Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 49
________________ ४० श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् तिर्यग योनी से उत्पन्न होते हैं उन (तियंचों) की भी उत्कृष्ट स्थिती तीन पल्यापम की और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। पृथ्वीकाय की २२ हजार वर्ष की, अपकाय की सात हजार वर्ष की. तेऊकाय की तीन दिन की, वाऊकाय की तीन हजार वर्ष की और प्रत्येक वनस्पतिकाय की दश हजार वर्ष की उत्कृष्ट स्थिती जाननी. बेइन्द्रिय की बारा वर्ष, तेइन्द्रिय की ४६ दिन और चौरिन्द्रिय को छ मास उत्कृष्ठ स्थिति है गर्भज मत्स्य, परिसर्प और भुजपरिसर्प की पूर्वकोडी वर्ष की, गर्भज पक्षीयों की पल्योपम का असंख्यातमा भाग और गर्भज चतुष्पद की तीन पल्योपम उत्कृष्ट स्थितो है. ___ समूच्छिम मत्स्य की पूर्वकोडी; समूच्छिम उरपरिसर्प भुजपरिसर्प, पक्षी और चतुष्पद की उत्कृष्ट स्थिति ५३०००, ४२०००, ७२०००, ८४०००, वर्ष की सिलसिले वार जाननी. सब की जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की होती है. * इति तृतीयोऽध्यायः * ॥ अथ चतुर्थोऽध्यायः ॥ देवाश्चतुर्निकायाः। देवता चार निकाय वाले हैं याने चार प्रकार या जाति के हैं। (२) तृतीयः पीतलेश्यः । तीसरी निकाय (ज्योतिष्क) के देवता तेजोलेश्या वाले होते हैं। (३) दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपत्रपर्यन्ताः ।

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