Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥श्रीतंउलवेयालियपयन्नं-अर्थसहितं जापांतरकर्ता तथा उपावी प्रसिक्ष्कता पंमित श्रावक हीरालाल हंसराज. (जामनवाला) 9. किं. रु.२-0- 0 स ने For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir HA 6 7 जामनगर जैनन्नास्करोदय बापखानामां गप्यु. For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल अर्थः HEREJEE33E1ktar ॥श्राजिनाय नमः ॥ ॥ श्रीतमुलवेयालियपयन्ना-अर्थसहित. ॥ अर्थकता तथा उपा! प्रसिकर्ता-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा ) निकरिअजरमरणं । वंदिता जिणवरं महावीरं ॥ वुजामि पनगमिणं । तेंडुलवेयालि. श्रीलीलायतनं वंदे। नीरजं नान्निजन्मिनं ।। संसारातपतप्तानां । दत्तानंदकदंबकं ॥१॥ सत्यासत्योरुग्धोदककलविधिविइंसराजात्मजेन । हीरालालेन नक्त्या स्वपरहितकृते गुर्ज- राख्योरुवाचा ॥ अर्थों मुग्धप्रबोधप्रकटनसबलो मुफ्यते न्याययुन्या । ग्रंथस्यास्येह चारित्रविजयगुरुतः सप्रसादान्मनोझः॥॥ जेमनां जरा अने मृत्यु गयेलां , एवा श्रीमहावी. FE26691696 16terFEE. ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल० यं नाम ।।१॥ सुगड गगिए दसदसा । वरिससयानस्म जद विन्नति ॥ मंकलिए वाससः अर्थः एजं चान में मयं हाइ॥ २ ॥ जनियमित दिवस । जनियराईसु हाइ नस्मास ॥ गप्रं॥२॥E मि बम जीवे | आहारविहिं च वुहामि ॥ ३ ॥ दोन्नि अहारत्नसए ! संपुन सत्तसनरिं चे. जिनेश्वरने नमीन या तंडुलवेयालीयनामना पयनाने हुं कहुं हुं ॥१॥हे नव्यलोको तमा मान्नकाके गणवार्थी मा वर्षना आयुष्यवाळाना जम दश दशना दा विनागो पडे , तम तनने एका करवार्थ एकमा वर्षों श्राय बे, तेटलं मनुष्यन ( आ पारामां) श्रा-: युप्य दाय रे.॥२॥ जीव गर्नमा बसत बत जटला दिवसामां अने जेटली रात्रिमा ज- २ ॥ | टला श्वासोश्वास ते लहेठे, ते संबंधि तथा तेना आहारसंबंधि वर्णन हुं कहुं छु ॥३॥जीवत गन्नांवाममा वा मित्तांतर गत्रिदिवसो संपूर्ण अने नपर अर्ड अटोरात्र एटले 112113 53632FFFF96. For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie तंडुल RELESED व॥ गमि वसा जीवा। नवमहारत्नम च॥४॥एए अहोरत्ता । नियमा जीवस्त गप्रवासंमि ॥ होणादिया न इत्तो । नवधायवलेण जायंति ॥५॥ अठ्ठ सहस्सा तिन्निन । सया मुदत्ताण पन्नवीसाय ॥ गगन वसइ जीवो । नियमा होणाहिया इनो ॥६॥ तित्रिवय कोमीन । चनसय हवंति सय सहस्साई॥ दस चेव सहस्साई । दोनि सवसो साडासीतोतेर दिवस, अर्थात् नव मास अने सामासात दिवस रहजे.॥४॥ नपर कहेली मंख्यावाळा रात्रिदिवसो प्रायें करीने जीवने गावासमा रहेतांथकां यायचे. परं तु नपघात ( गर्जदोष ) आदिकना कारणथी तेथी नग अधिका दिवसो पण प्राय . 1410 वळी ते जीव आठ हजार प्रणतो अने पचीस मुहूर्तमुधि प्रायें करीने गावासमां रहे F, तेमज तेथी ना अधिका काळसुधि पण गर्नमा रहे ॥६॥ FORSEEDEUFFEIFIERIFIER *MURDERE16333EBENE ॥ For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तंडुल प्रया ॥४॥ BIHEREFERESTHA या पन्नवीसा य॥3॥ नस्सासा नीसासा| एतियमित्ता दवंति संकलिया ॥ जीवस्स ग. प्रवासे । नियमा दीणादिया एता ॥ ॥ श्रावतो! डीए नानिहिछा । सिरादुर्ग पुप्फनालियागारं ॥ तस्त य दिला जाण।। अहोमुहा संविधाकोसा ॥ ॥ ॥ तस्स य हिठा चूयस्म । मंजरी तारिसा न मंसस्त ॥ ते रिनकाले फुडिया । मोणियलवया विमुचंति ॥१०॥ वळी ते जीवने गावासनी अंदर प्रण क्रोड, चौद लाख, दश हजार, वसा अने पची| स॥ ७ ॥ एटला श्वासोश्वास. एका कर्यायी प्रायें चाय , तेमज तेश्री नठा अधिका पण प्राय . ॥ ७॥ दे आयुष्मन ! स्त्रीनी नालिनीच पुष्पनातिकाजेवा प्राकारवाळी बे नामी- ॥४॥ न होय , अन तेनी देठे नीचे मुखवाळा पुष्पना मोडाने प्राकार योनि होय. ॥ ए॥ तेनी नीच आंबानी मांजरसरखी मांसनी मांजर होयळे अने ते मांजर तुसमये स्फुटित /E1 For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल अर्थः RRENE --036363693EBEEtakarRESEatara कोसायारं जागि । संपत्ता सुक्कमीसिया जश्या तश्या जीवुववाए। जोगा नगिया जिएवंदेहि ॥ ११॥ बारस चव मुहना। नवा विस ग सान॥ जीवाणं परिसंखा । - स्कपुहुतं च नकोसं ।। १२ ।। पणपरमाय परणं । जोण। पमिलायए महिलियाणं ॥ पणसत्तरीय परत । पाएण पुमं | अवाश्री रुधिरना बिंदुनोने ऊरे ॥ १० ॥ हवे ते रुधिरबिंडो पुरुषना वीर्यश्री मिश्रित श्र. | जेटला ते कोशाकारयोनिमां प्राप्त प्रायने, तेटला ते बिंदुन जीवनी नत्पत्तिने लायक जिनेश्वरोए कह्याने. ॥ ११ ।। हुवे बार मुहूर्त उपरांत ते योनि नाशपाम तम्रा तेनी अंद- र नत्कृष्टा एक लाखथी नव साख सुधिनी संख्यावाळा जीवो नत्पन्न श्रायडे. ॥ १२ ॥ प्रायें करीने पचावन वर्षवाद स्वीनी योनि प्रस्तान (गनोत्पत्तिमाटे अयोग्य ) ग्राय R AFREENEDERFARStaf ॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandie अर्थ: ॥ 1॥ तंडुल0 नवे अबीन ॥ १३ ॥ वाससयान यमं । परण जा होइ पुच्चकोमोन ॥ तस्स अ मिलाया। सवान य वीसजागो य ॥१४॥ रत्तुक्कडा यछ। लस्कपुहुत्तं च बारस मुहुना ।। पिनसTE , तया पुरुष पंचोतेर वर्षवाद निर्बीज प्राय . ॥ १५॥ नपर कहेलुं प्रमाण एकसो वर्ष ना आयुवाळानुनुं जाणवू; तथा ते अपरांत वेक पूर्वक्रोमसुधिना आयुवाळानमा स्त्रीननी अही आयुष्यबाद योनि निर्बीज थाय बे, तथा पुरुषद् दीये तना आयुना ज्यार वीसमा नाम वाकी रहे. त्यार निर्वीज ग्राय .॥१॥ तुकाळमां आवेली स्त्रीनी योनि मां नत्कृष्टा वारमुढूनसुधिमा बेसाखी नव लाखसुधि जीवा नत्पन्न प्रायं. तथा नत्कृष्टी एक जीवना पितानी संख्या वसोनी नवला सुहिनी होय छे. (आ पितानी संख्या कष्ट संघयणवालां गायआदिक तियनानी होय बे, तेमाटे विशेष खुलासो जगवतीस्त्री जाणवी )तया FFIF1f9FUFAE31 IFa For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अर्थ: FDESEDEBAREta तदुख० खसयपुहत्तं । बारसवासान गस्त ॥ १५॥ दाहिणछ। परिसस्स । हावामाए इश्वीया. Ba य ।। नन्नयंतर नपुंसे । तिरिए अठेव वरिसाई ॥ १६ ॥ इमा खलु जीवा अम्मापिनसं. नत्कृटो गन्नावासनो काळ वार वर्षासुधिनो जावो. ॥१५॥ नारीण गप्रसंखा । इग. दो तिन्नि यहोश नियमेणं । तिरियाणं नारीलं नव लस्का दाइपनेयं ॥॥ तिरियाण चननेन । कखुरा दाखुरा य सुणहा य ।। गंडापयाण य लिया। दो गप्रा इगखुराईएणं ॥२, उखुराणं तिय गना । तेसि मने विसस कहियं तु ।। सुयराणं तद सोलस । बा. रस गाय सुणहाणं ॥३॥ सेसाणं सुणहार । चत्वारिय होइ पंच जीवारां ॥ गंडीपया. दो गन। पणवीसं होई खयराणं ॥ ४॥ * ॥ १५ ॥ हवे स्त्रीना जमणा परखामांपु. रुपनी गत्पत्ति जाणवो, डाबा पडखाभां स्त्रीनी जाणवी, तथा त बनेना वचला नागमां न IFE+++NEFREE4825EHEAF ॥३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तदुल० ॥७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जांग माऊ पिसुकं तदुज्जयसंसहं कललं किच्चिसं तप्पढमयाए प्रहारं आदरिता गनचाए वक्कमइ. ( गाथा ) सत्ताहं कललं हो । सत्ताई होइ अब्बु || अब्बुया जायए सो | सोनु घणं जये ॥ १७ ॥ पे. - पुंसकन। उत्पत्ति जालवी. तियेचांनी गर्ज स्थिति नत्कृष्टी आठ वर्षोंनी होय. ११६। खरेखर श्राजीव मातापिताना संयोग होते हते (पहेले समये) मातानुं रक्त तथा पितानुं वीर्य, ते बमिश्रित यथा मलीन तथा दुगंडनीय एवा आहारने प्रथम ग्रहण करोने गप पंजे बे पछी सात दिवसे ते गर्ज कललरूप ( चालावाली जेवो ) बाय, त्यारबाद सात दि वसे ते वरसादना पालांना परपोटाजेवो चाय, पक्षी ते परपोटामांची मांसनी पसीजवा था, तथा पीत पेसीमांथी ( आंबानी गोठलीजेतो ) जरा कठिन पेसीजेवो पाय. ॥१७॥ For Private and Personal Use Only अर्थः || G || Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल 1MBEBEEFRESERatafatta तो पढम मास करिसूणं पलं जायs, बीए मास पस। संजायए घणा, ए मास मानए डोहलं जग, चनन्छे मासे माऊण अंगाई पीणेश, पंचमे माल पंच पिंडियान पाणिपायं तिरं चेव निवत्ते, उठे मासे पित्तसोणिय नवचिणे, सत्तम मास सत्तसिरासयाई त्यारवाद पेहेले मासे एक कर्ष नठो एवो एक पलना वजननो ते पाय, (शोळ मासानो एक कर्ष तथा चार कर्षनो एक पल श्राय) पली बाजे मासे ते गनं जरा वधारे कविन पेसीजेवो पाय, बीजे मासे माताने (शुन्नाशुन्नावारूप) डोहाला नपजावे, चोरे मासे माताना (स्तनादिक) अंगोने पुष्ट करे. पांचमे मासे ते मांसपेसामाथी ते (वे) हाथ (बे) पग तथा मस्तकरूप पांच अंगोना (अंकुरा)नीपजावे. उठे मासे पिन तथा रुधिर नपजावे. सातमे माले सातसो नसो, पांचसो मांसपेसीनां (स्थानको)नव धमणी 中山中山中中 中山中山E山中山中山中山中中中中中中加「4F For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल FFFFFFFFF3t+F+FHF 4F पंचपेमीसयाई नवधम्मणी नवननई चेव रोमकूवतय सहस्साई निवन विणाकेलसमंसुणा; अर्थः सह केमममंसुणा अहान रोमकूवकोडीन निवत्तेश, अष्ठमे मासे वित्तिकप्पो हवा. जीव. स नंत गप्रगयस्समाणस अघि नच्चार वा, पासवणवा, खलेश वा, सिंघाण वा, बतेइ वा, पीने वा, सुकेवा . माणिएडवा, नो ऽण समठे. से केणगं ते एवं वुद्ध(मोटी नाडीओ ) तथा ( मस्तकना) केश अने दाढी मुना वाळ शिवाय नवाणुलाख | रोमकूपाने उपजावे. अने ते केठा अन दाढी मुना बाळोने जो अंदर नेळवीएं तो साडा-: | त्रण क्रोड रोमकूपोने नपजावले. अाठमे मासे ते गर्नने संपूर्ण अंगोपांगनी प्राप्ति वाय. १०॥ (हव श्रीगौतमस्वामी नगवानने पूजे जे के) हे लगवन ! जीव गर्नमां वसतांकां वि. टा कर ? पेशाब करे? थुके ? सुंघे? वमन करे ? पिन करे? वीर्यन आवेअथवा शुं रुधि 1616891821 For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तंहुल " . ॥ १ ॥ FI.... 49649696.UPHEN99691191 ? जीवस्त गप्रगयस्तमाणस्स नत्यि नचार वा जाव सागिएइ वा ? गायमा! जीवणं | अप्रैः गप्रमए समाणे जं श्राहारमादार तं निणाइ सोइंदियनाए, चरिकंदिअनाए, घाणिदिअत्ताए जिप्रिंदिअनाए, फासिविताए, अहिमिंजकेसमंसरोमनदत्ताए. से एणणं गोयमा एवं वु. | रने अवे ? (त्यारे नगवान कहे ते के ) दे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नश्री ( अति दे गौ तम! ते पूढेला नपरना सवालोमांधी गर्नमा रहलो जीव कं पण करतो नश्री, स्यार गौ. | तमस्वामी फरीने नगवानने पूरे ले के ) हे जगवन ! त्यारे एम शादतुश्री कहेवामां आवे ले के गर्भमा रहेला जीवन विष्टा करवानुं न होय ( त्यांश्री ) बैंक रुधिर श्रवणकरवानुं ॥११॥ न होय? (त्यारे नगवान कहे ने के) हे गौतम ? गर्भमा रहेलो जीव जे आहार करे, ते पाहारने ते अवरोंश्यपणे, चक्षसिंडियपणे, नाशिकेश्यिपण, जिशियपणे, स्पर्शश्यपण .44 6 For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अणः FFIFat.11a1a4F4FRIEAFE" व जीवस्म णं गप्रगयस्समाणम नत्श्रि नचार वा जाव सोणिएवा. जीवेणं नंत गनगए समाण पडू मुहणं कावलि अं आहारं पाहारिनए ? गोयमा! नो इणठ समठ. स केण| गं नंते एवं वुच ? गोयमा! जीवेणं गनगए समाणे सवनाहारेइ, सवन परिणामेश, सतेमज हाडका, मका, केश, मांस, रोम तथा नखरू परिणमावे . अने तेटलामाटे हे गौ. तम! एम कहवामां आवे के, गनमा रहेलो जीव विष्टा कर नही, ते वेक रुधिरने श्र. व नही. (त्यार वळी गौतमस्वामी प्रभून फरीने पं के )ह नगवन! गनमा रहलो # जीव मुखबडे कवलाहार लवाने शुं शक्तिवान ? (त्यारे नगवान कहेडेके ) हे गौतम ! ते अर्थ पण समर्थ नश्री. ( अर्थात् गर्नमा रहेलो जीव कवलाहार लेशके नही. त्यारे गौ. तमस्वामी फरीने पूर्व डे के दे जगवन ! ) एम शामाटे कहेवाय रे ? ( त्यार नगवान क. ..FEERIF4444FAE. FEAF १२ ॥ For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल HONETENERJEEEPERFIED91. बन नस्लसे, सबन निस्ससेइ. E) अर्थः अन्निरकणं २ आहारेइ, अनिस्कणं परिणामे, अनिस्कणं २ नस्ससेय, अन्निरकणं शनिस्ससेश, आदच आहारेइ, आहञ्च परिणामेश्, आहन्च नस्ससेश, पादच निस्ससेइ. मानजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी मानजीवपमिबज्ञा पुनजीवफुडा तम्हा आहारे तम्हा प. हे ने क ) हे गौतम ! गर्नमा रहलो जीव सर्वप्रदेशोथी आहार लहे, सर्वप्रदेशोथी परिण| मावे, सर्वप्रदेशोथी उच्वास लहे, तथा सर्वप्रदेशोथी निःश्वास लहे. वळी ते क्षणे कण आहार लह, कणे कणे परिणमावे, कण कणे नवास लहे, क- ॥१३॥ ण कणे निःश्वास लहे. तेमज कदाचित् ते कालांतरे आहार लहे, कालांतरे परिणमावे, कालांतरे नब्बास लहे, तना कालांतरे निःश्वास लहे. वळी माताना जीवना रसने हरनारी, 3EERINEERIFAL For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अश्रः तडुख० रिणामेइ, तं अवरावि य णं पुत्तजीवपमिवज्ञा मानजीवकुडा तम्हा चिणार तम्हा नवचि- पा३. से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुना जीवेणं गनगए समाणे नो पद मुहणं कावलियं श्राME हार आहारित्तए. जीवेणं नंते गप्रगए समाणे किमाहारं श्राहारे? मायमा! जंस माया ना. तथा पुत्रना जीवना रमने हरनारी, तेमज माताना जीवसाये जोमाएली अने पत्रना जी | वसाय स्पशेली नाडी होय , तश्री ते गर्नगत जीव आहार सहे , तया परिणामावले. तेमज बीजी एक नाडी, के जे पुत्रना जीवसाय जोडायली तथा माताना जीवसाय स्पर्शली हायडे, ते नाडीवाटे ते गन्नंगत जीव पोषायजे, तथा विशेष पुटि पामेले. माटे ते हेतुश्री हे गौतम! एम कहवामां आवे डे के, गर्भमा रहेलो जीव मुखथको कवलाहार लेवाने समद्य नश्री. ( न्यार वळी गौतमस्वामी नगवानने पूजे के ) हे जगवन ! न्यार गर्नमा र. RIFIENTIFIELESEARENESED FARELEAFARNEUEFFIFE92f" ॥१४॥ SA For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir HIFAFE तंडुलणाविहान रसविगश्न तिनं कडुये कसायं अंबिलं महुराई दवाई आहारेइ, तम एगदसणं नय- अर्थः माहारे. तस्ल फलबिटसरिमा । नप्पलनालोवमा नव नानि || रमहरणी जगणीए । सयाई नानिए पडिवा ॥॥नान्निए तीए गप्रो नयं पाईयाएतिए नयाए तीए ग. हेलो जोत्र केवा प्रकारनो आहार लहे ? (त्यारे नगवान कदे के) दे गौतम! ते गर्न Eनी माता जे नानाप्रकारना रसो, विगयो, तिरका, कडवां, कसायला, खाटां अने मधुर -1 व्योनो आहार करे, तेनमांधी एकदेशे ते गर्भगत जीव पण पाहार कर. केमके ते गन्ने | फलना डीटीयां सरिखी, कमलनी नालजेबी नानिपर रसहरण। नामनी नामी होयळे, अ ॥ १५ ॥ नते मातानी नातिनीसाचे जेडाएलीहोय ते नान्नि मारफत ते गन्नंगत जीव माताए आहार करेला व्यानो रस ग्रहण करे , अने तेवीरीते अाहार करवाश्री ते गर्न जन्मप BFBEAFIROFIFIED GEEJETURIFIERattaarat392f For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ।। १६ ।। ३ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रे विवश, जान जानुत्ति, करणं अंते मान अंगा पन्त्रता ? गोयमा! तनुं मान अंगा पन्त्रता, तं जहा - मंस सोलिए मत्थुलिंगे. करणं अंत पिअंगा पन्नता ? गोवमा ! त पिगा पंनना, तं जहा हिमा के समंसुरोमनहा. जीवेणं जेते गनगए समाणे नरएस नववा ? येत वृद्धि पामे वे. ( बळी गौतमस्वामी पूबे के के ) हे जगवन् ? ते जीवने माताना केट: वां अंगो होय ? ( जगवान कहे वे के तेने त्रण माताना अंगो होय, त प्राप्रमाणे मांस, रुधिर अने कपाळनुं जेजुं. ( वळी गौतमस्वामी पूठे वे के ) हे जगवन! त्यारे तेने पिताना केटल अंगो होय ? ( जगवान कड़े वे के ) हे गौतम! तेने त्रण पिताना गो दोय, ते प्रमाणे For Private and Personal Use Only अर्थः ।। १६ ।। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल गोयमा! अगए नववङजा, अगए नो नववजेजा. सकेगोराते एवं वुच्च? जीवेणं गप्रगए समाणे नरएस अगए नववजेज्जा, अगए नो नववजज्जा? गोयमा! जणं जीवे. हाडकां, दामकानी अंदरनी मजा, तथा केश दाढीमूबना वाळ रोम अने नख. (व. ३ळी गौतमस्वामी पूरे ठे के ) हे जगवन् ! गर्भमा रहेतांकांज जीवा ( मृत्युपामीने ) | | नरकमां उपजे? (त्यारे लगवान कहे जे के) हे गौतम! (ते गर्भगतजीवोमाना केटलाक मरीने) नरकमां उपजे, तम्रा केटलाक न पल नपजे. (त्यारे बळी गौतमस्वामी पूजे के) हे जगवन् ! एम आप शा हेतुथी कहोगे के, गर्नमा रह्या अकाज केटलाक जी. वो ( मरीने,) नरकमां नपजे, तथा केटलाक न पण उपजे ? (त्यारे जगवान कहे डे के ) हे गौतम! जे जीन गर्नमा रह्योधको संझी पंचेंशिय (आहार !, शरीर १, इंडिय ., •-EBF%EILARIES9699E: 19.1489690969E9%961011t163610F ॥१७॥ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुलणं गप्रगए समाणे सन्निपंचेंदिए सबाहिं पजत्तीहिं पजत्तए, वीरीयलहीए, विप्रंगनाणसीए, वेनवीयलहीए पत्तो पराणीयं आगयं सुच्चा निसम्म पएस निदेश, वेनवियसमुग्घाएणं सम्मोहण, सम्मोहणित्ता चानरंगीरा लेणं सन्नादेश, सन्नदत्ता पराणीएण य ससिंगामे, सेणं जीवे अञ्चकामए, रजकामए, नोगकामए, कामकामए, अखिए, रजकंखिए, नो. आनप्राण ४, नापा ५ तथा मन)। सघळी उपर्याप्तिनश्री पर्याप्त अयोग्रको. वीर्यलB] ब्धि, विनंगज्ञानलब्धि, तथा वैक्रियलब्धिने प्राप्त श्रयायको, शत्रुनु सैन्य (आवेलु कोश्क- | ना मुखग्री ) सानळीने, ते गगत जीव पाताना वैक्रियप्रदेशोने बहार कहामे , तथा वै. ॥१७॥ क्रियसमुद्रात करे , एवीरीते वैक्रियसमुद्रात करीने ते चतुरंगी सैन्यने सज कर ठे, तथा ME तमकरीन शत्रुना सैन्यसाग्रे त संग्राम करे उ. ते जीव (ते समये ) धननो अनिलाबी, 19.1AFHIGHEAFFIFAEHE 941RESHIFA FOFFIFIEatakaEFEEL For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तंडुल अप्रैः FFIEFat3692FFFFF गोयमा! अगइए नववऊज्जा, अगए नो नववजजा. स केणठणं नंते एवं वुच्च ? जीवेणं गनगए समाणे नरएसु अगइए नववजेजा, अगइए नो नववजेज्जा ? गोयमा! जेणं जीवे. हाडकां, दामकानी अंदरनी मजा, तथा केश दाढीमूना वाळ रोम अने नख. (व की गौतमस्वामी पूजे के ) हे जगवन् ! गर्नमा रहेतांश्रकांज जीवो ( मृत्युपामीने) शुं नरकमां नपजे ? (त्यारे नगवान कहे जे के ) हे गौतम! (ते गर्भगतजीवोमाना केटला. क मरीने ) नरकमां उपजे, तथा केटलाक न पण उपजे. (त्यारे बळी गौतमस्वामी पूरे डे के ) दे जगवन् ! एम आप शा हेतुश्री कहोगे के, गर्नमा रह्या थकाज केटलाक जी. वो ( मरीने,) नरकमां नपजे, तथा केटलाक न पण उपजे ? (त्यारे नगवान कहे जे के गौतम! जे जीव गर्नमा रह्योथको संझी पंचेंक्ष्यि (आहार, शरीर २, इंडिय.. 39SE991849993FSESFAFF954 ॥१७॥ For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तडुल ॥ २० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रगत समाणे नरइए गए नववलेजा, अडेगइए नो नववजेला. जीव जंते गनगए समाले देवलोगेसु नवत्र ओखा ? गोयमा ! गाइए नवबोजा, गए तो ना. से केलाठेलं अंत एवं वुश्चइ ? अंडगइए नववडेजा, अबेगइए नो गाळे मृत्यु पामी जाय, ता ते नरकमां नृपजे. अने ते देतुनथी हे गौतम! एम कहेवामां आवे छे के, गर्भमा रहेला जीवोमाना कटलाक मृत्यु पामोने नरकमां नपजे, तथा केटला - 'कन पण उपजे. (वळी गौतमस्वामी जगवानने पूबे के के ) हे जगवन ! गर्भमा रहेला जीव ( मृत्यु पामीने ) देवलोकांमां उपजे ? (त्यारे जगवान् कदे बे के ) हे गौतम! केटलाक (देवलोकी मां ) उपजे, तथा केटलाक न पल उपजे. (त्यारे फरीने गळमस्वामी पूढे बे के ) For Private and Personal Use Only अर्थः ॥ २० ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल ॥ २१॥ .-49HIFIESEASikarakAERIFM. क्वलंका, गोयमा! जेणं जाणं गनगए समाण सनीपंचिंदि सवादि पजनीहिं पजनए वेनवियलहीए, वीरीयलड़ीए, नदिनागलादीए तहारुवस्स समस्त वा माहास्स वा अंति. ए एगमिव आयरियं धम्मियं सवय सुच्चा निसम्म, तन सजवतीबसंवेगसंजायला दे जगवन ! एम शा हेतुथी कडेवामां आवे ने के, केटलाक (देवलोकमां) नपजे, अने केटलाक न पण नुपजे. (त्यारे जगवान् कहे डे के) हे गौतम! जे जीव गन्नमा रह्योश्रको सनिपंचेंश्यि, सर्व पर्याप्तिनथी पर्याप्त अयोधको, वैक्रियलब्धिवाळो, वीर्यसधिवाळो, तथा अवधिशाननी लब्धिवाळो बयोधको, तेवा प्रकारना साधु अथवा ब्राह्मणनीपाले एक प. नत्तम धर्मसंबंधि वचन सांजळीने, तेश्री ते. तीव्र संवेगवाळो श्र३, धर्मपर अजवान श्रइ. तीव्रपणे धर्मना अनुरागमा रक्त धाय ने. (अने तेथी) ते जीव धर्मनो अनिलाषी, पु 4444438929899EHERESENSE ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ तंडुल°// तोवधम्माणुरायरते. से णं जीव धम्मकामए, पुनकामए, सम्मकामए, मुस्ककामए, धम्म अर्थः कंखिए, पुनकंखिए, सग्गकंखिए, मस्ककंखिए, धम्मपिवासिए, पुनपिवासिए, सम्गापवामिए, मुस्कपिवासिए, तच्चिने, तम्मणे, तल्लेले, तदनवसिए, तत्तीवनवसिए, तत्तीवनवसाणे, | एयनो अन्निलाषी, स्वर्मनो अन्निलाषी, तथा मानो अन्जिलापी थाय ने वळी ते धमनी | वांगवालो, पुण्यनी वांगवालो, स्वर्गनी वांगावालो, मोदनी वांगवालो, धमनी तृष्णावालो, पुन्यनी तृष्णावासो, स्वर्गनी तृष्णावालो, मोक्षनी तृष्णावालो, तेमांज चित्तवालो, ते. मांज मनवालो, तेनीज लेश्यावालो, तेनाज ध्यानवालो, तेनाज तीव्रध्यानवालो, तेनाज ती-॥ २२॥ व अध्यवसायवालो, तेमांज प्रेम करनारो, तेमाटेज उपयोगवालो, तथा तेज नावनायी | नावित यएलो, ( ते गन्नगत जीव ) जो त ( पूर्वोक्तविचारवाला) समयनी अंदर मृत्यु पा. REMEDIEHatataka HESENENEFIFIFAFFAFREED For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir E अश्रः तंडुल। लप्पिय करणे, तयहोवनने, तप्रावनाविए, एयमिणं अंतरंसि कालं करेडा, देवलोएसु न- वववेका. 1॥२३॥ से एणछेणं गोयमा! एवं वुञ्चर, अश्वगइए ववव केला, अगइए नो नुव बोजा. जी वेणं नंते गनगए समाणे उत्ताणए वा, पासिलए वा, अंबुखुऊए वा, अधिवा, चिठिऊमे, तो ते देवलोकमां नत्पन्न वाय. अने तेटलामाटे हे गौतम ! एम कहेवामां आवे ने के, तेमाना केटलाको ( स्वर्गमा) नपजे, तया केटलाको न पण उपजे. ( वळी गौतमस्वामी नगवानने पूजे के) हे न गवन ते गर्नमा रहेलो जीव शुं लांबो बाय? पडद्म फेरवे ? कुजनीपेठे संकोचाय? स्थिर रह? उन्नो रहे? वेशी रहे ? पग पसारे ? अासन वारे? सूझ रहे ? अथवा माता सूत उते EDESEFUFULFIEFSUFFEEDED UREBELUERIEFFERFEDE ॥ २३.] For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुलवा , निसीरावा, तुयट्टिावा, प्रासश्कवा, सऊवा, मानए सुयमाणीए सुयई, जागरमा- अर्थः जीए जागरई, सुहियाए सुदिन नव, उहियाए दिन नव? हंता गोयमा! जीवेणं ग. ॥२४॥ प्रगए समाणे नत्ताणएवा जाब दुहिनवा. ( गाथा ) चरजायंपि हु रस्का । सम्मं सा रस्कर तन जगणी ॥ संबाई तुय । रस्का अप्पं च गनं च ॥१॥ अणुसुया सुयंतीए सूए ? जागते ते जागे ? सुखी होते ते सुखी होय? के शुं माता दुःखी होते ते दुःखी होय? (त्यारे लगवान् कहे जे के) हे गातम! गर्नमा रहेलो जीव लांबा याय, (ते बेक) माता दुःखी होते त दु:खी थाय, (एम जणवं.) वली ते गन्नं जो घण काळे जन्मे, तो पण तेन ते रक्षण करे, वळी सम्पक प्रकारे तेनी जाळवण करे, मसळावे चंपी करावे, तश्रा एवीरीते ते माता पोताना प्रान्मनु तथा गर्जनुं रक्षण कर ॥ १ ॥ वली माता सूत FeatNERIE11699 HitHEMIERREE ॥ For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तंडुल० । जागरमालीए जागरइ भनो । सुहियाई होइ सुदिन । दुहियाई दुद्दिन होइ ॥ २ ॥ - चारे पावणे । खेले सिंचालनवि से नहि ॥ श्रही अहीमा । नहकेससमंसुरोम परिणामा ॥ २५ ॥ ६ ॥ ३ ॥ एवं बुंदिमइगन । गने संवसइ दुस्कियो जीवो ॥ परमतमसंघयारे । श्रमिश्रजरिए प एमि || ४ || हे आकलो ! तनुं नवमे मासेतीए वा, पडुपन्ने वा, अलागए वा, चनन्दं मापण सूए, तथा जागते बते जागे, सुखी होते बते सुखी होय अने दुःखी होते ते दुःखी होय. ॥ २ ॥ वळी ते गर्जने विष्टा, मूत्र, थुंक, तथा श्लेष्म होतां नथी, मांटे तेने हाडका, हाडकानी अंदरनी मक्का, नख, केश, दाढीमुळ तथा रोमरूपे (आहार) प रिलमे बे. ॥ ३ ॥ एवीरीते शरीरपणाने प्राप्त बयेलो ते जीव दुःखित अयोधको अत्यंत - कारवाळा, तथा विष्टाथी नरेला प्रदेशवाळा गजवानी अंदर रहे बे. ॥ ४ ॥ हे आयुष्म For Private and Personal Use Only मर्थः Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुलक अयः EEEEEEEEEEEEEEEF या अत्रयरं वयाइ, तं जहा-इश्री वा इत्थीरूवेणं, पुरिसंवा पुरिसरूवशं, नपुंसगं वा नपुंसगरूव- णं, बिंबं वा बिरूवणं. अप्पं सुकं, बहु नये, बी त जाय,अप्पं नयं,बहु सुक्के, पुरिसात| जाया. उबंपि रत्नसुकाणं तुल्लनावे नपुंसन. छीन यसमानगे बिंब तनु जायई. अह गं न ! त्यारबाद ते माता नव मासो गये उते, अथवा संपूर्ण दोते बते, अथवा अनागत एटले ते नवमालथी नंगी मुदतमा पण ( हव आगल कहवाता)चारमाना एक प्रकारना | (जीवने.) प्रसवे बे, ते नीचेप्रमाण-स्त्रीरूपें स्त्री, प्रश्रवा पुरुषरूं पुरुष, अथवा नपुंसकरूपें नपुंसक, अथवा विवरूपे बिंबने प्रसव . जो स्वरूप ( पितासंबंधी ) वीर्य अने घ- | ( मातासंबंधि ) रुधिर होय ता स्त्री प्रसवे. जो स्वल्प रुधिर अने घणुं वीर्य होय तो पुरुष प्रसंव. तथा वाय अने रुधिर बन्न जो सरिखां होय तो नपुंसक प्रसव. अनेक JEHEAF11EAFFAEIFESE ६॥ FEEEEEEEE For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तंडुल ॥२७॥ PURISMRITISBI पमवकालसमयसि समिण वा. पाएदि वा आगममागतिरियमाग विणिघाय. अर्थः मावा. (माया) का पुण पावकारी । वारल संबवराई नकोसं ।। वस गप्प्रवासे । अ. सुश्पन्नवे असुश्याम ॥१॥ जायमाणस्स जं दुस्कं। मरमाणस्स वा पुणो ॥ तेण दुरकेस्त्रीना संयोगथी (अवयवरहित फक्त मांसपिंडरूप) बिंबनो प्रसव पाय, बळी ते जीव प्रसवकाल समयें जो ( योनिझारधी प्रश्रम पोताना ) मस्तकधी प्रश्नवा पगश्री आवे, तो सुखें आवे, परंतु जो तीनें आवे तो विनिघांत (मृत्यु) पामे ठे. वळी को पापकारी जीव अशुचिथी उत्पन्न श्रयेला, अने अशुचि एवा गर्नावासमा नत्कृष्टो बार वर्षोसुधि रहे .॥२७॥ ॥ १॥ हवे ते जीवने प्रसवतांश्रका तथा मरतां अका जे दुःख नत्पन्न बाय दे, ते पुःखनेलीधे ते ( पोताना पूर्वजन्मनी) जाति याद करी शकतो नश्री. ॥२॥ बळी ते जीव महा। For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . तंडुल 0 . ॥२॥ 91AtaHEutu. जाई सर न अप्पणो ॥२॥ विसरसरं रमता । सो जाणीमुहान निप्पडा ॥ मानुए अप्पणोवि अ । वयणमनलं जणमाणो ॥ ३ ॥ मप्रघरंमि जोवो । कुंनीपार्कमि नरयसंकासे || वुलो अमिनमग्ने । असुश्पन्नव असुश्यंमि ॥४॥ पित्तस्स य सिंजस्स य । सुक्कस्स य साणियस्सवि य मने ।। मुनस्म य पुरिमस्स य करुणास्वरे रुदन करतोयको, माताने तथा पोताने पण अतुल्य वेदना नपजावतोथको योनिमुखयकी ( बहार ) पसे . ॥ ३॥ ते जीव कुन्नीपाकतुल्य, नरकसरखा, अशुचिश्री न त्पन्न अयला तथा अशुचि, अने विष्टाथी खरमाएला ते गन्नीवासनी अंदर रहे ॥४॥ ___वळी जेम पित्त, श्लष्म, वीर्य, रुधिर मूत्र, तथा विष्टानी अंदर कृमि नत्पन्न बाय २ (तेम ते जीव गन्नावासमां ) नुत्पन्न श्राय रे. ॥ ५ || माटे एवीरीते जीवना जे शरीरनी । 96.14.94DAIFILESERESERESER+Ut ॥२७॥ For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir डुल ॥ ॥ 361393EHEJFFIFESSFURNE961 जाय जहवञ्च किमिनन्द ।। ५ ॥ तंदाणि सोयणं । केरिसयं होश तस्स जीवस्त ॥ सुक्क- अर्थः रुदिरागवसन । जस्सुप्पत्ती सरीरस्त ॥ ६ ॥ एयारिसे सरीरे । कलमलनरिए अमीप्रसंन्न| ए ॥ निययं विगणितं । सोयमयं केरिसं तस्स ॥॥ आनसो! एवं जायस्त जंतुस्स नुत्पत्ति वीर्य अने रुधिरना मिश्रणथी नत्पन्न अयेली , ते शरीरने शौच (पवित्र ) करवापणुं ते केवुक था शके? ( श्रीहेमचंशचार्यानीए पण कह्यु के-नवश्रोत्रश्रयश्चि-रसनिस्पंदनिश्चले ॥ देहे यः शौचसंकटपो । महन्मोहविगॅनितं ॥१॥)॥६॥ एवारीतर्नु अत्यंत मेखथी नरेलु तथा विष्टामां नत्पन्न थयेलुं शरीर होते बते, ते शरीरने ममत्वन्नाव- En | थी पोतानुं गणीने पवित्र केवी रीते मानवू जोश्ये!! ॥ ७ ॥ वळी हे आयुष्मन् । ते नुत्पन्न श्रयेला जीवनी (नीचेमुजब) वीरीतनी दश दशान कहेवायले, ते आप्रमाणे-बा FRIEFINIFIELDINE3%8 For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir DEBENERSERIFIES तंड्ल० कमण दसदमा एवमादिङति, तं जहा-बाला कीडा मंदा ३ बलाय ४ पन्नाय ५ हाणिय पवैचा ७ ॥ पारा समुही सा-यणी य दसमी य कालदमा १० ॥ जायमिनस्स बालस्त । जाला पदमिया दसा ॥ न त सुहदुरकं वा । नहु जाति बा. लया ॥ ॥ बीयं च दमं पनो। नागाकीडादि कीमई॥न य मे कामनांगेसु । तिवानलादशा १, क्रीडादशा १, मंददशा ३, बलदशा ४, प्रज्ञादशा ५, हानिदशा ६, प्रपंचदशा प्राग्नारदशा ७. संमुहीदशा ए, तथा दशमी शयनसरखी कालदडशा १0 जाणवी ॥ ७॥ जन्मेला बालकनी जे पेहेली दशा होय, तेनी अंदर तेने सुख दुःख हातुं नथी, केमके बालकोने तेसंबंधि ज्ञान होतुं ननी, माटे ( ते पेहेली बालदशा जाणवी ) ॥ ॥ हवे बीFI जी दशाने प्राप्त श्रयेलो ते जोव नानाप्रकारनी क्रीमा करे , परंतु त्यारे तेने कामनागोनी ।। FEFFE EFFE #RUFETESE For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल अर्थः katataka39HI1099FREE पज्जा र ॥ १० ॥ तश्यं च दसं पत्तो । पंचकामगुणो नरो ॥ समझो भुजिनं नोए । जव से अति घरे धुवा ॥१॥ चनबीन बला नाम । जं नरो दस मिस्सा ॥ समन्बो बतं दरिसेनं । जश्न निरुबद्दवो !॥ १२ ॥ पंचमीन दसं पत्तो । आणुपूच्ची जो नरो ॥ समझो अहं चिंतेनं । कुटुंबं चालिग ॥१३॥ बठीन हायणी नाम । जं नरा दसमिस्मिन॥ अंदर तीव्र अन्तिलाष नत्पन्न श्रतो नयी ॥ १० ॥ पनी त्रीजी दशाने प्राप्त ग्रयेलो ते जीव पांचे इंडियोना विषयोनो अन्निलाषी अयोधको, जो तेना घरमा ( लक्ष्मी) होय तो ते नो. गोनोगववाने समर्थ श्राय .॥ ११ ॥ पग जे मनुष्य चोथी बला नामनी दशाने प्राप्त | श्रयो , ते जो नपचरहित होय तो ( पोतानं ) बल देखाइवाने समर्थ थाय ठे.॥१२ !! तथा पठी अनुक्रमे पांचमी प्रज्ञादशाने प्राप्तथयेलो'ते'जीव'च्योपार्जन करवाना' विचारो BEFRESHEREBEESESEBFSEkt | For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अर्थाः २ तंडुलविरजिश्न कामेसु । इंदिएसु पहायज्ञ ॥ १५ ॥ सनमाए पचाए । जं नरो दसमिस्सिन निच्चुन चिक्कणं खेलं । खासई य खणे खणे ॥ १५ ॥ संकुश्यतणुचम्मो । संपनो अलमी दसं ॥ नारीणं अणिठो य । जराए परिणामिन ॥ १६ ॥ नवमी संमुदीनाम । जं नरा करवाने समर्थ थाय, तथा कुटुंबनो निर्वाह चलाववानी श्छा करे ॥ १३॥पी नछी हायनी दशाने जे मनुष्य प्राप्त भयो , ते कामनोगोनेविषे विरक्त थायो, तथा तेनी इंदिन शिथिल श्राय डे. ॥ १४ ॥ तेवारपठी सातमी प्रपंचानामनी दशान जे मनुष्य प्राप्त भयो जे, तेने चीकणा बळखा पडे , तथा तेने कण कण धरस आवे . ॥ १५ ॥ पनी पाठमी प्राग्नारानामनी दशाने प्राप्त अवाथी तेना शरीरनी चांबडी करचलीवाळी श्रायडे, तेमजते घडपणना परिणामश्री स्त्रीनने अनिष्ट ( गमे नही तेवो)लागेने, ॥ १६ ॥ पनीन HEREFREIFIEDUBEROESEARNER. FF92fF39E%E35SEUEUEFAt For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अर्यः तंडुलदसमिस्तिन ॥ जराघरे विणिस्मतो । जीवो वस अकामन ॥१७॥हीणनिनसरी दीगो BI विवरी विचिनन ॥ सुचलो पुरकी सूयः । सपना दसमी दस ॥१०॥ दसगस्त नव केवो। वीसचरिसो न गिल विजं ॥ नोगाय तीसगस्स य । चत्तालीसस्स विनाणं ।। वमी समुही नामनी दशाने जे पुरुष प्राप्त थाय , तेनो जीव धमपणरूपी घरनी अंदर दाखल श्रश्ने निष्काम अयोश्रको रहे . ॥१७॥ वळी हीन तथा निन्न स्वरवाळो, एटले घाटा तग्रा खोखरा अवाजवाळो, दीन एटले दयामणो था पडेलो, विपरीत एटले चलित बुहिवाळी, विचित्रित एटले गन्नराटश्री बद्रावरो वनीगयलो, धुर्बल तथा दुःखी एवो ते प्रा. एणी (पोताने ) दहामी दशाने प्राप्त श्रयेलो सूनवे . ॥ १७॥ प्रथमना दश वर्षीसुधि निश्चित बाल्यावस्था होय, तथा वीस वर्षांनी ज्यारे नमर थाय त्यां सुधिमा ते विद्या ग्रहण FEAFFAFFFFFFEAF9969111.. FF16.4F115 For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल ॥३४॥ BEREJEEEEEEENADEJEESE BEF ॥ १ ॥ पत्रामगस्स चख्खु । दाय सहिं गयस्म बाहुबलं॥ नोगाय सनरीस्ल य । अ. सीइंगस्स य विनाणं ॥ २० ॥ ननद नम सरीरं । वाससएं जीवियं चयः ॥ कित्तिन य सुदो नागो । दुहन्नागो य किनिन ॥१॥ जो वाससयं जीव । सुही नोगे य भुंजा ॥ | करे , पनी त्रीस वर्षांसुधिनी अवस्था नोगो नोगववामाटेनी ले तया पगी चालीस वर्षों सुधिमां तेने विज्ञान प्राप्त श्राय रे ॥ १५ ॥ वळी ज्यारे ते पचास वर्षांनी नमरनो श्राय, त्यारे तेनी आंखोनी शक्ति नी श्राय रे अर्थात् आंखे फांऊवां आवे , तया साठ वर्षांनी नमरे बाहबळ कमी थाय . सिनेर वर्षांनी नमरे ते लोगो नोगववामाटे अशक्त प्राय बे, तथा एंसी वर्षांनी मरे विज्ञान एटले बुद्धि मंद पडे डे ॥ २० ॥ नेवु वर्षांनी नमरे तेनुं शारीर नमी जाय , तथा एकलो वर्षे ते जीवितने तज , एवी रीते ते जीदगीमा केट kakakakakakatalasasarasaF* A For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir Ire तंडुल तस्सवि सेविन सेनाधम्मो य जिणदेसिन॥ २५॥ किं पुण सपञ्चवाए। जो नरो निच दुरिकन ॥ सुड्यरं तेण कायो । धम्मो य जिदेसिन ॥२॥ नंदमाणो चरे धम्मं । वरं मे ॥ ३५॥ लतरं नवे ॥ अनंदमाणोवि चरे । मा मे पावेतरं नवे ॥२॥ नवि जाइ कुलं वावि । वि. लोक नाग सुखरूपें तथा केटलोक नाग :खरूपें जाय .॥ २१ ॥ जे माणस एकसो व. षोंसुधि जीवेडे, तया सुखी अयोधको नोगो नोगवे , ते पण जो जिनेश्वरप्रभुए उपदेशे ला धर्म ने सेवे, तो तेने ते कल्याणकारी याय.॥ ॥ त्यारे जे माणस जीदगीमा (क. माणे कणे) विघ्नयुक्त तथा हमेशां :खी, तेणे तो ते जिनोपदिष्ट धर्म विशेष सारीरीते करवो जाइये ॥ ३॥ समृश्विान अयोधको ते एम विचारीने धर्म आचरे के, मारुं विशेप प्रकारे श्रेय थाय तो ठीक, अने निर्धन अयोथको ते एम विचारिने धर्म आचरे के, मा. 1941639ELFIERJENESIGNESHLE FARMERMA For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुलका वावि सुमिरिकया || तारे नरं व नारी वा । सव्वं पुत्रेदि वह ।। २५॥ पुत्रेहिं हीयमा. 18 अर्थः हिं । पुरिमागारोवि हाय ॥ पुनेदि वट्टमाणेहिं । पुरिमागरीवि बट्टा ॥ २६ ॥ पुत्राई । ॥३६॥ खलु आनसो किच्चाई करणीमाई पोयंकराई, वमकराई, धमकराई, जमकराई, किनिकरा राथी हवे बीजं कंपार न पाय तो सारूं. ॥श्या जाति, कुल, अथवा सारीरीते शिखेली विद्या पण पुरुष अथवा स्त्रीने तार। शकतां नश्री, परंतु सर्वप्रकारनी समृहि पुण्योश्री वृ हि पामे ठे. ॥ २५ ॥ पुण्य ज्यारे दीन थाय, त्यारे पुरुपातन पण हीन पाय , तथा पु. El एय ज्यारे वृद्धि पामे, स्यारे पुरुषातन पण वृहि पामे ठे. ॥ २३ ॥ बळी दे आयुष्मन ! पु- En | एयनां कार्यों करवालायक, प्रीति करनारां शोना करनारा, धन करनारा, जश करनारा त. श्रा कीर्नि करनारा दे. परंतु दे प्रायष्मन! खरेग्वर एम न चिंतन जाइये के घणा एवा FEL196316104SESE 1646439F " For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir + 9 + 1 . तंडुल . नो खलु आनमो! एवं चिंतिया---एमति खलु वह ममया आलिया खसा बारापा- अः Bणु श्रीवालवा मुहुना दिवमा अहोरत्ता पस्का माला नक प्रयाणा संग जुग्गा वासस या ॥130 वामसहस्मा वासमयसदम्मा वासकोडीन वासकोडाकोडीन, जब ग अम्द बहुई मीलाई बयाई गुणाई नेरमगाई पचरकाणापामहोववासाई पमिस्सिामो पठविस्समा करि| समयो आयलोयो कणो श्वासोश्वालो स्ताका लवो मुहूनों दिवसो रात्रिदिवसो पतो मासो इतुन अयनो वर्षों युगो सोवों हजारों लाखवर्षों क्रोडवों तथा कोडाकोडीवर्षों श्रावहो. के जेमुदत दरम्यान अमो घणां एवां शीलो व्रतो गुणी विरतिन प्रत्याख्यानो तथा पौ-1॥३७ । | पधनपवासादिक आदरशुं, आराधशुं तथा करशुं. वली हे आयुष्मन! (तुं पूर्वीशके)शामाटे एम | नचिंतय जोइये ? (तो नतर एके) खेरखर पा जींदगी घणा विनोवाली के कारण के वायुना वि 234614FGEFFEf 39.999A For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अग्रः' ॥10॥ तंडुलः स्मामो. तो किम पानमो नो एवं चिंतेयचं नवs, अंतरायबहुले खलु अयं जीविए, इमे E बहवे वाश्य पिनिय सिंन्निय मनिवाश्य विविड़ा रोगायंका फुमंति जीवियं. प्रासित खलु पानसो णुया नवगयरोगायंका बहुवाममयमदस्मजीविणो, तं जहा-जुयलधम्मिया अरिहंता का चक्कट्टि वा बलदेना वा वासुदेवा वा चारणा विकाहरा, ते गं म कारवाला, पिनना विकारवाला, श्ष्मना विकारवाला, नासन्निपातपादिक विविध रोगोना घELणाजयो बाजींदगानीने (जोखममा नाखनारा) प्रात्रीपडले.वळी हे आयुष्मन! पर्वकालनेविषे खरेखर मनुष्यो रोगसंबंधि नयविनाना तथा घणा साखो वर्षासुधि जीवनारा हता.ते नीचप्र माणे-युगलधर्मवाळा (जुगलीयां ) अरिहंतो, चक्रवर्निन, बले देवो, वासुदवा, चारणकषिन, विद्याधरो. वळी ते मनुष्या अत्यंत शांत अने मनोहर रूपवाळा, नत्तमनोगोवाळा INDIH ॥३॥ For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie तंडुल ॥ गुया अश्वमोमचारुरूवा नोगुनमा, नोगलस्कणघरा, सुजायमचंगसुंदरंगा, रनुप्पलपनम| करचरणकोमलंगुलितला, नगनगरमगरमागरचक्कंकवरल स्करांकियतला, सुपाठियकुम्मचारुचलणा, आणुपुचिंसुजायपीवरंगुलिया, नन्नयतणुतंवनिइनहा, संठियसुसीलठगूढगुंफा, ए( कोकशास्त्रादिकमां कहेला ) लोगोना प्रकाराने धारण करनारा, सार) रीते गोठवायला ने सर्व अंगो जेमा एनां शरीरवाळा, लाल पांखडानना कमलसरखा दाय अन पगोमा कोमलने आंगली तथा तलीयां जेननां एवा, पर्वत नगर मगरमच समुनया चक्रथी अंकित श्रयेला उत्तम लक्षणोश्री नितांडे तलीयांन जेमना एवा, अनुक्रमे सारीरीते गोठ- Emo!! वायेली तथा पुष्ट ने आंगली जेननी एवा, नंचा सूक्ष्म राता तथा चिकणा ठे नखो जे| मना एवा, सारीरीते गोठवायला, संश्लिष्ट अयेला तथा गुप्त ले ( गुल्फो) धुंटी जेननी । EFFEHEAratINFOROFET SEBENERNIGARH For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ..' . 1+16 . तंडुल गोकुरुवंदावनबट्टाणुपुरजंघा, समुग्गनिमग्गगढ जाएग, गयसुडादंडसुजाय सविनोरू, वरना- अप्रैः a रणमनतुल्लविक्कमविलामगई, सुजाय वरतुरयगूढदेमा, आन्नदयनिरुवलेवा, पमुश्य वरतुर ग॥४०॥ सीहअरेगवट्टीय कमी, मादय मागंदममलदयगनिवारियरकणगरूसरिसवरवयर लिय एवा, दारणी तथा कुरुविंद नामना तगविशेषनीपेठे अनुक्रमे गाळाकार ठे जंघान जमन। | एवा, मावलानीपेठ मारीन चोंटेला तथा गुप्त ने घुटगो जेनना एवा, हायानी सुंढनापेठे सारीरीने गोठवायेल सापळा जेनना हवा, नत्तम मदोन्मत हाग्रोसरखी पराक्रमवाली अने विलासयुक्त गति से जेमनी एवा, नत्तम जातिवाळा श्रेष्ठ घोडानीपट ठे गुप्त नाग जEnd | ननो एवा, आकागजातिना घोमानीपेठे ( विष्टायादिकना)लेपविनाना, रोगादिकमी र. दित एवा नत्तम घोडायो नया मिंयी पण अधिक गोळाकारवाली कटी जेननी एवा, FFIFADHE484344811383FIENFE .4.4 9 1 For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अर्यः तंदुल मना, गंगावनप्पयाहिणावत्ततरंगजंगुररविकिरणबोहियकोसायपनम गंन्नीरवियडनानी, नजु- || यसमसहियसुजायजचतणुकसिणनियाजलडहसुकुमालमनयरमणीजरोमराई, कसविह॥ ४ ॥E] गसुजायपीणकुछी, ऊसोयरा, पनमवियडनानी, संगयपासा, सन्नयपासा, सुंदरपासा, सु.. | सारीरीते बनावेलां मुशल दर्पणनी चूड, तथा उत्तम सोनानी तलवारनी मूळसरखो अने ननम वलयाकार के मध्य नाग जेननो एवा, गंगावर्तना दक्षिणावर्त्तमा रहेला मोजांसरखी उबळेली, अने सूर्यना किरणोथी विकस्वर श्रयेल ने डोडा जेनो एवां कमलसरखी गं नीर बेनानी जेननी एवा, सरल समपणावाली सारीरीते गोठवायेली छुट छुट सूक्ष्मः | श्यामरंगना स्निग्ध कमलसरख। सुकुमाल तथा कोमल ने रोमोनी श्रेणि जेननी एवा, म. त्स्यविहंग नामना पंखीनीपे सारीरीते गोठवायेली के पुष्ट कुक्षि जेननी एवा, मत्स्यसमा RESEAFEDESERFEFRESSES BIHARIHSHIP ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल जायपासा, मिरमाईयपीगरईयपासा, अकरंडुवकणगरुयगनिम्मलसुजायनिरुवदयदेहधारी, अधः पसबनीसलस्कराधरा, कणगसिलातलुज्जलपसप्तमतला, नचियविनिमपिहुसबवा, सिरि॥४॥ | वछंकियवला, पुरवरफलिहवाट्टयनूया, नूयंगीतरविनलनोगप्रायाणफलिइनबूढदीदवादु, जु न नदरवाला, कमलसरखी प्रफुल्लित नानिवाला, मलला पाखांनाळा, नडतानतरता पा| सावाला, सुंदरपासावाला, सारीरीते गोरवेल पासावाळा, प्रमाणयुक्त अने पुष्ट बनेलं पासा वाला, पृष्टना हाडकां न देखाय तेवीरीते, तथा सुवर्णसरखी कांतियुक्त, निर्मल, सारीरीते | गोठवायेल अने रोगादिकधी रहित शारीरने धरनारा, उनम वत्रीस लकणोने धरनारा, सु. Eai. वर्णनी शिलातलसरखा नज्ज्वल मनोहर अने सपाट डे तलीयां जेनना एवा, पुष्ट विस्तीEM तथा पहोळी गती जेननी एका, नगरनी नांगळसरखी वर्तुल ने भुजान जेनी एवा, 19893EIFEFIFSFES1 44中中中中中山中山中中中中中中中中中中中4+山中 For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुल गसन्निन्नपीयरश्यपीवरपनसंठियनुचियोचरसुवसुमिलिट्ठपञ्चसंधी, रतुप्पलोचियमनयम- अर्थः सललस्करापसअहिदजालपाणी, पीवरवट्टियसुजायकोमलवरंगुलिया, तंबतक्षिणसुश्रुश्र॥४॥| निघ्नहा, चंदपाणिरेहा, सूरपाणिलेहा, संखपाणिलेहा, चक्रपाणिलेहा, सोवियपाणिखेदा, शेषनागनी विस्तीर्ण फणासरखा तथा महोटी नोगळसरखा लांबा ने हाथ जेनना एना, घोसरासरखा पुष्टरीते रचेल एवा मजबूत प्रकोष्टमा रहेल, तथा मांसयुक्त स्थिर वर्नुलाकारवाळी अने सारीरीते मळी.गयली पर्वोनी संधि जेनन एवा, लाल कमलसरखी, पुष्ट कोमल, मांसयुक्त, उत्तम लक्षणोवाळी तथा विहित ने हथेली जेन्नी एवा. पुष्ट, गो-Ehs.! लाकार, सारीरीते मोठवायेली, कोमळ अने नत्तम ने आंगलीन जेननी एवा, लाल तळी. || वाळा, पवित्र, मनोहर अने स्निग्ध ने नखो जेनना एवा, हश्रेलीमा चश्नी रेखावाळा, IEL 999606363699RUFDMsgegneepak HESF9G9kakkU090FUFAEafEASE For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंदुल ॥ ४४ ॥ 66363636936 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ससिरवि संखचक्क सोधियपालिलेहा, वरमदितवराद सी दसहून सजनागवविनत्रयमनयः खंधा, चनरंगुल सुप्पमालकंबुवरसरिसगीवा, श्रवहिय सुविज्ञत्तमं सूमंसलसंवियप सब सहूल वि लहणुया, नपचियमिलप्पवालबिंब फल सत्रिजावरुडा, पंडुरसमिसगलविमल संखगोखीर कुंसूर्यनी रेखावाळा, शंखनी रेखावाळा, चक्रनी रेखावाळा, साथीयांनी रेखावाला, एवीरीते is सूर्य शंख चक्र तथा स्वस्तिकन) के हथेलीमां रेखान जेनने एवा. उत्तम पाडा सूकर, सिंह शार्दूल वृषन तथा हाथीसरखा उत्तम विस्तीर्ण जंचा तथा कोमल वे खजान जेमना एवा. चार आंगलोना प्रमाणवाली तथा उत्तम शंखसरखी के गरदन जेवनी एवा. साते गोठवाली, सारी रचनावाली, मांसश्री नृपचित प्रयेली, शुज आकारवाली, तथा वखावालायक एवी सिंहसरखी विस्तीर्ण दडपचीवाला. पुष्ट प्रवालां तथा (पाकां ) घो For Private and Personal Use Only अर्थः ॥ ४ ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंदुल ॥ ४५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ददगरय मुसालियाघवलदनमेढी, अखंडदना, अप्फोडियवंता, अविरलवंता, सुनिता, सुजायता, एगदंतसेढीविव अगदेता, हुपवदनितधोपन नत व शिकार न तल तालुजीडा, सारदनवलियम हुरगंजीर कुंवनिग्घोस कुंडु दिसरा, गरुलाययन जुतुंगनाला, अवदारियपुंडरीयनयलांगरखा होटवाला. सफेद चंदना कटकालरखा निर्मल, तथा शंख गायनुं दूध डोलर जलक ने सफेद कमलनी मृणाल लरखा सफेद दांतोनी के श्रेणि जेनने एवा, अखंग दांतोवाला, नदी फाटेला दांतोवाला, साथे साधे मळेला दांतोवाला, स्निग्ध दांतोवाला, साtic गोठवाल दांतोवाला, जाणे एकज दांतनी बनावेली दार दोय नही तेम ( जरा पण अंतररहित ) अनेक दांतोवाळा, अग्रिम घमेला निर्मल तथा तपावेलां सुवर्णनीपेठे लाल तळीयांवाळां ने ताल तथा जोन जेवनी एवा. शरद शतुना नवा मेघसरखो मधुर गं. For Private and Personal Use Only अर्थः ॥ ४५ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुलणा , कोकासियधवलपुरीयपत्तलबी, पानामियचावरुश्लकिलचिहुरराईसुसंठियसंगयायय- अर्थः E सुजायभुमुहा, अलीलपमाणजुनसवणा, सुमवणा, पाणमंसलकबोलदेसजागा, अश्रुग्गयस. ॥४६॥ जीर तथा सारसपतीना घोषजेवो अने दुन्निना नादजेवो ले ध्वनि जेमनो एवा. गरुमनीपेठे लांबी लिही तमा उँची नामिकानवाळा, विकस्वर कमलसरखी आंखोवाळा, विक. स्वर सफेद कमलसरखी पापणोनी शोनावाळा, जरा नमेला धनुष्यसरखी मनोहर तथा श्याम वालोनी श्रेणिवाळी, सारीरीते गोठवायेली, अंतररहित मळीगयेली विस्तीर्ण तम्रा सुंदर जमरोवाला, सांवा तथा प्रमाणयुक्त ने श्रवणो जेनना एवा, ननम कोंवाला, पुष्ट ६ तथा मांसयुक्त ले गालना नागो जेनना एवा, अति कांतिवाला तथा समग्ररीते शुभ एटले क्षुक्लपक्षसंबंधि अाईचंशकारसरखा आकारवाळु ले कपाल जेननु एवा, संपूर्ण पूर्णिमाना 3F1E39E NE 38E36 3FPESE E TELESED HESERIENHERESEREHESHREE For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir .909s तंदुल मग्गसुश्चंदइसंठियनिलामा, नदुवापडिपुत्र सोमवयणा, उनागारुनमंगदेसा, घणनिचियसु- अर्थः लस्कणुनयकूडागारनिरुवमपिमियग्गसिरा, हुयवइनिइंतधोयतत्ततवाणिजकेसंतकसनूमी, सा. ॥ UDE मतियचूडघणनिचियोडियमनविसयसुहमलकणपसत्य सुगंधिसुंदरभुयमोयगनींगनीलक सरखं शांत ने मुख जेनु एवा, बना प्राकारजेवो मस्तकनो प्रदेश जेननो एवा, अत्यंत पुष्ट अने शुक्ष लक्षणोवाळो, नचो तथा शिखरजेवा आकारवालो, अने अनुपमरीते। पिंडित श्रयेलो जे मस्तकनो अग्र नाग जेननो एवा, अग्निमां धमेला माफ करेला तथा तपावेलां एवां सुवर्णसरखो ठे केशोने नगवानी केशभूमि जेनुनी एवा, साल्मलीवृतनी घ- 3 टासरखा अत्यंत निचित प्रयेला, लांबा, कोमलताना विषयवाला, सूक्ष्म, उत्तमलक्षणोवा। सा, सुगंधि, सुंदर, नूत तथा मोचकजातिना (श्याम रंगना मणि ) जेश, नींगोडां गली 9696,16SHESH For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तेलं ॥ ४८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदमरगलनिनरं बजूए निचियकुंचियपयाहिलावत मुदमिरया, लस्कराने जा तुला ववेया माणुम्मालप्यमाणप कि पुन्न सुजाय सवंग सुंदरंगा, ससिसोमाकार कंत पियदसणा, सनाव भिंगारचारुरूवा, पासाइया, दरसलिका, अनिरुवा, पडिवा. तथा काजल जेवा, मदोन्मत्न जमराना समूदजेवा, सघन बयेला, सारीरीते गुंग्रीने गोठवेला भने दक्षिणावतंत्राला के मस्तकना केशो जेतना एवा. लक्षण एटले रेखादिक, तथा व्यंजन एटले मतिलकादिक, तेनुना गुणोयें करीने युक्त एवा, मान उन्मान तथा प्रमाणश्री संपूर्ण, तथा सारीरीते गोठवायला सर्व अंगोवडे करीने सुंदर शरीरवाळा, चंसरखा शांत प्राकारश्री मनोहर तथा प्रिय के दर्शन जेवनुं एवा, कुदरती शृंगारथीज मनोदर रूपवाळा, प्रसाद उपजावनारा, दर्शन करनालायक, मनोहर रूपवाळा, तथा अनुपम रूपवाळा ( ( पु· For Private and Personal Use Only अर्थः ॥ ४० ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल० t atkalNESEANIFIED ते णं मणुपा नहस्सरा मेहस्सरा हमसरा कोंचस्लरा नंदिस्सरा नंदिघोसा अयः मीइस्सरा सीदघोसा मंजुस्तरा मंजुघोसा सुस्सरा सुस्सनिग्घोसा अपलोमवानवेगा कंकग्गदणीकवोयपरिणामा, सनणीपासपितरोरुपरिणया, पनमुपलसुगंधनिसाससुरनिवय★ मनुष्यो हता.) वळी ते मनुष्यो जलप्रवाहजेवा स्वरवाला, मेघजेवा स्वरवाला, हंसजेवा स्वरवाला, क्रौंच जेवा स्वरवाला, नंदिनामना वाजिबसरखा स्वरवाला, तेज वाजिबसरखा घोषवाला, सिंहसरखा स्वरवाला, मिंहसरखा घोषवाला, कोमल स्वरवाला, कोमल घोषवाला, नत्तम स्वरवाला, नुत्तम स्वर तथा निर्घोषवाला, पुंना वायुसरखा वेगवाला, कंक नामना पक्षिनीपेठे (आहारादिक ) ग्रहण करोने पारापत (पारवां ) सरखी जगनिवाळा, शकुनी। SEkatment) acili For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तहल ॥५०॥ 1131HODNESS •IEHARRIERE Bा , वीनिरायका, ननमपसबसेसनिरुवमतणु, जल्लमल्लकलंकसेयरयदोरुझियसरीस, अर्थः निरुवलेवा, बायानगोवियंगमंगा, बजरिसहनारायसंघयणा, समचनरंससंसारासंठिया, उधE णुसहस्साइं नहूँ नच्चनेणं पनना. ते गं मणुया दोउपनगपिठिकरंडगमया पन्नता. समाणा- | जातना पकिनी पेठे (लेप तथा पुगंधरहित ) वडी नीतनी परिणतिवाला, कमल सरखा सुगंधि श्वासोश्वासश्री सुगंधयुक्त मुखबाला, त्वचासंबंधि रोगविनाना, ननम वखारावालायक तथा अत्यंत निरुपम शरीरवाला, पसीनाना मलना माघातग्रा पसीनावाळी रजसंबंधि दोपोथी रहित बे शारीर जननां एवा, (विष्टायादिकना) लेपविनाना, कांतिथी तेजस्वी अं-|| गोपांगवाला. वजशिषजनाराचसंघयवाला, समचतुरसंस्थानश्री संस्थित श्रयेला, तथा ते मनुष्यो उ हजार धनुष्य जेटली संचाश्वाला कहेला . बली ते मनुष्यो पृष्टना नागमा ब. DERES BEIERE FFEENEFFERESERENESS For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल ELEBEIFIFIE J MPETINENEasanEBENEFEBEPENESENEREST नसो! तेणं मणुया पगनया पगविगिया पगनवसंता पगप यणुकादमागमायलोहा मिनमदवसंपमा अल्लीणा नदगा विणीया अप्पिडा असंनिहिसंचया अचंडा असिमसिकसिवाणिजविवन्जिया, विडिमंतरनिवासिणो, इवियकामकामिणो, गेहागाररुस्ककनिलया, सो बन्न (हामकांनो) पांसळीनवाला कहेला . बली हे आयुष्मन् साधु! ते मनुष्यो नइ प्रकृतिवाला, विनययुक्त प्रकृतिवाला, शांत प्रकृतिवाला, स्वनावधीज सूक्ष्म क्रोध मान माया लोन्नवाला, कोमल माईवपणाश्री युक्त श्रयेला, मत्सरविनाना, नश्क, विनीत, स्वढंप लालचवाला, पास परिग्रह नो संचय नही राखनारा, रौपणाविनाना, शस्त्र लखा तथा खेतीना व्यापारश्री रहित श्रयेला, चार शाखावाला वृक्षमध्य रहेनारा, मनोवांवित लोगो नोगवनारा, घरजेवा आकारवालां वृदोनी अंदर करलुंब निवासस्थान जेनए एवा FUNER For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल म ॥५ ॥ 3kamaksEFERENEUEENAMEakash पुढची पुप्फफलाहारा तेणं मणुयगणा पत्रना, पासीय समणानमो पूच्विं मणुयाणं उधिदे अर्थः रणे पन्नने, तं जहा-बजरिमहनारायसंघयण परिसहनामयमंघयणे २ नारायसंघयणे अनागयमंघयणे कीलियासंघयणे ५ बमंघयणे ६. संपइ खलु पानसो मणुयाणं डेक्छे संघयणे वट्ट. आलिय आनमो! पूविं मणुयागं अने पृथ्वीपर ( नगतां ) पुष्प फलोनो आदार करनारा, एवा ते मनुष्योना समूहो कहेला E. वली दे आयुष्मन माधु! ते पूर्वना मनुष्योना प्रकारनां संघयणो एटले शरीरना बां. | धा कहेला , ते नीचेप्रमाणे-बजरुषजनाराच संघयण १ झपन्ननाराचसंघयण २ नाराच- ५२॥ | संघयण । अईनाराचमंघयण ४ कीलिकासंघयण ५ अने वसंघयण इ. बली हे आयुष्मन ! हालना समयमा माणसोनुं व संघयण वर्ने . नली हे आयु. 44F19641 For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 1.1.364 तंहुल उधिहा संगणा पन्नना, तं जहा-समचतरंसे १ निग्गोहे साये । बामणे ४ खुऊ ५ हुंडि- अप्रैः य. संप खलु पानसो मणुयाणं हुंडे संगणे वट्ट.(गाथा) संघयणं संगणं । नन्वनं आनयं ॥॥ चमणुयाणं ॥ अणुसमयं परिहाया । नमप्पिणीकासदोसणं ॥१॥ कोहमयमायलोना नुसनं बढ़ए य मणप्राणं ॥ कूडतुलकूडमाणा। ते तणुमाणेण सति ॥॥ विसमा मन ! पूर्वनां मनुष्योनां व संस्थानो कहेला , ते नीचेप्रमाणे-समचतुरस्र १ न्यग्रोध २ मादि ३ वामन ४ कुन ५ तथा हुंड ६ संस्थान. बली हे आयुष्मन् ! हमणाना काळमां । मनुष्योने (तेमानु) हुंडसंस्थान व बे. मागसोनां संघयण, संस्थान, नंचाइ तथा आयुE | समये समय अवसर्पिणीकासना दोषवडे करीने नब नवां अतां जाय बे. ॥१॥ वली म. नुष्योने प्रायें करीने कोध मान माया तथा लोजनी वृद्धिाय , तेमज कूडां तोलां तथा SHEESEInstIES 6 86 9637 For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ ८४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अऊ तुलान । वितमाणि य जलवएसु मालालि ॥ विसमा रायकुलाई । जेल न विसमाई वासाई ॥ ३ ॥ विसमेसु य वासु । हुति असाराई नुसदिबलाई || सहिदुब्बलेण य | प्रान परिहायs नराणं || ४ || कूड मापां पण वधे, एवी रीते शरीरना प्रमाणनीसाथे उत्तम पदार्थों घटे बे, तथा हीन पदार्थों वधे बे ॥ ७ ॥ श्र काळमां देशनीअंदर तोलां तथा मापां विषम श्रयेलां बे, तम राजकुलो पण विषम एटले जुलम करनारां ग्रयां डे, अने तेटलामाटे ( दुनियामां ) रहेवानुं पण विषम थइ परुधुं बे ॥ ३ ॥ ( एवीरीते ) दुनियामां रहेवानुं विषम ध इ पड्याधी औषधिनी ( अनाज आदिकोनी ) उत्पत्ति पण असार थर पडी बे, अने तेना सारणाथी माणसोनुं आयु नहुं श्रयुं बे ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only अर्थः एस Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल एवं परिहायमाणे । लोए चंदुव कालपरकंमि ॥ जे धम्मिया मणुस्ता । जीवसु जी- अर्थ: | वियं तेसिं ॥ ५ ॥ पानसो! से जहानामए के पुरिसे ह्राए कयबलीकम्मे, कयकोनयम॥ ५५0 गलपायच्चिने, सिरसि हाए, कंठमालकडे, प्राविमणिसुबन्ने, अहयसुमहग्यवचपरिहिए, चं एवी रीते कृष्णपक्षमां चंनीठे (नत्तम वस्तुननी ) हानि होते ते जे माणसो धर्मनीअंदर सावधान रहे , तेननुज जीवन सफल . ॥ ५ ॥ हे आयुष्मन् ! ते यथार्थ नामवाळा केटलाक पुरुषो के करेलुं ने स्नान जेनए एवा, करेल ले गृहचैत्यनी पूजाआदिक बलिकर्म जेनए एवा, करेल रक्षाबंधनादिक कौतुक, दधिदूर्वादिमंगल, तथा कुस्वप्ना-nu || दिकमाटे प्रायश्चिन जेनए एवा, मस्तकपर स्नान करेला, कंठमां पेहेरेली में माला जेनए एवा, बांधेल ले मणिसुवर्णना आनूषणो जेनए एवा, नवां तथा मोघां पहेरेख ने वस्त्रो जे FfacFUUUrOffrUFAE3f3E BENIFIENFIEAFF" For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तंडुल दलो किस्म गायसरीरे, सरस सुरनिगंधगोसीस चंदलालितगने, सुइमालावत्रगविलेवले, कप्पियहारदार तिसरयपालंबलंबमालकडि सुत्तय सुकयसोदे, पिएड़गेविअंगुलि जगल लियकया॥ ५६ ॥ जरणे, नाणामलिका गरयल कडग तुमि यजियनूए, अहियरुवसस्सिरीए, कुंडलुको त्रिया नए एवा, चंदनग्री लिप्त करेल वे शरीर जेनए एवा, रसयुक्त सुगंधि गोशीर्ष चंदनी प्रतित करेल वे गात्री जेननां एवा, पवित्र मालावाळा तथा श्रत्तर आदिकना विलेपन वाळा, पेदेरेला एवा दार प्रहार सवाळो हार झुलतां एवां झुंबणा श्रने कंदोराश्री करेल बे जा जेनए एवा, पेहेरेला एवा कंठा तथा वीटीनथी मनोहर करेल वे आनूपलो जेनए एवा नाना प्रकारां मणि सुवर्ण तथा रत्नानां कडां ने बाजुबंधोथी स्तंजित बयेल बे भुजान जेनी एवा, अधिक रूपश्री शोभायुक्त बयेला, कुंम्लोषी तेजस्वी प्रयेल वे मुख जे For Private and Personal Use Only अर्थः ।। ५६ । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir U3॥ तंडुलणे, मनुडदिनसिरए, हारुडयसुकयरश्यवछे, पालंवपखंबमाणसुकयपडिननरिक, मुहियापि-1 अः B गवंगुलिए, नाणामणिकणगरयणविमलमहरिहनिमणोचियमिसिमिसितविरश्यसुसिलिदिसिमाविश्वीरवलये, किं बहुणा? नना एवा, मुकुटथो कांतियुक्त मस्तकवाला, सारीरीते गोठवेला हारोनी चाश्श्री शृंगारित अवेल ने वक्षःस्थलो जेनां एवा, झुंबणानीपेठे सरकतुं अने सारीरीते गोठवीने धारण करेलले उत्तरासंग जेनए एवा वीटीवमे करीने पीळाशवाली देखाती अांगली जेन. नी एवा. नाना प्रकारना मणि सुवर्ण तथा रखोनां (बनावला) निर्मल महामख्यवाळां, निपुण कारिंगरोए बनावेलां, चकचकाट करतां, ( हाथमा) बरोबर बेसतां पाय तेवीरीते । || रचेला तथा नुत्तम प्रकारनां पहेरेलां ने वीरवलयो जेनए एवा, वधारे शुं वर्णन करीये ? -HANSatarBHEESEksatsekata E-EFIFSF10694141446189FE496 ॥ For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie तंडुल अर्थः ॥५ ॥ FUTURIENEURSESED क प्परुस्केत्रिय प्रलंकियविनूसिए सूश्य पयए नविना अम्मापियरो अन्निवंद. तएणं तं पुरिमं अम्मापियरो एवं वझा जीवे पुत्ता वासनयंति, तंपियाई प्रानयं तम्म नो बहूयं । कल्पवृकनीपेठे अलंकृत तथा वितषित प्रयाका पवित्र अन नद्योगी घइने ( पो ) पोताना मातापिताने नमो. ( पतिता गुरवस्त्यांग्या। माता नैव कदाचन ।। गर्नधार पोपाभ्यां । येन माता गरीयमी ॥१॥ ते वखते मातापिता से पुरुषप्रते (पुत्रप्रते ) एम कदे ने के, हे पुत्र! तुं एकमो वर्षोंसुधि जीवजे. ( हवे गौतमस्वामी नगवानने पु | के हे नगवन् ! तेटलाज वर्जेसुधि जीववा- केम कहे ! त्यारे नगवान कहे जे के दे गौत- E म! (आपंचमकाळमां ) मनुष्यनुं लेटलुंज आयु होयठे तेश्री वधारे होतुं नश्री. अने एवीरीते सोवर्षोसुधि जीवतोश्रको ते वीस जुगोसुधि जीवे , वीस जुगोसुघि जीवतोश्रको ते ..."FSHESESSIFIE" n For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandir तडुल अर्थः TEHPUR नव. कम्हा वाससयं जीवतो वीसं जुगाई जीवेs, वीसं जुगाई जीवंतो दोश्रयणसयाई जीवेइ, दोश्रयणमयाई जीवतो बननसयाई जीवेश, उननमयाई जीवतो बारसमाससयाई जीवेइ, बारसमाससयाई जीवतो चनही परकमयाई जीवेश, चनवासं परकमयाई जीवंतो बत्तीसं राइंदियसहस्साई जीवे, बत्तीसं सदियसहस्साई जीवतो दसप्रसीया मुहुनसयबसो अयनोसुधि जीवे , बसो अयनोसुधि जीवतोयको ते बसो शतुनसुधि जीवे . सो झतुनसुधि जीवतोयको ते बारसो मासोसुधि जीवे , बारतो मासोसुधि जीवतोयको ते चोवोससो पदोसुधि जीवे डे, चोवीससो पदोसुधि जीवतोश्रको ते त्रीसहजार अहोरात्रिसु| धि जीवे बे, बनीसहजार अहोरात्रिसुधि जीवतोयको ते दशलाख एंसीहजार मुदूनोंसुधि | जीवे , दशलाख ऐसीहजार मुत्तोंसुधि जोक्तोश्रको ते चारसो सात क्रोड अमतालीस FREEHESHUH3.99FE. 20393E muy For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श तंदुख ॥ BERakesekastastas9E%B101 सहस्साई जीवेश, दसप्रसीया मुहत्तसयसहस्साई जीवता चत्वारि नसासकोमिसए सनयकोडीन अडयालीसं च सयसदस्लाइं चत्तालीसं च नसाससहस्साइंजीवेश, चनारि नसासकोडिसए सनय कोडो अमयालीसं च सहस्साई चनालीसं च नसाम सहस्साई जीवं. | तो अश्तेवीस तंडुलबादे भुंजइ. कहमानसो अश्तेवीसं तमुलबाहे भुंजइ ? गोयमा! दुब्बE लाख अने चालीसहजार श्वासोश्वाससुधि जीवे ठे, (अने एवीरीत्ते ) ते चारसो सात कोड प्रमताली लाख अने चाळीसहजार श्वासोश्वाससुधि जीवतोधको साडीबावीस बाहाजे| टला चावल खाय बे. (हवे गौतमस्वामी नगवानने पूजे के ) हे आयुष्मन जगवन ! 10 ।। Hत साडीबावीस बादाजेटला चावल केवीरीते खाय ? (अर्थात् ते वादानुं मान केटलु होय ? तथा शीरीते ते खाय ? त्यारे नगवान कहे जे के ) हे गौतम! धुर्बल स्त्रीए | HINIFIER...RAFSEHERE. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल० ।। ६२ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लीए किया, बलियाए बहियाएं, खयरमुसलपच्चाहयाणं ववगयतुलक शियारा अखंडि या प्रकुडिया फलगसरिलयाएं, इकिक्कत्री याणं, श्रतेरसवलियाणं पडणं, सेत्रियां पमागढ, को सायंपो, सहसाहस्तिन मागदो पक्षो विसादस्सीएवं कबले( धीमे धीमे ) खांमेला, बलवाली स्त्रीए बडेला, खेरना मुशलश्री बडेला, गयलां वे फोतरांजनांकलिन जेमांश्री एवा, श्रखंम, नही फाटेला, स्फटिकसरखा निर्मल, एकेक बी जुदा जुदां थयेलां, एवा साडावार वलीना प्रमाणवाला चावलोनो एक प्रस्थ ग्राय, ते प्रस्थनुं प्रमाण मगधदेश संबंधि जाणवुः प्रस्थ वे प्रकारना वे एक कल्लप्रस्थ अने बीजो सायप्रस्थ. चोवजार (कलोनो) एक मगधदेश संबंधि प्रस्थ थाय, अने एवा एक प्रस्थमांथी बेहजार कोलीया प्राय. तेमाना वत्रीस कोलियानुनो पुरुषनो आहार होय बे, अहावीस को For Private and Personal Use Only अर्थः ।। ६१ ।। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंदुल ॥ ६२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . बत्तीसं कवला पुरिसस्स आहारो, अट्ठावीसं इन्डियाए, चनवीसं नपुंसगस्स, एवमेव सो एयाए गलाए दोश्रसन पसइ, दोपसइन सेइयां होइ, चनारि सेइया कुमन, चनारि कुडया पचो, चत्तारि पश्चा श्राढगं, सठ्ठीए ग्राढगाणं जहन्नए कुंने, असीर प्राढगाणं मनिमे कुंजे, आढगलयं नकोस कुंजे, श्रदेव आढगसयाणि बाढा. एएवं बाइप्पमाणं लीया स्त्रीनो आहार होय वे, तथा चोवीस कोलीया नपुंसकनो आहार होय बे. एवीरीते हे आयुष्मन् ! प्रमुजब गणत्रोथी वे हथेलीनी पसली ग्रॉय, बे पललीजनी सेतिका धाय, चार सेतिकानो एक कुडवक बाय चार कुडवकोनो एक प्रस्थ थाय, चार प्रस्थोनो एक आढक ग्राय, साठ आठकोनो एक जघन्य कुंज थाय, ऐसी श्राढकोनो एक मध्यम कुंज श्राय, अने एकलो आटकोनो एक उत्कुष्टो कुंज श्राय, आउसो प्राढकोनी एक बादा श्राय, For Private and Personal Use Only अर्थः ।। ६२ ।। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडल ESENIWFIRUntaNEHESEDESERELEMENTS B अाइतेवीस तंदुसबाहे भुंजर, तं गणियनिदिहा-चत्तारि य कोमीसया। सठिं चेवय हवंति । अयः कोडीन॥ असीइंच तंडुलसहस्सा-णि दवंतीतिपरकायं ॥१॥ ते एवं अइतेवीसं तंडुलबादे भुंजतो अछे मुग्गकुंने भुंज, अब मुग्गकुंजे मुंजंतो चनवीसं नेहाढमसयाई उजश, चनवीस नेदाढगसयालुतो उनीसं लवणपलसहएवी रोतना वाहाना प्रमाणवाली साडीबावीस बादाजेटला चावलो एक मनुष्य तेनी जींद. गीमां खाय . तेनी गात्री आवीरीते कहेली . चारसे साठ कोड अने एंसीहजार जेटली संख्यावाळा ते चावलो श्राय, एम कां ॥१॥ एवी रोते ते साडीबाची बाहा जेटला चावल खातोयको साडापांच कुंनजेटला मग | जमे. साडापांच कंतजेटला मग जमतोयको ते चौवीससो माढकजेटलं घुत जमे, अने PatakakakakARNEYEJESHU093Ekata ॥U0 - For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तंदुस० PARINE स्सा नुंजा, उतीसं सबसपलसहस्लाई भुंजंतो ठप्पडयताडयतया नियसे दोमासिएणं परियट्टेणं वा, मासिएण वा परियट्टेणं बारसपडिताडगसयाई नियसे. एवमेव आनमो! वाससयानस्स सव्वं गणिय लियं मवियं नेहलवणनोयणायणंपि. एयं गणियप्पमाणं विदं चोवीसतो आढकोजेटलू घृत खातो को ते उत्रीसहजार पलोजेटलं मीठं (लुण ) खा. Eय, त्रीसहजार पलोजेटलुं मीठं ( लुण ) खाता श्रको जो बब मासे बदलावे तो ते उ सो साडु (धोतीयां ) पेहे। ( फाडे ), अने जो एकेकमासें बदलावे तो बारसी साडुनने ते पेहेरी फाडे. एवारी हे आयुष्मन् ! एकसोवर्षोंना आयुवाळा मनुष्यना (नोगमा प्रावतुं) घृत, लुण नोजन तथा वस्त्र, ए सघळु गण्यु, ताब्युं तथा माप्यु. या गणितनुं प्रमाण महर्षिनए बे प्रकारचें ( व्यवहारश्री अने निश्चयश्री) कह्यु ब. हवे जेने ते (नोजनादिक) AFGEFURAFFIGUIDELF ETatkaFNERNA For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंदुल ॥ ६५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जलियं मदरिसीडिं, जस्सति तस्स गणिकर, जस्स नत्रि तस्स किं गलिइ ? ववदारम्लियं दिहं । सुमं निचयगयं मुणेयच ॥ जइ एयं नवि एयं । विसमा गलसा मुणेयश्वा || ॥ १ ॥ कालो परमनिरुद्धो । प्रविज्ञतं तु जाण समयं तु ॥ समया य प्रसंखिता । दवंति नस्सासनीसासे || २ || दस्म प्रणवगलस्स । निरुवहिस्स जंतुलो ॥ एगे कमा तेनुं तो गलीशकाय रे, परंतु जेने ते नथी, तेनुं शुं गलीशकाय ? एवीरीतें ( बादर एi) व्यवहारगति देखाडयुं, अने निश्वयनयनुं गणित तो सूक्ष्म जाणवु, माटे जो एम न दोय तो ते गणित विषम जाणवुं ॥ १ ॥ काल अत्यंत सूक्ष्म बे, हवे जे कालना बे जागो न बाके तेने समय जालवो, अने तेवा असंख्याता समयो एक श्वासोश्वासमां थाय बे. ॥ २ ॥ नंदमा रहेलो, निरोगी तथा चिंतादिक क्लेश विनानो, एवा प्रालीना एक श्वासो For Private and Personal Use Only 696969 3636361 अर्थ: ||| ६५ ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुल सनीसासे । एस पाणुनि वुच ॥३॥ सनपाणूमि से श्रोवे । सत्तयोवाणि से लवे ॥ ल. अर्थः IF वाणं सत्तहत्तरीए । एम मुहुने वियाहिये ॥४॥ ॥३॥ एगमगस्त णं मुहुनस्स केवइया नुस्तासा वियाहिया ? गोयमा! तिनि महस्सा स नय । सयाई तेवतरिं च क्रमासा ॥ एस मुदुनो जमिन । सोहि अणंतनाणीदि ॥ ५॥ | श्वासनो एक प्राण कदेवाय ॥ ३॥ एवां सात प्राणोनो एक स्तोक पाय डे मात स्तो. कोनो एक लव थाय ने अने सित्तोतेर लवोनो एक मुहूर्त कहेवाय ते ॥ ४ ॥ (हवे गौतमस्वामी नगवानने पूजे के हे लगवन !) एक मूहूर्जना केटला श्वासो-En६६ ॥ श्वास कह्या ? (त्यारे जगनान कहे ठे के ) गौतम! वहजार सातसोने नहुंतेर श्वासोश्वासोनो एक मुहूर्न सवें अनंतशानीनए कह्यो . ॥ ५ ॥बे नालिकानो (घडीनो) BEEF 36 193 ESET16 IET 1 .164. For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडल दोनालिया मुहुनो । सटिं पुण नालिया अहोरनो ॥ पनरद अहारना । परको पस्का अर्थः दुवे मासो ॥६॥ दाडिमपुप्फागारा । लोहमई नालिया न कायथा ॥ तीसे तखंमि विहं ।। ॥३३॥ हिप्पमाणं पुणो वुवं ॥ ७ ॥ उन्नवापुचवाला | तिवासजायाए मोतिहाणीए ॥ संवलिया । | नज्जुय । नायवं नालियाविदं ॥ ७ ॥ अहवा न पुचवाला । गसजायाए गयकरेणूए ॥ दो। एक मुहूर्त श्राय अने साठ घडाउनो एक राखिदिवस घाय, पनर रात्रिदिवसोनो एक पक्ष घाय, तथा बे पक्षोनो एक मास श्राय ॥ ६ ॥ दामिना फुलना आकारजेवी लोखंडनी घडी (नालिका) करवी, तथा तेने तलीए (एक) वि करवू, हवे ते वितुं प्रमाण कहुं ॥६॥ छु ॥ ७॥ गायना वय वर्षना वाबरडाना पुंउडांना उन्नु वाळोने एका करी सिलवणवाथी (तेनी जेटली जामा प्राय) तेटलुं ते. नालिकानुं नि जाणवू ॥॥ अथवा बे वर्षोनी । MERaaratnagar.nageme 1169999 For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir MaNESearstar utraEHEARSFE+ तंडुल पुचवालान जग्गा । नायचं नालियानि ॥ ॥ अर्थ: अहवा सुवनमासा । चत्तारि सुवटिया घणा सुई ॥ चनरंगुलप्पमाणा । काययं नालि॥६GUR याविहं॥१०॥ नदगस्त नालियाए । वंति दो ाढयान परिमाणं ॥ नदगं च नाणियवं हायणीना पुंबडानां वाळोमांना बे वाळोने एका वणवादी (ते जेनी अंदर प्रावी जाय बटुं) ते नासिकानुं वि जाणवू || ए॥ अथवा चारमासा जेटलां (एली रतिन्नार) सुवर्णनी चार पांगळजेवमी गोळाकार न| कोर सोश ( जेटली जामी प्राय ) अने ते जेमां प्रावी जाय तेवडं ते नालिकानीनीचे नि- JanaG॥ ६ करवं. ॥ १० ॥ ते नालिका (घडी) जे पाणीमा मूकवानी होय, ते पाणीनुं प्रमाण बे Bाढकोजेटलुं दोवू जोश्ये, हवे ते पाणी जेवा प्रकार- होय ते कहुं हुं ॥ ११ ॥ ते पाणी For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुल ॥६ ॥ 53..150149FUL2EFEF961.3693F., | जारितयं हे पुणो वुद्धं ॥ ११ ॥ उदगं खलु नायवं । कायई दूसपट्टपरिपूयं ।। मेदोदयं प- अर्यः | सन्नं । सारश्यं वा गिरिनन ॥१२॥बारस मासा संबचराना पस्कान ते नचनवीसं ॥ लिनिय य सठिसया। हवंति राईदियाणं च ॥१३॥ एगं च सयसहस्सं । तरस चेव नवे सहस्साई। एगं च सयं ननयं । हाति राईदिनसासा ॥१४॥ तेजोमसयसहस्सा। पंचादुप्पट्टाश्री गाळेलु करवू, तथा ते पाणी ननमप्रकारनुं बरसादनु, अथवा अरदस्तुसंबंधि पर्वतना करणानुं के नवीनू जाणवू ॥१२॥ (आ सावध गाथा मूलसूत्रधी मळती नश्री, केमके प्रभुनी वा. गी सावधनपदेशवाळी न होय, माटे ते प्रक्षिप्त मात्रा जणाय , तत्व बहुश्रुतयी जाणी. anा | खेवु.) एकवर्षना बार मास, चोवीस पद तथा सोने साठ रात्रिदिवसो पाय ॥१५॥ | एक रात्रि रात्रिदिवसमा एक लाख तेरहजार एकसोने नेषु श्वासोश्वास थाय डे ॥ १४ ॥ ARRIERREARRESENSE Oraft For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंदुल || 90 || www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवे सदस्लाई || सत्त य तया अणूला । दवंति मासेल कसासा ॥ १५ ॥ चत्तारिय कोडिन । समेव य हुति सयमदस्ताई || श्रडयालीससदस्सा । चचारि सया व वरिसेणं ॥ ॥ १६ ॥ चत्तारि य कोसिया । सत्त य कोडीन दति श्रवरान || अडयालसय सदस्सा | चनालीसं सदस्साई ॥ १७ ॥ वाससयानस्तेए । नस्ताया इनिया मुलेयवा । पिवद श्रावस्त खयं । श्रहो निसं किएक मासमां तेंत्रीस लाख पचाणु हजार अने सातसो संपूर्ण श्वासोश्वास श्राय वे ||१५|| चार क्रोड सात लाख अडतालीसहजार अने चारसो एकवर्षना श्वासोश्वास बाय ॥ १६ ॥ ( तथा एकसो वर्षोना ) चारसो सात क्रोम तथा उपर अडतालीस लाख अने चाळीसह जार श्वासोश्वास श्राय ॥ १७ ॥ For Private and Personal Use Only अर्थः ||| ७० || Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल प्रमाणस्स ॥ १७ ॥ राइदिएण तीसं तु । मुदुनाणं नवसया न मासेणं ॥ हायंति पमनाणं अर्थः । न य णं अबुहा वियाति ॥ १५॥तन सहस्से सगले । उच्चसए ननवरे हर आनं॥ ॥ 1. देमंते गिलासु य । वासासु य होश नायवं ॥ २० ॥ वातसयं परमानें । इनो पन्नास हर ___एवी रीते (नपर जणाव्यामुजब ) एटला एकसो वर्षना श्रायुवाळाना श्वासोश्वास जाणवा, माटे एवीरी ते रातदिवस कय पामता आयुनो विनाश हे जव्यो! तमो जुन ? ॥ ॥१०॥ प्रमादी माणसोना एकरात्रिदिवसना त्रीस मुहूनों, अने एक मासना नवसो मुहू. नों नकामा जाय , परंतु (ते बाबतने ) ते अज्ञानीन जाणता नथी॥ १५ ॥ ( जींदगी-En ना) प्रणहजार शकलो तथा हेमंत ग्रोष्म अने वर्षा ( तथा नपलकणयी शिशिर वसंत 8 अन शरद ) मळी उसो शतुन आयुने हरेले एमजाणवू. ॥२०॥ एकसो वर्षोन (श्रा कालमा) | AMELFARREARNERBERNETELEBRIELD BENEFastSIDEBEEHAFIR For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संहल निहाए । नो वीस हाय । बालने बुलावे य ॥ २१ ॥ | अर्थः सीनन्दपंधगमणे । खुदा पिवासा जयं च सोगा य ॥ नाणाविहा य रोगा। हति ॥७२॥ तीसाई पञ्च ॥ १२ ॥ एवं पंचासी । ना पन्नारसमेव जीवंति ॥ जे कुंति वाससयया ।। नत्कृष्टं आयु , तेमांधी पचास वर्षों तो निनावमां व्यतीत थाय , अन बाकीना पचासमांधी दश बालपणाना तथा दश बूढापणाना मळी वीस वर्षों निरर्थक जाय . ॥१॥ हवे बाकी रहेला त्रीस वर्षामांश्री अरधां तो ठंडी, गरमी मुसाफरी, क्षुधा, तृपा, न. El य शोक तथा नानाप्रकारना रोगामां व्यतीत घायले ॥ १॥ एवीरीते जेनन ए कसो वर्षोर्नु प्रायु होय तेना पच्यासी वर्षों तो नष्ट श्रयां, बाकी पंदर वर्षोंज खरेखर जीवितनां रह्यां, परंतु ते एकमो वर्षोंसुधि जीववान परा (पा काळमां ) प्रायें सुलन नश्री. ) Sitamatkakakakakaka396931 山中山中中中中中中中中中中中中中中中 । For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ १३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न व सुलहा वासस्यजीवी || २३ || एवं निस्सारे मणुसनले । जीविए अ विहति ॥ न करे चरणधम्मं । पन्ना पच्चाणुतप्पिहृदि ॥ २४ ॥ घुमि सयं मोहे । जिलेहिं वरधम्मतिमग्गस्स || अत्ताच न याराह । जायाए कम्मभूमीए || २५ || नइवेगसमं चवलं । जीवियं जुबां च कुसुमसमं ॥ सुखं च जम्मनियतं । तिन्निवि तुरमाणाभुजाई || २६ || || २३ || एवीरी असार मनुष्यपणुं होते बते, तथा श्रायु ( कले क्षणे ) विनष्ट होते बते व्य! जो तुं चारित्रधर्म करो नही तो पढी पश्चाताप पामीश ॥ २४ ॥ मदा सम एवा जिनेश्वरोए पोते पण मोहने जीतीने घर्मतीर्थनो मार्ग स्वीकार्यों वे, तो हे नव्य! तुं आ कर्मभूमिमां उत्पन्न थइने पोताना श्रात्मानी पण सारसंजाळ करतो नथी । ॥ २५ ॥ श्रा जींदगी नदीना वेगसरखी चपल बे, तथा रौवनपणुं पुष्पनीपेठे (विनश्वर बे) For Private and Personal Use Only वर्थः ।।। ७३ ।। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तडुल अर्थ 23.39E9 ॥ ४॥ एवं खु जरामरणं । परिकवा तम्गुरं च मियजूई ॥ नयणं पिञ्चदमिच । संमूढा मोहजाले ॥ २७॥ पानसो! जंपि इमं सरीरं ठं कंतं पियं मणुनं मणानिगमं धिङ वेयासियं समयं बहुमय अणुमयं नंडकरंडमसमा रयणकरंडनविव सुसंगोवियं चेलपडोविव सुसंपअने सुख पण एकांत नथी, ( माटे एवीरीते)ते त्रण शीघ्रपांग चाल्यां जाय ॥२६ ॥ एवीरीते जरा अने मरणरूपी (पाराधी) पासमां जेम दरिना टोळांन, तेम (मोहरूपी पाममां प्राणीने ) नाखे , परंतु मोहजालमा फसेला ते मूढ प्राणीन ते पाराधिने जोता नभी॥ ७॥ बळी हे आयुष्मन् ! जोके आ शरीर इष्ट मनोहर प्रिय मनोज्ञ मनने ansa खुशीकरनारूं धैर्य उपजावे तेवं विश्वासकरवालायक संमत बहुमत अनुमत मिलकतनी पेटीसरखु रत्नना करंडनीपेठे सारीरीते गोपवीराखवाजेवू वस्वनीपेठे ढांकीराखवाजे, तेल Enimarati 9FSEE For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथः तंडुल रिवुडं तिलपेलाविव सुसंगोवियं, माणं सीय मागं नन्दं मागं पिवासा माणं चोरा माणं वाला मागं दंता माणं मसगा माणं वाश्यपिनियसंनियसत्रिवाश्यविबिदा रोगायंका फुसं॥ 31 तिति कटु. एवं पियाई अधुवं अनिययं प्रसासयं चयनवचयं विइंसणधम्म पछावपुरा - बस्स विपचश्य एयस्तवियाई पानसो! प्राणुपयेणं अठारसपीठकरंडगांधीन, बारम.पं. ना कुंपानीपेठे साचवी राखवाजे , माटे आ शरीरने ठंडीना गरमीनो तृषानो चोरांना सोनो दशानो तथा मशकोनो नपश्च न थान, तेमज ते शरीरने वायुना पिनना श्लेष्मना तथा सत्रिपातपादिकना विविध रोगो पण स्पर्श न करो, एम करीने ते प्रियादिक वि. Ent! शेषणोथी जे तुं शरीरने चिंतवे , ते शरीर अस्थिर, अनित्य, अशाश्वतुं, सडनपानवालु, विनश्वरधर्मवाळु अने पेहेला तथा पडे पण अवश्य त्याग करबालायक . बळी हे आयु BFHESSES PRENEVERESENERFOLDENESH For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandie तंडुल 461815190984HERIFIE9699. 9 मा सुलीयाकरंडे, बप्पंसुलिएकडाहे, विहश्वियाकुछी, चनरंगलिया गीवा, चनपलिया जिप्रा, 5. पलियाणि अत्रीणि, चनप्पलकवालं सिरं, बत्नीसं दंता, सत्गुखिया जीहा, अपलयं हिययं, पणवीसपलं कालिज, दोअंता पंचवामा पन्नता, तं जहा-यूवंतेयं तणुयतेय, तवणं प्मन् ! आ शरीरमा अनुक्रमे अढार पृष्ट करमकनो संधिन, बार पासळीननो करंड ने, सेमा उपांसळी एकेक पडखे .वैतजेवमी तिबेचार आंगळनी गरदन बे, चार पलजेटली जीन व पलनी आंखोने, चारपलना कपाळवाळं मस्तक, बत्रीस दांतो बे, सात आंगळनी जीन्न , साडात्रण पलनु हृदय , पचीसबलन काळजु , (वळी आ शरीरमां ) बे अंतो तथा पांच वानो कहेला ले, ते नीचेप्रमाणे-एक स्थूलअंत अने बी. E जो सूक्ष्म अंत, तेमा जे स्थूल अंत ने तेवडे करीने बडी नीत परिणमे , तया जे सूक्ष्म : ६ ॥ 9 For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंदुल ॥ 99 ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे से धूलते तेलं उच्चारे परिणम, तनु णं जे से तयं ते तेलं पासवलेणं परिणमइ. दो पासा पत्रत्ता, तं जहा - वामपासे दाहिलपासे, तां जे से बामपासे से सुदपरिणामे, तसं जे दाहिले पासे से दुइपरिणामे नसो ! इमं म सरीरए सहिसंघितयं, सत्तुत्तरि मम्मलयं, तिन्नि श्रद्विदामसयाई, नवनाडियलयाई, सत्तसिरामयाई, पंचपेलीसवाई, नव व बेवडे करीने मूत्र परिणमे बे. वे पासा कडेला बे, ते आप्रमाणे – एक डाबुं पासुं तथा बीजुं जमणुंपासुं, तेमां जे डाबुं पडखुं वे ते सुखना परिणामवाळु बे, तथा तेमां जे जमणुं पडखुं बे ते दुःखना परिणामवालुं बे. वळी हे प्रायुष्मन् आ शरीरमां एकसोसाव सांधा बे, एकसो सीतोतेर मर्मस्थानो बे, त्रणसो दाडमाळा बे नवसो नाडीज वे, सातसो नसो, पांचो मांसपेसीन बे, नव घमलीन ( मोटी नामकीन ) बे मस्तकना तथा For Private and Personal Use Only 0: 199 11 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल मणीन, नवननई च रोमकूवलयसहस्साई विणा केससमंसुणा, सह केससमंसुणा अछा- अग्रः रोमकूवकोमीन. ॥ ७ ॥ आनसो! इमंमि सरीरए साहसिगसय नानिप्पन्नवाणं नमामिणीयं सिरमुवागयाणं | जा न रसहरणीनान वुच, जाणंसि निरुवघाएणं चरूखुसोयघाणजीहाबलं च नवइ, जादाढीमूना केशविना नवाणुलाख रोमकूपो , अने मस्तकना तथा दाढीमूना केशोसहित साडावण क्रोम रोमकूपो रे. वळी हे प्रायुष्मन् ! या शारीरमा एकसोसाउनामीन नान्निथी नत्पन्न प्रश्ने नंचे डेक EmsGH मस्तकसुधि गइने, के जे नाडीनने रसहरनारी कडेवामां आवे , तथा जेनने (कंपEM) नपघात न वाथी चक्षु, कर्ण, नाशिका तथा जिह्वानुं बल (स्थिर) रहे थे, तश्रा जे. -FFFFFFFFar. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अर्थः तंडुल एमि नवघाएणं चख्खसोयघाणजीदाबलं च नवदम्मा. आनसा! इमंमि सरीरए सहिति रासयं नानिप्पन्नवाणं अहोगामिणीणं पायतलमुवामयागं. जामि निरुवधाएणं जंघाबलं | unaनवर, ताणं चेव सावधाएणं सीसवेयणा असीसवेयणा मयसूले अविणी अंधितांति. श्रा नसो! इममि सरीरए सठिसिरामयं नानिप्पन्नवाणं तिरियगामिणीणं हततमुवागयाणं, नने नपघात वाथी चक्षु, कर्ण, नाशिका तथा जीह्वानुं बळ हीन प्राय जे. वळी हे आयुष्मन् ! आ शरीरमा एकसोसाठ नामीन नान्निश्री नत्पत्र यश्ने नीचे बेक पगना तलीयांसुधि गइ . के जेनने ( कं पण ) जो उपघात न पाय तो तेश्री जंघानुं बल (स्थिर ) Ense|| रद , अने तेनने जोनपघात थाय तो मस्तकनी वेदना, आधासीसी, मस्तकमांशूल, तथा आंखे अंधापो पायजे. वळी हे आयुष्मन् ! आ शरीरमा एकसोसाउनाडी नानिधी नुत्पन्न EIGNENEURRESENTENSEENFIEHERE FFUSESESEFENFIEDESESESESIBEESE For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तडुल 1645 ॥10॥ 1093EDIESSESESias जाणंसि निरुवधाएणं बाहुबलं हवा, ताणं चेव से नवधाएणं पासवेयणा पुष्टिवेयणा कुचि- 1) अर्थ वयणा कुडिसूले दवइ. आनलो! इमस्स जंतूस्स सठिसिरासयं नातिप्पन्नवाणं अहोगामिणीयं गुदप्पविठाणं, जागंमि निरुवघाएणं मुत्नपुरिमवानकम्मं पवना, ताणं चेव नवघाएणं मृत्तपरिसवाननिप्रश्ने ती# क हलीसुधि गयली ब, के जेनने जो ( कई पण) उपघात न थाय तो ते. श्री बाहुनुं बळ (स्थिर ) रहे ठ, अने तेनने जो नपघात थाय तो पडखांनी वेदना, पृष्टनागनी वेदना, कुदिनी वेदना अने कुक्षिमां शूल नत्पन्न श्राय उ. 1001 वळी हे आयुष्मन् ! श्रा प्राणीनी एकसोसाठ नामी नान्निश्री नत्पन्न अश, नीचे जगुदानसुधि दाखल अश्डे, के जेनने जो (कं पण ) नपघात न पाय तो तेन मत्र त For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल अर्थ: ॥ १॥ 19HESEREFLUEUEUEarat रोदेणं अग्तिान खुननि, पंडुरोगो नवइ, पानसो! इमस्त जंतूम्स पणवीसं सिरान सिंज- धारिणीन, पणवीम सिगन विनधारिणीन, दमसिरान सुक्कधारिणीन; सत्तमिरासयाई पुरिसस्स, तीसूणाई चियाए, बीसूणाई पंडगस्त. आनमो! मस्स जंतूस्त रुहिरस्त आढगं, या वडीनीतना वायकर्मने प्रवर्तावने, अन जो तेनने नपघात पाय तो मत्र तथा वझीनीतना वायुनो निरोध करे , अने तेयो अर्शना (हरसनो) व्याधि कोन पामे , तथा पां. हुरोग ( कमळो ) धाय डे, वळी दे आयुष्मन ! आ प्राणीने पचीस नामीन श्लेष्मने धरनारी, पचीस नामीन पिनने धरनारी, तथा दश नामी शुक्रने ( वीर्य ने) धरनारी . पुरुपने सातसो नाडी दोय , स्त्रीने तेश्री त्रीम नबी एटले बसो सीतेर नाडीच होय , त था नपुंसकने वीस गे एटले उसो एंसी नाडीन होय . वळी हे आयुष्मन् ! आ मनुष्य ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल० ॥२॥ वमाए अक्षाढगं, मत्थुलिंगस्स पछो, मुनस्प्त आढयं, पुरिसस्स पलो, पित्तस्स कुलवो, सिं- | अश्रः जस्म कुलवो, सुक्कस्स अकुलबो. जं जाहे दुठं नव तं ताइ अश्पमाणं नवर. पंच को| पुरिसे, उक्कोठा लिया, नवसोए पुरिसे, शक्कारसमोया इछिया, पंचपेमीसयाई पुरिसस्म | ना शरीरमा रुधिर एक आढक (आठशेर) होय , चरबी अरधो पाढक (चारशेर) होय , | नेगँ एकप्रस्थ (वैशेर) होय , मूत्र आढक (आठशेर) योय , विष्टा प्रस्थ (वेर) दोय बे,पित कुलव (अरधोशेर) होयडे श्लेष्म कुलव (अरघोशर) होय तथा शुक्र (वीय) अर्ध कुलव (पाशेर) होय. दवे ते धातुनमा जे जे धातु ज्यार ज्यार रोगवाळी यायचे, ते ते न्यारे त्यार अ- En धिक प्रमाणवाळी पाय . पुरुषने पांच कोठाहोय, स्त्रीने उ कोठा होय; पुरुषने नव हार होय, स्त्रीने अग्यार क्षार होय, पुरुषने पांचसो मांसपेसीन होय, स्त्रीने तेश्री त्रीस नबी एटले । MARRIER For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir # तंडुल तीसूणाईचीयाए, बीसूणाई पंडगस्स. अप्रिंतरं स कुशिमं । जो परियत्तोन बाहिरं कुला ॥ तं असुई दणं । सयावि जगणी गंग्झिा ॥१॥ माणुस्सयं सरीरं । पूश्यं मंससुक्कर| HEME हिरेणं । परिसंपवियं सोहा । बजेण य गंधमलेण ॥२॥ इमं चेव य सरीरं सीसघडी मेयमद्यमंसठियमलिंगमोनियतमयं चम्मकोसं नासिचारसो सित्तर मांसपेसी होय, तथा नपुंसकने वीस नगे एटले चारसो एंसी होय. हवे श्रा शरीरनी अंदर जे अशुचि पदार्थो नरेला , तेने नलटावीने जो बहार करवामां श्रावे, तो ते अशुचिने जोड्ने पोतानी माता पण गंग करे ॥१॥आ मनुष्यसंबंधि शरीर मांस वीर्य तथा रुधिरथी नरेलु , मात्र वस्तथी तथा सुगंधि पदार्थों अने पुष्पमालानश्री (शणगार्याधी)ते शोल्ने ॥२॥ RBELIEWARENEUR 所排开並非事事非非正查中上书4F44## ॥ G For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुस। यसिंघाणयचीमलालयं श्रमणुनगं सीसघडीसजियं गवंतिनयणं कन्नुहगंडतालुयप्रवालुया- अर्थः | खिन्नचिक्कणविलिविलयं दंतमलमलबीप्रदरिसणिज, अंसलग्गवाहुलयं, अंगुलीया 1GH गनहसंधिसंघायसंधीयमिणं, बहरसियामारनालबंधमिरारोगहारुबहधमणिसंधिनिपागड. नळी शरीर मस्तकरूपी घटिकावालं, चरबी मजा मांस हामकाजु तथा रुधि. रथी नरेला तुम्बालु, चमनी धमणजेवू, नामिकानो श्लेष्मरूप मेल तथा आंखोना मेलना घररूप, मनने न गमे तेवू, मस्तकरूपी घटिकाशी सङ श्रयेलु, गळती प्रांखोवालु, कान, होठ, लमणां तथा तालुमांधी करता मलीन तथा चीकणा मेलथी बलवलाट करतुं, दांत-En४ || ना मेलथी मलीन अने दुर्गनालायक के दर्शन जेनुं एवु, खानामां लटकाइ रदेल ने हाथ । जेमां एवं, प्रांगळी तश्रा अंगुगना नखना सांधानश्री श्रीगडागडकरेलांजेवू देखातुं, बहु ORNSESEGORIEOUr For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie तंडुल018 दरकपालं कस्कतिख्खुडं करककालयं दुरंतअछिधमणिसंगणसंधियं सब ममता परिम्स- || अर्थ: / वंतं च रोमकूदि सेयं असुई सन्नावन परम दुग्गंधिकालिायतविनारदियफोफसफी॥am फसपिसिहोदरं गुनकुणिमनवबिदु, प्रिविग्रिनंतहिययं रहिपित्तसिनमुनोसहायणं सबनम (दुर्गंधवाळा ) रसना घरसरखी नामीनना बंध तया अनेक नसा अन घणी धमणीनना सांधानश्री जमेला अने प्रगटरीते देखातां नदररूपी कमाडवाळु, अतिगंधवाळी कांखावालु, हाडकांधी नरेलु, महामलोन हाडकांनी नाडीनबाळां संस्थानाश्री स्थिर श्रयेलु, चारकोरेबी रोमकूपोमांधी करतो ते पसीनो जेमांधी एवं, स्वंजावधीज अशुचि तथा अत्यंत दुगंधळां काळजु अांतरां पित्तज्वर हृदयना फेंफसा तथा फेंफसीनधी ढकायेल नदर जेमां एवं, गुह्यस्थानादिक मदा गंदनीय नव विज्ञवालं, थरथर अतुं ले हृदयजेमां एवं, FHF9131 19F4FFENNEHasis ++++++HREFERENER94149490.9.. For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir . तंदुख० अर्थः ॥ ३॥ BRIDDHIRAINRIEDRITERSNESE" हायणं सबन धुरंतगुनारुजाणुजंघापायसंधायसंधियं असुश्कुणिमगंधि एवं चिंतिकामाणं बी. प्रदरिसणिऊं अधुवं अनीययं असासयं सडपडणविसणधम्मं पला व पुराय अवस्स चश्यवं निच्चियन सुझ जाणएणं आइनिहणं एरिमं सवमणुयाणं देई, एम परमो सप्रायो. पुगंधवाळां पिन श्लष्म तथा मूत्ररूप औषधोनां घरसरखं, सर्व औषधोनां घरसरखु, सर्वश्री महाकनिष्ट एवां गुदाधार तथा साश्रळ घुटण जंघा अने पगना सांधानश्री संधायेलु, अशु. चिनी बदबोवाळी गंधवाल, एकी रीत चिंतवातुं, बिन्नस देखातुं, अध्रुव अनित्य अशाश्वतुं समापडण तथा नाशरूप धर्मवालु, पेहेलां अश्रवा पाबळथी अवश्य तजवालायक, एवां ते शरीरने निश्चयश्री जाणवू के ते अंते नाडा अवानू . एवीरीते पर करखां वर्णनवारों सर्व माणसानं शरीर बे, एवो परमार्थश्री शरीरना स्वन्नाव जाणवो, FOLDEN99FINITED For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir - तंडुल अथः ॥ 198994taane941900JES सक्कमि सोणियमि य । संजून जगणीकुढिगप्रेमि ।। त चव अमीनरसं । नवमासे घु. हिनसतो ॥१॥ जोणीमुहनिफडिन। श्रगीरेण बहीन जान॥ पगअमिनमन। कह देहो धो सक्को ॥२॥ हा असुइसमुप्पनिय । निग्गया य तेरा चेव दारेणं ॥ स. ना मोहपसत्ता । रमति तब्बेव असुश्दामि ॥३॥ किह तावघरकुडीरी । कामहस्मेदि शुक्र (वीर्य) अने रुधिरमां मातानी कुक्षिनी अंदर नत्पन्न याने त्यां नवमासमुधि ते रह्योधको विष्टादिकना रसना आहारश्री पोषायो॥१॥पली योनिमुखी निकळीने माताना स्तनना दूध श्री वृद्धि पाम्यो, एवीरोते स्वनावधीज विष्टामय एवो पा देह केवीरीते घोर शकाय? ॥ ५ ॥ अरे ! अशुचिनी अंदर नत्पन्न प्रश्ने तेज अशुचि एवां योनिद्वारश्री नकळेला प्राणी तेज अशुचिश्री नरेला योनिद्वारनीअंदर रमे !॥॥ शरीर ता UttaSELatestEELESEDIES.Ita || For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुल० ॥ BHOOMIRRIERENEFIRMANG अपरितंतेहिं ।। वनिज असुइबिलं । जहणं तिसकन्जमढहिं ॥४. रागण न जाणंति । अग्रः वराया कलिमलस्त निझमणं ॥ ताणं परिणंदेते । फुलं निलुप्पलवणंव ॥५॥ कित्तियमिनो बन्ने । अमिनमायमि असिंघाए । रागी न हु कायवा । विरागमूले सरीरंमि ॥ ६ ॥ प उपजावनारी कंगाल झुपडीजेवु , उता तेमां देखें अशुचिनी खालसर (स्त्रोन ) जघनस्थल (योनि) विषयकार्यमा मूढ बनेला अने स्वतंत्र एवा हजारो कविनवडकरीने | ( अनेक शृंगारयुक्त उपमानपूर्वक ) वर्णवाय . ॥ ४ ॥ ते विचारान रागदशाना योगश्री महामेलनी खालसरखा (ते योनिझारने ) जाणीशकता नथी, अन तेथी विकस्वर श्रयेला EniG॥ कमलवनसरखी (नपमा आपी) तेनी तेन प्रशंसा कर वे ॥५॥ अमो तेमाटे केटलुक वर्णन करीये? ते विष्टामय तया हामकांना समूहसरखा अने वैराग्यना मूलरूप एवा ते श. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandie तंहुल० li Cru 1903EHist. किमिकुलसयसंकिम्मे । असुश्मयप्रसासयमसारे॥ सेयमलपुच्चडमि। निश्चयं बच्चद सरीरे॥७॥ अर्थाः दंतमलकनगृहग-संघाणमले य लालमबहुले ॥ एारिसे बीन। दुगंणिज्जंमि को रागो ॥ ७॥ को सडणपडणविकरण-विमणचयणमरणधम्ममि ॥ देइंमि अहिलासो रीरनीअंदर राग करवो नही ।।६॥ मेंकमो कृमिनना समूहश्रीजरेला अशुचिवाळा अशाश्वता तथा प्रसार तथा पसीनाना मेलश्री निंदनिक एवां आ शरीरने विषे नित्यपणानो त्याग कगे? ॥ ७॥ दांतना कानना तथा नाशिकाना मेलवाळा अन घणी एवी लाळोना मेलवाळा एवा Enten बीनस तथा गंउवालायक आ शारीरमा राग शामाटे करवो जोश्ये?॥6॥ सडण प| मप विकार विनाश त्याग तथा मरणना स्वजाववाळा अने सडेला कढणना काष्टसरखां : IFRSTITU9E9.." For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुःख FUELEASURE" || कुहियकढणकठनूमि ॥ ॥ को कागसुगनस्के । किमिकुलनने य वाहिनने व ॥ अग्रः एयारिम सरीरे । सुसाबनस्कंमि को रागो॥१०॥ असुर अमिनमुनं । कुणिमकलेवरकुड परिसवंतं ॥ आगंतुयतरवियं । नवविदमसामयं जाण ॥१॥ पिजमि महंमतिलयं । म. एवां प्रा शरीरमा अनिताप शामाट करवो जोइय?॥॥ कोहेलं तथा कागमा अन शियाळने नदणकरबालायक, कृमिनना ममूद श्री नरेलु, व्याधिनश्री नरेलु, अन कुतरांनने नक्षणकरवालायक एनां पा शरीरनेविषे जे राग करबो ते शाकामनो ठे? ||१०|| अशुचि एवां मलमूत्रवाळु, सडेलां कलेवररूपी कूटमांश्री (अशुचि पदार्थों ने) करतुं, तया anto फक्त बाहारना आकारमात्रश्री मारी रीते गोठवेलुं अन ना शेिवाळु एवं प्रा शरीर ( B तारे) असार जाणवू ॥११॥ युवान स्त्रीनना तिलकवाळां तया (तांबूलादिकना) रंगवा 41499EHENFIE949441 fF5311, For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल ॥ १॥ | विमेसं गएण अहरणं ॥सकडवं सवियारं । तरख जुबणजाण ॥१२॥ पिसि बाहि. रमलु | न पिसि न नरं कलिमलस्स ॥ मोदेण नञ्चयंती। मीसघडिकीजय पियमि ॥१॥ सीसघडीनिग्गालं । जं निंदाल पुगंसि जंचतं चेव गगरनो। मढो अश्मविन पियसि ।१४॥ |ळा होउनी विशेषप्रकार शोजता एव मुखने, तथा कटाकयुक्त विकारवाळी अन चपळ (वी प्रांखोने तुं जुए में ॥ १२ ॥ वळी तुं बहारना ( कोमळ ) अंग प्रदेशोने जुए बे, परंतु || ते क्लिष्ट कचरानाममूहरूप (नकरडाजवां दारीरने ) जोती नश्री, तथा मोहवर नचावातो थको मस्तकरूपी हांडलीमांधी (निकळती निंदनीक ) कांजीने (अधरामृतने ) पीये ||१|| ॥१३॥ ते मस्तकरूपी हांझलीनो मेल के जेने (तुं पोतेज ) निंदे ने तथा गंडे ठे, ते ज मेलने तुं मूढ अतिमूर्डित श्रयोगको रागमा आसक्त पर पीये . ॥ १५ ॥ FAF149HI13091993636936 For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandie तंडुस पूर य सीसकवालं । पूर य नासं च पूर देहं च ॥ पूर य विविध ! पूय चम्मे- अर्थ E. I य पिण॥ १५ ॥ अंजणगुणसुविसुई। न्हाणुवट्टणगुणेहिं सुकुमालं । पुप्फमिसीय॥एशा केसं । जण बालस्त तं रागं ॥ १ ॥ सीसपुरनति य । पुप्फाण नणंति मंदवित्राणा (आ शरीरमा रहेला) मस्तक, कपाळ, नाशिका, समस्त अंग तथा विज्ञनां फांकां: ए सघलु उगधयुक्त , तेम जे चांबडीश्री आ शरीर ढंकायेलुंगे, ते चांबळी पण महामैधयुक . ॥१५॥ काजळना (श्याम) गुणोश्री शोनावाला, तथा स्नानविलेपनना गु. पोथी सुकुमाल अयेला अने पुष्पोथी मिश्रित श्रयेला एटले शलगारला एवा (युवान स्त्री-Ent२॥ ना) केशो अज्ञानीने राग नपजाव ने ॥१६॥ पुष्पायो (नरला मुकुटने ) जे मूढ अज्ञानीन शीर्षपूरकना (मुकुटना) नामश्री कहे , परंतु ते ( कुदरती) पुष्पो तथा ISRAELESENFIE For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ ३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पुप्फाई चियताई । सीसस्स पूरयं सुराह ॥ १७ ॥ मेनु सायरसिया । खेले सिंघाणए य छनए य ॥ ग्रह सीसपूरन ने । नियमसरीरंमि साहिलो ॥ १० ॥ साकिर डुप्पडि पूरा | वच्चाकुरुरु पूयनवविद्या || लक्कडवे द्वियगंधविलित्ता । बालजगे श्रमुनिगियो || मुकुट केवो बे ? ते तुं सांजल ? || १७ || मेद तथा चरबीनो रस बळखा तथा श्लेष्मरूपी ( पुष्पो ) ते मस्तकमां जरेलां वे अने एवीरीतनो ते पुष्पोथी नरेलो मुकुट तो ते तारां शरीरमां तारे स्वाधिनज रहेलो बे ॥ १७ ॥ ते विद्वानी कोठीसरखुं तथा दुर्गंधयुक्त नव बिशेवालुं श्रा शरीर खरेखर दुःखें ( श्राहारश्रादिकश्री ) पूरोशकाय तेवुं बे, तोपण काष्टसरखां (आभूषणोथी वीटेलां ) तथा सुगंधि पदार्थोथी लेषित करेल आ शरीरप्रते अत्यंत मूति श्रयेला लालचु एवा मूर्ख लोका ( मोद पामे वे ) ॥ १७ ॥ ( बळी हे जन्य ! ) जे For Private and Personal Use Only अर्यः ॥ ९३ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सहुल ॥ ए | 中中中中中山FF********* ॥१॥ ज पेमरागरनो । अवयासेकण गृढमिनालिं ॥ दंतमलचिक्कणंगं । सीमघडीकंजियंअर्थः पियसि ॥ २० ॥ दंतमुसले सुगरणगया । मसे य समयमियाणं च ॥ वालेसु य चमरी|| चम्मनदे दीबियाणं च ॥१॥श्यकाए य ह । चवणमहे निकालबीनले ॥ अतं प्रेमरोगमा आसक्त भइने कुत्सित स्थानने (मुखने ) प्रकाशीने दांतना मेलश्री चीकणा बयेला अंगने (स्वीना होग्ने जे चुंबे) ते (खरेखर ) मस्तकरूपी हांडलीमा (रहेली) कांजीने पीये ॥ २०॥ दाधीना दांतीरूपी मालोनं ग्रहण पायजे, मसला नया हरिणोनु मांस (उपयोगमां आवे ) चमरी गायना वालो (उपयोगी थाय ) तथा JI सिंहy ( दीपडा, ) चांबडं तथा नख काममां आवे ने (परंतु मनुष्यनुं कई पण अंग हैं. पयोगी नी)॥ २१॥ दुर्गंधवाळा, विनश्वर तना हमेशां बीजन्स एवा ते आ (स्त्रीना) DEHUEUEtertIFIFAGURGULE For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुल० अर्थः ॥ FakFUFFSENEFFARNEJFFER रेक सरसन्नावं । किमिसि गिझे तुमं मूढ ॥ २२ ॥ दंतात्रि अकरकरा । बालाविय व माणा बीनछ । चम्मंपि य बीनछ । नण किमसि तं गत रागं ॥ २३॥ सीने पिने मुने | गृहमि वसा वचकुंमीसु ॥ नासु किमचं तुह्म । असुमि विवहिन रागो। २४ ॥ शरीरमा तारा स्वनावना अतिशयपणाश्री हे मूढ ! तुं केम अयो छ? ॥ २२ ॥ तेना दांतो पण निरुपयोगीबे, तेम केगो पण वृति पामताथका नयानक रूप पकोडे, तेम | तेनुं चांबडं पण बीनन्स , तो तुं कहे के, तेवां (स्त्रीनां ) शरीरप्रते तुं रागने केम प्राप्त बयो छु? ॥ २३॥ श्लेष्म पित्त तथा मूत्रश्रीरला अने चरबी तथा विटादिकनी कुंमीसरखा अपवित्र एव ते स्वीना गुप्तस्थानप्रते (योनिप्रत ) शामाटे तारो राग वृति पाम्यो ? ॥२४॥ FAAHEBEEMBEBEERUTHREEREN For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल FUkata" ॥ ६॥ . seEURAURAEESHINHEMEDINHED जंपिडियासु नरू। पाठिया तष्ठिया कडिपिछी ॥ कडियाठिवेदिया। अहारसपिछिअट्ठीणं ॥ २५ । दो अविछियाई। सोलस गीडिया मुणेयवा ॥ पिठीपहिया वारस किल पंसुली हुँति ॥ २६ ॥ अष्ठियकडाणसिरहारू-बंधणमंसचम्मलेमि ॥ विठ्ठाकोठागारे । को वञ्चघरोवमे रागो ॥ ७॥ जद नाम वचकूवो। निचं निणिनियंति कायकीलीए । जे ( मांसना ) पिंडोमां सावळ रहला बे, तेपरज केमनो पाउळनो नाग रहेला , तथा ते केडना हाडकाने अढार पीना दामकांन वींटाइ रहेलां. ॥॥॥ अांखना बे हामका , तथा गरदनना शोळ हामका जाणवां, अने पिठमा रहेली बार पांचसळी . ॥ २६ ॥ एवी रीते हाडकाना मंमाणवाळा नाडी तथा नसोनां बंधनवाला अने मांस त. या चर्मना लपवाळां विटाना कोवारमरखां नया विष्टानाज घरसमान एवां प्रा शरीरने .. .4 4 ६ ॥ 6 For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandir अप्रैः ENGAGUEENET तंडुल: किमिएदि सुलसुलाय । सोएहिं पूईयं वह ॥ २८ ॥ नहीयनयणं खगमुद-बिगडिय विप्प- इनबाहुवलयं ।। अंतविकट्टियमालं । सीमघडीपागडियघोरं ॥ २॥ निणिनिशिनगंति सह। विसपियसुलसुलतमंसोडं ॥ मिसिमिसिमिसंतकिमियं । | विश्वे ते शुं राग घरवाजेवू .? ॥२१॥ जेम कोइ यंत्रवाळा कुन होय तेवीरीने या कायारूपी यंत्रमा रहेलो विष्टानो कुन इमेशां नडनबाट करतो तश्रा कृमिनी सुडसुडाट करतो प्रको गुदाधारथी ( विष्टारूपी) अशुचिन कदामे ले ॥ २० ॥ (हवे मृत्यु पामेला मनुष्यना शरीरनुं बीजल्स स्वरूप वर्ण वे ) खुली आंखोवाळु पखिनए (पोतान) ) चां- चोथी कातरीनाखेलं विखरायेला बाहुबलयवाटुं, कातरीनाखेली अांतरडांजनी माळावाळू, मायांनी तुंबडी खुल्जी वायी जयंकर लागतुं ॥ २० ॥ 4963969691699RRIER ए || For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल ॥ ए ALESEDRIFIROFIFIESEURUFFURIES विविधिविधिधियं च बीन॥३०॥ पागडियवासुलियं । विगरावं सुक्कसंधिसंधायं ॥ पडियं निवेयणयं । सरीरमेयारिसं जाण ॥३१॥ वच्चाइहि असुश्तरे । नवहिं सोएहि परिगितेहिं । आमगमल्लगरूवे । निवेयं वद सरीरे ॥ ३२ ॥ दो हवा दो पाया | सीसं नवं (पकिनना फाडवाश्री ) जण जरा शब्द करतुं, सडसमाट शब्दपूर्वक त्रुटता मांसबालु, कलबलाट करता कीडानवालुं, अने (ते पदिननी चांचोना ऊपाटाथ। ) थरथराट करतुंचकुं महा बोनस लागे ॥३०॥ वळी खस्त्री पमीगयल ने पासळी जेमांधी एq महा नयानक, सुकाइगयेल संधिनना सांधावालुं, एवीरीतना हालवालुं निश्चेतन (जीवरहित) पमेलुं शरीर जाणवू ॥३॥नव हारोश्री अवता एवा विष्टादिक पदार्थोश्री अत्यंत अंशुचि अयेला तथा काचां सरावलांसरखा ा शरीरनेविषे तुं निर्वेद ( वैराग्य ) पा-EI E 2E 2F22262 EEEEE3E269€ For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तडुल अधः पियं कबंधमि ॥ कलमलकोठागारं । परिवहसि याऽयं सवं ॥ ३३ ॥ तं च किर रूवतं। वञ्चंत रायमग्गमोईनं ॥ परगंधेहिं सुगंधियं । मन्नतं अप्पणो गंधं ॥ ३४ ॥ पामलचंपयमनिय-अगुरुयचंदणतरुक्कामीसं ॥ गंधं समोयरंतं । मनतं अप्पणो गंधं ॥ ३५ ॥ | म? ॥ ३५ ॥ श्राधमनी अंदर बे हायो, बे पगो तथा एक मस्कने खोसोघाल्यां , एवी रीते जेनी अंदर सघळु निंदनिकमां निंदनिक नरेलु बे, एवा प्रा अत्यंत क्लिष्ट, एवी विष्टादिकना कोगरसरखा शरीरने तुं धारण करे ॥ ३३ ते शारीर रूपवान श्रयुं अकुं, तथा परनी सुगंधिश्री सुगंधवाळु श्रयुं शकुं माजश्री राजमार्गमा जतुं थकुं ते परसुगंधिने पण पोतानी सुगंधि माने जे ॥ ३४ ॥ (ते वखते ) गुलाब चंपो मल्लिका अगुरु चंदन तथा तुः # रुकथो मिश्र अयेली सुगंधितने पोतापर लगावीने (ते परनीसुगंधिनने पण) पोतानी मा OFESFU9."19:3U9E999 ॥ FIFAIRS For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मुहवाससुरहिगंधं । ते मुहं अगुरुगंधियं अगं ॥ कसा दाणसुगंधा । कयरो ते अप्प गो गंधो ॥ ३६॥ अमिलो कन्नमलो । खेलो सिंघाणन य पून य ।। असुश्मुनपुरीमा । ॥१000 एसोते अप्पणो गंधो ॥१७॥ जान चिय इमान छियान अणेमेहिं कश्वरमहस्सेहि वि नीबेस ले ॥ ३५ ॥ ___ज्यार तांबुल आदिक मुखवासश्री तारुं मुख सुगंधि थयु , अगुरुना ( लेपनी ) सुगंविधी तारुं शरीर सुगंधि श्रयुं , तथा तारा केशो ( सुगंधि जलादिकवळे) स्नान करवा. घी सुगंधि या बे, त्यारे तेमां तारी पोतानी कर सुगंधि प्रावीपडी !! || ३६ ।। (दे E1100॥ नव्य!) तारां पातानां (शरीरनो तो) भावीरीतनो गंध ठे (ते सांजळ ? ) आंखोनो | । मेल, काननो मेल, बळखा ( धुंक ) श्लेष्म, रसी तथा अशुचि एवां मूत्र तथा विष्टा. एवो । For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल १०॥ UrOf164960016sakat90399... E विपासपडिबदिं कामरागमोदेहिं विन्निान तानवि एयारिमान, तं जड़ा पगाविसमा, कत्तिव बडुवयसालान, अवचहसियत्नासियविलासविसंतनूमीन, अविरायवातोलिन, मोहमदावतणीन, पियवयवल्लरीन, कश्चयपेमगिरितडीन, अवराहसह| तारो पोतानो तो गंध डे ॥३७॥ वळी पा स्त्रीन के जेननु विविध पासमा बंधायेला तथा कामरागथी मोहित श्रयेला एवा अनेक हजारोग में कविनए वर्णन कर्य बे, ते स्त्रीनप. ण प्रावी , ते कहे - (ते स्त्री) स्वन्नावधीज विषम, केटलांक चाटु वचनोनी शालासरखी, न वर्णवीश- काय तेवां दास्य, वचन, विलास, तथा विश्वासनी नूमीसमान, विनयरहित वातो करनारी, मोहना मोटा आवर्नरूप, प्रिय वचनोनी वेलमीसरखो, केटलाक प्रकारना प्रेमरूपी प. FastFFFFFERENNER9EHEMESEAgn.se.net १०॥ For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ १०५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वरली, पजवा मोगस्स, विणसो बलस्स, सूला पुरिसाएं, नामो लजाए, संकरो अविree, निलन नियकीणं, खाली वयरस्त, सरीरं सोगस्म, जेन मझायाणं, श्रासाठ रागरस, निलन चरिश्राणं, माइए संमोदो, खलणी नागस्त, चलणं सीलस्स, विग्घो धम्महम, अरी साहूणं, दूसरां श्रायारपत्ताणं, आरामो कम्मरुस्कल्स, फलिदो मुस्कमग्गस्म, ज तनी मेखलासरखी, हजारांग मे अपराधोंने धरनारी, शोकनी उत्पत्तिरूप, बलना नाशरू प, पुरुषोना कतलखानारूप, लज्जाना नाशरूप, अविनयना ढगलारूप, मायाना वररूप, वैरनी खाणरूप, शोकना शरीररूप, मर्यादानी नाशरूप, रागनी आशारूप, दुराचारना घररूप, मायाना नृत्पत्तिस्थानरूप, ज्ञानने श्रटकावनारी, शीलने चलनकरवारूप, धर्मनी विनरूप, साधूननी वेरण, आचारयुक्त ( पुरुषने ) दूपण आापनारी, कर्मरूपी वृक्षना बगीचा For Private and Personal Use Only अर्थः ॥ १०२ ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल সর্গঃ .. 11.4. 1 ॥१० ॥ | वणं दरिहस्स. अवियाई तान प्रासीविमोविच कुधियान, मनगाविव मगणपरक्सान, बग्घीवित्र दुहिययान, तनकुवोविन अप्पग्गसदिययान, मायाकारनश्वि नवयारसयवंचपनत्तान, पायरियसविधंपिक बहुगप्रमंजवान, फुफुयाश्व अंतोदणमीलान, नगमग्गोवित्र प्रणवसरखी, मोक्षमार्गप्रते नोगलसमान, तथा दरिझना जवनरूप (ते स्वीयो ) वळी ते स्त्री आशिविषसपनीपेठे क्रोधी, मदोन्मत्तदायीनीठे कामन परवदा घयेती, वाघणनीपेठे पुष्ट हृदयवाळी, तृणग्री ढांकेला कुवानी पेठे अप्रकाशित एटले अगम्भ हदरवा ली, कपटकरनारनीपे उगवाना सेंकडो नपचारोनो नपयोग करनारी, प्राचार्यना समीप| वननीपेठे घणा गन्नौना संनववाळी, अग्निनीपेठे अंत:करणमां दाऊ नपजावनारी, पर्वत R IAL 4tateAssta.461.01. ॥१०५। - O For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुलछियचिनान, अंतो उठवणाविव कुहियहिययान, किन्दमप्पोविक अविसस्तणिकान, संश्रा- अर्थ: रोविक विछिन्नमायान, संपरागोविच मुहुनरागान, समुदविचीविच चवलम्सनावान, मो॥१00 विव पुप्परियत्नणसीलान, वानरोविच चंचलचित्तान, मच्चूविव निविसेसान, कालाविव नि ना मार्गनीपेठे अनवस्थित चित्तवाळी, (शरीरनी) अंदर प्रयेला पुष्ट व्रणनीपेठे कोहेलो । हृदयवाळी, कृष्णसर्पनीपेठे न विश्वाप्त करवालायक, संथारानीपेठे विस्तीर्ण मायावाळी, सं ध्याकाळना वादळांना रंगनीपेठे क्षणिक रागवाळी, समझना मोजांनीठे चपल स्वन्नाववाळी, मत्स्यनी पेठे ःखें परावर्तन करीडाकाय तेवां शीलवाळी, वांदरानीपेठे चंचलचिनवाळी, १०४॥ मृत्युनीपेठे (कामातुर अश्रकी रोगी निरोगीआदिकनो पण ) तफावत नही समजनारी, कालनोपेठे निर्दय रुपनीले दाश्रमां पासलावाळी (पुरुषोने फसावनारी,) पाणीनीपे Fasanaskakkar94969ka09890969 Aamistart For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रगुकंपान, वरुणोविच पासहत्यान, सलिलमिवनिम्ममामिणीन, किविणोविच नाणहत्या न, नरमविव उत्तापणिकान, खरो व पुस्सीवान, उठस्मोविच दुहमान, बालो इन मुहुन. ॥१३॥हिययान, अंधयारमिव उपवेसान, विसवलीविव अगल्लियणिकान, छगाहा इव वापी अ पावगाहान, गणनठो व इस्सगे अप्पसंमणिकान, किंपागफलमिव महरान, ग्लिमहीविठे नीचप्रत पण गमन करनारी, कृपणनीपे न नान हाथवाली (असंतोषी) नरकनीपेठे संताप नपजावनारी, गधेमानीपेठे सुशील, उष्ट अश्वनीपेठे दुःखें दमीठाकाय तेवी, बाळ. कनीपेठे कण कण बदलाता हृदयाळी, अंधकारनीपेठे दुःखें प्रवेश कराय तेवी (अगम्य हृदयवाळी) फेरी वेलमीपेठे प्रसंग नही करवालायक, घोफारी वारनीपेटे नही अब गाइन करवालायक (विश्वास न करवालायक) राज्यासनधी ब्रटश्रयेला राजानीपेचे प्र. 1969kGRESSURESHARIFIFIPNFIFA TUE-033kata.109090119431118 १०५॥ For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल० ॥ १०६ ॥ *1816100 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व बाललोज कान, ममपेसीविव गणसोबवाड, जलिदचुलकीचित्र अमुञ्चमालदहलसीard, अरिमित्र उल्लंघलिकान, कूडकरिमाणवित्र कालविवायणसीवान, चंडाबसीलोनदी करवालायक, किंपाक फलनीपेठे ( मोठे ) मीठी ( परंतु परिणामे विनाशनपंजाबनारी ), खाली मूठी जेम बाळकने ( तेम पुरुषने विषयसंबंधि ) लालच उपजाबनारी, मांसनी पेसीनीपेठे ( दरेक कोइ कामी पुरुषग्री ) नावील जवारूप उपवाली, बळती सघमोनीपेठे ( पोताना ) दहनस्वज्ञावने नही बोमनारी ( पुरुषने अनेकरीतें दाद उपजावनारी ), उत्पातनीपेठे दुःखें उल्लंघन करीशकाय तेवी, बनावटी जूठा मिक्कानीपेठे कालांतरे दिवाळी (जरुसो राखनाथी ते पुरुषने महासंकटमां नाखनारी), बांडालना श्राचरणनीपेठे निंदनिक, अत्यंत ऊरवाळी (अथवा अत्यंत खेदवाळी), दुगंबा कर For Private and Personal Use Only श्रश्रः ॥ १०६ ॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुल० ॥20 ॥ +1FFATAFFIFESENESSFET विव दुगंडलिकान, अविसापन, गठियान, दुरूवव वारान, अगंन्नीगन, अविनामगिजाने, अववियान, दुस्कस्कियान, पुस्कपालियान, अश्कगन, ककसान, दरान, रूममोहम्गम मनान, नयगगश्कुडिलदिययान, एकंतहरिणकालान, कनारगश्चगणनमान, कुलमयणमि| वालायक, सुखें जेनो (खराव चालश्री अटकाववामाटे) नपाय के तेवी, गनिस्ता विनानी, विश्वास नहीं करवालायक, अनवस्थावाळी (बोलीने फरीजाय तेवी), दुःखें जे. नु रक्षण शके तेवी, पुःखें जेनु नरणपोषण प्रश्शक तेवी, अतिशय करनारी (लीधी वातने नदी बीडनारी, हठीली), कर्कश (मर्मनां वचनो बोलनार), दृढ़ बैरवाळी, (पो. तानां ) रूप अने सोनाग्यना मदश्री नन्मन अयेल), सर्पनी गतिसरखां कुटिल हृदयवाळी, एकांत काळोयार हरिणसरखी (वाळी बळे नही तेवी), वनवासगमनना स्थानसरखी (न RELIEFFEEAGUEUEURIAvansaram १०७ For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सैदुल० अशा HEARNIHEIR नन्नेयणकारिपान, परदासपगासियान, कयग्घान, चवलदिययान, चंचलान, एगंतहरिणकु लान, जो य डानमारोविन मुहरागविरागान, अवियाइंतान अंगनंगस, अरज्जुयो पासो, ॥१०॥ अदारुया अमवी, अणालयम्स निलयो, अश्स्कवेयरणी, अणामिया वाही, अविनगा विप्प यंकर), कुल, स्वजन तथा मित्रोवच्च नेद (विरोध) करावनारी, परना दापोने प्रगट करनारी, कृतन (करेला नपकारने विमारनारी), चपल हृदयवाली, चंचल एकांत हरिणना टोलांजेवी (मूर्ख), वलो जे करिधागानी वस्तुननी पेठे वारंवार राग तथा विरामवाली, कमोगमे अंगनंगने प्रगट करनारी, दोरीविनाना पासारखी, काष्टविनाना वनमरखी, नधमना घरसरखी, वैतरणी नदी सरखी, न मटीशके तेवी व्याधिसरखी, वियोगविनाना विप्रलापरूप, अमंतोषना नपमर्गवाळी, कामीनना मनने नमावनारी, सर्वअंगप्रते दाद न FAFFORIES १०॥ For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ १०९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लावो, असंतुमवसग्गो, रइवंतो चित्तविप्रमो मगनदादो, प्रणप्रप्यसूया वजासली, अस लिलप्पवाहो समुहरन अवियाई तासि इडीयाणं अोगालि नामानि निरुताल पुरिने का मरागपडिबड़े नालाविदेहिं नवायसदस्मेदिं वदबंधण मारयंति, पुरिसाएं नो नो एरिसो रिति नारीन, तं जहा नारीसमो न नराणं श्ररिनु नारीन, नाणाविदेदिं कम्मेदि पंजाबनारी, मेघविना नृत्पन्न थयेली बीजळीसरखी, जलविना समुइना प्रवादसरखी बे. वळ ते स्त्रीनां निरुक्त एटले गुणनिध्पन्न अनेक नामो बे (जेमके ) कामरागधी बंधायेला पुरुषने, स्त्री ने ते नानाप्रकारना हजारो उपायांवडे करीने वध बंधन तथा मृत्यु प्रते पहोंचा के, माटे पुरुषोनो ते स्त्रीसमान बीजो कोइ एवो अरि एटले शत्रु नथी माटे 'नःरी' केमके नारीसमान पुरुषको शत्रु नथी माटे 'नारी' विविध प्रकारनां शिल्पादिक का For Private and Personal Use Only अर्थः || २० || Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ ११० ॥ www.kobatirth.org सिपियाइएहिं पुरिसे मोदतिनि महेलियान, पुरिमे मने करतित्ति पमयानु, महिति कलिं जलयंतिति महिलान, पुरिसे दावजावमाइएदिं रमेतिति रामान, पुरिसे श्रंगाणुगए करंतिति अंगलान, नाणाविदेसु जुइनंमल संगामाडवीसु सिसिरगिासी नन्द उरक किले समाइएसुपुरिसे लालतिनि खानु, पुरिसेनेगनिनुगेहिं बने वानिति जोसीयान, पुरिने नायथी पुरुषने मोह नृपजांब बे, माटे 'महिला, पुरुषने मदोन्मत्त करे माटे प्रमदा, महिंति एटले केश उपजावे बे माटे 'महेला', पुरुषनीसाथ दावजाव श्रादिकथी रमे वे माटे 'रामा', पुरुषोने ( पोताना ) अंगप्रते अनुराग नृपजांब वे माटे 'अंगना', विविधप्रकारनां युद्ध, जंडन, संग्राम, तथा वनमां शिशिर तथा ग्रीष्म रुतुथी उत्पन्न ती ठंडी तथा गरमी उत्पन्न तां दुःख तथा क्लेश श्रादिकमां पुरुषोनुं लालन करे व माटे लखना For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • , 2: ܘ ܐ ܕ ܐ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie तंडुल० याविहेहिं नावहिं वमंतित वणियान, काइन पमनावं, काइ पणयं सवितम, कास. यं सामिव ववदरंति, काइ सतुमरोश्व, काइ पाएसु पणमंति, कानवमंति, कानपनसंति, का सुकमरकनिरिस्कएदि, सवितासमहुरेहिं नवहसिएहिं, नवगदिएहि, नवस हिं, पुरुषोने अनेक प्रकारना नपायोश्री वश करे माटे · योषित, ' पुरुषोमते नानाप्रकारनो वि|नय करे माटे 'वनिता.' ( हवे पुरुषोने जे जे नावोश्री स्त्री वश करे ते कई ब) कोक स्त्री मदोन्मत्नपणाश्री, कोक प्रेमसहित विलासयी, तश्रा केटलीक पोतेज (जर्तारपर ) स्वामिपणानो व्यवहार (हुकम ) चलाद ने. कोइक शत्रुलावधी ( पुरुषनो घात कर ठे), कोश्क पगे पछेउ, कोइक नपनय करे , केटलीक ( कोई वस्तुनी) नेट करे के. वळी केटलीक कटाक्षपूर्वक जोवाश्री, विलासयुक्त मधुर उपहासथी, (विविधप्रकारनां) - ANJURESSIFIEDEHEYESEEJngh ॥१११ : BFt For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल। नरुदरिमणेडिं, नूमिलिहिणविलिनणेहिं च, प्रारूदणनट्टणेदिं य, बालनवगृहणेहिं च, अंगु- अर्थी लीफोमण प्रणपीलण कडितडजायणेहिं तकणेहिं च. ॥शा अधियाई तन पाने वसिन जे, मंकुच खुप्पिन जे, मनुष्य सरिनं जे, अगणिव डाहे आलिंगनोत्री, रातसमयना (सीकारादिक ) शब्दोच्चारश्री, (पाताना ) स्तनोने दखामवाश्री, पृथ्वीपर लेखन नया विलेपनश्री, ( रतिसमये पुरुषप्रते ) पर चडवाश्री तथा नृत्य करवाश्री, बाळकोने आलिंगन करवायी (बातीमा दाबवाथी), आंगळीनना टाचका फोडवाश्री, स्तन दबाववाश्री, केडने मरडवाथी, तथा तजनाश्री (पुरुषने स्त्री मोह - E११२॥ माडी वश करे .) वळी ते स्त्रीनना समागमश्री (पुरुष ) जाणे (पोते ) पासमां पड्यो होय नही, 298196F984999368169FUkan FREEHENE13636 For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंदुल अप्रैः "BAR MUSERSHEELESE जे, असित जिनं जे. ( गाहा ) असिमसिमाग्विीगं । कतारकवाडचारयममाणं ॥ घोर- निरंबकंदर । बलं च बीननावाणं ॥१॥ दोममयमागर्गणं । अजस्म य विमप्पमाणदिपयाणं ॥ न य ने विममियो । तागं अनायसीनागं ॥२॥ जाणे पाताने खोलो गकी खोलीलीबेलो होय नही, जाणे शत्रु याद आयो होय नही, जाणे अनिश्री दाऊयो हाये नही, तश्रा जाणे तलवारथी दायो होय नदी तेवो श्रद जाय . (वळी ते स्वीन) तलवारसरखी (घान करनारी), काजळमरखी (कुलमा कलंक न. पजावनारी), वनवाससरखी, (सुगतिमा जवान गेकवाने) कमाझमरखी, केदखानासरखी, | अंधकारना समूहनी गुफासरखी, तथा बीनत्स नाबोना सेन्य जेवा, सेंकडोगमे दोषोना घ. | डासमान, तथा अपयशना स्थानसरखी, अने चपल हृदयवाळी, तश्रा अज्ञानयुक्त अथवा FNFk+3+REPUFFEELSECRET ११५॥ + For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ ??४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नं रज्जति अन्नं । रमंति अन्नस्त दिति उल्लानं ॥ श्रनो कडयंतरियं । अन्नो पडयंतरे afa || ३ || गंगा वालुया । सायरे जल हिमविन य परिमाणं ॥ नग्गस्म तबस्स गइ | गप्पत्तिं चवलियाए || ४ || सीहे कुडबुयारस्स | पुलं कुकुदाई अस्से ॥ जाति बुहिमंता । महिलादिययं न जाणंति ॥ ५ ॥ एरिमगुणजुत्ताएं | ताणं कश्यं वमतिय मलाअन्याययुक्त एवी के स्त्रीजना विश्वास करवो नही. ॥ २ ॥ अन्यने खुशीकरे बे, अने अन्यसाधे रमे बे; अन्यने वचन आपे वे, वळी अन्यने सादनी पाबळ संताडे बे, तथा वळी अन्यने पडदापाबळ गुप्त राखे बे ॥ ३ ॥ गंगानी वेलु, समुइनुं जल, हिमालयनुं प्रमाण ( वजन ) नम्र तपनुं फल, माउलीनी गनोत्पत्ति ॥ ४ ॥ सिंहन गुप्त गुंजारव तथा घोडानो गूढ एवो प्लुनशब्द, ए समळु बुद्धिवानो जालीशके बे, For Private and Personal Use Only अर्थः ॥ ११६ ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल० 11 ?? 02 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णं ॥ न हु जे वीससियवं । महिलाएं जीव लोगंमि || ६ || निरायं च वलयं । पुष्फे हिं वश्रिं च रामं || निद्भियं च घेणुं । लोइयं तिल्लियं पिंडं ॥ ३ ॥ जेतरेण निमिति । लोयलाजिस्कणं च विगमति || तेणंतरेण दिययं । चिनसदपरंतु स्त्रीना जाणीशकता नथी ॥ ५ ॥ एवा गुणो वाळी तथा मननीअंदर अनेक ( पुरुषो ना ) वासने धारण करती एवी ते स्त्रीजनो या दुनियामां विश्वास करना नहीं ॥ ६ ॥ वान्यविनानुं जेम खलुं, पुष्पोविनानो जेम बगीचा, दूधविनानी जेम गाय, तथा तेलविनानी जेम तलनो पिंक ( खोळ ), तेम ते स्त्री असार बे ) ॥ ७ । जेटला वखतमां आंखो वारंवार उघाडनीड श्राय डे, तेटला बखतमांज (स्त्रीनुं ) ह दय हजारोगमे विकल्पाश्री व्याकुल थाय बे ॥ ८ ॥ जरु, लंपट ( विषयोथी ) नही अ For Private and Personal Use Only अर्थः ॥११॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तेइल०/ अश्रो ..366194F1. ॥ al 中中中中中中中中中山中山中中中中中毒 स्मानलं दो ॥ 6 || जमाणं विमाणं । निविल्माणं च निविससाणं ॥ संसारसूयराणं । क. दियंपि निग्यं हो ॥ ॥ किं पुनेहिं पियाहिं य । अच्छेण विभिएण वहुएणं ॥ जो मरणदेसकाले। न होश आलंबणं किंचि ॥१०॥ पता चयंति मित्ता। चयति नजा विणमियं चयः ॥ तं मरणदेसकाले । न चया सुविअजिन धम्मो ॥११॥ धम्मो ताणं धम्मो टकेला, अने सारामारनो विचार नही करनारा तथा समारमा सूकरनीपेठे (विषयोमा) आसक्त श्रयेला एवा जीवाने श्रापेला नपदश पण निरर्थक जाय ॥॥ मरणसमये प्रा. णीनने जे आलंबननून १३ शकतां नश्री, एवां पुत्र, स्त्री तथा बदुप्रकार एकठां करेला ध. नथी पण शुं कार्य सिंह अवार्नु ? ॥१०॥ मरणसमये मृत्युपामेला ते प्राणीने पुत्रो, मित्रो तया स्त्रीपणतजी देवे. परंतु सागरीने नपान करलो धर्म तेने तजतो नश्री।। ११६॥ *+UNGAFF For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल अर्थः 100000 *9929kskskskskskskES.NE" । सरणं धम्मो गई पच्छा य॥ धम्मेण सुचरीएण य । गम्मद अजरामरं गणं ॥१२॥ पीयकरो वनकरो। नासकरो जमकरो रश्करो य ॥ अन्नयकरो निव्वुश्करो । परत्नवि अजिन धम्मो ॥ १३॥ अमरनरेसु अगोवम-रून लोगोवन्नोगरिही य ॥ विनाणनाणमेव य । लप सुकरण धम्मेण ॥१४॥ देवींदचकवहि-जणाई राई नियाजोगा | एयाइंध॥११॥ धर्मज रक्षण करनार, शरणकरवाजोग, तथा उत्तम गति (आपनारो) , माटे सारीरीते आचरेला धर्मवमे करीने मोके जवाय ॥१२॥ बळी ते उपार्जन करेलो धर्म परलोकमां पण प्रीति करनारो, प्रशंसा करनारो, कांति करनारो, जश करनारो, रति करनागे, अन्नय करनारो तथा मोक्ष करनारो श्राय ॥१५ । वली सारीरीते करेला धर्मश्री देव तथा मनुष्य नवमां अनुपमरूप, लोगोपन्नोगनी शकि, कलाविज्ञान तथा ज्ञान प्रा. ABEnt-sksewa ॥११ ॥ For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल Hम्मलानो । फलाई जंचावि निवाणं ॥ ५॥ आदारो कमामा । संधिसिगन य रोमकूवा य। पिनं सादरं सुकं । गणियं गणियपदाणेहेिं ॥१॥ एवं सोनं मरीरस्म । वासाणं ॥११ ॥ गणियं पागडम ॥ मरकपनमस्त इदन । मनमदम्मपनस्म ॥१७॥ एयं मगडम. मत थाय ॥१४॥ देवेपणुं, चक्रवर्तिपणुं, राज्यपादिक तथा मनोवांवित लोगो, ए सघ लां धर्मश्री प्राप्त श्राय , तथा ते धर्मनु फल मोक ॥ १५ ॥ (एवीरीते आग्रंथमा) ग. णितविद्यामां कुशल एवा (गोतार्थोए ) जीवना आदार, श्वासोश्वास, सांधा, नाडीन, रोमकूपो, पित्त, रुधिर एया वीर्य, गणित कह्यु. एवी रीने आ शरीरना आयुना वर्षानुं म- हान् अर्थवाळु गणित प्रगट ते मांजळीने मम्यस्वरूपी हजारो पांखडीवाळा मोक्ररूपी कमळनीछा करो? ॥१७॥ आ गाडांसर शरीर जन्म, जरा अने मृत्युनी वेदनाश्रीग्लु. "atNEFIFUUEFAFRAMEFUFFFat +4ESENUEUEUERIEHEESENESED ११॥ For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तंडुल 9ka030901 ॥ १ ॥ रीरं । जाइजरामरणयाणाबद्दलं ॥ तद यत्तं का, जे। जद मुञ्चए मबस्कागं ॥१॥ श्यं तंदुलवेयालिअं| पश्नगं जो न चिंता महप्पा ॥ इह परलोए मोनावमल्लु-द्वारकारणं लदा लिव सुरकं ॥१९॥ इति श्रीतंडुलवेवालियपनगमूवं संपूर्ण ॥ श्रीरस्तु ॥ (माटे दे नव्य!) तारे एवारीतनो प्रयत्न करतो जोइये, के जेत्री सर्व दु:खोश्री तुं मुक्त या ॥१७॥ जे महात्मा पुरुष आ तंडुलक्यालियपयनाने प्रा नवमां चिंतवे , ते परतवमेविषे नाबाल्योने नखेमो नाखवाना कारणरूप एवां मोक्षसुखने प्राप्त थाय ॥१॥ एवीरीते आ तुंडलवेयालीवपयन्नानो अर्थ जामनगरनिवासी पंडित श्रावक दीरालाल इंसराजे यथामति करीने पोताना श्रीजैनन्नास्करोदय प्रेसमां मूलसहित स्वपरना श्रेयमाटे गपी प्रसि को . ॥ श्रीरस्तु ॥ ममाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमच्चारित्रविजयसुप्रसादात् ॥ For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वाधीनगर), कि0000 // इति श्रीतंऽलवेयालियपयन्नं सार्थं समास For Private and Personal Use Only