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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ।
धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय का समस्त लोकाकाश में अवगाह है.
(१४) एकप्रदेशादिषु भाज्य: पुद्गलानाम् ।
पुद्गलों का एकादि आकाशप्रदेश में अवगाह विकल्प वाला है. कितने एक प्रदेश में, कितनेक दो प्रदेश में यहाँ तक की श्रचित्त महास्कन्ध तमाम लोक में भवगाह-स्थिति कर रहता है.
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(१३)
अप्रदेश, संख्येय प्रदेश, असंख्येय प्रदेश और अनन्त प्रदेश वाले जो पुद्गल स्कंध हैं उनका आकाश के पकादि प्रदेशों में अत्रगाह भाज्य है (भजना वाला है) यानी एक परमाणु तो एक आकाश प्रदेश में ही रहता है, दो परमाणू वाला स्कन्ध एक प्रदेश या दो प्रदेश में ही रहता है त्र्यणुक (तीन परमाणूत्राला स्कंध ) एक दो या तीन प्रदेशों में रहता है, चतुरणुक, एक, दो, तीन या चार प्रदेशों में रहता है. इस तरह चतुरणुक से लगाकर संख्याता, असंख्याता, प्रदेशवाला एक से लगाकर संख्याता, श्रसंख्याता प्रदेश में अवगाह करता है और अनन्त प्रदेश वाले का अवगाह भी एक से लगाकर असंख्यात प्रदेश में ही होती है.
(१५)
असंख्य भागादिपु जीवानाम् ।
लोकाकाश के असंख्यात में भाग से लगाकर सम्पूर्ण लोकाकाश प्रदेश में जीवों का अवगाह होता है.
(१६)
प्रदेशसंहार विसर्गाभ्यां प्रदीपवत् ।
दीपक के प्रकाश की तरह जीवों के प्रदेश संकोच तथा विस्तार वाले होने से असंख्येय भागादि में अवगाह होता है जैसा कि दीपक मोटा होने पर भी छोटे गोखले वगेरा में ढक रक्खा हो तो उतनी जगह में प्रकाश करता है और बड़े मकान में रक्खा हो तो उस