षिक) ज ७।१७८ १३३१७ वेच्च (दे०,व्युत,ब्यूत) ज ४११३ वृत्त (उका) ज ३१८,१३,१६,२६,४२,५०,५३,५६, वैजयत (वजयन्त) प १११३८, २।६३,४१२६४ से ६२,६८,७०,७५,७७,८४,१००,१२५,१२६, २६६।६।४२,५६;७।२६:१५२८६,९२,१००, १४२.१४८,१६५,१६६,१८१,१८६,१६२; १०५,१०८,१०६,११३,११४,११६,१२०, ५१५,२२,२६,७० च २१४,५,५२ १२१,१२३,१२५,१२६,१३१,१३६२८६६ सू १।६।४,१६।३ उ १६४०,४५,५५,५८,८०, ज १११५ ८२,१०८,३७८,८२,११३; ४१२० बेजयंती (वैजयन्ती) प २४८ ज ३।३१,१७८%; ४१४६,२१२,५१८११,५४३ ; ७१२०१२,१८६ वेिज (वि+इ) वेअति सू ६१ ज्झ (वेध्य) ज ३।३२ वेइगा (वेदिका) ज ४११२८ वेड्ड (दे० वीडित) ज २१६० वेइया (वेदिका) प २।१२११९० ज २१२०, ४१३, बेढ (वेष्ट) ज २११३६ २५,३६,५७,६३,११०,१४८,१५६,२२१.२४५ बेढ (वेष्ट ) वेढइ उ ११४६ वेवि (वैऋिषिन) प २१४६ वेढय (वेष्टक) ज २११३६ वेउध्विय (क्रियक) प १२२१,२,४.५,८,१४,१८, वेढल (दे०) प ११५८ २४,२८,३३,३६:१६।५,२१।१,८३,१०४. वेढिम (वेष्टिम) ज ३।१११ १०५:२३१४२,६०,६२,१४६,१७३,३६।११, वेढिय (वेष्टित) ज ३१३२ ३६।३२ ज २१८०, १४०,५६७१५५,५८ ।। वेढेत्ता (वेष्टित्या) उ ११४६ गु१६२३ २६ वेणइया (वैनयिकी,वैण किया) प १९८ उ ११४१, वेदिवयमीससरीर (वैक्रियमिश्रशरीर) प १६३१, ३,७,१० वेणुदालि (वेणुदालि) प २।३७,३६,४०।७ देउब्वियमीसासरीर (वैक्रिमिश्रकशरीर) वेणुदेव (वेणुदेव) प २।३७,३८,४०१६ ज ४।२०८ ५१६।११,१२,१५,३६८७ वेणुयाणुजात (वेणुकानुजात) मू१२।२६ वेउब्वियसमुग्घाय (वै कि समुद्घात) प ३६११,४ ।। वेत्त (वेत्र) प ११४१।१:१११७५ ज २१६७ से ७,२८,३५ से ३८,४०,४१,५३ से ५८,७० वेद (वेदय ) वेदेइ प २३११११, २५१४ वेदेति ७३ ज ३१११५,१६२,२०८१५,७,२६,५५ प१७।२०,२३।११:२५१४,५,२७।२,३,३५१२, बेउब्वियसरीर (वैक्रियशरीर) प १२११२,१६; ३,५,७,६,११,१३,१४,१७ से २०,२२,२३ १६।१,३,७,१२,१५, २११४६ से ६५,६८ से वेदेति प २३१६,१०,१२ से २३:२५२,२७१२, ७१,७७,८१,६६,६८,१०१,१०४,१०५; Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५२ वेद-वेयणा वेद (वेद) पश१६,३।११।१८११ ८,१०,११,१४,१५, २५४१,२,४,२६.१,३,४, २८.१०६।१ उ ३।४८,५० ८,६; २७।१.२,६; २८१,७४,१०१.१०२, वेदग (वेदक) प ११९४११:२५२७।३ १०५.१०६,१०६,१११,११५ से ११७,१२२, वेदणा (वेदना) प २।२३,२६,१७११७.२०,२७, १२७,१३२,२६।१५,२२,३०।१४,२४; २६,३२,३३,२२१५,३५३१११,३५.१ से ७,६, ३११५,६११३२।५३३१३०,३४,३७; ११ से १४,१६ से २०,२२,२३ ज २।१३१ ३४।४,५,११ से १४,३५६३,५,७,६,१११५, वेदणासभुग्घाय (बेदनासघात ) ५ ३६।१,२,४ २३; ३६१७ से १,११ से १३,१५,२०, से ८,१२,१८ से २०,३२,३६ से ४१,४६,५३ . . २६,२७,३०,३२ से ३४,४१,४३ से ४५,४७, से ५६,६५ ५०,६५,६६,१२,७३ ज ११९०,९५,६६, वेदणिज्ज (वेदनीय) प २३११,१२:२४११२:२५१५: १००,१०१,१०२.१०४,१०६,११०,११३ से २६.६.११:२७५,३६६८२,६२ ११६,१२०,४१२४८,२५० से २५.२,५।१६, वेदपरिणाम (वेदपरिणाम ). १३।२,१४,१५,१८, २६,२८,४७,६७,७२,७३.७४ वेमाणियत्त (वैमानिकत्व) प ३६.१८,२०,२२,२४, वेदय (वेदक) ! २२ २६,२७,३० से ३४,४६,४७ वेदि (देदि) उ ३५१,५६,६४,६८,७१,७४,७६ वेमायत्त ( वित्रत्व) प २८।३६,४२,४५,४६,७१ वेदिया (वेदिका) ज १।१४ बेमाया (विमाना) प ७/४; १३।२२।१२८१३८ वेदमाण (दद त्) प २६१२ से ४,८,६,१२,२७२, वय (विद्) वइसु प १४।१८ वइस्सति प १४११८ वेएइ प २३।१५,१६,१८ से २० वेमापिणी वानिकी) प३।१४०४।२१० से वेएंति ५१४११८ २१२; १७५५,८०,८२,८३, २०१३ बेय (वेत्र) ५११४२।१ वेय (वेद) १४।१८।१ वेमाणिय (वैमानि), १११३०,१३४,१३८; वेधग (वेदक) प २७५ २४६ से १३:१३६,४।२०७ से २०६; वेयड्ढ (बंता) ११५ से २०,२३ से २५, ५॥३,२६,१२२:६।४६.५६,६६,८५,८६,६२, २८,३२,३३,४६।१,४७,४८% २११३३ ; ३३१, ६५.१०६,१११.११७,११६,१२१,७७; ६१.१३७.२२०७४।१६७ से १६९,१७२।१, ८।३६।११,१८,२४,१०३२ से ५३,१११४६, ८०,८१,८४,१२२६.३६, १३१२०,१४१२,३, यड्डकड (वैताड्ट ) ज ११३४,४६,६।११ ५,७,६,११ से १५,१८,१५१३५,४६,५६ से वेयगिरि (वता गिरि) ज २१३१,३१२२० ६३.६५ से ६७,७५,८२,१३४; १६।६,१६, उ५।१० २०,२१.२६१७२७,२८,३०,३४,३५,५४,७६ वेयडढगिरिकुमार (वैतादयगिरिकुमार) ज ११४७; से ८१,८३,८६ ६१.६६.१०५; १९६४; ३१६३ से ६६,६८,७२ २०६१,४,५,१३,१६.२५,३०,३५,३३,५४,५६; वेयड्ढपध्वय (ताड़यविन) ज ११३४,३५,४१, २११५५,६२,७१, २२११ १३,१५,१७,१६, ३१६०,६१,१३६,१३७,४१३५,३७,१६७,१७४ २०,२६,२७ ३५,३५,३७.३६.४१,४२,४४, देयणा (वेदना) प ११११७:२।२० से २२,२४,२५, ४७,५३ से ५८.६६,७५.७६,७६,८२,८८, २०३५८,१०,२०२६।१। १ २।४३ ६०,१००; २३१२,४ से ७,१०,११,२४११,३, उ११६०,६२,८५,८७ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेयणासमुग्धाय-स १०५३ वेयणासमुग्धाय (वेदनासमुद्घात) प ३६१३५,३७, बेसासिय (श्वासिक) उ ३।१२८ वेहल्ल (मेल) ९५ से १६,१०२ से ११७, वेयणिज्ज (वेदनी) प २२१२८२३१२६२४११०, ११६,११५.१२८ राया श्रमिक का एक पुत्र । ११,२५॥३,४,२६८; ३६८२ ज ३।२२५ बेहास (भास में ३।१३१,१३२:५१६४ वेयय (वेद) प२५१४ १९७ वेयवेयय (वेदवेदक) प ११११६ बेहातवाडच्या मिहा स्वाहा ।) सू ६४ वेर (वै) ज २४२,१३३ वोका दि० प ११८६ वेरमण (विरण) प २०११७,१८,३४ वोच्छ ( अच्छ.जि ७१३५१ वेराण बंध (वैर नुबन्ध) ज २०४२ सू १६१३१ बोच्छिद (F: : अ- छिद) बोच्छिजिस्सइ वेराणुमय (वैरानुगय) ज २१२८ वेरिय (वैगिक) ज २०२८ ज २२१२६.१५८ वेरुलिय (वैडय) प ११२०१४ ज ११३७,३११२, वोच्छिण्ण (न्य च्छिग सू ८१३ ३१३४ ८८,६२,११६,१६७१२,१७८; ४।२४२, वोच्छिा मोह नच्छिन्नदोहद) ११५०,७५ २६४:५५,१५८,31१3८ बोयडाड (व्यवच्छेद की। ए १७१३४ योज्य ( मािति ३४ वेरुलिया (यकट) ४७९ योज्य (उह्य) ज ३१२१११५८ वेरुलियमणि (वैडमणि) प १७।११६,१४८ वोडाप (दे०) प ११४४११ वेरुलियमय (वैड्यंत) ज ३३१२,८८,४१७,२६, वोयड (व्य.वृत) ५ १११३७।२ ओलीण (') गु २०१६।४ १६२,२४२,२६४,५१५८ बोरछकाय (जस्यष्टकाय) ज २१६७ वेलंबग (विडम्बक) ज २।३२ वैसाह (वैशाख) ज ७११०४ वेलंबय (विडम्बक) ज २६३२ व्व (इ.) प११०१७; २१४८ ज २११५; वेला (ला) प २११ 3 ३१११० ३२४३,३७११,४५१,१३१।३ उ १३५ वेलु (वेणु) प ११४११२ वेलुय (वेणुक) प ११४८१६१ वेस (वय) प२०४१ ज २।१५, ३११३८,१५८ स (ब) प २१३०,३१,४१४६,५०,५८ ज १११६; सू २० २११२०३१२.१७८ १०७४ उ ३२६, वेसमण (वंशाण ज ३१८,२१,९३,१८०; ४११७॥१५३६८ से ७१७११२सार भाग) T१४८१४९; २३०,३१.३२,४१,४६,५६, सू १०८४१२ ३६१५४ ६३,६६ ज १८,१६,२३,२६.३१,३५२१६४, देसमण भाइय) (वंशः णकाधिक) ज ११३१ ७५,७२,५७ से २२,१६,१७,१८,२१,२८, वेसमणकर ( वै ट ) ज ११३४,४६,४।४४, ३०,३५,४१,४६,५८,६६,४४,७६,८१,१०१, ११६ से ११८,१२८,१४७,१५१,१६७,१६८, वेशाणिय (वैवाणिक) प १८६ १८०,२१२,२१३.२२०; ४३.१३.२१,२५, वेसाली (वैशाली) उ १.१०५ से १०७,११०,१११, . ३६,४०,८१,५०,५१,५९,२,१२,११४, ११५.११६,१२६,१३०,१३२ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सअंतर-मुखेज्ज ११६,१३५,१४७,१५५,१५६,२२१ से २२४, संकाइबग (दे०) उ ३१५१ २५६,२७७,५११,२१,३२.४१,४३,५०,५८% संकास (संकाश) ५ ११४८1५६ ज २१७८३११ ६११०,११,१४,१५,१८,१६,२१,२२,२६; संकिलिट्ठ (संक्लिष्ट) १७.११४११,१३८; ७१४,४६,६३,६६,८७,६०,११०,११४,१३२, २३।१६५ १६७,१८३,१६४ सू १८।२१, २०१२,७ संकिलिस्समाण (मक्लिदयमान) १ ११११३,१२८ उ११२६,४४ से ४६,६३,१०५,१०६,११५, संकिलेसब हुल (संक्लेशबहुल) ज १२१८ ११६ ११६,१३८,१४८; ४।५,५१२८ संकुचियपसारिय (संकुचितप्रसारित) ज ५१५७ सअंतर (मान्तर) प६।११ संकुड (दे० संकुच) सू १६।२२१५ सई (सकृत) सू १।१२,१४ संकुडिय (दे० संकुचित) ज २११३३ सइंदिय (सेन्द्रिय) १३१४० से ४३,४६,१८११३, संकुय (संकुच) ज ७।३१,३३ सु ४१३,४,६,७ संकुल (संकुल) ज २१६५७३।१७,२१,१७७,५२२५ संख (शंख) प १२४६ : २।३१,१७:१२८ ज २११५, सइय (शतिक) ज ४११६२,१६८,२०४,२१०, २४,६४,६८,६६,३३,१२,७८,१६७१,१०, २३६,२६६,२७५ १७८.१८०,२०६४।८५,१२५.२१२,२१२११; सउण (शकुन) ज २।१२,४१३,२५ ५१६२,७१७८ मू २०१८,२०१८।२ सउणस्य (शकुनरुत) ज २०६४ संखणग (शंखनक) प ११४६ सउणि (शकुनि) ज २।१६७११२३ से १२५, संखणाम (शङ्खनाभ) सू २०१८ १३३।१ संखदल (शङ्ख दल) प २०६४ सउणिपलीणगसंठिय (शकुनिप्रलीन कसं स्थित) संखघमा (शंखध्मायक) उ ३।५० सू१०।२६ संखमाल (शङ्खमाल) ज २१८ संकड (संकट) ज ३।२११ संखयण्णाभ (शङ्खवर्णाभ) सु २०१८ संकप्प (संकल्प) ज ३१२६,३६,४७,५६,१०५, संखसणाम (शंखसनामन्) ज ७।१८६।२ १२२,१२३,१३३,१४५,१८८ ४११४०११; संखायण (शंखायन) ज ७१३२।१ म १०६३ ५२२ उ १.१५,३५,४१ से ४४,५१,५४,६५, संखार (शंखकार) प ११६७ ७१,७६,७६,६६.१०५; ३।२६,४८,५०,५५, संखावत्त (शंखावर्त ) प ६२६ ६८,१०६,११८,१३१,५१३६,३७ संखिज्ज (मंख्येय) ज ३।१६२,५१५ संकम (संक्रम) ११०३० ज ३९ से १०१,१६१ मंखिन्न (संक्षिप्त ज११.३५.५१:४।४५.११०. मु१६२२।१२ ११४,१५६,२१३,२४२ संकम (1--क्रम) सकमति सू २१२ संखित्तविउलतेयलेस्स (संक्षिप्त विपुलतेजोलेश्य) सं.मण (संक्रमण) गु १६१२२।१२ ज १५ उ १३ संकममाण (मंक्रामत्) ज ७१०,१३,१६,१६,२२, संखिय (शांखिक) ज २०६४, ३१३१,१८५ २५,२७,३०,६६,७२,७५,७८,८१,८४ संखेज्ज (संख्येय) प १११३,२०,२३,२६,२६,४०, सू १।१४,१६,१७,२१,२४,२७,२।२,३,६११ ४८,११४८।८,४०,५७,३११८०,५।२,३.५,१२६, संकला (शंखना) ज ३१३ १२७,१४२,१४३;६३५ से ४१,६०,६१,६४, संकाय (दे०) ३१५१,५३,५५,५६,६३,६४,६७,६८, ६६,६८,१०११६,१८ से २७,२६,१११५०, ७१,७३,७४,७६ ७२।१२।३२,३३,३६:१५१८३,८४,८७,८६, Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संखेज्जइभाग-संघयणपज्जव १०५५ ६.१,६३ से ६६,१०३,१०४,११०,११२,१२२, संखेवरुचि (संक्षेपरुचि) प १११०११११ १२३,१३० से १३२,१३५ से १३७,१३६ संखोहबहुल (मक्ष भवहुल) ज १११८ १४२,१४३,१८११५,२० से २३,२८,३२ से संग (राङ्ग) ज २०७० ३५,४७,५.० से ५२;३३।११,१५,३६१८,१४, संगइय (साङ्गतिक) ज २६ १७ से २०,२२,२३,२५,३३,४४,७०,७२,७४ संगंय (मग्रन्थ) ज २।६६ २॥४,५८,१५७,५७११६६३०,३१ संगत (मङ्गत) सू २०१७ संखेज्जइभाग (संख्येयभार) प|४३२११६५ से संचय (मङ्गा)ज २।१४,१५३।१०६,१३८ ७०,३६७२ ७.१७८ संखेज्जगुण (संख्येयगुण) प ३३४ २५,३७,३६,४३, संगह (मंग्रह) प १६१४६ ४४,४६,५३ से ५८,६०,६४ से ७१,८८ से संगहणिगाहा (मंग्रहणीगाथा) प २४.७:२११४७ ६५,६३,६६,१०६,११०,१२८ से १४०,१४४ संगहणी (संग्रहणी) १११७६१६।१,७११६७ से १५५,१७१ से १७४,१७,१७६ से १८३; गु १६६१ उ ३।१७१, ४।२८,५४५ ५१५,१०,२०,३२,१२६,१३४,१५१:६११२३; संगहणीगाहा (संग्रहणीगाथा) प १०५३ ८.५,७,६,११,१०।२६,२७,१५११३,३१; संगहिय (गहीत) ज ३१३५ १७॥५६,६३,६४,६६ से १८,७१ से ७३,७६, संगाम (संग्राम) ज ३।६२.११६ उ ।१४,१५, ७८,८० से ८३,२१।१०५,२८७,५३; २१,२२,२५,२६,१२६,१३७,१४० ३४।२५:३६।३५ से ४१,४० से ५१ ज ७११६७ सगामेमाण (सङ्ग्रामात्) उ श२२,२५,२६,१४० म् १८१३७ संगल्लि (दे०) ज ३।१७६ सिंगोव ( गुपसंगांवेंति ज २१४६,५६ संसेज्जजीविय (संख्येयजीवित) प ११४८१४१ संगवेस्संति ज २१५६ संखेज्जतिभाग (मंख्येयभाग) प १२।१६,१५१४१ संगोविज्जमाण (मंगोप्यमान) ३४६ संखेज्जपएसिय (संख्येयप्रदेशिक) प ५।१३४,१६२, संगोवेत्ता (संगोप्य) ज २१४६ १६३,१८१,१६६,१६७,२१७,२१८,१०११४, संगोवेमाण (मनीपयत) उ ११५७,५८,८२,८३ १७,२६,२६ संघ (सइ) प|३०,३१,४१ ज ११३१ ११२१ संखेज्जपदेसिय (संख्येयप्रदेशिक) प ३११७६; उ ५५ ५।१२७,१३३,१८०.१८१,१०।१८,२१,२६ संघट्ट (मं. घट ) गंध ति ५३६१६२ संखेज्जभाग (संख्येयभाग) प ५१५,१०,२०,३०, संघट्टा (संघद्रा) प ११४०।३ इरा नाम की लाा ३२,१२६,१३४ संघबाहिर (संघबाह्य) २०१६।४ संखेज्जवासाउग (गरुयेयवर्याक) प ६७१ संघयण (गहनन) प२३०,६१,४१,४६२३।६८, संखेज्जवासाउय (संख्येयवक) प६७१,७२. १०५,१०७,१६० न १,११६,४६,२८,८६, ७६,६७,६८,११३,११,२१५.३,५४,७२ १२३,१२६,१२८,१४८,१५१,१५७,४११०१, संखेज्जसमयद्वितीय (संख्येयसमयस्थिलिक) १७१ ११५ प३।१८१,५।१४८ संघयणणाम (पहननामन ) प २२३८,४५६४ संखेज्जसमयठितीय (संख्ये समयस्थितिक) -गे ६७,६६,१०० । प ३११८१ संघयणपज्जव (संहनगपर्यय) १,१४,१२१. संखेव (संक्षेप) प १।१०१।१ १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५६ संघरिलसमुट्ठिय ( संघर्ष समुत्थित ) प १२६ संघाइम ( संघातिम) ज ३१२११ संघाड (संघाट ) प ११४८६२ संघाय (संघाटक ) उ ३३१००,१३३ / संघात ( सं ! - घातय् ) संघातेंति सू १।१८ संघाय (धात) प ११४७।२, ३ ज ७ १७८ / संघाय ( सं घाय् ) संघाएंति प ३६।६२ संचय (मंत्र) ज २११६; ३११६७११४ संचाय (क) संचाए उ ११५२३।१०६ २०।१७.१८,३४ संचाएमि !. उ १६५३।१३१ संचाएमा उ १९६६ संचाहि उ ३।१३० संचारिम (मंत्रा) ३।११७ v संचिट्ठ ( सं ! ष्ठा) चिट्ठइ उ ११३८, ३३५६ विषि १८:३७६ संचि ( सञ्चित ) प २३।१३ से २३ ज ३।२२१ संछष्ण ( संछन्न) ज ४१३, २५ संजत (संत) ३|१०५; ६।६७, १८, २१।७२; ३२।६।१ संजता संजत (संयतासंयत ) प ६ ९८ २१ ७२; ३२/१,३ संजता संजय ( संपतासंयत ) प ३२|४ संजम (संयम ) प १|११७ ज ११५२२८३३।३२११ उ ११२, ३, ३२६,३१,६६, १३२ ५।२६ संजय (यव) प ३२१११,१०५६ ६८ १७ २५, ३०,३३; १८ १११, १८१८६२१।७२; २६११०६।१, २८११२८ ३२।१ से ४,६६१ संजया संजय ( संयतासंयत ) प ३।१०५; ६१६७; १७।२३,२५,३०,१८१६१,२१।७२:२२।६२; २८११३०३२।१,२,६ संजण ( पंज्वलन ) प १४ ७ २३ ३५ संजणा ( संज्वलना) प २३|१८४ संजा (जत) व ३।१११,१२५ ११८६ संजाय उहहत ( संजातकौतूहल ) ज ११६ संजाय संसय ( संजात संशय ) ज ११६ संघ रिसस मुट्ठिय-संठित संजायसढ (मंजातश्रद्ध) ज १६ संजुत्त (संयुक्त) प १५ ५७ संजोग (संप्रग) प २१।१।१ ज ५।५७७ । १३४१२,३ संजोय ( संयोग ) प ११८४; १६२१५ संजोयणाहिकरणिया (संयोजनाधिकरणिकी) प २२/३ संझन्भराग ( सन्ध्याराग ) प १७ १२६ संझा ( सन्ध्या ) प २।४०।११ संठाण ( संस्थान ) प ११४ से ६, ४७।१२१२० से २७,३०,३१,४१,४८ से ५०,५४,५८ से ६०, ६४,६४११,४,५,६,१०।१५ से २४,२६ से ३०,१५/१३१,१५।२ से ६,१८,१६,२१,२६, ३०,३५,२१।१।१,२१।२१ से ३७.५६ से ६२, ७३,७८ से ८०, १४; २३ । १००, १६०, ३०१२५, २६; ३३।१११,३३१२१ से २३,३६१८१ ज ११५, ७, ८, १८, २०,२३,३५,५१,२११६,२०,४७, ८६,१२३,१२८,१४८, १५१,१५७, ३१३,६५, १५६,४११,३६,४५, ५५, ५७,६२,६६,७४,८४, ८६,६१,६७,६८,१०१, १०२, १०३, १०८, ११०, १६७,१७८, २१३, २४२, २४५ ७ ३१,३२/१, ३३,३५,५५,१२७११, १२६११,१३३३३.१६७११; १६८२,१७६ चं ३१२ सू ११७/२,१११४; १०१६ १३।१७ १८१८ उ ११३ संठाणओ ( संस्थान तत् ) प १५ से ६ संठाणतो ( संस्थागतस् ) प ११७ से 8 संठाणणाम ( संस्थाननामन् ) प २३३८, ४६ संठाणपज्जव ( संस्थानपर्यव) ज २२५१,५४, १२१, १२६,१३०,१३८, १४०, १४६, १५४,१६०,१६३ संoाणपरिणाम ( संस्थानः रिणाम ) प १३ २१,२४ संठाणा (दे०) सू १०१६,६२,६७,६८,७५,८३, १०३,१२०,१३१ से १३३१२/२० मृगशिरा नक्षत्र संठि ( संस्थिति) ज ७।३१,३३,३५ चं २ १३ १, ५।१११६११,१।७११, ११६३१ संठित (संस्थित) प २२० से २७,३०,३१,४१,.. Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संठिति - संपण्ण ४८ से ५०, ५४,५६,६०,६४ ११२५;३।२; ४१२ से ४,६,७,९,३३,३६,१०/२७ से ३१, ३३, ३४ से ४४, ४६ से ५४; १८८; १६ २, ३, ६,६,१२,१३,१६,१७,२२१२, १५ संठिति (संस्थिति) ज २०४६ सू १।१५, १६, १७, २५,४११ से ४, ६, ७, ६६१; १; २; १३।१७ संठिया ( संस्थित) प २२४८, ६४; १५२ से ६,१८, ५६,२१,२६,३०,३५,२११२१ से ३७,५६ से ६२,७३,७८ से ८१,८३ : ३३।१९ से २६; ३६।८१ ज ११५, ७, ८, १८, २०, २३, ३५, ३७, ४८.५१; २।१५,१६, २०.४७, ८६, ३६,६४, ६५,१३३,१३५,१५८, १५६, १६७ २२२;४११, २३,३८,३६,४५,५५,५७,६२,६५,६६,७३.७४, ८६,६०,६१,६७,६८,१०३, १०८, ११०,१२८: १६७१११.१६६,१७८,२१३,२४२, २४५; ५।४३७ ३१ से ३३,३५,५५, १३३,१६७, १७६,१७८ सू ११५१४४१६ उ ११३ संड (षण्ड) ज ३१११७,१८८ संडिल्ल (शाण्डिल्य ) प ११९३३ संजय ( सन्नत ) ज ३११०६ संत (सत् ) प ११४७/३ ज २२६४,६६ सू २०हार संत ( शान्त) ज २६८ संत ( श्रान्त) उ ११५२,७७ संतइभाव (संततिभाव ) १८२४,६ संततिभाव ( सन्ततिभाव ) प८८१० संत ( सं :- तप्) संतप्पंति सु ६१ संतपमाण (संतान) सू ६ |१ संतय ( सन्तत ) प ७३१ संतर ( सान्तर ) प ६/४७ से ५८; ११७०,७१ संताणय ( सन्तानक) सु २०६ संता (नं तापय् ) संत वैति सू 21१ संतिकर (शान्तिकर) ज ३८द ( संथर (स्तु) संथरइ ज ३१२०,३३,५४,६३, ७१,८४,१३७,१४३,१६६ थरेंति ज ३।१११ संथरिता (संस्कृत्य, संस्तीयं ) ज ३१२० संयरेता (संस्कृत्य, संस्तीर्य ) ज ३।१११ संभव (संस्तव ) प ११०१।२३ संचार (संस्तार ) ज ३।११३ संचार (संस्तारक ) ज ३११११ संथार (संस्तारक ) ज ३।१११ / संथण ( सं + स्तु) संथुणइ ज ५५८ संयुणित्ता (संस्तुत्य ) ज ५।५८ संय (संस्तुत ) ज २२६६ संयुच्वमाण (संस्तूयमान) ज ३११८,६३,१८० संदमानिया ( स्यन्दमानिका) ज २।१२,३३ संधि ( सन्धि ) प १२४८ ३१ ज २९१५, १३३,४११३, २६ संधिकम (सन्धिकर्मन् ) ज ३।३५ संधिवाल ( सन्धिपाल ) ज ३१६,७७, २२२३१/६२ / संधुक्क (सं. +-धुक्ष) संधुक्केइ उ ३१५१ संधुक्केत्ता (संधुक्ष्य ) उ ३५१ संधुख ( सं + घुक्ष) संधुक्खति ज ५।१६ संघुषित्ता (संधुदय ) ज ५।१६ संनिवित्त ( सन्निक्षिप्त) ज ११४० संनिचित (सन्निचित) उ ५ ५ संनिवडिय (संनिपतित ) उ ११२३, ६१ संनिविट्ठ (संनिविष्ट) ज ४।२७; ५३४ संनिसण ( संनिषण्ण) उ ३१६१ संपत्त ( संप्रयुक्त ) ज ३१३५,८२,१०३, १७८, १८७,२१८ १०५७ संपखालग ( सम्प्रक्षालक) उ३१५० संपग्ाहिय ( सम्प्रगृहीत) ज ३३३५, १७८ संपद्धित ( सम्प्रस्थित ) प १६।२२ संपट्ठिय ( सम्प्रस्थित) ज ३।१७८, १७६,२०२, २१७५।४३ संपणदत्त (संप्रणदित ) प २३०, ४१ संपदिय (संप्रणदित ) प २३३१ संपादित (संप्रणादित ) ज ११३१ संपण (संपन्न) उ ११२; ३|१५६; ५|२६ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५९ संपत्त-संलाव संपत्त (सम्प्राप्त) ज २१ सू २१३ उ ११४ से संपुष्णदोहल (सम्पूर्णदोहद) उ ११५०.७५ ८,६३,६३,१४२,१४३, ११ से ३,१४,१५, सिंह (सं+प्र-1ईक्ष ) संपेहेइ ज ३१२६,३६,४७ २१:३।१ से ३,२०,२३,२६,८८,१२६,१५३, उश१७, ३१२६ संपेहेति ज ३।१८८ १५४,१६६,१६७,१७०,४१ से ३,२७,५११, संपेहेमि उ १७६ संपेहेत्ता (सम्प्रेक्ष्य) ज ३२६ उ १११७:३१२६ संपत्ति (सम्प्राप्ति) उ १२४१,४३,४४ संब (शम्ब) उ ५:१० संपत्थिय (सम्प्रस्थित) उ ३१६३,६७,७०,७३ संबंधि (सम्बन्धिन) ज ३।१८७ उ ३१५०,११०, संपन्न (सम्पन्न) ज २०१६ १११;४।१६,१८ सिंपमज्ज (सं+-प्र--मृज) संपमज्जेज्जा ज ५५, संबद्ध (संबद्ध) ज २२० से २७ ७५ से ७६ संबद्धलेसाग (संबद्ध लेश्याक) सू १६।१११२ संपया (संपदा) ज २।७४ । संबररुहिर (शम्बररुधिर), १७१२६ संपराइयबंधग (साम्परायिकबन्धक) प २३१६३ संबाह (सम्बाध) ज २१२२:३।१८,३१,१८०,२२१ संपराइयबंधय (साम्परायिक बन्धक) प २३६१७६ संपराय (सम्पराघ) ज ३।१०३ संबुद्ध (सम्बुद्ध) उ ३१४५ संपरिक्खित्त (सम्परिक्षिप्त) ज १७,६,२३,२५, संमंत (सम्भ्रान्त) उ ११३७ २८,३२,३५,४११,३,६,१४,२५,३१,३६,४३, संभम (सम्भ्रम) ज ३।२०६५।२२,२६ ४५,५७,६२,६८,७२,७६,७८,८६,६०,६५, संभव (सम्भव) ज ७.११४ १०३,१४१,१४३,१४८,१४६,१५२,१७४, संभिन्न (सम्भिन्न ) प ३३.१८ १७६,१७८,१८३,२००,२१३,२१५,२३४, संभिय (श्लेष्मिक) उ ३१३५ २४०,२४१,२४२,२४५,५।३८ सू ३।१:१६२, संभूयग (सम्भूतक) उ ३९८ १२,२८,३२,३६ उ ५१८ संभोग (सम्भोग) उ १२२७,१४० संपरिवुड (सम्परिवत) ज २१८८,६०३१६,१४, संमज्जग (सम्मज्जक) उ ३१५० १८,२२,३०,३१,३६,४३,५१,६०,६८,७७, संमज्जण (सम्मार्जन) उ३१५१,५६,७१,७६ ७८,९३,१३०,१३६,१४०,१४६,१७२,१८०, राजिया सम्मानित) ज २६५ : 3310.१८४: १८६,२०४,२१४,२२१,२२२,२२४; ५।१,५, ५।५७ २२,४६,४७,५६,६७ उ ११२,१६,६२,६३,६७, संमठ (सम्मृष्ट) ज २१६; ३७,५१५७ ६८,१०५ से १०७.१२१,१२२,१२६ से १२८, संमुच्छ (+ मुर्छ, ) समुच्छंति सू ६।१ संमुच्छति १३३, ३११११; ४११८५१६ गु२०११ संपलग्ग (सम्प्रलग्न) ज ३।१०७,१०६ उ १११३८ समुच्छित्ता (सम्मूर्छ य) सु २०६१ संपलियंक (संपर्यडू) ज २८८ संमुच्छिय (सम्मूच्छित ) सू ६१ संपाविउकाम (सम्प्राप्तुकाम) जे ५।२१ सम्माण (स गानय्) सम्माण इ उ १।१०६; संपिडिय (सम्पिण्डित) प १६४१५ ज १२ ३१११० सम्माणति उ ५१३६ सम्मामि संपिणद्ध (संमिनद्ध) ज २११३३,३।२४ उ १११७ संपुच्छण (सम्प्रच्छन) ज ५१५ संलवमाण (संलगत् ) उ ११४७ संपुण्ण (सम्पूर्ण) ज ३१२२१ उ ११३४ संलाव (संलाप) ज २११५:३।१३८ सू २०१७ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संलेहणा-सवकरप्पभा १०५६ संलेहणा (संलेखना) ज ३।२२४ उ २११२,३।१४, संसत्त (संसक्त) उ ३११२० ८३,१२०,१५०,१६१,१६६५२८,४३ संसत्तविहारि (मंसक्तविहारिन्) उ ३।१२० संवच्छर (संवत्सर) प ४६५,९७; २३१७४,१८७ संसार (संसार) प २०६४,६४।१ ज २७० __ ज २।४,६६,६६;७२०,२५,२६,३७,१०३, उ ३१११२ १०४,११२१२,३,११३,११४,१२६ संसारअपरित्त (संसारापरीत) प १५६१०६,१११ चं २३३,५३ सू १।६।३,१६,१३,१४,१६, संसारत्य (संसारस्थ) प ३३१८३ १७,२१,२४,२७,२६३, ६।१८1११०।१२४ संसारपरित्त (संसारपरीत) प १८१०६,१०८ से १२७,१२६४२,३,१३०,१३८ से १६१, संसारपारगामि (संसारपारगामिन) ज २१७० ११११ से ६ ,१२११ से ६,१० से १३,१६ से संसारसमावण्ण (संसारसमापन्नक) पश१०,१४, २८,३०; १३।२;२०१३ ३ ३।१२६,१३४ १५,४६ से ५२,१३८ संवच्छरण (संवत्सरण) सू ११६३ संसारसमावण्णग (संसारसमापन्नक) प ११३३६; संवच्छरिय (सांवत्सरिक, ज २१४,३१२१२,२१३, २२८ २१६;७१११०,१२७ सू १०११२२,१२३ संसिय (संश्रित) ज ३१८१ उ ३३५५ संवट्टकप्प (संवर्तकल्प) उ १११३६ संहित (मंहित) प ११४७१३ संवट्टग (मंवर्तक) ज २११३१ संहिय (मंहित) ज २१५ संवट्टगवाय (संवतंकवात) प ११२६ ज ५१५ + संवड्ढ़ (सं+वृध) संबड्ढेइ उ ११५८ संवडम सकथा (सकथा) उ ३१५१११ सकसाइ (सकषायिन् ) प ३९८,१८३,१८१६४; उ ११५३ संवड्ढे हि उ ११५७ २८१३२ संबड्ढमाण (संवर्धमान) उ १८५४ सकहा (दे०) ज २१११३ संवड्ढिज्जमाण (संवय॑मान) उ ३.४६ सकाइय (सकायिक) प ३३५० से ५३,६०,१८।२५% संवत्त (संवृत्त) ज ३।१०६ संवद्धिय (मंद्धित) ज ३३५ संवर (शंकर) ५११६४ मृग की जाति सकिरिय (सक्रिय) प २२१७,८ संवर (संवर) पश१०१।२ सकोरंट (सकोरण्ट) ज ३१६,१८,७७,७८,९३, संवाह (संवाह) प ११७४ ज २।२२ १८०,२२२ संविकिरण (मविकीर्ण) ५ २६४१ ज ११३१ सक्क (शक्य) प ११४८१५७ ज २१६१ सदिगिण (मविकीर्ण) प २।३०,३१ सक्क (शक) प २१५०,५१ ज ११३१,२१८६,९०, सविणद्ध (भविनद्ध) ज ३१३१ ६३,६५,९७,६६,१०१,१०३,१०५,१०७,१०६, संवुक्क (दे०) प ११४६ १११,११३,११८,३१११५,१२४,१२५; संवुड (संवृत) प ६२० से २३ सू २०१७ ४।१७२,२२२,२२३३१,२३५,२४०,२४३; संबुडजोगिय (मंवृतयोनिक) प ६।२५ ५१८,२० से २३,२७ से २६,३६,४१,४३, संवुडवियड (गवृत विवृत) प ६।२० से २३ ४५ से ५०,६१,६२,६५ से ६६,७२,७३ संवुडवियडजोणिय (संवृतविवृतयोनिक) प ६२५ । उ ३३१२३,१५० संवृत्त (मवृत्त) ज ४११३ सक्करप्पभा (शर्कराप्रभा) प १३५३;२२१,२०,२२, संवुय (रावृत्त) ज ३।२२२ ३।१२,२२,२३,१८३,४७,८,९६११,७४, संसयकरणी (संशयकरणी) प ११॥३७।२ ७५:१०११, २०५१,५४:२११६७,३३१४,१६ Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सक्करपभ पुढविणे रइय-सट्टाण सक्करपभापुढविणेरइय (शर्कराप्रभा पृथिवीनं रयिक) सचित्तजोणिय ( सचित्तयोनिक) प ६१६ प २०१५२,५५ सचित्ताहार (सचित्ताहार ) प २८११,२ सक्करा (शर्करा ) प १।२०११ ; १७३१३५ ज २१७,६८४१२५.४ १०६० सकार ( सत्कार ) ज २१२५; ३।२१७ उ १३६२; ५।१७ ( शक्कार ( सरकार) सक्कारेइ ज ३१६, २७, ४०, ४८,५३,५७,६५,७३, ६१, १२७,१३४, १३६, १४६,१५१,१५२,१८६,२१६३ १११०६; ३।११० सक्कारेति उ ५ ३६ सक्कारेज्ज ज २२६७ सक्कारेमि उ १११७ सक्कारणिज्ज (सत्कारणीय) सू १८/२३ सक्कारवत्तिय ( सत्कारप्रत्यय) ज ५१२७ सक्कारिय (सारित) ज ३१८१ सक्कारेत्ता (सत्कार्य ) ज ३।६ उ ३३५० सक्कुलिकण ( शष्कुलिकर्ण ) प ११८६ सक्कोत ( सक्रोश ) ज १।२३,३५ सखिखणी ( सकिकिणी) ज ३१२६, ३०, ३६,४७, ५६,६४,७२,११३,१३३, १३८, १४५, १७८ सग (स्वक ) प २११६२,९३; ३३।१६, १७ ज २१२०,३८१, ८६,१०२,१५६,१६२ सग (शक) १८ समय ( सग्रन्थ) ज २६६ सगड ( शकट) ज २११२,३३,७१७/३१ सगडवूह ( दाकव्यूह ) उ १।१३७ सगबुद्धिसंठिय (कट 'उद्धि' संस्थित) सु १०२३७ सगड़ी (शकट 'उद्धि') ज ७ १३३।१ समुहसंठि ( शकट 'उद्धि' मुखसंस्थित) ज ७।३१,३३ सगडुद्धीठिय ( शकट' उद्धि' संस्थित) ज ७|३२|१ सगल ( कल ) प ११४७ २ २ ३१ ज ७ १७८ सू८११ १३३ सगोत (सगोत्र ) सू १०।६२ से ११६ सचित्त (सचित) ११३ से १७ ज २२६६ सचित्तकम् (सचितकर्मन्) मू २०१७ उ २८ सचित्तजोणि (सचित्तयोनि ) प ६।१६ (सत्य) प ११०१११० उ १।२४ समास (सत्यभाषक ) प ११६० समण ( सत्यमनस् ) प १६।१ से ३, ७, ८, १०, ११,१५,१८ से २१ सणजोग (सत्यमनोयोग ) प ३६३८६ सच्चवइजोग (सत्यवाक्योग ) प ३६।१० सवा (सत्य) प ११ २, ३, ३२, ३३, ४२ से ४६, ८२, ८४,८५,८८,८६ सच्चामोस ( सत्यामृषा ) प १११२,३,३५,३६,४२, ४३,४५,४६,८२,८४,८५,८८,८६ सच्चामोस भाग (सत्यामृषाभाषक ) प ११।१० सच्चामोसमण (सत्यान् ) प १६ १७ सच्चामोसमणजोग (सत्यामृषामनोयोग ) प ३६८६ समोसवजोग (सत्यामृषावाक्योग ) प ३६६० सच्चित्त (सचित्त ) प २८।१।१ सच्छंद ( स्वच्छन्द ) प २०४१ सच्छंदमइ ( स्वच्छन्दमति) उ३।११६; ४१२२ सच्छीर ( सक्षीर ) प ११४८।३६ सजोगि (सयोगिन् ) प ३३६६,१८३१८५५ २८११३८३६१६२ सजोगिbafलि (सयोगिकेदलिन् ) प १३१०८, १०६, १२१,१२२ सजोगिभवत्थ केवलि (सोभवस्थ के बलिन् ) प १८१०१, १०२ सज्ज ( सज्ज ) ज ३ । १७८ सज्जा ( सर्जक ) प ११४८६४६ पीत शालवृक्ष सज्जाव ( सञ्जय्) सज्जार्वेति उ १।१३५ सज्जा वेत्ता ( सञ्जयित्वा ) उ १११३५ सज्झाय ( स्वाध्याय) उ ३।३१ सठ ( पठ) ज ३११७८ ११२१ सट्ठाण (स्वस्थान ) प २०१, २, ४, ५, ७, ८, १०, ११, १३,१४,१६ से ३१,४६ ५४३५, ४२,४६, ५४, ५७,६०,६४,६६,७५,७६,६०,६४,६८,१०८, Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद्विग-सग्णिसीय १०६१ ११२,११६,१२२,१५१,१६४,१६७,१६१, सण्णवणा (संज्ञपना) उ ३।१०९ १६४,१६८,२०१,२०४,२०८,२१२,२१५: इसण्णवित्तए (संज्ञपयितुम् ) उ ३.१०६ २१६,२२२,२२५,२४३,२४४,६१६३; सण्णा (संज्ञा) प ११११४८।१३ ज १२१३३ १५.१०२.१२१,१२२,१२७,३६।२०,२४,२६, सण्णासण्णि (संज्ञामंजिन) प ३११६।१ २७.४७ सिण्णाह (मंनाहय्) सणाहेह ज ३।१५,२१ सछि (पष्टि) प १३३ ज ११२६ उ २०१२ ३१,३४,७७,६१,१७३,१७५,१६६ उ १११२३; सठिग (पष्टिक) ज ३१११६ ५२१८ सटिठभाग (पष्टिभाग) ज ७१२१,२२,२५ मू ११० सण्णि (संजिन) प १४१७,३११२,११२,१११११ सट्ठिभाय (पष्टिभाग) ज ७।२४ से २०१८।१।२,१८।११६२३।१७६,१७७, सट्ठिय (पष्टिक) गु १२१८ १६५,१६६.१६६ से २०१:२८.१०६६१, सिड (शट) सइइ उ ११५१ २८१११५,११६,३१११ से ३,५,६,६११; सड्ढई (धाद्ध किन्) उ ३३५० ३६१६२ सण (शण,सण) प ११३७६४,११४५।२ ज २।३७; सण्णिकास (सन्निकाश) ज ३१२२३,४१८५ ३.७६,११६ सण्णिक्खित्त (संनिक्षिप्त) ज ७/१८५ सणंकुमार (सनत्कुमार) प १११३५,२१४६,५२ से सण्णिचिय (सन्निचित) ज २६ ५८.६३, ३।३१,१८३, ४१२३७ से २३६% सणिणाद (संनिनाद) ज ३।३०,३१,४३,५१,६०, ६।२६,५६,६५ ८५.११२,७।१०।१५।८८, ६८,७८,१३०,१३६,१४०,१४६ १३८,२१४७०,६१,२८७७,३३।१६,३४११६, सणिणाय (सन्निनाद) ज ३।१२,१४,१७२,१८०, १८२१२ २०६,२२४;५।२२,२६,७११२७।१ सर्णकुमारग (सनत्कुमारज) ६१६५ ज ५१४६ सण्णिम (सन्निभ) ज ३।३,१७,१८,३१,८१,६१, सणंकुमारवडेंसय (सनत्कुम्हारावतंसक) प २२५२ ६३,१७७,१८०,१८३,२०१,२१४ समाफद (सनख द) प ११६२,६६ सण्णिभूय (सं शिभूत) ५१५।४८;१७१६,३५११८ सणिक्रमण (सनिष्क्रमण) ज ४।२७७ सपिणवाइय (सन्निपातिक) उ ३.११२,१२८ समिक्खिर जनिक्षिप्त) ज ७१८५ सू १८।२३ सण्णिवात (सन्निपात) सू १०१२६ सनियरसंबछर (मनैश्चरसंवत्सर) ज ७४१३३ सपिणवाय (सन्निपात) चं ५.१ सू१६१ सणिच्दरि (शनरचारिन् ) ज १५०,१६४; सणिविट्ठ (सन्निविष्ट) ज ११३७,३१६६ से ४।१०६,२०५ १०१,१६३,४१६,३३,१२०,१४७,२१६,२४२, ५।३,२८,३३ समिच्छर (शनैश्चर) परा४८ ज ७१८६।१ सण्णिवेस (सन्निवेश) प १६१२२ ज २१२२ मु १०१३०, २०१८।१ ३१३२,१८५,२०६ उ ३११०१,१२५,१३२, सणिच्छरसंवच्छर (शनैश्चरसंवत्सर) ज ७।१०३, १३३,१४१,१४५,५३६ ११३ सु १०।१२५.१३० सण्णिवेसमारी (सन्निवेशमारी) ज२४३ सणिय (सनस) ज ३१२२४ सण्णिसम्ण (सन्निषण्ण) ज ३।६,२०४; ५।२१, सपणज्रिउं (सन्नद्ध) ज ३११२३ ४१,४७,६० सपण मला) ३.१०७.१२४ उ १११३८ सिण्णिसीय (सं! नि पद) सणितीयह सम्मय (सन्नत) ज ७।१७८ ज ३११२ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६२ सणि सीयित्ता (संनिषद्य ) ज ३११२ सणिहिय ( सन्निहित ) प २२४७१२ सह ( श्लक्ष्ण ) प ११८, १६:२३०, ३१, ४१, ४८, ४६, ५६, ६३, ६४ ज ११८,२३,३१,३५,५१; ३।१२,८८, १६४; ४१२४, २५, २६.४६, ६७, ८८, ११०,१७८,२१३ ४ १० ५१५८ सहमच्छ ( श्लक्ष्णमत्स्य ) प ११५६ सहसहिय ( श्लक्ष्णलक्ष्णिक) ज २२६ सत (सत् ) सू १३/२ सत (शत ) प २।४१ से ४३,४६, ४८ से ५२,५८ से ६४; ४११८६, १८८; ६।३४,३६,६७१ १८११६,२४,४६,५४,६०,६१,११६,२०।१३; २१/६७,६८२३१६३,६८,६६,७३,७५ से ७७,८१,८३,८५,८७, ६०, ६२,६६, ६७, ११२, ११४,११६,१२७,१६४,१६६, ३६/१७,३४, ४१ सू १।१८ से २०,२४:२|३;३|१;६।१; १३;१०।१२७,१६५ १२/२ से ६, १२, १३, ३०;१३।१ से ३,१४।७, १५८२ से ४, १७ से १६,२२,२५ से २६,३१,३२,३४ से ३७, १८११,४ से ६,१७,२०; १६११, ४, ५१३, १६१७, ८,१०,१५।१,२,४,१६१८ से २०; २११४; १६।२२।३२ सतक्कतु ( शतक्रतु) प २५० सतक्खुत्तो ( शतकृत्वस् ) सू० १२।१२ सतत ( सतत ) प ७३१ सतपोरग ( शतपोरक ) प १४४१३१ सतभित ( शतभिषग् ) सू १०/६४ सतभिराय ( शतभिषग्) सू २०१२ से ६, ६,२१,२३, ३०,५८,७५,८१,६५,१२०,१३१ से १३५; १२/२५ सतरा ( सप्तति ) मू १६।११।१ सतवच्छ ( शतवत्स ) प १७६ सतवत्त ( शतपत्र ) प ११४८४४ सतवाइया (तपादिका ) प ११५० सतसहस्स ( शतसहस्र ) प ११२०,४६,५०,७५,७६, ८१; २२० से २७,२७१२,२६ से ३३, ३६ से सण्णिसीयित्ता-सत्तर ३६; ४०१२, २/४१ से ४३,४८ से ५३, ५४, ५६१, २६३,६४,४१७१,१७३, १७७, १७६; ६/४१,२१।६३,६६,७० सू १५/२,१८/२५; १६२५१, ३, १६६८१,३,१६२१११,८, १६२२६ सतहा ( सप्तधा ) ज ५।७२,७३ सता (सदा ) सू १९१११ सती (दे० ) प ११४५।१ सतेरा ( शतेश) ज ५।१२ सत्त (सप्तन् ) प १४२ ज १।२० चं ३।३ सू ११७ उ ३।१०१ सत्त (सत्त्व ) प २२६४; ३६।६२,७७ ज २११३२; ३३७।२१२ ११३,३१५१ सतंग ( सप्ताङ्ग ) उ ३१५१ सतग (सप्तक) ज ७ १३११२ सत्तठि (सप्तषष्टि) सु १०/२ सत्तट्ठिया (सप्तषष्टिधा ) यु १०।१५२ से १६०, १६२,१६३,११।२ से ६; १२७, ८, १६ से २८ सत्ता (सप्तपष्टिधा ) सु ११/२ सत्तणउत्ति (सप्तनवति ) मू १८११ सततरि ( सप्तसप्तति ) ज ३।२२५ सततीस ( सप्तत्रिंशत् ) ज ४१५५ सत्तत्तीस ( सप्तत्रिंशत् ) ज ४ । १४२।२ सत्तणु (सप्तधनुष्) उ ५ २११ सत्तपएसिय ( सप्त प्रदेशिक ) प १०/१२ सतपदेस ( सप्तप्रदेशिक ) प १०।१४१५ सत्तभाग (सप्तभाग) प २३/६१,६४,६८,७३,७५ से ७७,८१,८३ से ५५,८६,६०,६२,६६, १०१,१११ से ११४,११७,१२१,१२२,१३०, १३४,१३५,१४०, १४२, १४३, १५२, १५३, १५५,१६०,१६४,१६७,१७१ से १७३ सत्तम (लप्तम ) प ६८०१२ १०११४१३ ३६८५, ८६ ज ७६७ १०१७७ १२।१६ १३।१० उ २१२२ सत्तमी ( सप्तमी ) ज ७।१२५ सत्तर (सप्तदशन् ) प १० १४१४ से ६ ज ७।२०२ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तरस-सहाव सत्तरस (सप्तदशन् ) प ४१६ ज ३१७६ सू ८१ सत्तरसविह (सप्तदशविध) '१६॥३८ सत्तरि (सप्तति) प २।५३ ज ५४६ सू १६।१४ सत्तविह (सप्त विध) प १११६,५३,१६।२६,३२, २।२१ से २३,८३,८४,८६,८७,६०; २४।२ से ८.१० से १३:२५१४,५,२६२ से ६,८ से १०;२७२,३,३६।७ सत्तसठ्ठ (सप्तपष्टि) ज ४१६८ सत्तसठ्ठि (सप्तपप्टि) सू १०।२२ सत्तसिक्खावइय (सप्तशिक्षावतिक) उ ३।७६ सत्तहत्तरि (सप्लसप्तति) ज २१४१२ सत्तहा (सप्तधा) ७६५,६८,६६,७१,७२,७४, ७५,७७.७८,५१७२.७३ सत्ताणउइ (सप्तनवनि) २४६ सत्ताणउत (सप्तनवति) प २१४८ सत्ताणउय (सप्तन वति) ज ७१८ सू ११२७ सत्तातीस (सप्तत्रिंशत् ) प ४.२७६ सत्तालीस (सप्तचत्वारिंशत् ) म १०११५१ सत्तावण्ण (सप्तपञ्चाशत् ) ज ४१६२;७।२१; म २१३ उ ११३ सत्तावीस (सप्तविंशति) प ४।२७६ ज १७ सू १६१० सत्तावीसतिविह (सप्तविशतिविध) प १७१३६ ससासीय (सप्ताशीति) ज ७७७ सति (शतिः) प २१४१ ज ३।३५,१७८ सत्तिषण (सप्तरण) प ११३६।३ उ ३१६४ सत्तिवण्णवडेंसय (सप्तपर्णावतंसक) प २।५०,५२ सत्तिवण्णवण (सप्तपर्णवन) ज २१६;४१११६ सत्तु (शत्रु) ज ३१३,३५,८८,१०६,१७५,२२१ सत्तुस्सेह (सप्तोत्सेध) ज ११५ सू ११५ सस्थ (शस्त्र) ज २१६।१,३।२०,३३,५४,६३,७१, ७७,८४.१०६,११५,१२४,१२५,१३७.१४३, १६७,१८२ उ ३२३८,४० सत्थ (शास्त्र) उ ३३२८ सस्थवाह (मार्थवाः १६१४१ ज १२५:३१६, १०,७७,८६,१७८,१८६.१८८,१८६,२०६, २१०,२१६,२१६,२२१,२२२ उ ११६२; ३१११,९६,६८,१००,१०१,१०६ से ११२; ११०,१७,१६,३६ सत्यवाही (सार्थवाही) उ ३६८,१०१ से १०५, १०७,१०८,११० से ११३ सत्थीमुहसंठित (स्वस्तिमुखसंस्थित) सू ४।३,४,६,७ सदा (सदा) प १३०,३१,४१ सदेवीय (सदेवीक) प २०११२,३४।१५,१६ सद्द (शब्द) प २।३०,३१,४१,१५१३६,३६,४०; १६.४६,२३११५,१६,१६,२०,३०,३१, ३४।११२,३४१२३ ज १११३,२६,३१,२१७, १२.६५,३१६,१२,१४,१८,३० से ३२,४३, ५१,६०,६८,७७,७८,८२,८८,८६,६३,१३०, १३६ १४०,१४६,१५५,१५६,१७२,१७८,१८०, १८५,१८७,२०६,२१२,२१३,२१८,२२२; ४।३,२५,८२,५।२२,२६,३८,५७,५८,७२,७३, ७११७८ सू २०१७ उ १६० से ६२,८५ से ८७: श१६,१७,२०,२५,२७ सपरिणाम (शब्दपरिणाम) प १३१२१,३१ सहपरियारग (शब्दपरिचारक) ५३४११८,२३,२५ सहपरियारणा (शब्दपरिचारणा) प ३४१७,२३ सहव्वया (सद्व्य ता) ज ३।३ सिद्दह (श्रत् +धा) सहइ ५ १११०१।४,१२ सद्दहाइ प ११०१।३ सद्दहामि उ ३११०३; ४।१४५:२० सद्दहेज्जा प २०११७,१८,३४ सद्दहणा (श्रद्धान) ५०१०१११३ सिद्दाव (शब्दय) सद्दाविस्तंति ज २११४६ सद्दावेइ ज २१६७,१८५,१०७,१११:३७, १२.१५,१८,२१,२८,३१,३४.४१,४६,५२, ५८,६१,६६,६६,७४,७६,७७,८३,६१,६६, १७०,१७३,१७५,१८०,१८३,१८८,१६१, १६६,२०७,२१२,५२२,२८,५४,६१,६८,६६, ७२,१२८,१४१,१४७,१५१,१५४,१६४,१६८ १।१७,३१९१४।१६५।१५ पहाति .३३१०५.१०७,११३,५१३,१४ महामि उपल Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६४ सद्दावइ-समकम्म सहावइ (शब्दापातिन्) ज ४१४२,५७,५८,६०,७१ सद्दावति (शब्दापातिन) प १६३० सहाविता (शब्दयित्वा) ज ११४६ सहावेत्ता (शब्दयित्वा) ज २१९७१।१७:३१७ ४११६:५११५ सदुण्णइय (शब्दोन्नतिक) ज २११२,४१३,२५ सद्ध (श्राद्ध) ज २१३० सद्धा (श्रद्धा) सू २००६।३ सद्धि (सार्धम् ) प ३४११६,२१ से २४ ज २१६५, ५८,६०,३१९,२२,३६,७७,७८,१८६,२०४, २२२,२२४;५१,५,४१,४४,४६,४७,५६, ६७,१३४,७११३५,१८४ सु १०।२ उ ११२ ३३९८,४११८,५।१६ उ १२२,३।६८,४११८; ५१६ सन्नद्ध (सन्नद्ध) ज ३७७ सन्निकास (सन्निकाश) ज ३१२४ सन्निभ (सन्निभ) प २१३१ सन्निवाइय (सानिपातिक) उ ३.३५ सन्निहिय (सन्निहित) प २।४६,४७ सपक्ख (स्वपक्ष) उ १२२,१४० सपक्खि (स्वपक्षिन् ) उ ११४६ सपक्खि (सपक्षम् ) १ २।५२ से ५६,६१,१६।३० सपज्जवसिय (सपर्यवसित) ११८१३,२५,५५, ५६,६३,६४,६७,६८,७६,७७,७६,८३,८६, ६०,१०५,१११,१२२,१२६ सपडिदिसि (सप्रतिदिश्) प २१५२ से ५६,६१ १६।३० उ १५२२,४६,१४० सपरिनिव्वाण (सपरिनिर्वाण) ज ४।२७७ सपरियार (सपरिचार) ३४११५.१६ सपरिवार (सपरिवार) प २१३२,३३,३५,४३, ४८ से ५१ ज ११४४,४५२१६०;४१५०,५६, १०२,११२,१३५,१४७,१५५,२२१,२२२, २२३३१,२२४११:५१,१६,४१,५०.५८ सपुव्वावर (सपूर्वापर) ज ४१२१,२५६ सू ३३१; १०१२७,१८६१,२१ सप्प (सर्प) ज ७१३०,१८६।३ सप्पदेवया (सर्पदेवता) सू १०१८३ सप्पभ (सप्रभ) प २१३१,४१,४६,५६,६३,६६ ज ११८,२३,५।३२ सप्पसुयंधा (सर्पसुगन्धा) प १।४८३ धवलवा सप्पह (सप्रभ) ५ २।३० ज ११२१ सप्पुरिस (सत्पुरुष) प २।४५,४५।२ सरफाय (दे०) प १४८।५० सबर (शबर) ५११८६ सबरी (शबरी) ज ३।१११२ सभितर (साभ्यन्तर) ज ३१७,१८४ सभा (सभा) ज २१६५,१२०,४१२०,१२१,१२६, १३१,१४०,५३५,७,१८,२२,२३,५०,७१८४, १८५ सू १८१२२,२३ उ ३१६,३६,६०,१५६, १६६४१५:५।१५,१६ सभाव (स्वभाव) ज २११५ सभावणग (सभावनाक) ज २१७२ सम (सम) १ ११४८१० से १६:१३१२२११,२, १७१।१२११०२:२२१६६,७०,२३५१६७; २६।६,६; ३६१८२।१ ज २१७१,३।३५,१३८, १५१,१७०,२११:४१३.२५,५७.६७,१८०; १८३;५।१८,४३,७।३७,३८,१३५।१,४,१६८, १७८ समइक्कंत (समतिकान्त) ५ १३१ समइच्छमाण (समतिकामत्) ज २१६५,३।१८६, २०४ समंतओ (समन्ततस्) ज २१६५ समंता (समन्तात्) प १७१०६ से १११ ज १७, ६,२३,३२,३५२।१३१,४।३,६,१४,२०,२१, २५,३१,४५,४७,५७,६८,७६,८६,१०३,१०७, १३१,१४३,१४८,१४६,१५२,२११,२१३, २१५,२३४,२४० से २४२,२४५, ५४५,७,३८, ५७,७।५८ सू ३११ उ ५८ समकम्म (समकर्मन्) प १७१३,४,१५,१६ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समकिरिय-समय मू२०१७ समकिरिय (समक्रिय) प १७११११,१७।१०,११,२१ १३८,१४०,१४६,१५४,१५६,१६०,१६३; समक्खेत (समक्षेत्र) सू१०१४,५ ५।५८७१०१,१०२,१२६,२१४ चं १० समग (समक) ५१६३५२ ज ११२३,२५,३२, सू १५,८११:२०१७ उ ११२,४ से ८,१६, ३१७८,७।११२।२ सू १०।१२६६१,२ १७.१६ से २६,१४२,१४३ ; २११ से ३.१०, समग्ग (समग्र) ज ३१२२१,४१३५,३७,४२,७१, १२,१४,१५,२१३११ से ३,७,८,१२,१६,२०, ७७,६०,६४,१७४,१८३,२६२,६।१६ से २२; २२,२३,२६,३८,४०,४४,८७,८८,६१,६३, १५३,१५४,१६६ १६७,१७० ४.१ से ३,२७, समचउक्कोणसंठित (समचतुष्कोणसंस्थित) ५१ से ३,३७,४४ सृ ११२५,४२ समणी (श्रमणी) ज ७।२१४ उ ३.१०२,११५, समचउरंस (समचतुरस्र) प २।३०:१५:१६,३५; ११७,११८,४१२२ २११२६,३१,३२,३६,६१,७३,२३१४६ समणुगम्ममाण (समनुगम्यमान) ज २१६४ ज ११५, २।१६,४७,८६, ७१६७ उ १३ समणोवासम (श्रमणोपासक) ज २१७६ उ ३१८३ समणोवासय (श्रमणोपासक) उ १२०:५॥३४ समचउरंससंठाणसंठिय (समचतुरस्रसंस्थानसंस्थित) समणोवासिया (श्रमणोपासिका)ज २२७७ उ ११२०% सू १५,२५ ३।१०५,१०६,१४४ समचउरंससंठित (समचतुरस्रसंस्थित) सू ४०२ समण्णागय (समन्वागत) ज ५१५ उ ११६३ १०७४ समतल (समतल) ज ३३६५,१५६ समचक्कवालसंठित (समचक्रवालसंस्थित) समतिक्कंत (समतिक्रान्त) प २०६७ सू ११२५,४१२,१६१३,१३,१७,१९,२३ समत्त (समस्त) घ २१६४।१५ ज ३११७५ उ ३१६१ समजस (समयशस्) प २१६० समत्त (समाप्त) ज ३११६७,४१२००,५०५८; समजोगि (समयोगिन् ) ज ५१५८ ७/१०१,१०२ सू १३।१०,१३,१४ से १६ समजुतीय (समद्युतिक) १ २१६० उ ११४८,३१६१ समठ्ठ (समर्थ) प ११।११ से २०; १५।४४; समत्थ (समर्थ) ज ३।१०६:५५ सू २०१७ १७११,३,५.८,१०,१२,१४,१५,२४,१२३ से समपज्जवसिय (समपर्यवसित) सू १२११० से १२ १२८,१३० से १३२,१३४,१३५,२०१२,३.१४ सिमप्प (मं+अर्पय) ममप्पेइ ज ३११३८:४।३५, से १७.१६ से २५,२७ से ३०,३३,३४,४० ३७,४२,७१,७७,६०,१७४,१८३,१८६,२६२; से ४८,५२,५३,५६,६०,२२१७६,८०,८२,६२, ६।२१ से २४ समति ज ३।६७,१६१ ६४,६५,३०१२५,३६८०,८१,८३,८८,६२ ६.१६,२५,२६,४।६४ सू१०१५ समप्पेति ज २०१७,१८,२१ से २३,२५,२८,३० से ३३, सू १०५ ३० से ४०,४२,४३,४११०७,७११८४ समबल (समबल) प २१६०,६३ सू १८०२२ समभिरुढ (समभिरूढ) प १६:४६ ज ३.१०६ समण (श्रमण) प १३,६,६,१२,१५,२० से २७,६० समभिलोएमाण (समभिलोकमान) ५१७१०६ से से ६३,३।३६;१५४३,४५,३६७६,८१ १११ ज ११५,६:२११६,१६ से २१,२३,२५,२६, सिमभिलोय (सं+अभि+लोक) २८,३० से ३३,३६,३६ से ४३,४८,४६,५१, समभिलोएज्जा प १७।१०७,१०६,१११ ५४,५६,६८,७२,७४,८२,१२१,१२६,१३०, समय (समय) प १३१३,१०३,१०६.१०७,१०६, Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय-समासतो ११०,११३,११४,११६,११६,१२०,१२२, १२३,२१६४।५।६।११,६५१ से १८,२० से ४५,६० से ६४,६७,६८,१०।३०११,२, १०७०,७१,१२२४,३३,१५१५८११,१६।३४, ३७,१८१५६,६०,६२,६३,६७,८०,८१,८४, ८७,८६,६५,६८,१०२.१०४, २०।१।१,२०१६ से १३; २२१५४,५६.५८,५६,७६:२३।६३, १६३,३०।२५,२६,३६.८५,८७,६२ ज ११२, ४,५,१४,१४,७१,८८,८६६१,१३१,१३४, १३८,१४१,३११०३,५१,६,८,९ से १३,१८, ४८,५० से ५२७।५७,६०,११२।१ च ६१६, १०१।१,४,५,६११:८1१६१२,१०११५२ से १६११११२ से ६,१६ से २८,३०; १३.१,२७१७११,१६।२५, २०१३,५,७ उ ११ से ३,६,१६,२८,५१,६५,७६,१४४; २१४,१७,३१४ से ६,६,१२,२१,२४,२५,२७, ४८,५०,५५ से ५७,६४,६८,७१,७४,७६,८६, ६०,६५,६८,६६,१०६,१३१,१३२,१५५ से १५७.१५६,१६८,१६६४१४ से ६,१०,५१४, १४,२१,२४,२६,३६,४०,४१ समय (समक) ज १।१४ । समयक्खेत्त (समयक्षेत्र) सू १६२०,२१ समयखेत (समयक्षेत्र) प २११८६ समर (समर) ज ३।३,३५.१०३ समवण्ण (समवर्ण) प १७४५,६,१७ समवेदण (समवेदन) १७११११,१७१८,६,१६,२० समसरीर (समशीर) प १७:१,२,२८,२६ समसोक्ख (समसौख्य) १६०,६३ समा (समा) जरा७ से १५,२१ से ४५,५० से ५६,८८,१२१ से १३३,१३८ से १४०,१४७ से १५०,१५२ से १६४,३११३५६१,४।१८०, १८३,७३७ सू ६।४।१८।२,३ समाउय (सम्मानुष्य) प १७११११,१७।१२,१३ समागम (सागः:) ज २४, समाण (सत् ) प १५१५१,५२,१७।११६ 2. २८.१०५,३४११६,२१ से २४,३६१६२,७७ ज २०६० से ६२,७१,१४२ से १४५,३३,., १३,१४,१६,२२,२५,२६,३०,३६,३८,४२, ४३,४६,५०,५१,५३,५९,६०,६२,६७,६८, ७०,७५,७७,८०,८२,८४,८६,६७,१००, १११,११८,१२५,१२६,१३२.१३६,१४२, १४८,१४६,१५६,१६१,१६५,१६६,१७८, १५१,१८६,१९२,२०२,२०८,२१२ से २१४, २१७,२१६,४।२३,२५,३५,३७,३८,४२,६५, ७१,७३,७७,६०,६१,६४,१७४,१८३,१८६, १६५,२६२:५११५,२२,२४,२६,२६,४३.७० सू ६।१ उ १११७,२३ से २६,३७,४०,४५, ५२,५५ से ५८,६०,६२,७४,७७,८० से ५३, ८५,६० से १३,६६,१०७.१०८,११०,११८, १२७, ३.१३,१५,२६,५०,५५,७८,८२,८४, १०६,१०८,११२,१२१,१४७,१६०,१६२; ४|११,२०,५।१५,१७,३८ समाण (समान) ज ३।११७ सू २०१७ उ ३।१२८ सिमाण (सं--आप्) समाणे इ ज ७१०४ सू १०।१३० समातिम् १०११२६ समाणीत (समानीत) उ ३१४८,५० समाणु भाव (समानुभाव) २१६०,६३ ज २११३१; ४१५६ सिमादह (मं+आ-!-धा) समादहे उ ३१५१ समादीय (समादिक) सू १२।१० से १२ समायरित्तए (समाचरितुम् ) उ ३।१०२ समारंभ (समारम्भ) उ १।२७,१४० समारूढ (समारूढ) ज ३११२१ समालभ (सं+आ--लम्) समालभइ उ३।११४ समावण्णग (समापन्नक) ज ७१५५,५८ समास (समास) प ३३८,३६ ज ७.१०१,१०२ सू १६।२।१ समासओ (समासतस्) प ११४८१५४:११४८ ... ज २१६६ समासतो (समासतस्) प ११४,२०,२३,२६,२६, Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समासाद-समुष्पण १०६७ समन्याय समु५५ समुद्घात) प १।११७२।१,२,४,५,७,८, १०,११,१३,१४,१६ से २०,२२ से ३१,४६; ३६।१,४ से ७,४७,५३ से ५८,८२,८३,८३११ २,३६६८६,८८ समुज्जाय (समुद्रात) ज १८८,८६,३१२२५ समुट्ठ (सं+उत् । ष्ठा) समुछेति प ११७४ समुत्त (समुक्त) ज ३।६,१७,२१,३४,१७७,२२२ समुत्तिण्ण (समुत्तीर्ण) ज ३।८१ समुदय (समुदय) ज २१४,६,३१३,१२,३१,७८, १८०,२०६:५२२,२६,३८,६७ उ ११६२ ४६ से ५१,५३,६०,६६,७५,७६,८१,८६, १३१ से १३३,१३५,१३७,१३८ सिमासाद (सं+आ+सादय्) समासादेति सू ११८ समासादेत्ता (समासाद्य) सू१५१८ से १३ समासादेमाण (समासादयत् ) सू २१३ सिमासास (सं+आ+श्वासय्) __ समासासेइ उ ११४१ समासासेता (समाश्वास्य) उ ११४१ समाय (समाहत) ज ५१५ समाहार (समाहार) १७.१,२,१४,२४,२५,२८, २६ समाहारा (समाहारा) ज ५।६।१७।१२०१२ सू१०1८८२ समाहि (समाधि) उ ३.१५०,१६१,५।२८,३६,४१ समाहिय (समाहित) ज ५१५८ समिइ (समिति) प १११०१११० ज २१४,६:३१२२१ उ १६३ समिडिढय (सद्धिक) प २१६०,६३ समित (समित) मू ६१ समिद्ध (समृद्ध)ज १२,२६, २११२,३।१,८१, १६७१४,१७५ चं ६ सू ११ उ १३१,६,२८%; ३६१५७; ५१६,२४ समिरीय (समरीचिक) प २३०,३१,४१.४६,५६, ६३,६६ ज ११८,२३,३१ समिहा (समिध्) ज ५.१६ ।। समिहाकट्ठ (समिकाष्ठ) उ ३५१ समीकर (समी+कृ) समीकरहिंति ज २११३१ समीकरण (समीकरण) ज ३१८८ समीकरणया (समीकरण) प ३६१८२११ समुइय (समुदित) ज २।१४५,१४६ समुक्खित्त (समुत्क्षिप्त) उ १११३८ समुग्गपक्खि (समुद्गपक्षिन्) प १७७,८० समुग्गय (समुद्गत) प ३६१८१ समुग्गयभूय (समुद्गतभूत) ज ३११२१ समुग्धात (समुद्धात) प २१२१ समुदाण (समुदान) उ ३३१००,१३३ समुदीरेमाण (समुदीरयत्) प ३४१२३ समुद्द (समुद्र) प १३८४; २॥१,४७,१३,१६ से १६, २८,२६; १५१५५,२१८७,६०,६१:३३१० से १२,१५ से १७:३६.८१ ज १७,४६,४८; २११०,६७,६८,३।१,३६,४१५२,५१४४.५५; ६।१,२,४,७१४,६३,८७ सू १११४,१६,१७, १६ से २२,२४,२७,२६३,३११,४१४,७,६।१; ८।१:१०।१३२,१६०१ से ३,५,६ से १२; १९२२।२६:१६।२८,२६ से ३२,३५,३६,३० उ १११३८ समुद्दय (समुद्रक) प १७५,८०,८१ समुद्दलिक्खा (समुद्रलिक्षा) प ११४६ समुद्दवायस (समुद्रवास) प १७८ समुद्दविजय (समुद्रविजय) उ ५॥१०,१७,१६ सिमुप्पज्ज (सं+उत् + पद्) समुपज्जइ प २८/७५,१०५:३४११९,२१ से २४ ज २।२७; २६,५६:४११७७,१८१ समुप्पज्जति ज ५१ उ १११११ समुप्पज्जति प २८१४,२५,२७,२६, ३८,४७,५०,७३,७४,६७,३४।२३ समुप्पज्जित्था ज २१५६,६३,१२४,१२५; ३१२,४,२६,३६,४७,५६,१२२,१३३,१४५, १८५५२२ समुपज्जिस्सइ ज २१५६ समुप्पज्जिस्सं तिज २११५,२१,५३ समुप्पण्ण (समुत्पन्न) ज ३।१२३,२१६ Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६८ समुप्पन्न-सम्मामिच्छत्तवेयणिज्ज समुप्पन्न (समुत्पन्न) ज १७१,८५३।५ से ६३;३६१३५ से ४१,४८ से ५२,५६,६५, उ १११११,११२ ६६,७०,७३,७४,७६ समुत्पन्न कोउहल्ल (समुत्पन्नकौतुहल) ज ११६ सम्म (सम्पा) सू १०११२६४ उ ११११,११२ सम्म (सम्यक् ) ज २१६७, ३.१८५,१८६,२०६%; समुप्पन्नसंसय (समुत्पन्न शिव) ज ११६ ७११२१३,४ समुप्पन्नसड्ढ (ममुत्पन्नश्रद्ध) ज १६ सम्मट्ठरत्यंतरावणवीहिय सपुभव (समुद्भव) ज ५१५,४६ (मंमृष्ट रथ्यान रापणवीथिक) ज ५१५७ समुल्लालिय (समुल्लालित) उ १११३८ सम्मत (सम्मत) प १११३३११ समुल्लावग (समुल्लापक) उ ३९८ सम्मतसच्च (सम्मतसत्य) प ११३३ समुल्लावय (समुल्लापक) उ ३।६८ सम्मत्त (सम्यक्त्व) प १११५,१११०११६,७,१३; समुवगूढ (समुपगूढ) ज ४।६१,२७३ ३।१११,१८५१०१,२०।३६२३११७४;३४।११२ समुस्सासणिस्तास (समुच्छवासनि:श्वास) प१७१, जरा१३३ उ ३१४७,८३ २,२८,२६ सम्मत्तवेदणिज्ज (सम्यक्त्ववेदनीय) प २३११८१ समुस्सासणीसास (समुच्छ्वासनिःश्वास) प १७१२ सम्मत्तवेर्याणज्ज (सम्यक्त्तवेदनीय) प २३।१७,३३, समूसिय (समुच्छित) ज ३११७८; ५।४३ समोगाढ (भभवगाढ) प २१६४११० सू १६।२६ सम्मत्ताभिगमि (सम्यक्त्वाभिगमिन) १३४।१४ समोच्छण्ण (सभवच्छन्न) जे ३.१२१ सम्मइंसणपरिणाम (सम्यकदर्शनपरिणाम) समोप्पणा (समर्पणा) ज ३१११७ प १३।११ समोयर (सं+ अ त) समोय रंति ज ७६७ सम्मद्दिछि (सम्यक्ष्टि ) ५ ३११००६।९७,६८%; सलोवण्णग (समोपपन्नक) ५१७।१३ १३.१४,१७:१७११,२३,२५,१८१७६१६१ समोराड (समरसत) ज ११४ चं हसू ११४ से ५२११७२, २३१२००,२०१;२८।१२५,१३५ उ ३१५,१२,२१,२४,२८,२६,८६,१५६,४१४; सम्मय (सम्पत) उ ३११२८ सम्मा (सम्यक् ) प १३।११ समोसर (-- ) समोसरह ज ५।५० सम्माण (२-मानय्) सम्माणे इ ज ३१६,२७,४०, सासरंति ज ५१४६ ४८,५७,६५,७३,६१,१२७,१३३,१३६,१४६, समोसरण (समवसरण) ज ५१५३ उ ३।२१,४१० १५२,१८६,२१६ सम्माणेज्ज ज २१६७ समोप्तरिय (सवात) ज ५१४८ उ १११६:२।६३; सम्माणणिज्ज (सम्माननीय) सू १८१२३ ३।१५५,१६८; १४ सम्मापवत्तिय (सम्मान प्रत्यय) ज ५१२७ समोहणित्ता (समबहत्य) प ३६१५६,६६,७०,७३, सम्माणियदोहद (समानीतदोहद) 'उ ११५०,७५ ७४ ज ३१११५ सम्माणेता (सम्मान्य) ज ३।६ उ ३५० सिमोहण (2 - -हन) समोहष्णं नि प सम्मामिच्छत्त (सम्य मिथ्या:व) प २३।१७४ ३६८३ ज ३।११५,१६२,२०८,५१५,७ सम्माभिच्छसवेदणिज्ज (सम्यक मिथ्यात्ववेदनीय) समोणति १ ३६१८२ प२३१६७,१८१ समोहल (सवहत) प ३३१७४ सम्मामिछत्तयधिज्ज (सम्यक मिथ्यात्ववेदीय) समोहय (सभवहत) प ३।१७४,१५६४३, २११८४ प२३।१७,३३,१३६ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मामिच्छताभिगमि-सयणिज्ज १०६६ सम्मामिच्छत्ताभिगमि (सम्यकमि वाभिगमिन ) २४१,२४५,२४८;५।३,४,२८,३३,५२,५३,५८%; प३४।१४ ६७.६.११,१४,१५, ७१।१,७१२ से ४,१०, सम्मामिच्छद्दिटिठ (सम्मिथ्यादृष्टि) प ६।६७; १२,१४ से २५,२७,३०,३२,३४,५४,६२ से १३।१४,१७,१७.११,२३,२५,१८१७८१६१ ६४,६७ से ८१,८४,८६,८७,८८,६१ से १६,९८ से ५,२११७२,२८११२७,१३८ से १०२,११०,१२७,१३१११,१७१ से १७४, सम्मामिच्छादं सणपरिणाम १६०,२०१ से २०७ सू ११८१२.१५१० से १२, (गम्यमितादर्शनपरिणाम) प १३।११ १४,१६ से २४,२६ से ३१:२११,३,४१४,५, सम्मामिच्छादिदिठ (मा, मिथ्याष्टि) प ३३१०० ७,८,१०,६१,८११:१०११३८ से १५१, Vसम्मुच्छ (+- मुच्छ) सम्मुच्छंति प १८४ १६२ से १६४,१६६ से १६६१२।२,५; सम्मुच्छति प १३:४ १३।४।१४।३।१८।१,१३,३०,१६५२, सम्मुच्छिम (संमूच्छिम् ) प २४६ से ५१,६०,६६, १६००।१,२,१६।२११५,१६१२-१६,६३ ११२; ७५,७६,८१ से ८४;३।१८३,४।१०७ से ३।५५,६२,५१२८,४१ १०६,११६ से ११८,१२५ से १२७,१३४ से सय (स्वक) ज ३७७,८४,१०२,१५३,१६२, १३६,१४३ से १४५,१५२ से १५४,१६१; १७८,१८३.१८६.२२४५।१,६,८,१०,१३, ६.२१,२३,६५,७१,७२,७४,८४,६४,९७,१००, २२.२६,४३,५६ उ १।३३.४२,४४,१०८, १०२,१०८।९।६:१६,२२:१६।२८; १७१४२, १२१,१२२,१२६, ३।११,४३,५३,१४८,४।१५ ४६,६३ से ६५,६७,८६२११६,१०,१२,१३, सय (शी,स्वप् ) सयंति ज १११३,३०,३३, २१७; १५ से १६.३०,३३,३५,३७,४३ से ४७; ४१२,८७,२१५,२४७,६१८ २११४७१२,२११४८,५३,५४,७२ सयं (स्वयं) प १५१०११३,२३।१३ से २३ सम्मुति (सन्मति) ज २१५६,६० सू १६।११।३ सय (शत) ५ २०४१ से ४३,४६,५५,५८,५६।२, सयंजय (शतञ्जय) ज ७.११७१२ सू १०१८६२ ६२।१२।६३,२१६४।६।१२।३६,३७,१८१३१, सयंपन (स्वयंप्रभ) ज ४१२६०११ सू ५।१२०१८, ३६,६०,११३,२१४६५,२२।४५,२३७४,८६, २०1८६ ८८,८६,९५,६८,६६,१०१ से १०४,१११, सयंबुद्ध (स्वयंवुद्ध) प १६१०५,१०६,११८,११६ ११३,११७,११८,१३०,१३१,१६४,१८३,१८७ सयंबुद्धसिद्ध (कम बुद्ध गिढ़) ॥ १।१२ ज १७,९,१०,१८,२०,२३,२६,३७,३८,४०, सयंभुरमण (वभूरमण) 4 २११८७,६०.६१ ४८; २१४१३.१६,४८,५२,६४,७५,७७.७८, सयंकरमण (स्वयम्भूरण) १५१५५,५५।३ ८०,८६,१२८,१४८,१५,१६१,३।१,१८.३१, १६।३८ ३५,६३,६५,९६ से १०१,१०४,१०५,१०६, सयंसंबुद्ध (स्वयंभवुद्ध) ५।२१ १२६,१५६.१७८,१८०,१६३,२०६,२१०, सयकाउ (शतक्रनु) ज ५'८ २१६,२२१.२२२,४।६,१०,१२.१३,२३,२५, सयग्घी (दे०) प २१३०,३१,४१ ३२,४६,५५,५७,६२,६५,६७,७२,७३,७५, सयज्जल (शतज्वल) ज ४१२१०११; ७६,८१,८६,६०,६१,६३,६५,६८,१०३,११०, सयण (शयन) प १११२५ ज ३११०३ सू २००४,७ १२०,१४१,१४२११,२,१४३,१४७,१५४,१६३ उ ३३५०,११०,१११।४।१६,१८ से १६५,१६७,१६६,१७८,१८३,२००,२०५ से सयण (स्वजन) ज २१६६ २०७,२१३ से २१६,२२१,२२६,२३४,२४०, सयणिज्ज (शयनीय) ज ४।१३,३३,७६,९३,१३५, Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७० सयधणु-सरिस १३६,१४०,१४७,१५३,५।१७ सू २०१७ उ १६४६,५।१३,२५,३१ सयधणु (शतधनुष्) उ ५२।१ सयपत्त (शतपत्र) प १२४६ ज ४१३,२५ सयपत्तहत्थगय (हस्तगतशतपत्र) ज ३३१० सयपाग (शतपाक) ज ५।१४ सयपुष्फा (शतपुष्पा) प ११४४१३ सौंफ सयभिसया (शतभिषग्) ज ७११३।१,१२८; १३४१२:१३५२.१३६.१३६,१४२,१४६,१५७ सयमेव (रव मेव) प १११०११३ ज २१६५; ३३१०२,१६२,२२४ सू १३।५,६,१२,१३,१७ उ १२६५,६६,७१,८८,६४,३८१,८२,११३; ४४२० सयरिसह (शतवृषभ) सू १०।०४।३ सयरी (शतावरी) प ११३६१२ सयल (सकल) ज ३।३१ सू१६।२११६ सयवत्त (शतपत्र) प २१३१,४८ ज ४।४६ सयवसह (शतवृषभ) ज ७/१२२६३ सयसहस्स (शतसहस्र) प १५२३,२६,२६,४८,४६, ५१,६०,६६,८४,२।२२,२५,२१२७१४,२३०, ३३ से ३५,४०।३,४,२१४६,४६,१५१४१; ३६.८१ ज १७,२१४,१८,६४,८७.८८% ३।१७८,१८५,२०६,२२१,२२५,४।२५६,२६२, ५५१८,२४,२५,२८,४४,४८,४६२,६८।१, २० से २६,७।१।१,७१४ से १६,७३,७४, ७८,६३,६४,६८ से १००,१८७,२०७ सू १।१४,२१,२७,२१३,३।१६।१८।१; १०.१६५,१७३;१२।६।१८।२७;१६।११, १६४,८,११,१४,१५१४,१८,२०,२१११,५ उ ३।१६ सयसाहस्सिय (शतसाहसिक) सु १६२६ सयसाहस्सी (शतसाहस्री) ज ४।२१,६८,७९५८ सया (मदा) ज ७/१२६,१७० १०७५,७७, १३६,१७३, १६।१,११,२१,२०१२ मयावरण (सदावरण) ज ३११०६ मसहरी सर (शर) प ११४१११ ज ३।२४।१,२,३१२५,२६, ३१,३५,३८,३६,४६,४७,१३१११,२,१३२, १३३,१३५,१७८ उ १११३८ सर (सरस्) १ २।४,१३,१६ से १६,२८; १११७७ सर (स्वर) ज २।१२,१३३, ३१३,४१३,२५,५१२८% ७.१७८ सरंत (दे०) १७६ सरग (शरक) ज ५११६ उ ३१५६ सरड (सरट) प १७६ सरण (शरण) ज ३११२५,१२६,५२२१ सरणदय (शरणदय) ज ५१२१ सरणागय (शरणागत) ज ३१८१ उ १११२८ सरद (शरद्) सू १२।१४ सरपंतिया (सर:पंक्तिका) प २१४,१३,१६ से १६, २८,१११७७ सरभ (शरभ) प ११६४ ज ११३७,२६३५,१०१; ४१२७,२८ सरय (शरक) उ ३१५१ सरय (शरद्) उ ५१२५ सरल (सरल) प ११४३३१,११४७११ सरलवण (सरलवन) ज २१९ सरस (सरस) प २३०,३१,४१ ज १९५,९६,६६, १००:३।७,६,१२,८२,८८,१८४,२११,२२२; ५१४,१५,५५,५८ सरसर (मरःसरस्) ज ३।१०२,१५६,१६२ सरसरपंतिया (सर.सरपंक्तिका) ५२१४,१३,१६ से १६,२८,१११७७ सराग (सराग) प १११००,१०१,१११ से ११४; १७.३३ सरागसंजय (स रागसंयत) प १७१२५ सरासण (गरासन) ज ३१७७.१०७,१२४ उ ११३८ सरि (सदक) ज ३११६७।१३ उ ३।१७१:४१२८ सरिच्छ (सदग) ज ३।१८,५२,६१,६६,१३१, १३६,१३७,१४१,१६४,१८० सरिस (सदृश) प ११४८।३८, २।३१ से ३३ Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरिसव-सविलेवण १०७१ ज ११४१,४६,२।१५,१६,३।३,३५,७६,११६, सरीरसंघातणाम (शरीरसंधारनामन्), २३१४४ १३५,१८८४१५२,१०६,१६३,१७२,१७४, सरीरसंघायणाम (शरीरगंघातनाम्न) २३१३८, १७७,२००,२०४,२१०,२१२,२२६७३१७८ मु १०११६२,१६।३१,३५,३८ उ १३१४८; । सरुव (स्वरूप) ज ५१४३ २०२२ सललिय (सलभित) चं ११ सरिसय (सदशक) ज ११४६ सलाइया (शलाकिका) ज ५१५ सरिसव (सर्षप) प ११४४१२,४५१२.११४७।२ सलामा (शलाका) ज ३.११७:५१५ ज २१३७ उ ३१३७,३८ सलिगसिद्ध (स्वलिङ्गसिद्ध) प १।१२ सरिसवय (मदृशवयम्) उ ३।३८ सलिगि (स्वलिङ्गिन) प २०१६१ सरिसवय (सर्वपक) उ ३१३८ सलिल (सलिल) ज ३७६,१०६:४१३,२५,६४ . सू३५१ सरिसवसमुग्ग (सर्षपसमुद्ग) ज ५१५५ सलिलबिल (सलिलबिल) ज २।१३१ सरिसवा (सदृश्वयम्) उ ३१३८,४०,४२ सलिला (सलिला) ज ३७६,११६४।३५,३७,४२. सरीणामय (सदग्नामक) ज ११४६ सरीर (शरीर) प १११३५,११४७।२,३,११४८१५३, ७१,७७,६०,६४,१७४,१८३,२६२,६१६३१, ६।१६ से २६ ५७; १११३०,३०१२,१२११:१४१५;१५११०,२३; सलिलावई (सलिलावती) ज ४।२१२,४।२१२।१ १६।२३।१७।१।१,२१।१११२११३८,४० से। सलील (सलील) ज २११५ ४२,४८,५३,५६,६१,६३ से ६६,६८ से ७१, सलेस (सलेश्य) प १८१६८:२८१२२,१२३ ७४,८४ से ६३,२८१११२,६८ से १०१। सलेस्स (सलेश्य) प ३१६६.१७।२८,५६ १०६६१,३६.५६,६६,७०,७४ ज २१४५,४७, सल्ल (दे०) प ११७६ ६०,३।८२,८५.१०६.१३८ सू २०१७ सल्लई (सल्लकी) प ११३५।१,११३७११ उ १११६,३५,४२,३।८,२६,३५,१२७,१४१; सहलगत्तण (शल्पकर्तन) ज ५१५८ ४।१२,१८ सवंतीकरण (सवर्णीकरण) उ ११४६ सरीरंगोवंगणाम (शरीराङ्गोपाङ्गनामन्) सवण (श्रवण) ज २११५,३३२२५, ७।११३११, ५ २३१३८,४२,६२ १२८.१३०,१३६,१३८,१४१,१४६.१५६ सरीरग (शरीक) ज १९६,१००,१०३,१०४, १०७,१०८ मु १०१ से ६,८,२०,२३,२८,५६,६३,७५, ७६,६३.१२०,१२,१३० से १३५; १५९ सरोरणाम (शरीरनामन् ) प २३।३८,४१,८६ से सवणता (थत्रण)२०२८ ६३,१४६,१७३,१७४ सरीरस्थ (शरीरस्थ) प ३६८५ सवथा (थयण) प २०११७,१८,२२,२५,२६, सरीरपज्जत्ति (शरीरपाप्ति) प २८।१४२,१४३ ३४,४५ उ १५१७.३६,४०,४२,४३ उ ३.१५,८४ सदहावित (शपथशास्ति) उ २५७,८२ सरीरबंधणणाम (शरीरबन्धननामन्) ५ २३।३८, सवालुइल्ल (सवालुक) ज ३११०६ ४३,६२ सविणय (सविय) ज ३१८१ सरीरबाओसिया (शरीरबाकु शिका) उ ४१२१,२२, सवियु (मवित ) ज ७१३०,१८६ २८ सवियादेवया (सवितृदेवता) सू१०८३ सरीरय (शरीरक) १२१२ से ५:२१।१,२११६२ सपिलेवण (सविलेपन) । ३६१८१ Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७२ सविसय-ससि सविसय (स्वविषय) प १११६७,६८,२८८१७,१८, ज ४।१०७:५३५,७ सू १६०२,१२,२६,२८ ६३,६४ ज ७४६ सव्वत्थ (सर्वत्र) प २१३२:२११३५,४२,२२।२५; सविसेस (सविशेष) ज २१६:४११५६७७,६६, ३६।४७ ज ३।१०६४।५७,१८३;७।३७,१९७ ६० सू १८१६ से १३ सू१८३७ उ १२२ सवेद (सवेद) २८११४० सव्वदरिसि (सर्वदशिन्) ज २७१५२१ सवेदग (भवेदक) प ३९७ सव्वपाणभूतजीवसत्तसुहावहा (सर्वप्राणभूतजीवसवेदय (गवेदक) १८१५६ सत्त्वसुखावहा) प २६४ सधेयग (सवेदक) प ३६७ सम्वप्पभा (सर्वप्रभा) ज ५११११ सव्य (सर्व), ११२ ज १७ चं ११२ सू १।१०।। सव्वबल (सर्वबल) ज ३।१२,७८,१८०,२०६; उ१९७० ५१२२,२६ सव्वओ (मर्वता) प १७११०६ से १११,२८।११, सध्वम्भंतराय (सर्वाभ्यंतरक) सू १११४ २८।२१,६७ ज १७,६,२३,३५४१३,२१०, सव्वभाव (सर्वभाव) ज २१७१ २१४,२४१,२४२ मु ३११ उ ५८ सव्वरयण (सर्वरत्न) ज ३.१६७,१७८ सत्वोभद्द (सर्वतोभद्र) ज ३.३२,५।४६६३ सव्वसिग्धगइ (सर्वशीघ्रगति) ज ७।१८० सध्वंग (मङ्गि)ज१५ उ ११२३,६१ सवसिग्घगइतराय (सर्वशीघ्रगतितरक) ज ७।१८० सवकज्जवड्ढाक्य (सर्वकार्यवर्धापक) उ ३।११ सव्वसिद्धा (सर्वसिद्धा) ज ७।१२१ १०६१ सव्व सामसमिद्ध (सकामसमृद्ध) ज ७११७६१ सम्वहेट्ठिम (सर्वाधस्तन) सू ६३ मु १०।८६१ सध्याउय (सर्वायुष्क) ज २१८८३।२२५ सव्वकालतित्त (सर्वकालतृप्त) प २१६४।२० सव्वामयणासिणी (सर्वामयनाशिनी) ज ३११३८ सव्वक्खरसंनिवाइ (सर्वाक्षरसन्निपातिन्) ज २१७८ सविदिय (सन्द्रिय) ज २०१८ सव्वक्खरसंनिवाति (सर्वाक्षरसन्निपातिन्) ज ११५ सव्वखुड्डाय (सर्वक्षुद्रक) सू १११४ सम्वोउय (सर्वर्तुक) ज २११२३१३०,३५,२२१:५१५ उ ५११६ सम्वग्ग (सर्वाग्र) ज ४।६,१४,१४६,२५६;७१६८, १६६,२०१,२०३,२०५,२०७ ।। सम्वोहि (सर्वावधि) प ३३।३१ से ३३ सध्वज्जुणसुव्वणमती (सार्जुनस्वर्णमयी) प २१६४ । ससंभम (ससम्भ्रम) ज ३१६:५।२१ राव (सर्वार्थ) ज ७।१२२ सू १०१८४।३ ससक्कर (सशर्कर) ज ३।१०६ सव्वट्ठसिद्ध (सर्वार्थकसिद्ध) ५६।११० ससग (शशक) प १.६६ ज २११३६ सव्वाद्ध (सर्वार्थ सिद्ध) प १११३८, २१६३; ससबिंदु (शश बिन्दु) प १४०।५ ६२६,६२,२०।६१२११७७ उ ५१४१ ससय (शशक) प ११२१ सव्वळसिद्ध ग (सर्वार्थसिद्धक) प ४।२६७ से ससरीरि (सशरीरिन्) प २८।१४१ २६६,६:४३, ७:३०;१५।६०,६३,१०१,१०६, ससरुहिर (शशरुधिर) प १७११२६ १०८,११४,११५,११७,१२०,१२१,१२३, ससि (शशिन्) ५ २१३१ ज २११५, ३१६,१७,२१, १२५,१२८,१२६,१३२,१३६,१४३,२०.४६% २८,३४,४१,४६,६३,१०६,१३६.१५७,१६३, २८१६७ १६७।१२.१७७,२२२,७।११२७१६८.१ सवण्णु (मत्रज्ञ) ज २०७१,५१२१ सू १०1७७,१२६।२१९।८।२,१६।२२।३,२३, मन्बतो (सर्वतस् ) प २१६४।१३:२८१२१,३३,६७, २६.२६,३१,२०१४ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ससिया-सहस्सार १०७३ ससिया (शशिका) प ११२३ ५१,५६,६०,६८,९३,६६.१०६,११७,१२०, सस्स (शस्य) रा १०११२६४ १२२,१२६॥३;३३१३०,१३६,१४०,१४५, सस्तिरीय (सश्रीक) २३०,३१,४१,४८,४६, १४६,१६३,१७२,१७५,१८०,१८५,१८६, ५६,६३,६४ ज ११३१ ; २१६४,३१६,३५,११७, १८८,१८६,२०६,२१०,२१४,२१५,२१६, १८५,२०९,२२२,४।२७,४६,५।२८,५८ २२१:२२४;४।१,२७,३५,३७,४२,४५,५२, ५५.५७,६२.६४,७१ ७७,८१,८६,८८,६०,६१, सह (मह) प २३।१५६,१६०,१६४,१७५ ६४,६८.१०३,१०८,११०,११४,११६.१५१११. ज २२५०,१६४।४।१०६,२०५७/१३५।४ १६५,१६७,१६६,१७४,१७८,१८३,२००, उ ३.३८ २०५,२१३,२१५,२३४,२४०,२५७ से २५६, Vसह (सह ) महइ ज २१६७ २६२,५१२८,३२,४३,४८,४६६१,५०,५२११, सहगत (सहगत) प २२११७ ५३,५५,५.६६८।१.१६ से २६;७।१११,७८ सहमय (सहगत) प २२१८० से २५,३१,३३,३४,५४,६७ से ८४,६५,९६, सहजायय (सहजातक) उ ३१३८ १२७,१७०,१७८।१,२,१८३,१८८,१८६,२०७ सहपंसुकीलियय (महमांशुक्रीडितक) उ ३।३८ गु १५१४,२० से २२,२६,२७,२११,३,३११; सहरिस (सहर्प) ज ३८१ ४।३ से ५,१०,६११८।१६।३।१०।१३५,१६४; सहड्ढियय (सह्वधितक) उ ३१३८ १२१२ से ७,६;१८३१.४,२०,२१,२६,२८, महसम्मुइ (स्वसंस्मृति) प १११०१२ २६; १९३१।१,१६१४,५।३,७,८१३,१०,११११, सहस्स (सहस्र) २१२१ से २७,३० से ३६,४०१५, ३,४।१६।१४,१५११,३,४,१६।१८,१६, ४१ से ४३,४६,४६ से ५२,५५ से ५७,५६, १६।२१।२,४,५,७,१६।२।२८,३२,१९३० ५६.१.३,२१६३,६४,४११,३,४,६,२५,२७,२८, उ १६१४,१५,२१,२२,२५,२६,१२१,१२६, ३०,३१,३३,३४,३६,३७,३६,४०,४२,४३, १३२,१३३,१३६,१३७,१४०,१४७,३७,६१, ४५,४६,४८,४६,२१,५२,५४,५६,५८,६२,६४, ११०,१११:४११६,१८५११७,३७ ६५,६७,६६,७१,७६,८१,८५,८७,८८,६०,६४, सहस्सक्ख (सहस्राक्ष) प १५० ज ५।८ १२५,१२७,१३४,१३६,१४३,१४५,१५२, सहस्सम्गतो (सहस्रानसस्) प १२०,२३,२६,२६, १५४,१६५,१६७,१६८,१७०,१७४,१७६, १८०,१८२,१८३,१८५,६१४०।१२।६१८२, सहस्तपत्त (सहस्रपत्र) प ११४६ ज ३८६४१३, ६,९,१२,१६,२०,२८,३२,३४,३५,४७,५०, २२,२५,३०,३४,५।५५ ५२,८५, २०१६३,२१।३८,४१,४३,४५,४७११, सहरूपत्तहत्थगय (हस्तप्तसहसपत्र) ज३१० २,२०६५.६७,८७,२३१६० से ६२,६४,६६, सहस्सपाग (सहस्रपाक) ज ५११४ ७८,५१,८४,६०.१११,१३३,१४७,१६७ से सहस्सरस्ति (सहस्ररशिम) उ ३१४८,५०,५५,६३, १६६.१७१ से १७३,१७५ से १७७,१८२, ६७,७०,७३,१०६,११८ २८।२५,४०,४३,६६,७४ से ८७,६७,३६६८, सहस्सवत्त (सहरूपत्र) ५११४८१४४ ८१ज १७१,१११६,१७,२०,२३,४६,४८; सहस्सार (सहस्रार) प १११३५; २०४६,५७.५८ २१४१३,२१६,१६,५२.५६,६५,७१,७७ से ८२, ५६।१,६३,३३३६,१८३;४/२५२ से २५४; ८८,१२६,१३०,१३४,१३८,१४०,१४६,१५४, ६६३४,५६,६५,८६,६२,१०६; १५।८८, १५६.१६१, ३।१४,१८,२२,३०,३१,३६,४३, २०१५६,६१:२११७०,६१:२८८२:३४११६,१८ Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७४ सहस्साग-साडय ज ५।४६२ उ २०२२ २५५,२५७,२५८,२६०.२६१,२६३,२६४, सहस्सारग (सहस्रारक) प ६११२७।१५; २६६,२६,२६६,२७०,२७२,२७३,२७५, ३३।१६ २७६,२७८,२७६,२८१.२८२.२८४,२८५. सहस्सारथडेंसय (सहस्रारावतंसक) प १५७ २८७,२८८,२६०.६६१,६३२६४, १६, ताहि (सखि) ज २१२६,६६ २६७,२६६; १८१२,१६,१६,२४,२८,३१, सहित (ति) सू १६।२२।२५ ३६,४२,४४,४६,४६४६,६१,६६७४, राहिय (सहित) १ २६२१ ज २११५; ३।३१,६५, ७६,७६,८४,८५,९.१२.१९९२३१६० से १५६७११८६२ २०८,२०।८।२ ६६,६८,६६,७३८,८१, ६०,६२, तहोयर (सहोदर) उ ११६५ ६५ मे १६.१०१ १.४.१११ से ११४, खाइ (स्वाति) ज७१२८,१३४।२,१३५२,१३६, ११६ से ११८, १ ६ मे १३१,१३३ से १४०,१४६,१६५,१७५ १३५.१३८,१४०,१४२.१४३ १५१.१५३,१५५ साइम (वाद्य) उ ३.५०,५५,१०१,११०,१३४; से ११०, १६०,१६४.१६६ १६८,१७१ से साइयार (मातिचार) प ११२६ १७३.१७५ से १०१,८ ८ ,,१८०, साइरेग (सातिरेक) प १८१७६२३१६५ ज ११३५, १३० जरा! ,११,१२,१५४, १६०,१६३ सू२:११ १२६,१४०; ४०,११:२।१२८,१४८,४।६,१४२३,३१,३८, ३११५०,१६४,२०६ : ४० ४१,६५.६८,७३,६०,६१,११६,११६,१२२, १३६,१४६,१४७,२१६,२४२,७१२५,१६६, : स्मगार (गकार प:४१२६११६५,१६६ से २०७ सू८११;१८१३० २०१:२६।११:६४१५६२८ साउफल (स्वादुफल) ज २।१२ रागारपति कार वॉशन) ३०.१५ से १८, साएय (सात) प ११९३२ सागर (मागर) प २१६८।३,७६,७६,८१,१०५, सागारशारणला (स करवर्ग):३०१२७ ११६,१२६१४,१२८,१५१,१७०,१८५,१८८, सागारपाल (सः :रवीन) प ३०११,२,५,६, २०६,२२१,४१६२११,२३६:५१३२.५८ ज २६८,३३,७६,७६,८१.१०५,११६, सागाराणागारो उर (मामा सामोपत) १२६।४,१२८,१५१.१७०,१८५.१८८,२०६, २२१ ; ४११६२११,२३८५।३२,५८ सू १६१६१ मारोवस : स): ३।१०६.१७४; उ २०१२;५१० १३४REE९१६२१:३६।१२ सागरकड मानरमाट) ज1१६४ शामाकोषागाक... ग): २६१,२,५.६, सागरचित (सावित्री २३८ सागरचितकड (साम चिकट) ज ४२३६ मोनिकायमान बार सागरोवर (भागसेपर) ८११,३,४,६,७,६,१०, १२,१३,१५,१६,१८,१६,२१,२२,२४,२५,२७, साग (माटया) १०. १२५ ३१,३३,३७.६६.१०७,२०६,२१३.२१५, भाड मारा : १५२६७७ २२५,२२७,२३७.२३६,२४०,२४२,२४३, २४५,२४६,२४८ २४६.२५१.२५२.२५४ाथ ट न : Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात-सारइयबलाहक सात (सात) प ३५३१३१,२,३५१६,१ सातावेव (वेदक ) १३३१७४ वातावेदणिज्ज ( सात वेदनीय ) प २३१५, २६, १४६, १७६ सातवे (सातवेदन) २३१५,३०,६३, १३५ सातासात ( नातासात) प ३५८,६ (स) यू २०१७ सांति (यादि) प २३४६ पति (स्थान) १०१२ से ६,१७,२३,४८,६२, ७२,७१.०३.११३,१३१ से १३४; १८२७ सारे (सनिक ) प ४१३१,३३,३७,३६,१९८, २००,२०४,२०६२२५, २२७, २२८५,२३०, २३१.२१३,२३४, २३६.२४०, २४२७२, ६, ११. १५०४११८११६,१२,३१,२६,४६,५४, ६१७६,८४,८७,११३.११६२१३५,४१. ६२,६१८७२८१२५७६७८३६६८ सू २०१६।३:१२/१५ सादि (सादि) प १५०३५ सादि ( स्वाति ) सू १०।१२० सादिय ( सादिक ) प २६४ सादीय (सादिक) १८३७.१७,२१,५८,५६,६३, ६७७५ से ७७,७९,०२,८२,८०,१०,१२, १००.१०५.११२.११५, ११८, १२१,१२४, १२७ / साध (साधु) सधेति सू १०।१२० साधेति [5] १००१२० साभार (क) अ ३२२०२५२५६ ( प ११३७२४ साम (१।३१ सामंत (पन्त) उ ११३,३३२६ साम) १२४५२ (गागम्य) सू १०९७७ सारण (मण्य उ २११२३३११४, २१,१२०, १५०.१६१,४।२४५४२८,३६,४१,४३ सायण ओशिवाय ( सामान्यतो विनिपातिक) ५५७ सामण्णपरियाय ( श्रारण्यपर्या) जब ३।२२५ १०७५ सामल (शामल ) ज ३११०६ सामलता ( श्यामलता ) प ११३६३१ सामलया (श्वामालता) ज २।११ सामली (शामली) प ४६२०८ सामा (श्यामा) २२४०१२: १७११२४ सामाइय (गायिक) ११२४.१२५ २१०, १२:३।१४, १५०,१६१.५१२८,३२४१ सामाज्यपरितपरिणाम (सामा काम प १३।१२ सामाण (समान) प २१४६,४७,४७२ सामाणिय ( सास निक) ए २१३० से ३३.३५; ४०१५,४१,४३.४८ से ५६ ११४५, २६०१ ४११७,११३.१५० १५२२११६१६,२६,४२, ४४,४५,४६, ४१४२.५०,११,१२४१.५३.५०. ६४,६७१५६, ५६.१०५०१०१२३.१२०२४. २७ ३६,२५,६०,१५०,१५६,१९२४१५ सामि ( स्वामिन् ) ११४:३८, १६४३.६२,७०,७७, ८४,१००, १२९/२, १४२.१६५,१०१.१२२ ५५५,५७,५८६ १२४२११२,३६,४० ४२,४४,६९.१०३, १०१, १०२, ११० ६ ११२. ११४,११६,१२८,१३६२११०३५.२८, ८६ १५५,१६८४१४ सामित्त (वि) २१३०,३१,४१,४६ १४४५३४१६५.२०६,२६१३५।११५१० सामिय (वाधिक ) ज ३१५१ सामुदायि (ममुदा१ि५१७ सायं (सा) २०१६१०१४१३६ सायावेदणिज्ज (रा.वेदनीय) २३१५ सायायेयजिज्ज (दानवेदनी ) प २३१४१ सार (मा) प ११७६ १९२६२१६४,६२ ३४२,३,२४,३५ प १३ १११०,२९,६९३ ५।११ सायर (सागर) मू १६४ २२ २४ सायबलाहक (सर) १७११२० Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारंग-साहारणसरीर सारंग (सारङ्ग) प ११५१ ज ३३३ साविट्ठी (धाविष्ठी) ज ७।१३७,१३८,१४१, सारकल्लाण (सारकल्याण) प २४३।१ १४७,१५०,१५४ सू १०७,८,२०,२३,२५,२६ सारक्ख (स-रक्ष) सारक्यति ज २१४६,५२, साविया (श्राविका) ज ७२१४ ५६ सारक्खिस्मति ज २११५६,१६१ सावत (धावयत ) ज ३११७८ सारक्खमाण (संरक्षत्) उ १५७,५८.८२,८३ सास (श्वास) ज २१४३ सारक्खिज्जमाण (मरथ्यमान) उ ३।४६ सास (मस्य,शम्) ज ७११२१४ सारक्खित्ता (मरक्ष्य) ज २४६ सासग (सत्यक,शरयक) प १२०१२ सारय (शारद) ज ३।११७ सासग (शामक) ज ३१३५ सारस (सारस) प ११७६ ज २।१२ उ ५१५. सासण (शासन) ज ३.८१,१५१ उ ११३६ सारहि (सारथि) ज ३१३५,१७८ सासत (शाश्वत) ३६१६४ सारिक्ख (सादृश्य) प २१६४।१८ सासय (शादत) ५ २१६४,२१६४।२०,२२; सारीर (शारीर) प ३५३१११,३२६,७ ३६।६३.६४,६४१ ज १११,४७,३।२२६; सारीरमाणस (शारीरमानस) प ३५१६,७ ४।२२,३४,५४,६४,१०२,१०७,११३,१५६, साल (शाल) ५ ११३५॥१,११४३।१,११४८११४,२४ १६१ ७२०८ से २१० सू २०१८,२०१८१८ सासवसमुग्गयहत्थगय (हस्तगत सर्षगसमुदात) सालंबण (सालम्बन) ज ३९ से १०१ ज ३१११ सालभंजिया (सरलभजिका) ज ११३७,५।३,२८ सासेंत (शासत्) - ३।१७८ सालवण (शामवन) ज २६ साह (साधय) साहेइ ३१५१ साला (दे०) १ ११३५,३६,११४८।३३,३७ साहटु (पहर) जे ३।१२ उ ११२२ सालि (शालि) प ११४५११ ज २१३७,३.११६; सिाहर (मं है) साइज २९५,३१२६,३६, ४।१३,७।१७८ ४७,१३३;५।२१,५८ साहरंति ज २१६६; सालिंगण (सागिन) र २०१७ ५।१५,७०,६८,११० साह ज २१६५,६७, सालिपिरासि (शालि पिप्टराशि) प १७११२८ १०६५।१४.८६ सागहि ज ५१६८ सालिसच्छियामच्छ (शालिसाक्षिकामत्स्य) प १५६ साहरिज्जमाण (गंल्लियाण) ४१०७ सालिरुय (सदृशक) सू २०१७ शाहरित्ता (हृत्य) जना सावइज्ज (रवापते ) ज २१२४,६४ साहस्तिय (सिक) तू १६०२३,२६ उ ३६१ सावगधम्म (श्रावकधर्म) उ ३१४५,७६,१०३.१०४; साहस्ती (जारनी प६० से ३३,३५,४१,४३, १४३,५:२० ४८ से ५६ ज ११४५२१४ से ७७,६०, सारण (याःण) ज २११३८,७४१०४.११४ १२६ ३१२२१,४।१७,१६,२०,११२,११३,१२६, सू १०।१२४,१२६ उ ३।४० १५०,१५१ १५६:११,५,६,१६,३६,४०, सारतेय (स्व:पतेय) ज २१६६ ४४८६,४६ से १३,१६,६५.६७, ७५५, सावत्थी (था यस्ती) प १६३।५७३।६ से ११,२१ ।। १३८,१८५ सू१८१४ से १७,२१,२३ सावय (श्वापद) ज २१३६ उ ३६,१२,२५,६० १५६,१६६:४१५,५।१० सावय (श्रावक) ज ७१२१४ साहारण (सारण) T११४६।५४,५५,६० सावयबहल (स्वापदवः, न) ज १११८ माहारणहरीर (साधारणारीर) ११:३२,४८ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहारणसरीरणाम-सिझणया १०७७ २७४।६।१६ सिंधुआवत्तणकूड (सिंधुआवर्तनकूट) ज ४।३७ सिंधुकुंड (सिन्धुकुण्ड) ज ११५१,४११७४,१७५ सिंधुकूड (सिन्धुकूट) ज ४।४४ सिंधुगम (सिन्धुगम) ज ३।६४,१५१ सिंधुदेवी (सिन्धुदेवी) ज ३।५१,५२,२४,५६,५७, ५८ साहारणसरीरणाम (साधारणशरीरनामन्) प२३१३८,१२१ साहाविय (स्वाभाविक) ज ५१५५ साहि (कथय) साज्जिः प१७।१२६ साहिज्जति प १७४१२६ साहिज्जति प १७११२६ साहिय (साधिक) प ४।२४० ज २१६६३७९, ११६,११८,७११६४ साहीय (साधिक) प २१६४१८ साहु (साधु) चं ११२ साहेत्ता (साधला ) ३१५१ सिउंढि (दे०) प ११४८।१ सिंग (पृङ्ग) ज ३।१०६५/६३७१७८ सिंगरंग (शृंगाग्र) ज ३।२४ सिंगबेर (शृंगबर) प ११४८।२; १७६१३१ सिंगबेरचुण्य (शृंगवेरचूर्ण) प १११७६ १७.१३१ सिंगभूत (शृंगभूत) ज ३३१८६ सिंगभूय (शृंगभूत) ज ३१२१७ सिंगमाल (शृंगमाल) ज २१८ सिंगार (शृंगार) प ३४।१६,२१ ज २११५ सू२०१७ सिंगारागार (शृंगारागार) ज ३११३८ सिगिरिड (गिरीट) १५१११ सिंघाडग (शृंगाटक) प १४८।६ ज २१६५; ३॥१८५,२१२,२१३,५७२,७३ उ श६८ सिंघाडय (दे०) २०१२ राहु का नाम सिंघाण (सिंघाण किंधाण) प ११८४ सिंदुवार (सिन्दुवार) प १३४,११३८।१ ज २।१०३१३५ सिंदुवारवरमल्लदाम (मिन्दुवारवरात्यदामन्) प १७:१२८ सिंदूर (सि दूर) ३१३५ सिंधु (सिन्धु) ज१८.२०,४८,२।१३१,१३६, १३४,३११,५१,५२. ५ ०७६,२८.९६६ १११,११३,१२८,४१३७.१६८,१०४ सिंधुदीप (सिन्धुद्वीप) ज ४।३७ सिंधुप्पवायकुंड (सिन्धुप्रपातकुण्ड) ज ४।३७ सिंधुसागरंत (सिन्धुसागरान्त) ज ३।८१ सिंधुसोवीर (सिन्धुसौवीर) प ११६३।४ सिभिय (ग्लैष्मिक) उ ३।११२,१२८ लिहल (सिंहल) प ११८६ सिंहलय (सिंहलक) ज ३८१ सिंहली (सिंहली) ज ३१११११ सिंहासण (सिंहासन) ज ११४४ सिक्खा (शिक्षः) प १११४६ उ श२० सिक्खिय (शिक्षित) ज ३११७८७१७८ भू २०१६॥३,५ सिग्घ (शीघ्र) ज ६०,३१२६,३६,४७,५६,६४, ७२,१०६,११३,१३३,१३८,१४५५१५,२८, ४४,४७,६७ म २३,१५१.३७; ११८ सिग्घगइ (शीघ्रगति) ज ७।१८० चं २।४४।२ सू १६।४,१८२ सिग्घमामि (शीघ्रगामिन्) ज ३।३५,१०० शिग्धया (शीघ्रता) ज ३.१०६ इसिस (सिध्) शिज्झइ प ३६५ सिभई १२।६७४२,३ सिझन प ६१५७,६७,११० जे ११२२,५०,२१५८,१२३.१२८,१४८; ४११०१,१७३ मिति प ३६३६२ सिज्मदिइ उ१५१४१:२१२०,३।१८।२६; १४३ सिमित ज २११५१,१५७ २२:४२ जाए २०१८ या किनार Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७८ सिणेहभाव-सिरिकंदलग सिणेहभाव (स्नेहभाव) ज २११४३ लित (सित) १२१३१ सित्त (लिस्ट) ज२१६५,३७,११६,५१५७ सिद्ध (सिद्ध) प ११११,१११३:२१६४,२१६४१२ से ४,६ से १२,१४,१६,१८,२० से २२:३१३७ से ३६.१८३,५॥३,६।४४,४६.५७,५६,६७,६६; १११३६,१२१७,१०,२०:१६।२५,३०,३२,३३, ३५.३७:१८१७:१६५२१२१८,२८११०७,११०, २१,११४.१२०,१२१,१२४.१२५.१३१, १३८,१३९.१८१,३११६,३२।६३६४६३,६४ ज२।१,२१८२,८८,८९,३२२५,४।१६२१, १७२५१,२०४।१,२१०३१,२६३११,२६६।१; ५।५७।११७ चं १२ नियहि (सिद्धावां कन्) ११८१६८,१०० सिद्धति (सिद्ध) ५६५ हित्य (सिद्धार्थ) उ ५।२६,२८ लिय (सहायक) ज ३१२०६५।५५,५६ सिबिया (शिबिका) ज २।१०१,१०२ सिब्भ (श्लेष्मन्) ज २११३३ सिय (स्यात) ५ ११४८,५१५,१०,२०.३०.३२, १०२,१२६.१३१,१३२,१३४,१६०,१७७, १६३,२१४,२२८,६११५,११६:१०१७ से १३,१७,१६,२०,३१,३२,३४,३६,३८,४०, ४२,४४,४६,४८,५०,५२,१११२,३,१२।६, २४,३२,३३,१५१५३,५४,६१,१२२,१२३; १७।१४,६५,१०२ से १०४,११६,१५०,१५२; २१४९५,९८ से १००:२२१२६,२९,३०,३२, ३३,३८ से ४०,४२,५० से ५२,६७ से ६६, ७१,७४,९१,६३,९७,६६२८१३१,१०६, १११,११५,११७,१२०,१२२.१२५.१२८, १२६:१३२,१४३,३६।१४,१७,१६,२२,२३, २५,२७,३३,३४,६२,६३,७७ ज ७/२०८,२०६ सिया (स्पात्) ज ५७ सियाल (शृगाल) प ११६६१११२१ ज २१३६, द्विपिया ( मियिका) प१७११३५ निर ) ११७ सू १७८६१ सिद्धायन (सिन्दा तनफट) ज १५३४ से ३६, ४१,४८४,४५,४८.७६.६६,१०५,१०६, १३६.१६६.१६६ १८६.१६५.१९८२१०, २११,२३५.२३७,२४२,२६३ तिहासिक ज ४१४७.१६३,१५० २१६,२१७:२२०,२३५.२३७.२४२ सिद्धाययण (मिद्धा तनकट) में ४।२१२,२७५ सिद्धालय (सिद्धा ) प २१६४ सिद्धि (सिदि) प २१५४,३६।८२ सिद्धिगइ (सिलिन) श२१ सिप्प (शिल्प) ल २१६४;३:१६७१७,५१५,७ शिकारियािर्म) प ११६२,६७ सिपिया (सिलिक) ६१।४२ लिप्पिसंदुर (सिंपुट) ११४६ सियाली (शृगाली) ८१११२३ सिर (शिरस) ज २११३३,१८०,२२१ सिरय (शिरस्क), २।४६ ज २।१५।६,१८, ९३,१८०,२२२ सिरसावत्त (शिरसावर्त) ज ३१५.६,८,१२,१६, २६,३६,४७,५३,५६.६२.६४,७०,७२,७४, ७७,८४,८८,९०,१००,११४,१२६,१३३, १३८,१४२,१४५.१५१,१५७,२६५,१८१, १८६,२०५,२०६,२०६,५१५,२१,४६,५८ उ ११३६,४५,५५,५८,८०,८३.६६,१०७, १०८,११६,११८,१२२:३।१०६,१३८,४११५; ५।१७ सिरसिज (शिरसिज) ज ३११३८ सिरि (श्री) ज २।८,९,१५, ४१२।१,४।१७ से २०, २२,५१११११,५॥३८७।२१३ सिरिकता (श्रीकान्ता) ज ४११५५२,२२४१ लिरिकंदलग (श्रीशन्दलक) ११६३ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिकूड-मीमाविक्वंभ सिरिकूट (श्रीकट ) ज ४/४४ तिरिघर (श्रीह) ज ३।२२० सिरिचंदा (श्रीचन्द्रा) ज१५५,२२४१ सिरिजिलया (धीन या ज४१२२४.१ सिरियाम (श्रीदन) १६७ शिरिदेसि (धौलवीर उ ४.२४ शिरिदेवी (थीबी) उ ४१५ सिरिनिलया (श्री नया) ज ४१५५१२ तिरिमहिया (श्रीता ) ४११५५।२,२२४११ सिरिवडिरय ( वतसक) ४५ लिरिद य (मग उ४:२४ सिरिबस्छ (श्री स.) ज ३१३, २६,११६,१७८; ४॥२८ लिरियच्छ श्रीस:) 11४६।३ सिरिसंवा श्री गु!) ११२०१४ मू १०८८१ सिरिहिरिधिविजय (श्रीही तिकीति सिस्सिणीभिक्खा (शिष्याभिक्षा) उ ४।१६ सिहंडि (विखण्डन ) ज ३११७८ सिहर (शिखर) प २४८ ज ११३७, ३१२४; ४१४६५१४३ उ ५५ सिहरतल (शिखरतन) ज ११३२,३३,४१२४१ सिहरि ( ख ) प २११:१६।३० ज ३११८६, २१७:४।२७१,२७३,२७४,२७७ सिकिड (शिखरिकूट) ज ४।२७५ सिहरिसंठाणसंठिय (चिखरि संस्थान रिया) ज ४१२७६ सिहि (शिखिन) जे २०१३७ सीउण्ह (शीतोष्ण) ज २१३३,३११३८ सीओदयवायकुंड (पीतादापातकुण्ड) ज ४१६२ सीओ (शीतादा) ज ४१९३,६४ सीओदाकूड (शीतांदाकूट) ज ८१६६ सीत (गीत) प ११५,७ से ६५७,२११,२१२, २१४,२१५,२१८,२२० से २२६६।१ से ११; २८।१०५३४११६३५।११ तीतजोणिय शांतनिक) ६।१२ तोतल (शीन) २०१२ सोवा (सीता) २१६४ सू २३ किरीस ( १६६ तिरीब 24t सिलागि २ १ २२८,६४, सातोदय (सीतादया) । १२३ सोलन ३१,२६८०११० सीतोदा (सीतादा) ज ४१६१,६२,६५,५१०११, २१२२१५,२२६ रा २३१६।२२ सातोपामुह सिंडीतापामुखममण्ड) ज ४२१२ सोसजोगिय (मीण नि:) : १२ सिव २०,२१४१ १६८।१२, सीतोलप (शीतोष्ण) प ६१११३५१ से ३ २०६५ २१,५८११४१. १०१२८१ सोय (सीधु) उ ११३८,४६,७४ १४१४४३।११,१५१ खीभर (शीर) ६G सिसिर ११.१ १०१२८१ सीकर (लोक) २५६,६० सदेवधर (पीकर) १९६० सिस्सि .१६ तिमि .. .. Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८० सीय (शीत ) प ११४ से ६,५१५, १२६, १५४, २१०,२१३ से २१५, २१७ से २१६,२२१; ११५६,६०,१७।१३८ २८।२०,३२,६६, १०५;३५।२, ३ ज २ १३१,१३४ उ ३।१२८ सोयर (दे० ) प ११३७३ सोल (शीतल) ज २१२०,४१३,२५ सीमा ( शिक्षिका ) ज २११२,३३,६४,६५,१०३, १०४ उ ३।११० १११,४११६, १८ सीया (सीता) ज १११६,४।११०, १४१, १४३, १६२।१,१६७,१६६, १७२, १७४, १७७, १७८, १८०, ११,१८३ से १८५,१८७,१८६ से १६१,१६३,१६६,१६७, १६६ से २०२,२१२, २१५,२२६,२२७,२३२,२३३, २६२,२६३ १; ५११०११,६।२२,७२२ सहाण (शीतामहानदी ) ज ४।२०० सीयाहवण (शीताखवन ) ज ४ १६६ से २०२ सीयालीस ( सप्तचत्वारिंशत) ज ७।२० यू ४।१० सोयोया (शीगोदा) ज ४१२०६, २०७, २०८,२१२, २२८ सोया (शीतमुख) ज ४।२१२ सोल (शी) २०११७, १८, ३४ ज ३१३; ५५८ सोण्डी (श्रीपण ) प १।३५।३ सोस (शीर्ष) उ ११६७; ३ | ११४४।२१ सोर पहेलियंग (ओपेनहेलिकाङ्ग ) २२४ पहेलिया (श्री) २४८११ सोस (सीक) प १३२०१ सोवा (शिक्षा) प ११३५८३ सोया (शीपवेदना ) २२४३ साखंड ( सीसखण्ड ) ५११।७४ सोसिणिभिक्खा ( शिष्या भिक्षा) उ३।११२ सीह (सिंह) १८६६ : २१३०, ४६; ६१८०११ ; १११२१ ज २११५,३६,१३६ उ १।३३२२८ ५।१३,१५ सोह (शोध) ज २३३६, १३६, ३१२६,३६,४७,५६, ६४,७२,११३,१३३,१३८, १४५,५१५,४४,४७, ६७ सीय - सुइभूय सोहकण्ण ( सिंहकर्ण ) प १८६ सोहकण्णी ( सिंहकर्णी ) प १२१४८।१ सीहगड ( शीघ्रगति) ज ७।१६८१२ सीहघोस (मिघोष) ज २११६ सीहणाद ( सिंहनाद) सू १६ २३ सोहणाय ( सिंहनाद) ज ३१२२,३१,३६,७८,६३, १६,१०६,१६३,१८०५१२, ५७७१५५,१७८ उ १११३८ सोहणिसाइ ( सिंहनिपादिन् ) ज ७।१३३।३ सोहणीसाइठिय ( सिंहनिपादिसंस्थित) सू १० १५४ सोहनाय ( सिंहनाद) उ १११३८ सीहपुरा ( सिंहपुरा ) ज ४१२१२,२१२१२ सोहमुह ( सिंहमुख ) प १८६ सोहरूवधारि (सिंहरूपधारिन् ) ज ७११७८ सू १८ । १४ से १७ सोहस्सर ( सिंहस्वर ) ज २।१६ सीहसीया (मिस्रोता, शीघ्रस्रोता ) ज ४।२१२ सीहा सण ( सिंहासन ) ज ३१३,६,१२,२६,२८,३६, ४१,४७,४६,५८,६६,७४, १३३,१४५ १४७, १७८, १८८, १६७, २०४, २१४,९१६,२२२; ४१५०, ५३, ५६,११२, ११६, १२३, १३५, १४७, १५४,२२३।१,२२४११,२४५, २५० से २५२; ५११३,१४,१८,२१,३६,३० से ४१,४७,५०, ५५,६० सू १८/२३ ११४१३१६,२५,६०, ६१,१३६,१५६४१५ सोहापहत्थाय ( हस्तगतसिहासन ) ज ३।११ सोही (सिंह) प ११।२३ सु (सु) ज ११९३, ३७, २२६, १२, १५:३६, १२,२८, ३५,४१,४६,५८,६६,७४, ११७,११६,१३८, १७८,२२२,४११३,१०२,१२८,१४६,१५७, १७८, १८०, १८१,१६२,२०२,२०४,२११; ५५, ७, ६,५३,७१२० सुइ ( शुचि) २२१५३|१,२२२;४१२६; ५।५७ सुइग ( शुचिक) ज २२६५;३।७ सुइभूय ( शुचीभूत) ज ३३८२३३५१,५६ १. वनस्पति कोश में सिंहपर्णी शब्द मिलता है । Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुईभूय-सुजाय सुईभूय ( शुचीभूत) उ ४११६ सुउतार ( सुत्तार ) ज ४१३, २५ संकलितण ( शूकरीतृण ) प १।४२।२ संगा (शौङ्का' ) ज ७।१३२३ सुंगायण (शौङ्कायन) १०।११४ सुंठ ( शुण्ठी) प ११४२१२, ११४८।४६ सुंदर ( सुन्दर ) ज २११५; ३११३८, ७ १७८ सुंदरी ( सुन्दरी) ज २।१५,७५ सुंब (सुम्ब) प ११४१।१ सुं सुमार ( शुशुमार, शिशुमार ) प ११५५,६० सुकच्छ ( सुकच्छ) ज ४११७८, १८१ से १८३ सुकण्ह ( सुकृष्ण ) उ १।७ सुकत ( सुकृत ) प २३१,४१ सुक ( सुकृत) १ २ ३१,४१ ज ११३७ ३ ७,६, १८,२४,३५,६३,१०६, १७८, १८०,२२२; ७१७८ सुकरण (सुकरण ) ज ३१३५ सुकाल ( सुकाल ) उ ११७,१४६, १४७, २०१८,१६ सुकाली ( सुकाली) उ १११४५, १४६ : २०१७,१८ सुकुमाल ( सुकुमार ) ज २११५;३।३,६,१०६, २०६,२११,२२२ उ १।१४६ सुकुल (सुकुल) ज ३११०६ सुकुसल ( सुकुशल ) ज ३१११६ सुक्क (शुक्र) प १८४, १३५ : २१४८,६३ सू २०१८, २०१६१४ उ ३।२।१,३२५, ८३, ८६ सुक्क (शु) : १३।६ सुक्क (शुल्क) उ ३११२८ सुरु (शुष्क ) उ३।३५ से ३७,४०, ४३ सुक्कपख ( शुक्लाक्ष ) ज ७।११५, १२५ म १६।२२।१८ सुक्कछवाडिया (दे० ) प १७।१२८ सुक्कलेस (शुक्लेश्य ) प १७५८, १०४,१६८; २३।२०० सुक्कलेसट्ठाण ( शुक्लेश्यास्थान ) प १७ १४६ सुक्कलेसा ( शुक्ला) १७१४७, १३६ १. शौकायन गोत्रस्य संक्षिप्त रूपम् । १०८१ सुक्कलेस्स ( शुक्ललेश्य ) प ३१६६; १३११८, २०; १७१३५,५६,५८,६३ से ६६,७१,७३,७६ से ८१,८३,८४,८६,८६,१०४,११३, १६७; १८७४, २३१२०१; २८।१२३ सुक्कलेसट्ठाण ( शुक्ल लेप्यास्थान ) प १७ । १४६ सुक्कलेस्सा ( शुक्ललेश्या ) प १६/४६, ५०; १७/३५, ३६,३८,४१,४३,५४,११४,११७ से १२२, १२६,१३५,१३७,१४० से १४५, १४७, १५३ से १६१ सुक्कलेस्सापरिणाम ( शुक्ललेश्या परिणाम ) प १३१६ सुक्कडस (शुक्रावतंसक) उ३१२५, ८३ सुक्किल ( शुक्ल ) प ११४ से ६५।५, ७, २०५; ११/५३,५४,१३।२६,२३०४७, १०१,१०६६ १०६ २०१६,७,२६,३२,५३,६६ ज १।१३; २१७,१६४;३।२४,३१,४१२६,११४ सू २०१२ सुक्लिप ( शुक्लपत्र ) प १।५१ सुक्किलमत्तिया (शुक्लमृत्तिका ) प १११६ सुक्लित्तय ( शुक्ल सूत्रक) प १७ ११६ सुक्किलय ( शुक्लक) प १७१२६ सू २०/२ सुक्किल्ल (शुक्ल ) प २८५२ सुग ( शुक ) प १७६ सुगइगामि ( सुगतिगामिन् ) प १७ १३८ सुगंध ( सुगन्ध ) प २१३०,३१,४१ ज २।१५,६५; ३७,१२,८८,२११,५७,५५ सू २०१७ उ ३।१३१ सुगंधि ( सुगन्धिन् ) ज २।१२ सुगंधिय ( सुगन्धिक) प ११४६ सुगपत्त ( शुकपत्र ) ज ३।१०६ सुगूढ ( सुगूढ ) ज २।१५ सुघोसा (सुघोषा ) ज ५।२२, २३, २४,४६ सुचक्क ( सुचक्र ) ज ३।३५ सुरिय ( सुचरित) ज २७१ सुचिष्ण (सुचीर्ण) ज १११३,३०,३३,३६; ४२ सुजाण (सुजानु ) ज २।१५ सुजाय (सुजात ) ज २।१४, १५, ३११०६४।३, २५, १५७७ १७८ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८.२ सुजाया-सूपुट सुजाया (सुजाता) ज ४११५७।२ सदसण (सुदर्शन) प १६४, ३।३०,४१४६, सुजोइय (सुयोजित) ज ७१७८ १४७,१५०,१५७,१५६,२०८,२६०११ सुज्ञ (दे०) ४१३,२५ ७१२१३ ज २१६४; ३३०४१४७,१५०, सुठ्ठिय (सुस्थित) ज ७।१७८ १५६,२०८,२६०११७२१३ सू५१ उ ४७ सुम (शृ) सुणंतु ज ३।२४.१,२,३११३१।१,२ सुणह प २१६४।१८ सुणेइ प ११३६ सुदंसणभद्दसालवण (दर्शनभद्रशालवन) ज ५१५५ सुति प १५१३६,४० सुदंसणा ( दर्शन:) ज ४११५७।१,२ सुजग (शुनक) प११६६ ज २१३६,१३६ सुदिट्ठ (दृष्ट) ११०११३ सुगक्खत्ता (मुनक्षत्रा) ज ७११२०११ मू १०८८११ सुदुल्लह (सुदलं न) ज ३।११७११ सुममिय (सुनत) ज ७।१७८ सुणय (शुनक) प १११२१ सुद्ध (शुद्ध) प १७.११४१,१७।११६ सू २०१७ सुणिम्मिय (सुनिमित) ज २।१५ सुद्धदंत (शुद्धदन्त) ५ ११८६ सुणिरिक्खण (सुनिरीक्षण) ज ७४१७८ सुद्धप्पावेस (शुद्ध प्रवेशद्वात्मवेश,शुद्धप्रावेश्य) सुणिया (शुनिका) प ११:२३ ज ३८५ सू२०१७ उ १११६ सुणिवेसिय (सुनिवेशित) ज २०१२ सुद्धवाय (अनात) ५११२६ सुण्हा (स्नुषा) ज २२२७,६६ सुद्धागणि (शुद्धाग्नि) प १।२६ सुत (णाण) (श्रुतज्ञान) ५ २६।१६ सुद्धोदय (शुद्धोदक) ६ ११२३ ज ३।६,२२२ सुतअण्णाण (श्रुताज्ञान) प ५७,१२,२०,५६; सुधम्म (धर्म) ज ४।१४०३१ २६१६,१२,१७,१६,२० सुतअण्णाणि (श्रुताज्ञानिन्) प ३।१०२,१०३; सुधम्मा (धर्या) ४.१३१ सू १८/२३ सुनिउण ( पुण) ५८०,११७:३०/२३ , सुतणाण (श्रुतज्ञान) प ५७,२०,२४,४१,४६,६७, सुपा ( ४३,५५ सू १०।१२४११ १११:२६११७,२१,३०६,११ सुतणाणि (श्रुतज्ञानिन्) ५३।१०१,१०३; ५१४३, सुबइ यतिष्ठ. . .१५६.?? ८०,६५.११३,२८४१३६ सुपा दिसतष्ठिा) २११४,४।१४६; सुतिक्षण (सुतीक्ष्ण) ज २१६११ १४६ सुतोवउत्त (श्रुतोपयुक्त) १ २३।१६५,१६६ से २०१ सु स ) १२८ सुत्त (सूत्र) प १५१०११६,२११३५ सुत्त (सुप्त) ज ३।१७४ सुपरपात ( सालः) ज १११३,३०,३३,३६; सुत्त (श्रुत) प १:१०१६ ४॥२ सुत (रुइ) (सूत्ररुचि) प ११०१११ सुपरिनिठ्यि ( निप्ठित) उ ३१२५ सुत्तग (नुत्रक) ज ३१३६,१०६ सुपरइय (प्रजित) उ ३।८०,८१ सुत्तत्तय (सूत्रत्र) प ४१५५ सपसत्य (प्रशस्त) ज ३।११७ सुत्तरुइ (मूत्ररुचि) पश१०१६ सुपिकताछोयरस (पक सोदर) प १७११३४ सुत्तत्रेयालिय (शुक्रवत्रारिक) प १६६ सपोप ( १९२११ १०१८४३ सुत्तीनई (शुक्तिाती प११९३४ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुप्पइण्णा-मुरभि १०८३ सुप्पइण्णा (सुप्रकीर्णा) ज ५१ सुमिणपाठग (स्वप्नपाठक) उ ११३३ सुप्पबुद्धा (यूप्रवुद्धा) ज ४१५७११;५६१ सुमेहा (सुमेघा) ज४।२३८,६१ सुप्पभा (सुप्रभा) ज ७११७८ सुय (श्रुत) प ११११२,३,१५१०११६:१३।१० सुप्पमाण (नुप्रमाण) ज २०१५ चं १३ सुप्पमाणतर (प्रमाणतर) ज ४११०२ सुय (शुक) प १७।१२४ सुफुल्ल (फुल्ल) ज ३३१०० सुय (शुक) १ ११४२११ बालतण सुबद्ध (गुबद्ध) ज ११५, ७।१७८ सुयअण्णाण (श्रुत!ज्ञान) प ५१५,१०,१४,१६,१८, सुबहु (सुवहु) उ ३१५०,५५ ६३:२६।२,६,२१, ३०१२,६,६,११,१६,२१ सुभि (१) प १३।२७,३१; २३।१०६ सुयअण्णाणपरिणाम (श्रुताज्ञानपरिणाम) प १३३१० सुभिगंध (सुगन्ध) प ११४ से ६५५,७,२०५; सयअण्णाणि (श्रुताज्ञानिन्) प ५१६५,६६१३।१४, ११।५६,१७।१३७,२८।२६,३२,६६ १६,१७,१८।८३२८।१३७,३०११६ सुभ (शुभ) प २८११०५ ज १११३,३०,३३,३६; सुयक्खंध (श्रुतस्कन्ध) उ ५१४५ ३१२२३,४।२ सुयणाण (श्रुतज्ञान) प १२१०१८,५५,७८,६३; सिभ (शुभ) सोभंति सू१६।११ सोभिमुसु १६५ १७.११२,११३, २०१७,१८,३४,२६२,६, सोभिस्संति सू १९१ सोभेति ।। १६१ १२:३०१२,२१ सीभेनु सू १९११ सोभेस्संति सू १६॥३८ सुयमाणारिय (श्रुतज्ञानार्य) प ११६६ सुभंकर (शुभंकर) ज ३1८८ सुयणाणि (श्रुतज्ञानिन् ) प ३३१०१,१०३; १३।१४, सुभग (शुभग) ॥ १।४८१४४,११५० ज ४।३,२५; १७; १८।८० ; ३०११६,२३ ५६८,७१७८ सू २००४ सुयतोंड (शुकतोण्ड) ज ३३५ सुभगणाम (शुभगनामन्) प २३।३८,१२४ सुयनाणपरिणाम (श्रुतज्ञानपरिणाम) प १३16 सुभयत्त (शुभ त्व) प ३४१२० सुयधम्म (श्रुतधर्म) ५ १।१०१।१२ सुभगा (सुभगा) प १४४०१२ ज ४११६४,५३१११ सभणाम (शुमनामन्) प २३११६,३८,१२३ स्यपुच्छ (शुकपिच्छ) प १७।१२४ सुभद्द (अभद्र) उ १२ सुयाह (शुकमुख) ज ३।१८८ सुभद्दा (सुभद्रा) ज २१७७,३११३८,४१५७२ सुविट (शुभवृन्त) प ११५० उ ३६७,९८,१०१ से १२०,१४९२२ सुधिसिठ्ठया (श्रुतविशिष्टता) ज २३१२१ सुभय (शुभग) प ११४६ सविहीणया (श्रुतविहीनता) ज २३१२२ सुभय (शुभक) उ ५१५ सुयात (सुजात) ज ३११०६ सुभा (शुभा) ज ४।२०२२ सुर (सुर) ५ २०६४।१५, ३११६१ ज ३।११७ सुभोगा (मुभोगा) ज ४११६४५.११ सुरइय (सुरचित) प २१४१ सुमणवाम (रामनोदामन्) ज ३।२११,५२५५,५८ सुरट्ठ (सौराष्ट्र ) प ११६३।३ सुमणसा (गुमनस्) प ११४०१३ मालतीपुष्पलता सुरत्त (सुरक्त) ज ७१७८ सुमणा (गमनन्) ज ४११५७१२,२०३ सुरप्पिय (मुरप्रिय) उ ५७,८ सुमहग्ध (मभहाध्य) ज ३१६,२२२ सरभि (सुरभि) प २।३१,४१,२३।४८ ज २।१२, सुमहुर (धुर) उ ३१६८ १६,३७,६,३०,८,१०६,२०६,२११,५१५, सुमिण (स्वप्न) उ १८३३,२१८,५११३,२५,३१ ७,१४,२१,५६,५८,७१७८ उ३११३१ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५४ मुरम्म-सुसाहय सुरम्म (सुरम्य) ज २११२,४।१३ सू २०१७ सवण्णजहिया (सुवर्णयथिका) ५१७११२७ सुरवर (सुरवर) ज ५७ पीलीजूही सुरवरिंद (सुरवरेन्द्र) ज ३।१०६ सुवण्णमय (स्वर्णमय) ज ४१२६,५३५५. सुरहि (सुरभि) प २३० ज ३।६,१२,३५,८८, सुवग्ण (वासा) (मुवर्ण वर्षा ) ज ५।५७ २२१,२२२ सुवर्णमिप्पि' (गुवर्णशुक्ति) प १७१२७ सुरा (सरा) उ ११३४,४६,७४ सुण्णिद (सपणे द्र) २१३८ सुरादेवी (सुरादेवी) ज ४।४४,२७५,५।१०।१ सुवप्प (गुरप्र) ज ४।२१२,२१२२३ उ४१२।१ सुवयण (सुवचन) उ १।१७ सुरिंद (गुरेन्द्र) प २५० ज २६१, ३।३५:५।१८, सुविण (स्वप्न) उ ११३३५१२५ २१,४८,५२ सविभत्त (मविभक्त) ज ११३७, २।१४,१५, ३।३ सुरूया (सरूपा) ज ५:१३ सू २०१७ सुरूव (गुरूप) प २।३०,३१,४१,४५,४५११,४८ सुविरइय (सविरचित) ज २११५, ३१२४,४।१३ ज ३।१०६,१३८,४१२६ सू२०१४ उ ११२, सू २०१७ १३,३१,५३,७८,६५,५२५,२२ सुव्वत (मुद्रत) सू २०१८ सुलद्ध (सुलब्ध) उ १।३४;३।६८,१०१,१३१ सुब्वय (सूबत) सू २०१८।८ सुलस (मुलस) ज ४१६४,२०७ सुन्वया (मुक्ता) उ ३१६६,१००,१०६ से १०८, सुलित्त (मलिप्त) उ ३११३०,१३१,१३४ १११ से ११३,११५,११६,११५.१३२,१३३, सुवरगु (सुवल्गु) उ ४१२१२,२१२।३ १३६,१४१ से १४३,१४५,१४६,१४८,१५० सुवच्छ (मुवत्स) प २।४७।२ ज ४।२०२।१ सुसंगोविय (सुसङ्गोपित) उ ३।१२८ सुवच्छा (सुयत्सा) ज ४।२०४,२३८:५।६।१ सुसंठिय (मुसंस्थित) ज ७१७८ सवण्ण (मपर्ण) प २१३०११,४०1१,८,१०:५१३ ससंपरिहिय (संपरिहित) उ ३.१२८ ज ३।२४।१,२,१३०१,२ सुसंवुय (मुगवृत) ज ३६,२२२ सुक्ष्ण (सवर्ण) प १२०११ ज २।२४,६४,६६; सुसज्ज (सज्ज) ज ५४३ ३।६,२०,३३,५४,६३,७१,८४,९५,१०६, सुसद्द (शब्द) ज ७१७८ ११७,१३७,१४३,१५६,१६७/८,१८२,१८४, सुसमण (नशमन) ज २१५३,१६२ २२२:४१३,२५,२६,५१३८,५२,५५,६७,६८ सुसमदुस्समा (मुपमदुप्पा ) ज २।२,३,६,७,५४,५६ उ ३।४० सुसमससमा (गुषमापना) ज २२,३,६,७,५२ सुवण्णकुमार (भुषणकुमार) ५ १११३१,२।३७ से १६१,१६३,१६४,४।१०६ ४०,४१४६६१८ सुसमा (मुषमा) जरा२,३,६,५१,५२,१६०,१६१ सुवण्णकुमारराय (सुपर्णकुमारराज) प २।३७ से ४१८३ ३६ सुसमाहिय (मसमाहित) ज ३१३५ सुवण्णकुमारिद (सुपर्णकुमारेन्द्र) प २१३७,३६ सुसवण (सुश्रवण) ज २११५ सुवण्णकुमारी (मार्णकुमारी) प ४।५२ सुसारखिय (सुसंरक्षित) उ ३.१२८ सुवष्णकूड (मृवर्ण कूट) ज ४।२७५ सुसाहय (समहन] ज२१५ सुवष्णकूला (सुवर्णकला) ज ४१२७२,२७४,२७५; । ६२० १ हे० २११३८ सिणि (शुक्ति) Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुसिणिद्ध-सूर १०८५ सुसिणिद्ध (मस्निग्ध) ज २।१५ सुहम (सूक्ष्म) १२॥३,६,६,१२,१५,३१,३।११२, सुसिलिट्ठ (सुश्लिष्ट) ज ११३७,३१६,१२,१७८, ६१ से ७१.५५ से ६५,१११,१८३,४।५६ से २२२:४।१२८,५४४३,७११७८ ६१,६८,७५,८२,८३,६१,६१८३,१०२, सुसीमा (मसीमा) ज४।२०२।२ १५।४३,४५,१८।१।२,३७ से ३६,११६, सुसीस (सुशिष्य) ज ३३१०६ २१४,५,२३ से २७,४०,४१,५०,२३।१२१; सुसेण (सुषेण) ज ३७६.७७,७८,८०,८२ से ११, ३६७६,८१,६२ च ११३ ज २०६७।१७८ १०६ से १११,१२८,१५१ से १५७,१७०,१७१ ११.१२८१५१ से १५०.००.०१ सुहुमआउक्काइय (सूक्ष्मअप्काक), ११२१,२२ सुस्सर (सुस्वर) ज २११५,५१५२,५३ सुहुमणाम (सूक्ष्मनामन् ) प २३१३८,११८,१२० सुस्सूसमाण (शुश्रषमाण) ज १६२।६०, ३१२०५, सुहुमतेउक्काइय (मूक्ष्मतजस्कायिक) प १२४,२५ २०६:५१५८ उ ११६ सुहुमवणस्सकाइय (सूक्ष्मवनस्पतिकायिक) सुह (सुख) प २।४८,२।६४११५,१६,२०;३५।१२२, प १६३०,३१ ३५१०,११:३६।१४।१ ज २११२,२०,७१, सुहमवाउक्काइय (सूक्ष्मवायुकारिक) प १५२७,२८ ३।६,८१,६६,१००,१०१,११७११,१२१,२२२; सुहुमसपराय (सूक्ष्मनाराय) प १११२,११३, ४१२७,४८,१७७; ५।२६,२८ सू १६।२२११३ १२४,१२८, २३।१६१ उ ११११०,१२६,१३३ सुहमसंपरायचरित्तपरिणाम (सूक्ष्मपरायचरित्रसुह (शुभ) प २१४६ ज २।१२,२०:३। परिणाम) प १३३१२ सुहंसुह (सुखसुख) ज २११४६:३११२१,१२७, सुहोतार (सुखावतार) ज ४॥३,२५ २२४;५।६७ उ ११२.५०,७५ सुहोदय (सुखोदक, शुभोदक) ज ३१६ २२२ सुहणामा (शुभनामा) ज ७.१२१ सू १०१६१ सुहोवभोग (सुखोपभोग) ज २११४५,१४६ सुहता (सुखता) प २३।१५ सूइ (शुचि) ज ४१२६ सुहत्त (सुखत्य) प २८२४,२६ सूईमुह (सूचीमुख) प ११४६ सुहत्थि (सुहस्तिन) ज ४१२२२१,२२८ सुई (सूची) १५।२६:२१।२५ सुहफास (सुख पर्श, शुभल्पशं) ज १२८ सूणा (मुना) उ १६४४,४५ सुहम्मा (सुधर्मा) ज २।१२०,४।१२०,१२१,१२६, सूमाल (सुकुमार) ज ३।२११:५१५६७११७८ १३८।५।१८,२२,२३,५०,७१८४,१८५ उ १११ से १३,३० से ३२,५३,७८,६५, सू १८।२२,२३ उ ३६,६०,१५६,१६६; १४५,२।५,७,१६,३१६७,४१८,५१२ ४।५; ५११५.१६ सूमाला (सुकुमारा) ज ३१२२१:५१५८ सुहया (सुखतः) २३१३० सूय (पु) ज ३।१७८,१८६,१८८,२०६,२१०, सुहलेसा (शुभतेश्या) ज ७५८ २१६,२१६,२२१ सुहलेस्सा (शुभमेश्या) सू१६।२२।३० सूयलि (दे०) प १८९ सुहावह (सुखावह ) में ४१२१२ सूर (यूर) प १११३३; २१२० से २७,४८%) सुहासण (सुखासन) ज ३१२८,४१,४६,५८,६६, १५५५५।३ ज ११२४, २१६८, ३१३५,६५, ____७४,१३६.१४७.१८७,२१८ ११७,१५६,१६७।१२,१८८,२०७,२१२; सुहि (सुखिन्) प २१६४१२०, ३६१६४।१ ज २१२६ ५१५६, ७१०२,१३५.१,४,१७७।२.१७८।१, सुहिरणियाकुलुम (सुहिरण्यिकाकुसुम) १८०,१८१ मु १०।३,१२३,१३४,१४३ से प१७।१२७ १४७,१५० से १६१,१६६ से १६९,१७२, Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८६ सूर-सेणावइ १५२,१६,२१४६,१६॥२२२३,२६,२०१७ उ ५१४१ सुरियगत (सूर्यगत) सू १११६ सूरियपडिहि (सूर्यप्रतिधि) र ६१३ सूरियाभ (मुभ) ज ५१५५ उ ३१७,६० से १२, १५६,५।२३ सूरियाभगम (मभिगम) ज १४० सूरियावत्त (रुधित) ज ४१२६०१२ सू ५१ सूरियावरण (सुर्याण) ज ४।२६०।२ ५१ सूरुग्गरण (मुरोद गामः) ज २११३४ सूरोद (युरोद) : १६६३५ सूल (शूल) ज ३१,१७८ सूलपाणि (सूलपाणि) प २१५१ ज २१६१५३४८, १७३;१११२ से ६१२२१६ से २८,१५३१,५, ७,११,१२,१३,१५,१८,२१,२४,२७,३०,३३, ३६,१८११,१८,१६,३४,३७,१६।११, १६२२१४,१०,१५,२१,२३,२४,२७ से ३०, ३२:१६६३५,२०१२,३,५,६ उ २।१२ ३१२११,२१,४८,५५,६३,६७,७०,७३,१०६, ११८ सूर (शूर) ज ३१०३, ४१६४ सूरकंत (मूरकान्त) र १।२०१४ सुरकंतमणिणिस्सिय (तुरकान्तमणिनिथिन) प११२६ सूरणकंद (पूरणकन्द, शूरणकंद) प ११४८७ सूरत्थमण (नुरारतमयन) ज २११३४ सूरपण्णत्ति (गुरप्रज्ञप्ति) ज ७।१०१ सूरपब्दय (सूरपर्वत) ज ४।२१२ सूरप्पभा (सूरप्रभा) सू १८१२४ सूरमंडल (सूरमण्डल) ज ७१२ से १६,१७७ सुरलेस्सा (सूरलेश) सू १६१३,४ सुरक्डंस (मूरावतंसक) सू १८१२४ सूरवर (सुरबार) सू १९३३५ सूरवरोभास (सूरव रावभास) सू १६६३५,३६ सूरवल्ली (रवल्ली) प १४०।३ सुरविमरण (गरविमान) प ४११८३ मे १८८ ज७।१७३,१७४,१७६,१८६,१६० सू १८१, ८,१०,१४,२९,३० सूरसेण (शूरसेन) प ११६३१५ सूरादेवीकूड (सूरादेवीकूट) ज ४१४४ सूराभिमुह (मुराभिमुख) उ ३१५० सूरिय (सूर्य) प २१४८ से ५१,६३ ज २१३१ ७१.१३,२० से ३१,३५ से ३६,५४,५८,६६, १०१,१५६ से १६८,१८०,१८१.१६७ चं २।२,५ सू ११६२,५,११११,१२,१४,१६ मे २४,२७,२११ से ३,३।१,२,४११,२,४,७,६, १०:५।१६।१७११, ८।१६।१ से ३,१०।६३ मे ७४,१३२,१३४,१७१:१५।१३ ; १७।१; १८१२,३,१८,१६,३७१६१,५२,१६११, सूसर (सुस्र ) ज २६१६,५१२२,२६ सूसरणाम (सुम्बरनामन्) २३१३८,१२५ सूसरणिम्घोष (सुस्वरनिर्घोप) ज २०१६ सूसरा (सुस्वरा) उ ३।७,६१ से (दे०) प ११० उ १११५, ३१३३ सेउ (सेतु) ज २०१२ सेज्जंस (श्रेयांस) ज २१७६ सु १०।२४११ सेज्जभंड (शय्याभाण्ड) उ ३।५१।१ सेज्जा (शया) प ३६१६१ उ ३३३६,४१२१ सेठ्ठि (धष्ठिन) ११६६४१ ज २२५, ३।६,१०, ७३,८६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०,२१६, २१६,२२१,२२२ उ श६२३१११,१३,१०१ सेडिय (दे०) प १४२११ सेडी (६०) प लोमपक्षी विशेष सेडि (अंगिरा३११२१८,१२,१६,२७,३१, ३०,३६ से ३८,२१६३ ज २११३३,२२०; ४।१७२,२००,५१३२६।६।१,१५ सेणगपट्ठसंठित (सेनकपृष्ठसंस्थित) मू४६३ सेणा (सेना) ज ३.१५.१७,२१,३१,३४,७७,७८, ८ ८,१०६,१५६,१७३,१७५,१७७,१८०, १६६ उ १११२३,१२७,१२८:५।१८ सेणावइ (सेनापति) प १६.४१ ज २११५,३१६, Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेणावइरयण-सेस १०८७ १०,७६ से ७८,८० से ६१,१०६ मे १११, १२८ १२८,१२६.१५१ से १५७,१७०,१७८,१८६, सेयणगसंठित (सेचनकर्म स्थित) गु ४।३ १५८,२०६,२१०,२१६.२१६.२२१,२२२ सेयणय (सेचनक) उ १६६ से १६,१०३,१११, उ ११६२,३।११,१००५१० सेणावइयण (सेना विर) ३५१७८,१८६, सेयता (श्वेततः) सू ४१ १८८,२०६,२१०,२१६२२०.२२६५।१६। सेयबंधुजीवय (श्वेत बन्धुजीवक) प १७।१२८ सेणारयणत (ना ) ५ २०१५८ सेयमाल (श्वेतमाल) ज २१८ सेणादच्च (। त्य) : २।३०,३१,४१,४६ सेयविया (श्वेतविका) प ११६३१६ १४: ; ३1१८५,२०६२२१५११८५०१० सेया (श्वेततः) चं ६ भू ११६११ सेणि (श्रेणि) :- ३.१२,१३,२८,२९,४१,४२,४६, सेयाल (एतकाल) प २८१२२,३४,३६,६८ ५.०,५८,५६,६६,६७,४,७५,१४७,१४८, सेयासोय (श्वेताशोक) प १७१२८ १६८,१६६,१७८,१८६,१८८,२०३.२१६, सेरियय (मैरे क) प ११३८११ २१६,२२१ सेरिया (सेरिका) ज २११०ः४।१६६ सेषिय (णि) ११०,१२,२६१ ३२,३४, सेरुतालवण (सेहतालवन) ज २१६ ३६ ४४,४३ से ४६,५७,५८,६१,३२,६५, सेल (शैल) प २११:१११२५ ६६,६८,७२ ७३,८२,८३,८६ से ६२,६५, सेलसिहर (शैव शिखर) ज २१८८ १६.१०३,१०६ से ११४,१४५,२६५,१७,२२, सेलु (शेलु) प ११३५११ ३१४,२१,२४,८६,१५५,१६८,४६४ सेलेसि (शैलेशी) प ३६१९२ सेण्ण (संख्य) ज ३।१५.२१,३१,३४,७७,७८,६१, सेलेसिपडिवण्णग (शैलेशीप्रतिपन्नक) प १११३६%3 ६५,१५६,१७३,१८५,१६६ २२१८ सेण्हा (श्लदण) १३५।३ सेल्लार (दे० कुन्तकार) प ११६७ भाला बनाने सेत (श्वेत): २४७१३,२१६४ ज ३११२,८८ वाला सेत (थे ) १०१८४४१ सेवणा (सेवना) ५१५१०१११३ सेक्सप्प ( प) १२० सेवाल (शवाल) प १३८१२,११४६,११४८११, सेय (श्वे) १४६१।१६,३८, ३.१८,३१. १६२ ज २०१० ३५,६३,१८२ ; ४१०.८१,११५,१२१ १२५. सेवालभक्खि (शवालभक्षिन) उ ३५० सेस (शेष) ५१।१०११११२१३२,३४,३६ से ४०, ५१ से ५४,५८,६०,६२,३।१८२,५१६४, सेवा ). १६४ १५२,१५४,२०५,२४४,६८१,८३,८४; सेय (य ): ३ १३:३८१ १२२११ १०।१४।६,१२१३८,१३।१५ से १८:१५।१८, उ ११. १४,६६.८६७६,६,१७,११६) १६,३४,७५,८२१७४२३,२५,२७,२६,३४, ३४८,५०,५५.१०६,११८ ३५,२०१८,५६,६०; २२१४५,५५,८०; सेयंकर ( २०१८,२०१८ २३१५६,१५६,१५६,१६३,१६१,१६३,१६६; सेयंस ( 1) ज ७:१४१ २४/८,६; २५।४:२८।२६,३८,८६,७४,१०१, सेपदणीर (बेशकीर १२८ १२३,१४५, ३०।१४:३२६।१:३४१२२ से मेया (सेचनक) १६६.१०२ से ११६.१२७; २४;३५१॥२,३६।३३,६७ से ६६,७१,७३ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८५ सेसय-सोमणस्सिय ज ११४६ ; २१५२,८८,१६१ ; ३.१५०,१५३, १५७,१६१,१८३,४१३७,४१,५३,७०,६३, १०६,१४१,१४७,१५३,१५५,१५६,१६५, १७२,१७७,१८४,१८५,१८७ से १६१,२०३; ५१८,५१,७१३५३१ सू ८।१६।३१०१२५, १५२ से १६१,१११२ से ६:१२११६ से २८; १८२४:१६।२२२२ उ ११४८,२१६,२२; ३।७,४१२२,२८,५११६,४५ सेसय (शेषक) ॥ २३॥१६० सेसवई (शेषरती) ज ५।९।१ सेसिय (ोपित) ज ७।१४६ सेह (दे०) प १७६ सोइंदिय (श्रोत्रन्द्रिय) प १५॥१,२,७,८,११ से १८, ४०१५।५८ से ६७,६६,७०,१३३,१३४; २८७१ उ ३३३३ सोइंदियत्त (श्रोत्रेन्द्रियत्व) प २८१२४;३४.२० सोइंदियपरिणाम (थोत्रेन्द्रियपरिणाम) ५ १३१४ सोंड (शौण्ड) ज ७११७८ सोंडमगर (शौण्डमकर) प ११५६ सोंडा (शुण्डा) उ १६७ सोक्ख (सौरूम) प २१६४।१४,१८.२२ सोक्खुप्पाय (सौख्योत्पाद) सू २०१६।६ सोग (शाक) प २३।३६,७७.१४५ ज २।१५,७०%; ३।१०५ सोगंधिय (सौगन्धिक) १२०१४,११४८१४४ ज ३।१०,४६३,२५,५१५ सोच्चा (श्रुत्वा) ज ३१६ उ ११२१,३।१३; ४।१४:५२२० सोणि (श्रोणि) ज २०१५ सोणिय (शोणित) प ११८४ ज ३१३६ उ १५६, ६१,६२,८४,८६८७ सोणीक (श्रोणिक) ज ३।१०६१ सोत्त (थोत्र) १५७७ सोत्तिय (शौनिक) प ११४६ सोत्तिय (सौत्रिक) प १६६ सोस्थिय (स्वस्तिक) प २।६४ ज २१५; ३।३, ३२,१७८,४।२८,५१३२ सू २०१८,२०६६ सोत्थियसाय (स्वस्तिकशाक) प ११४४।२ सोदामिणी (सौदामिनी) ज ५११२ सोभ (शुभ) सोभति ज ७।१ सोभते ज २११५; ३।२४।३,३७१,४५॥१,१३११३ सोभिमु ज ७।१ सोभिरांति ज ७१ सू १६१ सोति सू १६०१ सोभेमु सू १६१ सोभंत (शोभमान) ज २११५ सोभग्ग (सौभाग्य) ज ५४६८,७० सोभण (शोभन) ज ३।२०६ सोभमाण (शोभमान) ज ३।२४।३,३७४१,४५।१, १०६,१३११३ सोभयंत (शोभमान) ज ७।१७८ सोभा (शोभा) ज १ सोभावेत (शोभयमान) ज ३११७८ सोभिय (शोभित) ज ३।३५,२२१७।१७८ सोभेत (शोभमान) ज ३।१७८ सोम (सोम) ज ४।२०३,७१३०,१८६२ सू २०१८,२०८१२ उ ३।५१,१५१,१५२ सोम (सौम्य) ज २११५ सू २०१४ उ ५१५,२२ सोमंगलक (सौमङ्गलक) ११४६ सोम (काइय) (सोयायिक) ज १।३१ सोमणस (सौमन रा) ज ४।२०३,२०४११,२०५, २०८,२१५।५।४६१३,५५,७११७२ सू १०८६।२ सोमणसवक्खार (सौमनस वक्षस्कार) ज ४।२०५ सोमणसवण (सौमनसवन ) ज ४।२१४,२४०, २४१,२४३ सोमणसा (सौमनस्या) ज ४।१५७।१७१२०६१ सू १०१८८१ सोमणस्सिय (सौमनस्पित, सौमनस्यिक) ज ३१५, ६,८,१५,१६,३१,५३,६२,७०,७७,८४,६१, १०७,११४,१४२,१६५,१७३,१८१,१८६, १६६,२१३,४।२०३:५१२१,२७ उ १२१,४२, ३११२६ Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमदंसण-हंभो १०८६ सोवस्थिय (सौवस्तिक) ज ४।२१०११,५३२ सू २०१८,२०१८६ सोवाण (सोपान) ज ३११६५,२०४ से २०६, २१४ से २१६:४१४,५,२६,२७,८६,११८, १२८,१४४,२४६:५१३०,४१,४२ सोस (शोष) ज २१४३ सोहंत (शोभमान) प २१ सोहग (सौभाग्य) प ३४१२० ज २१६५;३।१८६, सोमदंसण (सौम्यदर्शन) ज २१६८ सोमदेवया (सोमदेवता) सू१०१८३ सोमया (सोमता) ज ३३ सोमरूव (सौम्य रूप) उ ५२२ सोमा (सोमा) उ ३.१२६ से १३१,१३४ से १४४, १४७,१४८,१५० सोमाण (सोवान) ज ५१४१,४२,४४,४५ सोमिल (सोमिल) उ ३।२८ से ३२,३५ से ४५, ४७,४८,५० से ६५,६७ से ८३ सोय (श्रोतस) ज २११३४ सोय (शोक) उ ११२३,९१,९३ सोयमाण (शोचत) ७११६२ सोयविष्णाणावरण (अंत्रविज्ञानावरण) य २३।१३ सोयामणी (सौदामिनी) ज ३१३५ सोयावरण (श्रोत्रावर.पा) प २३११३ सोरिक (सौरिक) प ११६३।२ सोल (पोडश) प १०११४।४ से ६ ज ४.१४२ सोल (षोडशन् ) सू १९३१६ सोलस (पोडशन्) प २।२५ ज १७ मू १११४ उ ३३१२,१२६,५१० सोलसअंगुलजंघाक (पोडशांगुलजङ्घाक) ___ ज ३११०६ सोलसग (षोडशक) प २१२७११,२ सोलसम (घोडश) सू १२११७ मोलसमंडलचारि (पोडशमण्डलचारिन्) सू १३१५ सोलसविह (षोडशविध) प ११।८६,२३।३५ सोला (षोडशन्) सू १९१६ सोल्ल (दे० चक्य) उ ११३४,४०,४६,७४ सोल्लिय (दे० पक्व) उ ३१५० सोवक्कमाउय (सोगमायुष्क) १६११५,११६ सोचिय (सोपचित) ज २१७१ सोवच्छिय (सौवस्तिक) प ११५० मोवणिय (सौवणिक) ज ३११३५,२०६:४११३; सोहम्म (सौधर्म) प १११३५, २६४६ से ५२,५८, ६३,३।२६,१८३,४।२१३ से २२४;६।५६,६५, ८५,६५,१११:१०१२,३,१५१८७;२०१६१; २११६१,७०,६०,२८७५,३०।२६,३४११६, १८ ज ५।१८,२४,२५,४४ उ २।१२,२२, ३।६०,१२०,१५६,१६१:४१५,२४,२८,५१४१ सोहम्मकाप (सौधर्मकल्प) प६।२७ सोहम्मकल्पवइ (सौधर्मकल्पपति) ज ५।२६ सोहम्मकप्पवासि (सौधर्मकल्पवासिन) ज १९० ५।१६,२६,४३ सोहम्मग (सौधर्मज) प २१५०,५१,७८,१५१६, १०८,११२,१२५,२०।४६,३३११६,२४ ज १४६ सोहम्मगकप्पवासि (सौधर्मककल्पवासिन) ५ २१५० सोहम्मवडेंसय (सौधर्मावतंसक) प २१५६ सोहम्मव.सय (सौधर्मावतंसक) प २१५०,५४ ज ५१८ सोहा (शोभा) ज ३१६,२२२ सोहिय (शोभित) ज २२१२ हंत (हन्त) ज २२२४.२७,२६,३४ से ३७,४१,६४, ६६४१२७३,५४६८ से ७०७३६,३७,१०१ हंता (हन्त) ५ ११११,१५१४३:१७।१६६,२०११०, २२,२८३ उ ५५३२ हंदि (दे०) ज ३।२४।११,३१११,५।२७,७२,७३ हंभो (दे०) उ१।११५,११६, ३१५८,६०,३६,७६ Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६० हंस-हरिकंतदीव हस्थिणिया (हस्तिनिका) प ११०२३ हत्यितावस (हरिततापस) 3 ३१५० हत्थिमुह (हस्तिमुख) प १।८६ हत्थिरयण (हस्तिरल) ज ३।१५,१७,२०,३१,३३, ५४.६३,७१,७७,६१,६२,१४३,१५१,१६६. १७३,१७५,१७७,१७८,१८२,१८३,१८६, १६६,२०२,२०४,२१४,२१७,२२० उ १११२३, हंस (हंस) प १२००४,७६ ज २।१२,१५ उ ५५ हंसगम्भ (हंसगर्भ) ज ५५ हंसलक्खण (हंसलक्षण) ज २१६६ हंसस्सर (हंसस्वर) ज २।१६,५२५२ हक्कार (हाकार) ज २१६० हिक्कार (आ+कारय) हक्कारेंति ज ५१५७ हठ (हृप्ट) ज॥४,१४६;३।५,६,८,१३,१५,१६, २६,३१,४२,५०,५२,५३,५६,६१,६२,६७, ६६,७०,७५,८४,६१,१००,११४,१३७,१४१, १४२,१४८,१५०,१६५.१६६,१७३,१८१, । १८६,१६२,१६६,२०८,२१३,५१५,१५,२१, २३,२७ से २६,४१,५५,५७,७० उ ११२१, ४२,४५,१०८,३।१३,१०१,१०३,११३,१३४, १३६,१४७,१६०४।११,१४,२०:५।१५,३८ हडप्परगाह (हडप्प ग्राह) ज ३।१७८ हद (हठ) प ११४६,११४८.६,१२६२ हणमाण (घ्नत्) ३३१३० हणुगा (हनुका) ज २०१५ हत्थ (हस्त) प २१३०,३१,४१,४६ ज २१६५; ३१६,२४१४,३७४२,४५२,१०६,१३११४,१८६, २०४:५।२१:७/१२८,१२६२१,१३३।२,१३६, १४०,१४६,१६४ सू१०।२ से ६,१६,२३, ४६,६२,७१,७५,८३,१११,१२०,१३१,१३२, १५४१२२४ उ १८८,८६३५१,५६,९८% ४।२१ से २३ हत्थग (हस्तक) ज ४१३०,५१५ हत्थगय (हस्तगत) ज ३१९,२१,३४,८५ से ८७; ५१८ से ११,५७ हस्थसंठिय (हस्तसंस्थित) सू १०॥४६ हत्थि (हस्तिन ) प ११६५; ११:२१ ज २।३५, ६५,३१३१,६८,१६७,१७८,५१५७ उ ११२१, १३१,५११८ हत्थिखंध (हरितस्कन्ध) ज ३।१८,७८,६३,१८०, २१२,२१३ हत्यिणपुर (हस्तिनापुर) उ ३६१७१ हत्थिणाउर (हस्तिनापुर) उ ३७१ हत्थिरयणत्त (हरितरत्नत्व) प २०१५६ हस्थिसोंड (हस्तिशौण्ड) म ११५० हदमाण (हदमान) उ ३।१३० हम्ममाण (हन्यमान) उ १११३० हम्मिय (हर्म्य) ज २१२० हम्मियतलसंटित (हयतलसंस्थित) सू ४१२ हृय (य) प २१३०,४६ ज २।६५,३१३,१५,१७, २१,२२,३१,३४,३६,७७,७८,६१,१०८ से १११,१७३,१७५,१७७,१८५,१८७१६६, २०६,२१८ उ १।१२३,१३८,५११,७,१८ ह्य (हत) ज २१६० से ६२,३।२२१७११८४ उ ११२२,१४०,३११२३,१२६ यकण्ण (ह कर्ण) प ११८६ हयच्छाया (हयच्छाया) प १६१४७ हयपोसण (ह्यपोषण) ज ३३ हयरूवधारि (ह्यरूपधारिन्) ज ७११७८ हयलाला (यलाला) ज ३१२११,५१५८ हयवति (हयपति) ज ३।१२६२ यहेसिय (यहेसिन) ज ३1३१५१५७,७।१७८ हिर (ह) हरेज्जा ज २६ हरओ (हरतस्) ज ४११४० हरडय (हरीतकः) ११॥३५॥२ हरतणुय (हरतनुक) प ११२३,११४८१६ हरि (हरित्) ज ३।३५,४१८४,६०,६२१ सू२०१८,२०१८४ हरिकंत (हरिकान्त) प २१४०१६ हरिकंतदीव (हरिकान्तदी।) ज ४।७६ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिकंतष्पवायकुंड-हालिद्दय हरिकंतप्पवायकुंड (हरिकान्ताप्रपातकुण्ड) ज ४१७५, हलीमुह (हलीमुख) ज ३।३५ ७६,७७ हलीसागर (हलीसागर) १११५० हरिकंता (हरिकान्ता) ज ४।७३ से ७५,७७,७८, हव (भू) हवाइ प २।४७।२,३६।६४ ८४,९०,२६२,२६८,६१२१ ज ७।१३२१४,१७७१३ सू१६०२रा हवंति हरिकताकूड (हरिकान्ताकूट) ज ४।७६ प ११३८॥३,११४८१५८,५६ ज ७१७८१,२ हरिकूड (हरिकूट) ज ४१६६,२१०।१ चं ३१३ १७३;१२२७११६११, हरिणेगमसि (हरिनगमेपिन ) ज ५१२२,२३,४६ १६२२१८,२१ हवति प ११३७।३,३५।१११ हरितग (हरितक) ११४४।१ ३६।६४ हवेज्ज प २०६४।४ हवेज्जा हरिता (हरितक) ज २१४४,१४५ ५ २।६४११६ हरिमेला (हरिमेल:) ज ३.१७८७।१७८ हव्व (अर्वाच) प ३६८१ उ १२२,७०,८६,१०७, हरिय (हरित) प ११९४१ ज ३१२४ उ ३१५१,५३ १०५,११५ से ११७,११६,१२७,१२८ हरियग (हरितक) उ ३.४६ हव (व्य) ज २१६,२४,३४,३५,३७,३।१०७, हरिया (हरितक) ५११३३११,११४४ ज २१४५, ११४७१२० से २५,७६,८२,२०२,२०४,२०६ सू २१३,२०१७ हरियाल (हरिताल) प ११२०१२,१७:१२७ Vहस (हस्) हसंति ज २१५ जे ३३११ हसंत (हसत) ज ३।१७८ हरियालगुलिया (हरितालगुलिका) प १७११२७ हसमाण (हसत्) उ ३.१३० हरियालभेद (हरितालभेद) प १७६१२७ हसित (हसित) सू २०१७ हरियालिया (हरितालिका) ज ५।१३ हसिय (हसित) प २१४१ ज २१५,३११३८ हरिबास (हरिवषं) '११८७;१६।३०:१७११६४ । हस्स (ह्रस्व) प २०६४।४; १३१२३ ज २१६:४१६२,७७,८१ से ८६,१०२,२६५; हस्सतर (ह्रस्वतर) ज ४१५४ ६१६,२१ हाण (मल्लिनाण) ज ३।१०६ हरिवासकूड (ह िवर्ष कूट) ज ४.७६,६६ हायमाणय (हीयमानक) प ३३१३५ हरिस (हर्ष) प २२० से २७ ज ३१५,६,८,१५, हार (हार) १२१३०,३१,४१,४६,६४ ज ३१६,६, १६,३१,५३,६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४, १५,२६,३५,६३,१८०,२११,२२२,४।२३, १४२,१६५,१७३,१८१,१८६,१६६,२१३,५०२१ ३८,६५.७३,६०,६१,५।२१,३८,६७ २७,४१३ ११२१,४२,७१,७२, ३।१३१,५।२२ उ १६६,१०२ से ११७,११६ हरिस्सह (हरिसह) २४०७ ज ४.१६२११,१६५, हारितग (हारितक) ज ३१११६ हारोस (दे० हारोष) प १८६ हरिस्सहकूड (हरिसहकट) ज ४।१६५.२३६ हालाहल (हालाहल) प १५० हलउलेमाण (दे०) उ ३।११४ ।। हालिद्द (हारिद्र) ५२४ से ६१५,७,२०५; हलधरवसण (हलधरसन) प१७१२४ ११३५३;२३.१०२,२५२६,३२,६६ ज ४।२६ हलिहपत्त (हरिद्रापत्र) प ११५१ सू २०१२ हलिद्दा (द्रिा ) प ११४८।२ हालिद्दगुलिया (हारिद्रगुलिका) प १७११२७ हलिद्दी (हरिद्रा) ज ३।११६ हालिहमत्तिया (हारिद्रमृत्तिका) ११६ हलिमच्छ (हलिमत्स्य) प ११५६ हालिद्दय (हारिद्रक) ५ १७१२६ २१० Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६२ हालिद्दवण्णाभ-हु हालिद्दवण्णाभ (हारिद्रवर्णाभ) सू २०१२ हालिद्दसुत्तय (हारिद्रसूत्रक) प १७६११६ हालिद्दा (हरिद्रा) ११७१२७ हालिद्दाभेद (हरिद्राभेद) १ १७:१२७ हास (हास) प २४१,२१४७१३,१११३४।१% २३१३६,७६,१४४ ज २१६६,७० हासकारग (हासकारक) ज ३।१७८ हासणिस्सिया (हासनिधिता) प ११३४ हासरइ (हास रति) ५ २१४७३ हासा (हासा) ज ५।११११ हाहाभूय (हाहाभूत) ज २।१३१.१३६ हिगुरुक्ख (हिंगुरूक्ष) प ११४३१२ हिंगुलय (हिंगुलक) प ११२०१२ ज ३।११ हिंगुलुग (हिंगुलुक) ज ३३५ हिट्टिम (अधस्तन) प २०२७।१ हिट्ठ (अधम्) प १२४ से २७ रू १८.२,३, १६२२०१७ हिट्ठि (अधम्) ज ७.१६८०१ हिट्ठिल (अधस्तन) ज ७।१७५ हिट्ठिलग (अधस्तन) ज ७।१७५ हिल्लि (अधस्तन) सू १८७ हितकर (हितकर) ज ३१८८ हिदय (हृदय) ज ३।१३८ हिमय (हिमक) प ११२३ हिमवंत (हिमवत्) ज ११२६,३१२,३५,४।१७७ उ१।१०,२६,६६५१११ हिमवयकूड (हिमपत्कूट) ज ४।२३६ हिमसीतल (हिमशीतल) सू २०१२ हिय (हित) ज २१६४,७१,३१८८,५।२६ हिथईसर (हृदयेश्वर) ज ३६१२६३ हियकर (हितकर) ज ३।१६७ हियकारग (हितकारक) ज ५१५,४६ हियय (हृदय) ज ३१५,६,८,१५,१६,३१,३५, ५३,६२,७०,७७,८४,०१,१००,११४,१४२, १६५,१७३,११,१८५.१८६,१८६,१६६, २१३:५।२१,२७,४१,५८ गु २०१६।१ उ १।२१,४२,३।१३१ यियगणिज्ज (हृद गमनीय) ज २१६४;३।१८५, २०६५१५८ हिययपल्हायणिज्ज (हृदयप्रह्लादनीय) ज २।६४ ३.१८५,२०६:५११८ हिययमाला (हृदयमाला) ज २६५,३११८६,२०४ हिययसूल (हृदयशूल) ज २१४३ हिरण्ण (हिरण्य) ज १२४,६४,६६,४१२७३ ५।६८ से ७० हिरण्णवय (हैरण्यवत) प १८७ हिरण्णवास (हिरण्यवास) अ ३।१८४,५१५७ हिरण्णविहि (हिरण्यविधि) ज ५१५७ हिरि ('ह्री) ज ४१६४५११११ उ ४१११ हिरिकूड (ह्रीकूट) ज ४७६ हिरिसिरिधीकित्तिधारक (ह्वीश्रीधीकीतिधारक) ज ३११२६।१ हिरिसिरिपरिवज्जिय (ह्रीश्रीपरिजित) ज ३।२६, ३६,४७,१०७,११४,१२२,१२४,१३३ हिलियमाण (अभिलीयमान) ज ३।१०६ हिल्लिय (दे०) प ११५० हीण (हीन) २१६४।४५।५,१०,२०,३०,३२, १०२.१२६,१३१,१३२,१३४,१६०,१७७, १६३,२१४२२८ होणपुण्णचाउद्दस (हीनपुण चातुर्दश) ज ३।२६, ३६,४७,१०७,११४,१२२,१२४,१३३ हीणपुण्णचाउद्दसिय (हीनपु:चातुर्द शिक) उ १८६, हीणस्सरता (हीनस्वरता) ॥ २६॥२० होनस्सर (हीनरवर) ज २१३३ हीर (हीर) प १४४८।२० से २६ हीरमाण (ह्रियमाण) ज ७।३१,३३ सू ४१४,७ केहील (हेलय) हीति उ ३.११७ होलिज्जमाण (हेल्यमान) उ ३१११८ हु (भू) हुति ज १११७,४।१४२।१७।१३४।१,४; १७२। १ ४१३ मु ११८१३,१६।२२।४,५,१५, Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुंड-होरभा १०६३ २०,२३,२७,३१ हुंड (हुण्ड) प १५।१८,३०,३५,२११२५ से ३३, ३५ से ३७,५८,५६, २३।४६ हुंबउट (दे०) उ ३१५० हुडुक्क (हुडुक्क) ज ३।२०६ । हुण (हु) हुणड उ ३.५१ हुत (हुत) उ ३।४८,५० हुतवह (हुतवह) ज ३।१०६ हुयवह (हुतवह) ज २१३१ हुहुय (हुहुक) ज २१४ हुहुयंग (हुहुकाङ्ग) ज २१४ हूण (हूण) प ११८६ हेउ (हेतु) प १११०१।५ उ ३६ हेट्ठ (अधम् ) प २।२१ से २३,३० से ३६,४१ से ४३,४६,१२१३२३६१६१ ज ३११८३, ४११३४ हेट्ठा (अधस्) सू १२।३०; १७।१२०१६ हेट्ठिम (अधस्तन) १ २१६२।१; ३३१६ हेटिठमउरिम (अधस्तन उपरितन) प २८1८६ हेटिठमउवरिमगेवेज्जग (अधस्तन उपरितनग्नवयक) प १११३७,४१२७३ से २७५, ७।२२ हेमिग (अधस्तन) ज ७:१३६।१ हेटिठमगेवेज्ज (अधस्तनग्न वेय) प ६३६ हेटिठमगेवेज्जग (अधस्तन वेयक) ५ रा६० से ६२,३।१८३,६५६ हेछिममज्झिम (अधस्तनमध्यम) प ४१२७१; २८1८८ हेठिममज्झिमगेवेज्जग (अधस्तनमध्यम वेय.) ___ ११३७ ; ४१२७०,२७२,७१ हेटिठमहेमि (अधस्तनाधल्तन) प ८१२६८,२६६ हेटिठमहेटिठमगज्जग (अधस्तनाधस्तन बरक) प ११३७,४।२६७,७१२०,२८८७ हेटिठल्ल (अधस्तन) प १६६३४२११९०:३३।१६, १७ ज २११३, ४१२५३,२५४,२५७,७१७४, २५५ सू १८१ हेतु (हेतु) ३०।२५,२६ सू १११४,१६,२१,२४, २७,२।३,४१४,७, ६११ हेम (हेम) प २१५० ज ४१६१:५११८ हेमंत (हमन्त) ज २०७०,८८,७४१६० रा १६३ सू ८।११०१६७ से ७०,१२११४ उ १२५ हेमंती (हेमन्ती) सू १२।२४ से २८ हेमंतीय (हैभन्तीक) स १२१८ हेमजाल (हेमजाल) ज ३१४७ हेमव (हेगवन्) ७.११४११ सू१०।१२४१२ हेमवय (हैमवत) ११८७, १६।३०।१७।१६३ ज ३११७५,४१,४२,५३,५५,५६,५७.६१,६२, ७१,७६,१०२,२३८,२७१६९,२० हेमवयकूड (मतकूट) ४१४८,७६ हेमाभ (हेमाम) उ १।२६,१४० हेरगणवय (हरण्यवत) १६३० ४११०२, २६४।१,२६८,२७१ से २७४,६१६,२० हेरण्णवयकूड (हैरण्य-कूट) ज ४२६६,२७५ हो (भू) हाइ ११४८१५२,१८१ से १०,१२ से ३७,३६,४१ से १.१,५४ से ५६,६१६०, ६२ से ११४,११६,११७,११६,१२०.१२२, १२३,१२५ से १२७११६७।४,८,३१६, ११६४।१४२१२७११२११,१८२१२, १५११२,१७७।१,२ सु १६।२२६६,७,१७,२८, २६;२०१८1८ उ ४।०१ हाई १ १५१०११८ २।२७१ होउ उ ११६३राह हानि ११४७२,११४८१४७,४६,१।७५७, ६१।१२।२७१३,२१४०१८ से ११ २०६४।६; २।२५ ज १११६:४११५.११२,७४११३।१, १७२१ सू१०।१२।२,५,२०८।३,२०१६ उ रा२२ होज । २१०।२८१०६ होज्जा ११६.१०,११,१३,१५,९१,१७११२२२१२३ २४१४,५,८,११,१२,२५१५२६।४,६,६,१०, २७३ हादिप ११४३१२,१।४।२६,५०; २१४०।१,२१६४।६,१०११४१११२।२२११ १८।१०२,१८१५६ ४ ७1१1१७२११, सुहा२११६ हान्था १२:२१६६ चं६ गू११ उ १।१२।४।६।६४।८।४ होतए (तिम्) 3 ८२२ । होत्तिय (हानिक ५११४२११३ ३१५०... होमाण (भवत्) ५ १७१११२,११३ होरंभा (होरम्भा) ज ३।३१ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुध्दि पत्र १४२ १५४ 9 १७४ १६६ १७६ १८० अशुद्ध पण्णवणा संठाओ कोलोभामा परमममुह अभिः गब्भक्कं० बण्णादि देवेहतो सोतोसिणा पडूच्च परिमंडलस्य ओसपप्पि पडुप्पणं वाणमंतरणं एणणं पुविक्क० पुच्छए बधेलग० जस्सस्थि बा ०सरीकाय ०मीससरीर० आहाग. मीसारीर० पुरिस होज्चा ur . x x ० ० ० 91 Wo ० ० ० ० ० ० or or ० ० ० / १८२ संठाणओ कालोभासा परमभसुह आभि० गब्भवक्कं० वण्णादि ० देवेहितो सीतोसिणा पडुच्च परिमंडलस्स ओसप्पि पडुप्पण वाणमंतराणं एणठेणं पुढविक्क० দ্যায় बधेल्लग जस्सत्थि वा सरीरकाय० ० मीसासरीर० आहारग० मीसासरीर० पुरिसे होज्जा २२६ Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६५ २३१ २३२ २४३ २५६ २५६ २८१ भवेतारूवे पोंडरीय इथिवेदे तिरिक्खजोणिय० गबभवक्क० छवि० जहा २८५ २८६ २६२ २६७ भवेतारुवे पोंडरिय० इत्थवेदे तिरिक्ख० गठभक्क० छहन्वि० जाव पण्णत्ते द सागरोव० सागारोव सरीरा सरीर० समुग्घया ० उवण्णगा जंबुद्दीव पह्मगोरे महावीस्स ३२४ ३४१ ३४१ ३४२ ३४३ सागरोवम सागारोव० सारीरा सारीर. समुग्घाया ०उववण्णगा ३५६ ३५६ ०पम्हगोरे महावीरस्स ३६६ ३७६ ०कुडे मत्तंगाणाणं मणम० वोवाह मत्तंगाणाम मणाम ur"० ०० mmmmmm SY वीवाह ना अंतिम ३६५ ३६६ ४०८ ४१२ ४१३ इणट्टे अज्झावसत्ता दूसमणाम अभिरमाणा निग्घोषणा मिसिमिस खिप्पमेव महाहिम खिप्पमेव ० इंदणी० अणुप्पबाए अटटारस वा इण? अज्झावसित्ता दूसमाणाम अभिरममाणा निग्घोसणा० मिसिमिसे खिप्पामेव महामहिम खिप्पामेव ०इंदणील० अणुप्रवाए अटठारस ४१४ AMRG WWी ४१५ ४२० Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ل ४२२ ४२२ ا २१ वासिणी पीइदाणं उस्सुक्क ار ا वासिण्णो पीइदिणं उस्स पुरंत पवयभि० णेयववो हरि० पुरेत س بل अन्तिम پر ४३६ पा०४ (म) ४४२ पा०२ पव्वयाभि० यम्बो हिरि० (म) अस्थमंतमेत्त (शा व पा) जं० संपट्ठियं तए णं सद्दावेत्ता ०पीठं फलिहा धूव० मपंद्वियं तणं २ सदधावेत्ता ४४५ ४४५ ४४५ ४६० ४६३ ४६३ ४६६ ४६८ ०पीढ़ धणु फहिलह धव० धण जंव विहफइ पणत्ताओ जंबू विहप्फई पण्णत्ताओ ५७० सुरपण्णत्ति जोयय० मुहुता oXWWW जोयण मुहुत्ता वावट्ठि समुद वराभरण विताए ०धूम बावट्टि ससुदं वराभण० विताए धुम० उवंगा मवंतीकरणेणं सवण्णीकरण (क) ०वंक० पुडिबुद्धा पाबयणं पारिया पा० ५ ७२३ ७३४ ७८० ७८१ १८४ सवण्णीकरण सवंतीकरणेणं (ग) ०वकं पडिबद्धा पावयणं परिया Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दकोश कमांक स्थल अशुद्ध अंगपरियारिया * अगरुयलहुयपज्जव अट्ठावग्ण * अपज्जुवासणया अप अओज्झ (अंगप्रतिचारिका) अगच्छमाण ज २१६३ (अष्टपञ्चाशत् ) अधम्मस्थिकाय (अपर्युपासन) अप्पा (अल्पा) अप्पिण (आ+स्फोट्य) अिभंग अभंतरपुक्खरद्ध अब्भुक्ख ॥ अष्फोड अउज्झ (अंगपरिचारिका) अगक्छमाण ज २११६३ (अष्टपञ्चाशत) अधमथिकाय (अपर्युपासना) अप्प (अल्प) जवासा अप्पिण (आ+स्फोट्य) अभंग अब्भतरपुरक्खरद्ध अब्भुक्ख अब्भुट्ठ अभिणंद अभिवुड्ढ (आकाश थिग्गल) (आरारकशरीरक) (इच्छामनस) (निर्झरबहुल) (उत्तमपुरु) उत्पन्न (उपदर्शयितुभ) (ओधमेघ) ओलंग कक्खंत्तर (कछभी) अन्भुटु १७. १८, १६. २०. आगासथिग्गल आहारगसरीरय ভূমিকা उज्झरबहुल उत्तमपुरिस अभिणंद अभिवुड्ढ (आकाश थिग्गल') (आहारकशरीरक) (इच्छामनस्) (उज्झरबहुल) (उत्तमपुरुष) उप्पन्न (उपदर्शयितुम्) (ओघमेघ) ओलंब कक्खंतर (कच्छपी) उवदंसित्तए ओघमेघ २४. २६. २७. कच्छभी Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६८ २८. कलंबुया कल (कल) (कदम्बक) कहिचि कहिय कालहेसि (कालहेसिन्) (कौंम्भिक) (कलम) (कलम्बुका) कहिंचि कहिय ३१. कुंभिक्क Mr mmmmm mr mr r m कुमुदा गरह गवेस गा गाह गिण्ह गुणड्ढ़ चउपएसिय (कौम्भिक) (कुमुदा) गिरह ‘गवेस केगा गाह गिह गुणड्ढ -गेवेज्ज (चतुःप्रदेशिक) चिय चिय चिर इचि चित (क्षुल्लहिमवत्) छज्ज (छायाच्छाया) छिद (छिन्नस्रोतस) छेद गेवज्ज चातु प्रदेशिक चय चय चर ४३ ४४. XK चुल्लहिमवंत चित (चुल्लहिमवत्) छज्ज (छायाछाया) छिद (छिन्नस्रोतस) छायाछाया छिन्नसोय छेद ८ XCCCCC जटियायलय छेय (दे० जटिकायिलक) जा जाणियत्व जोयणसत्तपुहत्तिय (निवऱ्या) (निवृत्त) णिन्वाण (नरयिकासंजयायुष) (त्रपुसीमिजिका) ५६. ६०. णिवुड्ढत्ता णिवत्त (दे० जटिकायलक) जा जाणियव्व जोयणसतपुहत्तिय (निवृध्य) (निवृत्त) णिव्वाय (नेरयिकासंज्ञयायुष्क) (त्रपुसीमज्जिका) नीती जेरइयअसण्णिआउय तउसी मिजिया Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६६ ६५. तिंडव (त्वष्टदेवता) (त्वष्ट) ६७. ६८. तंडव तदेवया (त्वष्ट्रदेवता) तठ्ठ (त्वष्ट्र) तित्तीस (प्रयस्त्रिशत्) ज० ४११८ तिरिक्खजोणियअसण्णिआउय (तिर्यगयोनिकासंज्ञयायुष) तिरियाज्य (तिर्यगायुष) दलयित्ता (दत्वा) दाऊण (दत्वा ) ६६. ७०. (तिर्यग्योनिकासंज्ञयायुप्क) (तिर्यगायुष्क) (दत्त्वा ) (दत्त्वा ) दु? ७३. ७४, ७५. दुरभि दुहट्ट देवअसण्णिाज्य पंचसतर पच्चोसक्कित्ता पडि सेहित्तए ७८. ८०. u r 9 9 9 9 9 9 9 9 9 90155555550 0 0 0 0 0 0 0 0 ८ पल्हायणिज्ज (दुरभि) (दुधाट्ट) (देवासंघ्यायुष्) पञ्जसप्तति प्रत्यवकष्क्य प्रतिषेध्दु (पद्म) २५१ परिणित्वा परियाण परिवय परिहा (प्रहृलदनीय) पिट्ठीय पुक्खलाई (पुष्पपटलक) पुस्वरत्त पूजित 'पेहण' मञ्जिका प्रौष्टपदी प्रोष्ठपदी प १३.१ से ३१ प१४१४७ ज० ३३६५५६ (भवोवपघातगति) प३२१२,........१०८ ज ५७ iਚਰਚn tia} (दुर्घट्ट) (देवासंघ्यायुष्क) पञ्चसप्तति प्रत्यवष्वक्य प्रतिषेद्धम् (पद्म) ४।२५१ परिणिव्वा परियाण पिरिचय अपरिहा (प्रहृलादनीय) पिट्टि पुक्खलावई (पुष्पपटलक) पुत्ररत्त पूजित पेहुणमज्जिका प्रोष्ठपदी प्रोष्ठपदी प १३।१ से १३,२१ से ३१ प०११४८४१ ज० ३१३,६,५५५ (भवोक्पपातगति) प ३३१२,१०८ जा५७ पुप्फपडलग पूइय पेहुणमिजिया पोट्ठवई पोवती १५. भणित भत्तिचित्त भवोववायगति भासम भूमिचवेउ मंहलवता ६७. Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०० १०१. १०२. १०३. १०४. १०५. माणवग मालवंतपरियाय मेहुणसण्णा रयण (वासा) रयणिय रिसह लोम ० १०७. १०८. वरदामतित्थाधिपति ० (माणवक) (माल्यवत्पर्याय) मथुन संज्ञा (रत्नवर्षा) (रन्निक) (वृपभ) (लोमन) वरगंधघर (वरदामतीर्थधिपति) वालिघाण कपिथ्य (संवृत्त) सगोत सत्तण उत्ति सम्माणियदोहद सय (सिलीन्ध्र) (सुदर्लभ) स्यपुच्छ सुसमससमा बालुंक संवत्त ११०. १११. ११२. ११३. ११४. ११५. ११६. ११७. ११८. ११६. (मानवक) (माल्यवत्पर्याय) मैथुन संज्ञा (रत्नवर्षा) (रलिक) (वृषभ) (लोमन्) वरगंधधर (वरदामतीर्थाधिपति) वालिधाम कपित्थ (संवर्त) सगोत्त सत्तणउति सम्माणियदोहल सिय (सिलीन्ध्र) (सुदुर्लभ) सुयपुच्छ सुसमसुसमा अट्टरूसग (अटरूषक) प२३७४४ एरावा (ऐरावत) प ११३७६४ प११४८1५० सिलिंध सुदुल्लह १२१ केहण णल (नड) १० ११४१।१ पोवलइ (दे०)" १९४८१३ वेणु (वेणु) प १४१४६ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personal Lise Only: www.ja telitary Ore