Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 91
________________ ८२ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ऐसा कहना ), मात्सर्य (अभिमान लाकर दान देना), कालातिक्रम (भोजन काल गये बाद निमन्त्रण करना), ये पांच अतिचार अतिथि संविभाग व्रत के हैं। (३२) जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदान - करणानि। जीविताशसा ( जीने की इच्छा) मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध और निदान करण (नियाणां बांधना ) ये पांच संले. षणा के अतिचार जानना। (३३) अनुग्रहार्थ स्वस्याऽतिसर्गो दानम् । उपकार बुद्धि से अपनी वस्तु को त्याग करना यानी दूसरे को देनी वह दान कहलाता है। (३४) विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः । विधि ( कल्पनीयता वगेरा), द्रव्य, दातार और पात्र की विशेषता से करके उस दान की विशेषता होती है, यानी फलकी तारतम्यता होती है। ॥ इति सप्तमोऽध्यायः ।।

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