________________
श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (३२) स्निग्धरूक्षत्वाद्वन्धः ।
स्निग्धता और रूक्षत्व (सुबास) से बंध होता है यानी स्निग्ध पुद्गलों का लूखे पुद्गलों के साथ बन्ध होता है। (३३) न जघन्यगुणानाम् । ___ एक गुणे (अंश) वाले स्निग्ब रूक्ष पुद्गलों का बन्ध नहीं होता। (३४) गुणसाम्ये सदृशानाम् ।
गुण की समानता होने पर भी सदृश (एक जात के) पुद्गलों का बन्ध नहीं होता. यानी समान गुण वाले स्निग्ध पुद्गलों का स्निग्ध पुद्गलों के साथ और रुक्ष का वैसे रूक्ष पुद्गलों के साथ बन्ध नहीं होता। (३५) द्वयधिकादिगुणानां तु ।
द्विगुणादि अधिकगुण वाले एकजात के पुद्गलों का बन्ध होता है। (३६) बन्धे समाधिकौ पारिणामिको ।
बन्ध होने पर समानगुण वाले का समानगुण परिणाम और होन गुण का अधिक गुण परिणाम होता है।
गुणपर्यायवद् द्रव्यम् । गुण और पर्याय वाला द्रव्य है; यानी गुण और पर्याय जिसमें है वह द्रव्य है। (३८)
कालश्चेत्येके । कितनेक आचार्य काल को भी द्रव्य कहते हैं।
सोऽनन्तसमयः । • वह काल अनन्त समयात्मक है।
वर्तमान काल एक समयात्मक और अतीत अनागत काल अनन्त समयात्मक है।
(३७)
(३९)