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दशमोऽध्यायः
१०६ चारित्र वाले सिद्ध होते हैं, अथवा छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात चारित्रबाले सिद्ध होते हैं, सामायिक छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्धि और मूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात चारित्रवाले सिद्ध होते हैं।
(७) प्रत्येक बुद्धबोधित-स्वयं बुद्ध के दो भेद हैं तीर्थंकर, प्रत्येकबुद्धसिद्ध बुद्धबोधितसिद्ध के दो प्रकार परबोधक और मात्र खुद का हित करने वाला इस रीत से प्रत्येकबुद्ध सिद्ध के चार प्रकार हैं।
() ज्ञान-प्रत्युत्पन्नभाव नय की अपेक्षा से केवली सिद्ध होते हैं। पूर्वभावप्रज्ञापनीय के अनंतर पश्चात्कृतिक और परपर पश्चात्कतिक यह दो प्रकार है. वह दोनों के व्यजित और भव्यजित ऐसे दो दो प्रकार है उसमें भव्यजित में दो-तीन-चार ज्ञान से सिद्ध होते हैं, और व्यजित में मति त से, मति-श्रु त अवधि से, मतिश्रुत-मनः पर्याय से और मति-श्रत-अवधि मनः पर्याय से सिद्ध होते हैं.
(E) अवगाहना-अवगाहना दो प्रकार की है, उत्कृष्ट और जघन्य. उत्कृष्ट-धनुषपृथक्त्व से अधिक पांचसो धनुष, और जघन्य. अंगुल पृथक्त्व से हीन सात हाथ. पूर्वभावपज्ञापनीय की भूत दृष्टि की अपेक्षा से और तीर्थकर की अपेक्षा से यह अवगाहना में सिद्ध होता है. प्रत्युत्पन्नभाव की-वर्तमान दृष्टि को अपेक्षा से अवगाहना. की दो तृतीयांश अवगाहना में सिद्ध होता है.
(१०) अंतर-अनंतर और सांतर ये दोनों प्रकार से सिद्ध होते हैं । भनंतर जघन्य दो समय से उत्कृष्ट आठ समय तक, भौर सांतर जवन्य से एक समय और उत्कृष्ट से छः मास का होता है।
(११) संख्या-एक समय में जघन्य से एक और उत्कृष्ट से एक सौ भाठ सिद्ध होते हैं। ..