Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 120
________________ १११ दशमोऽध्यायः पूर्वभाव की अपेक्षा की अपेक्षा से तिर्यच गति में से मनुष्य गति में आकर मोक्ष में जानेवाले सबसे अल्प है. उससे मनुष्य में से मनुष्य होकर मोक्ष में जाने वाले संख्यात गुण है, उससे नरक गति में से आकर जाने वाले संख्यात गुणा हैं और उससे देवगति में से आकर जाने वाले संख्यात गुणा है। लिंग-वर्तमानभाव की अपेक्षा से अवेदी सिद्ध होता है, यतः अल्पबहुत्व नहीं है. पूर्वभाव की अपेक्षा से नपुंसक लिंगी सिद्ध सबसे अल्प है। उससे स्त्रीलिंग सिद्ध संख्यातगुणा और उससे पुल्लिंग सिद्ध संख्यातगुणा है. तीर्थ-तीर्थसिद्ध सबसे अहम तीर्थकर सिद्ध, उससे संख्यात गुण अजिन सिद्ध जानना । तीर्थ में सिद्ध थए हुए नपुसक संख्या गुण, उससे स्त्री सख्यातगुण और उससे पुरुष संख्यात गुण. चारित्र-वर्तमानभाव की अपेक्षा से सिद्ध नो चारित्री नो अचारित्री. यतः अल्पबहुत्व नहीं है. पूर्वभाव की अपेक्षा से सामान्यत:-पांवो चारित्रवाले सिद्ध सबसे अल्प, उससे चार चारित्र वाले संख्यात गुण, उसमे तीन चारित्र वाले संख्यात गुण जानना. विशेषत:-सबसे भल्प सामायिक आदि पांच वाल, उससे सामायिक सिवाय चार वाले संख्यात गुण, उससे परिहार. विशुद्धि सिवाय चार वाले संख्यातगुण• उससे छेदोपस्थापनीय सिवाय चार वाले संख्यातगुण. उससे सामायिक-सूक्ष्म संपराययथाख्यात ये तीन चारित्रवाले सिद्ध संख्यातगुण, और उससे छेदोपस्थापनीय-सूक्ष्मसंपराय-यथाख्यात ये तीन वाले संख्यातगुणा जानना. - प्रत्येक बुद्ध बोधित-प्रत्येकबुद्ध सिद्ध सबसे अल्प, उससे बुद्धबोषित नपुंसक सिद्ध संख्यात गुण, और उससे स्त्रीसिद्ध संख्यात गुण और उससे पुरुषसिद्ध सख्यात गुण जानना.

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