Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 13
________________ ४ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् केक्ली और सिद्ध की सम्यग दृष्टि सादि अनंत हैं । सम्यग्दर्शन कितने प्रकार का है ? जयादि तीन हेतु से तीन तरह का जानना । औपशमिक क्षायोपशमिक, और क्षायिक, यह तीन प्रकार का सम्यक्त्व उत्तरोत्तर ज्यादा ज्यादा शुद्ध है । (८) सत्सङ्ख्या - क्षेत्र - स्पर्शन - कालान्तर भावा-ल्पबहुत्वैश्च । सत् ( सद्भुतपद प्ररूपणा, ) संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, और अल्पबहुत्व इन आठ तरह के अनुयोगों से भी सब भावों का ज्ञान होता है । वह इस तरह (१) सम्यग् र्शन है या नहीं ? हैं तो कहाँ है ? अजीव में नहीं जीवों में भी भजना ( होता है या नहीं होता है ) गति, इन्द्रिय, काय, योग, कषाय, वेद, लेश्या, सम्यक्त्व ज्ञान, दर्शन, चारित्र, आहार और उपयोग । इन १३ अनुयोगद्वार में यथासम्भव सद्भूत प्ररूपणा करनी । २ सम्यग्दर्शन कितने हैं ? सम्यग्दर्शन असंख्यात है, सम्यग् - दृष्टि तो अनन्त है । ३ सम्यग्दर्शन कितने क्षेत्र में होते हैं ? लोक के असंख्यात भाग में होता है । ४ सम्यग्दर्शन कितने क्षेत्र में स्पर्शा हुवा है ? लोक के असंख्यातमा भाग, सम्यग्दष्टि से तो सर्वलोक स्पर्शा हुवा है; यहाँ सम्यग्दृष्टि और सम्यग्दर्शन में क्या फर्क है ? वह लिखते हैं- अपाय और सम्यक्त्व मोहनीय के दलियों से युक्त को सम्यग्दर्शन होता है । अपाय, मतिज्ञान संबंधी है यानी मतिज्ञान का भेद है, और उसके योग से सम्यग्दर्शन होता है वह (मतिज्ञान) hair को नहीं है इसलिये केवली सम्यग्दर्शनी नहीं है लेकिन सम्यग्दृष्टि अवश्य है । ५ सम्यकत्व कितने काल रहता है ? एक जीव आश्रयी (अपेक्षा) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट छासठ सागरोपम से कुछ अधिक, भिन्न भिन्न जीवों आश्रयी सर्वकाल । ६ सम्यग

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