Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 100
________________ नवमोऽध्यायः वाउकाय संयम, (५) वनस्पतिकाय संजम, (६) बेइन्द्रिय संयम, (७) तेइन्द्रिय संयम (८) चौरिन्द्रिय संयम (९) पंचेन्द्रिय संयम (१०) प्रेक्ष्य (देख्ना ) संयम (११) उपेक्ष्य संयम, (१२) अपहृत्य (परठवना) संयम, १३ प्रमृज्य (पूजना) संयम, १४ काय सयम, (१५) वचन संयम (१६) मन संयम (१७) और उपकरण संयम, व्रत की परिपालना, ज्ञान की अभिवृद्धि और कषाय की उपशान्ति के लिये गुरुकुल वास वह ब्रह्मचर्य यानी गुरु की आज्ञा के आधीन रहना वह ब्रह्मचर्य, मैथुनत्याग, महाव्रत की भावना और इच्छित स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, शब्द, तथा विभूषा में अप्रसन्नता ये ब्रह्मचर्य के विशेष गुण है। (७) अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुचित्वात्रवसंवरनिर्जरा लोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्याततत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः । — (१) अनित्य (२) अशरण (३) संसार (४) एकत्व (५) अन्यत्व, अशुचित्व, (७) आश्रय (6) संवर (६) निर्जरा, (१०) लोक स्वरूप, (११) बोधि दुर्लभ और १२ धर्म में बयान किये हुवे तत्त्वों का अनुचिन्तन (मनन-निदिध्यासन) ये बारा प्रकार की अनुप्रेक्षा है। __ अनित्य भावना-इस संसार में शरीर, धन, धान्य, कुटुम्ब आदि सब वस्तुयें अनित्य (क्षण भंगुर हैं) ऐसा चिन्तवना वह. __ अशरण भावना-मनुष्य बिना के जंगल में भूखे बलवान सिंह के हाथ में पकडाये हुवे हिरन को किसी का शरण नहीं होता इसी तरह जन्म, मरणाऽदि व्याधियों से पकडाये हुवे जीव को इस संसार में धर्म सिवाय दूसरे किसी का शरण नहीं ऐसा सोचना वह. संसार भावना-इस अनादि अनन्त संसार में स्वजन और परजन की कोई भी प्रकार की व्यवस्था नहीं है, माता मरकर स्त्री

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