Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 83
________________ ७४ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् देशसर्वतोऽणुमहती। इस हिंसादिक की देश से विरति वह अणुव्रत और सर्वथा से विरति वह महाव्रत कहलाता है। (३) तत्स्थैर्यार्थ भावनाः पञ्च पश्च । ___इन व्रतों की स्थिरता के लिये हरएक की पाँच पांच भावना होती है। पांच व्रत की भावना इस तरह- १. ईर्यासमिति, २. मनोगुप्ति, ३. एषणासमिति, ४. आदान निक्षेपण समिति और ५. आलोकित ( अच्छे प्रकाश वाले स्थान और भाजने में अच्छी तरह देखकर जयणा सहित भात-पाणी वापरना । यह पांच भहिंसाव्रतों की, और १ विचार कर बोलना २ क्रोध त्याग, ३ लोभ त्याग, ४ भय त्याग और ५ हास्य त्याग, यह पांच सत्य व्रतों की; १ अनिंद्य वसती (क्षेत्र) का याचन (मांगना), २ बार-बार वसती का याचन, ३ जरुरत पूरी करने चीज का याचन, ४ साधर्मिक के पास से ग्रहण (लेना) तथा याचन और ५ गुरु की अनुज्ञा ( भाज्ञा) लेकर पान और भोजन (पोना और खाना) करना। यह पाँच अस्तेय व्रतों की; १स्त्री, पशु, पंडक (नपुसक) वाले स्थान में नहीं वसना, २ राग युक्त स्त्री कथा न करनी, ३ स्त्रियों के अंगोपांग नहीं देखना। ४ पहले किये हुवे विषय भोग याद नहीं करने। ५ और काम उत्पन्न करें ऐसे भोजन काम में नहीं लेने यह पांच ब्रह्मचर्य व्रतों की और अकिंचन व्रतों की स्थिरता के लिये पाँचों इन्द्रियों के मनोज्ञ विषय पर राग आसक्ति करनी नहीं और अनिष्ट विषय पर द्वष करना नहीं ये पाँच पाँच भावना जाननी । (४) हिंसादिष्विहामुत्र चापायावद्यदर्शनम् । ___हिंसादि में इस लोक और परलोक के अपाय दर्शन (श्रेयोर्थयश के लिये के नाश की दृष्टि ) और अवद्य दर्शन ( निंदनीय पणा

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