Book Title: Tattvarthsar
Author(s): Amrutchandracharya, Pannalal Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 12
________________ तत्त्वार्थसार शब्दब्रह्म और अर्थब्रह्म को अपेक्षा पदार्थ दो प्रकारका भी है अर्थात् संसारकै अन्दर जितने पदार्थ हैं वे किसी-न-किसी पद-शब्दके वाच्य–अर्थ अवश्य है । यहां नौ पदों शब्दोंके द्वारा प्रयोजनभूत तस्वीका ग्रहण किया गया है, इसलिये संसारके सच पदार्थ इन नौ ही पधाोंमें गर्मित हो जाते है। तत्त्वनिरूपणकी विविध शैलियाँ जिनागममें तत्त्वनिरूपण करनेकी एक प्राच्यशैली भगवन्त पृष्पदन्त और भतबलिके द्वारा प्रचारित रही है, जिसका उन्होंने षटखण्डागममें सत्, संख्या आदि अनुयोगोंके द्वारा जीवादि तत्त्वोंका वर्णन कर प्रारम्भ किया है । इस शैलोमें जीवतत्वका वर्णन बोस' प्रटपणाओं में पारायः गाउहीं बीस रूपणाओंके अन्तर्गत अन्य मजीवादि सस्वोंका वर्णन भी यथाप्रसङ्ग किया जाता है। यह स्ली अत्यन्त विस्तृत होने के साथ दुलह भी है । साधारण क्षयोपशमवाले जीवोंका इसमें प्रवेश होना सरल बात नहीं है। पीछे चलकर कुन्दकुन्दस्वामीने तत्त्वनिरूपणकी इस कालोमें नया मोड़ देकर उसे सरल बनाने का उपक्रम किया है । उन्होंने विचार किया कि आत्म-कल्याणके लिये प्रयोजनभूत पदार्थ तो नौ हो हैं-जोव, अजोव, पुण्य, पाप, मानव, संवर, निर्जरा, बन्द और मोक्ष । अतः इन्हींके यथार्थ ज्ञानकी ओर मनुष्यको बुद्धिका प्रयास होना चाहिये । अनादिकालसे जीव तथा कर्म-नोकर्मरूप अजीव परस्पर एक दूसरेसे मिलकर संयुक्त अवस्थाको प्राप्त हो रहे हैं। इसलिये इस संयुक्त अबस्थामें 'जोव क्या है' और 'अजीव क्या है' यह समवाना सर्वप्रथम प्रयोजनभूत है। तदन्तर पुण्य-पापका एक बड़ा प्रलोभन है जिसके चक्रमें अच्छे-अच्छे पुरुष आ जाते हैं इसलिये उनके यथार्थ स्वरूपको समझकर उनसे निवृत्त होनेका प्रयास प्रयोजनभूत है। तदनन्तर जीव और अजीवका परस्पर सम्बन्ध क्यों हो रहा है, इसका विचार करते हुए उन्होंने आसवको प्रयोजनभूत बतलाया है। आबका प्रतिपक्षी संवर है अत: उसका परिज्ञान भी अत्यन्त प्रयोजनभूत है । संवरके द्वारा नवीन अजीवका संयोग होना तो दूर हुआ, परन्तु जिसका संयोग पहलेसे चला आ रहा है उसे किस प्रकार दूर किया जावं ? इसको पर्चा करसे हुए निर्जराको बावश्यक बतलाया । उसके बाद जीव और अजीवकी बदशाका विचार करते हुए वन्धको प्रयोजनभूत बतलाया। अन्त में बन्धकी विरोधी दशा मोक्ष है इसलिये साध्यरूपमें उसका निरूपण करना प्रयोजनभूत है। इस तरह जीवादि नौ पदाथोंको प्रयोजनभूत मानकर उनका समयप्राभूत गन्यमें निरूपण किया। इन्हीं नौ पदार्थोका प्रवचनसार तथा पश्चास्तिकाव आदि अन्यों में प्रमुख या गोणरूपसे वर्णन किया है । कुन्दकुन्दस्वामीको यह १, गुणजोवा पज्जत्ती पाणा सण्णा य मग्गणाओ या उकओगो वि य कमसो नीसं तु पनवणा भणिदा ||-जी. का.

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