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- चतुर्थोऽध्यायः सानत कुमार में जघन्य स्थिति दो सागरोपम की जाननी. (४१)
अधिके च । माहेन्द्र में दो सागरोपम अधिक जाननी. (४२) परतः परतः पूर्वा पूर्वानन्तरा ।
पहले पहले कल्प की जो उत्कृष्ट स्थिति वह अगले अगले कल्प की जघन्य स्थिति जाननी; सर्वार्थसिद्ध की जघन्य स्थिति नहीं हैं। (४३) नारकाणां च द्वितीयादिषु । __ नारकों की दूसरी वगेरा नरक में पहले पहले की जो उत्कृष्ट स्थिति वह आगे आगे की जघन्य स्थिति जाननी; सिलसिले वार १, ३, ७, १०, १७, २२, सागरोपम दूसरे से सातवीं तक जाननी. (४४) दश वर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ।
पहली नरक भूमि में दश हजार वर्ष की जघन्य स्थिति है. (४५)
भवनेषु च ।। .. भवनपति में भी जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की है.
व्यन्तराणां च । व्यन्तर देवों की भी जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की (४७)
परा पल्योपमम् । व्यन्तरों की उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम की है. (४८) ज्योतिष्काणामधिकम् ।
ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट स्थिति पत्योपम से कुछ अधिक है.. (४९)
ग्रहाणामेकम् । ग्रहों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की हैं. ...