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________________ वीस इमं पाहुडं ७०१ ज० ७११८६ सूव चंव जं० पुष ६० ही तिलोयपण्णत्ति शुक्र अङ्गरकः , विकालकः विकालगः लोहित्यक: लोहिताक्ष: लोहितांक शनैश्चरः आधुनिक: प्राधुनिकः कण: बुध विकाल: लोहिताक्षः बृहस्पति मंगल शनि काल लोहित कनक नील कणकवितानक: विकाल फणसंतानक: कवयव कनक-संस्थान आश्वासनः दुन्दुभक कणक: केश कणकणक: कणवितानक: कणसन्तानक: सोमः सहितः आश्वासनः आश्वासनः ना रूतः १५ एवं भाणियच जाव भावके उस्स....... इमाहि माहाहि-इंगालए पियालए, लोहितक्ते सणिच्छे चेव । आहुणिए पाहुणिए, कणगसणामा पचेव ॥१॥ सोमे सहिए आसासणे यकज्जोवए य कब्बडए क्यकरए दंदुभए संखसणामेवि तिण्णेव ॥२॥ कर्बुर कर्बुरक: कार्योपगः कबंटक: अजकरक: दुन्दुभक: कब्बुरः शङ्ख शनाभः शङ्खवर्णाभः कंस: कंसनाभः कंसवर्णाभः रक्तनिभ नीलाभास अशोकसंस्थान कंस रूपनिभ कंसकवर्ण शंखपरिणाम तिलपुच्छ शंखवर्ण उदकवर्ण पंचवर्ण उत्पात धूमकेतु तिल नौलः नीलावभासः नीलोवभासः रूप्पी रूप्यावभास: भस्म भस्मराशिः २. क्वचिल्लोहिताक्षः। क्षारराशि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003574
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Surpannatti Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages505
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size9 MB
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