Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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तंडुल
॥
१॥
| विमेसं गएण अहरणं ॥सकडवं सवियारं । तरख जुबणजाण ॥१२॥ पिसि बाहि. रमलु | न पिसि न नरं कलिमलस्स ॥ मोदेण नञ्चयंती। मीसघडिकीजय पियमि ॥१॥ सीसघडीनिग्गालं । जं निंदाल पुगंसि जंचतं चेव गगरनो। मढो अश्मविन पियसि ।१४॥ |ळा होउनी विशेषप्रकार शोजता एव मुखने, तथा कटाकयुक्त विकारवाळी अन चपळ (वी प्रांखोने तुं जुए में ॥ १२ ॥ वळी तुं बहारना ( कोमळ ) अंग प्रदेशोने जुए बे, परंतु || ते क्लिष्ट कचरानाममूहरूप (नकरडाजवां दारीरने ) जोती नश्री, तथा मोहवर नचावातो थको मस्तकरूपी हांडलीमांधी (निकळती निंदनीक ) कांजीने (अधरामृतने ) पीये ||१|| ॥१३॥ ते मस्तकरूपी हांझलीनो मेल के जेने (तुं पोतेज ) निंदे ने तथा गंडे ठे, ते ज मेलने तुं मूढ अतिमूर्डित श्रयोगको रागमा आसक्त पर पीये . ॥ १५ ॥
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