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तंडुल
दलो किस्म गायसरीरे, सरस सुरनिगंधगोसीस चंदलालितगने, सुइमालावत्रगविलेवले, कप्पियहारदार तिसरयपालंबलंबमालकडि सुत्तय सुकयसोदे, पिएड़गेविअंगुलि जगल लियकया॥ ५६ ॥ जरणे, नाणामलिका गरयल कडग तुमि यजियनूए, अहियरुवसस्सिरीए, कुंडलुको त्रिया
नए एवा, चंदनग्री लिप्त करेल वे शरीर जेनए एवा, रसयुक्त सुगंधि गोशीर्ष चंदनी प्रतित करेल वे गात्री जेननां एवा, पवित्र मालावाळा तथा श्रत्तर आदिकना विलेपन वाळा, पेदेरेला एवा दार प्रहार सवाळो हार झुलतां एवां झुंबणा श्रने कंदोराश्री करेल बे जा जेनए एवा, पेहेरेला एवा कंठा तथा वीटीनथी मनोहर करेल वे आनूपलो जेनए एवा नाना प्रकारां मणि सुवर्ण तथा रत्नानां कडां ने बाजुबंधोथी स्तंजित बयेल बे भुजान जेनी एवा, अधिक रूपश्री शोभायुक्त बयेला, कुंम्लोषी तेजस्वी प्रयेल वे मुख जे
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अर्थः
।। ५६ ।