Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 62
________________ (२६) चतुर्थोऽध्यायः (२७) विजयादिषु द्विचरमाः। विजयादि चार अनुत्तर विमानवासी देव द्विचरिम भववाले हैं। यानी अनुत्तर विमान से च्यव कर मनुष्य हो फिर अनुत्तर में भा मनुष्य हो सिद्ध होते हैं। सर्वार्थसिद्ध विमानवासी एकावतारी जानने. (२८). औपपातिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः। उपपात योनी वाले ( देवता और नारकी) और मनुष्य सिवाय बाकी के तिर्यग योनी वाले जीव (तियंच ) जानने. स्थितिः। -- भब स्थिती कहते हैं. (३०) भवनेषु दक्षिणाऽर्धाधिपतीनां पन्योपममध्यर्धम् । ___ भवनों मे दक्षिणार्ध के अधिपति की डेढ पल्योपम की स्थिति जाननी, इन्द्र की स्थिति कही उससे उपलक्षण से उनके विमानवासी सर्व देवों की जाननी. (३१) ... शेषाणां पादोने । बाकी के यानी उत्तरार्ध अधिपति की स्थिति पौने दो पल्योपम की हैं: (३२) असुरेन्द्रयोः सामरोपममधिकं च । असुरकुमार के दक्षिणार्धाधिपति की सागरोपम और उत्तरार्धाधिपति की सागरोपम से कुछ अधिक उत्कृष्ट स्थिति है. (३३) सौधर्मादिषु यथाक्रमम् । ... सौधर्मादि में सिलसिले वार स्थिति कहते हैं. (३४) सागरोपमे। सौधर्मकल्प के देवों की दो सांगरोपम उत्कृष्ट स्थिति जाननी.

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