Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 121
________________ ११२ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ज्ञान-वर्तमानभाव की अपेक्षा से सब केवलज्ञानी सिद्ध होते हैं । यतः अल्पबहुत्व नहिं है. पूर्वभाव की अपेक्षा से सामान्यत:सबसे अल्प दो शान वाले सिद्ध होते हैं। उससे चार ज्ञानवाले सिद्ध संख्यात गुण और तीन ज्ञान वाले सिद्ध संख्यात गुण जानना. विशेषत:- सबसे अल्म मतिश्रु तज्ञान सिद्ध, उससे मति-श्रुतअववि-मनःपर्यवज्ञानसिद्ध संख्यात गुण, और उससे मति-श्रतअवधिज्ञान सिद्ध संख्यात गुण जानना. अवगाहना-जघन्य अवगाहनावाले सिद्ध सबसे अल्प, उससे उत्कृष्ट अवगाहना वाले असंख्यातगुण, उससे यवमध्यसिद्ध असं. ख्यात गुण, इससे यवमध्य के उपर के सिद्ध असंख्यात गुण, उससे यवमध्य के अधःस्तात् सिद्ध विशेषाधिक और उससे सर्व सिद्ध विशेषाधिक जानना. ___ अन्तर -निरन्तर आठ समय तक सिद्ध हुए सबले अल्प जानना. उससे निरंतर सात और छ समय तक सिद्ध हुए यावत् निरंतर दो समय तक सिद्ध हुए संख्यात गुण जानना. षण्मासांतरित सिद्ध हुए सबसे अल्प, एक समयांतरित सिद्ध हुए संख्यात गुण, यवमध्य के अंतरित सिद्ध संख्यात गुण, अधो यवमध्यांतरित सिद्ध असंख्यात गुण, उपरि यवमध्यांतरित विशेषाधिक और उससे सर्वसिद्ध विशेषाधिक जानना. संख्या-एक समय में १०८ सिद्ध हुए सबसे अल्प, १०७ यावत् ५० सिद्ध हुए अनंतगुण, ४९ से लेकर २५ सिद्ध हुए असंख्यातगुण, और २४ से लेकर १ तक सिद्ध हुए संख्यात गुण जानना. ॥ इति दशमोऽध्यायः॥ शांति प्रिन्टर्स इन्दौर-२

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