Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 105
________________ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् को आचार्य स्थापे; इस तरह छ महिने तक तपस्या करे, फिर वैयावच्च करने वाले तपस्या करें और तपस्या करने वाले वैयावच्च करें, वे भी पूर्वोक्त रीति से छ मास करें, फिर आचार्य छ मास तक तपस्या करें, सात जणे वैय्यावच्च करें और एक को आचार्य स्थापे, इस प्रकार १८ मास तक तप करें। जहाँ सूक्ष्म कषाय का उदय हो वह सूक्ष्म संपराय चारित्र यह चारित्र दस में गुणस्थान में वर्तते जीवों को होता है। ___ जहाँ सर्वथा कषाय का अभाव होता है वह यथाख्यात चारित्र, उसके दो प्रकार हैं-छाद्मस्थिक और कैवलिक, छाद्मस्थिक के दो प्रकार क्षायिक और औपशमिक क्षायिक १२ वें गुणठाणे और भोपशमिक ११ में गुणठाणे होय, केवलिक दो प्रकार-सयोगी और अयोगी, सयोगी तेरमें और अयोगी चवदह में गुणठाणे होता है। इन पाँच में के पहले के दो चारित्र हाल में विद्यमान है पिछले तीन विच्छेद हुवे हैं। (१६) अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्त शय्यासनकायक्लशा वाह्य तपः । अनशन (आहार का त्याग) अवमौदर्य (उणोदरी-दो चार कवे कम रहना), वृत्तिपरिसंख्यान (आजीविका का नियम) भोज्य उपभोग्य पदार्थों की गिनति रखनी), रस परित्याग (छ विगय का त्यागलोलुपता का त्याग) विविक्त शय्यासनता ( अन्य संसर्ग बिना की शय्या और आसन) और काय क्लेश (लोच, आतापना आदि कष्ट) ये छ प्रकार के बाह्य तप जानने । (२०)प्रायश्चित्त विनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् । प्रायश्चित, विनय, वैयावच्च, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग (कायोत्सर्ग)

Loading...

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122