Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अणः FFIFat.11a1a4F4FRIEAFE" व जीवस्म णं गप्रगयस्समाणम नत्श्रि नचार वा जाव सोणिएवा. जीवेणं नंत गनगए समाण पडू मुहणं कावलि अं आहारं पाहारिनए ? गोयमा! नो इणठ समठ. स केण| गं नंते एवं वुच ? गोयमा! जीवेणं गनगए समाणे सवनाहारेइ, सवन परिणामेश, सतेमज हाडका, मका, केश, मांस, रोम तथा नखरू परिणमावे . अने तेटलामाटे हे गौ. तम! एम कहवामां आवे के, गनमा रहेलो जीव विष्टा कर नही, ते वेक रुधिरने श्र. व नही. (त्यार वळी गौतमस्वामी प्रभून फरीने पं के )ह नगवन! गनमा रहलो # जीव मुखबडे कवलाहार लवाने शुं शक्तिवान ? (त्यारे नगवान कहेडेके ) हे गौतम ! ते अर्थ पण समर्थ नश्री. ( अर्थात् गर्नमा रहेलो जीव कवलाहार लेशके नही. त्यारे गौ. तमस्वामी फरीने पूर्व डे के दे जगवन ! ) एम शामाटे कहेवाय रे ? ( त्यार नगवान क. ..FEERIF4444FAE. FEAF १२ ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122