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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् संघात (इखट्टा होना), भेद ( भाग पडना) और संघात भेद इन तीन कारणों से स्कन्ध उत्पन्न होते हैं. (२७)
भेदादणुः । __ भेद से अणु उत्पन्न होता हैं। (२८) भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषाः ।
चक्षु से दिख सके ऐसे स्कन्ध, भेद और संघात से होते हैं ।
धर्मास्तिकायादि पदार्थ हैं यह किस तरह जाना जावे ? इस वास्ते सत्-वर्तमान का लक्षण कहते हैं । (२९) उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् ।
उत्पाद (उत्पत्ति), व्यय (नाश) और धौव्य (स्थिरता) से युक्तमिला हुवा वह सत् (होना-वर्तमान) जानना. इस संसार में हरएक पदार्थ उत्पाद, व्यय और स्थिती से युक्त है।
आत्मद्रव्यों में मनुष्यत्वादि पर्याय रूप से आत्मद्रव्य का व्यय होता है । देवतादि पर्याय से उनकी उत्पत्ति होती है और आत्मत्व स्वरूप से उनकी स्थिति है. पुद्गलद्रव्य में नीलवर्णादिपर्याय से परमाणु का नाश होता है. रक्तवर्णादि से उनकी स्त्पत्ति होती है। पुद्गलत्व स्वरूप से उनकी स्थिति है । धर्मास्तिकाय द्रव्य में गतिमान जीव पुद्गल के निमित्त किसी प्रदेश में चलन सहायत्व स्वरूप से धर्मास्तिकाय की उत्पत्ति होती है । जब जीव और पुद्गल दूसरे प्रदेश की तरफ जाते हैं, तब उस स्थल और उस पदार्थ के लिये चलनसहायत्व स्वरूप से धर्मास्तिकाय नष्ट होता है और धर्मास्तिकायत्व स्वरूप से धर्मास्तिकाय ध्रव है. इस तरह अधर्मास्तिकाय में भी जान लेना, भेद इतना ही की वह स्थिति (ठहरने) का कारण है. एकान्त से आत्मा को नित्य ही मानने में आवे तो उसके