Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 111
________________ श्री तत्रार्थाधिगमसूत्रम् पुलाक ( जिन कथित आगम से पतित न हो वह ), बकुश ( शरीर - उपकरण की शोभा करने वाला लेकिन निर्मन्थ शासन पर प्रीति रखने वाला ), कुशील ( संयम पालने में प्रवृत्त लेकिन अपनी इन्द्रियें स्वाधीन नहीं रहने से उत्तर गुणों को पालन नहीं कर सकता और कारण मिलने पर जिनको कषाय उत्पन्न हो वह ) निथ ( विचरते वीतराग छद्मस्थ ), स्नातक ( सयोगी केवली, शैलेशी प्रतिपन्न केवली ), ये पांच प्रकार के निर्मन्थ होते हैं । [४९] संयम तप्रतिसेवनातीर्थ लिङ्गले श्योपपातस्थानविकल्पतः साध्याः । ये पांच निर्ग्रन्थ, संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, वेष, लेश्या, उपपात और स्थान इन विकल्पों के साध्य-विचारने योग्य है यानी संयम, अत, आदि बातों में कितने प्रकार के निम्रन्थ लाभ ( प्राप्त होवे ) वह घटाना । १०२ वह इस मुजिब - सामायिक और छेदोपस्थाप्य चारित्र में पुलाक, बकुश और प्रतिसेवना कुशील ये तीन प्रकार के साधु होते हैं. परिहार विशुद्धि और सूक्ष्म संपराय चारित्र में कषाय कुशील होता है । यथाख्यात चारित्र में निर्मन्थ स्नातक होता है। मुलाक कुश और प्रतिसेवना कुशील, ये तीन प्रकार के साधु उत्कृष्टे से दस पूर्वधर होते हैं । कषाय कुशील और निर्भय चवदा पूर्वधर होते हैं पुलाक जघन्य से आचारवस्तु ( नत्र में पूर्व के अमुक भाग ) तक श्रुत जानते हैं । बकुश, कुशील, और निर्मन्थों को जघन्य से माठ प्रवचन माता जितना श्र त होय, स्नातक केवलज्ञानी श्रत रहित होते हैं । ( श्रुतज्ञान क्षयोपशम भाव से होते हैं केवली को वह भाव नहीं है लेकिन क्षायिक मात्र है इसलिये श्रुतज्ञान केवली को नहीं होता । )

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