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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (३५)
अधिके च। . ऐशान कल्प के देवों की दो सागरोपम से अधिक उत्कृष्ट स्थिति जाननी. (३६) सप्त सानत्कुमारे।
सानत्कुमार कल्प में सात सागरोपम को उत्कृष्ट स्थिति है. (३७) विशेषत्रिसप्तदशैकादशत्रयोदशपञ्चदशभिरधिकानि च । __ पुवोक्त सात सागरोपम के साथ विशेष से लेकर सिलसिले वार जाननी, वह इस तरह-माहेन्द्र में सात सागरोपम से विशेष, ब्रह्मलोक में दस, लांतक में चौदा, महा शुक में सतरा, सहस्रार में अठारा, आनत प्राणत में बीस, और भारण अच्युत्त में बाईस सागरोपम को उत्कृष्ट स्थिति जाननी.. (३८) श्रारणाच्युताध्वमेकैकेन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धे च । _____ारण अच्छत के ऊपर नव प्रैवेयक और विजयादि चार अनुत्तर और सर्वार्थसिद्ध में एक एक सागरोपम ज्यादा स्थिति जाननी. यानी पहले से नव में ग्रेवेयक तक २३ से ३१ सागरोपम, विजयादि चार अनुत्तर की बत्तीस सागरोपम और सर्वार्थसिद्ध की तेतीस सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति जाननी. (३९) अपरा पल्योपममधिकं च । । ___ अब सौधर्मादि में जघन्य स्थिति सिलसिले वार कहते है सौधर्म में पल्योपम और ऐशान में अधिक पल्योपम जघन्य स्थिति जाननी.
सागरोपमे ।