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प्रमाणविधि
● अव्यय, सर्वनाम का साक्ष्य स्थल का निर्देश प्राय: एक बार दिया है। धातुएं हैं। उनके रूप भी दिए गए हैं।
• रूट (f) अंकित वा • शब्द के बाद साक्ष्यस्थल
पण्णवणा
पहला प्रमाण पद का दूसरा सूत्र का और तीस जंबुद्दीवपणती पहला प्रमाण वनखार का दूसरा सूत्र का है ।
चंदपण्णत्ती, सुरपण्णत्ती पहला प्रमाण पाहुड का दूसरा सूत्र का तीसरा श्लोक का परिचायक है।
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उवंग अंक १ हिरयावलियाओ, अंक २ कप्पवडसियाओ, अंक ३ पुग्यिाओ, अंक ४ पुष्कचूलियाओ, अंक ५ वहिदसाओ का परिचायक है । दूसरा सूत्र का प्रमाण, तीसरा श्लोक का है ।
अध्ययन (पद, यवखार) आदि के परिवर्तन का संकेत (;) सेनिकोलन है ।
जहां एक सूत्र में अनेक श्लोक आ गए हैं वहां आगे के सूत्र की संख्या से पहले अध्ययन की संख्या भी दी गई है । जैसे उप्पल ( उत्पल) पा० ११४६, १२४८६ ४४ ११६२ । शब्द पहले सूत्र में आया फिर उसी सूत्र के श्लोकों में आया तो उसके दोनों प्रमाण दिए हैं, जैसे- अइकाय ( अतिकाय) प० २।४५, २४५३२ ।
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श्लोक का परिचायक है। तीसरा श्लोक का परिचायक
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