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सप्रमोऽध्यायः
८१ उपभोगाधिकत्व ( उपभोग में जरूरत हो उससे ज्यादा वस्तुयें इकट्ठी करनी), ये पांच अनर्थदंड विरमण व्रत के अतिचार है। (२८) योगदुष्प्रणिधानाऽनादरस्मृत्यनुपस्थापनानि ।
काय दुष्प्रणिधान ( अजयणा से-असावधानी से प्रवृत्ति), वाग दुष्प्रणिधान ( असावधानी से बोलना), मनो दुष्प्रणिधान अनादर और स्मृत्यनुपस्थापन (सामायिक नहीं ली, दो घड़ी पहले पारी, पारी नहीं आदि विस्मरणपणा ), ये पांच सामायिक व्रत के अतिचार हैं। (२६) अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोप
क्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि । अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित उत्सर्ग ( अच्छी तरह नहीं देखी हुई, और प्रमार्जन नहीं की हुई भूमि में लघु नीति बड़ी नीति करनी ), अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित भूमि में संथारा करना, व्रत में अनादर करना, और स्मृत्यनुपस्थापन ( भूल जाना ), ये पौपधोपवास व्रत के पांच अतिचार हैं। (३०) सचित्तसंबद्धसंमिश्राभिषवदुष्पक्याहाराः ।
सचित्त आहार, सचित्त वस्तु के सम्बन्ध वाला आहार, सचित्त वस्तु से मिश्रित आहार, तुच्छाहार, कच्चा पक्का सचित्त आहार ये पांच उपभोग-परिभोग विरमण व्रत के अतिचार हैं। (३१) सचित्तनिक्षेपपिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः ।
सचित्त निक्षेप ( प्रासुक आहारादि सचित्त वस्तु पर रखना ), सचित्तपिधान (प्रासुक आहारादि को सचित्त वस्तु से ढक देना) परव्यपदेश करना (न देने के लिये अपनी वस्तु दूसरे की है