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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (२४) क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्पप्रमा
णातिक्रमाः । १ क्षेत्र, वास्तु, २ हिरण्य-सुवर्ण, ३ धन-धान्य, ४ दास-दासी और ५ कुप्य ( तांबे पीतल के आदि धातु के बर्तन वगेरा) के परिमाण ( अंदाज ) का अतिक्रमण करना, ये पांच अतिचार परिग्रह परिमाण व्रत के जानने। (२५) ऊध्वधिस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिविस्मृत्यन्तर्धानानि । ___ ऊदिग व्यतिक्रम (नियम उपरान्त ऊपर जाना) तिर्यगदिग व्यतिक्रम, अधोदिग व्यतिक्रम, क्षेत्रवृद्धि ( एक बाजू घराकर दूसरी बाजू बढ़ाना) और स्मृत्यंतर्धान ( याददास्त को भूलने से नियम उपरान्त की दिशा में जाना ) ये पांच दिग विरमण व्रत के अतिचार है। (२६) आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ।
आनयन प्रयोग ( नियमित भूमी के पाहिर से इच्छित-वस्तु मंगवानी), प्रेष्य प्रयोग ( भेजनी) शब्दानुपात (शब्द से बुलाना) रूपानुपात ( अपना रूप दिखाकर बुलाना), और पुद्गल प्रक्षेप ( मिट्टी पत्थर वगेरा पुद्गल फककर बुलाना ), इस तरह देशावकाशिक व्रत के पांच अतिचार जानने । (२७) कन्दपकौकुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगाधि
कत्वानि । कन्दर्प ( राग युक्त असभ्य-खराव वचन बोलना, हंसी करमी) कोकुच्य ( दुष्ट काय प्रचार के साथ रागयुक्त असभ्यभाषण और हसी करनी ) मुखरता ( असंबद्ध-हद बिना का बोलना ), असमीयाधिकरण ( बिना विचारे अधिकरण-इकट्ठ करना ) और