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एवं परिहायमाणे । लोए चंदुव कालपरकंमि ॥ जे धम्मिया मणुस्ता । जीवसु जी- अर्थ: | वियं तेसिं ॥ ५ ॥ पानसो! से जहानामए के पुरिसे ह्राए कयबलीकम्मे, कयकोनयम॥ ५५0 गलपायच्चिने, सिरसि हाए, कंठमालकडे, प्राविमणिसुबन्ने, अहयसुमहग्यवचपरिहिए, चं
एवी रीते कृष्णपक्षमां चंनीठे (नत्तम वस्तुननी ) हानि होते ते जे माणसो धर्मनीअंदर सावधान रहे , तेननुज जीवन सफल . ॥ ५ ॥ हे आयुष्मन् ! ते यथार्थ नामवाळा केटलाक पुरुषो के करेलुं ने स्नान जेनए एवा, करेल ले गृहचैत्यनी पूजाआदिक बलिकर्म जेनए एवा, करेल रक्षाबंधनादिक कौतुक, दधिदूर्वादिमंगल, तथा कुस्वप्ना-nu || दिकमाटे प्रायश्चिन जेनए एवा, मस्तकपर स्नान करेला, कंठमां पेहेरेली में माला जेनए एवा, बांधेल ले मणिसुवर्णना आनूषणो जेनए एवा, नवां तथा मोघां पहेरेख ने वस्त्रो जे
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