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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्
(५०)
नक्षत्राणामर्थम् ।
नक्षत्रों की उत्कृष्ट स्थिति आधे पल्योपम की हैं. ताराकाणां चतुर्भाग: ।
(५१)
तारों की पल्यपम का चौथा भाग उत्कृष्ट स्थिति है.
(५२)
जघन्या त्वष्टभागः ।
तारों की जघन्य स्थिति पल्योपम का आठवां भाग है. चतुर्भागः शेषाणाम् ।
(५३)
तारों सिवाय बाकी के ज्योतिष्कों की जघन्य स्थिति पल्योपम का चौथा भाग है.
॥ इति चतुर्थोऽध्यायः ॥
॥ अथ पञ्चमोऽध्यायः ॥
ओ पदार्थ का स्वरूप बतलाकर अब भजीव पदार्थ बतलाते हैंकाया धर्माधर्माकाशपुद्द्मलाः ।
(१)
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, भाकाशास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय, ये चार अजीव काय हैं. प्रदेश रूप अवयत्र का ज्यादा होना बतलाने के लिये और काल के समय में प्रदेश पना नहीं ये बतलाने के लिये “काय” को ग्रहण किया है.
(२)
द्रव्याणि जीवाश्च ।
ये धर्मादि चार और जीव, ये पांच द्रव्य हैं.