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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ऐसा कहना ), मात्सर्य (अभिमान लाकर दान देना), कालातिक्रम (भोजन काल गये बाद निमन्त्रण करना), ये पांच अतिचार अतिथि संविभाग व्रत के हैं। (३२) जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदान -
करणानि। जीविताशसा ( जीने की इच्छा) मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध और निदान करण (नियाणां बांधना ) ये पांच संले. षणा के अतिचार जानना। (३३) अनुग्रहार्थ स्वस्याऽतिसर्गो दानम् ।
उपकार बुद्धि से अपनी वस्तु को त्याग करना यानी दूसरे को देनी वह दान कहलाता है। (३४) विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः ।
विधि ( कल्पनीयता वगेरा), द्रव्य, दातार और पात्र की विशेषता से करके उस दान की विशेषता होती है, यानी फलकी तारतम्यता होती है।
॥ इति सप्तमोऽध्यायः ।।